Wednesday, 7 January 2009

रचनात्मकता को प्रेरित करता रहा है हिमालय ......

शताब्दियों से ही हिमालय देवाताऊ एवं ऋषि मुनियों के आध्यात्मिक तुस्टी के साथ साथ भोतिक सम्पदा भी प्रदान करता आ रहा है | ऋषि मुनियों को उसने तपस्या के चेत्र में संरख्चन ही प्रदान नही किया अपितु अपने अनुपम सोंदर्य के कारन वह कवि न हिरदयों का भी काव्यधार भी बनता रहा है| पुरा विरतू में वर्जित अनेक गौरव गाथा उसकी इसी गरिमा को पुष्ट करती है| भोतिक सम्पदा के रूप में हिमालय ने जहाँ अनेक सर सरिता और अतुल्य खनिज भंडार पदान किए है वहीँ उसने अपनीशीतल और पवन स्वाभाव के अनुकूल भारत को सौम्यता भी पदान की है | राजनीतिक दृष्टीसे उसका महत्त्व और भी बढ जाता है| सदियों से वह उत्तर भारत का अडिग प्रहरी रहा है|अध्यात्मिक जगत में उसके महत्त्व को इसे बात से आकलित किया जा सकता है की उसके दर्शन मात्र से मानव के सारे पापू का परिहार हो जाता है | महाकवि कालिदास ने भी इस एकमात्र देवात्मा हिमालय को ही जैसे समपूर्ण विश्व संस्कृति एवं सभ्यता के मानदंड के रूप में वर्णित किया है ...."अस्य उत्तरास्याम दिशि देवात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज पूर्वो परो तोय निधि वगाह्य स्थितः प्रिथिव्याम एव मान्दंडा"

विद्वानों की धारणा है की आरम्भ में हिमालय छेत्र में समुद्र हिलारे लिया करता था | निश्चय ही भारतउपमहादीप में कोई ऐसा महान सृष्टी परिवर्तन अथवा प्रलय हुआ होगा जिसके फलस्वरूप यह इलाका विश्व के सर्वोच्च पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया | क्युकि भूगर्भ विशारदो का अनुमान है की तिब्बत की ओर हिमालय पर्वत में ऐसे पत्थर मिले है, जो पहले वनस्पति ओर जीव जंतु थे| लदाख ओर कश्मीर के बीच जास्कर पर्वत श्रेणी में भी इसी प्रकार के जीव नुक्नी माईत का पता चला है जो किसी समय समुद्र में रहता था|( आर्यों का आदि देश में भजन सिह ) परिवर्तन का कारण चाहे जो भी रहा हो, हिमालय जन्मना ही प्रकृति का अनुपम उपहार रहा है|

हिमालय की शुभ्रता और पावनता वैदिक काल से ही स्तुत्य एवं वन्दनीय रही है| ऋग्वेद के रचियताओ से लेकर अधुनातम काव्यकार अनेक रूपों में हिमालय का नमन करते हुए उसकी आराधना करते आ रहे है| महाभारतकार का कथन है की हिमालय के तपोवन में साधनारत वान्प्रस्ती और विरक्त ब्राह्मणों के साथ साथ गृहस्ताको को भी उत्तम लोको की प्राप्ति हुई है| सांसारिक दुख दारिद्य को विस्मित कर अब वह लोग सवर्ग स्थित स्वर्गा श्रम में देवताओ के साथ विचरण करते है| विश्व में एक मात्र यही पर्वतराज है जो तपस्वियों के आध्यात्मिक संरख्चन देने के साथ साथ भोगियों को भी अतुल सम्पदा प्रदान करता है| संस्कृत काव्याकारू में कालिदास ने अपनी हर रचना में हिमालय के सौन्दर्य का वर्णन किया है| उनके अनुसार हिमालय की शिलाये वहां विचरण करने वाले मिरगो की नाभि गरंथो से सुवासित रहती है| वहां पर विश्राम करने पर पथिको का श्रम मिट जाता है | वे शैल शिखर अतुल सौन्दर्य सम्पन्न्ह है|

संस्कृत कृतिकारों से इतर आंग्ल लेखको ने भी विभिन्न द्रिस्तियो से हिमालय के सौन्दर्य का वर्णंन किया है| अपने भोगोलिक सर्वे में शोरिंग ने कैलाश हिमालय की सुषमा का वर्णन करते हुए कहा है "इस सीमी छेत्र में मुक्ताओ के मध्य हीरो की भांति कुछ ऐसे शिखर है संसार के सर्वोच्च हिम्शिखारो में से एक है"

हिमालय के विस्तार से प्रभावित होकर सर जॉन ने अपनी पुस्तक में इसकी गरिमा का बखान करते हुए लिखा है" मैंने यूरोप के बहुत पर्वतो को देखा है लेकिन अपनी विशाल और भव्य सौन्दर्य में उनमे से कोई भी हिमालय की तुलना में नही आ सकता |
बटन ने तो इसकी तुलना स्विट्जर्लैंड से कर डाली है | वह लिखते है " प्रकृति अपनी विशालता के साथ यहाँ पर बहुत खुश रही है | यहाँ हर खुली जगह में ठीक स्विट्जर्लैंड जैसे गाव है जिनके चारो ओर देवदारू के पेड है "|
जहाँ तक हिमालय के विस्तार का सवाल है वहां के निवासी इसकी पावनता से प्रेरणा लेते है| इस पर्वतीय लोगो के स्वाभाव में जो भी निस्कलुता , निश्चलता , सरलता रही है उसे हिमालय की देन कहा जाएगा | यह देवात्मा आज भी यहाँ के निवासियों को अध्यात्म , सत्य ओर सुंदर की ओर अनु प्रेरित करता रहा है| वे जहाँ कही भी कार्यरत रहते है , नामित भाव से उसका स्मरण करते है|
बहरहाल , हिमालत की महानता और गरिमा उसके सौन्दर्यात्मक उपकरणों में निहित नही है अपितु सौम्यता , धवलता , पावनता के रूप में भी उसका गौरव है | उसकी सांस्कृतिक गरिमा ही भारतीय संस्कृति को अनेक रूपों में अनुप्राणित करती हुई उसको विश्व सभ्यता में सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है .......|

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