Monday, 1 September 2025

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी: भारतीय ज्ञान परंपरा, विरासत और विज्ञान का संगम


मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आज भोपाल स्थित मुख्यमंत्री निवास समत्व में विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का अनावरण और इसके मोबाइल ऐप का लोकार्पण किया। यह घड़ी भारतीय काल गणना की प्राचीन और विश्वसनीय पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर देश और दुनिया को एक अनूठा उपहार प्रदान करती है।यह आयोजन न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित होगा।


विक्रमादित्य वैदिक घड़ी दुनिया की पहली ऐसी घड़ी है जो भारतीय काल गणना प्रणाली पर आधारित है। यह घड़ी पारंपरिक 24 घंटे के समय को 30 मुहूर्तों में विभाजित करती है जो प्राचीन भारतीय पंचांग के सिद्धांतों पर आधारित है। यह न केवल समय, बल्कि तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, मास, व्रत, और त्योहारों की जानकारी भी प्रदान करती है। इसके मोबाइल ऐप में 3179 विक्रम संवत पूर्व (श्रीकृष्ण के जन्म) से लेकर 7000 वर्षों से अधिक के पंचांग की दुर्लभ जानकारियां समाहित हैं। यह ऐप 189 से अधिक वैश्विक भाषाओं में उपलब्ध है जिसमें दैनिक सूर्योदय और सूर्यास्त की गणना और इसी आधार पर हर दिन के 30 मुहूर्तों का सटीक विवरण शामिल है जिससे यह भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर ले जाने में सक्षम है।इस घड़ी की एक विशेषता यह है कि प्रचलित समय में वैदिक समय (30 घंटे), वर्तमान मुहूर्त स्थान यह भारतीय मानक समय (IST) और ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) के साथ-साथ मौसम की जानकारी, जैसे तापमान, हवा की गति, आर्द्रता भी प्रदर्शित करती है। इसके अतिरिक्त यह धार्मिक कार्यों और साधना के लिए मुहूर्तों की जानकारी और अलार्म की सुविधा प्रदान करती है।

यह घड़ी भारतीय काल गणना के केंद्र उज्जैन नगरी से जुड़ी हुई है जो प्राचीन काल में समय गणना का केंद्र रहा और कर्क रेखा पर स्थित होने के कारण आज भी समस्त खगोलीय गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण है।विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के मोबाइल ऐप में 3179 विक्रम पूर्व (श्रीकृष्ण के जन्म), महाभारतकाल से लेकर 7000 से अधिक वर्षों के पंचांग, तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, मास, व्रत एवं त्यौहारों की दुर्लभ जानकारियां समाहित की गई हैं।

वैदिक घडी का लोकार्पण समारोह का आयोजन आज भोपाल में अत्यंत उत्साह के साथ किया गया। इस अवसर पर सुबह शौर्य स्मारक पर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के युवा और विद्यार्थी एकत्रित हुए। वहां से "भारत का समय – पृथ्वी का समय" थीम पर आधारित एक बाइक और बस रैली शुरू हुई, जो श्यामला हिल्स थाने तक गई। इसके बाद रैली पैदल मार्च में बदलकर मुख्यमंत्री निवास समत्व के मुख्य द्वार तक पहुंची। इस आयोजन में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने युवाओं के साथ संवाद कार्यक्रम में भाग लिया जिसमें "विक्रमादित्य वैदिक घड़ी: भारत के समय की पुनर्स्थापना" विषय पर गहनचर्चा हुई।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का प्रथम लोकार्पण 29 फरवरी 2024 को उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। उज्जैन में यह उपयुक्त स्थान पर स्थापित हो चुकी है । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस परियोजना की नींव 2022 में उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए रखी थी और इसके लिए विधायक निधि से 1.68 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इस घड़ी का निर्माण आईआईटी दिल्ली के छात्रों और ऐप डेवलपर आरोह श्रीवास्तव ने किया है। यह घड़ी इंटरनेट और जीपीएस से जुड़ी हुई है और इसमें टेलीस्कोप भी स्थापित किया गया है जो खगोलीय घटनाओं को देखने में सहायक है।

भारतवर्ष वह पावन भूमि है जिसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। यहाँ की ज्ञान परंपरा , संस्कृति का प्रत्येक पहलू प्रकृति और विज्ञान का ऐसा विलक्षण उदाहरण है जो विश्व कल्याण और सभी प्राणियों में सद्भाव का पोषक है। इन्हीं धरोहरों के आधार पर निर्मित 'विक्रमादित्य वैदिक घड़ी' भारतीय परम्परा का गौरवपूर्ण प्रतीक है। इस घड़ी के माध्यम से भारत के गौरवपूर्ण समय को पुनर्स्थापित करने का प्रयास मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने किया है निश्चित ही उनका यह प्रयास विरासत और विकास, प्रकृति और तकनीक का संतुलन होगा। यह स्वदेशी जागरण की महत्वपूर्ण कोशिश है जो भारत को विश्व मंच पर मजबूती प्रदान करेगी।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी भारतीय संस्कृति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जीवंत प्रतीक है। यह न केवल भारत की प्राचीन समय गणना पद्धति को नया जीवन प्रदान करती है, बल्कि इसे आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर वैश्विक स्तर पर एक नया आयाम प्रदान करती है। यह घड़ी भारत के सभी प्रमुख मंदिरों से भी जुड़ी हुई है जिससे यह धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्युदय की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस अवसर पर कहा कि यह पहल प्रदेश और देश के के लिए गर्व का विषय है। यह घड़ी भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर मजबूती प्रदान करेगी और स्वदेशी जागरण की एक महत्वपूर्ण कोशिश है। यह भारत की विरासत और विकास के बीच संतुलन का प्रतीक है। विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण मध्यप्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह घड़ी भारतीय काल गणना की प्राचीन पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर विश्व को भारत की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक धरोहर से परिचित कराती है।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी न केवल समय की गणना का साधन है बल्कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने का एक प्रयास है। मध्यप्रदेश के विजनरी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की यह पहल आने वाले दिनों में निश्चित ही भारत को विश्व मंच पर एक नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

Friday, 22 August 2025

मोहन के नेतृत्व में अब देश की 'माइनिंग कैपिटल' बनेगा एमपी


देश का हृदय स्थल एमपी अपनी समृद्ध खनिज संपदा और निवेश-अनुकूल नीतियों के चलते  अब खनन क्षेत्र में एक अग्रणी राज्य के रूप में उभर रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने खनिज नीलामी और खनन क्षेत्र में सतत विकास के क्षेत्र में  निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। एमपी माइनिंग क्षेत्र में  न केवल आर्थिक प्रगति का केंद्र बन रहा है, बल्कि देश के औद्योगिक विकास और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।


मध्यप्रदेश ने खनिज ब्लॉकों की नीलामी में देश में शीर्ष स्थान हासिल किया है। पारदर्शी नीलामी, पर्यावरण-अनुकूल खनन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी जैसे सुधारों से निवेशकों का विश्वास मध्यप्रदेश की ओर तेजी से बढ़ा है। 17-18 अक्टूबर 2024 को भोपाल में आयोजित माइनिंग कॉन्क्लेव में 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव मध्यप्रदेश को प्राप्त हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य ने 29 खनिज ब्लॉकों की सफल नीलामी की जिसके लिए भारत सरकार ने वर्ष 2022 और 2025 में खनन मंत्रियों के सम्मेलन में मध्यप्रदेश को प्रथम और द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया। 
यही नहीं हाल ही में मध्यप्रदेश ने क्रिटिकल मिनरल्स की नीलामी शुरू कर केंद्र सरकार की नीति को लागू करने वाला पहला राज्य बनने का गौरव प्राप्त किया। अब तक मध्यप्रदेश ने कुल 103 खनिज ब्लॉकों की नीलामी की है जिससे भविष्य में 1.68 लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व प्राप्त होने की संभावना है। इसी तरह से सिंगरौली और कटनी जिलों में कुल पाँच स्वर्ण ब्लॉकों की नीलामी की जा चुकी है जिनमें 7.87 मिलियन टन अयस्क भंडार मौजूद है। जबलपुर के सिहोरा और कटनी के स्लीमनाबाद क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर सोने की उपलब्धता है। 

मध्यप्रदेश में  खनिज संसाधनों का बेशुमार खजाना मौजूद है। यह देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ हीरे का उत्पादन होता है। विशेष रूप से पन्ना जिले की मझगवां खदान से प्रतिवर्ष एक लाख कैरेट हीरे का उत्पादन होता है। इसके अलावा छतरपुर के बंदर हीरा ब्लॉक में 34.2 मिलियन कैरेट हीरे का अनुमानित भंडार मौजूद है। मध्यप्रदेश तांबे के उत्पादन में भी अग्रणी है जहाँ मलाजखंड तांबा खदान को देश  की सबसे बड़ी तांबा खदान होने का गौरव प्राप्त है और देश के कुल तांबा भंडार का 70% हिस्सा यहीं से आता है। मध्यप्रदेश अनेक  बेशकीमती खनिजों का प्रचुर भंडार है।  देश के कुल उत्पादन का 30 फीसदी मैंगनीज अकेला मध्यप्रदेश में पाया जाता है। मध्यप्रदेश कॉपर, मैंगनीज और हीरा प्रोडक्शन में पहले स्थान पर है। लाइमस्टोन के उत्पादन में मध्यप्रदेश तीसरे तो कोयला उत्पादन में  प्रदेश चौथे स्थान पर है। रॉक फॉस्फेट के भंडार मध्य प्रदेश के कई जिलों में प्रचुर मात्रा में आज मौजूद हैं। बुंदेलखंड में हीरे से लेकर सोना तो महाकौशल में आयरन से लेकर मैंगनीज तक के भंडार हैं। सतना, रीवा और सीधी में लाइमस्टोन, बॉक्साइट, ग्रेफाइट, गोल्ड और ग्रेनाइट का विशाल भंडार है। सिंगरौली में कोयला, गोल्ड और आयरन का भंडार है। पन्ना में सबसे ज्यादा हीरे की खनन होती है। छतरपुर के बक्सवाहा जंगल में भी हीरे की प्रचुरता  है। जहाँ शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में कोयला, कोल बेड, मिथेन और बॉक्साइट का विशाल भंडार है वहीँ  सागर, पन्ना में डायमंड, रॉक फॉस्फेट, आयरन, ग्रेनाइट, लाइस्टोन, डायस्पोर और पाइरोफिलाइट का भंडार मौजूद  है। इसी तरह जबलपुर और कटनी में बॉक्साइट, डोलोमाइट, आयरन, लाइमस्टोन, मैंगनीज, गोल्ड और मार्बल का भंडार है। नीमच और धार अपने  लाइमस्टोन  के भण्डार के लिए पूरे देश में जाना जाता है। महाराष्ट्र की सीमा से सटे बैतूल में कोयला, ग्रेफाइट, ग्रेनाइट, लीड और जिंक का भंडार है वहीँ छिंदवाड़ा में कोयला, मैंगनीज और डोलोमाइट का विशाल भंडार है। बालाघाट कॉपर, मैंगनीज, डोलोमाइट, लाइमस्टोन और बॉक्साइट की खान है। मंडला और डिंडोरी में डोलोमाइट और बॉक्साइट तो ग्वालियर और शिवपुरी में आयरन, फ्लैगस्टोन और क्वार्ट्ज की खान  है। इसी तरह  झाबुआ और अलीराजपुर में रॉक फॉस्फेट, डोलोमाइट, लाइमस्टोन, मैंगनीज और ग्रेफाइट का भंडार है। 

 मैंगनीज, रॉक फॉस्फेट, चूना पत्थर और कोयला जैसे खनिजों में भी मध्यप्रदेश देश में शीर्ष स्थानों पर है। हाल ही में जबलपुर और कटनी जिलों में सोने की खोज की गई है, वहीं पन्ना और छतरपुर में हीरे के विशाल भंडार प्रमाणित हुए हैं। खनिज निधि का उपयोग मध्यप्रदेश में सामाजिक विकास के लिए भी किया जा रहा है। जिला खनिज विभाग के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, महिला-बाल कल्याण, स्वच्छता और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में 16,452 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं जिनमें से 7,583 पूरी हो चुकी हैं। इन परियोजनाओं ने स्थानीय समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मध्यप्रदेश में अलग-अलग खनिज पदार्थों के खनन और प्रोडक्शन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। कटनी माइनिंग कॉन्क्लेव के जरिए मोहन सरकार निवेश को लेकर अपना बड़ा रोडमैप बना रही है जिससे अनेक कंपनियां भी  सरकार की नीतियों  से प्रभावित होकर मध्यप्रदेश में निवेश करने में अपनी रूचि दिखा रही हैं।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने खनन क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा दिया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य ने खनिज राजस्व में 23% की वृद्धि दर्ज की, जो पहली बार 10,000 करोड़ रुपये को पार कर गया, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 4,958 करोड़ रुपये था। 17-18 अक्टूबर 2024 को भोपाल में आयोजित माइनिंग कॉन्क्लेव में 20,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित होने की संभावना है। पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया, पर्यावरण-अनुकूल खनन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है।मध्यप्रदेश सरकार ने खनन क्षेत्र को औद्योगिक विकास से जोड़ने  का मास्टर प्लान बनाया है। 23 अगस्त 2025 को कटनी में आयोजित होने वाला खनन सम्मेलन औद्योगिक विकास पर केंद्रित होगा जहाँ खनिज-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने पर चर्चा होगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 में भी खनन क्षेत्र को प्रमुखता दी गई जिसमें अगले पाँच वर्षों में खनिज राजस्व को 11,000 करोड़ से बढ़ाकर 55,000 करोड़ रुपये तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन  यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश खनन और खनिज संसाधनों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उभरा है। खनिजों की प्रचुरता और राज्य सरकार की निवेश अनुकूल नीतियों के कारण मध्यप्रदेश देश की औद्योगिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खनन क्षेत्र में प्रदेश की उपलब्धियों से राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। साथ ही देश के औद्योगिक विकास और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में भी प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित हो सकेगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विजन मध्यप्रदेश को भारत की 'माइनिंग कैपिटल' बनाना है। इसके लिए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने, पारदर्शी और पर्यावरण-अनुकूल खनन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने और आधुनिक तकनीकों और नवाचारों का उपयोग करने पर ध्यान दे रही है। मध्यप्रदेश की समृद्ध खनिज संपदा, नीतिगत सुधार और निवेश-अनुकूल वातावरण इसे देश के औद्योगिक और आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने की दिशा में अग्रसर कर रहे हैं। अपनी प्रचुर खनिज संपदा, औद्योगिक नीतियों और रोजगार सृजन की भूमिका के साथ मध्यप्रदेश देश के आर्थिक परिदृश्य में एक नया अध्याय लिख रहा है। मध्यप्रदेश अपने नवाचारों और नीतियों के माध्यम से  न केवल खनन  क्षेत्र में नए आयामों को स्थापित कर रहा है बल्कि यह देश में एक मॉडल राज्य के रूप में भी उभर रहा है। मोहन सरकार की औद्योगिक  नीतियों में श्रमिकों और उद्योगों दोनों के हितों का समान ध्यान रखा जा रहा है। मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाएं तेजी से  बढ़ रही हैं और देश-विदेश के उद्योगपति अब एमपी को एक प्रमुख निवेश गंतव्य स्थल के रूप में देख रहे हैं।
 

Thursday, 21 August 2025

कटनी में माइनिंग कॉन्क्लेव , अब ​माइनिंग से चमकेगी मोहन के एमपी की किस्मत


देश का हृदयस्थल कहा जाने वाले मध्यप्रदेश डॉ. मोहन यादव के विजनरी नेतृत्व में हाल के वर्षों में औद्योगिक और आर्थिक विकास के क्षेत्र में एक नया गढ़ बनकर उभर रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी दूरदर्शी नीतियों के माध्यम से मध्यप्रदेश में निवेश को आकर्षित करने और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए हैं। उनकी इन्वेस्टर्स फ्रैंडली नीतियों और ग्लोबल स्तर पर मध्यप्रदेश की ब्रांडिंग करने की कारगर रणनीति ने राज्य को निवेश का एक प्रमुख केंद्र बना दिया है। डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने न केवल निवेश के मोर्चे पर अनेक सफलताएं हासिल की है, बल्कि आर्थिक विकास और औद्योगिक नवाचार में भी नई ऊँचाइयाँ छुई हैं।

 एमपी में  कटनी से होगी माइनिंग क्रांति 

मध्यप्रदेश का कटनी जिला अपनी समृद्ध खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। 23 अगस्त  को कटनी एक महत्वपूर्ण माइनिंग कॉन्क्लेव के आयोजन का साक्षी बनने जा रहा है। यह आयोजन न केवल कटनी की खनिज संपदा को वैश्विक पहचान दिलाने का प्रयास है, बल्कि खनन क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने और स्थानीय रोजगार  की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। इस कॉन्क्लेव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, केंद्रीय और राज्य मंत्रियों के साथ-साथ देशभर के नामचीन उद्योगपतियों और निवेशकों की भागीदारी होगी।

मध्यप्रदेश में रॉक फॉस्फेट से लेकर गोल्ड हीरे से लेकर कोयले  तक का प्रचुर भंडार

मध्यप्रदेश अनेक  बेशकीमती खनिजों का प्रचुर भंडार है।  देश के कुल उत्पादन का 30 फीसदी मैंगनीज अकेला मध्यप्रदेश में पाया जाता है। मध्यप्रदेश कॉपर, मैंगनीज और हीरा प्रोडक्शन में पहले स्थान पर है।लाइमस्टोन के उत्पादन में मध्यप्रदेश तीसरे तो कोयला उत्पादन में  प्रदेश चौथे स्थान पर है। रॉक फॉस्फेट के भंडार मध्य प्रदेश के कई जिलों में प्रचुर मात्रा में आज मौजूद हैं। बुंदेलखंड में हीरे से लेकर सोना तो महाकौशल में आयरन से लेकर मैंगनीज तक के भंडार हैं।सतना, रीवा और सीधी में लाइमस्टोन, बॉक्साइट, ग्रेफाइट, गोल्ड और ग्रेनाइट का भंडार है। सिंगरौली में कोयला, गोल्ड और आयरन का भंडार है। पन्ना में सबसे ज्यादा हीरे की खनन होती है।  छतरपुर के बक्सवाहा जंगल में भी हीरे का बड़ा भंडार है। जहाँ शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में कोयला, कोल बेड, मिथेन और बॉक्साइट का विशाल भंडार है वहीँ  सागर, छतरपुर और पन्ना में डायमंड, रॉक फॉस्फेट, आयरन, ग्रेनाइट, लाइस्टोन, डायस्पोर और पाइरोफिलाइट का भंडार मौजूद  है। इसी तरह जबलपुर और कटनी में बॉक्साइट, डोलोमाइट, आयरन, लाइमस्टोन, मैंगनीज, गोल्ड और मार्बल का भंडार है। नीमच और धार अपने  लाइमस्टोन  के भण्डार के लिए पूरे देश में जाना जाता है।  महाराष्ट्र की सीमा से सटे बैतूल में कोयला, ग्रेफाइट, ग्रेनाइट, लीड और जिंक का भंडार है वहीँ छिंदवाड़ा में कोयला, मैंगनीज और डोलोमाइट का विशाल भंडार है। बालाघाट कॉपर, मैंगनीज, डोलोमाइट, लाइमस्टोन और बॉक्साइट की खान है। मंडला और डिंडोरी में डोलोमाइट और बॉक्साइट तो ग्वालियर और शिवपुरी में आयरन, फ्लैगस्टोन और क्वार्ट्ज की खान  है। इसी तरह  झाबुआ और अलीराजपुर में रॉक फॉस्फेट, डोलोमाइट, लाइमस्टोन, मैंगनीज और ग्रेफाइट का भंडार है। 

माइनिंग सेक्टर में अपार संभावनाओं के लिए मोहन सरकार पिछले वर्ष  राजधानी भोपाल में  माइनिंग कॉन्क्लेव का सफल  आयोजन कर चुकी है जिसके माध्यम से  माइनिंग सेक्टर में निवेशकों को भी लुभाने की पूरी कोशिश की गई जिसमें  देश भर के माइनिंग के जुड़ी कंपनियों के दिग्गज प्रतिनिधियों , विभिन्न राज्यों के अधिकारियों ने शिरकत की औरअनेक  राउंड टेबल बैठकें की। निवेशकों को लुभाने के लिए मोहन सरकार नई माइनिंग नीति भी लाई है। सरकार की कोशिश है कि मध्यप्रदेश के अलग-अलग क्षेत्र में जो खनिज भंडार हैं, उसके लिए निवेशक आगे आएं। इसके लिए सरकार निवेशकों को प्रोत्साहित भी कर रही है।  

अर्थव्यवस्था को बूस्टर डोज देगा कटनी 


कटनी में आयोजित होने वाला माइनिंग कॉन्क्लेव मोहन सरकार का एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक है  जो कटनी की खनिज संपदा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगा।यह कॉन्क्लेव  कटनी को एमपी के खनिज के एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित करेगा । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति और देशभर के उद्योगपतियों की भागीदारी इस आयोजन को ख़ास बनाएगी । 

कटनी में होने वाले इस कॉन्क्लेव की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं।  अब तक अनेक उद्योगपतियों और निवेशकों ने इस आयोजन के लिए अपना  पंजीयन कराया है।  कटनी कॉन्क्लेव के सफल आयोजन के बाद  मोहन सरकार प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह के आयोजन करेगी जो राज्य में स्थानीय स्तर पर रोजगार के बड़े अवसर भी प्रदान करेगा। निवेश के नए अवसरों से न केवल स्थानीय उद्योगों को बल मिलेगा, बल्कि रोजगार सृजन के माध्यम से क्षेत्र के युवाओं को भी लाभ होगा।

मोहन सरकार ने बनाया माइनिंग का बड़ा रोडमैप 

मध्यप्रदेश में अलग-अलग खनिज पदार्थों के खनन और प्रोडक्शन के क्षेत्र में पार संभावनाएं हैं। माइनिंग कॉन्क्लेव के जरिए सरकार निवेशकों को अपना रोडमैप बता रही है जिससे अनेक कंपनियां भी मोहन सरकार की नीतियों  से प्रभावित होकर मध्यप्रदेश में निवेश करने में अपनी रूचि दिखा रही हैं।मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने कहा कि सरकार समाज के सभी वर्गो की बेहतरी के लिए कदम से कदम मिलाकर चल रही है। मध्यप्रदेश में औद्योागिक निवेश के नजरिए से सभी प्रकार की अनुकूलता है। राज्य में निवेश की अनेक संभावनाएं हैं। अपने रणनीतिक प्रयासों से मोहन युग में एमपी औद्योगिक विकास और निवेश की नई ऊंचाइयों को छूने की  दिशा में अग्रसर है। प्रदेश सरकार की औद्योगिक  नीतियों में श्रमिकों और उद्योगों दोनों के हितों का समान ध्यान रखा जा रहा है। मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाएं तेजी से  बढ़ रही हैं और देश-विदेश के उद्योगपति अब एमपी को एक प्रमुख निवेश गंतव्य स्थल के रूप में देख रहे हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2025 के सफल आयोजन और मुख्यमंत्री डॉ. यादव के निवेश को लेकर की गई ताबड़तोड़  यात्राओं के बाद से मध्यप्रदेश को लेकर उद्योग जगत में खासा उत्साह देखा जा रहा है। देश और दुनिया के प्रमुख उद्योगपतियों ने मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर अपनी विशेष रूचि दिखाई है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विजन मध्यप्रदेश को 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 6% योगदान देने वाला राज्य बनाना है। भारतीय उद्योग परिसंघ की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2047-48 तक 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। डॉ. मोहन यादव का कुशल  नेतृत्व और दूरदर्शी विजन मध्यप्रदेश को औद्योगिक क्षेत्र में ग्लोबल पहचान दिलाने की दिशा में अग्रसर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने बेहद कम समय मे निवेश और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा है। यह न केवल मध्यप्रदेश की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है बल्कि भारत के विकास में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस निवेश ने मध्यप्रदेश को निवेशकों के लिए न केवल एक आदर्श डेस्टिनेशन बनाया है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत बनाने की दिशा में यह एक सधा हुआ कदम है।

Saturday, 16 August 2025

श्रीकृष्ण की नीतियों से प्रेरित 'मोहन', कृष्णमय हुआ मध्यप्रदेश



देश का हृदयप्रदेश मध्यप्रदेश अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। अब प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में श्रीकृष्ण का देश और दुनिया से सीधा साक्षात्कार हो रहा है। राम वन गमन पथ की तरह अब प्रदेश सरकार श्री कृष्ण के मार्ग की खोज में जुटी हुई है और उनकी नीतियों पर चलते हुए कदमताल कर रही है।  मध्यप्रदेश में मालवा पावन भूमि में आज भी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं जीवंत हैं। बाबा महाकाल नगरी उज्जैन में वह 12 वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्त करने आए जहाँ के सांदीपनि आश्रम और गुरुकुल से उनका बहुत पुराना नाता रहा है। इसी तरह जानापाव में परशुराम द्वारा उन्हें सुदर्शन चक्र दिया गया और धार के अमझेरा में रुक्मणि से भी उनका सीधा नाता रहा है। श्रीकृष्ण का जन्म भले ही मथुरा में हुआ लेकिन उनका तन और मन मध्यप्रदेश में ही रमता था। मध्यप्रदेश सरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में उनकी इस आध्यात्मिक धरोहर को सहेजने के लिए ‘श्रीकृष्ण पाथेय’ के रूप में एक अनूठा प्रयास कर रही है। यह परियोजना न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्युदय का प्रतीक है, बल्कि मध्यप्रदेश को आध्यात्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में सरकार का एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम है।

‘श्रीकृष्ण पाथेय’ मध्यप्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य श्रीकृष्ण से जुड़े स्थानों को तीर्थ स्थलों के रूप में विकसित करना है। इस परियोजना के तहत उन सभी स्थानों को संरक्षित और विकसित किया जा रहा है जहां श्रीकृष्ण की लीलाएं हुई या जिनका उनके जीवन से कोई न कोई संबंध रहा है।मध्यप्रदेश सरकार ने बीते वर्ष “श्रीकृष्ण पाथेय” योजना की शुरुआत की है जिसके तहत श्रीकृष्ण से जुड़े अनेक स्थानों जैसे उज्जैन, जानापाव और अमझेरा को बड़े तीर्थ क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इस योजना के लिए 750 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है कि दुनिया भर में फैले हुए श्रीकृष्ण के भक्तों और पर्यटकों का श्रीकृष्ण के जीवन और शिक्षाओं से सीधा साक्षात्कार हो सके जिसको साकार करने के लिए मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल ने ‘श्रीकृष्ण पाथेय न्यास’ के गठन को मंजूरी दी है जिसमें 28 सदस्यों के साथ 23 पदेन और 5 विशेषज्ञ गैर-आधिकारिक न्यासी होंगे। यह न्यास श्रीकृष्ण से जुड़े मंदिरों के प्रबंधन, संदीपनी गुरुकुल की स्थापना और सांस्कृतिक-साहित्यिक संरक्षण जैसे कार्यों को संचालित करेगा। मोहन सरकार श्री कृष्ण पाथेय के लिए गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्य सरकारों की भी सलाह ले रही है जिससे इस ड्रीम प्रोजेक्ट में में प्रदेश के बाहर के श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों को शामिल हो सकें। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ साहित्य के अध्ययन आदि के माध्यम से पाथेय का नक्शा बनाएंगे और ऐसे सभी स्थानों को जहां श्रीकृष्ण के कदम पड़े थे उन्हें बड़े प्रोजेक्ट के तहत विकसित किया जाना है। नवंबर 2024 में राज्य कैबिनेट ने मध्यप्रदेश पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम 1951 के तहत 'श्रीकृष्ण पाथेय ट्रस्ट ’के गठन को मंजूरी दे चुकी है। यह ट्रस्ट भगवान कृष्ण के मंदिरों और संरचनाओं का प्रबंधन करेगा।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह प्रयास केवल एक प्रशासनिक परियोजना नहीं, बल्कि उनकी सनातनी भावना और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी आस्था का परिणाम है। उनका मानना है कि श्रीकृष्ण का जीवन और उनके दर्शन मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। श्रीकृष्ण पाथेय परियोजना का प्रभाव न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों तक सीमित है बल्कि यह मध्यप्रदेश के समग्र विकास में भी योगदान देगी। यह न केवल प्रदेश की स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करने के साथ ही मोहन का यह ड्रीम प्रोजेक्ट भारतीय सनातन संस्कृति और अध्यात्म को वैश्विक मंच पर ले जाने में भी सहायक होगा।

मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार ने श्रीकृष्ण की शिक्षाओं और उनके जीवन से जुड़े स्थानों को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मोहन सरकार ने पशुपालन एवं डेयरी विभाग का नाम बदलकर पशुपालन, डेयरी और गौपालन विभाग करने की घोषणा की है। यह कदम गौ-माता के प्रति सम्मान और गौपालन को प्रोत्साहन देने के लिए उठाया गया है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ समझौता कर दुग्ध उत्पादन और संकलन को व्यवस्थित किया जा रहा है जिसमें दुग्ध संकलन समितियों की संख्या को 9,000 से बढ़ाकर 26,000 करने का संकल्प लिया गया है। दूध से संबंधित फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना है जिससे दुग्ध उत्पादों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। गौ वंश को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार ने 30 स्थानों पर 5,000 से 25,000 गोवंश क्षमता वाली हाईटेक गौशालाएं स्थापित करने की योजना बनाई है। इन गौशालाओं में जैविक खाद, सीएनजी गैस, और सौर ऊर्जा का उत्पादन होगा।श्रीकृष्ण की गौ-प्रेम की भावना से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गौपालन और डेयरी विकास को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं भी प्रदेश में शुरू की हैं। मध्यप्रदेश में गौशालाओं के लिए प्रति गाय दैनिक खर्च को 20 रुपये से बढ़ाकर 40 रुपये किया गया है। इसी तरह से दूध बेचने वालों को प्रति लीटर 5 रुपये का बोनस देने की घोषणा की गई है। इसी तरह मुख्यमंत्री वृंदावन गांव योजना भी शुरू की गई है जिसका उद्देश्य पशुधन के माध्यम से ग्रामीण समृद्धि लाना है। डॉ. भीमराव अंबेडकर दुग्ध उत्पादन योजन के तहत डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए 42 लाख रुपये तक का बैंक ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। गौपालन को बढ़ावा देने के साथ-साथ सरकार प्राकृतिक और जैविक खेती पर भी जोर दे रही है।इसी तरह से  गाय के गोबर से बनी प्राकृतिक खाद से उत्पादित अनाज को सरकार अधिक कीमत पर खरीदेगी। इंदौर, देवास, रीवा जैसे जिलों में गौशालाओं के माध्यम से सीएनजी गैस का उत्पादन शुरू हो चुका है। प्रत्येक ब्लॉक में एक वृंदावन ग्राम की स्थापना की जा रही है जहां गौपालन, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्ष और सौर ऊर्जा जैसी अनेक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा। गौवंश तस्करी को रोकने के लिए मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2024 लागू किया गया है जिसमें तस्करों को 7 साल की सजा का प्रावधान है। डॉ.मोहन यादव ने श्रीकृष्ण की शिक्षाओं को शिक्षा के क्षेत्र में भी शामिल करने पर जोर दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश के स्कूलों में श्रीकृष्ण की जीवनी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की अभिनव पहल की है। उन्होंने नई शिक्षा नीति को लागू करते हुए गौपालन और डेयरी विकास से युवाओं को स्वरोजगार और उद्यमिता की दिशा में प्रेरित किया है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने श्रीकृष्ण को न केवल एक धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में, बल्कि एक निष्काम कर्मयोगी, कुशल रणनीतिकार और समाज सुधारक के रूप में भी देखा है। उनके अनुसार श्रीकृष्ण का जीवन हर युग में प्रासंगिक है और आज हर किसी को उनके जीवन दर्शन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। मध्यप्रदेश के नगरीय निकायों में गीता भवन का निर्माण उनकी इस भक्ति को सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर संरक्षित करने का प्रयास दर्शाता है। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण का संदेश जो पूरी दुनिया को मिला आज भी वह उतना ही प्रासंगिक है और मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रयासों के माध्यम से यह संदेश अब गीता भवनों के माध्यम से पूरे देश में नई ऊँचाइयों को छुएगा। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार 2875 करोड़ रुपए की लागत से 413 नगरीय निकायों में गीता भवन बनाने जा रही है जो अगले दो वर्षों में बनकर तैयार हो जाएगा। 16 नगर निगमों में 1000 से लेकर 1500 की बैठक क्षमता वाले गीता भवन बनाए जाएंगे। इसी तरह से 99 नगर पालिकाओं में 500 बैठक क्षमता वाले गीता भवन बना जाएंगे और 298 नगर परिषदों में ढाई सौ बैठक क्षमता वाले गीता भवन बनाए जाएंगे।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन होने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जन्माष्टमी के सांस्कृतिक उत्सव को एक अनूठा स्वरूप प्रदान किया जिसमें बीते वर्ष की तरह इस बार भी शहरों से लेकर गाँवों तक अनूठा उत्साह देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में  जन्माष्टमी धूमधाम के साथ मनाई जाएगी और गीता भवनों की स्थापना के लिए भूमिपूजन होंगे।मंदिरों के अनुपम श्रृंगार के लिए 1.50 लाख रुपए के तीन, 1 लाख रुपए के पांच और 51 हजार रुपए के सात पुरस्कार दिए जाएंगे। श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में 16 से 18 अगस्त तक तीन दिवसीय कार्यक्रम होंगे। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव रायसेन जिले के महलपुर पाठा के दौरे पर भी जा रहे हैं जो तकरीबन 700 बरस पुराना है।  ऐसा माना  जाता है  श्रीकृष्ण महलपुर पाठा से जामगढ़ की गुफा में गए थे और मणि यहां लाए थे।   जन्माष्टमी के सांस्कृतिक उत्सव को भव्य तरीके से पूरे प्रदेश में कराने का मकसद युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जड़ों से जोड़ना और स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करना है।  मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा है कि इस वर्ष भी जन्माष्टमी के अवसर पर होने वाले कार्यक्रमों में सभी वर्गों की सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है। जन्माष्टमी पर प्रदेश के सभी  मंदिरों को जहाँ सजाया गया है वहीँ भजन संध्या, दही-हांडी उत्सव ने आम जनमानस में हमारी सनातन संस्कृति के धार्मिक, सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति रुचि जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जन्माष्टमी के उत्सव ने न केवल श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षाओं को जीवंत किया है बल्कि मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी देश और दुनिया में प्रस्तुत किया है। श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के पावन अवसर पर मोहन सरकार ''श्रीकृष्‍ण पर्व'' एवं लीला पुरुषोत्‍तम का प्राकट्योत्‍सव का आयोजन करने जा रही है। सरकार ने इस उत्सव के लिए प्रदेश के 3 हजार से अधिक मंदिरों को चुना है जहां पर धार्मिक अनुष्ठान, श्रृंगार प्रतियोगिताएं, मटकी-फोड़, रासलीला और भजन संध्या जैसे कार्यक्रम होंगे। इन आयोजनों के साथ सम्‍पूर्ण प्रदेश श्रीकृष्‍णमय हो जायेगा और सांस्‍कृतिक रंगों में रंगा नजर आयेगा। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व और श्रीकृष्ण की नीतियों के माध्यम से मध्यप्रदेश लगातार कृष्णमय हो रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह प्रयास श्रीकृष्ण की विरासत के माध्यम से मध्यप्रदेश को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का सशक्त केन्द्र बनाने का एक मजबूत संकल्प भी है। श्रीकृष्ण पाथेय प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश की गौरवशाली विरासत को सहेजने और इसे विश्व पटल पर स्थापित करने की दिशा में प्रदेश सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है। ‘कृष्णमय मध्यप्रदेश’ निश्चित रूप से प्रदेश को एक नई पहचान देगा जहां आध्यात्मिकता, संस्कृति और विकास का अनूठा मनमोहनी संगम होगा।

Friday, 15 August 2025

तिरंगा : भारतीयता का जीवंत प्रतीक


किसी भी देश का राष्ट्र ध्वज उसके स्वतंत्र होने का संकेत है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा केवल एक कपड़े या कागज़ का टुकड़ा नहीं है बल्कि यह भारत की आत्मा, इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। इसके तीन रंग केसरिया, सफेद , हरा और  मध्य में अशोक चक्र भारतीयता के विभिन्न आयामों को दर्शाते हैं। तिरंगा न केवल स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को बयां करता है, बल्कि यह भारत की एकता, विविधता और आकांक्षाओं का भी प्रतीक है। तिरंगे ने अपने रंगों से दुनिया में अपनी अद्वितीय छवि बनाई है। राष्ट्रीय ध्वज के लिए हथकरघा खादी (सूती या रेशमी) कपड़ा इस्तेमाल किया जाता है। तिरंगे झंडे में नीले रंग का अशोक चक्र धर्म तथा ईमानदारी के मार्ग पर चलकर देश को उन्नति की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है। 

तिरंगे का केसरिया रंग साहस, बलिदान और त्याग का प्रतीक है। यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। भारतीयता का यह पहलू हमें निस्वार्थ भाव से देश के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देता है। इसी तरह से सफेद रंग शांति और सत्य का प्रतीक यह रंग भारत की अहिंसावादी विचारधारा को रेखांकित करता है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसा और सत्याग्रह ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि विश्व को शांति का संदेश भी दिया। यह रंग भारतीयता की उस भावना को दर्शाता है जो सहिष्णुता और सामंजस्य में विश्वास रखती है। हरा रंग समृद्धि, उर्वरता और प्रकृति के प्रति भारत की गहरी आस्था को दर्शाता है। भारत की संस्कृति में प्रकृति और पर्यावरण का विशेष स्थान रहा है। यह रंग हमें सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है। मध्य में नीले रंग का अशोक चक्र गतिशीलता और प्रगति का प्रतीक है। यह सम्राट अशोक के धर्म चक्र से प्रेरित है जो न्याय, धर्म और नैतिकता का प्रतीक है। यह चक्र भारतीयता के उस दर्शन को दर्शाता है जो निरंतर प्रगति और नैतिकता के मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है। भारतीयता एक ऐसी अवधारणा है जो भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विविधता को समेटे हुए है। तिरंगा इस भारतीयता का एक जीवंत प्रतीक है।  भारत विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। तिरंगा इस विविधता को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करता है। जैसे तिरंगे के तीन रंग एक साथ मिलकर एक पूर्ण ध्वज बनाते हैं वैसे ही भारत की विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय एक साथ मिलकर भारतीयता का निर्माण करते हैं। यह ध्वज हमें सिखाता है कि भिन्नताओं के बावजूद हम एक हैं। तिरंगा स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है। यह उन असंख्य बलिदानों का प्रतीक है जिन्होंने भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाई। भारतीयता का यह पहलू हमें स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की भावना से जोड़ता है। तिरंगा हमें याद दिलाता है कि हमारी स्वतंत्रता अनमोल है और इसे बनाए रखने के लिए हमें सतत प्रयास करना होगा।

भारतीय इतिहास में 1905 से पहले पूरे भारत की अखंडता को दर्शाने के लिए कोई राष्ट्र ध्वज नहीं था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वर्ष 1905 में स्वामी विवेकानंद की शिष्य सिस्टर निवेदिता ने पहली बार पूरे भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना की थी। सिस्टर निवेदिता द्वारा बनाए गए ध्वज में कुल 108 ज्योतियाँ बनाई गई थी। यह ध्वज चौकोर आकार का था। ध्वज के दो रंग थे- लाल और पीला। लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम और पीला रंग विजय का प्रतीक था। ध्वज पर बंगाली भाषा में वंदे-मातरम् लिखा गया था और इसके पास वज्र (एक प्रकार का हथियार) और केंद्र में एक सफेद कमल का चित्र भी था। वर्तमान में इस ध्वज को आचार्य भवन संग्रहालय, कोलकाता में संरक्षित रखा गया है। इसके बाद 7 अगस्त 1906 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के पारसी बागान चौक में ध्वज को फहराया गया। कोलकाता ध्वज प्रथम भारतीय अनाधिकारिक ध्वज था। इसकी अभिकल्पना शचिन्द्र प्रसाद बोस ने की थी। झंडे में बराबर चौड़ाई की तीन क्षैतिज पट्टियाँ थीं। शीर्ष धारी नारंगी, केंद्र धारी पीली और निचली पट्टी हरे रंग की थी। शीर्ष पट्टी पर ब्रिटिश-शासित भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते 8 आधे खुले कमल के फूल थे और निचली पट्टी पर बाईं तरफ सूर्य और दाईं तरफ़ एक वर्धमान चाँद की तस्वीर अंकित थी। ध्वज के केंद्र में "वन्दे-मातरम्" का नारा अंकित किया गया था। इसी तरह पहली बार विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज मैडम भीकाजी कामा द्वारा 22 अगस्त 1907 को अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस केस्टटगार्ट में फहराया गया था। इस ध्वज को 'सप्तर्षि झंडे’ के नाम से जाना जाता है। यह ध्वज काफी कुछ वर्ष 1906 के झंडे जैसा ही था लेकिन इसमें सबसे ऊपरी पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्तऋषि के प्रतीक थे। 

भारतीय धरती पर तीसरे प्रकार का तिरंगा होम रूल लीग के दौरान फहराया गया था। “होम रूल आंदोलन” के दौरान कोलकाता में एक कांग्रेस अधिवेशन के दौरान यह ध्वज फहराया गया था। उस समय ध्वज स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का प्रतीक था। इसमें 9 पट्टियाँ थीं, जिसमें 5 लाल रंग और 4 हरे रंग की थी। ध्वज के ऊपरी बाएँ कोने में यूनियन जैक था। शीर्ष दाएँ कोने में अर्धचंद्र और सितारा था। ध्वज के बाकी हिस्सों में सप्तर्षि के स्वरूप में सात सितारों को व्यवस्थित किया गया था।वर्ष 1921 में आंध्र प्रदेश के पिंगले वेंकय्या ने बिजावाड़ा (अब विजयवाड़ा) में गांधीजी के निर्देशों के अनुसार सफेद,हरे और लाल रंग में पहला "चरखा-झंडा" डिजाइन किया था। इस ध्वज को "स्वराज-झंडे" के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। इस वर्ष तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था।

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा के बाद भारतीय नेताओं को स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता का एहसास हुआ। तदनुसार ध्वज को अंतिम रूप देने के लिए एक तदर्थ ध्वज समिति का गठन किया गया। श्रीमती सुरैया बद्र-उद-दीन तैयबजी द्वारा प्रस्तुत स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन को 17 जुलाई 1947 को ध्वज समिति द्वारा अनुमोदित और स्वीकार किया गया था। समिति की सिफारिश पर 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। तिरंगे में तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है।  बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के विकास और उर्वरता को दर्शाती है। तिरंगे के केंद्र में सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र है जिसमें 24 आरे (तीलियाँ) होते हैं। यह चक्र एक दिन के 24 घंटों और हमारे देश की निरंतर प्रगति को दर्शाता है। तिरंगे को भारत की महिलाओं की ओर से 14 अगस्त, 1947 को संविधान सभा के अर्द्ध-रात्रिकालीन अधिवेशन में समर्पित किया गया था।

भारत ने राष्ट्रीय चिन्ह को 26 जनवरी, 1950 को अपनाया था। भारत के तिरंगे झंडे के ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 2:3 है। भारत का राज चिन्ह अशोक स्तम्भ के शीर्ष की एक प्रतिकृति है जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है।  अशोक स्तम्भ तीन शेरों की आकृति जिसके नीचे एक चौखट के बीच में एक धर्म चक्र है। इस चक्र के दाई ओर एक बैल और बाई ओर एक अश्व है। चौखट के आधार पर ‘सत्यमेव जयते’ शब्द अंकित है। भारत के राजचिन्ह में तीन प्रकारे के छ: जानवर हैं-शेर (चार), बैल (एक), अश्व (एक) भारत का यह चिन्ह भारत की एकता का घोतक है। राष्ट्रीय चिन्ह के दो भाग शीर्ष और आधार हैं। शीर्ष पर शेर साहस और शक्ति का प्रतीक है। राष्ट्रीय चिन्ह के आधार भाग में एक धर्म चक्र है। चक्र के दायीं ओर एक बैल है तथा बायीं ओर एक घोड़ा है जो स्फूर्ति का ताकत व गति का। ‘सत्यमेव जयते’ मुंडकोपनिषद से लिया गया है। ‘सत्यमेव जयते’ का अर्थ सत्य की ही विजय है। भारत के तिरंगे झंडे में चरखे की जगह “चक्र” 1947 को अस्तित्व में आया । 26 जनवरी 2002 से फ्लैग कोड बदल गया है। भारतीयों को कहीं भी किसी भी समय गर्व के साथ झंडा फहराने की आजादी दे दी गयी है। अभी कुछ समय पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19 ए अनुच्छेद के तहत ध्वज फहराने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया था जिसके बाद  देश में भारतीय ध्वज को दिन -रात फहराने की अनुमति दे दी गई है।  

15 अगस्त 1947 आज़ाद भारत के इतिहास का ऐतिहासिक दिन था जब अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाकर भारत में नई  सुबह हुई थी। स्वतंत्रता मिलने के बाद पहली बार देशवासियों ने खुली हवा में साँस ली और देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ। आज़ादी के बाद से देश के कई  प्रधानमंत्रियों और सरकारों को देखा है लेकिन इस अमृतकाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के हर-घर तिरंगा जन अभियानों के माध्यम से देश के प्रति जोश, जज्बा और प्रबल हुआ है। किसी भी देशवासी के लिए भारत और भारतीयता का भाव  पहले होना चाहिए। यह मुहिम जाति ,धर्म,संप्रदाय से परे है और देश को इस अमृत काल में एकता के सूत्र में बांध सकती है।  नागरिकों में देश प्रेम की भावना जगाने और संकीर्णता से बाहर निकालने  का यही अमृतकाल है।

आज के समय में तिरंगा केवल एक राष्ट्रीय प्रतीक ही नहीं बल्कि भारत की आकांक्षाओं और सपनों का दर्पण भी है। यह हमें आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल भारत और विकसित भारत के सपने को साकार करने की प्रेरणा देता है। "हर घर तिरंगा" जैसे अभियान भारतीयों को अपने ध्वज के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को और गहरा करने का अवसर प्रदान करते हैं।तिरंगा झंडा भारत और भारतीयता का एक ऐसा प्रतीक है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और भविष्य की ओर प्रेरित करता है। इसके रंग और चक्र हमें साहस, शांति, समृद्धि और प्रगति के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं। यह ध्वज हमें याद दिलाता है कि भारतीयता का अर्थ है विविधता में एकता, स्वाभिमान में साहस और शांति में प्रगति। तिरंगे के अक्स में हमारा भारत और हमारी भारतीयता न केवल जीवंत है बल्कि विश्व मंच पर एक प्रेरणा स्रोत के रूप में भी उभर रही है।

देश के प्रत्येक नागरिक को आज़ादी के इस अमृतकाल में इस पावन महायज्ञ में आहूति देकर पुण्य का भागीदार बनना चाहिए। तिरंगे को देखकर हर भारतीय के दिलों में राष्ट्रप्रेम की भावना उमड़ पड़ती है। राष्ट्र ध्वज देखकर उसके प्रति आदर भाव खुद ही जग जाता है। तिरंगा साहस, त्याग, बलिदान के रंगों से सरोबार है। तिरंगे को सम्मान देते हुए आज हर देशवासी का कर्तव्य है इस अमृतकाल में अपने घरों में तिरंगा लहराकर वह इस उत्सव को ऐतिहासिक बनाए। आज़ादी के रणबांकुरों ने अपने शौर्य से जिस प्रकार देश के लिए तन- मन न्यौछावर कर दिया उसी प्रकार तिरंगा झंडा लहराकर हमें भारतबोध का अहसास होगा जो शहीदों को अमृत काल में सच्ची श्रद्धांजलि होगी।  

Thursday, 14 August 2025

आपदा में दिख रही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की संवेदनशीलता


मध्यप्रदेश में भारी बारिश और बाढ़ ने कई जिलों में तबाही मचाई लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की संवेदनशीलता ने राहत कार्यों को एक नई दिशा देने का कार्य किया है।  उनकी कार्यशैली में जनता की सुरक्षा और जनकल्याण पहली प्राथमिकता है जिसका स्पष्ट प्रमाण हाल के दिनों में अतिवृष्टि और बाढ़ के दौरान प्रदेश में आई प्राकृतिक आपदाओं में किए गए राहत कार्यों और अनेक फैसलों में देखा जा सकता है। 

प्राकृतिक आपदा के समय त्वरित निर्णय लेने की सबसे अधिक आवश्यकता किसी भी शासक को होती है। डॉ. मोहन यादव ने अपने अभी तक के कार्यकाल में इस बात को साबित किया है आपदा की घड़ी  में त्वरित निर्णय लेकर अनेक जिंदगियों को बचाया जा सकता है। डॉ. मोहन यादव ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि जान-माल की सुरक्षा करना उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इन दिनों  बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में चलाए जा रहे राहत कार्यों की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव लगातार समीक्षा कर रहे हैं जिसके चलते प्रशासन भी  पूरा मुस्तैद नजर आ रहा है। मध्यप्रदेश के कई जिलों में भारी बारिश और बाढ़ के कारण उत्पन्न संकट के दौरान उन्होंने अपनी त्वरित कार्रवाई और प्रशासन के समन्वित प्रयासों के माध्यम से प्रभावित लोगों तक राहत पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मोहन सरकार ने अतिवृष्टि से प्रभावित 432 बचाव अभियान चलाकर 3628 नागरिकों को सुरक्षित रूप से रेस्क्यू किया और 53 राहत शिविरों में 3065 लोगों को भोजन, दवाइयां, कपड़े और अन्य आवश्यक सहायता प्रदान की।  प्रदेश में तैनात बचाव राहत दलों द्वारा 432 बचाव अभियान चलाए गए  जिसमें 3628 नागरिकों तथा 94 मवेशियों को जीवित बचाया गया। 

मुख्यमंत्री डॉ. यादव में एक कुशल प्रशासक के साथ एक संवेदनशील राजनेता की छवि भी दिखाई देती है। वे आपदा प्रभावित लोगों की मदद के लिए तत्काल पहुंचते हैं और प्रशासन को राहत  कार्यों में तेजी लाने के निर्देश भी देते हैं। उन्होनें  स्वयं आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। गुना में बाढ़ पीड़ितों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को समझकर तत्काल समाधान के निर्देश दिए। उनकी यह संवेदनशीलता न केवल प्रशासन को प्रेरित करती है, बल्कि जनता में भी विश्वास जगाती है कि सरकार उनके साथ हर कदम पर खड़ी है।मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि गत दिनों हुई भारी वर्षा ने जिले में 32 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा है। इस चुनौती का प्रशासन ने तत्परता एवं समन्वय के साथ सामना किया। इस दौरान एनडीआरएफ की 70 सदस्यीय टीम द्वारा सघन बचाव कार्य किए। विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं एवं प्रशासनिक अमले ने मिलकर भोजन पैकेट वितरण, अस्थायी आश्रय स्थल की स्थापना तथा आवश्यक सामग्री वितरण जैसे राहत कार्य किए गए।मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने शिवपुरी, गुना, दमोह, रायसेन, छिंदवाड़ा के बाढ़ प्रभावितों से वर्चुअली चर्चा की और प्रभावितों से बाढ़ के दौरान प्रशासन द्वारा किए गए प्रबंधों की जानकारी भी ली।  मुख्यमंत्री डॉ. यादव अतिवृष्टि और बाढ़ प्रभावितों को अभी तक  58 करोड़ की राशि का सिंगल क्लिक से अंतरित कर चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव द्वारा  2025-26 में राहत के विभिन्न मदों में अब तक 123 करोड़ की राहत राशि प्रभावितों को वितरित की गई है।

अभी कुछ दिन पहले सीएम डॉ.यादव शिवपुरी जिले के ग्राम पचावली पहुंचकर  भीषण बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से मुलाकात की और  उनकी समस्याएं सुनीं और त्वरित राहत कार्यों का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री  डॉ.यादव ने  कहा कि अतिवर्षा से उत्पन्न परिस्थितियाँ हमारे लिए परीक्षा की घड़ी हैं। जनता के सहयोग और प्रशासन के समर्पण से स्थिति पर नियंत्रण पाया गया है। उन्‍होंने कहा कि अतिवृष्टि एवं बाढ़ग्रस्‍त क्षेत्रों में राहत कार्य निरंतर जारी रहेंगे। उनके इस संवेदनशील और सक्रिय दृष्टिकोण की केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जमकर तारीफ की है। मुख्यमंत्री ने  ग्रामीणों की समस्याओं को ध्यान से सुना। उन्होंने प्रभावित परिवारों को मकान क्षति और खाद्यान्न के लिए तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान की। साथ ही, मक्का और सोयाबीन की फसलों को हुए नुकसान के लिए मुआवजे का निर्देश भी दिया। उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिए कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों की नियमित समीक्षा की जाए और मुआवजा शीघ्र वितरित हो। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री  डॉ. मोहन यादव के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मोहन यादव का ग्रामीणों के बीच पहुंचकर उनकी समस्याओं को समझने और त्वरित कार्रवाई करने का प्रयास सराहनीय है। इस दौरान मुख्यमंत्री डॉ. यादव  बाढ़ से प्रभावित स्‍थानीय नागरिकों को मकान क्षति तथा खाद्यान्न के लिए सहायता राशि भी  प्रदान की।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए पहले से ही व्यापक तैयारियां शुरू कर दी थी। 22 जुलाई को उन्होंने सभी जिला कलेक्टरों को बाढ़ की पूर्व तैयारियों के लिए निर्देश दिए और 9 जून को मुख्य सचिव द्वारा विस्तृत समीक्षा की गई थी। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की टीमें भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और धार में तैनात की गई, जबकि राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल  को संवेदनशील क्षेत्रों में सक्रिय किया गया। पूरे प्रदेश में 259 संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित कर डिजास्टर रेस्पॉन्स सेंटर स्थापित किए गए और 111 क्विक रेस्पॉन्स टीमें तैनात की गई। इसके अतिरिक्त, 3300 आपदा मित्रों और 80,375 सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स को प्रशिक्षित किया गया जिससे जन-सामान्य को आपदा प्रबंधन में शामिल किया जा सका। यह दर्शाता है कि डॉ.मोहन  यादव का दृष्टिकोण न केवल प्रशासनिक स्तर पर, बल्कि सामुदायिक सहभागिता के स्तर पर भी बेहद प्रभावी रहा है। सरकार द्वारा प्रदेश में अतिवृष्टि प्रभावित लोगों के लिए राहत शिविर अभियान चलाकर उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जा रही है। इन राहत शिविरों में दवाइयां, भोजन तथा पेयजल त्‍वरित रूप से उपलब्‍ध कराया जा रहा है। इसके अलावा  वैकल्पिक मार्ग तत्‍काल उपलब्‍ध कराये जा रहे हैं ताकि आवागमन में कोई व्‍यवधान उत्‍पन्‍न न हो। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने  प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को  निर्देश दिए  कि आमजन को बाढ़ के खतरों के बारे में समय रहते सूचित किया जाये। इस कार्य के लिए राज्य आपदा नियंत्रण कक्ष के द्वारा लगातार रेड अलर्ट मोबाइल के माध्यम से भेजे गए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आपदा प्रबंधन में बांधों के जलस्तर की सतत निगरानी और गेट खोलने-बंद करने की प्रक्रिया को सुनिश्चित किया, ताकि बाढ़ से जन-हानि न हो और भविष्य में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता बनी रहे। इसके अलावा मौसम विभाग की चेतावनियों को समय पर जनता और राहत दलों तक पहुंचाने के लिए मोबाइल रेड अलर्ट सिस्टम और 24 घंटे सक्रिय नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए। उनके नेतृत्व में प्रभावित क्षेत्रों में 254 ग्रामीण सड़कों में से 212 का तत्काल सुधार किया गया और बैरीकेड्स लगाकर यह सुनिश्चित किया गया कि कोई दुर्घटना न ह , साथ ही 3600 करोड़ रुपये की व्यवस्था राहत कार्यों के लिए की गई। उन्होंने जिले के विभिन्न वर्षा प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण कर राहत एवं पुनर्वास कार्यों की समीक्षा भी की। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सभी कलेक्टर्स को निर्देश दिए  कि अतिवृष्टि या बाढ़ प्रभावितों को कोई भी कठिनाई न आने पाये। जल्द ही जल्द सर्वे पूरा कर पीड़ितों को उनके नुकसान की समुचित भरपाई की जाए। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आपदा के समय न केवल प्रशासनिक स्तर पर सक्रियता दिखाई, बल्कि जनता से सीधा संवाद स्थापित कर उनकी सुरक्षा के लिए अपील भी की। उन्होंने नागरिकों से बाढ़ प्रभावित नदी-नालों में न उतरने, तेज बहाव वाले पुल-पुलियों से आवागमन न करने और कच्चे मकानों में सावधानी बरतने का आग्रह किया। उनकी यह अपील दर्शाती है कि वे जनता को जागरूक करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि राहत शिविरों में रह रहे लोगों को भोजन, स्वच्छ पेयजल, दवाइयां और कपड़े जैसी सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हों। उनकी यह संवेदनशीलता इस बात को रेखांकित करती है कि वे गाँव के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के हितों के लिए हमेशा उपलब्ध हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव  का आपदा में ग्रामीणों के बीच उनकी सक्रियता न केवल प्रशासनिक दक्षता को दर्शाता है, बल्कि सरकार की जन-केंद्रित नीतियों को भी रेखांकित करता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी संवेदनशीलता, त्वरित निर्णय क्षमता और कुशल नेतृत्व के माध्यम से मध्यप्रदेश में आपदा के राहत कार्यों को एक नई दिशा दी है। उनकी सरकार ने न केवल आपदा के समय तत्परता से कार्य कर रही है बल्कि पूर्व-तैयारी और जन-सहभागिता के माध्यम से भविष्य की आपदाओं से निपटने की मजबूत नींव भी रखी है। उनकी यह कार्यशैली न केवल प्रशासनिक दक्षता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक संवेदनशील सरकार आमजन के बीच पहुंचकर  समाज के हर वर्ग के साथ खड़ी हो सकती  है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की आपदा के दौर में यह संवेदनशीलता  मध्यप्रदेश की जनता के लिए के लिए नई उम्मीद और विश्वास का प्रतीक बन गई है।

Thursday, 7 August 2025

धराली आपदा : विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा


धराली उत्तरकाशी ज़िले का एक बेहद खूबसूरत क़स्बा है जो गंगोत्री की ओर बढ़ते हुए चारधामों में से एक हर्षिल घाटी का अहम हिस्सा भी  है।यहाँ से गंगोत्री तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है। हिमालयी क्षेत्रों में बसे छोटे-छोटे धराली जैसे गाँव कभी अपनी नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए जाने जाते थे लेकिन हाल के वर्षों में सरकारों की अनियंत्रित विकास की अंधी दौड़ ने इन सरीखे कई क्षेत्रों को आपदा के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। देवभूमि उत्तराखंड के कई गाँवों में आज प्रकृति के साथ गंभीर  छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप  यहाँ पर आपदाएँ बार-बार दस्तक दे रही हैं। प्राकृतिक आपदा का सीधा सम्बन्ध प्रकृति की छेड़छाड़ से जुड़ा है और प्रकृति के साथ खिलवाड़ जिस पैमाने पर होता रहेगा उसका ताण्डव हिमालय पर उसी स्तर पर दिखेगा। धराली में खीर गंगा में यह पहली बार नहीं हुआ कि उसका जलस्तर बढ़ने के कारण आसपास के क्षेत्र को नुकसान हुआ है।  इससे पूर्व की आपदाओं में वहां पर जानमाल  का नुकसान नहीं हुआ लेकिन उसके बाद भी वहां पर ना ही स्थानीय लोग चेते और ना ही शासन प्रशासन की ओर से वहां पर सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम किए गए।1948 में धराली से कुछ किलोमीटर नीचे कनोडिया गाड़ ने भी अपना विकराल  रूप दिखाया था। उस समय डबराणी में  गंगा का प्रभाव तक रुक गया था जिससे फिर भारी तबाही हुई। इसी तरह 1978 में धराली से नीचे उत्तरकाशी की तरफ़ आते हुए 35 किलोमीटर दूर डबराणी में एक बाँध टूट गया था जिससे भागीरथी में बाढ़ आ गई थी और कई गाँव बह गए। 1835 में भी खीर गंगा में सबसे भीषण बाढ़ आई थी। तब नदी ने सारे धराली क़स्बे को पाट दिया था। बाढ़ से यहाँ भारी मात्रा में मलबा जमा हो गया था। बीते कई बरस  में भी खीर गंगा में पानी का तेज़ बहाव आने, बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएँ हुई की अनेक घटनाएँ हुई हैं लेकिन इसमें कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई। 2017-18 में खीर गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण वहां पर होटल दुकानों और कई घरों में मलबा घुस गया था। उस समय कुछ  नुकसान नहीं हुआ हालाँकि  2023 में खीर गंगा के बढ़ते जलस्तर  के कारण वहां पर कई दिनों तक गंगोत्री हाईवे भी बंद रहा था साथ ही दुकानों और होटल को भी नुकसान हुआ था। 


एक दौर था जब हिमालय के ऊँचाई वाले इन इलाक़ों में काफी बर्फ़ गिरती थी। तब यहाँ के ग्लेशियर में पानी का जमाव  होता था लेकिन अब बर्फ़ कम गिरती है और बारिश भी कम  होती है और ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं। इसकी वजह है जलवायु परिवर्तन और इसका असर पूरे पहाड़ी इलाके के हर जिले में महसूस किया जा सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के साइड इफेक्ट अब हिमालय से लगे इलाकों में भी महसूस किये जा सकते हैं। ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। अनियोजित विकास के कारण आज पर्वतीय इलाकों में संकट के बादल मंडरा रहे है। इन संवेदनशील इलाकों में प्राकृतिक घटनाओं की आशंका पहले भी जताई जा चुकी है पर इसे लेकर चौकन्ना न रहने की गलती जब तक होती रहेगी हादसे होते रहेंगे। प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए बेहतर प्रबंधन को बढ़ाने के साथ-साथ प्रकृति के इशारों को समझना भी बहुत जरूरी है। वह चेतावनियां सच साबित हो रही हैं जो कई दशकों से पर्यावरण वैज्ञानिक देते आ रहे थे कि धरती का लगातार बढ़ रहा तापमान शांत पड़े ग्लेशियरों को परेशान कर रहा है। ग्लेशियरों का पिघलना या टूटना मानवता व पूरे वातावरण के लिए खतरनाक है। दुर्भाग्य है कि प्राकृतिक संसाधनों की बड़ी लूट के कारण आज उत्तराखंड कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है। अगर अभी भी इस हादसे से हमने सबक नहीं लिया तो किसी दिन तबाही बड़े पैमाने पर होगी। 

धराली में हाल ही में आई आपदा ने स्थानीय समुदाय और पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुँचाया है। गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे इस क्षेत्र में अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। भारी मशीनरी के उपयोग, जंगलों की कटाई और अनियोजित सड़क निर्माण ने भूस्खलन और मिट्टी के कटाव को बढ़ावा दिया है  जिसके परिणामस्वरूप यह आपदा सामने आई। धराली और आसपास के क्षेत्रों में सड़क निर्माण, बाँध परियोजनाएँ और होम स्टे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होटल निर्माण जैसे कार्य बिना पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के किए गए जिसका परिणाम अब जमीन पर दिखाई देने लगे हैं । पहाड़ों की संवेदनशील भूगर्भीय संरचना को नजरअंदाज करते हुए यहाँ पर भारी मशीनरी का उपयोग किया गया जिससे भूस्खलन का खतरा हाल के कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के नाम पर पूरे उत्तराखंड में बड़े  पैमाने पर जंगलों को काटा  जा रहा है जिससे मिट्टी की स्थिरता कम हुई है और आपदा की घटनाएँ भी तेजी से बढ़ी हैं। धराली जैसे क्षेत्र आज जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक असुरक्षित हो गए हैं। धराली की  इस बार की आपदा में और आसपास के क्षेत्रों में कई लोगों ने अपनी जान गँवाई है और कई परिवार बेघर हो गए हैं । स्थानीय लोगों की आजीविका जो मुख्य रूप से कृषि और पर्यटन पर निर्भर थी इस बार की आपदा ने  बुरी तरह प्रभावित कर डाली है। धराली का बाजार जो पर्यटन की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा था, बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पहाड़ी इलाकों में नदियों और नालों के किनारे फ्लड प्लेन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी तरह के अतिक्रमण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि ऐसे क्षेत्र भूस्खलन जैसी घटनाओं के लिए अत्यंत असुरक्षित होते हैं। धराली आपदा हमें यह सिखाती है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना कितना आवश्यक है। 

यह वही उत्तराखण्ड है जिसने 80 के दशक में ज्ञानसू का भूकम्प, भीषण अतिवृष्टि, बाढ़ का कहर देखा तो वहीं 90 के दशक में उत्तरकाशी और चमोली के भूकम्प के झटके भी महसूस किये है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के पथ में मालपा नामक जगह पर भूस्खलन से भारी तबाही का मंजर भी  इसने देखा है। 2003 मे उत्तरकाशी में वरूणावत के भारी भूस्खलन के अलावा 2012 में उत्तरकाशी में ही असीगंगा व भागीरथी के तट पर बादल फटने के कहर के अलावा सुमगढ़ बागेश्वर में बादल के कहर में कई परिवारों को जमींदोज होते देखा है, जहां जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ और जानमाल को व्यापक नुकसान हुआ। वहीं 2013  में केदारनाथ का भीषण हादसा, 2021 की रैणी (चमोली) हिमस्खलन त्रासदी और 2023 के जोशीमठ भू-धंसाव जैसी घटनाएं इस गहराते संकट की स्पष्ट चेतावनियाँ हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिक संतुलन गंभीर रूप से बाधित हो चुका है लेकिन हमारी याददाश्त कम रहती है। हम पुरानी घटनाओं को जल्द भूलना जानते हैं और उससे सबक भी नहीं लेना चाहते।

उत्तराखंड में अवैध माईनिंग लगातार जारी है। वृक्षों की चोरी-छिपे कटाई भी चल रही है। ऑल वेदर रोड के नाम पर करोड़ों वृक्ष काटे जा रहे हैं। पहाड़ों को खोद खोदकर टनल बिछाई जा रही है। तीर्थाटन के नाम पर अत्यधिक निर्माण, पर्वतीय ढलानों की अंधाधुंध कटाई, जलविद्युत परियोजनाओं हेतु सुरंगों व बांधों का जाल, सड़क विस्तार की प्रक्रिया में वनों की व्यापक कटाई तथा पर्यावरणीय नियमन की उपेक्षा ने पारिस्थितिकीय तंत्र को अत्यंत असंतुलित किया है।विशेषकर चारधाम यात्रा मार्ग पर व्यापक निर्माण गतिविधियों के चलते अनेक क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाओं में तीव्र वृद्धि हुई है। बीते कुछ बरस में यहाँ  अतिवृष्टि, बादल फटना,  भूस्खलन,वनाग्नि जैसी आपदाएँ न केवल जन-धन की व्यापक क्षति का कारण बनी हैं, बल्कि राज्य की सामाजिक संरचना, आर्थिक स्थायित्व और पारिस्थितिक तंत्र को भी गहरे स्तर पर प्रभावित कर रही हैं।गढ़वाल के इलाकों में रेल  की सुविधा पहुंचाने के नाम पर लगातार पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। वृक्षों की लगातार हो रही कटाई से हिमालय के पशु- पक्षी  भी बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अब प्रवासी पक्षियों और हिमालय के पशुओं की आमद पर भी इसका काफी हद तक  प्रभाव दिखाई देने लगा है। पहाड़ों में बढ़ रहे निर्माण कार्यों से वनों का क्षेत्रफल कम हो गया है। समय पर बरसात नहीं हो रही, कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है। बाढ़ आने का मुख्य कारण भी वृक्षों की लगातार हो रही कटाई है। कभी पहाड़ों में जंगल भी बाढ़ के आगे दीवार बन जाते थे। बांधों के निर्माण के समय वृक्षों की कटाई बड़े स्तर पर हुई है। कट रहे वृक्ष, बढ़ रहा प्रदूषण प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन रहा है। अभी भी वक्त है सरकारें संभल जाएँ। अन्धाधुन्ध विकास और कारपरेट लूट के चलते उत्तराखण्ड में बीते एक दशक से ज्यादा समय से प्रकृति से भारी छेड़छाड़ शुरू हुई है। धार्मिक पर्यटन के नाम पर यहां जहां मुनाफे का बड़ा कारोबार ढाबों, रिजार्ट के जरिए हुआ है वहीं वनों की अन्धाधुंध कटाई से भी पहाड़ की परिस्थितिकी संकट में है। पहाड़ में जल,जमीन,जंगल का सवाल आज भी जस का तस है। नदियों के किनारे कब्जों की आड़ में जहां बड़ा अतिक्रमण हुआ है वही इसी की आड़ में बड़े-बड़े रिजार्ट भी खुले है। इन निर्माण कार्यों पर किसी तरह की रोक लगाने की जहमत किसी में नही है क्योंकि राजनेताओं, माफियाओं और कारपरेट के काकटेल ने पहाड़ को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसमें राजनेताओं की भी सीधी मिलीभगत है क्योंकि  न केवल अपने चहेतों को उन्होंने जमीनें यहां दिलवाई है बल्कि बड़ी परियोजना लगाने के नाम पर विकास के चमचमाते सपने के बीच रोजगार का झांसा भी पहाड के ग्रामीणों को दिया गया है। यही नहीं पावर वाली कम्पनियों से प्रोजेक्ट लगाने के नाम पर मोटा माल अपनी जेबों में भरा है।

राज्य गठन के बाद  की सरकारों ने अपने करीबियों को न केवल नदियों में खनन के पट्टे दिये हैं बल्कि ठेकेदारों को भी पहाड़ों में निर्माण कार्य में मुख्य मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया है। पर्यटन के सैर सपाटे के बीच पहाड़ में ट्रैवल ऐजेन्टों की सुविधा के लिए जगह- जगह पहाड़ काटकर मानकों को ताक  में रखते हुए सड़कें काटी हैं। एक तरह पहाड़ में आज  जहां बेतरतीब ढंग से गाडि़यां दौड़ रही  वहीँ  ऐसे इलाकों में जहां जल प्रचुर मात्रा में है वहां बांध बनाने और  सुरंग निकालने का खेल  शुरू हुआ है। अलग राज्य का गठन पहाड़ के पिछड़ेपन के कारण हुआ था लेकिन आज हालत यह है चट्टाने दरकने से गांव के गांव खाली हो रहे है। अब गाँव में बुजुर्गो की पीड़ी ही दिख रही है।  हाइड्रो  परियोजनाओं के नाम पर पहाड़ की जमीनों को खुर्द -बुर्द किया जा रहा है। टिहरी इसका नायाब नमूना है जहां विकास की चमचमाहट दिखाई गई लेकिन टिहरी के डूबने की कथा स्थिति की भयावहता को उजागर करती है। प्राकृतिक सम्पदा की लूट में उत्तराखण्ड की कोई सरकार अछूती नहीं है। विकास के नाम पर सरकार की नीयत साफ नहीं है। हर किसी का उद्देश्य इस दौर में मुनाफा कमाना और अपनी झोली भरना हो चला है और कारपरेट के आसरे राज्य में निवेश सम्मेलनों के माध्यम सेफलक-फावड़े बिछाए जा रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश के भीतर 200 से अधिक  हाइड्रो प्रोजेक्ट्स चल  रहे हैं और सैकड़ों योजनाएं प्रस्तावित है जिनमें से गढ़वाल के मुख्य इलाकों में निर्माणधीन है जो भागीरथी  अलकनंदा और मंदाकनी में बनाई जानी हैं जहां पहाड़ों को चीरकर काटकर विस्फोट कर सुरंग बनाई जाएंगी  जो भविष्य के लिए कतई सुखद संकेत नहीं है।  

उत्तराखण्ड में पिछले दो दशक में सड़कों का निर्माण और विस्तार तेजी से बढ़ा है। इसके लिए भूवैज्ञानिक फॉल्ट लाइन, भूस्खलन के जोखिम को भी हद तक नजरअंदाज किया गया है। विस्फोटक के इस्तेमाल, वनों की कटाई, भूस्खलन के जोखिम पर कुछ खास ध्यान न देना और जल निकासी संरचना का अभाव सहित कई सुरक्षा नियमों की अनदेखी भी किसी बड़ी आपदा को न्यौता दे रही है। पर्यटन और ऊर्जा की दृष्टि से उत्तराखण्ड एक उपजाऊ प्रदेश है जिसके लिए तीव्र विस्तार जारी है। आपदा प्रबंधन के आधारभूत नियमों की अनदेखी भी यहां घटनाओं को सहज उपलब्धता  देता है। पर्यावरण और सामाजिक जीवन का ताना-बाना भी यहाँ पर उथल-पुथल में है। कुछ बरस पूर्व  रेणी  गांव में हुआ हादसा अभी तक जेहन में बना है जहाँ सुरंग में फंसे लोगों की जिन्दगी की उम्मीद भी खत्म हो गई।.इस घटना के मामले में पूर्व में ऐसा कोई संकेत नहीं था। यहां हिमखण्ड टूटने के चलते धौलीगंगा में सैलाब आ गया और तपोवन की बिजली परियोजना पर कहर बन कर टूटा और यह तबाही नदियों के सहारे आगे बढ़ गयी। 

2013 के केदारनाथ आपदा को अभी भी कोई भूला नहीं है। 16 जून 2013 को चैराबाड़ी ताल टूटने से मंदाकिनी में बाढ़ आ गयी। केदारनाथ घाटी में नुकसान और रामबाड़ा तहस-नहस हो गया। केदारनाथ आपदा इतनी बड़ी थी कि इसकी विपदा उत्तराखण्ड समेत देश के 22 राज्यों को झेलनी पड़ी थी। मानव अपने निजी लाभों के लिए हस्तक्षेप बढ़ाकर प्रकृति को तेजी से बदलने के लिए मजबूर कर रहा है और हादसे इसके भी नतीजे हैं।धराली आपदा एक चेतावनी है कि विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम विनाशकारी हो सकता है। यह समय है कि हम अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करें और सतत विकास के रास्ते पर चलें। हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य स्थापित करना न केवल आवश्यक है, बल्कि हमारी भावी पीढ़ियों के लिए एक जिम्मेदारी भी है। धराली की त्रासदी को एक सबक के रूप में लेते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास प्रकृति के खिलाफ न हो, बल्कि उसके साथ मिलकर चलें ।

पर्यटन इस राज्य की सबसे बड़ी रीढ़ है जो राजस्व प्राप्ति का अहम साधन है। हमें पर्यटकों को बुनियादी सुविधाऐं देनी चाहिए। पर्यटकों को भी इस बात पर विचार करना होगा इस तरह के खूबसूरत स्थलों पर हर दिन भारी भीड़ नहीं पहुंचे। बड़ी आबादी का बोझ पहाड़ सहने की स्थिति में नहीं हैं।  चार धाम की यात्रा में भारी भीड़ और अव्यवस्थाएं हर साल देखने को मिलती है।  उत्तराखंड आने वाले  पर्यटकों  की संख्या भी पिछले 25 सालों में तेजी से बढ़ी है। राज्य पर्यटन विभाग के मुताबिक पिछले साल 2001 में 1 करोड़ पर्यटक राज्य में पहुंचे वहीँ अब यह संख्या 5 करोड़  से अधिक पहुँच चुकी है। जाहिर है कि ऐसे में किसी  नई कार्ययोजना की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। पिछले  कुछ समय  से विकास के नाम पर यहाँ  नवनिर्माण का जो खेला और वाहनों का रेला लगा है वह समझ से परे है। मिसाल एक तौर पर बदरीनाथ में मास्टर प्लान के नाम पर अलकनंदा के दोनों तरफ घाट तोड़ दिए गए हैं और आने वाले दिनों में अलकनंदा के जलस्तर को किसी दिन बढ़ाएंगे और बड़ी आपदा की तरफ हम बढ़ेंगे।जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास, पारिस्थितिक असंतुलन और प्रशासनिक अक्षमता ने इस देवभूमि  राज्य को संकटग्रस्त क्षेत्र में  बदल दिया है  जिसकी कीमत विनाश के नाम पर एक दिन यहाँ के लोगों को ही चुकानी पड़ेगी।

हमें पहाड़ी यात्रा मार्ग पर आपदा रोकने के लिए और उसके मुकाबले के लिए एक बेहतर तंत्र अब  विकसित करना होगा। बेशक विकास जरूरी है लेकिन पर्यावरण के साथ विकास में भी एक संतुलन बनाकर लकीर खींचने की जरूरत है। बेहतर होगा पहाड़ी इलाकों में प्रकृति के अन्धाधन्ध दोहन पर रोक लगने के साथ ही यहां के अवैध कब्जों और निर्माण पर भी ब्रेक लगे।  बड़े सुरंग आधारित बांधों के बजाय छोटे बांधों पर जोर दिया जा सकता है। बिल्डरों और राजनेताओं का नेक्सस टूटना चाहिए। जो भी हो उत्तराखण्ड की धराली की आपदा ने इस बार यह बड़ा सबक दिया है कि नियोजित विकास के साथ पारिस्थितिकीय संतुलन बनाने की जरूरत है। अगर अब भी हम नहीं चेते तो  भविष्य में धराली  जैसे अनेक  हादसे उत्तराखंड में होते रहेंगे।