Thursday, 23 February 2012

आमिर खान "तारे जमीं पर" के जरिये दूर तक ले गए मेरा नाम --- अमोल गुप्ते




अमोल गुप्ते हिन्दी सिनेमा जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे है........ अपनी एक्टिंग , निर्देशन , लेखन से उन्होंने बालीवुड में एक नया मुकाम बनाया है.... "स्टेनली का डिब्बा ", " भेजा फ्राई २" , " फंस गए रे ओबामा" जैसी मूवी में उन्होंने अपनी एक्टिंग का जहाँ लोहा मनवाया है वहीं "कमीने" जैसी मूवी में उन्हें शाहिदकपूर और प्रियंका चोपड़ा के साथ काम करने का मौका मिला....यहाँ उनके खलनायक के रोल को खासी वाहवाही मिली........२००७ में "तारे जमीं पर" जैसी सुपरहिट मूवी ने उनकी सफलता में चार चाँद लगा दिए ....इस फिल्म के लिए उनको "स्टार स्क्रीन अवार्ड" , "जी सिने अवार्ड" समेत कई अवार्डो से नवाजा जा चुका है...... अमोल को बच्चों के साथ काम करने में मजा आता है और वह बच्चों से जुडी कहानियो को परदे में लाने की कोशिशो में हमेशा जुटे रहते है..........

बीते दिनों मैंने उनसे बातचीत की ... प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश ......




शुरुवात आपकी मूवी तारे जमीन पर से ही करूँगा...... बहुत अच्छी मूवी थी.........इसने समाज में बदलाव लाने का काम किया है......आप इस बदलाव को किस रूप में देखते है?
 
उत्तर-- बिलकुल... आपसे सहमत हूँ.... आठवीं तक की परीक्षाएं रद्द हो गई हैं .... मार्किंग सिस्टम ख़त्म होने को है.. इसके बजाए ग्रेडिंग सिस्टम आ रहा है.... "तारे जमी पर" मूवी जिन दिनों आई उस दौरान मुझे कई सेमिनारो में भाग लेने का मौका मिला .. जहाँ भी गया वहां पर इस फिल्म को लेकर मुझे खासी सराहना मिली.... उस दौरान रेणुका चौधरी चाइल्ड एंड वेलफेयर मिनिस्टर थी..... उन्होंने तो बाकायदा उस सेमिनार में कई शिक्षको और प्राचार्यो के साथ घोषणा ही कर डाली कि अब हमें " बिफोर एंड आफ्टर "तारे जमीं पर " देखना ही होगा..... यह प्रभाव जो हुआ है वह एक बहुत बड़ा बदलाव है......
 
क्या आप इस बात को मानते है कि इस फिल्म के आने के बाद समाज में लोगो का रोल मोडल भी बदला है?
उत्तर-- बिलकुल.... हाँ, क्युकि जब किसी इंसान को शीशा दिखाया जाता है तो वह अपनी खूबियाँ देखने के साथ ही अपनी खामियां भी देखता है....और फिर उसी हिसाब से अपनी जिन्दगी को बदलने की कोशिश करता है......

 

क्या आप इस बात को मान रहे है कि तारे जमीं पर आने के बाद हमारे अभिवावकों की बच्चों के प्रति सोच भी पूरी तरह बदल गई है?उत्तर-- हाँ...... बहुत बड़े तरीके से बदली है.... क्युकि जिस तरीके से मुझे रेस्पोंस मिले चाहे लखनऊ के रिक्शा चलाने वाले हों, जो कभी स्कूल नहीं गए हों , उससे उतना फर्क नहीं पड़ा होगा जितना इस मूवी को देखने के बाद पड़ा ..... इस फिल्म को देखने के बाद अभिवावकों का अपने अपने बच्चों के प्रति नजरिया ही पूरी तरह से बदल गया..... अब वह अपने बच्चों को उनका एक अच्छा दोस्त मानने लगे है.... उसकी राय को आज अहमियत देने लगे हैं ...... यह एक बड़ी बात है.....

 

२१वी सदी के प्रथम दशक में कई और फ़िल्मी भी आई जिनमे मुन्ना भाई सीरीज है...आपकी तारे जमीं पर है..... थ्री इडियट है......... आपकी नजर में यह सब कैसी शिक्षा केन्द्रित मूवी रही हैं ?
 
उत्तर-- मेरे हिसाब से मैं मुन्ना भाई सीरीज से उतना सहमति नहीं रखता हूँ.... इस तरह की फिल्मों को हमारे समाज ने जल्द ही अब्जोर्व कर लिया.... मेरे ख्याल से इस सीरीज को आप ":ऋषिकेश मुखर्जी" वाले जोन में रख सकते है.... मैं ज्यादा इस पर बात नहीं करूँगा ...

"तारे जमीं पर" मेरी खुद की मूवी है.... मुझे बच्चों से विशेष लगाव रहा है.... और मैं बच्चों के साथ काम करता रहा हूँ......."तारे जमीं पर" मेरी खुद की मूवी रही है जिसमे रिसर्च के माध्यम से इस बात की कोशिश की कई है कि " एवरी चाइल्ड इज स्पेशल "..... यह काम मैंने मेनस्ट्रीम में रहने के बाद भी किया.... बहुत साफ़ कथानक रखा इसका.... ताकि फेमिली आये और आकर वह बच्चों का नजरिया चेंज कर सके.........
 

आप थियेटर से निकले है.... थियेटर से फिल्मों तक के अपने सफ़र को किस रूप में देखते है आप? 

उत्तर--मैं अपने आप को इतना महत्व नहीं देता..... कोई बहुत बड़ा कलाकार नहीं समझता ..........मैं तो सिर्फ एक छोटा सा सिपाही हूँ .... इसी रूप में मुझे देखा जाना चाहिए....
 आपकी मूवी के दौरान ऐसा देखा जाता है कि आप अपना सौ फीसदी देने की कोशिश करते है......वह क्या चीज है जो आप सबको यह करने की प्रेरणा देती है..... ? 

उत्तर-- प्रेरणा तो बच्चे ही हैं ... उनकी कहानियो को परदे पर लाना मेरी पहली प्राथमिकता रही है और आगे भी रहेगी...... बच्चो के अन्दर झाँकने की फुर्सत किसी को नहीं है जबकि इस विषय पर कई अच्छी कहानियां हैं.... 


सुना है आप कोई एन.जी .ओ भी चलाते हैं ....? 

उत्तर-- नहीं मैं एन. जी .ओ नहीं चलाता ...हाँ . इतना जरुर है मैं वोलिएंटर जरुर हूँ.... इस समय तकरीबन छह एन.जी. ओ में साधारण वोलिएंटर हूँ.... और मेरा ज्यादा समय और दिन वहीँ बीतता है.... मेरी पत्नी दीपा भी इस काम में मेरा साथ देती हैं..... 
आपका अब अलग प्रोजेक्ट क्या है? क्या बच्चो को लेकर ही अगली फिल्म बना रहे है ? 

उत्तर-- नहीं , ऐसा नहीं है....बच्चो को लेकर शायद ही बनाऊ लेकिन मेरा उनके साथ किया जाने वाला काम लगातार जारी रहेगा.......
 

आज थियेटर आम आदमी से दूर क्यों होता जा रहा है?
उत्तर-- आज के समय में मनोरंजन के कई साधन हो गए है.....बहुत सारे विकल्प हैं लोगो के पास ....मोबाइल है , टी वी है.... और अब तो घर घर में डी टी एच पहुच गया है.....
 

भारतीय सिनेमा की वर्तमान दशा पर आप क्या कहना चाहेंगे.......? 

उत्तर-- आज का दौर गोविन्द निहलानी, ऋषिकेश मुखर्जी वाला दौर नहीं है.... समाज को अच्छा मेसेज देने वाली, अच्छी थीम वाली फिल्मे बहुत कम बन रही हैं... अगर बन भी रही है तो उनको उतना फोकस नहीं मिल पा रहा है.....आपका मीडिया भी उन फिल्मों को लाइट में कहाँ ला पाता है.....अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी ने आपके विदर्भ पर एक डॉक्युमेंट्री बनाई लेकिन उसको उतना प्रचार नहीं मिला.... आपका मीडिया भी इन सब चीजो का कहाँ दिखाता है.....किसान आत्महत्या की कितनी खबरे आपके समाचार पत्रों में सुर्खियाँ बन पाती है? वही बात है फिल्मों को लेकर भी ... एक जैसे हाल हैं.... मीडिया तो सलमान खान का डांस दिखाना ज्यादा पसंद करता है...

आपके क्या क्या शौक हैं ? 


उत्तर-- मुझे बच्चो के साथ काम करने में मजा आता है... लिखने पढने का शौक है.....कभी कभी पेंटिंग भी कर लेता हूँ.....

मूवी नहीं देखते हैं क्या ..........हाल में आपने कौन कौन सी मूवी देखी......? 


उत्तर-- हाँ, देखता हूँ....हाल ही में मैंने "राकस्टार " देखी..."डर्टी पिक्चर" देखी..... विद्या की एक्टिंग लाजवाब लगी......कोशिश करता हूँ हर फिल्म देखू लेकिन समय नहीं मिल पाता .... बहुत सारे कामों में व्यस्त रहता हूँ.....

आखरी सवाल, "तारे जमीं पर " जैसी सुपर हिट मूवी आपने बनाई लेकिन इसका सारा क्रेडिट आमिर खान ले गए..... यह सवाल कहीं ना कहीं मन को कचोटता है ? 


उत्तर-- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है.....मैं क्रेडिट के लिए कोई मूवी नहीं बनाता .... जहाँ तक "तारे जमीं पर " का सवाल है तो मै आपको बताना चाहता हूँ आमिर खान इस मूवी के माध्यम से मेरा नाम बहुत दूर तक ले गए.... यह मेरी लिए बहुत बड़ी बात है..... फिल्म का जो मकसद था वो पूरा हुआ..... इस फिल्म के माध्यम से लोगो तक जो मेसेज पहुचना चाहिए था वह पहुँच गया....ये मेरे जैसे कलाकार के लिए कोई साधारण बात नहीं है......

Monday, 13 February 2012

बसंत के मौसम में प्रेम के फूल...............



बाजार आज के दौर में प्रेम से गुलजार हो गया है........हर तरफ प्रेम की महक नजर आती है....... गिफ्ट सेन्टरों में युवक युवतियों का सैलाब देखा जा सकता है जो प्रेम दिवस से पहले खरीदारी करनेका कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता .....भारत में भी पश्चिमी देशोकी तर्ज पर १४ फरवरी को १०० करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हर साल होता है जहाँ लोग अपने प्रेमी को खुश करने के लिए उपहार देने से लेकर मौज मस्ती करने में जेब गर्म करने में आगे रहते है............

फरवरी को मनाया जाने वाला वैलेंटाइन डे अब महानगरो के साथ कस्बो में भी मनाया जाने लगा है... यह आज की एक हकीकत है... देश के कोने कोने में कमोवेश यही माहौल होगा... चाहे आप दिल्ली की चाँदनी चौक में हो या कनाट पैलेस में, या फिर इनके जैसे किसी भी महानगर या कसबे में ... हर जगह आप ऐसे दृश्यों को देख सकते है आज का युग बदल गया है... संस्कृति गई भाड में.... तभी तो हर जगह विदेशी संस्कृति पूत की भांति पाव पसारती जा रही है ..... हमारे युवाओ को लगा वैलेंटाइन का चस्का भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है... विदेशी संस्कृति की गिरफ्त में आज हम पूरी तरह से नजर आते है ... तभी तो शहरों से लेकर कस्बो तक वैलेंटाइन का जलवा देखते ही बनता है...

आज आलम यह है यह त्यौहार भारतीयों में तेजी से अपनी पकड़ बना रहा है... वैलेंटाइन के चकाचौंध पर अगर दृष्टी डाले तो इस सम्बन्ध में कई किस्से प्रचलित है... रोमन कैथोलिक चर्च की माने तो यह "वैलेंटाइन "अथवा "वलेंतिनस " नाम के तीन लोगो को मान्यता देता है ....जिसमे से दो के सम्बन्ध वैलेंटाइन डे से जोड़े जाते है....लेकिन बताया जाता है इन दो में से भी संत " वैलेंटाइन " खास चर्चा में रहे ...कहा जाता है संत वैलेंटाइन प्राचीन रोम में एक धर्म गुरू थे .... उन दिनों वहाँपर "कलाउ डीयस" दो का शासन था .... उसका मानना था अविवाहित युवक बेहतर सेनिक हो सकते है क्युकियुद्ध के मैदान में उन्हें अपनी पत्नी या बच्चों की चिंता नही सताती ...अपनी इस मान्यता के कारण उसने तत्कालीन रोम में युवको के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया...

किन्दवंतियो की माने तो संत वैलेंटाइन के क्लाऊ दियस के इस फेसले का विरोध करने का फेसला किया ... बताया जाता है वैलेंटाइन ने इस दौरान कई युवक युवतियों का प्रेम विवाह करा दिया... यह बात जब राजा को पता चली तो उसने संत वैलेंटाइन को १४ फरवरी को फासी की सजा दे दी....कहा जाता है की संत के इस त्याग के कारण हर साल १४ फरवरी को उनकी याद में युवा "वैलेंटाइन डे " मनाते है...

कैथोलिक चर्च की एक अन्य मान्यता के अनुसार एक दूसरे संत वैलेंटाइन की मौत प्राचीन रोम में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों से उन्हें बचाने के दरमियान हो गई ....यहाँ इस पर नई मान्यता यह है की ईसाईयों के प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले इस संत की याद में ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता है...

एक अन्य किंदवंती के अनुसार वैलेंटाइन नाम के एक शख्स ने अपनी मौत से पहले अपनी प्रेमिका को पहला वैलेंटाइन संदेश भेजा जो एक प्रेम पत्र था .... उसकी प्रेमिका उसी जेल के जेलर की पुत्री थी जहाँ उसको बंद किया गया था...उस वैलेंटाइन नाम के शख्स ने प्रेम पत्र के अन्त में लिखा" फ्रॉम युअर वैलेंटाइन" .... आज भी यह वैलेंटाइन पर लिखे जाने वाले हर पत्र के नीचे लिखा रहता है ... यही नही वैलेंटाइन के बारे में कुछ अन्य किन्दवंतिया भी है ... इसके अनुसार तर्क यह दिए जाते है प्राचीन रोम के प्रसिद्व पर्व "ल्युपर केलिया " के ईसाईकरण की याद में मनाया जाता है ....यह पर्व रोमन साम्राज्य के संस्थापक रोम्योलुयास और रीमस की याद में मनाया जाता है ... इस आयोजन पर रोमन धर्मगुरु उस गुफा में एकत्रित होते थे जहाँ एक मादा भेडिये ने रोम्योलुयास और रीमस को पाला था इस भेडिये को ल्युपा कहते थे... और इसी के नाम पर उस त्यौहार का नाम ल्युपर केलिया पड़ गया...

इस अवसर पर वहां बड़ा आयोजन होता था ॥ लोग अपने घरो की सफाई करते थे साथ ही अच्छी फसल की कामना के लिए बकरी की बलि देते थे.... कहा जाता है प्राचीन समय में यह परम्परा खासी लोक प्रिय हो गई... एक अन्य किंदवंती यह कहती है १४ फरवरी को फ्रांस में चिडियों के प्रजनन की शुरूवात मानी जाती थी.... जिस कारण खुशी में यह त्यौहार वहा प्रेम पर्व के रूप में मनाया जाने लगा ....

प्रेम के तार रोम से सीधे जुड़े नजर आते है ... वहा पर क्यूपिड को प्रेम की देवी के रूप में पूजा जाने लगा ...जबकि यूनान में इसको इरोशके नाम से जाना जाता था... प्राचीन वैलेंटाइन संदेश के बारे में भी एक नजर नही आता ॥ कुछ ने माना है की यह इंग्लैंड के राजा ड्यूक के लिखा जो आज भी वहां के म्यूजियम में रखा हुआ है.... ब्रिटेन की यह आग आज भारत में भी लग चुकी है... अपने दर्शन शास्त्र में भी कहा गया है " जहाँ जहाँ धुआ होगा वहा आग तो होगी ही " सो अपना भारत भी इससे अछूता कैसे रह सकता है...? युवाओ में वैलेंटाइन की खुमारी सर चदकर बोल रही है... १४ का सभी को बेसब्री से इंतजार है... इस दिन के लिए सभी पलके बिछाये बैठे है... प्रेम का इजहार जो करना है ?.......वैलेन्टाइन प्रेमी १४ फरवरी को एक बड़े त्यौहार से कम नही समझते है....

अभी का समय ऐसा है जहाँ युवक युवतिया प्यार की सही परिभाषा नही जान पाये है... वह इस बात को नही समझ पा रहे है कि प्यार को आप एक दिन के लिए नही बाध सकते... वह प्यार को हसी मजाक का खेल समझ रहे है.... सच्चे प्रेमी के लिए तो पूरा साल प्रेम का प्रतीक बना रहता है ... लेकिन आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल चुकी है ... इसका प्रभाव यह है आज १४ फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया गया है... इस कारण संसार भर के "कपल "प्यार का इजहार करने को उत्सुक रहते है...

१४ फरवरी का कितना महत्व बढ गया है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है इस अवसर पर बाजारों में खासी रोनक छा जाती है .... गिफ्ट सेंटर में उमड़ने वाला सैलाब , चहल पहल इस बात को बताने के लिए काफी है यह किस प्रकार आम आदमी के दिलो में एक बड़े पर्व की भांति अपनी पहचान बनने में कामयाब हुआ है...

इस अवसर पर प्रेमी होटलों , रेस्ताराओ में देखे जा सकते है... प्रेम मनाने का यह चलन भारतीय संस्कृति को चोट पहुचाने का काम कर रहा है... यूं तो हमारी संस्कृति में प्रेम को परमात्मा का दूसरा रूप बताया गया है ॥ अतः प्रेम करना गुनाह और प्रेम का विरोधी होना सही नही होगा लेकिन वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह का भोड़ापन , पश्चिमी परस्त विस्तार हो रहा है वह विरोध करने लायक ही है ....वैसे भी यह प्रेम की स्टाइल भारतीय जीवन मूल्यों से किसी तरह मेल नही खाती.....

आज का वैलेंटाइन डे भारतीय काव्य शास्त्र में बताये गए मदनोत्सव का पश्चिमी संस्करण प्रतीत होता है... लेकिन बड़ा सवाल जेहन में हमारे यह आ रहा है क्या आप प्रेम जैसे चीज को एक दिन के लिए बाध सकते है? शायद नही... पर हमारे अपने देश में वैलेंटाइन के नाम का दुरूपयोग किया जा रहा है ... वैलेंटाइन के फेर में आने वाले प्रेमी भटकाव की राह में अग्रसर हो रहे है....

एक समय ऐसा था जब राधा कृष्ण , मीरा वाला प्रेम हुआ करता था जो आज के वैलेंटाइन प्रेमियों का जैसा नही होता था... आज लोग प्यार के चक्कर में बरबाद हो रहे है... हीर_रांझा, लैला_ मजनू के प्रसंगों का हवाला देने वाले हमारे आज के प्रेमी यह भूल जाते है मीरा वाला प्रेम सच्ची आत्मा से सम्बन्ध रखता था ... आज प्यार बाहरी आकर्षण की चीज बनती जा रही है....

प्यार को गिफ्ट में तोला जाने लगा है... वैलेंटाइन के प्रेम में फसने वाले कुछ युवा सफल तो कुछ असफल साबित होते है .... जो असफल हो गए तो समझ लो बरबाद हो गए... क्युकि यह प्रेम रुपी "बग" बड़ा खतरनाक है .... एक बार अगर इसकी जकड में आप आ गए तो यह फिर भविष्य में भी पीछा नही छोडेगा.... असफल लोगो के तबाह होने के कारण यह वैलेंटाइन डे घातक बन जाता है...

वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह की उद्दंडता हो रही है वह चिंतनीय ही है... अश्लील हरकते भी कई बार होती देखी जा सकती है...संपन्न तबके साथ आज का मध्यम वर्ग और अब निम्न तबका भी इसके मकड़ जाल में फसकर अपना पैसा और समय दोनों ख़राब करते जा रहे है... वैलेंटाइन की स्टाइल बदल गई है ... गुलाब गिफ्ट दिए ,पार्टी में थिरके बिना काम नही चलता .... यह मनाने के लिए आपकी जेब गर्म होनी चाहिए... यह भी कोई बात हुई क्या जहाँ प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जेब की बोली लगानी पड़ती है....?

कभी कभार तो अपने साथी के साथ घर से दूर जाकर इसको मनाने की नौबत आ जाती है... डी जे की थाप पर थिरकते रात बीत जाती है... प्यार की खुमारी में शाम ढलने का पता भी नही चलता ....आज के समय में वैलेंटाइन प्रेमियों की तादात बढ रही है .... साल दर साल ... इस बार भी प्रेम का सेंसेक्स पहले से ही कुलाचे मार रहा है....

वैलेंटाइन ने एक बड़े उत्सव का रूप ले लिया है... मॉल , गिफ्ट, आर्चीस , डिस्को थेक, मेक डोनाल्ड आज इससे चोली दामन का साथ बन गया है... अगर आप में यह सब कर सकने की सामर्थ्य नही है तो आपका प्रेमी नाराज .... बस बेटा ....प्रेम का तो दी एंड समझ लो.... वैलेंटाइन मनाना सबकी नियति बन चुका है.... आज प्यार की परिभाषा बदल गई है .... वैलेंटाइन का चस्का हमारे युवाओ में तो सर चदकर बोल रहा है , लेकिन उनका प्रेम आज आत्मिक नही होकर छणिक बन गया है... उनका प्यार पैसो में तोला जाने लगा है .... आज की युवा पीड़ी को न तो प्रेम की गहराई का अहसास है न ही वह सच्चे प्रेम को परिभाषित कर सकते है... उनके लिए प्यार मौज मस्ती का खेल बन गया है .......

Thursday, 9 February 2012

उमा में चमत्कार का अक्स देखता भाजपा हाईकमान.......





"जैसे उडी जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे"..... कुछ समय पहले भारतीय जनता पार्टी में साध्वी ने कुछ इन्ही पंक्तियों में अपनी वापसी को मीडिया के खचाखच भरे समारोह में बयां किया ......पार्टी के आला नेताओं के तमाम विरोधो के बावजूद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी उमा को पार्टी में लाने में कामयाब हो गए..... इस विरोध का असर उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी देखने को मिला जिसमे पार्टी के जेटली, स्वराज, जैसे कई बड़े नेता शामिल तक नही थे .......इन सभी की गिनती उमा के धुर विरोधियो के रूप में की जाती थी.....पन्ने टटोले तो याद कीजिये उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष प्रभात झा तक को इसकी भनक तक नही लगी... प्रभात झा का तो यह हाल था कि उमा की पार्टी में वापसी से २ घंटे पहले जब उनसे पार्टी में उमा की वापसी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा इस पर कुछ नही कहना है ॥ परन्तु २ घंटे बाद प्रभात झा और मुख्यमंत्री ने इस विषय पर गेंद केन्द्रीय नेताओं के पाले में फेकते हुए कहा जब भी कोई नेता पार्टी में आता है तो उसका स्वागत होता है...... उमा का हम स्वागत करते है ........


ठीक इसी तर्ज पर उमा भारती को टिकट देने की घोषणा जब नितिन गडकरी ने पिछले महीने की तो उन्होंने यू पी चुनाव से ठीक पहले चरखारी से उमा को टिकट देकर भाजपा में खलबली मचा दी......... खासतौर से यू पी में खुद को बड़ा नेता मानने वाले कई नेताओ का सिंहासन इस खबर के बाद खतरे में नजर आने लगा............. घर वापसी के बाद उमा को लेकर माहौल उत्तर प्रदेश भाजपा में लम्बे समय से बन रहा था लेकिन भाजपा के अन्दर एक तबका ऐसा था जो उमा को टिकट देने का विरोध कर रहा था ........दरअसल उमा की वापसी का माहौल जसवंत सिंह की भाजपा में वापसी के बाद बनना शुरू हो गया था... उस समय उमा भारती भैरो सिंह शेखावत के निधन पर जसवंत के साथ राजस्थान गई थी.....संघ ने दोनों की साथ वापसी की भूमिका तय कर ली थी लेकिन उमा विरोधी खेमा उनकी वापसी की राह में रोड़े अटकाते रहा .......मध्य प्रदेश में तो उमा को सबसे ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ता था.....यहाँ उमा विरोधी कई नेता उन्हें टिकट तो क्या पार्टी में दुबारा लेने के हिमायती नहीं दिखाई देते थे ....


जब उमा भारती पिछले साल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के मुख्यमंत्री के पिता की तेरहवी में आडवानी और राजनाथ सिंह के साथ नजर आई तो फिर उमा की पार्टी में वापसी को बल मिलने लगा ......इसके बाद पार्टी में गडकरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनका मोहन भागवत के साथ मुलाकातों का सिलसिला चला ॥ खुद भागवत ने भी पार्टी से बाहर गए नेताओं की वापसी का बयान दिया तो इसके बाद उमा की वापसी को लेकर रस्साकशी शुरू हो गई ...... लेकिन मध्य प्रदेश के भाजपा नेता खुले तौर पर उनकी वापसी पर सहमति नही देते थे क्युकि उनको मालूम था अगर उमा पार्टी में वापसी आ गई तो वह मध्य प्रदेश सरकार के लिए खतरा बन जाएँगी......


कुछ यही बात भाजपा के यू पी में बड़े नेताओ के जेहन में बनी थी ......उनकी यू पी में वापसी का सीधा मतलब प्रदेश के भाजपा नेताओ के लिए एक खतरा था ........ उमा ने राम रोटी के मुद्दे पर भाजपा से किनारा कर लिया था ...कौन भूल सकता है जब उन्होंने आज से ६ साल पहले भरे मीडिया के सामने आडवानी जैसे नेताओं को खरी खोटी सुनाई थी और पार्टी को मूल मुद्दों से भटका हुआ बताया था .....लेकिन इस दौर में उन्होंने संघ परिवार से किसी भी तरह से दूरी नही बढाई .....शायद इसी के चलते संघ लम्बे समय से उनकी पार्टी में वापसी के साथ ही टिकट देने का हिमायती था ...यही नहीं यू पी सरीखे बड़े राज्य में अगर पार्टी का आलाकमान उनको वापस लाना चाहता था तो इसका बड़ा कारण उमा का करिश्माई नेतृत्व था... साथ ही वह कल्याण सिंह के बाद भाजपा का सबसे पुराना पिछडो का चेहरा थी...........


वैसे भी उमा भारती पार्टी में कट्टर हिंदुत्व के चेहरे की रूप में जानी जाती रही है ......कौन भूल सकता है अयोध्या के दौर को जब साध्वी के भाषणों ने पार्टी में नए जोश का संचार किया था .....उमा की इसी काबिलियत को देखकर पार्टी हाई कमान ने उनको २००३ में मध्य प्रदेश में उतारा जहाँ उन्होंने दिग्विजय सिंह के १० साल के शासन का खात्मा किया ..... इसके बाद २००४ में हुबली में तिरंगा लहराने और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुचाने के कारण उनके खिलाफ वारेंट जारी हुआ और उन्होंने मध्य प्रदेश में सी ऍम पद से इस्तीफ़ा दे दिया....


वह भी एक उतार चदाव का दौर रहा जब भरी सभा में भाजपा के नेताओं को कैमरे के सामने खरी खोटी सुनाने के बाद उमा ने मध्य प्रदेश में अपनी अलग भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली..... २००८ के चुनावो में इसने ५ सीटे प्रदेश में जीती ..... उम्मीद की जा रही थी कि उमा की पार्टी बनने के बाद भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा परन्तु ऐसा नही हुआ .... इसके बाद से उमा के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे ... हर बार उन्होंने मीडिया के सामने भाजपा को खूब खरी खोटी सुनाई परन्तु कभी भी संघ को आड़े हाथो नही लिया....शायद इसी के चलते संघ में उनकी वापसी को लेकर खूब चर्चाये लम्बे समय से होती रही .........


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिव राज सिंह चौहान और उमा भारती में शुरू से छत्तीस का आकडा रहा है ......उमा की वापसी का विरोध करने वालो में उनके समर्थको का नाम भी प्रमुखता के साथ लिया जाता रहा है.... शिव के समर्थक उनकी वापसी के कतई पक्ष में नही थे इसी के चलते उनकी वापसी बार बार टलती रही... यू पी में वापसी के बाद भी शिवराज अपने बयानों में कहा करते रहे वो मध्य प्रदेश से दूर रहेंगी..... लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व के आगे शिव के समर्थको की इस बार एक नही चली......इसी के चलते पार्टी के आलाकमान के बुलावे पर शिवराज को उमा के साथ चरखारी समेत बुंदेलखंड में चुनावी सभाओ में जाना पड़ा ....


उमा की यू पी में वापसी के बाद अब सबसे ज्यादा चिंता मध्य प्रदेश में होने लगी है ..... राजनीतिक विश्लेषको का मानना है अगर उमा यू पी चुनावो के बाद मध्य प्रदेश में वापस आ गई तो शिवराज का सिंहासन खतरे में पढ़ जायेगा .....वैसे भी प्रदेश में विधान सभा चुनाव की उलटी गिनतिया शुरू होनी ही है........खुद शिवराज सिंह को बाबूलाल गौर के समय जब सिंहासन सौपा गया था तो उमा ने केन्द्रीय नेताओं के इस फैसले का खुलकर विरोध किया था.......अब उमा की यू पी में वापसी से शिवराज के समर्थको की चिंता अब बढ़ रही है ... उमा के यू पी के अखाड़े में कूदने के बाद बैखोफ होकर शासन चला रहे मुख्यमंत्री शिवराज के लिए आगे की डगर आसान नही दिख रही..... क्युकि प्रदेश में शिव के असंतुष्टो का एक बड़ा खेमा मौजूद है जो किसी भी समय उमा के पाले में जाकर शिवराज सिंह के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है.....


मध्य प्रदेश में आज भी उमा के समर्थको की कमी नही है .....पार्टी हाई कमान भले ही उनको उत्तर प्रदेश के चुनावो में आगे कर रहा है लेकिन साध्वी अपने को मध्य प्रदेश से कैसे अलग रख पायेगी अब यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है ...... उमा को यू पी में टिकट दिलाने में इस बार नितिन गडकरी और संघ की खासी अहम भूमिका रही है.... पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के मिशन २०१२ की कमान सौपी है ...यहाँ भाजपा का पूरी तरह सफाया हो चुका है...कभी उत्तर प्रदेश की पीठ पर सवार होकर पार्टी ने केंद्र की सत्ता का स्वाद चखा था... आज आलम ये है कि यहाँ पर पार्टी चौथे स्थान पर जा चुकी है .....


१६ वी लोक सभा में दिल्ली के तख़्त पर बैठने के सपने देख रही भाजपा ने उमा को "ट्रम्प कार्ड" के तौर पर इस्तेमाल करने का मन बनाया है ताकि पिछड़ी जातियों के एक बड़े वर्ग को वह अपने पाले में ले सके.... खासतौर से मध्य प्रदेश से सटे वह इलाके जो बुंदेलखंड का प्रतिनिधित्व करते है जहाँ पर अभी "बहिन जी" का पलड़ा भारी बताया जा रहा है वहां उमा को स्टार प्रचारक बनाकर भाजपा मायावती के वोट बैंक को साधने का काम कर रही है.......


उत्तर प्रदेश में अब उमा भारती राहुल गाँधी को सीधे चुनौती देते नजर आ रही है...........अपनी ललकार के दवारा उमा यू पी में मुलायम, माया, राहुल , दिग्गी राजा के सामने हुंकार भर रही है ..... अगर उत्तर प्रदेश के कुछ नेताओं का साथ उमा को मिलता तो वह पार्टी की सीटो में इस बार इजाफा कर सकती है ... लेकिन उत्तर प्रदेश में भी भाजपा गुटबाजी की बीमारी से ग्रसित है......पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही की राह अन्य नेताओं से जुदा है ......कलराज मिश्र के हाथ चुनाव समिति की कमान आने को राज्य में पार्टी के कई नेता नही पचा पा रहे है.....मुरलीमनोहर जोशी, राजनाथ सिंह जैसे नेता केंद्र की राजनीती में रमे है........... योगी आदित्यनाथ , विनय कटियार जैसे नेताओ को पार्टी भाव नहीं दे रही है... ऐसे में उमा को मुश्किलों का सामना करना होगा.....


सबको साथ लेकर चलने की एक बड़ी चुनौती उनके सामने है......उत्तर प्रदेश की जंग में उमा के लिए विनय कटियार , वरुण गाँधी और योगी आदित्यनाथ जैसे नेता निर्णायक साबित हो सकते है ..... आज भी इनका प्रदेश में अच्छा खासा जनाधार है॥ हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के रूप में ये चेहरे अपनी छाप छोड़ने में अहम् साबित हो सकते है....लेकिन अब तक इन नेताओ ने अपने को पार्टी के चुनाव प्रचार से दूर कर रखा है.....साथ में इस समय भाजपा अध्यक्ष गडकरी लम्बे समय से पार्टी का झंडा उठाये स्वयंसेवकों के बजाय जीतने वाले नए नवेले उम्मीदवारों पर दाव खेलने से नहीं चूक रहे.......ऐसे में पार्टी से नाराज चल रहे लोगो का साथ मिलना जब मुश्किल हो चला है तो उमा का करिश्मा क्या चलेगा यह कहना दूर की गोटी है....... पार्टी में इस समय सबसे बुरा हाल अगर किसी नेता का है तो वह है वरुण गाँधी ..... पार्टी ने उनकी पसंद को अनदेखा कर पीलीभीत से लगे कई इलाको में प्रत्याशियों को टिकट बांटे है........ऐसे में उमा कैसे चमत्कार कर पाएंगी यह अपने में पहेली बनता जा रहा है..............


भले ही प्रेक्षक यह कहे कि भाजपा छोड़कर चले गए नेता जब दुबारा पार्टी में आते है... चुनाव लड़ते है तो उनकी कोई पूछ परख नही होती ... साथ ही वे जनाधार पर कोई असर नही छोड़ पाते लेकिन उमा के मामले में ऐसा नही है.... वह जमीन से जुडी हुई नेता है.... अपने ओजस्वी भाषणों से वह भीड़ खींच सकती है.....कल्याण सिंह के जाने के बाद वह पार्टी में पिछडो के एक बड़े वोट बैंक को अपने साथ साध सकती है.....साथ ही उत्तर प्रदेश में बेजान लग रही भाजपा संजय जोशी और उमा के जरिये अपनी खोयी हुई जमीन बचाने का काम कर सकती है.......


उमा की वापसी के बाद अब गोविन्दाचार्य की भाजपा में वापसी की संभावनाओ को बल मिलने लगा है.... उमा के आने के बाद अब संघ गोविन्दाचार्य को पार्टी में वापस लेने की कोशिशो में लग गया है.... गडकरी कई बार उनकी वापसी को लेकर बयान देते रहे है परन्तु उमा की वापसी न हो पाने के चलते आज तक उनकी भी पार्टी में वापसी नही हो पायी....


गोविन्दाचार्य को साथ लेकर पार्टी कई काम साध सकती है ... वह अभी रामदेव के काले धन से जुड़े मसले पर वह केंद्र सरकार से लम्बी लडाई लड़ रहे है.....इस समय केंद्र सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष है .... एक के बाद एक घोटालो में केंद्र सरकार घिरती जा रही है.......... भाजपा आम जनमानस का साथ इस समय लेना चाहती है... इसी के चलते संघ में रामदेव का पीछे से साथ देने को लेकर सहमति बन रही है......साथ ही अन्ना और रामदेव को अब केंद्र सरकार के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ने के लिए आगे लाया जा रहा है जिसमे संघ को गोविन्दाचार्य सहयोग कर रहे है .... क्युकि उसे लगता है भ्रष्टाचार का मुद्दा उसे केंद्र की सवारी करा सकता है... ऐसे में संघ परिवार अपने पुराने साथियों को पार्टी में वापस लेना चाहता है ....


उमा की वापसी के बाद अब संघ परिवार गोविन्दाचार्य को अपने साथ लाने की कोशिसो में जुट गया है.....गोविन्दाचार्य को भाजपा पार्टी के "थिंक टेंक " की रीड माना जाता है......हरिद्वार के एक महंत की माने तो उमा के यू पी के अखाड़े में आने के बाद अब भाजपा में गोविन्दाचार्य की जल्द वापसी हो सकती है.....खुद संघ उमा को इसके लिए मना रहा है .....


अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा और पांच राज्यों के चुनाव परिणाम भाजपा के अनुकूल आये तो गोविन्दाचार्य की भी भाजपा में वापसी होगी ..... उमा को चरखारी से यू पी के अखाड़े में उतारकर भाजपा ने अपने इरादे एक बार फिर जता दिए है ... उत्तर प्रदेश पर गडकरी की खास नजरे है ...पार्टी हिंदुत्व की सवारी कर पिछड़ी जातियों की पीठ पर सवार होकर यू पी में अपना प्रदर्शन सुधारने की कोशिशो में लगी है...... देखना होगा उमा में चमत्कार का अक्स देख रहे भाजपा हाई कमान की उम्मीदों में वह इस बार कितना खरा उतरती है ?

Tuesday, 31 January 2012

"जिन लाहौर नही देख्या " पर जल्द आ रही है राजकुमार संतोषी की फिल्म --- असगर वजाहत









असगर वजाहत हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक और प्रोफेसर रहे है.....वह ऐ जे किदवई जनसंचार केन्द्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली के कार्यकारी निदेशक के तौर पर कार्य कर चुके है ..... उन्होंने यूरोप के कई विश्व विद्यालयो में विस्तार से जनसंचार सम्बन्धी व्याख्यान भी दिए है .........साथ ही वह लम्बे समय से लेखन , शिक्षण कार्य से भी जुड़े हुए है ....उनके ६ उपन्यास, ७ कहानी , ५ पूर्णकालिक नाटक, एक नुक्कड़ नाटक , एक यात्रा वृतान्त प्रकाशित हो चुका है....

आउटलुक नाम की चर्चित पत्रिका ने २००७ में उन्हें हिन्दी के दस सर्वश्रेष्ठ लेखको की सूची में शुमार किया..... उनकी रचनाओ के अनुवाद अनेक यूरोपीय और एशियाई भाषा में हो चुके है.... साथ ही उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है.....

७० के दशक से वह हिन्दी फिल्मो की पटकथा भी लिख रहे है..... उन्होंने सुभाष घई ,विनय शुक्ला , मुजफ्फर अली सरीखी नामचीन हस्तियों के लिए भी अपना लेखन किया है......१९७९ में उन्होंने गजल की कहानी वृत्त चित्र बनाया था और उसके बाद १९८२ -८३ में "बूँद बूँद " धारावाहिक के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखे ..... वर्तमान में वह उनके नाटक " जिन लाहौर नही देख्या "के कारण चर्चा में है ..... विभाजन की त्रासदी बयाँ करने और दिल को झकझोर देने वाले इस नाटक पर राजकुमार संतोषी फिल्म बनाने जा रहे है जो इस साल के अंत तक आने की सम्भावना है ......

३० सालो से भी अधिक समय से वह देश भर में होने वाले सेमिनारो में पटकथा लेखन के गुर सिखाते आ रहे है........ बीते दिनों वजाहत से मेरी एक मुलाकात हुई...... इस बातचीत के मुख्य अंश ----


"जिन लाहौर नही देख्या " की हर जगह चर्चा होती रहती है....... जब मै भोपाल में था तब भारत भवन में आपके इस नाटक का जादू लोगो पर सर चढ़कर बोलता था.... आज भी लोग इसे बहुत पसंद करते है..... इसको बनाने की प्रेरणा कहाँ से मिली आपको यह जानना चाहता हूँ .....?

मैंने लाहौर के ऊपर एक संस्मरण पढ़ा था ... उसमे यह प्रसंग था .... वहीँ से इसे बनाने की प्रेरणा मिली.... सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश के साथ विभाजन की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए यह नाटक बना ......

इस नाटक को देखने के लिए आज भी लोगो का भारी हुजूम उमड़ आता है ..... मैं तो खुद इसका गवाह भोपाल में रहा हूँ जिसे सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र कहा जाता है... क्या आपको इस बात की उम्मीद थी यह नाटक सफलता की ऊँची बुलंदियों को छूएगा ?

यह नाटक विभाजन की सच्ची घटना पर आधारित है.... जब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन हुआ था तो एक उम्रदराज महिला को पाकिस्तान में काफी संघर्ष करना पड़ा ॥ वही महिला मेरे इस नाटक की प्रेरणा बनी...... इस नाटक से इतनी ज्यादा उम्मीद तो नही थी लेकीन लोगो ने इसको खूब पसंद किया ..... मैंने शुरुवात में इतना जरुर सोचा था यह नाटक अच्छा है लेकिन इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नही थी मुझको ........

वर्तमान में आपका नया ताजा क्या चल रहा है ? कौन कौन से प्रोजेक्ट पर फिलहाल आप काम कर रहे है ?
नया नाटक "गाँधी और गोडसे" पूरा कर चुका हूँ..... इसके बारे में ज्ञानोदय में भी पढने को मिला होगा आपको.... दूसरा नाटक" तुलसी दास और मुगल शासक अकबर" के संबंधो पर आधारित है....

लेखन के अलावा आपके कौन कौन से शौक हैं ?
चित्रकारी के साथ साथ मुझे घूमना फिरना बहुत अच्छा लगता है .....साथ ही पेंटिंग मेरे मन को खूब भाती है.......

देखा जा रहा है आज के दौर में अच्छे पटकथा लेखक नही मिले पा रहे है ? इसके पीछे क्या कारण मानते है आप ?
आज की नई पीड़ी का पढने से कोई सरोकार नही है.......अगर आप अच्छा पढेंगे नही तो लिखेंगे कैसे ? इसलिए ज्यादा से ज्यादा पढने की आदत हमें डालनी चाहिए तभी अच्छी पटकथा हमारे सामने आएँगी.......

अच्छी पटकथा लेखन की बुनियादी शर्त क्या मानते है आप ? साथ ही जो नए लोग इस फील्ड में आना चाहते है उनके लिए किन चीजो का होना जरूरी है ?
तकनीकी लेखन में सृजनात्मकता बहुत जरुरी है .... लेकिन गौर करने लायक बात यह है कि पटकथा लेखक बनने के लिए कवि, उपन्यासकार होना जरुरी नही है....यह माना जाता है रचनात्मक प्रतिभा से सम्पन्न व्यक्ति पटकथा के फील्ड में अधिक सफल होता है.... दरअसल सच्चाई यह है कि रचनात्मक और सृजनात्मक प्रतिभा किसी भी व्यक्ति के अन्दर किसी भी रूप में हो सकती है.....हिन्दी सिनेमा में बड़ी तेजी के साथ परिवर्तन आ रहे है....यह बदलावों का नई तकनीको का दौर है..... इसका प्रभाव पटकथा लेखन पर साफ़ तौर पर पड़ता दिख रहा है.... भारतीय सिनेमा के साथ विश्व सिनेमा की जानकारी होना भी पटकथा लेखक के लिए आज के दौर में जरुरी बनती जा रही है......

Thursday, 19 January 2012

यू पी के डूबते जहाज को बचाने में जुटी भाजपा.......



दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरताहै। " यह कथन भारतीय राजनीती के सम्बन्ध में परोक्ष रूप से सही मालूम पड़ता है ....एक दौर वह था जब आजाद भारत के लगभग सभी राज्यों में मुख्यमंत्रियों का ताज ब्राहमण जाति के उम्मीदवार को मिलता था । ब्राहमण जाति के सत्ता के सर्वोच्च उतुंग शिखर पर चढ़ने के कारण सचिवालय से लेकर मंत्रीमंडल तक में उस दौर में ब्राह्मण बिरादरी का सेंसेक्स अपने उच्तम स्तर तक बना रहता था लेकिन धीरे धीरे समय बदला और यह ब्राह्मण समाज सत्ता से दूर चला गया। आज बसपा सरीखी पार्टी की "सोशल इंजीनियरिंग " की बिसात पर यही ब्राह्मण समाज दलितों के साथ हाथ मिलाकर निचले स्तर पर बैठकर राजनीती की सवारी करता नजर आ रहा है.......ऊपर की जा रही ये बातें आपको थोडी अटपटी लग रहीं हो परन्तु हम इस फंडे को बेहतर ढंग से समझ सकते है ।


यदि हम बात भारत के 80 सांसदों वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सम्बन्ध में करे तो चीजे समझ में आ जाती है। आज उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है। हालाँकि कुछ समय पहले तक बहुजन समाज के हितों की बात करने वाली बसपा ब्राह्मणों को "बेक फ़ुट" पर धकेल दिया करती थी उसके संस्थापक नेता कांशी राम कहा करते थे "तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार".....


इन परिस्थितियों को समझने से पहले कांशी राम द्वारा उस समय कही गई बात को समझना पड़ेगा..... उस दौर में उन्होंने कहा था "मै ब्राह्मणों से कह रहा हूँ जात तोड़ो और समाज जोडो लेकिन यह तबका मेरी बात नही समझ पा रहा है एक समय आयेगा जब मै इन्ही के मुह से कहलाऊंगा जात और बंधन छोड़ो और समाज को जोड़ो ".......


आज उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है .... किसी समय "चल गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर" जैसे नारों को देने वाली बहिन जी ने बीते ५ सालो में नए नारे " हाथी नही गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है" के आसरे अगर उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी बिसात को बिछाने में सफलता पायी है तो इसका कारण देश के भीतर मौजूद विभिन्न समुदायों से जुड़े करोडो लोग है जिनके जरिये विभिन्न राजनीतिक दलों ने धर्म के नाम पर वोटरों को बांटकर अपनी सत्ता को मजबूत किया...... अब आज के विकास वाले दौर में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मजहब और जात की सियासत का ग्राफ नीचे चला गया जिसके मर्म को अच्छे से पकड़कर बसपा सरीखी पार्टियों ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिये ध्वस्त कर डाला ......वह भी एक दौर था जब अपने को शिखर पर चढ़ा हुआ देखने पर ब्राह्मणों को यह नही सुहाता था कि कोई दलित उसके आस पास फटके ......आज हालत एकदम उलट हैं .....


उत्तर प्रदेश का ब्राहमण समाज उस नेत्री की छाया मे काम कर रहा है जिसने फ़ोर्ब्स पत्रिका की महिलाओ की सूची मे अपना स्थान हाल के वर्षो में ना केवल बनाया है बल्कि माया ने त्याग की मूरत कही जाने वाली कांग्रेस की "सोनिया " को भी पीछे छोड़ दिया....."एक समय आयेगा जब पत्थर भी गाना गायेगा मेरे बाग़ का मुरझाया फूल फिर से खिल खिला जाएगा" .....किसी कवि द्वारा कही गयी इस कविता मे गहरा भाव छिपा है समय बदलने के साथ सभी दल अपने को ढाल लेते है सो बसपा के साथ भी यही हुआ है उसमे नया सोशल बदलाव आ गया है.... हाल के समय में उसकी नीतिया बदल गयी है... सभी को साथ लेने का नया चलन शुरू हुआ हैजिसे सोशल इंजीनियरिंग नाम दिया गया है ....

इस फोर्मुले को लगाने मे सतीश चंद्र मिश्रा का बड़ा योगदान रहा जिनको यह अच्छी से पता था किस प्रकार "हाथी "सभी पार्टियों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है ......आज यह हाथी सभी के लिए बड़ा सर दर्द बन गया है ...इससे भी बड़ा संकट यह है उत्तर प्रदेश का ब्राहमण समाज बहिन माया की कप्तानी मे "इंडियन पोल लीग" का हर गेम खेलने को तैयार दिखता है.....


यह सवाल सबसे अधिक जिसको कचोट रहा है वह है उत्तर प्रदेश की भाजपा..... प्रदेश मे पार्टी की सेहत सही नही चल रही है..... यू पी की इस बीमारी का तोड़ निकालने मे किसी डॉक्टर को सफलता नही मिल पा रही है..... डॉक्टर के कई दल सेहत को चेक करने वहां जा चुके है लेकिन फिर भी तबियत में अपेक्षित सुधार नही आ पा रहा है ....शायद इसी के चलते डॉक्टरो के दल को भी बेरंग वापस लौटना पड़ रहा है......


बीजेपी की उत्तर प्रदेश मे डगमग हालत के चलते उसका हाई कमान भी चिंतित है.... चिंता लाजमी भी है क्युकि ५ राज्यों के विधान सभा के चुनाव होने जा रहे है ....ऐसे में बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गडकरी अभी से हाथ पैर मारने में लग गए है .....


बीते महीने प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान पूरी तरह नितिन गडकरी के हाथ सौपे जाने को विश्लेषक एक नई कड़ी का हिस्सा मान रहे है..... सूत्र बताते है कि संघ माया द्वारा जीते गए पिछले विधान सभा के चुनावो से कुछ सबक लेना चाह रहा है....लेकिन गडकरी की इस साल बिछाई गई बिसात में संघ की एक भी नहीं चल रही ... इसी के चलते इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश में कद्दावर नेताओ की एक नहीं चल पा रही है .....


गडकरी की बिसात " जिताऊ " उम्मीदवारों के रास्ते जहाँ गुजरती है वही , संघ का रास्ता उसके स्वयंसेवको और पार्टी का झंडा लम्बे समय से उठाये नेताओ के आसरे गुजरता है .......


दिल्ली मे पार्टी के एक नेता की माने तो इस बार अपने हाई टेक फोर्मुले के सहारे गडकरी माया के साथ जा मिले ब्राहमण वोट बैंक को वापस अपनी तरफ लेने की कोशिशे तेज कर रहे हैं.... पार्टी के नेताओ का मानना है कि यह ब्राहमण वोट बैंक शुरू से उसके साथ रहा है लेकिन बीते कुछ चुनावो मे यह माया मैडम के साथ जा मिला इसको फिर से अपनी ओर लाकर उत्तर प्रदेश में पार्टी की ख़राब हालत सुधर सकती है......


शायद इसी के मद्देनजर गडकरी की बिसात में जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के अध्यक्ष रहे राजनाथ एक तरफ है तो दूसरी तरफ कलराज मिश्र सरीखे "ब्राहमण " कार्ड को खेलकर उसने ब्राहमण और ठाकुर वोट को अपने पाले में लाने का नया फ़ॉर्मूला बिछाया है.....यह बताने की जरुरत किसी को नहीं कि राजनाथ और कलराज के समर्थक उत्तर प्रदेश में शुरू से एक दूसरे के आमने सामने खड़े रहते थे .......


पहली बार दोनों को साथ लेकर गडकरी ने नई व्यूह रचना इस प्रकार की है जिसके जरिये हिन्दू वोट बैंक को पार्टी अपने पाले में ला सकती है...... यही नहीं इस बार गडकरी ने जहाँ एक और प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही खेमे को भी चुनावी चौसर बिछाने में साथ लिया है तो वहीँ कल्याण सिंह की काट के तौर पर उमा भारती को "स्टार प्रचारक " बनाकर और महोबा के चरखारी से पार्टी का टिकट देकर पिछड़ी जातियों के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की गोल बंदी कर डाली है.....


इतना जरुर है इन चारो कार्ड के जरिये पहली बार गडकरी ने संघ की हिंदुत्व प्रयोगशाला के सबसे बड़े झंडाबरदार योगी आदित्यनाथ और विनय कटियार सरीखे नेता को अगर टिकट चयन से दूर रखा है तो समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के चुनावो में किस तरह संघ ने अपने को भाजपा से दूर रखा है..... यही नहीं इस बार टिकट गडकरी ने जीतने वाले उम्मीदवारों को देकर अपने इरादे जता दिए है जिससे लम्बे समय से पार्टी का झंडा उठाये हुए नेताओ की दाल नहीं गल पा रही है........ ।


पार्टी की कार्यकारिणी की बैटक मे कुछ महीने पहले हिंदुत्व के मुद्दे पर चर्चा की गयी..... उत्तर प्रदेश भाजपा की हिंदुत्व प्रयोगशाला का पहला पड़ाव रहा है जहाँ राम लहर की धुन बजाकर भाजपा ने कभी राज्य में अपनी सरकार बनाई थी...... पार्टी के नेता मानते है हिंदुत्व की आधी मे वह केन्द्र मे सत्ता मे आयी लेकिन अपने कार्यकाल मे उसने कई मुद्दों को ठंडे बस्ते मे डाल दिया जिस कारण केन्द्र में यू पी ऐ की सरकार आ गयी और बीजेपी अवसान की ओर चली गयी ......इस बार पार्टी फिर हिन्दुत्व पर वापस लोटने का मन बना रही है हालाँकि गडकरी ने इस पर सीधे कुछ भी कहने से परहेज किया है लेकिन पार्टी की चाल देखकर ऐसा लगता है कि वह अपनी हिंदुत्व की आत्मा को अलग कर नही चल सकती.....


बड़ा सवाल यह है कि वह सबको साथ लेने के किस फोर्मुले पर चलेगी ? इतिहास गवाह है केंद्र में सत्ता हथियाने के बाद पार्टी मे पिछडे नेताओ को उपेक्षित बीते कुछ समय रख दिया जाता है....जब पार्टी मे यह तय हो चुका है वह आगामी चुनाव मे अपने ओल्ड एजेंडे पर चल रही है तो ऐसे मे पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी रन भूमि बन गया है....यही वह प्रदेश है जहाँ की सांसद संख्या दिल्ली का ताज तय करती है ......यहाँ पर पास या फेल होने पर मिलने वाले नम्बर बोर्ड एक्जाम की तरह से रिजल्ट को प्रभावित करने की कैपेसिटी रखते है तभी तो माया जी यहाँ से अपने सर्वाधिक सांसद जितवाकर दिल्ली मे प्रधानमंत्री बन्ने के सपने अभी से देख रही है जिसके बारे में उन्होंने अपनी किताब "बहनजी " मे भी बताया है.....


वैसे भी पूत के पाव पालने मे ही दिखाए देते है बीजेपी भी इसको अच्छी तरह से जानती है... तभी वह आजकल बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का तोड़ निकालने मे जुटी है.......बीजेपी के अन्दर के सूत्र बताते है कि ब्राह्मणों को लुभाने की मंशा से पार्टी ने अपने चार ट्रंप कार्ड फैक दिए है जो पार्टी का जहाज उत्तर प्रदेश में बचाने की पूरी कोशिश करेंगे........


पहला कार्ड राजनाथ सिंह का है जो चुनाव प्रभारी है.... वह ख़ुद ठाकुर है ....दूसरा कार्ड राज्य मे मौजूद पार्टी प्रेजिडेंट सूर्य प्रताप शाही का है जो खुद भूमिहार जाति से है....... तीसरा कार्ड जो फेंका गया है वह है कलराज मिश्रा वह उत्तर प्रदेश में ब्राहमण बिरादरी का झंडा लम्बे उठाये है.....भाजपा का उत्तर प्रदेश में सबसे पुराना चेहरा ........ चौथा कार्ड हाल ही मे उमा भारती के रूप में फेंका गया है जिसके जरिये पार्टी पिछडो के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की जुगत में है .......


अब चारो लोगो के एक साथ चुनाव प्रचार अभियान में आने से जिनके बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा छोटे नजर आ रहे है.... पार्टी का मानना है राज्य मे ब्राहमणों की बड़ी संख्या १६ वी लोक सभा चुनाव मे उसका गणित सुधार सकती है साथ मे हिंदुत्व का मुखोटा फिर से पहनने से उसका खोया जनाधार वापस आ सकता है.......


वैसे भी ९० के दशक मे राम मन्दिर की लहर ने हिंदू वोट को उसकी ओर खीचा था जिसके बूते सेण्टर मे न केवल उसकी सीटें बढ़ी बल्कि केंद्र मे वाजपेयी की सरकार भी सही से चली थी ..............


गडकरी अपनी पार्टी की केंद्र में सत्ता में वापसी के लिए उत्तर प्रदेश पर टकटकी लगाये हुए है..... वह इस बात को जानते है पार्टी की उत्तर प्रदेश में इस बार पतली हालत होने पर उनका सपना पूरा नही हो पायेगा...... वैसे भी विन्ध्य मे भगवा लहराने से बात नही होगी...... उत्तर प्रदेश फतह के बिना दिल्ली मे सरकार की कल्पना करना मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा है.... अतः पार्टी पहले इस यू पी की चुनोती से पार पाना चाहती है.... सोलहवी लोक सभा के लिए बीजेपी अभी से कमर कस चुकी है ....


पार्टी द्वारा पिछले चुनाव मे अपने एजेंडे से भटकने के कारण संघ भी इस बार अपने को यू पी के चुनावो से दूर कर रहा है...... संघ मानता है बसपा के हाथी की बदती धमक कमल के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही है.... दलित और मुस्लिम वोट शुरू से कांग्रेस के साथ रहा है लेकिन पिछले कुछ चुनाव मे यह बसपा के साथ जा मिला.....


प्रदेश के ब्राहमण मतदाताओ के माया के साथ जाने से पार्टी की हालत ख़राब हो गयी है.... अतः गडकरी का रास्ता ब्राहमणों के वोट बैंक को बीजेपी के साथ लेने की कोशिशो मे जुटा है....... बीजेपी बीते चुनावो से इस बार सबक ले रही है..... समय समय पर उत्तर प्रदेश को लेकर मीटिंग हो रही है..... उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को लेकर गंभीर मंथन हो रहा है .... यू पी की पीठ पर जमकर नेट अभ्यास किया जा रहा है.......

अब बात बीजेपी के राजनाथ सिंह की करते है....... उनके के पास विरोधियो को राजनीती की पिच पर मौत देने का तोड़ है....... चेस के मैच पर अगर गोटी हो तो राजनाथ विरोधियो की हर चाल को पहले ही जान जाते है .......अपनी छमताओ को वह बीते कुछ वर्षो मे कर्नाटक , बिहार, हिमांचल, उत्तराखंड , गुजरात मे साबित कर चुके है ...


अब बारी उनके खुद के प्रदेश उत्तर प्रदेश की है जहाँ के वह मुख्य मंत्री भी रह चुके है ..... यह बड़ा प्रदेश है.... हालात अन्य प्रदेश से अलग है..... यहाँ पर खेलने के लिए बड़ा दिल रखना पड़ता है....... मैच टेस्ट क्रिकेट की तरह है जहाँ नेट पर जमकर पसीना बहाना पड़ता है साथ मे लंबे समय तक मैदान में टिकने की कला भी होनी चाहिए.... गेदबाज के एक्शन से पहले बोल परख ने की कला होनी चाहिए....


पार्टी की उप में हालत सही करने का जिम्मा अब राजनाथ और कलराज के कंधो मे है .....उनको अच्छा तभी कहा जा सकता है जब वह पार्टी को प्रदेश मे अच्छी सीट दिलाने में मदद करें..... २००२ के चुनाव में बीजेपी को विधान सभा मे ४०२ सीट् मे ५१ सीट ही मिल पाई..... १४६ मे उसके जमानत जब्त हो गयी इसके बाद वहां के चुनाव मे पार्टी ४ नम्बर पर आ गयी ...... उस चुनाव में बसपा को ३०.४३% वोट मिले..... समाजवादी पार्टी को ९७ सीट हासिल हुई ... वोट २५% रहा ....वही बीजेपी का १६% रहा ....इसके बाद तो पार्टी का २००७ मे ऐसा जनाजा निकला पार्टी की माली हालत खस्ता हो गयी...... ऐसे मे अपने राजनाथ , कलराज. शाही और उमा के सामने उत्तर प्रदेश की पुरानी खोयी हुई जमीन को बचाने की बड़ी चुनौती है.......


देखना होगा गडकरी की इस नयी बिसात में ये चारो कहा फिट बैठते है? वह भी ऐसे समय में जब राज्य में पार्टी के पुराने सिपहसालार संजय जोशी, विनय कटियार, योगी सरीखे चेहरे हाशिये पर है..........


अब बात उत्तर प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही की करते है.......वह लोक सभा और विधान सभा के चुनाव मे पार्टी की नैया पार नही लगा सके..... उनको प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी इसलिए सौपी गई थी कि वह बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के सामने चुनोती पेश कर सकते है लेकिन अब तक वह यह सब कर पाने मे विफल साबित हुए है......


पार्टी में इस समय उनके खिलाफ विरोध के स्वर आज भी कायम होते रहते है...... बताया जाता है कि वह पार्टी में नया जोश नही भर पाए है जिस कारण से निचले स्तर पर कार्यकर्ता अपने को असहज महसूस करते है..... कम समय मे अपने साथ ब्राहमणों का बड़ा वोट जोड़कर माया ने शाही एंड कंपनी को दिखा दिया है " यू पी हुई हमारी है अब दिल्ली की बारी है............."


अब बात हाल मे चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौपे जाने वाले नेता राजनाथ की करते है ... वह पार्टी का पुराना चेहरा है......... उनको कलराज की तरह यू पी की गहरी समझ है .... साथ में उमा और शाही की जोड़ी उत्तर प्रदेश में भाजपा की साख को बचाने का काम कर सकती है...........


इन चारो को आगे कर भाजपा उत्तर प्रदेश में समाज के हर वर्ग में अपनी उपस्थिति सामाजिक समीकरणों के जरिये बिछा रही है ........ ब्राहमण से लेकर ठाकुर , राजपूत से लेकर पिछड़ी जातियों पर डोरे डालकर माया के भावी सी ऍम बनने के सपने को धूल धूसरित करने की पूरी कोशिशो में लगी है......


गडकरी की इस बार की बिसात में अगर कलराज ,राजनाथ उमा ,शाही की चौसर बिछी है तो वही असंतुष्ट नेताओ से पार पाना भी भाजपा की बड़ी मुश्किल बनती जा रही है ....क्युकि इस चुनाव में योगी, कटियार , संजय जोशी सरीखे कई कद्दावर नेताओ की अगर एक भी नहीं चल रही है ओर उनके जैसे कई कार्यकर्ता जो पार्टी का झंडा वर्षो से उठाये है वह भी अगर इस दौर हाशिये में चले गए हो तो ऐसे में कीचड में कमल खिलने में परेशानी हो सकती है......


वैसे भी पिछले दिनों बाबू सिंह कुशवाहा के मुद्दे पर पार्टी की खासी किरकिरी हो चुकी है..... ऐसे में चुनावी डगर मुश्किल दिख रही है..... फिर भी संघ की गोद से निकले गडकरी अगर संघ से दूरी बनाकर कलराज, उमा, राजनाथ ओर शाही के जरिये पूरे उत्तर प्रदेश को साधने की कोशिश कर रहे है तो उसे उत्तर प्रदेश में भाजपा के डूबते जहाज को बचाने की अंतिम कोशिशो के तौर पर देखा जाना चाहिए..........

Monday, 16 January 2012

घुघुतिया................



विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है.... उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और नैसर्गिक सुषमा के कारण जाना जाता है ... परन्तु यहाँ के त्योहारो में भी बड़ी विविधता के दर्शन होते है ... आज भी यहाँ पर कई त्यौहार उल्लास के साथ मनाये जाते है.... इन्ही में से एक त्यौहार "घुघुतिया का है.... इसे उत्तरायणी पर्व के नाम से भी जाना जाता है...

घुघुतिया पर्व उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में धूम धाम के साथ मनाया जाता है.... यह पर्व "मकर संक्रांत " का ही एक रूप है... वैसे यह पर्व पूरे देश में अलग अलग नामो से मनाया जाता है परन्तु उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में यह घुघुतिया नाम से जाना जाता है... मकर संक्रांति मुख्य रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है परन्तु कुमाऊ अंचल में मनाये जाने वाले घुघुतिया पर्व का अपना विशेष महत्व है....

इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है ... वह दक्षिणायन से उत्तरायण में जाते है ....यह दिखाता है कि अब ठण्ड का प्रभाव कम हो रहा है ... कुमाऊ में मनाये जाने वाला घुघुतिया त्यौहार भी इसी ऋतु परिवर्तन का अहसास कराता है....कुमाऊ में इस पर्व के अवसर पर कौवो को विशेष भोग लगाया जाता है.... बच्चो में यह त्यौहार खासा लोकप्रिय है..... शहर से लेकर गावो में आज भी इसको हर्ष के साथ मनाया जाता है....

जिस दिन पंजाबी लोहड़ी मनाते है.... उस दिन कुमाऊ निवासी तत्वानी मनाते है ... यह पूस माह का आखरी दिन होता है....फिर अगला दिन "माघ " माह का पहला कार्य दिवस होता है... इस दिन सुबह उठकर नहा धोकर तिलक लगाते है और छोटे बच्चे कौवो को भोग लगाते है.... इस अवसर पर वह पकवानों की माला भी पहनते है .... यह माला संक्रांति के एक दिन पहले से तैयार की जाती है , जो अनाज और गुड से तैयार की जाती है...इसमें पूड़ी , दाड़िम फल , खजूर , डमरू ,बड़ो को गूथा जाता है.... साथ में संतरों को भी गूथा जाता है ...

बच्चे सुबह सुबह सूरज निकलने से पहले कौवो को जोर जोर से आवाज निकालकर पुकारते है... वह कहते है "काले कौवा काले बड़े पूए खाले"...पिछले ४ वर्षो से अपने घर से मैं दूर हूँ ... घुघुतिया त्यौहार को बहुत मिस कर रहा हूँ.... कल जब मकर संक्रांति की खबर देख रहा था तो अनायास ही अपने उत्तराखंड की याद सता गयी.... मन नही लग रहा था तो सुबह अपने घर संपर्क कर माता जी को फ़ोन कर डाला...उनसे विस्तार से इस पर्व के बारे मैं अपन की बात हुई...दरअसल हर त्यौहार के साथ एक ख़ुशी छिपी रहती है ..... फिर अपने परिवार के साथ किसी भी त्यौहार को मनाने का अपना अलग मजा है.....

परिवार वालो से बात करते करते मैं अपने बचपन में कही खो सा गया.... तब मैं भी सुबह जल्दी से नहा धोकर कौवो को बुलाया करता था... लेकिन इस बार उत्तराखंड में भारी बर्फ़बारी के चलते घुघुतिया के त्यौहार को अपने परिवार के साथ नही मना पाया .... दरअसल कौवो को भी भोग लगाने के पीछे कुमाऊ अंचल में कुछ खास वजह है ... इसको घुघुतिया नाम से भी विशेष कारणों से जाना जाता है... इसके तार कुमाऊ के चंद राजाओ से जुड़े बताये जाते है....

प्राचीन समय की किंदवंती के अनुसार एक बार कुमाऊ के किसी चंद राजा की कोई संतान नही हुई....वह राजा बहुत दुखी रहता था॥ पर राजा के मंत्री इस बात से बहुत खुश थे क्युकि राजा के बाद कोई उत्तराधिकारी ना होने से उनका रास्ता साफ़ था॥मंदिर में मनोती के बाद उस राजा को अचानक एक संतान प्राप्त हो गयी जिसका नाम उसने "घूघुत " रखा ... यह सब देखकर मंत्रियो की नाराजगी बद गयी क्युकि अब उनकी राह में वह काँटा बन गया...पुत्र होने के कारन वह अब राजा का भविष्य का उत्तराधिकारी हो गया॥ राजा की आँखों का वह तारा बन गया॥

घुघूत पर्वतीय इलाके के एक पक्षी को कहा जाता है... राजा का यह पुत्र भी एक पक्षी की तरह उसकी आँखों का तारा था जिसकी सेवा में सभी दिन रात लगा करते थे॥उस बच्चे के साथ कौवो का विशेष लगाव रहता था... बच्चे को जब खाना दिया जाता था तो वह कौवे उसके आस पास रहते थे और उसको दिए जाने वाले भोजन से अपनी प्यास बुझाया करते थे....

एक बार मंत्रियो ने राजा के बच्चे का अपहरण कर दिया॥वह उस मासूम बच्चे को जंगलो में फैक आये ... पर वह भी कौवे उस बच्चे की मदद करते रहे... राजा के मंत्री यह सोच रहे थे की जंगल में छोड़ आने के कारन अब उस बच्चे को कोई नही बचा पायेगा... पर वह शायद यह भूल गए कौवे हर समय बच्चे के साथ रहते थे....इधर राजमहल से बच्चे का अपहरण होने से राजा खासा परेशान हुआ ... कोई गुप्तचर यह पता नही लगा सका आखिर"घुघूत" कहाँ चला गया?

तभी राजा कि नौकरानी की निगाह एक कौवे पर पड़ी ॥ वह बार बार कही उड़ रहा था और वापस राजमहल में आकर बात रहा था... नौकरानी ने यह बात राजा को बताई वह उस कौवे का पीछा करने लगी....आखिर नौकरानी का कौवे का पीछा करना सही निकला ॥ राजा के पुत्र का पता चला गया॥वह जंगल में मिला जहाँ पर उसके चारो और कौवे बैठे थे...

राजा को जब यह बात पाताल चली कि कौवो ने उसके पुत्र की जान बचाई है तो उसने प्रति वर्ष एक उत्सव मनाने का फैसला किया जिसमे कौवो को विशेष भोग लगाने की व्यवस्था की गयी॥ इस अवसर पर विशेष पकवान बनाने कि परंपरा शुरू हुई.... साथ में गुड दिया जाने लगा.... गुड रिश्तो में मिठास घोलने का काम करता था.... तभी से यह त्यौहार कुमाऊ में घुघुतिया नाम से मनाया जाता है.... आज भी कुमाऊ अंचल में हमारी प्राचीन परम्पराए जीवित है इससे सुखद बात और क्या हो सकती है.........................................

Friday, 30 December 2011

नूतन वर्ष मंगलमय हो.....

आप सभी को नए साल की बधाइयाँ और शुभकामनाएं देनी हैं .......नए साल की कई योजनाओं में एक खास योजना है कि अब नियमित रूप से ब्लॉग पर लिखना है...साल की शुरुआत नए संकल्पों का वर्ष होता है ........ इस बार अटल प्रतिज्ञा कर ली है.....लिखने की इच्छा बहुत है लेकिन व्यस्तताओ के बावजूद समय नही निकाल पाता हूँ .... देखें, इस बार मेरी अटल प्रतिज्ञा का क्या होता है? वैसे इरादे मजबूत है ......मैं खुद बहुत दिनों से सोच रहा था कि मुझे ब्लॉग पर नियमित रूप से लिखना चाहिए.....लेकिन कुछ व्यस्तताओ और अपने रिसर्च वर्क के चलते ब्लॉग पर लिखना नहीं हो पाया ......लेकिन अब कोशिश रहेगी कि ब्लॉग पर नियमित रूप से कुछ लिखूं ।


२०१२ में आप हर्ष का नया रूप पाएंगे और बोलती कलम की धार में और पैनापन ..... छमा प्रार्थी हू कि व्यस्तताओ के चलते २०११ में कम पोस्ट अपने ब्लॉग पर लिख पाया ......


आपको एक बार फिर नूतन वर्ष २०१२ की शुभकामनाये...........आप सभी की राय की मुझे बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी....