Tuesday, 24 June 2025

भारत की महान वीरांगना ‘रानी दुर्गावती’

रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की  सबसे आगे आता है जिन्होंने मातृभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थी। इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था। रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी। रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई।

रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था। राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया। वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है। इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लड़ाईयां लड़ी। कन्या दुर्गावती ने इसी कारण बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी प्राप्त की।

दुर्गावती जब विवाह योग्य हुई तब 1542 में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के सांथ संपन्न हुआ। राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत ही विशाल था उनके राज्य में 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर , होशंगाबाद, भोपाल, सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था। गोंड राजवंश और राजपूतों के इस मेल से शेरशाह सूरी को करार झटका लगा। शेरशाह सूरी ने 1545 को कालिंजर पर हमला कर दिया और बड़ी मुश्किल से कालिंजर के किले को जीतने में सफल भी हो गया, परन्तु अचानक हुए बारूद के विस्फोट से वह मारा गया। 1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम वीरनारायण रखा गया। 1550 में राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई। इस दु:ख भरी घड़ी में रानी को अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर स्वयं राजकाज की बागडोर संभालनी पड़ी।

शेरशाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया। जिसे उसके बेटे बाजबहादुर ने सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया। गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छुति थी और रानी के राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोर समझा और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई। 1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया। रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की जीत हुई। युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ। इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी और अधिक बढ़ गई।

1562 ईसवी में अकबर ने मालवा पर आक्रमण कर मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को परास्त कर मालवा पर अधिकार कर लिया। अब मुगल साम्राज्य की सीमा, रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थीं।वहीं दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अधिकार कर लिया। अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था। इसी कारण वह गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा। उसने रानी दुर्गावती को संदेश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुगल दरवार में भेज दे। रानी अकबर के मंसूबों से भली भांति परिचित थी उसने अकबर की बात मानने से साफ इंकार कर दिया और अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया। इधर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जैसे ही मुगल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उस पर धावा बोल दिया। लड़ाई में रानी की सेना के फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ। शाम होते होते रानी की सेना ने मुगल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई।

वर्तमान में देश के हृदय स्थल मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में जबलपुर और मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास नारियानाला वह स्थान है जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थी। अब इसी स्थान के पास बरेला में रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लोग इस स्थान पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती पर पिछली बार जबलपुर पहुंचे। यहां उन्होंने रानी दुर्गावती स्मारक की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने रानी दुर्गावती पर स्मारक डाक टिकट का लोकार्पण किया साथ ही पीएम ने रानी दुर्गावती पर सिक्के भी जारी किए।

Sunday, 22 June 2025

जीवन जीने की कला का नाम योग

योग जिसका शाब्दिक अर्थ है जोड़ या मिलन न केवल शारीरिक व्यायाम का एक रूप है, बल्कि यह जीवन को संतुलित, स्वस्थ और सार्थक ढंग से जीने की कला भी है। यह प्राचीन भारतीय दर्शन और अभ्यास है, जो शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। योग केवल आसन या शारीरिक मुद्राओं तक सीमित नहीं है यह ध्यान, प्राणायाम, नैतिक अनुशासन और आध्यात्मिक विकास का एक समग्र मार्ग है। 

भारत की पुण्य सलिला भूमि अनादिकाल से  योग भूमि के रूप में विख्यात रही है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2015 से हर वर्ष 21 जून को  अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा के बाद लगभग पूरी दुनिया जान चुकी है कि जीवन जीने की कला का नाम योग है। स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा का नाम योग है।  21 जून को उत्तरी गोलार्ध पर सबसे बड़ा दिन होता है। इसी दिन सूर्य अपनी स्थिति बदल कर दक्षिणायन होते हैं। तपस्वियों की गहन तपस्या से यह माटी धन्य है जो अनेक साधना के शिखर पुरुषों की साक्षी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयत्नों से आज भारत आज पूरे विश्व में  भारत का योग एक बड़े  वैश्विक फलक  में उभर कर आया है जो सम्पूर्ण मानवता  के लिए एक शुभ संकेत है। 

योग का अभ्यास जीवन में शांति, संतुलन और आत्म-जागरूकता लाता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां तनाव, चिंता और शारीरिक रोग आम हो गए हैं, योग एक ऐसी कला के रूप में उभरता है जो हमें इन चुनौतियों से निपटने में मदद करता है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्थिरता भी प्रदान करता है। योग के आसन शरीर को लचीला बनाते हैं और मांसपेशियों को मजबूत करते हैं।नियमित योग अभ्यास रक्त संचार को बेहतर बनाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।पीठ दर्द, जोड़ों का दर्द और अन्य शारीरिक समस्याओं में योग से राहत मिलती है।प्राणायाम और ध्यान तनाव को कम करने और मन को शांत करने में मदद करते हैं। योग के अभ्यास से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है। योग आत्मविश्वास और भावनात्मक स्थिरता को बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर सकता है। योगमय जीवन से सभी के मन में सकारात्मकता का संचार किया जा सकता है। योग कोई धार्मिक कर्मकांड  नहीं है इसीलिए तो  योगः कर्मषु कौशलम् कहा गया है। 

आज विदेश में योग के प्रति लोगों की रूचि अब बढ़ रही है। इसे घर- घर तक टेलीविजन माध्यम से पहुंचाने में बाबा रामदेव की भी बड़ी भूमिका है। अच्छी बात ये है कि आज तेजी से भागती दौड़ती जिंदगी में सारी दुनिया योग के महत्व को पहचान और जान रही है। योग से न सिर्फ तनाव कम होता है बल्कि मन में सकारात्मकता का संचार होता है। देश के अधिकांश युवा आज आधुनिक जीवन शैली और सोशल मीडिया के दौर में खराब  खान पान की आदतों के कारण बहुत कम आयु में ही मधुमेह ,ब्लड प्रेशर, कैंसर, सरवाइकल  जैसे रोगों के शिकार हो रहे हैं। उन्हें  स्मार्ट फोन की रील्स  ने इतना व्यस्त कर दिया है कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतन करने का समय तक नहीं निकाल पा रहे हैं। चलना -फिरना और घूमना भी लोगों का बहुत कम हो गया है और इंसान की जिंदगी ऑनलाइन लाइक्स पर ही मानो टिक गयी है। ऐसे में योग ही है जो सभी का जीवन संवार सकता है। योग मनुष्य को पवित्र बनाता है।

योग जीवन का अन्तर्दर्शन कराता है। योग मनुष्य जीवन की विसंगतियों पर नियंत्रण का बेहतरीन माध्यम है। योग केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यह हमें न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रखता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध करता है। योग के नियमित अभ्यास से हम अपने जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मकता ला सकते हैं। यह एक ऐसा मार्ग है, जो हमें स्वयं से जोड़ता है और हमें जीवन के हर पहलू में उत्कृष्टता प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।
 
यजुर्वेद में की गई पवित्रता-निर्मलता की यह कामना हर योगी के लिए काम्य है कि ‘देवजन मुझे पवित्र करें, मन में सुसंगत बुद्धि मुझे पवित्र करें, विश्व के सभी प्राणी मुझे पवित्र करें, अग्नि मुझे पवित्र करे।' इसलिए योग के पथ पर अविराम गति से वही साधक आगे बढ़ सकता है जो चित्त की पवित्रता एवं निर्मलता के प्रति पूर्ण जागरूक हो क्योंकि निर्मल चित्त वाला व्यक्ति ही योग की गहराई तक पहुंच सकता है। योग कोई धार्मिक कर्मकांड न नहीं है इसीलिए तो ‘योगः कर्मषु कौशलम्’ कहा गया है। गीता ‘योग क्षेम वहाम्यहं’ का उद्घोष करती है जिसका अर्थ है- अप्राप्त कोे प्राप्त करना और प्राप्त की रक्षा करना। सद्गुण को बांटना और दुर्गुण को नष्ट करना भारतीय संस्कृति की मूल है। योग कला, विज्ञान और दर्शन है जो जनता को आत्मानुभूति कराने में मदद करता है।  

योग को अपने दैनिक जीवन में शामिल करना सरल है। सुबह के समय 15-20 मिनट का योग अभ्यास दिन की शुरुआत को ऊर्जावान और सकारात्मक बना सकता है। प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और कपालभाति मन को शांत करने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त, योग के नैतिक सिद्धांत जैसे अहिंसा, सत्य, और संतोष को अपनाकर हम अपने जीवन को और अधिक अर्थपूर्ण बना सकते हैं।महर्षि पंतजलि के अनुसार, ‘योगश्चित्त वृत्तिनिरोधः’’ अर्थात चित्त की वृत्तियों को रोकने का नाम योग है। हम सभी को भी अपने चित्त से योग के विरोध की वृत्ति का त्याग कर स्वस्थ,सुदीर्घ जीवन के लिए प्रयास अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर करने चाहिए।


Friday, 13 June 2025

लगातार आ रहा है निवेश,मोहन के नेतृत्व में तेजी से आगे बढ़ता मध्यप्रदेश


देश का हृदयस्थल कहा जाने वाला मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में निवेश और विकास के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है। बीते डेढ़ बरस के छोटे से समय  में उनकी दूरदर्शी नीतियों, स्पष्ट प्रशासनिक दृष्टिकोण और निवेशक-अनुकूल रणनीतियों ने प्रदेश को औद्योगिक और आर्थिक प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है। डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में निवेश की गति धुआंधार रही है और विकास तेजी से हो रहा है।

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने मध्यप्रदेश को निवेश के लिए आदर्श गंतव्य बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भोपाल में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट इसका जीता जागता उदाहरण रहा जहाँ मोहन का मैजिक इस कदर चला कि इस समिट में 30 लाख 77 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए जो प्रदेश के आर्थिक विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इससे पहले भी एमपी में निवेशक सम्मेलन आयोजित होते रहे लेकिन बड़े निवेश के प्रस्ताव राज्य को नहीं मिल पाए। डॉ. मोहन यादव की मजबूत इच्छा शक्ति का परिणाम है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से उन्होनें देश और दुनिया में एमपी की पताका फहरा दी। इन निवेश प्रस्तावों से लगभग 21 लाख रोजगार के अवसर सृजित होने की संभावना है,जो एक रिकार्ड है। इस समिट में विभिन्न क्षेत्रों जैसे एविएशन, आईटी, कृषि और शहरी विकास में निवेश के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। मोहन के नेतृत्व में मध्यप्रदेश अब केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक निवेशकों के लिए भी एक आकर्षक गंतव्य बन रहा है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निवेश को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर इंडस्ट्री कॉन्क्लेव की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य प्रदेश के हर कोने में औद्योगिक विकास को गति देना है। उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सागर , नर्मदापुरम जैसे शहरों में आयोजित इन कॉन्क्लेव्स ने स्थानीय स्तर पर निवेशकों को आकर्षित किया है। ये कॉन्क्लेव न केवल राज्य में व्यापक निवेश को प्रोत्साहित कर रहे हैं, बल्कि इससे स्थानीय उद्यमियों और छोटे-मध्यम उद्योगों को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने एमएसएमई सेक्टर के लिए 5000 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा की है, जिससे छोटे निवेशकों की बांछे खिल गई हैं। मोहन सरकार ने अपने कार्यकाल में औद्योगिक विकास के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार कर लिया है जिसमें औद्योगिक पार्कों को बढ़ावा देने के साथ स्मार्ट औद्योगिक टाउनशिप विकसित करने पर जोर दिया गया है। इस पहल से रोजगार के नए अवसर न केवल मिलेंगे बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

मध्यप्रदेश बहुत जल्द ड्रोन निर्माण का बड़ा हब भी बनने जा रहा है। इस लक्ष्य को पाने के लिए मोहन सरकार ने पिछले दिनों मध्यप्रदेश ड्रोन संवर्धन एवं उपयोग नीति 2025 को मंजूरी दी है जिससे नए स्टार्ट अप कंपनियों और उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने ड्रोन स्कूल खोने की बड़ी कार्ययोजना भी तैयार की है जिसके माध्यम से युवाओं को ड्रोन तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे राज्य में रोजगार के नए अवसर बढ़ेंगे।

डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश को न केवल औद्योगिक, बल्कि आध्यात्मिक और वेलनेस हब के रूप में भी स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। पिछले दिनों उज्जैन में आयोजित स्पिरिचुअल एंड वेलनेस समिट 2025 में 1950 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। इस समिट ने मध्यप्रदेश को भारत के वेलनेस मिशन का नेतृत्व करने वाला राज्य बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम उठाया। बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में मेडिसिटी की स्थापना और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के साथ समझौता इस दिशा में उनकी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन जैसे आध्यात्मिक संगठनों ने भी उज्जैन में केंद्र स्थापित करने के लिए पत्र सौंपा है जो प्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को और समृद्ध करेगा।

मध्यप्रदेश शहरी विकास के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत सात स्मार्ट सिटी, 80% पाइप जलापूर्ति और 6000 किलोमीटर शहरी सड़कों का विकास इसकी गवाही देता है। शहरी विकास में 88 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं जिनमें 50 हजार करोड़ रुपये से 10 लाख नए आवासों की योजना शामिल है। ये प्रयास मध्यप्रदेश को निवेशकों और डेवलपर्स के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाते हैं।मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने निवेशकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने पर पहले से ही विशेष जोर दिया है। आज मध्यप्रदेश में सरप्लस बिजली, उत्कृष्ट बुनियादी ढांचा और कुशल मानव संसाधन उपलब्ध हैं। अब प्रदेश में उद्योग-अनुकूल नीतियां निवेशकों को इन दिनों खूब लुभा रही हैं। इसके अतिरिक्त 100 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों के लिए कस्टमाइज्ड नीतियां , सिंगल विंडो सिस्टम को प्रोत्साहन और विभिन्न विभागों की तरफ से विशेष सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है, जो निवेशकों के लिए अतिरिक्त बूस्टर डोज का काम कर रहा है। नीति आयोग ने भी मध्यप्रदेश को तेजी से प्रगति करने वाले राज्यों में अग्रणी माना है जो मुख्यमंत्री डॉ. यादव के दूरदर्शी नेतृत्व की व्यापक प्रभावशीलता को दिखा रहा है।

मध्यप्रदेश अब नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी नई ऊंचाइयों को छूने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। सूर्य मित्र कृषि फीडर योजना  प्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है जो केंद्र सरकार की पीएम कुसुम योजना के तहत संचालित की जा रही है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के कृषि फीडरों को सौर ऊर्जा से जोड़ना है ताकि किसानों को दिन के समय सस्ती और स्थायी बिजली उपलब्ध हो सके। यह योजना न केवल किसानों को सिंचाई के लिए निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करती है बल्कि उन्हें सौर ऊर्जा के उत्पादक के रूप में भी सशक्त बनाती है। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बनने की ओर अग्रसर है जो अपने सभी कृषि फीडरों को सौर ऊर्जा से जोड़ेगा। आज  प्रदेश की नवकरणीय ऊर्जा क्षमता 15 गुना बढ़ चुकी है जिसमें सौर ऊर्जा में 48 प्रतिशत और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अब तक प्रदेश में 80 मेगावाट क्षमता की सौर परियोजनाएं स्थापित हो चुकी हैं जिनसे 16,000 से अधिक कृषि पंप सौर ऊर्जा से संचालित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त 240 मेगावाट की परियोजनाएं स्थापना के चरण में हैं और 200 मेगावाट की परियोजनाएं प्रक्रियाधीन हैं। कुल मिलाकर, 520 मेगावाट की परियोजनाओं से 1 लाख से अधिक पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़ा जाएगा।

10 जून 2025 को भोपाल में आयोजित पहली सूर्य मित्र कृषि फीडर योजना समिट का उद्घाटन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया। इस समिट में देश और प्रदेश के 350 से अधिक निवेशकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया जो प्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। समिट में  सौर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं को प्रदर्शित किया जिसमें छोटे और बड़े दोनों प्रकार के निवेशकों ने उत्साह दिखाया। सूर्य मित्र कृषि फीडर योजना ने मध्यप्रदेश में निवेश और रोजगार की दिशा में एक नया द्वार खोला है। समिट में 20,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की संभावना व्यक्त की गई जो न केवल सौर ऊर्जा क्षेत्र में बल्कि आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विजन मध्यप्रदेश को 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 6% योगदान देने वाला राज्य बनाना है। भारतीय उद्योग परिसंघ की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2047-48 तक 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। डॉ. यादव का कुशल और दूरदर्शी नेतृत्व मध्यप्रदेश को न केवल औद्योगिक और शहरी विकास में बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी एक वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में अग्रसर है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव का कहना  है  कि सोलर एनर्जी से किसानों की जीवन-शैली भी बदलेगी। सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बनाते हुए बिजली के बिल से मुक्ति दिलाएगी। आगामी तीन वर्ष में 32 लाख सोलर पंप कनेक्शन लगाए जाएंगे। वर्ष 2025 तक प्रदेश के सभी शासकीय भवनों पर सोलर रूफटॉप लगाए जाएंगे। 

डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में एमपी तेजी से निवेश और विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है।ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और क्षेत्रीय कॉन्क्लेव्स के माध्यम से अब तक 75 हजार से अधिक रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव, ड्रोन संवर्धन एवं उपयोग नीति 2025 , सूर्य मित्र कृषि फीडर समिट, स्पिरिचुअल एंड वेलनेस समिट सरीखी पहल ने मध्यप्रदेश को निवेशकों के लिए न केवल एक आदर्श डेस्टिनेशन बनाया है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत बनाने की दिशा में यह एक सधा हुआ कदम है।

Tuesday, 3 June 2025

अब राजा भभूत सिंह के योगदान को याद करेगा मध्यप्रदेश

देश के ह्रदयप्रदेश मध्यप्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी में 3 जून 2025 को मोहन कैबिनेट की एक विशेष बैठक का आयोजन होने जा रहा है। यह बैठक न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखती है। मोहन सरकार की यह कैबिनेट बैठक  जनजातीय नायक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा भभूत सिंह की स्मृति में आयोजित की जा रही है।  मोहन सरकार की  डेस्टिनेशन कैबिनेट को गति देने की एक बड़ी कार्ययोजना है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन महत्व के स्थानों को प्रचारित करना और उनके विकास को बढ़ावा देना है।

मनमोहक प्राकृतिक सुषमा का धनी है पचमढ़ी  

पचमढ़ी, जो सतपुड़ा की वादियों में बसा मध्य प्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर से गहराई से जुड़ा हुआ है। पचमढ़ी में जिस स्थान को कैबिनेट मीटिंग के लिए तय किया गया है वह पूरी तरह प्रकृति की गोद में है और  हरियाली से घिरा हुआ है। पचमढ़ी में जब भी प्रदेश सरकार की कोई बड़ी मीटिंग रखी जाती है तो इस स्थान का महत्व काफी ज्यादा रहता है। पचमढ़ी भगवान भोलेनाथ की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। पचमढ़ी की धूपगढ़ चोटी समुद्र तल से लगभग 1,350 मीटर (4,429 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थल सतपुड़ा पर्वतमाला का प्रमुख आकर्षण है। धूपगढ़ से दिखाई देने वाला सूर्योदय और सूर्यास्त न केवल पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करता है, बल्कि यह स्थल गोंड साम्राज्य की रणनीतिक शक्ति और प्राकृतिक संरक्षण दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। पचमढ़ी मध्‍यप्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन भी है। मंत्रि-परिषद की बैठक का आयोजन प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह पचमढ़ी की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत को सम्मानित करने का अवसर है।

विरासत से विकास का संगम, जन -जन के मन को भाये मोहन 

 इस बैठक में मध्य प्रदेश के विकास से संबंधित कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने की संभावना है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पचमढ़ी में मप्र पर्यटन विभाग के 12 करोड़ 49 लाख रुपए के 5 विकास कार्यों का लोकार्पण करेंगे। वे यहां 21 करोड़ 39 लाख के 6 विकास कार्यों का भूमिपूजन भी करेंगे।महिला सशक्तिकरण अंतर्गत जटाशंकर एवं पांडव केव्स पर पिंक टॉयलेट लाउंज सुविधा जो 19 लाख रुपए की लागत से निर्मित की गई का लोकार्पण करेंगे।10 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित जयस्तंभ क्षेत्रांतर्गत मागों के दोनों ओर पाथवे विकास, 60 लाख रुपए की लागत से निर्मित धूपगढ़ पर जल प्रदाय के लिए जलगली से धूपगढ़ तक पाइप लाइन एवं पंप हाउस, 35 लाख रुपए की लागत से निर्मित पचमढ़ी के प्रवेश द्वार का सौंदर्याकरण, 1 करोड़ 35 लाख रुपए की लागत से निर्मित पर्यटन की इकाई सतपुडा रिट्रीट में किचन एवं रेस्टोरेंट नवीनीकरण तथा स्वीमिंग पूल का लोकार्पण करेंगे। मुख्यमंत्री 1 करोड़ 98 लाख रुपए की लागत से बनाए जाने वाले हांडी खो पर पर्यटकों की सुरक्षा व सुविधाएं विकसित करने, 2 करोड़ 13 लाख रुपए की लागत सतपुडा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत पर्यटक स्थलों पर बुनियादी सुविधा के विकास कार्य का, 34 लाख रुपए लागत के पॉलिथिन मुक्त पचमढी की इकाइयों के लिए कांच की बोतल में आरओ जल प्रदाय प्लांट की स्थापना सहित अन्य कार्यों का लोकार्पण करेंगे।

 राजा भभूत सिंह के योगदान को मोहन का सम्मान
 
 इस बैठक का उद्देश्य न केवल प्रशासनिक निर्णय लेना है, बल्कि पचमढ़ी जैसे स्थानों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करना भी है।  ‘विरासत के साथ विकास’ की कड़ी में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कैबिनेट बैठक को  राजा भभूत सिंह को समर्पित किया है। इसके  माध्यम से राजा भभूत सिंह की ऐतिहासिक विरासत को संजोने का एक बेहतरीन प्रयास शुरू होगा। यह डेस्टिनेशन कैबिनेट बैठकों की श्रृंखला का हिस्सा है, जिसके तहत सरकार राज्य के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों पर बैठकें आयोजित कर रही है। इससे पहले जबलपुर में रानी दुर्गावती और इंदौर में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की स्मृति में भी ऐसी बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। यह पहल न केवल राजा भभूत सिंह की ख्याति को पूरे प्रदेश में बढ़ाएगी, बल्कि आदिवासी समुदाय के योगदान को भी रेखांकित करेगी।

 मोहन के प्रयासों से राजा भभूत सिंह का नाम सबकी जुबां पर चढ़ेगा 

 पचमढ़ी की महादेव चौरागढ़ पहाड़ियों में राजा भभूत सिंह की वंश परंपरा के पूर्वज अजीत सिंह थे। इस भोपा गोत्र के मवासी कोरकू ठाकुर वंश की पचमढ़ी शाखा के जागीरदार ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में भी अंग्रेजों के विरुद्ध नागपुर के राजा अप्पा साहेब भोसले का तन मन धन से सहयोग किया था। अपने पूर्वजो के पदचिन्हों पर चलते हुए युवा राजा भभूत सिंह ने भी 1857 की क्रांति के नेता तात्याटोपे के आव्हान पर 1858 में भारत के प्रथम सशस्त्र स्वातंत्र्य समर में कूदने का निर्णय लिया था। राजा भभूत सिंह अपने बड़े बूढ़े के मुख से अंग्रेजों के विरुद्ध नागपुर राजा अप्पासाहेब भोंसले के सशस्त्र संग्राम में स्थानीय जनजातीय सूरमाओं के सहयोग की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए थे।राजा भभूत सिंह  नर्मदांचल के शिवाजी के रूप में जाने जाते थे। आजादी की पहली लड़ाई में पचमढ़ी के आसपास अंग्रेजों को छापामार युद्ध से कई बार धूल चटाई थी। पचमढ़ी में राजा भभूत सिंह और तात्या टोपे ने मिलकर आजादी के आंदोलन का नया शंखनाद किया। हर्राकोट राईखेड़ी वंश के वीर राजा भभूत सिंह का  देनवा घाटी में जब अंग्रेजी मिलिट्री और मद्रास इन्फेंट्री की टुकड़ियों से युद्ध हुआ तो राजा भभूत सिंह ने अपनी छापामार युद्ध नीति के चलते  अंग्रेजी सेना को बुरी तरह धूल  चटाने का काम किया। 1860 में राजा भभूत सिंह को जबलपुर में  मौत की सजा सुनाई गई। डॉ. मोहन यादव की  कैबिनेट बैठक के इस आयोजन से पचमढ़ी के गौरवशाली नायक की  गाथा  जन-जन की जुबान पर चढ़ेगी।  यह आयोजन पचमढ़ी के प्राकृतिक सौंदर्य और जनजातीय समाज की समृद्ध परंपराओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सहायक होगा।

 3 जून 2025 को पचमढ़ी में होने वाली मोहन कैबिनेट की बैठक मध्यप्रदेश के लिए एक  बड़ी महत्वपूर्ण घटना है। यह न केवल राज्य के विकास और सुशासन को बढ़ावा देगी, बल्कि राजा भभूत सिंह जैसे जनजातीय नायकों के योगदान को भी सम्मानित करेगी। इस आयोजन के माध्यम से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव  ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए आधुनिक विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जिसमें विरासत  के साथ विकास का बेहतरीन समन्वय देखा जा रहा है।  

राजभवन पचमढ़ी गौरवशाली अतीत और विरासत का प्रतीक


सतपुड़ा की रानी के नाम से प्रसिद्ध पचमढ़ी अपने नैसर्गिक सौंदर्य, प्राकृतिक सुषमा  और मनोरम दृश्यों के लिए जाना जाता है। राजभवन पचमढ़ी  न केवल एक प्रशासकीय भवन है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व का अनूठा संगम भी है। यह मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले (वर्तमान में नर्मदापुरम) में स्थित पचमढ़ी नामक खूबसूरत हिल स्टेशन पर समुद्र तल से 1,067 मीटर की ऊंचाई पर बसा है।राजभवन, इस प्राकृतिक वैभव के बीच, एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में अपनी विशेष पहचान रखता है।


प्राकृतिक और प्रशासनिक महत्व 

राजभवन पचमढ़ी के पठार पर 1067 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जो सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है। इसके चारों ओर घने जंगल, झरने, और प्राकृतिक सुंदरता इसे एक शांत और मनोरम स्थान बनाती है। यह स्थान ग्रीष्मकाल में ठंडी और सुखद जलवायु प्रदान करता है, जिसके कारण इसे ब्रिटिश काल में ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया था।पचमढ़ी राजभवन मध्यप्रदेश के राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन आधिकारिक आवास है जो अपनी ऐतिहासिक विरासत,  स्थापत्य कला  और प्राकृतिक विशेषताओं के लिए जाना जाता  है।

 इस राजभवन का निर्माण 1887 में ब्रिटिश काल के दौरान  हुआ था।  उस दौर में जब पचमढ़ी मध्यप्रांत की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। उस समय यहाँ उच्च अधिकारियों और मंत्रियों की बैठकों के लिए उपयोग किया जाता था। पचमढ़ी के ब्रिटिश शासनकालीन इतिहास को दर्शाने वाली यह इमारत आज भी  प्रशासनिक महत्व को संजोए हुए है।

खूबसूरत बगीचे और हरियाली  22.84 एकड़ क्षेत्र में फैला  राजभवन 

यह विशाल राजभवन यह 22.84 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें खूबसूरत बगीचे और हरियाली शामिल है। इसका डिज़ाइन क्लासिकल यूरोपीय शैली में किया गया है, इमारत की लागत उस समय 91,344 रुपये थी।  राजभवन  पचमढ़ी में मुख्य भवन के अतिरिक्त डांस  हाल का निर्माण 1910 -11 में 20,770 रु की लगात से हुआ। तब  यह सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों के लिए उपयोग किया जाता था।1912 में इसके काउंसिल चैंबर का निर्माण 14392 रु की लागत से हुआ।  यह भवन अब दरबार हाल के नाम से जाना जाता है। तब यह  बैठकों और औपचारिक समारोहों के लिए बनाया गया था। 1933 से 1958 के बीच इसमें कई संशोधन और नवीकरण किए गए। इसके अतिरिक्त इस परिसर में  सचिव निवास (बी बंगा ), ए.डी.सी निवास, कैम्प हाल , कैम्प हेड क्लर्क क्वार्टर , अस्तबल , विद्युत् पावर हाउस , एलिफेंट हाउस , महावत  हाउस , टाइगर हाउस और  कर्मचारियों के लिए क्वार्टर भी हैं, जो इसकी व्यापक संरचना को दर्शाते हैं। राजभवन का उपयोग मध्य प्रदेश के राज्यपाल के ग्रीष्मकालीन निवास के रूप में किया जाता है। 

राजभवन की वास्तुकला औपनिवेशिक शैली को दर्शाती है, जिसमें विशाल लॉन, ऊंचे पेड़ और सुंदर भवन शामिल हैं। दुर्बार हॉल और डांस हॉल जैसे हिस्से इसके ऐतिहासिक वैभव को प्रदर्शित करते हैं। राजभवन परिसर में राज्यपाल के सचिव, सहायक (ADC) और अन्य कर्मचारियों के लिए आवास भी हैं। यह परिसर न केवल प्रशासकीय कार्यों के लिए उपयोगी है, बल्कि महत्वपूर्ण बैठकों और समारोहों का भी केंद्र रहा है।  1967 तक पचमढ़ी मध्य प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही, और राजभवन राज्यपाल के साथ-साथ मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के लिए भी आवास का केंद्र रहा।

 प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का भी प्रतीक


राजभवन पचमढ़ी सतपुड़ा पर्वतमाला की घाटियों में बसा है, जो इसे एक अनूठा प्राकृतिक आकर्षण प्रदान करता है। यह सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा है जहां दुर्लभ वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की विविधता देखने को मिलती है। इसके आसपास की प्राकृतिक सुंदरता जैसे अप्सरा विहार, रजत प्रपात, और पांडव गुफाएँ, इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक ब्रिटिश काल की वास्तुकला और पचमढ़ी की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।पचमढ़ी का राजभवन न केवल एक ऐतिहासिक और स्थापत्य दृष्टि से महत्वपूर्ण इमारत है बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का भी प्रतीक है। इसका ब्रिटिशकालीन इतिहास, विशाल क्षेत्र और सतपुड़ा की रानी के रूप में पचमढ़ी की खूबसूरती इसे एक अनूठा स्थल बनाती है। 


2022 में  हुआ था  चिंतन शिविर  उसी स्थान पर मोहन कैबिनेट का  होगा मंथन 

मध्यप्रदेश की तत्कालीन  शिवराज सिंह चौहान सरकार ने 26-27 मार्च 2022 को पचमढ़ी में दो दिवसीय चिंतन शिविर का आयोजन किया था । यह चिंतन शिविर भी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पचमढ़ी में आयोजित किया गया जिसका उद्देश्य राज्य सरकार की योजनाओं की समीक्षा करना, नई रणनीतियों पर विचार-मंथन करना और आगामी 2023 विधानसभा चुनावों की तैयारियों को गति देना था। यह आयोजन मंत्रिपरिषद के सदस्यों, विभागीय अधिकारियों और अन्य हितधारकों के बीच गहन चर्चा और जनहितकारी योजनाओं को प्रभावी बनाने का एक प्रभावी मंच बना।  उसी जगह मोहन सरकार अपनी  कैबिनेट कर  रही है। 3 जून 2025 को राजभवन पचमढ़ी में मोहन कैबिनेट  की बैठक राजा भभूत सिंह के शौर्य को समर्पित होगी।

पचमढ़ी के राजभवन का महत्व न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह पचमढ़ी और मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी एक अहम हिस्सा है। यह स्थल राज्य के शासकों और उच्च अधिकारियों के बीच  प्रशासिक कार्यों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इसके अलावा, यह राजा भभूत सिंह की पहचान का हिस्सा है, जो इसे एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाता है।

Sunday, 1 June 2025

अहिल्याबाई का 'विरासत पथ' बना मोहन का 'विकास पथ'


लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर को सुशासननारी सशक्तिकरण और जनकल्याण की प्रतीक माना जाता है। अपने शासनकाल में जनकल्याण और समावेशी विकास की ऐसी मिसाल कायम की जो आज भी समाज के लिए प्रेरणादायी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उनकी इस विरासत को न केवल संरक्षित करने का संकल्प लिया हैबल्कि इसे आधार बनाकर प्रदेश को विकास के नए आयामों तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
 
लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने अपने शासनकाल में सुशासन की अनूठी मिसाल प्रस्तुत की। उन्होंने न केवल प्रशासनिक दक्षता और न्यायप्रियता का परिचय दियाबल्कि समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए। मंदिरोंघाटोंसरायों और जल संरक्षण परियोजनाओं के निर्माण के माध्यम से उन्होंने सामाजिकसांस्कृतिक अभ्युदय को बढ़ावा दिया। उनकी यह विरासत आज भी मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का आधार है जिसे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव अपने विजन से नई दिशा दे रहे हैं।
 
 
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अहिल्याबाई की 300वीं जयंती के अवसर पर उनके कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने और उनके आदर्शों को विकास नीतियों में समाहित करने का संकल्प लिया है। अहिल्याबाई की पुण्य गाथा के नाटकों का आज पूरे प्रदेश में मंचन हो रहा है जिसके चलते उनके कार्यों की जानकारी आम आदमी तक पहुंच रही है। इस नाटक के माध्यम से आमजन अहिल्या बाई के कार्यों को समझ रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव खुद अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ इस नाटक को इंदौर में देख चुके हैं।
 
डॉ. मोहन यादव की सरकार ने 'विरासत के साथ विकासके मंत्र को अपनाते हुए मध्यप्रदेश को एक समृद्ध और सशक्त राज्य बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उनकी नीतियां और योजनाएं न केवल आर्थिक विकास पर केंद्रित हैंबल्कि आर्थिकसामाजिकसांस्कृतिक संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता देती हैं। महिलाओं को सशक्त बनाने का जो संकल्प लोकमाता लिया थाउसे डॉ. मोहन यादव की सरकार 'देवी अहिल्या नारी सशक्तिकरण मिशनके माध्यम से साकार कर रही है। यह मिशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'ज्ञान' (गरीबयुवाअन्नदातानारी) मंत्र से प्रेरित है। इस मिशन के तहत बालिका शिक्षास्वास्थ्यपोषणऔर आर्थिक स्वावलंबन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं जैसे लाड़ली लक्ष्मीलाड़ली बहनालखपति दीदी और महिला स्व-सहायता समूहों का सशक्तिकरण लागू किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त प्रदेश के अनेक धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी जैसे कदम उठाए गए हैं।
 
अहिल्याबाई के शासनकाल में कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक दक्षता का विशेष महत्व था। डॉ. मोहन यादव ने इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए ई-गवर्नेंस की सुशासन प्रणालियों को प्रदेश में बेहतर ढंग से लागू किया है। उनकी सरकार ने जनकल्याणकारी योजनाओं को अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए जनकल्याण पर्व जैसे अभियान शुरू किए हैं जिनमें शिविरों के माध्यम से योजनाओं का लाभ वंचित वर्गों तक पहुंचाया जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महारानी अहिल्या के शासनकाल के फैसलेनीतियों से प्रेरित होकर अपनी कैबिनेट की बैठक इंदौर के राजबाड़ा में रखी जिसमें अहिल्याबाई की दूरदृष्टि से प्रेरित होकर प्रदेश के विकास के लिए कई निर्णय लिए गए जिसमें 3876 करोड़ रु. की सौगात प्रदेश को दी गई। मोहन सरकार की मौजूदा नीतियों में शामिल सुशासनजनसुनवाई और महिला सशक्तिकरण उन्हीं से प्रेरित है।
 
डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के लिए कई पहल की हैं। अहिल्यादेवी द्वारा निर्मित मंदिरोंधर्मशालाओंऔर अन्य सामुदायिक संरचनाओं के रखरखाव के लिए अन्य राज्यों के साथ समन्वय स्थापित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्तश्रीराम वन गमन पथश्रीकृष्ण पाथेयऔर सिंहस्थ 2028 जैसे आयोजनों के लिए विशेष बजट प्रावधान किए गए हैं। ये प्रयास न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देंगेबल्कि स्थानीय रोजगार के अवसर भी सृजित करेंगे।
 
डॉ. मोहन यादव की सरकार ने प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस योजना तैयार की है। डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने बीते डेढ़ वर्ष में औद्योगिक विकास की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। प्रदेश को राष्ट्रीय और वैश्विक औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित करने के लिए उन्होंने न केवल बेहतर नीतियां बनाईबल्कि जमीनी स्तर पर निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जीआईएस और रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव किए। इस तरह के भव्य आयोजनों ने विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक संभावनाओं को मजबूती प्रदान की। इसके साथ ही निवेशकों के साथ सीएम डॉ.यादव ने सीधा संवाद स्थापित किया जिससे मध्यप्रदेश के औद्योगिक विकास को नई गति मिली। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निवेश आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने यूकेजर्मनी और जापान की यात्रा कर वहां की प्रमुख कंपनियों और निवेशकों से संवाद स्थापित किया। अगले पांच वर्षों में 8 लाख करोड़ रुपये के निवेश को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा गया है।यह योजना उद्योग विभाग द्वारा तैयार की गई है और निवेशकों की बैठकों में इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
 
अहिल्याबाई होलकर ने जल संरक्षण और संवर्धन के लिए कई घाटों और जलाशयों का निर्माण करवाया था। उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए डॉ. मोहन यादव की सरकार ने केन-बेतवा लिंक परियोजनापार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजनाऔर ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना जैसी योजनाओं को प्राथमिकता दी है। ये परियोजनाएं किसानों के लिए वरदान साबित होंगी और प्रदेश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेंगी। इसके अलावा जलगंगा संवर्धन अभियान के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की दिशा में मोहन सरकार नई लकीर खींचती हुई नजर आ रही है। मोहन सरकार खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में’’ के सिद्धांत पर जल संरक्षण की दिशा में जल गंगा संवर्धन अभियान’ चला रही है। "जल गंगा संवर्धन अभियान" जन-भागीदारी से चलाया जा रहा है जो 30 मार्च से 30 जून 2025 तक चलेगा और इसमें 52 जिलों को शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के आहवान पर जल संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए वर्षा जल संचयन के साथ नदियों एवं पारम्परिक जल स्रोतों का पुनर्जीवन और जल संरक्षण तकनीकों को अपनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। जल गंगा संवर्धन अभियान के अंतर्गत जल स्रोतों तथा नदीतालाबोंकुओंबावड़ी तथा अन्य जल स्रोतों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन हेतु जीर्णोद्धार एवं सफाई के कार्य किये जा रहे हैं। किसानों को संगोष्ठियों के माध्यम से जल संवर्धनवर्षा जल संचयनभूजल की रिचार्जिंग तकनीकों के विषय में जानकारियां दी जा रही हैं ।
 
लोकमाता अहिल्याबाई की विरासत मध्यप्रदेश के लिए एक अमूल्य धरोहर हैजिसे डॉ. मोहन यादव ने अपने विकासपथ का आधार बनाया है और उनकी कार्यशैली में भी लोकमाता की कार्यशैली की झलक दिखाई देती है। डॉ.मोहन यादव समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुँचाना चाहते हैं और अहिल्या की विरासत से अपने विकास के संकल्प को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। उनकी सरकार नारी सशक्तिकरणसुशासन और सांस्कृतिक संरक्षण के माध्यम से मध्यप्रदेश को एक समृद्ध और विकसित राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर है। लोकमाता अहिल्याबाई की तरह डॉ. मोहन यादव भी अपनी कुशल प्रशासनिक दक्षता और त्वरित निर्णयों से मध्यप्रदेश में एक नई छाप छोड़ते दिखाई देते हैं।
 
अहिल्यादेवी के आदर्शों को आत्मसात करते हुए डॉ.मोहन यादव के ये प्रयास न केवल मध्यप्रदेशबल्कि समूचे देश के लिए एक प्रेरणा है। अहिल्यादेवी की दूरदृष्टि से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने विकास के साथ-साथ अपनी समृद्ध विरासत को सहेजने का जो संकल्प लिया हैवह निश्चित रूप से प्रदेश को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा। लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की विरासत मध्यप्रदेश के लिए एक अमूल्य धरोहर है जिसे डॉ. मोहन यादव ने विजन से नई गति मिल रही है। उनकी सरकार नारी सशक्तिकरणसुशासन और सांस्कृतिक अभ्युदय के माध्यम से एक समृद्ध और विकसित मध्यप्रदेश बनाने की दिशा में अग्रसर है। अहिल्यादेवी के आदर्शों को आत्मसात करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. यादव का यह प्रयास न केवल समूचे देश के लिए एक नई प्रेरणा का स्त्रोत है।