Sunday, 13 December 2009

डाक-डिब्बे का शव ..


लिखा है...पिनकोड उपयोग किजिए।
उपयोग तो हो रहा है, मगर पिनकोड के लिए नहीं बल्कि पत्थरों के लिए। क्या ट्विटर वाले तो ये पत्थर नहीं फैंक गए हैं? या फिर ई-मेल या एसएमएस वाले? ये लाल-काला डिब्बा कितनी जिंदगियों के बिछोह और मिलन के संदेश अपने में समेटे रहता था, ये बात आज कुछ के लिए समझना असंभव है। जिस दिन से यहां पिनकोड और चिट्ठी-पत्री की जगह पत्थर पड़ने लगे उसी दिन से हम जुड़कर भी अलग हैं, मिलन में भी बिछड़े हुए हैं, खुश होकर भी दुखी हैं, मैसेज पाकर भी संदेश हीन हैं, अपनों के होते हुए भी बिना अपनत्व के हैं।

बड़ा दुख होता है यह सोचकर ही कि वह वक्त यूं ही भूला दिया गया। वो चिट्ठियां भेजने का सिलसिला यूं ही खत्म कर दिया गया। हमारे अपने पास होकर भी कितने दूर हो गए। सभी हमारी जेब के जरिए हमसे संपर्क में हैं फिर भी हम अपनों का हाल नहीं जान पा रहे हैं।

9 comments:

  1. तकनिकी युग में ऐसा ही होगा अब तो.....

    ReplyDelete
  2. abhi to shuruat hai aage jane kis kis ke sath kya kya hoga dekhte rahiye
    please remove this word verification

    ReplyDelete
  3. sab jamane ki baat hai...... takneek ka kamal hai aaj patra koi lokhna nahi chahta........... well done... nice pic

    ReplyDelete
  4. हो सकता है, अब हमें बच्चों को यह बताना पड़े कि चिट्ठी किसे कहते हैं.

    ReplyDelete
  5. यह स्थिति आधुनिकता और तकनीकी विकास की देन है!
    खतों का दौर ही अलग था.

    ReplyDelete
  6. Khaton me jo apnatva hua karta tha wah email ya sms me kahan.

    Nav varsh ki dheron shubkamnayen.

    ReplyDelete
  7. खुबसूरत रचना
    नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
    आभार

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. bechara dibba. majnu ki tarah patthar kha raha hai

    ReplyDelete