Saturday 27 February 2010

कुमाऊ की खड़ी होली........2

कैले बाधी चीर, हो रघुनन्दन राजा कैले बाधी.....
गणपति बाधी चीर, हो रघुनन्दन राजा कैले बाधी ...
ब्रह्मा , विष्णु बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा कैले बाधी....
शिवशंकर बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा कैले बाधी...
रामिचंद बाधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा कैले बाधनी ...
लछिमन बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजाकैले बाधनी...
श्री कृष्ण बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा कैले बाधनी ॥
बली भद्र बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा... कैले बाधनी चीर ॥
नव दुर्गा बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा.... कैले बाधनी चीर ॥
भोलेनाथ बाधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा कैले बाधनी चीर...
ईस्ट देव बाधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा कैले बाधनी चीर...
सबे नारी छिरकत गुलाल हो रघुनन्दन राजा कैले बाधनी चीर ...
( रंग पड़ने के दिन से पहाड़ो में चीर के पेड़ को एक स्थान पर लगाया जाता है उस पर रंग बिरंगे कपडे बाधकर रंग चदा दिया जाता है... गावो में आज भी यह परंपरा रही है... देर रात को सभी यह खड़ी होली के गीत गाते है... इन्ही गीतों को आपके सामने रख रहा हूँ... कुमाऊ से अपना गहरा नाता रहा है ... पिछली बार मेरे बड़े भैया दीपू दादा ने कहा था तुम्हारे ब्लॉग में पहाड़ो की खड़ी होली पड़ने को नही मिली.... इस बार उनको भी मैंने निराश नही करने का मन बनाया है... कल से बोलती कलम में धूम धाम से खड़ी होली चल रही है...)

तुम सिद्ध करो महाराज , होलीं के दिन में ... तुम सिद्धि....
तुम विघ्न हरो महाराज, होलीं के दिन में ... तुम विघ्न...
गणपति गौरी महेश मनाऊ, इन सबको पूजो आज
होलीं के दिन में ॥ तुम सिद्ध करो...
ब्रह्मा , विष्णु, महेश मनाऊ ,
इन सबको पूजू आज, होलीं के दिन में ...
तुम सिद्ध करो...
राम , लछिमन, भरत, शत्रुघ्न ,
दशरथ के सरताज, होलीं के दिन में ...
तुम सिद्धि करो ....
जगदम्बा नव दुर्गा देवी,
असुरन करे संहार, होलीं के दिन में
तुम सिद्ध करो महाराज ..............

अम्बा के भवन बिराजे होली अम्बा के....
देवा के भवन बिराजे होली देवा के भवन ...
सिद्धि के दाता गणपति आये,
रिद्धि सिद्धि दोनों संग लाये॥
अम्बा के भवन....
ब्रह्मा , विष्णु खेलन आये
माता सरस्वती संग लिए
अम्बा के भवन...
शम्भू महादेव खेलन आये,
गौरी पारवती संग लिए...
राम , लछिमन खेलन आये....
सत्य की सीता को संग लिए...
अम्बा के भवन ...
कृष्ण मुरारी खेलन आये....
राधा रुकमनी संग लिए...
अम्बा के भवन........

उत्तराखंड में कुमाऊ की "खड़ी होली" १ ....

होली का त्यौहार ज्यादा दूर नहीं है.... उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में इसको मनाये जाने की लम्बी परंपरा रही है... इस अवसर पर महिलाये भी एक दुसरे के घर घर जाकर होली मनाते है... रंग पड़ने के दिन से हर किसी के घर में होली गई जाने लगती है... इस अवसर पर बहुत सी महिलाये दूसरा वेश भी धारण करती है जिसको "स्वांग" कहा जाता है... यह सब कर महिलाये होली को इंजॉय करती है .....
बचपन से उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल से गहरा नाता रहा है॥ होली जब अब ज्यादा दूर नहीं है तो इस अवसर पर अपने ब्लॉग में खड़ी होली के गीत लिख रहा हूँ जो वहां के घर घर में ढोलक बजाकर गाई जाती है... आज ही अपने बचपन के साथी का मोबाइल पर फ़ोन आया... उसने मुझसे होली लिखने का अनुरोध किया है... उसका कहना है नौकरी के चक्कर में जबसे उत्तराखंड से बाहर जाना हुआ है तो तब से वहां की होली को बहुत मिस कर रहा हू... अतः मैंने अपने दोस्त के अनुरोध पर यह तय किया है इस बार ब्लॉग में अपने पहाड़ो की मनाये जानी वाली "खडी होली" को जरुर लिखूंगा...... आज से इसका शुभारम्भ कर रहा हूँ... आशा है आपका सहयोग मिलेगा.....

सिद्धि को दाताविघ्न विनासन,
होली खेले गिरजापति नन्दन
सिद्धि को दाता विघ्न विनासन
गौरी को नन्दन, मूसा की वहां,
होली खेले गिरजा पति नन्दन
लाओ भवानी अक्षत चन्दन,
होली खेले गिरजा पति नन्दन
होली खेले गिरजा पति नन्दन ,
गज मोतियन से चौक पुराऊ
होली खेले गिरजा पति नंदन ,
होली खेले गिरजा पति नंदन
ताल बजावे अन्चन कंचन ,
डमरू बजावे शम्भू विभूषण
होली खेले गिरजा पति नंदन
होली खेले गिरजा पति नंदन





Wednesday 24 February 2010

अज्ञातवास में जार्ज.......भाग १


"कोई हम दम ना रहा ..... कोई सहारा ना रहा......................
हम किसी के ना रहे ........... कोई हमारा ना रहा........................
शाम तन्हाई की है ......... आएगी मंजिल कैसे.........
जो मुझे राह दिखाए....... वही तारा ना रहा ...............
क्या बताऊ मैं कहाँ............ यू ही चला जाता हू.......
जो मुझे फिर से बुला ले..........वो इशारा ना रहा........."
झुमरू की याद जेहन में आ रही है ............. मजरूह सुल्तानपुरी और किशोर की गायकी इस गाने में चार चाँद लगा देती है........... पुराने गीतों के बारे में प्रायः कहा जाता है "ओल्ड इस गोल्ड ".......
इसका सही से पता अब चल रहा है............ ७० के दशक की राजनीती के सबसे बड़े महानायक पर यह जुमला फिट बैठ रहा है........ कभी ट्रेड यूनियनों के आंदोलनों के अगवा रहे जार्ज की कहानी जीवन के अंतिम समय में ऐसी हो जायेगी , ऐसी कल्पना शायद किसी ने नही की होगी.......कभी समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाला यह शेर आज बीमार पड़ा है ....वह खुद अपने साथियो को नही पहचान पा रहा ......यह बीमारी संपत्ति विवाद में एक बड़ा अवरोध बन गयी है......

....."प्रशांत झा" मेरे सीनियर है.........अभी मध्य प्रदेश के नम्बर १ समाचार पत्र से जुड़े है........... बिहार के मुज्जफरपुर से वह ताल्लुक रखते है ......... जब भी उनसे मेरी मुलाकात होती है तो खुद के हाल चाल कम राजनीती के मैदान के हाल चाल ज्यादा लिया करता हूँ ....... एक बार हम दोनों की मुलाक़ात में मुजफ्फरपुर आ गया ... देश की राजनीती का असली बैरोमीटर यही मुजफ्फरपुर बीते कुछ वर्षो से हुआ करता था....... पिछले लोक सभा चुनावो में यह सिलसिला टूट गया...... यहाँ से जार्ज फर्नांडीज चुनाव लड़ा करते थे..... लेकिन १५ वी लोक सभा में उनका पत्ता कट गया.....नीतीश और शरद यादव ने उनको टिकट देने से साफ़ मन कर दिया........... इसके बाद यह संसदीय इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था... नीतीश ने तो साफ़ कह दिया था अगर जार्ज यहाँ से चुनाव लड़ते है तो वह चुनाव लड़कर अपनी भद करवाएंगे......... पर जार्ज कहाँ मानते? उन्होंने निर्दलीय चुनाव में कूदने की ठान ली....... आखिरकार इस बार उनकी नही चल पायी और उनको पराजय का मुह देखना पड़ा........... इन परिणामो को लेकर मेरा मन शुरू से आशंकित था...... इस चुनाव के विषय में प्रशांत जी से अक्सर बात हुआ करती थी..... वह कहा करते थे जार्ज के चलते मुजफ्फरपुर में विकास कार्य तेजी से हुए है... लेकिन निर्दलीय मैदान में उतरने से उनकी राह आसान नही हो सकती ...उनका आकलन सही निकला ... जार्ज को हार का मुह देखना पड़ा.... हाँ ,यह अलग बात है इसके बाद भी शरद और नीतीश की जोड़ी ने उनको राज्य सभा के जरिये बेक दूर से इंट्री दिलवा दी .........

आज वही जार्ज अस्वस्थ है...... अल्जायीमार्स से पीड़ित है........ उनकी संपत्ति को लेकर विवाद इस बार तेज हो गया है..... पर दुःख की बात यह है इस मामले को मीडिया नही उठा रहा है.... जार्ज को भी शायद इस बात का पता नही होगा , कभी भविष्य में उनकी संपत्ति पर कई लोग अपनी गिद्ध दृष्टी लगाए बैठे होंगे..... पर हो तो ऐसा ही रहा है.... जार्ज असहाय है... बीमारी भी ऐसी लगी है कि वह किसी को पहचान नही सकते ... ना बात कर पाते है...... शायद इसी का फायदा कुछ लोग उठाना चाहते है.......

कहते है पैसा ऐसी चीज है जो विवादों को खड़ा करती है.......... जार्ज मामले में भी यही हो रहा है.... उनकी पहली पत्नी लैला के आने से कहानी में नया मोड़ आ गया है.... वह अपनेबेटे को साथ लेकर आई है जो जार्ज के स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रही है... बताया जाता है जार्ज की पहली पत्नी लैला पिछले २५ सालो से उनके साथ नही रह रही है.... वह इसी साल नए वर्ष में उनके साथ बिगड़े स्वास्थ्य का हवाला देकर चली आई..... यहाँ पर यह बताते चले जार्ज और लैला के बीच किसी तरह का तलाक भी नही हुआ है...अभी तक जार्ज की निकटता जया जेटली के साथ थी....वह इस बीमारी में भी उनकी मदद को आगे आई और उनके इलाज की व्यवस्था करने में जुटी थी पर अचानक शान और लैला के आगमन ने उनका अमन ले लिया .... जैसे ही जार्ज को इलाज के लिए ले जाया गया वैसे ही बेटे और माँ की इंट्री मनमोहन देसाई के सेट पर हो गयी ..... लैला का आरोप है जार्ज मेरा है तो वही जया का कहना है इतने सालो से वह उनके साथ नही है लिहाजा जार्ज पर पहला हक़ उनका बनता है.... अब बड़ा सवाल यह है कि दोनों में कौन संपत्ति का असली हकदार है...?

जार्ज के पेंच को समझने ले लिए हमको ५० के दशक की तरफ रुख करना होगा.... यही वह दौर था जब उन्होंने कर्नाटक की धरती को अपने जन्म से पवित्र कर दिया था..3 जून 1930 को जान और एलिस फर्नांडीज के घर उनका जन्म मंगलौर में हुआ था.....५० के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर उन्होंने अपना परचम महाराष्ट्र की राजनीती में लहराया ... यही वह दौर था जब उनकी राजनीती परवान पर गयी ......कहा तो यहाँ तक जाता है हिंदी फिल्मो के "ट्रेजिडी किंग " दिलीप कुमार को उनसे बहुत प्रेरणा मिला करती थी अपनी फिल्मो की शूटिंग से पहले वह जार्ज कि सभाओ में जाकर अपने को तैयार करते थे... जार्ज को असली पहचान उस समय मिली जब १९६७ में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता एस के पाटिल को पराजित कर दिया ... लोक सभा में पाटिल जैसे बड़े नेता को हराकर उन्होंने उस समय लोक सभा में दस्तक दी ... इस जीत ने जार्ज को नायक बना दिया... बाद में अपने समाजवाद का झंडा बुलंद करते हुए १९७४ में वह रेलवे संघ के मुखिया बना दिए गए...उस समय उनकी ताकत को देखकर तत्कालीन सरकार के भी होश उड़ गए थे... जार्ज जब सामने हड़ताल के नेतृत्व के लिए आगे आते थे तो उनको सुनने के लिए मजदूर कामगारों की टोली से सड़के जाम हो जाया करती थी....

आपातकाल के दौरान उन्होंने मुजफ्फरपुर की जेल से अपना नामांकन भरा और जेपीका समर्थन किया.. तब जॉर्ज के पोस्टर मुजफ्फरपुर के हर घर में लगा करते थे ... लोग उनके लिए मन्नते माँगा करते थे और कहा करते थे जेल का ताला टूटेगा हमारा जॉर्ज छूटेगा... ( जारी रहेगा.....)

Tuesday 23 February 2010

इन तस्वीरो पर भी नजर फेरिये..................

शादियों का मौसम चल रहा है .....कल ही मेरे मामा की सबसे बड़ी लड़की की शादी हुई है .... वहां जा तो नही पाया ....पर बहिन से बात हुई.... ले देकर बातचीत में मेक अप वाली बात आ गयी.....वह कह रही थी दुल्हनो के सजने सवारने के नाम पर आजकल बहुत से ब्यूटी पार्लर खुल गए है जो बहुत कमाई कर रहे है ................
दुल्हनो के सजने सवारने के पार्लर खुल गए है यह तो मालूम था...... पर सड़को पर जब अकेले घूम रहा था तो मेरा माथा ठनक गया ... अब आप ही देख लीजिये.....इस बोर्ड को .... अब दूल्हो का मेक अप भी सस्ते दामो पर हो रहा है....... अगर आप भी विवाह के बंधन में जा रहे है तो इसको आजमाकर देखिये तो सही....... सुन्दरता में चार चाँद लग जायेंगे...........




बूद बूद से घड़ा भरता है....... पर ओसन एकेडेमी को ज्वाइन करने से पेट भर सकता है ...... इसको देखकर कम से कम यही तस्वीर आँखों के सामने बनती है...............
ज्वाइन करने से आप अच्छे मार्केट के एक्सपर्ट बन जायेंगे और प्रति दिन १०० से १००० रूपया रोजाना कमा सकते है... एक फिल्म थी "लव के लिए साला कुछ भी करेगा."......परन्तु लगता है मंदी और बेरोजगारी के इस दौर में एक नयी फिल्म बनानी पड़ेगी.........."पेट के लिए कुछ भी करेगा"...............

Sunday 21 February 2010

कैसी अजब तस्वीरे............








ऊपर की इस तस्वीर पर परसों नजर गयी.......... कैमरे से इसको उतार लिया......... इस सूप को पीने के बाद सभी "खली" बन सकते है... वैसे मैंने अभी तक यह सुना था ,बाजार में शक्ति वर्धक कैप्सूल खाने को मिला करते है .... लेकिन इस तस्वीर को देखकर लगता है अब हट्टा कट्टा होने के लिए सूप भी बाजारों में मिलने लगे है........



Saturday 13 February 2010

दिल तो बच्चा है जी...............



चली इश्क की हवा चली ... चली इश्क की हवा चली ....अपने दिलबर को दीवाना ... ढूदता दिल गली गली... "बागवान " फ़िल्म का यह गाना आजकल दूकानों में सर चदकर बोल रहा है ....कल की ही बात है ,शाम का समय था ... हम राजधानी के न्यू मार्केट इलाके में टहल रहे थे ...कल यहाँ की दुकानों में आजकल खासी चहल पहल नज़र आ रही थी .... वैसे तो न्यू मार्केट इलाके में पहले भी कभी कभार जाना होता रहता है लेकिन इस बार यहाँ फिजा कुछ बदली बदली सी नज़र आ रही थी ... हमे इस बदलाव का कारण नही सूझ रहा था... .... लिहाजा ,साथ में भी कोई नही था जिससे यह पूछ सकते ...तभी हमारी नज़र एक गिफ्ट सेण्टर पर पड़ी, जहाँ पर खरीददारी हो रही थी .... कुछ युवतिया दूकानदार से बारगेनिंग कर रहे थी ... जो सामान के सही मूल्य लगाने को लेकर की जा रही थी... इस वाकये को मैं बड़ी गौर से देख और सुन रहा था.... कुछ समय बाद पूरा माजरा समझ आ गया ....


दरअसल यह सब वैलेंटाइन डे के लिए किया जा रहा था... युवतियों में इसको लेकर छा रही उत्सुकता ख़ुद ही कहानी को बयां कर रही थी... फिर बागवान फ़िल्म का गाना तो सच्ची तस्वीर को हमारे सामने ख़ुद ही ला रहा था...न्यू मार्केट का जो दृश्य हमारी आँखों ने कल देखा .... यह आज की एक हकीकत है... भोपाल ही क्या हर जगह यही हाल होगा... चाहे आप दिल्ली की चाँदनी चौक में हो या कनाट पैलेस में, या फिर इनके जैसे किसी भी महानगर में ... हर जगह आप ऐसे दृश्यों को देख सकते है जिसका गवाह कल मेरी आँखें न्यू मार्केट में बनी....आज "वैलेंटाइन डे" पर देश के कोने कोने तक ऐसी ही बानगी देखी जा सकती है.... अब तो आलम यहाँ तक है फरवरी को मनाया जाने वाला यह त्यौहार महानगरो के साथ कस्बो में भी मनाया जाने लगा है...



आज का युग बदल गया है... संस्कृति गई भाड में.... तभी तो हर जगह विदेशी संस्कृति पूत की भांति पाव पसारती जा रही है ..... हमारे युवाओ को लगा वैलेंटाइन का चस्का भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है... विदेशी संस्कृति की गिरफ्त में आज हम पूरी तरह से नजर आते है ... तभी तो शहरों से लेकर कस्बो तक वैलेंटाइन का जलवा देखते ही बनता है...आज आलम यह है यह त्यौहार भारतीयों में तेजी से अपनी पकड़ बना रहा है...



वैलेंटाइन के चकाचौंध पर अगर दृष्टी डाले तो इस सम्बन्ध में कई किस्से प्रचलित है... रोमन कैथोलिक चर्च की माने तो यह "वैलेंटाइन "अथवा "वलेंतिनस " नाम के तीन लोगो को मान्यता देता है ....जिसमे से दो के सम्बन्ध वैलेंटाइन डे से जोड़े जाते है....लेकिन बताया जाता है इन दो में से भी संत " वैलेंटाइन " खास चर्चा में रहे ...कहा जाता है संत वैलेंटाइन प्राचीन रोम में एक धर्म गुरू थे .... उन दिनों वहाँपर "कलाउ दियस" दो का शासन था .... उसका मानना था की अविवाहित युवक बेहतर सेनिक हो सकते है क्युकियुद्ध के मैदान में उन्हें अपनी पत्नी या बच्चों की चिंता नही सताती ...अपनी इस मान्यता के कारण उसने तत्कालीन रोम में युवको के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया...


किन्दवंतियो की माने तो संत वैलेंटाइन के क्लाऊ दियस के इस फेसले का विरोध करने का फेसला किया ... बताया जाता है की वैलेंटाइन ने इस दौरान कई युवक युवतियों का प्रेम विवाह करा दिया... यह बात जब राजा को पता चली तो उसने संत वैलेंटाइन को १४ फरवरी को फासी की सजा दे दी....कहा जाता है की संत के इस त्याग के कारण हर साल १४ फरवरी को उनकी याद में युवा "वैलेंटाइन डे " मनाते है...



कैथोलिक चर्च की एक अन्य मान्यता के अनुसार एक दूसरे संत वैलेंटाइन की मौत प्राचीन रोम में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों से उन्हें बचाने के दरमियान हो गई ....यहाँ इस पर नई मान्यता यह है की ईसाईयों के प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले इस संत की याद में ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता है...एक अन्य किंदवंती के अनुसार वैलेंटाइन नाम के एक शख्स ने अपनी मौत से पहले अपनी प्रेमिका को पहला वैलेंटाइन संदेश भेजा जो एक प्रेम पत्र था .... उसकी प्रेमिका उसी जेल के जेलर की पुत्री थी जहाँ उसको बंद किया गया था...उस वैलेंटाइन नाम के शख्स ने प्रेम पत्र के अन्त में लिखा" फ्रॉम युअर वैलेंटाइन" .... आज भी यह वैलेंटाइन पर लिखे जाने वाले हर पत्र के नीचे लिखा रहता है ...



यही नही वैलेंटाइन के बारे में कुछ अन्य किन्दवंतिया भी है ... इसके अनुसार तर्क यह दिए जाते है प्राचीन रोम के प्रसिद्व पर्व "ल्युपर केलिया " के ईसाईकारण की याद में मनाया जाता है ....यह पर्व रोमन साम्राज्य के संस्थापक रोम्योलुयास और रीमस की याद में मनाया जाता है ... इस आयोजन पर रोमन धर्मगुरु उस गुफा में एकत्रित होते थे जहाँ एक मादा भेडिये ने रोम्योलुयास और रीमस को पाला था इस भेडिये को ल्युपा कहते थे... और इसी के नाम पर उस त्यौहार का नाम ल्युपर केलिया पड़ गया...


इस अवसर पर वहां बड़ा आयोजन होता था ॥ लोग अपने घरो की सफाई करते थे साथ ही अच्छी फसल की कामना के लिए बकरी की बलि देते थे.... कहा जाता है प्राचीन समय में यह परम्परा खासी लोक प्रिय हो गई... एक अन्य किंदवंती यह कहती है की १४ फरवरी को फ्रांस में चिडियों के प्रजनन की शुरूवात मानी जाती थी.... जिस कारण खुशी में यह त्यौहार वहा प्रेम पर्व के रूप में मनाया जाने लगा ....



प्रेम के तार रोम से सीधे जुड़े नजर आते है ... वहा पर क्यूपिड को प्रेम की देवी के रूप में पूजा जाने लगा ...जबकि यूनान में इसको इरोशके नाम से जाना जाता था... प्राचीन वैलेंटाइन संदेश के बारे में भी एक नजर नही आता ॥ कुछ ने माना है की यह इंग्लैंड के राजा ड्यूक के लिखा जो आज भी वहां के म्यूजियम में रखा हुआ है.... ब्रिटेन की यह आग आज भारत में भी लग चुकी है... अपने दर्शन शास्त्र में भी कहा गया है " जहाँ जहाँ धुआ होगा वहा आग तो होगी ही " सो अपना भारत भी इससे अछूता कैसे रह सकता है...? युवाओ में वैलेंटाइन की खुमारी सर चदकर बोल रही है... १४ का सभी को बेसब्री से इंतजार है... इस दिन के लिए सभी पलके बिछाये बैठे है... प्रेम का इजहार जो करना है ?.......



वैलेन्टाइन प्रेमी १४ फरवरी को एक बड़े त्यौहार से कम नही समझते है.... मुझको "अंदाज "का गाना याद आगया है.... " किसी से तुम प्यार करो ..... इजहार करो कही ना फिर देर हो जाए" ..... तभी तो वह इसको प्यार का इजहार करने का दिन बताते है... यूँ तो प्यार करना कोई गुनाह नही है लेकिन जब प्यार किया ही है तो इजहार करने में कोई देर नही होनी चाहिए... लेकिन अभी का समय ऐसा है जहाँ युवक युवतिया प्यार की सही परिभाषा नही जान पाये है... वह इस बात को नही समझ पा रहे है की प्यार को आप एक दिन के लिए नही बाध सकते... वह प्यार को हसी मजाक का खेल समझ रहे है....



सच्चे प्रेमी के लिए तो पूरा साल प्रेम का प्रतीक बना रहता है ... लेकिन आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल चुकी है ... इसका प्रभाव यह है की आज १४ फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया गया है... इस कारण संसार भर के "कपल "प्यार का इजहार करने को उत्सुक रहते है...



आज १४ फरवरी का कितना महत्त्व बढ गया है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है इस अवसार पर बाजारों में खासी रोनक छा जाती है .... गिफ्ट सेंटर में उमड़ने वाला सैलाब , चहल पहल इस बात को बताने के लिए काफी है यह किस प्रकार आम आदमी के दिलो में एक बड़े पर्व की भांति अपनी पहचान बनने में कामयाब हुआ है... इस अवसर पर प्रेमी होटलों , रेस्ताराओ में देखे जा सकते है...


प्रेम मनाने का यह चलन भारतीय संस्कृति को चोट पहुचाने का काम कर रहा है... यूं तो हमारी संस्कृति में प्रेम को परमात्मा का दूसरा रूप बताया गया है ॥ अतः प्रेम करना गुनाह और प्रेम का विरोधी होना सही नही होगा लेकिन वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह का भोड़ापन , पश्चिमी परस्त विस्तार हो रहा है वह विरोध करने लायक ही है ....वैसे भी यह प्रेम की स्टाइल भारतीय जीवन मूल्यों से किसी तरह मेल नही खाती.....


आज का वैलेंटाइन डे भारतीय काव्य शास्र में बताये गए मदनोत्सव का पश्चिमी संस्करण प्रतीत होता है...



लेकिन बड़ा सवाल जेहन में हमारे यह आ रहा है क्या आप प्रेम जैसे चीज को एक दिन के लिए बाध सकते है? शायद नही... पर हमारे अपने देश में वैलेंटाइन के नाम का दुरूपयोग किया जा रहा है ... वैलेंटाइन के फेर में आने वाले प्रेमी भटकाव की राह में अग्रसर हो रहे है.... एक समय ऐसा था जब राधा कृष्ण , मीरा वाला प्रेम हुआ करता था जो आज के वैलेंटाइन प्रेमियों का जैसा नही होता था...


आज लोग प्यार के चक्कर में बरबाद हो रहे है... हीर_रांझा, लैला_ मजनू के प्रसंगों का हवाला देने वाले हमारे आज के प्रेमी यह भूल जाते है की मीरा वाला प्रेम सच्ची आत्मा से सम्बन्ध रखता था ... आज प्यार बाहरी आकर्षण की चीज बनती जा रही है.... प्यार को गिफ्ट में तोला जाने लगा है... वैलेंटाइन के प्रेम में फसने वाले कुछ युवा सफल तो कुछ असफल साबित होते है .... जो असफल हो गए तो समझ लो बरबाद हो गए... क्युकि यह प्रेम रुपी "बग" बड़ा खतरनाक है .... एक बार अगर इसकी जकड में आप आ गए तो यह फिर भविष्य में भी पीछा नही छोडेगा.... असफल लोगो के तबाह होने के कारण यह वैलेंटाइन डे घातक बन जाता है...



वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह की उद्दंडता हो रही है वह चिंतनीय ही है... अश्लील हरकते भी कई बार देखी जा सकती है...संपन्न तबके साथ आज का मध्यम वर्ग और अब निम्न तबका भी आज इसके मकड़ जाल में फसकर अपना पैसा और समय दोनों ख़राब करते जा रहे है... वैलेंटाइन की स्टाइल बदल गई है ... गुलाब गिफ्ट दिए ,पार्टी में थिरके बिना काम नही चलता .... यह मनाने के लिए आपकी जेब गर्म होनी चाहिए... यह भी कोई बात हुई क्या जहाँ प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जेब की बोली लगानी पड़ती है....?


कभी कभार तो अपने साथी के साथ घर से दूर जाकर इसको मनाने की नौबत आ जाती है... डी जे की थाप पर थिरकते रात बीत जाती है... प्यार की खुमारी में शाम ढलने का पता भी नही चलता ....


आज के समय में वैलेंटाइन प्रेमियों की तादात बढ रही है .... साल दर साल यार... इस बार भी प्रेम का सेंसेक्स पहले से ही कुलाचे मार रहा है.... वैलेंटाइन ने एक बड़े उत्सव का रूप ले लिया है... मॉल , गिफ्ट, आर्चीस , डिस्को थेक, मक डोनाल्ड आज इससे चोली दामन का साथ बन गया है... अगर आप में यह सब कर सकने की सामर्थ्य नही है तो आपका प्रेमी नाराज .... बस बेटा ....प्रेम का तो दी एंड समझ लो.... फिर , देवदास के बरबाद होने का सिलसिला चल पड़ता है ...


पारो की याद दिल से नही जा पाती.... दिल टूट जाता है ... हमारी समझ में यह नही आता यह कैसा देवदास जो इस बार का वैलेंटाइन पारो के साथ ... अगली बार चंद्रमुखी.... तो अगली बार किसी और चंदा के साथ मनाता है? यह एक फेक्ट है आप चाहकर भी इसको नकार नही सकते ... हम अक्सर अपने आस पास ऐसे वाकयों को देख चुके है जो हर रोज "रब ने बना दी जोड़ी " वाली एक नई "तानी " जी के पीछे भागते नजर आते है ....



कॉलेज के दिनों से यह चलन चलता आ रहा है ... अपने आस पास कालेजो में भी ऐसे दृश्य दिखाई देते है ..... पदाई में कम मन लगता है.....कन्यायो पर टकटकी पहले लगती है..... पुस्तकालयो में किताबो पर कम नजर लडकियों पर ज्यादा जाती है..... जिधर देखो वहां लडकियों को लाइन मारी जाती है .... प्यार का स्टाइल समय बदलने के साथ बदल रहा है ...... वैलेंटाइन प्रेमी बदलते जा रहे है......कुछ समय पहले तक मनोरंजन का साधन दूरदर्शन हुआ करता था...


९० के दशक में केबल की क्रांति आ गई... चैनलों की बाद आ गई... अपने बोली वुड में फिल्मो की बाढ आई हुई है..... दुर्भाग्य इस बात का है अपने प्रेमी बिरादरी वाले फिल्मो के चरित्र को अपने में उतरने की कोशिस करते है .... वह यह भूल जाते है रुपहले परदे और बुद्धू बक्से में जमीन आसमान का अन्तर होता है .....


हमारे यहाँ की ज्यादातर फिल्मे प्यार के फंडे पर बनी है ... "इश्क विश्क" से लेकर "मै प्रेम की दीवानी हूँ", "कहो ना प्यार है" से लेकर "मोहोबते" सभी प्यार के फंडे पर बनी है ... अगर "रब ने बना दी जोड़ी में शाहरुख़ " सुक्खीपापे" को तानी जी के पीछे दौड़ते हुए दिखाया जा रहा है तो आज प्राईमरी में पड़ने वाला बच्चा भी अपने स्कूल की तानी जी का पीछा करता नजर आएगा... अगर फ़िल्म में " ...हौले हौले हो जाएगा प्यार "बज रहा है तो प्राईमरी का बालक भी इस गाने में अपनी स्कूल वाली तानी जी को ढूदता नजर आता है ....


उसको अपनी स्कूल वाली तानी जी में " रब दिखाई देने लगता है.... फिर हरदम तानी जी की यादो से वह बाहर नही आ पाता .... प्राईमरी में पड़ने वाले न जाने ऐसे कितने लम्पट देवदास शायद यह भूल जाते है भारत में " सत्यम शिवम् सुन्दरम", "राम तेरी गंगा मैली" , जैसी फिल्मे भी किसी ज़माने में बनी है जो लोगो के जेहन में आज भी अपनी जगह बनाये हुए है .... यह सभी सच्चे प्यार का अहसास कराने के लिए काफी है..... आज वैलेंटाइन मनाना सबकी नियति बन चुका है....



कल ही रात में जिस बस से मै हबीबगंज उतरा .... उस बस में कुछ युवक सवार थे .... मैंने इस विषय पर उनकी नब्ज पकड़नी चाही .... जैसा मै सोच रहा था वैसा ही हुआ .... वह अपने मोबाइल में "दिल तो बच्चा है जी " गाना सुन रहे थे.... कहाँ से आ रहे है आप? यह पूछने पर जवाब मिला " १४ फरवरी की .....तैयारी है दादा ..... न्यू मार्केट से गिफ्ट ला रहे है ........



बहरहाल , आज प्यार की परिभाषा बदल गई है .... वैलेंटाइन का चस्का हमारे युवाओ में तो सर चदकर बोल रहा है , लेकिन उनका प्रेम आज आत्मिक नही होकर छणिक बन गया है... उनका प्यार पैसो में तोला जाने लगा है .... आज की युवा पीड़ी को न तो प्रेम की गहराई का अहसास है न ही वह सच्चे प्रेम को परिभाषित कर सकते है... उनके लिए प्यार मौज मस्ती का खेल बन गया है ..... नीचे की "पंक्तिया सटीक है......."

अपने पर गौरव न
गीत पराया गाते हो
मीरा का प्रेम त्यागकरतुम किसे पूजने जाते हो?
अश्लीलता में सने देह है
फिर बोलो कैसा दिल होगा ?
यह प्रेम नही फैशन है भइया
यहाँ हर प्रेमी कातिल होगा
ख़ुद को कहते प्रेमी क्या लाज नही आती तुम्हे
तुम तो तन के दीवाने होमन की सुन्दरता क्या भाती तुम्हे
क्यों आएना लोगो को दिखाते हो?
ख़ुद के चहरे को देखने से कतराते हो
क्यों चीर हरण का दुःखचटखारे लेकर सुनते हो
बहस चर्चाएं आयोजित करते हो?
अश्लीलता को सुंदर गुलाबो से तोलते हो ?
चीर हरण की भूमिका पर
राय शुमारी क्यों नही करते
नारी को कर भोग्य रूप किस कियासंस्कृति कुरूप
उत्तर दो उत्तर दो....?

Friday 5 February 2010

करिये दिल खोल के बातें........



ऊपर की इस तस्वीर पर मेरी नजर चली गयी....... कल शाम जब सडक पर टहल रहा था.....उस समय अपने कैमरे से इसको उतार लिया.....लिखा है क्या आई डिया है सर जी .... अब मोबाइल की सिम एक रुपये में मिलेगी.....इसको शुभ संकेत मान सकते है....देश में मोबाइल क्रांति की दिशा में यह एक बड़ा कदम है....


भई लोग तो कहा करते हैं आजकल एक रुपये में आता ही क्या है.....? एक रूपया भी बड़ी काम की चीज है.....चिल्लरो की कमी आये दिन हमारे सामने बनी रहती है .... अगर चाय पीने की इच्छा हो तो वह भी अब तीन से बढकर चार रुपये की होने जा रही है.....शरद पवार तो यही करने की तैयारी कर रहे है......महंगाई ने तो सारी हदे तोड़ डाली है...... पानी सर के ऊपर से बह चुका है पर सरकार है कुछ कर ही नही रही......

जो भी हो अब महंगाई के इस दौर में जब सभी चीज महंगी हो रही है तो हमारी जनता जनार्दन के लिए यह बात राहत देने वाली है कि अब मोबाइल की सिम सस्ती हो रही है.... सिमो की कीमतों में ऐसी गिरावट पहले कभी नही देखी गयी....... मुझको अच्छी ढंग से याद है जब मोबाइल क्रांति का बाजा बजना शुरू हुआ था तो उस समय मोबाइल सेट भी बहुत महंगे हुआ करते थे ..... तब सिम भी काफी ऊँची कीमतों में बिका करती थी.....सिमो की कीमते अब सैकडे से गिरकर इकाई के अंको तक आ गयी है..... व्हट अन आईडिया सर जी..... ?


पिछले साल जब दिवाली में अपने गाव गया तो महसूस हुआ तो... संचार क्रांति का बाजा कितनी तेजी से बजा है ? गावो में बिजली नही है... सड़क भी नही पहुची है ..... लेकिन मोबाइल सेवा सबके घरो में पहुच चुकी है ....हर घर में मोबाइल सेट घनघना रहे है....चौकने की बात तो यह है गावो में अभी एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसको मोबाइल के इस्तेमाल की सही जानकारी भी नही है..... वह केवल दो फंक्शन जानते है.... लाल से डायल करो..... हरे से फोन काट दो ......


कहते है अपने देश में गरीबो की आबादी तेजी से बद रही है ....सुरेश तेंदुलकर का नया आंकड़ा सामने आया है गरीब ३७ परसेंट है.... पर मेरा यह कहना है जितने गरीब हमारे देश में है उनमे से हर किसी के पास आज मोबाइल तेजी से पहुच रहा है .....इसके लिए भी सरकार को कोई समिति बनानी चाहिए.... एक रिक्शा चलाने वाले से लेकर एक जंक डीलर के पास तक आज मोबाइल पहुच चुका है.... ....


आस पास आप भी ऐसे वाकयो को देख चुके होंगे.....मुझको तो लगता है अगर यही सब चलता रहा तो आने वाले समय में मोबाइल के दाम और भी कम हो जायेंगे.....कुछ समय बाद मोबाइल सस्ते गल्लो की दुकानों में पेन की तरह मिलने लगेंगे..... चिंता मत करिए.....