Friday, 26 May 2023

मध्यप्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में आ रहा है बदलाव





 
जीवन के प्रत्येक अनुभव को शिक्षा कहा जाता है। वास्तव में शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा जीवन के प्राय: प्रत्येक अनुभव के भंडार में वृद्धि करती है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक जो कुछ भी सीखता है और अनुभव करता है वह शिक्षा के व्यापक अर्थ के अंतर्गत आता है। उसके सीखने और अनुभव करने का परिणाम यह होता है कि वह धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। शिक्षा मनुष्य जीवन के परिष्कार एवं विकास की कहानी है। शिक्षा राष्ट्र के व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए साक्षर होना बेहद आवश्यक है।  जीवन को समझना है, तो हमें शिक्षा का महत्व भी समझना होगा। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बच्चों, विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा शिक्षा को लेकर अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं।
 
मध्यप्रदेश में शिक्षा तक सभी की पहुंच आसान बनाने के क्षेत्र में शिवराज सरकार लगातार बेहतर कार्य कर रही है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में साक्षरता दर में और इजाफा करने के उद्देश्य से 'नवभारत साक्षरता कार्यक्रम'  सरीखे अनेक अभियान संचालित किए जा रहे हैं जो प्रदेश में शिक्षा की तस्वीर बदलने का काम कर रहे हैं। निरक्षरों को साक्षर करने में 'अक्षर साथी' अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने एडॉप्ट आंगनवाड़ी अभियानों और बेटियों को पढ़ाने के संकल्पों ने समाज की सोच को बदलने का काम किया है। बालिकाओं के लिए  लाड़ली लक्ष्मी, नि:शुल्क साइकिल वितरण, सामान्य निर्धन वर्ग के परिवारों की बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति, बालिका शिक्षा के लिए केंद्र सरकार के सुकन्या समृद्धि योजना, बालिका छात्रावास, बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना जैसे कार्यक्रमों ने बालिकाओं को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने का काम किया है। 
 
2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों को देखें, तो प्रदेश को महिला साक्षरता में ज्यादा सफलता मिली है। 2001 की तुलना में 2011 की जनगणना में महिला साक्षरता में 9.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो यह प्रदेश के लिए बड़ी उपलब्धि है। पुरुष  साक्षरता में इंदौर 89.2 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर, जबलपुर 89.1 के साथ दूसरे, भोपाल 87.4 के साथ तीसरे, भिंड 87.2 के साथ चौथे और बालाघाट 87.1 के साथ पांचवें स्थान पर है। इसी तरह महिला साक्षरता में भोपाल 76.6 प्रतिशत के साथ पहले, जबलपुर 75.3 प्रतिशत के साथ दूसरे और इंदौर 74.9 के साथ तीसरे , बालाघाट 69.7 के साथ चौथे और 68.3 प्रतिशत के साथ ग्वालियर पांचवें स्थान पर बना है। मध्यप्रदेश के मंडला जिले को देश के पहले कार्यात्मक रूप से साक्षर जिले के रूप में घोषित किया गया है। 2011 की जनगणना में मंडला जिले में साक्षरता 68 प्रतिशत थी। इसे देखते हुए वर्ष 2020 में निरक्षरता से आजादी अभियान की प्रदेश में शुरुआत हुई, जिसमें महिला एवं  बाल विकास विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, आंगनवाड़ी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सहयोग किया और गांव की शिक्षित महिलाओं को अभियान में जोड़ा गया, इसके बाद अभियान में लोग जुड़ते गए और इस अभियान से सभी को साक्षर करने में मदद मिली। अब मंडला जिला के ग्रामीणों  को बुनियादी अक्षर का ज्ञान है।  केन्द्र सरकार ने 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति जारी की और मध्यप्रदेश ने 26 अगस्त 2021 को इसे राज्य में लागू करने की घोषणा की। मध्यप्रदेश नई शिक्षा नीति लागू करने वाला कर्नाटक के बाद दूसरा राज्य है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन में मार्गदर्शन और सुक्षाव देने के लिए राज्य स्तर पर टॉस्क फोर्स का गठन किया है। नई शिक्षा नीति के हर पहलू के क्रियान्वयन में योजना बनाकर रणनीतियां विकसित की गई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश भर में 9500 सीएम राइज स्कूल बनाने का लक्ष्य रखा है। योजना के तहत स्कूल हर 15- 20 किलोमीटर पर रहेगा। आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश की दिशा में सीएम राइज योजना अहम भूमिका निभाएगी।
 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना राज्य सरकार की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है, जिसे पूरा करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। मध्‍यप्रदेश में 69 सीएम राइज स्कूलों का भूमि पूजन के बाद से सीएम राइज स्‍कूलों को खोलने के काम में अब तेजी आ चुकी है। सरकार द्वारा सीएम राइज योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और नए अधिक आधुनिक स्कूलों की स्थापना के साथ नवनियुक्त शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना है। भारत सरकार की नई शिक्षा पॉलिसी के तहत आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु सीएम राइज योजना शुरु की गई है। इस योजना के तहत 9500 सीएम राइज स्कूल पूरे राज्य में खोले जाएंगे। राज्य सरकार द्वारा खोले गए स्कूलों में बैंकिंग, अकाउंट, डिजिटल स्टूडियो, कैफेटेरिया, थिंकिंग एरिया, जिम, स्विमिंग पूल आदि सुविधाएं उपलब्ध होगी। राज्य में युवाओं को रोजगार के समुचित अवसर प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज कौशल विकास प्रशिक्षण पर भी काफी जोर दे रहे हैं। राज्‍य में उद्योगों की आवश्यकता के अनुरूप युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जा रहा है। केन्द्र सरकार की योजना के तहत पहली से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये मध्यप्रदेश सरकार राज्य में 730 ‘पीएम श्री स्कूल’ स्थापित करने के फैसले को अपनी  मंजूरी प्रदान की है।  प्रदेश के 313 ब्लॉक में से हरेक में दो स्कूल और 52 जिला शहरी निकायों में 104 स्कूल स्थापित किए जाएंगे।  


मध्यप्रदेश सरकार ने  ‘मुख्यमंत्री सीखो- कमाओ योजना’  लागू करने की स्वीकृति दी है जो युवाओं के लिए स्वाभिमान और सम्मान का प्रतीक बनेगी। मध्यप्रदेश के लाड़ले शिवराज मामा ने युवाओं को कौशल को बढ़ाने और बेरोजगारी को दूर करने के लिए अपनी युवा नीति के माध्यम से प्रदेश को एक नई  दिशा देने का काम किया है। इसके अंतर्गत युवाओं को अपने संबंधित क्षेत्र में ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी और ट्रेनिंग के दौरान युवाओं को प्रतिमाह 8000 रु प्रदान किए जाएंगे। मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य के युवाओं को हर तरह से विकसित करने के लिए कई तरह की नीतियां बनाई  है जिसके लिए युवा आयोग का गठन भी किया गया है। 
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प है कि शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा बने। शिक्षा मंत्रालय ने अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई  शुरू करने की जरूरत बताई जिसके बाद सरकार ने मातृभाषा पर ज़ोर देते हुए हिन्दी में पढ़ाई शुरू करने की दिशा में अपने कदम तेजी से बढ़ाये हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मानते हैं कि विद्यार्थी अंग्रेजी अवश्य सीखें, पर शिक्षा अंग्रेजी में ही संभव है, इस विचार से मुक्ति मिलनी जरूरी है। 

हिन्दी में पढ़ाई के लिए देश में आत्म-विश्वास पैदा करना आवश्यक है। मेडिकल और  इंजीनियरिंग  की पढ़ाई हिन्दी में शुरू करने वाला देश का पहला राज्य मध्यप्रदेश के दूरदर्शी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  की सोच से बना है। प्रदेश में मेडिकल के साथ ही आने वाले दिनों में नर्सिंग और पैरामेडिकल की पढ़ाई भी हिन्दी में कराई जाएगी। 

हिन्दी के प्रयोग से जहाँ इंजीनियरिंग, मेडिकल की पढ़ाई  का दायरा बढ़ेगा वहीँ समाज के हर वर्ग के प्रतिभाशाली युवा तकनीकी पढ़ाई के लिए आगे आएंगे।  इससे पठन - पाठन का  स्तर जहाँ सुधरेगा वहीँ  भारतीय भाषाओँ में शोध की गुणवत्ता और स्तर में भी सुधार होगा।

Monday, 8 May 2023

दक्षिण के दुर्ग कर्नाटक में जीत की छटपटाहट


 

‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले  कर्नाटक में चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण  पर पहुंच गया है। कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस सीधे आमने- सामने हैं और यहाँ  की जीत 2024 के लोकसभा चुनावों  में माइलेज लेने में कारगर साबित हो सकती है।  2024  के आम चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक  के ये चुनाव परिणाम  विपक्षी गठबंधन की धुरी बनाने में भी  मददगार साबित हो सकते हैं। कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों के  नेता  जोर आजमाइश करते  दिखाई दे रही है।  कर्नाटक  में कमल में  खिलाकर जहां वर्तमान में  भाजपा दक्षिण भारत के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयार होना चाहती है, तो वहीं कांग्रेस यहां सत्ता में वापसी कर भाजपा को दक्षिण की राजनीति में पीछे धकेलने की पुरजोर कोशिश कर रही है।  जनता दल (सेक्युलर) भी  ‘किंगमेकर’ बन इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के सामने चुनौती पेश करने की पूरी कोशिशें कर रही है। 

 
असल चुनौती भाजपा के सामने है जहाँ उसके सामने अपनी सरकार को फिर से सत्ता में लाने की है।  यही कारण है कि चुनाव प्रचार के अंतिम हफ़्तों में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत कर्नाटक में कमल फिर से खिलाने को झोंक दी है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना पूरा प्रचार डबल इंजन पर फोकस कर रहे हैं।  पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के  आक्रामक प्रचार के जरिए कांग्रेस को  बैकफुट में डालने का काम कर रहा है तो दूसरी तरफ बोम्मई सरकार के खिलाफ  सत्ता विरोधी लहर को प्रो इंकम्बैंसी  में बदलने के लिए  स्वयं प्रधानमंत्री मोदी  कर्नाटक में अपने रोड शो और बड़ी सभाओं के जरिए  दिन -रात पसीना बहा रहे हैं। मोदी की खूबी ये है उनके रहते लोकसभा चुनाव में  पिछली बार भाजपा ने 61 फीसदी वोट पाए जो बड़ा करिश्मा था।  कांग्रेस  कर्नाटक  के चुनाव प्रचार के ऐलान से पहले तक  कर्नाटक  में जहाँ भाजपा पर स्थानीय मुद्दों  भ्रष्टाचार , महंगाई , किसानों की समस्याएं , नंदिनी डेरी,  बेरोजगारी , पानी सरीखे मुद्दों  के आधार पर बसवराज बोम्मई की सरकार जबरदस्त बढ़त बनाये हुई थी वहीँ पिछले दो हफ़्तों से  कर्नाटक में भाजपा चुनाव प्रचार में काफी आगे निकल आई है  जिसने इस चुनावों के फोकस को बदलकर रख दिया है। इसमें  प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित भाई शाह की रणनीति ने बड़ा असर किया है।  2018 में पार्टी का वोट शेयर 36 .35 प्रतिशत था जो इस बार प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में की जा रही बड़ी अपील के जरिये बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है।  येदियुरप्पा को नेतृत्व देकर भाजपा को कर्नाटक में, खासकर उत्तरी हिस्सों में लिंगायतों का  बड़ा समर्थन विरासत में मिला।  भाजपा ने अन्य समुदायों का समर्थन जुटाने के लिए भी इस बार ताबड़तोड़ प्रयास  कर रही है । 
 
बतौर मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने राज्य के बजट में ‘विकास’ कार्यों के लिए विभिन्न हिंदू मठों और मंदिरों को वित्तीय अनुदान देने का प्रावधान शुरू किया था, जो वर्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के दौर में  भी जारी रहा, जहाँ इनके लिए  1,000 करोड़ रुपये की राशि दी गई । कर्नाटक में चुनावी लाभ के लिए भाजपा ने  कई पिछड़ी जातियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की हैं । 2019 के बाद से इसने एक दर्जन से अधिक अगड़ी और पिछड़ी जातियों के लिए विकास बोर्डों का गठन किया गया है।  इसी तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण कोटा को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात प्रतिशत करने की घोषणा हुई है। बोम्मई  सरकार ने आंतरिक आरक्षण के लिए ताकतवर दलितों की लंबे समय से चली आ रही मांग को लागू  करने का भी फैसला किया है । भाजपा ने धार्मिक आधार पर आरक्षण का बड़ा विरोध किया और 4  फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म  करने की बड़ी बात की, जिसे  वोक्कलिक्का  और लिंगायत समुदायों में 2 -2 फीसदी बांटने का ऐलान किया है लेकिन इन सबके बीच पार्टी के  बड़े लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने पार्टी छोड़ी जिसका उनके समुदाय पर अच्छा असर नहीं हुआ है।  कम से कम अपने जिले में दोनों नेता वोट प्रभावित कर सकते हैं लेकिन भाजपा को इन नेताओं से अब भी उम्मीद है। तभी पार्टी के नेता शेट्टार या सावदी पर  चुनावी सभाओं पर हमला  नहीं  कर रहे हैं । शेट्टार ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह या पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपने  निशाने पर नहीं  लिया है । उनके निशाने पर सिर्फ भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष हैं।  राजनीती  में रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहता है , इसी वजह से भाजपा नेता उम्मीद कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के निपटने के बाद इन नेताओं को मना कर पार्टी में वापस लाया जा सकता है। 
 
राज्य में 10 मई को 224 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा।  इस चुनाव में कुल पांच करोड़ 21 लाख 73 हजार 579 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 2 .59 करोड़ महिला, जबकि 2.62 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। राज्य में कुल 9 .17 लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। मध्य कर्नाटक क्षेत्र में 35 सीटें हैं, इनमें इस बार भाजपा अच्छा करती नजर आ रही है। भाजपा का वोट शेयर भी पहले के मुकाबले बढ़ने के प्रबल आसार हैं।  बेंगलुरू में बेंगलूरू, जहां कुल 28 सीटें हैं, वहां खराब सड़कों और जलभराव  चुनावी  संभावनाओं  पर पलीता लगा सकता है।  यहाँ पर प्रधानमंत्री मोदी का बार -बार डबल इंजन लाने का  फैक्टर  कितना असर  करेगा, ये कह पाना मुश्किल है।  उत्तर कर्नाटक में भी भाजपा  और कांग्रेस बराबरी की लड़ाई लड़ रहे हैं।  सेंट्रल कर्नाटक में भी भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला कड़ा है।  हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र की 31 सीटों पर कांग्रेस, भाजपा पर भारी दिखाई देती है।  इसी तरह से मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र  की  50 सीटों में  कांग्रेस को अच्छा प्रदर्शन करने की पूरी  उम्मीद है। कर्नाटक - हैदराबाद में भाजपा को कांग्रेस के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा रहा है।  तटीय  कर्नाटक और मध्य  कर्नाटक की 44 सीटें राज्य में महत्वपूर्ण हैं। भाजपा को अगर राज्य में फिर से  अपनी सरकार बनानी है तो इस पूरे इलाके में उसे अच्छा प्रदर्शन करना ही होगा।  मध्य कर्नाटक की इन सभी सीटों से राज्य में 5 पूर्व मुख्यमंत्रियों का प्रभाव रहा है।  यहाँ पर लिंगायतों का जबरदस्त  असर देखा जा सकता है।  पूर्व सीएम येदियुरप्पा का करिश्मा यहाँ हर बार भाजपा को फायदा पहुंचाता रहा है लेकिन इस बार येदियुरप्पा  चुनावी राजनीती की बिसात में फिट नहीं बैठे हैं और उतनी ऊर्जा के साथ चुनाव प्रचार में नजर नहीं आये हैं। 

 औरंगजेब  की बीजापुर और गोलकुंडा  की विजय ने उसके लिए दक्षिण का मार्ग खोला था उसी तरह से येदियुरप्पा  के रहते ही  भाजपा को दक्षिण भारत में जीत  मिली  और कर्नाटक में  भाजपा की राज्य में  पहली बार  सरकार बनी  थी।  वे 2007 से लेकर 2021 के बीच चार बार मुख्यमंत्री बने। जुलाई 2021 में उन्हें पार्टी ने  मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए राजी किया  लेकिन कुछ ही महीनों बाद पार्टी नेतृत्व को अहसास हो गया कि उन्हें किनारे करके पार्टी कर्नाटक में चुनाव नहीं जीत सकती। उसके बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  और  गृहमंत्री अमित शाह ने येदियुरप्पा को अपनी चुनावी बिसात में  साथ रखा है  और अपनी सभाओं में  उनकी तारीफ भी की है जो  आज भी लिंगायत समुदाय में येदियुरप्पा की गहरी पैठ  को बताता है।  लेकिन येदियुरप्पा की अपील लिंगायत मतदाताओं पर कितना असर करेगी ये देखने की बात होगी?  पार्टी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को इस चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया है। पार्टी घोषित तौर पर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में चुनावी राजनीती से दूर होकर येदियुरप्पा भाजपा की कितनी सीटों पर अपना मैजिक दिखाएंगे ये देखना होगा ?
 
राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  भी लिंगायत मुख्यमंत्री हैं लेकिन येदियुरप्पा की तरह वो लिंगायतों के बड़े वर्ग में अपनी पकड़ बनाकर भाजपा का पुराना वोट शेयर बढ़ा ले जायेंगे इस पर संशय बना हुआ है।  राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  की सरकार पर 40 प्रतिशत  भ्रष्टाचार के आरोपों को भुनाने में कांग्रेस यहाँ पीछे नहीं है जो उसकी दिखती हुई रग है,  साथ ही राज्य में बुनियादी समस्याओ  को लेकर नाराजगी है। पार्टी के तमाम सिटिंग एमएलए से जनता की उतनी नाराजगी नहीं है जितनी मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  से है। ऐसे में भाजपा  के सामने मुश्किलें पेश आ  रही हैं। इसे देखते हुए अब भाजपा ने नया राग छेड़ा है मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  को काम करने का काम समय मिला। ये अपील मतदाताओं के दिलो -दिमाग पर कितना असर करेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। आज भी प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्लस पॉइंट उनकी लोकप्रियता है।  आज भी चुनाव में मोदी फैक्टर बड़ा गेम बदलने का माद्दा रखता है।  
 
  वैसे भी कर्नाटक पहले से ही राजनीति में अपने नाटक के लिए देश में मशहूर रहा  है।  भाजपा  ने  एंटी इंकम्बैंसी  को देखते हुए  और 2024  के लोकसभा  चुनावों को देखते हुए इस बार  कर्नाटक  में 52 नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है जहाँ पर प्रधानमंत्री अपनी ताबड़तोड़ सभाओं से  माहौल  को अपने पक्ष में करने में जुटे  हुए हैं।  पुराने मैसूर क्षेत्र में जेडीएस , भाजपा  और कांग्रेस दोनों को हमेशा की तरह से  परेशान कर रही है। भाजपा की सबसे बड़ी समस्या राज्य में येदियुरप्पा की तरह ऐसे स्थानीय नेता का अभाव है जिसकी पूरे राज्य में मजबूत पकड़ हो। वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  बेशक लिंगायत हैं लेकिन इनका राज्य में  डीके शिवकुमार , सिद्धारमैया, देवेगौड़ा, कुमारस्वामी जैसा मजबूत आधार नहीं है जो भाजपा को आज भी परेशान कर रहा है।  इसी को जानते हुए भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी  को यहाँ गेमचेंजर के तौर पर देखा है जिसे वो पूरी तरह से अपने  विक्टिम नरैटिव  में इस्तेमाल करने में पीछे नहीं है।  राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 14 फीसदी, वोक्कालिंगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागीदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिंगा  समुदाय में   देवेगौड़ा और कुमार स्वामी  की पकड़ मानी जाती है। हालांकि बीते चुनाव में भाजपा और कांग्रेस वोक्कालिंगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी। 
 
कर्नाटक में सत्ता बदलने का मिथक क्या इस बार टूटेगा ये अब एक बड़ा सवाल बन चुका है ? 1985  के बाद से ही यहाँ का मतदाता किसी भी सरकार को दोबारा  लाने के खिलाफ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री  राजीव  गांधी ने जब वीरेंद्र  पाटिल को  राज्य की कुर्सी से  हटाया था उसके बाद से ही कांग्रेस का लिंगायतों में प्रभाव ख़त्म सा हो गया।  कर्नाटक में  पिछले चुनावों के पन्नों को पलटें तो  यहां हमेशा से सत्ता में बदलाव होता आया है।  कोई भी दल  लगातार  दो साल सत्ता में नहीं रहा है।  बीते 38 बरस  के  रिकॉर्ड को देखा जाए तो यहां  जनता हर पांच साल में सरकार को बदल देती है। अब भाजपा के लिए 2023 में  इस मिथक को तोड़ने की बड़ी चुनौती है जो पार्टी  प्रधानमंत्री मोदी के रहते  तोडना चाहती है। कर्नाटक में भाजपा  का स्थनीय नेतृत्व बेहद  कमज़ोर है। सत्ता विरोधी लहर  से  यह पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपने  निजी स्तर पर निपटा रहे हैं।  
 
भाजपा के बाद कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसकी पहुंच पूरे कर्नाटक में है, हालांकि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से उसकी चुनावी उपस्थिति भिन्न है। हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र की कुछ सीटों को छोड़ दें, तो जद(एस) का प्रभाव ज्यादातर पुराने मैसूर तक ही सीमित है, जहां 61 सीटें हैं। दूसरी ओर उत्तरी कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के समर्थन, मजबूत हिंदुत्व आधार वाले तटीय क्षेत्र और भाजपाई रुझान के मतदाताओं वाले शहर बेंगलूरू के बावजूद भाजपा ने कर्नाटक में कभी भी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं किया है। इस संदर्भ में खासकर पुराने मैसूर क्षेत्र में वोक्कलिंगा  समुदाय के मतदाताओं का समर्थन जुटा पाने में भाजपा की असमर्थता एक बड़ा कारक है, जहां उनकी आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है। यह समुदाय जद(एस) और कांग्रेस के बीच चुनाव करने में सहज महसूस करता रहा है। जद(एस) के देवेगौड़ा वोक्कलिंगा बिरादरी के सबसे बड़े नेता हैं। यहां का  किसान अपनी मजबूत सांस्कृतिक जड़ों  के चलते भाजपा की वैचारिक उग्रता के प्रति उदासीन रहता है। इसके अलावा, वाडियारों के शासन के दौरान और उससे पहले टीपू सुलतान के राज में पुराने मैसूर में विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विकसित अंतर-सामुदायिक समझदारी का लोकाचार भी हिंदुत्व की राजनीति की अपील को सीमित कर देता है। मैसूर क्षेत्र के इन सांस्कृतिक तथ्यों के मद्देनजर भाजपा ने राज्य में दूसरी जगहों पर लामबंदी के प्रयास किए हैं। इस बार हालांकि लिंगायत समुदाय पर अपनी भारी निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से पार्टी वोक्कलिंगा बहुल क्षेत्र में पैर जमाने के  प्रयास कर रही है। हिजाब , टीपू सुल्तान, सारवरकर जैसे मसले बेअसर हैं।  

केम्पेगौड़ा की विशाल प्रतिमा को स्थापित कर उसने वोक्कलिंगा समुदाय   पर  भी डोरे डाले हैं।  वोक्कलिंगा समुदाय को मुस्लिम विरोध पर लामबंद करने  के लिए मुख्यमंत्री बोम्मई ने मुसलमानों के लिए तय चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर के उसे लिंगायतों और वोक्कलिंगाओं  के बीच बराबर बांट दिया।  ताजा दूध और दही बेचने के अमूल के हालिया फैसले के खिलाफ भी लोगों में  व्यापक आक्रोश देखने में आया था क्योंकि लोगों की नजर में यह कदम अमूल के साथ घरेलू ब्रांड नंदिनी के विलय का संकेत दे रहा था। इस मुद्दे पर भी भाजपा राज्य में घिर रही है।  दलितों का समर्थन हासिल करना भी भाजपा के लिए इस चुनाव में इतना आसान नहीं दिख रहा है।  भाजपा की राज्य इकाई के भीतर गुटबाजी के कारण येदियुरप्पा को 2021 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।  दो प्रमुख लिंगायत नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को टिकट देने से पार्टी ने इनकार कर दिया था।  ये दोनों नेता कांग्रेस से  इस बार चुनाव लड़ रहे हैं । इससे कांग्रेस को लिंगायतों का समर्थन मिलने की थोड़ी  संभावनाएं  बढ़ रही हैं। दूसरा पहलू यह है कि भाजपा  कैसे भ्रष्टाचार, लिंगायत विरोधी और लिंगायत नेताओं को दरकिनार करने की छवि से निपट पाती है ये देखने वाली बात होगी। 

  कर्नाटक के उत्तरी जिलों में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को सबसे निराशाजनक मुद्दों के तौर पर उठाया जा रहा है।  जेडीएस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इतने सालों में वह कर्नाटक के उत्तरी जिलों तक अपनी पहुंच नहीं बना पाई है।पुराने मैसूर इलाक़े के वोक्कालिगा बहुल केवल आठ जिलों तक इसकी विकास सीमित रहा है।  हालांकि बीजेपी और कांग्रेस से टिकट न पाने वाले असंतुष्ट उम्मीदवार जेडीएस से टिकट पाकर मैदान में उतरे हैं। देखना है कि क्या जेडीएस अपनी जीती हुई सीटें बढ़ा सकती है?  जद(एस) ने उत्तरी कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा के कुछ बागी उम्मीदवारों को अपने टिकट पर मैदान में उतार दिया है। इससे उस क्षेत्र में वह कुछ सीटों पर अपना प्रभाव दिखा सकती है  है। राज्य में दूसरी बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी  ने 150 से अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इसका प्रभाव बेंगलूरू  के कुछ इलाकों तक ही सीमित है और इसके एक भी सीट जीतने की संभावना नहीं है, फिर भी अब राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते इसके प्रदर्शन पर नजर  रखनी होगी ।
 
2018  के विधान सभा चुनाव में बीजेपी 104 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी  बनकर  उभरी थी, तो कांग्रेस को केवल 80 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थीं। जबकि जनता दल (एस) को 37 सीटें मिली थी। शुरुआत में जेडीएस कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनायी थी, लेकिन दोनों दलों के विधायकों की बगावत के बाद सरकार गिर गई थी उसके बाद भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। कांग्रेस से कई लोगों ने येदियुरप्पा को मदद की जिससे भाजपा को सरकार बनाने में आसानी हुई। 

भाजपा-कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में  एक से  बढ़कर एक कई बड़े वायदे किए हैं जिन पर इन चुनावों में बहुत सवाल उठ रहे हैं।   भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को ‘प्रजा ध्वनि’ घोषणा पत्र में गरीबों के लिए साल में तीन बार मुफ्त गैस सिलेंडर से लेकर किसानों, महिलाओं और बच्चों तक के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया है वहीं, कांग्रेस के ' संकल्पपत्र ' घोषणापत्र  में 200 यूनिट बिजली मुफ्त से लेकर परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2 हजार रुपए देने तक का वायदा किया गया है। इसके अलावा कांग्रेस ने नफरत फैलाने वाले संगठनों पर बैन लगाने का भी वायदा किया है। इसमें सबसे बड़ा नाम बजरंग दल का है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन लगाने का एलान क्यों किया? इसका चुनाव में पार्टी को कितना फायदा मिलेगा ये देखना होगा ?  

इस बार पार्टी ने महिलाओं से लेकर युवाओं तक को लुभाने के लिए भत्ता का एलान किया है। 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का एलान भी काफी बढ़ा है। सबसे बड़ा दांव आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का है। आरक्षण अगर 50 से 75 प्रतिशत तक हो जाता है तो यह बड़ा बदलाव होगा। वहीं, भाजपा ने गरीब वर्ग के लिए तो कई एलान किए हैं। 
 
चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में बजरंगबली की  इंट्री  ने  कर्नाटक  की राजनीति को गरमा दिया है।  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मोदी पर जब 'जहरीला सांप 'वाला बयान दिया और उसके बाद उनके बेटे प्रियांक उन पर 'नालायक' कहकर  हमलावर हो गए तो इसने  कर्नाटक  के चुनाव के रुख को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है।  कांग्रेस इस बात को नहीं समझ पाई वो जितनी गलती करेगी भाजपा के लिए पिच उतनी ही बेहतरीन बनेगी और ऐसा ही हुआ है। कर्नाटक  की पिच पर प्रधानमंत्री मोदी जबरदस्त बैटिंग कर रहे हैं।  भाजपा मोदी पर हमले को लेकर कांग्रेस के खिलाफ बहुत एग्रेसिव  नजर आई है।  

आम जनमानस में भी बसवराज बोम्बई  के खिलाफ नाराजगी है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ जनता खड़ी  नजर  आती है।  कांग्रेस इस चुनाव में उसी जैसे माहौल का सामना कर रही है जैसा पीएम मोदी के बारे में मणिशंकर अय्यर के 'चायवाला' टिप्पणी के बाद बना था।  अय्यर की टिप्पणी ने बीजेपी को एक ऐसा हथियार दे दिया था, जिसका इस्तेमाल करके उसने एक बड़े प्रचार अभियान में तब्दील कर दिया।  भाजपा  ने गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी द्वारा मोदी को "मौत का सौदागर" कहे जाने को अपने पक्ष में भुनाया। ये बयान, चुनावी अभियान के उस दौर में आए हैं, जब बेरोज़गारी, महंगाई और ग़रीबी ने राज्य में जनता का जीना मुहाल किया हुआ है।  वोट डालते समय  मतदाता के  के जीवन पर रोज़गार, मंहगाई और ग़रीबी - इन तीन मुद्दों का  कितना असर  होगा ये कहना कठिन है। कर्नाटक का वोटर राज्यों के चुनाव को और लोक सभा चुनाव को अलग -अलग दृष्टि से  देखता है।  मुख्यमंत्री  बसवराज बोम्बई को लेकर अभी भी हर इलाके में बहुत नाराजगी है। ओल्ड मैसूर में भाजपा प्रधानमंत्री  मोदी का विक्टिम  कार्ड खेल रही है। राज्य में   पीने के पानी  की  बड़ी समस्या है , एलपीजी  सिलेंडर को लेकर महिलाओं  को लेकर रोष है।  ये मुद्दे कितना चुनाव को प्रभित करेंगे कुछ कह नहीं सकते।  


पिछले चुनाव में भाजपने  55 लिंगायत को  टिकट दिए इस बार ये संख्या बढ़कर 68 पहुँच गई है। साफ़ है लिंगायत वोटों पर जिसका जादू  चलेगा वो कर्नाटक का रण जीत जाएगा।  प्रधानमंत्री  दिल और दिमाग से राजनीति करते हैं और किसी भी चुनावों के अंतिम पलों में चुनाव की दिशा बदल देते हैं।  प्रधानमंत्री मोदी पर अटैक कर कांग्रेस इस चुनाव में खुद से हिट विकेट हो रही है।  किसानों की समस्याएं , बेरोजगारी , महंगाई , पेट्रोल डीजल के बढे दाम , 40 प्रतिशत कमीशनबाजी  पर पहले चुनाव शुरू होने से पहले कांग्रेस फोकस कर रही थी लेकिन  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे  ने  अपने बयानों से  भाजाप के सामने व्यंजनों से भरी थाली खुद सजा दी है।   

कांग्रेस के बजरंग दल पर प्रतिबन्ध वाले मैनिफेस्टो की पूरे राज्य में चर्चा हो रही है।  हम्पी में बजरंगबली  की बड़ी मान्यता है और बजरंगबली का जन्मस्थान भी है लिहाजा भाजपा ने चुनाव को धार्मिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।  कांग्रेस ने पीएफआई का सीधा समर्थन अपने मैनिफेस्टो में कर 'आ बैल मुझे मार' वाली उक्ति को चरितार्थ काने का काम किया है जिसका मतदाताओं पर गहरा असर हो रहा है।  इसके कर्नाटक चुनाव के पूरे विमर्श को बदल दिया है। इस बार स्थानीय मुद्दे बेअसर  साबित हो सकते हैं  और हवा में राष्ट्रीय मुद्दों का ही असर दिखाई दे रहा है।   
 
कर्नाटक का  विधानसभा चुनाव  सभी दलों के लिए  मायने रखता है।  कांग्रेस अगर यहाँ वापस आती है तो वो विपक्षी एकता की धुरी बन सकती है।   जद(एस) की सीटों की संख्या में सुधार का  मतलब  होगा चुनाव के बाद कोई गठबंधन बना तो उस मौके को वह भुनाने में देर नहीं करेगी।   भाजपा यदि  बहुमत के साथ सत्ता में आती है तो ये नया इतिहास बन जायेगा।  अपने दम  पर भाजपा कभी भी कर्नाटक में सत्ता  में नहीं आई। कर्नाटक जीत के बाद दक्षिण के अन्य चार राज्यों में भाजपा की संभावनाओं को नए पंख लगेंगे।  

कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा  के सामने सीधे  कांग्रेस  होगी ।  मिशन 2024  में भाजपा उत्तर में होने वाले नुकसान की भरपाई  दक्षिण कर सकता है। इससे  पार्टी का मनोबल में निश्चित रूप से इजाफा होगा। भाजपा के लिए  कर्नाटक जीतने का  सीधा अर्थ  यह होगा कि उसके मतदाताओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील  चुनावी  मुद्दों पर आज भी भारी है। अगर  कर्नाटक में मोदी का मैजिक बरकरार  रहता है तो वह बाकी तीन राज्यों में भी प्रधानमंत्री  मोदी को ट्रैम्प कार्ड बनाकर इस्तेमाल करेगी। अगर भाजपा कर्नाटक हारती है तो इन तीन राज्यों में उसे स्थानीय क्षत्रपों को आगे करना होगा तभी वो बाजी जीत सकती है।  

Saturday, 6 May 2023

पत्रकारिता के कुशल संचारक देवर्षि नारद




भारतवर्ष में पत्रकारिता का अनुभव सदियों पूर्व किया जाता रहा है। किसी न किसी रूप में सनातन काल से कलम साधना की परम्परा सर्वश्रेष्ठ परम्परा रही है। आज हम जो कुछ भी पढ़ते हैं, लिखते हैं, सुनते हैं, सब कुछ कलम साधना का ही प्रतिफल है। कलम न होती तो शायद संसार में ज्ञान का अस्तित्व ही न होता। ज्ञान न होता तो फिर क्या होता, इस बात का अंदाजा सहज में लगाया जा सकता है। 30 मई 1826 को कलकत्ता से हिन्दी का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ था। भारत में जब आधुनिक पत्रकारिता प्रारंभ हुई, तब हमारे पूर्वजों ने इसके लिए दैवीय अधिष्ठान की खोज प्रारंभ कर दी। उनकी वह तलाश तीनों लोक में भ्रमण करने वाले  देवर्षि नारद पर जाकर पूरी हुई। भगवान विष्णु के भक्त नारद जी का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। देवर्षि नारद मुनि पृथ्वी, आकाश और पाताल लोक में यात्रा करते थे, ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके।  देवर्षि नारद को देवों का दूत, संचारकर्ता और सृष्टि का पहला पत्रकार कहा जाता है । 

हिन्दू पौराणिक कथाओं की मानें तो उन्होंने भगवान विष्णु के कई काम पूरे किये हैं इसलिए  नारदजी को विष्णु का संदेशवाहक माना गया है।  उन्हें  आदि-पत्रकार कहा जाता है।  कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उन्हें संचारक अर्थात सूचना देने वाला पत्रकार कहा गया है। इसके अतिरिक्त संस्कृत के शब्द कोष में उनका एक नाम आचार्य पिशुन आया है जिसका अर्थ है सूचना देने वाला संचारक, सूचना पहुंचाने वाला, सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक देनेवाला है। आचार्य का अर्थ गुरु, शिक्षक, यज्ञ का मुख्य संचालक विद्वान अथवा विज्ञ होता है। पिशुन से स्पष्ट है कि देवर्षि नारद तीनों लोकों में सूचना अथवा समाचार के प्रेषक के रूप में परम लोकप्रिय पत्रकार एवं संवाद-प्रेषक, संवाद-वाहक हैं। देवर्षि नारद व्यास वाल्मीकि और शुकदेव जी के गुरू भी रहे। श्रीमद्भागवत एवं रामायण जैसे प्राचीन और महत्वपूर्ण  ग्रन्थ हमें नारद जी की कृपा से ही प्राप्त हुए हैं। यही नहीं प्रहलाद, ध्रुव और राजा अम्बरीश जैसे महान व्यक्तित्वों को नारद जी ने ही भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।  देवर्षि नारद ब्रहमा, शंकर, सनत कुमार, महर्षि कपिल, स्वायम्भुव मनु आदि 12 आचार्यों में  श्रेष्ठ  हैं। वराह पुराण में देवर्षि नारद को पूर्व जन्म में सारस्वत् नामक एक ब्राह्मण बताया गया है जिन्होंने ‘ ॐ नमो नारायणाय’ इस मंत्र के जप से भगवान नारायण का साक्षात्कार किया और पुनः ब्रह्मा जी के  मानस पुत्रों के रूप में अवतरित हुए। देवर्षि नारद तीनों लोको में बिना बाधा के विचरण करने वाले परम तपस्वी तथा ब्रह्म तेज से संपन्न हैं।

पंडित जुगलकिशोर शुक्ल ने उदन्त मार्तण्ड के प्रथम अंक  में लिखा कि देवर्षि नारद की जयंती के शुभ अवसर पर यह उदन्त मार्तण्ड शुरू  होने जा रहा  है। 1826 को हालांकि हिन्दी पत्रकारिता का प्रारंभिक दौर रहा लेकिन पत्रकारिता का अनुभव युगों-युगों से रहा है। देवर्षि नारद इस पत्रकारिता जगत के आदि पुरुष माने गये हैं। इन्हीं के अथक परिश्रम के प्रभाव से सांस्कृतिक पत्रकारिता का उदय हुआ। इसके बाद  1948 में जब दादा साहब आप्टे ने भारतीय भाषाओं की प्रथम संवाद समिति  ‘हिंदुस्थान समाचार’  जब शुरू की थी, तब  उसमें भी इस बात का उल्लेख  है कि देवर्षि नारद पत्रकारिता के पितामह हैं।  हमारी कई कथाओं में नारद मुनि के योगदान को ब्रह्मांड के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।  देवर्षि नारद ने  विभिन्न देवी-देवताओं के बीच संबंधों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे कि श्री लक्ष्मी और विष्णु, भगवान शिव और देवी पार्वती, और उर्वशी और पुरुरवा के बीच विवाह को सुगम बनाना। महादेव द्वारा जलंधर के विनाश में नारद की भी भूमिका थी। इसके अलावा, उन्होंने वाल्मीकि को रामायण और व्यासजी को भागवत लिखने के लिए प्रेरित किया। हरिवंशपुराण से पता चलता है कि नारद मुनि ने हजारों दक्ष प्रजापति के पुत्रों को बार-बार सांसारिक बंधनों से मुक्त  किया। मैत्री संहिता में नारद को आचार्य के रूप में मान्यता दी गई  है।कहा जाता है कि देवर्षि नारद ने बड़े समर्पण और ज्ञान के साथ कई महत्वपूर्ण ज्योतिषीय स्रोतों की रचना करके ज्योतिष पर  भी  प्रभाव डाला। वे ज्योतिष में इतने निपुण थे कि उनका ज्ञान अन्य सभी से बढ़कर था। नारद पुराण न केवल एक ज्योतिषीय ग्रंथ है बल्कि एक धार्मिक ग्रंथ भी है जो विभिन्न अनुष्ठानों और धार्मिक मंत्रों की पूजा पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

‘रुद्रप्रयागे तन्वगिंग सर्वतीर्थोत्तमे शुभे।’श्री केदार महात्म्य के 63वें अध्याय के अनुसार देवाधिदेव महादेव की स्तुति कर देवर्षि नारद ने पत्रकारिता के पूर्ण रहस्य लोक कल्याण हेतु प्राप्त किये। उन्होंने शिव सहस्रनाम की रचना कर त्रिलोक्य दीपक संगीत रूपी पत्रकारिता संसार के सम्मुख रखी। तभी यह ज्ञान सामने आया कि ‘‘नाद से वर्ण, वर्ण से पद, पद से वाक्य और वाक्य वचन से ही समस्त संसार की उत्पत्ति हुई है इसलिए संसार नादात्मक है अर्थात शब्द ही ब्रह्मा है। यदि शब्द ही ब्रह्मा है तो  सृष्टि की रचना के साथ ही पत्रकारिता का जन्म हुआ है। शिव से पुरुषाकृत छह राग उत्पन्न हुए, जो राग पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं में ‘त्रिलोक दीपक’ एक है। इसके अलावा देह शोधन  ज्ञान से देह में अधिष्ठित सर्वभौतिक ज्ञान व समस्त भूतों को जानने की कला का ज्ञान, संगीत कला के तत्व से नाद का विधान, संगीत की समस्त विद्याओं का ज्ञान, स्वरों के भेद का पूर्ण ज्ञान, संगीत में स्वर शब्द के मूल में षांडवों का वर्णन गायन क्रिया तथा अलंकारों के भेद स्थायी, आरोही, अवरोही, संचारी का ज्ञान, सप्तस्वर षडजी, ऋषिजी, गांधारी, मध्यमा, पंचमा, छठी, धैवती, नौसादी का ज्ञान स्वरों के भेद और तालों की संज्ञा का ज्ञान उपहन्तु, गल, विशारद, अर्थभोग के अलावा स्वरों के भेद की  72 कलाओं का ज्ञान, जिनमें प्रमुख रूप से गमन कला, रसायन कला, अंगलेखन कला, हास्य लेखन कला प्रमुख हैं। नारद मुनि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में एक हैं।भगवान विष्णु के प्रति इनकी अचल निष्ठा है और लोक कल्याण के लिए सर्वत्र विचरण करना इनका प्रमुख धर्म है। पत्रकारिता के साथ साथ भक्ति तथा संकीर्तन के ये आदि आचार्य हैं। इनकी वीणा ही इनका संचार पत्र  है  जिसे ‘महती’ के नाम से पुकारा जाता है। इस महती का मतलब धर्म प्रचार से  है। इसका उद्देश्य  धर्म के प्रचार के साथ साथ लोक मंगल  के लिए ‘नारायण-नारायण’ की ध्वनि को  गुंजित  करना है। ये सदैव अमर है और आज भी व्रहमाण्ड के समाचारों का संकलन कर जीव के कर्म की गति के अनुसार जीवन निर्धारण करवाने में इनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए ये मान्यता प्राप्त  आदि पत्रकार है।  पौराणिक काल के पत्रकार देवर्षि नारद के अलावा महर्षि वेद व्यास व संजय प्रसिद्ध पत्रकार रहे। नौ नाथ- आदि नाथ, अनादि नाथ, कुर्म नाथ, भव नाथ, सत्य नाथ, संतोष नाथ, स्वामी मतस्येन्द्र नाथ, गोपी नाथ व गोरखनाथ जी की गणना भी महान पत्रकारों के रूप में होती है। इनके कलम के प्रताप से रचित रचनाओं का विशाल भंडार संसार के सम्मुख है।

 सत्य नारायण  की कथा के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि देवर्षि नारद का सब कुछ समाज के लिए अर्पित था। देवर्षि नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है  जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति ,नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि। नारद मुनि देव व दानव सभी के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान बिना किसी स्वार्थ के लोकहित को ध्यान में रखकर किया करते थे। आज भी पत्रकारों को उनके पदचिन्हों पर चलकर मूल्य आधारित पत्रकारिता को बढ़ाव देने की आवश्यकता है जिसके केन्द्र में लोकमंगल की प्रधानता होनी  चाहिए।  पत्रकारिता के इस महत्व को गीता में समझाते हुए योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने देवर्षियों में नारद को अपनी विभूति बताया हैं। पूर्व काल में नारद ‘उपबर्हण’ नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बेहद अभिमान था। एक बार जब ब्रह्मा की सेवा में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से प्रभु की स्तुति कर रहे थे। आराधना कर रहे थे, उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से भावित वहाँ आया। उपबर्हण का यह अशिष्ट आचरण देख कर परमेश्वर ब्रह्मा कुपित हो गये और उन्होंने उसे ‘शूद्र योनि’ में जन्म लेने का शाप दे ड़ाला ।  शाप के प्रभाव से वह ‘शूद्रा नामक दासी’ के पुत्र हुए। माता पुत्र साधु संतों की बड़े ही निष्ठा के साथ सेवा करते थे। शुरूआती जीवन इनका बड़े ही संघंर्ष में बीता ।  बाल्यकाल की अवस्था से संतों के पात्र में बचा हुआ झूठा अन्न इन्हें नसीब होता था । इस अन्न के प्रभाव से उसके हृदय के सभी पाप धुल गये। बालक की सेवा से प्रसन्न होकर साधुओं ने उसे नारायण नाम का जाप और ध्यान का उपदेश दिया। बाद में इनकी माता शूद्रा दासी की सर्पदंश से मृत्यु हो गयी। माता के संसार से चले जानें के बाद नारद इस संसार में अकेले रह गये। उस समय इनकी अवस्था मात्र पाँच वर्ष की थी। माता के वियोग को भी ईश्वरीय इच्छा मानकर नारद जी ने नारायण की शरण लेकर उनका ध्यान आरम्भ किया।समय आने पर हरि के विरह में इन्होनें शरीर छोड़ा और बाद में प्रभु की कृपा से ये ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रुप में जन्में और संचार को अपना धर्म बनाकर पत्रकारिता का आरम्भ किया।संसार के बड़े बड़े महर्षि ऋषि इनके शिष्य हुए। उनका समूचा संचार लोकहित के लिए है। नारद भक्ति के  84 सूत्र जीवन को एक नई दिशा  देने का काम करते हैं। मौजूदा दौर  की पत्रकारिता इनसे बहुत कुछ सीख सकती है।  नारद के भक्ति सूत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन सूत्रों में पत्रकारिता के आधारभूत सिद्धांत शामिल हैं। ये सूत्र पत्रकारिता को दिशा देने वाले हैं। आज इलेक्ट्रानिक युग में खबरें तेजी से बदल रही हैं।  संवाददाताओं में खबरों को ब्रेक करने की मानो होड़ ही लगी हुई है।  आधी-अधूरी जानकारी में ही समाचार लिख दिए जा रहे हैं  जो चिंताजनक है।  नारद जी के भक्ति सूत्र आज भी हमें ये सिखाने की कोशिश करते हैं समाचारों में सत्यता होनी जरूरी है।  अपने विभिन्न स्त्रोतों से पुष्टि के बाद ही  कोई समाचार प्रकाशित किया जाना चाहिए।  देवर्षि नारद   के  संचार  में  लोकमंगल की भावना नजर आती है।  निरन्तर संवाद, प्रवास, संपर्क  नारद की संचारकला को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं।  देवर्षि  नारद एक ऐसे विराट व्यक्तित्व के स्वामी  हैं जो न केवल   सांसारिक घटनाओं के ज्ञाता थे बल्कि  उनके परिणामों तक से भी वे भली भांति परिचित होते थे। वे देव, दानवों, मनुष्यों  सभी  में ही लोकप्रिय थे। आनन्द, भक्ति, विनम्रता, ज्ञान, कौशल उनकी अनेक विशेषताएं थी ।  

सही अर्थों में कहा जाए तो देवर्षि नारद  पत्रकारिता के अधिष्ठात्रा हैं। इन्हीं के प्रभाव से संसार को राग भैरव, मालकौशिक, हिन्दोल, दीपक श्रीराग सहित संगीत व लेखन की असंख्य जानकारी प्राप्त हुई, इसलिए देवर्षि नारद पत्रकारिता जगत में अतुलनीय  रहे हैं। नारद का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है । उन्होंने ब्रह्मा से ज्ञान प्राप्त किया। संगीत का आविष्कार किया। समाज में भक्ति के मार्ग का प्रतिपादन किया और सतत  संवाद के माध्यम से हमेशा लोकमंगल का बेहतरीन  कार्य किया।

Monday, 27 March 2023

नवरात्र दैवी शक्ति की विजय का प्रतीक


 

एक ही परम तत्व परमपुरुष पराशक्ति के रूप में सर्वत्र व्यापक है। श्रुतियों, शास्त्रकारों ने एक ही चिरंतन शक्ति को कभी पुरुष के रूप में तो कभी देवी के रूप में स्वीकारा है। सब के घट में एक समान विराजमान वह  दिव्य शक्ति प्रकाश के रूप में हमेशा मौजूद रहती है जिसे 'जीवन शक्ति'  कहा  जाता है और उसका दर्शन होना ही 'शक्ति ' की आराधना है। दुष्टों का  संहार करके भक्तों की रक्षा करने हेतु कभी काली तो कभी दुर्गा या फिर राम और कृष्ण के रूप में उस शक्ति का अवतरण इस धरा पर हुआ है। 

 
मां  अम्बे की पूजा - अर्चना का विधान वेद, पुराण , उपनिषदों हिन्दुओं के अन्य धर्मशास्त्रों में भी मिलता है। वेद में 'एकोएहं बहुस्याम ' और 'अजाय मानों बहुधा  ब्यजायत ' के रूप में और देवी पुराण में 'सा वाणी साच सावित्री विप्राधिष्ठात ' वहां सर्व दुर्गा के रूप में संस्थापित है। मार्कण्डेय  पुराण में स्वयं मान जएकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा। पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः अर्थात मैं ही दुर्गा हूँ , सर्व शक्ति स्वरूपा हूँ और मुझमें ही पूरी  सृष्टि विलीन है। आशय यह है कि यह विशाल  सृष्टि  उत्पन्न होती है, बढ़ती है, विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती है और अंत में विनिष्ट हो जाती है। 
 
देवी पुराण में एक बड़े रोचक कथा प्रसंग की चर्चा की गयी है। अक्सर भ्रम में पड़  जाने वाले देवर्षि नारद को एक बार भ्रम हो गया।  ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों सर्वश्रेष्ठ हैं तो भला ये तीनों किस महाशक्ति का स्मरण करते हैं ? नारद जी अपने सन्देश निवारण हेतु शिव के पास गए और बोले 'मुझे ब्रह्मा , विष्णु और महेश से बढ़कर कोई अन्य देवता नहीं दिखाई देता है फिर आप तीनों से ऊंचा कौन है जिसकी उपासना और स्मरण आप करते हैं ' ? शिव मुस्कुराये और बोले  'हे ऋषिवर ' सूक्ष्म और शूल शरीर से परे जो महाप्राण आदिशक्ति (जगदम्बा ) है वही तो परब्रह्म स्वरुप है - वह केवल अपनी इच्छा मात्र से ही  सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने में समर्थ है।  वस्तुतः वह आदिशक्ति (दुर्गा ) निर्गुण स्वरूप है परन्तु उसे किसी भी रूप मे मन समय -समय पर धर्म की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए साकार होना पड़ता है। इसी  समय-समय पर ,पार्वती  दुर्गा , काली , चंडी , सरस्वती आदि अवतार धारण किये हैं।  इसी जगत जननी का सभी देव स्मरण करते हैं।
 
  वैसे भी आदिशक्ति स्वरुप दुर्गा में सभी  देवताओं का कुछ न कुछ अंश शामिल है। दुर्गाशप्तशती के दूसरे अध्याय में देवी स्वरुप का वर्णन करते हुए बतलाया गया है भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख प्रकट  हुआ , यमराज के तेज से मस्तक के केश , विष्णु के तेज से भुजाएं , चन्द्रमा के तेज से स्तन , इंद्रा के तेज से कमर , वरुण के तेज से जंघा , पृथ्वी के तेज से  नितम्ब , ब्रह्म के तेज से चरण , सूर्य के तेज से दोनों पैरों की अंगुलियां, वसुओं के तेज से दोनों हाथों की अंगुलियां , प्रजापति के तेज से सम्पूर्ण दांत , अग्नि के तेज से दोनों नेत्र , संध्या के तेज से भौहें , वायु के तेज से कान , अन्य देवताओं के तेज से देवी के भीं- भीं अंग बने।  इसी प्रकार सभी  अमोघ शक्तियों से दुर्गा के रूप में एक आदिशक्ति का सृजन किया  गया इसलिए यह स्वरुप सभी देवताओं के लिए स्मरणीय हो गया। 


  जो विद्वानों के के लिए स्मरणीय हो वह लोगों के लिए विस्मरणीय भला कैसे हो सकता है।  परिणामतः कलियुग में भी आज दो  नवरात्रि के रूप में माँ जगदम्बा की  पूजा जारी है। शारदीय और  वासंतीक नवरात्र। शारदीय नवरात्र आश्विन मास में और वासंतिक नवरात्र अभी चैत्र माह में होते हैं। इसी चैत्र वर्ष प्रतिपदा से हिन्दुओं का नया संवत्सर शुरू होता है।  दोनों  नवरात्र का  समान  महत्व  है। नौ दिन और नौ रातों तक मान जगदम्बे  भगवती के नौ अलग -अलग रूपों की पूजा की जाती है।
 
  यह आज तक रहस्य बना हुआ है।  दुर्गा की पूजा सबसे  पहले राम ने की या किसी और ने, लेकिन इतना तय है लंका पर चढ़ाई और रावण वध से पहले राम ने आदिशक्ति स्वरूप मानकर दुर्गा जी  की पूजा की। यह स्थान भी रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। नवरात्र महोत्सव आसुरी शक्ति पर दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है। नवरात्र में प्रथमा से लेकर नवमी तक शक्ति के 9 स्वरूपों की पूजा -अर्चना होती है। ये नौ शक्तियां बहनों का स्वरुप हैं और इन नौ शक्तियों के विभिन्न नाम रूप के कारण 'शारदीय  नवरात्र ' उत्सव का उल्लास  देखते ही बनता  है।  नवरात्र की पूरे देश में विशेष धूम रहती है।  इन 9 दिनों  में लोगों की भक्ति भावना, आस्था और शक्ति देखते ही बनती है। दर्जा माता की  नौ शक्तियों के नाम हैं - शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी  और सिद्धदात्री। नवरात्र में अंतिम दिन पर कन्या पूजा का विशेष  महत्व  है। नौ कुमारी कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर लोग उनका विशेष पूजन  भोजन , वस्त्रादि, उपहार  देकर करते हैं। 
 
 कन्या पूजन में दो वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को पूजा जाता है। दस वर्ष से अधिक वर्ष की कन्याओं  का पूजन वर्जित।  दो वर्ष की कन्या ' कन्याकुमारी' , तीन वर्ष की 'त्रिमूर्तिनी' , चार वर्ष की 'कल्याणी' , पांच वर्ष की 'रोहिणी' , छह वर्ष की ;'काली', सात वर्ष की 'चंडिका' , आठ वर्ष की ' शम्भवी',  नौ वर्ष की 'दुर्गा' और दस वर्ष की 'सुभद्रा' स्वरूपा मानी गयी है।  
 
 कोई भी पर्व हो उसके पीछे मकसद होता है सुख, शांति और समृद्धि के साथ परमानन्द की प्राप्ति।  नवरात्र में की गई पूजा मानव मन की मलिनता को दूर करके भगवती दुर्गा के चरणों में लीन  होकर जीवन में सुख,  शांति और ऐश्वर्य की समृद्धि लाती है। यज्ञ - हवन के कारण अनेक व्याधियों से मुक्ति होने की वैज्ञानिक पुष्टि भी होती है। उस शक्ति स्वरूपा का दर्शन करना मानव जीवन का लक्ष्य है और इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु इन नवरात्रों में विशेष प्रयास  करना चाहिए। नवरात्र अर्थात शक्ति की आराधना का महापर्व है और इसे सौद्देश्य मनाना चाहिए जिससे सुख शांति , अर्थ ,धर्म , काम , मोक्ष का पुरुषार्थ भी सफल हो। 
 


Wednesday, 15 March 2023

उत्तराखंड के पहाड़ों का लोक पर्व है फूलदेई

 



 देवभूमि  उत्तराखंड अपनी  मनमोहक सुषमा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है और यहां  के कई त्योहारों में विविधता  दिखाई देती है। प्रकृति को धन्यवाद देने हेतु उनमें से एक त्यौहार है फूलदेई त्यौहार ,  फूल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है । फूलदेई यानी फूल संक्रांति उत्तराखंड का पारंपरिक लोक पर्व है।  उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा आज भी कायम  है।  

चैत्र के महीने की संक्रांति को जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर छोटे बच्चों का पर्व है। वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन  गाँवों में  ये त्यौहार अब भी ज़िंदा है।   फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी पर डालकर  उस घर की खुशहाली की दुआ  मांगने की परंपरा देखते ही आज भी इस त्यौहार की महक महसूस की जा सकती है।  चैत्र माह के  पहले दिन भोर में  छोटे–छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने  ईष्ट देवी देवताओं को अर्पित करते हैं। उसके बाद पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं और उन फूलों से दरवाजों (देहली) का पूजन करते हैं।  घर के दरवाजों में सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं। फूल देई  ……छम्मा देई  देणी द्वार……. भर  भकार ……फूल देई  ……छम्मा देई।

फूलदेई के दिन  बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। उत्तराखंड के इस बाल पर्व में बच्चे फ्यूंली, बुराँस, बासिंग, लाई,ग्वीर्याल, किंनगोड़, हिसर, सहित कई जंगली फूलों को रिंगाल की टोकरी में चुनकर लाते है और देहरी पूजन करते हुए फूल डालते हैं। इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं।  

 फूलदेई त्योहार में एक द्वार पूजा के लिए एक जंगली फूल का इस्तेमाल होता है, जिसे फ्यूली कहते हैं। इस फूल और फूलदेई के त्योहार को लेकर उत्तराखंड में कई लोक कथाएं मशहूर हैं जिनमें से एक लोककथा फ्यूंली के पीले फूलों से जुड़ी हैं।  फूलदेई पर्व की कहानियां एक वन कन्या थी, जिसका नाम था फ्यूंली। फ्यूली जंगल में रहती थी। जंगल के पेड़- पौधे और जानवर ही उसका परिवार भी थे और दोस्त भी। फ्यूंली की वजह से जंगल और पहाड़ों में हरियाली थी, खुशहाली। एक दिन दूर देश का एक राजकुमार जंगल में आया। फ्यूंली को राजकुमार से प्रेम हो गया। राजकुमार के कहने पर फ्यूंली ने उससे शादी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर उसके साथ महल चली गई। फ्यूंली के जाते ही पेड़-पौधे मुरझाने लगे, नदियां सूखने लगीं और पहाड़ बरबाद होने लगे। उधर महल में फ्यूंली ख़ुद बहुत बीमार रहने लगी। उसने राजकुमार से उसे वापस पहाड़ छोड़ देने की विनती की लेकिन राजकुमार उसे छोड़ने को तैयार नहीं था और एक दिन फ्यूंली मर गई। मरते-मरते उसने राजकुमार से गुज़ारिश की, कि उसका शव पहाड़ में ही कहीं दफना दे। फ्यूंली का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की उसी चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वो उसे लेकर आया था। जिस जगह पर फ्यूंली को दफनाया गया, कुछ महीनों बाद वहां एक फूल खिला, जिसे फ्यूंली नाम दिया गया। इस फूल के खिलते ही पहाड़ फिर हरे होने लगे, नदियों में पानी फिर लबालब भर गया, पहाड़ की खुशहाली फ्यूंली के फूल के रूप में लौट आई। इसी फ्यूंली के फूल से द्वारपूजा करके लड़कियां फूलदेई में अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली की दुआ करती हैं।

कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फूलदेई त्यौहार मनाने के पीछे कहा जाता है कि शिव शीत काल में अपनी तपस्या में लीन थे,  ऋतु  परिवर्तन के कई बर्ष बीत गए लेकिन शिव की तंद्रा नहीं टूटी।  माँ पार्वती ही नहीं बल्कि नंदी शिव गण व संसार में कई बर्ष शिव के तंद्रालीन होने से बेमौसमी हो गये। आखिर माँ पार्वती ने ही युक्ति निकाली।  सर्वप्रथम फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया ।  फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए।   सबने अनुसरण किया और पुष्प सर्वप्रथम शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किये गए जिसे फुलदेई कहा गया।   साथ में सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आये महाराज । शिव की तंद्रा टूटी बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हुआ और वे भी प्रसन्न मन इस त्यौहार में शामिल हुए तब से पहाडो में फुलदेई पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा।

फूलदेई त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है और हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत  के लिए ही मनाया जाता है।इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं।पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सज जाता है और बसंत के इस मौसम में फ्योली, खुमानी, पुलम, आडू , बुरांश ,भिटोरे आदि  के फूल हर कहीं खिले हुए नजर आ जाते हैं।जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते हैं वही घर आंगन में लगे आडू, खुमानी के पेड़ों में सफेद व हल्के बैंगनी रंग के फूल खिले रहते हैं।फूलदेई त्यौहार में वैसे तो शाम को तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं  लेकिन चावल से बनने वाला  सई ( सैया) विशेष एक तौर से बनाया जाता है।चावल के आटे को दही में मिलाया जाता है।फिर उसको लोहे की कढ़ाई में घी डालकर पकने तक भूना जाता है।उसके बाद उसमें स्वादानुसार चीनी व मेवे  डाले जाते हैं यह अत्यंत स्वादिष्ट और विशेष तौर से इस दिन खाया जाने वाला व्यंजन है।

आज के दौर में त्यौहारों का स्वरूप धीरे या तो परिवर्तित हो रहा है या फ़िर वह केवल औपचारिकता मात्र रह गये हैं । फूलदेई में भी काफ़ी परिवर्तन आये हैं।  ऑनलाइन जिंदगी जीने वाली आज की युवा पीढ़ी  में अब वह पहले वाला उत्साह नहीं  रह गया है लेकिन  किसी भी रूप में सही फूलदेई का त्यौहार उत्तराखण्ड  में अभी भी "फूल देई, छम्मा देई" गाते सजे धजे बच्चों की टोलियां  कहीं न कहीं  दिखायी पड़ जाती हैं। फूलदेई जैसे त्यौहार एक ओर जहां हमारी वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी जिन्दा रखे हुये हैं,  वहीँ  हमारे बच्चों को प्रकृति के और निकट लाने में भी सहायक हैं।

Friday, 3 March 2023

बजट से सबका दिल जीतने में कामयाब हुई शिवराज सरकार










मध्यप्रदेश विधानसभा में आज प्रदेश का वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया गया। शिवराज सरकार के द्वारा  पेश किये गए  बजट में प्रधानमंत्री मोदी के  'सबका साथ सबका विकास' की झलक साफ़ दिखाई दी  है।  ख़ास बात यह रही  इस अंतिम बजट में जनता पर कोई नया कर नहीं लगाया गया है। सरकार ने अपने अनेक लोक लुभावन वायदों से जनता का दिल जीतने की कोशिश की है।  महिलाओं से लेकर युवा , बुजुर्गों से लेकर दिव्यांगों, आदिवासियों  हर वर्ग  पर इस बजट में विशेष फोकस किया गया है।  शिवराज सरकार ने समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान  में रखकर अपना खजाना खोला  है।  सरकार द्वारा इस बजट में किये गए कई प्रावधानों का लाभ समाज के सभी वर्गों को होगा।  

देश के सकल घरेलू उत्पाद में  मध्यप्रदेश का योगदान 3.6 % से बढ़कर अब 4.8 % हो चुका है। वर्ष 2011-12 प्रति व्यक्ति आय 30 हजार 497 रुपये थी, अब 2022-23 में साढ़े तीन गुना तक बढ़कर एक लाख 40 हजार 585 रुपये हो गई है। मध्यप्रदेश का कुल बजट 3.14 लाख करोड़ रुपये का है, जो पिछले साल 2.79 लाख करोड़ रुपये का था। 55,709 करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा अनुमानित है।  वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बजट को प्रस्तुत करते हुए कहा प्रदेश में दस बरस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार कर्ज लेकर वेतन और भत्ते देती थी लेकिन सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट जनता की उम्मीदों का बजट  है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में  सभी क्षेत्रों में आज प्रदेश का  चहुंमुखी  विकास  हो रहा है।  राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में मध्यप्रदेश का योगदान बीते 10 वर्षों में 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4. 8  प्रतिशत पहुँच गया  है।  प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2011 -12 में जहाँ 38 हजार 497 करोड़ थी वहीँ 2022 -23  में यह बढ़कर 1 लाख 40 हजार 583 हो गई है।
      
 इस बजट में  नारी शक्ति का  मान बढ़ाने में  सरकार कामयाब हुई है।  प्रदेश सरकार ने नारी शक्ति के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं प्रदेश में चलाई हैं जिसका  परिणाम आज  धरातल  पर दिखाई दे रहा है।  2015 -16 की तुलना में 2020 -21 में लिंगानुपात 927 से बढ़कर 956 हो चुका है।  लाड़ली लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश में अब तक 44 लाख से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं।  वर्ष 2007 से आरंभ लाड़ली लक्ष्मी योजना में अब तक 44 लाख 39 हजार से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 929 करोड़ रुपये का प्रावधान प्रस्तावित है।  महिला स्वसहायता समूहों ने प्रदेश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है जिसे देखते हुए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 -24  में 660 करोड़ का प्रावधान किया है जो उनके सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा।  मध्यप्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी योजना  की  गूँज  प्रदेश से लेकर पूरे  देश तक सुनाई दी है।  इस योजना में अब तक  44 लाख 39 हजार से अधिक  बालिकाएं  लाभान्वित हुई हैं।  वित्तीय वर्ष 2023 -24 में लाड़ली लक्ष्मी के लिए 929  करोड़  प्रावधान इस बजट में किया गया है ।  विशेष पिछड़ी जनजातीय महिलाओं को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आहार अनुदान योजना  चलाई  जा  रही है जिसके  तहत इन महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1 हजार रु जमा करवाए जाते हैं।   इस बार इसमें 300  करोड़ का प्रावधान किया गया है।  मुख्यमंत्री लाड़ली योजना  की तर्ज पर अब प्रदेश की महिलाओं को प्रदेश  में मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की नई सौगात मिलने जा रही है जिसके तहत सभी पात्र महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1  हजार रु की राशि जमा की जाएगी। 

मुख्यमंत्री बालिका स्कूटी  योजना का बड़ा ऐलान इस बार के बजट में किया गया है।  राज्य सरकार ने घोषणा की है कि अपने-अपने स्कूल में 12वीं में टॉप करने वाली छात्राओं को ई-स्कूटी दी जाएगी। छात्राओं  को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सुविधाओं का विकास करते हुए इस बजट में  प्रदेश के समस्त उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में पहला स्थान पाने वाली बालिकाओं को अब स्कूटी दी जाएगी।आहार अनुदान योजना के लिए 300 करोड़ रुपए का प्रावधान  बजट में  किया गया है।  इसके तहत बैगा, भारिया, सहरिया जनजाति की महिलाओं को 1 हजार रुपए महीना दिया जाएगा।   प्रसूति सहायता योजना में 400 करोड़ रु का प्रावधान किया है। इसी तरह कन्या विवाह एवं निकाह के लिए 80 करोड़ रुपए। मातृत्व वंदना योजना के लिए 467 करोड़ रुपये का बजट रखा  गया है। नई आबकारी नीति के जरिये नशे की लत को हतोत्साहित करने का फैसला किया गया है। ग्रामीण आजीविका मिशन  के लिए 660 करोड़ का प्रावधान किया गया है ।  नारी कल्याण के लिए 1 लाख 2976 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं।  सरकार ने  12  हजार नए  स्वसहायता समूहों का  गठन करने का ऐलान भी किया है।   महिला स्व-सहायता के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट का प्रावधान किया है।  कन्या विवाह योजना की प्रोत्साहन की राशि 51 से बढ़ाकर  55 हजार की गई है।  नारी कल्याण के लिए कुल 1 लाख 2976 करोड़ रुपये का बजट महिलाओं के सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा।  

स्वरोजगार से लेकर कौशल विकास पर  सरकार ने इस बजट में जोर दिया है।  युवाओं के कौशल विकास के साथ उनके रोजगार और स्वरोजगार की दिशा में भी इस बजट में सरकार के द्वारा विशेष प्रयास किये  हैं।  सरकारी नौकरियों में 1 लाख नौकरियां देने का अभियान सरकार के द्वारा चलाया जा  रहा है।  मुख्यमंत्री उद्यम योजना , मुद्रा योजना और अन्य स्वरोजगार की योजनाओं से आज प्रदेश का युवा सशक्त हो रहा  है।  युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए 252 करोड़ रु की योजनाओं का प्रावधान किया गया है।  मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 1 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान इस बजट में हुआ है।  घुमंतू जातियों के रोजगार के लिए 252करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया गया है।  युवाओं को स्वावलंबी बनाना सरकार की  प्रमुख प्राथमिकता है । इसके तहत 1 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी जाएगी। रोजगार के लिए 200 युवाओं को जापान भेजा जायेगा ।  नई शिक्षा नीति के लिए  सरकार  ने इस बजट में 277 करोड़ रु का प्रावधान  किया है । एमबीबीएस सीट 2 हजार 55 से बढ़ाकर 3 हजार 605 की जाएंगी। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए 649 सीट्स बढ़कर 915 होंगी।नर्सिंग कॉलेज योजना से मेडिकल कॉलेज में 810 बीएससी नर्सिंग, 300 पोस्ट बेसिक नर्सिंग की एक्स्ट्रा सीट्स होंगी। 25 चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए 400 करोड़ रुपए का प्रावधान इस  में किया गया है ।  
 
पेंशन नियमों में  सरलीकरण पर इस बार के बजट में सरकार ने जोर दिया है। सरकारी कर्मचारियों को रिटायर होने के बाद उनके रिटायरमेंट लाभ जल्द से जल्द मिले, इसके लिए पेंशन नियमों का सरलीकरण किया जा रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के लिए परिवार की विवाहित पुत्री को भी पात्रता दी गई है। चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमों को सरल और मान्यता प्राप्त निजी चिकित्सालयों में आयुष्मान योजना की निर्धारित दरों पर इलाज की सुविधा दी गई है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों को देय भत्तों का सातवें वेतनमान के परिप्रेक्ष्य में पुनरीक्षण करने के लिए समिति गठित की गई है। 

नए सीएम राइज  से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति होगी।  प्रदेश में अब तक 370 सीएम राइज  स्कूल खुल चुके हैं।  9000 नए सीएम राइज स्कूल खोलने हेतु  सरकार ने इस बजट में प्रावधान किया है।  पीएम श्री योजना के  तहत सरकार ने  277 करोड़ रु का प्रावधान किया है।  प्रदेश में एमबीबीएस सीट 2055 से बढ़ाकर 3605 की जाएंगी।  विद्यालयों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 29 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है।  शिक्षा के लिए इस बजट में 5 हजार 532 करोड़ रु का प्रावधान किया गया है।  सीएम राइज स्कूल के लिए 3230 करोड़ रुपये का बजट सरकार ने पेश किया है ।
  
नर्मदा प्रगति पथ के साथ श्री देवी महालोक , रामराजा लोक , वनवासी राम लोक का विकास  होगा।  सरकार द्वारा पेश किये  गए बजट में नर्मदा प्रगति पथ निर्माण के लिए भी प्रावधान किया गया है।   प्रदेश में कुल 900 किमी लंबा नर्मदा प्रगति पथ बनाया जाएगा।  सलकनपुर के प्रसिद्ध देवी मंदिर में श्री देवी महालोक  का निर्माण होगा । सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को भी किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रु. का बजट  में प्रावधान किया गया है । सलकनपुर में श्रीदेवी महालोक, सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को डेवलप किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रुपए का  प्रावधान बजट में किया है।

खेल विभाग का बजट बढ़कर 738 करोड़ रुपये  पहुँच गया है।  सरकार ने खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के लिए खेल विभाग का बजट बढ़ाकर 738 करोड़ रुपये कर दिया है।  इसी के साथ प्रदेश में अब स्पॉर्ट्स टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात कही  है । भोपाल के नाथू बरखेड़ा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण और स्पोर्ट्स साइंस सेंटर की स्थापना की जाएगी। 

सरकार ने इस बजट में  भोपाल में संत शिरोमणि रविदास ग्लोबल स्किल पार्क बनाने का नया ऐलान किया है। इसमें हर साल 6 हजार लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी। ग्वालियर, जबलपुर, सागर और रीवा में भी स्किल सेंटर शुरू किए जाएंगे। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना का इस   बजट में   विस्तार हुआ है।  अब सरकार इस योजना के तहत तीर्थयात्रियों को हवाई जहाज से तीर्थ दर्शन कराएगी ।  मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन के के लिए 50 करोड़ रु स्वीकृत किये गए हैं । 

किसानों के कल्याण के लिए भी कई सौगातें सरकार ने दी हैं।  सरकार ने कृषि सम्बन्धी योजनाओं के लिए  कुल 53 हजार 964 करोड़ रु का बजट प्रस्तावित किया गया है। डिफॉल्टर किसानों का कर्ज सरकार ने भरने का बड़ा ऐलान इस बजट में किया है।  मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अन्तर्गत 3 हजार 200 करोड़ रु का प्रावधान इस बजट में किया गया है।  प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के साथ ही फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 11 हजार एकड़ में वैकल्पिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की बात हुई है।   प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत सुरक्षा कवच हेतु 2 हजार करोड़ रु की राशि सरकार प्रदान करेगी।।  मोटे अनाज के लिए 1000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।  11हजार एकड़ मे सुगंधित खेती को बढ़ावा  देने की भी बात हुई है।  सिंचाई परियोजना के लिए 11 हजार 50 करोड़ रुपये का बजट, किसानों को हर साल 10,000 की आर्थिक सहायता, सीएम किसान कल्याण योजना के लिए 3200 करोड़ रुपये का बजट किसानों के लिए सही मायनों में नई सौगातें लेकर आया  है।   मुख्यमंत्री गोसेवा योजना के अंतर्गत 3346 गोशाला का निर्माण स्वीकृत किया गया है।

आधारभूत अवसंरचना पर भी विशेष फोकस सरकार ने किया है।  सरकार द्वारा  प्रस्तुत किये गए  बजट में इंदौर, भोपाल में मेट्रो रेल के लिए 710 करोड़ रुपये का बजट   प्रस्तावित किया गया है।  इसी साल दोनों शहरों में मेट्रो का ट्रायल करने की योजना है। चुनावी दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है।  इंदौर-पीथमपुर इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी  विकास होगा होगा वहीँ 105 नए  रेलवे ब्रिज  भी इस बजट में प्रस्तावित हैं।  हवाई पट्टियों के विकास के लिए 80 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। प्रदेश में सड़कों और पुलों के लिए 56 हजार 256 करोड़ रुपए , नगरीय निकायों को 842 करोड़ रुपए, नगरीय विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपए और स्थानीय निकायों को 3 हजार 83 करोड़ रुपए के साथ ही नगरीय  विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया है। सड़क और पुलों के निर्माण के लिए 2023 -24 में 10  हजार 182 करोड़ का प्रावधान किया गया है।  

इस प्रकार शिवराज सरकार द्वारा  पेश किये गए बजट में समाज के सभी वर्गों के हित  में घोषणाएं की गयी हैं।  प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत  ये बजट समाज  के सभी  वर्गों के लिए लाभकारी और कल्याणकारी  है।  

Monday, 16 January 2023

2023 में निवेशकों की पहली पसंद बनेगा मध्यप्रदेश



मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान  प्रदेश में   निवेशकों को आकर्षित करने के लिए लगातार कदम उठा  रहे हैं जिसका स्पष्ट परिणाम हाल में इंदौर में सम्पन्न जीआईएस समिट के बाद  भी दिखाई  दे रहा है।  11-12 जनवरी को इंदौर में आयोजित  हुए  ग्लोबल इन्वेस्टर्स  समिट में 84 देशों के बिजनेस डेलिगेट शामिल हुए जिसमें कुल 10 पार्टनर कंट्री थे। इसके अलावा 35 देशों के दूतावासों के प्रतिनिधियों ने  भी हिस्सेदारी  की। दो दिन में 2600 से अधिक मैराथन बैठकों के बाद  कुल 36 विदेशी व्यापारिक संगठनों से करारनामे हुए। जी-20 के पार्टनर और अनेक बिजनेस डेलीगेट्स ने इस भव्य  आयोजन में चार चाँद  लगा दिए।  

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत मिशन को पूर्ण करने की दिशा में  प्रदेश की शिवराज सरकार लगातार काम कर रही है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि वह 2026 तक मध्यप्रदेश को 550 बिलियन डालर की इकोनामी बना देंगे। इस दिशा में वह दिन रात नई  ऊर्जा के साथ  लगातार काम कर रहे हैं।  उनके  कुशल नेतृत्व  और विजन  का परिणाम है , इंदौर  में इस भव्य समिट  के समाप्त होने के बाद देश और दुनिया से  निवेश के प्रस्ताव मिलने प्रारंभ हो गए हैं। सिंगल विंडो सिस्टम  होने  से निवेशकों को लाभ हो रहा है। प्रदेश में निवेश करने के लिए विश्व के कई देश उत्सुक हैं।

निवेशकों को आकर्षित करने के लिए शिवराज सरकार की नीतियों का असर  दिखाई दे रहा है।  मुख्यमंत्री चौहान निवेश के माध्यम से प्रदेश के विकास को निर्णायक गति देना चाहते हैं जिसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने  निवेश करने वाले उद्योगपतियों के लिए कई रियायतें देने का बड़ा फैसला किया है। सूबे के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है वे उद्योगपतियों की एक पाई भी व्यर्थ नहीं जाने देंगे। संवाद, सहयोग, सुविधा, स्वीकृति, सेतु, सरलता और समन्वय के 7 सूत्रों से उद्योगों को पूर्ण सहयोग की रणनीति अपनाई जाएगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि इस समिट के माध्यम से उद्योगपतियों और निवेशकों द्वारा 15 लाख 42 हजार 550 करोड़ रूपए से अधिक के लागत के उद्योग लगाने के प्रस्ताव मिले हैं, जिनसे 29 लाख लोगों को रोजगार देने की संभावनाओं को साकार किया जा सकेगा। इंटेशन टू इन्वेस्ट के परिणामस्वरूप  मध्यप्रदेश की प्रगति में महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ेगा।

मुख्यमंत्री  चौहान ने बताया कि प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 06 लाख 09 हजार 478 करोड़, नगरीय अधोसंरचना में 02 लाख 80 हजार 753 करोड़, खाद्य प्र-संस्करण और एग्री क्षेत्र में 01 लाख 06 हजार 149 करोड़, माइनिंग और उससे जुड़े उद्योगों में 98 हजार 305 करोड़, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में 78 हजार 778 करोड़, केमिकल एवं पेट्रोलियम इंडस्ट्री में 76 हजार 769 करोड़, विभिन्न सेवाओं के क्षेत्र में 71 हजार 351 करोड़, ऑटोमोबाईल और इलेक्ट्रिक व्हीकल के क्षेत्र में 42 हजार 254 करोड़, फार्मास्युटिकल और हेल्थ सेक्टर में 17 हजार 991 करोड़, लॉजिस्टिक एवं वेयर हाऊसिंग क्षेत्र में 17 हजार 916 करोड़, टेक्सटाईल एवं गारमेंट क्षेत्र में 16 हजार 914 करोड़ तथा अन्य क्षेत्रों में 01 लाख 25 हजार 853 करोड़ का निवेश किए जाने के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। 

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उद्योगपतियों को अब  अपनी कठिनाइयाँ दूर करने के लिए राजधानी भोपाल नहीं आना पड़ेगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने उद्योगपतियों से प्रदेश में उद्योग लगाने एवं निवेश करने का आग्रह करते हुए कहा कि उद्योगों के लिये 24 घंटे में भूमि आवंटित की जाएगी। शिकायतों के निराकरण के लिए इन्वेस्ट एमपी  पोर्टल पर समाधान के लिए नई  विण्डो प्रारंभ होगी, जो उद्योगपति की समस्या से अवगत करवाएगी। सरकार की एक टीम द्वारा उद्योगपति से सम्पर्क भी किया जाएगा। इसका फॉलोअप मुख्यमंत्री स्तर पर होगा।

 मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उद्योगपतियों को राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए तीन वर्ष तक किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। उद्योगपतियों को अटकने-भटकने की जरूरत नहीं होगी। इस अवधि में औद्योगिक इकाई का कोई निरीक्षण भी नहीं होगा। प्लग एंड प्ले की सुविधा, जो अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में है, गारमेंट और अन्य उद्योग क्षेत्रों में भी प्रदान की जाएगी। ईज ऑफ डूईंग बिजनेस और सुशासन के द्वारा समस्याओं को हल किया जाएगा।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा आज मध्यप्रदेश विकास की तरफ तेजी से बढ़ा है। प्रदेश की विकास दर देश में सर्वाधिक है। हम तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं और वे  मध्य प्रदेश के सीईओ के रूप में सदैव उपलब्ध हैं। 
 
प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने इस  ग्लोबल समिट से पहले कई राज्यों का दौरा किया और दुनिया के देशों के उद्योगपतियों के साथ वर्चुअल संवाद भी किया।  उन्होनें देश भर के निवेशकों से मध्यप्रदेश  की बदलती परिस्थितियों का लाभ उठाने का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने विभिन्न देशों  के राजदूतों, उच्चायुक्तों, उद्यमियों और निवेशकों  की उपस्थिति में बुनियादी इंफ्रास्टक्चर में अग्रणी मध्यप्रदेश के  बदलते परिवेश को प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री ने नीतिगत बदलाव के साथ ढांचागत सुविधाओं में व्यापक सुधार की बात सभी को समझाई।  

मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाओं को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री चौहान लगातार पिछले साल से ही उद्योगपतियों से वन-टू-वन मीटिंग कर रहे थे। उनके द्वारा बैंगलुरू और मुंबई में उद्योगपतियों से चर्चा की गई। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए अथक परिश्रम किया  इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश की संभावनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश भारत का सबसे तेजी से बढ़ने वाला प्रदेश हैं। मध्यप्रदेश वन संपदा, खनिज संपदा, जल संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है जो अब टाइगर स्टेट, लेपर्ट स्टेट,  कल्चर स्टेट और अब चीता स्टेट भी हो गए हैं। उद्योगपतियों का भरोसा जीतने में  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान कामयाब हुए हैं।  प्रदेश में निवेश आमंत्रित करने के लिए अलग अलग  प्रदेशों में हुए मुख्यमंत्री के रोड शो को अच्छी सफलता मिली है। हांगकांग , नार्वे , इजराइल सहित खाड़ी के कई देश प्रदेश में भारी भरकम निवेश के लिए तैयार हो रहे हैं। विदेशी निवेशकों में जिस प्रकार का आकर्षण दिख रहा है उससे साफ हो गया है कि आज विदेशी  निवेशक भी मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए उत्साहित हैं।  इंदौर में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने  राज्य सरकार की सहयोगात्मक नीतियों का जिक्र करते हुए निवेशकों को हरसंभव सहयोग का भरोसा भी दिलाया।

हांगकांग का एपिक ग्रुप 400 करोड़ का निवेश भोपाल में करने जा रहा है।  हांगकांग में स्थापित गारमेंट क्षेत्र के अग्रणी समूह एपिक ग्रुप  ने भोपाल के निकट 35 एकड़ भूमि पर 400 करोड़ रूपये के निवेश से वर्टिकल फेब्रिक और गारमेंट इकाई की स्थापना पर  सहयोग का भरोसा जताया है।  इकाई से लगभग 10 हजार व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होंगे।एपिक ग्रुप बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जैसे लिवाइस, अमेजॉन, वॉलमार्ट, नॉटिका आदि को गारमेंट की आपूर्ति करता है। वर्तमान में समूह की इकाइयाँ बांग्लादेश, जॉर्डन, वियतनाम और इथियोपिया में संचालित हैं। समूह बांग्लादेश से अपनी कुछ गतिविधियाँ मध्यप्रदेश में स्थानांतरित करने का इच्छुक है। इसी तरह नॉर्वे पवन और सौर ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश का इच्छुक है।  समूह ने  छिंदवाड़ा जिले में सौर तथा पवन ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश तथा ग्रीन एनर्जी, नवकरणीय ऊर्जा के संबंध में चर्चा  हुई ।  इस समूह ने  जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षेत्र में दोनों देशों के साथ मिल कर कार्य करने की इच्छा जताई। इजराइल की कम्पनियों ने भारत में ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट और जल प्रौद्योगिकी में निवेश किया है। मध्यप्रदेश में कृषि के क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों के संचालन और उनमें निवेश के लिए इजराइल की कम्पनियाँ इच्छुक हैं। साथ ही कौशल विकास, स्मार्ट सिटी डेवपलमेंट तथा अधो-संरचना विकास के क्षेत्र में निवेश की भी इच्छुक हैं।

 सिंगापुर इंडियन चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज प्रतिनिधि-मंडल ने कृषि , प्र-संस्करण, थीम पार्क विकसित करने तथा कौशल उन्नयन के लिए प्रशिक्षण गतिविधियों के विस्तार के बारे में चर्चा की। मेसर्स शाही एक्सपोर्ट्स  ने इंदौर के समीप 25 एकड़ भूमि पर 200 करोड़ रूपये के निवेश से रेडीमेड गारमेंट इकाई की स्थापना के संबंध में प्रस्ताव रखा। नेटलिंक स्ट्रेटेजिक सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, अमेरिका की फ्लैश साइंटिफिक टेक्नोलॉजी के साथ मिल कर भोपाल के पास 200 करोड़ के निवेश से सायबर सिटी निर्माण के लिए अपनी इच्छा प्रकट की  है। नेटलिंक ने प्रदेश में स्टार्टअप प्रोत्साहन में 25 करोड़ रूपये का निवेश करने की इच्छा जताई है।  उन्होंने आकाशीय बिजली के नुकसान को बचाने के लिए तकनीक का पॉयलेट प्रोजेक्ट प्रदेश में क्रियान्वित करने पर भी  चर्चा की है ।कमर्शियल रियल एस्टेट के क्षेत्र में कार्यरत जे.एल.एल. समूह  द्वारा  5 हजार करोड़ के निवेश से  मध्यप्रदेश की तस्वीर बदलगी।  परियोजना के लिए विदेश एवं घरेलू संस्थाओं से वित्त पोषण लाने पर भी जीआईएस में  चर्चा हुई है। इसी तरह नर्मदा शुगर प्रायवेट लिमिटेड  ने प्रदेश में 450 करोड़ के निवेश से एथनॉल प्लांट, कंप्रेस्ड बॉयोगैस प्लांट और राइस ब्रान रिफाइनरी की स्थापना का निर्णय लिया है । कृष्णा फॉस्केम लिमिटेड ने झाबुआ में 200 हेक्टेयर भूमि पर 5100 करोड़ के निवेश से उर्वरक और कृषि रसायन की 7 इकाइयों की स्थापना संबंधी कार्य-योजना पर चर्चा की है वहीँ  टेक्समो पाइप्स एण्ड प्रोडक्ट्स लिमिटेड ने पीथमपुर में 130 करोड़ की लागत से 18 एकड़ भूमि पर एथनॉल संयंत्र की परियोजना को लेकर अपनीरुचि दिखाई है। आबूधाबी की ई-20 इन्वेस्टमेंट लिमिटेड ने स्ट्राबेरी, ब्लू-बेरी की खेती, उनके प्र-संस्करण तथा वैश्विक स्तर पर वितरण के संबंध में प्रस्ताव दिया है और भूमि आवंटित करने का निवेदन किया है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को  मध्यप्रदेश साकार करेगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में विश्व के देशों को भारत ही दिग्दर्शन कराएगा। मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए अनेक क्षेत्रों में प्रधानमंत्री की आशाएँ और अपेक्षाएँ हैं, जिन्हें गंभीरता से पूरा किया जाएगा। मध्यप्रदेश औद्योगिक प्रगति के रनवे पर रफ्तार बढ़ा चुका है, हम अब टेक ऑफ कर रहे हैं। प्रदेश सरकार ने राज्य के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। शिवराज सरकार की बेहतर नीतियों के कारण आज  निवेशक मध्यप्रदेश को उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे हैं।  प्रदेश में आज बेहतरीन इंफ्रास्टक्चर  है। बिजली, सड़क , पानी रेल , एयर कनेक्टिविटी और 5 जी तकनीक का बेहतर नेटवर्क तैयार किया गया है। प्रदेश में लगने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के साथ रोजगार  दिया जा रहा है। कानून व्यवस्था के मामले में भी  प्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय कार्य किया है। अब मध्यप्रदेश शांति का टापू है। प्रदेश में व्यापार के लिए अनुकूल वातावरण सृजित हुआ है। मध्यप्रदेश  विकास के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इच्छाशक्ति व संकल्प के चलते प्रदेश में निवेश करने के लिए निवेशक आकर्षित हो रहे हैं तथा प्रदेश निवेशकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। प्रदेश में वर्तमान समय में विकास के कई कार्य प्रगति पर हैं जिसके लिए निवेश की जरूरत  है और अब सरकार उसमें लगातार आगे बढ़ रही है। जीआईएस 2023  मध्यप्रदेश के विकास  के लिए  सही मायनों में एक मील का पत्थर साबित हुई है। ग्लोबल  इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से मध्यप्रदेश में  अभूतपूर्व निवेश की संभावनाएं बन रही हैं। इससे प्रदेश के युवाओं को विविध क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे। भारत को जी -20 की अध्यक्षता मिलने के बाद मध्यप्रदेश के इंदौर जैसे शहरों में भी इस समूह की बड़ी बैठकें इस वर्ष आयोजित होंगी। ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। जनवरी के अंत में मध्यप्रदेश में खेलो इंडिया का आयोजन भी होने जा रहा है। इस आयोजन से मध्यप्रदेश के पास  खुद को  खेलों के बड़े हब  के रूप में प्रस्तुत करने का बेहतरीन मौका मिलेगा।  इससे  मध्यप्रदेश को देश और दुनिया में नई पहचान मिलेगी।  

 इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टमेट समिट के  शानदार आयोजन से विदेशी निवेशक ही नहीं अपितु स्वदेशी कंपनियां भी उत्साहित हैं।  ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के सफल आयोजन होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तमाम उद्योगपतियों का आभार जताया है। अगर ये सब कोशिशें परवान चढ़ी तो उद्योगों को वैश्विक और घरेलू बाजार तक पहुंच बनाने में लाजिस्टिक्स की सुलभता में  वृद्धि होगी। त्वरित गति से उद्योगों की स्थापना के लिए 24  घंटे में जमीन  देने के मुख्यमंत्री चौहान के फैसले की उद्योगपतियों ने दिल खोलकर सराहना की है। जीआईएस में तमाम उद्योगपतियों के  निवेश के माध्यम से  वर्ष -2023  मध्यप्रदेश  के लिए भी मील का पत्थर साबित होने जा रहा है।