Wednesday 12 January 2011

"घुघुतिया" का त्योहार


विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है.... उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और नेसर्गिक सुषमा के कारण जाना जाता है ... परन्तु यहाँ के त्योहारो में भी बड़ी विविधता के दर्शन होते है ... आज भी यहाँ पर कई त्यौहार उल्लास के साथ मनाये जाते है.... इन्ही में से एक त्यौहार "घुघुतिया का है.... इसे उत्तरायणी पर्व के नाम से भी जाना जाता है...



घुघुतिया पर्व उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में धूम धाम के साथ मनाया जाता है.... यह पर्व "मकर संक्रांत " का ही एक रूप है... वैसे यह पर्व पूरे देश में अलग अलग नामो से मनाया जाता है परन्तु उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में यह घुघुतिया नाम से जाना जाता है... मकर संक्रांति मुख्य रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है परन्तु कुमाओं अंचल में मनाये जाने वाले घुघुतिया पर्व का अपना विशेष महत्त्व है....


इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है ... वह दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते है ....यह दिखाता है कि अब ठण्ड का प्रभाव कम हो रहा है ... कुमाऊ में मनाये जाने वाला घुघुतिया त्यौहार भी इसी ऋतु परिवर्तन का एहसास कराता है....कुमाऊ में इस पर्व के अवसर पर कौवो को विशेष भोग लगाया जाता है.... बच्चो में यह त्यौहार खासा लोकप्रिय है..... शहर से लेकर गावो में आज भी इसको बड़े हर्ष के साथ मनाया जाता है....


जिस दिन पंजाबी लोहड़ी मनाते है.... उस दिन कुमाऊ निवासी तत्वानी मनाते है... यह पूस माह का आखरी दिन होता है....फिर अगला दिन "माघ " माह का पहला कार्य दिवस होता है... इस दिन सुबह उठकर नहा धोकर तिलक लगाते है और छोटे बच्चे कौवो को भोग लगाते है.... इस अवसर पर वह पकवानों की माला भी पहनते है .... यह माला संक्रांति के एक दिन पहले से तैयार की जाती है , जो अनाज और गुड से तैयार की जाती है...इसमें पूड़ी , दाड़िम फल , खजूर , डमरू ,बड़ो को गूथा जाता है.... साथ में संतरों को भी गूथा जाता है ...


बच्चे सुबह सुबह सूरज निकलने से पहले कौवो को जोर जोर से आवाज निकालकर पुकारते है... वह कहते है "काले कौवा काले बड़े पूए खाले"...पिछले कुछ सालो से अपने घर से मैं दूर हूँ ... घुघुतिया त्यौहार को बहुत मिस कर रहा हूँ.... आज जब मकर संक्रांति की खबर देख रहा था तो अनायास ही अपने उत्तराखंड की याद सता गयी.... मन नही लग रहा था तो सुबह अपने घर संपर्क कर माता जी को फ़ोन कर डाला...उनसे विस्तार से इस पर्व के बारे मैं अपन की बात हुई...


बात करते करते मैं अपने बचपन में चले गया तब मैं भी सुबह जल्दी से नहा धोकर कौवो को बुलाया करता था...दरअसल कौवो को भी भोग लगाने के पीछे कुमाऊ अंचल में कुछ खास वजह है ... इसको घुघुतिया नाम से भी विशेष कारणों से जाना जाता है... इसके तार कुमाऊ के चंद राजाओ से जुड़े बताये जाते है....


प्राचीन समय की किंदवंती के अनुसार एक बार कुमाऊ के किसी चंद राजा की कोई संतान नही हुई....वह राजा बहुत दुखी रहता था॥ पर राजा के मंत्री इस बात से बहुत खुश थे क्युकि राजा के बाद कोई उत्तराधिकारी ना होने से उनका रास्ता साफ़ था॥मंदिर में मनोती के बाद उस राजा को अचानक एक संतान प्राप्त हो गयी जिसका नाम उसने "घूघुत " रखा ... यह सब देखकर मंत्रियो की नाराजगी बद गयी क्युकि अब उनकी राह में वह काँटा बन गया...पुत्र होने के कारन वह अब राजा का भविष्य का उत्तराधिकारी हो गया॥ राजा की आँखों का वह तारा बन गया॥


घुघूत पर्वतीय इलाके के एक पक्षी को कहा जाता है... राजा का यह पुत्र भी एक पक्षी की तरह उसकी आँखों का तारा था जिसकी सेवा में सभी दिन रात लगा करते थे॥उस बच्चे के साथ कौवो का विशेष लगाव रहता था... बच्चे को जब खाना दिया जाता था तो वह कौवे उसके आस पास रहते थे और उसको दिए जाने वाले भोजन से अपनी प्यास बुझाया करते थे....


एक बार मंत्रियो ने राजा के बच्चे का अपहरण कर दिया॥वह उस मासूम बच्चे को जंगलो में फैक आये ... पर वह भी कौवे उस बच्चे की मदद करते रहे... राजा के मंत्री यह सोच रहे थे की जंगल में छोड़ आने के कारन अब उस बच्चे को कोई नही बचा पायेगा... पर वह शायद यह भूल गए कौवे हर समय बच्चे के साथ रहते थे....इधर राजमहल से बच्चे का अपहरण होने से राजा खासा परेशान हुआ ... कोई गुप्तचर यह पता नही लगा सका आखिर"घुघूत" कहाँ चला गया?


तभी राजा कि नौकरानी की निगाह एक कौवे पर पड़ी ॥ वह बार बार कही उड़ रहा था और वापस राजमहल में आकर बात रहा था... नौकरानी ने यह बात राजा को बताई वह उस कौवे का पीछा करने लगी....आखिर नौकरानी का कौवे का पीछा करना सही निकला ॥ राजा के पुत्र का पता चला गया॥वह जंगल में मिला जहाँ पर उसके चारो और कौवे बैठे थे...


राजा को जब यह बात पाताल चली कि कौवो ने उसके पुत्र की जान बचाई है तो उसने प्रति वर्ष एक उत्सव मनाने का फैसला किया जिसमे कौवो को विशेष भोग लगाने की व्यवस्था की गयी॥ इस अवसर पर विशेष पकवान बनाने कि परंपरा शुरू हुई.... साथ में गुड दिया जाने लगा.... गुड रिश्तो में मिठास घोलने का काम करता था.... तभी से यह त्यौहार कुमाऊ में घुघुतिया नाम से मनाया जाता है.... आज भी कुमाऊ अंचल में हमारी प्राचीन परम्पराए जीवित है इससे सुखद बात और क्या हो सकती है

Friday 7 January 2011

नही ली आरुषि की सुध ये कैसा "शिवराज " मामा ?







मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान अक्सर बड़े बड़े मंचो से खुद को मामा के नाम से प्रचारित करने में लगे रहते है..... लाडली लक्ष्मी योजना लागू करवाने के बाद से तो अपने भाषणों में शिवराज भांजियो का जिक्र करना नही भूलते....




पिछले २ सालो से शिवराज सिंह की सभाओ को कवर कर रहा हूँ कोई दिन शायद ही ऐसा बीतता होगा जहाँ पर महिलाओ का कार्यक्रम चल रहा हो और शिवराज उनकी तारीफों के कसीदे मामा बनकर ना पड़े ....मीडिया में शिव का यह दर्शन भले ही उनकी लोकप्रियता के ग्राफ को बदा देता है लेकीन शिवराज मामा की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर नजर आता है......

ऐसा ही एक मामला राजधानी भोपाल में सामने आया है.....इसको मैंने बीते साल कवर भी किया था परन्तु आज तक मामले में कोई प्रगति ही नही हुई..... आरुषि नाम की एक छोटी बच्ची के इलाज का खर्च उठाने की बात कभी शिवराज मामा ने की थी लेकिन आज मामा अपनी भांजी का हाल चाल देखने तक नही पहुचा है ......

सरकारी अस्पतालों में मरीजो के साथ खिलवाड़ होना कोई बात नही है.... फिर यह बात हजम नही होती यह सब उस मुखिया के राज में हो रहा है जो इन दिनों "स्वर्णिम मध्य प्रदेश " बनाने में लगा हुआ है ... यह कैसा प्रदेश है जिसका मुखिया मामा बनकर बेटियों को गोद में पुचकारता है...उनकी रक्षा करने का संकल्प लेता है लेकिन वादे करने के बाद भी अपनी भांजियो की सुध नही लेता है.....


आरुषि नाम की एक लड़की जिसे शिवराज ने अपनी भांजी माना पिछले साल से इलाज के लिए दर दर ठोकरे खा रही है लेकिन शिवराज और उनके नुमाइंदो को इससे कुछ भी लेना देना नही है....इससे ज्यादा दुखद बात और क्या हो सकती है आज गरीबी के चलते एक बाप को अपनी बेटी के इलाज के लिए प्रदेश की जनता से मदद मांगनी पद रही है.......


बीते साल की बात है ... २३ जनवरी की बात है जब गाडरवाडा निवासी इन्द्र पाल सिंह राजपूत की पत्नी प्रीती राजपूत ने आरुषि नाम की एक बच्ची को जन्म दिया ... वह बच्ची सात माह की थी अतः कम दिनों की होने के कारण भोपाल के तनु श्री हॉस्पिटल की चिकित्सक डॉ कुसुम सक्सेना ने उसे प्राइवेट अस्पताल में इन्क्युबेटर पर रखने को कह दिया ॥ परिवार की माली हालत ठीक न हो पाने के चलते आरुषि के पिता इन्द्रपाल के लिए यह संभव नही था कि वह अपनी बेटी को प्राइवेट अस्पताल ले जाए लिहाजा २३ जनवरी को उन्होंने आरुषि को कमला नेहरु अस्पताल हमीदिया में भर्ती करवा दिया ....



३० जनवरी को वहां के चिकित्सको की लापरवाही से आरुषि इन्क्युबेटर के लेम्प से झुलस गई....जिससे उसका चेहरा, आँख, अंगूठा और ऊँगली जल गई....लापरवाही का आलम देखिये अस्पताल प्रबंधन ने १५ दिनों तक आरुषि के माता पिता से यह बात छिपाए रखी और उन्हें उसके वार्ड में घुसने की अनुमति तक नही.दी ... आरुषि के पिता इन्द्रपाल ने जब यह बात अस्पताल प्रबंधन के सामने रखी तो उन्हें २६ फरवरी को तीन कागजो पर हस्ताक्षर करवाकर उसे वहां से "डिस्चार्ज" कर दिया.....


गंभीर रूप से जली आरुषि को लेकरउसके पिता आस्था अस्पताल ले गए जहाँ के सर्जन आनंद जयंत काले ने आरुषि के हाथ और आँख की सर्जरी जल्द किये जाने की सलाह उन्हें दी....धन की कमी के चलते महंगा इलाज करवा पाने में आरुषि के पिता असमर्थ थे अतः वह बच्ची को अपने घर ले आये.....

इसके बाद आरुषि के पिता ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज करवाने की कोशिश जरुर की लेकिन आज तक आरुषि के परिजनों को न्याय नही मिल पाया है... पिछले साल 17 मार्च को आरुषि का मामला मीडिया में प्रकाश में आने के बाद कई संगठन और लोग उसकी मदद को आगे आये जिससे आरुषि के पिता ने उसका इलाज शुरू किया .....


२३ मार्च को आरुषि की आँख की शल्य चिकित्सा हुई जिसके बाद सूबे के मुख्य मंत्री शिव राज और उनकी धर्म पत्नी साधना सिंह आरुषि का हाल चाल लेने आस्था अस्पताल पहुचे ॥ उन्होंने आरुषि के परिजनों से कहा " मैं हूँ ना..... मामा है तो चिंता कैसी ? आरुषि के इलाज का सारा खर्च ये मामा उठाएगा......" एक लाख रुपये की रकम को मामा ने उसी समय मंजूरी दे दी थी......


१ अप्रैल को राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत २ लाख पच्चीस हजार रुपयों की मदद से आरुषि को इलाज के लिए इंदौर के बोम्बे अस्पताल ले जाया गया जहाँ से १० अप्रैल को उसको डिस्चार्ज किया गया था .....इंदौर से लौटने के बाद पहले की गई आख और हाथ की सर्जरी असफल होने के कारन २३ अप्रैल को फिर से आरुषि की सर्जरी डॉ काले के द्वारा आस्था अस्पताल भोपाल में की गई ......सर्जरी के सारे खर्चे आरुषि के पिता ने उठाये ....इसके बाद डॉ काले ने परिजनों को हाथ के इलाज के लिए मुंबई जाने की सलाह दी.....

१२ मई को राज्य सरकार की मदद से वह आरुषि को मुंबई ले गए जहाँ के बॉम्बे अस्पताल के प्लास्टिक सर्जन डॉ नितिन मोकल और डॉ मुकुल ने बताया कि बदती उम्र के साथ साथ आरुषि की दस प्लास्टिक सर्जरी होंगी..... जिसमे हाथ की शल्य चिकित्सा एक साल के अन्दर करवाना पड़ेगी......जिसमे पैर की उंगुली निकालकर हाथ में लगनी पड़ेगी..... वहां के चिकित्सको की माने तो आरुषि का इलाज दस साल तक चलेगा जिस पर २० लाख का खर्चा आएगा .......

मुम्बई से लौटने के बाद आरुषि के पिता ने कई बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने की कोशिश की लेकिन उन्हें हमेशा बैरंग लौटा दिया गया....यहाँ तक कि मुख्यमंत्री की जनसुनवाई आवेदन दिए लेकिन अभी तक मामा शिव राज ने अपनी भांजी के लिए कुछ नही कर पाये है......

आरुषि के परिजन कहते है जब मुख्यमंत्री आरुषि को देखने आस्था अस्पताल आये थे तो उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह ने उन्हें उनके पी ऐ का नम्बर भी दिया था ताकि इलाज में अगर कोई असुविधा हो तो बात उन तक पहुचाई जा सके......लेकिन आज आलम यह है कि मामी भी मामा शिवराज के नक़्शे कदम पर चल रही है और मासूम आरुषि को नही पहचान पा रही है.....


प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री महेन्द्र हार्डिया ने भी आरुषि के पिता को यह कहते लौटा दिया कि अब क्या चाहते हो ? आरुषि के पिता कहते है उनकी माली हालत बहुत ख़राब है .... सरकार ने आरुषि के इलाज के लिए जो ३ लाख ५० हजार रुपये की रकम दी वह अब खत्म हो चुकी है....इससे ज्यादा धन आरुषि के पिता उसके इलाज में खर्च कर चुके है ... उनके पास इतनी रकम नही है जिससे आरुषि का इलाज आगे जारी रखा जा सके... अतः उन्होंने शिवराज सिंह से मदद की गुहार की है......

यहाँ पर यह बताते चले कि इन्द्रजीत और प्रीती की यह पहली बच्ची है जो शादी के ५ साल बाद हुई है...हमीदिया के चिकित्सको की गंभीर लापरवाही का खामियाजा आज यह बच्ची भुगत रही है ....आरुषि के परिजन मदद को मोहताज है .....

आरुषि की नाजुक हालत देखते हुए राजधानी के कुछ नौजवान आगे आये है जो इन दिनों इलाज के लिए दुकान दुकान जाकर व्यापारियों से चंदा इकट्टा कर रहे है ... इस घटना का सबसे दुखद पहलू ये है कि आरुषि की जिन्दगी ख़राब करने वाले चिकित्सको और नर्स पर आज तक कोई कारवाही नही हो पायी है ....ऐसे में यह सवाल गहराता जा रहा है क्या आरुषि के परिजनों को न्याय मिल पायेगा ?

आरुषि के झुलसने के महीनो बाद चिकित्सको और नर्स के खिलाफ प्रकरण तो दर्ज किया गया है लेकिन कोर्ट में चालान आज तक पेश नही किया गया है वही आरुषि का मामा बन्ने का स्वांग रचने वाले शिवराज सरकार का असली चेहरा भी जनता के सामने उजागर हो गया है उन्होंने भी आरुषि के परिजनों के साथ छल किया है......तभी बीते दिनों "दिग्गी " राजा ने उनकी तुलना "कंस" मामा से की ....