
हिलजात्रा एक तरह का मुखोटा नृत्य है .... यह ग्रामीण जीवन की पूरी झलक हमको दिखलाता है... भारत की एक बड़ी आबादी जो गावों में रहती है उसकी एक झलक इस मुखोटा नृत्य में देखी जा सकती है... हिलजात्रा का यह उत्सव खरीफ की फसल की बुवाई की खुशी मनाने से सम्बन्धित है... इस उत्सव में जनपद के लोग अपनी भागीदारी करते है...
"हिल " शब्द का शाब्दिक अर्थ दलदल _ कीचड वाली भूमि से और "जात्रा" शब्द का अर्थ यात्रा से लगाया जाता है ... कहा जाता है मुखोटा नृत्य के इस पर्व को तिब्बत ,नेपाल , चीन में भी मनाया जाता है... उत्तराखंड का सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ सोर घाटी के नाम से भी जाना जाता है ...यहाँ पर वर्षा के मौसम की समाप्ति पर "भादों" माह के आगमन पर मनाये जाने वाला यह उत्सव इस बार भी बीते दिनों कुमौड़ गाव में धूम धाम के साथ मनाया गया...इस उत्सव में ग्रामीण लोग बड़े बड़े मुखोटे पहनकर पात्रो के अनुरूप अभिनय करते है.....
कृषि परिवेश से जुड़े इस उत्सव में ग्रामीण परिवेश का सुंदर चित्रण होता है......इस उत्सव में मुख्य पात्र नंदी बैल , ढेला फोड़ने वाली महिलाए, हिरन, चीतल, हुक्का चिलम पीते लोग, धान की बुवाई करने वाली महिलाए है .... कुमौड़ गाव की हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण "लखिया भूत " होता है... इस भूत को "लटेश्वर महादेव" के नाम से भी जानते है॥ मान्यता है यह लखिया भूत भगवान् भोलेनाथ का १२वा गण है ... कहा जाता है इसको प्रसन्न करने से गाव में सुख समृधि आती है... हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण लखिया भूत उत्सव में सबके सामने उत्सव के समापन में लाया जाता है... जिसको २ गण रस्सी से खीचते है...यह बहुत देर तक मैदान में घूमता है ..... माना जाता है यह लखिया भूत क्रोध का प्रतिरूप है...... जब यह मैदान में आता है तो सभी लोक इसकी फूलो और अक्षत की बौछारों से उसका हार्दिक अभिनन्दन करते है...इस दौरान सभी शिव जी के १२ वे गण से आर्शीवाद लेते है...कहते है इस भूत के प्रसन्न रहने से गाव में फसल का उत्पादन अधिक होता है ...
कृषि परिवेश से जुड़े इस उत्सव में ग्रामीण परिवेश का सुंदर चित्रण होता है......इस उत्सव में मुख्य पात्र नंदी बैल , ढेला फोड़ने वाली महिलाए, हिरन, चीतल, हुक्का चिलम पीते लोग, धान की बुवाई करने वाली महिलाए है .... कुमौड़ गाव की हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण "लखिया भूत " होता है... इस भूत को "लटेश्वर महादेव" के नाम से भी जानते है॥ मान्यता है यह लखिया भूत भगवान् भोलेनाथ का १२वा गण है ... कहा जाता है इसको प्रसन्न करने से गाव में सुख समृधि आती है... हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण लखिया भूत उत्सव में सबके सामने उत्सव के समापन में लाया जाता है... जिसको २ गण रस्सी से खीचते है...यह बहुत देर तक मैदान में घूमता है ..... माना जाता है यह लखिया भूत क्रोध का प्रतिरूप है...... जब यह मैदान में आता है तो सभी लोक इसकी फूलो और अक्षत की बौछारों से उसका हार्दिक अभिनन्दन करते है...इस दौरान सभी शिव जी के १२ वे गण से आर्शीवाद लेते है...कहते है इस भूत के प्रसन्न रहने से गाव में फसल का उत्पादन अधिक होता है ...
कुमौड़ वार्ड के पूर्व सभासद गोविन्द सिंह महर कहते है यह हिलजात्रा पर्व मुख्य रूप से नेपाल की देन है... जनश्रुतियों के अनुसारकुमौड़ गाव की "महर जातियों की बहादुरी के चर्चे प्राचीन काल में पड़ोसी नेपाल के दरबार में सर चदकर बोला करते थे ... इन वीरो की वीरता को सलाम करते हुए गाव वालो को यह उत्सव उपहार स्वरूप दिया गया..... तभी से इसको मनाने की परम्परा चली आ रही है ..... आज भी यह उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता है......
well harsh tumne achcha likhha hai but kuch shabd ko samjhne me paresani hui hai jaise dela ka matlab nahi samajh aya........
ReplyDeleteakash dela matlab mitti ka dhela.......jo khet me hota hai.. jab hal chalate hai to in dhelo ko phodkar mitti ko bareek kiya jaata hai.....
ReplyDeletevery nice article..... bahut achche se hiljatra ke baare me likha hai... yah jaankar khushi hui aapki boltikalam khoob bolti hai....
ReplyDeleteaap uttarakhand ke shasakt hastaksar hai......
harsh ji aap uttarakhand ke ubharte sitare hai....apni maati se blog me bhi aapka naata aaj bhi juda hua hai... yah khushi ki baat hai.... achcha laga is post me aapne hiljatra ke baare me jaankari di.... shukria....
ReplyDeleteisi tarah se aapki kalam chalti rahe .....
बहूत अच्छी रचना. कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारे.
ReplyDeletecongrats Harsh for the acclaim...
ReplyDeleteइस दौरान सभी शिव जी के १२ वे गण से आर्शीवाद लेते है...कहते है इस भूत के प्रसन्न रहने से गाव में फसल का उत्पादन अधिक होता है ...
ReplyDeleteभाई प्रसन्नता और उत्पादन अधिक मिलाने के लिए तो कुछ भी करना कम है.
इतने बढ़िया उत्सव की जानकारी दे कर ज्ञान वर्धन किया, उसके लिए हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
aapka andaaj aisha lagta hai ki aap maati se jure logon mein se hain. apni mitti ki khushbu ko u hi bikherte rahna prabhu aapki manokamna avashya purna karenge.
ReplyDeletebahut achhi lagi apki post.....
ReplyDeleteलोकसंस्कृति का सीधा जुडाव मानव जीवन से होता है.
ReplyDeletepehli line ne hi impress kar diya....
bahut hi achcha likha hai aapne harsh....
लोकसंस्कृति का सीधा जुडाव मानव जीवन से होता है.
ReplyDeletepehli line ne hi impress kar diya....
bahut hi achcha likha hai aapne harsh....
BAhut kuch janne ko mila.Aabhar.
ReplyDeleteis nrety ki laankaari ke liye aabhaar ......... achha likha hai ..wonderful article ..... sometime i feel how we need to know more about our country ..
ReplyDeletebahut shaandar likha hai aapne .
ReplyDeleteApni mitti ki sugandh yaad dila di aapne .
बहुत ही सुंदर और विस्तार से हिलयात्रा के बारे में लिखा है आपने! अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteइतने बढ़िया उत्सव की जानकारी दे कर ज्ञान वर्धन किया, उसके लिए हार्दिक आभार.
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