Sunday 25 January 2009
देवी के चमत्कारों का साक्षी है इग्यार देवी का मन्दिर........
उत्तराखंड प्राचीन काल से धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल रहा है | कई ऋषि मुनियों ने जप त़प कर यहाँ की धरा को सुशोभित किया है जिसका वर्णन धर्मं ग्रंथो में भी मिलता है| यहाँ की रमणीय भूमि को भक्तजन तीर्थ मानकर चलते है और बार बार यहाँ आने की कामना करते है|यहाँ की रमणीयता , पवित्रता को वर्णित कर पाना संसार के किसी भी प्राणी के लिये सम्भव नही है | यह स्थान पूरे देश में अपनी उदारता और विशालता के लिए जाना जाता है | यही कारण है कि यहाँ कि भूमि का सपर्श पाकर भक्तजनों को आनंद मौक्तिक की प्राप्ति होती है | उत्तराखंड अपने चमत्कारों से अनादी काल से प्रसिद्ध रहा है | वेदों और पुराणों की रचना इसी इलाके में होने के कारण यह विशेष महत्व का है|महाकाव्यों और पुराणों में इसकी पवित्रता का वर्णन मिलता है | कुमाओं गडवाल मंडल की नदियों , पर्वत मालाओ, झरनों को देखने से पता चलता है की मानो पृथिवी पर कही स्वर्ग का निवास है तो वह स्थान उत्तराखंड ही है |देव भूमि की इसी महानता के चलते आज यहाँ आने वाले भक्तो की तादात साल दर साल बदती जा रही है |
उत्तराखंड का सीमान्त जनपद पिथोरागढ़कई पौराणिक स्थानों की दृष्टी से बहुत संपन्न है| यहाँ पर गंगोलीहाट महाकाली दरबार, पाताल अलोकिक गुफा , चंडिका मन्दिर, कपिलेस्वर, थल केदार जैसे कई मन्दिर मौजूद है जो इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है |यहाँ आकर एक बार विनती करने वाला भक्त जनपद में फिर से आने की कामना कर जीवन को सुखी बनाता है|
जनपद मुख्यालय से १० किलो मीटर की दूरी पर मुख्य सड़क मार्ग में माता का दरबार पड़ता है|वैसे अगर आप काठगोदाम , बरेली के रास्ते अगर पिथोरागढ़ सिटी में आ रहे है तो यह स्थान गुरना के बाद पड़ता है जहाँ पर गुरना माता का एक मन्दिर और है |इग्यार देवी माता का मन्दिर भी कई किन्दवंतियो और चमक्तारो से भरा पड़ा है |स्थानीय लोग बताते है की मन्दिर के पास के ११ गावो के पड़ने के कारण इसका नाम इग्यार देवी पड़ा |प्राचीन समय से इन गावो के प्रति माता की अनुपम कृपा दृष्टी बनी है | स्थानीय लोगो का कहना है कि प्राचीन "चन्द" वंश शासन काल में मन्दिर का निर्माण किया गया |उस समय मन्दिर का स्वरूप बहत छोटा था जिसका निर्माण गाव के लोगो द्वारा छोटे छोटे पत्थर द्वारा किया गया |प्राचीन समय से यहाँ पर पाए जाने वाले पीपल के पेड का खासा महत्त्व है |वर्त्तमान में इसी पीपल के पेड का स्पर्श पाकर अनुष्ठान करने वाले भक्त अपने को धन्य समझते है|नवरात्री के अवसरों पर और अन्य धार्मिक आयोजनों पर भक्तो की आवाजाही का सिलसिला अनरवत रूप से चलता रहता है|इससे दौरान मन्दिर में धूम धाम के साथ पूजा पाठ का आयोजन होता है जिसमे भक्त विनय पूर्वक माता कास्तुति गान करते है | जो सच्चे मन से माता का ध्यान करते है उनको अतुल्य ऐश्वर्य , धन कि प्राप्ति होती है |
तोली बांस के समीप के एक युवक"राजेंद्र भट्ट " बताते है कि यह माता का मन्दिर कई चमक्तारो से भरा पड़ा है|एक बार नवरात्री के अवसर पर मन्दिर में पूजा के साथ विशाल भंडारे का आयोजन किया गया जिसमे लोगो ने बाद चदकर भागीदारी की | पूजा खत्म होने के बाद उस दिन पुजारी के द्वारा सभी को प्रसाद दिया गया | सभी प्रसाद लेकर अपने घर कि और लौटे |तभी जब भीड़ कम हो गई तो रात में एक बाघ ने मन्दिर के भीतर प्रवेश किया | अन्दर परिक्रमा पूरी कर उसने प्रसाद ग्रहण किया और फिर वापस चले गया |तभी से मदिर के प्रति लोगो कि आस्था दूनी हो गई | इसतरह के कई चमत्कार मन्दिर के बारे में है|एक अन्य चमत्कार के अनुसार जब भक्तो पर कोई संकट आता है तो माता उस समय ग्रामीणों का पथ आलोकित कर उनको अंधकार से ज्ञान के प्रकाश के और ले जातीहै | ऐसे अनेकानेक चमत्कारों कि साक्षी इग्यार देवी माता रही है|
बहरहाल , इग्यार देवी का यह मन्दिर आज भक्तो कि अटूट आस्था का केन्द्र बनता जा रहा है |यदि राज्य की भाजपा सरकार इसकी महत्ता को ध्यान में रखकर इसकी सुविधाओ का विस्तार करे तो यह उत्तराखंड के पर्यटन मानचित्र में अपना स्थान बना सकता है | मन्दिर के पास रहने वाले ग्रामीणों को अब राज्य के पर्यटन मंत्री "प्रकाश पन्त" से इस दिशा में आशाएं है परन्तु दुर्भाग्य यह है अभी तक अपने विधान सभा में पड़ने वाले इस इलाके की तरफ़ उनका ध्यान नही जा सका है जिस कारण इग्यार देवी सरीखे स्थल आज उपेक्षा की वीणा बजा रहे है | अब देखना है , पर्यटन मंत्री के कदम कब इस इलाके में बढते है????
Tuesday 13 January 2009
आस्था और विश्वास के प्रतीक है ..... बागनाथ
हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा है | दूर दूर तक फेली हरी भरी पहाडिया बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेती है| उत्तराखंड पर्यटन के लिहाज से पूरे देश में खासा महत्व रखता है | यहाँ के पर्यटक स्थलों की ख्याति दूर दूर तक फेली है | जिस कारन साल दर साल यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है | एक बार यहाँ की वादियों में घूमा पर्यटक दुबारा घूमने की चाह लिए फिर से कामना किया करता है |
सरयू नदी के तट पर बसे बागेश्वर धाम को उत्तराखंड का काशी कहा जाता है|इस तीर्थ की महिमा का वर्णन कर पाना किसी के लिए सम्भव नही है | सरयू के तट पर इस तीर्थ पर भक्तो को मुह मागा वरदान मिल जाता है ऐसा विश्वास किया जाता है |यहाँ पर की गई स्तुति व्यर्थ नही जाती और मन वंचित कामना पूरी होती है|ऐसा प्राचीन समय से कहा जाता है| सदियों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रही इस पावन नगरी का पुराणों में भी वर्णन मिलता है |
पुराणों के अनुसार जब भोलेशंकर भगवान शिवशंकर अपनी पत्नी पार्वती के साथ यहाँ पर पधारे तो वह कोई संगम न देखने से मायूस हो गए | यहाँ पर बताते चले की तत्कालीन समय में यहाँ पर गोमती नदी बहती थी जिसके तट पर लखनऊ बसा है | संगम हेतु शिवशंकर भगवान ने वशिस्ट को आदेश दिया की वह यहाँ पर सरयू नदी को उतरे| आदेश का पालन करते हुए वशिस्ट मुनि सरयू लाने चल दिए | लेकिन ऐसा प्रसंग मिलता है की जब वह वापस लौट रहे थे तो बागेश्वर में कार्केंदेस्वर पर अचानक सरयू नदी पर अवरोध आ गया क्युकी नदी के प्रवाह मार्ग पर मार्कंडेय ऋषि का आश्रम था | मुनि का धयान भंग हो जाने से वशिस्ट शाप के डर से काफी दुखी हुए|
कहा जाता है तब वशिस्ट ने शिवशंकर भगवान का स्मरण किया और भोलेनाथ की शरण में जाकर उनसे सहायता मांगी |शंकर ने बाघ और पार्वती गाय का रूप धारण कर मार्कंडेय ऋषि के सामने उतरने का संकल्प किया |दोनों उनके सामने प्रकट हुए| बाघ और गाय के द्वंद युद्ध को देखकर मार्कंडेय ऋषि का तप भंग हो गया और वह अपना आसन छोड़कर गौ माता की रक्षा को दौडे| इसी दौरान सरयू को मार्ग मिल गया | मारकंडेश्वर की उस शिला को आज भी उन्ही के नाम से जाना जाता है| सरयू के आगे बढते मार्कंडेय ऋषि को शिवशंकर भगवान् और उनकी पत्नी पार्वती ने दर्शन दिए| मार्कंडेय ऋषि ने ही इस स्थान का नाम "व्यग्रेश्वर " रखा जो आगे चलकर बागेश्वर हुआ |
इस पावन बागेश्वर की बागनाथ नगरी की महिमा बड़ी निराली है| यहाँ पर आज व्याघ्रः अर्थात बाघ के रूप में शिवशंकर भोलेनाथ भगवान् का स्मरण किया जाता है | इस तीर्थ का वर्णन इस धारा का कोई प्राणी नही कर सकता |धार्मिक मान्यताओ के मुताबिक इस धारा पर दाह संस्कार करने से मरे व्यक्ति को सवर्गकी प्राप्ति होती है | बागनाथ की स्थापना "कत्यूर और चंद" राजाओ के शासन में हुई|ऐसा माना जाता है की चंद वंश के "रुद्रचंद" के बाद रजा "लक्ष्मी चंद" ने १६०२ में बाघ्नाथ मन्दिर जीर्णोधार कर उसको वृहत रूप प्रदान किया | छोटे शिव मन्दिर ने लक्ष्मी चंद के प्रयासों से ही विशाल रूप ग्रहण किया | यह मन्दिर स्कन्द पुराण के मानसखंड में सम्पुण निर्माण कथा और गाथाओ के समेटे हुए है|यही नही बागनाथ के विषय में बहुत सारी लोक कथाये भी प्रसिद्ध है | राजुला मालूशाही में भी बागनाथ के प्रसंगों का वर्णन मिलता है |
१४ जनवरी को पंजाब में लोहडी मनाई जाती है| पूरे देश में इसको मकर संक्रांति के नाम से जानते है | मनाने का तरीका अलग अलग होता है| उत्तराखंड में भी इस त्यौहार का खासा महत्व है | कुमाउनी इलाकों में इसको"पुसुडिया" " नाम से जानते है जिसमे "काले कौए" को पूरी बड़े खिलाने की परम्परा सदियों से चली आ रहे है| इस दिन बच्चे सुबह से अपने घरो में माला डालकर कौए को बुलाते है |"उत्तरायनी " पर्व की गाथाये भी बागनाथ के सम्बंद में विशेष महत्त्व की है | यहीं पर " भीष्म पितामह " ( जिनका नाम आपने महाभारत में सुना होगा ) ने सर सहीया पर लेटकर सूर्य के उत्तरायनी में जाने पर सरीर त्यागा था |इस लिहाज से इस स्थल का महत्त्व बहुत है|हर शिवरात्रि को यहाँ पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है | मकर संक्रांति के दिन सावन में यहाँ पर विशाल मेला लगता है जहाँ पर बड़ी संख्या में लोग नहाने को पहुचते है|
५०० वर्ष पुराना यह मन्दिर अनेक रहस्य पूण गाथाओ को अपने में समेटे हुए है | विशाल अंतराल के बाद भी आज यह उपेक्चित पड़ा है | इसके संरख्चनकी कोई व्यवस्ता न होने से यह पौराणिक धरोहर अंधेरे में पड़कर रह गई है | पुरातत्व विभाग की अक्चमता भी साफ तौर पर उजागर होती है क्युकी उसका धयान इस ओर आज तक नही जा पाया है| राज्य की भाजपा सरकार की नीतिया भी इस मामले में कम दोषी नही है | उसकी उपेक्षा के चलते आज बागनाथ सरीखे तीर्थ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहे है | इस मसले पर राज्य के पर्यटन मंत्री "प्रकाश पन्त " का कहना है "सरकार बागनाथ सरीखे तीर्थो के लिए एक कार्ययोजना को तैयार कर रही है | पन्त का मानना है की राज्य में पर्यटकों की बदती तादात को देखते हुए सरकार इसको " पर्यटन प्रदेश " के रूप में विकसित करने के लिए पूरी तरह से कटिबद्ध है"
Friday 9 January 2009
अगाध आस्था और विस्वास का केन्द्र : नीम करोली बाबा का कैंची धाम .........
हिमालय की गोद में रचा बसा उत्तराखंड वास्तव में दिव्य लोक की अनुभूति कराता है यहाँ के कण कण में देवताओ का वास है पग पग पर देवालयों की भरमार है जिस कारन एक बार यहाँ का भ्रमण करने वाला पर्यटक दूसरी बार यहाँ घूमने की चाहत लिए यहाँ जाने की कामना करने लगता है यहाँ की शांत वादियों में घूमने मात्र से सांसारिक मायाजाल में घिरे मानव की सारी कठिनायियो का निदान हो जाता है उत्तराखंड के देवालयों में आने वाले सैलानियों की तादात दिनों दिन बदतीजा रही है तीर्थाटन की दृष्टीसे ऐसे मनोहारी स्थान राज्य के आर्थिक विकास में खासेउपयोगी है हाँ यह अलग बात है सरकारी उपेक्षा के चलते राज्य में अभी कई सुंदर स्थान ऐसे है जो सरकार की आँखों से ओझल है जिस कारन कई पर्यटक स्थलों का अपेक्चित लाभ हासिल नही हो पा रहा है
देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में बाबा नीम करोली महाराज का कैची धाम है जो राज्य में आने वाले पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है यहाँ पहुचकर सुकून की प्राप्ति होती है और सारे बिगडे काम नीम करोली बाबा की किरपा से बन जाते है
सरोवर नगरी नैनीताल से २० किलोमीटर की दूरी पर अल्मोडा राजमार्ग पर हरी भरी घाटियों पर स्थित इस धाम में यू तो वर्ष भर सेलानियो का ताँता लगा रहता है लेकिन १५ जून का यहाँ पर खासा महत्त्व है इस दिन यहाँ पर विशेष भंडारे का आयोजन होता है जिसमे कुमाऊ के इलाकों के साथ साथ बहार से भी पर्यटक पहुचते है जो बाबा नीम करोली के शरण में शीश नवाते है इस दिन भारी जन सेलाब की मौजूदगी में पूजा अर्चना और अनुष्ठान के कार्यक्रम संपन्न होते है
नीम करोलीबाबा की महिमा बड़ी न्यारी है भक्तजनों की माने तो बाबा की किरपा से बिगडे काम बन जाते है यही कारन है की बाबा के द्वारा बनाये गए सारे मंदिरों में भक्तो का जन सेलाब उमड़ पड़ता है इस नीम करोली धाम को बनाने के सम्बन्ध में कई रोचक कथाये प्रचलित है बताया जाता है की १९६२ में जब बाबा ने यहाँ की भूमि पर अपने कदम रखे तो जनमानस को हतप्रभ कर दिया एक कथा के अनुसार माता सिद्धि और तुला राम के साथ बाबा किसी वहां से रानीखेत से नैनीताल जा रहे थे , तब वह अचानक कैंची धाम के पास उतर गए इसी बीच उन्होंने तुलाराम को बताया की"श्यामलाल अच्छा आदमी था " तुलाराम को यह बात अच्छी नही लगी , क्युकी श्यामलाल उनके समधी थे भाषा में "थे" के प्रयोग से वह बहुत बेरुखे हो गए और अपने गंतव्य स्थान की और चल दिए बाद में कुछ समय के बाद उनको जानकारी मिली की उनके समधी का हिरदय गति रुकने से निधन हो गया कितना दिव्य चमत्कार था यह बाबा का जो उन्होंने दूर से ही यह जान लिया की उनके समधी का अब बुलावा आ गया है
इसी प्रकार एक दूसरी चमत्कारिक घटना के अनुसार १५ जून को आयोजित विशाल भंडारे के दौरान "घी " की कमी पड़ गई बाबा जी के आदेशो पर पास में बहने वाली नधी की धारा से पानी कनस्तरों में निकालकर प्रसाद बनने के प्रयोग में लाया गया जब वह पानी प्रसाद के लिए डाला गया तो वह अपने आप "घी" में परिणित हो गया इसे चमत्कार से भक्त जन नतमस्तक ही गए तभी से उनकी आस्था और विस्वास नीम करोली बाबा के प्रति बना हुआ है जो आज दूना हो गया है
Wednesday 7 January 2009
रचनात्मकता को प्रेरित करता रहा है हिमालय ......
विद्वानों की धारणा है की आरम्भ में हिमालय छेत्र में समुद्र हिलारे लिया करता था | निश्चय ही भारतउपमहादीप में कोई ऐसा महान सृष्टी परिवर्तन अथवा प्रलय हुआ होगा जिसके फलस्वरूप यह इलाका विश्व के सर्वोच्च पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया | क्युकि भूगर्भ विशारदो का अनुमान है की तिब्बत की ओर हिमालय पर्वत में ऐसे पत्थर मिले है, जो पहले वनस्पति ओर जीव जंतु थे| लदाख ओर कश्मीर के बीच जास्कर पर्वत श्रेणी में भी इसी प्रकार के जीव नुक्नी माईत का पता चला है जो किसी समय समुद्र में रहता था|( आर्यों का आदि देश में भजन सिह ) परिवर्तन का कारण चाहे जो भी रहा हो, हिमालय जन्मना ही प्रकृति का अनुपम उपहार रहा है|
हिमालय की शुभ्रता और पावनता वैदिक काल से ही स्तुत्य एवं वन्दनीय रही है| ऋग्वेद के रचियताओ से लेकर अधुनातम काव्यकार अनेक रूपों में हिमालय का नमन करते हुए उसकी आराधना करते आ रहे है| महाभारतकार का कथन है की हिमालय के तपोवन में साधनारत वान्प्रस्ती और विरक्त ब्राह्मणों के साथ साथ गृहस्ताको को भी उत्तम लोको की प्राप्ति हुई है| सांसारिक दुख दारिद्य को विस्मित कर अब वह लोग सवर्ग स्थित स्वर्गा श्रम में देवताओ के साथ विचरण करते है| विश्व में एक मात्र यही पर्वतराज है जो तपस्वियों के आध्यात्मिक संरख्चन देने के साथ साथ भोगियों को भी अतुल सम्पदा प्रदान करता है| संस्कृत काव्याकारू में कालिदास ने अपनी हर रचना में हिमालय के सौन्दर्य का वर्णन किया है| उनके अनुसार हिमालय की शिलाये वहां विचरण करने वाले मिरगो की नाभि गरंथो से सुवासित रहती है| वहां पर विश्राम करने पर पथिको का श्रम मिट जाता है | वे शैल शिखर अतुल सौन्दर्य सम्पन्न्ह है|
संस्कृत कृतिकारों से इतर आंग्ल लेखको ने भी विभिन्न द्रिस्तियो से हिमालय के सौन्दर्य का वर्णंन किया है| अपने भोगोलिक सर्वे में शोरिंग ने कैलाश हिमालय की सुषमा का वर्णन करते हुए कहा है "इस सीमी छेत्र में मुक्ताओ के मध्य हीरो की भांति कुछ ऐसे शिखर है संसार के सर्वोच्च हिम्शिखारो में से एक है"
हिमालय के विस्तार से प्रभावित होकर सर जॉन ने अपनी पुस्तक में इसकी गरिमा का बखान करते हुए लिखा है" मैंने यूरोप के बहुत पर्वतो को देखा है लेकिन अपनी विशाल और भव्य सौन्दर्य में उनमे से कोई भी हिमालय की तुलना में नही आ सकता |
बटन ने तो इसकी तुलना स्विट्जर्लैंड से कर डाली है | वह लिखते है " प्रकृति अपनी विशालता के साथ यहाँ पर बहुत खुश रही है | यहाँ हर खुली जगह में ठीक स्विट्जर्लैंड जैसे गाव है जिनके चारो ओर देवदारू के पेड है "|
जहाँ तक हिमालय के विस्तार का सवाल है वहां के निवासी इसकी पावनता से प्रेरणा लेते है| इस पर्वतीय लोगो के स्वाभाव में जो भी निस्कलुता , निश्चलता , सरलता रही है उसे हिमालय की देन कहा जाएगा | यह देवात्मा आज भी यहाँ के निवासियों को अध्यात्म , सत्य ओर सुंदर की ओर अनु प्रेरित करता रहा है| वे जहाँ कही भी कार्यरत रहते है , नामित भाव से उसका स्मरण करते है|
बहरहाल , हिमालत की महानता और गरिमा उसके सौन्दर्यात्मक उपकरणों में निहित नही है अपितु सौम्यता , धवलता , पावनता के रूप में भी उसका गौरव है | उसकी सांस्कृतिक गरिमा ही भारतीय संस्कृति को अनेक रूपों में अनुप्राणित करती हुई उसको विश्व सभ्यता में सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है .......|
Tuesday 6 January 2009
चुनाव परिणामो ने लौटाई हसीना की मुस्कान .......
बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षो से भारी अस्थिरता का माहौल रहा | इस दरमियान वहां पर सेन्य सरकार का भी नियंत्रण रहा जिससे दोनों प्रधानमंत्री भी अछूती नही रही | आपातकाल के दौर में दोनों को सलाखों के पीछे रहना पड़ा लेकिन जनता के भारी दबाव के चलते सेन्य सरकार को चुनाव करवाने को विवस होना पड़ा जिसका परिणाम आज हम लोकतंत्र की परिणति के रूप में देख रहे है| बीता साल पड़ोस में लोकतंत्र के लिहाज से भारत के लिए शुभ रहा है| इस दौरान पाकिस्तान, नेपाल , भूटान , मालदीव में लोकतंत्र स्थापित हुआ| अब नव वर्ष की इस कड़ी में हमारे लिए बांग्लादेश लोकतंत्र की नई सौगात लेकर आया है|
भारत ने १९७१ में बांग्लादेश के मुक्ति आन्दोलन में उसको सहयोग दिया जिसकी आवश्यकता वहां की स्थानीय जनता को थी | भारत शुरू से बांग्लादेश से दोस्ती का हिमायती रहा है | बांग्लादेश के पितामह शेख मुजी बुर रहमान के रहते दोनों देशो के बीच सामान्य सम्बन्ध रहे परन्तु उसके बाद पाकिस्तान पोषित आई एसआई ने दोनों मुल्को के बीच के संबंधो में तल्खियों को बढाना शुरू कर दिया |इस मिशन को पूरा करने में खालिदा जिया ने बड़ा योगदान दिया जो पाक के कट्टरपंथियों की हम दम साथी बने रही| नए युवको को आई एस आई आतंकवाद फेलाने के लिए तैयार करने में लगी रही| यही वह दौर था जब बांग्लादेश आतंकवाद की नर्सरी के रूप में जाना जाने लगा | भारत में आतंकी घटनाओ को बढावा देने के लिए भरती किए जाने वालो नौजवानों को उकसाया जाने लगा |इस दौरान भारत बांग्लादेश की खुली सीमा घुसपैठियों की पनाहगाह बनी रही जिस कारन लाखो की संख्या में लोग भारत में घुस गए | आज यही घुसपैठिये भारत के लिए बड़ी चुनोती बन गए है क्युकिइन्होने भारत की नागरिकता और राशन कार्ड प्राप्त कर लिए है | बंगलादेश सरकार इस घुसपैट की समस्या को शुरू से नकारती रही है| शेख हसीना का पिछला कार्यकाल बताता है उनका झुकाव भारत की तरफ़ ज्यादा रहा है |अब उनके प्रधानमंत्री बननेके बाद उम्मीद है वह भारत दोनों देशो के बीच सम्बन्ध सुधारने की दिशा में अपना अहम् रोल निभाएंगी| साथ ही वह बांग्लादेश में चल रही आतंकवादी गतिविधियों और आई एस आई की अति सक्रियता पर अंकुश लगाएंगी |आने वाले दिनों में कई चुनोतियों से पार पाना हसीना के लिए आसान नही रहेगा | देखना होगा वह इन सबका मुकाबला कैसे करती है ??
चुनाव में जीत के बाद हसीना ने कहा है वह बांग्लादेश की धरती को आतंकवाद की नर्सरी बन्नेपर रोक लगाएंगी|इसको भारत के लिए शुभ संकेत मान सकते है| पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में हुजी ने दिनों दिन अपना प्रभाव बढाया है | यही नही उल्फा ने भी बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए किया | मुंबई के घावो पर अभी मरहम भी नही लगा था की अचानक आसाम में बम धमाके हो गए|इसमे भी ऐसे कयास लगाये जा रहे है की घटना की रणनीति बांग्लादेश में बनी थी| अभी तक बांग्लादेश की सरकार कट्टरपंथियों के इसारू पर नाचती रही है| बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को पाक का बड़ा समर्थक माना जाता रहा है जिस कारन भारत के साथ उसकी गाडी पटरी पर कम बैटीइस चुनाव में जिया को आशा थी की वह फिर से वापसी कर प्रधानमंत्री बनेंगी लेकिन मतदाताओ की गुगली ने " जिया को " बेक फ़ुट " ड्राइव पर ला दिया है | अभी तक यह सवाल जिया के मन को कचोट रहा है आख़िर उनकी पार्टी से कहाँ चूक हो गई जो उनकी पार्टी २६ पर सिमट गई| पर यह तो जनादेश है जनता का फेसला तो सभी को मान्य होना चाहिए|
इस चुनाव में हसीना ने जिस तरह से कट्टरपंथियों को आडेहाथो चुनाव प्रचार के दौरान लिया वह दिखाता है हसीना के पास इस बार बांग्लादेश के विकास का नया विजन है जिसके लिए उन्होंने इक बड़ी कार्ययोजना तैयार की है | जिसको अमल में लाने की तैयारी वह करने जा रही है| हसीना को यह समजना होगा मतदाताओ ने जिस विस्वास के साथ उन पर भरोसा व्यक्त किया है उन पर वह पूरा खरा उतरने की कोसिस करेंगी| मुंबई पर हमले के बाद भारत ने बांग्लादेश से आतंकियों की माग की है जिस पर बांग्लादेश की नई सरकार के रुख का सभी को इंतजार है| देखना होगा इस मसले पर ऊट कौन सी करवट बैठता है???
Monday 5 January 2009
तस्करों के निशाने पर हिमालय के वन्य जीव .......
उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल तस्करों के निशाने पर है| मोनाल उत्तरखंड का राज्य पक्षी है जो बहुत ही मनभावन है | ५००० मीटर तक की ऊँचाई पर पाया जाने वाला यह पक्षी नीले और भूरे रंग में पाया जाता है जो कीडे और मकोडों , फल फूल को अपना आहार बनाता है | निर्जन वनों में एकान्तप्रिय इस पक्षी की जान के पीछे तस्कर हाथ धोकर पड़े हुए है | इसके पंखो की सुन्दरता भी तस्करों का मन मोह लेती है| राज्य पशु कस्तूरी मृग भी सिकरियो के तांडव से अछुता नही है| अब यह केदारनाथ और फूलो की घाटी तक सीमित रह गया है| इसकी नाभि में पाई जाने वाली कस्तूरी की अंतरास्ट्रीय बाज़ार में बड़ी डिमांड है| इसका बहुत से कार्यो और दवाई बनने में उपयोग होता है| कस्तूरी के साथ हिमालय के अन्य वन्य जीव जैसे बटेर , काकड़, भालू , दाफिया, भी संकटग्रस्त जीवो की सूची में शामिल हो गए है| सूत्र बताते है इनपर तस्करों का साया हर समय मडराता रहता है लेकिन शासन और प्रशासन इन सब से बेखबर बना बैठा है | कस्तूरी मृग, मोनाल के अलावा हिम बाघ , जंगली बिल्ली, लाल लोमडी, काकड़, फकता लुप्त होने के कगार पर है| इस पर रोक लगाने के लिए कोई पहल न होने से इन वन्य जीवो के भविष्य पर संकट मडराने लगा है|इनका शिकार कर तस्कर इनकी खाल को ऊँचे दामो में विश्व बाज़ार में बेचते है जो उनकी कमाई का इक बड़ा जरिया बनती है | चीन और तिब्बत की सीमा नजदीक होने के कारण तस्करों के लिए उत्तराखंड की वाडिया सबसे जयादा मुफीद नज़र आती है |
उत्तरखंड से लगे उत्तर प्रदेश के इलाको से भी बड़े पैमाने पर वन्य जीवो की संख्या दिनों दिन घटती जा रही है|यहाँ पर भी चीतल, घुरड़, जैसे मासूम जीव बेरहमी से मार डाले जाते है| यहाँ पर पाए जाने वाले जीव यहाँ के वनों की शोभा बढाते रहे है जिस प्रकार से इनको बेरहमी से मारा जा रहा है और प्रशासन तस्करों के सामने नतमस्तक बना है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है आने वाले समय में अगर यही स्थिति रही तो पारियावरण के लिए यह खतरे की घंटी है| अभी भी जरूरत हैं सरकार चेत जाए अन्यथा वह दिन दूर नही जब इनकी दशा भी " गिद्धों" जैसे हो जायेगी| वन्य जीवो के विषय में बात करने पर उत्तराखंड के चीफ फॉरेस्ट ऑफिसर बी एस बरफाल कहते है" सरकार इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रही है| वन विभाग के सभी लोगो को इस बाबत निर्देशित किया गया है | विभिन्न स्थानों में लगी टीम अपने कामो को बखूबी अंजाम दे रही है"| अब सरकार के आला अधिकारी चाहे जो भी सफाई दे यह हकीकत है कि हिमालय के वन्य जीवो पर तस्करों की "गिद्ध दृष्टी" लगी है जिससे पार पाने में वन विभाग अब तक निकम्मा साबित हुआ है ...........|
आतंरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बना नक्सलवाद ......
खैर आज शुरुवात नए विषय से करते है॥| नक्सलवाद... | यह कोई नया विषय नही है...| नक्सलवाद किसानो मजदूरों का ऐसा संगठन है जो शासन व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहा है ......|पिचलेकुछ समय से यह आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है जिसकी आहटपी ऍम के उस बयां से लगायी जा सकती है जिसमे उन्होंने इसको देश के सामने इक बड़ी चुनोती के रूप में स्वीकार किया है...|
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल , झारखण्ड, उप, समेत १४ राज्य इस हिंसा से बुरी तरह से प्रभावित है...| इन चेत्रो में पाए जाने वाले सघन वन भी इनके सरन स्थल बनकर उभर रहे है॥|
नक्सलवाद के उदय का कारण सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक असमानता से जूडा है...\ बेरोजगारी, चेत्रियता , असंतुलित विकास भी नक्सली हिंसा को बढावा दे रहे है...| नक्सलवादी विचारधारा आतंकवाद से अलग है....| नक्सलवादी राज्य का अंग होने के बाद भी राज्य से संघर्स कर रहे है...| इनका दूरगामी लक्ष्य राजनितिक व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करना है...| इसे कारण से सत्ता की कुर्सी सँभालने वाले राजनेताओ और नौकरशाहों को यह राजनीतिक व्यवस्था के सबसे बड़े दलाल के रूप में चिन्हित करते है...| नक्सलवादी हिंसा के व्यापक रूप लेने का अन्य कारण भूमि सुधार कानूनों का सही ढंग से लागू नही हो पाना भी है...| जिस कारण अपने प्रभाव के इस्तेमाल द्वारा कई ऊँची रसूख वाले जमीदारों ने गरीबो की जमीन पर कब्जा कर दिया...| जिसके एवज में उसमे काम करने वाले किसानो का , मजदूरों का न्यूनतम मजदूरी देकर शोसन शुरू हुआ ... मौके की इसी नजाकत को भापकर लाभ नक्सलियों उठाया......| और मासूम बेरोजगारों को न्याय का झांसा देकर अपने संगटन में शामिल करना शुरू कर दिया | यही से नक्सलवाद ने पाव पसारने शुरू कर दिए.....| आज आलम यह है की इनका कोने कोने में संगटन काम कर रहा है॥|| हमारा पुलिसिया तंत्र इनके सामने तमाशबीन बना रहता है...| इसी कारण कई राज्यों में नक्सली समांतर सरकार चलाने में सफल हुए है...|
देश की सबसे बड़ी नक्सलवादी कार्यवाही १३ नवम्बर २००५ को घटित हुई जहाँ जहानाबाद जिले में माओवादियों द्वारा घेराबंदी किले की तर्ज में की गई...| जिसमे स्थानीय प्रशासन को कब्जे में लेने के बाद ३०० से अधिक केदियो को अपने साथ ले गए...| "ओपरेशन जेल ब्रेक " की इस घटना ने केन्द्र और राज्य सरकारों की मुसीबते बड़ा दी....|
वर्त्तमान में नक्सल विचारधारा हिंसक रूप ले चुकी है...| सर्वहारा साशन तंत्र की स्थापना हेतु यह हिंसक साधनों के जरिये अपना लक्षय पाना चाहते है...| सरकार की सेज सरीखी नीतियों ने भी आग में घी डालने का काम किया है...| सेज की आड़ में सभी कारपोरेट घराने अपने उद्योगों की स्थापना हेतु जहाँ बंजर भूमि की मांग कर रहे है , वहीँ राज्य सरकार भी धन् के मोह के चलते इन कंपनियों को निवेश के मौके दे रही है...| खेती योग्य भूमि जो हमारी अर्थ व्यवस्था के लिए सोने के सामान है उसे ओधयोगिक कंपनियों को भेट स्वरूप दिया जा रहा है...| जिससे किसानो की रोजी रोटी के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है॥| यहाँ पर गौर करने लायक बात यह है की सेज देश में बंजर इलाकों में भी स्थापित की जा सकती है लेकिन कंपनियों की सुविधाओ को धयान में रखकर सरकार उन पर दरियादिली दिखा रही है ....| अब किसानो के विस्थापन का सवाल है तो उसको बेदखल की हुई भूमि का विकल्प नही मिल पा रहा है ....| मुआवजों का आलम यह है की सत्ता में बैठे हमारे राज्नेताऊ का अगर कोई करीबी रिश्तेदार या उसी जाती का का कोई किसान यदि मुआवजे की मांग कर रहा है तो उसको अधिक धन दिया जा रहा है...| मंत्री महोदय का यही फार्मूला किसानो के बीच की खाई को चौडा कर रहा है.....| सरकार से पराजित मासूमो के पास बेदखली के बाद फूटी कौडी भी नही बचती है जिस कारण समाज में बड़ी असमानता उनको नक्सलवाद की ओर मोड़ रही है.....|"सलवा जुडूम" का आलम यह है आदिवासियों को हथियार देकर उन्ही के खिलाफ लड़ाया जा रहा है ओर जमीन से विस्थापन की प्रक्रिया का आगाज हो चुका है...| हाँ यह अलग बात है अपने चावल वाले बाबा जी नक्सल प्रभावित इलाकों में ज्यादा सीट जीतकर उन विपक्षियों के आरोपों को सिरे से खारिज करते है जो "सलवा जुडूम" के खिलाफ सवाल उठाते रहे है |
नक्सलवाद ने पंख पसारने शुरू कर दिए है...| नयागढ़ घटनाओ को अंजाम देना इनके दाए हाथ का खेल है.....| अब तो इस तरह की भी पुष्टखबर आ रही है की नक्सलियों के नेपाल में पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई से भी तगडे संपर्क होने लगे है...| हिंसा अराजकता को बढावा देने में जहाँ चीन इनको हथियारों की सप्लाई कर रहा है वहीँ हमारे देश के कुछ सफेदपोश नेताऊ द्वारा इनको धन देकर हिंसक गतिविधियों के लिए उकसाया जा रहा है...| जम्मू कश्मीर के कतिपय अलगाववादियों के इनसे संपर्को की चर्चा है ...| यह सब हमारी आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है...|
केन्द्र सरकार के पास इससे निपटने के लिए कोई कारगर नीति नही है ॥| हमारा पुलिसिया तंत्र भी नक्सलियों के आगे बेबस नज़र आता है॥| राज्य सरकारों में सामंजस्य की कमी का फायदा नक्सली ले रहे है...| पुलिस थानों में हमला बोल हथियार लूटकर वह जंगलो के माध्यम से इक राज्य की सीमा से दूसरे राज्य की सीमा में घुस रहे है...| दोनों राज्य सरकार और पुलिस कार्यबल की असफलता के पीछे पड़ोसी राज्य को जिम्मेदार मानता है इसी के चलते हम आज तक नक्सली हिंसा से बचने का रास्ता नही खोज पाये...| गृह मंतरालय की स्पेशल टास्क फाॅर्स बनाने का विचार अभी तक विचाराधीन है...| पुलिस के आधुनिकीकरण का सपना कब पूरा होगा इसकी हम आस ही लगा सकते है...| केन्द्र सरकार की मदद का सही इस्तेमाल पुलिसिया तंत्र द्वारा नही हो पाया है...| करप्शन रुपी भस्मासुर का घुन इस तंत्र में लगने के कारन सकारात्मक रिजल्ट नही आ पा रहा है...| नक्सल इलाकों में आबादी के अनुरूप पुलिस कर्मियों की तेनती नही हो पाई है...| कांस्टेबल से लेकर अफसरों की कई पोस्ट खाली पड़ी हुए है...| इसके बाद भी सरकार का गाव गाव थाना खोलने का फेसला समझ से परे लगता है...| हमारे यहाँ पुलिस कर्मियों का अनुपात भी अमेरिका की तुलना में बहुत कम है॥|
बहरहाल , नक्सली समस्या पर केन्द्र सरकार को सही ढंग से विचार करने की जरूरत है...| नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में रोटी, कपडा, मकान जैसी बुनियादी सुविधाऊ का अकाल है ...| विकास का पंछी यहाँ के दरख्तों से नदारत है.....| जिस कारन से रोजगार के आभाव में भुखमरी की समस्या खड़ी हुई है....| सरकार की असंतुलित विकास की नीतियों ने इनको फटे हाल छोड़ दिया है ॥| विकास के मोर्चे पर हुई भारी उपेक्षा ने इनको हिंसक साधनों का प्रयोग करने पर मजबूर कर दिया है...| इस दिशा में सरकार द्वारा कारगर प्रयास करने की जरूरत है अन्यथा यह नक्सलवाद "सुरसा के मुह" की तरह अन्य राज्यों को भी अपने चपेट में ले लेगा जहाँ पर खेती उन्नत अवस्था में है...|
कुल मिलकर नक्सलवाद वर्त्तमान में भयावह रूप ले चुका है...| बुद्ध, गाँधी की धरती आज अहिंसा का रास्ता छोड़कर हिंसा पर उतारू हो गई है...| विदेसी वास्तु का बहिस्कार करने वाले आज पूरी तरह से विदेशी विचारधाराओ पर निर्भर हो गए है....| उन्हें मार्क्स, लेनिन, माओ पिता तुल्य नज़र आने लगे है...| नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस कर्मियों की निर्संस हत्या , हथियार लूटना बतियाता है की नक्सलवादी "लक्ष्मण रेखा" लाँघ दी है...| नक्सल प्रभावित राज्यों में जनसन्ख्या के अनुरूप पुलिस कर्मियों की संख्या कम है...| पुलिस जहाँ पर संसाधनों का रोना रोती है वहीँ हमारे नेताओ में एकजुटता की कमी दिखाई देती है...| राज्य सरकारों के पास नक्सलवाद से लड़ने की नीति तो है परन्तु सही नीयत नही...| खुफिया विभाग की नाकामी भी इसके पाव पसारने को जिम्मेदार है॥
इक हालिया रिपोर्ट को आधार बनाये तो नक्सलवादियों को जंगलो में मायेन्स से करोडो की आमदनी होती है...| कई बड़ी योजनाये तो इनके दबाब के चलते लंबित पड़ी है...| नक्सलवादियों के वर्चस्व को जताने का सबसे नायाब उदाहरण झारखण्ड का चतरा जिला है जिसे नक्सलवादियों का "जाफना " कहा जा सकता है...| जहाँ पर बिना केन्द्रीय पुलिस बल की मदद लिए बिना पुलिस का पत्ता नही हिलता...| ऐसी जगहों पर नक्सलवादी पुलिस की गतिविधियों पर नज़र रखते है...| यह काफी चिंताजनक है की नक्सल प्रभावित राज्य में आज भी आम आदमी अपनी सिकायत थाने में दर्ज नही करना छटा क्युकी वहां के पुलिसिया तंत्र में ऊपर से नीचे तक करप्शन रुपी घुन लगा है.....
अतः सरकार को चाहिए वह ग्रामीण इलाकों में अधिकाधिक रोजगार का सृजन करे क्युकी आर्थिक विसमता ने ही लोगो को बन्दूक उठाने को बाध्य कर दिया है......| साथ ही सरकारी इमदाद का सही इस्तेमाल होना चाहिए | समस्या गंभीर है जिस पर पहल करनी होगी.....| देखना होगा अपने पाटिल की विदाई के बाद नए गृह मंत्री चिदंबरम इससे कैसे निपटते है???????????