Tuesday 28 December 2010

तो कलम सार्थक रही...

जयंत डागोर की जो कहानी "कलम बोलती है" ने आपको आज से पांच महीने पहले सुनाई थी, उसी को अब मेनस्ट्रीम मीडिया में भी लिया जा रहा है। संभव कोशिश यही है कि इसकी प्रेरणा आपका ये ब्लॉग ही बना। दैनिक जागरण के नई दिल्ली एडिशन में 22 दिसंबर 2010 को प्रकाशित हुई इस कहानी का स्कैन।
"कलम बोलती है" का लिंक, 18 जुलाई 2010 को लगाई गई स्टोरी का।
ऑस्ट्रेलिया में अभी भी जारी है नस्लवाद...
http://boltikalam.blogspot.com/2010/07/blog-post_18.html

Wednesday 22 December 2010

"स्वर्णिम मध्य प्रदेश की कहानी "दागदार हैं माननीय " ......भाग १


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहाँ एक ओर "स्वर्णिम मध्य प्रदेश " बनाने में लगे है वही प्रदेश के भीतर मौजूद माननीयो का दामन भी कम दागदार नही है ......२३० सदस्यों वाली प्रदेश की विधान सभा में तकरीबन ५० विधायक कई संगीन आपराधिक घटनाओ में लिप्त पाए गए है .....यह खुलासा खुद प्रदेश के गृह मंत्री उमा शंकर गुप्ता ने सदन में महीनो पहले किया ......

मध्य प्रदेश विधान सभा में सब कुछ ठीक ठाक है .... यह कहने से पहले अब विधान सभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी को दस बार सोचना पड़ेगा ....आमतौर पर रोहाणी मध्य प्रदेश की विधान सभा को उत्तर प्रदेश, बिहार , महारास्ट्र जैसे राज्यों की विधान सभा से बेस्ट बताने से पीछे नही हटते थे लेकिन सूबे के गृह मंत्री उमा शंकर की घोषणा ने रोहाणी को यह सोचने लिए मजबूर कर दिया है कि मध्य प्रदेश की विधान सभा में कुछ भी " आल इज वेल " नही है.......

लोकतंत्र के जिस मंदिर में बैठकर राज्य के विधायक सूबे के विकास की दिशा तय करते है उसी पवित्र मंदिर के भीतर हमारे कई ऐसे विधायक प्रवेश पा गए है जो गंभीर घटनाओ को अंजाम देने के आरोपी है ....इनके खिलाफ लूटपाट , धोखाधड़ी से लेकर हत्या तक के मामले प्रदेश के विभिन्न थानों में दर्ज है ... इसमें सत्ता पक्ष के साथ विपक्षी भी शामिल है....

सदन को कुछ समय पहले उपलब्ध करवाई गयी इस जानकारी में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये है .....विधान सभा के उपाध्यक्ष हरवंश कपूर से लेकर कांग्रेस की दिवंगत पूर्व नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी का नाम भी शामिल है .......हरवंश सिंह पर जहाँ धोखाधड़ी का मामला दर्ज है वही बिजावर से विधायक आशा रानी सिंह पर अपहरण, बलात्कार में सहयोग जैसे कई मामले दर्ज है.......

डबरा की विधायक इमरती देवी भी धोखाधड़ी के एक केस में फसी हुई है.... बिजावर से आशा रानी सिंह पर कई संगीन धाराए लगी है जो वर्तमान में पुलिस की पहुच से बाहर है .......सीहोर से विधायक रमेश सक्सेना , डिंडोरी से ओमकार सिंह, खुरई से अरुणोदय चौबे , बन्दा से नारायण प्रजापति और गाडरवाडा से साधना स्थापक और महिदपुर से चर्चित विधायक कल्पना परुलेकर के खिलाफ बलवा, आगजनी की एफ आई आर विभिन्न थानों में दर्ज है..... टीकमगढ़ से पृथिवी पुर के विधायक ब्रिजेन्द्र राठौर पर हत्या और उससे जुड़े मामलो पर कई मामले दर्ज है जिनकी संख्या काफी ज्यादा है........

चौकाने वाली बात ये है कि प्रदेश की विधान सभा में तकरीबन ५० सदस्य ऐसे है जिनके खिलाफ विभिन्न थानों में कई संगीन अपराध पंजीकृत है .... मध्य प्रदेश के १८ से अधिक माननीय तो ऐसे है जिनके खिलाफ गंभीर वारदातों को अंजाम देने का आरोप है...............

धरा १८८ के तहत सत्य नारायण पटेल , यशपाल सिसोदिया , जीतेन्द्र डागा, बाला बच्चन , माखनलाल जाटव, कल्पना परुलेकर पर मामले जहाँ दर्ज है वही १५१ के तहत विश्वास सारंग ,( दिवंगत नेता) बुआ जी , अजय सिंह, हुकुम सिंह, उमंग सिगार , के पी सिंह, सुखदेव पाये , दिलीप सिंह , निशीथ पटेल, प्रिय व्रत सिंह, तुलसी सिलावट, यादवेन्द्र सिंह, बाल सिंह, प्रताप ग्रेवाल , ओमकार सिंह, रेखा यादव , लक्षमण तिवारी पर संगीन धाराए लगी है......

इतना ही नही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल के मंत्री भी आपराधिक घटनाओ में लिप्त पाए गए है.....महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रंजना बघेल के खिलाफ ३२३, ५०६ के तहत प्रकरण दर्ज हुआ है वही सहकारिता मंत्री गौरी शंकर के खिलाफ १८८ के तहत मामला दर्ज है.... रंजना बघेल के खिलाफ तो चालान प्रकरण भी तैयार हो गया है लेकिन इसे न्यायालय में प्रस्तुत नही किया गया है वही सहकारिता मंत्री के खिलाफ एक प्रकरण न्यायलय में विचाराधीन है..... पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा के खिलाफ १८८, १२६ जनप्रति निधि अधिनियम के तहत गंभीर मामले पर सुनवाई अभी चली है.......


सबसे मजे की बात तो ये है कि संगीन आपराधिक घटनाओ के मामले में सत्तारुद भाजपा के साथ ही विपक्षी कांग्रेस भी दूध की धुली नही है...... डबरा से कांग्रेस की विधायक इमरती देवी , धरमपुरी से कांग्रेस विधायक प्राची लाल , साधना स्थापक, नारायण प्रजापति , प्रदीप जायसवाल, पर कई संगीन धाराए लगी है ....


वही "स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने वाले प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की पार्टी के विधायको ने अपराध करने में सारे रेकॉर्डो को पीछे छोड़ दिया है......आशा रानी सिंह का आज तक पता नही चल पाया है.....

बहरहाल, जो भी हो देश में आपराधिक घटनाओ को करने में विधायको से लेकर सांसदों और भू माफियाओ की भूमिका किसी से छिपी नही है......यह घुन अब मध्य प्रदेश की विधान सभा में भी लग चूका है.....चूँकि विधान सभा के अन्दर तक पहुचने की चाबी जनता जनार्दन के हाथ रहती है .... अतः ऐसे में उसे ही विचार करना होगा कि कैसे इन माननीयो को सदन भेजने से रोका जाए....?

Thursday 16 December 2010

"दिग्गी" राजा का सियासी वार .......भाग 2


दिग्विजय सिंह कोई नौसिखिये राजनेता नही है। वह १० साल मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुख्य मंत्री की कुर्सी सँभालने के साथ ही संगठन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को संभाल चुके है .....ऐसे जिम्मेदार व्यक्ति से यह उम्मीद नही की जा सकती कि वह अपनी पार्टी की और खुद की राजनीती चमकाने के लिए देश के शहीदों की शहादत पर सवाल उठा लेगा दिग्विजय सिंह द्वारा दिए गए बयान को पार्टी के कई लोग नही पचा पा रहे है ...
संभवतया पांच राज्यों में होने जा रहे विधान सभा चुनाव और बिहार में कांग्रेस की पतली हालत के मद्देनजर मुसलमानों की सहानुभूति पाने के लिए उन्होंने यह बयान दिया.... इस बयान के जरिये दिग्गी राजा ने एक तीर से २ निशाने साधने की कोशिश की है...
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पहला तो हाई कमान के दरबार में अपने नम्बर बदाना और दूसरा मुस्लिम वोटरों के प्रति अपनी पार्टी की सहानुभूति को सभी के सामने उजागर करना..... इसमें उनको कितनी सफलता मिलती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इस बयान से कांग्रेस ने अपने को अलग कर दिया है......उसके प्रवक्ता का कहना है कि यह दिग्गी राजा के निजी विचार हो सकते है.......... पार्टी का इससे कुछ भी लेना देना नही है .......

वैसे बताते चले इस बयान ने भाजपा को कांग्रेस को घेरने का एक मौका और दे दिया है..... केंद्र की संप्रग २ सरकार लगातार घोटालो में घिरती जा रही है....ऐसे में जनता का ध्यान भटकाने के लिए दिग्गी राजा ने हिन्दुओ को निशाने पर लेना शुरू किया है......
पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार के राज में जिस तरह से घोटालो की परते खुलती जा रही है इससे कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नही ले रही है... इसी को ध्यान रखते हुए दिग्गी राजा ने एक बार फिर से हिन्दुओ के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया है ........

शहीदों के नाम पर दिग्गी जैसे राजनेता आज भी राजनीती करने से बाज नही आ रहे है ......यह इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे राजनेता आज न जाने किस युग में जी रहे है .... उन्हें यह बात मालूम नही कि आज का वोटर समझदार हो गया है... वह जात , धर्म की राजनीती को भुला कर विकास की राजनीती पर यकीन करता है ....वह इस बात को बखूबी जान गया है कि नगर निगम चुनाव में किसको वोट देना है... साथ ही राज्य और केंद्र में किसको मौका देना है ?

(जारी रहेगा.......)

Tuesday 14 December 2010

"दिग्गी" राजा का नया सियासी वार ............भाग १

चर्चा में बने रहना दिग्गी राजा का पुराना शगल रहा है......इस बार भी कांग्रेस के महासचिव "दिग्गी" राजा फिर सुर्खियों में है.....मुंबई हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे की शहादत पर सवाल उठाकर उन्होंने एक बार फिर से अपनी अदा को सबके सामने ला दिया है..... हालाँकि उनकी पार्टी ने दिग्गी के बयानों से कन्नी काटने की कोशिश की है लेकिन दिग्गी राजा अपने कहे पर भी कायम है......इसने कांग्रेस पार्टी की मुश्किलों को बदा दिया है......

दिग्विजय सिंह के बयान
इस समय उफान पर है.... इस ने एक बहस को जन्म दे दिया है जिसके मुताबिक वोट बैंक की राजनीती करने के लिए कांग्रेस पार्टी किसी भी हद तक जाने को तैयार है चाहे उसे इसके खातिर शहीदों का ही अपमान क्यों न करना पड़े... कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी कुछ ऐसा ही किया है....बीते दिनों दिग्गी राजा ने इस बात का खुलासा दिल्ली में एक पुस्तक के विमोचन समारोह में किया जब उन्होंने कहा कि मुंबई पर हमला होने से ठीक पहले उनकी हेमंत करकरे से फ़ोन पर बात हुई थी जिसमे करकरे ने मौत की आशंका जताते हुए कहा था कुछ हिन्दू संगठनो से उनकी जान को खतरा है ......हालाँकि हेमंत की पत्नी कविता करकरे ने इन बातो को सिरे से नकार दिया है..... उन्होंने कहा कि उनके पति की मौत पर अब राजनीति नही की जानी चाहिए ...

यह बयान देश में सबसे लम्बे समय तक काम करने वाली सबसे बड़ी पार्टी के महासचिव के मुह से आया है लिहाजा इस पर शोर मचना तो आम बात बन चुकी है ......यह बयान शहीदों की शहादत का भी अपमान है .... दिग्गी भाजपा और दुसरे दलों के नेताओ को जुबान संभलकर बात करने की नसीहत तो समय समय पर देते रहते है लेकिन अपना खुद विवादों में फसकर अपनी छवि ख़राब करने में लगे है ......हेमंत करकरे का सवाल उठाकर दिग्गी राजा ने एक बार फिर वोट बैंक की राजनीती को गरमा दिया है.... यह बात इसका गवाह है कि किस तरह देश की सबसे बड़ी पार्टी से लोगो का अटूट भरोसा टूटता जा रहा है.........
( जारी रहेगा....)

Thursday 2 December 2010

क्लिक ----- क्लिक




घुमक्कड़ी करते हुए कुछ तस्वीरे उतारी है .....नजर फेरियेगा ऐसी उम्मीद है ......डोट कॉम के भी कई प्रकार मार्केट में आ चुके है... सांप , बिच्छु के बाद अब बारी केकड़े की है ....स्वर्णिम मध्य प्रदेश में अब कई तरह के ग्रुप बन्ने लगे है ..... शिव राज मामा अपना प्रदेश की भावना जगा रहे है ....... ग्रुप तस्वीर पर मामा का प्रभाव लगता दिख रहा है...."शनि देव " का तो क्या कहना .... ग्लोबल हो गए है..... जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है... या तो " साईं " या "शनि " देव.... संजय टेलर का भी क्या कहना ॥ अपना प्रचार कर रहे है और पोस्टर चिपकाना मना कर रखा है .....प्रेस की इससे बड़ी आज़ादी और क्या हो सकती है ..... आज़ाद प्रेस नाम से पेपर ............

Sunday 21 November 2010

रमणीयता और शांति की अनूठी मिसाल----- "जागेश्वर"


उत्तराखंड अपने में कई ऐतिहासिक धरोहरों , मंदिरों को अपने में समेटे है.... यहाँ की धरा का स्पर्श पाकर कई महात्माओं ने अपने को धन्य किया ... यही वह धरा है जहाँ पर कई ऋषि मुनियों ने जप तप के द्वारा अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त की थी... इसकी प्राचीनता और ऐतिहासिकता के चलते इसे "देवभूमि" की संज्ञा से भी नवाजा जाता है... उत्तराखंड की शांत वादियों में पहुचकर तीर्थ यात्रियों को एक सुकून सा प्राप्त होता है ... यहाँ आने वाला हर पर्यटक मन में एक छाप लेकर लौटता है और बार बार यहाँ अपने कदम रखने की आकांशा लिए अपने घर लौटता है ....

उत्तराखंड की शांत वादियों में कई पौराणिक स्थलों की खेप मौजूद है ....राज्य का अल्मोड़ा जनपद पर्यटकों की आवाजाही का मुख्य केंद्र रहा है....दारुका वन जागेश्वर धाम भी यहाँ का मुख्य तीर्थ है जो रमणीयता और शांति की अनूठी मिसाल पेश करता है ...

जनपद अल्मोड़ा से तकरीबन ३५ किलो मीटर की दूरी पर मौजूद यह स्थल तीर्थस्थल का रूप लेता जा रहा है ...प्रतिवर्ष यहाँ पर पहुचने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है ...कहा जाता है वनों की आभा के मध्य में इस स्थल के दर्शन मात्र से मन में ज्ञान की अलौकिक ज्योति जल जाती है ॥ यहाँ की गई स्तुति से भोलेशंकर प्रसन्न होते है और याचक की सारी मनोकामनाए पूरी कर देते है ॥

जगत के ईश जागेश्वर जता गंगा और कदर्पी नदी के किनारे बसे है... कई गाथाये भी इस स्थल से जुडी हुई है ...स्थानीय पुजारी बताते है प्राचीन काल में यह स्थल कैलाश मानसरोवर यात्रा का मुख्य पड़ाव था .....मान्यता यह भी है जागेश्वर में ज्योत्रिलिंग की स्थापना नागवंशी नरेशो के द्वारा की गई ॥ इस स्थल से कई चमत्कारिक गाथाये भी जुडी हुई है... कहा जाता है कालो के भी काल "महाकाल" भगवान् शंकर मृत्युंजय महादेव साक्षात् रूप में यहाँ पर विराजमान है ...

जागेश्वर मंदिर समूह के बारे में ऐसी मान्यताये भी मिलती है जागनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं देवो के शिल्पी "विश्वकर्मा" ने किया ... आदि गुरु शंकराचार्य के बारे में भी यहाँ कई कथाये प्रचलित है ...कहा जाता है कि उनके द्वारा यहाँ पर कई मंदिरों की पुनर्स्थापना की गई... प्रथम शिव लिंग यहाँ पड़ने के कारन "यागिश्वर" का नाम "जागेश्वर" पड़ा ....यहाँ पर शंकर भगवान् के कई रूपों में दर्शन होते है .....

दंत कथाओ के अनुसार वशिष्ट मुनि ने राम के पुत्र कुश को इस स्थान के विषय में बताया था... उन्होंने प्राचीन समय में इसे मुक्ति प्रदान करने वाले इलाके के रूप में परिभाषित किया था... मुक्ति धाम के अलावा यह इलाका सुख ,शांति प्राप्ति के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है...प्राचीन काल में इसे लिंगो की उत्पत्ति का मुख्य केंद्र भी बताया गया है ...

घनी वादियों में "चक्रेश्वर नाथ "की पूजा विशेष महत्वपूर्ण बताई गई है ...इसके पूजन मात्र से मनुष्य के जन्म जन्मान्तर के पाप धुल जाते है .... १२४ मंदिरों वाला यह समूह कत्यूर कला और स्थापत्य कला कि दृष्टी से खासा अहम् है ...दीवारों पर आठवी सदी से नौवी सदी के लेख उत्कीर्ण है ...

सावन माह में यहाँ पर विशाल मेले का आयोजन होता है ॥ लोग सपरिवार यहाँ आकर पार्थिव पूजा किया करते है....हर भक्त अपनी मनोकामना जल्द पूरी होने की कामना करता है.... निराश और हताश प्राणी के अलावा नि :संतान दम्पति को भी यहाँ संतान प्राप्ति हो जाती है ....

जागेश्वर में संत क्रुद्ध्पुरी की समाधि भी है...वर्तमान में यहाँ कई सुविधाओ का अभाव है ...उत्तराखंड में पर्यटन को लेकर जोर शोर से दावे तो खूब किये जा रहे है लेकिन मौलिक सोच के अभाव में जागेश्वर जैसे स्थल की उपेक्षा हो रही है ...

Thursday 28 October 2010

ग्लोबल इन्वेस्टर मीट के नाम पर छलावा...........


हफ्ता भर पहले मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में प्रदेश की उद्योग मंत्री कैलाश विजय वर्गीय की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाने का अवसर मिला... मौका था ग्लोबल इन्वेस्टर मीट को लेकर सरकार की नीतियों का गुणगान करनेका... मै इस प्रेस मीटिंग में देरी से पंहुचा....

जनसंपर्क विभाग के जिस कक्ष में इन्वेस्टर मीट की पी सी रखी गई थी वहां पैर रखने भर की जगह नही थी.... आमतौर पर भोपाल में बड़े बड़े चैनलों के रिपोर्टर कभी फील्ड में अपने कैमरामैनों के साथ नजर नही आते है ..... लेकिन जब भाजपा के बड़े बड़े नेताओं की प्रेस वार्ताए और पत्रकारों की मंत्रियो के आवासों पर दावते हुआ करती है तो अपने को बड़ा चैनल कहने वाले कुछ पत्रकार ऐसी पार्टियों में सबसे पहले मंत्रियो के सामने बैठा करते है....

कैलाश विजय वर्गीय की इस पी सी में भी यही नजारा दिखायी दिया ..... मंत्रियो की चरण वंदना करने भास्कर से लेकर अमर कीर्ति तक के सारे पत्रकार पहुच गए... चैनलों की बात करू तो अपने को सबसे तेज कहने वाले पत्रकारों से लेकर डोट कॉम तक के सारे पत्रकार इस आयोजन में पहुचे..... भला पहुचे भी क्यों ना क्युकि खजुराहो में बड़े बड़े उद्योग मंत्रियो का कुनबा जो जुट रहा था .... मंच पर भाजपा के मध्य प्रदेश के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा के साथ प्रदेश के उद्योग मंत्री कैलाश विजय वर्गीय विराजमान थे.......

कैलाश की पूरी पी सी सरकार की उद्योग नीति पर केन्द्रित थी... उसमे बड़े बड़े वायदे किये जा रहे थे... टाटा सेलेकर अम्बानी ...रुइया से लेकर सुभाष चंद्रा के कसीदे पड़ने के साथ ही उन महानुभावो का गुणगान किया जा रहा था जो अपने लाव लश्कर के साथ शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश में उद्योग लगाने की संभावनाओ को तलाशने यहाँ आये थे ...

कैलाश विजयवर्गीय ने पूरी पी सी में अपनी सरकार का गुणगान किया और कहा कि मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के प्रयासों से बड़े बड़े उद्योग राज्य में आये है और यहाँ निवेश की सम्भावनाये मजबूत हुई है.....

शायद कैलाश को यह बात मालूम नही थी कि मध्य प्रदेश में निवेश करने से देश के उद्योगपति कतराने लगे है..... यह सवाल किसी पत्रकार के जेहन में नही आया .... अगर आता तो उनसे जरुर सवाल जवाब होते और वह पत्रकारों के जाल में फस जाते .....
मै पी सी में देरी से पंहुचा... मेरे साथ एक चैनल के एक रिपोर्टर और थे ... हम दोनों ने पी सी वाले रूममें देरी से प्रवेश किया... मेरे साथी रिपोर्टर तो पी सी में खड़े ही रह गए ॥ लेकिन भारी भीड़ को दरकिनार करते हुए मै सीधे पत्रकारों के बीच पंहुचा ...


मेरे बगल में एक हिंदी समाचार पत्र के पत्रकार बैठे थे... उन्होंने बड़ी आत्मीयता से मुझसे हाथ मिलाया और मेरे लिए जगह बनाई.... उनसे जब मेरी गुप्तगू हुई उस समय कैलाश की पी सी पर चल रही थी तो खजुराहो का मुद्दा भी गर्मजोशी के साथ उठ गया ... मैंने उनसे कहा शिवराज सरकार की अब तक की सारी इन्वेस्टर मीट छलावा ही साबित हुई है....

ऐसा कहने के बाद उन्होंने मेरे सुर में सुर मिलाया और कहा हर्ष जी आपकी बात सोलह आने सच है.... लेकिन किसी पत्रकार ने उनसे वैसे सवाल करने की जहमत नही उठाई .... अगर उठाते तो शायद खजुराहो के प्रचार प्रसार के लिए मिलने वाले विज्ञापन से उन्हें महरूम होना पड़ता .....

कैलाश विजय वर्गीय"शिव" के जिन आकड़ो के सहारे अपनी जादूगरी कर रहे थे वह उनको नही भाई और तपाक से कैलाश के सामने उन्होंने सवाल दागा ... करोडो रुपये फूकने के बाद मध्य प्रदेश में किसी निवेशक का ना आना चिंता का विषय है ....

इस प्रश्न के उत्तर में कैलाश ने फिर एक बार अपने विभाग की चरण वंदना करनी शुरू कर दी......जब पत्रकार ने यह पूछा कि पिछले पांच इन्वेस्टर मीट में कितने उद्योग लगे है तो कैलाश नाराज हो गए और उस पत्रकार की बात को टालते हुए चालाकी से अलग विषय को पत्रकार वार्ता में रखने लगे...... यह वाकया ये बताने के लिए काफी है कि आम आदमी के सरोकारों की बात करने वाली हमारी सरकारे विकास को लेकर कितना संवेदनशील है..... ?


मजे की बात यो यह है जिस मुखिया के उद्योग मंत्री को अपने विभाग द्वारा किये गए करारो के बारे में कोई जानकारी नही हो , वहां विकास की गाड़ी किस तरीके से हिच्खोले खाते चल रही होगी इसकी कल्पना आप बखूबी कर सकते है......यकीन जानिये मध्य प्रदेश में कोई उद्योगपति चाहकर भी नही आना चाहते ....इसका कारण यहाँपर बुनियादी सुविधाओं की कमी है... हालाँकि शिवराज के आने के बाद यहाँ पर विकास की रफ़्तार में तेजी आई है लेकिन अभी बहुत से ऐसे मामले है जहाँ बीमारू राज्य का कलंक मध्य प्रदेश नही छूट रहा है...


शिवराज कहते है मध्य प्रदेश में रिकॉर्ड विकास हो रहा है.... कैलाश तो आकड़ो की बाजीगरी करना बखूबी जानते है ॥ वह भी उनके सुर में सुर मिलते कहते है हम निवेशको को अपनी ओर खीचने में कामयाब हुए है ....लेकिन यह बात प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को नही सुहाती वह शिवराज और विजयवर्गीय के आकड़ो को सिरे से नकार देते है.....

बात खजुराहो की करे तो यहाँ भी हर घंटे ढाई करोड़ के निवेश की बात की गई लेकिन प्रदेश में आकर भारी उद्योग मंत्री अरुण यादव शिवराज सरकार के दावो को सिरे से नकार कर चले गए..... और तो और कांग्रेस पार्टी का कोई बदा नेता खजुराहो की मीत में शिरकत करने आमंत्रण दिए जाने के बाद नही आया ....

आकड़ो की बाजीगरी करने में शिवराज सरकार सबसे तेज है... उनके भाषणों में यह अंदाज झलकता है.... ऐसा नही है मै शिवराज जी की बुराई कर रहा हूँ.... उनकी काबिलियत पर तो किसी तो कोई संदेह नही होना चाहिए लेकिन नौकरशाह के साथ उनके मंत्री मिलकर सरकार की छवि खराब करने में तुले रहते है जिसके छींटे उनकी साख को भी प्रभावित करते है.....

अब कैलाश का ही मामला अगर ले तो यह बात अच्छी से समझ आती हैकि कैलाश अपने विभाग की कार्यशैली से कितना वाकिफ है .... अगर उनको अपने विभाग की जानकारी सही से होती तो जनसंपर्क की पी सी में उस पत्रकार के सवाल को कैलाश चालाकी से नही टालते.......

शिवराज सरकार ने पिछले कुछ वर्षो में निवेशको को आकर्षित करने के लिए पांच इन्वेस्टर मीट पर ६ करोड़ से ज्यादा पैसा लुटा दिया लेकिन इस अवधि में प्रदेश में उस अनुपात में उद्योग नही लगे जिस अनुपात में लगने चाहिए थे.....

तीन सालो में तकरीबन ५ मीटो में जनता की गाड़ी कमाई को पानी की तरह बहाया गया.... लेकिन जनता को इन करारो से कुछ भी हासिल नही हुआ... इन्वेस्टर के नाम पर विदेश यात्राये करने में भी मध्य प्रदेश के मंत्री पीछे नही रहे....तीन से ज्यादा विदेश यात्रा में भी करोड़ रुपये फूकने के बाद बमुश्किल १०० करोड़ से भी कम का निवेश हुआ है....

अब तक अपने राज्य में हुई मीटो का जिक्र करे तो तीन सालो की समिट में ३३३ ऍम ओ यू हुए जिनमे १३ ऍम ओ यू पर ही आज तक अमल हो सका है ॥ यही नही खजुराहो , इंदौर , ग्वालियर , बुंदेलखंड की जिन मीटो में उद्योगों को लगाये जाने की बात उद्योगपति कर रहे थे वह आज मध्य प्रदेश में उद्योग लगाने की अपनी घोषणा से मुकर चुके है..... ६८ के पीछे हटने और ७५ मामलो में जमीन नही ढूढे जाने के चलते मध्यप्रदेश की सरकार की पिछली मीट इन्वेस्टर मीट छलावा ही साबित हुई है....

खजुराहो की जिस मीट पर प्रदेश के मुख्य मंत्री और उद्योग मत्री अपनी पीठ थपथपा रहे है उनको यह मालूम नही कि सरकार की पिछली मीट कितनी बेनतीजा रही है ....१३ उद्योग तो बिना इन्वेस्टर मीट के भी मध्य प्रदेश में लग सकते थे....लेकिन ये मनमोहनी इकोनोमिक्स वाला इंडिया है यहाँ आम आदमी की किसी को परवाह नही है.... अगर परवाह होती तो जनता की गाडी कमाई शिवराज सरकार इस तरह इन्वेस्टर मीटो के आयोजन में नही लुटाती................................

दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाये...... छुट्टियों को मनाने अपने घर उत्तराखंड आज जा रहा हूँ..... वहां से लौटने के बाद ब्लॉग पर नई पोस्ट पड़ने को मिलेगी..... सब्र रखिये , कीजिये थोडा इन्तजार..... एक अंतराल के बाद फिर आपसे जुड़ता हूँ...........

Wednesday 13 October 2010

क्लिक----- क्लिक

आज सुबह जब घर से निकला तो कोई खबर नही मिल रही थी...... नजर दीवार पर लगे इस बोर्ड की महान विभूतियों पर गई .....यह सभी हमारा हाथ आम आदमी के साथ जैसे नारों का प्रतिनिधित्व करते नही थकते..... आज आम आदमी हाशिये पर है..... महंगाई ने उसका जीना मुहाल कर लिया है ..... यह स्केच भी इसी की बानगी दिखा रहा है ..........

नव दुर्गा के अवसर पर अपने मोहल्ले की गलियों में इसे सजा रखा है अभिषेक नाम के एक युवक ने... आज जब मेरी नजर इस बोर्ड पर गई तो सारा मोहल्ला कैमरे के सामने आने लगा ....टी वी में अपनी तस्वीरे देखने का मन किसे नही होता.... आज नजारा देखकर लगा मीडिया से लोग चमत्कार की उम्मीदे क्यों करते है ....


स्केच है यू पी ऐ और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का जिनको चोर उच्चका गठबंधन का अध्यक्ष बताया गया है....... शायद यह महंगाई का डंक है........

यह मनमोहन नही कुम्भकरण सिंह है........इनके पास बर्बादी विभाग है...... गरीबो को नही जीने देने की कसम इन्होने खायी है.........

इससे नीचे की तस्वीर में यह है हमारे देश के दुलारे कृषि कम क्रिकेट मंत्री शरद पवार जिनको अनाज की कोई परवाह नही है.....वह कहते है न मैं कोई ज्योतिष तो नही हूँ जो कह सकू महंगाई कम हो जाएगी..................

छमा प्रार्थी हू ..... पिछले एक महीने से ब्लॉग पर कुछ नया नही लिख पाया...... आज से नई पोस्ट की शुरुआत कर रहा हू......आशा है आप निराश नही होंगे..... बीते एक महीने से बहुत व्यस्त लाइफ चल रही है....दिन हो या रात हो फुर्सत ही नही हो पा रही थी.... प्रोपर ६ घंटे नीद भी नही ले पा रहा था....ऊपर वाले से दुआ करूँगा ऐसी व्यस्त लाइफ वह किसी को भी न दे..... व्यस्त होने की वजह पर फिर कभी बात होगी.......
"अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा " बचपन में हिंदी के अध्यापक कालोनी जी ने राहुल सांकृत्यायन की लेखन शैली के बारे में पदाया था .... इसका असली महत्व अब समझ में आ रहा है जब पत्रकारिता के फील्ड में रहकर खबरों की खोज खबर कर रहा हूँ.....पत्रकारिता में एक फंडा है किसी भी व्यक्ति के पास नोज फॉर न्यूज़ होनी चाहिए ....लेकिन कट , कॉपी ,पेस्ट के जमाने में आज खबरे दम तोड़ रही है....
आजकल तो फील्ड में जाने से पत्रकार कतराने लगे है ... एयर कंडिशनर रूमों में बैठकर खबरे चुराने का चलन चल पड़ा है ...डोट कॉम के अधिकतर पत्रकार यही सब कर रहे है... आम आदमी उनके भी हाशिये पर है...पेज थ्री वाली खबरों से फुर्सत मिल सके तब तो आम आदमी की बात हो पायेगी....... ऐश्वर्या के प्रेग्नेंट होने को तरजीह देने और युवाओ में कंडोम का चलन बढ़ने वाली खबरे देने से आम आदमी से जुडाव रखने वाली खबरे अटकी रह जाएँगी ॥

अभिषेक के पडोसी तो इस काम की सराहना कर ही रहे थे साथ ही उसके मोहल्ले में दुर्गा जागरण के अवसर पर महंगाई डायन का जागरण हो रहा है.... कीमते इतनी तेजी से बदती जा रही है कि लोगो का जीना मुश्किल होता जा रहा है .... एक देवी ने मुझे बताया अगर यही सब रहा तो लोगो का अगले चुनाव में कांग्रेस से भरोसा उठ जायेगा......
वैसे लोगो का भरोसा सरकार से उठने लगा है ॥ तभी एक महिला ने मुझसे बातचीत करते हुए कहा कि सरकारे कीमते कम करने की दिशा में कोई ठोस कदम नही उठा रही है.... अगर यह सब होता तो आज दैनिक उपभोग की चीजे इतनी महंगी नही होती......कालाबाजारी और वायदा का कारोबार ही इतना ज्यादा है कि सरकार जमाखोरों पर अंकुश नही लगा सकती......
शरद पवार जैसे मंत्री तो पूरे साल के ३६५ दिनों में से ३६ दिन अपने मंत्रालय को दे पाते है ... बचे दिन वह क्रिकेट की यात्राओं में लगा दिया करते है .....ऐसे में क्या होगा हमारे किसान का.... ? वह तो आत्महत्या करेगा ही.......बेचारी पीपली लाइव भी लोगो को आत्महत्या करने से नही रोक पा रही है .... मध्य प्रदेश में भी अब किसान आत्महत्या की मामले बढ़ते ही जा रहे है॥ कल ही एक गाव के मेहनती किसान से बात हो रही थी... उसने कहा साहब खेती बाड़ी में अब कुछ बचा नही है.... बस हम सब जैसे तैसे अपने दिन काट रहे है.....
कुछ समय पहले पीपली लाइव के "नत्था " से मिलना हुआ .... उसकी तकदीर फिल्म आने के बाद भी नही बदल पायी है.....आज भी उसके पास रहने को खुद का मकान नही है... उसने एक बहुत अच्छी बात कही जो मेरे दिल को छू गई..... उसने कहा मैं नही चाहता कोई नत्था देश में फिर से आत्महत्या करे........लेकिन क्या करे किसान का दर्द आज कोई समझ नही सकता ......उनकी जमीनों को कोडियो के भाव या तो बेचा जा रहा है या उन पर सेज बने जा रही है ... ऐसे में देश की कृषि विकास दर २ फीसदी फिसड्डी से आगे बद पानी मुश्किल दिखाई देती है

Monday 23 August 2010

एक लाख पचास हजार की राखी........


रक्षाबंधन का त्यौहार पूरे देश में आज धूम धाम से मनाया जा रहा है....इस मौके पर सभी बहनेअपने भाईयो की कलाई पर राखी बांधती है और उनकी लम्बी उम्र की दुआ करती है....आपने राखियो की कई वेराईटी देखीहोंगी लेकिन आज हम आपको ऐसी राखी दिखाने जा रहे है जिसकी कीमत एक लाख पचास हजार रुपये है....


रक्षाबंधन की आज पूरे देश में धूम मची है ....बहने अपने भाईयो के लिए राखी की खरीददारी करने में लगी हुई है ...बाजार में इस समय राखियो की तमाम वेराईटी मौजूद है जहाँ २ रुपये से लेकर हजार रुपये तक की राखिया है .... वैसे राखी का कोई मोल नही होता लेकिन जरा एक पल के लिए सोच ले किसी भाई की कलाई में कोई बहिन एक लाख पचास हजार रुपये की राखी बांधे तो उस भाई को कैसा लगेगा....?


राजधानी भोपाल के न्यू मार्केट इलाके में एक राखी पर मेरी नजरे कल अनायास ही जा पड़ी....राखी पर स्टोरी करने जब कल दफ्तर से निकला था तो कुछ नया करने की सोची.....स्टोरी भी अलग हटकर करनी थी....ऐसी खबर जो टीवी में बेचीं जा सके.... इसी राखी ने स्टोरी का नया आईडिया निकाल दिया...

स्टोरी भी ऐसी चली कि कई और चैनल वालो को भी इसने मसाला दे दिया.....इस महंगी राखी को तैयार कियाहै मोहम्मद हबीब नाम के शख्स ने जो पीछे बीस साल से राखी बनाने के काम में लगे हुए है...

हबीब ने बताया उनके द्वारा बनाई गयी इस महंगी राखी में काफी महंगा मटेरिअल इस्तेमाल किया गया है...

इस राखी में एक हजार रुपये के १०५ नोटों के साथ अमेरिकी डायमंड भी शामिल है...यही नही इस राखी में २१ ग्राम सोने के साथ तीन तुला सोना के साथ चांदी भी जड़ी है.... हबीब भाई से जब मैंने पुछा ये राखी बनाने का कांसेप्ट कहाँ से आया तो वे मुस्कुराकर बोले बेटी ने कहा पापा इस बार राखी पर क्या ख़ास कर रहे हो तो उसको मैंने बताया एक लाख पचास हजार की राखी बना रहा हूँ...



हबीब के दवारा बनाई गई इस राखी को देखने अभी तक कई बहने आ चुकी है लेकिन वे उसे खरीद पाने की जहमत नही उठा पायी है...शायद ये "महंगाई डायन " का कमाल है कि इस राखी को अभी तक कोई खरीददार नही मिला है...फिर भी हबीब भाई को उम्मीद है उनकी ये राखी जरूर बिकेगी.....

जो भी हो हम तो यही कहेंगे जो बहन इस राखी को खरीदकर अपने भाई को बाधेंगी वो बड़ी खुशकिस्मत होगी ... साथ वो भाई भी खुशकिस्मत होगा जिसकी कलाई में ये चमकेगी........ हबीब भाई की उम्मीदे ऊपर वाले पर टिकी है ....हम भी उपर वाले से दुआ करेंगे कि उनकी ये राखी बिक जाए लेकिन क्या करे सखी सईया तो खूब ही कमात है महंगाई डायन खाई जात है.........

Saturday 7 August 2010

" शिव" को मिले "फ्री हैण्ड" के बाद सारे सूरमा धराशायी


मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की भाजपा में वापसी को लेकर उठे तूफान और मध्य प्रदेश के दागी मंत्रियो के मसले पर गरमाई आग को शिवराज सिंह चौहान ने एक झटके में शांत कर दिया है॥ वे सारे मंत्री और नेता शिवराज के बयानों के बाद अपनी मांदो में दुबक गए है...

इस घटनाक्रम के बाद एक बार फिर ये साफ़ हो गया है शिवराज की दिल्ली के दरबार में पकड़ कितनी मजबूत है....?उमा भारती की भाजपा में वापसी के बदल शिवराज के बयानों के बाद छटगए है .... उमा की पार्टी में वापसी पर प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की राय को महत्त्व दिएजाने के आलाकमान के बयान के बाद ये बात भी साफ़ हो गयी है कि बिना शिव की हरी झंडी मिले बिना उमा का अभी पार्टी में लौटना मुश्किल है...

इधर मंत्रिमंडल से निष्कासित किये गए स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्राजो शिवराज सरकारको अस्थिर करने में जुटे थे उन्हें भी इस कार्य में असफलता हाथ लगी है....कुछ दिन पहले अनूप मिश्रा की स्वास्थ्य मंत्री के पद से छुट्टी के बाद मध्य प्रदेश भाजपा मेंकोहराम मचा हुआ है...

पार्टी के कई आला नेताओ से इस प्रकरण के बाद मेरी खुद बात भी हुई ... सबका कहना था कि अनूप मंत्रिमंडल से हटने के बाद शिवराज के खिलाफ अपना मोर्चा खोल सकते है.... जिनमे प्रदेश के मंत्रिमंडल के नम्बर २ माने जाने वाले एक कद्दावर नेता के साथ शिवराज की दागी "टीम" का लगभग पूरा कुनबा शामिल था लेकिन शिवराज ने शिवपुरी की एक सभा में भू माफियो को ललकार कर अपने सटीक तीर से उनके विरोधियो को चारो खाने चित्त कर दिया...

शिवराज ने शिवपुरी में प्रदेश के भीतर भू माफिया उनको गद्दी से हटाने की साजिश रच रहे है ये बयान देकर अप्रत्यक्ष रूप से उमा से निकटता पाए एक कद्दावर नेता को निशाने पर ला गया है.... मुख्यमंत्री द्वारा ये बयान दागी मंत्रियो से ध्यान हटाने की मुहीम का एक हिस्सा था जिसमे शिवराज ने एक बार फिर ये दिखा दिया भाजपा में मोदी के बाद क्यों अब उनका गुणगान किया जाने लगा है....

इन बयानों के बाद उमा भारती की पार्टी में वापसी की सम्भावनाये तो फिलहाल समाप्त ही हो गयी है... उनकी वापसी की अटकले लम्बे समय से भाजपा में चल रही है ... दरअसल जसवंत की पार्टी में वापसी के बाद उमा की भाजपा में वापसी को बल मिलने लगा था...

शिव, प्रभात और सुषमा की "तिकड़ी" उमा की वापसी के पक्ष में कतई नही थी... लेकिन उमा की पिछले कुछ समय से आडवानी के साथ बड़ी निकटता ने पार्टी के एक बड़े तबके को उनके पक्ष में लामबंद करना शुरू कर दिया जिनमे प्रदेश की राजनीती से जुड़े कैलाश विजयवर्गीय से लेकर सुमित्रा महाजन तो बाबूलाल गौर से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी तक शामिल थे...


इसके बाद एक बैठक में उमा के मसले पर पार्टी के नेताओ में काफी नोक झोक भी हुई जिसमे बाबूलाल गौर ने इस्तीफे की पेशकश कर डाली... रिपोर्टिंग के दौरान मेरी आँखे भी इसकी गवाह बनी थी जिसके बाद चौहत्तर बंगले के आवास में कई नेताओ की आवाजाही शुरू हो गयी...

डेमेज कंट्रोल के तहत शिवराज को आलाकमान ने तुरंत दिल्ली बुला लिया...और उमा के मसले पर उनकी राय जाननी चाही जहाँ पर शिवराज ने साफ़ लफ्जो में कह डाला अगर उमा की पार्टी में वापसी हो गयी तो वह मध्य प्रदेश का मोह कैसे छोड़ पाएंगी?

भूमाफिया शिवराज को हटाना चाहते है बयान दिए जाने के बाद शिवराज को हटाने की मुहीम में लगे नेताओ की दाल नही गल रही है....अब आलाकमान द्वारा शिवराज को "फ्री हैण्ड" दिए जाने के बाद भाजपा के मंत्रियो की प्रदेश में मुसीबत बद गयी है....क्युकि मुख्यमत्री ने सभी को अपने अधिकारचेत्रो में रहने की नसीहते दे डाली है....

इन बयानों के बाद सूबे में उमा की वापसी की पैरवी करने वालो के स्वर धीमे हो गए है....ऐसे में अब पार्टी में उमा भारती की वापसी की दूर दूर तक कोई सम्भावनाये नही दिखाई देती...............

Wednesday 21 July 2010

अज्ञात वास में जॉर्ज ......................

"कोई हम दम ना रहा ..... कोई सहारा ना रहा......................
हम किसी के ना रहे ........... कोई हमारा ना रहा........................
शाम तन्हाई की है ......... आएगी मंजिल कैसे.........
जो मुझे राह दिखाए....... वही तारा ना रहा ...............
क्या बताऊ मैं कहाँ............ यू ही चला जाता हू.......
जो मुझे फिर से बुला ले..........वो इशारा ना रहा........."


झुमरू
की याद जेहन में आ रही है ............. मजरूह सुल्तानपुरी और किशोर की गायकी इस गाने में चार चाँद लगा देती है........... पुराने गीतों के बारे में प्रायः कहा जाता है "ओल्ड इस गोल्ड "....... सही से पता अब चल रहा है............

७० के दशक की राजनीती के सबसे बड़े महानायक पर यह जुमला फिट बैठ रहा है........ कभी ट्रेड यूनियनों के आंदोलनों के अगवा रहे जार्ज की कहानी जीवन के अंतिम समय में ऐसी हो जायेगी , ऐसी कल्पना शायद किसी ने नही की होगी.......कभी समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाला यह शेर आज बीमार पड़ा है ....वह खुद अपने साथियो को नही पहचान पा रहा ......यह बीमारी संपत्ति विवाद में एक बड़ा अवरोध बन गयी है......


....."प्रशांत झा" मेरे सीनियर है.........अभी मध्य प्रदेश के नम्बर १ समाचार पत्र से जुड़े है........... बिहार के मुज्जफरपुर से वह ताल्लुक रखते है ......... जब भी उनसे मेरी मुलाकात होती है तो खुद के हाल चाल कम राजनीती के मैदान के हाल चाल ज्यादा लिया करता हूँ ....... एक बार हम दोनों की मुलाक़ात में मुजफ्फरपुर आ गया ...


देश की राजनीती का असली बैरोमीटर यही मुजफ्फरपुर बीते कुछ वर्षो से हुआ करता था....... पिछले लोक सभा चुनावो में यह सिलसिला टूट गया...... यहाँ से जार्ज फर्नांडीज चुनाव लड़ा करते थे..... लेकिन १५ वी लोक सभा में उनका पत्ता कट गया.....नीतीश और शरद यादव ने उनको टिकट देने से साफ़ मन कर दिया........... इसके बाद यह संसदीय इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था...

नीतीश ने तो साफ़ कह दिया था अगर जार्ज यहाँ से चुनाव लड़ते है तो वह चुनाव लड़कर अपनी भद करवाएंगे......... पर जार्ज कहाँ मानते? उन्होंने निर्दलीय चुनाव में कूदने की ठान ली....... आखिरकार इस बार उनकी नही चल पायी और उनको पराजय का मुह देखना पड़ा...........


इन परिणामो को लेकर मेरा मन शुरू से आशंकित था...... इस चुनाव के विषय में प्रशांत जी से अक्सर बात हुआ करती थी..... वह कहा करते थे जार्ज के चलते मुजफ्फरपुर में विकास कार्य तेजी से हुए है... लेकिन निर्दलीय मैदान में उतरने से उनकी राह आसान नही हो सकती ...उनका आकलन सही निकला ... जार्ज को हार का मुह देखना पड़ा....

हाँ ,यह अलग बात है इसके बाद भी शरद और नीतीश की जोड़ी ने उनको राज्य सभा के जरिये बेक दूर से इंट्री दिलवा दी .........आज वही जार्ज अस्वस्थ है...... अल्जायीमार्स से पीड़ित है........ उनकी संपत्ति को लेकर विवाद इस बार तेज हो गया है..... पर दुःख की बात यह है इस मामले को मीडिया नही उठा रहा है.... जार्ज को भी शायद इस बात का पता नही होगा , कभी भविष्य में उनकी संपत्ति पर कई लोग अपनी गिद्ध दृष्टी लगाए बैठे होंगे..... पर हो तो ऐसा ही रहा है....

जार्ज असहाय है... बीमारी भी ऐसी लगी है कि वह किसी को पहचान नही सकते ... ना बात कर पाते है...... शायद इसी का फायदा कुछ लोग उठाना चाहते है.......

कहते है पैसा ऐसी चीज है जो विवादों को खड़ा करती है.......... जार्ज मामले में भी यही हो रहा है.... उनकी पहली पत्नी लैला के आने से कहानी में नया मोड़ आ गया है.... वह अपनेबेटे को साथ लेकर आई है जो जार्ज के स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रही है...

बताया जाता है जार्ज की पहली पत्नी लैला पिछले २५ सालो से उनके साथ नही रह रही है.... वह इसी साल नए वर्ष में उनके साथ बिगड़े स्वास्थ्य का हवाला देकर चली आई..... यहाँ पर यह बताते चले जार्ज और लैला के बीच किसी तरह का तलाक भी नही हुआ है...अभी तक जार्ज की निकटता जया जेटली के साथ थी....वह इस बीमारी में भी उनकी मदद को आगे आई और उनके इलाज की व्यवस्था करने में जुटी थी पर अचानक शान और लैला के आगमन ने उनका अमन ले लिया ....

जैसे ही जार्ज को इलाज के लिए ले जाया गया वैसे ही बेटे और माँ की इंट्री मनमोहन देसाई के सेट पर हो गयी ..... लैला का आरोप है जार्ज मेरा है तो वही जया का कहना है इतने सालो से वह उनके साथ नही है लिहाजा जार्ज पर पहला हक़ उनका बनता है.... अब बड़ा सवाल यह है कि दोनों में कौन संपत्ति का असली हकदार है...?


जार्ज के पेंच को समझने ले लिए हमको ५० के दशक की तरफ रुख करना होगा.... यही वह दौर था जब उन्होंने कर्नाटक की धरती को अपने जन्म से पवित्र कर दिया था..3 जून 1930 को जान और एलिस फर्नांडीज के घर उनका जन्म मंगलौर में हुआ था.....५० के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर उन्होंने अपना परचम महाराष्ट्र की राजनीती में लहराया ... यही वह दौर था जब उनकी राजनीती परवान पर गयी ......कहा तो यहाँ तक जाता है हिंदी फिल्मो के "ट्रेजिडी किंग " दिलीप कुमार को उनसे बहुत प्रेरणा मिला करती थी अपनी फिल्मो की शूटिंग से पहले वह जार्ज कि सभाओ में जाकर अपने को तैयार करते थे... जार्ज को असली पहचान उस समय मिली जब १९६७ में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता एस के पाटिल को पराजित कर दिया ...

लोक सभा में पाटिल जैसे बड़े नेता को हराकर उन्होंने उस समय लोक सभा में दस्तक दी ... इस जीत ने जार्ज को नायक बना दिया... बाद में अपने समाजवाद का झंडा बुलंद करते हुए १९७४ में वह रेलवे संघ के मुखिया बना दिए गए...उस समय उनकी ताकत को देखकर तत्कालीन सरकार के भी होश उड़ गए थे... जार्ज जब सामने हड़ताल के नेतृत्व के लिए आगे आते थे तो उनको सुनने के लिए मजदूर कामगारों की टोली से सड़के जाम हो जाया करती थी....


आपातकाल के दौरान उन्होंने मुजफ्फरपुर की जेल से अपना नामांकन भरा और जेपीका समर्थन किया.. तब जॉर्ज के पोस्टर मुजफ्फरपुर के हर घर में लगा करते थे ... लोग उनके लिए मन्नते माँगा करते थे और कहा करते थे जेल का ताला टूटेगा हमारा जॉर्ज छूटेगा... १९७७ में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उनको उद्योग मंत्री बनाया गया...

उस समय उनके मंत्रालय में जया जेटली के पति अशोक जेटली हुआ करते थे ... उसी समय उनकी जया जेटली से पहचान हुई ...बाद में यह दोस्ती में बदल गयी और वे उनके साथ रहने लगी....हालाँकि लैला कबीर उनकी जिन्दगी में उस समय आ गयी थी जब वह मुम्बई में संघर्ष कर रहे थे..

तभी उनकी मुलाकात तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री हुमायु कबीर की पुत्री लैला कबीर से हुई जो उस समय समाज सेवा से जुडी हुई थी... लैला के पास नर्सिंग का डिप्लोमा था और वह इसी में अपना करियर बनाना चाहती थी ...बताया जाता है तब जार्ज ने उनकी मदद की...उनके साथ यही निकटता प्रेम सम्बन्ध में बदल गयी और २१ जुलाई १९७१ को वे परिणय सूत्र में बढ़ गए...


इसके बाद कुछ वर्षो तक दोनों के बीच सब कुछ ठीक चला...परन्तु जैसे ही जॉर्ज मोरार जी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाये गए तो लैला जॉर्ज से दूर होती गई... जॉर्ज अपने निजी सचिव अशोक जेटली कि पत्नी जया जेटली के ज्यादा निकट चली गई... इस प्रेम को देखते हुए लैला ने अपने को जॉर्ज से दूर कर लिया और ३१ अक्तूबर १९८४ से दोनों अलग अलग रहने लगे..इसके बाद लैला दिल्ली के पंचशील पार्क में रहने लगी वही जॉर्ज कृष्ण मेनन मार्ग में...


अब इस साल की शुरुवात से संपत्ति को लेकर विवाद गरमा गया है..इसे पाने के लिए जया और लैला जोर लगा रहे है..चुनावो के दौरान जॉर्ज द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक वह करोडो के स्वामी है जिनके पास मुम्बई , हुबली, दिल्ली में करोड़ो की संपत्ति है..यहीं नही मुम्बई के एक बैंक में उनके शेयरों की कीमत भी अब काफी हो चुकी है...


ऐसे में संपत्ति को लेकर विवाद होना तो लाजमी ही है.. जॉर्ज के समर्थको का कहना है जया ने उनको जॉर्ज की संपत्ति से दूर कर दिया है...वही वे ये भी मानते है जया ने उनका भरपूर इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया ...

सूत्र तो यहाँ तक बताते है कि जया के द्वारा जॉर्ज की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा झटक लिया गया है..२००९ में खुद जॉर्ज ने अपनी पोवार ऑफ़ अटोर्नी में इस बात का जिक्र किया है...वही जया ने लैला पर जबरन घर में घुसकर जॉर्ज के दस्तावेजो में हेर फेर के आरोप लगा भी जड़ दिए है..

यही नही जया का कहना है उन्हें जॉर्ज के गिरते स्वास्थ्य की बिलकुल भी चिंता नही है..वही लैला और उनके बेटे सुशांत कबीर का कहना है वे जॉर्ज के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है तभी वे हर पल उनके साथ है चाहे पतंजलि योगपीठ ले जाते समय कि बात हो या चाहे उनके गिरते स्वास्थ्य के समय की बात वे हर पल उनके साथ बने है॥


जया के समर्थको का कहना है संपत्ति हड़पने के आरोप लैला के द्वारा लगाये जाने सही नही है..अगर उन्हें गिरते स्वास्थ्य की थोड़ी से भी चिंता होती तो उन्हें देखने इस साल नही आती जब जॉर्ज बीमार हुए ...लैला भी कम नही है वे भी संपत्ति पर नजर लगाये बैठी है..

वैसे इस कहानी का एक पक्ष ये भी है की जया ने जॉर्ज का इस्तेमाल करना बखूबी सीखा है तभी उन्ही के कारन जॉर्ज की छवि कई बार धूमिल भी हुई है..जैसे रक्षा सौदों में दलाली से लेकर तहलका में उनके दामन पर दाग लगाने में जया की बड़ी भूमिका रही है..

यही नही जॉर्ज को मुजफ्फर पुर से लड़ने की रणनीति भी खुद जया की थी..इस हार के बाद उनको राज्य सभा में भेजने की कोई जरुरत नही थी...वैसे भी जॉर्ज कहा करते थे समाजवादी कभी राज्य सबह के रास्ते "इंट्री" नही करते..इन सब बातो के बावजूद भी उनका राज्य सभा जाना कई सवालों को जन्म देता है....

यही नही शरद नीतीश की जोड़ी का हाथ पकड़कर उनको राज्य सभा पहुचाना उनकी छवि पर ग्रहण लगाता है.. आखिर एका एक उनका मूड कैसे बदल गया ये फैसला कोई गले नही उतार पा रहा है..इसमें भी जया की भूमिका संदेहास्पद लगती है॥


बहरहाल जो भी हो आज जॉर्ज सरीखा शेर खुद दो पाटन के बीच फसकर रह गया है...जंग जारी है संपत्ति को लेकर विवाद अभी भी गरम है..जॉर्ज तो एक बहाना है॥

देखना होगा इस नूराकुश्ती में कौन विजयी होता है...? लैला कबीर के लिए राहत की बात ये है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने उनको अपने साथ रखने की अनुमति दे दी है...

वैसे इससे ज्यादा अहम् बात जॉर्ज का गिरता स्वास्थ्य है जिसकी चिंता किसी को नही है॥ लेकिन"पैसा " एक ऐसी चीज है जो झगड़ो का कारन बनती है ये कहानी जॉर्ज की नही , कहानी घर घर की है.............देखना होगा ये कहानी किस ओर जाती है?

Sunday 18 July 2010

ऑस्ट्रेलिया में अभी भी जारी है नस्लवाद.........



गौर से देखिये इन तस्वीरो को.....एक चित्र हजार शब्द कहता है...इस फोटो को देखकर आप भी अनुमान लगा सकते है....दिमाग पर ज्यादा जोर नही डालना पड़ेगा.... क्युकि ये पहेली नही है.... ये तस्वीर है जयंत डागोर की , जो खुद ही आप बीती बता रही है... बायी तरफ लिखा है ऑस्ट्रेलिया में न्याय कहाँ है तो दाई ओर जयंत जिस बोर्ड को पकडे है उस पर लिखा है आखिर कब तक ऑस्ट्रेलियन सिस्टम से लड़ा जाए....?



ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों को न्याय नही मिल रहा है.... वहां की सरकार के लाख दावो के बाद भी भारतीयों के साथ नस्लभेद जारी है... अगर सब कुछ सामान्य होता तो आज जयंत जैसे लोगो को अपनी आप बीती सुनाने के लिए भारतीय मीडिया का सहारा नही लेना पड़ता..... जयंत की पत्नी अन्ना मारिया भी ऑस्ट्रेलियन मीडिया से त्रस्त है.... खुद उनकी माने तो वहां नस्लभेद किया जाता है मीडिया को भी वैसी आज़ादी नही है जैसी भारतीय मीडिया में है ....

वैसे भारतीय मीडिया को दाद देनी चाहिए.... खासतौर से खबरिया चैनलों को जो हर घटना के पीछे हाथ धोकर पड़ जाते है.... फिर आज का समय ऐसा है कि हर व्यक्ति अपनी बात पहुचानेके लिए मीडिया का सहारा लेने लगता है.... जयंत भी यही कर रहे है....

भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया का डंका पूरे विश्व में बजने लगा है.... अप्रवासी भारतीय भी अब इसके नाम का नगाड़ा बजाने लगे है... जयंत और उनकी पत्नी अन्ना से मिलकर तो कम से कम ऐसा ही लगा... ऑस्ट्रेलियाई मीडिया जब उनकी एक सुनने को तैयार नही हुआ तो जयंत और उनकी पत्नी अन्ना भोपाल पहुचे जहाँ मीडिया के सामने अपनी व्यथा को रखा ....


जयंत डागोर 1998 से ऑस्ट्रेलियन नागरिक है...1989 में अपने जुडवा भाई आनंद की साथ मिलकर उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए वीजा आवेदन दिया तो उनके भाई आनंद का वीजा एक्सेप्ट कर लिया गया लेकिन उन्हें वीजा नही मिल पाया..जबकि दोनों भाईयो ने नई दिल्ली के पूसा केटरिंग कोलेज से होटल मेनेजमेंट की डिग्री प्राप्त की थी॥

1990में जयंत के भाई ने आनंद को भाई के नाते स्पोंसर किया लेकिन उसके बाद भी ऑस्ट्रेलियन हाई कमीशन ने उसका वीजा एक्सेप्ट नही किया... इसके बाद लगातार चार बार यही सिलसिला चलता रहा... जयंत के आवेदन को एक्सेप्ट नही किया गया... आख़िरकार एक लम्बी लडाई लड़ने की बाद जयंत1996 में परमानेंट शैफ का वीजा लेकर ऑस्ट्रेलिया चले गए...


1998 में जयंत तो ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता मिल गई..1999में जयंत मेलबर्न के एक होटल में शैफ काम करने लगे... यहाँ पर एक सीनियर शैफ माईकल उन्हें भारतीय होने के नाते परेशान करने लगा.... जिसकी शिकायत उन्होंने एच आर मैनेजर से की जिसके बाद उसे जरुरत से ज्यादा काम करवाया जाने लगा...जिसके चलते जयंत को "कार्पल टनल " की बीमारी हो गई जिसके इलाज में जयंत को एक बड़ी रकम खर्च करनी पड़ी...

इसके बाद जयंत फिर जब काम पर लौटा तो डाक्टर की सलाह को अनदेखा करते हुए माईकल उससे फिर पहले से ज्यादा काम लेने लगा...जिससे जयंत के हाथो में दर्द होने लगा...और डॉक्टर ने जयंत को फिर से अनफिट घोषित कर दिया... इसी बीच माईकल ने एक दिन जयंत के ऊपर "फ्रोजन चिकन" का बड़ा बक्सा फैक दिया जिससे जयंत के गर्दन और सीने में गंभीर चोट आ गई..

पूरी घटना की गवाह उनकी महिला सहकर्मी रेचल सीजर बनी... इस सबके बाद भी मेनेजर ने जयंत की एक नही सुनी.... कारण वह भारतीय थे...चौकाने वाली बात यह है जब यही व्यवहार माईकल ने एक ऑस्ट्रेलियन नागरिक के साथ किया तो माईकल को नौकरी से निकाल दिया गया॥ जयंत अपनी लडाई पिछले २१ सालो से लड़ रहे है लेकिन उनको कोई न्याय नही मिल पाया है...

यहाँ तक कि ऑस्ट्रेलिया के मीडिया ने भी उनकी एक नही सुनी जिसके चलते उनको अपनी बात भारतीय मीडिया से कहनी पड़ रही है... आज जयंत इतने परेशान हो गए है कि उन्हें अब अमेनेस्टी , ह्युमन राईट जैसी संस्थाओ पर भी भरोसा नही रहा...

जयंत कहते है कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ नस्लभेद जारी है..लेकिन भारतीय सरकार भी इस मामले में पूरी तरह से दोषी है क्युकि उसके मंत्रियो के पास भी उनकी समस्या को सुनने तक का समय नही है.... इसलिए वह अपनी बात भारतीय मीडिया के सामने लाना चाहते है ताकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार का असली चेहरा सभी के सामने आ सके....

Friday 9 July 2010

'डांस में रची बसी है मेरी जिंदगी : संदीप सोपारकर'


विश्व प्रसिद्ध कोरियोग्राफर और "डांस इंडिया डांस" के जज संदीप सोपारकर एक बहुत बड़ा नाम है...संदीप एक ट्रेंड जर्मन बालरूम डांस टीचर होने के साथ साथ ऐसे पहले भारतीय है जिन्होंने "बाल रूम डांस टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल "से सर्टिफिकेट प्राप्त किया है...संदीप को हर प्रकार के लातिन अमेरिकी और स्टैण्डर्ड बाल रूम डांस में विशेषज्ञता हासिल है..उन्होंने पूरे विश्व में "इम्पिरिअल सोसाइटी ऑफ़ टीचर्स ऑफ़ डांसिंग " में चौथा स्थान पाया है..संदीप के छात्रों में भारत सहित विश्व की नामी गिरामी हस्तिया शामिल है जिनमे ब्रिटनी स्पीयर्स ,मेडोना,गाय रिची, शकीरा, बियोंसे, आदि सभी ने वाल्ट्ज, चा_चा , टेंगो और पैसो जैसे डांस के लिए संदीप से डांस सीखा है..उनकी इस लिस्ट में कुवैत के शाही परिवार के सदस्य भी शामिल है जिन्हें उन्होंने क्लासिकल बाल रूम डांस सिखाया है॥
हाल ही में अन्तराष्ट्रीय डांस स्पोर्ट्स संस्था ने पहली बार बाल रूम डांस को इस प्रतियोगिता में शामिल किया है...और इसमें भारत की एकमात्र फेकल्टी संदीप है... भारतीय फिल्म कलाकारों में काजोल, सोनम कपूर, अमीषा पटेल, फरहा खान, सोनाली बेंद्रे , तब्बू, पूजा बेदी जैसी कई अभिनेत्रियों के नाम शामिल है जिनको संदीप ने डांसिंग स्टेप सिखाये है..इसके अलावा संदीप के बाल रूम स्टूडियो की देश भर में कई ब्रांचे है जो मुंबई, पुणे, सूरत जैसे शहर शामिल है...
कुछ समय पहले सालसा ट्रेनिंग की एक कार्यशाला में भाग लेने आये संदीप से मैंने बात की ... प्रस्तुत है इसके मुख्य अंश:
  • भोपाल आना इससे पहले भी हुआ है क्या? यहाँ से गहरे लगाव की कोई खास वजह ?

उत्तर - डांस क्लास के लिए भोपाल आना पहली बार हुआ है... लेकिन भोपाल मेरे लिए नया नही है...इस शहर से मेरा पुराना नाता रहा है...यहाँ पर मेरा ननिहाल रहा है ...मेरे पिता जी आर्मी में थे...ऐसे में भोपाल में उनकी पोस्टिंग होने के चलते काफी समय उनका यहाँ पर बीता... साथ ही मेरी नानी माँ का घर भी यही पर है..इसीलिए मैं खुद को भोपाली मानता हूँ।

  • भोपाल में डांस को लेकर बच्चो में कैसा क्रेज है?

उत्तर - हाँ के बच्चो में खासा क्रेज है ... यहाँ के बच्चो में डांस को लेकर मैं काफी टेलेंट देखता हूँ...यहाँ के बच्चे रियेलिटी शो में हिस्सा भी ले रहे है...वे क्लासिकल डांस को एक्सेप्ट भी कर रहे है...ये काफी बड़ी बात है ... क्युकि आम तौर पर बच्चे हिप होप या वेस्टर्न डांस करना पसंद करते है

  • संदीप क्या आपको बचपन से ही शौक था कि आप एक दिन डांसर ही बनेंगे?

उत्तर - मैंने डांस को शुरू से हौबी की तरह देखा ....कभी प्रोफेशन के तौर पर अपनाने की नही सोची। 12 साल की उम्र से डांस करना शुरू किया ... उस समय में आर्मी क्लब में डांस करता था... होटल मेनेजमेंट के कोर्स के बाद मैंने ऍम बी ऐ किया और जॉब भी की लेकिन दिल के किसी कोने में डांस ही बसा था... ऐसे में 1996 में जर्मनी में डांस की प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली..और फिर तो कोरियोग्राफी को ही बतौर प्रोफेशन अपना लिया।

  • रिएलिटी शो के बारे में तरह तरह की बातें कही जाती है.... कोई कहता है इसमें प्रतिभाओ के साथ न्याय नही होता तो कोई कहता है ये सब शो पूर्व नियोजित होते है ... आप कहाँ तक इत्तेफाक रखते है इससे ?

    उत्तर- रिएलिटी शो पूरी तरह से रियल होते है....इसमें कोई भी चीज लड़ना जजेज का डांस करने लगना पहले से तय नही होता...लेकिन रिएलिटी शो करियर बनाने के लिए उपयुक्त नही है..ये तो सिर्फ एक प्लेटफोर्म है जहाँ पर आपको खुद को एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है॥ करियर के द्वार इससे नही खुलते उसके लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है

  • बच्चो को डांस सिखाने और स्टार्स को डांस सिखाने में क्या अंतर नजर आता है आपको?

उत्तर- मेडोना, शकीरा, जैसे बड़े बड़े नाम अगर हो तो उन्हें सिखाने में मजा आता है लेकिन मुझे बच्चो को सिखाने में बहुत मजा आता है..बच्चो को सिखाना आसान होता है...वे कही से भी खुद को मोड़ लेते है...जबकि 35 साल के स्टार के साथ ये आसानी से नही हो सकता।

  • अभी तक के आपके अनुभव में सबसे बुरे और सबसे अच्छे डांसर कौन लगे?

उत्तर- सभी के साथ अलग अलग अनुभव रहे ...अभी तक के मेरे सफ़र में मनोज वाजपेयी मुझे सबसे बुरे लगे... मेरे लिए उनको डांस सिखाना सबसे बुरा लगा... मेरे लिए उनको डांस सिखाना काफी कठिन था...वही मल्लिका शेरावत काफी बेहतरीन डांसर है लेकिन उनकी इमेज सिर्फ एक सेक्स पर्सनालिटी की बन गयी है...डांस मामले में उनसे बेहतर आज तक उन्हें कोई नही लगा..वे हर स्टेप को बहुत जल्दी फोलो करती है।

  • " काईट्स " आसमान में उडी लेकिन कुछ दिनों बाद बॉक्स ऑफिस में औधे मुह गिर गयी...आपके साथ कैसे रहे इसके अनुभव?

उत्तर- काइट्स मूवी फ्लॉप रही... लेकिन इस मूवी में मेरे द्वारा कोरियोग्राफ किये गए ऋतिक रोशन के डांस को ख़ासा सराहा गया॥ ऋतिक को "सालसा" आता था...इसलिए बाल रूम डांस सिखाने में मुझे उसके साथ ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ी॥ उन्हें सिर्फ एक बार स्टेप करके दिखाना पड़ता था..वही कंगना ने तो डांस में वो कर दिखाया जो मैंने पहले कभी सोचा भी नही था... वो बहुत अच्छा डांस करती है ...बल्कि मुझको तो लगता है उन्हें बोलीवुड में एक डांस पर्सनालिटी की तरह से दिखना चाहिए ....अब वे अपनी पागलपन वाली इमेज से बहार आया जाए तो बेहतर रहेगा।

  • आने वाले समय में आपकी कौन कौन सी मूवी आ रही है...?

उत्तर- मेरी जल्द ही "साथ खून माफ़" आने वाली है...जिसमे मैंने प्रियंका चोपड़ा को एक डांस के लिए कोरियोग्राफ किया है...इस फिल्म में प्रियंका के सात पति होते है ... जिनका वो एक एक करके क़त्ल कर देती है..शायद इसी के चलते फिल्म का नाम सात खून माफ़ रखा गया है।

  • अंतिम सवाल संदीप , कभी ऐसा लगा कोरियोग्राफी का काम करते करते थकान हो गयी अब मुझको एक्टिंग के फील्ड में उतर जाना चाहिए?

उत्तर- एक्टिंग फील्ड ... ना बाबा ना... मेरी लिए डांस कोरियोग्राफी ही बेहतर है ...अभी एक्टिंग के फील्ड में आने की दूर दूर तक कोई संभावना नही है....... मेरी जिन्दगी डांस में ही रची बसी है।

Monday 5 July 2010

वोट बनाम विकास ..........


बिहार में इस साल के अंत में विधान सभा चुनाव होने है ... लेकिन राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गयी है और चुनावी गहमागहमी का पारा भी चदाहुआ है॥ राजनीतिक पार्टिया वोट बैंक की रणनीति बनाने में जुट गयी है ... बिहार में वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा दलितों और मुसलमानों का है ... कांग्रेस और राजद सरीखी पार्टिया तो अपने को इनका मसीहा बताने से किसी तरह का गुरेज नही करती....और राजद तो सालो दर साल इन्ही के दम पर सत्ता का स्वाद चखते रही है..

भले ही उसके राज में दलितों की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ हो...जदयू के नेता नीतीश कुमार की भी अपनी छवि दलित नेता के रूप में रही है..और मुस्लिम वोट बैंक पर इनकी भी नजर रही है...तभी तो नरेन्द्र मोदी के एक विज्ञापन में अपनी फोटो छपने से नीतीश कुमार इतने खफा हो गए कि आननफानन में गुजरात सरकार द्वारा कोसी पीडितो को दी गयी मदद को वापस कर दिया...


लेकिन सवाल इस बात का नही कि क्या गुजरात सरकार द्वारा दी गयी मदद कि राशी नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत थी या गुजरात की जनता की ॥ यदि नीतीश कुमार ने इस बात का विचार किया होता तो कोई और तस्वीर होती... लेकिन मामला वोट का है...


अगर बात मोदी की की जाए तो वे कहते है उन्हें वोट की राजनीती में कोई रूचि नही है वे तो सिर्फ और सिर्फ विकास की राजनीती करना चाहते है... और पटना के अधिवेशन में उन्होंने नीतीश कुमार को भी विकास की राजनीती करने की समझाईश दी ... लेकिन मोदी के लिए रास्ता इतना आसान नही है ...

कांग्रेस और अन्य पार्टिया गोधरा कांड को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ रही...भले ही कांग्रेस के खुद के दामन पर चौरासी के दंगे और भोपाल गैस त्रासदी का काला सच हो...


इन दिनों बिहार में चुनाव प्रचार को लेकर भी नरेन्द्र मोदी निशाने पर है... बीजेपी और जद यू में अभी उहा पोह की स्थिति बनी हुई है कि नरेन्द्र मोदी बिहार के आगामी चुनावो में प्रचार करेंगे या नही..राजनीती में इस तरह के सियासी दाव खूब चलते है... क्युकि हिन्दुस्तान में जातीय राजनीती का बोल बाला रहा है..तभी तो दलितों पर राजनीती कर कोई सत्ता हथियाना चाहता है तो कोई रीजनल आधार पर प्रदेश को बाटने की कोशिश कर "हीरो" बनता है... और जनता भी ऐसे लोगो को झांसे में आकर चुन लेती है॥


जनता भ्रम में जीती है .... उसे हकीकत से रूबरू होने नही दिया जाता ... हिंदी चीनी भाई भाई का नारा यहाँ बुलंद किया जाता है और वह चीन देश पर हमला कर देता है... एंडरसन को देश से बाहर इस तरह छोड़ा जाता है जैसे घर में आये अतिथि छोड़ने का दस्तूर हमारे देश में है ... जनता भ्रम में है ॥ अपने हित में देश बेचने का सौदा भी अगर हो जाए तो कोई परहेज नही...


आज देश में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है....कृषि मंत्री शरद पवार कहते है मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ... जय राम रमेश चीन में जाकर देश के खिलाफ बयान देकर चले आते है और प्रधान मंत्री इस पर अपनी जिम्मेदारी लेते है... लेकिन वे कैसी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे है ॥

आम आदमी की जानकारी से ये भी दूर है... आये दिन महंगाई बद रही है.... और सरकार कहती है महंगाई को कम करने की कोशिश की जा रहीहै....मुह का निवाला क्या अब तो उजियारे में रहना भी दूभर हो जाएगा क्युकि केरोसिन के दामो में भी वृद्धि का मन सरकार ने बना लिया है...

शायद प्रधान मंत्री की यही जिम्मेदारी है और राहुल गाँधी दलित हितों की बातें करते नही थकते ..जिस देश में प्रति व्यक्ति आय २० रुपये हो उसका क्या होगा सोचा जा सकता है..राजनीती का ऊट किस करवट बैठेगा ये कह पाना मुश्किल है..राजनीती का खेल केवल मोहरों से नही मुद्दों से भी खेला जाता है और इसमें कितने मोहरे इस्तेमाल में आयेंगे यह भी कह पाना मुश्किल है...

राजनीती के इस खेल में सरकार माहिर है... वोट और विकास का एक चेहरा नरेन्द्र मोदी का है...जहां महाराष्ट्र में विदर्भ और बुंदेलखंड के किसान भू जल के खाली होते भंडार के कारन खेती में हो रहे घाटे से ना उबर पाने की स्थिति में है और आत्महत्या कर रहे है ...

वही देश के कई इलाको में पानी की बड़ी समस्या बनी हुई है..... इन सारी गंभीर चुनौतियों का सामना गुजरात कर रहा है इस मोर्चे पर अन्य राज्यों को उसने करार जवाब दिया है ॥

वहां मोदी की सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए सरकार और जन भागीदारी का अनूठा मॉडल पेश किया है...२००४ में गुजरात में २२५ तहसीलों में से ११२ में भू जल स्तर गंभीर स्थिति में था लेकिन आज की स्थिति में ११२ में से ६० तहसीलों में जल स्तर सामान्य स्थिति में पहुच गया है ... ये नरेन्द्र मोदी की राजनीती का एक मॉडल है जिसका जवाब "विकास " है...



जहाँ २००९ में देश की कृषि विकास दर ३ फीसदी थी वही गुजरात में ये ९.०६ प्रतिशत रही ....गुजरात में पिछले दस सालो में १५ फीसदी कृषि भूमि का इजाफा हुआ है॥ गुजरात में कृषि उत्पादन १८००० करोड़ रुपये से बढ़कर ४९००० करोड़ रुपये हो चूका है...

वही देश के अन्य राज्यों में किसानो की स्थिति दयनीय बनी हुई है...जहाँ कपास का दुनिया भर में उत्पादन ७८७ किलो प्रति हेक्टेयर है वही गुजरात में ७९८ किलो प्रति हेक्टेयर है... नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को विकास की एक नयी दिशा दी है यह कहने में किसी तरह का कोई परहेज नही होना चाहिए... तभी तो आज की तिथि में गुजरात के किसान मालामाल है ...


उनके कपास की धूम चीन तक मची हुई है वही अन्य राज्यों में सरकारे कहती है कपास की खेती घाटे का सौदा बन चुकी है....



बात विकास और राजनीती की चली है तो मुलायम सिंह यादव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है....मुलायम समाजवाद को तरजीह देते है और बातें करते है फ़िल्मी कलाकारों और अपने परिवार वालो की... महिला आरक्षण विधेयक की बात उठी तो मुलायम ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया...

लेकिन फ़ैजाबाद में चुनाव लड़वाने के लिए अपनी डिम्पल यादव का बखूबी इस्तेमाल किया... इस मौके की राजनीती में उन्हें उस किसी चीज से गुरेज नही जो चुनाव जीतू हो... दरअसल तस्वीर पूरे देश की यही है... राजनेता केवल वोटरों को देखते है... आम आदमी से उनका कोई सरोकार नही है...

जीतने के बाद उनका न तो विकास से नाता है और ना ही जनता से.... लेकिन अब बिहार में ये देखने की बात होगी जनता विकास चाहती है या वोट खरीदने वालो की फरोख्त में शामिल होती है... यह तो तय है विकास देश की तस्वीर बदलेगा और वोटो की राजनीती देश को गर्त में धकेलेगी...
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Wednesday 23 June 2010

"शिवराज" सरकार के मंत्री विजय शाह का कारनामा....विधान सभा को किया गुमराह.....


आजादी के बाद से भ्रष्टाचार हमारे आचार विचार का एक आवश्यक अंग बन गया है... नेताओं के साथ ही नौकरशाह , अधिकारी, कर्मचारी इसे बढावा देने में पीछे नही है.."स्वर्णिम मध्य प्रदेश" बनाने में लगे प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के राज में भी यही हो रहा है...

सरकार भ्रष्टाचार के मामले में आये दिन बदनाम हो रही है... ताजा मामला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के आदिम जातिकल्याण विभाग का है जहाँ एक वित्तीय अनियमितता के आरोप में विभागीय मंत्री कुवर विजय शाह ने ऐसे ३ कर्मचारियों के निलंबन की घोषणा विधान सभा में कर दी जिनका उस विभाग में कोई अस्तित्व ही नही है॥ ऐसे में कुवर साहब अब अपनी घोषणा पर ही विपक्ष के निशाने पर आ गए है.....

जिस स्थान पर नियम कानून बनाये जाते है उसी स्थान पर अगर नियमो की धज्जियाउड़ाई जाए तो ये आम जनता के साथ छलावा है ॥ ऐसा ही कुछ कारनामा कर दिखाया है आदिम जन कल्याण मंत्री विजय शाह ने मध्य प्रदेश में .....


दरअसल ये मामला कार्यालय आयुक्त अनुसूचित जाती विकास निगम का है जहाँ केंद्र की और से विभाग को ७ करोड़ रुपये की राशि दी गयी थी लेकिन विभागीय अधिकारियो की मिली भगत से इस पैसे की बन्दर बांट इस कदर हुई कि अनियमितता के चलते ये मामला मध्य प्रदेश की विधान सभा में भी ध्यानाकर्षण के जरिये उठा था....

२३ मार्च को विधान सभा में आरिफ अकील , अन पी प्रजापति के ७ करोड़ रुपये में से लाखो रुपये के अनियमित भुगतान पर विधान सभा में बहस की थी...

राशी भुगतान में हुई अनियमितता पर बहस के दौरान अनुसूचित जाति विभाग के मंत्री विजय शाह द्वारा चार कर्मचारियों गोविन्द जेठानी, अनिल जी, सावनेर जी, और सुरेश जी के निलंबन की घोषणा की गयी लेकिन इन चारो में से तीन कर्मचारियों का निलंबन सरकार आज तक नही करवा पायी है॥

मजेदार बात तो ये है माननीय मंत्री जी को अभी तक इसकी भनक नही है कितने लोगो के खिलाफ कारवाही हुई है ....निलंबन की घोषणा के बाद के घटनाक्रम को देखने से लगता है विभागीय अधिकारी इस मामले पर लीपा पोती करने में जुट गए है ...

बड़ा सवाल ये है अधिकारियो ने विजय शाह को सोची समझी साजिश के चलते तो नही फसाया? कौन से ऐसे अधिकारी थे जो विधान सभा में " ब्रीफिंग" के समय मौजूद थे...पूरे मामले में कौन से ऐसे अधिकारी थे जिन्होंने मंत्री जी को झूटी जानकारी देकर सदन को गुमराह करने का प्रयास किया... ये ऐसे सवाल है जिनकी पड़ताल किये बिना मामले की तफदीश पूरी नही हो पाएगी.... लेकिन विभागीय अधिकारी इसे चूक मानने से साफ़ इनकार कर रहे है....



माननीय मंत्री जी ने विधान सभा में गोविन्द जेठानी के निलंबन की घोषणा तो सही कर दी लेकिन दुसरे और तीसरे यानि अनिल जी और सावनेर जी नाम के कोई कर्मचारी विभाग में काम ही नही करते ... निलंबित चौथे आरोपी सुरेश जी है लेकिन अनुसूचित विकास निगम में सुरेश नाम के चार कर्मचारी है ॥ ऐसे में किसका निलंबन हुआ है यह अभी तक तय नही हो पाया है?


चौथे ,सुरेश नाम के तीन व्यक्ति है विभाग में .... पहले सुरेश कुमार थापक है जो सहायक संचालक के पद पर काम कर रहे है... अनियमितताओ के समय ये लेखा विभाग में सहायक संचालक के पद पर काम कर रहे थे ... लेकिन वर्तमान में ये लम्बी छुट्टी पर चले गए है...


दुसरे सुरेश है सुरेश कुमार गर्ग सहायक ग्रेड १ शाखा में अभी काम कर रहे है इन पर अभी विभाग में ऊंगली उठ रही है .... बताया जाता है इस पूरे मामले के असली मास्टर माईंड यही है जिन्होंने अशोक शर्मा केशियर के साथ मिलकर पूरे मामले को अंजाम दिया...

सुरेश का अभी तक कोई बाल बाका नही कर पाया है॥ यही नही विभाग के कुछ लोगो ने बताया इसने अभी तक कई फर्जी बिल का भुगतान जेठानी के साथ मिलकर पूरा किया... लेकिन इस मामले पर कुछ कहने से वह बच रहा है उसका कहना है वह बेकसूर है...


तीसरे सुरेश विभाग में है सुरेश कुमार अहिरवार जो वहां चालक है जिनका इस विवाद से दूर दूर तक कुछ भी लेना देना नही है॥ अब विभागीय अधिकारी इस पेशोपेश में उलझे है सुरेश नाम के किसव्यक्ति को बलि का बकरा बनाया जाए... उसके बाद उन्हें अनिल जी और सावनेर जी नाम के कर्मचारियों को पैदा करने की चुनौती से पार पाना है...

बड़ा सवाल है अगर अनियमितता के दोष का सही पता विभाग के द्वारा किया गया होता तो केशियर के साथ ही सहायक संचालक लेखा , अपर संचालक लेखा और आयुक्त को भी जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए था.... लेकिन इन चारो में से ३ गलत और एक सही नाम की घोषणा विधान सभा में विजय शाह से करवाकर विभागीय अधिकारियो ने भी अपना दामन बचाने की कोशिश की....

अब सभी के निशाने पर विजय शाह है ॥ अगर वे सही है तो आखिर झूटी घोषणा करने वाले अधिकारी पर वे कार्यवाही करने से क्यों परहेज कर रहे है? विधान सभा में गलत जानकारी देना भी एक अपराध की केटेगरी में आता है ... विजय शाह ने यह सब कर सदन को गुमराह करने का प्रयास किया है॥



विजय शाह से जब मैं इस खबर पर बात करने मंत्रालय में मिला तो पहले तो उन्होंने ये कहा की दोषियों के खिलाफ कारवाही की जायेगी लेकिन जब गलत जानकारी देकर सदन को गुमराह करने की बात मैंने पूछी तो उन्होंने ये कहा वे भी आदमी है इंसान से भी कभी गलती हो जाया करती है...

कुवर विजय शाह मामले को गंभीरता से लेने की बात कर रहे है लेकिन विधान सभा में गलत जानकारी देने के कारण उनकी खुद की छवि भी ख़राब हो रही है... लिहाजा एक और जांच को बैठकर वे मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिशो में जुटे है...



अब विभाग के पास बड़ा सवाल ये है कैसे सुरेश नाम के व्यक्ति को पैदा करे? साथ ही अनिल जी और सावनेर जी नाम के व्यक्तियों को पैदा करना है.... इस मामले पर कब तक कारवाही होगी कह पाना मुश्किल है... आज़ादी के बाद से भ्रष्टाचार हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन चूका है जिस पर रोक लग पानी मुश्किल दिखाई दे रही है....


एक और मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज" स्वर्णिम मध्य प्रदेश" बनाने की बात कह रहे है वही "शिव" के राज में मंत्री और नौकरशाह मिलकर भ्रष्टाचार को बदावा देकर स्वर्णिम मध्य प्रदेश के सपने को धूल धूसरित करने में लगे है......

Sunday 30 May 2010

भ्रष्ट पत्रकारिता को सफलता का शोर्टकट माना जाता है... कुठियाला



माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति बृजकिशोर कुठियाला जी से हाल ही में मैंने खबरदार मीडिया के लिए बातचीत की जिसमे आज की पत्रकारिता के बारे में खुलकर चर्चा हुई । इस बातचीत में उन्होनें पत्रकारिता से जुड़े कई राज खोले. वस्तुत: स्वभाव से एक शिक्षक और मानवशास्त्र के स्टुडेंट रहे कुठियाला जी ने उच्च शिक्षा IIMC और FTII जैसे संस्थानों से ली.मनुष्य और सम्प्रेषण पर लिखे कुछ लेखों ने उनकी दिशा बदल दी और वे पत्रकार बन गए.
11 साल रिसर्च और 26 साल शिक्षण के कार्य का लंबा अनुभव रखने वाले कुठियाला जी से आज के दौर की व्यवसायिक पत्रकारिता के मिथकों और सनसनीखेज खबरों की अंधी दौर के बारे में खबरदार मीडिया की ओर से कौशल वर्मा और हर्षवर्धन पाण्डेय ने विस्तार से बात की। जिस में कई अहम जानकारियां से हम रु ब रु हुए॥



पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-




सबसे पहले तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बनने पर आपको बधाई ...जी बहुत बहुत शुक्रिया...


भारतीय पत्रकारिता के प्रतिष्ठित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के नए रोल को क्या आप किसी चुनौती के रूप मे लेते हैं?
ये मेरे लिये कोई चुनौती नहीं है. किसी भी काम को चुनौती के रूप में लेना मेरा स्वभाव नहीं रहा है. ये तो बस मौके की बात है. अपनी डयूटी और रिटायरमेंट के बाद वैसे भी मैंने प्लान किया था वानप्रस्थ की ओर जाने का, लेकिन ये नई जिम्मेदारी मेरे लिये नई उर्जा के समान है और ये काफी उत्साह वर्धक है. हां ये बात तो है कि ये बड़ी जिम्मेदारी है और मेरी कोशिश रहेगी की इस विश्वविद्यालय से अच्छे पत्रकार समाज को दूं।



ऐसा सुनने में आ रहा है कि अच्युतानंद मिश्रा जी के बाद कुलपति के पद पर आपकी नियुक्ति को लेकर कुछ राजनीति भी हुई थी?हंसते हुये - डिप्लोमेटिक उत्तर दूं क्या! -

जो उचित लगे।



नहीं, बिल्कुल नहीं. हां लेकिन मै इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि दबाव जरूर बना. क्योंकि कुछ लोग चाहते थे कि मैं इस पद पर काम करूं. कम्पीटिशन तो था पर मेरा सेलेक्शन हुआ. मुझसे कहा गया कि पिछले 15 सालों में मीडिया संस्थानों के निर्माण के कार्यों को देखते हुए आपको ये जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसमें हमारे अनुभव भी काम आये।


मैं ये भी बताना चाहुंगा कि मेरा कद अच्युतानंद मिश्रा जी से काफी छोटा है. ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे उस विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, जिसे अच्युतानंद मिश्र जी ने अपने प्रयासो से एक नई पहचान दी है. उनके कार्यो को आगे बढाना मेरी प्रमुखता होगी।



माखनलाल के वीसी बनने के बाद आपकी और क्या प्राथमिकता होगी. गाहे बगाहे ये सुनने में भी आता है कि बाहर से कम ही लोग भोपाल आ पाते हैं. ये सब बेस्ट फैकल्टी को लेकर कहा जाता है?

नोयडा सेंटर की शिकायत रही है कि हमारे यहां बाहर से कम लोग आते है. वही भोपाल वाले भी कहते हैं. इसका निराकरण किया जायेगा. उन विशेषज्ञ को बुलाया जायेगा जो अपने क्षेत्र में माहिर हो. जैसे कि आप राजदीप सरदेसाई से ये उम्मीद नहीं कर सकते की वो आकर आपको अच्छा वायस ओवर सिखायेंगे. ये तो कोई अच्छा वायस ओवर आर्टिस्ट ही सिखा सकता है. मेरे संज्ञान में कुछ बातें भी आई है।

बंद हो चुके कुछ कोर्स जैसे बिजनेस जर्नलिज्म और स्पोर्ट्स जर्नलिज्म पर भी हमारी चर्चा हुई है. यहां आपको बता दूं कि हम कुछ विशेष चीजों पर काम कर रहे हैं. कॉमनवेल्थ गेम से पहले हम कुछ वर्कशॉप करायेंगे. ताकि उनको सही से तैयार किया जा सके।


आप एक प्रतिष्ठित पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वीसी हैं. जहन में एक सवाल आता है कि आप की नजर में भ्रष्ट पत्रकारिता की क्या परिभाषा है?आं.... देखिये सच कहा जाय तो भ्रष्ट पत्रकारिता में बहुत आकर्षण होता है . सभी को पता है कि ये गलत है. फिर भी लोग इसके हाथों में समाते चले जाते हैं. एक अच्छे और ईमानदार पत्रकार समय के साथ मीडिया एथिक्स और वैल्यू के साथ समझौता करता चला जाता है और धीरे धीरे इसके जाल में फंसता जाता है .फिर टीआरपी और रीडरशिप की चुहा बिल्ली की दौर के पीछे भागने लगता है।


आज ऐसी पत्रकारिता को सफलता का शॉर्ट कट भी माना जाता है. ऐसी पत्रकारिता से दूर रहने का हमें भरसक प्रयास करना चाहिए. जिससे कि हम एक अच्छे पत्रकार बन सके और समाज को एक नई दिशा में ले जा सके. ये वास्तविकता है कि हम बुरी चीजों के प्रति जल्दी आकर्षित होते हैं, लेकिन हमें अपनी मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपनी हदें और मिशन खुद तय करना होता है।



आपकी नजर में सनसनीखेज खबर के दलदल से निकलने का क्या रास्ता है?

देखिये इस तरह की पत्रकारिता काफी हद तक भटक चुकी है. गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पत्रकार अपनी जीविका चलाने के लिए आज इस रास्ते पर चल रहे हैं और इस तरह की खबरों को खरीदना और बेचना चाहते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि सुर्खियों में बने रहने का ये एक शॉर्ट कट भी है. ऐसे पत्रकार सोचते हैं कि ये सबसे आसान रास्ता है एक लोकप्रिय मीडियाकर्मी बनने का।




लेकिन जो खबर नहीं भी है उसे सनसनीखेज ढंग से परोसना और बिना वजह ऐसे खबरों को तवज्जो और तूल देना दर्शक और पाठक के साथ सरासर धोखा है. सब को पता है कि पूरे विश्व में बडे अखबारों का सर्कुलेशन भी धीरे धीरे कम हुआ है. लगातार खबरें देने के दवाब में मीडिया खबरें बनाने लगते हैं. ये बाजार का दबाव है. ये इस बात का सूचक है कि अखबार भी अपने पाठकों के बीच पैठ बनाने के लिये बुरे दौर से गुजर रहा है. ऐसे वक्त में आप सिर्फ आपने बिजनेस के बारे में सोच सकते है ना की पत्रकारिता एक मिशन है, इस बारे में. ये एक बहुत बडी विकृति है. आप वही करेंगे जिससे संस्थान को लाभ होगा. मेरे विचार से टीआरपी, एबीसी और रीडरशिप ये सब एक मिथ्या है।




हम ये भी कह सकते हैं कि अच्छे लोग या तो थक चुके हैं या रुखसत हो चुके हैं. मीडिया के भीतर सफल पत्रकार भी इन सब चीजों से त्रस्त है. इस दलदल से निकलने का एक मात्र रास्ता है इच्छा शक्ति और लोगों के बीच सही रूप से किसी भी खबर का प्रस्तुतिकरण।


ऐसे में पत्रकारिता के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?जहां तक पत्रकारिता के भविष्य का सवाल है तो भविष्य में पत्रकारिता द्वारा संवाद बढेगा और स्वरुप बिगड़ेगा. ये स्वरुप सारा ध्वस्त होगा. फिर से एक नया मीडिया उभरेगा और जो समाज के हित की बात करेगा. आज की पत्रकारिता वो भस्मासुर है जो खुद अपने सिर पे हाथ रखे है।


क्या आप ये सब क्राइम बीट की पहुंच बढने के कारण कह रहे हैं ?
नहीं मैं उस मीडिया की बात कर रहा हूं जो हर जगह कॉमर्शियल चीज आसानी से ढूंढ़ लेता है. आम आदमी को क्या लाभ होगा ये हेडलाइन नहीं बनती. आज आलम ये है कि हमारा मीडिया ममता बनर्जी और सचिन तेंदुलकर में भी कॉमर्शियल ढूंढ़ लेता है. जो काम रेल आम आदमी के लिए कर सकता हैं वो काम सचिन तेंदुलकर नहीं कर सकता. अभी कुछ समय पहले मैं एक सेमिनार में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया गया था वहां एक मुद्दा उठा जो डेथ ऑफ जर्नलिज्म का था. पत्रकारिता अप्राकृतिक हो गयी है .20 -25 लोग जो बड़ी जगहों पर बैठें हैं, वो ये डिसाइड कर रहे हैं कि हमें कौन सी सामग्री परोसनी है. आज कल पत्रकार वो है जिसका काम बस हो गया है सूचना इकट्ठा करो और भेज दो. खबर बन जाएगी।



बेन्जामिन ब्रेडली ने 25 साल तक वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबार का सम्पादन किया. कुछ साल पहले जब वो भारत आये तो शेखर गुप्ता एनडीटीवी पर उनका वाक द टॉक कर रहे थे. उन्होने एक बात कही कि अमेरिका में पत्रकारिता बुनियादी मुद्दो की ओर लौट रही है. ऐसे में ये जो सेकेंड लाइन जर्नलिज्म है क्या वो भी भारतीय पत्रकारिता की ओर लौट सकती है. इसके बारे में आप क्या कहेगें?देखिये सेकेंड लाइन जर्नलिज्म सामाजिक मुद्दों से जुडा हुआ है, ये जमीन से जुडे लोगों के लिए काम करता है. आप कह सकते है कि ये पत्रकारिता के रियल वैल्यू और इथिक्स से जुडा हुआ है।


अगर आप आरएसएस की मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक पत्रिका की कुल प्रसार संख्या देखें, तो ये किसी प्रतिष्ठित अखबार के मुकाबले ज्यादा है. इसमें देश, समाज, मानवता से जुडे मुद्दे की बात होती है. हम क्या करना चाहते हैं? क्या अधिकार है? जिस दिन पत्रकारों को ये सब समझ में आ जाएगी, उस दिन से वो इस ओर मुखातिब हो जाएगें. आप देखेंगें, आने वाले दिनों में यही सेकेंड लाइन जर्नलिज्म फलेगा, फूलेगा और लोगों के बीच लोकप्रिय होगा।



कुठियाला साहब ये जो आजकल चौबीस घंटे के न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गयी है या यूं कहा जाए कि आना बदस्तुर जारी है, इसके बारे में आपकी क्या राय है ?

(हंसते हुए) चौबीस घंटे न्यूज़ चैनल का कांसेप्ट ही असफल है. ईमानदारी से चौबिसो घंटे समाचार का प्रसारण और उसे प्रस्तुत करना नामुमकिन है. इस लिए तो न्यूज़ चैनल आजकल रियालिटी शोज का सहारा ले रहे है. आप देख सकते है कि कोई भी न्यूज़ चैनल इससे अछूता नहीं है. खबरों को सबसे पहले ब्रेक करने और लगातार खबरें देने के दबाव और आपाधापी में चैनल खबरें बनाने लगते है. ये जनता के साथ सरासर धोखा है।



आजकल मीडिया का ट्रेंड बन गया है खबर को बढा-चढा कर परोसने का. मीडिया की इस अतिवादिता की चाभी को आप किस तरह लेते हैं ?(थोडा गंभीर होते हुए)- अपनी सेल वैल्यू को बढ़ाने के लिए न्यूज़ चैनल खबरों की सनसनीखेज पैकेजिंग करते हैं और ऐसा फ्लेवर डालते हैं मानो ये खबर सिर्फ और सिर्फ उनके पास है. इस चक्कर में चैनल वाले जो खबरें तथ्यहीन है उसे भी सनसनीखेज और भयानक रुप से दिखाते हैं. लेकिन ये बहुत ही गलत अप्रोच है. ऐसे मीडिया हाउस लम्बी रेस के घोड़े नहीं हैं. लेकिन मैं आश्वस्त हूं कि आने वाले समय में अच्छे, निष्पक्ष और जनता के हितो को तव्वजो देने वाली खबरे भी आएगी।

राधे श्याम शर्मा जी जो वरिष्ठ पत्रकार है, ने अभी एक बहुत अच्छी बात कही है कि एक दिन वही पत्रकार होगा जो कभी नहीं बिकेगा. जितनी जल्दी बिकोगे उतना कम दाम मिलेगा. इसे कोइ संस्था या शिक्षण संस्थान तय नहीं कर सकता. ऐसे में एक अच्छे पत्रकार को खुद अपनी पत्रकारिता मिशन को टारगेट करना चाहिए. जिसके लिए वो समाज के चौथे स्तंभ के रुप में जाना जाता हैं.

कुछ बात करते है विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल पर. विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते है. स्टुडेंट का ये कहना होता है कि जब पूरा विश्वविद्यालय एक है. तो फिर एमजे (पत्रकारिता विभाग) के स्टुडेंट का प्लेसमेंट हमेशा गुपचुप तरीके से हो जाता है, जबकी कैव्स (सेंटर फॉर ऑडियो विजुअल स्टडीज) और दूसरे डिर्पाटमेंट के स्टुडेंट सिर्फ हाथ मलते रह जाते है. क्या कुठियाला जी के आने के बाद हम उम्मीद करें की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी?

हां, मुझे इसकी जानकारी मिली है जो ठीक होगा वहीं किया जाएगा. इसपर अभी बात करना ठीक नहीं है. प्लेसमेंट क्षमतावान छात्र-छात्राओं का होना चाहिए. उन्हे इसके लिए खुद लायक बनना चाहिए. मैं कार्यभार संभालने के बाद हर दिन विभाग में दस से ग्यारह बजे तक पर्सनालिटी डेवलपमेंट की क्लास शुरू करवायी है जिससे जल्द ही अच्छे और सकारात्मक परीणम सामने आयेंगे. मैं ग्यारह वर्षों से इन चीज़ों पर जोर देता रहा हूं. उम्मीद है चीज़ें बदलेगी. मेरा जोर प्लेसमेंट सेल नहीं बल्की ऐसी बेस्ट फैकल्टी की तरफ रहेगा जो पढाई के दौरान ही बच्चों की प्रतिभा को तराश ले और उन्हें इनटर्न पर ले जाए।


चलिए ये सवाल आपकी निजी जिंदगी से. पढने के अलावा कुठियाला साहब को और कौन से शौक हैं ?

मैं रात में उपन्यास पढता हुं. मेरा शौक रहता है कि मैं कुछ पढूं. लेटेस्ट फिल्म देखना भी पसंद करता हूं. संगीत से लगाव है. दिनचर्या तो व्यस्त रहती है. इसी में सीरिअल देखने का समय निकाल लेता हूं।



पत्रकारिता के स्टुडेंट के लिए कोइ संदेश ?


बडे सपने देखो. निपुणता बढाओ. कम्प्यूटर में प्रवीणता लाओ. दो भाषाओं पर अच्छी पकड़ बनाओं.पढने से ज्यादा सोचने और विश्लेषण के लिए समय दो. देखो सफलता आपके कदम चूमेगी।


खबरदार मीडिया से बातचीत के लिए आपने समय निकाला...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...जी आपका भी शुक्रिया…(साभार ख़बरदार मीडिया )

(कुछ समय पहले लिए गए इस इंटर व्यू को ब्लॉग में डालने का अनुरोध कई लोगो ने किया... लिहाजा उनकी राय पर मैं गौर फरमा रहा हूँ.....)