Wednesday, 15 March 2023

उत्तराखंड के पहाड़ों का लोक पर्व है फूलदेई

 



 देवभूमि  उत्तराखंड अपनी  मनमोहक सुषमा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है और यहां  के कई त्योहारों में विविधता  दिखाई देती है। प्रकृति को धन्यवाद देने हेतु उनमें से एक त्यौहार है फूलदेई त्यौहार ,  फूल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है । फूलदेई यानी फूल संक्रांति उत्तराखंड का पारंपरिक लोक पर्व है।  उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा आज भी कायम  है।  

चैत्र के महीने की संक्रांति को जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर छोटे बच्चों का पर्व है। वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन  गाँवों में  ये त्यौहार अब भी ज़िंदा है।   फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी पर डालकर  उस घर की खुशहाली की दुआ  मांगने की परंपरा देखते ही आज भी इस त्यौहार की महक महसूस की जा सकती है।  चैत्र माह के  पहले दिन भोर में  छोटे–छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने  ईष्ट देवी देवताओं को अर्पित करते हैं। उसके बाद पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं और उन फूलों से दरवाजों (देहली) का पूजन करते हैं।  घर के दरवाजों में सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं। फूल देई  ……छम्मा देई  देणी द्वार……. भर  भकार ……फूल देई  ……छम्मा देई।

फूलदेई के दिन  बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। उत्तराखंड के इस बाल पर्व में बच्चे फ्यूंली, बुराँस, बासिंग, लाई,ग्वीर्याल, किंनगोड़, हिसर, सहित कई जंगली फूलों को रिंगाल की टोकरी में चुनकर लाते है और देहरी पूजन करते हुए फूल डालते हैं। इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं।  

 फूलदेई त्योहार में एक द्वार पूजा के लिए एक जंगली फूल का इस्तेमाल होता है, जिसे फ्यूली कहते हैं। इस फूल और फूलदेई के त्योहार को लेकर उत्तराखंड में कई लोक कथाएं मशहूर हैं जिनमें से एक लोककथा फ्यूंली के पीले फूलों से जुड़ी हैं।  फूलदेई पर्व की कहानियां एक वन कन्या थी, जिसका नाम था फ्यूंली। फ्यूली जंगल में रहती थी। जंगल के पेड़- पौधे और जानवर ही उसका परिवार भी थे और दोस्त भी। फ्यूंली की वजह से जंगल और पहाड़ों में हरियाली थी, खुशहाली। एक दिन दूर देश का एक राजकुमार जंगल में आया। फ्यूंली को राजकुमार से प्रेम हो गया। राजकुमार के कहने पर फ्यूंली ने उससे शादी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर उसके साथ महल चली गई। फ्यूंली के जाते ही पेड़-पौधे मुरझाने लगे, नदियां सूखने लगीं और पहाड़ बरबाद होने लगे। उधर महल में फ्यूंली ख़ुद बहुत बीमार रहने लगी। उसने राजकुमार से उसे वापस पहाड़ छोड़ देने की विनती की लेकिन राजकुमार उसे छोड़ने को तैयार नहीं था और एक दिन फ्यूंली मर गई। मरते-मरते उसने राजकुमार से गुज़ारिश की, कि उसका शव पहाड़ में ही कहीं दफना दे। फ्यूंली का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की उसी चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वो उसे लेकर आया था। जिस जगह पर फ्यूंली को दफनाया गया, कुछ महीनों बाद वहां एक फूल खिला, जिसे फ्यूंली नाम दिया गया। इस फूल के खिलते ही पहाड़ फिर हरे होने लगे, नदियों में पानी फिर लबालब भर गया, पहाड़ की खुशहाली फ्यूंली के फूल के रूप में लौट आई। इसी फ्यूंली के फूल से द्वारपूजा करके लड़कियां फूलदेई में अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली की दुआ करती हैं।

कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फूलदेई त्यौहार मनाने के पीछे कहा जाता है कि शिव शीत काल में अपनी तपस्या में लीन थे,  ऋतु  परिवर्तन के कई बर्ष बीत गए लेकिन शिव की तंद्रा नहीं टूटी।  माँ पार्वती ही नहीं बल्कि नंदी शिव गण व संसार में कई बर्ष शिव के तंद्रालीन होने से बेमौसमी हो गये। आखिर माँ पार्वती ने ही युक्ति निकाली।  सर्वप्रथम फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया ।  फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए।   सबने अनुसरण किया और पुष्प सर्वप्रथम शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किये गए जिसे फुलदेई कहा गया।   साथ में सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आये महाराज । शिव की तंद्रा टूटी बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हुआ और वे भी प्रसन्न मन इस त्यौहार में शामिल हुए तब से पहाडो में फुलदेई पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा।

फूलदेई त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है और हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत  के लिए ही मनाया जाता है।इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं।पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सज जाता है और बसंत के इस मौसम में फ्योली, खुमानी, पुलम, आडू , बुरांश ,भिटोरे आदि  के फूल हर कहीं खिले हुए नजर आ जाते हैं।जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते हैं वही घर आंगन में लगे आडू, खुमानी के पेड़ों में सफेद व हल्के बैंगनी रंग के फूल खिले रहते हैं।फूलदेई त्यौहार में वैसे तो शाम को तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं  लेकिन चावल से बनने वाला  सई ( सैया) विशेष एक तौर से बनाया जाता है।चावल के आटे को दही में मिलाया जाता है।फिर उसको लोहे की कढ़ाई में घी डालकर पकने तक भूना जाता है।उसके बाद उसमें स्वादानुसार चीनी व मेवे  डाले जाते हैं यह अत्यंत स्वादिष्ट और विशेष तौर से इस दिन खाया जाने वाला व्यंजन है।

आज के दौर में त्यौहारों का स्वरूप धीरे या तो परिवर्तित हो रहा है या फ़िर वह केवल औपचारिकता मात्र रह गये हैं । फूलदेई में भी काफ़ी परिवर्तन आये हैं।  ऑनलाइन जिंदगी जीने वाली आज की युवा पीढ़ी  में अब वह पहले वाला उत्साह नहीं  रह गया है लेकिन  किसी भी रूप में सही फूलदेई का त्यौहार उत्तराखण्ड  में अभी भी "फूल देई, छम्मा देई" गाते सजे धजे बच्चों की टोलियां  कहीं न कहीं  दिखायी पड़ जाती हैं। फूलदेई जैसे त्यौहार एक ओर जहां हमारी वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी जिन्दा रखे हुये हैं,  वहीँ  हमारे बच्चों को प्रकृति के और निकट लाने में भी सहायक हैं।

Friday, 3 March 2023

बजट से सबका दिल जीतने में कामयाब हुई शिवराज सरकार










मध्यप्रदेश विधानसभा में आज प्रदेश का वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया गया। शिवराज सरकार के द्वारा  पेश किये गए  बजट में प्रधानमंत्री मोदी के  'सबका साथ सबका विकास' की झलक साफ़ दिखाई दी  है।  ख़ास बात यह रही  इस अंतिम बजट में जनता पर कोई नया कर नहीं लगाया गया है। सरकार ने अपने अनेक लोक लुभावन वायदों से जनता का दिल जीतने की कोशिश की है।  महिलाओं से लेकर युवा , बुजुर्गों से लेकर दिव्यांगों, आदिवासियों  हर वर्ग  पर इस बजट में विशेष फोकस किया गया है।  शिवराज सरकार ने समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान  में रखकर अपना खजाना खोला  है।  सरकार द्वारा इस बजट में किये गए कई प्रावधानों का लाभ समाज के सभी वर्गों को होगा।  

देश के सकल घरेलू उत्पाद में  मध्यप्रदेश का योगदान 3.6 % से बढ़कर अब 4.8 % हो चुका है। वर्ष 2011-12 प्रति व्यक्ति आय 30 हजार 497 रुपये थी, अब 2022-23 में साढ़े तीन गुना तक बढ़कर एक लाख 40 हजार 585 रुपये हो गई है। मध्यप्रदेश का कुल बजट 3.14 लाख करोड़ रुपये का है, जो पिछले साल 2.79 लाख करोड़ रुपये का था। 55,709 करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा अनुमानित है।  वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बजट को प्रस्तुत करते हुए कहा प्रदेश में दस बरस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार कर्ज लेकर वेतन और भत्ते देती थी लेकिन सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट जनता की उम्मीदों का बजट  है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में  सभी क्षेत्रों में आज प्रदेश का  चहुंमुखी  विकास  हो रहा है।  राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में मध्यप्रदेश का योगदान बीते 10 वर्षों में 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4. 8  प्रतिशत पहुँच गया  है।  प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2011 -12 में जहाँ 38 हजार 497 करोड़ थी वहीँ 2022 -23  में यह बढ़कर 1 लाख 40 हजार 583 हो गई है।
      
 इस बजट में  नारी शक्ति का  मान बढ़ाने में  सरकार कामयाब हुई है।  प्रदेश सरकार ने नारी शक्ति के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं प्रदेश में चलाई हैं जिसका  परिणाम आज  धरातल  पर दिखाई दे रहा है।  2015 -16 की तुलना में 2020 -21 में लिंगानुपात 927 से बढ़कर 956 हो चुका है।  लाड़ली लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश में अब तक 44 लाख से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं।  वर्ष 2007 से आरंभ लाड़ली लक्ष्मी योजना में अब तक 44 लाख 39 हजार से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 929 करोड़ रुपये का प्रावधान प्रस्तावित है।  महिला स्वसहायता समूहों ने प्रदेश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है जिसे देखते हुए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 -24  में 660 करोड़ का प्रावधान किया है जो उनके सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा।  मध्यप्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी योजना  की  गूँज  प्रदेश से लेकर पूरे  देश तक सुनाई दी है।  इस योजना में अब तक  44 लाख 39 हजार से अधिक  बालिकाएं  लाभान्वित हुई हैं।  वित्तीय वर्ष 2023 -24 में लाड़ली लक्ष्मी के लिए 929  करोड़  प्रावधान इस बजट में किया गया है ।  विशेष पिछड़ी जनजातीय महिलाओं को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आहार अनुदान योजना  चलाई  जा  रही है जिसके  तहत इन महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1 हजार रु जमा करवाए जाते हैं।   इस बार इसमें 300  करोड़ का प्रावधान किया गया है।  मुख्यमंत्री लाड़ली योजना  की तर्ज पर अब प्रदेश की महिलाओं को प्रदेश  में मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की नई सौगात मिलने जा रही है जिसके तहत सभी पात्र महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1  हजार रु की राशि जमा की जाएगी। 

मुख्यमंत्री बालिका स्कूटी  योजना का बड़ा ऐलान इस बार के बजट में किया गया है।  राज्य सरकार ने घोषणा की है कि अपने-अपने स्कूल में 12वीं में टॉप करने वाली छात्राओं को ई-स्कूटी दी जाएगी। छात्राओं  को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सुविधाओं का विकास करते हुए इस बजट में  प्रदेश के समस्त उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में पहला स्थान पाने वाली बालिकाओं को अब स्कूटी दी जाएगी।आहार अनुदान योजना के लिए 300 करोड़ रुपए का प्रावधान  बजट में  किया गया है।  इसके तहत बैगा, भारिया, सहरिया जनजाति की महिलाओं को 1 हजार रुपए महीना दिया जाएगा।   प्रसूति सहायता योजना में 400 करोड़ रु का प्रावधान किया है। इसी तरह कन्या विवाह एवं निकाह के लिए 80 करोड़ रुपए। मातृत्व वंदना योजना के लिए 467 करोड़ रुपये का बजट रखा  गया है। नई आबकारी नीति के जरिये नशे की लत को हतोत्साहित करने का फैसला किया गया है। ग्रामीण आजीविका मिशन  के लिए 660 करोड़ का प्रावधान किया गया है ।  नारी कल्याण के लिए 1 लाख 2976 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं।  सरकार ने  12  हजार नए  स्वसहायता समूहों का  गठन करने का ऐलान भी किया है।   महिला स्व-सहायता के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट का प्रावधान किया है।  कन्या विवाह योजना की प्रोत्साहन की राशि 51 से बढ़ाकर  55 हजार की गई है।  नारी कल्याण के लिए कुल 1 लाख 2976 करोड़ रुपये का बजट महिलाओं के सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा।  

स्वरोजगार से लेकर कौशल विकास पर  सरकार ने इस बजट में जोर दिया है।  युवाओं के कौशल विकास के साथ उनके रोजगार और स्वरोजगार की दिशा में भी इस बजट में सरकार के द्वारा विशेष प्रयास किये  हैं।  सरकारी नौकरियों में 1 लाख नौकरियां देने का अभियान सरकार के द्वारा चलाया जा  रहा है।  मुख्यमंत्री उद्यम योजना , मुद्रा योजना और अन्य स्वरोजगार की योजनाओं से आज प्रदेश का युवा सशक्त हो रहा  है।  युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए 252 करोड़ रु की योजनाओं का प्रावधान किया गया है।  मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 1 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान इस बजट में हुआ है।  घुमंतू जातियों के रोजगार के लिए 252करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया गया है।  युवाओं को स्वावलंबी बनाना सरकार की  प्रमुख प्राथमिकता है । इसके तहत 1 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी जाएगी। रोजगार के लिए 200 युवाओं को जापान भेजा जायेगा ।  नई शिक्षा नीति के लिए  सरकार  ने इस बजट में 277 करोड़ रु का प्रावधान  किया है । एमबीबीएस सीट 2 हजार 55 से बढ़ाकर 3 हजार 605 की जाएंगी। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए 649 सीट्स बढ़कर 915 होंगी।नर्सिंग कॉलेज योजना से मेडिकल कॉलेज में 810 बीएससी नर्सिंग, 300 पोस्ट बेसिक नर्सिंग की एक्स्ट्रा सीट्स होंगी। 25 चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए 400 करोड़ रुपए का प्रावधान इस  में किया गया है ।  
 
पेंशन नियमों में  सरलीकरण पर इस बार के बजट में सरकार ने जोर दिया है। सरकारी कर्मचारियों को रिटायर होने के बाद उनके रिटायरमेंट लाभ जल्द से जल्द मिले, इसके लिए पेंशन नियमों का सरलीकरण किया जा रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के लिए परिवार की विवाहित पुत्री को भी पात्रता दी गई है। चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमों को सरल और मान्यता प्राप्त निजी चिकित्सालयों में आयुष्मान योजना की निर्धारित दरों पर इलाज की सुविधा दी गई है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों को देय भत्तों का सातवें वेतनमान के परिप्रेक्ष्य में पुनरीक्षण करने के लिए समिति गठित की गई है। 

नए सीएम राइज  से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति होगी।  प्रदेश में अब तक 370 सीएम राइज  स्कूल खुल चुके हैं।  9000 नए सीएम राइज स्कूल खोलने हेतु  सरकार ने इस बजट में प्रावधान किया है।  पीएम श्री योजना के  तहत सरकार ने  277 करोड़ रु का प्रावधान किया है।  प्रदेश में एमबीबीएस सीट 2055 से बढ़ाकर 3605 की जाएंगी।  विद्यालयों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 29 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है।  शिक्षा के लिए इस बजट में 5 हजार 532 करोड़ रु का प्रावधान किया गया है।  सीएम राइज स्कूल के लिए 3230 करोड़ रुपये का बजट सरकार ने पेश किया है ।
  
नर्मदा प्रगति पथ के साथ श्री देवी महालोक , रामराजा लोक , वनवासी राम लोक का विकास  होगा।  सरकार द्वारा पेश किये  गए बजट में नर्मदा प्रगति पथ निर्माण के लिए भी प्रावधान किया गया है।   प्रदेश में कुल 900 किमी लंबा नर्मदा प्रगति पथ बनाया जाएगा।  सलकनपुर के प्रसिद्ध देवी मंदिर में श्री देवी महालोक  का निर्माण होगा । सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को भी किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रु. का बजट  में प्रावधान किया गया है । सलकनपुर में श्रीदेवी महालोक, सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को डेवलप किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रुपए का  प्रावधान बजट में किया है।

खेल विभाग का बजट बढ़कर 738 करोड़ रुपये  पहुँच गया है।  सरकार ने खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के लिए खेल विभाग का बजट बढ़ाकर 738 करोड़ रुपये कर दिया है।  इसी के साथ प्रदेश में अब स्पॉर्ट्स टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात कही  है । भोपाल के नाथू बरखेड़ा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण और स्पोर्ट्स साइंस सेंटर की स्थापना की जाएगी। 

सरकार ने इस बजट में  भोपाल में संत शिरोमणि रविदास ग्लोबल स्किल पार्क बनाने का नया ऐलान किया है। इसमें हर साल 6 हजार लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी। ग्वालियर, जबलपुर, सागर और रीवा में भी स्किल सेंटर शुरू किए जाएंगे। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना का इस   बजट में   विस्तार हुआ है।  अब सरकार इस योजना के तहत तीर्थयात्रियों को हवाई जहाज से तीर्थ दर्शन कराएगी ।  मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन के के लिए 50 करोड़ रु स्वीकृत किये गए हैं । 

किसानों के कल्याण के लिए भी कई सौगातें सरकार ने दी हैं।  सरकार ने कृषि सम्बन्धी योजनाओं के लिए  कुल 53 हजार 964 करोड़ रु का बजट प्रस्तावित किया गया है। डिफॉल्टर किसानों का कर्ज सरकार ने भरने का बड़ा ऐलान इस बजट में किया है।  मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अन्तर्गत 3 हजार 200 करोड़ रु का प्रावधान इस बजट में किया गया है।  प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के साथ ही फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 11 हजार एकड़ में वैकल्पिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की बात हुई है।   प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत सुरक्षा कवच हेतु 2 हजार करोड़ रु की राशि सरकार प्रदान करेगी।।  मोटे अनाज के लिए 1000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।  11हजार एकड़ मे सुगंधित खेती को बढ़ावा  देने की भी बात हुई है।  सिंचाई परियोजना के लिए 11 हजार 50 करोड़ रुपये का बजट, किसानों को हर साल 10,000 की आर्थिक सहायता, सीएम किसान कल्याण योजना के लिए 3200 करोड़ रुपये का बजट किसानों के लिए सही मायनों में नई सौगातें लेकर आया  है।   मुख्यमंत्री गोसेवा योजना के अंतर्गत 3346 गोशाला का निर्माण स्वीकृत किया गया है।

आधारभूत अवसंरचना पर भी विशेष फोकस सरकार ने किया है।  सरकार द्वारा  प्रस्तुत किये गए  बजट में इंदौर, भोपाल में मेट्रो रेल के लिए 710 करोड़ रुपये का बजट   प्रस्तावित किया गया है।  इसी साल दोनों शहरों में मेट्रो का ट्रायल करने की योजना है। चुनावी दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है।  इंदौर-पीथमपुर इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी  विकास होगा होगा वहीँ 105 नए  रेलवे ब्रिज  भी इस बजट में प्रस्तावित हैं।  हवाई पट्टियों के विकास के लिए 80 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। प्रदेश में सड़कों और पुलों के लिए 56 हजार 256 करोड़ रुपए , नगरीय निकायों को 842 करोड़ रुपए, नगरीय विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपए और स्थानीय निकायों को 3 हजार 83 करोड़ रुपए के साथ ही नगरीय  विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया है। सड़क और पुलों के निर्माण के लिए 2023 -24 में 10  हजार 182 करोड़ का प्रावधान किया गया है।  

इस प्रकार शिवराज सरकार द्वारा  पेश किये गए बजट में समाज के सभी वर्गों के हित  में घोषणाएं की गयी हैं।  प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत  ये बजट समाज  के सभी  वर्गों के लिए लाभकारी और कल्याणकारी  है।  

Monday, 16 January 2023

2023 में निवेशकों की पहली पसंद बनेगा मध्यप्रदेश



मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान  प्रदेश में   निवेशकों को आकर्षित करने के लिए लगातार कदम उठा  रहे हैं जिसका स्पष्ट परिणाम हाल में इंदौर में सम्पन्न जीआईएस समिट के बाद  भी दिखाई  दे रहा है।  11-12 जनवरी को इंदौर में आयोजित  हुए  ग्लोबल इन्वेस्टर्स  समिट में 84 देशों के बिजनेस डेलिगेट शामिल हुए जिसमें कुल 10 पार्टनर कंट्री थे। इसके अलावा 35 देशों के दूतावासों के प्रतिनिधियों ने  भी हिस्सेदारी  की। दो दिन में 2600 से अधिक मैराथन बैठकों के बाद  कुल 36 विदेशी व्यापारिक संगठनों से करारनामे हुए। जी-20 के पार्टनर और अनेक बिजनेस डेलीगेट्स ने इस भव्य  आयोजन में चार चाँद  लगा दिए।  

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत मिशन को पूर्ण करने की दिशा में  प्रदेश की शिवराज सरकार लगातार काम कर रही है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि वह 2026 तक मध्यप्रदेश को 550 बिलियन डालर की इकोनामी बना देंगे। इस दिशा में वह दिन रात नई  ऊर्जा के साथ  लगातार काम कर रहे हैं।  उनके  कुशल नेतृत्व  और विजन  का परिणाम है , इंदौर  में इस भव्य समिट  के समाप्त होने के बाद देश और दुनिया से  निवेश के प्रस्ताव मिलने प्रारंभ हो गए हैं। सिंगल विंडो सिस्टम  होने  से निवेशकों को लाभ हो रहा है। प्रदेश में निवेश करने के लिए विश्व के कई देश उत्सुक हैं।

निवेशकों को आकर्षित करने के लिए शिवराज सरकार की नीतियों का असर  दिखाई दे रहा है।  मुख्यमंत्री चौहान निवेश के माध्यम से प्रदेश के विकास को निर्णायक गति देना चाहते हैं जिसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने  निवेश करने वाले उद्योगपतियों के लिए कई रियायतें देने का बड़ा फैसला किया है। सूबे के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है वे उद्योगपतियों की एक पाई भी व्यर्थ नहीं जाने देंगे। संवाद, सहयोग, सुविधा, स्वीकृति, सेतु, सरलता और समन्वय के 7 सूत्रों से उद्योगों को पूर्ण सहयोग की रणनीति अपनाई जाएगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि इस समिट के माध्यम से उद्योगपतियों और निवेशकों द्वारा 15 लाख 42 हजार 550 करोड़ रूपए से अधिक के लागत के उद्योग लगाने के प्रस्ताव मिले हैं, जिनसे 29 लाख लोगों को रोजगार देने की संभावनाओं को साकार किया जा सकेगा। इंटेशन टू इन्वेस्ट के परिणामस्वरूप  मध्यप्रदेश की प्रगति में महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ेगा।

मुख्यमंत्री  चौहान ने बताया कि प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 06 लाख 09 हजार 478 करोड़, नगरीय अधोसंरचना में 02 लाख 80 हजार 753 करोड़, खाद्य प्र-संस्करण और एग्री क्षेत्र में 01 लाख 06 हजार 149 करोड़, माइनिंग और उससे जुड़े उद्योगों में 98 हजार 305 करोड़, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में 78 हजार 778 करोड़, केमिकल एवं पेट्रोलियम इंडस्ट्री में 76 हजार 769 करोड़, विभिन्न सेवाओं के क्षेत्र में 71 हजार 351 करोड़, ऑटोमोबाईल और इलेक्ट्रिक व्हीकल के क्षेत्र में 42 हजार 254 करोड़, फार्मास्युटिकल और हेल्थ सेक्टर में 17 हजार 991 करोड़, लॉजिस्टिक एवं वेयर हाऊसिंग क्षेत्र में 17 हजार 916 करोड़, टेक्सटाईल एवं गारमेंट क्षेत्र में 16 हजार 914 करोड़ तथा अन्य क्षेत्रों में 01 लाख 25 हजार 853 करोड़ का निवेश किए जाने के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। 

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उद्योगपतियों को अब  अपनी कठिनाइयाँ दूर करने के लिए राजधानी भोपाल नहीं आना पड़ेगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने उद्योगपतियों से प्रदेश में उद्योग लगाने एवं निवेश करने का आग्रह करते हुए कहा कि उद्योगों के लिये 24 घंटे में भूमि आवंटित की जाएगी। शिकायतों के निराकरण के लिए इन्वेस्ट एमपी  पोर्टल पर समाधान के लिए नई  विण्डो प्रारंभ होगी, जो उद्योगपति की समस्या से अवगत करवाएगी। सरकार की एक टीम द्वारा उद्योगपति से सम्पर्क भी किया जाएगा। इसका फॉलोअप मुख्यमंत्री स्तर पर होगा।

 मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उद्योगपतियों को राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए तीन वर्ष तक किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। उद्योगपतियों को अटकने-भटकने की जरूरत नहीं होगी। इस अवधि में औद्योगिक इकाई का कोई निरीक्षण भी नहीं होगा। प्लग एंड प्ले की सुविधा, जो अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में है, गारमेंट और अन्य उद्योग क्षेत्रों में भी प्रदान की जाएगी। ईज ऑफ डूईंग बिजनेस और सुशासन के द्वारा समस्याओं को हल किया जाएगा।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा आज मध्यप्रदेश विकास की तरफ तेजी से बढ़ा है। प्रदेश की विकास दर देश में सर्वाधिक है। हम तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं और वे  मध्य प्रदेश के सीईओ के रूप में सदैव उपलब्ध हैं। 
 
प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने इस  ग्लोबल समिट से पहले कई राज्यों का दौरा किया और दुनिया के देशों के उद्योगपतियों के साथ वर्चुअल संवाद भी किया।  उन्होनें देश भर के निवेशकों से मध्यप्रदेश  की बदलती परिस्थितियों का लाभ उठाने का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने विभिन्न देशों  के राजदूतों, उच्चायुक्तों, उद्यमियों और निवेशकों  की उपस्थिति में बुनियादी इंफ्रास्टक्चर में अग्रणी मध्यप्रदेश के  बदलते परिवेश को प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री ने नीतिगत बदलाव के साथ ढांचागत सुविधाओं में व्यापक सुधार की बात सभी को समझाई।  

मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाओं को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री चौहान लगातार पिछले साल से ही उद्योगपतियों से वन-टू-वन मीटिंग कर रहे थे। उनके द्वारा बैंगलुरू और मुंबई में उद्योगपतियों से चर्चा की गई। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए अथक परिश्रम किया  इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश की संभावनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश भारत का सबसे तेजी से बढ़ने वाला प्रदेश हैं। मध्यप्रदेश वन संपदा, खनिज संपदा, जल संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है जो अब टाइगर स्टेट, लेपर्ट स्टेट,  कल्चर स्टेट और अब चीता स्टेट भी हो गए हैं। उद्योगपतियों का भरोसा जीतने में  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान कामयाब हुए हैं।  प्रदेश में निवेश आमंत्रित करने के लिए अलग अलग  प्रदेशों में हुए मुख्यमंत्री के रोड शो को अच्छी सफलता मिली है। हांगकांग , नार्वे , इजराइल सहित खाड़ी के कई देश प्रदेश में भारी भरकम निवेश के लिए तैयार हो रहे हैं। विदेशी निवेशकों में जिस प्रकार का आकर्षण दिख रहा है उससे साफ हो गया है कि आज विदेशी  निवेशक भी मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए उत्साहित हैं।  इंदौर में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने  राज्य सरकार की सहयोगात्मक नीतियों का जिक्र करते हुए निवेशकों को हरसंभव सहयोग का भरोसा भी दिलाया।

हांगकांग का एपिक ग्रुप 400 करोड़ का निवेश भोपाल में करने जा रहा है।  हांगकांग में स्थापित गारमेंट क्षेत्र के अग्रणी समूह एपिक ग्रुप  ने भोपाल के निकट 35 एकड़ भूमि पर 400 करोड़ रूपये के निवेश से वर्टिकल फेब्रिक और गारमेंट इकाई की स्थापना पर  सहयोग का भरोसा जताया है।  इकाई से लगभग 10 हजार व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होंगे।एपिक ग्रुप बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जैसे लिवाइस, अमेजॉन, वॉलमार्ट, नॉटिका आदि को गारमेंट की आपूर्ति करता है। वर्तमान में समूह की इकाइयाँ बांग्लादेश, जॉर्डन, वियतनाम और इथियोपिया में संचालित हैं। समूह बांग्लादेश से अपनी कुछ गतिविधियाँ मध्यप्रदेश में स्थानांतरित करने का इच्छुक है। इसी तरह नॉर्वे पवन और सौर ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश का इच्छुक है।  समूह ने  छिंदवाड़ा जिले में सौर तथा पवन ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश तथा ग्रीन एनर्जी, नवकरणीय ऊर्जा के संबंध में चर्चा  हुई ।  इस समूह ने  जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षेत्र में दोनों देशों के साथ मिल कर कार्य करने की इच्छा जताई। इजराइल की कम्पनियों ने भारत में ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट और जल प्रौद्योगिकी में निवेश किया है। मध्यप्रदेश में कृषि के क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों के संचालन और उनमें निवेश के लिए इजराइल की कम्पनियाँ इच्छुक हैं। साथ ही कौशल विकास, स्मार्ट सिटी डेवपलमेंट तथा अधो-संरचना विकास के क्षेत्र में निवेश की भी इच्छुक हैं।

 सिंगापुर इंडियन चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज प्रतिनिधि-मंडल ने कृषि , प्र-संस्करण, थीम पार्क विकसित करने तथा कौशल उन्नयन के लिए प्रशिक्षण गतिविधियों के विस्तार के बारे में चर्चा की। मेसर्स शाही एक्सपोर्ट्स  ने इंदौर के समीप 25 एकड़ भूमि पर 200 करोड़ रूपये के निवेश से रेडीमेड गारमेंट इकाई की स्थापना के संबंध में प्रस्ताव रखा। नेटलिंक स्ट्रेटेजिक सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, अमेरिका की फ्लैश साइंटिफिक टेक्नोलॉजी के साथ मिल कर भोपाल के पास 200 करोड़ के निवेश से सायबर सिटी निर्माण के लिए अपनी इच्छा प्रकट की  है। नेटलिंक ने प्रदेश में स्टार्टअप प्रोत्साहन में 25 करोड़ रूपये का निवेश करने की इच्छा जताई है।  उन्होंने आकाशीय बिजली के नुकसान को बचाने के लिए तकनीक का पॉयलेट प्रोजेक्ट प्रदेश में क्रियान्वित करने पर भी  चर्चा की है ।कमर्शियल रियल एस्टेट के क्षेत्र में कार्यरत जे.एल.एल. समूह  द्वारा  5 हजार करोड़ के निवेश से  मध्यप्रदेश की तस्वीर बदलगी।  परियोजना के लिए विदेश एवं घरेलू संस्थाओं से वित्त पोषण लाने पर भी जीआईएस में  चर्चा हुई है। इसी तरह नर्मदा शुगर प्रायवेट लिमिटेड  ने प्रदेश में 450 करोड़ के निवेश से एथनॉल प्लांट, कंप्रेस्ड बॉयोगैस प्लांट और राइस ब्रान रिफाइनरी की स्थापना का निर्णय लिया है । कृष्णा फॉस्केम लिमिटेड ने झाबुआ में 200 हेक्टेयर भूमि पर 5100 करोड़ के निवेश से उर्वरक और कृषि रसायन की 7 इकाइयों की स्थापना संबंधी कार्य-योजना पर चर्चा की है वहीँ  टेक्समो पाइप्स एण्ड प्रोडक्ट्स लिमिटेड ने पीथमपुर में 130 करोड़ की लागत से 18 एकड़ भूमि पर एथनॉल संयंत्र की परियोजना को लेकर अपनीरुचि दिखाई है। आबूधाबी की ई-20 इन्वेस्टमेंट लिमिटेड ने स्ट्राबेरी, ब्लू-बेरी की खेती, उनके प्र-संस्करण तथा वैश्विक स्तर पर वितरण के संबंध में प्रस्ताव दिया है और भूमि आवंटित करने का निवेदन किया है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को  मध्यप्रदेश साकार करेगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में विश्व के देशों को भारत ही दिग्दर्शन कराएगा। मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए अनेक क्षेत्रों में प्रधानमंत्री की आशाएँ और अपेक्षाएँ हैं, जिन्हें गंभीरता से पूरा किया जाएगा। मध्यप्रदेश औद्योगिक प्रगति के रनवे पर रफ्तार बढ़ा चुका है, हम अब टेक ऑफ कर रहे हैं। प्रदेश सरकार ने राज्य के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। शिवराज सरकार की बेहतर नीतियों के कारण आज  निवेशक मध्यप्रदेश को उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे हैं।  प्रदेश में आज बेहतरीन इंफ्रास्टक्चर  है। बिजली, सड़क , पानी रेल , एयर कनेक्टिविटी और 5 जी तकनीक का बेहतर नेटवर्क तैयार किया गया है। प्रदेश में लगने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के साथ रोजगार  दिया जा रहा है। कानून व्यवस्था के मामले में भी  प्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय कार्य किया है। अब मध्यप्रदेश शांति का टापू है। प्रदेश में व्यापार के लिए अनुकूल वातावरण सृजित हुआ है। मध्यप्रदेश  विकास के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इच्छाशक्ति व संकल्प के चलते प्रदेश में निवेश करने के लिए निवेशक आकर्षित हो रहे हैं तथा प्रदेश निवेशकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। प्रदेश में वर्तमान समय में विकास के कई कार्य प्रगति पर हैं जिसके लिए निवेश की जरूरत  है और अब सरकार उसमें लगातार आगे बढ़ रही है। जीआईएस 2023  मध्यप्रदेश के विकास  के लिए  सही मायनों में एक मील का पत्थर साबित हुई है। ग्लोबल  इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से मध्यप्रदेश में  अभूतपूर्व निवेश की संभावनाएं बन रही हैं। इससे प्रदेश के युवाओं को विविध क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे। भारत को जी -20 की अध्यक्षता मिलने के बाद मध्यप्रदेश के इंदौर जैसे शहरों में भी इस समूह की बड़ी बैठकें इस वर्ष आयोजित होंगी। ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। जनवरी के अंत में मध्यप्रदेश में खेलो इंडिया का आयोजन भी होने जा रहा है। इस आयोजन से मध्यप्रदेश के पास  खुद को  खेलों के बड़े हब  के रूप में प्रस्तुत करने का बेहतरीन मौका मिलेगा।  इससे  मध्यप्रदेश को देश और दुनिया में नई पहचान मिलेगी।  

 इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टमेट समिट के  शानदार आयोजन से विदेशी निवेशक ही नहीं अपितु स्वदेशी कंपनियां भी उत्साहित हैं।  ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के सफल आयोजन होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तमाम उद्योगपतियों का आभार जताया है। अगर ये सब कोशिशें परवान चढ़ी तो उद्योगों को वैश्विक और घरेलू बाजार तक पहुंच बनाने में लाजिस्टिक्स की सुलभता में  वृद्धि होगी। त्वरित गति से उद्योगों की स्थापना के लिए 24  घंटे में जमीन  देने के मुख्यमंत्री चौहान के फैसले की उद्योगपतियों ने दिल खोलकर सराहना की है। जीआईएस में तमाम उद्योगपतियों के  निवेश के माध्यम से  वर्ष -2023  मध्यप्रदेश  के लिए भी मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। 

Thursday, 12 January 2023

युवा शक्ति के प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद


विवेकानन्द जिन्हें उस दौर में नरेन्द्रनाथ नाम से पुकारा जाता था एक ऐसा नाम है जिन्होंने  करिश्माई व्यक्तित्व के किरदार को एक दौर में जिया। आज भी लोग गर्व से उनका नाम लेते हैं और युवा दिलों में वह एक आयकन की भांति बसते हैं। इतिहास के पन्नों में विवेकानंद का दर्शन उन्हें एक ऐसे महाज्ञानी व्यक्तित्व के रूप में जगह देता है जिसने अपने ओजस्वी विचारों के द्वारा दुनिया के पटल पर भारत का नाम बुलंदियों के शिखर पर पहुँचाया। उनके द्वारा दिया गया वेदान्त दर्शन भारतीय दर्शन की एक अनमोल धरोहर है। अपने गुरु के नाम पर विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन तथा रामकृष्ण मठ की स्थापना की। विश्व में भारतीय दर्शन विशेषकर वेदांत और योग को प्रसारित करने में विवेकानंद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, साथ ही ब्रिटिश भारत के दौरान राष्ट्रवाद को अध्यात्म से जोड़ने में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।


 विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में विश्वनाथ और भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। बचपन में नरेन्द्रनाथ नाम से जाने जाने वले विवेकानंद काफी चंचल प्रवृति के थे । उनकी माता भगवान की अनन्य उपासक थी लिहाजा माँ के सानिध्य में वह भी ईश्वर प्रेमी हो गए। बचपन में विवेकानंद की माँ इन्हें रामायण की कहानी सुनाती  थी तो इसको यह बड़ी तन्मयता से सुनते थे। रामायण में हनुमान के चरित्र ने उस दौर में इनके जीवन को खासा प्रभावित किया साथ ही अपनी माँ की तरह वह भी शिवशंकर के अनन्य भक्त हो गए । कई बार वह शिव से सीधा साक्षात्कार करते मालूम पड़ते थे और अपनी माँ से कहा करते कि उनमे शंकर का वास है। यह सब सुनकर इनकी माँ चिंतित हो उठती कि उनका यह बेटा कहीं बाबा सन्यासी ना बन जाए। बचपन से ही नरेन्द्रनाथ पढ़ाई लिखाई में रूचि लेने लगे। पढ़ाई में यह अव्वल दर्जे के छात्र थे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है जो चीज एक बार यह पढ़ लेते उसे कभी भूलते नहीं थे। युवावस्था में उन्हें पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास के कारण गहरे द्वद से गुज़रना पड़ा। परमहंस जी जैसे जौहरी ने रत्न को परखा। उन दिव्य महापुरुष के स्पर्श ने नरेन्द्र को बदल दिया। इसी समय उनकी भेंट अपने गुरु रामकृष्ण से हुई, जिन्होंने पहले उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है। रामकृष्ण ने सर्वव्यापी परमसत्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अनुभूति पाने में नरेंद्र का मार्गदर्शन किया और उन्हें शिक्षा दी कि सेवा कभी दान नहीं, बल्कि सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना होनी चाहिए। यह उपदेश विवेकानंद के जीवन का प्रमुख दर्शन बन गया। उस शक्तिपात के कारण कुछ दिनों तक नरेन्द्र उन्मत्त-से रहे। उन्हें गुरु ने आत्मदर्शन करा दिया था। 25  वर्ष की अवस्था में नरेन्द्रदत्त ने भगवा वस्त्र को   धारण किया । अपने गुरु से प्रेरित होकर नरेंद्रनाथ ने सन्यासी जीवन बिताने की दीक्षा ली और स्वामी विवेकानंद के रूप में  दुनिया में जाने गए। जीवन के आलोक को जगत के अन्धकार में भटकते प्राणियों के समक्ष उन्हें उपस्थित करना था। स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की।गुरुजनों के प्रति इनका सम्मान उस दौर में भी देखते ही बनता था। बड़े होने पर भी गुरु से इनका लगाव बना रहा। विवेकानंद का मानना था कि जीवन में सफल होने के लिए अच्छा  गुरु मिलना जरुरी है क्युकि गुरु ही अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले जाता है। बचपन से ही गुरु के अलावे आध्यात्मिक चीजों की तरफ इनका झुकाव हो गया और इसी दौरान मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई जिन्होंने इन्हें अपना मानस पुत्र घोषित कर दिया । परमहंस की दी हुई हर शिक्षा को विवेकानंद ने अपने जीवन में ना केवल उतारा बल्कि लोगो को भी इसके जरिये कई सन्देश दिए जिसने आगे बदने की राह खोली । 

11 सितंबर सन् 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। अमेरिका ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा। स्वामी विवेकानन्द ने वहाँ भारत और हिन्दू धर्म की भव्यता स्थापित करके ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा।11 सितम्बर 1893 का दिन इतिहास में  अमर है। इस दिन अमेरिका में विश्व धर्म सम्मलेन का आयोजन किया जिसमे दुनिया के कोने कोने से लोगो ने शिरकत की। उस दौर में भारत के प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर थी। गेरुए कपडे पहने विवेकानन्द ने  अपनी वाणी से वहां पर मौजूद जनसमुदाय को मंत्र मुग्ध कर दिया। जहाँ सभी अपना भाषण लिखकर लाये थे वहीँ विवेकानंद ने अपना मौखिक भाषण दिया। दिल से जो निकला वही बोला और जनसमुदाय के अंतर्मन को मानो झंकृत ही कर डाला। उनके शालीन अंदाज ने लोगों को  उन्हें सुनने को मजबूर कर दिया। धर्म की व्याख्या करते हुए वह बोले जैसे सभी नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती है वैसे ही दुनिया में अलग अलग धर्म अपनाने वाले मनुष्य को एक न एक दिन ईश्वर  की शरण में जाकर ही लौटना पड़ता है। 'सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका' के संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते ही 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। 17 सितम्बर 1893 को शिकागो में धर्म सभा में उन्होंने भारत को "हिन्दू राष्ट्र " के नाम से सम्बोधित किया और स्वयं के "हिन्दू होने पर गर्व " महसूस किया। उन्होंने सभा को बताया  हिन्दू धर्म पर प्रबंध  ही हिन्दुत्व की राष्ट्रीय परिभाषा है। इसे समझने पर हमें हमारे विशाल देश की बाहरी विविधता में  एकता के दर्शन होते हैं। शिकागो से वापसी पर उन्होंने कहा केवल अंध देख नहीं पाते और विक्षिप्त बुद्धि समझ नहीं पाते कि यह सोया देश अब जाग उठा है।अपने पूर्व गौरव को प्राप्त करने के लिए इसे अब कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने सभी हिन्दुओं को सब भेदों से ऊपर उठकर अपनी राष्ट्रीय पहचान पर गर्व करने का ककहरा  ना  केवल सुनाया  बल्कि दुनिया  में  भारत  के नाम के झंडे  गाड़  दिए । विवेकानंद ने वहाँ एकत्र लोगों को सभी मानवों की अनिवार्य दिव्यता के प्राचीन वेदांतिक संदेश और सभी धर्मों में निहित एकता से परिचित कराया। शिकागो में दिये गए उनके व्याख्यानों  से एक  नए अभियान की शुरुआत हुई जो सुधार के उद्देश्य से  आज भी  हर किसी के  दिल में बसा है।  उन्होंने न्यूयॉर्क में लगभग दो वर्ष व्यतीत किये जहाँ वर्ष 1894 में पहली ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की। उन्होंने पूरे यूरोप का व्यापक भ्रमण किया तथा मैक्स मूलर और पॉल डूसन जैसे मनीषियों  से संवाद किया साथ ही   भारत में अपने सुधारवादी अभियान के आरंभ से पहले निकोला टेस्ला जैसे प्रख्यात वैज्ञानिकों के साथ तर्क-वितर्क भी किये।

विवेकानंद का विचार है कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं, जो उनके आध्यात्मिक गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के आध्यात्मिक प्रयोगों पर आधारित है। परमहंस रहस्यवाद के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखते हैं, जिनके आध्यात्मिक अभ्यासों में यह विश्वास निहित है कि सगुण और निर्गुण की अवधारणा के साथ ही ईसाईयत और इस्लाम के आध्यात्मिक अभ्यास आदि सभी एक ही बोध या जागृति की ओर ले जाते हैं।शिकागो के अपने प्रवास के दौरान स्वामी विवेकानंद ने तीन चीजों पर जोर  दिया। पहला, उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा न केवल सहिष्णुता बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करने में विश्वास रखती है। दूसरा, उन्होंने स्पष्ट और मुखर शब्दों में इस बात पर बल दिया कि बौद्ध धर्म के बिना हिंदू धर्म और हिंदू धर्म के बिना बौद्ध धर्मं अपूर्ण है। तीसरा, यदि कोई व्यक्ति केवल अपने धर्म के अनन्य अस्तित्व और दूसरों के धर्म के विनाश का स्वप्न रखता है तो मैं ह्रदय की गहराइयों से उसे दया भाव से देखता हूँ और उसे इंगित करता हूँ कि विरोध के बावजूद प्रत्येक धर्म के झंडे पर जल्द ही संघर्ष के बदले सहयोग, विनाश के बदले सम्मिलन और मतभेद के बजाय सद्भाव व शांति का संदेश लिखा होगा।

जिस समय शिकागो में 1893 में धर्म सम्मेलन हुआ ,उस समय पाश्चात्य जगत भारत को हीन दृष्टि  से देखता था । वहां के लोगों ने बहुत प्रयास किया कि विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही ना मिले, मगर एक अमेरिकी प्रोफ़ेसर के प्रयास से उन्हें थोडा समय मिला।  भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा कहकर स्वामी जी ने पुन: भारत को विश्व गुरु पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। गुरुदेव रविंदर नाथ टैगोर  ने  विवेकानन्द  के बारे में कहा  है यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। मद्रास की एक सभा को संबोधित करते हुए स्वामीजी ने कहा भारत की समस्या अन्य देशों की समस्याओं की तुलना से ज्यादा  पेचीदा है। जात, धर्म, भाषा, सरकार ये सब मिलकर राष्ट्र बनता है। फिर भारत जैसे राष्ट्र का एक अनोखा इतिहास है जहां आर्य, द्रविड़, मुसलमान मुगल एवं यूरोपीय साथ-साथ बसते हैं बावजूद हमारे में एक पवित्र बंधन, पवित्र परम्परा रह 1894 में न्यूयार्क में उन्होंने वेदांत सोसाईटी बनाई। सन् 1896 तक वे अमेरिका रहे। उन्हीं का व्यक्तित्व था, जिसने भारत एवं हिन्दू-धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेशों में जागृत किया।  स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- 'मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।'

जीवन के अंतिम पडाव पर परमहंस सरीखे गुरु ने जब विवेकानंद को अपने पास बुलाया और कहा अब मेरे जाने की घड़ी आ गई है तो विवेकानंद बड़े भावुक हो गए लेकिन परमहंस  गुरु ने जनसेवा का जो गुरुमंत्र इन्हें दिया उसका प्रचार , प्रसार विवेकानंद ने देश , दुनिया में किया। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वयं को हिमालय में चिंतनरूपी आनंद सागर में डुबाने की चेष्टा की, लेकिन जल्दी ही वह इसे त्यागकर भारत की कारुणिक निर्धनता से साक्षात्कार करने और देश के पुनर्निर्माण के लिए समूचे भारत में भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा। इन छ्ह वर्षों के भ्रमण काल में वह राजाओं और दलितों, दोनों के अतिथि रहे। उनकी यह महान यात्रा कन्याकुमारी में समाप्त हुई, जहाँ ध्यानमग्न विवेकानंद को यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ओर रुझान वाले नए भारतीय वैरागियों और सभी आत्माओं, विशेषकर जनसाधारण की सुप्त दिव्यता के जागरण से ही इस मृतप्राय देश में प्राणों का संचार किया जा सकता है।विवेकानंद युवा तरुणाई पर भरोसा करते थे और ऐसा मानते थे अगर कुछ नौजवान उनको मिल जाएँ तो वह पूरी मानव जाति  की सोच को बदल सकते हैं । उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमु्ख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत,  विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं। उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है।स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार रहना होगा, विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करते हैं।  देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है। ऐसे माहौल में  विवेकानंद का  जीवन  दर्शन   युवाओ को एक नई  राह दिखा सकता है। विवेकानंद जी के विचारों में वह  तेज है जो सारे युवाओं को नई  दिशा दे सकता है। वह  आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने सनातन धर्म को गतिशील तथा व्यावहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने  किया शायद   यही  वजह है भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद का मानना है कि भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा तथा सम्मान को शिक्षा द्वारा ही वापस लाया जा सकता है। किसी देश की योग्यता तथा क्षमता में वृद्धि उस देश के नागरिकों के मध्य व्याप्त शिक्षा के स्तर से ही हो सकती है। स्वामी विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थी की आत्मोन्नति हो और जो उसके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके। साथ ही शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिसमें विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति में आत्मनिर्भर तथा चुनौतियों से निपटने में स्वयं सक्षम हों। विवेकानंद ऐसी शिक्षा पद्धति के घोर विरोधी थे जिसमें गरीबों एवं वंचित वर्गों के लिये स्थान नहीं था।स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब हम अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ निराशा का माहौल देखा जा सकता था । उन्होंने भारत के सोए हुए जनमानस  को जगाया और उनमें नई उमंग का संचार किया।विवेकानंद वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बहुत महत्व देते थे। वह शिक्षा और ज्ञान को आस्था की कुंजी मानते हैं। 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था 'जगत में बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो चुकी हैं। हम भी महान विजेता रह चुके हैं। हमारी विजय की गाथा को महान सम्राट अशोक ने धर्म और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया है और अब समय आ गया है भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे। यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूं कि तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बातें सुन रहा है, अपने-अपने मन में उसका पोषण करे और कार्यरूप में परिणत किए बिना न छोड़ें। विवेकानंद के अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो पुस्तकों में है, न ही धार्मिक सिद्धांतों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है। विवेकानंद ने धार्मिक आडंबर पर चोट की तथा ईश्वर की एकता पर बल दिया। संसार में कोई  धर्म  न बड़ा है और ना ही छोटा । इस तरह उन्होंने यह कहा संसार के सभी धर्म समान है उनमे किसी भी तरह का भेद नहीं है । इस प्रकार उन्होंने अपने ओजस्वी विचारों के जरिये हिंदुत्व की नई परिभाषा उस दौर में गढ़ने  का काम किया ।प्रसिद्ध भारतीय साहित्य के प्रथम नोबलिस्ट गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर भी विवेकानंद से प्रभावित थे। उन्होंने कहा था यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं। भारत को विदेशों में प्रतिष्ठा दिलाने में विवेकानंद प्रथम थे। आधुनिक काल में पश्चिमी विश्व में राष्ट्रवाद की अवधारणा का विकास हुआ लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद प्रमुख रूप से भारतीय अध्यात्म एवं नैतिकता से संबद्ध है। भारतीय संस्कृति के प्रमुख घटक मानववाद एवं सार्वभौमिकतावाद विवेकानंद के राष्ट्रवाद की आधारशिला माने जा सकते हैं। पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रस है। उनके लेखों और उद्धरणों से यह इंगित होता है कि भारत माता एकमात्र देवी हैं जिनकी प्रार्थना देश के सभी लोगों को सहृदय से करनी चाहिये।

विवेकानंद के शब्दों में “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है।” इस प्रकार विवेकानंद ने गरीबी को ईश्वर से जोडकर दरिद्रनारायण की अवधारणा दी ताकि इससे लोगों को वंचित वर्गों की सेवा के प्रति जागरूक किया जा सके और उनकी स्थिति में सुधार करने हेतु प्रेरित किया जा सके। उन्होंने गरीबी और अज्ञान की समाप्ति पर बल दिया तथा गरीबों के कल्याण हेतु कार्य करना राष्ट्र सेवा बताया। किंतु विवेकानंद ने वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार करने के लिये वर्ण व्यवस्था को भी स्वीकृति दी। हालाँकि वे अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। महात्मा गांधी द्वारा सामाजिक रूप से शोषित लोगों को 'हरिजन' शब्द से संबोधित किये जाने के वर्षों पहले ही स्वामी विवेकानंद ने 'दरिद्र नारायण' शब्द का प्रयोग किया था जिसका आशय था कि 'गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।‘ वस्तुतः महात्मा गांधी ने यह स्वीकार भी किया था कि भारत के प्रति उनका प्रेम विवेकानंद को पढ़ने के बाद हज़ार गुना बढ़ गया। स्वामी विवेकानंद के इन्हीं नवीन विचारों और प्रेरक आह्वानों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए उनके जन्मदिवस को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ घोषित किया गया।

उनसे प्रभावित पश्चिमी लेखक रोमां रोलां का यह कथन रोमांचित करता है‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम हुए। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी। स्वामी विवेकानंद के उपदेशात्मक वचनों में  कहते थे “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।”इसके माध्यम से उन्होंने देशवासियों को अंधकार से बाहर निकलकर ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी थी ।भारत वर्ष के सन्दर्भ में उन्होंने कहा  भारत  पवित्र भूमि है,भारत मेरा तीर्थ है,भारत मेरा सर्वस्व है,भारत की पुण्य भूमि का अतीत गौरवमय है यही वह भारत वर्ष है जहाँ मानव,प्रकृति एवं अंतर्जगत की रहस्यों की जिज्ञासाओं के अंकुर पनपे थे। उन्होंने कहा था चिंतन मनन कर राष्ट्र चेतना जाग्रत करो लेकिन आध्यात्मिकता का आधार न छोडो | उनका  मत था कि पाश्चात्य जगत का अमृत हमारे लिए विष हो सकता है। युवाओं का आह्वान करते हुए स्वामी जी कहा करते थे भारत के राष्ट्रीय आदर्श सेवा व त्याग हैं। नैतिकता ,तेजस्विता,कर्मण्यता का अभाव न हो। उपनिषद ज्ञान के भंडार हैं ,उनमे अद्भुत ज्ञान शक्ति है ,उसका अनुसरण कर अपनी निज पहचान व राष्ट्र का अभिमान स्थापित करो। स्वामी विवेकानंद ने बार-बार कहा कि भारत के पतन का कारण धर्म नहीं है अपितु धर्म के मार्ग से दूर जाने के कारण ही भारत का पतन हुआ है जब जब हम धर्म को भूल गए तभी हमारा पतन हुआ है और धर्म के जागरण से ही हम पुनह नवोत्थान की और बढे हैं | वहीँ 1900 की शुरुवात में सेन फ्रांसिस्को में भी इसकी एक शाखा खोली ।

वर्ष 1897 में विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन ने भारत में शिक्षा और लोकोपकारी कार्यों जैसे- आपदाओं में सहायता, चिकित्सा सुविधा, प्राथमिक और उच्च शिक्षा तथा जनजातियों के कल्याण पर बल दिया। इस दरमियान धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए कई दौरे भी  किये  जहाँ अपने वेदांत दर्शन के जरिये उन्होंने लोगो की सोच बदलने का काम सच्चे अर्थो में किया । विवेकानन्द  के द्वारा दिया गया वेदान्त दर्शन एक अनमोल धरोहर है । वेदांत दर्शन उपनिषद् पर आधारित है तथा इसमें उपनिषद् की व्याख्या की गई है। वेदांत दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा पर बल दिया गया है, जो उपनिषद् का केंद्रीय तत्त्व है। इसमें वेद को ज्ञान का परम स्रोत माना गया है, जिस पर प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता। वेदांत में संसार से मुक्ति के लिये त्याग के स्थान पर ज्ञान के पथ को आवश्यक माना गया है और ज्ञान का अंतिम उद्देश्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है।

विवेकानन्द एक कर्मशील व्यक्ति थे और अपने विचारों के जरिये उन्होंने समाज के सोये जनमानस को जगाने का काम किया । वह मानते थे प्रत्येक व्यक्ति में अच्छे आदर्शो  और भाव का समन्वय होना जरुरी है साथ ही शिक्षा को परिभाषित करते हुए यह कहा अपने पैरो पर खड़ा होने जो चीज सिखाये वह शिक्षा है । स्वामी विवेकानन्द का लक्ष्य समाज सेवा, जनशिक्षा, धार्मिक पुनरूत्थान और शिक्षा के द्वारा जागरुकता लाना, मानव की सेवा आदि था। उन्होंने ऐसे भारत की कल्पना की जो अंध विश्वास, पाखंड, अकर्मण्यता, जड़ता और आधुनिक सनक और कमजोरियों से स्वतंत्र होकर आगे बढ़ सके। विवेकानन्द ने वेदांत को नया रूप देकर उसे मोक्ष में बदलने का काम सही मायनों में करके दिखाया ।शिक्षा मनुष्य को मानव बनाने की प्रक्रिया है या यह कहा जाये कि मनुष्य को मानव बनाने का दायित्व शिक्षा पर है। शिक्षा की व्यवस्थागत प्रक्रिया से निकलकर ही बालक एक वयस्क के रूप में समाज में अपना स्थान और स्तर निर्धारित करता है। व्यक्तित्व और समाज की आवश्यकता के अनुसार बालक को शिक्षित और सभ्य बनाने का अहम कार्य शिक्षा व्यवस्था से ही अपेक्षित होता है।स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है’। मानव निर्माण को शिक्षा का मूल उद्देश्य मानने वाले स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन परम्परागत और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का अद्भुत समन्वय है। स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने के समर्थक स्वामी विवेकान्द शिक्षा में किसी भी प्रकार के भेदभाव के विरुद्ध थे। वे इस सत्य को भली-भांति जानते थे कि यदि शिक्षा ग्रहण करने का अवसर अगर कुछ लोगों तक ही सीमित हो या किसी भी कारण से समाज का बड़ा हिस्सा शिक्षा की प्राप्ति से वंचित रह गया तो देश का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पायेगा। उनके विचार में शिक्षा का प्रसार देश के कारखानों, खेल के मैदानों और खेतों, यहाँ तक कि देश में हर घर में होना चाहिए। यदि बच्चे स्कूल तक नहीं आ पा रहे हैं तो शिक्षकों को उन तक पहुँचना चाहिए।विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा समाज के  निर्धनतम व्यक्ति को भी प्राप्त होनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने आम जनता के जीवन की परिस्थितियाँ सुधारने के लिए शिक्षा का समर्थन किया। उनके अनुसार आम जनता को प्राप्त होनेवाली इस सार्वभौमिक शिक्षाका उद्देश्य व्यक्तिगत प्रगति के साथ सामाजिक विकास को सुनिश्चित करना है।स्वामी विवेकानंद ने महिला शिक्षा पर विशेष बल दिया। समाज में कई अवसरों पर स्वामी विवेकानंद ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि  जब  तक  महिलाओं  को  अपने  देश  में  यथोचित     सम्मान  प्राप्त  नहीं  हो  जाता  भारत  प्रगति  नहीं  कर  सकता।  उनके  अनुसार महिलाओं को सुशील, चरित्रवान, निडर और शक्तिशाली व्यक्तित्व के रूप में विकसित करना शिक्षा का उद्देश्य है। उनके विचार में महिला न केवल पुरुष के समान योग्य है बल्कि वह घर-परिवार में भी बराबर की भागीदारी रखती है उसे किसी दृष्टि से पुरुष से हीन नहीं कहा जा सकता। उन्होंने महिला शिक्षा और महिला-पुरुष समानता पर भी बल दिया।

स्वामी विवेकानंद ने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाने वाली प्रणाली के महत्व को स्वीकार किया। भौतिकता और पश्चिमी अंधानुकरण के कारण मातृभाषा की अवहेलना कर अंग्रेजी को बालमन पर थोपा जाता है। मातृभाषा का घर-परिवार और समाज में अधिकतम प्रयोग किया जाता है ऐसे में स्वाभाविक है कि किसी विदेशी भाषा को रटने की बजाय मातृभाषा के माध्यम से ही बालक दीर्घकालीन और अधिकतम ज्ञान प्राप्त कर सकता है। बालक मातृभाषा के माध्यम से ही रचनात्मक और कलात्मक विचारों का प्रसार समाज में कर सकता है।रचनात्मकता विरोधी, संस्कार विरोधी तथा अव्यवहारिक मैकालेवादी शिक्षा व्यवस्था से स्वामी विवेकानंद बेहद असंतुष्ट थे क्योंकि उनकी दृष्टि में यह शिक्षा भारत के नागरिकों के लिए व्यावहारिक और उपयोगी नहीं थी। अंग्रेजी शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य भारत अथवा भारतीयों का हित करना नहीं बल्कि भारत पर अंग्रेजों के शासन को स्थायी रखने के लिए भारतीयों में से ही क्लर्क खोजना था। उनके विचार में मैकालेवादी शिक्षा व्यवस्था व्यक्ति को आत्म-निर्भर न बनाकर दूसरे पर निर्भर बनाती है और उसके आत्मविश्वास को समाप्त कर देती है। इससे भी बढ़कर अंग्रेजी शिक्षा का मूल्य-विरोधी स्वरूप, व्यक्ति के धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों को समाप्त कर उसे एक नकारात्मक व्यक्तित्व के रूप में परिणत कर देता है। इसलिए विवेकानंद जी अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली में भारतीय दृष्टिकोण और सामाजिक आदर्शों के अनुसार आमूल-चूल परिवर्तन के इच्छुक थे। नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों से  विहीन शिक्षा प्रणाली किसी भी समाज को अवनतिकी ओर ले जा सकती है।   

स्वामी विवेकानंद ने इसलिए अनिवार्य रूप से शिक्षा  में गीता, उपनिषद और वेद में निहित नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश की आवश्यकता पर बल दिया। उनके लिए धर्म, कर्मकांड अथवा धार्मिक रीति -रिवाज नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिए आत्मज्ञान तथा आत्मबोध का कारक है। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार वास्तविक धर्म किसी समाज, जाति, नस्ल, वंश, स्थान और समय तक सीमित नहीं है बल्कि उसका लक्ष्य सामाजिक कल्याण है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार नैतिकता और धर्म एक ही हैं और इन मूल्यों से ओतप्रोत शिक्षा विद्यार्थियों का सर्वांगींण विकास करने में सहायक है। मन और शरीर दोनों को विकसित करने के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद का विचार था कि बिना स्वस्थ शरीर के आत्म बोध या चरित्र निर्माण संभव नहीं है। इसलिए स्वामी  विवेकानंद ने  पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा को विशेष रूप से शामिल करने  पर  बल  दिया। उन्होंने  युवा  वर्ग से  आह्वान  किया  कि वे गीता पाठ   करने की  अपेक्षा  फुटबॉल  खेलने से स्वर्ग  के  अधिक नजदीक पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि बलवान शरीर और मजबूत    पुट्ठोँ से युवा वर्ग गीता को भी बेहतर ढंग से समझ सकेगा। मनुष्य का  वास्तविक  और  सर्वांगीण  विकास  तभी  माना  जाएगा  जब मन  और  तन  दोनों  से  न  केवल  स्वस्थ  हो,  बल्कि  समाज  में सकारात्मक योगदान भी करे। स्वामी विवेकानंद के शिक्षा सम्बन्धी विचारों में प्राचीन भारतीय मूल्यों, आदर्शों और आधुनिक पश्चिमी मान्यताओं का समावेश है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति और व्यक्तित्व निर्माण है। व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए स्वामी विवेकानंद ने शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक और व्यावसायिक विकास के साथ भेदभाव रहित शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच का समर्थन किया। उन्होंने व्यावहारिक और आधुनिक दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, उद्योग और विज्ञान से जुड़ी पश्चिमी शिक्षा को भी महत्व दिया।4 जुलाई 1902 को उनका देहावसान हो गया । विवेकानन्द को  आज हम इस रूप में याद करे कि  उनके द्वारा दिया गया दर्शन हम अपने में आत्मसात करें, साथ ही अपने जीवन में कर्म को प्रधानता दें तो कुछ बात बनेगीं । बेहतर होगा युवा पीढ़ी उनके विचारों से कुछ सीखे  और उनको आयकन बनाने के बजाए उनकी शिक्षा को अपने में उतारे और प्रगति पथ पर चले ।
 

Friday, 6 January 2023

प्रवासियों और उद्योगपतियों के इस्तकबाल को तैयार है देश का दिल मध्यप्रदेश



देश के विकास में भारतवंशियों के योगदान पर गौरवान्वित होने के लिए हर साल 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।इस बार 9 जनवरी 2023 को प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन मध्यप्रदेश की धरती इंदौर में होने जा रहा है, जो पूरे प्रदेश के लिए गौरव और सौभाग्य की बात है। देश का सबसे साफ शहर इंदौर सभी प्रवासी भारतीयों का स्वागत करने के लिए आतुर है। इंदौर समेत पूरे मध्यप्रदेश को मेहमाननवाजी का सुनहरा अवसर मिला है। देश का दिल मध्यप्रदेश है और इंदौर अपने स्वागत-सत्कार और संस्कृति से सभी अतिथियों का दिल जीतने  का बेसब्री से इन्तजार कर रहा है।

सबसे पहले प्रवासी भारतीय दिवस वर्ष 2003 में मनाया गया था। वर्ष 1915 की 9 जनवरी को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आए थे। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन आयोजित करने का प्रमुख उद्देश्य भी प्रवासी भारतीय समुदाय की उपलब्धियों को दुनिया के सामने लाना है ताकि दुनिया को उनकी ताकत का अहसास हो सके। देश के विकास में भारतवंशियों का योगदान अविस्मरणीय है। वर्ष 2015 के बाद से हर दो साल में एक बार प्रवासी भारतीय दिवस देश में मनाया जा रहा है। अप्रवासी भारतीयों का नेटवर्क दुनिया भर में फैला है।प्रवासी भारतीय दिवस मनाने का निर्णय एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा स्थापित भारतीय डायस्पोरा पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुसार लिया गया था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी ने 8 जनवरी 2002 को नई दिल्ली में विज्ञान भवन में एक सार्वजनिक समारोह में 9 जनवरी 2002 को प्रवासी भारतीय दिवस को व्यापक स्तर पर मनाने की घोषणा की। इस आयोजन ने प्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच को सही मायनों में बदलने का काम किया है। साथ ही इसने प्रवासी भारतीयों को देशवासियों से जुड़ने का एक अवसर उपलब्ध करवाया है। इसके माध्यम से दुनिया भर में फैले अप्रवासी भारतीयों का बड़ा नेटवर्क बनाने में भी मदद मिली है, जिससे भारतीय अर्थ-व्यवस्था को भी एक गति मिली है। हमारे देश की युवा पीढ़ी को भी जहाँ इसके माध्यम से विदेशों में बसे अप्रवासियों से जुड़ने में मदद मिली है वहीँ विदेशों में रह रहे प्रवासियों के माध्यम से देश में निवेश के अवसरों को बढ़ाने में सहयोग मिल रहा है।

प्रवासी भारतीय समुदाय को भारत से जोड़ने में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भूमिका उल्लेखनीय रही है। वह अपने विदेशी दौरों में जिस भी देश में जाते हैं वहाँ के प्रवासी भारतीयों के बीच भारत की एक अलग पहचान लेकर जाते हैं। इससे उनमें अपनेपन की भावना का अहसास होता है और प्रवासी भारतीय भारत की ओर आकर्षित होते हैं। विश्व में विदेशों में जाने वाले प्रवासियों की संख्या के संदर्भ में भारत शीर्ष पर है। भारत सरकार ‘ब्रेन-ड्रेन’ को ‘ब्रेन-गेन’ में बदलने के लिये तत्परता के साथ काम कर रही है। आर्थिक अवसरों की तलाश के लिये सरकार इनको अपने देश की जड़ों से जोड़ने का प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन में प्रवासी जिस उत्साह के साथ जुटते हैं वह इस बात को साबित करता है कि प्रवासी प्रधानमंत्री के नेतृत्व को उम्मीदों भरी नज़रों से देखते हैं और उनसे उनको बड़ी उम्मीदें हैं। भारतीय प्रवासियों की तादाद दुनिया भर में फैली है। आज दुनिया के कई देशों में भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं जो विभिन्न कार्यों में संलग्न हैं। यदि भारत सरकार और प्रवासी भारतीयों के बीच आपसी समन्वय और विश्वास और अधिक बढ़ सके तो इससे दोनों को लाभ होगा। भारत की विकास यात्रा में प्रवासी भारतीय भी हमारे साथ हैं।

17वां प्रवासी भारतीय दिवस  8 , 9 ,10 जनवरी में इंदौर में आयोजित होगा। प्रवासी भारतीय सम्मेलन को सफल बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार विभिन्न देशों के भारतवंशियों, फ्रेंडस आफ एमपी के सदस्य और उद्योग व्यापार से जुड़े दिग्गज भारतीयों से सहयोग ले रही है। इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने बीते दिनों विदेशों में रह रहे भारतवंशियों से वीडियो कॉन्फ्रेंस में चर्चा करते हुए इंदौर में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन की सफलता के लिए सहयोग की अपील की है।प्रवासी भारतीय सम्मेलन के मुख्य अतिथि गोयाना के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद इरफान अली होंगे। राष्ट्रपति  द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी भी इंदौर में शिरकत करने जा रहे हैं हैं। इस सम्मेलन में मध्यप्रदेश की विशिष्ट कला-संस्कृति का प्रदर्शन होगा। साथ ही रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट भी दिखाए जाएंगे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि प्रवासी भारतीय दिवस का इंदौर में आयोजन प्रदेश के लिए असाधारण अवसर है। इस अवसर पर मध्यप्रदेश की विशेषताओं पर केन्द्रित प्रस्तुतिकरण होना जरूरी है। मुख्यमंत्री चौहान यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रतिभागी मध्यप्रदेश की प्रशंसा करते हुए वापस जाएँ। मुख्यमंत्री ने कहा है कि इंदौर ने स्वच्छता के क्षेत्र में पूरे देश के सामने अपनी जो ख़ास पहचान स्थापित की है उसी के अनुरूप यह सम्मेलन भी अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल होगा। इससे इंदौर और मध्यप्रदेश का कद दुनिया में बढ़ेगा।

 मध्यप्रदेश के लिए जनवरी 2023 विशेष अवसर है। इस माह की 8 जनवरी को यूथ प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाएगा। अगले दिन 9 जनवरी को 17वें प्रवासी भारतीय दिवस कन्वेंशन-2023 का शुभारंभ होगा और 10 जनवरी को 17वें प्रवासी भारतीय दिवस कन्वेंशन का समापन होगा।प्रवासी सम्मेलन के बाद  इंदौर में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट मध्यप्रदेश के लिए ख़ास है और इससे निवेश की संभावनाओं को लगेंगे नए पर लगेंगे।   इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट भी 11-12 जनवरी 2023 को होगी। इसमें 9 सेक्टरों पर केन्द्रित 14 सेशन होंगे, जिसमें उद्योगपतियों से सीधा संवाद भी होगा। समिट में 17 देशों को आमंत्रित किया गया है। एमपीआईडीसी इसके लिए अपनी विशेष तैयारियों में जुटा है। कार्यक्रम के पहले प्रदेश में बड़े स्तर पर वर्चुअल इन्वेटर रोड-शो किये जाने पर सहमति बनी है।

मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाओं को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री  चौहान लगातार उद्योगपतियों से वन-टू-वन मीटिंग कर रहे हैं। इसी कड़ी में उनके द्वारा बैंगलुरू और मुंबई में पिछले माह उद्योगपतियों से चर्चा की गई। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश की संभावनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश भारत का सबसे तेजी से बढ़ने वाला प्रदेश हैं। मध्यप्रदेश वन संपदा, खनिज संपदा, जल संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है जो अब टाइगर स्टेट, लेपर्ट स्टेट, वल्चर स्टेट और अब चीता स्टेट भी हो गए हैं। मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिये आमंत्रित करते हुए कहा कि निवेश के लिए जो चीजें चाहिए वह सारी मध्य प्रदेश में हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी न केवल भारत बल्कि दुनिया के कल्याण के लिए प्रयत्नरत हैं। उनके नेतृत्व में गौरवशाली, वैभवशाली, संपन्न और समृद्ध भारत का निर्माण तो हो ही रहा है लेकिन दुनिया की समृद्धि और विकास के लिए हम उनके नेतृत्व में आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए प्रयासरत हैं।मुख्यमंत्री  चौहान ने कहा कि प्रवासी भारतीय दिवस के आयोजन में फ्रेंडस आफ एमपी के सदस्यों के सुझावों पर भी अमल किया जाएगा।  इंदौर  में प्रधानमंत्री का विशेष पोट्रेट चित्र तैयार कर भेंट करने की योजना बनी है। साथ ही आमंत्रित निवेशकों को उज्जैन में श्रीमहाकाल महालोक के दर्शन भी कराये जाएंगे। ​एनआरआइ निवेशकों को जमीन आवंटन जैसी सुविधा प्राथमिकता से उपलब्ध करवाई जाएगी। प्रवासी भारतीय दिवस और सम्मेलन की वेबसाइट पर बड़ी संख्या में कई लोगों ने  लोगों ने पंजीकरण 
 कराया है।

भारत का दिल मध्यप्रदेश, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से संभावित निवेशकों के लिए राज्य की क्षमताओं का विकास, निवेश के माहौल और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने और अपनी क्षमताओं का प्रदर्शित करने के लिए विकास का एक नया युग लिखने के लिए तैयार है।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मुख्यमंत्री ने समिट में राज्य में निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए दिल्ली, मुंबई, पुणे और बैंगलुरू में रोड शो किए। उद्योगपतियों से नियमित रूप से वन-टू-वन चर्चा एवं प्रति सप्ताह उद्योगपतियों से अपने निवास पर भेंट भी की। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न देशों के संभावित निवेशकों के साथ भी बातचीत की। यूके और यूएस ने वस्तुतः शिखर सम्मेलन के लिए अपना निमंत्रण दिया। मुख्यमंत्री के इन्हीं प्रयासों से जीआइएस राज्य के लिए गेम-चेंजर बनेगा। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट मील का पत्थर साबित होगी।"मध्यप्रदेश- भविष्य के लिए तैयार राज्य" थीम पर होने जा रही इस समिट में पर्यावरण-संरक्षण का पूरा ध्यान रखा गया है। यह कार्यक्रम "कार्बन न्यूट्रल" और "जीरो वेस्ट" पर आधारित होगा। प्रदेश में देश और विदेश के निवेशकों को राज्य में लाने के लिए राज्य के औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रदर्शन किया जायेगा। समिट का उद्देश्य राज्य की नीतियों को बढ़ावा देना, उद्योग अनुकूल नीतियाँ बनाने के लिए औद्योगिक संगठनों के साथ परामर्श कर प्रदेश में निवेशक फ्रेंडली वातावरण बनाना, सहयोग के अवसर और निर्यात क्षमता को बढ़ावा देना है।

वर्ष 2007 में संकल्पित, मध्यप्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट दुनिया भर के निवेशकों और व्यापार समुदाय के लिए बहुत बड़ा सुअवसर बना। इस बार भी जीआईएस एक ऐसा मंच होगा जहाँ वैश्विक नेता, उद्योगपति निवेश क्षमता का दोहन करने  के लिए एक साथ आएंगे। इस बार की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 65 से अधिक देशों के प्रतिनिधि-मंडल भाग लेंगे।  जीआइएस के अंतर्राष्ट्रीय मंडप में, 9 भागीदार देश और 14 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन अपने देशों के विभिन्न पहलुओं का प्रदर्शन करेंगे। समिट के माध्यम से राज्य के निर्यातकों को संभावित विदेशी खरीददार से जुड़ने का अवसर भी मिलेगा।अभी तक 6 हजार से अधिक उद्योगपतियों और औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने जीआइएस के लिए पंजीकरण कराया है। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अधिकारियों के साथ आमने-सामने की बैठक के लिए अग्रणी उद्योगों से 450 से अधिक अनुरोध प्राप्त हुए हैं। कार्यक्रम में फार्मा, आईटी, ऑटोमोबाइल, कपड़ा, वस्त्र, रसायन, सीमेंट, खाद्य प्र-संस्करण, रसद, पेट्रोकेमिकल, पर्यटन, नवकरणीय ऊर्जा, सेवाओं आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख उद्योगपतियों की भागीदारी होगी।समिट के दौरान राज्य के एमएसएमई को वैश्विक बाजार तक पहुँचाने और राज्य से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए क्रेता-विक्रेता मीट का आयोजन किया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से यूएसए, कनाडा, इंग्लैंड, जापान, इजराइल, नीदरलैंड, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों के खरीदार शामिल हैं। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों जैसे फार्मास्युटिकल, टेक्सटाईल, इंजीनियरिंग, कृषि और आईटी सेवाओं के 1500 से अधिक निर्यातक सहभागिता करेंगे। दो दिवसीय जीआइएस के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग प्रमुखों के साथ 19 अलग-अलग क्षेत्र-विशिष्ट सत्र होंगे। इन सत्रों में उद्योगपतियों, भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी भाग लेंगे। 

Wednesday, 4 January 2023

कर्मयोगी के लिए ‘ हीरा बा ’ से पहले भारत माता का कर्तव्यपथ


 


बचपन में एक समाज सुधारक के बारे में कहानी पढ़ी थी। ठीक से ध्यान नहीं आ रहा है। यह कहानी मैंने अपने स्वार्गीय मामा के यहाँ शायद पढ़ी थी। एक परिचित को कचहरी में किसी दस्तावेज पर एक सज्जन के हस्ताक्षर की जरूरत थी। इसके लिए अगली सुबह मिलना तय हुआ लेकिन वह सज्जन नहीं पहुँच पाए। वह परिचित बहुत परेशान रहा। दोपहर बाद सज्जन भीषण बरसात में भीगते हुए उनके घर आये. बोले 'क्षमा कीजिएगा। अल -सुबह मेरी अर्द्धांगिनी का देवलोकगमन हो गया था। उनके अंतिम संस्कार में समय लग गया जिसके चलते नहीं पहुँच पाया'।

इस वाकये का जिक्र आज इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि बीते दिनों देश के प्रधानसेवक नरेंद्र दामोदरदास मोदी की मां हीरा बा के निधन ने इस घटना की याद दिला दी। 2022 की अंतिम बेला में इस खबर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी की मां बीमार थी। वो कुछ समय पहले उनको देखने भी गए थे। उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था और डाक्टरों की टीम उनकी निगरानी भी कर रही थी लेकिन अचानक उनका 100 वर्ष की उम्र में निधन हो जाएगा, इसका किसी को अंदाजा नहीं था। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां के निधन होने के बाद बेहद सादगी से शवयात्रा निकल सकती है इसे पूरे भारत ने अपनी आँखों से देखा है, जिसने एक चाय वाले को 2014 में देश का प्रधान सेवक बनाया है। आज जब शवयात्राएं भी मेगा इंवेट में तब्दील हो चुकी हैं तो ऐसे माहौल के बीच इस सादगीपूर्ण शवयात्रा में बेहद सामान्य बेटे नजर आते रहे नरेन्द्र मोदी ने एक तरह से जननी और जन्मभूमि दोनों के लिए अपने कर्तव्यों का अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया है। देश का प्रधानसेवक बिना तामझाम के सादगी के साथ अपनी मां को श्मशान घाट तक ले गया और उसे मुखाग्नि दी। जिसने भी सुबह टेलीविजन पर इस यात्रा को देखा इसे देखकर वो विस्मय से भर गया।

इससे पहले शुक्रवार सुबह पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, ''शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम...मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है। मैं जब उनसे 100वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से।''

देश के प्रधानमंत्री मोदी बेहद सादगी के साथ अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल हुए । हमारे देश के टीवी न्यूज़ चैनलों के लिए यह एक बड़ा इवेंट बन सकता था। मां-बेटे की वो अंतिम बेला कई हफ़्तों तक टीआरपी के लिए भी बलशाली बन सकती थी। प्रधानमंत्री की मां का निधन कब हुआ, यह निधन की खबर भी देर रात 3.30 बजे जारी हुई। अंतिम यात्रा को देखने के लिए लोग खबरिया चैनलों टीवी स्क्रीन पर टकटकी भी नहीं गड़ा पाए, उससे पहले सुबह हीरा बा की अंतिम विदाई की यात्रा प्रधानसेवक ने बिना तामझाम के पूरी कर ली और उसके 2 घंटे बाद बाद नरेन्द्र मोदी वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के साथ रूटीन काम करने लग गए । उनकी इस कर्म-निष्ठा और कर्तव्यपरायणता ने एक बार फिर साबित किया है कि नरेन्द्र मोदी दुनिया के नेताओं में क्यों सर्वश्रेष्ठ हैं ? आखिर क्यों मोदी को सच्चा कर्मयोगी कहा जाता है और वे अपने हर फैसलों में न केवल चौंकाते हैं बल्कि लीक से अलग हटकर चलते हैं ? राज्यों के मुख्यमंत्रियों और तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह कहकर गुजरात आने से मन कर दिया गया कि वे अपने काम पर ध्यान दें और जहाँ हैं वहीँ से उनकी मां को श्रद्धांजलि दें । प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कहा नहीं ,बल्कि खुद किया भी। वह माँ के अंतिम संस्कार में रोये भी नहीं। अंतिम समय में पीएम मोदी ने अपनी मां को मुखाग्नि दी, तब सिर्फ उनके भाई, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और कुछ दूसरे बेहद करीबी लोग ही शामिल हुए। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी अपने कर्तव्यपथ पर लौट गए। उस दिन प्रधानसेवक मोदी वन्दे भारत ट्रेन के उदघाटन के कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से शामिल हुए और उन्होंने निजी कारणों के चलते कार्यक्रम में शामिल न हो पाने के लिए लोगों से खेद भी प्रकट किया । इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने उसी दिन दुनिया के महान फ़ुटबाल के खिलाड़ी पेले के निधन पर ट्वीट के जरिये अपना शोक भी प्रकट किया। यहीं नहीं रूड़की में शुक्रवार की सुबह टीम इंडिया के विकेटकीपर ऋषभ पंत के साथ हुए सड़क हादसे पर अपनी संवेदना व्यक्त की और उनकी मां से बात भी की।

दरअसल विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य से मुँह न मोड़ना हमारे देश की महान परम्पराओं में शामिल रहा है। इसे आदर्श जीवन शैली का एक प्रमुख हिस्सा माना गया है लेकिन आज के दौर में ये सभी परंपराएं पीछे छूटती जा रही हैं। प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने इसे आगे बढ़ाने का एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया है। हीरा बा के बारे में पढ़िए। बेटे के देश के प्रधानमंत्री होने के बाद भी वो मां होने के आभामंडल से हमेेशा दूर रही। आसपास के पड़ोसी बताते हैं उनसे मिलकर कभी लगता ही नहीं था वो नरेंद्र मोदी की मां हैं। धन्य है ऐसी मां जिसने नरेंद्र को प्रधानसेवक के पद तक पहुंचाया। उनकी मां कहा भी करती थी एक साधु ने एक बार उनसे कहा भी था आपका बेटा एक दिन बहुत ऊंचाई पर पहुंचेगा। उसे बहुत आगे जाना है। उन्होंने अपनी माँ के आशीर्वाद से इसे साकार कर दिखाया।

सभी के साथ सहज व्यवहार और अपनेपन से हीरा बा ने विशेष पहचान बनाई थी। ऐसे विलक्षण उदाहरण देखने हो नहीं मिलते हैं। हीरा बा की सादगी और उनके बेटे के कर्तव्यपरायण आचरण ने देश और दुनिया को बहुत कुछ सीख देते हैं। बेटा चाहे जितना बड़ा हो जाए, लेकिन मां के लिए वह सिर्फ बेटा ही रहता है यह संदेश हमारे प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने पूरे विश्व को दिया है। आज भी प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने के बाद भी वो अपने संस्कार नहीं भूले हैं । यह भी याद दिलाया है कि मां को अंतिम विदाई देने का वक्त कठिनतम होता है किंतु ऐसे समय भी धैर्य और संयम जरूरी है। उनकी इस सादगी ने अपरोक्ष रूप से यह संदेश भी दिया है कि दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना के साथ अपने कर्मपथ पर चलना भी जरूरी है। मां के प्रति स्नेह-समर्पण के साथ हमेशा उन्होनें देश के प्रति अपना कर्तव्य भी हमेशा याद रखा है।

हीरा बा के संघर्ष के बारे में प्रधानमंत्री मोदी कई बार भावुक अंदाज में जिक्र कर चुके हैं। साल 2015 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के साथ बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने अपनी मां के संघर्षों को याद करते हुए कहा था 'मेरे पिताजी के निधन के बाद मां हमारा गुजारा करने और पेट भरने के लिए दूसरों के घरों में जाकर बर्तन साफ करती थीं और पानी भरती थीं।' इस दौरान पीएम मोदी भावुक होकर रो पड़े थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मां हीरा बा के 100वें जन्मदिन पर लिखे ब्लॉग में कहा था कि उनकी मां हीराबेन को सुबह 4 बजे ही उठने की आदत हमेशा रही है । सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटाती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। इसके साथ ही वे अपनी पसंद के भजन भी गुनगुनाती रहती थीं। पीएम मोदी ने तब कहा था कि मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है और मेरे चरित्र में जो कुछ भी अच्छा है, उसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है। पीएम मोदी ने अपनी मां के जन्मदिन के मौके पर कहा कि कैसे उनकी मां नारीत्व और सशक्तिकरण की सच्ची प्रतीक रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बचपन के किस्सों की मदद से अपनी मां के हर गुण को बताया है, जो उनके जीवन को हर काम से जुड़ा हुआ है। पीएम मोदी ने ब्लॉग में कहा था कि उनकी मां एक ‘आदर्श जीवन’ जीने के लिए एक मार्गदर्शक की तरह हैं। कैसे उनकी मां ने उन्हें सिखाया कि औपचारिक शिक्षा के बिना भी अच्छी बातों को सीखना संभव है। ऐसा पहली बार हुआ था कि पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच पर निजी भावनाओं को व्यक्त किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था मां कभी यह नहीं चाहती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें।

हिन्दू संस्कृति में मृत्यु के 12 दिनों के बाद तेरहवीं का नियम है। इसी दिन पीपलपानी भी होता है। अंत्येष्टि के कम से कम तीन दिन तो सूतककाल होता है लेकिन प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी जो हैं जिनके लिए देश सब कुछ है। वो दो घंटे बाद ही अपने दैनिक कार्यों को करने में जुट गए। आज तक बीते 8 वर्षों में प्रधानसेवक मोदी ने एक दिन का अवकाश भी नहीं लिया। कहा जाता है जीवन में एक बार उनको दंतपीड़ा हुई जिसका उन्होनें इलाज करवाया था । जिस नरेंद्र को हीरा बा ने गढ़ा हो उस बेटे को संस्कार भी उसके जैसे ही मिलेंगे। बा के दिए संस्कारों का ही प्रताप है कि दु:ख की बेला में भी कर्म को प्रधान मानने वाले नरेंद्र मोदी की चमक एक बार सोने जैसी तो हो ही गई है । ये समाचार छपकर जब आप तक पहुंचेगा तो तय मानिए सोशल मीडिया में प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी की मां के देवलोकगमन की तस्वीरें और वीडियो करोड़ों बार देखे जा चुके होंगे। बड़ा प्रधान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने अपने इस पुण्यकार्य से समाज के सामने एक अनुकरणीय मिसाल भी पेश की है। हीरा बा को सादर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ! ईश्वर हीरा बा को अपने श्री चरणों में स्थान दे और उनकी दिवंगत आत्मा को शांति मिले।

Monday, 2 January 2023

पेसा कानून से होगा आदिवासी समुदाय का सशक्तिकरण



पेसा अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों के विस्तार के लिए एक कानून है। इस कानून की धारा 2 के संदर्भ में, "अनुसूचित क्षेत्रों" का अर्थ अनुसूचित क्षेत्रों से है जैसा कि संविधान के अनुच्‍छेद 244 के खंड (1) में संदर्भित है।  पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए संसद ने संविधान के अनुच्छेद 243एम(4)(बी) के संदर्भ में, "पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) कानून 1996" (पीईएसए) को कुछ संशोधनों और अपवादों के साथ, पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX को पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए कानून बनाया है।" पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार), कानून 1996" (पीईएसए) के तहत, राज्य विधानसभाओं को कानून की धारा 4 में प्रदत्‍त ऐसे अपवादों और संशोधनों के अधीन पांचवीं अनुसूची में पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों के विस्तार से संबंधित सभी कानूनों को बनाने का अधिकार दिया गया है।
 
1995 में भूरिया समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के आधार पर 1996 में संसद द्वारा पेसा अधिनियम लागू किया गया था।  पैसा कानून यानी पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996 भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पारम्परिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक कानून है।  अनुसूचित क्षेत्र भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची द्वारा पहचाने गए क्षेत्र हैं, जो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए विशेष अधिकार देता है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने संबंधित राज्य पंचायती राज कानूनों के तहत अपने राज्य पेसा नियम बनाए और अधिसूचित किए हैं। ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिये 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन पारित किया गया था। इस संशोधन द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था के लिये कानून बनाया गया। हालांकि अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में यह प्रतिबंधित था। वर्ष 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों हेतु आदिवासी स्वशासन सुनिश्चित करने के लिये पेसा अधिनियम 1996 अस्तित्व में आया। पेसा, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने हेतु केंद्र द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है।  यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।
 
पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण  भूमिका निभाने का अधिकार देता है।  पेसा कानून, मध्यप्रदेश में 15 नवम्बर 2022  से लागू  हो चुका है जो ग्राम सभाओं को वन क्षेत्रों में सभी प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नियमों और विनियमों पर निर्णय लेने का अधिकार देगा। पेसा कानून जनजातीय समुदाय को  उन वन क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाने के लिए अधिक संवैधानिक अधिकार देगा जहां वे रहते हैं। ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी और निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।  प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखण्डों की 5254 पंचायतों के 11757 ग्रामों में यह नियम लागू है जहाँ जल, जमीन और जंगल पर जनजातीय समुदाय का सीधा नियंत्रण होगा। छल, कपट से अब कोई जमीन नहीं हड़प सकेगा। ग्राम सभा द्वारा अमृत सरोवरों और तालाबों का प्रबंधन होगा और वनोपज की दर भी ग्राम सभा द्वारा तय की जाएगी। रेत खदान, गिट्टी पत्थर देने जैसे निर्णय भी अब सीधे ग्राम सभा द्वारा लिए जाएंगे। इस एक्ट के माध्यम से  स्थानीय संस्थाओं परम्परों ,  संस्कृति का संवर्धन और संरक्षण हो सकेगा। इस कानून का उद्देश्य जनजातीय समाज को स्वशासन प्रदान  करने के साथ ही ग्रामसभाओं को सभी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बनाना है।

 पेसा कानून के तहत जो नियम सरकार ने बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार ग्राम सभाओं को दिया गया  है। हर साल गांव की जमीन, उसका नक्शा, वनक्षेत्र का नक्शा, खसरे की नकल, पटवारी को या बीट गार्ड को गांव में लाकर ग्रामसभा को दिखानी होगी ताकि जमीनों में हेर-फेर न हो। नामों में गलती है तो यह ग्रामसभा को उसे ठीक कराने का अधिकार होगा। किसी भी प्रोजेक्ट, बांध या किसी काम के लिए गांव की जमीन ली जाती है तो  ग्राम सभा की अनुमति के बिना ऐसा नहीं हो सकेगा। पेसा कानून के जरिये ग्राम सभाओं को और अधिक अधिकार मिले हैं।
 
गैर जनजातीय व्यक्ति या कोई भी अन्य व्यक्ति छल-कपट से, बहला-फुसलाकर, विवाह करके जनजातीय जमीन पर गलत तरीके से कब्जा करने या खरीदने की कोशिश करें तो ग्राम सभा इसमें अब सीधे हस्तक्षेप कर सकेगी। यदि ग्राम सभा को यह पता चलता है कि वह उस जमीन का कब्जा फिर से जनजातीय भाई-बहनों को दिलवाएगी। अधिसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की अनुशंसा के बिना खनिज के सर्वे, पट्टा देने या नीलामी की कार्यवाही नहीं हो सकेगी। जनजातीय क्षेत्रों में लायसेंसधारी साहूकार ही निर्धारित ब्याज दर पर पैसा उधार दे सकेंगे  गांव में तालाबों का प्रबंध अब ग्राम सभा करेगी। उससे जो आय होगी वह भी गांव के लोगों  को प्राप्त होगी। इसका मतलब यह है कि ग्राम सभा तालाब/जलाशय में  विभिन्न  गतिविधियां की जा  सकती है। इससे होने वाली आमदनी भी ग्राम सभा को मिलेगी। तालाब में किसी भी प्रकार की गंदगी, कचरा, सीवेज आदि जमा न हो, प्रदूषित न हो, इसके लिए ग्राम सभा किसी भी प्रकार के प्रदूषण को रोकने के लिए कार्यवाही कर सकेगी। 100 एकड़ तक की सिंचाई क्षमता के तालाब और जलाशय का प्रबंधन संबंधित ग्राम पंचायत द्वारा किया जाएगा।

तेंदुपत्ता तोड़ने और बेचने का अधिकार भी इस अधिकार के माध्यम से ग्राम सभाओं को दिया गया है। गांव में मनरेगा और अन्य कामों के लिए आने वाले धन से कौन सा काम किया जायेगा, इसे पंचायत सचिव नहीं बल्कि ग्राम सभा तय करेगी। ग्राम सभा अपने क्षेत्र में स्वयं या एक समिति गठित कर वनोपजों आदि का संग्रहण, मार्केटिंग, मूल्य तय करना और बिक्री कर सकेंगे। एक से अधिक ग्राम सभा भी मिलकर यह काम कर सकती है। अभी तक या तो सरकार या फिर व्यापारी लघु वनोपजों का मूल्य तय किया करते थे  लेकिन अब रेट कंट्रोल की कमांड ग्राम सभा के माध्यम से जनजातीय समुदाय के हाथ में होगी।

  काम के नाम पर गांव में कुछ एजेंट आते हैं। जमीन ले जाने की बात करते हैं। बाद में ग्रामीण दिक्कत में फंस जाती हैं। पेसा के नियम के तहत यह अधिकार मिला है कि गांव से कोई बेटा-बेटी जाएगा तो ले जाने वाले को पहले ग्राम सभा को बताना होगा। बिना बताए ले जाने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अब ग्राम सभा के पास काम के लिए बाहर जाने वाले सभी लोगों की सूची भी रहेगी। काम के लिए अपने गांव से ग्राम सभा को बिना बताए जाने को नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।
 
 प्रदेश में शराब की नई दुकानें बिना ग्रामसभा की अनुमति के नहीं खुलेंगी। शराब या भांग की दुकान हटाने की अनुशंसा का अधिकार भी ग्राम सभा को होगा। यदि 45 दिन में ग्राम सभा कोई निर्णय नहीं करती है, यह मान लिया जाएगा कि नई दुकान खोलने के लिए ग्राम सभा सहमत नहीं है। फिर दुकान नहीं खोली जाएगी। ग्राम सभा किसी स्थानीय त्यौहार के अवसर पर उस दिन पूरे दिन के लिए या कुछ समय के लिए शराब दुकान बंद करने की अनुशंसा कलेक्टर से कर सकती है। एक वर्ष में कलेक्टर चार ड्राय डे के अंतर्गत दुकान को बंद कर सकेंगे।
 
हर गांव में एक शांति एवं विवाद निवारण समिति होगी। यह समिति परंपरागत पद्धति से गांव के छोटे-मोटे विवादों का निराकरण कराएगी। इस समिति में कम से कम एक तिहाई सदस्य महिलाएं होंगी। यदि ग्राम के किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो तो इसकी सूचना पुलिस थाने द्वारा तत्काल गांव की शांति एवं विवाद निवारण समिति को दी जाएगी। मेले और बाजार का प्रबंध, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र ठीक चलें, आंगनवाड़ी में बच्चों को पोषण आहार मिले, आश्रम शालाएं और छात्रावास बेहतर तरीके से चलें, यह काम भी ग्राम सभा देखेंगी।