Friday 7 May 2021

सल्ट विधानसभा उपचुनाव से निकले संदेश

 





 95 हजार मतदाताओं वाली अल्मोडा जिले की सल्ट विधानसभा सीट से 2002 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव  कांग्रेस के रणजीत रावत  विधायक बने । 2007 के परिसीमन में भिकियासैंण सीट समाप्त हो गई और इस विधानससभा का बड़ा इलाका सल्ट में शामिल कर दिया गया । परिसीमन के बाद से इस सीट पर  2007 से 2017 तक भाजपा का एकछत्र राज रहा ।  2007 में पहली बार दिवंगत सुरेन्द्र जीना  भिकियासैंण सीट से जहां विधानसभा पहुंचे थे वहीं 2012 के चुनाव में दूसरी बार सल्ट विधानसभा से जीते और 2017 में वह तीसरी बार फिर सल्ट विधानसभा से चुनाव जीत कर विधायक बने । सल्ट के दिवंगत विधायक सुरेंद्र सिंह जीना लोकप्रिय  विधायकों में गिने जाते थे। अब एक बार फिर सल्ट की उनकी विरासत उनके भाई महेश जीना संभालने जा रहे हैं।

सल्ट विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव ने एक साथ कई संदेश दिए हैं। सबसे बड़ा संदेश तो अंतर्कलह से जूझती  कांग्रेस के लिए है, जो तमाम कोशिशों के बावजूद  फिर एक बार एकजुट नहीं हो पाई और उत्तराखंड में एक के बाद एक उपचुनाव हारती ही जा रही है । मिशन 2022 से ठीक पहले आए सल्ट के इस नतीजे ने एक बार फिर से काँग्रेस पार्टी के भविष्य में मजबूत होने के सपने को जहां  तोड़ने का काम किया है साथ ही उसके संगठन पर एक बार  फिर से कई  सवाल खड़े कर दिये हैं। खास बात इन परिणामों की ये है काँग्रेस को आज अपने गिरेबान में झाँकने और आत्ममंथन करने की बड़ी जरूरत है आखिर उससे चूक कहाँ हुई क्युकि 2017 के विधान सभा चुनाव में जहां बीजेपी प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह जीना मोदी की प्रचंड लहर के बीच महज 3000 मतों के अंतर से जीते थे, इस बार यह अंतर 4000 पार कर गया है और इस तरह एक बार फिर भाजपा सल्ट में मजबूत ताकत बनकर  उभरी है जिसकी तस्दीक  सल्ट विधान सभा उपचुनाव के हलिया परिणाम कर रहे हैं ।

इस उपचुनाव में भाजपा ने सुरेन्द्र जीना के भाई महेश जीना पर सहानुभूति का दांव  जहां लगाया वहीं कांग्रेस महासचिव  हरीश रावत ने अपनी करीबी  गंगा पंचोली को यहाँ से अपना प्रत्याशी बनाया जो एक दौर में ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी संभाल चुकी थी ।  सल्ट में पूर्व विधायक  रणजीत रावत का सिक्का मजबूती के साथ चलता है  यह जानते हुए भी  काँग्रेस महासचिव  हरीश रावत की पसंद गंगा ही थी और उन पर ही पार्टी ने दांव खेला लिहाजा हरदा की प्रतिष्ठा को इस उपचुनाव से सीधे जोड़ा गया । गंगा तो महज प्रतीक भर थी काँग्रेस की राजनीति का , लेकिन सल्ट की जनता ने कमल खिलाते हुए महेश की झोली वोटों से भर दी । सल्ट में एक तरफ  भाजपा  एकजुट होकर चुनाव लड़ रही थी वहीं गुटों में बंटी काँग्रेस एकजुट होने का भ्रम पाले बैठी हुई थी । भाजपा के दर्जनों विधायक और कैबिनेट मंत्री यहां पार्टी प्रत्याशी के चुनाव प्रचार की कमान  टिकट  देने के बाद से संभाले हुए थे और छोटी छोटी सभाएं कर रहे थे । दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली के साथ राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल और रानीखेत के विधायक करण माहरा , हरीश रावत के बेटे आनंद रावत  ही चुनावी प्रचार की कमान थामे हुए नजर आए । काँग्रेस महासचिव हरीश रावत आखिरी ओवर में बैटिंग करने आए और हिट विकेट हो गए । 

असल में पूर्व विधायक रणजीत रावत इस सीट पर अपने पुत्र विक्रम रावत को उपचुनाव लड़ाना चाहते थे। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और  केंद्रीय प्रभारी देवेंद्र यादव  तक सीधे विक्रम  रावत को चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन हरीश रावत ने यहाँ रणजीत रावत के बेटे का खेल खराब कर दिया और दस जनपथ में गंगा के लिए जबरदस्त पैरवी की जिसके चलते रणजीत रावत को मायूसी हाथ लगी और गंगा को टिकट मिलने के बाद से ही खुद को सल्ट से दूर कर लिया । इसे जानते हुए प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और  केंद्रीय प्रभारी देवेंद्र यादव ने रणजीत रावत के साथ रामनगर में उनके आलीशान होटल में छ्ह से सात दौर की मीटिंग भी की लेकिन रणजीत रावत टस से मस नहीं हुए । बेशक हरदा की बिछाई दस जनपथ की बिसात ने उन्हें  टिकट की दौड़ से बाहर कर दिया लेकिन रणजीत सिंह रावत  भी पूरे चुनाव प्रचार में कहीं नजर नहीं आए । उन्होंने चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में हरदा को तंत्र मंत्र करने वाला नेता बता कर पार्टी की संभावनाओं को  सल्ट में कमजोर करने का काम किया। 

कांग्रेस ने इस चुनाव में बहुत कुछ खोया है। उसने केवल जनता का भरोसा खोया, बल्कि अपने लोगों को भी खो दिया और हरीश रावत के 2022 में खुद के बतौर सी एम प्रोजेक्ट करने की संभावनाओं को भी पूरी तरह समाप्त करने का काम किया है । रणजीत  रावत खुलकर इस उपचुनाव में अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन हरदा इसके लिए तैयार नहीं थे । एक दौर में उत्तराखंड की राजनीति में हरदा और रणजीत की जोड़ी को जय और वीरू की जोड़ी कहा जाता था । याद कीजिये वह दौर जब हरदा राज्य  के सी एम बनाए गए थे तब हरदा की सरकार में नौकरशाह  राकेश शर्मा के साथ सबसे अधिक ताकतवर शैडो सी एम कोई था तो वह रणजीत रावत ही थे । रणजीत की ठसक को आप इस बात से समझ सकते हैं हरीश रावत के शपथ ग्रहण के दिन  ही रणजीत ने एक चर्चित आई पी एस अफसर को हटाने भर की बात क्या कही वो साहब उसी समय  पैदल कर दिये गए । यही नहीं तब हरदा की सरकार में रणजीत की परिक्रमा किए  बिना कोई काम नहीं हो पाते थे ।  2017 में विधान सभा चुनाव हारने के बाद से रावत बंधुओं के रिश्तों में तल्खी आ गई और उत्तराखंड काँग्रेस के विपक्ष में जाने और हरदा के दोनों सीटों से चुनाव हारने के बाद से दोनों नेताओं की दरार खाई में तब्दील हो गई । आज हालत यह है कि रणजीत हरीश रावत के खिलाफ आए दिन कोई न कोई बयानों के तीर छोड़ दिया करते हैं जिससे काँग्रेस महासचिव हरीश रावत की छवि पर सीधा ग्रहण लग जाया करता है । आज हरदा और रणजीत दोनों एक दूसरे के खिलाफ खूब आग उगलते हैं और रिश्तों में बहुत दरारें पड़ चुकी है । रणजीत तो आए दिन हरदा को राजनीति से सन्यास लेने तक की  सलाह  सार्वजनिक तौर पर कहने से भी नहीं चूकते । रामनगर से विधानसभा चुनाव हारने के बाद से  रणजीत रावत नेता प्रतिपक्ष इन्दिरा और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के अधिक करीब नजर आने लगे हैं और भविष्य में इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता रणजीत सिंह रावत और  हरीश रावत के बीच शह मात का खेल इसी तर्ज पर चलता रहेगा जैसा अभी सल्ट में हुआ । रणजीत रावत पार्टी की दर्जन भर से अधिक चुनावी  सीटों के गणित को  प्रभावित कर सकते हैं । ऐसे में पार्टी को  रणजीत रावत की उपेक्षा भारी पड़ सकती है ।

उत्तराखण्ड की सल्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव के परिणामों  ने प्रदेश में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में अब नया भूचाल ला दिया है। यह उपचुनाव 2022 के विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के बीच न सिर्फ राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का अखाड़ा बना, बल्कि इसने कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी को सतह पर ला दिया । कांग्रेसी नेता क्या कार्यकर्ता भी इस उपचुनाव में आपस में भी भिड़ते नजर आए। सल्ट में पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत की चुनावी जनसभाओं से चंद घंटे पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक रणजीत रावत ने जिस प्रकार हरीश रावत पर व्यक्तिगत हमला बोला उसने कांग्रेस की राजनीति के अंतर्विरोधों को खुलकर सामने ला दिया। चुनावी सभा के बीच  यह हमला  इस उपचुनाव का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ इसमें कोई दो राय नहीं । इससे भी बड़ी बात तो ये है इस पूरे प्रकरण पर काँग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश की चुप्पी तीनों के बीच बेहतरीन ट्रीटी की तरफ इशारा करती है जो काँग्रेस महासचिव हरदा की बिसात को डैमेज़ करने के लिए बनाई  गई । शायद तीनों के निशाने पर कांग्रेस महासचिव हरीश रावत उस समय से थे जब फेसबुक पर एक बार उन्होनें खुद को 2022 में काँग्रेस का चेहरा बनाने की  वकालत की थी । सल्ट विधानसभा का उपचुनाव निश्चित तौर पर नए प्रभारी देवेंद्र  यादव ने एक रणनीति के तहत लड़वाया जिसमें बड़े नेताओं से लेकर छोटे कार्यकर्ताओं की भी जवाबदेही तय की गई थी। ऊपर से कांग्रेस एक कागज पर एकजुट  नजर आई लेकिन मैदान में बंटी हुई दिखाई दी। जैसा कि प्रदेश कांग्रेस का चरित्र है, वही पुरानी कहानी नजर आई जहां कार्यकर्ता और नेता सब  अपनी गुटबाजी की भूमिका निभाते नजर आए । सल्ट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के अंदर टिकट की मारामारी के चलते ये अंदाज पहले से था कि जिसे टिकट नहीं मिलेगा वो आक्रामक रहेगा, लेकिन ये अंदेशा किसी को नहीं था कि ये आक्रमण व्यक्तिगत स्तर तक पहुंच जाएगा।

हरीश रावत के प्रति रणजीत रावत की तल्खी पिछले कुछ समय से बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। एक बार उन्होंने हरीश रावत का मानसिक संतुलन खोने और उन्हें आराम करने की सलाह दी थी फिर हरीश रावत के कोरोना से संक्रमित होने पर उनके अस्पताल में भर्ती होने पर सवाल उठाए थे। लेकिन 15 अप्रैल को हरीश रावत की सल्ट उपचुनाव में जनसभाओं से एक घंटा पूर्व हरीश रावत को डरा हुआ हरीश रावत बता कई प्रकार के व्यक्तिगत हमले किए जिसने एक झटके में सल्ट का मैच पलट दिया । रणजीत सिंह रावत ने सल्ट उपचुनाव के बीच  जिस तरह का खुलासा हरदा के बारे में किया, वह चौंकाने वाला था । रणजीत रावत ने अपने बयानों में यहाँ तक कहा कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के दौरान  टोने-टोटके के चलते हरदा अपने गले में तेरह मालाएं और हर जेब में अलग-अलग रंग के कपड़े रखते थे। यही नहीं तांत्रिकों के चक्कर मे पड़कर बंदर और सुअर कटवाते थे और श्मशान घाट में जाकर शराब से नहाते थे।  रणजीत रावत के पूर्व में हरीश रावत के मानसिक संतुलन वाले बयान के बाद से अब भविष्य में काँग्रेस को गंभीर नुकसान होना तय है । सल्ट उपचुनाव चुनाव से पहले उनका हरीश रावत पर प्रहार किसके राजनीतिक नफे-नुकसान के लिए था इसका उत्तर वो ही दे सकते हैं, लेकिन ये उस कांग्रेस के फायदे के लिए तो कतई नहीं था जिस कांग्रेस की मजबूती का वो दावा करते हैं।  गाहे-बगाहे सल्ट के बहाने  कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली के लिए रणजीत रावत एवं उनके समर्थकों के बयान कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले ही थे। 

राजनीति जहां संभावनाओं का खेल है, वहीं जहां कुछ भी स्थाई नहीं है। 2017 से पहले के  दौर को देखें और उसमें आज की परिस्थिति को मिलाकर देखें तो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति 2017 के मुकाबले आज डांवाडोल है । हरीश रावत के खास रहते 2017 तक रणजीत रावत के निशाने पर जो लोग थे, आज उन्हीं लोगों के साथ रहकर रणजीत के निशाने पर हरीश रावत हैं। राजनीति में निष्ठाओं के बदलने का ये नायाब  उदाहरण है। नई राजनीति का दिलचस्प पहलू कि न यहां दोस्त स्थाई है न दुश्मन, क्योंकि विचारधाराएं अब कोई मायने नहीं रखती। दुश्मन का दुश्मन आपका दोस्त। भले ही उसने आपको कितना ही अपमानित किया हो, लेकिन उसके द्वारा आपके दुश्मन का अपमान आपके अपमान को भुला देता है। 2017 की पराजय के लिए जिस बदनामी को जिम्मेदार ठहराते थे आज उसी बदनामी को ओढ़कर कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व मिशन 2022 को फतह करने की मंशा रखता है। जाहिर है यह महज शुरुआत है। इस मामले के अगले कुछ दिनों में लंबा खिंचने की आशंका लग रही है।

नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के लिए सल्ट उपचुनाव जीतना बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पार्टी के प्रत्याशी महेश जीना  के जीतने के बाद अपनी पहली परीक्षा में ये दोनों पास हुए हैं । अगर भाजपा यह सीट गंवाती , तो यह  तीरथ  सरकार के लिए बड़ा झटका साबित होता और आने वाले 7 – 8 महीने उनके लिए चुनौती भरे रहते । इस टेस्ट में पास होने के लिए भाजपा जहां सहानुभूति को भुनाने की पूरी कोशिश की , वहीं उसने अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में लगा दी । दिवंगत विधायक सुरेन्द्र  जीना की मौत की सहानुभूति लेने के लिए भाजपा ने उनके भाई को चुनाव में उतारा जहां पार्टी के कई दिग्गजों जहां पार्टी के कई दिग्गजों यशपाल आर्य , बिशन सिंह चुफाल , धन सिंह रावत , सुरेश भट्ट , अजय टम्टा ने मोर्चा संभाला । सहानुभूति की इस लहर पर पहले भी भाजपा सवार हो चुकी है । वर्ष 2018 में गढ़वाल की थराली सीट से तत्कालीन भाजपा विधायक मगनलाल शाह की मौत के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मुन्नी देवी को टिकट दिया गया था। भाजपा ने यह सीट 1981 वोटों से  जीती वहीं  पिथौरागढ़ उपचुनाव  में भाजपा ने  दिवंगत प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को टिकट दिया था जो 3267  वोटों से जीती । इन सबसे इतर सल्ट को देखें तो सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद भाजपा के महेश  जीना ने कांग्रेस की गंगा पंचोली को 4697 वोट से हराया है जो अंतर बहुत अधिक है । 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में  भी कांग्रेस की गंगा पंचोली इस सीट से चुनाव हार गई थी।  इस बार उपचुनाव की खास बात यह रही चुनाव मैदान में खड़े अन्य लोगों को इतने वोट नहीं मिल पाए जितने कि नोटा को। भाजपा के महेश जीना को 21,874 मत मिले, जबकि कांग्रेस की गंगा पंचोली को 17,177 वोट मिले। इस तरह बीजेपी ने यह सीट 4697 वोटों के अंतर से जीत ली, जो पिछली जीत से भी बड़ी है। जाहिर है भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों के बाद तीसरे नंबर पर नोटा ही रहा।
निसंदेह सल्ट उपचुनाव में भाजपा का चुनाव प्रबंधन बेहतरीन  था। पार्टी ने संगठन की एकजुटता का प्रदर्शन यहाँ बेहतरीन तरीके से किया।  उत्तराखंड कांग्रेस अगर भाजपा से इतना ही सीख ले तो उसकी ताकत लौट सकती है किंतु आदत से मजबूर कांग्रेसी शायद ही कभी इस दिशा में कभी  गंभीर हों। अब तो कहावत सी हो गई है कि कांग्रेस को जनता नहीं हराती, बल्कि कांग्रेसी खुद हार का कारण बनते हैं। अगर यह सच न होता तो 2017 में हरदा सीएम रहते हुए दो सीटों से नहीं हारते। यह भी सल्ट के इस उपचुनाव का बड़ा संदेश है। कांग्रेसी न समझें तो यह उनकी समस्या है। गुटबाजी को दूर किए बिना काँग्रेस के अच्छे दिन आने की उम्मीद अब कम ही दिख रही है । सल्ट से पहले हुए अन्य उपचुनावों में भी काँग्रेस ने यही गलती की थी जिसके चलते वह भाजपा के सामने असहाय हो गई थी और काँग्रेस की इसी अंतर्कलह का लाभ भाजपा को हुआ। अब 6 से 8 महीने में भाजपा से पार पाना काँग्रेस के लिए इतना आसान नहीं है ।  
इधर सल्ट विधान सभा से नवनिर्वाचित भाजपा विधायक महेश जीना को भी जनता के बीच काम करने के लिए बहुत कम वक्त मिलेगा।  मार्च 2022 तक नयी सरकार का गठन हो जाएगा ।  मौजूदा दौर में कोरोना की मार चल रही है और ऐसी त्रासदी के बीच जनप्रतिनिधियों के जनता से दूर जाने के समाचार हर जगह से सुनने को मिल रहे हैं । इस स्थिति में भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक महेश जीना सल्ट की जनता के लिए उपयोगी कितना सिद्ध होंगे, देखना होगा । लेकिन जो भी हो  हरदा जैसे महारथी की बिछाई बिसात में सहानुभूति के कार्ड के बूते 4000 से अधिक वोट अपने नाम कर महेश जीना सल्ट की राजनीति में स्थापित जरूर हो गए हैं इससे आप और हम अब इंकार नहीं कर सकते । दिवंगत सुरेंद्र सिंह जीना के सपनों को पूरा करने की बड़ी चुनौती अब उनके सामने है।  सीएम तीरथ सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक  के लिए भी  सल्ट उपचुनाव के परिणाम  सुखद रहे हैं । दोनों की यह पहली परीक्षा थी और  उसमें वो उम्मीद से अधिक अंकों के साथ पास हो गए हैं ।