Wednesday 21 July 2010

अज्ञात वास में जॉर्ज ......................

"कोई हम दम ना रहा ..... कोई सहारा ना रहा......................
हम किसी के ना रहे ........... कोई हमारा ना रहा........................
शाम तन्हाई की है ......... आएगी मंजिल कैसे.........
जो मुझे राह दिखाए....... वही तारा ना रहा ...............
क्या बताऊ मैं कहाँ............ यू ही चला जाता हू.......
जो मुझे फिर से बुला ले..........वो इशारा ना रहा........."


झुमरू
की याद जेहन में आ रही है ............. मजरूह सुल्तानपुरी और किशोर की गायकी इस गाने में चार चाँद लगा देती है........... पुराने गीतों के बारे में प्रायः कहा जाता है "ओल्ड इस गोल्ड "....... सही से पता अब चल रहा है............

७० के दशक की राजनीती के सबसे बड़े महानायक पर यह जुमला फिट बैठ रहा है........ कभी ट्रेड यूनियनों के आंदोलनों के अगवा रहे जार्ज की कहानी जीवन के अंतिम समय में ऐसी हो जायेगी , ऐसी कल्पना शायद किसी ने नही की होगी.......कभी समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाला यह शेर आज बीमार पड़ा है ....वह खुद अपने साथियो को नही पहचान पा रहा ......यह बीमारी संपत्ति विवाद में एक बड़ा अवरोध बन गयी है......


....."प्रशांत झा" मेरे सीनियर है.........अभी मध्य प्रदेश के नम्बर १ समाचार पत्र से जुड़े है........... बिहार के मुज्जफरपुर से वह ताल्लुक रखते है ......... जब भी उनसे मेरी मुलाकात होती है तो खुद के हाल चाल कम राजनीती के मैदान के हाल चाल ज्यादा लिया करता हूँ ....... एक बार हम दोनों की मुलाक़ात में मुजफ्फरपुर आ गया ...


देश की राजनीती का असली बैरोमीटर यही मुजफ्फरपुर बीते कुछ वर्षो से हुआ करता था....... पिछले लोक सभा चुनावो में यह सिलसिला टूट गया...... यहाँ से जार्ज फर्नांडीज चुनाव लड़ा करते थे..... लेकिन १५ वी लोक सभा में उनका पत्ता कट गया.....नीतीश और शरद यादव ने उनको टिकट देने से साफ़ मन कर दिया........... इसके बाद यह संसदीय इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था...

नीतीश ने तो साफ़ कह दिया था अगर जार्ज यहाँ से चुनाव लड़ते है तो वह चुनाव लड़कर अपनी भद करवाएंगे......... पर जार्ज कहाँ मानते? उन्होंने निर्दलीय चुनाव में कूदने की ठान ली....... आखिरकार इस बार उनकी नही चल पायी और उनको पराजय का मुह देखना पड़ा...........


इन परिणामो को लेकर मेरा मन शुरू से आशंकित था...... इस चुनाव के विषय में प्रशांत जी से अक्सर बात हुआ करती थी..... वह कहा करते थे जार्ज के चलते मुजफ्फरपुर में विकास कार्य तेजी से हुए है... लेकिन निर्दलीय मैदान में उतरने से उनकी राह आसान नही हो सकती ...उनका आकलन सही निकला ... जार्ज को हार का मुह देखना पड़ा....

हाँ ,यह अलग बात है इसके बाद भी शरद और नीतीश की जोड़ी ने उनको राज्य सभा के जरिये बेक दूर से इंट्री दिलवा दी .........आज वही जार्ज अस्वस्थ है...... अल्जायीमार्स से पीड़ित है........ उनकी संपत्ति को लेकर विवाद इस बार तेज हो गया है..... पर दुःख की बात यह है इस मामले को मीडिया नही उठा रहा है.... जार्ज को भी शायद इस बात का पता नही होगा , कभी भविष्य में उनकी संपत्ति पर कई लोग अपनी गिद्ध दृष्टी लगाए बैठे होंगे..... पर हो तो ऐसा ही रहा है....

जार्ज असहाय है... बीमारी भी ऐसी लगी है कि वह किसी को पहचान नही सकते ... ना बात कर पाते है...... शायद इसी का फायदा कुछ लोग उठाना चाहते है.......

कहते है पैसा ऐसी चीज है जो विवादों को खड़ा करती है.......... जार्ज मामले में भी यही हो रहा है.... उनकी पहली पत्नी लैला के आने से कहानी में नया मोड़ आ गया है.... वह अपनेबेटे को साथ लेकर आई है जो जार्ज के स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रही है...

बताया जाता है जार्ज की पहली पत्नी लैला पिछले २५ सालो से उनके साथ नही रह रही है.... वह इसी साल नए वर्ष में उनके साथ बिगड़े स्वास्थ्य का हवाला देकर चली आई..... यहाँ पर यह बताते चले जार्ज और लैला के बीच किसी तरह का तलाक भी नही हुआ है...अभी तक जार्ज की निकटता जया जेटली के साथ थी....वह इस बीमारी में भी उनकी मदद को आगे आई और उनके इलाज की व्यवस्था करने में जुटी थी पर अचानक शान और लैला के आगमन ने उनका अमन ले लिया ....

जैसे ही जार्ज को इलाज के लिए ले जाया गया वैसे ही बेटे और माँ की इंट्री मनमोहन देसाई के सेट पर हो गयी ..... लैला का आरोप है जार्ज मेरा है तो वही जया का कहना है इतने सालो से वह उनके साथ नही है लिहाजा जार्ज पर पहला हक़ उनका बनता है.... अब बड़ा सवाल यह है कि दोनों में कौन संपत्ति का असली हकदार है...?


जार्ज के पेंच को समझने ले लिए हमको ५० के दशक की तरफ रुख करना होगा.... यही वह दौर था जब उन्होंने कर्नाटक की धरती को अपने जन्म से पवित्र कर दिया था..3 जून 1930 को जान और एलिस फर्नांडीज के घर उनका जन्म मंगलौर में हुआ था.....५० के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर उन्होंने अपना परचम महाराष्ट्र की राजनीती में लहराया ... यही वह दौर था जब उनकी राजनीती परवान पर गयी ......कहा तो यहाँ तक जाता है हिंदी फिल्मो के "ट्रेजिडी किंग " दिलीप कुमार को उनसे बहुत प्रेरणा मिला करती थी अपनी फिल्मो की शूटिंग से पहले वह जार्ज कि सभाओ में जाकर अपने को तैयार करते थे... जार्ज को असली पहचान उस समय मिली जब १९६७ में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता एस के पाटिल को पराजित कर दिया ...

लोक सभा में पाटिल जैसे बड़े नेता को हराकर उन्होंने उस समय लोक सभा में दस्तक दी ... इस जीत ने जार्ज को नायक बना दिया... बाद में अपने समाजवाद का झंडा बुलंद करते हुए १९७४ में वह रेलवे संघ के मुखिया बना दिए गए...उस समय उनकी ताकत को देखकर तत्कालीन सरकार के भी होश उड़ गए थे... जार्ज जब सामने हड़ताल के नेतृत्व के लिए आगे आते थे तो उनको सुनने के लिए मजदूर कामगारों की टोली से सड़के जाम हो जाया करती थी....


आपातकाल के दौरान उन्होंने मुजफ्फरपुर की जेल से अपना नामांकन भरा और जेपीका समर्थन किया.. तब जॉर्ज के पोस्टर मुजफ्फरपुर के हर घर में लगा करते थे ... लोग उनके लिए मन्नते माँगा करते थे और कहा करते थे जेल का ताला टूटेगा हमारा जॉर्ज छूटेगा... १९७७ में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उनको उद्योग मंत्री बनाया गया...

उस समय उनके मंत्रालय में जया जेटली के पति अशोक जेटली हुआ करते थे ... उसी समय उनकी जया जेटली से पहचान हुई ...बाद में यह दोस्ती में बदल गयी और वे उनके साथ रहने लगी....हालाँकि लैला कबीर उनकी जिन्दगी में उस समय आ गयी थी जब वह मुम्बई में संघर्ष कर रहे थे..

तभी उनकी मुलाकात तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री हुमायु कबीर की पुत्री लैला कबीर से हुई जो उस समय समाज सेवा से जुडी हुई थी... लैला के पास नर्सिंग का डिप्लोमा था और वह इसी में अपना करियर बनाना चाहती थी ...बताया जाता है तब जार्ज ने उनकी मदद की...उनके साथ यही निकटता प्रेम सम्बन्ध में बदल गयी और २१ जुलाई १९७१ को वे परिणय सूत्र में बढ़ गए...


इसके बाद कुछ वर्षो तक दोनों के बीच सब कुछ ठीक चला...परन्तु जैसे ही जॉर्ज मोरार जी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाये गए तो लैला जॉर्ज से दूर होती गई... जॉर्ज अपने निजी सचिव अशोक जेटली कि पत्नी जया जेटली के ज्यादा निकट चली गई... इस प्रेम को देखते हुए लैला ने अपने को जॉर्ज से दूर कर लिया और ३१ अक्तूबर १९८४ से दोनों अलग अलग रहने लगे..इसके बाद लैला दिल्ली के पंचशील पार्क में रहने लगी वही जॉर्ज कृष्ण मेनन मार्ग में...


अब इस साल की शुरुवात से संपत्ति को लेकर विवाद गरमा गया है..इसे पाने के लिए जया और लैला जोर लगा रहे है..चुनावो के दौरान जॉर्ज द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक वह करोडो के स्वामी है जिनके पास मुम्बई , हुबली, दिल्ली में करोड़ो की संपत्ति है..यहीं नही मुम्बई के एक बैंक में उनके शेयरों की कीमत भी अब काफी हो चुकी है...


ऐसे में संपत्ति को लेकर विवाद होना तो लाजमी ही है.. जॉर्ज के समर्थको का कहना है जया ने उनको जॉर्ज की संपत्ति से दूर कर दिया है...वही वे ये भी मानते है जया ने उनका भरपूर इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया ...

सूत्र तो यहाँ तक बताते है कि जया के द्वारा जॉर्ज की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा झटक लिया गया है..२००९ में खुद जॉर्ज ने अपनी पोवार ऑफ़ अटोर्नी में इस बात का जिक्र किया है...वही जया ने लैला पर जबरन घर में घुसकर जॉर्ज के दस्तावेजो में हेर फेर के आरोप लगा भी जड़ दिए है..

यही नही जया का कहना है उन्हें जॉर्ज के गिरते स्वास्थ्य की बिलकुल भी चिंता नही है..वही लैला और उनके बेटे सुशांत कबीर का कहना है वे जॉर्ज के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है तभी वे हर पल उनके साथ है चाहे पतंजलि योगपीठ ले जाते समय कि बात हो या चाहे उनके गिरते स्वास्थ्य के समय की बात वे हर पल उनके साथ बने है॥


जया के समर्थको का कहना है संपत्ति हड़पने के आरोप लैला के द्वारा लगाये जाने सही नही है..अगर उन्हें गिरते स्वास्थ्य की थोड़ी से भी चिंता होती तो उन्हें देखने इस साल नही आती जब जॉर्ज बीमार हुए ...लैला भी कम नही है वे भी संपत्ति पर नजर लगाये बैठी है..

वैसे इस कहानी का एक पक्ष ये भी है की जया ने जॉर्ज का इस्तेमाल करना बखूबी सीखा है तभी उन्ही के कारन जॉर्ज की छवि कई बार धूमिल भी हुई है..जैसे रक्षा सौदों में दलाली से लेकर तहलका में उनके दामन पर दाग लगाने में जया की बड़ी भूमिका रही है..

यही नही जॉर्ज को मुजफ्फर पुर से लड़ने की रणनीति भी खुद जया की थी..इस हार के बाद उनको राज्य सभा में भेजने की कोई जरुरत नही थी...वैसे भी जॉर्ज कहा करते थे समाजवादी कभी राज्य सबह के रास्ते "इंट्री" नही करते..इन सब बातो के बावजूद भी उनका राज्य सभा जाना कई सवालों को जन्म देता है....

यही नही शरद नीतीश की जोड़ी का हाथ पकड़कर उनको राज्य सभा पहुचाना उनकी छवि पर ग्रहण लगाता है.. आखिर एका एक उनका मूड कैसे बदल गया ये फैसला कोई गले नही उतार पा रहा है..इसमें भी जया की भूमिका संदेहास्पद लगती है॥


बहरहाल जो भी हो आज जॉर्ज सरीखा शेर खुद दो पाटन के बीच फसकर रह गया है...जंग जारी है संपत्ति को लेकर विवाद अभी भी गरम है..जॉर्ज तो एक बहाना है॥

देखना होगा इस नूराकुश्ती में कौन विजयी होता है...? लैला कबीर के लिए राहत की बात ये है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने उनको अपने साथ रखने की अनुमति दे दी है...

वैसे इससे ज्यादा अहम् बात जॉर्ज का गिरता स्वास्थ्य है जिसकी चिंता किसी को नही है॥ लेकिन"पैसा " एक ऐसी चीज है जो झगड़ो का कारन बनती है ये कहानी जॉर्ज की नही , कहानी घर घर की है.............देखना होगा ये कहानी किस ओर जाती है?

Sunday 18 July 2010

ऑस्ट्रेलिया में अभी भी जारी है नस्लवाद.........



गौर से देखिये इन तस्वीरो को.....एक चित्र हजार शब्द कहता है...इस फोटो को देखकर आप भी अनुमान लगा सकते है....दिमाग पर ज्यादा जोर नही डालना पड़ेगा.... क्युकि ये पहेली नही है.... ये तस्वीर है जयंत डागोर की , जो खुद ही आप बीती बता रही है... बायी तरफ लिखा है ऑस्ट्रेलिया में न्याय कहाँ है तो दाई ओर जयंत जिस बोर्ड को पकडे है उस पर लिखा है आखिर कब तक ऑस्ट्रेलियन सिस्टम से लड़ा जाए....?



ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों को न्याय नही मिल रहा है.... वहां की सरकार के लाख दावो के बाद भी भारतीयों के साथ नस्लभेद जारी है... अगर सब कुछ सामान्य होता तो आज जयंत जैसे लोगो को अपनी आप बीती सुनाने के लिए भारतीय मीडिया का सहारा नही लेना पड़ता..... जयंत की पत्नी अन्ना मारिया भी ऑस्ट्रेलियन मीडिया से त्रस्त है.... खुद उनकी माने तो वहां नस्लभेद किया जाता है मीडिया को भी वैसी आज़ादी नही है जैसी भारतीय मीडिया में है ....

वैसे भारतीय मीडिया को दाद देनी चाहिए.... खासतौर से खबरिया चैनलों को जो हर घटना के पीछे हाथ धोकर पड़ जाते है.... फिर आज का समय ऐसा है कि हर व्यक्ति अपनी बात पहुचानेके लिए मीडिया का सहारा लेने लगता है.... जयंत भी यही कर रहे है....

भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया का डंका पूरे विश्व में बजने लगा है.... अप्रवासी भारतीय भी अब इसके नाम का नगाड़ा बजाने लगे है... जयंत और उनकी पत्नी अन्ना से मिलकर तो कम से कम ऐसा ही लगा... ऑस्ट्रेलियाई मीडिया जब उनकी एक सुनने को तैयार नही हुआ तो जयंत और उनकी पत्नी अन्ना भोपाल पहुचे जहाँ मीडिया के सामने अपनी व्यथा को रखा ....


जयंत डागोर 1998 से ऑस्ट्रेलियन नागरिक है...1989 में अपने जुडवा भाई आनंद की साथ मिलकर उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए वीजा आवेदन दिया तो उनके भाई आनंद का वीजा एक्सेप्ट कर लिया गया लेकिन उन्हें वीजा नही मिल पाया..जबकि दोनों भाईयो ने नई दिल्ली के पूसा केटरिंग कोलेज से होटल मेनेजमेंट की डिग्री प्राप्त की थी॥

1990में जयंत के भाई ने आनंद को भाई के नाते स्पोंसर किया लेकिन उसके बाद भी ऑस्ट्रेलियन हाई कमीशन ने उसका वीजा एक्सेप्ट नही किया... इसके बाद लगातार चार बार यही सिलसिला चलता रहा... जयंत के आवेदन को एक्सेप्ट नही किया गया... आख़िरकार एक लम्बी लडाई लड़ने की बाद जयंत1996 में परमानेंट शैफ का वीजा लेकर ऑस्ट्रेलिया चले गए...


1998 में जयंत तो ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता मिल गई..1999में जयंत मेलबर्न के एक होटल में शैफ काम करने लगे... यहाँ पर एक सीनियर शैफ माईकल उन्हें भारतीय होने के नाते परेशान करने लगा.... जिसकी शिकायत उन्होंने एच आर मैनेजर से की जिसके बाद उसे जरुरत से ज्यादा काम करवाया जाने लगा...जिसके चलते जयंत को "कार्पल टनल " की बीमारी हो गई जिसके इलाज में जयंत को एक बड़ी रकम खर्च करनी पड़ी...

इसके बाद जयंत फिर जब काम पर लौटा तो डाक्टर की सलाह को अनदेखा करते हुए माईकल उससे फिर पहले से ज्यादा काम लेने लगा...जिससे जयंत के हाथो में दर्द होने लगा...और डॉक्टर ने जयंत को फिर से अनफिट घोषित कर दिया... इसी बीच माईकल ने एक दिन जयंत के ऊपर "फ्रोजन चिकन" का बड़ा बक्सा फैक दिया जिससे जयंत के गर्दन और सीने में गंभीर चोट आ गई..

पूरी घटना की गवाह उनकी महिला सहकर्मी रेचल सीजर बनी... इस सबके बाद भी मेनेजर ने जयंत की एक नही सुनी.... कारण वह भारतीय थे...चौकाने वाली बात यह है जब यही व्यवहार माईकल ने एक ऑस्ट्रेलियन नागरिक के साथ किया तो माईकल को नौकरी से निकाल दिया गया॥ जयंत अपनी लडाई पिछले २१ सालो से लड़ रहे है लेकिन उनको कोई न्याय नही मिल पाया है...

यहाँ तक कि ऑस्ट्रेलिया के मीडिया ने भी उनकी एक नही सुनी जिसके चलते उनको अपनी बात भारतीय मीडिया से कहनी पड़ रही है... आज जयंत इतने परेशान हो गए है कि उन्हें अब अमेनेस्टी , ह्युमन राईट जैसी संस्थाओ पर भी भरोसा नही रहा...

जयंत कहते है कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ नस्लभेद जारी है..लेकिन भारतीय सरकार भी इस मामले में पूरी तरह से दोषी है क्युकि उसके मंत्रियो के पास भी उनकी समस्या को सुनने तक का समय नही है.... इसलिए वह अपनी बात भारतीय मीडिया के सामने लाना चाहते है ताकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार का असली चेहरा सभी के सामने आ सके....

Friday 9 July 2010

'डांस में रची बसी है मेरी जिंदगी : संदीप सोपारकर'


विश्व प्रसिद्ध कोरियोग्राफर और "डांस इंडिया डांस" के जज संदीप सोपारकर एक बहुत बड़ा नाम है...संदीप एक ट्रेंड जर्मन बालरूम डांस टीचर होने के साथ साथ ऐसे पहले भारतीय है जिन्होंने "बाल रूम डांस टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल "से सर्टिफिकेट प्राप्त किया है...संदीप को हर प्रकार के लातिन अमेरिकी और स्टैण्डर्ड बाल रूम डांस में विशेषज्ञता हासिल है..उन्होंने पूरे विश्व में "इम्पिरिअल सोसाइटी ऑफ़ टीचर्स ऑफ़ डांसिंग " में चौथा स्थान पाया है..संदीप के छात्रों में भारत सहित विश्व की नामी गिरामी हस्तिया शामिल है जिनमे ब्रिटनी स्पीयर्स ,मेडोना,गाय रिची, शकीरा, बियोंसे, आदि सभी ने वाल्ट्ज, चा_चा , टेंगो और पैसो जैसे डांस के लिए संदीप से डांस सीखा है..उनकी इस लिस्ट में कुवैत के शाही परिवार के सदस्य भी शामिल है जिन्हें उन्होंने क्लासिकल बाल रूम डांस सिखाया है॥
हाल ही में अन्तराष्ट्रीय डांस स्पोर्ट्स संस्था ने पहली बार बाल रूम डांस को इस प्रतियोगिता में शामिल किया है...और इसमें भारत की एकमात्र फेकल्टी संदीप है... भारतीय फिल्म कलाकारों में काजोल, सोनम कपूर, अमीषा पटेल, फरहा खान, सोनाली बेंद्रे , तब्बू, पूजा बेदी जैसी कई अभिनेत्रियों के नाम शामिल है जिनको संदीप ने डांसिंग स्टेप सिखाये है..इसके अलावा संदीप के बाल रूम स्टूडियो की देश भर में कई ब्रांचे है जो मुंबई, पुणे, सूरत जैसे शहर शामिल है...
कुछ समय पहले सालसा ट्रेनिंग की एक कार्यशाला में भाग लेने आये संदीप से मैंने बात की ... प्रस्तुत है इसके मुख्य अंश:
  • भोपाल आना इससे पहले भी हुआ है क्या? यहाँ से गहरे लगाव की कोई खास वजह ?

उत्तर - डांस क्लास के लिए भोपाल आना पहली बार हुआ है... लेकिन भोपाल मेरे लिए नया नही है...इस शहर से मेरा पुराना नाता रहा है...यहाँ पर मेरा ननिहाल रहा है ...मेरे पिता जी आर्मी में थे...ऐसे में भोपाल में उनकी पोस्टिंग होने के चलते काफी समय उनका यहाँ पर बीता... साथ ही मेरी नानी माँ का घर भी यही पर है..इसीलिए मैं खुद को भोपाली मानता हूँ।

  • भोपाल में डांस को लेकर बच्चो में कैसा क्रेज है?

उत्तर - हाँ के बच्चो में खासा क्रेज है ... यहाँ के बच्चो में डांस को लेकर मैं काफी टेलेंट देखता हूँ...यहाँ के बच्चे रियेलिटी शो में हिस्सा भी ले रहे है...वे क्लासिकल डांस को एक्सेप्ट भी कर रहे है...ये काफी बड़ी बात है ... क्युकि आम तौर पर बच्चे हिप होप या वेस्टर्न डांस करना पसंद करते है

  • संदीप क्या आपको बचपन से ही शौक था कि आप एक दिन डांसर ही बनेंगे?

उत्तर - मैंने डांस को शुरू से हौबी की तरह देखा ....कभी प्रोफेशन के तौर पर अपनाने की नही सोची। 12 साल की उम्र से डांस करना शुरू किया ... उस समय में आर्मी क्लब में डांस करता था... होटल मेनेजमेंट के कोर्स के बाद मैंने ऍम बी ऐ किया और जॉब भी की लेकिन दिल के किसी कोने में डांस ही बसा था... ऐसे में 1996 में जर्मनी में डांस की प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली..और फिर तो कोरियोग्राफी को ही बतौर प्रोफेशन अपना लिया।

  • रिएलिटी शो के बारे में तरह तरह की बातें कही जाती है.... कोई कहता है इसमें प्रतिभाओ के साथ न्याय नही होता तो कोई कहता है ये सब शो पूर्व नियोजित होते है ... आप कहाँ तक इत्तेफाक रखते है इससे ?

    उत्तर- रिएलिटी शो पूरी तरह से रियल होते है....इसमें कोई भी चीज लड़ना जजेज का डांस करने लगना पहले से तय नही होता...लेकिन रिएलिटी शो करियर बनाने के लिए उपयुक्त नही है..ये तो सिर्फ एक प्लेटफोर्म है जहाँ पर आपको खुद को एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है॥ करियर के द्वार इससे नही खुलते उसके लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है

  • बच्चो को डांस सिखाने और स्टार्स को डांस सिखाने में क्या अंतर नजर आता है आपको?

उत्तर- मेडोना, शकीरा, जैसे बड़े बड़े नाम अगर हो तो उन्हें सिखाने में मजा आता है लेकिन मुझे बच्चो को सिखाने में बहुत मजा आता है..बच्चो को सिखाना आसान होता है...वे कही से भी खुद को मोड़ लेते है...जबकि 35 साल के स्टार के साथ ये आसानी से नही हो सकता।

  • अभी तक के आपके अनुभव में सबसे बुरे और सबसे अच्छे डांसर कौन लगे?

उत्तर- सभी के साथ अलग अलग अनुभव रहे ...अभी तक के मेरे सफ़र में मनोज वाजपेयी मुझे सबसे बुरे लगे... मेरे लिए उनको डांस सिखाना सबसे बुरा लगा... मेरे लिए उनको डांस सिखाना काफी कठिन था...वही मल्लिका शेरावत काफी बेहतरीन डांसर है लेकिन उनकी इमेज सिर्फ एक सेक्स पर्सनालिटी की बन गयी है...डांस मामले में उनसे बेहतर आज तक उन्हें कोई नही लगा..वे हर स्टेप को बहुत जल्दी फोलो करती है।

  • " काईट्स " आसमान में उडी लेकिन कुछ दिनों बाद बॉक्स ऑफिस में औधे मुह गिर गयी...आपके साथ कैसे रहे इसके अनुभव?

उत्तर- काइट्स मूवी फ्लॉप रही... लेकिन इस मूवी में मेरे द्वारा कोरियोग्राफ किये गए ऋतिक रोशन के डांस को ख़ासा सराहा गया॥ ऋतिक को "सालसा" आता था...इसलिए बाल रूम डांस सिखाने में मुझे उसके साथ ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ी॥ उन्हें सिर्फ एक बार स्टेप करके दिखाना पड़ता था..वही कंगना ने तो डांस में वो कर दिखाया जो मैंने पहले कभी सोचा भी नही था... वो बहुत अच्छा डांस करती है ...बल्कि मुझको तो लगता है उन्हें बोलीवुड में एक डांस पर्सनालिटी की तरह से दिखना चाहिए ....अब वे अपनी पागलपन वाली इमेज से बहार आया जाए तो बेहतर रहेगा।

  • आने वाले समय में आपकी कौन कौन सी मूवी आ रही है...?

उत्तर- मेरी जल्द ही "साथ खून माफ़" आने वाली है...जिसमे मैंने प्रियंका चोपड़ा को एक डांस के लिए कोरियोग्राफ किया है...इस फिल्म में प्रियंका के सात पति होते है ... जिनका वो एक एक करके क़त्ल कर देती है..शायद इसी के चलते फिल्म का नाम सात खून माफ़ रखा गया है।

  • अंतिम सवाल संदीप , कभी ऐसा लगा कोरियोग्राफी का काम करते करते थकान हो गयी अब मुझको एक्टिंग के फील्ड में उतर जाना चाहिए?

उत्तर- एक्टिंग फील्ड ... ना बाबा ना... मेरी लिए डांस कोरियोग्राफी ही बेहतर है ...अभी एक्टिंग के फील्ड में आने की दूर दूर तक कोई संभावना नही है....... मेरी जिन्दगी डांस में ही रची बसी है।

Monday 5 July 2010

वोट बनाम विकास ..........


बिहार में इस साल के अंत में विधान सभा चुनाव होने है ... लेकिन राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गयी है और चुनावी गहमागहमी का पारा भी चदाहुआ है॥ राजनीतिक पार्टिया वोट बैंक की रणनीति बनाने में जुट गयी है ... बिहार में वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा दलितों और मुसलमानों का है ... कांग्रेस और राजद सरीखी पार्टिया तो अपने को इनका मसीहा बताने से किसी तरह का गुरेज नही करती....और राजद तो सालो दर साल इन्ही के दम पर सत्ता का स्वाद चखते रही है..

भले ही उसके राज में दलितों की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ हो...जदयू के नेता नीतीश कुमार की भी अपनी छवि दलित नेता के रूप में रही है..और मुस्लिम वोट बैंक पर इनकी भी नजर रही है...तभी तो नरेन्द्र मोदी के एक विज्ञापन में अपनी फोटो छपने से नीतीश कुमार इतने खफा हो गए कि आननफानन में गुजरात सरकार द्वारा कोसी पीडितो को दी गयी मदद को वापस कर दिया...


लेकिन सवाल इस बात का नही कि क्या गुजरात सरकार द्वारा दी गयी मदद कि राशी नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत थी या गुजरात की जनता की ॥ यदि नीतीश कुमार ने इस बात का विचार किया होता तो कोई और तस्वीर होती... लेकिन मामला वोट का है...


अगर बात मोदी की की जाए तो वे कहते है उन्हें वोट की राजनीती में कोई रूचि नही है वे तो सिर्फ और सिर्फ विकास की राजनीती करना चाहते है... और पटना के अधिवेशन में उन्होंने नीतीश कुमार को भी विकास की राजनीती करने की समझाईश दी ... लेकिन मोदी के लिए रास्ता इतना आसान नही है ...

कांग्रेस और अन्य पार्टिया गोधरा कांड को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ रही...भले ही कांग्रेस के खुद के दामन पर चौरासी के दंगे और भोपाल गैस त्रासदी का काला सच हो...


इन दिनों बिहार में चुनाव प्रचार को लेकर भी नरेन्द्र मोदी निशाने पर है... बीजेपी और जद यू में अभी उहा पोह की स्थिति बनी हुई है कि नरेन्द्र मोदी बिहार के आगामी चुनावो में प्रचार करेंगे या नही..राजनीती में इस तरह के सियासी दाव खूब चलते है... क्युकि हिन्दुस्तान में जातीय राजनीती का बोल बाला रहा है..तभी तो दलितों पर राजनीती कर कोई सत्ता हथियाना चाहता है तो कोई रीजनल आधार पर प्रदेश को बाटने की कोशिश कर "हीरो" बनता है... और जनता भी ऐसे लोगो को झांसे में आकर चुन लेती है॥


जनता भ्रम में जीती है .... उसे हकीकत से रूबरू होने नही दिया जाता ... हिंदी चीनी भाई भाई का नारा यहाँ बुलंद किया जाता है और वह चीन देश पर हमला कर देता है... एंडरसन को देश से बाहर इस तरह छोड़ा जाता है जैसे घर में आये अतिथि छोड़ने का दस्तूर हमारे देश में है ... जनता भ्रम में है ॥ अपने हित में देश बेचने का सौदा भी अगर हो जाए तो कोई परहेज नही...


आज देश में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है....कृषि मंत्री शरद पवार कहते है मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ... जय राम रमेश चीन में जाकर देश के खिलाफ बयान देकर चले आते है और प्रधान मंत्री इस पर अपनी जिम्मेदारी लेते है... लेकिन वे कैसी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे है ॥

आम आदमी की जानकारी से ये भी दूर है... आये दिन महंगाई बद रही है.... और सरकार कहती है महंगाई को कम करने की कोशिश की जा रहीहै....मुह का निवाला क्या अब तो उजियारे में रहना भी दूभर हो जाएगा क्युकि केरोसिन के दामो में भी वृद्धि का मन सरकार ने बना लिया है...

शायद प्रधान मंत्री की यही जिम्मेदारी है और राहुल गाँधी दलित हितों की बातें करते नही थकते ..जिस देश में प्रति व्यक्ति आय २० रुपये हो उसका क्या होगा सोचा जा सकता है..राजनीती का ऊट किस करवट बैठेगा ये कह पाना मुश्किल है..राजनीती का खेल केवल मोहरों से नही मुद्दों से भी खेला जाता है और इसमें कितने मोहरे इस्तेमाल में आयेंगे यह भी कह पाना मुश्किल है...

राजनीती के इस खेल में सरकार माहिर है... वोट और विकास का एक चेहरा नरेन्द्र मोदी का है...जहां महाराष्ट्र में विदर्भ और बुंदेलखंड के किसान भू जल के खाली होते भंडार के कारन खेती में हो रहे घाटे से ना उबर पाने की स्थिति में है और आत्महत्या कर रहे है ...

वही देश के कई इलाको में पानी की बड़ी समस्या बनी हुई है..... इन सारी गंभीर चुनौतियों का सामना गुजरात कर रहा है इस मोर्चे पर अन्य राज्यों को उसने करार जवाब दिया है ॥

वहां मोदी की सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए सरकार और जन भागीदारी का अनूठा मॉडल पेश किया है...२००४ में गुजरात में २२५ तहसीलों में से ११२ में भू जल स्तर गंभीर स्थिति में था लेकिन आज की स्थिति में ११२ में से ६० तहसीलों में जल स्तर सामान्य स्थिति में पहुच गया है ... ये नरेन्द्र मोदी की राजनीती का एक मॉडल है जिसका जवाब "विकास " है...



जहाँ २००९ में देश की कृषि विकास दर ३ फीसदी थी वही गुजरात में ये ९.०६ प्रतिशत रही ....गुजरात में पिछले दस सालो में १५ फीसदी कृषि भूमि का इजाफा हुआ है॥ गुजरात में कृषि उत्पादन १८००० करोड़ रुपये से बढ़कर ४९००० करोड़ रुपये हो चूका है...

वही देश के अन्य राज्यों में किसानो की स्थिति दयनीय बनी हुई है...जहाँ कपास का दुनिया भर में उत्पादन ७८७ किलो प्रति हेक्टेयर है वही गुजरात में ७९८ किलो प्रति हेक्टेयर है... नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को विकास की एक नयी दिशा दी है यह कहने में किसी तरह का कोई परहेज नही होना चाहिए... तभी तो आज की तिथि में गुजरात के किसान मालामाल है ...


उनके कपास की धूम चीन तक मची हुई है वही अन्य राज्यों में सरकारे कहती है कपास की खेती घाटे का सौदा बन चुकी है....



बात विकास और राजनीती की चली है तो मुलायम सिंह यादव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है....मुलायम समाजवाद को तरजीह देते है और बातें करते है फ़िल्मी कलाकारों और अपने परिवार वालो की... महिला आरक्षण विधेयक की बात उठी तो मुलायम ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया...

लेकिन फ़ैजाबाद में चुनाव लड़वाने के लिए अपनी डिम्पल यादव का बखूबी इस्तेमाल किया... इस मौके की राजनीती में उन्हें उस किसी चीज से गुरेज नही जो चुनाव जीतू हो... दरअसल तस्वीर पूरे देश की यही है... राजनेता केवल वोटरों को देखते है... आम आदमी से उनका कोई सरोकार नही है...

जीतने के बाद उनका न तो विकास से नाता है और ना ही जनता से.... लेकिन अब बिहार में ये देखने की बात होगी जनता विकास चाहती है या वोट खरीदने वालो की फरोख्त में शामिल होती है... यह तो तय है विकास देश की तस्वीर बदलेगा और वोटो की राजनीती देश को गर्त में धकेलेगी...
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