Sunday, 13 December 2009

डाक-डिब्बे का शव ..


लिखा है...पिनकोड उपयोग किजिए।
उपयोग तो हो रहा है, मगर पिनकोड के लिए नहीं बल्कि पत्थरों के लिए। क्या ट्विटर वाले तो ये पत्थर नहीं फैंक गए हैं? या फिर ई-मेल या एसएमएस वाले? ये लाल-काला डिब्बा कितनी जिंदगियों के बिछोह और मिलन के संदेश अपने में समेटे रहता था, ये बात आज कुछ के लिए समझना असंभव है। जिस दिन से यहां पिनकोड और चिट्ठी-पत्री की जगह पत्थर पड़ने लगे उसी दिन से हम जुड़कर भी अलग हैं, मिलन में भी बिछड़े हुए हैं, खुश होकर भी दुखी हैं, मैसेज पाकर भी संदेश हीन हैं, अपनों के होते हुए भी बिना अपनत्व के हैं।

बड़ा दुख होता है यह सोचकर ही कि वह वक्त यूं ही भूला दिया गया। वो चिट्ठियां भेजने का सिलसिला यूं ही खत्म कर दिया गया। हमारे अपने पास होकर भी कितने दूर हो गए। सभी हमारी जेब के जरिए हमसे संपर्क में हैं फिर भी हम अपनों का हाल नहीं जान पा रहे हैं।

बचे अवशेष ...


लिखा है...
सिर्फ़ एक रुपये में नव दुनिया .. मिडिया प्रा. लि. इंदौर का प्रकाशन ।

Sunday, 6 December 2009

मध्य प्रदेश में अब निकाय चुनावो का संग्राम...............







मध्य प्रदेश का चुनावी पारा सातवे आसमान पर है .... राज्य में होने जा रहे नगर निगम चुनावो में सत्तारुद भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस एक बार फिर आमने सामने है ... लोक सभा चुनावो में भाजपा की घटी सीटो ने जहाँ मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुसीबतों को बदा दिया है ,वही गुटबाजी की शिकार कांग्रेस कि सीटो में इजाफा होने से कार्यकर्ताओ की बाछें खिल गई है ...


इस बार भी दोनों के बीच मुकाबला रोमांचक होने के आसार दिखाई दे रहे है..... राज्य में तीसरी ताकतों के कोई प्रभाव नही होने से असली जंग इन दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच होने जा रही है ....

भाजपा की उम्मीद शिवराज बने हुए है....."एक भरोसे एक आस अपने तो शिव राज" यह गाना प्रदेश की पूरी भाजपा इन दिनों गा रही है ..पार्टी को आस है विधान सभा ,लोक सभा चुनावो की तरह नगर निगम चुनाव में उसके मुखिया शिव तारणहार बनेंगे......शिवराज की साफ़ और स्वच्छ छवि का लाभ लेने की कोशिश भाजपा कर रही है ...ख़ुद "शिव " नगर निगम की "पिच " पर अपनी सरकार के एक साल की उपलब्धियों जनता के बीच ले जा कर बैटिंग कर रहे है....

पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है अगर इन चुनावो में भाजपा का प्रदर्शन ख़राब रहता है तो जनता के बीच अच्छा संदेश नही जाएगा..... राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में बद रही कलह बाजी भी राज्य में लोगो के बीच पार्टी कि अलोकप्रियता को उजागर कर रही है.... निकाय चुनावो की घोषणा से पहले जिस तरह से शिव राज ने ताबड़तोड़ घोषणा की है उससे तो यही लगता है पार्टी इस चुनाव को गंभीरता से ले रही है......

पिछले दिनों शिवराज के द्वारा किया गया मंत्री मंडल विस्तार भी निकाय चुनाव में लाभ लेने की मंशा से किया गया.... यही नही सतना में एक समारोह में उन्होंने यहाँ तक कह डाला प्रदेश में लगने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगो को रोजगार दिया जाएगा...इस बयान ने राष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी..... जिसके बाद सफाई में उन्हें यह कहना पड़ा मीडिया ने उनके बयान को ग़लत ढंग से पेश किया ..... शिव ने अपने "ब्रह्मास्त्र " निकाय चुनावो से ठीक पहले फैक दिए जिसका लाभ उठाने की कोशिश वह करेंगे......

१९९९ के नगर निगम चुनावो पर नजर डाले तो भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला पाँच पाँच की बराबरी पर रहा था ... उस समय तीन सीट निर्दलीय के पाले में गई थी ....वही २००४ के नगर निगम चुनावो में भाजपा कांग्रेस पर पूरी तरह भारी पड़ी.... उस समय पार्टी के मुखिया बाबू लाल गौर थे ....तब पार्टी ने 13 नगर निगम सीटो में से १० सीटो पर भगवा लहराया था.... बाद में कटनी के निर्दलीय प्रत्याशी संदीप जायसवाल के भाजपा के पाले में आ जाने से उसकी संख्या ११ पहुच गई ... कांग्रेस की नाक राजधानी भोपाल में सुनील सूद ने भोपाल की महापौर की कुर्सी जीत कर बचाई ....


इस बार भाजपा के सामने जहाँ उसकी ११ सीट बचाने की चुनोती है वही भोपाल की बड़ी झील में कमल खिलवाने की भी... भाजपा को इस बात का मलाल है वह यहाँ पिछले दो चुनाव नही जीत पायी है..... लिहाजा इस बार उसको अपना महापौर जितवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगवाना पड़ेगा...

हालाँकि इस बार के विधान सभा चुनावो में सात विधान सभा सीटो में से ६ सीटो पर भाजपा का कब्ज़ा बना है ....भाजपा के सभी बड़े नेता इस चुनाव में कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ने की जुगत में लगे हुए है ... भोअप्ल नगर निगम में महापौर की सीट इस बार महिला प्रत्याशी के लिए रिजर्व हो गई है ॥ नगरीय प्रशाशन मंत्री बाबू लाल गौर की बहू कृष्णा गौर के भाजपा प्रत्याशी के रूप में उतरने से यहाँ मुकाबला इस बार रोचक बन गया है ......


पिछले दो चुनावो में इंदौर , ग्वालियर , खंडवा , सागर, रीवा, जबलपुर लगातार भाजपा के खाते में गए है ....इस बार इन सीटो पर पार्टी के उपर बेहतर प्रदर्शन करने का भारी दबाव है ... शिव राज की प्रतिष्टा भी इस चुनाव में सीधे दाव पर लगी है..... अगर भाजपा उनके नेतृत्व में नगर निगम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती है तो केंद्रीय स्तर पर पार्टी में उनका कद बदना तय है ...

संभवतया नरेन्द्र सिंह तोमर के संभावित उत्तराधिकारी के नाम पर शीर्ष नेतृत्व "शिव" की राय पर अपनी मुहर लगा सकता है ...निकाय चुनाव के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से नरेन्द्र सिंह तोमर की विदाई हो जायेगी...

वही दूसरी तरफ़ मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी भाजपा को इस बार के चुनावो में पटखनी देने की तैयारी कर ली है ॥ टिकटों के चयन में इस बार उसके द्वारा हुई देरी नुकसानदेह साबित हो सकती है .... बीते दिनों टिकटों को लेकर जिस तरह की खीचतान मची उसे देखते हुए यह नही कहा जा सकता की कांग्रेस भाजपा से पूरी ताकत से मुकाबला करने की स्थिति में है...

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के सामने गुटबाजी से त्रस्त्र पार्टी के नेताओं ,कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की बड़ी चुनोती है ...लोक सभा , विधान सभा चुनावो में पार्टी की घटी सीटो का एक बड़ा कारण खेमेबाजी रही जिसका नुक्सान पार्टी को बड़े पैमाने पर उठाना पड़ा था .....पिछली बार ज्योतिरादित्य,कमलनाथ ,दिग्गी राजा, अजय सिंह, सुभाष यादव जैसे कई गुटों में पार्टी गई जिसका व्यापक नुकसान उठाना पड़ा था ....पर इन सबके बाद भी इस बार कांग्रेस पार्टी के पास लोक सबह में बड़ी सीटो का अस्त्र है ...

साथ में भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है ....कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पचौरी की माने तो भाजपा की नाकामियों को जनता के बीच ले जाने का काम कांग्रेस इस बार कर रही है ...यह चुनाव पचौरी की भावी राजनीती की दिशा को भी तय करेगा.....अगर कांग्रेस का प्रदर्शन निखारा तो उनका कद सोनिया गाँधी के दरबार में बदना तय है ...नही तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से उनकी विदाई भी तय है.....


वोट के मौसम में जनता ने दोनों पार्टियों को लुभाने के लिए वादों की झड़ी लगा दी है... भाजपा ने अपना घोषणा पत्र कांग्रेस से पहले घोषित कर दिया.... जिसमे स्थानीय समस्याओ के समाधान की बात दोहराई गई है.... कांग्रेस के पिटारे में भी कुछ इसी तरह की योजनाओं का खाका देखा जा सकता है ....


भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने तो कांग्रेस के घोषणा पत्र को भाजपा की नक़ल बता दिया है ... खैर जनता जनार्दन तो दोनों की कार्य प्रणालियों से तंग आ चुकी है ... सीहोर जिले के बिलकीसगंज निवासी राजकुमार कहते है "घोसना पत्र तो चुनाव जीतने का स्तुंत है ॥ चुनावी वादे वादे बनकर रह जाते है" ......

राजधानी में टिकट बटने के बाद बड़े पैमाने पर विरोध के स्वर मुखरित हुए है ....भाजपा और कांग्रेस दोनों की कहानी एक जैसी ही है ..... असंतुस्ट की नाराजगी किसी भी दल की हार जीत की संभावनाओं पर अपना असर छोड़ सकती है...भाजपा को अपने पुराने किले बचाने में पसीने छूट सकते है... इंदौर, सतना, जबलपुर सीट भी इसके प्रभाव से अछूती नही है .... कांग्रेस के हालात भी भाजपा से जुदा नही है ...

टिकटों के चयन में इस बार भी पचौरी की जमकर चली है..वैसे राज्य के कई कांग्रेसी नेता पचौरी को राज्य की राजनीती में नही पचा पाये है ..पार्टी के अधिकांश नेता उनको थोपा हुआ प्रदेश अध्यक्ष मानते है ॥ "सोनिया" के वरदहस्त के चलते उनको राज्य की राजनीती में लाया गया पर अपनी ताजपोशी के बाद से वह पार्टी में नई जान नही फूक पाये.....

बहरहाल जो भी हो , नगर निगम चुनावो की चुनावी चौसर तैयार हो चुकी है ....भाजपा और कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्टा इस चुनाव में सीधे दाव पर है ... अब देखना है नगर निगम चुनाव का मैदान अपने बूते कौन मारता है ?







Sunday, 22 November 2009

येदियुरप्पा जी संकट अभी टला नही है ...........



भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के माडल की बात आती है तो सभी "मोदी" की प्रशंसा में कसीदे पड़ा करते है .... गुजरात के साथ दक्षिण के राज्य कर्नाटक राज्य की चर्चा भी अब भाजपा के माडल में हाल के कुछ वर्षो से होनी शुरू हुई है ...


जिस प्रकार औरंगजेब की बीजापुर और गोलकुंडा में विजय ने उसके दक्षिण में विजय का मार्ग प्रशस्त किया था ... ठीक उसी प्रकार भाजपा की दक्षिण में विजय का मार्ग कर्नाटक ने खोला ...इस रास्ते को खोलने में किसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो वह येदियुरप्पा थे .... नही तो उससे पहले भाजपा का वहां पर कोई अस्तित्व नही था.....


दक्षिणी राज्य कर्नाटक में शुरू से कांग्रेस का राज रहा ....८० के दशक में कांग्रेस की पतन की पटकथा शुरू हो गई ...इसके बाद राम कृष्ण लेकर पटेल तक का दौर आया ... जिसके झटको से वह अभी तक नही उबर पाई....



भाजपा ९० के दशक से कर्नाटक में मजबूत होनी शुरू हुई .... १९९९ के चुनावो में सात सांसदों के साथ उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ॥ २००४ आते आते उसकी यह संख्या दो गुने से चार अधिक यानी १८ पहुच गई ....विधान सभा आते आते यह आंकड़ा ७९ पहुच गया ... यही वह समय था जब भाजपा को जे डी अस के साथ सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा ....


कुमार स्वामी और भाजपा में २०_ २० माह सरकार चलाने को लेकर सहमती बनी .... परन्तु कुमार स्वामी अपने कहे से मुकर गए ... जिस कारण जब येदियुरप्पा की बारी आई तो कुमार स्वामी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया ... येदियुरप्पा इसी मुद्दे को लेकर जनता के बीच गए ...और उन्हें इस मुद्दे पर सहानुभूति मिली जिस कारण भाजपा राज्य में अपनी सरकार बनाने में सफल हो पायी ...



परन्तु दक्षिण के "मोदी" कहे जाने वाले येदियुरप्पा की पिछले १८ माह से चल रही सरकार पर संकट के बादल छा गए.... वैसे ही भाजपा में केन्द्रीय स्तर पर जूतम पैजार मची हुई थी अब राज्य स्तर पर भी इसकी शुरुवात हो गई.......राजस्थान की महारानी को जैसे तैसे इस्तीफे के लिए मनाया गया ...


उसके संकट से निपटने के बाद भाजपा के सामने नया संकट कर्नाटक का शुरू हो गया.... भाजपा अपने राज्यों के शासन को लेकर बड़ी मिसाले दिया करती है परन्तु अभी तक भाजपा शासित कोई भी ऐसा राज्य नही रहा होगा जहाँ कलह बाजी नही हुई हो..... दक्षिण का एकमात्र राज्य कर्नाटक भी इससे अछुता नही रह सका......


दरअसल कर्नाटक की सरकार को अस्थिर करने में दो भाईयो की बड़ी अहम भूमिका रही .... जनार्दन और करुणाकरण रेड्डी .... इन दोनों ने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को मुख्यमत्री की कुर्सी से बेदखल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगवाया ....जनार्दन राजस्व मंत्री तो करुणाकरण पर्यटन मत्री की कुर्सी संभाले हुए है ...


येदियुरप्पा का कैबिनेट में लिया एक फैसला इनको नागवार गुजरा जिसमे उन्होंने कहा था बेल्लारी की खदान से अयस्क भरने वाले हर ट्रक पर १००० रूपया अतिरिक्त कर वसूला जाएगा...यही नही तभी से उन्होंने राज्य में सरकार को गिराने की तैयारी कर ली थी... इसके लिए बाकायदा येदियुरप्पा के असंतुस्ट विधायको से संपर्क साधा गया.....


कर्नाटक में येदियुरप्पा नाम के भले ही भाजपा नेतृत्व कसीदे पड़े परन्तु असलियत यह है यहाँ पर रेड्डीबंधुओं का बड़ा वर्चस्व रहा है ... दो भाई ही नही उनके तीसरे भाई सोमशेखर भी चर्चा के केन्द्र बिन्दु बने हुए है वह वर्तमान में दुग्ध संघ अध्यक्ष की कुर्सी संभाले हुए है ॥ रेड्डी बंधू कर्नाटक में उस समय चर्चा में आए जब १९९९ में सोनिया गाँधी ने वहां से लोक सभा का चुनाव लड़ा था... और वहां पर उनके विरोध में भाजपा की तेज तर्रार नेत्री सुषमा स्वराज उठ खड़ी हुई थी॥


बताया जाता है तब इन्होने सुषमा की तन, मन धन से बड़ी खिदमत की .... तभी से यह सुषमा के विश्वास पात्र बने हुए है.....हालाँकि सुषमा यहाँ से चुनाव हार गई थी लेकिन अगले लोक सभा चुनाव में जब सोनिया ने अमेठी का रुख किया तो यहाँ पर सुषमा के कहने पर रेड्डी को टिकेट दिया गया....


बताया जाता है कर्नाटक में दोनों की बहुत पहुच है जिसका फायदा वह उठाते रहे है ....महंगे बंगलो से लेकर आलीशान आशियाने .... हवाई जहाजो का काफिला इनकी शान है ..... तभी वहां पिछले विधान सभा चुनाव में कई विधायक उनके प्रसाद से चुनाव जीते थे ... यही नही येदियुरप्पा सरकार को समर्थन दिलवाने के लिए इनके द्वारा एक अभियान खरीद का चलाया गया था जिसके बाद येदियुरप्पा सरकार सदन में बहुमत साबित कर पाने में सफल हो पायी थी ....



यही नही रेड्डी के कहानी के किस्से यही खत्म नही होते..... अनंतपुर में इनके पास एक खनन की खदान लीज पर है ... यह खदान दो राज्यों की सीमा से लगी हुई है जिस कारण यहाँ वन विभाग के एक आला अधिकारी द्वारा इनको हरी झंडी नही दी गई ... जिसके बाद यह अन्दर ही अन्दर सुलग रहे थे ॥


आंखिर यह तो कोई बात ही नही हुई जिस राज्य में उनकी सरकार हो और उनके खदान के काम में कोई अदना सा आला अधिकारी अडंगा लगाये... बेल्लारी के एसपी ,कमिश्नर का तबादला बिना रेड्डी बंधुओ की स्वीकृति से कर दिया गया जिस कारण नाक तो लगनी ही थी .... ऐसा ही कुछ मामला कडप्पा में भी है॥ यहाँ पर दोनों का एक स्टील प्लांट है जिसके लिए इनको जमीन आंध्र के पूर्व सी ऍम राजशेखर रेड्डी द्वारा उपलब्ध करवाई गई..यह तकरीबन १०००० एकड़ है ....


कहा तो यह भी जा रहा है कांग्रेस ने जगन्मोहन रेड्डी को येदियुरप्पा की सरकार गिरवाने को उकसाया ... यह भी हो सकता है अगर कर्नाटक की भाजपा सरकार अल्पमत में आ जाती तो फिर आंध्र में जगन्मोहन को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाती ..... इन्ही सब बात के चलते येदियुरप्पा सरकार को अस्थिर करने की कोशिसे चलती रही..... येदियुरप्पा सरकार को अस्थिर करने में अनंत कुमार की भी कम भूमिका नही है ....उनकी नजरे कब से वहां के मुख्यमंत्री बन्ने में लगी हुई है... वह रात को इस मसले पर रेड्डी बंधुओं की क्लास तक ले लिया करते थे......


बताया जाता है राज्य विधान सभा के अध्यक्ष जगदीश को यह सभी मुख्यमंत्री का ताज पहनाना चाहते थे परन्तु उनकी यह उम्मीदे पूरी नही हो पायी...... यहाँ पर बता दे संघ परिवार इस बार येदियुरप्पा को हटाने के मूड में नही दिखाई दिया ..साथ ही जाती वाला मसला भी ध्यान में रखना था... येदियुरप्पा भी लिंगायत थे जगदीश भी ॥



असंतुष्टो की अगुवाई कर रहे रेड्डी बंधुओ ने विधायको को भड़काने के काम को बखूब अंजाम दिया ....राज्य की ग्रामीण विकास मत्री शोभा करंदलाजे की येदियुरप्पा के साथ निकटता लोगो को रस नही आ रही थी.....


बताया जाता है मुख्यमंत्री के कई निर्णयों में शोभा का दखल हुआ करता था.....जिस कारन विधायक रेड्डी के पक्ष में लामबंद होने शुरू हो गए थे...पर विरोधी खेमे की अगुवाई मे कुछ बातें मान ली गई है.... जैसे शोभा की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी गई .....


मुख्य सचिव वी पी वालिगर को हटाकर प्रसाद को बैठा दिया गया ... ....साथ ही यह तय हुआ है बेल्लारी जिले के मामलो में येदियुरप्पा का अब कोई दखल नही होगा..... यहाँ पर तोपों की सलामी सिर्फ़ और सिर्फ़ रेड्डी बंधुओं को मिलेगी........यहाँ पर मुख्यमंत्री का फैसला नही वरन रेड्डी भाईयो का फैसला अंतरिम होगा ..... जगदीश को मंत्री बना दिया गया है ॥



बहरहाल जो भी हो , इस पूरे प्रकरण को हवा में रेड्डी बंधुओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है .... उनकी अधिकाँश मांगे मान ली गई है ...येदियुरप्पा की इस प्रकरण में हार हुई है .... उनकी कुर्सी तो बच गई है पर यह बात सामने निकालकर आ गई है अपने को दूसरो से अलग कहने वाली भाजपा में आज पैसा कैसे बोलता है...?


आज इस पार्टी में भी करोडपतियों की कमी नही रह गई है.... देश की सांसद में सैकड़ो धनी सांसदों में इसके सांसद भी किसी से कम नही है ......कर्नाटक ने पार्टी का चाल , चलन, असली चेहरा सभी के सामने दिखा दिया है ...पार्टी को आज इमानदारी से काम करने वाले मुख्यमंत्रियों की जरुरत नही है ....उसे तो बस चुनावी फंड चाहिए.........मान ना मान में तेरा मेहमान .............

येदियुरप्पा जी यह संकट तो समाप्त हो गया है ... पर आगे आपकी राह आसान नही लगती.....रेड्डी कब फिर से भड़क जाए इसका कोई भरोसा नही है..........नीचे की पंक्तिया सटीक है __________


"जुल्फों की घटाओं में बिजली ने किया डेरा ....

कब जाने बरस जाए इसका न भरोसा है ...

शैतान की नानी है ये कड़कती तडपन

कब आशिया जला दे इसका ना भरोसा है "


Friday, 13 November 2009

क्या संघ करेगा गडकरी पर उपकार ?



भाजपा में नए अध्यक्ष को लेकर माथापच्चीसी शुरू हो गई है..... तीन राज्यों में पार्टी की करारी पराजय से जहाँ कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है ,वही राष्ट्रीयस्वयं सेवक संघ भी अब भाजपा को नए ढंग से पुनर्गठित करना चाहता है..संघ प्रमुख मोहन भागवत के हलिया प्रकशित एक इंटरव्यू का हवाला ले तो इस बार वह संगठन में किसी भी प्रकार की ढील देने के मूड में नही दिखायी देते ....


भागवत ने दिल्ली की एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में साफ़ कह दिया है नया अध्यक्ष नायडू, अनंत, सुषमा , जेटली में से कोई नही होगा.... इस बयान को अगर आधार बनाया जाए तो मतलब साफ़ है भागवत नही चाहते कोई इन चार में से नया अध्यक्ष बने...शायद उनको भी पता है अगर इनमे से कोई नया अध्यक्ष बन गया तो पार्टी की गुटबाजी तेज हो जायेगी... वैसे भी पार्टी की दूसरी पंक्ति ने नेताओ में आगे जाने की लगातार होड़ किसी से छिपी नही है ... सभी राजनाथ के भावी उत्तराधिकारी होना चाहते है पर मीडिया के सामने अपना मुह खोलने से परहेज कर रहे है ...



अभी एक दो दिन पहले भाजपा के दिल्ली स्थित ऑफिस पर नए अध्यक्ष को लेकर तेज सुगबुगाहट होती दिखायी दी॥ कुछ सूत्रों की अगर माने तो ऑफिस खुलने के पीछे एक बहुत बड़ा संदेश छिपा हुआ है....अभी ३ राज्यों में करारी हार के बाद जहाँ भाजपा के ऑफिस में मायूसी देखीगई वही अब ऑफिस में कार्यकर्ताओं के लगते जमघट को नए अध्यक्ष की ताजपोशी के रूप में देखा जा रहा है...


बताया जाता है संघ ने नए अध्यक्ष पद के नाम का चयन कर लिया है अब बस बैठक द्बारा राजनाथ के भावी उत्तराधिकारी के नाम पर मुहर लगनी बाकी है... इसी कारण इन दिनों भाजपा अपने ऑफिस में नए अध्यक्ष के लिए जोर आजमाईश कर रही है ...



भाजपा भले ही कहे उसमे संघ का दखल नही है पर असलियत यह है वह कभी भी अपने को संघ की काली छाया से मुक्त नही कर पाएगी... बताया जाता है भाजपा में इस बार २ लोक सभा चुनाव हारने के बाद से गहरा मंथन चल रहा है ...


हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है.... मोहन भागवत का कहना है अब तो हद हो गई है... समय से पार्टी के सभी नेता एकजुट हो जाए .... इस कलह का नुक्सान भाजपा को उठाना पड़ रहा है.... ऐसा नही है देश में भाजपा के विरोध में कोई लहर है... मुद्दों की कमी भी नही है पर विपक्ष के कमजोर होने का सीधा लाभ कांग्रेस को मिल रहा है ....



कल मोहन भागवत की राजनाथ के साथ मुलाकात के बाद कयासों का बाजार फिर से गर्म हो गया है ... बताया जाता है राजनाथ ने भागवत से मिलकर अपना दुखडा रोया है .... उन्होंने" संघम शरणम गच्छामी " का नारा बुलंद करते हुए साफ़ कहा है संघ भाजपा का शुरू से मार्गदर्शन करता रहा है....अब इस समय भाजपा बुरे दौर से गुजर रही है तो संघ का पार्टी में दखल होना जरूरी है ... संघ अपने विचारो से पार्टी को नई दिशा दे सकता है.....


गौरतलब है अभी कुछ समय पूर्व राजनाथ ने मीडिया से कहा था भाजपा को किसी भी प्रकार की सर्जरी की जरुरत नही है किसका दिमाग ख़राब हो गया है? राजनाथ भागवत के कामोपेरेथी वाले बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे... आपको याद होगा राजनाथ ने प्रतिक्रिया में क्या कहा था... बाद में दोनों ने अपने बयानों से कन्नी काट ली थी....


खैर , अब राजनाथ सही ट्रैक पर लौटते दिखाई दे रहे है ... उनकी समझ में आ गया है भाजपा को सही दिशा देने का काम संघ के सिवाय कोई नही कर सकता है ...
प्रेक्षक कल संघ प्रमुख भागवत और राजनाथ की मुलाकात के कई अर्थ निकाल रहे है ...


महाराष्ट्र के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नितिन गडकरी के दिल्ली में होने के भी कई निहितार्थ निकाले जा रहे है ... कुछ लोगो का कहना है संघ प्रमुख भागवत ने गडकरी को झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय में आमंत्रित किया था....उनको पार्टी के संभावित राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी देखा जा रहा है ... गडकरी नागपुर की उसी धरती से आते है जहाँ संघ का मुख्यालय है ... इस समय संघ में मराठा लोबी पूरी तरह से हावी है॥


पार्टी के बड़े बड़े पदों पर मराठियों का कब्जा है॥ अब गडकरी को प्रदेश अध्यक्ष अगर बनाया जाता है तो संगठन में मराठी मानुष का मुद्दा जोर पकड़ सकता है... यह बताते चले संघ प्रमुख भागवत ने गडकरी का नाम संभावितों में सबसे ऊपर रखा है ... वह युवा भी है साथ में उनके नाम पर सहमती भी आसानी से हो जायेगी॥ हाँ यह अलग बात है पार्टी की डी ४ कम्पनी (सुषमा, जेटली, अनंत, नायडू) को यह बात नागवार गुजरेगी अगर उनकी ताजपोशी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए हो जाती है....


गडकरी को केन्द्र की राजनीति का कोई अनुभव नही है... उनका महाराष्ट्र का लेखा जोखा भी कुछ ख़ास नही रहा है... इस बार पार्टी महाराष्ट्र में जीत हासिल करने के बहुत सारे दावे कर रही थी पर आखिरकार उसकी हालत पतली रह गई ...अतः गडकरी का राज्य की राजनीती से सीधे केन्द्र में दखल किसी को रास नही आएगा....


राजनाथ भी अपने कार्यकाल में कुछ ख़ास नही कर पाये....उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत बहुत पतली हो गई ....साथ ही उनके कार्यकाल में पार्टी की राज्य इकाईयों में संकट लगातार बना रहा ॥ चाहे वह उत्तराखंड का मामला रहा हो या राजस्थान में महारानी का हर जगह पार्टी की खासी फजीहत हुई है..अब ऐसे बुरे दौर में गडकरी को कमान संभालने को मिल गई तो उनको सभी को साथ लेकर चलना पड़ सकता है ...भागवत ने तो गडकरी का नाम अपनी लिस्ट में सबसे पहले रख दिया है ...


बस अब भाजपा के बड़े नेताओं से हरी झंडी मिलने का इन्तजार है॥ संभवतया इस मसले पर वह कुछ दिनों बाद आडवानी से भी चर्चा कर सकते है.. बताया जाता है इस मसले पर सुरेश सोनी भी आडवानी से गुप्तगू कर चुके है ॥ कोई कुछ क्यों नही कहे आडवानी अब पार्टी का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहते है.... उनकी मंशा तभी पूरी हो सकती है जब संघ उनकी सहमती से नए नाम का चयन करे...



नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम की भी चर्चा है .... मोदी को आगे कर भाजपा अपनी मूल विचारधारा पर वापस लौट सकती है ... वैसे भी गुजरात में आज "मोदी" एक बहुत बड़ा ब्रांड बने हुए है... कई राज्यों के मुख्यमत्री अब अपने राज्यों में इस ब्रांड को अपना रहे है.... इसलिए बेहतर यह होगा मोदी अब केन्द्र की राजनीती करे.... पर मोदी के नाम पर आसानी से मुहर नही लग सकती..... क्युकि उनको आगे करने से भाजपा के सहयोगी दल अलग हो जायेंगे.. अब यह भाजपा को तय करना है उसको सबको साथ लेकर चलना है या कांग्रेस की तरह"चल अकेला " वाली नीति अपनानी है ....


वैसे आपको बता दूँ मोदी के नाम पर सहमती नही बन पाएगी ... "गोधरा " का जिन्न अभी भी उनके साथ लगा है.... साथ ही कट्टर उग्र हिंदुत्व की उनकी छवी उनका माईनस पॉइंट है ... विपक्षी उनको पसंद नही करते .... बिहार में लोक सभा चुनावो के दरमियान नीतीश ने सापफ तौर पर कह दिया था बिहार में उनके प्रचार की कोई आवश्यकता नही है ...


साथ ही लोक सभा के चुनाव परिणामो में भाजपा की करारी हार के लिए कुछ लोग मोदी को जिम्मेदार मान रहे है... जिन मुस्लिम बाहुल्य संसदीय इलाकों में मोदी गए भाजपा की वहां करारी हार हुई.... इसके अलावा मोदी अक्खड़ किस्म के है...एक वाक़या हमें याद है॥ गुजरात चुनावो के दौरान जब सभी लोग बैठक में टिकेट माग रहे थे......और मोदी से कह रहे थे "नरेन्द्र भाई " टिकेट दे दो तो मोदी ने संघ की पसंद को राजनाथ और आडवानी , रामलाल के सामने दरकिनार कर दिया.....अब अगर मोदी आगे हो गए तो या तो भाजपा में "मोदीत्व " आगे रहेगा या "उग्र हिंदुत्व ".... संघ को घास देना मोदी की फितरत नही है .... इसलिए मोदी की कम सम्भावना बन रही है ....


राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दावा भी सबसे मजबूत नजर आता है ....चौहान को लेकर भाजपा पशोपेश में फसी हुई है ... शिवराज की मध्य प्रदेश सरकार के काम करने के ढंग की भाजपा के सभी बड़े दिग्गज प्रशंसा करते नही थकते.... अपने दम पर मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी कर उन्होंने दिखा दिया है सबको साथ लेकर कैसे चला जाता है और विकास क्या चीज है ?


बताया जाता है शिवराज की दिलचस्पी केन्द्र से ज्यादा अभी प्रदेश में है.... आडवानी के बर्थडे समारोह में शिवराज ने अपनी इस इच्छा से संघ और पार्टी के बड़े नेताओं को अवगत करवा दिया है ...बताया जाता है पार्टी में एक बड़ा तबका यह मानकर चल रहा था की शिव के आने से भाजपा मजबूत होगी॥ उनमे अटल बिहारी वाजपेयी जैसी समझ है॥ छवी भी पाक साफ है....साथ में उनको केन्द्र की राजनीती का अच्छा अनुभव भी रहा है ... इस लिहाज से वह सब पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे है ...


पर शिवराज की मध्य प्रदेश में बदती दिलचस्पी को देखते हुए पार्टी का आलाकमान कोई रिस्क नही लेना चाहता ॥ इसके अलावा अभी प्रदेश में उनका कोई विकल्प भी नही है ..इस लिहाज से कोई उनको केन्द्र में नही लाना चाहेगा....


एक सम्भावना यह भी है अगर शिव भाजपा के तारणहार बनकर केन्द्र में भेज दिए जाते है तो मध्य प्रदेश में उनके स्थान पर नरेंद्र सिंह तोमर को लाया जा सकता है... राज्य में भाजपा को लाने में दोनों ने भरपूर योगदान दिया है ... वैसे भी इस बार तोमर का कार्य्क्काल पूरा हो रहा है ... उनके सीं ऍम बन जाने की स्थिति में प्रभात झा की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हो सकती है ....


अभी शिव की मध्य प्रदेश में रमने की इच्छाओं को देखते हुए कहा जा सकता है संघ उनको मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की राजनीती में ही चलने दे और बाद में समय आने पर उनको आगे करे.... आने वाले लोक सभा चुनाव अभी बहुत दूर है...


गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर का नाम भी अध्यक्षों की जमात में शामिल है... आडवानी को बासी आचार कहने के बाद से उनको भावी अध्यक्ष के तौर पर देखा जा रहा है ... कहा जा रहा है संघ ने उनसे यह बयान जबरन दिलवाया हो...इसके बाद भाजपा से इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया नही आई ॥ जिससे अनुमान यह लगाया जा रहा है उनका नाम भी तगडे दावेदार के तौर पर संघ की सूची में बना हुआ है....


उनका प्लस पॉइंट यह है वह ईसाई है॥ उनको आगे कर भाजपा यह संदेश देने में कामयाब रह जायेगी हमारे यहाँ हिंदू ही महत्वपूर्ण कुर्सियों में आसीन नही है... साथ ही हिंदू से इतर अन्य जातिया भी भाजपा की तरफ़ झुक जायेंगी ......


पर परिकर की एक समस्या आडवानी है .... आडवानी कभी नही चाहेंगे नया अध्यक्ष उनकी नापसंद का बने ....कोई माने या न माने भाजपा को खड़ा करने में आडवाणी का बड़ा योगदान है .....महज २ लोक सभा सीटो से १०० पार ले जाने में उनके योगदान की उपेक्षा नही की जा सकती...इस बात को मोहना भागवत भी भली प्रकार जानते है ....वह नया अध्यक्ष चुनने से पहले आडवानी की रजामंदी करवाना पसंद करेंगे..अगर आडवानी की चली तो पारिकर का " बासी आचार " का बयान ख़ुद उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की राह में बड़ा रोड़ा बन सकता है ॥

बहरहाल जो भी हो नया अध्यक्ष संघ द्बारा तय किया जा चुका है .... गडकरी ,शिवराज , मोदी , परिकर इन चार नामो पर ही विचार किया जा रहा है ...अगर संघ की चली तो वह मोदी, शिवराज को अपने राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में चलने दे .... ऐसी सूरत में गडकरी , परिकर के बीच ज़ंग होगी....वैसे अगर भागवत की चली और भाजपा ने उनकी पसंद पर मुहर लगा दी तो गडकरी राजनाथ के वारिश साबित हो सकते है ... नागपुर संघ मुख्यालय से होना उनके लिए फायदे का सौदा बन सकता है ...अब देखते है राजनाथ का भावी उत्तराधिकारी कौन होता है ?




Saturday, 31 October 2009

......... मान गई महारानी.....................



आखिरकार राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मान गई । राज्य में नेता प्रतिपक्ष के पद से उन्होंने अपना इस्तीफा राजनाथ को दे ही दिया...... पिछले कुछ समय से राजस्थान में उनकी कुर्सी से विदाई का माहौल बना हुआ था ...... परन्तु ख़राब स्वास्थ्य कारणों के चलते उनकी विदाई की खबरें दबकर रह गयी । .. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की साढ़े साती की दशा चलने के कारण महारानी की विदाई नही हो पायी.......


गौरतलब है "पार्टी विद डिफरेंस" का नारा देने वाली भाजपा में अनुशासन हाल के दिनों में उसे अन्दर से कमजोर कर रहा है...पार्टी लंबे समय से अंदरूनी कलहो में उलझी रही जिस कारण राजस्थान में वसुंधरा की विदाई समय पर नही हो पायी.......



...... यहाँ यह बताते चले वसुंधरा की विदाई का माहौल तो राज्य विधान सभा में भाजपा की हार के बाद ही बनना शुरू हो गया था परन्तु पार्टी हाई कमान लोक सभा चुनावो से पहले राजस्थान में कोई जोखिम उठाने के मूड में नही दिखाई दिया.............. लोक सभा चुनावो में पार्टी की करारी हार के बाद माथुर की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी गई ...पर आलाकमान वसुंधरा के अक्खड़ स्वभाव के चलते उनसे इस्तीफा लेने की जल्दी नही दिखा सका ..साथ ही वसुंधरा को आडवानी का " फ्री हैण्ड" मिला हुआ था जिस कारण पार्टी का कोई बड़ा नेता उन्हें बाहर निकालने का साहस जुटाने में सफल नही हो सका। ..यही नही इस्तीफे की बात होने पर वसुंधरा के "दांडी मार्च " ने भी पार्टी आलाकमान का अमन चैन छीन लिया।



दरअसल महारानी पर लोक सभा चुनावो के बाद से इस्तीफे का दबाव बनना शुरू हो गया था..... उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खंडूरी ने जहाँ पाँच सीटो पर पार्टी की करारी हार के बाद अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर डाली वही महारानी हार के विषय में मीडिया में अपना मुँह खोलने से बची रही ... पर केन्द्रीय स्तर पर वसुंधरा विरोधी लाबी कहाँ चुप बैठने वाली थी ... उन्होंने महारानी को राजस्थान से बेदखल कर ही दम लिया...


आखिरकार वसुंधरा की धुर विरोधी लोबी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ को साथ लेकर अनुशासन के डंडे पर महारानी की विदाई का पासा फैक दिया..... इससे आहत होकर महारानी ने राजनाथ से मिलने के बजाय आडवानी से मिलना ज्यादा मुनासिब समझा .....महारानी ने ओपचारिकता के तौर पर राजनाथ को अपना इस्तीफा भिजवा दिया.....



राजनाथ और महारानी के रिश्तो में खटास शुरू से रही है । राजस्थान में वसुंधरा के कार्य करने की शैली राजनाथ सिंह को शुरू से अखरती रही है ... लोक सभा चुनावो में राजस्थान में पार्टी की पराजय के बाद वसुंधरा की राजनाथ से साथ अनबन और ज्यादा तेज हो गई.... उस समय पार्टी आलाकमान ने उनसे इस्तीफा देने को कहा था पर वसुंधरा के समर्थक विधायको की ताकत को देखकर वह भी हक्के बक्के रह गए... जब पानी सर से उपर बह गया तो "डेमेज कंट्रोल" के तहत राजस्थान में पार्टी ने वेंकैया नायडू को लगाया पर वह महारानी को इस्तीफे के लिए राजी नही कर पाये... जिसके चलते पार्टी ने राजस्थान की जिम्मेदारी सुषमा स्वराज के कंधो पर डाली...


पिछले कुछ समय से वह भाजपा की संकटमोचक बनी हुई है... चाहे आडवानी के इस्तीफे का सवाल हो या फिर जसवंत की किताब पर बोलने का प्रश्न ॥ या फिर कलह से जूझती भाजपा का और ३ राज्यों के परिणामो में भाजपा की पराजय का प्रश्न उन्होंने बेबाक होकर इन सभी मसलो पर अपनी राय रखी है और अपनी सूझ बूझ को दिखाकर हर संकट का समाधान किया .... पर राजस्थान में महारानी को वह इस्तीफे के लिए नही मना सकी ....जिसके बाद राजस्थान में राजनाथ ने अपना "राम बाण " फैक दिया ...


वसुंधरा पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होने के समाचार आने के बाद राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के पद से वसुंधरा को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा... इस्तीफे के बाद ४० विधायको के साथ किए गए प्रदर्शन में महारानी ने कहा " जबरन इस्तीफा लेकर पार्टी हाई कमान ने उनको अपमानित किया है ... राजस्थान में अपने दम पर भाजपा की सरकार उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ बनाई " साथ ही उन्होंने विधायको से कहा आज नही तो कल हमारा होगा..... मैं राजस्थान की बेटी हूँ मेरी अर्थी भी यही से उठेगी........



राजस्थान में महारानी की नेता प्रतिपक्ष से विदाई के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर ज़ंग तेज हो गई है... वसुंधरा ने अपने पद से इस्तीफा तो दे दिया है परन्तु उनकी विदाई के बाद भाजपा में सर्वमान्य नेता के तौर पर किसी की ताजपोशी होना मुश्किल दिखाई देता है ...


खबरे है महारानी इस पद पर अपने किसी आदमी को बैठाना चाहती है परन्तु राजनाथ के करीबियों की माने तो नए नेता के चयन में वसुंधरा महारानी की एक नही चलने वाली...यही नही लोक सभा चुनाव में पीं ऍम इन वेटिंग के प्रत्याशी रहे आडवाणी की पार्टी में पकड़ कमजोर होती जा रही है ....


सूत्रों की माने तो आडवाणी की संसद के शीतकालीन सत्र के बाद पार्टी से सम्मानजनक विदाई हो जायेगी ..... बताया जाता है मोहन भागवत ने आडवानी की विदाई के लिए २२ दिसम्बर तक डैड लाइन तय कर ली है ... यहाँ यह बताते चले संसद का यह सत्र २२ दिसम्बर को समाप्त हो रहा है ... इसी अवधि में आडवानी की सम्मानजनक विदाई होनी है साथ ही पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी खोजा जाना है ...


यह सब देखते हुए कहा जा सकता है वसुंधरा की चमक आने वाले दिनों में फीकी पड़ सकती है ... साथ ही महारानी को आने वाले दिनों में नायडू, जेटली, सुषमा, अनंत की धमाचौकडी से जूझना है ... यह सब देखते हुई महारानी की राह में आगे कई शूल नजर आते है...



नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पाने के लिए इस समय पार्टी में कई नाम चल रहे है .... इस सूची में पहला नाम गुलाब चंद कटारिया का है.... कटारिया के नाम पर सभी नेता सहमत हो जायेंगे ऐसी आशा की जा सकती है .... उनकी उम्र के नेताओ को छोड़ दे तो राज्य में अन्य नेताओ को उनके नाम पर कोई ऐतराज नही है... साथ ही संघ भी उनके नाम को लेकर अपनी हामी भर देगा क्युकि संघ से उनके मधुर रिश्ते रहे है..... राजस्थान में पार्टी में कलह बदने की सम्भावना को देखते हुए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके नाम पर अपनी मुहर लगा सकता है..


कटारिया की छवि एक मिलनसार नेता की रही है साथ ही वह सबको साथ लेकर चलने की कला में सिद्धिहस्त माने जाते है ...वसुंधरा को भी उनके नाम से कोई दिक्कत नही होगी ....

दूसरा नाम वसुंधरा के विश्वास पात्र माने जाने वाले राजेंद्र राठोर का चल रहा है.... राठोर को समय समय पर महारानी के द्बारा आगे किया जाता रहा है .... महारानी के सबसे करीबी विश्वास पात्रो में वह गिने जाते है .... अगर महारानी की नया नेता चुनने में चली तो राजेंद्र की किस्मत चमक सकती है .... वैसे भी अभी वह रेस के छुपे रुस्तम बने है...परन्तु उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत राजनीती की पिच पर अपरिपक्वता बनी हुई है ...यही बात उनकी राह का बड़ा रोड़ा बनी है ॥



तीसरा नाम घन श्याम तिवारी का है ... तिवारी वर्तमान में सदन में उपनेता के पद को संभाले हुए है...वर्तमान में वसुंधरा के इस्तीफे के बाद कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी उनके कंधो पर सोपी गई है ...विरोधियो को साथ लेकर चलने की कला तिवारी का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है...परन्तु उनका ब्राहमण होना उनकी राह कठिन बना सकता है ...


गौरतलब है इस समय पार्टी के अध्यक्ष पद पर राजस्थान में अरुण चतुर्वेदी काबिज है जो ख़ुद भी ब्राहमण है ... अगर वसुंधरा के बाद तिवारी को यह जिम्मेदारी सोपी गई तो दोनों पदों पर ब्राह्मण काबिज हो जायेंगे .... ऐसे में राज्य में जातीय संतुलन कायम नही हो पायेगा.... अतः पार्टी ऐसी सूरत में उनको काबिज कर कोई बड़ा जोखिम राजस्थान में मोल नही लेना चाहेगी......



पूर्व उप रास्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का नाम भी इस रेस में बना हुआ है ...नरपत के बारे में राजस्थान में एक किस्सा प्रचलित है ... मेरे राजस्थान के एक मित्र बताते है एक बार कुछ राजनीतिक मांग को पूरा करने के लिए नरपत ने खाना पीना छोड़ दिया था ...बेटी को मोहरा बनाकर अपने ससुर के जरिये नरपत अपनी इस इच्छा को पूरा करने की जुगत में लगे थे ... ... दामाद के हट को देखते हुए शेखावत अपने दामाद को राजस्थान की राजनीति में ले आए.... उम्र के इस अन्तिम पड़ाव पर भी भैरव बाबा नरपत सिंह राजवी को नेता प्रतिपक्ष के पद पर लाने की पुरजोर कोशिस कर रहे है॥


नरपत का युवा होना उनकी राह आसान बना सकता है ...बाबोसा के संघ से जनसंघ के दौर से मधुर रिश्तो के मद्देनजर नरपत के सितारे बुलंदियों में जा सकते है ...परन्तु नरपत की जनता में कमजोर पकड़ और पार्टी में उनके समर्थको की कमी एक बड़ी बाधा बन सकती है ...साथ ही राजस्थान की राजनीति में उनका ख़ुद का कोई कद नही है....


राजनीती के ककहरे से अनजान रहने वाले नरपत का ऐसे में ख़ुद को कंट्रोल करना तो दूर पार्टी को कंट्रोल करना दूर की कौडी लगता है ... वसुंधरा को उनके पद से हटाने के लिए बाबोसा ने कुछ महीने पहले एक करप्शन की मुहीम चलाई थी... अब वसुंधरा की विदाई के बाद बाबोसा के सुर में भी नरमी आ गई है... पिछले कुछ दिनों से वह भाजपा में प्यार की पींगे बड़ा रहे है..... १५ वी लोक सभा में ख़ुद को पीं ऍम इन वेटिंग बनाने पर तुले थे पर इन दिनों भाजपा के साथ बदती निकटता उनके किसी बड़े कदम की और इशारा कर रही है ...वह नरपत को राजस्थान में ऊँचा रुतबा दिलाना चाहते है...


अभी तक उनकी राह का बड़ा रोड़ा महारानी बनी हुई थी पर अब महारानी के राजपाट के लुट जाने के बाद बाबोसा को अपने दामाद का रास्ता साफ़ होता नजर आ रहा है...संभवतया इस बार पार्टी और संघ जनसंघ के इस नेता की राय पर अपनी मुहर लगा दे...और नए नेता के चयन में सिर्फ़ और सिर्फ़ शेखावत की ही चले.......

अगर वसुंधरा के खेमे से किसी की ताजपोशी की बात आती है तो दिगंबर सिंह का नाम भी सामने आ सकता है ... सूत्रों की माने तो महारानी की प्राथमिकता अपनी पसंद के नेता को प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठाने की है... इस बात का ऐलान वह अपने जाने से पहले ही कर रही थी ...उन्होंने राजनाथ से साफतौर पर कहा था वह तभी अपनी कुर्सी छोडेंगी जब उनकी मांगे मानी जायेगी .... उनकी पहली मांग में नए नेता का चयन उनकी सहमती से होना था....अब यह अलग बात है पार्टी में " आडवानी ब्रांड" में गिरावट आने से वसुंधरा के विरोधी नेता उनकी पसंद के नेता को राजस्थान में प्रतिपक्ष की कुर्सी पर नही बैठाएंगे .....


वसुंधरा खेमे के नेताओं में दिगंबर को लेकर आम सहमती बनाने में भी कई दिक्कते पेश आ सकती है...इन सबके इतर कोई अन्य नाम भी"डार्क होर्स " के रूप में सामने आ सकता है.. माथुर के बाद जब चतुर्वेदी को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था तो किसी को उनकी ताजपोशी की उम्मीद नही थी... हाई कमान ने जब उनका नाम फाईनल किया तो सभी चौंक गए... किसी ने उनके अध्यक्ष बनने के विषय में नही सोचा था... पर संघ से निकटता उनके लिए फायेदेमंद साबित हुई ... इसी प्रकार शायद इस बार नए नेता का चयन संघ की सहमती से हो इस संभावना से भी इनकार नही किया जा सकता.... राज्य में वसुंधरा समर्थक विधायको की बड़ी तादात देखते हुए वसुंधरा यह कभी नही चाहेंगी नया नेता विरोधी खेमे का बने ......


परन्तु अगर राजनाथ और संघ की चली तो वसुंधरा के राजस्थान में दिन लद जायेंगे..... जिस तरह इस्तीफे को लेकर महीनो से वसुंधरा ने ड्रामे बाजी की उससे राजनाथ की खासी किरकिरी हुई है ....पूरे प्रकरण से यह झलका है वसुंधरा किसी की नही सुनती है... आज वह पार्टी से भी बड़कर हो गई है... तभी वह राजनाथ से मिलने के बजाए आडवाणी से मिलना पसंद करती है...


बात राजनाथ की करे तो वह भी उत्तर प्रदेश से आगे नही बाद पाये.... खांटी राजपूत नेता होते हुए भी वह राजस्थान में ब्राह्मण राजपूत समीकरणों को आज तक नही समझ पाये.... और किसी तरह महारानी को राजस्थान से हटाने पर तुले थे ... राजनाथ को राजस्थान में भाजपा के गिरते वोट बैंक की जरा भी परवाह होती तो वह वसुंधरा को राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष से नही हटाते ...


राजनाथ के अंहकार के चलते इस गंभीर गलती का खामियाजा कही भाजपा के बचे खुचे वोट बैंक पर भी नही पड़े ...राजस्थान भाजपा में इन दिनों वैसे ही "सूर्य ग्रहण " छाया है .... अब राजनाथ ने वसुंधरा को हटाकर भाजपा के बचे खुचे वोट बैंक पर कुल्हाडी मारने का काम किया है ........



बहरहाल जो भी हो महारानी मान गई है.... महारानी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.... साथ ही राजनाथ को लैटर लिखकर उनको हटाए जाने के निर्णय को चुनोती दे डाली है.....महारानी की विदाई के बाद उनके तेवरों को देखते हुए नए नेता की ताजपोशी आसान नही दिख रही है... नए नेता को जहाँ कार्यकर्ता , पार्टी, संगठन के साथ तालमेल बैठाना है वही प्रदेश अध्यक्ष चतुर्वेदी के साथ भी...... यहाँ यह बताते चले चतुर्वेदी के साथ वसुंधरा के सम्बन्ध अच्छे नही रहे है ....


बताया जाता है वसुंधरा समर्थक उनकी ताजपोशी को नही पचा पायेंगे... ऐसे में देखना होगा नए नेता के अध्यक्ष के साथ सम्बन्ध कैसे रहते है? इन सबके मद्देनजर राजस्थान में भाजपा की आगे की राह आसान नही दिखाई देती है ........ पनघट की कठिन डगर को देखते हुए भाजपा को फूक फूक कर कदम रखने होंगे.......

Monday, 26 October 2009

इस चित्र पर गौर फरमाए.........


आजाद प्रेस

( ... ऊपर का यह चित्र बहुत दुर्लभ है ......
सफ़ेद रंग की प्रेस की इस गाड़ी में एक "कुक्कुर" महाशय आराम फरमा रहे है ............
शायद उनको भी अच्छे से पता है लोकतंत्र में प्रेस के स्थान की कितनी अहमियत है
...तभी तो वह कह रहे है.. "ऐसी आज़ादी और कहाँ " ? )