tag:blogger.com,1999:blog-84079670716954391042024-03-02T09:29:52.107-08:00कलम बोलती है..सच की स्याही कभी न सूखेगी, इस कलम में, एक कोशिशHarshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.comBlogger384125tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-58540724638942817692024-02-11T00:55:00.000-08:002024-02-11T01:35:20.043-08:00 राष्ट्रवादी चिंतक दीनदयाल <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="font-size: large;"><span style="text-align: left;"> </span></span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNJEWkk8g3uRi1OP-nPtV3fGGmFmoEOcFOkSQBQJMUJxPvwKCnVQhpaJ3xq4K0TJ_z_TZTFS6vJAsdSgJNEytw3oxJ2TacP3n49Y39M9wgCVPxFi8uSN6zGEjfLgMkFm20baScoXwhbkTp7hvottu6zyl7dqVBvReDfb2A8xd-iMlyWJ3p1iiSWVy1Uxw/s683/pandit-deendayal.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="683" data-original-width="500" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNJEWkk8g3uRi1OP-nPtV3fGGmFmoEOcFOkSQBQJMUJxPvwKCnVQhpaJ3xq4K0TJ_z_TZTFS6vJAsdSgJNEytw3oxJ2TacP3n49Y39M9wgCVPxFi8uSN6zGEjfLgMkFm20baScoXwhbkTp7hvottu6zyl7dqVBvReDfb2A8xd-iMlyWJ3p1iiSWVy1Uxw/w378-h400/pandit-deendayal.jpg" width="378" /></a></div><p></p><p><span style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक भारतीय विचारक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री,लेखक, पत्रकार, संपादक थे। भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी एक दौर में रहे। ब्रिटिश शासन के दौरान इन्होंने भारत द्वारा पश्चिमी धर्म निरपेक्षता का विरोध किया। उन्होनें लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार किया लेकिन पश्चिमी कुलीनतंत्र, शोषण और पूंजीवादी मानने से साफ़ इंकार कर दिया। पंडित जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन जनता की सेवा में लगा दिया। भारतीय पत्रकारिता ने सदैव राष्ट्रवाद को पल्लवित करने का निर्वहन किया है। पत्रकारिता में राष्ट्रवादी स्वर को गति देने वाले पत्रकारों में पं. दीनदयाल उपाध्याय का नाम आदर के साथ लिया जाता है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनेक नेताओं ने पत्रकारिता के प्रभावों का उपयोग अपने देश को स्वतंत्रता दिलाकर राष्ट्र के पुनर्निमाण के लिए किया। विशेषकर हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषायी पत्रकारों में खोजने पर भी ऐसा सम्पादक शायद ही मिले जिसने अर्थोपार्जन के लिए पत्रकारिता का अवलम्बन किया हो।</span></span></p><p><span style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916, नगला चन्द्रभान, मथुरा, उत्तर प्रदेश में एक मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठित हिंदू परिवार में हुआ था। उनके परदादा का नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था, जो एक प्रख्यात ज्योतिषी थे। उनके पिता का नाम श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा मां का नाम रामप्यारी था। उनके पिता जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे। दीनदयाल ने कम उम्र में ही अनेक उतार-चढ़ाव देखा, परंतु अपने दृढ़ निश्चय से जिन्दगी में आगे बढ़े। उन्होंने सीकर से हाईस्कूल की परीक्षा पास की जन्म से बुद्धिमान और उज्ज्वल प्रतिभा के धनी दीनदयाल को स्कूल और कालेज में अध्ययन के दौरान कई स्वर्ण पदक और प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए। दीनदयाल इण्टरमीडिएट की पढ़ाई के लिए 1935 में पिलानी चले गए। 1937 में इण्टरमीडिएट बोर्ड के परीक्षा में बैठे और न केवल समस्त बोर्ड में सर्वप्रथम रहे वरन सब विषयों में विशेष योग्यता के अंक प्राप्त किए। बिडला कॉलेज का यह प्रथम छात्र था, जिसने इतने सम्मानजनक अंको से परीक्षा पास की थी। सीकर महाराजा के समान ही घनश्याम दास बिड़ला ने एक स्वर्ण पदक, 10रू मासिक छात्रवृत्ति तथा पुस्तकों आदि के खर्च के लिए 250रू प्रदान किए। सन 1939 में सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.ए. अंग्रेजी साहित्य में करने के लिए सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा में प्रवेश लिया। इसके पश्चात उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की लेकिन आम जनता की सेवा की खातिर उन्होंने इसका परित्याग कर दिया। </span></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><span> </span><span>दीनदयाल उपाध्याय की पत्रकारिता में भी अग्रणी भूमिका रही है। अपने राष्ट्रवाद के विचारों को जनमानस तक प्रेषित करने के लिए दीनदयाल उपाध्याय ने पत्रकारिता को माध्यम बनाया था। पत्रकारिता किस प्रकार से जनमत निर्माण करने में सहायक होती है, यह दीनदयाल जी ने बखूबी समझा था। एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय ने गांधी के विचार को पुनःव्याख्यायित करते हुए अंत्योदय की बात की। दीनदयाल जी ने राष्ट्रहित व चिंतन के विचारों को पत्रकारिता के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया था। </span></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">पं. दीनदयाल उपाध्याय एक कुशल पत्रकार और बेहतर संचारक थे। अपनी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए पत्रों का संपादन, प्रकाशन, स्तंभ लेखन, पुस्तक लेखन उनकी रुचि का विषय था। उन्होंने लिखने के साथ-साथ बोलकर भी एक प्रभावी संचारक की भूमिका का निर्वहन किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लोक कल्याण को ही पत्रकारिता का प्रमुख आधार माना। दीनदयाल के पास समाचारों का न्यायवादी एवं समन्वयवादी दृष्टिकोण था। उनके लेखों, उपन्यासों व नियमित कॉलमों में निष्पक्ष आलोचना, उचित शब्दों का प्रयोग और सत्यपरक खबरों को ही मानवता के अनुकूल मिलता है। राष्ट्र भक्ति को पल्लवित करने की भावना को साकार स्वरूप देने का श्रेय उंनकी पत्रकारिता को भी जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय को साहित्य से एक अलग ही लगाव था शायद इसलिए दीनदयाल उपाध्याय अपनी तमाम ज़िन्दगी साहित्य से जुड़े रहे। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। साहित्य से लगाव इतना की उन्होंने केवल एक बैठक में ही 'चंद्रगुप्त' नाटक लिख डाला था। भारत विभाजन के दौर में भयानक रक्तपात हुआ। देश, भारत को एक राष्ट्र मानने तथा भारत को द्विराष्ट्र मानने वाले में बंट गया। इसी हिंसाचार ने महात्मा गांधी को भी लील लिया। उनकी जघन्य हत्या हुई। देश के विभाजन की विभीषिका ने दीनदयाल जी को बहुत आहत किया। उन्होनें इस पर प्रखरतापूर्वक अपना पक्ष रखा। पंडित दीनदयाल के अनुसार अखण्ड भारत देश की भौगोलिक एकता का ही परिचायक नहीं अपितु जीवन के भारतीय दृष्टिकोण का परिचायक है जो अनेकता में एकता का दर्शन करता है। अतः हमारे लिए अखण्ड भारत राजनैतिक नारा नहीं है, बल्कि यह तो हमारे संपूर्ण जीवनदर्शन का मूलाधार है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">अखंड भारत की अवधारणा से संबंधित ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विश्लेषणार्थ उपाध्याय ने अखण्ड भारत क्यों? नाम की पुस्तिका लिखी, जिसमें उन्होंने प्राचीन भारत साहित्य के संदर्भित करते हुए भारत में युगों से चली आयी उस सांस्कृतिक एवं राजनैतिक परम्परा का उल्लेख किया है जो भौगोलिक भारत को एक एकात्म राष्ट्र के रूप में विकसित करने में समर्थ हुई थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का स्पष्ट मत था कि भारत माता को खण्डित किये बिना भी भारत की आजादी प्राप्त की जा सकती थी और भारत माता को परम वैभव तक पहुँचाने में हम अधिक तीव्रगति से सफल हो सकते थे किंतु पंडित नेहरू और जिन्ना के सत्ता के लालच और अंग्रेजों की चाल में आ जाने से भारतवासियों का यह सपना पूर्ण नहीं हुआ और खण्डित भारत को आजादी मिली। दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार व्यक्तिवाद अधर्म है। राष्ट्र के लिए काम करना धर्म है। दीनदयाल उपाध्याय बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। उनमें एक कुशल शिक्षाविद, अर्थचिंतक, संगठनकर्ता, राजनीतिज्ञ, लेखक व पत्रकार सहित अनेक गुण थे। यह बात अलग है कि उन्हें लोग एकात्म मानववाद के प्रणेता के रूप और एक संगठन के कुशल सेवी के रूप में ज्यादा जाना जाता है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">उनमें लेखन और संपादन का अद्भुत कौशल विद्यमान था। उनकी गणना उस दौर के प्रतिष्ठित पत्रकारों में भी जाती थी। उनके पत्रकारीय व्यक्तित्व में पत्रकारिता का आदर्शवाद समाहित था। आजादी के समय में अनेक नेताओं ने पत्रकारिता के प्रभावों का उपयोग अपने देश को आजादी दिलाकर राष्ट्र के पुनर्निर्माण और जनजागरण के लिए समर्पित किया। दीनदयाल उपाध्याय के व्यक्तित्व में एक संपादक के सभी पत्रकारीय गुण दिखाई पड़ते थे। दीनदयाल उपाध्याय मानते थे कि पत्रकारिता एक मिशनरी संकल्प है जिसे पूरी लगन एवं तल्लीनता से करनी चाहिए। समाजहित की पत्रकारिता में व्यावसायिक पत्रकार का कोई स्थान नहीं होता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने व्यस्त राजनीतिक जीवन से अनेक वर्षों तक आरगेनाइजर, राष्ट्रधर्म, पांचजन्य में ‘‘पॉलिटिकल डायरी’’ नामक स्तम्भ के अंतर्गत तत्कालीन राजनीतिक-आर्थिक घटनाक्रम पर गम्भीर विवेचनात्मक टिप्पणियां लिखते रहे। दीनदयाल जी की टिप्पणी सामयिक और बहुत पते की होती थी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"> सन 1947 में पंडित दीनदयाल ने राष्ट्रधर्म प्रकाशन लिमिटेड की स्थापना की जिसके अंतर्गत स्वदेश, राष्ट्रधर्म एवं पांचजन्य नामक पत्र प्रकाशित होते थे। दीनदयाल ने ‘पांचजन्य’, ‘राष्ट्रधर्म’ एवं ‘स्वदेश’ के माध्यम से राष्ट्रवादी जनमत निर्माण करने का महत्वपूर्ण कार्य किया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा एकात्म मानववाद का विकल्प एवं अंत्योदय का विचार उस कालखंड में दिया गया जब देश में समाजवाद, साम्यवाद जैसी आयातित विचारधाराओं का बोलबाला था। भारत में भारतीयता को पुनर्जीवित करने वाली विचारधारा की बजाय समाजवाद एवं साम्यवाद जैसी आयातित विचारधाराओं का बोलबाला होना भारतीयता के लिए अनुकूल नहीं था। पंडित जी ने भारत की समस्या को भारत के सन्दर्भों में समझकर उसका भारतीयता के अनुकूल समाधान देने की दिशा में एक युगानुकुल प्रयास किया। दीनदयाल जी ने अपने चिन्तन में आम मानव से जुड़ी जिन चिंताओं और समाधानों को समझाने का प्रयास आज से दशकों पहले किया था। सही मायनों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पत्रकारिता को भी इसी दृष्टि से एक नई दिशा दी। वे स्वयं कभी संपादक या औपचारिक संवादाता नहीं रहे। उन्होंने संपादकों और संवाददाताओं का सुखद सानिध्य प्राप्त किया। तभी संपादक व पत्रकार उन्हें सहज ही अपना मित्र एवं मार्गदर्शक मानते थे। पत्रकार के नाते पंडित जी का योगदान अनुकरणीय था। दीनदयाल जी उस युग की पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व करते थे जब पत्रकारिता एक मिशन होने के कारण आदर्श थी व्यवसाय नहीं थी । स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनेक नेताओं ने पत्रकारिता के प्रभावों का उपयोग अपने देश को स्वतंत्रता दिलाकर राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए किया। ऐसा सम्पादक शायद ही मिले जिसने अर्थोपार्जन के लिए पत्रकारिता का अवलंबन किया हो। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि पत्रकारिता करते समय राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानना चाहिए।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और स्वदेश के माध्यम से पत्रकारिता के क्षेत्र में जो मूल्य और मानदंड स्थापित किया उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती। दीनदयाल उपाध्याय का पत्रकारीय चिंतन राष्ट्रवादी और भारतीय जीवन मूल्यों की विचारधारा से जुड़ता है। पत्रकारिता के आधार पर उन्होंने राष्ट्र को समझने तथा भारतीय अस्मिता को लोगों तक पहुंचाने का गंभीर प्रयास किया है।</span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-59741179281694145492024-01-25T05:39:00.000-08:002024-01-25T05:40:43.001-08:00भारत और भारतीयता में रची बसी थी राजमाता<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjY91otorGaBh4aZvmjT5Zh-T-HJRiwK8McPlk54HvSbmGwXfh-Zr9HlVgQwRAzR9J57WmMjy_ajbETtZtI96U9Op7XSMeX4K2VUEsirHJ02d5pG-i6QK6QAf3mWvhYbyPFE9Fp_UmyyXkm36-xovzZTmnUN9exx6m4XHAbrPlR3DYw1dJmR0Q_D6jY6XM/s1230/RAJMATA.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="756" data-original-width="1230" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjY91otorGaBh4aZvmjT5Zh-T-HJRiwK8McPlk54HvSbmGwXfh-Zr9HlVgQwRAzR9J57WmMjy_ajbETtZtI96U9Op7XSMeX4K2VUEsirHJ02d5pG-i6QK6QAf3mWvhYbyPFE9Fp_UmyyXkm36-xovzZTmnUN9exx6m4XHAbrPlR3DYw1dJmR0Q_D6jY6XM/w416-h256/RAJMATA.jpg" width="416" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /><br /></span><p></p><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">उनका आत्मविश्वास, साहस और कौशल विलक्षण था। भारतीय राजनीती में योगदान अप्रीतम था। वह ममतामयी थी। अपना जीवन उन्होनें ग्वालियर रियासत और मध्यप्रदेश की प्रगति और विकास के लिए झोंक दिया था। उनका जीवन पूरी तरह से जन सेवा के लिए समर्पित था। वह निडर थी। हमेशा लोगों के बीच रहकर काम करने में उन्हें आनंद आता था । एक तरफ उनमें सादगी, सरलता, संवेदनशीलता की त्रिवेणी बसती थी, वहीँआमजन के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। देश के मानस पटल पर कभी यदि कुशल नेतृत्व कला दिखाने वाली भारत की महिलाओं की सूची बनेगी तो उसके केन्द्र में सबसे पहले ग्वालियर की राजमाता का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। जब भी भाजपा और जनसंघ के स्वर्णिम इतिहास का जिक्र होगा उसमें ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया का नाम सबसे ऊपर जरूर आएगा। राजमाता के नाम से जानी जाने वाली विजयराजे सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थी।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">राजमाता अपने विचारों सिद्धांतों के प्रति हमेशा अडिग रहने वाली थी। भारतीयता में रची बसी वो ऐसी विदुषी जननायिका थी जिन्होंनें महलों की विलासिता और वैभव को छोड़कर हमेशा जनता से जुड़कर न केवल उनकी समस्याओं को उठाया बल्कि संघर्ष करने से कभी नहीं घबराई। इसके लिए सड़क पर उतरकर राजमाता होने के मायने समय -समय पर सबको बताये और राजमाता से लोकमाता बन गई। उन्होनें जीवन पर्यन्त आम इंसान की जिंदगी को शिद्दत के साथ जिया और अपनी जनसेवा की ललक से आम जनता के दिलों में विशेष छाप छोड़ी। राजमाता जन -जन से जुड़ी रही और उनके बीच रहकर महिलाओं को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रही। राजमाता के व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण था ,जो हर किसी को हमेशा राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करता था। पद और सत्ता की लालसा हर किसी को आज आकर्षित करती है लेकिन राजमाता इन सबसे हमेशा दूर रही। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">राजमाता विजय राजे सिंधिया का जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले में राणा परिवार में ठाकुर महेंद्र सिंह और चूड़ा देवेश्वरी देवी के घर हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री महेंद्र सिंह ठाकुर और विंदेश्वरी देवी माँ थी। विजयाराजे सिंधिया का पहला नाम रेखा दिव्येश्वरी था। विजया राजे सिंधिया ने अपना जीवन ग्वालियर और मध्य प्रदेश की प्रगति और विकास के लिए समर्पित कर दिया था । अपनी प्रखर क्षमता से उन्होनें भारतीय राजनीती को वैचारिक और नैतिक आधार देने में सफलता पाई । सही मायने में वे ऐसी विदुषी महिला थी जिन्होंने भारतबोध को जिया और उसकी समस्याओं के हल तलाशने के लिए कारगर प्रयास हमेशा किए। वे सही मायने में एक राजमाता से ज्यादा समाजसेवा में रची बसी महिला थी जिनमें अपनी माटी और उसके लोगों के प्रति संवेदना कूट-कूट कर भरी हुई थी । ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ का मंत्र उनके जीवन का आदर्श था और भारत के आमजन में आज भी उनका नाम आदर और सम्मान से लिया जाता है ।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">राजमाता का लालन - पालन उनकी दादी ने किया और अपना बचपन एक आम महिला की तरह बिताया। युवावस्था में उन्होंने बनारस के वसंत कॉलेज और लखनऊ के थोबर्न कॉलेज में अध्ययन करते हुए स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया जहां उन्होंने आज़ादी की नई अलख जगाई । आत्मविश्वास से लबरेज होकर उन्होनें समाज के सामने एक अलग छाप छोड़ी। इसी अलहदा पहचान ने ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया का ध्यान आकर्षित किया। जीवाजी राव ने पहली मुलाकात में ही राजमाता से विवाह का फैसला किया जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया। विजयाराजे सिंधिया का विवाह 21 फरवरी 1941 को ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था। 1950 के दशक में ग्वालियर हिंदू महासभा का गढ़ था । कांग्रेस पार्टी इस परिदृश्य से खुश नहीं थी और अफवाहें फैल रही थी कि यह पार्टी महाराजा के लिए समस्याएं खड़ी करेगी। जीवाजी राव मुंबई में अपने निजी काम में व्यस्त थे, इसलिए राजमाता ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने का फैसला किया और उन्हें समझा दिया कि महाराज कांग्रेस - विरोधी नहीं थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका संदेह तभी दूर होगा जब जीवाजी राव कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। जब राजमाता ने नेहरू को समझाया कि जीवाजी राव का राजनीति में प्रवेश करने का इरादा नहीं है , तो प्रधानमंत्री ने राजमाता को महाराज के स्थान पर खड़े होने के लिए कहा। अगर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी होते तो राजमाता चुनाव लड़ने के लिए राजी हो जातीं और ग्वालियर से जीत जाती लेकिन जीवाजी राव की रक्षा के लिए की गई यह राजनीतिक संधि लंबे समय तक नहीं चली।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">1967 के चुनावों से पहले मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्रा के साथ मतभेदों के बाद राजमाता सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और जनसंघ की ओर से विधानसभा के लिए चुनाव लड़े और एक स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव। वे दोनों चुनाव जीते और औपचारिक रूप से जनसंघ में शामिल होने के बाद विधान सभा के सदस्य बनने का फैसला किया। गोविंद नारायण सिंह को जब मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब राजमाता पर पहली बार लोगों का ध्यान गया। मध्यप्रदेश की विधान सभा रोचक मोड़ उस समय आया जब 36 सदस्यों ने अपना समर्थन वापस ले लिया और गोविन्द नारायण सिंह की सरकार को गिरा दिया। उस दौर को याद करें तो पहली बार मध्य प्रदेश पहली बार ‘कांग्रेस - मुक्त ’ हो गया जिसमें परदे के पीछे राजमाता की बिछाई बिसात ने काम किया। संयुक्त विधानमंडल नाम की एक संधि सरकार का गठन उस दौर में किया गया था जिसकी अध्यक्षता खुद राजमाता ने की।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">मध्यप्रदेश में उस दौर में कांग्रेस की सरकार थी और द्वारका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री थे। एक दिन एक मीटिंग में मिश्र ने राजमाता को इंतजार करा दिया। उस समय हुए एक छात्र आंदोलन के कारण विजयाराजे और सीएम के बीच मनमुटाव चल रहा था। इस इंतजार ने उस मनमुटाव में आग में घी की तरह काम किया और राजमाता इसे अपना अपमान मान बैठी। वहां से जब राजमाता लौटी तो उन्होंने कांग्रेस सरकार के गिराने का संकल्प कर लिया। विजयाराजे कांग्रेस छोड़ जनसंघ से जा मिली और मिश्रा सरकार को गिराने की तैयारियों में जुट गईं। राजमाता ने इसके लिए कांग्रेस विधायकों को तोड़ कर अपनी ओर मिला लिया। देर रात तक विधायकों को तोड़ने की रणनीति गोविंद नारायण सिंह के साथ बनाई। जब विधायकों की संख्या 36 हो गई तो राजमाता ने उन्हें दो गोपनीय स्थानों पर रखा। अगले रोज इन विधायकों को राजमाता की बस में बैठाकर ग्वालियर ले जाया गया। यहां विधायकों को विजयाराजे ने बसों में बैठाकर दिल्ली भेज दिया गया। इस तरह राजमाता के आशीर्वाद से गोविंद नारायण को सीएम की कुर्सी मिल गई। राजमाता ने यहां विधायकों की मुलाकात मोरारजी देसाई और यशवंतराव चव्हाण से करवाई। विधायकों को जब वापस भोपाल लाया गया तो फिर विजयाराजे ने अपनी निजी सुरक्षा में ही इन्हें वापस लेकर आई। विधायकों के आने के बाद डीपी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ गया। अपनी मजबूत किलेबंदी से जिस दिन उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को पलट दिया और गठबंधन सरकार बनाई । पहली बार मप्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। 'संयुक्त विधायक दल' नाम के गठबंधन ने सरकार बनाई जिसमें राजमाता सर्वोच्च नेता बनीं और सिंह मुख्यमंत्री। हालांकि यह प्रयोग डेढ़ साल चल सका और फिर राजमाता व सिंह के बीच मतभेद हो गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री मिश्र की कांग्रेस सरकार गिराने वाले सिंह फिर कांग्रेस में चले गए। उसी समय भारतीय राजनीतिक के फलक पर राजमाता सूर्य की भांति चमकी और जनता की सेवा के लिए राजमाता जनसंघ में शामिल हुई।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">जनसंघ में एक प्रभावशाली और सबसे लोकप्रिय नेताओं में से राजमाता एक थी। उनके नेतृत्व में जनसंघ ने 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की लहर का सामना किया और ग्वालियर क्षेत्र में तीन सीटें जीती। एक बार अटल जी और आडवाणी जी ने उनसे जनसंघ के अध्यक्ष बनने का आग्रह किया था लेकिन उन्होंने एक कार्यकर्ता के रूप में ख़ुशी ख़ुशी जनसंघ की सेवा करना स्वीकार किया। राजमाता ने अपना वर्तमान राष्ट्र के भविष्य के लिए समर्पित कर दिया था। राजमाता पद और प्रतिष्ठा के लिए नहीं जीती थीं, न ही उन्होंने राजनीति की थी लेकिन जब उसने भगवान की पूजा की तो उनके मंदिर में भारत माता की बड़ी तस्वीर भी थी जो माटी के प्रति उनके अनुराग को दिखाता है। उनकी उनकी सेवाओं को सारे देश ने देखा और उसके स्पंदन को बखूबी महसूस किया। उनकी राष्ट्र के प्रति सेवा की जिजीविषा ने ही उन्हें राजमाता से लोकमाता बनाया और समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत किया।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भारतीय जनसंघ से भाजपा तक उनकी यात्रा में अनेक उतार - चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांत और विचारधारा के प्रति जो समर्पण रहा उसे कभी नहीं छोड़ा। अटल जी और आडवाणी 1972 में उनके सामने आए। एक बार जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए दोनों ने उनके साथ लम्बी मंत्रणा भी की। राजमाता ने कहा कि मुझे एक दिन का समय चाहिए। राजमाता जब दतिया के प्रमुख पीतांबरा माता के शक्तिपीठ गई , तो गुरुजी के साथ चर्चा की और अटल और आडवाणी जी से कहा कि वह एक कार्यकर्ता के रूप में भारतीय जनसंघ की सेवा करना जारी रखेंगी। पदों के प्रति उनमें कभी कोई आकर्षण नहीं था। वह इसे ठुकारने में भी देरी नहीं लगती थी और खुलकर सबके सामने अपनी बात मजबूती एक साथ रखती थी।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">अटल, आडवाणी और कुशाभाऊ ठाकरे जी जैसे राजनीती के पुरोधाओं के सानिध्य को पाकर वह अभिभूत हुई और भारतीय जनसंघ को पल्लवित करने में अपनी जी-जान लगाई। भारतीय जनसंघ से भाजपा तक की उनकी यात्रा में उतार - चढ़ाव थे लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों और विचारधारा के प्रति समर्पण कभी नहीं छोड़ा। वह कई दशकों तक जनसंघ की सदस्य रहीं। जनसंघ के नेता के कारण राजमाता सिंधिया ने पूरे देश का लम्बा दौरा किया और पार्टी के लिए खुलकर प्रचार किया। भाजपा के लिए वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करने में राजमाता सिंधिया ने बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कराया तो उन्होंने राजमाता को अपने पास बुलाया और उनसे 20 सूत्रीय कार्यक्रम का समर्थन करने को कहा था। उस समय राजमाता ने अपनी दृढ़ता का परिचय देते हुए इंदिरा के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि मैं जनसंघ की विचारधारा को नहीं छोड़ सकती। उन्होंने यह तक कह दिया कि मैं जेल जाना पसंद करूंगी लेकिन आपातकाल जैसे काले कानून का कभी समर्थन नहीं करूंगी। विचारधारा के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता शायद ही आज के दौर में किसी नेता में देखने को मिले। राजमाता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सामने झुकने के बजाए जेल जाना पसंद किया और अपनी विचारधारा से नहीं डिगी।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">जिस तरह इंदिरा गाँधी के पिता ने जीवाजी को संकट से बचाने के नाम पर विजय राजे को कांग्रेस से जोड़ा था, उसी तरह इंदिरा गाँधी ने विजय राजे के बेटे माधवराव सिंधिया को अपनी मां की भलाई का वादा करके जनसंघ छोड़ने के लिए मजबूर किया। माधवराव ने कांग्रेस के समर्थन में गुना के निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जनता पार्टी की लहर के बावजूद जीत गए। 1980 में वे औपचारिक रूप से कांग्रेस के सदस्य बने और तीसरी बार गुना से चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में , उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ग्वालियर से लड़ाई लड़ी। राजमाता ने अनिच्छा से अपने बेटे की मदद की। हालांकि उन्होंने केवल अटल बिहारी के लिए अपना चुनाव प्रचार किया। अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि सिंधिया परिवार की गरिमा बनी रहे। हालांकि उन्होंने वाजपेयी के लिए कहा लेकिन जनता समझ गई कि यह माधवराव को जीतने के लिए कहा गया था। क्षेत्र में राजमाता की लोकप्रियता समान रही। 1980 में जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर ने राजमाता से आग्रह किया कि वे रायबरेली से जनता पार्टी की ओर से इंदिरा गांधी से लोकसभा चुनाव लड़ें। राजमाता ने कहा कि पार्टी को फैसला करना चाहिए। राजमाता खुद रायबरेली गईं और इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। वे पीछे नहीं हटी । बेशक उस दौर में वह चुनाव हार गई लेकिन उन्होंने संगठन के निर्णय का पालन कर राजनीति में अपना आदर्श स्थापित किया । राजमाता भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर संसद भी पहुंची जिसके बाद 1991, 1996 और 1998 में भी वह इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचती रही। उन्होंने 1999 में चुनाव नहीं लड़ा। 25 जनवरी 2001 में उनकी मृत्यु हो गई।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">राजमाता ने भाजपा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ ही उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष से बनाया गया। जब पार्टी ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई तब राजमाता ने भी इसको बखूबी आगे बढ़ाते रही। 6 दिसंबर 1992 में बाबरी विध्वंस के दौरान राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी विवादित स्थल के नजदीक मंच पर वरिष्ठ नेताओं के साथ मौजूद थी। इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए भाषण भी दिया था। अन्य हिंदू नेताओं के साथ राजमाता ने भी कारसेवकों का मंदिर आंदोलन में नेतृत्व किया था। 1988 में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यपरिषद में राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहली बार राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव लेकर आईं थी। केंद्र में जब जनता पार्टी की सरकार बनी। उस समय तत्कालीन नेताओं को कई सरकारी पद दिए गए थे लेकिन राजमाता ने उसे स्वीकार नहीं किया। बाद में राजमाता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद में शामिल हो गईं। भारतीय राजनीति में सिंधिया राजघराने की बात जब भी होती है तो इस राजघराने के बेटा - बेटियों की चर्चा खूब होती है। विजया राजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया पहले जनसंघ में रहे। बाद में वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बने। उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी देश की सेवा की। माधवराव सिंधिया के बेटे और विजयाराजे सिंधिया के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्तमान में भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। विजयाराजे सिंधिया की दो बेटी वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकी हैं जबकि यशोधरा राजे सिंधिया पूर्व सांसद के साथ मध्यप्रदेश की सरकार में पूर्व खेल मंत्री भी रह चुकी हैं। कम समय में अपनी जनसेवा से यशोधरा राजे ने भी मध्य प्रदेश की राजनीती में बड़ा मुकाम हासिल किया है। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">राजमाता ने भारतीय राजनीति में एक ऐसी सशक्त महिला के तौर पर पहचान बनाई जिसमें जनता के लिए हमेशा कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी। उसकी दूसरी मिसाल आज तक भारतीय राजनीती में देखने को नहीं मिलती। हमेशा जनता से सीधा जुड़ाव, संवाद और राष्ट्रहित के प्रति सेवा करने की उनकी भावना ने उन्हें सही मायनों में लोकमाता बना दिया। अपनी सरलता, सहजता और संवेदनशीलता से उन्होनें सबका दिल जीत लिया। राजघराने से ताल्लुक रखने के बाद भी जनता के हर दर्द में सहभागी बनने की उनकी सेवा भावना का हर कोई मुरीद हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी विलक्षण प्रतिभा के कायल रहे हैं। कई बार सार्वजनिक मंचों से वे बता चुके हैं कैसे पार्टी के साधारण से साधारण कार्यकर्ता का ध्यान राजमाता एक मां की तरह रखती थी। </span></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-50437617010810723292023-11-14T03:36:00.000-08:002023-11-14T03:36:10.220-08:00दीपोत्सव पर समाज को नई राह दिखलाएं <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLSgRkKxySsjRDDmvL0ltj4JPvyiaCIn4USiwJus_R_-Egxfxq9rCp1pK0xh3ywxiTx1IDDKbAE-UoQaVVbmuMt9mu2hv6l4Mg-qcqFXqH__3TQlPP_uu0AignWVqy5KMHJ1c9s0ZRWSigyZoOjad7OXFtFRAFZA71BUFKFgI0lk_0h9W91LHe9GpNFWQ/s1400/Diwali_1400x600.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="1400" height="275" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLSgRkKxySsjRDDmvL0ltj4JPvyiaCIn4USiwJus_R_-Egxfxq9rCp1pK0xh3ywxiTx1IDDKbAE-UoQaVVbmuMt9mu2hv6l4Mg-qcqFXqH__3TQlPP_uu0AignWVqy5KMHJ1c9s0ZRWSigyZoOjad7OXFtFRAFZA71BUFKFgI0lk_0h9W91LHe9GpNFWQ/w447-h275/Diwali_1400x600.jpg" width="447" /></a></div><br /><p><br /></p><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><br /></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">हिन्दू परंपरा में त्यौहार से आशय उत्सव और हर्षोल्लास से लिया जाता है। अपने देश की बात की जाए तो यहाँ मनाये जाने वाले त्योहारों में विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। यहाँ मनाये जाने वाले सभी त्योहार कमोवेश परिस्थिति के अनुसार अपने रंग , रूप और आकार में भिन्न हो सकते हैं लेकिन इनका अभिप्राय आनंद की प्राप्ति ही होता है। बेशक अलग -अलग धर्मों में त्यौहार मनाने के विधि विधान भिन्न हो सकते हैं लेकिन सभी का मूल मकसद बड़ी आस्था और विश्वास का संरक्षण होता है । सभी त्योहारों से कोई न कोई पौराणिक कथा जुडी हुई है जिनमें से सभी का सम्बन्ध आस्था और विश्वास से है। यहाँ पर यह भी कहा जा सकता है इन त्योहारों की पौराणिक कथाएँ भी प्रतीकात्मक होती हैं। कार्तिक मॉस की अमावस के दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है । दीपावली का त्यौहार महज त्यौहार ही नहीं है, इसके साथ कई पौराणिक गाथाएं भी जुडी हुई हैं ।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">दीपावली की शुरुआत आमतौर पर कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन से होती है जिसे धनतेरस कहा जाता है। इस दिन आरोग्य के देव धन्वन्तरी की पूजा अर्चना का विधान है । धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। लोकमान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन वस्तु खरीदने से उसमें कई गुना वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चाँदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है वही आज के समय में लोगों को नहीं है । जिसके पास सन्तोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। इसी दिन भगवान को प्रसन्न रखने के लिए नए नए बर्तन , आभूषण खरीदने का चलन लम्बे समय से चला आ रहा है। यह अलग बात है मौजूदा दौर में बाजार अपने हिसाब से सब कुछ तय कर रहा है और पूरा देश चकाचौंध के साये में जी रहा है जहां अमीर के लिए दीवाली ख़ुशी का प्रतीक है वहीँ गरीब आज भी दीपावली उस उत्साह और चकाचौंध के साये में जी कर नहीं मना पा रहा है जैसी उसे अपेक्षा है। आज समाज में अमीर और गरीब की खाई दिनों दिन गहराती ही जा रही है।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> धनतेरस के दूसरे दिन नरक चौदस मनाई जाती है जसी छोटी दीपावली भी कहते हैं। कहा जाता है कि जब वासुदेव श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस के प्राण हरे थे, तो उसके बाद उन्होंने तेल और उबटन से स्नान किया था और यहीं से उबटन लगाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसा माना जाता है इस दिन कृष्ण ने नरकासुर रक्षक का वध कर उसके कारागार से तकरीबन 16000 कन्याओं को मुक्त किया था।माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस वजह से इस दिन महिलाएं खासतौर से उबटन से स्नान करती हैं। स्वर्ग के साथ उन्हें सौभाग्य का भी वरदान मिलता है। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">इस दिन किसी पुराने दिए में सरसों के तेल में पांच अन्न के दाने डालकर घर में जलाकर रखा जाता है जो दीपक यम दीपक कहलाता है। तीसरे दिन अमावस की रात दीपावली का त्यौहार उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी और लक्ष्मी की स्तुति की जाती है । दीवाली के बाद अन्नकूट मनाया जाता है। लोग इस दिन विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन की पूजा करते हैं। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: large;">पौराणिक मान्यता है कृष्ण ने नंदबाबा और यशोदा और ब्रजवासियों को इन्द्रदेव की पूजा करते देखा ताकि इन्द्रदेव ब्रज पर मेहरबान हो जाये तो उन्होंने ब्रज के वासियों को समझाया कि जल हमको गोवर्धन पर्वत से मिलता है जिससे प्रभावित होकर सबने गोबर्धन को पूजना शुरू कर दिए। यह बात जब इंद्र को पता चली तो वह आग बबूला हो गए और उन्होंने ब्रज को बरसात से डूबा देने की ठानी जिसके बाद भारी वर्षा का दौर बृज में देखने को मिला। सभी रहजन वासुदेव श्रीकृष्ण के पास गए और तब कान्हा ने तर्जनी पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया। पूरे सात दिन तक भारी वर्षा हुई पर ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे । सुदर्शन चक्र ने उस दौर में बड़ा काम किया और वर्षा के जल को सुखा दिया। बाद में इंद्र ने कान्हा से माफ़ी मांगी और तब सुरभि गाय ने कान्हा का दुग्धाभिषेक किया जिस मौके पर 56 भोग का आयोजन नगर में किया गया । तब से गोबर्धन पर्वत और अन्नकूट की परंपरा चली आ रही है ।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> शुक्ल द्वितीया को भाई दूज मनायी जाती है। कहा जाता है यम और यमुना सूर्य के दो बच्चे थे और एक बार यमुना ने अपने भाई को अपने साथ भोजन करने के लिए घर पर आमंत्रित किया था लेकिन यम ने अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण पहले तो इनकार कर दिया, लेकिन कुछ देर के बाद उसने महसूस किया कि उसे जाना चाहिए क्योंकि उसकी बहन ने उसे बहुत प्यार से आमंत्रित किया है। अंत में, वह उसके पास गया और यमुना ने उसका स्वागत किया और उसके माथे पर तिलक भी लगाया। यम वास्तव में उसके आतिथ्य से बेहद खुश हुआ और उसे एक इच्छा माँगने के लिए कहा। तब यमुना ने कहा कि जो इस दिन अपनी बहन से मिलने जाएगा, उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा। उनके भाई ने खुशी से ‘तथास्तु’ कहा और यही कारण है कि हम भाई दूज का त्यौहार मनाते हैं। मान्यता है यदि इस दिन भाई और बहन यमुना में स्नान करें तो यमराज आस पास भी नहीं फटकते। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">ऐसा भी माना जाता है कि भगवान सूर्य के दो बच्चे यम और यमुना थे और दोनों जुड़वाँ थे लेकिन जल्द ही उनकी माँ देवी संग्या ने उन्हें अपने पिता की तरह ज्ञान प्राप्त करने के लिए छोड़ दिया। उन्होंने अपने बच्चों के लिए अपनी परछाई छोड़ रखी थी जिसका नाम उन्होंने छाया रखा। छाया ने भी एक बेटे को जन्म दिया था जिसका नाम शनि था लेकिन उसके पिता उसे पसंद नहीं करते थे। परिणामस्वरूप, छाया ने दोनों जुड़वा बच्चों को अपने घर से दूर फेंक दिया। दोनों जुदा हो गए और धीरे-धीरे काफी समय बीतने के बाद एक रोज यमुना ने अपने भाई को मिलने के लिए बुलाया, क्योंकि वह वास्तव में पिछले काफी समय से यम से मिलना चाहती थी। जब यम, यानी मृत्यु के देवता, उनसे मिलने पहुंचे तब उन्होंने उनका खुशी से स्वागत किया। वह अपने आतिथ्य से वास्तव में काफी खुश हुए; यमुना ने उनके माथे पर तिलक लगाया और उनके लिए स्वादिष्ट भोजन भी पकाया। यम ने खुशी महसूस की और अपनी बहन यमुना से पूछा कि क्या वह कुछ चाहती है? तब यमुना ने उस दिन को आशीर्वाद देना चाहा ताकि सभी बहनें अपने भाइयों के साथ समय बिता सकें और इस दिन जो बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाएंगी, मृत्यु के देवता उन्हें परेशान नहीं करेंगे। यम इस पर सहमत हुए और कहा ठीक है परिणामस्वरूप हर वर्ष इस दिन बहनें अपने भाइयों के साथ इस अवसर को मनाती हैं ।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">दीपावली में दीयों को जलाने की परंपरा उस समय से चली आ रही है जब रावण की लंका पर विजय होने के बाद राम अयोध्या लौटे थे। राम के आगमन की ख़ुशी इस पर्व में देखी जा सकती है । जिस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम अयोध्या लौटे थे उस रात कार्तिक मॉस की अमावस थी और चाँद बिलकुल दिखाई नहीं देता था। तब नगरवासियों में अयोध्या को दीयों की रौशनी से नहला दिया । तब से यह त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है । </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">ऐसा माना जाता है दीपावली की रात यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हस परिहास करते और आतिशबाजी से लेकर पकवानों की जो धूम इस त्यौहार में दिखती है वह सब यक्षों की ही दी हुई है वहीँ कृष्ण भक्तों की मान्यता है इस दिन कृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था । इस वध के बाद लोगों ने ख़ुशी में घर में दिए जलाए। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान नारायण विष्णु ने अपने नरसिंह रूप को धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था और समुद्र मंथन के पश्चात प्रभु धन्वन्तरी और धन की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई जिसके बाद से उनको खुश करने के लिए यह सब त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। वहीँ जैन मतावलंबी मानते हैं कि जैन धरम के 24 वे तीर्थंकर महावीर का निर्वाण दिवस भी दिवाली को हुआ था। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">बौद्ध मतावलंबी का कहना है बुद्ध के स्वागत में तकरीबन 2500 वर्ष पहले लाखों अनुयायियों ने दिए जलाकर दीपावली को मनाया। दीपोत्सव सिक्खों के लिए भी महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था और दीपावली के दिन ही सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह को कारागार से रिहा किया गया था। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद ने 1833 में दिवाली के दिन ही प्राण त्यागे थे । इसलिए उनके लिए भी इस त्यौहार का विशेष महत्व है ।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भारत के सभी राज्यों में दीपावली धूमधाम के साथ मनाई जाती है। परंपरा के अनुरूप इसे मनाने के तौर तरीके अलग अलग बेशक हो सकते हैं लेकिन आस्था की झलक सभी राज्यों में दिखाई देती है। गुजरात में नमक को लक्ष्मी का प्रतीक मानते हुए जहाँ इसे बेचना शुभ माना जाता है वहीँ राजस्थान में दीपावली के दिन रेशम के गद्दे बिछाकर अतिथियों के स्वागत की परंपरा देखने को मिलती है। हिमाचल में आदिवासी इस दिन यक्ष पूजन करते हैं तो उत्तराखंड में थारु आदिवाई अपने मृत पूर्वजों के साथ दीपावली मनाते हैं। बंगाल में दीपावली को काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। देश के साथ ही विदेशों में भी दीपावली की धूम देखने को मिलती है। ब्रिटेन से लेकर अमरीका तक में यह में दीपावली धूम के साथ मनाया जाता है। विदशों में भी धन की देवी के कई रूप देखने को मिलते हैं। धनतेरस को लक्ष्मी का समुद्र मंथन से प्रकट का दिन माना जाता है।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भारतीय परंपरा उल्लू को लक्ष्मी का वाहन मानती है लेकिन महालक्ष्मी स्रोत में गरुण अथर्ववेद में हाथी को लक्ष्मी का वाहन बताया गया है। प्राचीन यूनान की महालक्ष्मी एथेना का वाहन भी उल्लू ही बताया गया है लेकिन प्राचीन यूनान में धन की अधिष्ठात्री देवी के तौर पर पूजी जाने वाली हेरा का वाहन मोर है। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भारत के अलावा विदेशों में भी लक्ष्मी पूजन के प्रमाण मिलते हैं। कम्बोडिया में शेषनाग पर आराम कर रही विष्णु जी के पैर दबाती एक महिला की मूरत के प्रमाण बताते हैं यह हमारी देवी लक्ष्मी ही है। प्राचीन यूनान के सिक्कों पर भी लक्ष्मी की आकृति देखी जा सकती है। रोम में चांदी की थाली में लक्ष्मी की आकृति होने के प्रमाण इतिहासकारों ने दिए हैं। पडोसी देश श्रीलंका में भी पुरातत्वविदों को खनन और खुदाई में कई भारतीय देवी देवताओं की कई मूर्तियां मिली हैं जिनमे लक्ष्मी भी शामिल है । इसके अलावा थाईलैंड ,जावा , सुमात्रा, मारीशस , गुयाना , अफ्रीका ,जापान, अफ्रीका जैसे देशों में भी इस धन की देवी की पूजा की जाती है। यूनान में आइरीन, रोम में फ़ोर्चूना , ग्रीक में दमित्री को धन की देवी एक रूप में पूजा जाता है तो यूरोप में भी एथेना ,मिनर्वा और एलोरा का महत्व है। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> समय बदलने के साथ ही बाजारवाद के दौर के आने के बाद आज बेशक इसे मनाने के तौर तरीके भी बदले हैं लेकिन आस्था और भरोसा ही है जो कई दशकों तक परंपरा के नाम पर लोगों को एक त्यौहार के रूप में देश से लेकर विदेश तक के प्रवासियों को एक सूत्र में बाँधा है।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> बाजारवाद के इस दौर में घरों में मिटटी के दीयों की जगह आज चीनी उत्पादों और लाइट ने ले ली है लेकिन यह त्यौहार उल्लास का प्रतीक तभी बन पायेगा जब हम उस कुम्हार के बारे में भी सोचें जिसकी रोजी रोटी मिट्टी के उन दीयों से चलती है जिसकी ताकत चीन के सस्ते दीयों ने आज छीन ली है। हम पुराना वैभव लौटाते हुए यह तय करें कि कुछ दिए उस कुम्हार के नाम इस दीपावली में खरीदें जिससे उसकी भी आजीविका चले और उसके घर में भी खुशहाली आ सके।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">इस त्यौहार में भले ही महानगरों में आज चकाचौंध का माहौल है और हर दिन अरबों के वारे न्यारे किये जा रहे हैं लेकिन सरहदों में दुर्गम परिस्थिति में काम करने वाले जवानों के नाम भी हम एक दिया जलाये जो दिन रात सरहदों की निगरानी करने में मशगूल हैं और अभी भी दीपावली अपने परिवार से दूर रहकर मना रहे हैं । इस दीपावली पर हम यह संकल्प भी करें तो बेहतर रहेगा यदि इस बार की दीपावली हम पौराणिक स्वरुप में मनाते हुए स्वदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करें। पटाखों के शोर से अपने को दूर करते हुए पर्यावरण का ध्यान रखें और कुम्हार के दीयों से अपना घर रोशन ना करें बल्कि समाज को भी नहीं राह दिखाए तो तब कुछ बात बनेगी। </span></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-7612984794633844022023-10-25T05:58:00.006-07:002023-10-25T05:59:57.600-07:00 स्पिन के जादूगर की अंतिम 'फ्लाइट ' <p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiz_b79VVdFhyphenhyphenxQDRQ54EMmiwNUEEic59_uI3IoednxuDuuKusSuh9MZRLyOxh4X38dLItBM42lHav17OpnDGDRKJEfIk3Ea6gdM5n9HUTcuqrlg105PiXBCOHiCQ9xXwZhIyXeH3mN2LMdQxxV6PgirklCv9Ghww5KtOB3D36xICtM5HNvqDbUF7TAw0M/s792/bedi.png" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="446" data-original-width="792" height="274" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiz_b79VVdFhyphenhyphenxQDRQ54EMmiwNUEEic59_uI3IoednxuDuuKusSuh9MZRLyOxh4X38dLItBM42lHav17OpnDGDRKJEfIk3Ea6gdM5n9HUTcuqrlg105PiXBCOHiCQ9xXwZhIyXeH3mN2LMdQxxV6PgirklCv9Ghww5KtOB3D36xICtM5HNvqDbUF7TAw0M/w438-h274/bedi.png" width="438" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">उनकी स्पिन में गजब का जादू था। जब वो मैदान पर उतरते और कलाई से गेंद की दिशा को मोड़ देते थे तो दुनिया के बल्लेबाजों का मान मर्दन कर देते थे। उनके सामने बैटिंग करने पर खिलाडियों के पहले ही पसीने छूट जाया करते थे। उनकी गेंद की फ्लाइट को देखकर दुनिया के अच्छे बल्लेबाज भी चकमा खा जाते थे। अगर कहा जाए उनकी गिनती बाएं हाथ के दुनिया के महानतम स्पिनर के रूप में की जाती थी तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। सही मायनों में अगर कहा जाए तो इरापल्ली प्रसन्ना, बीएस चंद्रशेखर और एस. वेंकटराघवन की तिकड़ी के साथ उन्हें भारतीय स्पिन गेंदबाज़ी में नई क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है।</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> पचास के दशक में हमारे पास वीनू मांकड और सुभाष गुप्ते जैसे विश्वस्तरीय स्पिनर थे लेकिन सत्तर और अस्सी के दशक में भारत की स्पिन को दुनिया के पटल पर अगर किसी ने नई पहचान दिलाई तो उसमें बिशन सिंह बेदी ही थे। जिस दौर में बेदी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया उस समय दुनिया भर में तेज़ गेंदबाज़ों का जलवा हुआ करता था। होल्डिंग, रॉबर्ट्स, गार्नर, मार्शल, क्लार्क , लिली , टॉमसन सरीखे रफ़्तार के लम्बे तेज गेदबाजों के सामने सही से भी बैटिंग भी नहीं की जा सकती थी । उस दौर में बिशन सिंह बेदी ने अपनी कलाई के जादू के आसरे दुनिया के पटल पर खास पहचान बनाई। बिशन सिंह बेदी ने भारत के खिलाफ 67 टेस्ट मैच खेले और 28.71 के शानदार औसत से 266 विकेट हासिल किए। इस दौरान वो भारत की ओर से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज भी रहे। उनके पास लूप और स्पिन के साथ-साथ क्रीज पर बल्लेबाजों को मात देने के लिए खुद के पिटारे में बेहतर आर्म स्पीड रिलीज पॉइंट्स में फ़्लाइट भी मौजूद थी ।</span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> भारतीय क्रिकेट में स्पिन को नई दिशा देने में बिशन सिंह बेदी के योगदान को कभी भुलाया ही नहीं जा सकता। अपनी फिरकी से उन्होनें दुनिया भर के बल्लेबाज़ों को अपने कौशल से बाँधा, साथ ही घरेलू क्रिकेट दिल्ली की ओर से खेलते हुए अपने दो रणजी ट्रॉफ़ी खुद के नेतृत्व में जीते। यही नहीं 370 के प्रथम श्रेणी के मैचों में रिकॉर्ड 1560 विकेट हासिल कर वह एक समय सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी भी बने। वह भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में 200 विकेट लेने वाले पहले गेंदबाज थे। बिशन सिंह बेदी भारतीय टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहले बाएं हाथ के स्पिनर बने थे जिन्होंने 266 विकेट लेने का कारनामा महज 67 मैच में कर दिखाया जो एक बड़ी उपलब्धि उस दौर में थी जब क्रिकेट में आज के दौर के जैसे संसाधन नहीं हुआ करते थे ।अपने खेल के जरिये उन्होंने दुनिया की विभिन्न टीमों को खेल के सही मायने सिखाये । </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">बिशन सिंह बेदी की अलहदा शख़्सियत उन्हें महान खिलाडियों की ऐसी श्रेणी में रखती है जो खेल भावना से खेल खेला करते थे। एक बार 1976 के सबीना पार्क में टेस्ट मैच चल रहा था जब वेस्ट इंडियन कप्तान क्लाइव लॉयड ने ऑस्ट्रेलिया के लिली-टॉमसन से त्रस्त होकर तेज़ गेंदबाज़ी को अपना हथियार बनाया और भारतीय बल्लेबाज़ों को मैदान पर अपने निशाने पर लिया तो तो बिशन सिंह बेदी ने विरोध में पारी घोषित कर दी। उनका स्पष्ट कहना था कि ऐसा खेल उन्हें मंज़ूर नहीं है जिसमें इस तरह की आक्रामकता हो। उस टेस्ट को अब भी इस विरोध के लिए याद किया जाता है। इस घटना ने सिखाया बेदी अपने उसूलों पर चलने वाले एक बेहतर इंसान थे और बेख़ौफ़ बोलने में माहिर थे । </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> बिशन सिंह का जन्म 25 सितंबर 1946 को अमृतसर पंजाब में हुआ था। बेदी ने भारत के लिए 1966 में टेस्ट डेब्यू किया और वह अगले 13 साल तक टीम इंडिया के लिए सबसे बड़े मैच विनर साबित हुए। गेंदबाजी के अलावा बिशन सिंह बेदी के अंदर बेहतरीन नेतृत्व की काबिलियत भी थी । बिशन सिंह बेदी को 1976 में टीम इंडिया का कप्तान नियुक्त किया गया और उन्होंने 1978 तक टीम इंडिया की कमान संभाली। बिशन सिंह बेदी ने 22 टेस्ट मैचों में टीम इंडिया की कप्तानी की। बिशन सिंह बेदी को ऐसे कप्तान के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने टीम के अंदर लड़ने की क्षमता पैदा की और अनुशासन को लेकर नए बैंच मार्क स्थापित किए। बिशन सिंह बेदी को भारतीय टीम की कप्तानी करने का भी मौका मिला था। उन्हें 1976 में यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बेदी को महान क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी की जगह कप्तान बनाया गया था। बतौर कप्तान उन्हें पहली जीत वेस्टइंडीज के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन में 1976 के दौरे पर मिली थी। कप्तान के तौर पर बिशन सिंह बेदी ने 1976 में उस समय की सबसे मजबूत टीम वेस्टइंडीज को उसी की धरती पर जाकर टेस्ट सीरीज में मात दी। इसके बाद इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर टेस्ट सीरीज में 3-1, ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट सीरीज में 3-2 और पाकिस्तान दौरे पर टेस्ट सीरीज 2-0 से मिली हार के बाद उन्हें कप्तानी से हटा दिया गया था। उनके बाद सुनील गावस्कर कप्तान बने ।</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भारत के लिए 67 टेस्ट मैच में उन्होंने 266 विकेट लिए। उन्होंने 15 बार पारी में पांच विकेट लेने का कारनामा किया और एक बार मैच में 10 विकेट भी लिए। वहीं, 10 वनडे मैच में उन्होंने सात विकेट झटके।बेदी ने भारत के लिए कुल 77 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले थे। इस दौरान उन्होंने 273 विकेट झटके । बेदी को भारतीय टेस्ट इतिहास के पुरोधा बेहतरीन स्पिनरों में आज भी गिना जाता है। बेदी ने भारत के लिए 1966 से 1979 तक टेस्ट क्रिकेट खेला था। बेदी ने 1969–70 में कोलकाता टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक पारी में 98 रन देकर सात विकेट लिए थे। यह एक पारी में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। वहीं, मैच की बात करें तो 1977–78 में पर्थ के मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 194 रन देकर कुल 10 विकेट झटके थे। उन्होंने टेस्ट में इकलौता अर्धशतक 1976 में कानपुर टेस्ट में न्यूजीलैंड के खिलाफ लगाया था।बिशन सिंह बेदी भारतीय क्रिकेट इतिहास के इकलौते ऐसे स्पिनर रहे , जिन्होंने अपने पूरे प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 1560 विकेट लिए। बेदी ने दो उपविजेता रहने के अलावा, 1978-79 और 1979-80 में दिल्ली को प्रतिष्ठित रणजी ट्रॉफी खिताब भी दिलाया। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट में नॉर्थम्पटनशायर के लिए भी उनका कार्यकाल सफल रहा। 1972 और 1977 के बीच क्लब के लिए 102 मैचों में, बेदी ने 20.89 के औसत के साथ 434 विकेट हासिल किए, जो इंग्लिश काउंटी क्रिकेट सर्किट में किसी भारतीय द्वारा सबसे अधिक है। बिशन सिंह बेदी के नाम 60 ओवरों के वनडे फॉर्मेट में सबसे किफायती स्पेल डालने का विश्व रिकॉर्ड है। बेदी ने ईस्ट अफ्रीका के खिलाफ 1975 में 12 ओवर के अपने स्पेल में सिर्फ 6 दिए थे। इस दौरान उन्होंने 8 मेडन ओवर निकाले जबकि एक विकेट भी लिय था।</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद भी बिशन सिंह बेदी का जुड़ाव इस खेल के लिए खत्म नहीं हुआ। लंबे समय तक बिशन सिंह बेदी ने खुद को इस खेल के साथ जोड़े रखा। अपने खेल करियर के बाद, बेदी ने युवा क्रिकेटरों को कोचिंग देना शुरू कर दिया, जिसमें मनिंदर सिंह और मुरली कार्तिक उनकी नर्सरी से निकले खिलाड़ी थे जिन्होंने भारत के झंडे दुनिया में अपनी गाइडबाजी से गाढ़े। उन्होंने घरेलू क्रिकेट में पंजाब, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर टीमों को भी कोचिंग दी, जिसमें पंजाब ने 1992-93 में रणजी ट्रॉफी जीती। नब्बे के दशक में वो कुछ समय के लिए भारतीय टीम के मैनेजर भी नियुक्त किये गए । वह खेल से जुड़े सभी मामलों पर एक मुखर, निडर और निडर आवाज थे । बेदी ने क्रिकेट की दुनिया में बतौर कमेंटेटर भी पहचान बनाई। कोच के तौर पर भी बिशन सिंह बेदी लंबे समय तक क्रिकेट के साथ जुड़े रहे । इतना ही नहीं भारत को स्पिन डिपार्टमेंट में मजबूत बनाए रखने के लिए बिशन सिंह बेदी ने नए खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी और भारतीय क्रिकेट के लिए अंतिम समय तक अहम योगदान देते रहे। बतौर भारत के कप्तान, कोच ,चयनकर्ता के तौर पर उनके भारतीय क्रिकेट के प्रति योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्हें 1969 में अर्जुन पुरस्कार, 1970 में पद्म श्री और 2004 में सी.के. नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">क्रिकेट के क्षेत्र में बिशन पाजी नाम बहुत बड़ा है। उनकी खेल की हर बारीकी पर तेज नजर रहती थी और खिलाडियों को भी आगे बढ़ने को प्रेरित करती थीं। उनके निधन से भारतीय क्रिकेट जगत में एक ऐसा शून्य भर गया है, जिसे भर पाना कठिन होगा । उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी क्रिकेट की सेवा के लिए लगा दी और अंतिम सांस तक इसी खेल के लिए जिए। उनका व्यक्तित्व क्रिकेट के प्रति एक अलग प्रकार चेतना से भरा हुआ था। क्रिकेट की गहरी समझ उनमें साफ दिखती थी। क्रिकेट पर बोलते हुए वो एक संत जैसा ज्ञान देते थे जो गहराई के साथ हर किसी खिलाड़ी के जीवन में उतर जाता था। मेरे जैसे पत्रकारों के लिए वे हमेशा क्रिकेट में महान हीरो की तरह रहे हैं जिन्होंने खेल को न केवल जिया बल्कि अपनी विशेषताओं से खुद को हर जगह साबित किया । उनके साथ चाय पर चर्चा करते हुए बैठना, चर्चा करना हमेशा अच्छा लगता था । वे मुझे खेल पर लिखने के लिए हमेशा नए विचार देते थे। अंतिम बार कोरोना से पहले मैं उनके साथ दिल्ली के एयरपोर्ट स्थित लेमन ट्री होटल में एक कार्यक्रम के दौरान साथ बैठा था जहाँ उनके साथ क्रिकेट पर लम्बी चर्चा हुई। उस कार्यक्रम के दौरान भी उन्होनें मिलने-जुलने से उन्होंने परहेज नहीं किया और मुलाक़ात में गर्मजोशी दिखाते हुए अपने हाथों से मुझे चाय पिलाई ।उनकी उस मुलाक़ात से क्रिकेट के पुराने दौर और नए दौर के बदलावों की आहट को मैंने करीब से महसूस किया। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">उन्होंने अपने दौर के टेस्ट मैचों और आज के आईपीएल की चमक की तुलना खुलकर करते हुए कहा इंडियन प्रीमियर लीग मुनाफे का धंधा है। मुनाफा मनोरंजन से जुटाया जाता है, तो फिल्म अभिनेताओं ,अभिनेत्रियों और कारोबारियों को इसमें लिया गया । क्रिकेट का तत्व कहीं हल्का पड़ गया लेकिन सेलेब्रिटियों के चेहरे काम आएंगे। अमेरिका के एनबीए व बेसबॉल की व्यावसायिक लोकप्रियता से काफी प्रभावित होकर पूंजी बटोरने के सारे तत्व वहां से लिए। मल्टीप्लेक्स आपकी जेब कब खाली कर देते हैं? और कैसे कर देते हैं? आप सोचते ही रह जाते हैं लेकिन आईपीएल क्रिकेट का मुनाफा कमाने का समीकरण ही ऐसा है। इतना सीधा सपाट और खरा खरा बोलने वाले खिलाड़ी मैंने आज तक नहीं देखे। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">कोरोना के बाद जब भी यदा-कदा उनसे बात हुई तो वे अस्वस्थ ही रहे और इस दौरान उन्हें एक घुटने की सर्जरी से भी गुजरना पड़ा जिसके बाद लोगों से मिलना जुलना कम हो गया फिर भी उन्होनें जल्द मिलने का भरोसा जगाया । पाजी का पूरा जीवन क्रिकेट की एक पाठशाला से कम नहीं था ऐसा उनके साथ मिलने और क्रिकेट के विभिन्न प्रसंगों पर चर्चा करते हुए मुझे लगा। उनसे मिलने की मेरी कसक अधूरी ही रह गई । शायद अब ऐसे दुनिया के महान स्पिनर से मैं कभी नहीं मिल पाऊँगा। उनके निधन के बाद भारतीय क्रिकेट जगत में एक ऐसी रिक्तता उभर गयी है जिसकी भरपाई कर पाना इतना आसान नहीं है। उनके साथ बिताए समय ने मेरे क्रिकेट के प्रति ज्ञान को समृद्ध किया लेकिन अब उनकी यादें ही हमारा संबल हैं।</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-77429192586602911792023-08-27T05:11:00.005-07:002023-08-27T05:14:24.301-07:00 मुख्यमंत्री शिवराज का 'गहना' बन रही है 'लाड़ली बहना योजना'<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSZJZvcih6maoVg2_LpQbonFL1-tP7vNW_hE_GDEkrPx3P0g9a7p0UJ8Iuz-t8-3i717WqzW3iYOOFR0KqjbXfJAR4Eto5kF821BBT96dCaXlfs9_lUHhgVp2s8kIcfoBy809R7-GBeziJvYgwZscYlvxGTTQ4VKIyFfpP3hu4xzqjUXXC_svQIB7BgX4/s1200/ladli_behna_yojna-sixteen_nine.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="246" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSZJZvcih6maoVg2_LpQbonFL1-tP7vNW_hE_GDEkrPx3P0g9a7p0UJ8Iuz-t8-3i717WqzW3iYOOFR0KqjbXfJAR4Eto5kF821BBT96dCaXlfs9_lUHhgVp2s8kIcfoBy809R7-GBeziJvYgwZscYlvxGTTQ4VKIyFfpP3hu4xzqjUXXC_svQIB7BgX4/w437-h246/ladli_behna_yojna-sixteen_nine.jpg" width="437" /></a></div><span style="font-size: large;"><br /></span><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large;"><br /></span></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large;"><br /></span></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large;"><br /></span></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large;">मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश की शिवराज सरकार ने लाड़ली बहना योजना के रूप में एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक चला है जिसका जमीन पर असर अभी से दिखाई देने लगा है। इस योजना को लेकर शहरों से लेकर गाँव में प्रदेश की महिलाओं में बेहद उत्साह नजर आ रहा है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से बहनों के लिए लाई गई लाड़ली बहना योजना को आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है। राज्य की आधी आबादी को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये मास्टर स्ट्रोक विपक्षी कांग्रेस की चुनावी जीत की संभावनाओं पर पलीता लगा सकता है।</span></p><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">इस योजना के तहत प्रदेश की शिवराज सरकार बहनों को हर महीने की 10 तारीख को 1000 रु की धनराशि प्रदान कर रही है जो लाड़ली बहनों के बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर की जा रही है। विधानसभा चुनाव से पहले लाई गई लाड़ली बहना योजना के लागू होने से बहनें काफी उत्साहित हैं। चुनावी साल में शिवराज सरकार के लिए ये योजना कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आये दिन विकास पर्व के प्रदेश भर में हो रहे कार्यक्रमों में इस योजना की जबरदस्त ढंग से ब्रांडिंग करने में जुटे हैं। शिवराज की हर दिन प्रदेश भर में हो रही सभाओं में उमड़ रही महिलाओं की भीड़ इस बात की गवाही दे रही है कि ये योजना उन्हें खूब भा रही है। महिलाओं में इस योजना के प्रति अलग तरह का उत्साह प्रदेश के हर कोने में महसूस किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि लाड़ली बहना योजना महिलाओं की जिंदगी बदलने का बड़ा अभियान है। इस अभियान के लागू होने के बाद उन्हें प्रदेश भर से बहनों का अपार समर्थन भी मिल रहा है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में बहनों की जिंदगी बदलने के महाअभियान में दिन रात एक किये हुए हैं । प्रदेश की बहनों को अब अपनी छोटी-मोटी जरूरतें पूर्ण करने के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ रहा है। सही मायनों में इस योजना के माध्यम से मध्य प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के एक नए युग का सूत्रपात हुआ है। प्रतिमाह 10 तारीख को गरीब और मध्यम वर्ग की महिलाओं के खाते में एक-एक हजार रुपए हस्तांतरित होने के बाद उनके चेहरों पर मुस्कराहट दिखाई दे रही है। लाड़ली बहनें इस बात से भी खुश नजर आ रही हैं, आने वाले समय में इस राशि को सरकार प्रति महीने 3,000 रुपए कर देगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति महिलाओं का भरोसा बढ़ा है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज ने अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को हर मोर्चे पर सशक्त करने का काम किया है। ‘लाडली लक्ष्मी’ से लेकर ‘कन्या विवाह’ और अब ‘लाडली बहना’ सभी ने प्रदेश में एक नई सामाजिक क्रांति लाने का काम किया है। महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए शिवराज सरकार ने कई योजनाएं शुरू की जिसने महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाने का काम भी किया है। एक दौर था जब मध्यप्रदेश में पहले पुरुषों और महिलाओं के अनुपात में काफी अंतर था। 1000 बेटों पर 912 बेटियां जन्म लेती थीं। लोग बेटियों को बड़ा बोझ मानते थे। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज ने अपनी लाडली लक्ष्मी योजना के माध्यम से महिलाओं को बड़ा संबल देने का काम किया जिसका असर ये हुआ कि मध्यप्रदेश में बेटी अब बोझ नहीं रही। अब वह प्रदेश के लिए वरदान साबित हो रही है। आज मध्य प्रदेश में लिंगानुपात बढ़कर प्रति 1,000 पुरुषों पर 978 महिलाएं हो गया है। ‘लाडली लक्ष्मी’ के बाद ‘कन्यादान योजना’ शुरू हुई जिसका भी प्रदेश में शहरों से लेकर गाँवों तक जबरदस्त असर दिखा। स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था के साथ ही पुलिस भर्ती में उनके लिए 30 प्रतिशत आरक्षण और शिक्षक भर्ती में 50 प्रतिशत आरक्षण, आजीविका मिशन से प्रदेश की आधी आबादी के हितों का संरक्षण हुआ है। ‘आजीविका मिशन' बहनों की गरीबी दूर करने की दिशा में सशक्त माध्यम बनकर कार्य कर रहा है। आजीविका मिशन से बहनों में एक नई चेतना आयी है। आज प्रदेश की लाखों महिलाएं इस मिशन के माध्यम से स्वरोजगार अपनाकर परिवार चला रही हैं। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ रही है। जो महिलाएं आजीविका मिशन से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें भी शिवराज सरकार द्वारा जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज प्रदेश में आजीविका मिशन की बहनों की आय कम से कम 10 हजार रूपए महीना करना चाहते हैं जिससे वे लखपति क्लब में शामिल हो सकें। सही मायनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने का काम किया है जिसकी पूरे देश में सराहना हो रही है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में पांच करोड़ 40 लाख वोटर हैं जिनमें महिलाओं की संख्या दो करोड़ 60 लाख से अधिक है। राज्य में लाडली बहना योजना की पात्र महिलाओं की संख्या एक करोड़ 25 लाख से अधिक है। राज्य सरकार ने पहले इस योजना को 23 वर्ष से 60 वर्ष तक की महिलाओं के लिए लागू किया लेकिन बाद में अधिक बहनों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए पात्रता शर्तों में ढील दी। अब ऐसी बहनें जिनकी आयु 21 से 23 वर्ष की है और जिनके पास ट्रैक्टर भी है, उन सभी को लाडली बहना योजना से जोड़ा गया है और अब उन्हें भी योजना का लाभ मिल रहा है । आज मध्यप्रदेश में प्रत्येक गांव और वार्ड में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के साथ ही महिलाओं की हितग्राही मूलक योजनाओं के प्रभावी लाभ के लिए लाड़ली बहना सेना का भी गठन किया गया है। लाड़ली बहना सेना से जोड़कर बहनों को संगठित किया जा रहा है। यह सेना बहनों को शासन की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करेगी साथ ही बहनों पर होने वाले अन्याय को रोकने में भी कारगर बनेगी।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">शिवराज सरकार की लाड़ली बहना योजना के जवाब में कांग्रेस ने सत्ता में आने पर नारी सम्मान योजना की गारंटी दी है जिसकी हवा शिवराज 'मामा 'ने हर महिला के खाते में प्रतिमाह 10 तारीख को एक हजार रुपये देकर निकाल दी है। इसकी काट कांग्रेस नारी सम्मान योजना के रूप में देख रही है जिसमें वो प्रतिमाह महिलाओं को 1500 रु देने की बात कर रही है। कांग्रेस और चुनावी गारंटियों पर यकीन करना मुश्किल इसलिए भी हो रहा है क्योंकि अपने बीते 15 माह के कार्यकाल में उसने शिवराज सरकार की तमाम योजनाओं को बंद कर दिया। 2018 में कांग्रेस के द्वारा जोर शोर के साथ कृषि ऋण माफी, बेरोजगारी भत्ता और गैस सिलेंडर पर 100 रुपये की छूट की घोषणा की गई थी लेकिन 15 महीनों में एक भी वादा पूरा नहीं किया। इस लिहाज से कांग्रेस की गारंटियों पर अब भाजपा भारी पड़ती दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री शिवराज की सभाओं में हर जिले में उन्हें सुनने आ रही महिलाओं की बड़ी भीड़ इस बात की गवाह बन रही है मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना को बहनों ने दिल से स्वीकारा है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा है कि वे लाड़ली बहनों की आँखों में आँसू नहीं आने देंगे । सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर ही चैन से बैठेंगे। लाड़ली बहना योजना की शुरूआत 1000 रूपये से की है लेकिन धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 3000 रूपये किया जायेगा। खास बात ये है जनता के दिलों में आम आदमी के सीएम के रूप में बसने वाले मुख्यमंत्री शिवराज की बनाई गई योजनाओं पर तुरंत अमल शुरू होता है और उसका प्रभाव हर क्षेत्र में महसूस किया जाता है। यह बात साधारण नहीं है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बनाई कई महिला केंद्रित योजनाओं ने उन्हें प्रदेश का मामा कई दशकों से बनाया हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 27 अगस्त को बहनों से रक्षाबंधन से पहले फिर संवाद करेंगे। जबसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सभाओं में इस बात की घोषणा की है कि इस बार रक्षाबंधन के अवसर पर प्रदेश भर की सवा करोड़ से ज्यादा लाडली बहनों को बड़ा तोहफा मिलने वाला है उसके बाद से ही लाड़ली बहनों में उपहार को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 27 अगस्त से लाडली बहनों के खाते में हर महीने 1250 रुपये डालने की घोषणा के साथ अक्टूबर से इसे बढ़ाकर प्रतिमाह 1500 रु करने की घोषणा कर पूर्व सीएम कमलनाथ और कांग्रेस की गारंटियों की हवा निकाल सकते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार रक्षाबंधन पर अपनी लाखों बहनों को बड़ा तोहफा देंगे इस बात से महिलाएं उत्साहित नजर आ रही हैं। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल में कई घोषणाएं करने में जुटे हुए हैं लेकिन सबसे बड़ी गेमचेंजर योजना लाडली बहना मानी जा रही है। लाडली बहनों के सहारे सरकार एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर को चित करती दिखाई दे रही हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार महिलाओं से संवाद कर उन्हें एक के बाद एक तोहफे दे रहे हैं। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए स्व-सहायता समूह से जोड़ने का प्रयास भी कर रहे हैं। 27 अगस्त का दिन भोपाल में ऐतिहासिक होने जा रहा है। सीएम शिवराज सिहं चौहान 27 अगस्त को जम्बूरी मैदान भोपाल में अपनी सवा करोड़ लाडली बहनों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाएंगे। लाड़ली बहनें अपने भैय्या सीएम शिवराज सिंह चौहान को राखी बांधेंगी। इस कार्यक्रम में प्रदेशभर से लाखों की संख्या में लाड़ली बहना पहुंचने का सिलसिला शुरू गया है। महिला बाल विकास विभाग इस संबंध में तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा है कि हम मध्यप्रदेश में महिला सशक्तिकरण का इतिहास बनाएंगे। लाड़ली बहना योजना के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपए का प्रबंध किया है। सरकार का प्रयास यह है कि विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से बहनों की मासिक आमदनी 10000 रुपए तक हो जाए। महिलाओं और बेटियों के सशक्तिकरण के लिए मुख्यमंत्री शिवराज ने अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये हैं जिसका प्रभाव धरातल पर हर जगह नजर आता है। लाड़ली बहना योजना के माध्यम से मुख्यमंत्री शिवराज महिलाओं को ये भरोसा दिलाने में कामयाब हुए हैं वे अपनी अंतिम सांस तक बेटियों , महिलाओं , बहनों के सम्मान के लिए काम करते रहेंगे।</span></span>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-17095287082058861462023-08-04T04:12:00.004-07:002023-08-04T04:24:20.173-07:00वो नटखट,मधुर, चितचोर सभी का किशोर <p><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 16px; font-weight: 700;"> </span></p><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 16px; font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbbnbJS61-C5nbC5TkP-V_NYIqgWAG94TY5XNmvpAqc0_oIslRPqkF5KddlQNWH-rJSYL-q_c7YXIe8GbVsjwJgejhX_JdcKqzvb5-XdHl_CY0sX1nSMlTWBnrKJ5QRuZTS91CG-3ledMdy-mKA4MwdAQ7cop6s7dQ8mUiyQr-XF6SnFhhWH5tbeAYAFs/s316/kishor.jpg" imageanchor="1" style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium; font-weight: 400; margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="316" data-original-width="236" height="316" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbbnbJS61-C5nbC5TkP-V_NYIqgWAG94TY5XNmvpAqc0_oIslRPqkF5KddlQNWH-rJSYL-q_c7YXIe8GbVsjwJgejhX_JdcKqzvb5-XdHl_CY0sX1nSMlTWBnrKJ5QRuZTS91CG-3ledMdy-mKA4MwdAQ7cop6s7dQ8mUiyQr-XF6SnFhhWH5tbeAYAFs/s1600/kishor.jpg" width="236" /></a><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 16px; text-size-adjust: 100%;" /><br /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 16px; text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-size: large;"><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">प्राचीन परंपरा, संस्कृति और स्मृतियों को समेटे मध्यप्रदेश का खंडवा शहर मायानगरी किशोर कुमार की खूबसूरत स्मृतियों से भी जुड़ा है। उनका जन्म खंडवा, मध्यप्रदेश में 4 अगस्त 1929 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। उनके पिता कुंजलाल गांगुली, एक वकील थे और उनकी माँ, गौरी देवी, एक गृहिणी थीं। किशोर कुमार के चार भाई अशोक कुमार, अनूप कुमार, कुणाल कुमार और रतन कुमार थे। अशोक कुमार भाइयों में सबसे बड़े थे और भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता भी थे। किशोर कुमार ने भारतीय सिनेमा उस स्वर्णिम दौर में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारे के रूप में स्थापित हो चुके थे। उस दौर को याद करें तो सिनेमा में दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी, गुरुदत्त और रहमान जैसे कलाकारों के साथ ही पार्श्वगायन में मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का ही बोलबाला था।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म शिकारी (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें पहली बार गाने का मौका 1948 में बनी फ़िल्म जिद्दी में मिला जिसमें उन्होंने देव आनन्द के लिए खूबसूरत गाना गाया। किशोर कुमार के एल सहगल के विशिष्ट प्रशंसक थे इसलिए उन्होंने यह गीत उन की शैली में ही गाया। जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला। उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म 'आन्दोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई। 1954 में उन्होंने बिमल राय की 'नौकरी' में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपनी प्रभावकारी अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। इसके बाद 1955 में बनी "बाप रे बाप", 1956 में "नई दिल्ली", 1957 में "मि. मेरी" और "आशा" और 1958 में बनी "चलती का नाम गाड़ी" जिसमें किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया। यह भी मजेदार बात है कि किशोर कुमार की शुरुआत की कई फ़िल्मों में मोहम्मद रफ़ी ने किशोर कुमार के लिए अपनी आवाज दी थी। मोहम्मद रफ़ी ने फ़िल्म ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में किशोर कुमार को अपनी आवाज उधार दी तो मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया। काम के लिए किशोर कुमार सबसे पहले एस डी बर्मन के पास गए थे, जिन्होंने पहले भी उन्हें 1950 में बनी फ़िल्म "प्यार" में गाने का मौका दिया था। एस डी बर्मन ने उन्हें फिर "बहार" फ़िल्म में एक गाना गाने का मौका दिया और गाना बहुत हिट हुआ।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">शुरू में किशोर कुमार को एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म "फंटूस" में दुखी मन मेरे गीत अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एस डी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया। आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'फंटूश', 'नौ दो ग्यारह', 'पेइंग गेस्ट', 'गाईड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेमपुजारी', 'तेरे मेरे सपने' जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">किशोर कुमार ने वर्ष 1940 से वर्ष 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान करीब 500 से अधिक गाने गाए। हिन्दी के साथ ही किशोर कुमार ने तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी गीत गाए। किशोर कुमार को उनकी गायकी के लिए आठ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले। पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1969 में अराधना फ़िल्म के गीत रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की विशेषता यह थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों। 1975 में आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> किशोर के गाये गाने संगीत प्रेमियों को झूमने के लिए मजबूर कर देते हैं। किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय किया और 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। फ़िल्म 'पड़ोसन' में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे। किशोर कुमार ने एक गायक के रूप में अपना करियर शुरू किया और जल्द ही भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे लोकप्रिय गायकों में एक अलहदा पहचान बनाने में सफल हुए। उनकी मधुर आवाज़ ने उन्हें घर -घर नई पहचान देने का काम किया। गायन के अलावा किशोर कुमार ने अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय जीत में फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” (1959) से “एक लड़की भीगी भागी सी”, फिल्म “आराधना” (1970) से “रूप तेरा मस्ताना” और फिल्म “सफर” (1971) से “जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर ” शामिल हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">किशोर कुमार को कला और संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1983 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया । यही नहीं 8 बार फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया । सही मायनों में किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक बेहद सफल गायक और अभिनेता थे। उनकी विशिष्ट आवाज़ और शैली ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। किशोर कुमार ने “हाफ टिकट”, “पड़ोसन”, “चलती का नाम गाड़ी” और “गोल माल” सहित कई लोकप्रिय फिल्मों में अभिनय और निर्देशन भी किया। अपने अभिनय और गायन कौशल के अलावा, किशोर कुमार ने अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया और अपने काम में एक अनूठा और रचनात्मक स्पर्श लाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। भारतीय फिल्म उद्योग में उनके योगदान ने उन्हें एक स्थायी और प्रभावशाली व्यक्ति बना दिया है और उन्हें अभी भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बड़ी प्रतिभाओं में से एक के रूप में याद किया जाता है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> किशोर कुमार को खंडवा से बेपनाह प्यार था। वो मुंबई से लौटकर वापस खंडवा बसना चाहते थे लेकिन नियति को कुछ और मजबूर था। किशोर कुमार खंडवे वाला छोरा तो उस समय हिट हो गया था । 58 साल की आयु में किशोर कुमार का निधन 13 अक्टूबर 1987 को में दिल का दौरा पड़ने से हो गया था। किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक अत्यधिक सफल और प्रभावशाली व्यक्ति थे जो पार्श्व गायक के रूप में अपनी अनूठी आवाज और शैली के साथ-साथ अपने अभिनय और निर्देशन कौशल के लिए जाने जाते थे। किशोर कुमार भारतीय सिनेमा में एक सदाबहार गायक के तौर पर आज भी याद किये जाते हैं। फिल्म उद्योग में उनके योगदान को आज भी दिल से सराहा जाता है। </span></span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br />Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-76965762783213923022023-07-30T02:18:00.012-07:002023-07-30T02:21:00.396-07:00 'टाइगर स्टेट ' का ताज फिर से मध्यप्रदेश के नाम<p><span style="font-size: large;"> </span></p><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: x-large; font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh5sNYRCjtP5L8glMe0e3H7SW7ggfAzBHIl4NDqymU0HMCTkclMqPxY0WOqV-xI44l0YCrCd4e2Lp4xcPP44IQlxAfgpAr3ASvoO-PxsSCKSQh7FeB2X2dBVcrkBbCYJed9bF1_jWZG6H7wbNx4OgCwtiFB3bxXjNo0bFIHeuX2KRhhHPYyuGwJxuEEDA/s800/MP%20tiger%20state.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="444" data-original-width="800" height="252" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh5sNYRCjtP5L8glMe0e3H7SW7ggfAzBHIl4NDqymU0HMCTkclMqPxY0WOqV-xI44l0YCrCd4e2Lp4xcPP44IQlxAfgpAr3ASvoO-PxsSCKSQh7FeB2X2dBVcrkBbCYJed9bF1_jWZG6H7wbNx4OgCwtiFB3bxXjNo0bFIHeuX2KRhhHPYyuGwJxuEEDA/w380-h252/MP%20tiger%20state.jpg" width="380" /></a></div><br /><span style="text-size-adjust: 100%;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;">देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 785 पहुंच गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पिछली बार की गणना में मप्र में बाघों की आबादी महज 526 थी लेकिन अखिल भारतीय बाघ गणना जनगणना 2022 के अनुसार इस बार देश के मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में इस बार बहुत आगे निकल गया है। मध्यप्रदेश में साल 2020 के बाद 259 बाघ बढ़े हैं, जबकि दूसरे और तीसरे नंबर पर कर्नाटक (563) और उत्तराखंड (560) है। जारी आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे ज्यादा 785 बाघ मध्य प्रदेश में हैं।</span></span><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई मध्यप्रदेश के लिये इस बार </span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">खास दिन बन गया। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था। इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने बहुत तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु में बाघों की गणना के आंकड़े जारी किए थे। प्रधानमंत्री द्वारा जारी रिपोर्ट में देशभर में 3167 बाघ बताए गए थे, लेकिन तब राज्यवार आंकड़े जारी नहीं हुए थे। उत्तराखंड के रामनगर स्थित जिम कार्बेट नेशनल पार्क में बाघों के राज्यवार आंकड़े जारी किए गए जिसमें मध्य प्रदेश को फिर टाइगर स्टेट का ताज हासिल हुआ है। बाघों के राज्यवार आंकड़े प्रत्येक चार वर्ष में जारी किए जाते हैं। एनटीसीए द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में 3682 बाघ मौजूद हैं जिन राज्यों को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है, उनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र,तमिलनाडू टॉप-5 में शामिल हैं। इनके अलावा जिन राज्यों में बाघों की आबादी मौजूद हैं उनमें आसाम, केरला, यूपी शामिल हैं। पश्चिम बंगाल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, ओडिशा सहित कुल 18 राज्य शामिल हैं। जबकि मिजोरम, नागालैंड में बाघों की संख्या शून्य हो गई है। नॉर्थ-वेस्ट बंगाल में यह संख्या महज 2 पर सिमट गई है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">बाघ एक शक्तिशाली जन्तु के रूप में एक खास पहचान के लिए जाना जाता है। इसकी दहाड़ अब मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी सुनाई देती है। मध्य प्रदेश न सिर्फ बाघों की संख्या के मामले में आगे रहा है, बल्कि सर्वाधिक बाघ भी मध्यप्रदेश में ही तेजी से बढ़ रहे हैं। राजधानी भोपाल के आसपास के शहरी इलाकों में भी 20 से अधिक बाघों की आवाजाही अब देखी जा सकती है। बाघों को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी तेजी से बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 2006 तक मध्यप्रदेश में केवल 300 बाघ थे, तो वहीं 2022 में यह आंकड़ा 785 तक पहुंच गया। वन्य जीवों के संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश की यह अब तक की सबसे बड़ी छलांग है।</span></span></div><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"> मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां देश में सर्वाधिक छह टाइगर रिजर्व सतपुड़ा, पन्ना, पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व हैं। पांच नेशनल पार्क और 10 सेंचुरी भी हैं। दमोह जिले के नौरादेही अभयारण्य को छठवां टाइगर रिजर्व बनाया गया है। प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगाँव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य के नाम शामिल हैं। </span></span></div><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; font-size: large;">यह सुखद है कि अब प्रदेश के भीतर बाघों की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से बढ़ रही है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही है। सतना से लेकर सीधी , शहडोल से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला तक में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। </span></div><div><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मध्यप्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में भी पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में कुशल प्रबंधन और अनेक नवाचारी तौर तरीकों को अपनाया गया है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक कार्यक्रम समय समय पर भी चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। इस बार बांधवगढ टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह भारत के बाघ संरक्षण के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है जिसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती । </span></span><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से कई गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व में “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन किया जाता है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में प्रदेश के सभी राष्ट्रीय उद्यानों के कुशल प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। जहाँ एक तरफ राज्य सरकार ने भी हाल के वर्षों में गाँवों का विस्थापन कर एक बड़े भू-भाग को जैविक दबाव से मुक्त कराया है वहीँ संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के क्षेत्र का बड़ा विस्तार हुआ है। आज ये बड़े हर्ष की बात है कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का बड़ा क्षेत्र भी आज जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये गए हैं, जिससे वन्य-प्राणियों को नए- नए आशियाने मिल रहे हैं। पूरे देश में मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व सबसे बेहतर श्रेणियों में शामिल हैं। वर्ष 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट कोआधार बनाएं तो मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और सतपुड़ा उत्कृष्ट श्रेणी एवं पेंच, बांधवगढ़, पन्ना टाइगर रिजर्व को बहुत अच्छी श्रेणी और संजय टाइगर रिजर्व को अच्छी श्रेणी में रखा गया है। </span></span></div><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मध्यप्रदेश के विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में इस वर्ष फरवरी माह में जी-20 शिखर सम्मेलन में आए 20 देश के डेलीगेट्स ने पन्ना टाइगर रिजर्व में भ्रमण कर यहाँ बाघ संरक्षण के प्रयासों और प्रबंधन की सराहना की। विदेशी धरती से आये इन डेलीगेट्स के बीच मध्यप्रदेश को सराहना मिलने से ह्रदय प्रदेश का कद ऊँचा हुआ है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व , संवेदनशील पहल के परिणामस्वरूप आज मध्यप्रदेश में वन्य जीवों के आशियाने तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रदेश में वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं । ख़ास बात ये है कि मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। प्रदेश में हाल के दिनों में 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की सघन उपस्थिति देखी गई , जहाँ पहले कभी बाघ नहीं दिखे। इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश आज देश में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। </span></span></div><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large; text-size-adjust: 100%;">मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्व बाघ दिवस पर फिर से टाइगर स्टेट बनने को लेकर कहा कि मध्यप्रदेश के 'टाइगर स्टेट' होने पर उन्हें गर्व है। बाघों के संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ ही उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये हम और श्रेष्ठतम कार्य करें, ताकि टाइगर स्टेट का गौरव आगे भी हमारे पास रहे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की जनता को वन एवं वन्यप्राणियों के संरक्षण में उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों से मध्यप्रदेश आज न केवल टाइगर स्टेट बना है बल्कि तेंदुआ , घड़ियाल और गिद्धों की संख्या में भी अव्वल प्रदेश बन चुका है। मध्यप्रदेश को प्रकृति ने हरित प्रदेश के रूप में मुक्त हस्त से संवारा है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में अनेक पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं। </span></span><br /></div></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-56192922309400699332023-07-06T07:52:00.004-07:002023-07-06T07:53:04.312-07:00जनजातीय समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ रही है शिवराज सरकार<p> </p><p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 16pt; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span></b> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUo4v1iItvjTi-VY3sEJKr4ijmtEFP8WktULa80lj4Fqy5DctLxO4bfbWAc_wisltsW5K6P-4_R4lZ1XD5ZqZV-2dE1YlE7SHQIis0tNZvlmQLefTCZvvW10JgEFCb9wXhQoQI0jXIeuoYlsitMQ9Z_bORlYMyptTOi5ODwMPnDIjoVz-YKKpBeU6YwkQ/s600/modi%20in%20pakariya.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="338" data-original-width="600" height="304" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUo4v1iItvjTi-VY3sEJKr4ijmtEFP8WktULa80lj4Fqy5DctLxO4bfbWAc_wisltsW5K6P-4_R4lZ1XD5ZqZV-2dE1YlE7SHQIis0tNZvlmQLefTCZvvW10JgEFCb9wXhQoQI0jXIeuoYlsitMQ9Z_bORlYMyptTOi5ODwMPnDIjoVz-YKKpBeU6YwkQ/w462-h304/modi%20in%20pakariya.jpg" width="462" /></a></div><br /><p></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><o:p><br /></o:p></p><p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><o:p><span style="font-size: medium;"> </span></o:p></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मध्यप्रदेश</span><span lang="HI">
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">में राजनीति की दिशा तय करने में जनजातीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है। पिछली
सरकारों ने जनजातियों को प्रदेश में वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जिसके चलते
जनजातीय नायकों को इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया जिसके वो</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">वास्तविक हकदार थे। लम्बे समय तक मध्यप्रदेश का जनजातीय समुदाय
अपनी तमाम विशिष्टताओं के बावजूद विकास की मुख्य-धारा से अलग-थलग रहा</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">पर
अब यह स्थिति प्रदेश में तेजी से बदल रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के
कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश की जनजातियों की सामाजिक</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शैक्षणिक</span><span lang="HI"> <span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">और आर्थिक
स्थिति में काफी बदलाव आया है। जनजातीय समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के
लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों ने राज्य में जनजातियों के नए दौर
की शुरुआत कर दी है।</span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">देश की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का
प्रतिशत 8.63 है </span><span lang="HI" style="background: white; color: #050505; font-family: Mangal;">और</span><span style="background: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI";"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय
की संख्या तकरीबन एक करोड़ </span><span>53</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> लाख है</span><span>, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जो कुल आबादी
का </span><span>21</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">
फीसद से अधिक है। प्रदेश के </span><span>20</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> जिलों के </span><span>89</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> विकासखंड
जनजातीय समुदाय बहुल हैं। राज्य विधानसभा की </span><span>47</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> सीटें और
लोकसभा की </span><span>6 </span><span> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सीटें
अनुसूचित जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं। </span><span>35</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> सीटें ऐसी
हैं</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जिनमें जनजातीय मतदाताओं की भूमिका
निर्णायक है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही जनजातीय समुदाय को साधने
की इस बार के चुनावों में एक बड़ी चुनौती है। प्रदेश में हुए चुनावों में जब भी जिस
भी पार्टी ने इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत की वह सत्ता पाने में कामयाब रहा। सूबे
के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने
जनजातीय समुदाय के बड़े वोटों को साधकर ही प्रदेश में अपनी वापसी की पटकथा लिखी थी।
</span><span>2018</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">
के विधानसभा चुनाव में </span><span>47</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> में </span><span>31</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> सीटें
कांग्रेस ने जीती थी</span><span>, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">तो वहीं भाजपा को सिर्फ </span><span>16</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> सीट पर सिमट
गई जबकि </span><span>35</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> अनुसूचित जाति वर्ग की </span><span>17</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> सीटों पर
कांग्रेस और </span><span>18</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> सीटों पर भाजपा को जीत मिली।</span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><o:p> </o:p><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जनजातीय समुदाय</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मध्यप्रदेश</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">की सियासत में अहम स्थान रखता है जो हार-जीत में अहम भूमिका
निभाते हैं। वर्ष </span>2003<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> से </span>2013<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> तक के विधानसभा चुनावों में भाजपा की
जनजातियों पर मजबूत पकड़ रही जिसका भाजपा को लाभ मिला लेकिन </span>2018<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> में
यह भाजपा के पाले से कांग्रेस के पास चला गया। ये पुराना जनाधार वापस आये बिना
प्रदेश में सत्ता की चाबी नहीं मिल सकती इसलिए इस बार भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज
सिंह चौहान की अगुवाई में अपनी पूरी ऊर्जा जनजातीय क्षेत्रों में फोकस करने में
लगवाई हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की
जोड़ी अब तक </span>10<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> दौरे लगातार मध्यप्रदेश</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">में कर चुकी है जो जनजातीय इलाकों की
नब्ज को अपने दौरों के जरिये टटोलने की व्यापक कोशिशें करती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री
मोदी ने अनुसूचित जाति और जनजाति के विकास के लिये देश में अनेक महत्वपूर्ण कार्य
किये हैं। पूर्व की केन्द्र सरकार एससी-एसटी वर्ग के लिये </span>24<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> हजार करोड़
प्रतिवर्ष खर्च करती थी</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मोदी सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर </span>90<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">
हजार करोड़ रूपये कर दिया है। पहले सिर्फ </span>167<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> एकलव्य
विद्यालय हुआ करते थे</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मोदी सरकार ने इनकी संख्या बढ़ाकर </span>690<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> कर
दी है। इसी प्रकार एससी-एसटी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिये पहले </span>1000<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">
करोड़ रूपये का प्रावधान था</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जिसे मोदी सरकार ने बढ़ा कर </span>2833<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">
करोड़ रूपये कर दिया है। इसके अलावा पिछली सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति
की </span>978<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> करोड़ रूपए की राशि को बढ़ाकर </span>2533<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> करोड़ रूपए
कर दिया।</span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><o:p> </o:p><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">लम्बे समय से मध्यप्रदेश के जनजातीय इलाकों में लगातार
सक्रियता बनी हुई है। उन्होनें आदिवासी समुदाय के नायकों को समुचित सम्मान देने के
लिए सबसे पहले मध्यप्रदेश की धरती को चुना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा
बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर </span>15<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में
राष्ट्रीय स्तर पर मनाने एवं हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के
नाम पर करने की घोषणा</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कर जनजातीय
समाज को अपने से जोड़ने की सबसे बड़ी पहल</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">की
थी जिसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई दी। सही मायनों में जनजातीय गौरव को जनता
से जोड़ने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है जिनके नेतृत्व में
जनजातीय समाज देश में पहली बार एकजुट हुआ। इसके बाद जनजातीय नायकों की गाथाएं सभी
की जुबान पर आई। आज़ादी एक अमृत महोत्सव के अवसर झाबुआ</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">भोपाल</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">खंडवा</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">धार</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">रतलाम
</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">झाबुआ</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">अलीराजपुर</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">खरगोन</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सतना
में विशाल जनजातीय सम्मेलन आयोजित किये गए। मध्यप्रदेश</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">गुजरात और
महाराष्ट्र से सटे मानगढ़ की पवित्र भूमि पर जनजातीय जननायकों के बलिदान की नई
गौरवगाथा इतिहास में स्वर्णिम अखाड़ों में दर्ज हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम में वहां राष्ट्रीय स्मारक बनाने की बड़ी घोषणा हुई।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जनता पहले की
सरकारों का व्यवहार आज भी नहीं भूली है </span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जिन्होंने दशकों तक देश में सरकार चलाई
लेकिन जनजातीय समाज के प्रति उनका रवैया असंवेदनशील रहा। </span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><o:p> </o:p><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मध्यप्रदेश में कांग्रेस की
तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने भी आदिवासी वर्ग को साधने के लिए साहूकारों के कर्ज माफ़ी
से लेकर</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">गोठान विकास</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">आदिवासी
दिवस मनाने जैसे कई लोकलुभावन वायदे जरूर किये लेकिन आपसी गुटबाजी और अंतर्कलह के
कारण राज्य में कांग्रेस की सरकार चली गई। इसके बाद सत्ता में वापस लौटे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातियों के लिए दिल खोलकर अपनी योजनाओं की झड़ी
लगा दी।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय
कार्य विभाग के बजट में काफी वृद्धि की है। वर्ष </span>2003-04<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> में जो
जनजातीय बजट मात्र </span>746.60<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> करोड़ था</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">आज जो वर्ष </span>2022-23<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> में
</span>10<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">
हजार </span>353<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> करोड़ रुपये का हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश
के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के हजारों लोगों को वनाधिकार पट्टा
देकर और पेसा एक्ट लाकर उनके जीवन में नया सवेरा लाने का काम किया है। जनजातीय
समाज के कल्याण के लिये शिवराज सरकार ने जनजातीय समुदाय बजट में बड़ा इजाफा किया है।
जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओं</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">माध्यमिक पाठशालाओं</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">हाईस्कूल</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">हायर
सेकेंडरी और कन्या शिक्षा परिसरों की संख्या तेजी से बढ़ी है। </span></span></p><p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कोल </span><span style="font-family: Mangal;">जन</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जाति जिसका आज़ादी
के आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है</span>,<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> मोदी सरकार
ने </span>200<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> करोड़ रूपये की लागत से देशभर में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय
स्थापित करवा रही है। जनजातियों के प्रमुख जननायक टंट्या भील</span><span lang="HI">
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मामा</span><span lang="HI"> </span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">भीमा नायक</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">ख्वाजा नायक</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">संग्राम सिंह</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शंकर
शाह</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">रघुनाथ
शाह</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">रानी
दुर्गावती</span>,<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> रानी कमलापति</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बादल भोई</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">राजा भभूत
सिंह</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">रघुनाथ मंडलोई भिलाला</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">राजा ढिल्लन शाह गोंड</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">राजा
गंगाधर गोंड</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सरदार विष्णु सिंह उईके</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जैसे जनजातीय नायकों को शिवराज सरकार ने पूरा सम्मान
दिया है।</span><span lang="HI"> </span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शिवराज
सरकार ने पातालपानी स्टेशन का नाम टंटया मामा के नाम पर रखा</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">है।
छिंदवाड़ा में बादल भोई जनजातीय संग्रहालय परिसर का निर्माण</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जबलपुर
में </span>5 <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">करोड़ की लागत से राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह स्मारक</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">राजा
शंकरशाह विश्वविद्यालय का निर्माण जनजातियों के हितों के संरक्षण की दिशा में मील
का पत्थर माना जा रहा है। शहडोल संभाग में केन्द्रीय जन-जातीय विश्व-विद्यालय का
खुलना भी मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जनजातीय संस्कृति के संरक्षण एवं
संवर्धन के लिए छिंदवाड़ा में भारिया जनजाति</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">डिंडोरी में
बैगा एवं श्योपुर में सहरिया जनजातीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक संग्रहालय की
स्थापना के प्रयास</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">के
लिए सामुदायिक भवनों का निर्माण कार्य भी तेजी से किये जा रहे हैं। शिवराज सिंह
सरकार ने यूपीएससी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग की शुरूआत के साथ ही उनको
पढ़ाई में स्कॉलरशिप देने की योजना भी शुरू की है जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं। </span></span></p><p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जनजातीय
समाज के युवाओं के लिए प्रदेश के छिंदवाड़ा</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शहडोल</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मंडला</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शिवपुरी
एवं श्योपुर में कम्प्यूटर कौशल केन्द्रों की स्थापना हुई है जिससे वह अपना कौशल
निखारकर स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जनजाति
समुदाय को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार प्रतिबद्ध है।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सामुदायिक वन
प्रबंधन के अधिकार और पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से जनजातीय समुदाय का
सशक्तिकरण हुआ है। पेसा कानून के तहत जो नियम बनाए हैं</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">उसमें जल</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जंगल
और जमीन का अधिकार जनजातीय समुदाय को दिया गया है।</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने प्रदेश में
पेसा एक्ट लागू कर जनजातीय समाज को अधिकार सम्पन्न बनाया है। जमीन के साथ जंगल की
उपज के लिए भी उनको अधिकार दिया गया है।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए
अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में </span>3<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> नई योजनाएँ</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बिरसा मुण्डा स्व-रोज़गार योजना</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">टंट्या मामा
आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण
योजना लागू की गई है।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;">विशेष पिछड़ी</span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";"> </span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;">जनजातीय</span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";"> </span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;">बैगा</span><span style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";">, </span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;">भारिया</span><span style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";">, </span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;">सहरिया</span><span style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";">,</span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;"> कोल समाज की बहनों को एक हजार रुपया
प्रतिमाह आहार अनुदान दिया जा</span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";"> </span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: Mangal;">रहा है।</span><span lang="HI" style="background: white; color: #0f1419; font-family: "Segoe UI";"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">इसी
तरह जनजातीय बहुल क्षेत्रों में औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती को प्रोत्साहन
देने के लिए देवारण्य योजना लागू की गई है। शिवराज सरकार द्वारा संचालित जनजाति
कल्याण की विभिन्न योजनाओं से जहाँ जनजातीय समुदाय का सामाजिक</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">आर्थिक</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शैक्षणिक
विकास हुआ है और ये तीव्र गति से समाज की
मुख्य-धारा में आ रहे हैं</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">वहीं इनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का
व्यापक संवर्धन भी हो रहा है। प्रदेश में
सभी जनजातीय नायकों की प्रतिमाएँ लगाने का काम भी चल रहा है। राज्य सरकार द्वारा
आदिवासियों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए साहूकार विनियम को लागू किया
गया</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">है।</span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><o:p> </o:p><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">भाजपा ने मध्यप्रदेश में
विधानसभा चुनावों में आदिवासियों को साधते हुए अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">भी शुरू कर
दी है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री के पिछले दिनों हुए दौरे के लिए मध्यप्रदेश और
छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित शहडोल का चयन किया गया</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">ताकि दोनों
राज्यों के जनजातीय वोटरों को साधा जा सके। एक सप्ताह के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का मध्यप्रदेश का यह दूसरा दौरा रहा। प्रधानमंत्री</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मोदी
ने एक तरफ अपने शहडोल दौरे में जटिल बीमारी सिकल सेल उन्मूलन मिशन का शुभारम्भ
किया जिसका जनजातीय समुदाय सबसे अधिक शिकार होते हैं वहीँ जिस मंच से</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सम्बोधित किया</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">उस पर जनजातीय समुदाय के नायकों
वीरांगना रानी दुर्गावती</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शंकर शाह</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">रघुनाथ शाह</span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">टंट्या
भील और बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमाओं को विशेष स्थान दिया गया। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने पकरिया गांव में आम के बगीचे में लोगों से संवाद भी किया जिसमें
पेसा एक्ट पर बातचीत</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">स्व</span>-<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सहायता समूह की महिला सदस्यों और फुटबॉल
क्लब के खिलाडियों से संवाद भी अहम रहा जिसके कई गहरे मायने हैं। प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने आयुष्मान कार्ड भी बाटें
और जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठकर भोजन भी किया। ऐसा पहली बार हुआ जब देश के
किसी प्रधानमंत्री ने देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठ कर</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">पहली बार कोदो</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">भात- कुटकी खीर का आनंद लिया और जमीन पर
बैठकर मोटे अनाज को विशेष प्राथमिकता दी। पकरिया ग्राम में सतत संवाद कार्यक्रम के
साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत कर प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातीय समुदाय के
कल्याण के लिए अपने बुलंद इरादे जता दिए हैं जिसका आगामी चुनावों में भाजपा को लाभ
मिलना</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">तय है।</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">हर चुनाव
में प्रधानमंत्री मोदी अपने संवाद और रैलियों से बाजी पलटने </span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">की क्षमता रखते हैं। </span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><o:p> </o:p>2018 <span style="text-align: left;">के विधानसभा चुनावों में मिली </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">हार ने सियासी मोर्चे पर मौजूदा
दौर में भाजपा की बिसात को असहज किया हुआ है। प्रदेश में जनजातीय वोट निर्णायक हैं
इसलिए उन पर पकड़ मजबूत कर डैमेज</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कंट्रोल किया
जा सकता है। भाजपा जनजातीय इलाकों में अधिक से अधिक संवाद और विकास कार्यक्रमों के
बहाने जनजातीय समाज पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेना चाहती है। सूबे के मुखिया शिवराज
सिंह चौहान को भी लगता है</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कि</span><span lang="HI"> </span>2023 <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">के विधानसभा
चुनाव में यदि भाजपा को अपनी फिर से वापसी करनी है तो जनजातीय समाज का दिल हर हाल
में जीतना होगा। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
आदिवासियों को जहाँ अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से रिझाने में लगे हुए हैं वहीँ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">और गृह
मंत्री अमित शाह</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> खुद इन इलाकों में मोर्चा संभाले हुए हैं और
प्रदेश नेतृत्व से लगातार फीडबैक लेने में जुटे हुए हैं। </span></span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-91257120944880408012023-05-26T05:57:00.003-07:002023-05-26T05:59:45.051-07:00 मध्यप्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में आ रहा है बदलाव <p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiBLFg1yk_W9MgtshgzRlRAdfOfy91wsjXIRALrQTdthKH045YPAvIvXyTUX4NEhPvA0MK1L90SNcV9I6pQz9k184UF13qUoDc5O1cMU9QfloPwDTbmce1xevaBJA49Eyk87I7wgszrAr_Kt3zkd99ycHJ6V-HZDcdtat-bsldRCQPgspqEZCdQWyn/s600/cm%20rise.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="600" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiBLFg1yk_W9MgtshgzRlRAdfOfy91wsjXIRALrQTdthKH045YPAvIvXyTUX4NEhPvA0MK1L90SNcV9I6pQz9k184UF13qUoDc5O1cMU9QfloPwDTbmce1xevaBJA49Eyk87I7wgszrAr_Kt3zkd99ycHJ6V-HZDcdtat-bsldRCQPgspqEZCdQWyn/s320/cm%20rise.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"> </span></span><div><div style="text-align: left;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large;">जीवन के प्रत्येक अनुभव को शिक्षा कहा जाता है। वास्तव में शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा जीवन के प्राय: प्रत्येक अनुभव के भंडार में वृद्धि करती है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक जो कुछ भी सीखता है और अनुभव करता है वह शिक्षा के व्यापक अर्थ के अंतर्गत आता है। उसके सीखने और अनुभव करने का परिणाम यह होता है कि वह धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। शिक्षा मनुष्य जीवन के परिष्कार एवं विकास की कहानी है। शिक्षा राष्ट्र के व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए साक्षर होना बेहद आवश्यक है। जीवन को समझना है, तो हमें शिक्षा का महत्व भी समझना होगा। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बच्चों, विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा शिक्षा को लेकर अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं।</span></div><span style="font-size: large;"><div style="text-align: left;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span></div><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;">मध्यप्रदेश में शिक्षा तक सभी की पहुंच आसान बनाने के क्षेत्र में शिवराज सरकार लगातार बेहतर कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में साक्षरता दर में और इजाफा करने के उद्देश्य से 'नवभारत साक्षरता कार्यक्रम' सरीखे अनेक अभियान संचालित किए जा रहे हैं जो प्रदेश में शिक्षा की तस्वीर बदलने का काम कर रहे हैं। निरक्षरों को साक्षर करने में 'अक्षर साथी' अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने एडॉप्ट आंगनवाड़ी अभियानों और बेटियों को पढ़ाने के संकल्पों ने समाज की सोच को बदलने का काम किया है। बालिकाओं के लिए लाड़ली लक्ष्मी, नि:शुल्क साइकिल वितरण, सामान्य निर्धन वर्ग के परिवारों की बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति, बालिका शिक्षा के लिए केंद्र सरकार के सुकन्या समृद्धि योजना, बालिका छात्रावास, बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना जैसे कार्यक्रमों ने बालिकाओं को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने का काम किया है। </div></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;"> </div></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;">2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों को देखें, तो प्रदेश को महिला साक्षरता में ज्यादा सफलता मिली है। 2001 की तुलना में 2011 की जनगणना में महिला साक्षरता में 9.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो यह प्रदेश के लिए बड़ी उपलब्धि है। पुरुष साक्षरता में इंदौर 89.2 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर, जबलपुर 89.1 के साथ दूसरे, भोपाल 87.4 के साथ तीसरे, भिंड 87.2 के साथ चौथे और बालाघाट 87.1 के साथ पांचवें स्थान पर है। इसी तरह महिला साक्षरता में भोपाल 76.6 प्रतिशत के साथ पहले, जबलपुर 75.3 प्रतिशत के साथ दूसरे और इंदौर 74.9 के साथ तीसरे , बालाघाट 69.7 के साथ चौथे और 68.3 प्रतिशत के साथ ग्वालियर पांचवें स्थान पर बना है। मध्यप्रदेश के मंडला जिले को देश के पहले कार्यात्मक रूप से साक्षर जिले के रूप में घोषित किया गया है। 2011 की जनगणना में मंडला जिले में साक्षरता 68 प्रतिशत थी। इसे देखते हुए वर्ष 2020 में निरक्षरता से आजादी अभियान की प्रदेश में शुरुआत हुई, जिसमें महिला एवं बाल विकास विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, आंगनवाड़ी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सहयोग किया और गांव की शिक्षित महिलाओं को अभियान में जोड़ा गया, इसके बाद अभियान में लोग जुड़ते गए और इस अभियान से सभी को साक्षर करने में मदद मिली। अब मंडला जिला के ग्रामीणों को बुनियादी अक्षर का ज्ञान है। केन्द्र सरकार ने 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति जारी की और मध्यप्रदेश ने 26 अगस्त 2021 को इसे राज्य में लागू करने की घोषणा की। मध्यप्रदेश नई शिक्षा नीति लागू करने वाला कर्नाटक के बाद दूसरा राज्य है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन में मार्गदर्शन और सुक्षाव देने के लिए राज्य स्तर पर टॉस्क फोर्स का गठन किया है। नई शिक्षा नीति के हर पहलू के क्रियान्वयन में योजना बनाकर रणनीतियां विकसित की गई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश भर में 9500 सीएम राइज स्कूल बनाने का लक्ष्य रखा है। योजना के तहत स्कूल हर 15- 20 किलोमीटर पर रहेगा। आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश की दिशा में सीएम राइज योजना अहम भूमिका निभाएगी।</div></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;"> </div></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना राज्य सरकार की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है, जिसे पूरा करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। मध्यप्रदेश में 69 सीएम राइज स्कूलों का भूमि पूजन के बाद से सीएम राइज स्कूलों को खोलने के काम में अब तेजी आ चुकी है। सरकार द्वारा सीएम राइज योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और नए अधिक आधुनिक स्कूलों की स्थापना के साथ नवनियुक्त शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना है। भारत सरकार की नई शिक्षा पॉलिसी के तहत आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु सीएम राइज योजना शुरु की गई है। इस योजना के तहत 9500 सीएम राइज स्कूल पूरे राज्य में खोले जाएंगे। राज्य सरकार द्वारा खोले गए स्कूलों में बैंकिंग, अकाउंट, डिजिटल स्टूडियो, कैफेटेरिया, थिंकिंग एरिया, जिम, स्विमिंग पूल आदि सुविधाएं उपलब्ध होगी। राज्य में युवाओं को रोजगार के समुचित अवसर प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज कौशल विकास प्रशिक्षण पर भी काफी जोर दे रहे हैं। राज्य में उद्योगों की आवश्यकता के अनुरूप युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जा रहा है। केन्द्र सरकार की योजना के तहत पहली से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये मध्यप्रदेश सरकार राज्य में 730 ‘पीएम श्री स्कूल’ स्थापित करने के फैसले को अपनी मंजूरी प्रदान की है। प्रदेश के 313 ब्लॉक में से हरेक में दो स्कूल और 52 जिला शहरी निकायों में 104 स्कूल स्थापित किए जाएंगे। </div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;">मध्यप्रदेश सरकार ने ‘मुख्यमंत्री सीखो- कमाओ योजना’ लागू करने की स्वीकृति दी है जो युवाओं के लिए स्वाभिमान और सम्मान का प्रतीक बनेगी। मध्यप्रदेश के लाड़ले शिवराज मामा ने युवाओं को कौशल को बढ़ाने और बेरोजगारी को दूर करने के लिए अपनी युवा नीति के माध्यम से प्रदेश को एक नई दिशा देने का काम किया है। इसके अंतर्गत युवाओं को अपने संबंधित क्षेत्र में ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी और ट्रेनिंग के दौरान युवाओं को प्रतिमाह 8000 रु प्रदान किए जाएंगे। मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य के युवाओं को हर तरह से विकसित करने के लिए कई तरह की नीतियां बनाई है जिसके लिए युवा आयोग का गठन भी किया गया है। </div></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;"> </div></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><div style="text-align: left;">प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प है कि शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा बने। शिक्षा मंत्रालय ने अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू करने की जरूरत बताई जिसके बाद सरकार ने मातृभाषा पर ज़ोर देते हुए हिन्दी में पढ़ाई शुरू करने की दिशा में अपने कदम तेजी से बढ़ाये हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मानते हैं कि विद्यार्थी अंग्रेजी अवश्य सीखें, पर शिक्षा अंग्रेजी में ही संभव है, इस विचार से मुक्ति मिलनी जरूरी है। </div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;">हिन्दी में पढ़ाई के लिए देश में आत्म-विश्वास पैदा करना आवश्यक है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिन्दी में शुरू करने वाला देश का पहला राज्य मध्यप्रदेश के दूरदर्शी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सोच से बना है। प्रदेश में मेडिकल के साथ ही आने वाले दिनों में नर्सिंग और पैरामेडिकल की पढ़ाई भी हिन्दी में कराई जाएगी। </div></span></span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">हिन्दी के प्रयोग से जहाँ इंजीनियरिंग, मेडिकल की पढ़ाई का दायरा बढ़ेगा वहीँ समाज के हर वर्ग के प्रतिभाशाली युवा तकनीकी पढ़ाई के लिए आगे आएंगे। इससे पठन - पाठन का स्तर जहाँ सुधरेगा वहीँ भारतीय भाषाओँ में शोध की गुणवत्ता और स्तर में भी सुधार होगा।</span></span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 12px; text-size-adjust: 100%;" /></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-72988912826153278072023-05-08T07:28:00.023-07:002023-05-08T07:35:05.343-07:00दक्षिण के दुर्ग कर्नाटक में जीत की छटपटाहट <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqfPSlYv952XOk0SW6edcIOcDLSXaSDsNgLKbUgs48Gk45f3e3Di2ZcSbUHawZbKqszEsdzsUWl8KSrKGDlVSiu-VsvR3IOIGmAx4MGrhENGd82ECtUFCn29aDjry1yRWShmUv8IJ7qEcIBmXVXJikSbLfiRJhP28LB32bv8uokgjWdBAZkhBRvWjV/s297/karnatak%2011.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="170" data-original-width="297" height="255" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqfPSlYv952XOk0SW6edcIOcDLSXaSDsNgLKbUgs48Gk45f3e3Di2ZcSbUHawZbKqszEsdzsUWl8KSrKGDlVSiu-VsvR3IOIGmAx4MGrhENGd82ECtUFCn29aDjry1yRWShmUv8IJ7qEcIBmXVXJikSbLfiRJhP28LB32bv8uokgjWdBAZkhBRvWjV/w385-h255/karnatak%2011.jpg" width="385" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /> </span><p></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><span style="font-size: large;">‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले कर्नाटक में चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण पर पहुंच गया है। कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस सीधे आमने- सामने हैं और यहाँ की जीत 2024 के लोकसभा चुनावों में माइलेज लेने में कारगर साबित हो सकती है। 2024 के आम चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक के ये चुनाव परिणाम विपक्षी गठबंधन की धुरी बनाने में भी मददगार साबित हो सकते हैं। कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों के नेता जोर आजमाइश करते दिखाई दे रही है। कर्नाटक में कमल में खिलाकर जहां वर्तमान में भाजपा दक्षिण भारत के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयार होना चाहती है, तो वहीं कांग्रेस यहां सत्ता में वापसी कर भाजपा को दक्षिण की राजनीति में पीछे धकेलने की पुरजोर कोशिश कर रही है। जनता दल (सेक्युलर) भी ‘किंगमेकर’ बन इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के सामने चुनौती पेश करने की पूरी कोशिशें कर रही है। </span></span></p><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">असल चुनौती भाजपा के सामने है जहाँ उसके सामने अपनी सरकार को फिर से सत्ता में लाने की है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के अंतिम हफ़्तों में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत कर्नाटक में कमल फिर से खिलाने को झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना पूरा प्रचार डबल इंजन पर फोकस कर रहे हैं। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के आक्रामक प्रचार के जरिए कांग्रेस को बैकफुट में डालने का काम कर रहा है तो दूसरी तरफ बोम्मई सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को प्रो इंकम्बैंसी में बदलने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक में अपने रोड शो और बड़ी सभाओं के जरिए दिन -रात पसीना बहा रहे हैं। मोदी की खूबी ये है उनके रहते लोकसभा चुनाव में पिछली बार भाजपा ने 61 फीसदी वोट पाए जो बड़ा करिश्मा था। कांग्रेस कर्नाटक के चुनाव प्रचार के ऐलान से पहले तक कर्नाटक में जहाँ भाजपा पर स्थानीय मुद्दों भ्रष्टाचार , महंगाई , किसानों की समस्याएं , नंदिनी डेरी, बेरोजगारी , पानी सरीखे मुद्दों के आधार पर बसवराज बोम्मई की सरकार जबरदस्त बढ़त बनाये हुई थी वहीँ पिछले दो हफ़्तों से कर्नाटक में भाजपा चुनाव प्रचार में काफी आगे निकल आई है जिसने इस चुनावों के फोकस को बदलकर रख दिया है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित भाई शाह की रणनीति ने बड़ा असर किया है। 2018 में पार्टी का वोट शेयर 36 .35 प्रतिशत था जो इस बार प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में की जा रही बड़ी अपील के जरिये बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। येदियुरप्पा को नेतृत्व देकर भाजपा को कर्नाटक में, खासकर उत्तरी हिस्सों में लिंगायतों का बड़ा समर्थन विरासत में मिला। भाजपा ने अन्य समुदायों का समर्थन जुटाने के लिए भी इस बार ताबड़तोड़ प्रयास कर रही है । </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">बतौर मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने राज्य के बजट में ‘विकास’ कार्यों के लिए विभिन्न हिंदू मठों और मंदिरों को वित्तीय अनुदान देने का प्रावधान शुरू किया था, जो वर्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के दौर में भी जारी रहा, जहाँ इनके लिए 1,000 करोड़ रुपये की राशि दी गई । कर्नाटक में चुनावी लाभ के लिए भाजपा ने कई पिछड़ी जातियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की हैं । 2019 के बाद से इसने एक दर्जन से अधिक अगड़ी और पिछड़ी जातियों के लिए विकास बोर्डों का गठन किया गया है। इसी तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण कोटा को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात प्रतिशत करने की घोषणा हुई है। बोम्मई सरकार ने आंतरिक आरक्षण के लिए ताकतवर दलितों की लंबे समय से चली आ रही मांग को लागू करने का भी फैसला किया है । भाजपा ने धार्मिक आधार पर आरक्षण का बड़ा विरोध किया और 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म करने की बड़ी बात की, जिसे वोक्कलिक्का और लिंगायत समुदायों में 2 -2 फीसदी बांटने का ऐलान किया है लेकिन इन सबके बीच पार्टी के बड़े लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने पार्टी छोड़ी जिसका उनके समुदाय पर अच्छा असर नहीं हुआ है। कम से कम अपने जिले में दोनों नेता वोट प्रभावित कर सकते हैं लेकिन भाजपा को इन नेताओं से अब भी उम्मीद है। तभी पार्टी के नेता शेट्टार या सावदी पर चुनावी सभाओं पर हमला नहीं कर रहे हैं । शेट्टार ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह या पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपने निशाने पर नहीं लिया है । उनके निशाने पर सिर्फ भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष हैं। राजनीती में रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहता है , इसी वजह से भाजपा नेता उम्मीद कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के निपटने के बाद इन नेताओं को मना कर पार्टी में वापस लाया जा सकता है। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">राज्य में 10 मई को 224 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा। इस चुनाव में कुल पांच करोड़ 21 लाख 73 हजार 579 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 2 .59 करोड़ महिला, जबकि 2.62 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। राज्य में कुल 9 .17 लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। मध्य कर्नाटक क्षेत्र में 35 सीटें हैं, इनमें इस बार भाजपा अच्छा करती नजर आ रही है। भाजपा का वोट शेयर भी पहले के मुकाबले बढ़ने के प्रबल आसार हैं। बेंगलुरू में बेंगलूरू, जहां कुल 28 सीटें हैं, वहां खराब सड़कों और जलभराव चुनावी संभावनाओं पर पलीता लगा सकता है। यहाँ पर प्रधानमंत्री मोदी का बार -बार डबल इंजन लाने का फैक्टर कितना असर करेगा, ये कह पाना मुश्किल है। उत्तर कर्नाटक में भी भाजपा और कांग्रेस बराबरी की लड़ाई लड़ रहे हैं। सेंट्रल कर्नाटक में भी भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला कड़ा है। हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र की 31 सीटों पर कांग्रेस, भाजपा पर भारी दिखाई देती है। इसी तरह से मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र की 50 सीटों में कांग्रेस को अच्छा प्रदर्शन करने की पूरी उम्मीद है। कर्नाटक - हैदराबाद में भाजपा को कांग्रेस के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा रहा है। तटीय कर्नाटक और मध्य कर्नाटक की 44 सीटें राज्य में महत्वपूर्ण हैं। भाजपा को अगर राज्य में फिर से अपनी सरकार बनानी है तो इस पूरे इलाके में उसे अच्छा प्रदर्शन करना ही होगा। मध्य कर्नाटक की इन सभी सीटों से राज्य में 5 पूर्व मुख्यमंत्रियों का प्रभाव रहा है। यहाँ पर लिंगायतों का जबरदस्त असर देखा जा सकता है। पूर्व सीएम येदियुरप्पा का करिश्मा यहाँ हर बार भाजपा को फायदा पहुंचाता रहा है लेकिन इस बार येदियुरप्पा चुनावी राजनीती की बिसात में फिट नहीं बैठे हैं और उतनी ऊर्जा के साथ चुनाव प्रचार में नजर नहीं आये हैं। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> औरंगजेब की बीजापुर और गोलकुंडा की विजय ने उसके लिए दक्षिण का मार्ग खोला था उसी तरह से येदियुरप्पा के रहते ही भाजपा को दक्षिण भारत में जीत मिली और कर्नाटक में भाजपा की राज्य में पहली बार सरकार बनी थी। वे 2007 से लेकर 2021 के बीच चार बार मुख्यमंत्री बने। जुलाई 2021 में उन्हें पार्टी ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए राजी किया लेकिन कुछ ही महीनों बाद पार्टी नेतृत्व को अहसास हो गया कि उन्हें किनारे करके पार्टी कर्नाटक में चुनाव नहीं जीत सकती। उसके बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने येदियुरप्पा को अपनी चुनावी बिसात में साथ रखा है और अपनी सभाओं में उनकी तारीफ भी की है जो आज भी लिंगायत समुदाय में येदियुरप्पा की गहरी पैठ को बताता है। लेकिन येदियुरप्पा की अपील लिंगायत मतदाताओं पर कितना असर करेगी ये देखने की बात होगी? पार्टी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को इस चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया है। पार्टी घोषित तौर पर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में चुनावी राजनीती से दूर होकर येदियुरप्पा भाजपा की कितनी सीटों पर अपना मैजिक दिखाएंगे ये देखना होगा ?</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><span style="text-size-adjust: 100%;">राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी लिंगायत मुख्यमंत्री हैं लेकिन येदियुरप्पा की तरह वो लिंगायतों के बड़े वर्ग में अपनी पकड़ बनाकर भाजपा का पुराना वोट शेयर बढ़ा ले जायेंगे इस पर संशय बना हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की सरकार पर 40 प्रतिशत भ्रष्टाचार के आरोपों को भुनाने में कांग्रेस यहाँ पीछे नहीं है जो उसकी दिखती हुई रग है, साथ ही राज्य में बुनियादी समस्याओ को लेकर नाराजगी है। पार्टी के तमाम सिटिंग एमएलए से जनता की उतनी नाराजगी नहीं है जितनी मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से है। ऐसे में भाजपा के सामने मुश्किलें पेश आ रही हैं। इसे देखते हुए अब भाजपा ने नया राग छेड़ा है मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई</span><span style="text-size-adjust: 100%;"> को काम करने का काम समय मिला। ये अपील मतदाताओं के दिलो -दिमाग पर कितना असर करेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। आज भी प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्लस पॉइंट उनकी लोकप्रियता है। आज भी चुनाव में मोदी फैक्टर बड़ा गेम बदलने का माद्दा रखता है। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><span style="text-size-adjust: 100%;"> वैसे भी कर्नाटक पहले से ही राजनीति में अपने नाटक के लिए देश में मशहूर रहा है। भाजपा ने एंटी इंकम्बैंसी को देखते हुए और 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए इस बार कर्नाटक में 52 नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है जहाँ पर प्रधानमंत्री अपनी ताबड़तोड़ सभाओं से माहौल को अपने पक्ष में करने में जुटे हुए हैं। पुराने मैसूर क्षेत्र में जेडीएस , भाजपा और कांग्रेस दोनों को हमेशा की तरह से परेशान कर रही है। भाजपा की सबसे बड़ी समस्या राज्य में येदियुरप्पा की तरह ऐसे स्थानीय नेता का अभाव है जिसकी पूरे राज्य में मजबूत पकड़ हो। वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई</span><span style="text-size-adjust: 100%;"> बेशक लिंगायत हैं लेकिन इनका राज्य में डीके शिवकुमार , सिद्धारमैया, देवेगौड़ा, कुमारस्वामी जैसा मजबूत आधार नहीं है जो भाजपा को आज भी परेशान कर रहा है। इसी को जानते हुए भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी को यहाँ गेमचेंजर के तौर पर देखा है जिसे वो पूरी तरह से अपने विक्टिम नरैटिव में इस्तेमाल करने में पीछे नहीं है। राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 14 फीसदी, वोक्कालिंगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागीदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिंगा समुदाय में देवेगौड़ा और कुमार स्वामी की पकड़ मानी जाती है। हालांकि बीते चुनाव में भाजपा और कांग्रेस वोक्कालिंगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">कर्नाटक में सत्ता बदलने का मिथक क्या इस बार टूटेगा ये अब एक बड़ा सवाल बन चुका है ? 1985 के बाद से ही यहाँ का मतदाता किसी भी सरकार को दोबारा लाने के खिलाफ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब वीरेंद्र पाटिल को राज्य की कुर्सी से हटाया था उसके बाद से ही कांग्रेस का लिंगायतों में प्रभाव ख़त्म सा हो गया। कर्नाटक में पिछले चुनावों के पन्नों को पलटें तो यहां हमेशा से सत्ता में बदलाव होता आया है। कोई भी दल लगातार दो साल सत्ता में नहीं रहा है। बीते 38 बरस के रिकॉर्ड को देखा जाए तो यहां जनता हर पांच साल में सरकार को बदल देती है। अब भाजपा के लिए 2023 में इस मिथक को तोड़ने की बड़ी चुनौती है जो पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के रहते तोडना चाहती है। कर्नाटक में भाजपा का स्थनीय नेतृत्व बेहद कमज़ोर है। सत्ता विरोधी लहर से यह पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपने निजी स्तर पर निपटा रहे हैं। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भाजपा के बाद कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसकी पहुंच पूरे कर्नाटक में है, हालांकि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से उसकी चुनावी उपस्थिति भिन्न है। हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र की कुछ सीटों को छोड़ दें, तो जद(एस) का प्रभाव ज्यादातर पुराने मैसूर तक ही सीमित है, जहां 61 सीटें हैं। दूसरी ओर उत्तरी कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के समर्थन, मजबूत हिंदुत्व आधार वाले तटीय क्षेत्र और भाजपाई रुझान के मतदाताओं वाले शहर बेंगलूरू के बावजूद भाजपा ने कर्नाटक में कभी भी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं किया है। इस संदर्भ में खासकर पुराने मैसूर क्षेत्र में वोक्कलिंगा समुदाय के मतदाताओं का समर्थन जुटा पाने में भाजपा की असमर्थता एक बड़ा कारक है, जहां उनकी आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है। यह समुदाय जद(एस) और कांग्रेस के बीच चुनाव करने में सहज महसूस करता रहा है। जद(एस) के देवेगौड़ा वोक्कलिंगा बिरादरी के सबसे बड़े नेता हैं। यहां का किसान अपनी मजबूत सांस्कृतिक जड़ों के चलते भाजपा की वैचारिक उग्रता के प्रति उदासीन रहता है। इसके अलावा, वाडियारों के शासन के दौरान और उससे पहले टीपू सुलतान के राज में पुराने मैसूर में विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विकसित अंतर-सामुदायिक समझदारी का लोकाचार भी हिंदुत्व की राजनीति की अपील को सीमित कर देता है। मैसूर क्षेत्र के इन सांस्कृतिक तथ्यों के मद्देनजर भाजपा ने राज्य में दूसरी जगहों पर लामबंदी के प्रयास किए हैं। इस बार हालांकि लिंगायत समुदाय पर अपनी भारी निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से पार्टी वोक्कलिंगा बहुल क्षेत्र में पैर जमाने के प्रयास कर रही है। हिजाब , टीपू सुल्तान, सारवरकर जैसे मसले बेअसर हैं। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">केम्पेगौड़ा की विशाल प्रतिमा को स्थापित कर उसने वोक्कलिंगा समुदाय पर भी डोरे डाले हैं। वोक्कलिंगा समुदाय को मुस्लिम विरोध पर लामबंद करने के लिए मुख्यमंत्री बोम्मई ने मुसलमानों के लिए तय चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर के उसे लिंगायतों और वोक्कलिंगाओं के बीच बराबर बांट दिया। ताजा दूध और दही बेचने के अमूल के हालिया फैसले के खिलाफ भी लोगों में व्यापक आक्रोश देखने में आया था क्योंकि लोगों की नजर में यह कदम अमूल के साथ घरेलू ब्रांड नंदिनी के विलय का संकेत दे रहा था। इस मुद्दे पर भी भाजपा राज्य में घिर रही है। दलितों का समर्थन हासिल करना भी भाजपा के लिए इस चुनाव में इतना आसान नहीं दिख रहा है। भाजपा की राज्य इकाई के भीतर गुटबाजी के कारण येदियुरप्पा को 2021 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। दो प्रमुख लिंगायत नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को टिकट देने से पार्टी ने इनकार कर दिया था। ये दोनों नेता कांग्रेस से इस बार चुनाव लड़ रहे हैं । इससे कांग्रेस को लिंगायतों का समर्थन मिलने की थोड़ी संभावनाएं बढ़ रही हैं। दूसरा पहलू यह है कि भाजपा कैसे भ्रष्टाचार, लिंगायत विरोधी और लिंगायत नेताओं को दरकिनार करने की छवि से निपट पाती है ये देखने वाली बात होगी। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> कर्नाटक के उत्तरी जिलों में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को सबसे निराशाजनक मुद्दों के तौर पर उठाया जा रहा है। जेडीएस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इतने सालों में वह कर्नाटक के उत्तरी जिलों तक अपनी पहुंच नहीं बना पाई है।पुराने मैसूर इलाक़े के वोक्कालिगा बहुल केवल आठ जिलों तक इसकी विकास सीमित रहा है। हालांकि बीजेपी और कांग्रेस से टिकट न पाने वाले असंतुष्ट उम्मीदवार जेडीएस से टिकट पाकर मैदान में उतरे हैं। देखना है कि क्या जेडीएस अपनी जीती हुई सीटें बढ़ा सकती है? जद(एस) ने उत्तरी कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा के कुछ बागी उम्मीदवारों को अपने टिकट पर मैदान में उतार दिया है। इससे उस क्षेत्र में वह कुछ सीटों पर अपना प्रभाव दिखा सकती है है। राज्य में दूसरी बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने 150 से अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इसका प्रभाव बेंगलूरू के कुछ इलाकों तक ही सीमित है और इसके एक भी सीट जीतने की संभावना नहीं है, फिर भी अब राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते इसके प्रदर्शन पर नजर रखनी होगी ।</span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">2018 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी 104 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, तो कांग्रेस को केवल 80 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थीं। जबकि जनता दल (एस) को 37 सीटें मिली थी। शुरुआत में जेडीएस कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनायी थी, लेकिन दोनों दलों के विधायकों की बगावत के बाद सरकार गिर गई थी उसके बाद भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। कांग्रेस से कई लोगों ने येदियुरप्पा को मदद की जिससे भाजपा को सरकार बनाने में आसानी हुई। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">भाजपा-कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एक से बढ़कर एक कई बड़े वायदे किए हैं जिन पर इन चुनावों में बहुत सवाल उठ रहे हैं। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को ‘प्रजा ध्वनि’ घोषणा पत्र में गरीबों के लिए साल में तीन बार मुफ्त गैस सिलेंडर से लेकर किसानों, महिलाओं और बच्चों तक के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया है वहीं, कांग्रेस के ' संकल्पपत्र ' घोषणापत्र में 200 यूनिट बिजली मुफ्त से लेकर परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2 हजार रुपए देने तक का वायदा किया गया है। इसके अलावा कांग्रेस ने नफरत फैलाने वाले संगठनों पर बैन लगाने का भी वायदा किया है। इसमें सबसे बड़ा नाम बजरंग दल का है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन लगाने का एलान क्यों किया? इसका चुनाव में पार्टी को कितना फायदा मिलेगा ये देखना होगा ? </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">इस बार पार्टी ने महिलाओं से लेकर युवाओं तक को लुभाने के लिए भत्ता का एलान किया है। 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का एलान भी काफी बढ़ा है। सबसे बड़ा दांव आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का है। आरक्षण अगर 50 से 75 प्रतिशत तक हो जाता है तो यह बड़ा बदलाव होगा। वहीं, भाजपा ने गरीब वर्ग के लिए तो कई एलान किए हैं। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में बजरंगबली की इंट्री ने कर्नाटक की राजनीति को गरमा दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मोदी पर जब 'जहरीला सांप 'वाला बयान दिया और उसके बाद उनके बेटे प्रियांक उन पर 'नालायक' कहकर हमलावर हो गए तो इसने कर्नाटक के चुनाव के रुख को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। कांग्रेस इस बात को नहीं समझ पाई वो जितनी गलती करेगी भाजपा के लिए पिच उतनी ही बेहतरीन बनेगी और ऐसा ही हुआ है। कर्नाटक की पिच पर प्रधानमंत्री मोदी जबरदस्त बैटिंग कर रहे हैं। भाजपा मोदी पर हमले को लेकर कांग्रेस के खिलाफ बहुत एग्रेसिव नजर आई है। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">आम जनमानस में भी बसवराज बोम्बई के खिलाफ नाराजगी है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ जनता खड़ी नजर आती है। कांग्रेस इस चुनाव में उसी जैसे माहौल का सामना कर रही है जैसा पीएम मोदी के बारे में मणिशंकर अय्यर के 'चायवाला' टिप्पणी के बाद बना था। अय्यर की टिप्पणी ने बीजेपी को एक ऐसा हथियार दे दिया था, जिसका इस्तेमाल करके उसने एक बड़े प्रचार अभियान में तब्दील कर दिया। भाजपा ने गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी द्वारा मोदी को "मौत का सौदागर" कहे जाने को अपने पक्ष में भुनाया। ये बयान, चुनावी अभियान के उस दौर में आए हैं, जब बेरोज़गारी, महंगाई और ग़रीबी ने राज्य में जनता का जीना मुहाल किया हुआ है। वोट डालते समय मतदाता के के जीवन पर रोज़गार, मंहगाई और ग़रीबी - इन तीन मुद्दों का कितना असर होगा ये कहना कठिन है। कर्नाटक का वोटर राज्यों के चुनाव को और लोक सभा चुनाव को अलग -अलग दृष्टि से देखता है। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्बई को लेकर अभी भी हर इलाके में बहुत नाराजगी है। ओल्ड मैसूर में भाजपा प्रधानमंत्री मोदी का विक्टिम कार्ड खेल रही है। राज्य में पीने के पानी की बड़ी समस्या है , एलपीजी सिलेंडर को लेकर महिलाओं को लेकर रोष है। ये मुद्दे कितना चुनाव को प्रभित करेंगे कुछ कह नहीं सकते। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span>पिछले चुनाव में भाजपने 55 लिंगायत को टिकट दिए इस बार ये संख्या बढ़कर 68 पहुँच गई है। साफ़ है लिंगायत वोटों पर जिसका जादू चलेगा वो कर्नाटक का रण जीत जाएगा। </span></span>प्रधानमंत्री दिल और दिमाग से राजनीति करते हैं और किसी भी चुनावों के अंतिम पलों में चुनाव की दिशा बदल देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर अटैक कर कांग्रेस इस चुनाव में खुद से हिट विकेट हो रही है। किसानों की समस्याएं , बेरोजगारी , महंगाई , पेट्रोल डीजल के बढे दाम , 40 प्रतिशत कमीशनबाजी पर पहले चुनाव शुरू होने से पहले कांग्रेस फोकस कर रही थी लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने बयानों से भाजाप के सामने व्यंजनों से भरी थाली खुद सजा दी है। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">कांग्रेस के बजरंग दल पर प्रतिबन्ध वाले मैनिफेस्टो की पूरे राज्य में चर्चा हो रही है। हम्पी में बजरंगबली की बड़ी मान्यता है और बजरंगबली का जन्मस्थान भी है लिहाजा भाजपा ने चुनाव को धार्मिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कांग्रेस ने पीएफआई का सीधा समर्थन अपने मैनिफेस्टो में कर 'आ बैल मुझे मार' वाली उक्ति को चरितार्थ काने का काम किया है जिसका मतदाताओं पर गहरा असर हो रहा है। इसके कर्नाटक चुनाव के पूरे विमर्श को बदल दिया है। इस बार स्थानीय मुद्दे बेअसर साबित हो सकते हैं और हवा में राष्ट्रीय मुद्दों का ही असर दिखाई दे रहा है। </span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">कर्नाटक का विधानसभा चुनाव सभी दलों के लिए मायने रखता है। कांग्रेस अगर यहाँ वापस आती है तो वो विपक्षी एकता की धुरी बन सकती है। जद(एस) की सीटों की संख्या में सुधार का मतलब होगा चुनाव के बाद कोई गठबंधन बना तो उस मौके को वह भुनाने में देर नहीं करेगी। भाजपा यदि बहुमत के साथ सत्ता में आती है तो ये नया इतिहास बन जायेगा। अपने दम पर भाजपा कभी भी कर्नाटक में सत्ता में नहीं आई। कर्नाटक जीत के बाद दक्षिण के अन्य चार राज्यों में भाजपा की संभावनाओं को नए पंख लगेंगे। </span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; margin: 0px; padding: 0px; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;">कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा के सामने सीधे कांग्रेस होगी । मिशन 2024 में भाजपा उत्तर में होने वाले नुकसान की भरपाई दक्षिण कर सकता है। इससे पार्टी का मनोबल में निश्चित रूप से इजाफा होगा। भाजपा के लिए कर्नाटक जीतने का सीधा अर्थ यह होगा कि उसके मतदाताओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील चुनावी मुद्दों पर आज भी भारी है। अगर कर्नाटक में मोदी का मैजिक बरकरार रहता है तो वह बाकी तीन राज्यों में भी प्रधानमंत्री मोदी को ट्रैम्प कार्ड बनाकर इस्तेमाल करेगी। अगर भाजपा कर्नाटक हारती है तो इन तीन राज्यों में उसे स्थानीय क्षत्रपों को आगे करना होगा तभी वो बाजी जीत सकती है। </span></span></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-12485786965511731532023-05-06T01:18:00.000-07:002023-05-06T01:18:07.745-07:00 पत्रकारिता के कुशल संचारक देवर्षि नारद<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju209t7SJw1zS7rnWaaSB37AiSzW7GPBwOHkoEULWsUP1vCei2FStgbhTcgjvKtqxMirtfuRHItihX62SDiPckFS2gobst-XIRQFQ2d3NUvd1ND6LT27C_CQdsOZ3_d_dB_ISWXr8s4FW5S2Wcdb_E578mlQ6j1ddFk1zbJM-Rlif7ZSyUehPyssZg/s1600/naarad-ji.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1600" height="362" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju209t7SJw1zS7rnWaaSB37AiSzW7GPBwOHkoEULWsUP1vCei2FStgbhTcgjvKtqxMirtfuRHItihX62SDiPckFS2gobst-XIRQFQ2d3NUvd1ND6LT27C_CQdsOZ3_d_dB_ISWXr8s4FW5S2Wcdb_E578mlQ6j1ddFk1zbJM-Rlif7ZSyUehPyssZg/w320-h362/naarad-ji.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="font-size: large;"><br /></span><p></p><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">भारतवर्ष में पत्रकारिता का अनुभव सदियों पूर्व किया जाता रहा है। किसी न किसी रूप में सनातन काल से कलम साधना की परम्परा सर्वश्रेष्ठ परम्परा रही है। आज हम जो कुछ भी पढ़ते हैं, लिखते हैं, सुनते हैं, सब कुछ कलम साधना का ही प्रतिफल है। कलम न होती तो शायद संसार में ज्ञान का अस्तित्व ही न होता। ज्ञान न होता तो फिर क्या होता, इस बात का अंदाजा सहज में लगाया जा सकता है। 30 मई 1826 को कलकत्ता से हिन्दी का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ था। भारत में जब आधुनिक पत्रकारिता प्रारंभ हुई, तब हमारे पूर्वजों ने इसके लिए दैवीय अधिष्ठान की खोज प्रारंभ कर दी। उनकी वह तलाश तीनों लोक में भ्रमण करने वाले देवर्षि नारद पर जाकर पूरी हुई। भगवान विष्णु के भक्त नारद जी का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। देवर्षि नारद मुनि पृथ्वी, आकाश और पाताल लोक में यात्रा करते थे, ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके। देवर्षि नारद को देवों का दूत, संचारकर्ता और सृष्टि का पहला पत्रकार कहा जाता है । </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">हिन्दू पौराणिक कथाओं की मानें तो उन्होंने भगवान विष्णु के कई काम पूरे किये हैं इसलिए नारदजी को विष्णु का संदेशवाहक माना गया है। उन्हें आदि-पत्रकार कहा जाता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उन्हें संचारक अर्थात सूचना देने वाला पत्रकार कहा गया है। इसके अतिरिक्त संस्कृत के शब्द कोष में उनका एक नाम आचार्य पिशुन आया है जिसका अर्थ है सूचना देने वाला संचारक, सूचना पहुंचाने वाला, सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक देनेवाला है। आचार्य का अर्थ गुरु, शिक्षक, यज्ञ का मुख्य संचालक विद्वान अथवा विज्ञ होता है। पिशुन से स्पष्ट है कि देवर्षि नारद तीनों लोकों में सूचना अथवा समाचार के प्रेषक के रूप में परम लोकप्रिय पत्रकार एवं संवाद-प्रेषक, संवाद-वाहक हैं। देवर्षि नारद व्यास वाल्मीकि और शुकदेव जी के गुरू भी रहे। श्रीमद्भागवत एवं रामायण जैसे प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रन्थ हमें नारद जी की कृपा से ही प्राप्त हुए हैं। यही नहीं प्रहलाद, ध्रुव और राजा अम्बरीश जैसे महान व्यक्तित्वों को नारद जी ने ही भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। देवर्षि नारद ब्रहमा, शंकर, सनत कुमार, महर्षि कपिल, स्वायम्भुव मनु आदि 12 आचार्यों में श्रेष्ठ हैं। वराह पुराण में देवर्षि नारद को पूर्व जन्म में सारस्वत् नामक एक ब्राह्मण बताया गया है जिन्होंने ‘ ॐ नमो नारायणाय’ इस मंत्र के जप से भगवान नारायण का साक्षात्कार किया और पुनः ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों के रूप में अवतरित हुए। देवर्षि नारद तीनों लोको में बिना बाधा के विचरण करने वाले परम तपस्वी तथा ब्रह्म तेज से संपन्न हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">पंडित जुगलकिशोर शुक्ल ने उदन्त मार्तण्ड के प्रथम अंक में लिखा कि देवर्षि नारद की जयंती के शुभ अवसर पर यह उदन्त मार्तण्ड शुरू होने जा रहा है। 1826 को हालांकि हिन्दी पत्रकारिता का प्रारंभिक दौर रहा लेकिन पत्रकारिता का अनुभव युगों-युगों से रहा है। देवर्षि नारद इस पत्रकारिता जगत के आदि पुरुष माने गये हैं। इन्हीं के अथक परिश्रम के प्रभाव से सांस्कृतिक पत्रकारिता का उदय हुआ। इसके बाद 1948 में जब दादा साहब आप्टे ने भारतीय भाषाओं की प्रथम संवाद समिति ‘हिंदुस्थान समाचार’ जब शुरू की थी, तब उसमें भी इस बात का उल्लेख है कि देवर्षि नारद पत्रकारिता के पितामह हैं। हमारी कई कथाओं में नारद मुनि के योगदान को ब्रह्मांड के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। देवर्षि नारद ने विभिन्न देवी-देवताओं के बीच संबंधों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे कि श्री लक्ष्मी और विष्णु, भगवान शिव और देवी पार्वती, और उर्वशी और पुरुरवा के बीच विवाह को सुगम बनाना। महादेव द्वारा जलंधर के विनाश में नारद की भी भूमिका थी। इसके अलावा, उन्होंने वाल्मीकि को रामायण और व्यासजी को भागवत लिखने के लिए प्रेरित किया। हरिवंशपुराण से पता चलता है कि नारद मुनि ने हजारों दक्ष प्रजापति के पुत्रों को बार-बार सांसारिक बंधनों से मुक्त किया। मैत्री संहिता में नारद को आचार्य के रूप में मान्यता दी गई है।कहा जाता है कि देवर्षि नारद ने बड़े समर्पण और ज्ञान के साथ कई महत्वपूर्ण ज्योतिषीय स्रोतों की रचना करके ज्योतिष पर भी प्रभाव डाला। वे ज्योतिष में इतने निपुण थे कि उनका ज्ञान अन्य सभी से बढ़कर था। नारद पुराण न केवल एक ज्योतिषीय ग्रंथ है बल्कि एक धार्मिक ग्रंथ भी है जो विभिन्न अनुष्ठानों और धार्मिक मंत्रों की पूजा पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">‘रुद्रप्रयागे तन्वगिंग सर्वतीर्थोत्तमे शुभे।’श्री केदार महात्म्य के 63वें अध्याय के अनुसार देवाधिदेव महादेव की स्तुति कर देवर्षि नारद ने पत्रकारिता के पूर्ण रहस्य लोक कल्याण हेतु प्राप्त किये। उन्होंने शिव सहस्रनाम की रचना कर त्रिलोक्य दीपक संगीत रूपी पत्रकारिता संसार के सम्मुख रखी। तभी यह ज्ञान सामने आया कि ‘‘नाद से वर्ण, वर्ण से पद, पद से वाक्य और वाक्य वचन से ही समस्त संसार की उत्पत्ति हुई है इसलिए संसार नादात्मक है अर्थात शब्द ही ब्रह्मा है। यदि शब्द ही ब्रह्मा है तो सृष्टि की रचना के साथ ही पत्रकारिता का जन्म हुआ है। शिव से पुरुषाकृत छह राग उत्पन्न हुए, जो राग पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं में ‘त्रिलोक दीपक’ एक है। इसके अलावा देह शोधन ज्ञान से देह में अधिष्ठित सर्वभौतिक ज्ञान व समस्त भूतों को जानने की कला का ज्ञान, संगीत कला के तत्व से नाद का विधान, संगीत की समस्त विद्याओं का ज्ञान, स्वरों के भेद का पूर्ण ज्ञान, संगीत में स्वर शब्द के मूल में षांडवों का वर्णन गायन क्रिया तथा अलंकारों के भेद स्थायी, आरोही, अवरोही, संचारी का ज्ञान, सप्तस्वर षडजी, ऋषिजी, गांधारी, मध्यमा, पंचमा, छठी, धैवती, नौसादी का ज्ञान स्वरों के भेद और तालों की संज्ञा का ज्ञान उपहन्तु, गल, विशारद, अर्थभोग के अलावा स्वरों के भेद की 72 कलाओं का ज्ञान, जिनमें प्रमुख रूप से गमन कला, रसायन कला, अंगलेखन कला, हास्य लेखन कला प्रमुख हैं। नारद मुनि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में एक हैं।भगवान विष्णु के प्रति इनकी अचल निष्ठा है और लोक कल्याण के लिए सर्वत्र विचरण करना इनका प्रमुख धर्म है। पत्रकारिता के साथ साथ भक्ति तथा संकीर्तन के ये आदि आचार्य हैं। इनकी वीणा ही इनका संचार पत्र है जिसे ‘महती’ के नाम से पुकारा जाता है। इस महती का मतलब धर्म प्रचार से है। इसका उद्देश्य धर्म के प्रचार के साथ साथ लोक मंगल के लिए ‘नारायण-नारायण’ की ध्वनि को गुंजित करना है। ये सदैव अमर है और आज भी व्रहमाण्ड के समाचारों का संकलन कर जीव के कर्म की गति के अनुसार जीवन निर्धारण करवाने में इनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए ये मान्यता प्राप्त आदि पत्रकार है। पौराणिक काल के पत्रकार देवर्षि नारद के अलावा महर्षि वेद व्यास व संजय प्रसिद्ध पत्रकार रहे। नौ नाथ- आदि नाथ, अनादि नाथ, कुर्म नाथ, भव नाथ, सत्य नाथ, संतोष नाथ, स्वामी मतस्येन्द्र नाथ, गोपी नाथ व गोरखनाथ जी की गणना भी महान पत्रकारों के रूप में होती है। इनके कलम के प्रताप से रचित रचनाओं का विशाल भंडार संसार के सम्मुख है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> सत्य नारायण की कथा के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि देवर्षि नारद का सब कुछ समाज के लिए अर्पित था। देवर्षि नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति ,नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि। नारद मुनि देव व दानव सभी के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान बिना किसी स्वार्थ के लोकहित को ध्यान में रखकर किया करते थे। आज भी पत्रकारों को उनके पदचिन्हों पर चलकर मूल्य आधारित पत्रकारिता को बढ़ाव देने की आवश्यकता है जिसके केन्द्र में लोकमंगल की प्रधानता होनी चाहिए। पत्रकारिता के इस महत्व को गीता में समझाते हुए योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने देवर्षियों में नारद को अपनी विभूति बताया हैं। पूर्व काल में नारद ‘उपबर्हण’ नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बेहद अभिमान था। एक बार जब ब्रह्मा की सेवा में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से प्रभु की स्तुति कर रहे थे। आराधना कर रहे थे, उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से भावित वहाँ आया। उपबर्हण का यह अशिष्ट आचरण देख कर परमेश्वर ब्रह्मा कुपित हो गये और उन्होंने उसे ‘शूद्र योनि’ में जन्म लेने का शाप दे ड़ाला । शाप के प्रभाव से वह ‘शूद्रा नामक दासी’ के पुत्र हुए। माता पुत्र साधु संतों की बड़े ही निष्ठा के साथ सेवा करते थे। शुरूआती जीवन इनका बड़े ही संघंर्ष में बीता । बाल्यकाल की अवस्था से संतों के पात्र में बचा हुआ झूठा अन्न इन्हें नसीब होता था । इस अन्न के प्रभाव से उसके हृदय के सभी पाप धुल गये। बालक की सेवा से प्रसन्न होकर साधुओं ने उसे नारायण नाम का जाप और ध्यान का उपदेश दिया। बाद में इनकी माता शूद्रा दासी की सर्पदंश से मृत्यु हो गयी। माता के संसार से चले जानें के बाद नारद इस संसार में अकेले रह गये। उस समय इनकी अवस्था मात्र पाँच वर्ष की थी। माता के वियोग को भी ईश्वरीय इच्छा मानकर नारद जी ने नारायण की शरण लेकर उनका ध्यान आरम्भ किया।समय आने पर हरि के विरह में इन्होनें शरीर छोड़ा और बाद में प्रभु की कृपा से ये ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रुप में जन्में और संचार को अपना धर्म बनाकर पत्रकारिता का आरम्भ किया।संसार के बड़े बड़े महर्षि ऋषि इनके शिष्य हुए। उनका समूचा संचार लोकहित के लिए है। नारद भक्ति के 84 सूत्र जीवन को एक नई दिशा देने का काम करते हैं। मौजूदा दौर की पत्रकारिता इनसे बहुत कुछ सीख सकती है। नारद के भक्ति सूत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन सूत्रों में पत्रकारिता के आधारभूत सिद्धांत शामिल हैं। ये सूत्र पत्रकारिता को दिशा देने वाले हैं। आज इलेक्ट्रानिक युग में खबरें तेजी से बदल रही हैं। संवाददाताओं में खबरों को ब्रेक करने की मानो होड़ ही लगी हुई है। आधी-अधूरी जानकारी में ही समाचार लिख दिए जा रहे हैं जो चिंताजनक है। नारद जी के भक्ति सूत्र आज भी हमें ये सिखाने की कोशिश करते हैं समाचारों में सत्यता होनी जरूरी है। अपने विभिन्न स्त्रोतों से पुष्टि के बाद ही कोई समाचार प्रकाशित किया जाना चाहिए। देवर्षि नारद के संचार में लोकमंगल की भावना नजर आती है। निरन्तर संवाद, प्रवास, संपर्क नारद की संचारकला को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं। देवर्षि नारद एक ऐसे विराट व्यक्तित्व के स्वामी हैं जो न केवल सांसारिक घटनाओं के ज्ञाता थे बल्कि उनके परिणामों तक से भी वे भली भांति परिचित होते थे। वे देव, दानवों, मनुष्यों सभी में ही लोकप्रिय थे। आनन्द, भक्ति, विनम्रता, ज्ञान, कौशल उनकी अनेक विशेषताएं थी । </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">सही अर्थों में कहा जाए तो देवर्षि नारद पत्रकारिता के अधिष्ठात्रा हैं। इन्हीं के प्रभाव से संसार को राग भैरव, मालकौशिक, हिन्दोल, दीपक श्रीराग सहित संगीत व लेखन की असंख्य जानकारी प्राप्त हुई, इसलिए देवर्षि नारद पत्रकारिता जगत में अतुलनीय रहे हैं। नारद का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है । उन्होंने ब्रह्मा से ज्ञान प्राप्त किया। संगीत का आविष्कार किया। समाज में भक्ति के मार्ग का प्रतिपादन किया और सतत संवाद के माध्यम से हमेशा लोकमंगल का बेहतरीन कार्य किया।</span></span>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-76400885350088784262023-03-27T03:28:00.005-07:002023-03-27T03:29:08.962-07:00नवरात्र दैवी शक्ति की विजय का प्रतीक<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjH_3oFXtbBnR4ZGuKlD5FbXDvmlNXwEL2gsmBbRgnUyj0ox5KwGD6r1wtFOifV7fRBoJig_5HZZT43eYczaVtxIZRFJSkHqKMLuTw-FxvQ-oUhQTPuun-GIisFMlCdyjskbRRbTgYh96ViFGgbK47l84pDZEIwP50YUwdOGlhwDrSFrNsWXB18skRa/s165/navdurga.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="118" data-original-width="165" height="182" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjH_3oFXtbBnR4ZGuKlD5FbXDvmlNXwEL2gsmBbRgnUyj0ox5KwGD6r1wtFOifV7fRBoJig_5HZZT43eYczaVtxIZRFJSkHqKMLuTw-FxvQ-oUhQTPuun-GIisFMlCdyjskbRRbTgYh96ViFGgbK47l84pDZEIwP50YUwdOGlhwDrSFrNsWXB18skRa/w254-h182/navdurga.jpg" width="254" /></a></div><span style="font-size: large;"><br /> </span><p></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: large;">एक ही परम तत्व परमपुरुष पराशक्ति के रूप में सर्वत्र व्यापक है। श्रुतियों, शास्त्रकारों ने एक ही चिरंतन शक्ति को कभी पुरुष के रूप में तो कभी देवी के रूप में स्वीकारा है। सब के घट में एक समान विराजमान वह दिव्य शक्ति प्रकाश के रूप में हमेशा मौजूद रहती है जिसे 'जीवन शक्ति' कहा जाता है और उसका दर्शन होना ही 'शक्ति ' की आराधना है। दुष्टों का संहार करके भक्तों की रक्षा करने हेतु कभी काली तो कभी दुर्गा या फिर राम और कृष्ण के रूप में उस शक्ति का अवतरण इस धरा पर हुआ है। </span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">मां अम्बे की पूजा - अर्चना का विधान वेद, पुराण , उपनिषदों हिन्दुओं के अन्य धर्मशास्त्रों में भी मिलता है। वेद में 'एकोएहं बहुस्याम ' और 'अजाय मानों बहुधा ब्यजायत ' के रूप में और देवी पुराण में 'सा वाणी साच सावित्री विप्राधिष्ठात ' वहां सर्व दुर्गा के रूप में संस्थापित है। मार्कण्डेय पुराण में स्वयं मान जएकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा। पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः अर्थात मैं ही दुर्गा हूँ , सर्व शक्ति स्वरूपा हूँ और मुझमें ही पूरी सृष्टि विलीन है। आशय यह है कि यह विशाल सृष्टि उत्पन्न होती है, बढ़ती है, विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती है और अंत में विनिष्ट हो जाती है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">देवी पुराण में एक बड़े रोचक कथा प्रसंग की चर्चा की गयी है। अक्सर भ्रम में पड़ जाने वाले देवर्षि नारद को एक बार भ्रम हो गया। ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों सर्वश्रेष्ठ हैं तो भला ये तीनों किस महाशक्ति का स्मरण करते हैं ? नारद जी अपने सन्देश निवारण हेतु शिव के पास गए और बोले 'मुझे ब्रह्मा , विष्णु और महेश से बढ़कर कोई अन्य देवता नहीं दिखाई देता है फिर आप तीनों से ऊंचा कौन है जिसकी उपासना और स्मरण आप करते हैं ' ? शिव मुस्कुराये और बोले 'हे ऋषिवर ' सूक्ष्म और शूल शरीर से परे जो महाप्राण आदिशक्ति (जगदम्बा ) है वही तो परब्रह्म स्वरुप है - वह केवल अपनी इच्छा मात्र से ही सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने में समर्थ है। वस्तुतः वह आदिशक्ति (दुर्गा ) निर्गुण स्वरूप है परन्तु उसे किसी भी रूप मे मन समय -समय पर धर्म की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए साकार होना पड़ता है। इसी समय-समय पर ,पार्वती दुर्गा , काली , चंडी , सरस्वती आदि अवतार धारण किये हैं। इसी जगत जननी का सभी देव स्मरण करते हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> वैसे भी आदिशक्ति स्वरुप दुर्गा में सभी देवताओं का कुछ न कुछ अंश शामिल है। दुर्गाशप्तशती के दूसरे अध्याय में देवी स्वरुप का वर्णन करते हुए बतलाया गया है भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख प्रकट हुआ , यमराज के तेज से मस्तक के केश , विष्णु के तेज से भुजाएं , चन्द्रमा के तेज से स्तन , इंद्रा के तेज से कमर , वरुण के तेज से जंघा , पृथ्वी के तेज से नितम्ब , ब्रह्म के तेज से चरण , सूर्य के तेज से दोनों पैरों की अंगुलियां, वसुओं के तेज से दोनों हाथों की अंगुलियां , प्रजापति के तेज से सम्पूर्ण दांत , अग्नि के तेज से दोनों नेत्र , संध्या के तेज से भौहें , वायु के तेज से कान , अन्य देवताओं के तेज से देवी के भीं- भीं अंग बने। इसी प्रकार सभी अमोघ शक्तियों से दुर्गा के रूप में एक आदिशक्ति का सृजन किया गया इसलिए यह स्वरुप सभी देवताओं के लिए स्मरणीय हो गया। </span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> जो विद्वानों के के लिए स्मरणीय हो वह लोगों के लिए विस्मरणीय भला कैसे हो सकता है। परिणामतः कलियुग में भी आज दो नवरात्रि के रूप में माँ जगदम्बा की पूजा जारी है। शारदीय और वासंतीक नवरात्र। शारदीय नवरात्र आश्विन मास में और वासंतिक नवरात्र अभी चैत्र माह में होते हैं। इसी चैत्र वर्ष प्रतिपदा से हिन्दुओं का नया संवत्सर शुरू होता है। दोनों नवरात्र का समान महत्व है। नौ दिन और नौ रातों तक मान जगदम्बे भगवती के नौ अलग -अलग रूपों की पूजा की जाती है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> यह आज तक रहस्य बना हुआ है। दुर्गा की पूजा सबसे पहले राम ने की या किसी और ने, लेकिन इतना तय है लंका पर चढ़ाई और रावण वध से पहले राम ने आदिशक्ति स्वरूप मानकर दुर्गा जी की पूजा की। यह स्थान भी रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। नवरात्र महोत्सव आसुरी शक्ति पर दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है। नवरात्र में प्रथमा से लेकर नवमी तक शक्ति के 9 स्वरूपों की पूजा -अर्चना होती है। ये नौ शक्तियां बहनों का स्वरुप हैं और इन नौ शक्तियों के विभिन्न नाम रूप के कारण 'शारदीय नवरात्र ' उत्सव का उल्लास देखते ही बनता है। नवरात्र की पूरे देश में विशेष धूम रहती है। इन 9 दिनों में लोगों की भक्ति भावना, आस्था और शक्ति देखते ही बनती है। दर्जा माता की नौ शक्तियों के नाम हैं - शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी और सिद्धदात्री। नवरात्र में अंतिम दिन पर कन्या पूजा का विशेष महत्व है। नौ कुमारी कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर लोग उनका विशेष पूजन भोजन , वस्त्रादि, उपहार देकर करते हैं। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> कन्या पूजन में दो वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को पूजा जाता है। दस वर्ष से अधिक वर्ष की कन्याओं का पूजन वर्जित। दो वर्ष की कन्या ' कन्याकुमारी' , तीन वर्ष की 'त्रिमूर्तिनी' , चार वर्ष की 'कल्याणी' , पांच वर्ष की 'रोहिणी' , छह वर्ष की ;'काली', सात वर्ष की 'चंडिका' , आठ वर्ष की ' शम्भवी', नौ वर्ष की 'दुर्गा' और दस वर्ष की 'सुभद्रा' स्वरूपा मानी गयी है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> कोई भी पर्व हो उसके पीछे मकसद होता है सुख, शांति और समृद्धि के साथ परमानन्द की प्राप्ति। नवरात्र में की गई पूजा मानव मन की मलिनता को दूर करके भगवती दुर्गा के चरणों में लीन होकर जीवन में सुख, शांति और ऐश्वर्य की समृद्धि लाती है। यज्ञ - हवन के कारण अनेक व्याधियों से मुक्ति होने की वैज्ञानिक पुष्टि भी होती है। उस शक्ति स्वरूपा का दर्शन करना मानव जीवन का लक्ष्य है और इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु इन नवरात्रों में विशेष प्रयास करना चाहिए। नवरात्र अर्थात शक्ति की आराधना का महापर्व है और इसे सौद्देश्य मनाना चाहिए जिससे सुख शांति , अर्थ ,धर्म , काम , मोक्ष का पुरुषार्थ भी सफल हो। </span></span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span></span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 14px; text-size-adjust: 100%;" /><br /></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-61091685514541900872023-03-15T01:59:00.003-07:002023-03-15T01:59:34.892-07:00उत्तराखंड के पहाड़ों का लोक पर्व है फूलदेई<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimZlotIpoEye3A-8Q_H3IaWeBv5QC04d6gBJ4sjWAXCvJhxHHokb-NYzz2THjwLXTvxgfEh97LbI9ijMrSgYfUPRmmXNXEI0yI6iusi-CkTkrupWU-q6beZ_tTCcY5LmsOJ6s2xcE8sp_mXpZnFAjRBrlc8Ey3VsanWxcNJIHgbF_xkmA6cys9Uto2/s768/fooldeyi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="450" data-original-width="768" height="238" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimZlotIpoEye3A-8Q_H3IaWeBv5QC04d6gBJ4sjWAXCvJhxHHokb-NYzz2THjwLXTvxgfEh97LbI9ijMrSgYfUPRmmXNXEI0yI6iusi-CkTkrupWU-q6beZ_tTCcY5LmsOJ6s2xcE8sp_mXpZnFAjRBrlc8Ey3VsanWxcNJIHgbF_xkmA6cys9Uto2/w405-h238/fooldeyi.jpg" width="405" /></a></div><br /><p></p><p><br /></p><p><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 12px; text-size-adjust: 100%;"> </span><span style="font-size: large;"><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">देवभूमि उत्तराखंड अपनी मनमोहक सुषमा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है और यहां के कई त्योहारों में विविधता दिखाई देती है। प्रकृति को धन्यवाद देने हेतु उनमें से एक त्यौहार है फूलदेई त्यौहार , फूल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है । फूलदेई यानी फूल संक्रांति उत्तराखंड का पारंपरिक लोक पर्व है। उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा आज भी कायम है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">चैत्र के महीने की संक्रांति को जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर छोटे बच्चों का पर्व है। वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन गाँवों में ये त्यौहार अब भी ज़िंदा है। फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी पर डालकर उस घर की खुशहाली की दुआ मांगने की परंपरा देखते ही आज भी इस त्यौहार की महक महसूस की जा सकती है। चैत्र माह के पहले दिन भोर में छोटे–छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने ईष्ट देवी देवताओं को अर्पित करते हैं। उसके बाद पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं और उन फूलों से दरवाजों (देहली) का पूजन करते हैं। घर के दरवाजों में सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं। फूल देई ……छम्मा देई देणी द्वार……. भर भकार ……फूल देई ……छम्मा देई।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">फूलदेई के दिन बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। उत्तराखंड के इस बाल पर्व में बच्चे फ्यूंली, बुराँस, बासिंग, लाई,ग्वीर्याल, किंनगोड़, हिसर, सहित कई जंगली फूलों को रिंगाल की टोकरी में चुनकर लाते है और देहरी पूजन करते हुए फूल डालते हैं। इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> फूलदेई त्योहार में एक द्वार पूजा के लिए एक जंगली फूल का इस्तेमाल होता है, जिसे फ्यूली कहते हैं। इस फूल और फूलदेई के त्योहार को लेकर उत्तराखंड में कई लोक कथाएं मशहूर हैं जिनमें से एक लोककथा फ्यूंली के पीले फूलों से जुड़ी हैं। फूलदेई पर्व की कहानियां एक वन कन्या थी, जिसका नाम था फ्यूंली। फ्यूली जंगल में रहती थी। जंगल के पेड़- पौधे और जानवर ही उसका परिवार भी थे और दोस्त भी। फ्यूंली की वजह से जंगल और पहाड़ों में हरियाली थी, खुशहाली। एक दिन दूर देश का एक राजकुमार जंगल में आया। फ्यूंली को राजकुमार से प्रेम हो गया। राजकुमार के कहने पर फ्यूंली ने उससे शादी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर उसके साथ महल चली गई। फ्यूंली के जाते ही पेड़-पौधे मुरझाने लगे, नदियां सूखने लगीं और पहाड़ बरबाद होने लगे। उधर महल में फ्यूंली ख़ुद बहुत बीमार रहने लगी। उसने राजकुमार से उसे वापस पहाड़ छोड़ देने की विनती की लेकिन राजकुमार उसे छोड़ने को तैयार नहीं था और एक दिन फ्यूंली मर गई। मरते-मरते उसने राजकुमार से गुज़ारिश की, कि उसका शव पहाड़ में ही कहीं दफना दे। फ्यूंली का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की उसी चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वो उसे लेकर आया था। जिस जगह पर फ्यूंली को दफनाया गया, कुछ महीनों बाद वहां एक फूल खिला, जिसे फ्यूंली नाम दिया गया। इस फूल के खिलते ही पहाड़ फिर हरे होने लगे, नदियों में पानी फिर लबालब भर गया, पहाड़ की खुशहाली फ्यूंली के फूल के रूप में लौट आई। इसी फ्यूंली के फूल से द्वारपूजा करके लड़कियां फूलदेई में अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली की दुआ करती हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फूलदेई त्यौहार मनाने के पीछे कहा जाता है कि शिव शीत काल में अपनी तपस्या में लीन थे, ऋतु परिवर्तन के कई बर्ष बीत गए लेकिन शिव की तंद्रा नहीं टूटी। माँ पार्वती ही नहीं बल्कि नंदी शिव गण व संसार में कई बर्ष शिव के तंद्रालीन होने से बेमौसमी हो गये। आखिर माँ पार्वती ने ही युक्ति निकाली। सर्वप्रथम फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया । फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए। सबने अनुसरण किया और पुष्प सर्वप्रथम शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किये गए जिसे फुलदेई कहा गया। साथ में सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आये महाराज । शिव की तंद्रा टूटी बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हुआ और वे भी प्रसन्न मन इस त्यौहार में शामिल हुए तब से पहाडो में फुलदेई पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">फूलदेई त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है और हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है।इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं।पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सज जाता है और बसंत के इस मौसम में फ्योली, खुमानी, पुलम, आडू , बुरांश ,भिटोरे आदि के फूल हर कहीं खिले हुए नजर आ जाते हैं।जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते हैं वही घर आंगन में लगे आडू, खुमानी के पेड़ों में सफेद व हल्के बैंगनी रंग के फूल खिले रहते हैं।फूलदेई त्यौहार में वैसे तो शाम को तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं लेकिन चावल से बनने वाला सई ( सैया) विशेष एक तौर से बनाया जाता है।चावल के आटे को दही में मिलाया जाता है।फिर उसको लोहे की कढ़ाई में घी डालकर पकने तक भूना जाता है।उसके बाद उसमें स्वादानुसार चीनी व मेवे डाले जाते हैं यह अत्यंत स्वादिष्ट और विशेष तौर से इस दिन खाया जाने वाला व्यंजन है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">आज के दौर में त्यौहारों का स्वरूप धीरे या तो परिवर्तित हो रहा है या फ़िर वह केवल औपचारिकता मात्र रह गये हैं । फूलदेई में भी काफ़ी परिवर्तन आये हैं। ऑनलाइन जिंदगी जीने वाली आज की युवा पीढ़ी में अब वह पहले वाला उत्साह नहीं रह गया है लेकिन किसी भी रूप में सही फूलदेई का त्यौहार उत्तराखण्ड में अभी भी "फूल देई, छम्मा देई" गाते सजे धजे बच्चों की टोलियां कहीं न कहीं दिखायी पड़ जाती हैं। फूलदेई जैसे त्यौहार एक ओर जहां हमारी वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी जिन्दा रखे हुये हैं, वहीँ हमारे बच्चों को प्रकृति के और निकट लाने में भी सहायक हैं।</span></span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-59715858518653984342023-03-03T03:25:00.016-08:002023-03-03T04:31:49.823-08:00बजट से सबका दिल जीतने में कामयाब हुई शिवराज सरकार <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggoMt1IulQXVJVAD_XYIeNRWO4iUxAtxB6TYaTx8qKbLENv_4XhPRu3RQEjkoqcf2Yks2HK-wTefEVUEt40H9OlIXBMM_YOKASX6n2qPwkfY8ufrCEtUTKpwdMpck4kRUMD9FM33U9AT0HRP0a49TncEwtpsfoqSxyjrpJl1KqvJWK73gtWiR7o3bU/s1200/mp-budget-1677667170.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><p style="text-align: center;"><br /></p><p><span style="clear: left; float: left; font-size: large; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="229" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggoMt1IulQXVJVAD_XYIeNRWO4iUxAtxB6TYaTx8qKbLENv_4XhPRu3RQEjkoqcf2Yks2HK-wTefEVUEt40H9OlIXBMM_YOKASX6n2qPwkfY8ufrCEtUTKpwdMpck4kRUMD9FM33U9AT0HRP0a49TncEwtpsfoqSxyjrpJl1KqvJWK73gtWiR7o3bU/w407-h229/mp-budget-1677667170.jpg" width="407" /></span><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><br /></span></span></p><p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">मध्यप्रदेश विधानसभा में आज प्रदेश का वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया गया। शिवराज सरकार के द्वारा पेश किये गए बजट में प्रधानमंत्री मोदी के 'सबका साथ सबका विकास' की झलक साफ़ दिखाई दी है। ख़ास बात यह रही इस अंतिम बजट में जनता पर कोई नया कर नहीं लगाया गया है। सरकार ने अपने अनेक लोक लुभावन वायदों से जनता का दिल जीतने की कोशिश की है। महिलाओं से लेकर युवा , बुजुर्गों से लेकर दिव्यांगों, आदिवासियों हर वर्ग पर इस बजट में विशेष फोकस किया गया है। शिवराज सरकार ने समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर अपना खजाना खोला है। सरकार द्वारा इस बजट में किये गए कई प्रावधानों का लाभ समाज के सभी वर्गों को होगा। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">देश के सकल घरेलू उत्पाद में मध्यप्रदेश का योगदान 3.6 % से बढ़कर अब 4.8 % हो चुका है। वर्ष 2011-12 प्रति व्यक्ति आय 30 हजार 497 रुपये थी, अब 2022-23 में साढ़े तीन गुना तक बढ़कर एक लाख 40 हजार 585 रुपये हो गई है। मध्यप्रदेश का कुल बजट 3.14 लाख करोड़ रुपये का है, जो पिछले साल 2.79 लाख करोड़ रुपये का था। 55,709 करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा अनुमानित है। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बजट को प्रस्तुत करते हुए कहा प्रदेश में दस बरस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार कर्ज लेकर वेतन और भत्ते देती थी लेकिन सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट जनता की उम्मीदों का बजट है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सभी क्षेत्रों में आज प्रदेश का चहुंमुखी विकास हो रहा है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में मध्यप्रदेश का योगदान बीते 10 वर्षों में 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4. 8 प्रतिशत पहुँच गया है। प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2011 -12 में जहाँ 38 हजार 497 करोड़ थी वहीँ 2022 -23 में यह बढ़कर 1 लाख 40 हजार 583 हो गई है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> इस बजट में नारी शक्ति का मान बढ़ाने में सरकार कामयाब हुई है। प्रदेश सरकार ने नारी शक्ति के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं प्रदेश में चलाई हैं जिसका परिणाम आज धरातल पर दिखाई दे रहा है। 2015 -16 की तुलना में 2020 -21 में लिंगानुपात 927 से बढ़कर 956 हो चुका है। लाड़ली लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश में अब तक 44 लाख से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं। वर्ष 2007 से आरंभ लाड़ली लक्ष्मी योजना में अब तक 44 लाख 39 हजार से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 929 करोड़ रुपये का प्रावधान प्रस्तावित है। महिला स्वसहायता समूहों ने प्रदेश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है जिसे देखते हुए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 -24 में 660 करोड़ का प्रावधान किया है जो उनके सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा। मध्यप्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी योजना की गूँज प्रदेश से लेकर पूरे देश तक सुनाई दी है। इस योजना में अब तक 44 लाख 39 हजार से अधिक बालिकाएं लाभान्वित हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023 -24 में लाड़ली लक्ष्मी के लिए 929 करोड़ प्रावधान इस बजट में किया गया है । विशेष पिछड़ी जनजातीय महिलाओं को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आहार अनुदान योजना चलाई जा रही है जिसके तहत इन महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1 हजार रु जमा करवाए जाते हैं। इस बार इसमें 300 करोड़ का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री लाड़ली योजना की तर्ज पर अब प्रदेश की महिलाओं को प्रदेश में मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की नई सौगात मिलने जा रही है जिसके तहत सभी पात्र महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1 हजार रु की राशि जमा की जाएगी। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">मुख्यमंत्री बालिका स्कूटी योजना का बड़ा ऐलान इस बार के बजट में किया गया है। राज्य सरकार ने घोषणा की है कि अपने-अपने स्कूल में 12वीं में टॉप करने वाली छात्राओं को ई-स्कूटी दी जाएगी। छात्राओं को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सुविधाओं का विकास करते हुए इस बजट में प्रदेश के समस्त उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में पहला स्थान पाने वाली बालिकाओं को अब स्कूटी दी जाएगी।आहार अनुदान योजना के लिए 300 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में किया गया है। इसके तहत बैगा, भारिया, सहरिया जनजाति की महिलाओं को 1 हजार रुपए महीना दिया जाएगा। प्रसूति सहायता योजना में 400 करोड़ रु का प्रावधान किया है। इसी तरह कन्या विवाह एवं निकाह के लिए 80 करोड़ रुपए। मातृत्व वंदना योजना के लिए 467 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। नई आबकारी नीति के जरिये नशे की लत को हतोत्साहित करने का फैसला किया गया है। ग्रामीण आजीविका मिशन के लिए 660 करोड़ का प्रावधान किया गया है । नारी कल्याण के लिए 1 लाख 2976 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं। सरकार ने 12 हजार नए स्वसहायता समूहों का गठन करने का ऐलान भी किया है। महिला स्व-सहायता के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट का प्रावधान किया है। कन्या विवाह योजना की प्रोत्साहन की राशि 51 से बढ़ाकर 55 हजार की गई है। नारी कल्याण के लिए कुल 1 लाख 2976 करोड़ रुपये का बजट महिलाओं के सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">स्वरोजगार से लेकर कौशल विकास पर सरकार ने इस बजट में जोर दिया है। युवाओं के कौशल विकास के साथ उनके रोजगार और स्वरोजगार की दिशा में भी इस बजट में सरकार के द्वारा विशेष प्रयास किये हैं। सरकारी नौकरियों में 1 लाख नौकरियां देने का अभियान सरकार के द्वारा चलाया जा रहा है। मुख्यमंत्री उद्यम योजना , मुद्रा योजना और अन्य स्वरोजगार की योजनाओं से आज प्रदेश का युवा सशक्त हो रहा है। युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए 252 करोड़ रु की योजनाओं का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 1 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान इस बजट में हुआ है। घुमंतू जातियों के रोजगार के लिए 252करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया गया है। युवाओं को स्वावलंबी बनाना सरकार की प्रमुख प्राथमिकता है । इसके तहत 1 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी जाएगी। रोजगार के लिए 200 युवाओं को जापान भेजा जायेगा । नई शिक्षा नीति के लिए सरकार ने इस बजट में 277 करोड़ रु का प्रावधान किया है । एमबीबीएस सीट 2 हजार 55 से बढ़ाकर 3 हजार 605 की जाएंगी। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए 649 सीट्स बढ़कर 915 होंगी।नर्सिंग कॉलेज योजना से मेडिकल कॉलेज में 810 बीएससी नर्सिंग, 300 पोस्ट बेसिक नर्सिंग की एक्स्ट्रा सीट्स होंगी। 25 चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए 400 करोड़ रुपए का प्रावधान इस में किया गया है । </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">पेंशन नियमों में सरलीकरण पर इस बार के बजट में सरकार ने जोर दिया है। सरकारी कर्मचारियों को रिटायर होने के बाद उनके रिटायरमेंट लाभ जल्द से जल्द मिले, इसके लिए पेंशन नियमों का सरलीकरण किया जा रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के लिए परिवार की विवाहित पुत्री को भी पात्रता दी गई है। चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमों को सरल और मान्यता प्राप्त निजी चिकित्सालयों में आयुष्मान योजना की निर्धारित दरों पर इलाज की सुविधा दी गई है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों को देय भत्तों का सातवें वेतनमान के परिप्रेक्ष्य में पुनरीक्षण करने के लिए समिति गठित की गई है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">नए सीएम राइज से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति होगी। प्रदेश में अब तक 370 सीएम राइज स्कूल खुल चुके हैं। 9000 नए सीएम राइज स्कूल खोलने हेतु सरकार ने इस बजट में प्रावधान किया है। पीएम श्री योजना के तहत सरकार ने 277 करोड़ रु का प्रावधान किया है। प्रदेश में एमबीबीएस सीट 2055 से बढ़ाकर 3605 की जाएंगी। विद्यालयों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 29 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है। शिक्षा के लिए इस बजट में 5 हजार 532 करोड़ रु का प्रावधान किया गया है। सीएम राइज स्कूल के लिए 3230 करोड़ रुपये का बजट सरकार ने पेश किया है ।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">नर्मदा प्रगति पथ के साथ श्री देवी महालोक , रामराजा लोक , वनवासी राम लोक का विकास होगा। सरकार द्वारा पेश किये गए बजट में नर्मदा प्रगति पथ निर्माण के लिए भी प्रावधान किया गया है। प्रदेश में कुल 900 किमी लंबा नर्मदा प्रगति पथ बनाया जाएगा। सलकनपुर के प्रसिद्ध देवी मंदिर में श्री देवी महालोक का निर्माण होगा । सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को भी किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रु. का बजट में प्रावधान किया गया है । सलकनपुर में श्रीदेवी महालोक, सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को डेवलप किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में किया है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">खेल विभाग का बजट बढ़कर 738 करोड़ रुपये पहुँच गया है। सरकार ने खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के लिए खेल विभाग का बजट बढ़ाकर 738 करोड़ रुपये कर दिया है। इसी के साथ प्रदेश में अब स्पॉर्ट्स टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात कही है । भोपाल के नाथू बरखेड़ा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण और स्पोर्ट्स साइंस सेंटर की स्थापना की जाएगी। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">सरकार ने इस बजट में भोपाल में संत शिरोमणि रविदास ग्लोबल स्किल पार्क बनाने का नया ऐलान किया है। इसमें हर साल 6 हजार लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी। ग्वालियर, जबलपुर, सागर और रीवा में भी स्किल सेंटर शुरू किए जाएंगे। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना का इस बजट में विस्तार हुआ है। अब सरकार इस योजना के तहत तीर्थयात्रियों को हवाई जहाज से तीर्थ दर्शन कराएगी । मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन के के लिए 50 करोड़ रु स्वीकृत किये गए हैं । </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">किसानों के कल्याण के लिए भी कई सौगातें सरकार ने दी हैं। सरकार ने कृषि सम्बन्धी योजनाओं के लिए कुल 53 हजार 964 करोड़ रु का बजट प्रस्तावित किया गया है। डिफॉल्टर किसानों का कर्ज सरकार ने भरने का बड़ा ऐलान इस बजट में किया है। मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अन्तर्गत 3 हजार 200 करोड़ रु का प्रावधान इस बजट में किया गया है। प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के साथ ही फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 11 हजार एकड़ में वैकल्पिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की बात हुई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत सुरक्षा कवच हेतु 2 हजार करोड़ रु की राशि सरकार प्रदान करेगी।। मोटे अनाज के लिए 1000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। 11हजार एकड़ मे सुगंधित खेती को बढ़ावा देने की भी बात हुई है। सिंचाई परियोजना के लिए 11 हजार 50 करोड़ रुपये का बजट, किसानों को हर साल 10,000 की आर्थिक सहायता, सीएम किसान कल्याण योजना के लिए 3200 करोड़ रुपये का बजट किसानों के लिए सही मायनों में नई सौगातें लेकर आया है। मुख्यमंत्री गोसेवा योजना के अंतर्गत 3346 गोशाला का निर्माण स्वीकृत किया गया है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">आधारभूत अवसंरचना पर भी विशेष फोकस सरकार ने किया है। सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए बजट में इंदौर, भोपाल में मेट्रो रेल के लिए 710 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया है। इसी साल दोनों शहरों में मेट्रो का ट्रायल करने की योजना है। चुनावी दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है। इंदौर-पीथमपुर इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी विकास होगा होगा वहीँ 105 नए रेलवे ब्रिज भी इस बजट में प्रस्तावित हैं। हवाई पट्टियों के विकास के लिए 80 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। प्रदेश में सड़कों और पुलों के लिए 56 हजार 256 करोड़ रुपए , नगरीय निकायों को 842 करोड़ रुपए, नगरीय विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपए और स्थानीय निकायों को 3 हजार 83 करोड़ रुपए के साथ ही नगरीय विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया है। सड़क और पुलों के निर्माण के लिए 2023 -24 में 10 हजार 182 करोड़ का प्रावधान किया गया है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">इस प्रकार शिवराज सरकार द्वारा पेश किये गए बजट में समाज के सभी वर्गों के हित में घोषणाएं की गयी हैं। प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत ये बजट समाज के सभी वर्गों के लिए लाभकारी और कल्याणकारी है। </span></span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 12px; text-size-adjust: 100%;" /></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-35066991194082312962023-01-16T00:30:00.009-08:002023-01-16T01:58:04.505-08:00 2023 में निवेशकों की पहली पसंद बनेगा मध्यप्रदेश <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5RvP4zItXc1iDR9HngIVH4OyFJ7G122A9fI7D2bGL2FeadcyRtkXL6MbPv7mr_8ypUP44g6LSvv_w9hPvhBMmudLHDdNwGqo7PiclCBhWD4CyZzyk6Iok_WYz8V8S_uS74_SCdKLBUnloZmknd4kWYsGRmCAPTvaAQfx9a74YBVPnn7pld9ri4E0z/s600/gis.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="600" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5RvP4zItXc1iDR9HngIVH4OyFJ7G122A9fI7D2bGL2FeadcyRtkXL6MbPv7mr_8ypUP44g6LSvv_w9hPvhBMmudLHDdNwGqo7PiclCBhWD4CyZzyk6Iok_WYz8V8S_uS74_SCdKLBUnloZmknd4kWYsGRmCAPTvaAQfx9a74YBVPnn7pld9ri4E0z/s320/gis.jpg" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए लगातार कदम उठा रहे हैं जिसका स्पष्ट परिणाम हाल में इंदौर में सम्पन्न जीआईएस समिट के बाद भी दिखाई दे रहा है। 11-12 जनवरी को इंदौर में आयोजित हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 84 देशों के बिजनेस डेलिगेट शामिल हुए जिसमें कुल 10 पार्टनर कंट्री थे। इसके अलावा 35 देशों के दूतावासों के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सेदारी की। दो दिन में 2600 से अधिक मैराथन बैठकों के बाद कुल 36 विदेशी व्यापारिक संगठनों से करारनामे हुए। जी-20 के पार्टनर और अनेक बिजनेस डेलीगेट्स ने इस भव्य आयोजन में चार चाँद लगा दिए। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत मिशन को पूर्ण करने की दिशा में प्रदेश की शिवराज सरकार लगातार काम कर रही है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि वह 2026 तक मध्यप्रदेश को 550 बिलियन डालर की इकोनामी बना देंगे। इस दिशा में वह दिन रात नई ऊर्जा के साथ लगातार काम कर रहे हैं। उनके कुशल नेतृत्व और विजन का परिणाम है , इंदौर में इस भव्य समिट के समाप्त होने के बाद देश और दुनिया से निवेश के प्रस्ताव मिलने प्रारंभ हो गए हैं। सिंगल विंडो सिस्टम होने से निवेशकों को लाभ हो रहा है। प्रदेश में निवेश करने के लिए विश्व के कई देश उत्सुक हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">निवेशकों को आकर्षित करने के लिए शिवराज सरकार की नीतियों का असर दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री चौहान निवेश के माध्यम से प्रदेश के विकास को निर्णायक गति देना चाहते हैं जिसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने निवेश करने वाले उद्योगपतियों के लिए कई रियायतें देने का बड़ा फैसला किया है। सूबे के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है वे उद्योगपतियों की एक पाई भी व्यर्थ नहीं जाने देंगे। संवाद, सहयोग, सुविधा, स्वीकृति, सेतु, सरलता और समन्वय के 7 सूत्रों से उद्योगों को पूर्ण सहयोग की रणनीति अपनाई जाएगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि इस समिट के माध्यम से उद्योगपतियों और निवेशकों द्वारा 15 लाख 42 हजार 550 करोड़ रूपए से अधिक के लागत के उद्योग लगाने के प्रस्ताव मिले हैं, जिनसे 29 लाख लोगों को रोजगार देने की संभावनाओं को साकार किया जा सकेगा। इंटेशन टू इन्वेस्ट के परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश की प्रगति में महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ेगा।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री चौहान ने बताया कि प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 06 लाख 09 हजार 478 करोड़, नगरीय अधोसंरचना में 02 लाख 80 हजार 753 करोड़, खाद्य प्र-संस्करण और एग्री क्षेत्र में 01 लाख 06 हजार 149 करोड़, माइनिंग और उससे जुड़े उद्योगों में 98 हजार 305 करोड़, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में 78 हजार 778 करोड़, केमिकल एवं पेट्रोलियम इंडस्ट्री में 76 हजार 769 करोड़, विभिन्न सेवाओं के क्षेत्र में 71 हजार 351 करोड़, ऑटोमोबाईल और इलेक्ट्रिक व्हीकल के क्षेत्र में 42 हजार 254 करोड़, फार्मास्युटिकल और हेल्थ सेक्टर में 17 हजार 991 करोड़, लॉजिस्टिक एवं वेयर हाऊसिंग क्षेत्र में 17 हजार 916 करोड़, टेक्सटाईल एवं गारमेंट क्षेत्र में 16 हजार 914 करोड़ तथा अन्य क्षेत्रों में 01 लाख 25 हजार 853 करोड़ का निवेश किए जाने के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उद्योगपतियों को अब अपनी कठिनाइयाँ दूर करने के लिए राजधानी भोपाल नहीं आना पड़ेगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने उद्योगपतियों से प्रदेश में उद्योग लगाने एवं निवेश करने का आग्रह करते हुए कहा कि उद्योगों के लिये 24 घंटे में भूमि आवंटित की जाएगी। शिकायतों के निराकरण के लिए इन्वेस्ट एमपी पोर्टल पर समाधान के लिए नई विण्डो प्रारंभ होगी, जो उद्योगपति की समस्या से अवगत करवाएगी। सरकार की एक टीम द्वारा उद्योगपति से सम्पर्क भी किया जाएगा। इसका फॉलोअप मुख्यमंत्री स्तर पर होगा।</span></span><div><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"><br /></span></span></div><div><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"> मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उद्योगपतियों को राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए तीन वर्ष तक किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। उद्योगपतियों को अटकने-भटकने की जरूरत नहीं होगी। इस अवधि में औद्योगिक इकाई का कोई निरीक्षण भी नहीं होगा। प्लग एंड प्ले की सुविधा, जो अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में है, गारमेंट और अन्य उद्योग क्षेत्रों में भी प्रदान की जाएगी। ईज ऑफ डूईंग बिजनेस और सुशासन के द्वारा समस्याओं को हल किया जाएगा।</span></span></div><div><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा आज मध्यप्रदेश विकास की तरफ तेजी से बढ़ा है। प्रदेश की विकास दर देश में सर्वाधिक है। हम तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं और वे मध्य प्रदेश के सीईओ के रूप में सदैव उपलब्ध हैं। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस ग्लोबल समिट से पहले कई राज्यों का दौरा किया और दुनिया के देशों के उद्योगपतियों के साथ वर्चुअल संवाद भी किया। उन्होनें देश भर के निवेशकों से मध्यप्रदेश की बदलती परिस्थितियों का लाभ उठाने का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने विभिन्न देशों के राजदूतों, उच्चायुक्तों, उद्यमियों और निवेशकों की उपस्थिति में बुनियादी इंफ्रास्टक्चर में अग्रणी मध्यप्रदेश के बदलते परिवेश को प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री ने नीतिगत बदलाव के साथ ढांचागत सुविधाओं में व्यापक सुधार की बात सभी को समझाई। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाओं को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री चौहान लगातार पिछले साल से ही उद्योगपतियों से वन-टू-वन मीटिंग कर रहे थे। उनके द्वारा बैंगलुरू और मुंबई में उद्योगपतियों से चर्चा की गई। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए अथक परिश्रम किया इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश की संभावनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश भारत का सबसे तेजी से बढ़ने वाला प्रदेश हैं। मध्यप्रदेश वन संपदा, खनिज संपदा, जल संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है जो अब टाइगर स्टेट, लेपर्ट स्टेट, कल्चर स्टेट और अब चीता स्टेट भी हो गए हैं। उद्योगपतियों का भरोसा जीतने में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान कामयाब हुए हैं। प्रदेश में निवेश आमंत्रित करने के लिए अलग अलग प्रदेशों में हुए मुख्यमंत्री के रोड शो को अच्छी सफलता मिली है। हांगकांग , नार्वे , इजराइल सहित खाड़ी के कई देश प्रदेश में भारी भरकम निवेश के लिए तैयार हो रहे हैं। विदेशी निवेशकों में जिस प्रकार का आकर्षण दिख रहा है उससे साफ हो गया है कि आज विदेशी निवेशक भी मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए उत्साहित हैं। इंदौर में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने राज्य सरकार की सहयोगात्मक नीतियों का जिक्र करते हुए निवेशकों को हरसंभव सहयोग का भरोसा भी दिलाया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">हांगकांग का एपिक ग्रुप 400 करोड़ का निवेश भोपाल में करने जा रहा है। हांगकांग में स्थापित गारमेंट क्षेत्र के अग्रणी समूह एपिक ग्रुप ने भोपाल के निकट 35 एकड़ भूमि पर 400 करोड़ रूपये के निवेश से वर्टिकल फेब्रिक और गारमेंट इकाई की स्थापना पर सहयोग का भरोसा जताया है। इकाई से लगभग 10 हजार व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होंगे।एपिक ग्रुप बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जैसे लिवाइस, अमेजॉन, वॉलमार्ट, नॉटिका आदि को गारमेंट की आपूर्ति करता है। वर्तमान में समूह की इकाइयाँ बांग्लादेश, जॉर्डन, वियतनाम और इथियोपिया में संचालित हैं। समूह बांग्लादेश से अपनी कुछ गतिविधियाँ मध्यप्रदेश में स्थानांतरित करने का इच्छुक है। इसी तरह नॉर्वे पवन और सौर ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश का इच्छुक है। समूह ने छिंदवाड़ा जिले में सौर तथा पवन ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश तथा ग्रीन एनर्जी, नवकरणीय ऊर्जा के संबंध में चर्चा हुई । इस समूह ने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षेत्र में दोनों देशों के साथ मिल कर कार्य करने की इच्छा जताई। इजराइल की कम्पनियों ने भारत में ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट और जल प्रौद्योगिकी में निवेश किया है। मध्यप्रदेश में कृषि के क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों के संचालन और उनमें निवेश के लिए इजराइल की कम्पनियाँ इच्छुक हैं। साथ ही कौशल विकास, स्मार्ट सिटी डेवपलमेंट तथा अधो-संरचना विकास के क्षेत्र में निवेश की भी इच्छुक हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"> सिंगापुर इंडियन चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज प्रतिनिधि-मंडल ने कृषि , प्र-संस्करण, थीम पार्क विकसित करने तथा कौशल उन्नयन के लिए प्रशिक्षण गतिविधियों के विस्तार के बारे में चर्चा की। मेसर्स शाही एक्सपोर्ट्स ने इंदौर के समीप 25 एकड़ भूमि पर 200 करोड़ रूपये के निवेश से रेडीमेड गारमेंट इकाई की स्थापना के संबंध में प्रस्ताव रखा। नेटलिंक स्ट्रेटेजिक सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, अमेरिका की फ्लैश साइंटिफिक टेक्नोलॉजी के साथ मिल कर भोपाल के पास 200 करोड़ के निवेश से सायबर सिटी निर्माण के लिए अपनी इच्छा प्रकट की है। नेटलिंक ने प्रदेश में स्टार्टअप प्रोत्साहन में 25 करोड़ रूपये का निवेश करने की इच्छा जताई है। उन्होंने आकाशीय बिजली के नुकसान को बचाने के लिए तकनीक का पॉयलेट प्रोजेक्ट प्रदेश में क्रियान्वित करने पर भी चर्चा की है ।कमर्शियल रियल एस्टेट के क्षेत्र में कार्यरत जे.एल.एल. समूह द्वारा 5 हजार करोड़ के निवेश से मध्यप्रदेश की तस्वीर बदलगी। परियोजना के लिए विदेश एवं घरेलू संस्थाओं से वित्त पोषण लाने पर भी जीआईएस में चर्चा हुई है। इसी तरह नर्मदा शुगर प्रायवेट लिमिटेड ने प्रदेश में 450 करोड़ के निवेश से एथनॉल प्लांट, कंप्रेस्ड बॉयोगैस प्लांट और राइस ब्रान रिफाइनरी की स्थापना का निर्णय लिया है । कृष्णा फॉस्केम लिमिटेड ने झाबुआ में 200 हेक्टेयर भूमि पर 5100 करोड़ के निवेश से उर्वरक और कृषि रसायन की 7 इकाइयों की स्थापना संबंधी कार्य-योजना पर चर्चा की है वहीँ टेक्समो पाइप्स एण्ड प्रोडक्ट्स लिमिटेड ने पीथमपुर में 130 करोड़ की लागत से 18 एकड़ भूमि पर एथनॉल संयंत्र की परियोजना को लेकर अपनीरुचि दिखाई है। आबूधाबी की ई-20 इन्वेस्टमेंट लिमिटेड ने स्ट्राबेरी, ब्लू-बेरी की खेती, उनके प्र-संस्करण तथा वैश्विक स्तर पर वितरण के संबंध में प्रस्ताव दिया है और भूमि आवंटित करने का निवेदन किया है ।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को मध्यप्रदेश साकार करेगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में विश्व के देशों को भारत ही दिग्दर्शन कराएगा। मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए अनेक क्षेत्रों में प्रधानमंत्री की आशाएँ और अपेक्षाएँ हैं, जिन्हें गंभीरता से पूरा किया जाएगा। मध्यप्रदेश औद्योगिक प्रगति के रनवे पर रफ्तार बढ़ा चुका है, हम अब टेक ऑफ कर रहे हैं। प्रदेश सरकार ने राज्य के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। शिवराज सरकार की बेहतर नीतियों के कारण आज निवेशक मध्यप्रदेश को उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे हैं। प्रदेश में आज बेहतरीन इंफ्रास्टक्चर है। बिजली, सड़क , पानी रेल , एयर कनेक्टिविटी और 5 जी तकनीक का बेहतर नेटवर्क तैयार किया गया है। प्रदेश में लगने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के साथ रोजगार दिया जा रहा है। कानून व्यवस्था के मामले में भी प्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय कार्य किया है। अब मध्यप्रदेश शांति का टापू है। प्रदेश में व्यापार के लिए अनुकूल वातावरण सृजित हुआ है। मध्यप्रदेश विकास के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इच्छाशक्ति व संकल्प के चलते प्रदेश में निवेश करने के लिए निवेशक आकर्षित हो रहे हैं तथा प्रदेश निवेशकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। प्रदेश में वर्तमान समय में विकास के कई कार्य प्रगति पर हैं जिसके लिए निवेश की जरूरत है और अब सरकार उसमें लगातार आगे बढ़ रही है। जीआईएस 2023 मध्यप्रदेश के विकास के लिए सही मायनों में एक मील का पत्थर साबित हुई है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से मध्यप्रदेश में अभूतपूर्व निवेश की संभावनाएं बन रही हैं। इससे प्रदेश के युवाओं को विविध क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे। भारत को जी -20 की अध्यक्षता मिलने के बाद मध्यप्रदेश के इंदौर जैसे शहरों में भी इस समूह की बड़ी बैठकें इस वर्ष आयोजित होंगी। ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। जनवरी के अंत में मध्यप्रदेश में खेलो इंडिया का आयोजन भी होने जा रहा है। इस आयोजन से मध्यप्रदेश के पास खुद को खेलों के बड़े हब के रूप में प्रस्तुत करने का बेहतरीन मौका मिलेगा। इससे मध्यप्रदेश को देश और दुनिया में नई पहचान मिलेगी। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; text-size-adjust: 100%;"> इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टमेट समिट के शानदार आयोजन से विदेशी निवेशक ही नहीं अपितु स्वदेशी कंपनियां भी उत्साहित हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के सफल आयोजन होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तमाम उद्योगपतियों का आभार जताया है। अगर ये सब कोशिशें परवान चढ़ी तो उद्योगों को वैश्विक और घरेलू बाजार तक पहुंच बनाने में लाजिस्टिक्स की सुलभता में वृद्धि होगी। त्वरित गति से उद्योगों की स्थापना के लिए 24 घंटे में जमीन देने के मुख्यमंत्री चौहान के फैसले की उद्योगपतियों ने दिल खोलकर सराहना की है। जीआईएस में तमाम उद्योगपतियों के निवेश के माध्यम से वर्ष -2023 मध्यप्रदेश के लिए भी मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। </span></span></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-30140307418989062222023-01-12T05:26:00.000-08:002023-01-12T05:26:19.475-08:00 युवा शक्ति के प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdZcUR6WWZdkXA7thzsZSqAcyZMfzLT7NRQ3RV41LSwDlPE6CgRZlasZhRTubM9w042zT3d6XGLFRGGKHtWibsnYzaMjhl7h8qMrN1_rdooH_JHxQsSpf7G6f_aM4j093uZlqN64v8f-H_4iQ-jhWLUpX5iOjJwWCFlajqFy4fC8aC5rfHyteBNeqW/s750/VIVEKANAND.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="750" data-original-width="551" height="345" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdZcUR6WWZdkXA7thzsZSqAcyZMfzLT7NRQ3RV41LSwDlPE6CgRZlasZhRTubM9w042zT3d6XGLFRGGKHtWibsnYzaMjhl7h8qMrN1_rdooH_JHxQsSpf7G6f_aM4j093uZlqN64v8f-H_4iQ-jhWLUpX5iOjJwWCFlajqFy4fC8aC5rfHyteBNeqW/w379-h345/VIVEKANAND.jpg" width="379" /></a></div><p><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: x-large;"><br /></span></p><p><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;"><span style="font-size: large;">विवेकानन्द जिन्हें उस दौर में नरेन्द्रनाथ नाम से पुकारा जाता था एक ऐसा नाम है जिन्होंने करिश्माई व्यक्तित्व के किरदार को एक दौर में जिया। आज भी लोग गर्व से उनका नाम लेते हैं और युवा दिलों में वह एक आयकन की भांति बसते हैं। इतिहास के पन्नों में विवेकानंद का दर्शन उन्हें एक ऐसे महाज्ञानी व्यक्तित्व के रूप में जगह देता है जिसने अपने ओजस्वी विचारों के द्वारा दुनिया के पटल पर भारत का नाम बुलंदियों के शिखर पर पहुँचाया। उनके द्वारा दिया गया वेदान्त दर्शन भारतीय दर्शन की एक अनमोल धरोहर है। अपने गुरु के नाम पर विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन तथा रामकृष्ण मठ की स्थापना की। विश्व में भारतीय दर्शन विशेषकर वेदांत और योग को प्रसारित करने में विवेकानंद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, साथ ही ब्रिटिश भारत के दौरान राष्ट्रवाद को अध्यात्म से जोड़ने में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।</span></span></p><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में विश्वनाथ और भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। बचपन में नरेन्द्रनाथ नाम से जाने जाने वले विवेकानंद काफी चंचल प्रवृति के थे । उनकी माता भगवान की अनन्य उपासक थी लिहाजा माँ के सानिध्य में वह भी ईश्वर प्रेमी हो गए। बचपन में विवेकानंद की माँ इन्हें रामायण की कहानी सुनाती थी तो इसको यह बड़ी तन्मयता से सुनते थे। रामायण में हनुमान के चरित्र ने उस दौर में इनके जीवन को खासा प्रभावित किया साथ ही अपनी माँ की तरह वह भी शिवशंकर के अनन्य भक्त हो गए । कई बार वह शिव से सीधा साक्षात्कार करते मालूम पड़ते थे और अपनी माँ से कहा करते कि उनमे शंकर का वास है। यह सब सुनकर इनकी माँ चिंतित हो उठती कि उनका यह बेटा कहीं बाबा सन्यासी ना बन जाए। बचपन से ही नरेन्द्रनाथ पढ़ाई लिखाई में रूचि लेने लगे। पढ़ाई में यह अव्वल दर्जे के छात्र थे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है जो चीज एक बार यह पढ़ लेते उसे कभी भूलते नहीं थे। युवावस्था में उन्हें पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास के कारण गहरे द्वद से गुज़रना पड़ा। परमहंस जी जैसे जौहरी ने रत्न को परखा। उन दिव्य महापुरुष के स्पर्श ने नरेन्द्र को बदल दिया। इसी समय उनकी भेंट अपने गुरु रामकृष्ण से हुई, जिन्होंने पहले उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है। रामकृष्ण ने सर्वव्यापी परमसत्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अनुभूति पाने में नरेंद्र का मार्गदर्शन किया और उन्हें शिक्षा दी कि सेवा कभी दान नहीं, बल्कि सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना होनी चाहिए। यह उपदेश विवेकानंद के जीवन का प्रमुख दर्शन बन गया। उस शक्तिपात के कारण कुछ दिनों तक नरेन्द्र उन्मत्त-से रहे। उन्हें गुरु ने आत्मदर्शन करा दिया था। 25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्रदत्त ने भगवा वस्त्र को धारण किया । अपने गुरु से प्रेरित होकर नरेंद्रनाथ ने सन्यासी जीवन बिताने की दीक्षा ली और स्वामी विवेकानंद के रूप में दुनिया में जाने गए। जीवन के आलोक को जगत के अन्धकार में भटकते प्राणियों के समक्ष उन्हें उपस्थित करना था। स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की।गुरुजनों के प्रति इनका सम्मान उस दौर में भी देखते ही बनता था। बड़े होने पर भी गुरु से इनका लगाव बना रहा। विवेकानंद का मानना था कि जीवन में सफल होने के लिए अच्छा गुरु मिलना जरुरी है क्युकि गुरु ही अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले जाता है। बचपन से ही गुरु के अलावे आध्यात्मिक चीजों की तरफ इनका झुकाव हो गया और इसी दौरान मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई जिन्होंने इन्हें अपना मानस पुत्र घोषित कर दिया । परमहंस की दी हुई हर शिक्षा को विवेकानंद ने अपने जीवन में ना केवल उतारा बल्कि लोगो को भी इसके जरिये कई सन्देश दिए जिसने आगे बदने की राह खोली । </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">11 सितंबर सन् 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। अमेरिका ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा। स्वामी विवेकानन्द ने वहाँ भारत और हिन्दू धर्म की भव्यता स्थापित करके ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा।11 सितम्बर 1893 का दिन इतिहास में अमर है। इस दिन अमेरिका में विश्व धर्म सम्मलेन का आयोजन किया जिसमे दुनिया के कोने कोने से लोगो ने शिरकत की। उस दौर में भारत के प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर थी। गेरुए कपडे पहने विवेकानन्द ने अपनी वाणी से वहां पर मौजूद जनसमुदाय को मंत्र मुग्ध कर दिया। जहाँ सभी अपना भाषण लिखकर लाये थे वहीँ विवेकानंद ने अपना मौखिक भाषण दिया। दिल से जो निकला वही बोला और जनसमुदाय के अंतर्मन को मानो झंकृत ही कर डाला। उनके शालीन अंदाज ने लोगों को उन्हें सुनने को मजबूर कर दिया। धर्म की व्याख्या करते हुए वह बोले जैसे सभी नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती है वैसे ही दुनिया में अलग अलग धर्म अपनाने वाले मनुष्य को एक न एक दिन ईश्वर की शरण में जाकर ही लौटना पड़ता है। 'सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका' के संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते ही 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। 17 सितम्बर 1893 को शिकागो में धर्म सभा में उन्होंने भारत को "हिन्दू राष्ट्र " के नाम से सम्बोधित किया और स्वयं के "हिन्दू होने पर गर्व " महसूस किया। उन्होंने सभा को बताया हिन्दू धर्म पर प्रबंध ही हिन्दुत्व की राष्ट्रीय परिभाषा है। इसे समझने पर हमें हमारे विशाल देश की बाहरी विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। शिकागो से वापसी पर उन्होंने कहा केवल अंध देख नहीं पाते और विक्षिप्त बुद्धि समझ नहीं पाते कि यह सोया देश अब जाग उठा है।अपने पूर्व गौरव को प्राप्त करने के लिए इसे अब कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने सभी हिन्दुओं को सब भेदों से ऊपर उठकर अपनी राष्ट्रीय पहचान पर गर्व करने का ककहरा ना केवल सुनाया बल्कि दुनिया में भारत के नाम के झंडे गाड़ दिए । विवेकानंद ने वहाँ एकत्र लोगों को सभी मानवों की अनिवार्य दिव्यता के प्राचीन वेदांतिक संदेश और सभी धर्मों में निहित एकता से परिचित कराया। शिकागो में दिये गए उनके व्याख्यानों से एक नए अभियान की शुरुआत हुई जो सुधार के उद्देश्य से आज भी हर किसी के दिल में बसा है। उन्होंने न्यूयॉर्क में लगभग दो वर्ष व्यतीत किये जहाँ वर्ष 1894 में पहली ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की। उन्होंने पूरे यूरोप का व्यापक भ्रमण किया तथा मैक्स मूलर और पॉल डूसन जैसे मनीषियों से संवाद किया साथ ही भारत में अपने सुधारवादी अभियान के आरंभ से पहले निकोला टेस्ला जैसे प्रख्यात वैज्ञानिकों के साथ तर्क-वितर्क भी किये।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">विवेकानंद का विचार है कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं, जो उनके आध्यात्मिक गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के आध्यात्मिक प्रयोगों पर आधारित है। परमहंस रहस्यवाद के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखते हैं, जिनके आध्यात्मिक अभ्यासों में यह विश्वास निहित है कि सगुण और निर्गुण की अवधारणा के साथ ही ईसाईयत और इस्लाम के आध्यात्मिक अभ्यास आदि सभी एक ही बोध या जागृति की ओर ले जाते हैं।शिकागो के अपने प्रवास के दौरान स्वामी विवेकानंद ने तीन चीजों पर जोर दिया। पहला, उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा न केवल सहिष्णुता बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करने में विश्वास रखती है। दूसरा, उन्होंने स्पष्ट और मुखर शब्दों में इस बात पर बल दिया कि बौद्ध धर्म के बिना हिंदू धर्म और हिंदू धर्म के बिना बौद्ध धर्मं अपूर्ण है। तीसरा, यदि कोई व्यक्ति केवल अपने धर्म के अनन्य अस्तित्व और दूसरों के धर्म के विनाश का स्वप्न रखता है तो मैं ह्रदय की गहराइयों से उसे दया भाव से देखता हूँ और उसे इंगित करता हूँ कि विरोध के बावजूद प्रत्येक धर्म के झंडे पर जल्द ही संघर्ष के बदले सहयोग, विनाश के बदले सम्मिलन और मतभेद के बजाय सद्भाव व शांति का संदेश लिखा होगा।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">जिस समय शिकागो में 1893 में धर्म सम्मेलन हुआ ,उस समय पाश्चात्य जगत भारत को हीन दृष्टि से देखता था । वहां के लोगों ने बहुत प्रयास किया कि विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही ना मिले, मगर एक अमेरिकी प्रोफ़ेसर के प्रयास से उन्हें थोडा समय मिला। भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा कहकर स्वामी जी ने पुन: भारत को विश्व गुरु पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। गुरुदेव रविंदर नाथ टैगोर ने विवेकानन्द के बारे में कहा है यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। मद्रास की एक सभा को संबोधित करते हुए स्वामीजी ने कहा भारत की समस्या अन्य देशों की समस्याओं की तुलना से ज्यादा पेचीदा है। जात, धर्म, भाषा, सरकार ये सब मिलकर राष्ट्र बनता है। फिर भारत जैसे राष्ट्र का एक अनोखा इतिहास है जहां आर्य, द्रविड़, मुसलमान मुगल एवं यूरोपीय साथ-साथ बसते हैं बावजूद हमारे में एक पवित्र बंधन, पवित्र परम्परा रह 1894 में न्यूयार्क में उन्होंने वेदांत सोसाईटी बनाई। सन् 1896 तक वे अमेरिका रहे। उन्हीं का व्यक्तित्व था, जिसने भारत एवं हिन्दू-धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेशों में जागृत किया। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- 'मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।'</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">जीवन के अंतिम पडाव पर परमहंस सरीखे गुरु ने जब विवेकानंद को अपने पास बुलाया और कहा अब मेरे जाने की घड़ी आ गई है तो विवेकानंद बड़े भावुक हो गए लेकिन परमहंस गुरु ने जनसेवा का जो गुरुमंत्र इन्हें दिया उसका प्रचार , प्रसार विवेकानंद ने देश , दुनिया में किया। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वयं को हिमालय में चिंतनरूपी आनंद सागर में डुबाने की चेष्टा की, लेकिन जल्दी ही वह इसे त्यागकर भारत की कारुणिक निर्धनता से साक्षात्कार करने और देश के पुनर्निर्माण के लिए समूचे भारत में भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा। इन छ्ह वर्षों के भ्रमण काल में वह राजाओं और दलितों, दोनों के अतिथि रहे। उनकी यह महान यात्रा कन्याकुमारी में समाप्त हुई, जहाँ ध्यानमग्न विवेकानंद को यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ओर रुझान वाले नए भारतीय वैरागियों और सभी आत्माओं, विशेषकर जनसाधारण की सुप्त दिव्यता के जागरण से ही इस मृतप्राय देश में प्राणों का संचार किया जा सकता है।विवेकानंद युवा तरुणाई पर भरोसा करते थे और ऐसा मानते थे अगर कुछ नौजवान उनको मिल जाएँ तो वह पूरी मानव जाति की सोच को बदल सकते हैं । उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमु्ख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं। उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है।स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार रहना होगा, विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करते हैं। देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है। ऐसे माहौल में विवेकानंद का जीवन दर्शन युवाओ को एक नई राह दिखा सकता है। विवेकानंद जी के विचारों में वह तेज है जो सारे युवाओं को नई दिशा दे सकता है। वह आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने सनातन धर्म को गतिशील तथा व्यावहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने किया शायद यही वजह है भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">स्वामी विवेकानंद का मानना है कि भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा तथा सम्मान को शिक्षा द्वारा ही वापस लाया जा सकता है। किसी देश की योग्यता तथा क्षमता में वृद्धि उस देश के नागरिकों के मध्य व्याप्त शिक्षा के स्तर से ही हो सकती है। स्वामी विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थी की आत्मोन्नति हो और जो उसके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके। साथ ही शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिसमें विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति में आत्मनिर्भर तथा चुनौतियों से निपटने में स्वयं सक्षम हों। विवेकानंद ऐसी शिक्षा पद्धति के घोर विरोधी थे जिसमें गरीबों एवं वंचित वर्गों के लिये स्थान नहीं था।स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब हम अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ निराशा का माहौल देखा जा सकता था । उन्होंने भारत के सोए हुए जनमानस को जगाया और उनमें नई उमंग का संचार किया।विवेकानंद वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बहुत महत्व देते थे। वह शिक्षा और ज्ञान को आस्था की कुंजी मानते हैं। 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था 'जगत में बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो चुकी हैं। हम भी महान विजेता रह चुके हैं। हमारी विजय की गाथा को महान सम्राट अशोक ने धर्म और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया है और अब समय आ गया है भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे। यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूं कि तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बातें सुन रहा है, अपने-अपने मन में उसका पोषण करे और कार्यरूप में परिणत किए बिना न छोड़ें। विवेकानंद के अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो पुस्तकों में है, न ही धार्मिक सिद्धांतों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है। विवेकानंद ने धार्मिक आडंबर पर चोट की तथा ईश्वर की एकता पर बल दिया। संसार में कोई धर्म न बड़ा है और ना ही छोटा । इस तरह उन्होंने यह कहा संसार के सभी धर्म समान है उनमे किसी भी तरह का भेद नहीं है । इस प्रकार उन्होंने अपने ओजस्वी विचारों के जरिये हिंदुत्व की नई परिभाषा उस दौर में गढ़ने का काम किया ।प्रसिद्ध भारतीय साहित्य के प्रथम नोबलिस्ट गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर भी विवेकानंद से प्रभावित थे। उन्होंने कहा था यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं। भारत को विदेशों में प्रतिष्ठा दिलाने में विवेकानंद प्रथम थे। आधुनिक काल में पश्चिमी विश्व में राष्ट्रवाद की अवधारणा का विकास हुआ लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद प्रमुख रूप से भारतीय अध्यात्म एवं नैतिकता से संबद्ध है। भारतीय संस्कृति के प्रमुख घटक मानववाद एवं सार्वभौमिकतावाद विवेकानंद के राष्ट्रवाद की आधारशिला माने जा सकते हैं। पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रस है। उनके लेखों और उद्धरणों से यह इंगित होता है कि भारत माता एकमात्र देवी हैं जिनकी प्रार्थना देश के सभी लोगों को सहृदय से करनी चाहिये।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">विवेकानंद के शब्दों में “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है।” इस प्रकार विवेकानंद ने गरीबी को ईश्वर से जोडकर दरिद्रनारायण की अवधारणा दी ताकि इससे लोगों को वंचित वर्गों की सेवा के प्रति जागरूक किया जा सके और उनकी स्थिति में सुधार करने हेतु प्रेरित किया जा सके। उन्होंने गरीबी और अज्ञान की समाप्ति पर बल दिया तथा गरीबों के कल्याण हेतु कार्य करना राष्ट्र सेवा बताया। किंतु विवेकानंद ने वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार करने के लिये वर्ण व्यवस्था को भी स्वीकृति दी। हालाँकि वे अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। महात्मा गांधी द्वारा सामाजिक रूप से शोषित लोगों को 'हरिजन' शब्द से संबोधित किये जाने के वर्षों पहले ही स्वामी विवेकानंद ने 'दरिद्र नारायण' शब्द का प्रयोग किया था जिसका आशय था कि 'गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।‘ वस्तुतः महात्मा गांधी ने यह स्वीकार भी किया था कि भारत के प्रति उनका प्रेम विवेकानंद को पढ़ने के बाद हज़ार गुना बढ़ गया। स्वामी विवेकानंद के इन्हीं नवीन विचारों और प्रेरक आह्वानों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए उनके जन्मदिवस को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ घोषित किया गया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">उनसे प्रभावित पश्चिमी लेखक रोमां रोलां का यह कथन रोमांचित करता है‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम हुए। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी। स्वामी विवेकानंद के उपदेशात्मक वचनों में कहते थे “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।”इसके माध्यम से उन्होंने देशवासियों को अंधकार से बाहर निकलकर ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी थी ।भारत वर्ष के सन्दर्भ में उन्होंने कहा भारत पवित्र भूमि है,भारत मेरा तीर्थ है,भारत मेरा सर्वस्व है,भारत की पुण्य भूमि का अतीत गौरवमय है यही वह भारत वर्ष है जहाँ मानव,प्रकृति एवं अंतर्जगत की रहस्यों की जिज्ञासाओं के अंकुर पनपे थे। उन्होंने कहा था चिंतन मनन कर राष्ट्र चेतना जाग्रत करो लेकिन आध्यात्मिकता का आधार न छोडो | उनका मत था कि पाश्चात्य जगत का अमृत हमारे लिए विष हो सकता है। युवाओं का आह्वान करते हुए स्वामी जी कहा करते थे भारत के राष्ट्रीय आदर्श सेवा व त्याग हैं। नैतिकता ,तेजस्विता,कर्मण्यता का अभाव न हो। उपनिषद ज्ञान के भंडार हैं ,उनमे अद्भुत ज्ञान शक्ति है ,उसका अनुसरण कर अपनी निज पहचान व राष्ट्र का अभिमान स्थापित करो। स्वामी विवेकानंद ने बार-बार कहा कि भारत के पतन का कारण धर्म नहीं है अपितु धर्म के मार्ग से दूर जाने के कारण ही भारत का पतन हुआ है जब जब हम धर्म को भूल गए तभी हमारा पतन हुआ है और धर्म के जागरण से ही हम पुनह नवोत्थान की और बढे हैं | वहीँ 1900 की शुरुवात में सेन फ्रांसिस्को में भी इसकी एक शाखा खोली ।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">वर्ष 1897 में विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन ने भारत में शिक्षा और लोकोपकारी कार्यों जैसे- आपदाओं में सहायता, चिकित्सा सुविधा, प्राथमिक और उच्च शिक्षा तथा जनजातियों के कल्याण पर बल दिया। इस दरमियान धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए कई दौरे भी किये जहाँ अपने वेदांत दर्शन के जरिये उन्होंने लोगो की सोच बदलने का काम सच्चे अर्थो में किया । विवेकानन्द के द्वारा दिया गया वेदान्त दर्शन एक अनमोल धरोहर है । वेदांत दर्शन उपनिषद् पर आधारित है तथा इसमें उपनिषद् की व्याख्या की गई है। वेदांत दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा पर बल दिया गया है, जो उपनिषद् का केंद्रीय तत्त्व है। इसमें वेद को ज्ञान का परम स्रोत माना गया है, जिस पर प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता। वेदांत में संसार से मुक्ति के लिये त्याग के स्थान पर ज्ञान के पथ को आवश्यक माना गया है और ज्ञान का अंतिम उद्देश्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">विवेकानन्द एक कर्मशील व्यक्ति थे और अपने विचारों के जरिये उन्होंने समाज के सोये जनमानस को जगाने का काम किया । वह मानते थे प्रत्येक व्यक्ति में अच्छे आदर्शो और भाव का समन्वय होना जरुरी है साथ ही शिक्षा को परिभाषित करते हुए यह कहा अपने पैरो पर खड़ा होने जो चीज सिखाये वह शिक्षा है । स्वामी विवेकानन्द का लक्ष्य समाज सेवा, जनशिक्षा, धार्मिक पुनरूत्थान और शिक्षा के द्वारा जागरुकता लाना, मानव की सेवा आदि था। उन्होंने ऐसे भारत की कल्पना की जो अंध विश्वास, पाखंड, अकर्मण्यता, जड़ता और आधुनिक सनक और कमजोरियों से स्वतंत्र होकर आगे बढ़ सके। विवेकानन्द ने वेदांत को नया रूप देकर उसे मोक्ष में बदलने का काम सही मायनों में करके दिखाया ।शिक्षा मनुष्य को मानव बनाने की प्रक्रिया है या यह कहा जाये कि मनुष्य को मानव बनाने का दायित्व शिक्षा पर है। शिक्षा की व्यवस्थागत प्रक्रिया से निकलकर ही बालक एक वयस्क के रूप में समाज में अपना स्थान और स्तर निर्धारित करता है। व्यक्तित्व और समाज की आवश्यकता के अनुसार बालक को शिक्षित और सभ्य बनाने का अहम कार्य शिक्षा व्यवस्था से ही अपेक्षित होता है।स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है’। मानव निर्माण को शिक्षा का मूल उद्देश्य मानने वाले स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन परम्परागत और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का अद्भुत समन्वय है। स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने के समर्थक स्वामी विवेकान्द शिक्षा में किसी भी प्रकार के भेदभाव के विरुद्ध थे। वे इस सत्य को भली-भांति जानते थे कि यदि शिक्षा ग्रहण करने का अवसर अगर कुछ लोगों तक ही सीमित हो या किसी भी कारण से समाज का बड़ा हिस्सा शिक्षा की प्राप्ति से वंचित रह गया तो देश का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पायेगा। उनके विचार में शिक्षा का प्रसार देश के कारखानों, खेल के मैदानों और खेतों, यहाँ तक कि देश में हर घर में होना चाहिए। यदि बच्चे स्कूल तक नहीं आ पा रहे हैं तो शिक्षकों को उन तक पहुँचना चाहिए।विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा समाज के निर्धनतम व्यक्ति को भी प्राप्त होनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने आम जनता के जीवन की परिस्थितियाँ सुधारने के लिए शिक्षा का समर्थन किया। उनके अनुसार आम जनता को प्राप्त होनेवाली इस सार्वभौमिक शिक्षाका उद्देश्य व्यक्तिगत प्रगति के साथ सामाजिक विकास को सुनिश्चित करना है।स्वामी विवेकानंद ने महिला शिक्षा पर विशेष बल दिया। समाज में कई अवसरों पर स्वामी विवेकानंद ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जब तक महिलाओं को अपने देश में यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं हो जाता भारत प्रगति नहीं कर सकता। उनके अनुसार महिलाओं को सुशील, चरित्रवान, निडर और शक्तिशाली व्यक्तित्व के रूप में विकसित करना शिक्षा का उद्देश्य है। उनके विचार में महिला न केवल पुरुष के समान योग्य है बल्कि वह घर-परिवार में भी बराबर की भागीदारी रखती है उसे किसी दृष्टि से पुरुष से हीन नहीं कहा जा सकता। उन्होंने महिला शिक्षा और महिला-पुरुष समानता पर भी बल दिया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">स्वामी विवेकानंद ने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाने वाली प्रणाली के महत्व को स्वीकार किया। भौतिकता और पश्चिमी अंधानुकरण के कारण मातृभाषा की अवहेलना कर अंग्रेजी को बालमन पर थोपा जाता है। मातृभाषा का घर-परिवार और समाज में अधिकतम प्रयोग किया जाता है ऐसे में स्वाभाविक है कि किसी विदेशी भाषा को रटने की बजाय मातृभाषा के माध्यम से ही बालक दीर्घकालीन और अधिकतम ज्ञान प्राप्त कर सकता है। बालक मातृभाषा के माध्यम से ही रचनात्मक और कलात्मक विचारों का प्रसार समाज में कर सकता है।रचनात्मकता विरोधी, संस्कार विरोधी तथा अव्यवहारिक मैकालेवादी शिक्षा व्यवस्था से स्वामी विवेकानंद बेहद असंतुष्ट थे क्योंकि उनकी दृष्टि में यह शिक्षा भारत के नागरिकों के लिए व्यावहारिक और उपयोगी नहीं थी। अंग्रेजी शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य भारत अथवा भारतीयों का हित करना नहीं बल्कि भारत पर अंग्रेजों के शासन को स्थायी रखने के लिए भारतीयों में से ही क्लर्क खोजना था। उनके विचार में मैकालेवादी शिक्षा व्यवस्था व्यक्ति को आत्म-निर्भर न बनाकर दूसरे पर निर्भर बनाती है और उसके आत्मविश्वास को समाप्त कर देती है। इससे भी बढ़कर अंग्रेजी शिक्षा का मूल्य-विरोधी स्वरूप, व्यक्ति के धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों को समाप्त कर उसे एक नकारात्मक व्यक्तित्व के रूप में परिणत कर देता है। इसलिए विवेकानंद जी अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली में भारतीय दृष्टिकोण और सामाजिक आदर्शों के अनुसार आमूल-चूल परिवर्तन के इच्छुक थे। नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों से विहीन शिक्षा प्रणाली किसी भी समाज को अवनतिकी ओर ले जा सकती है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">स्वामी विवेकानंद ने इसलिए अनिवार्य रूप से शिक्षा में गीता, उपनिषद और वेद में निहित नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश की आवश्यकता पर बल दिया। उनके लिए धर्म, कर्मकांड अथवा धार्मिक रीति -रिवाज नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिए आत्मज्ञान तथा आत्मबोध का कारक है। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार वास्तविक धर्म किसी समाज, जाति, नस्ल, वंश, स्थान और समय तक सीमित नहीं है बल्कि उसका लक्ष्य सामाजिक कल्याण है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार नैतिकता और धर्म एक ही हैं और इन मूल्यों से ओतप्रोत शिक्षा विद्यार्थियों का सर्वांगींण विकास करने में सहायक है। मन और शरीर दोनों को विकसित करने के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद का विचार था कि बिना स्वस्थ शरीर के आत्म बोध या चरित्र निर्माण संभव नहीं है। इसलिए स्वामी विवेकानंद ने पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा को विशेष रूप से शामिल करने पर बल दिया। उन्होंने युवा वर्ग से आह्वान किया कि वे गीता पाठ करने की अपेक्षा फुटबॉल खेलने से स्वर्ग के अधिक नजदीक पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि बलवान शरीर और मजबूत पुट्ठोँ से युवा वर्ग गीता को भी बेहतर ढंग से समझ सकेगा। मनुष्य का वास्तविक और सर्वांगीण विकास तभी माना जाएगा जब मन और तन दोनों से न केवल स्वस्थ हो, बल्कि समाज में सकारात्मक योगदान भी करे। स्वामी विवेकानंद के शिक्षा सम्बन्धी विचारों में प्राचीन भारतीय मूल्यों, आदर्शों और आधुनिक पश्चिमी मान्यताओं का समावेश है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति और व्यक्तित्व निर्माण है। व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए स्वामी विवेकानंद ने शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक और व्यावसायिक विकास के साथ भेदभाव रहित शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच का समर्थन किया। उन्होंने व्यावहारिक और आधुनिक दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, उद्योग और विज्ञान से जुड़ी पश्चिमी शिक्षा को भी महत्व दिया।4 जुलाई 1902 को उनका देहावसान हो गया । विवेकानन्द को आज हम इस रूप में याद करे कि उनके द्वारा दिया गया दर्शन हम अपने में आत्मसात करें, साथ ही अपने जीवन में कर्म को प्रधानता दें तो कुछ बात बनेगीं । बेहतर होगा युवा पीढ़ी उनके विचारों से कुछ सीखे और उनको आयकन बनाने के बजाए उनकी शिक्षा को अपने में उतारे और प्रगति पथ पर चले ।</span><br /> </span><p></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-24774519651537670582023-01-06T05:39:00.000-08:002023-01-06T05:39:27.520-08:00प्रवासियों और उद्योगपतियों के इस्तकबाल को तैयार है देश का दिल मध्यप्रदेश<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3bim28g_9BJbX8EKfYrDZA2EmpnOPO8tvBvtnd92uE54S0WgN2JsGLaryPMdm908Pf07STQ86sxMJlon2bKrfglu4oRxikFccKc6rhmrG2ARuYjWuGbbbsyIZrNNlw5r5o1IgVa7Bsg7AtWM_Tp33INRuIQ4JPLE8GrmuAiZhNQdQGh9EgtkTSqM6/s730/pravasi%20bharteey%20divas.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="548" data-original-width="730" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3bim28g_9BJbX8EKfYrDZA2EmpnOPO8tvBvtnd92uE54S0WgN2JsGLaryPMdm908Pf07STQ86sxMJlon2bKrfglu4oRxikFccKc6rhmrG2ARuYjWuGbbbsyIZrNNlw5r5o1IgVa7Bsg7AtWM_Tp33INRuIQ4JPLE8GrmuAiZhNQdQGh9EgtkTSqM6/w405-h240/pravasi%20bharteey%20divas.jpg" width="405" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /><br /></span><p></p><p><span style="font-size: large;"><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">देश के विकास में भारतवंशियों के योगदान पर गौरवान्वित होने के लिए हर साल 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।इस बार 9 जनवरी 2023 को प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन मध्यप्रदेश की धरती इंदौर में होने जा रहा है, जो पूरे प्रदेश के लिए गौरव और सौभाग्य की बात है। देश का सबसे साफ शहर इंदौर सभी प्रवासी भारतीयों का स्वागत करने के लिए आतुर है। इंदौर समेत पूरे मध्यप्रदेश को मेहमाननवाजी का सुनहरा अवसर मिला है। देश का दिल मध्यप्रदेश है और इंदौर अपने स्वागत-सत्कार और संस्कृति से सभी अतिथियों का दिल जीतने का बेसब्री से इन्तजार कर रहा है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />सबसे पहले प्रवासी भारतीय दिवस वर्ष 2003 में मनाया गया था। वर्ष 1915 की 9 जनवरी को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आए थे। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन आयोजित करने का प्रमुख उद्देश्य भी प्रवासी भारतीय समुदाय की उपलब्धियों को दुनिया के सामने लाना है ताकि दुनिया को उनकी ताकत का अहसास हो सके। देश के विकास में भारतवंशियों का योगदान अविस्मरणीय है। वर्ष 2015 के बाद से हर दो साल में एक बार प्रवासी भारतीय दिवस देश में मनाया जा रहा है। अप्रवासी भारतीयों का नेटवर्क दुनिया भर में फैला है।प्रवासी भारतीय दिवस मनाने का निर्णय एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा स्थापित भारतीय डायस्पोरा पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुसार लिया गया था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी ने 8 जनवरी 2002 को नई दिल्ली में विज्ञान भवन में एक सार्वजनिक समारोह में 9 जनवरी 2002 को प्रवासी भारतीय दिवस को व्यापक स्तर पर मनाने की घोषणा की। इस आयोजन ने प्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच को सही मायनों में बदलने का काम किया है। साथ ही इसने प्रवासी भारतीयों को देशवासियों से जुड़ने का एक अवसर उपलब्ध करवाया है। इसके माध्यम से दुनिया भर में फैले अप्रवासी भारतीयों का बड़ा नेटवर्क बनाने में भी मदद मिली है, जिससे भारतीय अर्थ-व्यवस्था को भी एक गति मिली है। हमारे देश की युवा पीढ़ी को भी जहाँ इसके माध्यम से विदेशों में बसे अप्रवासियों से जुड़ने में मदद मिली है वहीँ विदेशों में रह रहे प्रवासियों के माध्यम से देश में निवेश के अवसरों को बढ़ाने में सहयोग मिल रहा है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />प्रवासी भारतीय समुदाय को भारत से जोड़ने में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भूमिका उल्लेखनीय रही है। वह अपने विदेशी दौरों में जिस भी देश में जाते हैं वहाँ के प्रवासी भारतीयों के बीच भारत की एक अलग पहचान लेकर जाते हैं। इससे उनमें अपनेपन की भावना का अहसास होता है और प्रवासी भारतीय भारत की ओर आकर्षित होते हैं। विश्व में विदेशों में जाने वाले प्रवासियों की संख्या के संदर्भ में भारत शीर्ष पर है। भारत सरकार ‘ब्रेन-ड्रेन’ को ‘ब्रेन-गेन’ में बदलने के लिये तत्परता के साथ काम कर रही है। आर्थिक अवसरों की तलाश के लिये सरकार इनको अपने देश की जड़ों से जोड़ने का प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन में प्रवासी जिस उत्साह के साथ जुटते हैं वह इस बात को साबित करता है कि प्रवासी प्रधानमंत्री के नेतृत्व को उम्मीदों भरी नज़रों से देखते हैं और उनसे उनको बड़ी उम्मीदें हैं। भारतीय प्रवासियों की तादाद दुनिया भर में फैली है। आज दुनिया के कई देशों में भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं जो विभिन्न कार्यों में संलग्न हैं। यदि भारत सरकार और प्रवासी भारतीयों के बीच आपसी समन्वय और विश्वास और अधिक बढ़ सके तो इससे दोनों को लाभ होगा। भारत की विकास यात्रा में प्रवासी भारतीय भी हमारे साथ हैं।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />17वां प्रवासी भारतीय दिवस 8 , 9 ,10 जनवरी में इंदौर में आयोजित होगा। प्रवासी भारतीय सम्मेलन को सफल बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार विभिन्न देशों के भारतवंशियों, फ्रेंडस आफ एमपी के सदस्य और उद्योग व्यापार से जुड़े दिग्गज भारतीयों से सहयोग ले रही है। इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते दिनों विदेशों में रह रहे भारतवंशियों से वीडियो कॉन्फ्रेंस में चर्चा करते हुए इंदौर में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन की सफलता के लिए सहयोग की अपील की है।प्रवासी भारतीय सम्मेलन के मुख्य अतिथि गोयाना के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद इरफान अली होंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इंदौर में शिरकत करने जा रहे हैं हैं। इस सम्मेलन में मध्यप्रदेश की विशिष्ट कला-संस्कृति का प्रदर्शन होगा। साथ ही रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट भी दिखाए जाएंगे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि प्रवासी भारतीय दिवस का इंदौर में आयोजन प्रदेश के लिए असाधारण अवसर है। इस अवसर पर मध्यप्रदेश की विशेषताओं पर केन्द्रित प्रस्तुतिकरण होना जरूरी है। मुख्यमंत्री चौहान यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रतिभागी मध्यप्रदेश की प्रशंसा करते हुए वापस जाएँ। मुख्यमंत्री ने कहा है कि इंदौर ने स्वच्छता के क्षेत्र में पूरे देश के सामने अपनी जो ख़ास पहचान स्थापित की है उसी के अनुरूप यह सम्मेलन भी अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल होगा। इससे इंदौर और मध्यप्रदेश का कद दुनिया में बढ़ेगा।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" /> मध्यप्रदेश के लिए जनवरी 2023 विशेष अवसर है। इस माह की 8 जनवरी को यूथ प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाएगा। अगले दिन 9 जनवरी को 17वें प्रवासी भारतीय दिवस कन्वेंशन-2023 का शुभारंभ होगा और 10 जनवरी को 17वें प्रवासी भारतीय दिवस कन्वेंशन का समापन होगा।प्रवासी सम्मेलन के बाद इंदौर में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट मध्यप्रदेश के लिए ख़ास है और इससे निवेश की संभावनाओं को लगेंगे नए पर लगेंगे। इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट भी 11-12 जनवरी 2023 को होगी। इसमें 9 सेक्टरों पर केन्द्रित 14 सेशन होंगे, जिसमें उद्योगपतियों से सीधा संवाद भी होगा। समिट में 17 देशों को आमंत्रित किया गया है। एमपीआईडीसी इसके लिए अपनी विशेष तैयारियों में जुटा है। कार्यक्रम के पहले प्रदेश में बड़े स्तर पर वर्चुअल इन्वेटर रोड-शो किये जाने पर सहमति बनी है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाओं को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री चौहान लगातार उद्योगपतियों से वन-टू-वन मीटिंग कर रहे हैं। इसी कड़ी में उनके द्वारा बैंगलुरू और मुंबई में पिछले माह उद्योगपतियों से चर्चा की गई। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश की संभावनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश भारत का सबसे तेजी से बढ़ने वाला प्रदेश हैं। मध्यप्रदेश वन संपदा, खनिज संपदा, जल संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है जो अब टाइगर स्टेट, लेपर्ट स्टेट, वल्चर स्टेट और अब चीता स्टेट भी हो गए हैं। मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिये आमंत्रित करते हुए कहा कि निवेश के लिए जो चीजें चाहिए वह सारी मध्य प्रदेश में हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी न केवल भारत बल्कि दुनिया के कल्याण के लिए प्रयत्नरत हैं। उनके नेतृत्व में गौरवशाली, वैभवशाली, संपन्न और समृद्ध भारत का निर्माण तो हो ही रहा है लेकिन दुनिया की समृद्धि और विकास के लिए हम उनके नेतृत्व में आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए प्रयासरत हैं।मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रवासी भारतीय दिवस के आयोजन में फ्रेंडस आफ एमपी के सदस्यों के सुझावों पर भी अमल किया जाएगा। इंदौर में प्रधानमंत्री का विशेष पोट्रेट चित्र तैयार कर भेंट करने की योजना बनी है। साथ ही आमंत्रित निवेशकों को उज्जैन में श्रीमहाकाल महालोक के दर्शन भी कराये जाएंगे। एनआरआइ निवेशकों को जमीन आवंटन जैसी सुविधा प्राथमिकता से उपलब्ध करवाई जाएगी। प्रवासी भारतीय दिवस और सम्मेलन की वेबसाइट पर बड़ी संख्या में कई लोगों ने लोगों ने पंजीकरण </span><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> कराया है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />भारत का दिल मध्यप्रदेश, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से संभावित निवेशकों के लिए राज्य की क्षमताओं का विकास, निवेश के माहौल और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने और अपनी क्षमताओं का प्रदर्शित करने के लिए विकास का एक नया युग लिखने के लिए तैयार है।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मुख्यमंत्री ने समिट में राज्य में निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए दिल्ली, मुंबई, पुणे और बैंगलुरू में रोड शो किए। उद्योगपतियों से नियमित रूप से वन-टू-वन चर्चा एवं प्रति सप्ताह उद्योगपतियों से अपने निवास पर भेंट भी की। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न देशों के संभावित निवेशकों के साथ भी बातचीत की। यूके और यूएस ने वस्तुतः शिखर सम्मेलन के लिए अपना निमंत्रण दिया। मुख्यमंत्री के इन्हीं प्रयासों से जीआइएस राज्य के लिए गेम-चेंजर बनेगा। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट मील का पत्थर साबित होगी।"मध्यप्रदेश- भविष्य के लिए तैयार राज्य" थीम पर होने जा रही इस समिट में पर्यावरण-संरक्षण का पूरा ध्यान रखा गया है। यह कार्यक्रम "कार्बन न्यूट्रल" और "जीरो वेस्ट" पर आधारित होगा। प्रदेश में देश और विदेश के निवेशकों को राज्य में लाने के लिए राज्य के औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रदर्शन किया जायेगा। समिट का उद्देश्य राज्य की नीतियों को बढ़ावा देना, उद्योग अनुकूल नीतियाँ बनाने के लिए औद्योगिक संगठनों के साथ परामर्श कर प्रदेश में निवेशक फ्रेंडली वातावरण बनाना, सहयोग के अवसर और निर्यात क्षमता को बढ़ावा देना है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />वर्ष 2007 में संकल्पित, मध्यप्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट दुनिया भर के निवेशकों और व्यापार समुदाय के लिए बहुत बड़ा सुअवसर बना। इस बार भी जीआईएस एक ऐसा मंच होगा जहाँ वैश्विक नेता, उद्योगपति निवेश क्षमता का दोहन करने के लिए एक साथ आएंगे। इस बार की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 65 से अधिक देशों के प्रतिनिधि-मंडल भाग लेंगे। जीआइएस के अंतर्राष्ट्रीय मंडप में, 9 भागीदार देश और 14 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन अपने देशों के विभिन्न पहलुओं का प्रदर्शन करेंगे। समिट के माध्यम से राज्य के निर्यातकों को संभावित विदेशी खरीददार से जुड़ने का अवसर भी मिलेगा।अभी तक 6 हजार से अधिक उद्योगपतियों और औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने जीआइएस के लिए पंजीकरण कराया है। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अधिकारियों के साथ आमने-सामने की बैठक के लिए अग्रणी उद्योगों से 450 से अधिक अनुरोध प्राप्त हुए हैं। कार्यक्रम में फार्मा, आईटी, ऑटोमोबाइल, कपड़ा, वस्त्र, रसायन, सीमेंट, खाद्य प्र-संस्करण, रसद, पेट्रोकेमिकल, पर्यटन, नवकरणीय ऊर्जा, सेवाओं आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख उद्योगपतियों की भागीदारी होगी।समिट के दौरान राज्य के एमएसएमई को वैश्विक बाजार तक पहुँचाने और राज्य से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए क्रेता-विक्रेता मीट का आयोजन किया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से यूएसए, कनाडा, इंग्लैंड, जापान, इजराइल, नीदरलैंड, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों के खरीदार शामिल हैं। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों जैसे फार्मास्युटिकल, टेक्सटाईल, इंजीनियरिंग, कृषि और आईटी सेवाओं के 1500 से अधिक निर्यातक सहभागिता करेंगे। दो दिवसीय जीआइएस के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग प्रमुखों के साथ 19 अलग-अलग क्षेत्र-विशिष्ट सत्र होंगे। इन सत्रों में उद्योगपतियों, भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी भाग लेंगे। </span></span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-88147352262419757302023-01-04T00:59:00.003-08:002023-01-04T01:12:41.697-08:00कर्मयोगी के लिए ‘ हीरा बा ’ से पहले भारत माता का कर्तव्यपथ <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-WLrpoWBZBLqGCCi77AIjhAPkl_t0XPGtiAaujWbPOWaaW88JW5VCD2idzY3JtNJacVZBb1XxTH9F62j7JQzge4BwRFb_-QAjLH4TtrG7WQKCaErH7mk1MrdebWY7GgTBbJxYAwQpfq85IPmwnZ8ndLEeBPZTf_kzt_g8z4XRKeuA8U8wQq30cc-A/s1200/narendra-modi-mother.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="248" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-WLrpoWBZBLqGCCi77AIjhAPkl_t0XPGtiAaujWbPOWaaW88JW5VCD2idzY3JtNJacVZBb1XxTH9F62j7JQzge4BwRFb_-QAjLH4TtrG7WQKCaErH7mk1MrdebWY7GgTBbJxYAwQpfq85IPmwnZ8ndLEeBPZTf_kzt_g8z4XRKeuA8U8wQq30cc-A/w396-h248/narendra-modi-mother.jpg" width="396" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /> </span><p><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">बचपन में एक समाज सुधारक के बारे में कहानी पढ़ी थी। ठीक से ध्यान नहीं आ रहा है। यह कहानी मैंने अपने स्वार्गीय मामा के यहाँ शायद पढ़ी थी। एक परिचित को कचहरी में किसी दस्तावेज पर एक सज्जन के हस्ताक्षर की जरूरत थी। इसके लिए अगली सुबह मिलना तय हुआ लेकिन वह सज्जन नहीं पहुँच पाए। वह परिचित बहुत परेशान रहा। दोपहर बाद सज्जन भीषण बरसात में भीगते हुए उनके घर आये. बोले 'क्षमा कीजिएगा। अल -सुबह मेरी अर्द्धांगिनी का देवलोकगमन हो गया था। उनके अंतिम संस्कार में समय लग गया जिसके चलते नहीं पहुँच पाया'।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">इस वाकये का जिक्र आज इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि बीते दिनों देश के प्रधानसेवक नरेंद्र दामोदरदास मोदी की मां हीरा बा के निधन ने इस घटना की याद दिला दी। 2022 की अंतिम बेला में इस खबर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी की मां बीमार थी। वो कुछ समय पहले उनको देखने भी गए थे। उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था और डाक्टरों की टीम उनकी निगरानी भी कर रही थी लेकिन अचानक उनका 100 वर्ष की उम्र में निधन हो जाएगा, इसका किसी को अंदाजा नहीं था। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां के निधन होने के बाद बेहद सादगी से शवयात्रा निकल सकती है इसे पूरे भारत ने अपनी आँखों से देखा है, जिसने एक चाय वाले को 2014 में देश का प्रधान सेवक बनाया है। आज जब शवयात्राएं भी मेगा इंवेट में तब्दील हो चुकी हैं तो ऐसे माहौल के बीच इस सादगीपूर्ण शवयात्रा में बेहद सामान्य बेटे नजर आते रहे नरेन्द्र मोदी ने एक तरह से जननी और जन्मभूमि दोनों के लिए अपने कर्तव्यों का अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया है। देश का प्रधानसेवक बिना तामझाम के सादगी के साथ अपनी मां को श्मशान घाट तक ले गया और उसे मुखाग्नि दी। जिसने भी सुबह टेलीविजन पर इस यात्रा को देखा इसे देखकर वो विस्मय से भर गया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">इससे पहले शुक्रवार सुबह पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, ''शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम...मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है। मैं जब उनसे 100वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से।''</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">देश के प्रधानमंत्री मोदी बेहद सादगी के साथ अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल हुए । हमारे देश के टीवी न्यूज़ चैनलों के लिए यह एक बड़ा इवेंट बन सकता था। मां-बेटे की वो अंतिम बेला कई हफ़्तों तक टीआरपी के लिए भी बलशाली बन सकती थी। प्रधानमंत्री की मां का निधन कब हुआ, यह निधन की खबर भी देर रात 3.30 बजे जारी हुई। अंतिम यात्रा को देखने के लिए लोग खबरिया चैनलों टीवी स्क्रीन पर टकटकी भी नहीं गड़ा पाए, उससे पहले सुबह हीरा बा की अंतिम विदाई की यात्रा प्रधानसेवक ने बिना तामझाम के पूरी कर ली और उसके 2 घंटे बाद बाद नरेन्द्र मोदी वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के साथ रूटीन काम करने लग गए । उनकी इस कर्म-निष्ठा और कर्तव्यपरायणता ने एक बार फिर साबित किया है कि नरेन्द्र मोदी दुनिया के नेताओं में क्यों सर्वश्रेष्ठ हैं ? आखिर क्यों मोदी को सच्चा कर्मयोगी कहा जाता है और वे अपने हर फैसलों में न केवल चौंकाते हैं बल्कि लीक से अलग हटकर चलते हैं ? राज्यों के मुख्यमंत्रियों और तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह कहकर गुजरात आने से मन कर दिया गया कि वे अपने काम पर ध्यान दें और जहाँ हैं वहीँ से उनकी मां को श्रद्धांजलि दें । प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कहा नहीं ,बल्कि खुद किया भी। वह माँ के अंतिम संस्कार में रोये भी नहीं। अंतिम समय में पीएम मोदी ने अपनी मां को मुखाग्नि दी, तब सिर्फ उनके भाई, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और कुछ दूसरे बेहद करीबी लोग ही शामिल हुए। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी अपने कर्तव्यपथ पर लौट गए। उस दिन प्रधानसेवक मोदी वन्दे भारत ट्रेन के उदघाटन के कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से शामिल हुए और उन्होंने निजी कारणों के चलते कार्यक्रम में शामिल न हो पाने के लिए लोगों से खेद भी प्रकट किया । इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने उसी दिन दुनिया के महान फ़ुटबाल के खिलाड़ी पेले के निधन पर ट्वीट के जरिये अपना शोक भी प्रकट किया। यहीं नहीं रूड़की में शुक्रवार की सुबह टीम इंडिया के विकेटकीपर ऋषभ पंत के साथ हुए सड़क हादसे पर अपनी संवेदना व्यक्त की और उनकी मां से बात भी की।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">दरअसल विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य से मुँह न मोड़ना हमारे देश की महान परम्पराओं में शामिल रहा है। इसे आदर्श जीवन शैली का एक प्रमुख हिस्सा माना गया है लेकिन आज के दौर में ये सभी परंपराएं पीछे छूटती जा रही हैं। प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने इसे आगे बढ़ाने का एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया है। हीरा बा के बारे में पढ़िए। बेटे के देश के प्रधानमंत्री होने के बाद भी वो मां होने के आभामंडल से हमेेशा दूर रही। आसपास के पड़ोसी बताते हैं उनसे मिलकर कभी लगता ही नहीं था वो नरेंद्र मोदी की मां हैं। धन्य है ऐसी मां जिसने नरेंद्र को प्रधानसेवक के पद तक पहुंचाया। उनकी मां कहा भी करती थी एक साधु ने एक बार उनसे कहा भी था आपका बेटा एक दिन बहुत ऊंचाई पर पहुंचेगा। उसे बहुत आगे जाना है। उन्होंने अपनी माँ के आशीर्वाद से इसे साकार कर दिखाया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">सभी के साथ सहज व्यवहार और अपनेपन से हीरा बा ने विशेष पहचान बनाई थी। ऐसे विलक्षण उदाहरण देखने हो नहीं मिलते हैं। हीरा बा की सादगी और उनके बेटे के कर्तव्यपरायण आचरण ने देश और दुनिया को बहुत कुछ सीख देते हैं। बेटा चाहे जितना बड़ा हो जाए, लेकिन मां के लिए वह सिर्फ बेटा ही रहता है यह संदेश हमारे प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने पूरे विश्व को दिया है। आज भी प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने के बाद भी वो अपने संस्कार नहीं भूले हैं । यह भी याद दिलाया है कि मां को अंतिम विदाई देने का वक्त कठिनतम होता है किंतु ऐसे समय भी धैर्य और संयम जरूरी है। उनकी इस सादगी ने अपरोक्ष रूप से यह संदेश भी दिया है कि दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना के साथ अपने कर्मपथ पर चलना भी जरूरी है। मां के प्रति स्नेह-समर्पण के साथ हमेशा उन्होनें देश के प्रति अपना कर्तव्य भी हमेशा याद रखा है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">हीरा बा के संघर्ष के बारे में प्रधानमंत्री मोदी कई बार भावुक अंदाज में जिक्र कर चुके हैं। साल 2015 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के साथ बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने अपनी मां के संघर्षों को याद करते हुए कहा था 'मेरे पिताजी के निधन के बाद मां हमारा गुजारा करने और पेट भरने के लिए दूसरों के घरों में जाकर बर्तन साफ करती थीं और पानी भरती थीं।' इस दौरान पीएम मोदी भावुक होकर रो पड़े थे।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मां हीरा बा के 100वें जन्मदिन पर लिखे ब्लॉग में कहा था कि उनकी मां हीराबेन को सुबह 4 बजे ही उठने की आदत हमेशा रही है । सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटाती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। इसके साथ ही वे अपनी पसंद के भजन भी गुनगुनाती रहती थीं। पीएम मोदी ने तब कहा था कि मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है और मेरे चरित्र में जो कुछ भी अच्छा है, उसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है। पीएम मोदी ने अपनी मां के जन्मदिन के मौके पर कहा कि कैसे उनकी मां नारीत्व और सशक्तिकरण की सच्ची प्रतीक रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बचपन के किस्सों की मदद से अपनी मां के हर गुण को बताया है, जो उनके जीवन को हर काम से जुड़ा हुआ है। पीएम मोदी ने ब्लॉग में कहा था कि उनकी मां एक ‘आदर्श जीवन’ जीने के लिए एक मार्गदर्शक की तरह हैं। कैसे उनकी मां ने उन्हें सिखाया कि औपचारिक शिक्षा के बिना भी अच्छी बातों को सीखना संभव है। ऐसा पहली बार हुआ था कि पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच पर निजी भावनाओं को व्यक्त किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था मां कभी यह नहीं चाहती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">हिन्दू संस्कृति में मृत्यु के 12 दिनों के बाद तेरहवीं का नियम है। इसी दिन पीपलपानी भी होता है। अंत्येष्टि के कम से कम तीन दिन तो सूतककाल होता है लेकिन प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी जो हैं जिनके लिए देश सब कुछ है। वो दो घंटे बाद ही अपने दैनिक कार्यों को करने में जुट गए। आज तक बीते 8 वर्षों में प्रधानसेवक मोदी ने एक दिन का अवकाश भी नहीं लिया। कहा जाता है जीवन में एक बार उनको दंतपीड़ा हुई जिसका उन्होनें इलाज करवाया था । जिस नरेंद्र को हीरा बा ने गढ़ा हो उस बेटे को संस्कार भी उसके जैसे ही मिलेंगे। बा के दिए संस्कारों का ही प्रताप है कि दु:ख की बेला में भी कर्म को प्रधान मानने वाले नरेंद्र मोदी की चमक एक बार सोने जैसी तो हो ही गई है । ये समाचार छपकर जब आप तक पहुंचेगा तो तय मानिए सोशल मीडिया में प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी की मां के देवलोकगमन की तस्वीरें और वीडियो करोड़ों बार देखे जा चुके होंगे। बड़ा प्रधान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने अपने इस पुण्यकार्य से समाज के सामने एक अनुकरणीय मिसाल भी पेश की है। हीरा बा को सादर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ! ईश्वर हीरा बा को अपने श्री चरणों में स्थान दे और उनकी दिवंगत आत्मा को शांति मिले।</span></span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-91653418048996144492023-01-02T01:27:00.001-08:002023-01-02T01:27:12.056-08:00 पेसा कानून से होगा आदिवासी समुदाय का सशक्तिकरण <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPfjczBxxTMSOzVpViHWmWjShFT_E17dxPp0LjDH5n5wMPOUimPs2HctTmJ-M1eDOj5ZgOM-ZJARlElTmMVt8B9kZeKijtN7ilKxGlYkZJtqBroh3Sk10ccJ95_ksHxLgIuSQVnJ85JucW5vnK1ZqYWe-oyz4ezcMgxqk_PkF5sNjYtiJrkgHX72tC/s290/pesa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="174" data-original-width="290" height="250" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPfjczBxxTMSOzVpViHWmWjShFT_E17dxPp0LjDH5n5wMPOUimPs2HctTmJ-M1eDOj5ZgOM-ZJARlElTmMVt8B9kZeKijtN7ilKxGlYkZJtqBroh3Sk10ccJ95_ksHxLgIuSQVnJ85JucW5vnK1ZqYWe-oyz4ezcMgxqk_PkF5sNjYtiJrkgHX72tC/w416-h250/pesa.jpg" width="416" /></a></div><span style="font-size: large;"><br /></span><p><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">पेसा अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों के विस्तार के लिए एक कानून है। इस कानून की धारा 2 के संदर्भ में, "अनुसूचित क्षेत्रों" का अर्थ अनुसूचित क्षेत्रों से है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 244 के खंड (1) में संदर्भित है। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए संसद ने संविधान के अनुच्छेद 243एम(4)(बी) के संदर्भ में, "पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) कानून 1996" (पीईएसए) को कुछ संशोधनों और अपवादों के साथ, पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX को पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए कानून बनाया है।" पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार), कानून 1996" (पीईएसए) के तहत, राज्य विधानसभाओं को कानून की धारा 4 में प्रदत्त ऐसे अपवादों और संशोधनों के अधीन पांचवीं अनुसूची में पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों के विस्तार से संबंधित सभी कानूनों को बनाने का अधिकार दिया गया है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">1995 में भूरिया समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के आधार पर 1996 में संसद द्वारा पेसा अधिनियम लागू किया गया था। पैसा कानून यानी पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996 भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पारम्परिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक कानून है। अनुसूचित क्षेत्र भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची द्वारा पहचाने गए क्षेत्र हैं, जो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए विशेष अधिकार देता है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने संबंधित राज्य पंचायती राज कानूनों के तहत अपने राज्य पेसा नियम बनाए और अधिसूचित किए हैं। ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिये 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन पारित किया गया था। इस संशोधन द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था के लिये कानून बनाया गया। हालांकि अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में यह प्रतिबंधित था। वर्ष 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों हेतु आदिवासी स्वशासन सुनिश्चित करने के लिये पेसा अधिनियम 1996 अस्तित्व में आया। पेसा, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने हेतु केंद्र द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। </span><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">पेसा कानून, मध्यप्रदेश में 15 नवम्बर 2022 से लागू हो चुका है जो ग्राम सभाओं को वन क्षेत्रों में सभी प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नियमों और विनियमों पर निर्णय लेने का अधिकार देगा। पेसा कानून जनजातीय समुदाय को उन वन क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाने के लिए अधिक संवैधानिक अधिकार देगा जहां वे रहते हैं। ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी और निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी। प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखण्डों की 5254 पंचायतों के 11757 ग्रामों में यह नियम लागू है जहाँ जल, जमीन और जंगल पर जनजातीय समुदाय का सीधा नियंत्रण होगा। छल, कपट से अब कोई जमीन नहीं हड़प सकेगा। ग्राम सभा द्वारा अमृत सरोवरों और तालाबों का प्रबंधन होगा और वनोपज की दर भी ग्राम सभा द्वारा तय की जाएगी। रेत खदान, गिट्टी पत्थर देने जैसे निर्णय भी अब सीधे ग्राम सभा द्वारा लिए जाएंगे। इस एक्ट के माध्यम से स्थानीय संस्थाओं परम्परों , संस्कृति का संवर्धन और संरक्षण हो सकेगा। इस कानून का उद्देश्य जनजातीय समाज को स्वशासन प्रदान करने के साथ ही ग्रामसभाओं को सभी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बनाना है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> पेसा कानून के तहत जो नियम सरकार ने बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार ग्राम सभाओं को दिया गया है। हर साल गांव की जमीन, उसका नक्शा, वनक्षेत्र का नक्शा, खसरे की नकल, पटवारी को या बीट गार्ड को गांव में लाकर ग्रामसभा को दिखानी होगी ताकि जमीनों में हेर-फेर न हो। नामों में गलती है तो यह ग्रामसभा को उसे ठीक कराने का अधिकार होगा। किसी भी प्रोजेक्ट, बांध या किसी काम के लिए गांव की जमीन ली जाती है तो ग्राम सभा की अनुमति के बिना ऐसा नहीं हो सकेगा। पेसा कानून के जरिये ग्राम सभाओं को और अधिक अधिकार मिले हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">गैर जनजातीय व्यक्ति या कोई भी अन्य व्यक्ति छल-कपट से, बहला-फुसलाकर, विवाह करके जनजातीय जमीन पर गलत तरीके से कब्जा करने या खरीदने की कोशिश करें तो ग्राम सभा इसमें अब सीधे हस्तक्षेप कर सकेगी। यदि ग्राम सभा को यह पता चलता है कि वह उस जमीन का कब्जा फिर से जनजातीय भाई-बहनों को दिलवाएगी। अधिसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की अनुशंसा के बिना खनिज के सर्वे, पट्टा देने या नीलामी की कार्यवाही नहीं हो सकेगी। जनजातीय क्षेत्रों में लायसेंसधारी साहूकार ही निर्धारित ब्याज दर पर पैसा उधार दे सकेंगे गांव में तालाबों का प्रबंध अब ग्राम सभा करेगी। उससे जो आय होगी वह भी गांव के लोगों को प्राप्त होगी। इसका मतलब यह है कि ग्राम सभा तालाब/जलाशय में विभिन्न गतिविधियां की जा सकती है। इससे होने वाली आमदनी भी ग्राम सभा को मिलेगी। तालाब में किसी भी प्रकार की गंदगी, कचरा, सीवेज आदि जमा न हो, प्रदूषित न हो, इसके लिए ग्राम सभा किसी भी प्रकार के प्रदूषण को रोकने के लिए कार्यवाही कर सकेगी। 100 एकड़ तक की सिंचाई क्षमता के तालाब और जलाशय का प्रबंधन संबंधित ग्राम पंचायत द्वारा किया जाएगा।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">तेंदुपत्ता तोड़ने और बेचने का अधिकार भी इस अधिकार के माध्यम से ग्राम सभाओं को दिया गया है। गांव में मनरेगा और अन्य कामों के लिए आने वाले धन से कौन सा काम किया जायेगा, इसे पंचायत सचिव नहीं बल्कि ग्राम सभा तय करेगी। ग्राम सभा अपने क्षेत्र में स्वयं या एक समिति गठित कर वनोपजों आदि का संग्रहण, मार्केटिंग, मूल्य तय करना और बिक्री कर सकेंगे। एक से अधिक ग्राम सभा भी मिलकर यह काम कर सकती है। अभी तक या तो सरकार या फिर व्यापारी लघु वनोपजों का मूल्य तय किया करते थे लेकिन अब रेट कंट्रोल की कमांड ग्राम सभा के माध्यम से जनजातीय समुदाय के हाथ में होगी।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> काम के नाम पर गांव में कुछ एजेंट आते हैं। जमीन ले जाने की बात करते हैं। बाद में ग्रामीण दिक्कत में फंस जाती हैं। पेसा के नियम के तहत यह अधिकार मिला है कि गांव से कोई बेटा-बेटी जाएगा तो ले जाने वाले को पहले ग्राम सभा को बताना होगा। बिना बताए ले जाने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अब ग्राम सभा के पास काम के लिए बाहर जाने वाले सभी लोगों की सूची भी रहेगी। काम के लिए अपने गांव से ग्राम सभा को बिना बताए जाने को नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> प्रदेश में शराब की नई दुकानें बिना ग्रामसभा की अनुमति के नहीं खुलेंगी। शराब या भांग की दुकान हटाने की अनुशंसा का अधिकार भी ग्राम सभा को होगा। यदि 45 दिन में ग्राम सभा कोई निर्णय नहीं करती है, यह मान लिया जाएगा कि नई दुकान खोलने के लिए ग्राम सभा सहमत नहीं है। फिर दुकान नहीं खोली जाएगी। ग्राम सभा किसी स्थानीय त्यौहार के अवसर पर उस दिन पूरे दिन के लिए या कुछ समय के लिए शराब दुकान बंद करने की अनुशंसा कलेक्टर से कर सकती है। एक वर्ष में कलेक्टर चार ड्राय डे के अंतर्गत दुकान को बंद कर सकेंगे।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">हर गांव में एक शांति एवं विवाद निवारण समिति होगी। यह समिति परंपरागत पद्धति से गांव के छोटे-मोटे विवादों का निराकरण कराएगी। इस समिति में कम से कम एक तिहाई सदस्य महिलाएं होंगी। यदि ग्राम के किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो तो इसकी सूचना पुलिस थाने द्वारा तत्काल गांव की शांति एवं विवाद निवारण समिति को दी जाएगी। मेले और बाजार का प्रबंध, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र ठीक चलें, आंगनवाड़ी में बच्चों को पोषण आहार मिले, आश्रम शालाएं और छात्रावास बेहतर तरीके से चलें, यह काम भी ग्राम सभा देखेंगी।</span></span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; font-size: 12px; text-size-adjust: 100%;" /></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-34150451313828090412023-01-01T00:22:00.000-08:002023-01-01T00:22:11.343-08:00जन-भागीदारी मॉडल से सुशासन में मॉडल स्टेट बना देश का हृदयस्थल मध्यप्रदेश<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfUn-mxP8lSLdWJfbhu2Xcksgh9JUxjvgwp2qbK4j9s9A6vLYvKDFr6Bi4j6cvBDDJD6yVj56WLkDuDSLGvD4Ja2Ct6qi5QweW0iHhVIr7M3kAZAhk-M1Mhybshl0cyWzIpbsblehvlXJPtRazjrh6aNSBhk-nWuwCRQteRDGL647uvr-4VGKc--kK/s1248/shiv%202.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="672" data-original-width="1248" height="313" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfUn-mxP8lSLdWJfbhu2Xcksgh9JUxjvgwp2qbK4j9s9A6vLYvKDFr6Bi4j6cvBDDJD6yVj56WLkDuDSLGvD4Ja2Ct6qi5QweW0iHhVIr7M3kAZAhk-M1Mhybshl0cyWzIpbsblehvlXJPtRazjrh6aNSBhk-nWuwCRQteRDGL647uvr-4VGKc--kK/w478-h313/shiv%202.jpg" width="478" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /> </span><p></p><p><span style="font-size: large;"><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"> देश में जन-भागीदारी मॉडल का सबसे बढ़िया उपयोग किसी राज्य ने किया है तो वह मध्यप्रदेश है। प्रदेश की सरकार मुख्यमंत्री शिवराज के नेतृत्व में अपनी योजनाओं के माध्यम से समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचाने के लिए सतत रूप से कार्य कर रही है। आज से कई दशक पहले तक पहले मध्यप्रदेश विभिन्न क्षेत्रों में बहुत पीछे था और बीमारू राज्य की श्रेणी में आता था लेकिन अपने जनभागीदारी के मॉडल के जरिये उसने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में विकास के नए आयाम गढ़ने में सफलता हासिल की है। लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर होता मध्यप्रदेश अब देश के विकसित प्रदेशों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है।सुशासन के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ की जिस अवधारणा पर जोर दिया उसे सबसे पहले मध्यप्रदेश ने साकार कर दिखाया है। बीते एक दशक से भी अधिक समय में मध्यप्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में 200 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है वहीँ आधारभूत अवसंरचना के दुरुस्त होने के चलते आज मध्यप्रदेश देश की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाले राज्यों में शामिल है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 23 मार्च 2020 को जब शपथ ली तो उन्होनें कोरोना के विरूद्ध संघर्ष में खुद को एक योद्धा की तरह झोंक दिया। वह खुद कोरोना से संक्रमित हुए लेकिन इसके बाद भी हिम्मत नहीं और जनभागीदारी से कोरोना के विरुद्ध लड़ाई लड़ी जिसके अच्छे नतीजे सबके सामने आये। कोरोना के मामले जब मध्यप्रदेश में बढ़ने लगे तो सुविधाएँ बहुत कम थी और चुनौतियाँ बहुत अधिक लेकिन जनभागीदारी के मॉडल को लागू कर मुख्यमंत्री ने न केवल टेस्टिंग को बढ़ाया बल्कि नई प्रयोगशालाओं को स्थापित करने से लेकर परीक्षण किट, मास्क, आक्सीजन सिलेंडर वेंटिलेटर के साथ , आई.सी.यू. को सर्वसुलभ करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आवश्यकतानुसार अनेक शासकीय और निजी भवनों, उद्यानों, सामुदायिक केन्द्रों और शादी हॉलों को पूर्ण सुविधायुक्त क्वारेंटाइन सेन्टर में तब्दील किया गया जिसका परिणाम यह हुआ जनभागीदारी से कोरोना हार गया और मध्यप्रदेश ने पूरे देश के सामने एक नई नजीर पेश की। मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण से पार पाने के और प्रदेशवासियों को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए जन-भागीदारी का जो मॉडल अपनाया गया, वह अन्य राज्यों के लिए चर्चा का विषय बन गया। इसमें मुख्य रूप से कोरोना सक्रंमण के उपचार की व्यवस्थाओं के साथ जन-जागरूकता संबंधी कार्यों ने महती भूमिका निभाई। मध्यप्रदेश सरकार ने हर समुदाय तक पहुँच सुनिश्चित की और टीकाकरण अभियान में सामुदायिक भागीदारी पर जोर दिया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">लोक सेवा गारंटी अधिनियम सुशासन के क्षेत्र में कारगर कानून है जिसके अनुसार लोक सेवकों को तय समयसीमा में काम को पूरा करने की जिम्मेदारी तय की गई है। ऐसा न होने पर जवाबदेही तय कर उन पर 500 से 5000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाता है। राज्य सरकार ने आम लोगों से जुड़े कार्यों को सरल बनाने के लिए लोक सेवा गारंटी कानून में बड़े बदलाव कुछ समाय पहले किये जिसमें तहत आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, नल-बिजली कनेक्शन, इलाज राशि की मंजूरी, खसरे की नक़ल, डोमेसाइल , बिजली क्नेक्साहँ , भू अभिलेख , प्रसूति योजना , सहित सरकार द्वारा आम लोगों को दी जाने वाली 258 तरह की सेवाओं के आवेदन को अधिकारी अब नहीं लटका नहीं सकते । एक निश्चित समयावधि में या तो जनता का आवेदन मंजूर कर सेवा प्रदान करनी होगी या कारण बताकर समयावधि में ही उसे निरस्त करना होगा। यदि अफसर तय समयावधि में ऐसा नहीं करते हैं तो पोर्टल आवेदन को स्वीकृत मान लेगा और खुद ही सेवा का ऑनलाइन सर्टिफिकेट आवेदक को जारी कर देगा। लोक सेवाओं के प्रदान की गांरटी अधिनियम 2010 में अब तक 48 विभागों की 691 सेवाएं अधिसूचित की गई हैं। इसी तरह से मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान 17 सितंबर 2022 से 31 अक्टूबर, 2022 तक संपूर्ण प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जोर शोर से सरकार द्वारा चलाया गया जिसका नेतृत्व प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी द्वारा किया गया। मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान से संबंधित संपूर्ण कार्यवाही सी.एम. हैल्पलाईन पोर्टल के माध्यम से की गई । मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान के अंतर्गत भारत सरकार एवं राज्य सरकार की फ्लैगशिप हितग्राहीमूलक योजनाओं का चिन्हांकन किया गया है जिसके तहत सभी पात्र हितग्राहियों को संबंधित योजना का लाभ दिलाने का प्रयास किया गया।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री चौहान अपने इस कार्यकाल में जनता से अनावश्यक बिजली नहीं जलाने की अपील करते नजर आये हैं। उनकी मानें तो ऊर्जा का संरक्षण, जीवन का संरक्षण है। जनता अगर ऊर्जा बचाएगी , तो हवा, पानी व कोयला भी बचेगा। इसके लिए पूरे प्रदेश वासियों से मुख्यमंत्री चौहान समय समय पर अपनी अपील करते रहे हैं जिससे जनता के भीतर भी अनावश्यक बिजली न जलाने का एक भाव जगा है। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन को प्राथमिकता देने की रणनीति मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के पूर्व कार्यकाल में प्रारंभ हुई है। प्रदेश में सोलर पम्प के माध्यम से किसानों को सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार का प्रयास है कि जनता रूफ टॉप संयंत्र घर-घर लगायें ताकि उपयोग के लिये बिजली सस्ती दरों पर मिलें। शासकीय भवनों पर सौर ऐसे संयंत्र लगाये जा रहे हैं, जिसमें हितग्राही को विभाग अथवा संस्था को कोई पैसा नहीं देना है। संयंत्र विकसित करने वाला सस्ती बिजली उपलब्ध करायेगा।एक समय था जब मध्यप्रदेश में महिलाओं को बोझ समझा जाता था । समाज की इस मानसिकता को अपनी योजनाओं के जरिए बदलने का काम मुख्यमंत्री शिवराज ने बखूबी किया है। मुख्यमंत्री चौहान ने जनभागीदारी और जागरूकता अभियानों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई कदम उठाये। मुख्यमंत्री लाड़लियों के आर्थिक सशक्तीकरण से लेकर उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण देने पर कार्य कर रहे हैं। जनजागरूकता अभियानों से आज बेटियों के प्रति समाज की सोच में जहाँ बदलाव आया है । मुख्यमंत्री शिवराज की योजनाओं का प्रतिफल है प्रदेश के लिंगानुपात के स्तर में भी तेजी से सुधार हो रहा है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में 'एडाप्ट एन आंगनवाड़ी' अभियान इस वर्ष शुरू किया जिसमें वे स्वयं हाथ वह स्वयं ठेला लेकर आंगनवाड़ी बच्चों के लिए खिलौने एवं स्टेशनरी सामग्री प्रदान करने का जनता से आव्हान करते नजर आये। अनेक स्थानों पर लोगों ने वॉटर कूलर और फर्नीचर भी आंगनवाड़ी केंद्रों को दिए हैं। इन केंद्रों में आने वाले बच्चों के खान-पान में पौष्टिक सामग्री शामिल करने अनेक नागरिक आगे आए हैं। इस अभियान को जनता के सहयोग से ही बेहतर ढंग से संचालित किया जा रहा है। जनता के स्वैच्छिक सहयोग से अब वे बच्चे भी आंगनवाड़ी केंद्रों तक पहुंच रहे हैं जो स्कूल नहीं ज पाते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में भी किसानों ने मुख्यमंत्री की एक अपील के बाद ने आंगनवाड़ी केंद्रों के लिए खाद्य सामग्री प्रदान करने के कार्य में सहयोग किया है। आंगनवाड़ी केद्रों में संचालित गतिविधियों में जन-भागीदारी जुडी तो परिणाम बेहतर मिल रहे हैं। इसका असर आज पूरे प्रदेश में दिख रहा है जहाँ समाज के विभिन्न वर्ग के लोग सहयोग के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं जिनमें स्वैच्छिक संगठनों के सदस्य, अधिकारी-कर्मचारी, व्यापारी और जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">मध्य प्रदेश में आजीविका मिशन के तहत महिला स्व सहायता समूहों ने बेहतरीन काम किया है। आज प्रदेश की महिलाएं इस योजना के माध्यम से जहाँ सशक्त हो रही हैं वहीँ समाज के सहयोग से जनरल स्टोर, रेडिमेट गारमेंट्स, आटा चक्की, सिलाई कार्य, राशन की दुकान चलाने जैसे कई कामों को बखूबी अंजाम दे रही हैं। शिवराज सरकार द्वारा महिला स्व -सहायता समूहों को सशक्त किया गया है जो उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है। महिलाओं के प्रति अपराध पर प्रदेश के भीतर सम्मान जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू हुआ है जिसमें हेल्पलाइन के माध्यम से महिलाएं संकट के समय सीधे काल कर रही हैं। सम्मान अभियान बेटियों को बुरी नजर से देखने वालों को सबक सिखाने के लिए और समाज में जागरूकता लाने के लिए ये अभियान चलाया जा रहा है । ये संकट के समय महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हो रहा है। जो महिलाएं कभी पुलिस के सामने जाने से कतराती थी आज काम के लिए घरों से बाहर जाने वाली महिलाएं अपना पंजीकरण बढ़ चढ़कर करा रही हैं और पुलिसकर्मी अपने पास उनका रिकार्ड संरक्षित रख रहे हैं। प्रदेश में ये बड़ा बदलाव है। सुशासन के लिए सरकार द्वारा समय समय पर प्रदेश के विभिन्न जिलों में पंचायतों का आयोजन भी किया गया है । पंचायतों के बीच से यह आवाज आई कि जब तक बेटी को बोझ से वरदान नहीं बनाएंगे, तब तक बेटी को लोग आने नहीं देंगे। उसी सोच से समाज की महिलाओं के खिलाफ सोच बदली है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">शासकीय योजनाओं की जानकारी लेने भ्रष्टाचार सम्बन्धी मामलों की शिकायत करने के लिए प्रदेश में सीएम हेल्पलाइन योजना चल रही है। इसी तरह सीएम जन सेवा आय, मूल निवास, चालू नक्शा, चालू खसरा और बी-1 खतौनी की प्रतिलिपियों के लिए आवेदन की सुविधा दी जा रही है। महिला उत्पीड़न से बचाव के लिए महिला हेल्पलाइन भी काम कर रही है जिसमें हर दिन महिलाओं से सम्बंधित अपराधों एवं समस्याओं में महिला की काउंसलिंग कर तत्काल राहत पहुंचाई जाती है। इसी तरह मप्र जनसुनवाई पोर्टल बड़े पद पर कार्यरत अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायतों पर ध्यान के लिए बड़ा प्लेटफार्म है। इसमें शिकायत दर्ज करने के लिए किसी भी दफ्तर में जाने या पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । घर बैठे ही ऑनलाइन शिकायत दर्ज हो जाती है। मुख्यमंत्री द्वारा खुद इसकी सुनवाई की जाती है। साप्ताहिक जनसुनवाई के माध्यम से आवेदक का समाधान मौके पर ही किया जाता है ।मध्यप्रदेश समाधान पोर्टल पर घर बैठे शिकायत ऑनलाइन दर्ज कर समाधान प्राप्त किया जाता है जिसके माध्यम से शिकायत लोक शिकायत निवारण विभाग में भेजी जा सकती है।मध्य प्रदेश में आमजन की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए सीएम हेल्प लाइन सेवा संचालित है। यह ऐसी सेवा है जिसका लाभ फोन कॉल के जरिए मिलता है। सीएम हेल्प लाइन पर रोजाना लगभग 80 हजार फोन कॉल सुने जाते हैं, जिन पर नागरिकों द्वारा मांगी गई जानकारी देने के साथ ही शिकायतों का निराकरण सुनिश्चित किया जाता है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">पर्यावरण के प्रति मुख्यमंत्री चौहान शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का मानना है हर नागरिक प्रतिदिन नहीं तो माह में एक और अपने मांगलिक कार्यक्रमों के अवसर पर एक पौधा अवश्य लगाये जिसके माध्यम से हम आने वाली पीढ़ी को एक बड़ी सौगात दे सकते हैं। पर्यावरण-संरक्षण के लिए समर्पित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डेढ़ साल से अधिक की लम्बी अवधि के दौरान कोई भी दिन अब तक ऐसा नहीं रहा है जब वे पेड़ लगाना भूल गए हों । अब तक वह हजार पेड़ खुद लगा चुके हैं। मध्यप्रदेश की जीवनवाहिनी नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए नमामि देवी नर्मदे यात्रा कर उन्होंने न केवल नर्मदा जल को स्वच्छ बनाए रखने में अपना बड़ा योगदान दिया है बल्कि नर्मदा मैया के दोनों तटों पर वृक्षारोपण कर प्रकृति के लिए व्यापक जन-भागीदारी भी जुटाई है। उनकी नर्मदा यात्रा से विकास के साथ जलवायु परिवर्तन में समाज को सरकार के साथ खड़ा करने में सफलता मिली है। साथ ही कई जिलों में जन-भागीदारी से पौध-रोपण कर हरियाली को बढ़ाया गया है। मुख्यमंत्री की पहल पर पर्यावरण के क्षेत्र में जन-भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए प्रदेशव्यापी "अंकुर अभियान" का शुभारम्भ भी किया गया है जिसके माध्यम से लाखों पौधे रोपने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह अभियान जन-भागीदारी के साथ आज भी सतत रूप के साथ जारी है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भी हरियाली को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री ने पौध-रोपण की योजना बनाई है जिसकी मिसाल अब तक देखने को नहीं मिली है। नगरीय निकाय द्वारा नये घरों के निर्माण की अनुमति देते समय आवास परिसर में वृक्षारोपण की शर्त रखी गई है। इसी प्रकार ग्रामीणों को भी हर दिन वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया जा रहा है।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">देश का दिल मध्यप्रदेश स्वच्छता के क्षेत्र में भी अपना नाम रोशन कर रहा है। पिछले 6 वर्षों में प्रदेश के इंदौर शहर ने स्वच्छ सर्वेक्षण में लगातार प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इंदौर देश का पहला वॉटर-प्लस शहर भी बना है। वॉटर-प्लस श्रेणी के अंतर्गत घरों से निकलने वाले गंदे पानी को नदी या तालाबों में जाने से पूर्व ट्रीट किया जाता है जिससे पानी के अन्य स्रोत जल प्रदूषण से मुक्त होते हैं। साथ ही, इस पानी का पुनः उपयोग किया जाता है। इंदौर ने जन भागीदारी के माध्यम से अपने शहर की जीवन-रेखा कही जाने वाली कान्ह और सरस्वती नदियों को नया जीवन प्रदान किया है। कभी गंदगी से भरी इन नदियों में आज बहती जल की अविरल धारा में मछलियां तैरती देखी जा सकती हैं। गंदगी दूर होने से शहर के नागरिकों के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। देश के सभी छोटे बड़े शहर, आज इंदौर के स्वच्छता मॉडल को अपनाना चाहते हैं। मध्य प्रदेश में सिर्फ इंदौर ही नहीं बल्कि उज्जैन, ग्वालियर, सागर, बुरहानपुर, खंडवा, सिंगरौली, भोपाल, धार, मुंडी, छिंदवाड़ा आदि शहरों में भी स्वच्छता को प्रमुखता दी गई है। प्रदेश में स्वच्छता के इन प्रयासों के मूल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन का महत्वपूर्ण योगदान है। सॉलिड वेस्ट के निस्तारण में भी मध्य प्रदेश एक अग्रणी राज्य है। प्रदेश के नागरिकों ने स्वच्छता में अपनी जनभागीदारी से कई नवाचार किये हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते कुछ समय से अपने काम करने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज के रहते प्रदेश में मुख्यमंत्री निवास के दरवाजे आम जनता के लिए खुले हैं। मुख्यमंत्री 18 -20 घंटे लगातार जनता के बीच रखकर काम करते हैं। सुबह 6 बजे से ही वह जिलों की समीक्षा करते नजर आते हैं। वर्चुअल मीटिंग में भी कलेक्टरों और अधिकारियों की तगड़ी क्लास लगाते हैं। जनता के बीच जाकर सीधे उनसे संवाद स्थापित करते हैं और मौके पर मुख्यमंत्री दरबार लगाते हैं और जन समस्याओं को सुनकर बड़ी कार्रवाई करने से परहेज नहीं करते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं हर महीने जिलों के कार्यों की समीक्षा करते हैं, लापरवाह अधिकारियों को ऑन द स्पॉट सस्पेंड किया जाता है, वहीं अच्छे काम करने वाले अधिकारियों को जनता के सामने सराहा जाता है और पुरस्कृत किया जाता है। मुख्यमंत्री शिवराज अचानक सुबह 6 बजे किसी भी जिले में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये भी समीक्षा कर लेते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज अपनी सभाओं में सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को शिकायत भेजने की बात कहकर जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता को मध्य प्रदेश की मालिक बताते हैं इसलिए वह नहीं चाहते उनके कार्यकाल में आम जनता को किसी भी तरह की परेशानी हो।</span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">पिछले दिनों मध्यप्रदेश ने पूरे देश में नंबर एक आकर एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया है। प्रदेश को राष्ट्रीय गुड गवर्नेस इंडेक्स में पहला स्थान हासिल हुआ है। मध्य प्रदेश में सुशासन के लिए सीएम हेल्पलाइन, जन सुनवाई, समाधान ऑनलाइन जनता से जुड़ने, मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान, जैसे कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हैं, जहां पर जनता सीधे कोई भी सुझाव दे सकती है। किसी समस्या की शिकायत भी कर सकती है। यह सेवाएं सुशासन के सशक्त माध्यम है। आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में 5जी तकनीक का इस्तेमाल होने के बाद में गुड गवर्नेंस के कार्यों में तेजी आएगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में प्रदेश को अग्रणी बनाकर आगामी वर्षों में आत्म-निर्भर बनाने के संकल्प को पूरा करने के लिये आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश रोडमेप-2023 तैयार किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर 'आत्मनिर्भर भारत' की तर्ज पर राज्य ने 'आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश'' के रोडमेप में को मूर्त रूप देना प्रारंभ कर दिया है</span><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;">।</span></span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-67191461976889449232022-12-19T22:34:00.003-08:002022-12-19T22:34:38.500-08:00अर्जेंटीना ने मार लिया फुटबाल का मैदान<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYUnvXr5kIWcHXZUJnj7_zQiGIomcJE475zRiHDNjhXcIfjuyq3R7R6YGGLdYV_MCDqGV_V8lWHU57Y9TCmFlSei_PxrBf88MLDTDXGZIzSgs6LWTUXwuzIMBgMe9WU6hJRjU-LJlwSd2uPj8APK82lJu6z_D_Nd101D8bUSz-kBF66DNfxEemEJ7s/s1200/FIFA%202022.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="261" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYUnvXr5kIWcHXZUJnj7_zQiGIomcJE475zRiHDNjhXcIfjuyq3R7R6YGGLdYV_MCDqGV_V8lWHU57Y9TCmFlSei_PxrBf88MLDTDXGZIzSgs6LWTUXwuzIMBgMe9WU6hJRjU-LJlwSd2uPj8APK82lJu6z_D_Nd101D8bUSz-kBF66DNfxEemEJ7s/w464-h261/FIFA%202022.jpg" width="464" /></a></div><br /> <p></p><p> <span style="font-size: large;">फ्रांस को पेनाल्टी शूट आउट में शिकस्त देकर अर्जेंटीना ने फीफा वर्ल्ड कप 2022 जीतकर मानो इतिहास में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इसी के साथ ही लियोनल मेसी का वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना अपने अंतिम विश्व कप में पूरा हो गया। लियोनेल मेसी ने 35 साल की उम्र में इतिहास रचा और टीम को वर्ल्ड चैम्पियन बनाया। अर्जेंटीना ने फीफा वर्ल्ड कप फाइनल में फ्रांस को पेनल्टी शूट आउट में हुए रोमांचक मैच में 4-2 से शिकस्त दी । 90 मिनट के मैच के शुरूआती समय तक दोनों टीमें 2-2 की बराबरी पर थी। मैच बहुत रोमांचक था और अतिरिक्त समय मिलने के बाद भी के बाद मुकाबला भी 3-3 की बराबरी पर छूटा । अर्जेंटीना ने पहले हाफ से लेकर दूसरे हाफ तक लगातार फ्रांस पर पूरी तरह से दबाव बनाए रखा। टीम ने फ्रांस को गोल करने का एक भी मौका नहीं दिया। इसके बाद अंतिम पलों में पेनल्टी शूटआउट से फैसला हुआ। फाइनल में मेसी ने दो गोल किए। वहीं, फ्रांस के लिए किलियन एमबाप्पे ने हैट्रिक जमाई।</span></p><p><span style="font-size: large;">अर्जेंटीना ने 36 साल बाद फूटबाल विश्वकप का खिताब अपने नाम किया है। इससे पहले उसे 1986 में खिताबी कामयाबी मिली थी। अर्जेंटीना का यह ओवरऑल तीसरा खिताब है। टीम 1978 में पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनी थी, वहीं फ्रांस का लगातार दूसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना अधूरा रहा गया। टीम 2018 में चैंपियन बनी थी। अर्जेंटीना ने वर्ल्ड कप में अब तक 5 फाइनल खेले हैं। इसमें से 2 जीते हैं। अर्जेंटीना ने वर्ल्ड कप 1930 में पहला फाइनल खेला था। 2014 में उसे जर्मनी ने 1-0 से हराया था। फ्रांस दूसरी बार वर्ल्ड कप के फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में हारा है। इससे पहले उसे 2006 में इटली के खिलाफ फाइनल मुकाबले में पेनल्टी शूटआउट में हार मिली थी। पिछले वर्ल्ड कप की तरह इस बार भी फ्रांस फाइनल में पहुंचा। 2018 में उसका मुकाबला क्रोएशिया से हुआ था। इस बार उसका मुकाबला मेसी की टीम अर्जेंटीना से था । इस वर्ल्ड कप से पहले फ्रांस के बड़े खिलाड़ी जैसे, बेंजेमा, पोग्बा, कांटे और एंकुकु चोटिल हो गए लेकिन इसके बाद भी टीम ने हिम्मत नहीं हारी और दुनिया की हर छोटी और बड़ी टीमों के साथ अर्जेंटीना के साथ रोमांचक खेल खेला। इसके बावजूद टीम के मैनेजर डिडियर डिस्चेम्पस ने एक संतुलित टीम बनाई और उसे लगातार दूसरी बार वर्ल्ड कप के फाइनल तक लेकर गए।</span></p><p><span style="font-size: large;">फीफा वर्ल्ड कप 2022 में कुल 32 टीमों ने इस बार भाग लिया और कुल 48 लीग मैच खेले। हर मैच उतार और चढ़ाव से भरपूर थे। इस विश्व कप में एशिया की टीमों ने अपने युवा खिलाडियों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया। जापान, दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब की टीमें भले ही आगे नहीं जा सकी लेकिन और हर मैच में अपने आकर्षक खेल से एशियाई देशों की टीमों ने करोड़ों फ़ुटबाल प्रेमियों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सेमीफ़ाइनल में फतह हासिल करने के बाद इस बार अर्जेंटीना के खिलाडियों के हौंसले इस कदर बुलंद थे कि फ़ाइनल में वह फ़्रांस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने में सफल हुई। फ़्रांस और अर्जन्टीना के बीच खेले गए फ़ाइनल मैच का रोमांच अंतिम समय तक बना रहा जिस कारण मैच एक्स्ट्रा टाइम तक जा पंहुचा। लियोनल मेसी अपना दूसरा वर्ल्ड कप फाइनल खेला। वह 2014 के फीफा वर्ल्ड कप फाइनल में भी अर्जेंटीना से खेले थे। तब टीम को जर्मनी ने 1-0 से हरा दिया था। मेसी के वर्ल्ड कप करियर का यह 26वां मैच भी रहा। मेसी ने जर्मनी के लोथार माथौस का रिकॉर्ड तोड़ा। इस खिलाड़ी ने फाइनल में अपने करिश्मे से सबका दिल जीत लिया। इसमें कोई दो राय नहीं इस बार के फीफा विश्व कप के हर मैच में फ़्रांस की टीम ने अच्छे खेल का प्रदर्शन किया लेकिन फ़ाइनल में टीम बहुत ज्यादा डिफेंसिव हो गई जिसके चलते अंतिम समय में टीम की रक्षापंक्ति बिखरती नजर आई। फ्रांस की टीम फाइनल हारने के बाद गम में डूबी उदास थी। उनके खिलाड़ी ग्राउंड पर ही रो पड़े। किलियन एम्बाप्पे वहीं बैठ गए। उन्हें उदास देख फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों उनके पास पहुंचे गए और एम्बाप्पे को गले लगा लिया।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">2014 के फाइनल मैच में अर्जन्टीना की टीम को जर्मनी की टीम को कड़ी टक्कर दी वहीँ अर्जन्टीना की टीम इस विश्व कप में भी लियोनल मेसी पर ज्यादा निर्भर रही। मेसी ने हर मैच में अपनी पकड़ मजबूत की वही टिकी –टाका खेल से इस विश्व कप में नई इबारत गढ़ने का काम किया और यह बता दिया अगर छोटे छोटे पासों के साथ खेला जाए तो हर टीम की रक्षापंक्ति के साथ भेदा जा सकता है । हर विश्व कप में अर्जन्टीना की टीम मेसी पर इस कदर निर्भर रहती है। अक्सर फाइनल में मैसी पर दबावों का पहाड़ खड़ा हो जाता था जिसके बोझ तले वह अपना वास्तविक खेल खेलने में नाकाम रहते थे लेकिन क़तर पहुंचे अर्जन्टीना के करोड़ों समर्थकों को इस बार मेसी ने निराश नहीं किया। अपने लाजवाब खेल का मुजायरा कर उन्होनें सबका दिल जीत लिया। फाइनल मैच में हर किसी खिलाड़ी का दिन होता है और फीफा में इस बार फ़ाइनल मेसी का दिन था और अपने स्वाभाविक खेल से उन्होनें अंतिम समय में फ़्रांस के खिलाडियों के तोते उड़ा दिए। फ़ाइनल मैच में अपने स्टार खिलाडी के चलने से यह विश्वकप अर्जन्टीना के नाम रहा। फ़्रांस के समर्थकों के हाव भावों को देखकर समझा जा सकता है जिनकी आँखों में मायूसी के आंसू नजर आ रहे थे। माराडोना ने अर्जेंटीना को वर्ष 1986 में वर्ल्ड कप जिताया था और इस बार मेसी ने कमाल कर दिखाया और खुद को रोनाल्डो, माराडोना से भी बेहतर साबित कर दिखाया। 2014 में ये टीम वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहुंची थी। 2018 में अर्जेंटीना राउंड ऑफ 16 में बाहर हो गई थी। 2021 में टीम ने वापसी की और कोपा अमेरिका ट्रॉफी अपने नाम की। टीम के हेड कोच लियोनल स्कालोनी टीम के लिए बहुत अच्छे साबित हुए हैं। स्कालोनी फीफा वर्ल्ड कप 2018 के बाद अर्जेंटीना के कोच बने। उसके बाद वे अर्जेंटीना को दो इंटरनेशनल ट्रॉफी दिला चुके हैं। टीम के मिड-फील्डर एंजल डी मरिया और डी पॉल भी हमेशा की तरह इस बार अच्छे फॉर्म में नजर आये । डिफेंस में लिसांड्रो मार्टिनेज के आने से यह टीम और मजबूत हो गई । वहीँ फाइनल खेलने वाली फ्रांस की टीम के नाम 2 वर्ल्ड कप का खिताब दर्ज थे । डिफेंडिंग चैंपियंस ने 2018 में वर्ल्ड कप जीता था। इससे पहले वर्ष 1998 वर्ल्ड कप पर भी फ्रांस ने कब्जा जमाया था। यूरो 2020 में फ्रांस राउंड ऑफ 16 में बाहर हो गया था। बेशक इस साल वह फाइनल में हार गई लेकिन उसकी टीम कुछ संतुलित नजर आई । टीम के स्टार स्ट्राइकर किलियन एम्बाप्पे पर सबकी नजर थी। पिछले एक साल बेंजेमा ने कमाल का फॉर्म दिखाया। इस साल उन्हें फुटबॉल का सर्वोच्च सम्मान भी मिला। बेंजेमा सरीखे कई खिलाडियों की चोट ने टीम को झटका दिया । इससे टीम के चैंपियन बनने की राह कठिन जरूर हुई लेकिन खिलाडियों के चोटिल होने के बाद भी टीम ने हार नहीं मानी। </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">जर्मनी की टीम को भी इस बार पहले बड़ा दावेदार माना जा रहा था लेकिन इस विश्व कप में जर्मनी के सारे सूरमा फीके पड़ गए। वैसे भी जर्मनी की टीम का दुर्भाग्य यह रहा कई मौकों पर जर्मनी की टीम वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल खेलती आई थी लेकिन फाइनल में या तो वह बाहर हो जाती थी या फ़ाइनल में वह रनर अप टीम रहती थी लेकिन इस बार भाग्य ने जर्मनी के खिलाडियों का साथ नहीं दिया और खिलाडियों में टीम स्प्रिट की कमी साफ़ नजर आई। </span></p><p><span style="font-size: large;"> यह फीफा विश्वकप कई मायनों में इस बार खास रहा। हर मैचों का रोमांच देखते ही बनता था और कई मजबूत समझे जाने वाली कई टीमों की विदाई जल्द हो गई। उरुग्वे , जर्मनी , ब्राजील , बेल्जियम का प्रदर्शन पूरी तरह से फीका रहा। फीफा वर्ल्ड कप में वर्ल्ड नंबर-2 बेल्जियम को मोरक्को के हाथों 0-2 से हार का सामना करना पड़ा वहीँ क्रोएशिया सरीखी टीम ने कई बार की चैम्पियन ब्राजील का बोरिया बिस्तरा बाध दिया और अपनी ख़ास छाप छोड़ी। क्रोएशिया के लिवाकोविच ने तो अपने प्रदर्शन से हर किसी को प्रभावित किया। </span></p><p><span style="font-size: large;">वर्ल्ड कप के इतिहास में ब्राजील के पास सबसे ज्यादा खिताब हैं। ब्राजील ने 5 बार वर्ल्ड कप जीता है। आखिरी बार 2002 में वर्ल्ड कप जीता था। 2018 में ब्राजील की टीम क्वार्टर फाइनल से बाहर हो गई थी। टीम को बेल्जियम के खिलाफ 2-1 से शिकस्त मिली थी। ब्राजील का अटैकिंग लाइनअप बहुत मजबूत था लेकिन इस बार उसकी टीम ने लोगों को निराश किया । फीफा टूर्नामेंट की शुरुआत 92 साल पहले 1930 में हुई थी। अब तक ब्राजील ने सबसे ज्यादा पांच बार इस खिताब को अपने नाम किया है, लेकिन वह 20 साल से ट्रॉफी नहीं उठा पाया है। ब्राजील पिछली बार 2002 में चैंपियन बना था। उससे पहले उसने 1958, 1962, 1970 और 1994 में खिताब अपने नाम किया था। ब्राजील के बाद जर्मनी और इटली चार बार चैंपियन बनी है। उसने 1954, 1974, 1990 और 2014 में खिताब जीतने में सफलता हासिल की थी। इटली 1934, 1938, 1982 और 2006 में चैंपियन बनी । अर्जेंटीना, फ्रांस और उरुग्वे की टीम दो-दो बार खिताब जीते । इंग्लैंड और स्पेन को एक-बार ट्रॉफी उठाने का मौका मिला है। नीदरलैंड, हंगरी, चेक गणराज्य, स्वीडन और क्रोएशिया की टीम फाइनल में पहुंचने के बाद भी चैंपियन नहीं बनी। पिछली बार 2018 में यह टूर्नामेंट रूस में खेला गया था। वहां फ्रांस ने फाइनल मैच में क्रोएशिया को हराया था। इस बार कई युवा सितारे आकर्षण का केंद्र बने जिनमें अर्जेंटीना के जूलियन अल्वारेज , स्पेन के गावी, ब्राजील के विनिसियस , क्रोएशिया के लिवाकोविच का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है। </span></p><p><span style="font-size: large;">फ़्रांस की क़तर में अर्जेंटीना के हाथो हार से शायद ही उसके प्रशंसक आने वाले दिनों में उबरे। जो भी हो विश्व कप आयोजन से पूर्व क़तर में खेल की तैयारियों को लेकर कई तरह के सवाल जरुर उठाये गए लेकिन क़तर ने अपने शानदार आयोजन से इस विश्व कप को यादगार बना दिया। क़तर में विश्व कप के दौरान खास तरह का चकाचौंध देखने को मिला। पूरा शहर रात में रौशनी से नहाया लग रहा था। पर्यटकों के लिए भी ये खूबसूरत शहर आकर्षण का केंद्र बना। कोरोना के बाद यहाँ का पर्यटन दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता नजर आया। कतर में हुआ विश्व कप भी उसकी प्रतिष्ठा के प्रदर्शन के लिए था। प्रवासी श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार और एलजीबीटीक्यू अधिकारों के प्रति संवेदनहीनता के लिए कतर की चाहे जितनी आलोचना की गई हो, विश्व कप के आयोजन से कतर ने लगभग वह सब हासिल कर लिया है, जो वह करना चाहता था। चार सप्ताह तक चले फुटबॉल मुकाबलों के बाद आज दुनिया में कतर की स्थिति मजबूत हुई है।। कतर में बड़ी संख्या में मोरक्को, मिस्र, जोर्डन, लेबनॉन के प्रवासी रहते हैं। भारतीयों और दक्षिण एशियाइयों की भी बड़ी तादाद नजर आई। इस बार विश्वकप के बहाने क़तर की अर्थव्यवस्था कुलाचें मारती नजर आई। टिकट को लेकर मारामारी भी खूब मची और फाइनल में तो टिकटों की कालाबाजारी भी चरम पर पहुंच गई जहाँ टिकट पाने के लिए लोगों को अपनी जेबें भी गरम करनी पड़ी। विश्व कप के आयोजन से कतर ने लगभग वह सब हासिल कर लिया है, जो वह करना चाहता था। इधर एशिया में भी फीफा का जलवा देखने को मिला। फुटबॉल से प्यार करने वाले करोड़ों दर्शकों ने जमकर देर रात तक जागकर टीवी स्क्रीनों में मैच का लुफ्त उठाया। भारत में भी करोड़ों लोगों ने इस बार फीफा के मैचो का आनंद अपने घर में लिया और बता दिया क्रिकेट के अलावे फ़ुटबाल की दीवानगी भी यहाँ सर चढ़कर बोल रही है। ‘क्रिकेट चालीसा’ टीवी में अब तक चलाते रहे भारतीय समाचार चैनलों ने भी पहली बार फुटबाल विश्व कप के मैचों को लेकर अपने विशेष प्रोग्राम चलाये जिस कारण लोगो में फुटबाल के हर मुकाबले को लेकर विशेष उत्सुकता देखने को मिली। भारतीय टीवी चैनलों का यह संकेत खेलों की सेहत के लिए कम से कम बहुत अच्छा कहा जा सकता है। अगर क्रिकेट से इतर अन्य खेलों के लिए मीडिया इसी तरह की कवरेज को प्रमुखता दे तो सभी खेलों के हमारे देश में ‘अच्छे दिन’ तो जल्द ही आ सकते हैं। </span></p><div><br /></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-2815472683885550522022-12-05T01:33:00.001-08:002022-12-05T01:38:28.190-08:00 शिवराज मामा के 'नायक' अंदाज की कायल हुई जनता<p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: 16px;"><br /></span></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: 16px;"> </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi401Dm69jmEUi2PM75Y8DXFLXealYtmZBUTLHUnXm9HgvDRSmwoyVO89np4_MZJ81YAjVSmb_UdeUYxlVWeAguqGGD0GEoLeU2lZtT2GgMrzLwDYEFAJEoQGPTNSkDtr36Bq1FO9Qj59ODM3WlQ3ojuMMgc3ju8OhzBD7-F9lKeaJIebzJ0mWQyphP/s1200/shivraj%20mama.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="313" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi401Dm69jmEUi2PM75Y8DXFLXealYtmZBUTLHUnXm9HgvDRSmwoyVO89np4_MZJ81YAjVSmb_UdeUYxlVWeAguqGGD0GEoLeU2lZtT2GgMrzLwDYEFAJEoQGPTNSkDtr36Bq1FO9Qj59ODM3WlQ3ojuMMgc3ju8OhzBD7-F9lKeaJIebzJ0mWQyphP/w457-h313/shivraj%20mama.jpg" width="457" /></a></div><br /><p></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-size: 16px;"><br /></span></p><p><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><span style="font-size: large;">मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तेवर आजकल कुछ बदले- बदले से नजर आने लगे हैं। अब वह न केवल जनता के बीच जा रहे हैं बल्कि ग्रामीणों , किसानों और विभिन्न योजनाओं के हितग्राहियों की समस्याओं को सीधे सुन रहे हैं। मुख्यमंत्री जनता के अदने से सेवक बनकर न केवल अफसरों को जनता की अदालत में सुधर जाने की नसीहत दे रहे हैं बल्कि मौके पर अधिकारियों की क्लास लगाने में देरी नहीं लगा रहे हैं और अफसरों को तत्काल निलंबित कर रहे हैं । खुद मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा है मध्य प्रदेश में अब नया ज़माना आ गया है। मुख्यमंत्री, मंत्री और शासन के सभी अधिकारी खुद चलकर अब जनता के बीच जाएंगे और उनके कार्यों को पूरा करेंगे। मध्यप्रदेश में अब केवल जनता का राज ही चलेगा। गड़बड़ी करने वाला कोई भी अधिकारी कितना ही बड़ा क्यों न हो अब मध्यप्रदेश में नहीं बचेगा। कमाने वाला खायेगा और लूटने वाला सीधे जेल जाएगा। सीएम शिवराज के प्रदेश भर में अचानक हो रहे ताबड़तोड़ औचक निरीक्षण से प्रदेश के प्रशासनिक अमले में हड़कंप मचा हुआ है।</span></span></p><span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">डिंडोरी जिले में सीएम का औचक निरीक्षण </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कल डिंडोरी जिले का औचक निरीक्षण करने पहुंचे, जहां मौके पर ही सीएम ने चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने शासन के आला अधिकारियों की भी जमकर क्लास ली। सूबे के मुखिया ने अब अपनी काम करने की शैली को बदलने का फैसला किया है। अब वह जनता के बीच जाकर खुद ग्राउंडजीरो पर बिना लाव लश्कर के पूरे प्रदेश का औचक दौरा कर रहे हैं । शनिवार को सीएम सुबह अचानक भोपाल से हेलीकॉप्टर पर सवार होकर निकले जिसकी भनक जिला प्रशासन तक को नहीं थी । इस दौरे को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया और सीएम बिना मोटर केड के साथ औचक निरीक्षण के लिए रवाना हुए । दोपहर में सीएम शिवराज डिंडोरी जिले के शाहपुरा सड़क मार्ग से पहुंचे और सीधे बेलगांव बदल मध्यम सिंचाई परियोजना का औचक निरीक्षण किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों और किसानों से मुलाकात भी की। इस दौरान काम में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को मौके पर निलंबित करने में देर नहीं लगाई। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">सीएम के औचक दौरों ने बढ़ाई अधिकारियों की टेंशन </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> एक साल बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। सरकार और जनता की दूरी को पाटने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज अब पूरी तरह से एक्शन माड में आ गए हैं। सीएम शिवराज के इस एक्शन से प्रदेश के प्रशासनिक विभाग में हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश में चल रही विभिन्न योजनाओं की प्रगति , हितग्राहियों से सीधे संवाद स्थापित करने समेत जनसमस्याओं को सुनने के लिए वह आने वाले दिनों में अलग-अलग जिलों का औचक दौरा किया करेंगे जिससे अधिकारियों की टेंशन बढ़नी तय है। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">बैतूल में मामा के एक्शन पर जनता ने बजाई तालियां </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">अभी कुछ दिन पहले बैतूल में मुख्यंत्री जन सेवा अभियान कार्यक्रम में पहुंचे सीएम शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से एक्शनमाड में नजर आए। काम में लापरवाही मिलने की सूचना पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मंच से ही अधिकारियों को सस्पेंड करने में देरी नहीं लगाई । सीएम को जब जिले में खनन की बहुत शिकायतें मिली तो उन्होनें इसलिए बैतूल जिले के माइनिंग अफसर को सस्पेंड करने में देरी नहीं लगाई । बैतूल जिले के सीएमएचओ, जेई की के खिलाफ बड़ी शिकायतें मिलने पर उन्हें तत्काल सस्पेंड कर दिया । सीएम शिवराज का ये अंदाज देख कार्यक्रम स्थल पर मौजूद अधिकारी कर्मचारी सकते में आ गए और वहीं जनता ने तालियां बजाकर सीएम शिवराज का अभिवादन किया। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white; font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">अधिकारियों की लापरवाही अब पड़ेगी भारी बड़वानी जिले में भी दिखे शिवराज के तल्ख़ तेवर </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">अभी कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा में आयोजित पेसा एक्ट जागरूकता कार्यक्रम के दौरान प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान तल्ख़ नजर आए। इस दौरान पीएम आवास में लापरवाही बरतने पर सीएम चौहान ने मंच से ही सेंधवा जनपद पंचायत के सीईओ को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।</span></span><div><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div><span style="font-size: large;"><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"> कार्यक्रम के दौरान पीएम आवास को लेकर कुछ शिकायतें सामने आने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंच से बड़ी कार्रवाई करने में देरी नहीं लगाई। मुख्यमंत्री ने कहा लापरवाही किसी भी कीमत में बर्दाश्त नहीं की जाएग । सीएम शिवराज ने मंच से कहा कि जनता को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए और अगर जनता को कोई दिक्कत हुई तो मामा उसको छोड़ेगा नहीं। </span><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">शिवराज के इस एक्शन अवतार की पूरे प्रदेश में सराहना हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को शिकायत भेजने की बात कर जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता को मध्य प्रदेश की मालिक बताते हैं इसलिए वह नहीं चाहते उनके कार्यकाल में आम जनता को किसी भी तरह की परेशानी हो। </span><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><b><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">चुनावी मूड में पूरी रौ में नजर आ रहे हैं मामा </span></b><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><br style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;" /><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;">मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते कुछ समय से अपने काम करने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज के रहते प्रदेश में मुख्यमंत्री निवास के दरवाजे आम जनता के लिए खुले। मुख्यमंत्री 18 -20 घंटे लगातार जनता के बीच रखकर काम करते हैं। सुबह 6 बजे से ही वह जिलों की समीक्षा करते नजर आते हैं। वर्चुअल मीटिंग में भी कलेक्टरों और अधिकारियों की तगड़ी क्लास लगाते हैं। जनता के बीच जाकर सीधे उनसे संवाद स्थापित करते हैं और मौके पर मुख्यमंत्री दरबार लगाते हैं और जन समस्याओं को सुनकर बड़ी कार्रवाई करने से परहेज नहीं करते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज को उनके इस नायक अवतार की पूरे प्रदेश में सराहना हो रही है। </span></span></div><div><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><div><span face="Helvetica, sans-serif, arial" style="background-color: white;"><span style="font-size: large;">मुख्यमंत्री शिवराज अपनी सभाओं में सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को शिकायत भेजने की बात कहकर जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता को मध्य प्रदेश की मालिक बताते हैं इसलिए वह नहीं चाहते उनके कार्यकाल में आम जनता को किसी भी तरह की परेशानी हो। मुख्यमंत्री शिवराज का जनता से यह जुड़ाव उनकी विलक्षण जननेता की छवि बनाने में बखूबी मददगार साबित हो रहा है।</span></span></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-27638867945495576062022-11-07T05:32:00.003-08:002022-11-07T05:32:47.233-08:00 ‘ फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म से ज्यादा फेवरेटिज्म है ’ <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKpRhqcTOOJDY6FK2l4al41w4DzflsFW77XGKj5HjvBT6IrfY-YYwsMitF2DrW1WXV6kW1aGwlxmQuRM3Ab0lxtvhOVJqXbGnloOj7NkyEklltCNZo4Gs1IIl1nMAxf9at3mrO1j3tonJLKQCsOzHKxTEcScbT95vceYG7Nfec-bh_KFQ-umph7mhd/s1200/Amit-Soni-2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKpRhqcTOOJDY6FK2l4al41w4DzflsFW77XGKj5HjvBT6IrfY-YYwsMitF2DrW1WXV6kW1aGwlxmQuRM3Ab0lxtvhOVJqXbGnloOj7NkyEklltCNZo4Gs1IIl1nMAxf9at3mrO1j3tonJLKQCsOzHKxTEcScbT95vceYG7Nfec-bh_KFQ-umph7mhd/w406-h320/Amit-Soni-2.jpg" width="406" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /> </span><p></p><p><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial;"><span style="font-size: large;"> </span></span></p><p><i><span style="font-size: medium;"><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;">मुंबई सपनों की नगरी है। इस मायानगरी में हर साल लाखों लोग एक्टर बनने का सपना लिए अपना घर छोड़ कर आते हैं लेकिन अभिनेता बनना इतना आसान नहीं होता है। इसके पीछे कई सालों का संघर्ष और खुद की मेहनत होती है। अमित सोनी इंडियन डायमंड इंस्टीट्यूट सूरत (गुजरात) से ज्वैलरी डिजाइनिंग में गोल्ड मेडलिस्ट रहे और बाद में एमबीए भी किया। कुछ साल हांगकांग, चीन, ओमान जैसी विदेशी सरजमीं में ज्वैलरी इंडस्ट्री में नाम रोशन किया । फिर भारत वापस आकर पीसी ज्वैलर्स में मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के रीजनल हेड रहे । इसी दौरान उन्हें लगा अब तक दूसरों के सपने के लिए इतनी मेहनत की अब खुद के सपने के लिए नई </span><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"><span style="text-size-adjust: 100%;"> उड़ान </span>भरूंगा<span style="text-size-adjust: 100%;">। </span></span></span></i><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"><i><span style="font-size: medium;"> अपने सपनों को साकार करने के लिए वह अपनी ज्वैलरी की जॉब को छोड़कर देश के हृदयस्थल मध्य प्रदेश को छोड़कर सीधे मुम्बई चले गए। एक इंटरनेशल ज्वैलरी डिजायनर से लेकर एक अभिनेता बनने तक का उनका अब तक का सफर तमाम चुनौतियों और संघर्ष से भरा रहा है। <br style="text-size-adjust: 100%;" /><br style="text-size-adjust: 100%;" />अमित सोनी ने बचपन से ही अपनी रचनात्मक कहानी कहने की कला को प्रस्तुत करना शुरू कर दिया था। वह अपने कहानी कहने के कौशल से अपने परिवार, स्कूल और दोस्तों को हैरत में डाल देते थे। अमित सोनी ने अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत सबसे बड़े टीवी शो ‘सावधान इंडिया ’ से की। उसके बाद उन्हें 'एनआरआई दुल्हा ' में भूमिका निभाई लेकिन किन्हीं कारणों के चलते वो रिलीज नहीं हो पाया। फिर डीडी नेशनल का ‘ना हारेंगे हौसला हम’, ‘बेटा भाग्य से बिटिया सौभाग्य से’ किया। इसके बाद स्टार प्लस के प्रसिद्ध सीरियल ‘ये है मोहब्बतें’ की सफलता से उन्हें सर्वश्रेष्ठ नकारात्मक भूमिका और सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए एक प्रतिष्ठित छवि मिली जिसके बाद उनकी सफलता को मानो नए पंख ही लग गए। ‘फियर फाइल्स’, ‘ससुराल सिमर का’, ‘सलाम इंडिया ’, ‘ श्रीमद् भागवत महापुराण ’, ‘परम अवतार श्रीकृष्ण ’ जैसे सीरियल में उनके दमदार अभिनय को देश और दुनिया में सराहना मिल चुकी है। यही नहीं , उनकी 'शुद्धि ' फिल्म मैनचेस्टर लिफ्ट आफ फिल्म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित पाइनवुड अवार्ड के लिए चयनित हुई, जिसे राष्ट्रीय वा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 13 अवार्ड मिले। उनकी पहली वेब सीरीज़ ‘जाह्नवी ’ (लीड) सोनी लिव जैसे प्रतिष्ठित चैनल से रिलीज हुई थी। कोरोना लाकडाउन के दौर में उन्होनें 22 सेलिब्रिटियों के साथ एक नया एल्बम गीत ‘सारा हिंदुस्तान’ में अभिनय किया और इसे प्रोड्यूस भी किया जिसमें जाकित हुसैन, सुरेश बेदी , रोहिताश गौड़, सुरेश बेदी, सोनू सूद जैसे फिल्म जगत के दिग्गज सितारे शामिल थे।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />आज अपने अभिनय के चलते अमित सोनी बॉलीवुड में किसी परिचय के मोहताज नही हैं। अमित सोनी मूल रूप से द सिटी ऑफ़ लेक 'भोपाल' से ताल्लुक रखते हैं। अमित सोनी मानते हैं कि बहुत से लोग मुंबई आते हैं और अभिनेता बनने के लिए कोर्स करते हैं , लेकिन यह इतना आसान नहीं होता है। आपको रातों रात अभिनेता बनाने के लिए कोई कैप्सूल नहीं होता है और संघर्ष तो हर एक क्षेत्र में होता है। अमित के लिए अभिनय एक बड़ी सहज प्रक्रिया है। उनकी मानें तो दिल से किया गया अभिनय वो है जो दूसरों के दिलों को छू लेता है। </span></i><br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-size: large;"> </span><br style="text-size-adjust: 100%;" /></span><span style="background-color: white; font-family: Helvetica, sans-serif, arial; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: medium;"><i><span style="text-size-adjust: 100%;">अभिनेता अमित सोनी <span style="text-size-adjust: 100%;">से</span></span><span style="text-size-adjust: 100%;"> </span>उनके करियर और फिल्म इंडस्ट्री की यात्रा को लेकर विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश</i></span><br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;"><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: medium;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /> सागर के छोटे से कस्बे से लेकर मुंबई की मायानगरी की यात्रा ये जो सफर है आप इसे कैसे देखते हैं ?</span></span><span style="font-size: medium;"><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /> मेरी जिन्दगी में बहुत उतार और चढ़ाव रहा है। मेरी पैदाइश वैसे तो सागर की है लेकिन बैरासिया में मेरा बचपन गुजरा है। उसके बाद कुछ वक्त विदिशा, फिर सागर रहा। बुंदेलखंड से मेरा एक ख़ास लगाव रहा है। मुझे गर्व है कि मैं मध्यप्रदेश से हूँ। मैंने अपनी उच्च शिक्षा गुजरात से प्राप्त की। ज्वैलरी डिजाइनिंग का कोर्स भी किया। गोल्ड मेडलिस्ट रहा। देश – विदेश की कई बड़ी कंपनी में काम किया उसके बाद एक्टिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाया। इसी दौरान सावधान इण्डिया का ऑडिशन भी चल रहा था। उसमें मेरा चयन हुआ और उसमें काम किया। मेरे गुरु गोविन्द नाम देव जी हैं। उन्होंने मुझे सुझाव दिया भोपाल में वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक चटर्जी से जाकर एक बार मिलें। उनके साथ काम करने का बेहतरीन अवसर मिला। बॉलीवुड अभिनेता इरफ़ान खान से मुलाकात भोपाल में हुई और उनसे प्रेरणा लेकर 'ये हैं मोहब्बतें 'सीरियल में काम किया। मैंने अपनी एक कंपनी भी रजिस्टर्ड की और जब मैं मुंबई गया तो वहां पर मेरी मदद करने वाला कोई नहीं था इसलिए मेरी कोशिश रहती हैं कि मैं लोगों की दिल से मदद करूँ। <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />सोनी लिव चैनल में 'जान्हवी' वेब सीरीज आई थी। इसके अलावा जी से मेरा सांग 'तू जो मिला खुदा मिला' भी लांच हुआ था। वो मैंने मलेशिया में शूट किया और इसका शेष बचा हुआ भाग मैंने भोपाल के पीपुल्स वर्ल्ड में शूट किया था। इसके अलावा टी सीरीज का 'खलिश' गाना था जो मैंने भोपाल और इंदौर शूट किया था। अभी जो मैंने ' स्क्र्यू यू' करके अपने बैनर यानी 'अमित सोनी एंटरटेनमेंट' की शार्ट फिल्म बनाई है जो एक मैंने बड़े ओटीटी प्लेटफार्म पर पिच किया है। बहुत अच्छी टीम जुड़ गई है मेरी। मैंने साउथ फिल्म के कुछ डायरेक्टर और प्रोड्यूसर को भी भोपाल घुमाया है। 2 फिल्म इंडस्ट्री के बड़े कलाकारों को भी जल्द में भोपाल ला रहा हूँ ताकि मध्य प्रदेश में फिल्म निर्माण की संभावनाओं को तराशा जा सके। मैं चाहता हूँ कि जब बॉलीवुड हो सकता है। टालीवुड हो सकता है तो फिर अपना भोपालीवुड क्यों नहीं हो सकता है? हमारा भी एक हब बनना चाहिए। ऐसा नहीं हैं भोपाल में आजकल बहुत सारे शूट हो रहे हैं। कई बड़े बड़े एक्टर शूट कर रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि जो कहानियां हैं जो आज तक हमारे सामने नहीं आई वो कहानियाँ भी उभर कर आये। जहाँ आपने जन्म लिया होता है वहां के कर्जदार आप ज्यादा होते हैं।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">आप बहुत अच्छे इंटरनेशनल ज्वैलरी डिजाइनर रहे हैं और आज भी डिजाइन के प्रोफेशन को आपने छोड़ा नहीं है इसकी कोई ख़ास वजह ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />आपने कहावत सुनी होगी चूहे का बच्चा है तो बिल तो खोदेगा । अब मेरे नाम में ही 'सोनी' है। ज्वैलरी मेरा बैकग्राउंड भी हैं। अभिनय से मुझे तसल्ली मिलती हैं और ज्वैलरी के बिजनेस से मुझे साइड बाई साइड आय होती है। एक अभिनेता की जो जिन्दगी होती है वो हमेशा अप नहीं होती और हमेशा डाउन नहीं होती। उतार और चढ़ाव जीवन के हिस्से रहते हैं। जो मेरे पुराने ग्राहक हैं वो आज भी मुझसे ही ज्वैलरी खरीदना चाहते हैं। <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">हाल के वर्षों में देखें तो सिनेमा में बहुत से बदलाव आये हैं। आप देख रहे होंगे ओटीटी प्लेटफार्म पर काफी सारी बेव सीरीज आ गई है। बड़े -बड़े कलाकार भी आजकल ओटीटी प्लेटफार्म का रूख कर रहे हैं। तो आप इस बदलाव को एक कलाकार के नजरिये से कैसे देख रहे हैं ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />बदलाव तो हमेशा आता है लेकिन ब्लैक एन्ड व्हाइट टेलीविजन से हम कलर टीवी में आने में हमने कितने दशक देखे हैं। उसी तरह से हर दशक में सिनेमा में भी बदलाव आये हैं। होता ये है कि हम आज के बदलाव को देखकर पीछे के बदलाव को भूल जाते हैं। जैसे आप देखेंगे कि नब्बे के दशक के जो गाने थे वो अलग किस्म के थे। आप किशोर कुमार के गाने सुनेंगें तो उसमें एक अलग कल्चर दिखेगा। मुकेश का आपको एक अलग कल्चर दिखेगा। गोविन्दा की फिल्में अलग तरह की।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /> तो ये जो बदलाव है उन्हें मैं दो तरह से देखता हूँ। दरअसल कोविड के बाद आदमी के पास वक्त था उसने ओटीटी प्लेटफार्म को समझा ही नहीं था। अब उसके बाद वक्त मिला ओटीटी प्लेटफार्म में वेब सीरीज देखने को मिली। अब इंसान को वक़्त देखने को मिला है। यदि आपका कंटेंट अच्छा है, क्रिएटिव है तो जनता उसे पसन्द करेगी। जो कंटेंट है आज उसकी ही मांग है और यही बदलाव है। दूसरी ओर बहुत खास बात है अगर आप साउथ की फिल्मों को देखते हैं तो वो अपने कल्चर को नहीं छोड़ते हैं। हम एकदम से एडवान्स हो जाते हैं। हम अपने कल्चर को छोड़ देते हैं और हम इतना हाई क्लास चले जाते हैं कि उससे हमारा व्यूअर कनेक्ट नहीं होता। हमें कल्चर को भी नहीं छोड़ना है और नया कंटेंट भी चाहिए।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;"> आप गाने भी करते हैं, सीरियल भी करते हैं और फिल्में प्रोड्यूस भी करते हैं। एक अच्छे ज्वैलरी डिजाइनर भी हैं। आप किस भूमिका में अपने आपको सहज मानते हैं ?<br style="text-size-adjust: 100%;" /> </span><br style="text-size-adjust: 100%;" />एक्टर के तौर पर आपके लिए यही चुनौती है कि आप किसी भी करेक्टर को ना नहीं कहें। मैं ऐज आन ऐज एक्टर हर चीज को इंजाय करता हूँ। मुझे हर भूमिका जीने में मजा आता है। जैसे मैंने एक कपल पार्टी वेब सीरीज की है जो अमेजन प्राइम पर आने वाली है तो उस समय जो मेरे डायरेक्टर थे, उन्होंने कहा कि अमित कुछ अलग चाहिए तो मैं अलग अलग किरदार में खुद को सहज समझता हूँ। जब आप कुछ नया करते हैं तो वो अलग होता है। किरदार के हिसाब से गेट अप बदलना, बॉडी ट्रांसफार्मेशन भी करता हूँ। मैंने जब "शुद्धि" फिल्म की थी तब मेरा वजन 92 किलो था, फिर मैंने 24 किलो वजन भी काफी मेहनत करके घटाया जो कि मेरे लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">मुंबई का सफर बहुत चुनौतीपूर्ण रहता है। आपने खुद कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया। जो नये लोग आ रहे हैं इस फिल्म इंडस्ट्री में उनके लिए कितना चुनौतीपूर्ण टास्क है? नये लोगों के लिए जगह बनाना और एक नया मुकाम हासिल करना ?<br style="text-size-adjust: 100%;" /> </span><br style="text-size-adjust: 100%;" />मैं बहुत स्टेट फारवर्ड बोलता हूँ। एक अच्छा कलाकार वह है जो थियेटर करता है। ये आपको आप को एक परफेक्ट पैकेज बनाता है। कई बार लोग नेपोटिज्म की बात करते हैं तो नेपोटिज्म आखिर है क्या? आप अपना एक मुकाम हासिल करते हो। बीस पच्चीस साल बिजनैस करते हैं और जाहिर सी बात है कि आप आपने पड़ोसी के तो वारिस बनागे नहीं। वैसे ही दृष्टि में लोग नेपोटिज्म की जगह फेवरेटिज्म होता है आप किसी एक पर्टिकुलर ग्रुप का हिस्सा है तो आपको बढ़ावा दिया जाएगा। नेपोटिज्म इस इंडस्ट्री में है लेकिन इतना नहीं है जितना फेवरेटिज्म है। ऋतिक रोशन , वरुण धवन, आलिया भट्ट, श्रद्धा कपूर है। इन्होनें बकाया मेहनत भी की और एक्टिंग भी सीखी। डांस भी सीखा। फिजिक भी बनाई तभी एक पूर्ण पैकेज बनकर आए।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />मेरा कहना है अगर आप मुंबई जा रहे तो आपका सबसे पहले एक बहुत अच्छा पैसों का बैकअप भी होना चाहिए कि आप दो से पांच साल आप वहां सरवाईव कर सकें तो ही आप जाएं वर्ना मत जाइए क्योंकि एक फिल्म में चयन होने से लेकर रिलीज होने तक छह महीने तक या साल भर तक लग जाते हैं और ऐसा तो नहीं है कि आपको जाने से काम मिल जाए। दूसरी बात आपको एक उचित ट्रेनिंग लेकर जाना चाहिए। एक फुल ऐसा पैकेज होना चाहिए कि आपको कोई रिजेक्ट ना कर सके। इसके अलावा अगर आप ये सोचते हैं कि फेसबुक या इन्ट्राग्राम पर हजार लाइक आ चुके हैं और आपको एक्टिंग फिल्म में जाकर काम करना है तो मेरी सलाह रहेगी आप न जाएँ।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">आज का जो युवा है वो थियेटर को छोड़कर सिनेमा की तरफ अपना रूख करना चाहता है तो इस बात से आप कहां तक इत्तेफाक करते हैं ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />मध्य प्रदेश में मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा है दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा भी है। और भोपाल में ही देखिए कितने अच्छे थिएटर है, आप देखिए कि एनएसडी से जितने भी पास आउट हैं। आप उनको देख लें, उनके भीतर स्टेबलेटी है। नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, मनोज वाजपेयी, ये सब क्या है ? एनएसडी से पासआउट है आज भी वो सरवाइव क्यों कर रहे हैं ? आपको एक्टिंग फिल्म में आने से पहले एक उचित ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी। आप सिर्फ देखने में खूबसूरत हैं इसलिए बॉलीवुड में चले जाएंगे मुझे नहीं लगता कि ये बहुत किस्मत की बात है, करोड़ों लोगों में से कुछ लोगों को मौके से ऐसा अवसर मिलता है। <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">रंगमंच इस क्षेत्र में सफलता के लिए बेहद जरूरी है लेकिन आम आदमी इतना रूचि नहीं लेता। अब भोपाल के भीतर ही देखें टिकट लेकर देखने की प्रथा बिल्कुल भी खत्म हो गई है। इससे आप कितना इत्तेफाक रखते हैं ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />मैं इस बात से सौ प्रतिशत इत्तेफाक़ रखता हूँ। बॉलीवुड में आज जो लोग हैं और मुंबई में लोग आज जितने भी बड़े - बड़े कलाकार हैं वो बीच- बीच में जाकर थियेटर करते हैं। वो समझते हैं कि थियेटर एक ऐसा समंदर है, इसमें जितना तैरते हैं, उतना सीखते हैं। लोग आज इतने प्रैक्टिकल हो गए हैं कि उन्हें आज रेडी टू ईट चाहिए वो उस चीज को देखना चाहते हैं कि उन्होंने कितने महीने तक तैयारी की । लोग आज मनी माइंडेड हो रहे हैं। <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">रंगमंच को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए सरकार की कोशिशों को किस तरह से आप देखते हैं? क्या करना चाहिए ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />थियेटर को घर- घर तक पहुँचाना चाहिए क्योंकि कई थियेटर कलाकारों को स्थिति बेहद दयनीय है। सरकार को थियेटर को दुनिया के नक़्शे पर पहुँचाने के लिए मीडिया के माध्यमों का उपयोग करना चाहिए।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /> <span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">मध्य प्रदेश में फिल्म निर्माण की संभावनाओं को आप किस तरह से देखते हैं?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />खूबसूरत लोकेशंस के अलावा सुविधाजनक स्थल होने की वजह से डायरेक्टर्स फिल्म की शूटिंग के लिए मध्य प्रदेश आ रहे हैं। फिल्म निर्माताओं को शूटिंग की अच्छी लोकेशन यहां आसानी से मिल जाती है, साथ ही मध्य प्रदेश सरकार फिल्म के अनुकुल बुनियादी ढांचा स्थापित करने के उसे प्रोत्साहन भी दे रही है। यहाँ पर शूटिंग के लिए परमिशन और एनओसी मिलना भी अन्य राज्यों की अपेक्षा आसान है। मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में लगातार हो रही शूटिंग के चलते ही हाल ही में 68 वें राष्ट्रीय फिल्म में मध्य प्रदेश ने 13 राज्यों को पीछे छोड़ते हुए दूसरी बार मोस्ट फ्रेंडली स्टेट का दर्जा पाया है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />पूरे देश में फिल्मों के निर्माण के लिए मध्य प्रदेश सब्सिडी सबसे अच्छी दे रहा है। मध्य प्रदेश सरकार फिल्म निर्माण के क्षेत्र को बढ़ावा देना के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। यही वजह है कि लोग लगातार यहाँ आकर शूट कर रहे हैं। सरकार को छोटे प्रोडूयूसर को भी सब्सिडी में सहायता देनी चाहिए।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">कोरोना के बाद देखें तो ओटीटी प्लेटफॉर्म में कंटेंट की बाढ़ सी आ गई है। क्या आपको लगता है कि आने वाले समय में ओटीटी प्लेटफार्म एक चुनौती बन सकता है?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />पहले स्टार बिकता था। आज कंटेंट बिकता है चाहे ओटीटी हो या फिल्म।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">आने वाले समय में आपके क्या प्रोजेक्ट हैं? किन पर आप अभी काम कर रहे हैं ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />मेरे दो प्रोजेक्ट हैं जिसमें दो मेरी वेब सीरीज और फिल्म पर काम चल रहा है और बहुत जल्द ही गाना भी आएगा। मैं फरवरी या मार्च 2023 तक किसी बड़े स्टार के साथ काम करते आपको दिख सकता हूँ। अमित सोनी इंटरटेनमेंट पूरे देश में फिल्म प्रोडक्शन का कार्य कर रही है , साथ ही भारत से बाहर विदेशों में भी नए प्रोजेक्ट प्लान कर रहे हैं , इससे पहले हमने मलेशिया भी सॉन्ग शूट किया था " तू जो मिला खुदा मिला "जो गाना जी म्यूजिक से लॉन्च हुआ था ,<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">अभी तक आपने जो भी किरदार निभाए हैं उसे पूरी तरह से जीने की कोशिश की चाहे आपने जो भी किया। ऐसा कोई किरदार जो आपको बहुत भाता हो ?<br style="text-size-adjust: 100%;" /> </span><br style="text-size-adjust: 100%;" />मिस्टर तनेजा का निभाया किरदार मुझे बहुत अच्छा लगता है। तनेजा के किरदार से मुझे पहचान मिली। मेरे पन्द्रह दिन के रोल को उन्होंने 11 महीने दिए।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">एक कलाकार के जीवन में उतार और चढ़ाव तो आते रहते हैं। कभी ऐसा कोई लगा हो जिससे आपको नकारात्मक लगा हो?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />जब आप किसी किरदार को निभाते हैं तो कमेंट तो पढ़ते हैं।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;"> अभी तक आपको जो सम्मान मिला है उसके बाद आपकी चुनौतियाँ और जिम्मेदारी बढ़ जाती है कुछ नया करने की?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />अभी तक जो कुछ भी मिला है उसके लिए मैं भगवान का शुक्रगुजार करता हूँ। 'शुद्धि ' फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 13 अवार्ड मिले। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नॉमिनेट होना गर्व की बात है। जो मिलना अभी बाकी है उस पर मेरा फोकस है। लाइफटाइम एचिवेमेंट अभी तक नहीं मिला है इसलिए अभी मेरी दौड़ जारी है।<br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" /><span style="font-weight: 700; text-size-adjust: 100%;">आज के युवा जो इस क्षेत्र में आना चाहते हैं उनके लिए क्या सन्देश देना चाहते हैं आप ?</span><br style="text-size-adjust: 100%;" /> <br style="text-size-adjust: 100%;" />फ्लाइट उड़ानी है तो आपको पायलट की ट्रेनिंग लेनी होगी। इसी तरह फिल्म में करियर बनाने के लिए फुल पैकेज बनना होगा।</span></span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-27044870941934387142022-11-04T05:48:00.001-07:002022-11-04T05:48:33.616-07:00 उत्तराखंड का लोक पर्व इगास ( बूढ़ी दिवाली)<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglCKyUg_nUSqgHtCpzycLoRnro0Q8XD9ZyJpPjsGqSLVJSy6R8cuBkw5ZJjPbKEz90pPwwb-XaDqC_iaY8oO3BUdiNyUCjJ94LinSwXnt_5SGO5zEJh-xLsuC2IhMFh4YIqani2ZNBApgCQgeRYCqZ8Zo27Yu9B26K3cDl-D1iJ8M8nBsqOAai7MnE/s704/BUDI%20DIWALAI.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="339" data-original-width="704" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglCKyUg_nUSqgHtCpzycLoRnro0Q8XD9ZyJpPjsGqSLVJSy6R8cuBkw5ZJjPbKEz90pPwwb-XaDqC_iaY8oO3BUdiNyUCjJ94LinSwXnt_5SGO5zEJh-xLsuC2IhMFh4YIqani2ZNBApgCQgeRYCqZ8Zo27Yu9B26K3cDl-D1iJ8M8nBsqOAai7MnE/w474-h228/BUDI%20DIWALAI.jpg" width="474" /></span></a></div><p></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> इगास का अर्थ है एकादशी। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहा जाता है। दिवाली के 11 दिन बाद आने वाली शुक्ल एकादशी को गढ़वाल में इगास का उत्सव होता है। कुमाऊं में देवोत्थान एकादशी को बलदी एकादशी भी कहा जाता है। कार्तिक माह की एकादशी का बड़ा महत्व रहा है। </span></p><p><span style="font-size: large;"> देवउठनी एकादशी के दिन से विष्णु भगवान देवलोक की कमान सँभालते हैं और इसी दिन से सभी शुभ मांगलिक कार्य भी आरंभ हो जाते हैं। इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि भगवान विष्णु चार महीने की लंबी नींद से जागते हैं और फिर भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं। इसी के साथ इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार के सभी मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। इस खास मौके पर भगवान शालिग्राम का तुलसी माता से विवाह करने की परंपरा है। </span></p><p><span style="font-size: large;"> पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर गढ़वाल में 11 दिन बाद मिली इसी कारण से गढ़वाल में दिवाली 11 दिन बाद मनाई गई। वैसे कहा जाता है कि गढ़वाल में चार बग्वाल दिवाली होती है। पहली कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी फिर अमावस्या वाली बड़ी दिवाली जो पूरा देश मनाता है। इस दिवाली के 11 दिन बाद आती है इगास बग्वाल और चौथी बग्वाल बड़ी दिवाली के एक महीने बाद वाली अमावस्या को मनाते हैं। चौथी बग्वाल जौनपुर प्रतापनगर, रंवाई जैसे इलाकों में मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में भगवान राम जी के अयोध्या पहुंचने की खबर एक महीने बाद पहुंची इसलिए यहाँ पर भी दिवाली एक महीने बाद मनाई गई।</span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><span style="font-size: large;">गढ़वाल एक वीर माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 बरस पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत की सेना से युद्ध लड़ने के लिए भेजा। इसी बीच दिवाली का भी त्यौहार था लेकिन इस त्यौहार पर कोई भी सैनिक अपने घर नहीं लौट सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनकी सेना के सभी सिपाही युद्ध में शहीद हो गए लेकिन दिवाली के ठीक 11 दिन बाद माधो सिंह अपने सैनिकों के साथ सकुशल तिब्बत से द्वायाघाट युद्ध जीतकर वापस लौट आये जिसकी जीत की ख़ुशी में लोगों ने अपने घरों में दिए जलाये और विशेष पकवान बनाये और तभी से यह परंपरा चल पड़ी। उस दिन एकादशी तिथि थी जिसे इगास नाम दिया गया और ख़ुशी में सभी थिरकने लगे। </span></p><p><span style="font-size: large;">एक अन्य मान्यता के अनुसार जब पांडव हिमालय में थे तो भीम का असुर के साथ युद्ध चल रहा था और जब भीम असुर का वध कर सकुशल लौटे तो गांव में इसी इगास के दिन दिए जलाकर लोग खुशियां मनाने लगे। इगास बूढ़ी दिवाली में कुछ विशिष्ट परंपराएं भी साथ साथ चलती हैं। इगास में घर आंगन की लिपाई और पुताई होती है। साथ ही घर के गौवंश की पूजा सेवा भी विशिष्ट रूप से होती है। इस दिन सुबह ही गाय बैलों के सींग पर तेल लगाया जाता है और तिलक लगाकर गले में माला डालकर पूजा जाता है। साथ ही पींडू (चावल, झंगोरे, मंडुआ से बना गौवंश का पौष्टिक आहार) दिया जाता है। गढ़वाल के पारंपरिक व्यंजन पूरी, भूड़े (उड़द दाल की पकौड़े), स्वाले(दाल से भरी कचौड़ी) तो बनते ही हैं साथ ही जो बच्चे इन गाय बैलों को चराकर या सेवा करके लाते हैं उन्हें भेंट स्वरूप मालू के पत्ते पर पूरी, पकौड़ी और हलवा दिया जाता है जिसे ग्वालढिंडी कहा जाता है।साथ ही मोटी रस्सी भी खींची जाती है। इस परंपरा में रस्सी को समुद्र मंथन में वासुकी नाग की तरह समझा जाता है।</span></p><p><span style="font-size: large;">गढ़वाल अंचल में लोग भैलो खेलकर अपना उत्साह दिखाते हैं। भैलो को अंध्या भी कहा जाता है जिसका अर्थ अंधेरे को दूर करने वाला होता है। भैलो जंगली बेल की बनी रस्सी होती हैं जिसके एक छोर पर छोटी छोटी लकड़ियों का छोटा गट्ठर होता है यह लकड़ी चीड़ देवदार या भीमल के पेड़ की छाल होती हैं जो ज्वलनशील होती हैं। इसे दली या छिल्ला कहा जाता है। इगास के दिन लोग सामूहिक रूप से मिलकर भैलो जलाते हैं। लोग अपने को राम की सेना मानते हैं और सामने पहाड़ी के लोग जो अपना भैलो जलाते हैं उन्हें रावण की सेना कहकर व्यंग्य करते हुए नृत्य गान भी करते हैं। </span></p><p><span style="font-size: large;">उत्तराखंड के जौनसार में देश की दीपावली के एक माह बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली मनाने का रिवाज है। हालांकि बावर व जौनसार की कुछ खतों में नई दीपावली मनाने का चलन शुरू हो गया है, लेकिन यहां पर भी बूढ़ी दीवाली को मनाने का तरीका अनोखा था ।कुमाऊं में भी बूढ़ी दिवाली अरसे से मनाई जाती है। जनश्रुतियों के अनुसार हरिबोधिनी एकादशी के मौके पर तुलसी विवाह किया जाता है। कूर्मांचल पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है। तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। इस मौके पर लोग अपने घरों में रात में दिए जलाते हैं और पूजा पाठकर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। </span></p><p><span style="font-size: large;"> हरबोधनी एकादशी को कुमाऊँनी लोग बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाते हैं। घर-घर में पुनः दीपावली मनाई जाती है।इस दिन कुमाऊँनी महिलाऐं गेरू मिट्टी से लीपे सूप में और घर के बाहर आंगन में गीले बिस्वार द्वारा लक्ष्मी नारायण एवं भुइयां (घुइयां) की आकृतियां चित्रित करती हैं। सूप के अंदर की ओर लक्ष्मी नारायण व तुलसी का पौधा तथा पीछे की ओर सूप में भुइयां ( यानि दुष्टता, इसकी आकृति वीभत्स रूप में होती है) को बनते हैं।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> गृहणियां दूसरे दिन ब्रह्म मुहूरत में इस सूप पर खील, बतासे, चुडे़ और अखरोट रखकर गन्ने से उसे पीटते हुए घर के कोने कोने से उसे इस प्रकार बाहर ले जाती हैं जैसे भुइयां को फटकारते हुए घर से निकाल रही हों।इस सब का तात्पर्य है कि लक्ष्मी नारायण का स्वागत करते हुए घर से दुष्टता, दरिद्रता तथा अमानवीयता आदि का अन्त हो और घर में सदैव सुख, शान्ति एवं सात्विकता का वास हो।"आ हो लक्ष्मी बैठ नरैणा,निकल भुईंया निकल भुईयां "उच्चारण करते हुए रात्रि के अन्तिम पहर में भुईंया महिलाओं द्वारा निकाला जाता है। लोग अपने खेती से जुड़े औजारों को हल, सूप, मोसल को गेरुवा के उपर चावल के विस्वार से डिज़ाइन बना कर रखते हैं और शाम को पूवे - पूरी व पांच पकवान बना कर खिल बतासे ले कर ओखल पर हल लगा कर पूजा की जाती है।</span></p><p><span style="font-size: large;"> कुमाऊं में बैलों के माथे पर फुन लगाने की परम्परा भी लम्बे समय से चली आ रही है। पहाड़ के बुजुर्ग लोग बताते हैं पहले के दौर में लोग खेती के काम आने वाले अपने बैलों की इस ख़ास अवसर पर पूजा करते थे और उनको रोली, चन्दन और टीका लगाकार पूजते थे। इसके बाद इनके सींगों पर सरसों का तेल लगाकर रंग बिरंगी फुन बांधते थे। साथ ही प्रात में अपने अपने बैलों के लिए विशेष तरह के पकवान बनाकर खिलाया करते थे लेकिन आज के स्मार्ट फ़ोन और व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के दौर में यह परंपरा सिर्फ रस्म भर रह गई है। पहाड़ों से लोगों का पलायन जहाँ हो रहा है वहीँ खेती जंगली जानवरों की भेंट चढ़ती जा रही है। गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं और पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती। यहां की नई पीढ़ी अपने गावों से लगातार कटती जा रही है। </span></p><p><span style="font-size: large;">आज पहाड़ में लोगों ने जहां खेती-बाड़ी छोड़ दी है, वहीं पशुपालन घाटे का सौदा बन गया है, क्योंकि वन संपदा लगातार सिकुड़ती जा रही है। उत्तराखंड में रोजी रोटी की जटिलता, संघर्ष और रोजगार के समुचित अवसर न होने के चलते पलायन को बढ़ावा मिला है। राज्य के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में ढाई लाख से ज्यादा घरों पर ताले लटके हैं। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों के गांवों में रहने वाली रौनक कहीं गुम हो चली है। गांव वीरान हो रहे हैं तो खेत-खलिहान बंजर में तब्दील हो गए हैं। बावजूद इसके गांव अब तक की सरकारों के एजेंडे का हिस्सा नहीं बन पाए हैं। यदि बनते तो शायद आज पलायन की भयावह ऐसी तस्वीर नहीं होती। पलायन और आधुनिकता की चकाचौंध के चलते भले ही पारंपरिक इगास दिखना थोड़ा कम हो गया है लेकिन आज बहुत सी संस्थाएं पहाड़ ही नहीं मैदानी क्षेत्रों में भी इगास का आयोजन करती हैं जहां उत्तराखंडी व्यंजन के साथ भैलो खेल का भी आयोजन किया जाता है।</span></p><p><span style="font-size: large;">भाजपा के राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी अपने नवाचारों के कारण जाने जाते रहे हैं। वह पहाड़ की परम्पराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में हर संभव कोशिशें करते रहे हैं। पिछले कुछ बरस में अगर इगास ( बूढ़ी दिवाली) के रूप में लोकप्रिय हुआ है तो इसमें उनकी बड़ी भूमिका को नहीं नकारा जा सकता। उन्होनें मेरा वोट मेरे गाँव और अपने गाँव मनाये इगास कार्यक्रमों के माध्यम से प्रवासी उत्तराखंडियों को देश और दुनिया तक जोड़ने में सफलता पाई है। आज उन्हीं के प्रयासों से पहाड़ में इस तरह की परम्परा जीवित है। नई पीढ़ी में उत्तराखंड के लोक पर्व इगास ( बूढ़ी दिवाली) को लेकर अब उत्सुकता नजर आ रही है। उत्तराखंड सरकार ने भी पिछले वर्ष से इस अवसर पर राजकीय अवकाश देना शुरू किया है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। अभी तक दूसरे राज्यों के त्योहारों पर यहाँ अवकाश दिया जाता था जिससे अपने त्यौहार ग्लोबल स्वरुप ग्रहण नहीं कर पाते थे। उम्मीद है इस साल से पहाड़ी इगास देश और दुनिया में अपनी चमक बिखेरेगी। </span></p><div><br /></div>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8407967071695439104.post-64701657360461513542022-10-31T05:31:00.000-07:002022-10-31T05:31:05.724-07:00 देश का दिल 'मध्य प्रदेश ' बन रहा फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद<p><span style="font-size: large;"> </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCCUyo7bqzEJZ1FkqEVFyi5xVFJM4FkVWEifbqEPjGuabWAYEpkCSbBLSqc_he5gEpk0HOZxJr4-wly0WPFWY7B1EcJII228Eek3kQW2Y1LYKY_3-Uw25pF2X1TCpaM_7HNQ7ILnfrk_zTrWM03zG2rOlScLvjJTehIVgVk8aCld5sOXQeEaYP7i7b/s390/gcbv-390x220.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="220" data-original-width="390" height="251" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCCUyo7bqzEJZ1FkqEVFyi5xVFJM4FkVWEifbqEPjGuabWAYEpkCSbBLSqc_he5gEpk0HOZxJr4-wly0WPFWY7B1EcJII228Eek3kQW2Y1LYKY_3-Uw25pF2X1TCpaM_7HNQ7ILnfrk_zTrWM03zG2rOlScLvjJTehIVgVk8aCld5sOXQeEaYP7i7b/w401-h251/gcbv-390x220.jpg" width="401" /></span></a></div><span style="font-size: large;"><br /></span><p></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">मध्य प्रदेश 1 नवंबर को अपना 67वां स्थापना दिवस मानने जा रहा है। कभी पिछड़ा और बीमारू कहा जाने वाला मध्यप्रदेश आज विकास की राह पर तेजी से बढ़ रहे राज्यों की श्रेणी में अग्रणी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश ने विकास की नई संभावानाएं तलाशने के साथ ही उपलब्धियों के कई आयाम भी गढ़े हैं। आज प्रदेश की पहचान फिल्म उद्योग के लिए अपार अवसरों के रूप में हुई है। मध्यप्रदेश में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई फिल्म नीति के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। प्रदेश में मिल रही बेहतर सुविधाओं के कारण आज फिल्म निर्माताओं का रुझान मध्यप्रदेश की तरफ बढ़ा है। फिल्मांकन के लिए आवश्यक अनुमतियां प्राप्त करने में अब किसी के आगे चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं। एक ही प्लेटफार्म पर सभी अनुमतियां आसानी से मिल जाती हैं। पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश में फिल्मों की शूटिंग की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। शिवराज सरकार प्रदेश में फिल्म उद्योग को लगातार प्रोत्साहित कर रही है।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><b><span style="font-size: large;">फिल्म निर्माताओं को आकर्षित कर रहा देश का दिल </span></b></p><p><span style="font-size: large;">शूटिंग के लिए खास एवं बेहद खूबसूरत लोकेशंस के अलावा सुविधाजनक स्थल होने की वजह से डायरेक्टर्स मध्यप्रदेश खिंचे चले आते हैं। फिल्म निर्माताओं को शूटिंग की अच्छी लोकेशन यहां आसानी से मिल जाती हैं, साथ ही मध्यप्रदेश सरकार फिल्म के अनुकूल बुनियादी ढांचा स्थापित करने के साथ- साथ उसे प्रोत्साहन भी दे रही है। यहाँ शूटिंग के लिए परमिशन और एनओसी मिलना भी अन्य राज्यों की अपेक्षा आसान है। मध्यप्रदेश सरकर ने 2016 में पर्यटन बोर्ड का गठन किया और 2019 में फिल्म के लिए अपनी पॉलिसी जारी की। वर्तमान में यह देश का ऐसा राज्य है, जो शूटिंग के लिए 5 श्रेणियों में सब्सिडी दे रहा है। प्रदेश में फिल्म निर्माण की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए फिल्म पर्यटन नीति 2020 लागू की गई है। इसमें फिल्मांकन की अनुमति अलग-अलग कार्यालयों की जगह एक स्थान से दिए जाने की व्यवस्था बनाई गई है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म, टीवी सीरियल या वेब सीरीज के लिए अधिकतम 10 करोड़ रुपये तक अनुदान देने का प्रविधान किया गया है। वहीं, राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए 25 प्रतिशत या दो करोड़ रुपये, टीवी सीरियल अथवा वेब सीरीज के लिए 25 प्रतिशत या एक करोड़ रुपये तक अनुदान देने की व्यवस्था है। इसी तरह डाक्यूमेंट्री के लिए अधिकतम 40 लाख रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। राज्य के स्थानीय कलाकारों को फिल्म निर्माण में लेने पर 25 लाख रुपये अतिरिक्त देने का प्रविधान है। फिल्म से संबंधित अधोसंरचना विकास पर 30 प्रतिशत तक अनुदान के साथ फिल्म से जुड़े अमले के लिए पर्यटन विभाग के होटल और रिसार्ट में ठहरने पर 40 प्रतिशत छूट दी जाती है। प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास के लिए फिल्म सिटी, फिल्म स्टूडियो, कौशल विकास केंद्र आदि स्थापित करने निजी निवेश को प्रोत्साहन और भूमि देने का प्रावधान भी नीति में किया गया है। फिल्म सिटी के निर्माण के लिए विभिन्न जिलों में भूमि भी आरक्षित की जा रही है। अभी तक प्रदेश में 100 से ज्यादा फिल्म, सीरियल और वेब सीरीज की शूटिंग हो चुकी है।</span></p><p><b><span style="font-size: large;">दूसरी बार मोस्ट फ्रेंडली स्टेट </span></b></p><p><span style="font-size: large;">मध्यप्रदेश में बुनियादी ढाँचा तैयार कर फिल्म निर्माताओं को यहाँ निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे प्रदेश को देश और दुनिया में नई पहचान मिल रही है। राज्य सरकार ने फिल्म पर्यटन नीति लागू कर अपनी प्रतिबद्धता को दिखा दिया है। हाल के वर्षों में सरकार द्वारा शूटिंग की अनुमति को आसान बनाया गया है, जिससे प्रदेश में फिल्म निर्माताओं की रूचि बढ़ी है। राज्य सरकार फिल्मों को प्रोत्साहन दे रही है, जिसके अन्तर्गत थीम पार्क और सेल्फी पॉइंट भी बनाये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में लगातार हो रही शूटिंग के चलते ही हाल ही में 68 वें राष्ट्रीय फिल्म में मध्यप्रदेश ने 13 राज्यों को पीछे छोड़ते हुए को दूसरी बार मोस्ट फ्रेंडली स्टेट का दर्जा पाया। इसका कारण यहाँ की बेस्ट लोकेशन और सरकार से मिलने वाली सब्सिडी और शूटिंग के लिए सिंगल विंडो परमिशन है।</span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><b><span style="font-size: large;">मुख्यमंत्री शिवराज की अपील का हुआ बड़ा असर</span></b></p><p><span style="font-size: large;">मध्य प्रदेश को मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट पुरस्कार दिए जाने की घोषणा पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के नागरिकों, पर्यटन विभाग के अधिकारियों एवं फिल्म उद्योग से जुड़े सभी साथियों को बधाई दी साथ ही उन्होंने सभी पर्यटकों को प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के सौंदर्य से समृद्ध मध्यप्रदेश आने के लिए आमंत्रित किया, जिसके बाद से प्रदेश में फिल्म निर्माण की कोशिशें परवान चढ़ने लगी। राजधानी भोपाल में बड़ा तालाब, वन विहार, भारत भवन, गौहर महल, पुरानी विधानसभा, कमला पार्क, किलोल पार्क जैसी लोकेशन फिल्म निर्माताओं को निःशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही हैं। </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><b><span style="font-size: large;">कई फिल्में हो चुकी हैं शूट</span></b></p><p><span style="font-size: large;">मध्यप्रदेश लम्बे समय से फिल्म निर्माण के लिए पसंदीदा जगहों में शामिल रहा है। नया दौर, दिल दिया दर्द लिया, चम्बल की कसम जैसी कई फिल्में मध्यप्रदेश में शूट हुईं, जिनके शूट नरसिंहगढ़, मांडवगढ़, शिवपुरी में फिल्माए गए। राजनीति, प्यार किया तो डरना क्या, तेवर, पान सिंह तोमर,दबंग, पंचायत- 2 वेब सिरीज, सूरमा भोपाली, पीपली लाइव, चक्रव्यूह, गंगाजल 2 जैसी कई फिल्मों की शूटिंग मध्य प्रदेश में हुई है। मध्यप्रदेश न केवल फिल्मों बल्कि अब वेब सीरीज की शूटिंग के लिए भी निर्माताओं की पहली पसंद बनता जा रहा है। अब तक कई फिल्में प्रदेश की खूबसूरत लोकेशंस में शूट हो चुकी हैं। हाल ही में रघुबीर यादव की हरी ओम की शूटिंग पूरी हुई है। फिल्म के सभी शूट भोपाल में ही किये गए हैं। विगत वर्षों में सिंह साहब द ग्रेट, पंगा, जैसी कई फिल्मों के दृश्य भोपाल और इंदौर में फिल्माए गए। अशोका, यमला पगला दीवाना, दबंग 2 जैसी फिल्मों के दृश्य नर्मदा और महेश्वर की खूबसूरत लोकेशंस पर फिल्माए गए। चंदेरी में स्त्री मूवी, ग्वालियर में लुकाछुपी सभी को मध्यप्रदेश में फिल्म बनाने के लिए लुभा रही है। बीते कुछ वर्षों में फिल्मों के साथ ही अनेकों वेब सीरीज भी प्रदेश में शूट हुई है जिनमें गुल्लक, आश्रम 3, पंचायत, शिक्षा मंडल के शूट भोपाल में ही शूट हुए। राजश्री प्रोडक्शन की एक विवाह ऐसा भी, गली गली में चोर है, राजनीति, आरक्षण, सत्याग्रह, गंगाजल, क्रेजी नुक्कड़ सरीखी कई दर्जन फिल्में भोपाल, पचमढ़ी, होशंगाबाद के आसपास शूट हुई। </span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><b><span style="font-size: large;">2022 में भी कई फिल्म निर्माताओं के किया प्रदेश का रुख</span></b></p><p><span style="font-size: large;"> इस साल प्रदेश में राजकुमार संतोषी के निर्देशन में गांधी वर्सेज गोडसे को शूट किया गया। वहीं, नवाजुद्दीन और अवनीत कौर की फिल्म टिक्कू वेड्स शेरू, गौहर खान की वेब सीरीज शिक्षा मंडल, हुमा कुरैशी की वेब सीरीज महारानी 2, अक्षय कुमार और इमरान की फिल्म सेल्फी, भोपाल और उसके आसपास के इलाकों में हुई। नवम्बर में बुलबुल मैरिज हाल, रहे इश्क़ की शूटिंग शुरू होगी, जिनमें दिवाली के बाद कई बड़े सितारे आने हैं। जिनमें पुलकित सम्राट से लेकर अली फजल, उर्मिला मतोड़कर से लेकर कृति खरबंदा के नाम शामिल हैं। बड़े बजट की कई फिल्में आने वाले वर्षों में बॉलीवुड में आने वाली हैं जिनकी शूटिंग मध्यप्रदेश की विभिन्न लोकेशनों पर होगी। प्रतीक गांधी और ऋचा चड्डा की वेब सीरीज ग्रेट इंडियन मर्डर 2 की शूटिंग भी यहाँ प्रस्तावित है। मध्यप्रदेश में 2022 के अंत तक दर्जन भर से अधिक फिल्में और वेब सीरीज की शूटिंग पूर्ण होगी। </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><b><span style="font-size: large;">मप्र पर्यटन विभाग और फिल्म निर्माताओं के बीच हुआ एमओयू</span></b></p><p><span style="font-size: large;">मध्य प्रदेश में जल्द ही बड़े बजट की मेगा स्टार फिल्मों की शूटिंग भी होगी। इसके लिए मप्र पर्यटन विभाग और प्रसिद्ध फिल्म निर्माताओं के बीच एमओयू हुआ है। इससे बड़े बजट और मेगास्टार फिल्मों की शूटिंग प्रदेश में होगी, साथ ही फिल्म पर्यटन से प्रदेश में रोजगार की संभावनाएं बढ़ेगी।</span></p><p><span style="font-size: large;"> एमओयू के अनुसार फिल्म निर्माताओं को प्रदेश के विभिन्न पर्यटन स्थलों की अनुमति, समन्वय हेतु सिंगल विंडो सुविधा एवं म.प्र. पर्यटन इकाई में फिल्म के क्रू के लिए आकर्षक डिस्काउंट मिलेगा। फिल्म निर्माताओं द्वारा लगभग 50 करोड़ का निवेश आने वाले 5 वर्षों में किया जाएगा, जिसमें फिल्म, वेब सीरीज, डाक्यूमेंट्री आदि सम्मिलित हैं। शिवराज सरकार की ये कोशिशें अगर परवान चढ़ी तो आने वाले दिनों में यहां एक बड़ी फिल्म सिटी भी प्रदेश में नया आकार ले सकती है। </span></p>Harshvardhanhttp://www.blogger.com/profile/03416011520058251827noreply@blogger.com0