महाराष्ट्र की राजनीती को अगर करीब से समझने का कभी मौका आपको मिला होगा तो कांग्रेस के बाद शिवसेना का गढ़ यहाँ की राजनीती एक दौर में हुआ करती थी....इसे राम लहर में सवार होने की धुन कहे या सियासी बिसात के आसरे "आमची मुम्बई" के नारे देकर वोट लेने का नायाबफ़ॉर्मूला ....शिवसेना ने उस दौर में लोगो के बीच जाकर अपनी पैठ को जिस तरीके से मजबूत किया इसने कांग्रेस के सामने पहली बार चुनौती पेश की और महाराष्ट्र की राजनीती में सीधे दखल देकर भाजपा के साथ पहली बार गठबंधन सरकार बनाकर कांग्रेसियों के होश फाख्ता कर दिए थे.......
मराठी मानुष के जिस मुद्दे के आसरे शिव सेना ने उस दौर में बिसात बिछाई थी बहुत कम लोग शायद ये बातें जानते है उस दौर में बाला साहब ठाकरे के साथ मिलकर मनोहर जोशी ने शिवसेना का राज्य में मजबूत आधार तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ..... परन्तु आज वही मनोहर जोशी पार्टी में हाशिये में है...... मनोहर जोशी ने अपने समय में ना केवल महाराष्ट्र की राजनीती में अपना एक ऊँचा मुकाम बनाया बल्कि शिवसेना का वोट बैंक बढाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.......पार्टी की भलाई के लिये उन्होंने कभी किसी पद की चाह नहीं रखी ... हाँ, ये अलग बात है पार्टी ने उन्हें जो भी काम सौपा उसे उन्होंने वफादारी के साथ पूरा किया......
२ दिसम्बर १९३७ को महाराष्ट्र के एक मध्यम वर्गीय ब्रह्मण परिवार में जन्मे जोशी के राजनीतिक कैरियर की शुरुवात आपातकाल के दौर में हुई॥ उस दौर में मुंबई के मेयर की कमान उनके हाथो में रही......१९९० में शिवसेना के टिकट पर उन्होंने पहली बार विधान सभा का चुनाव जीता ...९० के दशक में ही भाजपा के साथ मिलकर जब शिव सेना ने राज्य में पहली बार गठबंधन सरकार बनाई तो मनोहर गजानन जोशी को राज्य के १५ वे मुख्यमंत्री की कमान मिली......इसी दौर में छगन भुजबल ने शिव सेना को अलविदा कहा था और यही से जोशी का नया सफ़र शुरू हो गया ......
1999 में बाला साहब ठाकरे ने उन्हें मध्य मुंबई से चुनाव लड़ाया जहाँ से वह भारी मतों से विजयी हुए ....... इसके बाद उन्होंने शिव सेना के कद को राष्ट्रीय राजनीती में बढाया......यही वह दौर था जब जोशी को लोक सभा अध्यक्ष के पद पर बैठाया गया ..... उस दौर की यादें आज भी जेहन में बनी है ...... मनोहर के इस कार्यकाल ने लोकसभा के इतिहास में एक नयी इबादत लिख दी...... अपनी समझ बूझ से उन्होंने जिस अंदाज में लोक सभा चलायी उसकी आज भी सभी पार्टियों के नेता तारीफ किया करते थे ......
२००४ में मनोहर को पार्टी ने केंद्र में भारी ओद्योगिक मंत्री की जिम्मेदारी से नवाजा जिसे उन्होंने बड़ी शालीनता के साथ निभाया ....... लेकिन इसके बाद मनोहर के सितारे गर्दिश में चले गए... २००४ में मनोहर को कांग्रेस के एकनाथ गायकवाड के हाथो मुह की खानी पड़ी ..... इसके बाद पार्टी ने २००६ में उनको राज्य सभा में बेक डोर से संसद में इंट्री दिलवा दी.....
बाला साहब ठाकरे के राजनीती से रिटायरमेंट के बाद मनोहर जोशी का राजनीतिक सिंहासन डोलने लगा...... आज हालत ये है मनोहर अपनी पार्टी में बेगाने हो चले है... पार्टी में उनकी कोई पूछ परख नहीं हो रही है...... दरअसल जब तक शिव सेना की कमान बाला साहब ठाकरे के हाथो में थी तब तक शिवसेना में मनोहर जोशी के चर्चे जोर शोर के साथ हुआ करते थे.....
शिवसेना के कई कार्यकर्ता जो इस समय मनोहर के समर्थक है वो बताते है उस दौर में अगर कोई काम निकालना होता था तो कार्यकर्ता सीधे मनोहर को रिपोर्ट करते थे ... मनोहर को रिपोर्ट करने का सीधा मतलब उस दौर में ये होता था आपका काम किसी भी तरह हो जायेगा ... राज्य की राजनीती से केंद्र की राजनीती में पटके जाने के बाद भी उन्होंने जिस शालीनता के साथ केन्द्रीय मंत्री का दायित्व निभाया उसने सभी को उनका कायल कर दिया ...
आज हालत एक दम अलग हो गए है......शिवसेना की राजनीती पहले "मातोश्री" से तय हुआ करती थी..... बाला साहब ठाकरे के वीटो के कारन कोई उनके द्वारा लिये गए फैसले को चुनोती नहीं दे सकता था... आज आलम ये है शिव सेना दो गुटों में बट चुकी है॥ एक मनसे है जिसकी कमान राज ठाकरे के हाथो में है जो कभी शिवसेना के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रमुख हुआ करते थे.....बाला साहब की शिव सेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथो में है जो पार्टी को अपने इशारो पर चला रहे है॥ ऐसे विषम हालातो में कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है...
बाला साहब के समय में पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों पर मनोहर की राय को कभी अनदेखा नहीं किया जाता था लेकिन आज मनोहर को उद्धव भाव तक देना पसंद नहीं करते॥ पार्टी में उन्होंने अपना नियंत्रण इस कदर स्थापित कर लिया है वह महत्वपूर्ण फैसलों पर अपनी मित्र मंडली से सलाह लेना ज्यादा पसंद करते है.....ऐसे में मनोहर जोशी के भावी भविष्य को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाये अभी से शुरू होने लगी है..... विषम हालातो के मद्देनजर अभी मनोहर कोई बड़ा फैसला लेने से परहेज कर रहे है...... लेकिन समय आने पर मनोहर अपने पत्ते जरुर खोल सकते है ....
वैसे बताते चले शिव सेना से इतर उनकी अन्य दलों के नेताओ से भी काफी मधुर संबध रहे है ... राकपा में शरद पवार, विलास राव देशमुख ओर प्रफुल्ल पटेल जैसे नेता भी उनके बेहद करीबियों में शामिल है.... इसके मद्देनजर अगर वह शिव सेना से इतर किसी अन्य पार्टी में जाने की सोचे तो उनके पास सभी जगहों से बेहतर विकल्प मौजूद है......
वैसे भी २४ साल मराठी अस्मिता के आसरे वोटर को लुभाने की कला में माहिर इस "ब्राह्मण कार्ड " को कोई भी पार्टी आगे करने से नहीं डरेगी........ वैसे भी राजनीती संभावनाओ का खेल है ..... जो भी हो फिलहाल शिव सेना में मनोहर के सितारे बुलंदियों पर नहीं है .....लेकिन भावी राजनीती का रास्ता जोशी को अब खुद तय करना है..... अगर अपनी पार्टी में उनकी पूछ परख कम हो रही हैतो इसका असर उनकी भावी राजनीती में पड़ना तय है.....
महाराष्ट्र के पिछले विधान सभा में भी देखने में आया था उद्धव ने उनको वो सम्मान नहीं दिया जो सम्मान बाला साहब ठाकरे दिया करते थे.....ऐसे में वो उद्धव से दूरी बनाये रखे थे लेकिन ये दूरिया कब तक बनी रहेगी यह अब बड़ा सवाल बन गया है.... दूरियों को पाटना भी जरुरी है ... आमतौर पर बेहद शांत, शालीन , ईमानदार रहने वाले मनोहर जोशी को अब आगे का रास्ता खुद तय करना है..... वैसे यकीन जानिये फिलहाल महाराष्ट्र में शिवसेना में उनकी राह में कई कटीले शूल है जिनसे पार पाने की एक बड़ी चुनोती इस समय जोशी के पास है.........देखना होगा २४ साल पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरे जोशी इस बार की परीक्षा में कैसा प्रदर्शन करते है?