Sunday, 19 June 2011

भाजपा को "अलविदा "कहने के मूड में मुंडे...............

पूरे देश में इस समय जनलोकपाल बिल को लेकर शोर गुल हो रहा है वही राम देव की काला धन वापस मागने की खबरे सुर्खिया बटोर रही है ..... पिछले कुछ समय पहले देश में राम देव के अनशन को लेकर पुलिसिया अत्याचार और सुषमा स्वराज के ठुमको, जनार्दन दिवेदी पर जूता फैके जाने की घटना को मीडिया ने बड़े तडके के साथ पेश किया .....इन सब के बीच भाजपा सोच रही है मानो उसे अन्ना और रामदेव ने बहुत बड़े मुद्दे दे दिए है ... उसको उम्मीद है इस बार वह कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करके ही दम लेगी....

इस समय भाजपा पूरी तरह विपक्ष की भूमिका में है.... सभी का ध्यान केंद्र की राजनीती पर लगा हुआ है ......हर कोई नेता यू पी ऐ के खिलाफ अनशन करने में लगा हुआ है.....कभी कभी तो ऐसा लगता है भाजपा को अन्ना और रामदेव के रूप में नायक मिल गए है जो कांग्रेस की नाक में दम कर रहे है....शायद इसीलिए कांग्रेस आलाकमान दोनों को सख्ती से निपटाने के मूड में है.......

जाहिर है भाजपा भी सारे घटनाक्रम पर नजर लगाये हुई है....उत्तर प्रदेश की खोयी जमीन को फिर से पाने की जुगत में लगी भाजपा ने पिछले दिनों उमा को पार्टी में दुबारा शामिल कर लिया लेकिन इन सबके बीच नितिन गडकरी के गृह राज्य महाराष्ट्र में भाजपा आलकमान का ध्यान नही गया ..... यहाँ पर उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गोपीनाथ मुंडे ने बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए है........ मुंडे भाजपा को जल्द ही गुड बाय कहने के मूड में दिखाई दे रहे है ....... गोपीनाथ महाराष्ट्र में भाजपा का एक बड़ा चेहरा है .....उनकी राजनीति को समझने के लिए हमें महाजन के दौर में जाना होगा....

मुंडे महाजन का बहनोई का रिश्ता है इसी के चलते जब महाजन मुंडे को भाजपा में लाये तो उनका पार्टी के कई दिग्गज नेता सम्मान करते थे लेकिन महाजन के अवसान के बाद मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिए गए .....आज आलम यह है अपने राज्य में मुंडे खुद अपनी पार्टी में बेगाने हो चले है.....

नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनाये जाने के बाद गोपीनाथ मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से उपेक्षित कर दिए गए है..... उनके समर्थक भी गडकरी ने एक एक करके किनारे लगा दिए है... ऐसे में मुंडे की चिंता जायज है ... वह आलाकमान से न्याय की मांग कर रहे है....

महाजन के जाने के बाद उनके साथ कुछ भी अच्छा नही चल रहा ... जब तक पार्टी में महाजन थे तो उनके चर्चे महाराष्ट्र में जोर शोर के साथ होते थे.... समर्थको का एक बड़ा तबका उनसे उनके अटके नाम निकाला करता था....अगर भाजपा में महाजन का दौर करीब से आपने देखा होगा तो याद कीजिये महाजन की मैनेजरी जिसने पूरी भाजपा को कायल कर दिया था... भाजपा का हनुमान भी उस दौर में महाजन को कहा जाता था .......

महाजन के समय मुंडे की खूब चला करती थी.... मुंडे को महाराष्ट्र में स्थापित करने में महाजन की भूमिका को नजर अंदाज नही किया जा सकता॥ यही वह दौर था जब मुंडे ने राज्य में अपने को एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित किया .....महाजन के जाने के बाद पार्टी में कुछ भी सही नही चल रहा.... आज भाजपा को महाजन की कमी सबसे ज्यादा खल रही है....महाजन होते तो शायद भाजपा में आज अन्दर से इतनी ज्यादा गुटबाजी और कलह देखने को नही मिलता... . महाराष्ट्र की राजनीती में शिव सेना के साथ गठजोड़ बनाने और भाजपा को स्थापित करने में महाजन की दूरदर्शिता का लोहा आज भी पार्टी से जुड़े लोग मानते है ....

मुंडे ने महाजन के साथ मिलकर राज्य में भाजपा का बदा जनाधार बनाया... आज आलम ये है जबसे गडकरी अध्यक्ष बने है तब से मुंडे के समर्थको की एक नही चल पा रही है॥ इससे मुंडे खासे आहत है.....अपनी इस पीड़ा का इजहार वह पार्टी आलाकमान के सामने कई बार कर चुके है पर उनकी एक नही सुनी जा रही है जिसके चलते उन्होंने अब पार्टी से अलविदा कहने का मन बनाया है.....

पार्टी में हर नेता की आकांशा आगे जाने की होती है .... मुंडे भी यही सोच रहे है....वर्तमान में स्वराज के बाद वह लोक सभा में उपनेता है.... वह चाहते है लोक लेखा समिति का अध्यक्ष पद उनको मिल जाए .....इसके लिए वह पिछले कुछ समय से पार्टी के नेताओ के साथ बातचीत करने में लगे हुए थे... सूत्र बताते है कि अपनी ताजपोशी के लिए उन्होंने आडवानी को राजी कर लिया था .... खुद आडवानी लोक लेखा समिति से मुरली मनोहर जोशी की विदाई चाहते थे ...

दरअसल आडवानी और मुरली मनोहर में शुरू से ३६ का आकडा जगजाहिर रहा है ....अटल के समय आडवानी की गिनती नम्बर २ और मुरली मनोहर की गिनती नम्बर ३ में हुआ करती थी.... लेकिन अटल जी के जाने के बाद भाजपा में हर नेता अपने को नम्बर १ मानने लगा है.....अटल जी के समय आडवानी ने अपने को उपप्रधानमंत्री घोषित कर परोक्ष रूप से मुरली मनोहर को चुनोती दे डाली थी .....

इसके बाद आडवानी के आगे मुरली दौड़ में पीछे चले गए....वो तो शुक्र है इस समय पूरी भाजपा संघ चला रहा है जिसके चलते मुरली मनोहर जैसे नेताओ को लोक लेखा समिति की कमान मिली हुई है ..... आडवानी को सही समय की दरकार थी लिहाजा उन्होंने मुरली के पर कतरने की सोची....पर दाव सही नही पड़ा .......

बताया जाता है संघ मुरली मनोहर को लोक लेखा समिति के पद से हटाने का पक्षधर नही था जिसके चलते मुंडे का लोक लेखा समिति के अध्यक्ष बन्ने का सपना पूरा नही हो सका ......संघ तो शुरू से इलाहाबाद के संगम में विलीन होते जा रहे मुरली मनोहर को आगे लाने का हिमायती रहा है.... जोशी के हिंदुत्व के कट्टर चेहरे के मद्देनजर वह १५ वी लोक सभा में उनको लोक सभा में विपक्ष का नेता बनाना चाहता था लेकिन ये कुर्सी सुषमा के हाथ में चली गई.....

संघ के फोर्मुले पर गडकरी ने भी अपनी सहमती जता दी......और ऐसे में मुंडे के हाथ निराशा ही लगी ... बताया जाता है लोक लेखा समिति का अध्यक्ष खुद को बनाये जाने की मंशा को उन्होंने गडकरी के सामने भी रखा था और अपने को अब केन्द्रीय राजनीती में सक्रिय करने की मंशा से उन्हें अवगत करवा दिया था... गडकरी भी संघ के आगे किसी की नही सुन सकते थे... उन्होंने मुंडे से बातचीत कर मुद्दे सुलझाने की बात कही थी...... वह भी बीच में बिना बातचीत किये सपरिवार उत्तराखंड चार धाम के दर्शन करने चले गए.... ऐसे में मुंडे का मुद्दा लटका रह गया.....

इससे पहले भी मुंडे ने अपने बगावती तेवर दिखाए थे.... याद करिये कुछ अरसा पहले उन्होंने मुंबई शहर में भाजपा अध्यक्ष पद पर मधु चौहान की नियुक्ति का सबके सामने विरोध कर दिया था जिसके बाद आलाकमान को "डेमेज कंट्रोल" करने में पसीने आ गए थे....इस बार भी कुछ ऐसा ही है॥ मुंडे अब और दिन पार्टी में अपनी उपेक्षा नही सह सकते.... वह महाराष्ट्र भाजपा में पार्टी का एकमात्र ओबीसी चेहरा है... महाराष्ट्र में उनके होने से पिछड़ी जातियों कर एक बड़ा वोट भाजपा के पाले में आया करता था ॥ अब अगर वह पार्टी को अलविदा कहते है तो नुकसान भाजपा को ही उठाना होगा.....


मुंडे की नाराजगी का एक बड़ा कारन अजित पवार का गद रहा पुणे था जहाँ पर गडकरी ने अपने खासमखास विकास मठकरी को भाजपा जिला अध्यक्ष बना दिया ॥ जबकि मुंडे अपने चहेते योगेश गोगावाले को यह पद देना चाहते थे.....लेकिन आडवानी का भारी दबाव होने के बाद भी गडकरी ने अपनी चलायी .... मुंडे की चिंता यह भी है जबसे गडकरी पार्टी के अध्यक्ष बने है तब से महाराष्ट्र में उनका दखल अनावश्यक रूप से बढ़ रहा है ...


बड़ा सवाल यह भी है अगर गडकरी के चार धाम के प्रवास से लौटने के बाद मुंडे की मांगो पर गौर नही किया गया तो क्या वो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए चुनोती बन जायेंगे......? साथ ही वह कौन सी पार्टी होगी जिसमे मुंडे शामिल होंगे या सवाल अभी से सबके जेहन में आ रहा है...?वैसे भाजपा को अलविदा कहने वाले सभी नेताओ का हश्र लोग देख चुके है .... फिर चाहे वो मदन लाल खुराना हो या उमा भारती.....या बाबूलाल मरांडी हो या कल्याण सिंह.... पार्टी से इतर किसी का कोई खास वजूद नही रहा है॥ ऐसे में मुंडे को कोई फैसला सोच समझ कर लेने की जरुरत होगी......


वैसे इस बात को मुंडे बखूबी समझते है ....शायद तभी अभी से उन्होंने भाजपा से इतर अन्य दलों में सम्भावनाये तलाशनी शुरू कर दी है.....बीते दिनों शिव सेना के कुछ नेताओ के साथ उनकी मुलाकातों को इससे जोड़कर देखा जा रहा है...कहा जा रहा है शिव सेना उनको अपने पाले में लाने की पूरी कोशिशो में जुटी हुई है ... बताया जाता है मुंडे ने ही हाल में शिवसेना और राम दास अठावले की रिपब्लिक पार्टी को एक मंच पर लाने में बड़ा योगदान दिया....शायद इसी के मद्देनजर शिव सेना भी मौजूदा घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए है.....यही नही ऍन सी पी के नेताओ के साथ उनके मधुर संबंधो के मद्देनजर वह उनकी तरफ भी जा सकते है........


मुंडे का भविष्य बहुत हद तक गडकरी के साथ होने वाली बैठक पर टिका है.....अगर इसमें कोई नतीजा नही निकला तो इस बार मुंडे भाजपा को अलविदा कहने में देर नही लगायेंगे.....

Thursday, 16 June 2011

माम्मू का अधूरा सपना ..........................

वह कसाब को फासी पर चढाने की राह लम्बे समय से देखता रहा लेकिन हमारे देश के नेताओ की वोट बैंक की राजनीती के कारण मुंबई पर हमला करने वाले आतंकी अजमल आमिर कसाब को फासी पर नही चढ़ाया जा सका ......कसाब को फासी पर चदाये जाने की कसक माम्मू के दिल में व्याप्त थी लेकिन माम्मू की तमन्ना अधूरी रह गई.....

आज जिस माम्मू नाम के शख्स की बात आपसे कर रहा हू ,वह कोई मामूली आदमी नही है...वह देश का एकमात्र जल्लाद था जो उन लोगो को फासी पर लटकाया करता था जिनकी मृत्युदंड की याचिका राष्ट्रपति के द्वारा ख़ारिज कर दी जाती थी...मीरत के टी पी नगर में रहने वाला माम्मू जल्लाद उत्तर प्रदेश जेल का कर्मचारी था जिसने कई दर्जन लोगो को फासी पर लटकाया था......

माम्मू को करीब से जानने वालो का कहना है कि माम्मू हर दिन कसाब को फासी पर चढाने की राह देखता रहा लेकिन उसका सपना पूरा नही हो सका ....माम्मू का पूरा खानदान अरसे से जल्लाद का काम करता आ रहा था ... माम्मू देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका खारिज होने के बाद सुर्खियों में आया .......अगर भुल्लर की सजा पर कोई फैसला नही आता तो शायद माम्मू भी सुर्खिया नही बटोरता ..... बहुत कम लोग ये जानते होंगे माम्मू देश का आखरी जल्लाद था और अब उसकी मौत के बाद देश में जल्लादों का संकट पैदा हो गया है ....

अपनी मौत से पहले उसने जेल के अधिकारियो से कई बार यह विनती की कसाब को जल्दी फासी पर लटकाया जाए जिससे उसकी तमन्ना पूरी हो सके लेकिन हमारे देश की घिनोनी राजनीती के चलते उसकी मुराद पूरी नही हो सकी और वह खुदा को प्यारा हो गया.....६६ साल का माम्मू पिछले कुछ समय से बीमार चल रहा था जिसका पता जेल प्रशासन को भी था पर कसाब को फासी पर लटकाने का फैसला जेल वालो को नही बल्कि राष्ट्रपति को करना था ...

माम्मू का पूरा खानदान जल्लादी के काम से था....उसके पिता और दादा भी इस काम को कर चुके थे.... उसके पिता कालू ने तो इंदिरा गाँधी के हथियारे कहर सिंह और बलवंत सिंह को फासी पर लटकाया था .... पिता की मौत के बाद माम्मू ने कई लोगो को अपने हाथो से फासी पर लटकाया ...

माम्मू के दादा राम अंग्रेजो के दौर में जल्लाद का काम किया करते थे ... आज़ादी के दौर में कई क्रांतिकारी भी हस्ते हस्ते फासी के तख़्त पर चढ़ गए जिन्हें माम्मू के दादा ने ठिकाने लगाया ... इनमे भगत सिंह , सुखदेव, राजगुरु जैसे क्रांति कारी भी शामिल थे ......

आज़ादी के महानायकों को फासी पर चढाने का जो काम माम्मू के दादा ने किया था उससे वह बहुत शर्मिंदा था क्युकि माम्मू के दादा ने यह सब काम फिरंगियों के दबाव में किया था और अंग्रेजी हुकूमत काली चमड़ी वालो से किस तरह बर्ताव करती थी इसकी मिसाल इतिहास में आज भी पढने को मिल जाती है....

माम्मू बार बार कसाब को फासी पर जल्द चदाये जाने की बातें इसलिए करता था क्युकि उसे लगता था अगर उसने इस आतंकी को फासी पर चढ़ा दिया तो उसके पुरखो के सारे पाप मिट जायेंगे और उसको प्रायश्चित करने का एक सुनहरा मौका मिल जाता .....लेकिन माम्मू की ख्वाइश अधूरी ही रह गई......

Thursday, 9 June 2011

उमा की वापसी के बाद अब कतार में गोविन्दाचार्य.....

"जैसे उडी जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे"..... २ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी में अपनी वापसी पर इस साध्वी ने कुछ इन्ही पंक्तियों में अपनी वापसी को मीडिया के खचाखच भरे समारोह में बयां किया ......पार्टी के आला नेताओं के तमाम विरोधो के बावजूद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी उमा को पार्टी में लाने में कामयाब हो गए..... इस विरोध का असर उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी देखने को मिला जिसमे पार्टी के जेटली, स्वराज, जैसे कई बड़े नेता शामिल तक नही थे .......इन सभी की गिनती उमा के धुर विरोधियो के रूप में की जाती थी.....

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष प्रभात झा तक को इसकी जानकारी नही लगी... प्रभात झा का तो यह हाल था कि उमा की वापसी से २ घंटे पहले जब उनसे पार्टी में उनकी वापसी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा इस पर कुछ नही कहना है ॥ परन्तु २ घंटे बाद वही झा और मुख्यमंत्री ने इस विषय पर गेंद केन्द्रीय नेताओं के पाले में फेकते हुए कहा जब भी कोई नेता पार्टी में आता है तो उसका स्वागत होता है...... घर वापसी को लेकर उमा के पक्ष में माहौल लम्बे समय से बन रहा था लेकिन भाजपा के अन्दर एक तबका ऐसा था जो उमा की पार्टी में वापसी का विरोध कर रहा था ॥

दरअसल उमा की वापसी का माहौल जसवंत सिंह की भाजपा में वापसी के बाद बनना शुरू हो गया था... उस समय उमा भारती भैरो सिंह शेखावत के निधन पर जसवंत के साथ राजस्थान गई थी.....संघ ने दोनों की साथ वापसी की भूमिका तय कर ली थी लेकिन उमा विरोधी खेमा उनकी वापसी की राह में रोड़े अटकाते रहा .......

पिछले साल उमा भारती छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के मुख्यमंत्री के पिता की तेरहवी में आडवानी और राजनाथ सिंह के साथ नजर आई तो फिर उमा की पार्टी में वापसी को बल मिलने लगा ......इसके बाद पार्टी में गडकरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनका मोहन भागवत के साथ मुलाकातों का सिलसिला चला ॥ खुद भागवत ने भी पार्टी से बाहर गए नेताओं की वापसी का बयान दिया तो इसके बाद उमा की वापसी की संभावनाओ को एक बार फिर बल मिलना शुरू हुआ ...... लेकिन मध्य प्रदेश के भाजपा नेता खुले तौर पर उनकी वापसी पर सहमति नही देते थे क्युकि उनको मालूम था अगर उमा पार्टी में वापसी आ गई तो वह मध्य प्रदेश सरकार के लिए खतरा बन जाएँगी......

उमा ने राम रोटी के मुद्दे पर भाजपा से किनारा कर लिया था ...कौन भूल सकता है जब उन्होंने आज से ६ साल पहले भरे मीडिया के सामने आडवानी जैसे नेताओं को खरी खोटी सुनाई थी और पार्टी को मूल मुद्दों से भटका हुआ बताया था .....लेकिन इस दौर में उन्होंने संघ परिवार से किसी भी तरह से दूरी नही बड़ाई .....शायद इसी के चलते संघ लम्बे समय से उनकी पार्टी में वापसी का हिमायती था ...


वैसे भी उमा भारती पार्टी में कट्टर हिंदुत्व के चेहरे की रूप में जानी जाती रही है ......कौन भूल सकता है अयोध्या के दौर को जब साध्वी के भाषणों ने पार्टी में नए जोश का संचार किया था .....उमा की इसी काबिलियत को देखकर पार्टी हाई कमान ने उनको २००३ में मध्य प्रदेश में उतारा जहाँ उन्होंने दिग्विजय सिंह के १० साल के शासन का खात्मा किया ..... इसके बाद २००४ में हुबली में तिरंगा लहराने और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुचाने के कारण उनके खिलाफ वारेंट जारी हुआ और उन्होंने सी ऍम पद से इस्तीफ़ा दे दिया....

भरी सभा में भाजपा के नेताओं को कैमरे के सामने खरी खोटी सुनाने के बाद उमा ने मध्य प्रदेश में अपनी अलग भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली..... २००८ के चुनावो में इसने ५ सीटे प्रदेश में जीती ..... उम्मीद की जा रही थी कि उमा की पार्टी बनने के बाद भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा परन्तु ऐसा नही हुआ .... इसके बाद से उमा के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे ... हर बार उन्होंने मीडिया के सामने भाजपा को खूब खरी खोटी सुनाई परन्तु कभी भी संघ को आड़े हाथो नही लिया....शायद इसी के चलते संघ में उनकी वापसी को लेकर खूब चर्चाये लमसे समय से होती रही .........


प्रदेश के मुख्यमंत्री शिव राज सिंह चौहान और उमा भारती में शुरू से छत्तीस का आकडा रहा है ......उमा की वापसी का विरोध करने वालो में उनके समर्थको का नाम भी प्रमुखता के साथ लिया जाता रहा है.... शिव के समर्थक उनकी वापसी के कतई पक्ष में नही थे इसी के चलते उनकी वापसी बार बार टलती रही... लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व के आगे शिव के समर्थको की इस बार एक नही चली......इसी के चलते पार्टी के किसी नेता ने खुलकर उनकी वापसी पर ख़ुशी का इजहार नही किया.....


उमा की वापसी पर सबसे ज्यादा चिंता मध्य प्रदेश में थी..... राजनीतिक विश्लेषको का मानना था अगर उमा भाजपा में वापस आ गई तो शिवराज का सिंहासन खतरे में पढ़ जायेगा .....

खुद शिवराज को गौर के समय जब सिंहासन सौपा गया था तो उमा ने केन्द्रीय नेताओं के इस फैसले का खुलकर विरोध किया था.......अब उमा की वापसी से शिवराज के समर्थको की चिंता बढ़ गई है ... उनके पार्टी में आने के बाद बैखोफ होकर शासन चला रहे मुख्यमंत्री शिवराज के लिए आगे की डगर आसान नही दिख रही..... क्युकि प्रदेश में शिव के असंतुष्टो का एक बड़ा खेमा मौजूद है ....जो किसी भी समय उमा के पाले में जाकर शिवराज के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है.....मध्य प्रदेश में आज भी उमा के समर्थको की कमी नही है .....पार्टी हाई कमान भले ही उनको उत्तर प्रदेश के चुनावो में आगे कर रहा है लेकिन साध्वी अपने को मध्य प्रदेश से कैसे अलग रख पायेगी यह बड़ा सवाल बन गया है ......


उमा की वापसी में इस बार नितिन गडकरी और संघ की खासी अहम भूमिका रही है.... पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के मिशन २०१२ की कमान सौपी है ...यहाँ भाजपा का पूरी तरह सफाया हो चुका है...कभी उत्तर प्रदेश की पीठ पर सवार होकर पार्टी ने केंद्र की सत्ता का स्वाद चखा था... आज आलम ये है कि यहाँ पर पार्टी चौथे स्थान पर जा चुकी है ..... १६ वी लोक सभा में दिल्ली के तख़्त पर बैठने के सपने देख रही भाजपा ने उमा को "ट्रम्प कार्ड" के तौर पर इस्तेमाल करने का मन बनाया है......

उत्तर प्रदेश में अब उमा भारती राहुल गाँधी को सीधे चुनौती देंगी.......अपनी ललकार के दवारा वह मुलायम और माया के सामने हुंकार भरेंगी..... अगर उत्तर प्रदेश के कुछ नेताओं का साथ उमा को मिला तो वह पार्टी की सीटो में इस बार इजाफा कर सकती है ... लेकिन उत्तर प्रदेश में भी भाजपा गुटबाजी की बीमारी से ग्रसित है......पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप साही की राह अन्य नेताओं से जुदा है ......कलराज मिश्र के हाथ चुनाव समिति की कमान आने को राज्य के पार्टी के कई नेता नही पचा पा रहे है.....मुरलीमनोहर जोशी, राजनाथ सिंह जैसे नेता केंद्र की राजनीती में रमे है ऐसे में उमा को मुश्किलों का सामना करना होगा..... सबको साथ लेकर चलने की एक बड़ी चुनौती उनके सामने है......उत्तर प्रदेश की जंग में उमा के लिए विनय कटियार और वरुण गाँधी और योगी आदित्यनाथ जैसे नेता निर्णायक साबित होंगे..... आज भी इनका प्रदेश में अच्छा खासा जनाधार है॥ हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के रूप में यह अपनी छाप छोड़ने में अहम् साबित हो सकते है....

भले ही प्रेक्षक यह कहे कि भाजपा छोड़कर चले गए नेता जब दुबारा पार्टी में आते है तो उनकी कोई पूछ परख नही होती ... साथ ही वे जनाधार पर कोई असर नही छोड़ पाते लेकिन उमा के मामले में ऐसा नही है.... वह जमीन से जुडी हुई नेता है.... अपने ओजस्वी भाषणों से वह भीड़ खींच सकती है.....कल्याण सिंह के जाने के बाद वह पार्टी में पिछडो के एक बड़े वोट बैंक को अपने साथ साध सकती है.....

उमा की वापसी के बाद अब गोविन्दाचार्य की भाजपा में वापसी की संभावनाओ को बल मिलने लगा है.... उमा के आने के बाद अब संघ गोविन्दाचार्य को पार्टी में वापस लेने की कोशिशो में लग गया है.... गडकरी कई बार उनकी वापसी को लेकर बयान देते रहे है परन्तु उमा की वापसी न हो पाने के चलते आज तक उनकी भी पार्टी में वापसी नही हो पायी.....

गोविन्दाचार्य को साथ लेकर पार्टी कई काम साध सकती है ... वह अभी रामदेव के काले धन से जुड़े मसले पर उनके साथ केंद्र सरकार से लम्बी लडाई लड़ रहे है.....इस समय केंद्र सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष है .... भाजपा आम जनमानस का साथ इस समय लेना चाहती है... इसी के चलते संघ रामदेव का पीछे से साथ दे रहा है... क्युकि उसे लगता है भ्रष्टाचार का मुद्दा उसे केंद्र की सवारी करा सकता है... ऐसे में संघ परिवार अपने पुराने साथियों को पार्टी में वापस लेना चाहता है ....उमा की वापसी के बाद अब संघ परिवार गोविन्दाचार्य को अपने साथ लाने की कोशिसो में जुट गया है.....हरिद्वार के एक महंत की माने तो उमा के आने के बाद अब भाजपा में गोविन्दाचार्य की जल्द वापसी हो सकती है.....खुद उमा को इसके लिए संघ मना रहा है ..... अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो गोविन्दाचार्य भी भाजपा में होंगे.....

उमा को गंगा प्रकोष्ठ का संयोजक बनाकर भाजपा ने अपने इरादे एक बार फिर जता दिए है ... उत्तर प्रदेश पर गडकरी की खास नजरे है ...पार्टी हिंदुत्व की सवारी कर पिछड़ी जातियों की पीठ पर सवार होकर यू पी में अपना प्रदर्शन सुधारने की कोशिशो में लग गई है...... देखना होगा उमा में चमत्कार का अक्स देख रहे भाजपा हाई कमान की उम्मीदों में वह इस बार कितना खरा उतरती है?

Sunday, 8 May 2011

शर्मा जी, क्रिकेट और उनके बर्फ के गोले.......



शर्मा जी और उनके बर्फ के गोलों को भूल नही सकता .... कम से कम जब तक मैं भोपाल में हूँ तब तक तो नही.... दरअसल जिन शर्मा जी की बात मैं अपने ब्लॉग में कर रहा हू....उनसे अपनी मुलाकात एक कवरेज के दौरान भोपाल के बोट क्लब में हुई..... उसके पास शर्मा जी अपना ठेला हर दिन लगाया करते है .......

शर्मा जी क्रिकेट का बड़ा शौक रखते है..... उनसे मेरी पहली मुलाकात वर्ल्ड कप के मैचो के दौरान हुई....उन दिनों देश वासी भारत की जीत के लिए जहाँ कामना किये जा रहे थे वही शर्मा जी ने टीम इंडिया के वर्ल्ड कप जीतने पर अपनी दुकान का सारा सामान तक फ्री कर दिया था.... मुकेश शर्मा वर्षो से भोपाल में आइस क्रीम बेचने का काम किया करते आ रहे है.... शादियों के मौसम में आप शर्मा जी की इस आइस क्रीम का लुफ्त उठाये बिना नही रह सकते॥ हमारे बोट हाउस वाले शर्मा जी भी अपनी आइस क्रीम की सेवा शादियों के सदाबहार मौसम में दिया करते है.....

शर्मा जी की क्रिकेट की दीवानगी को देखकर मैं भी चौक गया .... बचपन में कभी मैं क्रिकेट का कीड़ा हुआ करता था..... लेकिन मैच फिक्सिंग के बाद मेरा खेल को लेकर लगाव ख़त्म सा हो गया .... लेकिन वर्ल्ड कप के मैचो को लेकर मेरा दीवानापन फिक्सिंग के बाद भी कम नही हुआ क्युकि पिता जी से लड़ झगड़कर एक कलर टीवी की व्यवस्था उस दौर में घर में करवा ली....शायद ये ८ साल पहले की बात होगी.... टी वी देखने पर घर वाले डांट दिया करते थे.....कहते थे पदाई लिखाई नही करनी है क्या? हर समय क्रिकेट क्रिकेट करते हो.... टी वी से चिपके रहते हो या हर समय पेपर पड़ते रहते हो .... दरअसल हमारे पूरे परिवार में पत्रकारिता को लेकर किसी के मन में उतना लगाव नही था... क्युकि उत्तराखंड जैसे राज्य में सेना के अलावा किसी फील्ड में बेहतर सम्भावना नही दिखती थी..... ...उस समय उम्र कच्ची थी इसी कारन अक्ल का कमजोर था... समझ नही पाया मेरे जैसे कई लोग है इस देश में जो क्रिकेट को लेकर उत्सुकता रखते है.... आज बड़ा होने पर जब शर्मा जी का शौक देखा तो अपने बचपन की यादो में कही खो सा गया........

शर्मा जी ने भारत की टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर भोपाल वासियों को निशुल्क आईस क्रीम की सौगात देने की बात कही .....जिसे उन्होंने पूरा भी किया.... बोट क्लब में फ्री में खाने वालो की लाइन लग गई....मुकेश से जब मैंने बात की तो उसने बताया उसे बचपन से क्रिकेट का शौक है ....सचिन की टीम में खेलने की तमन्ना थी वह तमन्ना तो पूरी नही हो पायी अब क्रिकेट के नाम पर आईस क्रीम का कारोबार कर गुजर बरस कर रहा है ..... आई पी एल जैसी स्पर्धाओ में भी शर्मा जैसे क्रिकेट के शौकीनों का खवाब पूरा नही हो पाया....भले ही टीम इंडिया के लिए खेल नही पाये लेकीन आई पी एल के मैचो में अपना स्टाल लगाकर अपना शौक पूरा कर लेते.... 20- २० के दौर में जहाँ तमाशा क्रिकेट खेली जा रही हो वहां खिलाडियों की तो मंडियों में बोली लग रही है शर्मा जी की कोई पूछ होगी क्या ?

शर्मा १९८३ में भारत की टीम के जीत के नज़ारे को नही देख पाये लेकिन इस बार २८ साल के जीत को उन्होंने अपनी आखो के सामने देखा तो ख़ुशी के आंसू छलक आये.....जब युवराज सचिन अपने को नही रोक पाये तो भला शर्मा जी जैसे लोगो की क्या बिसात जिन्होंने अपने रोल मॉडल नायक के लिए आईस क्रीम के सेण्टर तक खोल डाले और उनके वर्ल्ड कप जीतने की ख़ुशी में सबको आईस क्रीम खिलवाये जा रहे थे.....

मुझे भी शर्मा जी ने अपनी दुकान से उस दिन आईस क्रीम खिलवायी.....इस आईस क्रीम की याद और क्रिकेट के प्रति ऐसे जूनून को कभी नही भूल पाऊंगा .....कम से कम जब तक भोपाल में हूँ और झील की छठा का आनंद लूँगा तब तक शर्मा जी की याद मेरे जेहन में बसी रहेगी .... ये अलग बात है ललित के साथ देहरादून की गलियों में शर्मा जी की मिठास वाली आईस क्रीम अपन को नसीब नही हो सकेगी ......साथ ही शब्बन चौराहे और लिली टाकीज के पास मिलने वाले केले और पपीते मुझे नसीब नही हो पाएंगे .....हाँ हरिद्वार में गंगा के घाट पर आध्यात्मिक शांति जरुर मिलेगी.......


वर्ल्ड कप जीतने के बाद जब भी शर्मा जी के ढाबे में जाता हूँ तो वह बड़ी आत्मीयता से आज भी मुझे आईस क्रीम और कोल्ड ड्रिंक पिलाते है .....बदले में जब रुपये देता हू तो लेने से इनकार कर देते है.... शर्मा जी की इस कहानी तो मैंने सभी समाचार चैनलों और पेपरों में पहुचाने की कोशिश की .... एक आध चैनलों को छोड़कर किसी ने उनकी खबर नही चलायी......

दरअसल हमारा मीडिया भी बिकाऊ हो गया है..... अपना विवेक ठीक कहता है पेड़ न्यूज़ का जमाना है......जनसरोकारो वाली पत्रकारिता नही हो रही है......राखी सावंत की चुम्मा चाटी और हसी के रसगुल्लों वाली पत्रकारिता आज हो रही है .....ऐसे में शर्मा जी की खबर को सुर्खिया नही मिल पाती है ..... लेकिन इन सब के बाद भी शर्मा जी के मन में किसी तरह की निराशा नही है... कुछ लोग होते है जिन्हें प्रचार की जरुरत होती है परन्तु कुछ ऐसे होते है जो प्रचार प्रसार माध्यमो के मोहताज नही होते ... वह अपना काम बेरोकटोक करते रहते है.... शर्मा जी की इसी अदा का मै कायल हो गया हूँ ..........मीडिया को कवरेज के लिए प्रलोभन देने वाले लोगो को शर्मा जी से आज प्रेरणा लेने की जरुरत है........

Saturday, 9 April 2011

भोपाल नगर निगम से रूठे शनि देव ......




शनि देव इस समय पूरे देश में "ग्लोबल" हो गए है.... साईं के बाद अगर कोई देव हाल के वर्षो में "ग्लोबल " हुआ है तो बेशक वह देव शनि देव ही है...देश में हर जगह उनको पूजने वाले भक्तो की संख्या में इजाफा होता जा रहा है.....लेकिन भोपाल के शनि देव इनदिनों नगर निगम से रूठ गए है....भोपाल के शनि देव की परेशानी को नगर निगम के एक फैसले ने बदा दिया है.....


शनि देव ने कभी सपने में भी नही सोचा होगा कि भोपाल नगर निगम को उनकी नजरे इतनी नागवार गुजरेंगी कि उनकी आँखों के ठीक सामने एक काला सा बोर्ड लगा दिया जायेगा....चौकिये नही भोपाल के बड़े तालाब को सूखे के प्रकोप से बचाने के लिए नगर निगम ने एक तुगलकी फरमान इनदिनों जारी किया है.... आलम ये है कि नगर निगम स्थानीय लोगो और मंदिर कमेटी के विरोध के बावजूद इस बोर्ड को ना हटा पाने की अपनी जिद पर कायम है ......


शनि देव से भले ही पूरी दुनिया खौफ खाती हो लेकिन भोपाल के कमला पार्क के शनि मदिर इनदिनों नगर निगम भोपाल से खौफजादा है .... दरअसल शनि देव की दृष्टी तालाब में ना पड़े इसलिए नगर निगम ने उनकी आँखों के सामने एक काला सा बोर्ड लगा दिया है.... नगर निगम का तर्क है कि पिछले साल बड़ा तालाब सूख गया था जिसके पीछे शनि देव की कोप दृष्टी जिम्मेदार है ...


बीते दिनों एक खबर के सिलसिले में शनि महाराज के दर्शन करने की इच्छा हुई .... मंदिर के दर्शन कर प्रसाद लिया और वहाँ पर मौजूद कुंजबिहारी नाम के पुजारी से मेरी मुलाक़ात हुई...... पहला सवाल यही पूछ डाला महाराज शनि देव भोपाल के बड़े तालाब को क्यों सुखा रहे है.?.. ऐसा पूछते ही पुजारी हस पड़े ...उनको देखकर मै भी अपनी हसी नही रोक सका ....उन्होंने कहा यह तर्क बिलकुल गलत है.... शनि महाराज इस बड़े तालाब को क्यों सुखायेंगे ?


भोपाल नगर निगम से पूरी मंदिर कमेटी परेशान हो चुकी है.... लिहाजा वह शनि देव को कमरे में कैद करने की योजना बना रही है....स्थानीय लोगो में नगर निगम के पार्टी आक्रोश है....उनका भी यही कहना है यह आस्था के साथ खिलवाड़ है......


भले ही नगर निगम अपने फैसले पर कायम हो लेकिन ये वाकया यह बताने के लिए काफी है आज भी हम २१ वी सदी में अंधविश्वास के सहारे जी रहे है जहाँ हम ऐसी बातो पर यकीन कर रहे है जो आज के वैज्ञानिक युग में कही से कही तक संभव ही नही हो सकती...... इस बारे में बातचीत के लिए मैं नगर निगम भी गया लेकिन नगर निगम के आला अधिकारियो ने कुछ भी कहने से साफ़ इंकार कर दिया......मामले से ही कन्नी काट ली...................


Saturday, 12 March 2011

सूखे की चपेट में भोपाल का बड़ा तालाब.........


भोपाल की पहचान झीलों के शहर के रूप में रही है ... इसकी खूबसूरती में भोपाल की बड़ी झील चार चाँद तो लगाती ही है साथ ही इस झील को शहर की लाइफ लाइन भी कहा जाता है ... परन्तु पिछले कुछ समय से बड़ी झील में पानी का स्तर तेजी से गिरने लगा है जिस के चलते गर्मी के मौसम में यहाँ के लोगो को पानी की समस्या से जूझना पढ़ सकता है......
"तालो में भोपाल की ताल बाकी सब तलैया ".... भोपाल की पहचान इस बड़े तालाब ने झीलों के शहर के रूप में बनायीं है .... यहाँ के लोगो को पानी की सप्लाई इसी बड़ी झील से होती रही है.... परन्तु पिछले कुछ समय से इसका जल स्तर तेजी से घटने लगा है ... यदि पेयजल के लिए यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में जल स्तर में कमी आने की सम्भावना है .......
बड़ी झील में पानी का स्तर नीचे चले जाने से जहाँ भोपाल के लोगो को पानी की सप्लाई प्रभावित हो सकती है वही झील में मछली पकड़कर रोजी रोटी कमाने वाले मछुवारो के सामने अभी से रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है .....
अमित जहांगीराबाद के इलाके में ही रहते है... पिछले दिनों रिपोर्टिंग के दौरान उनसे मुलाकात का मौका मिला....पहले तो उन्होंने बोलने से मना किया .... आख़िरकार मैंने कैमरे के सामने बाईट के लिए उन्हें मना ही लिया ... अमित ने कहा पिछले साल इसी झील से पानी लोगो को मिला था वह भी एक एक दिन छोड़कर... इस बार ऐसे हालत ऐसे नजर नही आते .....इसका एक बढ़ा कारन झील बचाव अभियान भी थे .... इस बार तो झील का बढ़ा हिस्सा सूख चूका है...अभियान भी नही चल रहे है......
कल्लू नाम के मछवारे से मिला तो वह भी खासा परेशान दिखा ....आप बीती सुनाते हुए उसने कहा साहब नवाबी दौर से मछली पकड़ने के काम में लगा हुआ हूँ... पूरा परिवार इन्ही मछलियों के सहारे पलता है ... आज आलम ये है कि तालाब में मछलिया मुश्किल से मिल पाती है ... ऐसे में गुजर बसर कर पाना मुश्किल है.....
गर्मी ने अभी से अपने तेवर दिखने शुरू कर दिए है ....इस समय झील में पानी का स्तर न्यूनतम जल स्तर से मात्र 2 फीट ज्यादा है...जबकि अभी गर्मी की शुरुवात ही हुई है ....नगर निगम भोपाल की माने तो इस समय झील से २ ऍम जी दी पानी हर दिन निकाला जा रहा है... अगर यही सिलसिला जारी रहा तो जल्द ही यह झील सूख जायेगी....
इस बारे में जब मैंने उपनेता महापौर परिसद जल कार्य अशोक पांडे से बात की तो उन्होंने कहा मेरी चिंता जायज है...इसी को ध्यान में रखते हुए इस बार बड़े तालाब के बजाए नगर निगम कोलार और केरवा डेम से पानी की ज्यादा सप्लाई करने की दिशा में विचार कर रहा है....
पिछले साल भोपाल की बड़ी झील ने राजधानी भोपाल के लोगो की प्यास बुझाई थी परन्तु इस बार उम्मीद कम है ... बेहतर होगा नगर निगम जल्द से जल्द बड़ी झील के पानी को बचाने की दिशा में गंभीरता से विचार करे...