Wednesday, 27 July 2011

उत्तराखंड में फिर से खूंटा गाड़ने की तैयारी में है खंडूरी......

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमत्री भुवन चन्द्र खंडूरी की राज्य में सक्रियता एक बार फिर बढ गई है.....उत्तराखण्ड में आगामी विधान सभा चुनावो से ठीक पहले खंडूरी की इस सक्रियता से एक बार फिर इस बात के कयास लगने शुरू हो गए है कि पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ उनके सम्बन्ध ठीकठाक नही चल रहे है ..... राज्य में विधान सभा चुनावो से ठीक पहले अगर जनरल ने अपने राजनीतिक जीवन का कोई बड़ा फैसला ले लिया तो भाजपा को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.....


दरअसल इस समय राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री निशंक के साथ उनकी पटरी नही बैठ रही है ..... निशंक अपने को पार्टी में बड़ा सर्वेसर्वा मानते है.... पार्टी के कई दिग्गज नेता उनकी इसी कार्य शैली की वजह से खासे नाराज है .... यह नाराजगी केवल हाल के दिनों में ही नही बड़ी है... निशंक के साथ पार्टी के आम कार्यकर्ताओ के संबंधो में कटुता उनकी ताजपोशी के बाद से ही बढ़नी शुरू हो गई थी.... अब विधान सभा चुनाव पास आने से ठीक पहले निशंक के खिलाफ ये नाराजगी भाजपा के लिए राज्य में नुकसान देहक साबित हो सकती है.....


भाजपा में इस समय निशंक को हटाने की मुहिम परवान पर है... और इस समय दो पूर्व मुख्यमत्री खुले तौर पर निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने की कोशिसो में लगे है....यह कोई और नही राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री खंडूरी और भगत सिंह कोशियारी है.... दोनों खुले तौर पर पार्टी के आला नेतृत्व से निशंक को हटाने के लिए लॉबिंग करने में जुटे है.....

बीते दिनों हरिद्वार में राजनाथ सिंह के महिला मोर्चे के कार्यक्रम में इनदिनों महारथियों की अनुपस्थिति से यह सन्देश गया है कि उत्तराखण्ड भाजपा की साढ़े साती अभी दूर नही हुई है.... अगर ये दूर नही हुई तो पार्टी के आगामी चुनावो में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.........निशंक को मुख्यंमंत्री बनाने में खंडूरी की अहम् भूमिका रही थी..... लेकिन मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद निशंक ने खंडूरी को भाव देने बंद कर दिए... यही नही कल तक जो भगत सिंह कोशियारी खंडूरी को राज्य के मुख्यमत्री पद से हटाने की मुहिम छेड़े थे आज वे भी खुलकर खंडूरी का साथ दे रहे है.....


दरअसल इसके गहरे निहितार्थ है ... मुख्यमत्री बनाये जाने के बाद निशंक ने अपने कार्यकाल में कोई विशेष छाप नही छोड़ी है .... उनके कुर्सी सँभालने के बाद राज्य में भ्रष्टाचार का ग्राफ तेजी से बड़ा है....जहाँ कर्नाटक में भाजपा येदियुरप्पा पर करोडो के वारे न्यारे करने के आरोप झेल रही है इसी तरह के हालत उत्तराखण्ड में भी है परन्तु वहां का मीडिया इस बात पर खामोश है... यह सब निशंक की बाजीगरी का नतीजा है कि कोई भी निशंक के खिलाफ राज्य में लिखने का साहस नही कर पा रहा है.....


सूचना विभाग की कमान निशंक ने मुख्यमंत्री पद सँभालने के बाद से खुद अपने पास रखी है ... मीडिया को खुश करने के लिए निशंक ने इन दिनों सभी को थोक के भाव से विज्ञापन देने शुरू कर दिए है ... मजेदार बात तो ये है कि कई ऐसे समाचार पत्रों , पत्रिकाओ को इस अवधि में विज्ञापन दे दिए गए है जिनका राज्य में कोई वजूद नही है......चुनावी वर्ष में निशंक कोई रिस्क मोल नही लेना चाहते ..... इसलिए विज्ञापनों पर वह पानी की तरह पैसा बहा रहे है ......जाहिर है वह भी नीतीश, शिवराज और मोदी, रमन वाली राह पर चलना चाहते है........ परन्तु निशंक को शायद यह मालूम नही इन लोगो के सपनो की राह देखना आसान है जमीनी हकीकत को समझना अलग बात है... फिर उत्तराखण्ड में आम आदमी उनके कार्यकाल से इतना खुश भी नही है कि शिवराज और मोदी की तरह दुबारा उनको राजगद्दी पर बैठा ही देगा .....


निशंक पर भ्रष्टाचार के कोई मामूली आरोप नही है......कैग की रिपोर्टो में उनके खिलाफ लगाये गए आरोपों में वाकई दम नजर आता है ...बीते साल महाकुम्भ के नाम पर निशंक ने केंद्र के द्वारा दी गई मदद का जमकर दुरुपयोग किया ... इस मामले में नौकरशाहों के साथ मिलकर निशंक के कुछ मंत्रियो ने भी जमकर मलाई खायी ......यही नही कुम्भ मेले के दौरान हुए निर्माण कार्यो में भी भारी अनियमितता पायी गई.........देहरादून के एक न्यूज़ चैनल में काम करने वाले मेरे एक मित्र की बातें माने तो हरिद्वार में जिस जिस जगहों पर महाकुम्भ के दौरान निर्माण कार्य किये गए वह आज पूरी तरह जवाब दे चुके है ...बरसात के मौसम में निशंक के निर्माण कार्यो की पोल अच्छे ढंग से खुल गई है .....


ऋषिकेश में भूमि आवंटन से लेकर कई जल विद्युत परियोजनाओ को निरस्त करने के मामले निशंक सरकार की साख के लिए संकट बनते जा रहे है..... यही नही निशंक के राज में भ्रष्टाचार की गंगा जमकर बह रही है .... रामदेव केंद्र सरकार के खिलाफ सत्याग्रह की बातें कर रहे है ॥बेहतर होता वह अगर देवभूमि से निशंक के खिलाफ सत्याग्रह की बातें करे तो यह माना जाए वह भी भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट है..... पार्टी चाहे कोई भी हो भ्रष्टाचार का दोषी अगर कोई तो उसके खिलाफ कड़े फैसले लेने में भय कैसा ....?


कांग्रेस आदर्श सोसाइटी पर अशोक चौहान इस्तीफ़ा ले लेती है .... राजा , कनिमोझी और कलमाड़ी को तिहाड़ भेज देती है लेकिन येदियुरप्पा और निशंक पर कोई कार्यवाही करने से डरती है? क्यों? क्या ऐसा करने से भाजपा अपने को कमजोर नही कर रही है....? भाजपा मनमोहन और चिदंबरम से एक ओर इस्तीफे की मांग करती है परन्तु वह येदियुरप्पा और निशंक को अभयदान दे देती है ?क्या इससे उसकी भ्रष्टाचार की लड़ाई कमजोर नही हो जाती?


उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री इन सब बातो के मद्देनजर खासे आहत है... वह अपनी पार्टी में बेगाने हो गए है.... खंडूरी निशंक सरकार के साथ ही पार्टी आलाकमान से भी नाराज हो गए है .... बार बार निशंक को हटाने के लिए दबाव देने के बाद भी पार्टी के आला नेता उनको घास डालने के मूड में नही है..... खंडूरी राज्य भर में भ्रमण करके जनता की नब्ज टटोल चुके है.... जनता में निशंक सरकार के खिलाफ गहरी नाराजगी है....इस नाराजगी की बड़ी वजह निशंक की ख़राब कार्यशेली है जिसको खंडूरी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने रखा .... बीते दिनों हुई मुलाकात में सुषमा स्वराज के वीटो के चलते निशंक को हटाने की मुहिम ठंडी हो गई ...


इस बार उनके धुर विरोधी कोशियारी भी निशंक को हटाने की खंडूरी की मुहिम में साथ थे.... पिछले महीने लखनऊ में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में खंडूरी की अनुपस्थिति ने कई सवालों को जन्म दे दिया .... निशंक को न हटाने के पीछे पार्टी का तर्क है कि चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला सही नही होगा लिहाजा उसने एकजुटता के मद्देनजर यह बयान दे दिया कि पार्टी उत्तराखंड का आगामी चुनाव निशंक, कोशियारी और खंडूरी तीनो के नेतृत्व में लड़ेगी.....भाजपा में खंडूरी और कोशियारी इस फैसले को नही पचा पा रहे है ....


कहा तो यहाँ तक जा रहा है पार्टी आलाकमान राज्य में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के काम काज से भी संतुष्ट नही है....वह राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओ में नया जोश नही फूंक पा रहे है .... आलाकमान ने कोशियारी से चुफाल की जगह प्रदेश अध्यक्ष का पद स्वीकार करने को कहा ... कोशियारी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह निशंक के सी ऍम रहते तो इस जिम्मेदारी को नही स्वीकार सकते... साथ ही इस बार उन्होंने खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाने की बातें कही परन्तु आलाकमान ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया .....


लिहाजा अब खंडूरी निशंक के खिलाफ मोर्चा खोलने में लगे है.... कोशियारी अपने को पार्टी कर समर्पित सिपाही बताते है ॥ जब तक खंडूरी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने उन्हें हटाने के लिए राज्य सभा सदस्यता से इस्तीफे की धमकी तक दे डाली थी..... इस बार चुनावी वर्ष में वह निशंक को हटाने के लिए भाजपा छोड़ने का साहस शायद ही कर पाये.....उनसे पहले खंडूरी भाजपा को गच्चा देने के मूड में नजर आ रहे है .....


अगर सब कुछ ठीक रहा तो चुनावो से ठीक पहले खंडूरी उत्तराखंड में एक अलग पार्टी खड़ी कर सकते है..... बीते दिनों उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेता ऐरी से उनकी मुलाकातों को इसी रूप में देखा जा रहा है .... ऐरी ने खंडूरी की साफगोई के मद्देनजर उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़कर पहाड़ की अस्मिता बचाने की अपील की है .... जिस मुद्दों को लेकर राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वह सपने आज पूरे नही हुए है॥ उत्तराखंड में कोई तीसरा मोर्चा भी नही है जो भाजपा और कांग्रेस का विकल्प जनता के सामने बन सके..... लिहाजा ऐरी ने खंडूरी को राज्य के हित में भाजपा छोड़ने की बात कही....


भाजपा से नाराज चल रहे खंडूरी अगर अलग राह चुनते है तो भाजपा के भी कई नेता उनका साथ दे सकते है..... यही नही खंडूरी के करीबियों की माने तो वह इन दिनों अपने समर्थको के साथ गुपचुप ढंग से रणनीति बना रहे है ... बताया जाता है कि राज्य में कई पूर्व सैनिक जनरल के साथ राज्य बचाने की इस मुहिम में साथ है॥ इसमें उन्हें कुछ नौकरशाहों का भी साथ मिल रहा है.....भाजपा के नेता इस मसले पर कुछ बोलने की स्थिति में नही है.....

हाँ, यह अलग बात है निशंक के काम काज से नाराज चल रहे कई विधायक और मंत्री समय आने पर जनरल का खुलकर साथ दे सकते है.....खंडूरी का गढ़वाल में खासा जनाधार है.... कुमाऊ में भी उनकी साफगोई के सभी लोग कायल है....भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में जब माहौल बन रहा हो ऐसे में निशंक और येदियुरप्पा जैसे लोगो को फ्री हैण्ड दिए जाने का भाजपा आलाकमान का फैसला आम जन मानस के गले नही उतर रहा है.....


ऐसे में जब उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव ज्यादा दूर नही हो , भाजपा को खंडूरी सरीखे इमानदार नेता की जरुरत बन रही है ,पार्टी उनके बजाय निशंक को आगे कर चुनाव लड़ने कर मूड बना रही है....पार्टी के आला नेताओ की माने तो गडकरी द्वारा उत्तराखंड में हाल में करवाए गए एक सर्वे में निशंक के नेतृत्व में पार्टी की हालत पतली होने का अंदेशा बना है....अगर यही सब रहा तो आगामी चुनावो में निशंक पार्टी की राज्य में लुटिया पूरी तरह डुबो देंगे.....


सब बातो के मद्देनजर अब भाजपा में तीरथ सिंह रावत , टी पी एस रावत , मोहन सिंह गाववासी , मनोहरकांत ध्यानी, बच्ची सिंह रावत जैसे कई दिग्गज नेता खंडूरी के साथ खड़े हो रहे है....खंडूरी की राजनाथ से शुरू से पटरी नही बैठ रही थी....क्युकि राजनाथ के अध्यक्ष रहते खंडूरी को सी ऍम की कुर्सी ५ लोक सभा हारने के बाद गवानी पड़ी थी ... अब उन्ही राजनाथ सिंह को राज्य में पार्टी का चुनाव प्रभारी बनाया गया है जिसे खंडूरी नही पचा पा रहे है .... वैसे बताते चले भाजपा के समर्पित सिपाही रहे खंडूरी भाजपा को अलविदा कहने से पहले
निशंक को हटाने कर एक दाव ओर खेलने की कोशिश करेंगे............

इस दरमियान खंडूरी की कोशिश निशंक की जगह खुद मुख्यमंत्री पद की कमान लेने की भी बन सकती है ....अगर पार्टी उनको निशंक की जगह पर सी ऍम की कुर्सी सौप दे तो शायद वो बगावत कर झंडा बुलंद करना छोड़ देंगे ..........

अपनी बेदाग़ छवि के मद्देनजर अब खंडूरी के सामने एक ही विकल्प बच रहा है या तो वह भाजपा को "गुड बाय" कहे और अपनी खुद की पार्टी बनाये या उत्तराखंड क्रांति दल जैसे दल के साथ जुड़कर राज्य में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प जनता के बीच बने... देखना होगा जनरल को इसमें कितनी सफलता आने वाले दिनों में मिलती है ?


बहरहाल जो भी हो खंडूरी आने वाले दिनों में भाजपा की बढ़ी मुसीबत बने रहेंगे.....भाजपा हाई कमान से अब इस बात की उम्मीद बिलकुल भी नही है वह निशंक को चुनावों से पहले हटाने का "रिस्क" मोल लेगी...... ऐसे में अब सबकी निगाहे खंडूरी की तरफ है ॥ कोई बड़ा फैसला उन्ही को लेना है.....