Tuesday 28 July 2015

डॉ कलाम को आखरी सलाम



सपने वो नहीं होते जो आपको रात में  नींद में आएं लेकिन सपने वे होते हैं जो रात में सोने ना दें । ऐसी बुलंद सोच और अग्नि सरीखी ऊँची उड़ान रखने  वाले  मिसाइलमैन कलाम ही थे जिन्हें पीपुल्स प्रेसीडेन्ट यूँ  ही नहीं कहा जाता था । अपने राष्ट्रपति  पद  के 5 बरस के कार्यकाल   में कलाम ने अन्य  राष्ट्रपति   के  कार्यकालों के  मुकाबले   न केवल अमिट  छाप छोड़ी बल्कि ऐसी मिसाल भारतीय राजनीती में दूर दूर तक देखने को नहीं मिलती । कलाम ने राष्ट्रपति पद के दरवाजे ना केवल आम आदमी के लिए ही नहीं खोले बल्कि समाज के हर तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की ।  अपनी सादगी से उन्होंने पूरे देश की जनता का दिल जीता शायद यही वजह रही शिलॉंग में देर शाम जब उनकी मौत की खबर आई तो  किसी को सहसा यकीन ही नहीं हुआ  कि कलाम साहब इस दुनिया में नहीं रहे और फिर सोशल  मीडिया  में जिस तरह से उनको श्रद्धांजलि देने का सिलसिला शुरू हुआ उसने इस बात को बखूबी बताया कि कलाम को चाहने वाले किस तरह उनको अपने दिल  में बसाये हुए थे ।   फेसबुक से लेकर ट्विट्टर हर जगह टॉप टेन में कलाम ही ट्रेंड हो रहे थे । कलाम की शख्सियत ही  यूँ  थी कि हर कोई उनका मुरीद हो जाता था । राष्ट्रपति पद पर रहते हुए  भी वह आम   इंसान की तरह सादगी में रहते थे ।    कलाम देश के वह सम्मानित व्यक्तियों में  से एक थे जिन्होंने एक वैज्ञानिक और एक राष्ट्रपति के रूप में अपना अतुल्य योगदान देकर देश सेवा की।     राष्ट्रपति पद पर अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद से कलाम शिलांग, अहमदाबाद और इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थानों तथा देश एवं विदेश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे। डॉ कलाम ने राष्ट्राध्यक्ष रहते हुए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम जन के लिए खोल दिए जहां बच्चे उनके विशेष अतिथि होते थे ।  

15  अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में पैदा हुए कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलोजी से स्नातक करने के बाद भौतिकी और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और फिर उसके बाद रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से जुड़ गए। उनका  बचपन  भी  बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा।प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहां की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिन्नापल्ली  में प्रवेश लिया। वहां से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बीएससी की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई का रुख किया। वहां पर उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया। कलाम की इच्छा थी कि वे वायु सेना में भर्ती हों तथा देश की सेवा करें। यह इच्छा पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद का चुनाव किया। वहां पर उन्होंने 1958 में तकनीकी केन्द्र  सिविल विमानन  में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्हीं दिनों इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से ‘‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ की शुरुआत हुई। कलाम को इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया जिसे  उन्होंने  भलीभांति अंजाम तक पहुंचाया ।  जुलाई 1980 में ‘‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी  की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया।

डॉ. कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्यद से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के मार्गदर्शन  में ‘‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की शुरुआत की। इस योजना के अंतर्गत ‘‘त्रिशूल’  ‘‘आकाश’, ‘‘नाग’, ‘‘अग्नि’ एवं ‘‘ब्रह्मोस’ मिसाइलें विकसित हुई। डॉ. कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा डीआरडीओ के सचिव के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कीं। उन्होंने भारत को ‘‘सुपर पॉवर’ बनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण किया। इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की और यह डॉ  रणनीति थी  पोकरण विस्फोटों  की भनक अमरीका तक  को नहीं लगी और परीक्षण  सफल हुआ ।  डॉ. कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे  और फिर 25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। वे 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे और उनको राष्ट्रपति बनाने में नेताजी ने मास्टर  स्ट्रोक उस  दौर में चला  था जब  वामपंथी  और विपक्ष एनडीए के इस  फैसले के साथ  गया था । 2012 में सबसे पहले नेताजी ने  तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के साथ कलाम  पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाने की बात सामने रखी थी लेकिन कांग्रेस की पसंद प्रणव मुखर्जी थे और वह कलाम के साथ नहीं थी । डॉ कलाम को  कार्यकाल की कोई चाह नहीं थी लेकिन करोङों  प्रशंसकों का दिल उन्होेने  नहीं तोड़ा  और अपने दूसरे कार्यकाल के चयन पर सभी दलों की सम्मति को जरूरी बताया लेकिन कांग्रेस शायद उन्हें दूसरा कार्यकाल  न  बना चुकी थी । 

 उनकी जीवनी ‘‘विंग्स ऑ फायर’ भारतीय युवाओं और बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय है। उनकी लिखी पुस्तकों में ‘‘गाइडिंग सोल्स : डायलॉग्स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ’ एक गंभीर कृति है। इनके अतिरिक्त उनकी अन्य चर्चित पुस्तकें हैं- ‘‘इग्नाइटेड माइंड्स : अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’ ‘‘एनिवजनिंग अन एमपार्वड नेशन : टेक्नोलॉजी फॉर सोसायटल ट्रांसफारमेशन’, ‘‘डेवलपमेंट्स इन फ्ल्यूड मैकेनिक्सि एण्ड स्पेस टेक्नालॉजी’, ‘‘2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम’ सह लेखक- वाईएस राजन, ‘‘इनिवजनिंग ऐन इम्पॉएर्वड नेशन : टेक्नोलॉजी फॉर सोसाइटल ट्रांसफॉरमेशन’ सह लेखक- ए सिवाथनु पिल्ललई। डॉ. कलाम ने तमिल भाषा में कविताएं भी लिखी  जो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी कविताओं का एक संग्रह ‘‘द लाइफ ट्री’ के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है।। डॉ. कलाम की योग्यता के दृष्टिगत सम्मान स्वरूप उन्हें अन्ना यूनिर्वसटिी ऑफ टेक्नोलॉजी, कल्याणी विविद्यालय, हैदराबाद विविद्यालय, जादवपुर विविद्यालय, बनारस हिन्दू विविद्यालय, मैसूर विविद्यालय, रूड़की विविद्यालय, इलाहाबाद विविद्यालय, दिल्ली विविद्यालय, मद्रास विविद्यालय, आंध्र विविद्यालय, भारतीदासन छत्रपति शाहूजी महाराज विविद्यालय, तेजपुर विविद्यालय, कामराज मदुरै विविद्यालय, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई, आईआईटी कानपुर, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी, इंडियन स्कूल ऑफ साइंस, सयाजीराव  ऑफ बड़ौदा, मनीपाल एकेडमी ऑफ हॉयर एजुकेशन ने अलग-अलग ‘‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधियां प्रदान की। जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजी विवि हैदराबाद ने उन्हें ‘‘पीएचडी’ तथा विश्वभारती शान्ति निकेतन और डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विविद्यालय औरंगाबाद ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधियां प्रदान कीं। इनके साथ वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज बेंग्लुरू, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस नई दिल्ली के सम्मानित सदस्य, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एंड टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियर्स के मानद सदस्य, इजीनियरिंग स्टॉफ कॉलेज ऑफ इंडिया के प्रोफेसर तथा इसरो के विशेष प्रोफेसर रहे।   डॉ कलाम को नेशनल डिजाइन अवार्ड-1980 (इंस्टीटयूशन ऑफ इंजीनियर्स भारत), डॉ. बिरेन रॉय स्पेस अवार्ड-1986 (एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया), ओम प्रकाश भसीन पुरस्कार, राष्ट्रीय नेहरू पुरस्कार-1990 (मध्य प्रदेश सरकार), आर्यभट्ट पुरस्कार-1994, प्रो. वाई नयूडम्मा मेमोरियल गोल्ड मेडल-1996, जीएम मोदी पुरस्कार-1996, एचके फिरोदिया पुरस्कार-1996, वीर सावरकर पुरस्कार-1998 आदि। उन्हें राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार (1997) भी प्रदान किया गया। भारत सरकार ने उन्हें क्रमश: पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं ‘‘भारत रत्न’ सम्मान (1997) से भी विभूषित किया गया।

 कलाम ने अपने कार्यकाल में कई राजसी परम्पराओं  तोडा । महामहिम होते भी वह सादा जीवन  थे ।  पूरा  देश मानो उनका परिवार था । चाचा नेहरू के बाद इस जेनरेशन के बच्चों क़े  लिए कलाम ही आईकन थे । बच्चो से बातें करना उनको पढ़ाना बहुत अच्छा  लगता था और संयोग देखिये शिलांग में भी वह प्लेनेट के बारे में व्याख्यान  देने ही गए थे कि अचानक उनको हार्ट अटैक आने  से  उनकी साँसों की डोर थम गई और पूरा देश शोक संतप्त हो उठा । राष्ट्रपति के रूप में कलाम की पहचान अलहदा थी ।   अपनी अनोखी संवाद शैली  के चलते कलाम अपने भाषणों में बच्चों  को हमेशा शामिल करते थे ।  व्याख्यान के बाद वह अक्सर छात्रों से उन्हें पत्र लिखने को कहते थे और प्राप्त होने वाले संदेशों का हमेशा तुरंत  जवाब देते थे । वी आई पी की परम्पराओं को तोड़कर  हर बार मंच से नीचे उतरकर  हाथ मिलाने  थे और फोटो खिंचवाने में भी हमेशा आगे  रहते  थे । अपने कार्यकाल में   लाभ के पद संबंधी विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करके यह साबित कर दिया था कि वह एक ‘‘रबर स्टैम्प’  नहीं हैं।   इतना कुछ  होने के बाद भी  बतौर राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में कई  आलोचना का सामना करना पड़ा ।  डॉ  कलाम ने अपने पांच साल के कार्यकाल में  21  में से  केवल एक दया याचिका पर कार्रवाई की और बलात्कारी धनंजय चटर्जी की याचिका को नामंजूर कर दिया जिसे बाद में फांसी दी गयी ।  यही नहीं  उन्होंने संसद पर आतंकवादी हमले में दोषी करार दिए जाने के बाद मौत की सजा पाने का इंतजार कर रहे अफजल गुरु की दया याचिका पर फैसला लेने में देरी को लेकर अपने आलोचकों को जवाब दिया और कहा कि उन्हें सरकार की ओर से कोई दस्तावेज नहीं मिला जिसके चलते  वह  कुछ कदम नहीं  उठा सके । बिहार  में वर्ष 2005 में राष्ट्रपति शासन लगाने के विदेश से लिए गए अपने विवादास्पद फैसले पर भी  उनको  आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। हालांकि उन्होंने यह कहते हुए आलोचनाओं को खारिज कर दिया कि उन्हें कोई अफसोस नहीं है । 
  
वह  राष्ट्रपति  पद से रिटायर  टायर्ड  नहीं हुए । तकरीबन 300 से भी ज्यादा कालेजों और स्कूल में वह अपना लेक्चर देने गए । उनके जीवन में 2011  में एक मौका ऐसा भी अाया जब अमरीका के   एयरपोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति होने के बाद भी सघन  तलाशी  ली गयी जहाँ  उनके कपडे उतारे जाने की घटना से पूरा देश आहत  हुआ था लेकिन डॉ कलाम ने इस पर कुछ भी नहीं कहा । यह उनकी महानता और जीवटता  थी  जो उन्हें महामहिम सरीखे शिखर पर ले गई और हमेशा आम इंसान की तरह  बेरोकटोक अपना काम समर्पित  भाव से  करते रहे ।  बेशक उनके निधन से  देश ने  महान वैज्ञानिक खो दिया है लेकिन इतिहास के पन्नों में वह जनता के राष्ट्रपति के रूप  में हमेशा अमर रहेंगे  । 

Wednesday 15 July 2015

आईपीएल के तमाशे की कलंक कथा



7 बरस पहले ट्वेन्टी ट्वेन्टी विश्व कप के फाईनल मैच में पाक खिलाडी मिसबाह- उल –हक के शॉट पर श्रीसंत ने कैच पकड़कर न केवल भारत को टी 20 का सरताज बनाया बल्कि 1983  की सुनहरी यादो को भी पीछे छोड़ दिया जब पहली बार कपिल देव की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्व कप जीतने का ककहरा सीखा था |  टी ट्वेंटी  विश्व कप जीतकर पाकिस्तान सरीखे चिर प्रतिद्वंदी को हराने के बाद भारत ने टी ट्वेन्टी में  भी अपनी सफलता के नए झंडे गाड़ दिये जिसके बाद भारत में ट्वेन्टी ट्वेन्टी का बुखार  परवान चढ़ने लगा | कैरी पैकर की तर्ज पर जब सुभाष चंद्रा ने आई सी एल चलाई तो उसकी बादशाहत को चुनौती देने के लिए ललित मोदी ने आई पी एल का दाव खेला | कॉर्पोरेट , मनोरंजन के तडके ,बी सी सी आई ने जब उसे आई पी एल लीग में तब्दील कर दिया तो क्रिकेट की मंडी में खिलाडियों की बोलियां लगने लगी जिससे क्रिकेटरों की खूब कमाई हुई | क्रिकेटर बाजार में घोड़े की  तरह नीलम होने लगे |  साथ ही चीयर लीडरो के ग्लैमर और रेव पार्टियों ने पहली बार क्रिकेट को उस तमाशे में तब्दील कर मनोरंजन के तडके में परदे पर ऐसे पेश किया कि दर्शकों की भारी भीड़ अपने अपने सितारों को देखने उमड़ने लगी |  लेकिन किसे पता था पाक के साथ खेले गए टी ट्वेन्टी फाईनल मैच में जों श्रीसंत हीरो बन गया वही हीरो एक दिन स्पॉट फिक्सिंग की जद में आ जायेगा और इसके बाद तो अंकित च्वहाण, और  चंदीला को  फिक्सिंग में गिरफ्तार कर लिया गया और आई पी एल के तमाशे की परतें जिस  खुलती चली गई  उसने  मयप्पन से लेकर कुंद्रा पर धोखाधड़ी , जालसाजी के  आरोपों की बौछार  ही कर डाली जिसके बाद आई पी एल की संचालन परिषद ने  दोनों के खिलाफ  3 सदस्यीय कमेटी  गठित की जिसने दोनों को क्लीन चिट दे दी लेकिन दिल्ली पुलिस इस बात पर  अड़ी  रही कि दोनों इसमें शामिल रहे ।   इसके बाद बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने बम्बई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जिसने बी  सी  सी आई की सल्तनत पर सवाल उठाये और जब बोर्ड ने बम्बई  उच्च न्यायालय के खिलाफ अपील की तो  न्यायालय ने श्रीनिवासन से लेकर   बी  सी  सी आई और इंडिया  सीमेंट से लेकर राजस्थान रॉयल्स को अपने रडार पर लेने में देर नहीं लगाई । 201 3  में  अंकित  और श्रीसंत  प्रतिबन्ध लगा दिया गया लेकिन चंदीला पर फैसला सुरक्षित रखा । फिर उच्चतम न्यायालय ने  3  सदस्यीय  कमेटी जस्टिस   मुद्गल के नेतृत्व में गठित की जिसने मयप्पन और कुंद्रा  गलत कामो का भंडाफोड़ कर दिया और संयोग देखिये  सितारों से भरी पड़ी चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए  आई पी एल  रास्ता दिखा दिया गया । मयप्पन और  कुंद्रा  पर खेल को बदनाम करने के चलते आजीवन निलंबित कर दिया गया जिसने एक बार फिर मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी को फिर से हवा देने का काम किया है |        


 आई पी एल को लेकर आये हलिया फैसले ने मनोरंजन के नाम पर चल रहे खेल के गोरखधंधे को सबके सामने उजागर कर दिया है | दरअसल इस दौर में सट्टेबाजी कई खेलों में हावी रही है | जयादा समय नहीं बीता जब फीफा के दामन पर भी भ्रष्टाचार की ऐसी कालिख पुती कि विश्व के सबसे बड़े दर्शक वर्ग को खींचने वाले फ़ुटबाल के  खेल प्रेमी तक सन्न  रह गए | वहीँ 2000 के आसपास हेंसी क्रोनिये विवाद के साथ ही कई भारतीय खिलाडियों के नाम आने की खबरों ने इस खेल की साख को गर्त में ले जाने का काम किया | इसके बाद शारजाह तो सटोरियों की पनाहगाह बन गया  और जब से फटाफट क्रिकेट के नए संस्करण टी ट्वेंटी की शुरुवात हुई तब से यह लीग भ्रष्टाचार की गंगा बहा रही  है जहाँ फ्रेंचाईजी से लेकर बोर्ड के सदस्य करोडो के वारेन्यारे करने में लगे रहे जिसकी शुरुवात तो ललित मोदी के कार्यकाल से ही शुरू हो गई थी जब भ्रष्टाचार की कालिख पुतने के चलते उनको आई पी एल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था  लेकिन  उनके जाने के बाद भी बोर्ड आँखों में पट्टी बांधे अपने खिलाडियों और मालिकों को बचाने में लगा रहा | अब श्रीनिवासन को ही देख लीजिये अपने दामाद मयप्पन को बचाने के लिए उन्होंने किस तरह कि तिकड़मो का सहारा नहीं लिया | अभी भी चेन्नई सुपर किंग्स और अपने दामाद को सजा सुनाये जाने के बाद वह ख़ामोशी की चादर ओढे बैठे हैं | ऐसे खेल के भी क्या मायने निकाले जाए जहाँ खिलाडियों की मंडी में बोलियाँ लगती हों और उनके खरीददार कारोबारियों से रिश्ते बनाकर सट्टेबाजी के आसरे इस खेल की साख को तार तार करने में लगे रहे | परत दर परत स्पॉट फिक्सिंग आई पी एल के मैचो में इस कदर हुई  कि सट्टेबाजी के तार अंडरवर्ल्ड  , बालीवुड और राजनेताओ के इर्द गिर्द तक जाते दिखाई दिए | मास्टर माईंड दाउद ने भी अपने भाई अनीश इब्राहीम की छत्रछाया में  कई गुर्गो के साथ मिलकर दुबई और कराची से सट्टेबाजो के जरिये खिलाडियों तक अपनी पहुँच बनाने में सफलता कायम की  |  आई पी एल कोई खेल नहीं रहा क्युकि विभिन्न जांचो में खिलाडियों के लैपटॉप में मिली कई लड़कियों की फोटो और मोबाइल नंबर इस बात की तस्दीक तो करते ही थे  कि किस तरह आई पी एल के नाम पर  स्पॉट फिक्सिंग के अलावा अय्याशी का खुला खेल खेला जा रहा था | स्पॉट फिक्सिंग का यह खुलासा क्रिकेट के नाम पर कलंक तो है ही साथ ही आई पी एल के आयोजन पर भी सवालिया निशान भी लगाता है क्युकि आई पी एल में काले धन का खुला खेल भी बड़े पैमाने पर हुआ  जिसमे खुले तौर पर करोडो के वारे न्यारे किये जा रहे थे |सवाल तो इस दौर में धोनी को लेकर भी है | बेशक वह भारत के सफलतम कप्तान जरुर रहे हैं लेकिन फिक्सिंग के मसले पर धोनी खुद और उनकी टीम को क्यों बचाने में लगे रहे ? वैसे क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल जरुर है लेकिन पिछले कुछ समय से सट्टेबाजी ने इस खेल की  महिमा तार तार कर दी है | आई पी एल मुनाफे के बड़े बाजार , मनोरंजन के अलावे सट्टा बाजार में गोते लगाकर फिक्सिंग के साये में भी घिरते जा रहा है | अगर ऐसी घटनाओ के बाद लोगो का क्रिकेट से भरोसा उठ रहा है तो यह लाजमी ही है क्युकि इस दौर में आई पी एल भारतीय फिक्सिंग लीग का बदनुमा दाग ढो रहा है जहाँ सब पहले से ही तय माना जा रहा था और शायद यही वजह है क्रिकेट खिलाडियों से भी लोगो का भरोसा उठता ही जा रहा था  और लोग यह मान रहे थे  हर बार का आई पी एल भी किन दो टीमों के बीच होगा यह सब फिक्स है |आई पी एल के हर  सीजन में सवा अरब की आबादी के मनोरंजन के नाम पर एक तरह से खिलवाड ही किया जा रहा था क्युकि स्पॉट फिक्सिंग की परतों के खुलने के बाद लोग अब यह सवाल पूछ रहे थे यह खेल नहीं तमाशा  है शायद तभी 2010 में संसद में 60 से ज्यादा सांसदों ने इस तमाशे को लेकर सवाल उठाये और इसे बंद करने की मांग कर डाली थी क्युकि खेल भावना को दरकिनार करते हुए इसमें थप्पड़ बाजी , हवाला , फ्रेंचायजी विवाद , रेव पार्टी और महिलाओ के साथ हो रही अश्लीलता आम बात बन गई थी लेकिन आज तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई क्युकि खेल के मैदान पर भी राजनेताओ की बिसात इस कदर बिछी है कि हर कोई एक दूसरे के लिए इसमें लंगडी मार  अपने अपने खेल संघों के आसरे खेल रहा है |

क्रिकेट में फिक्सिंग का यह पहला कोई मामला सामने नहीं आया है | 2000  में हेन्सी क्रोनिए और गिब्स  वाला दौर भी जेहन में बना है जब अजहर, प्रभाकर, जडेजा, मोगिया का नाम फिक्सिंग के दलदल में सीधे उछला था जिसके बाद इन सभी पर प्रतिबन्ध लगाए गए | शारजाह उस दौर में सटोरियों की शरणस्थली  बन गया था जिसके बाद वहाँ  पर मैच खेलने प्रतिबंधित कर दिये गए |  एक बार  लन्दन में पाक खिलाडियों का नाम भी फिक्सिंग के चलते बदनाम हुआ जिसके बाद उनकी टीम से छुट्टी कर दी गई लेकिन उसके बाद भी फिक्सिंग का दौर थमा नही | आई पी एल के एक  सीजन में तो  मोहनीश मिश्रा , टी पी ,अमित यादव , शलभ, अभिनव बाली को एक स्टिंग में पकड़ा गया जिसके बाद उन पर आई पीएल में एक साल का प्रतिबन्ध लगा दिया गया था | उसके बाद बी सी सी आई ने कहा भी था भविष्य में आई पी एल मैचो में अब फिक्सिंग नहीं हो पाएगी क्युकि अब बी सी सी आई ने एंटी करप्शन विंग बना दी है जो यह  सारे मामले पकड़ लेगी लेकिन हैरत की बात तो यह है हर बार होने वाले  आई पी एल  में क इस कमेटी को सांप सूंघ गया ?   खिलाडियों ने तो बकायदा नए नवेले तरीको से स्पॉट फिक्सिंग का ताना बाना बुना क्रिकेट में बुना  जिसमे तोलिये, लाकेट और कलाई की घडी से मुनाफे का भारी खेल चंद ओवेरो में खेला गया  |

दरअसल इस देश में क्रिकेट एक बड़े बजार का रूप ले चुका है | इसे बाजार का रूप देने में मीडिया की भी बड़ी भूमिका रही है | क्रिकेट खिलाडियों की छवि विज्ञापन जगत में ऐसे ब्रांड का रूप ले चुकी है जिसमे दिखने वाले ग्लैमर के बाद आम आदमी उस प्रोडक्ट की और खिंचा चला आता है | वहीँ इन क्रिकेट के खिलाडियों को क्रिकेट के अलावा विज्ञापनों से और आई पी एल से करोडो की कमाई साल दर साल हो रही है साथ ही अब तो बी सी सी आई ने खिलाडियों के कई ग्रेड भी निर्धारित किये हैं जिनके अनुरूप उनको रिटायरमेंट के बाद भी पैसो की बारिश हो रही है | शायद यही वजह है इस दौर में कॉर्परेट भी अब आई पी एल के तमाशे में अपना भविष्य सुनहरा देख रहा है जहाँ अम्बानी से लेकर नाईट राईडर्स शाहरुख , प्रीती जिंटा से लेकर विजय माल्या  सभी अपने अपने हित साधने में लगे हुए हैं | अकूत धन सम्पदा के चलते क्रिकेट अब सट्टेबाजी के लिए सबसे माकूल है |भारत में तो अब छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरो तक क्रिकेट की आड में बड़े बड़े सट्टे नुक्कड़ चौराहों में खेले  जा रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है जब आई  पी एल के उस आयोजन में जिसमे कारपोरेट ने अपना सब दाव पर लगाया है जहाँ  दाऊद   सीधे दुबई और कराची सरीखे शहरों में बैठकर अपना हित  सट्टेबाजो  के आसरे साध रहा है  वहीँ फटाफट क्रिकेट का यह आई पी एल संस्करण ज्यादा दर्शक वर्ग को जहां खीच रहा है वहीँ क्रिकेटर भी यह जान रहा है टीम इंडिया में जगह बनाना इस दौर में कितना मुश्किल है और सेलेक्टर किस तरह अपने अपने राज्यों के खिलाडियों को टीम में जगह देते हैं यह किसी से इस दौर में  छुपा नहीं है | ऐसे में खिलाडी कम समय में आई पी एल के जरिये पैसा कमाना चाहते हैं जहां वह दर्शकों से खिलवाड कर पैसे के तमाशे के नाम पर कुछ भी करने को तैयार खड़े दिखते हैं और आई पी एल की यह गाथा किसी कलंक कथा से कम तो इस समय नजर नहीं आती क्युकि कई सफेदपोश लोगो के नाम से पर्दा हटना अभी बाकी है जिसमे राजनेताओ के साथ कई क्रिकेटरों और हसीनाओ के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं | अब समय आ गया है जब आई पी एल के साथ क्रिकेट की  सफाई के लिए ठोस  पहल शुरू हो |  

 जस्टिस मुद्गल कमिटी और लोढा कमेटी के फैसलों से यह आस तो बंधी ही है अब सट्टेबाजी में शामिल  बड़ी मछलियों के साथ छोटी मछलियाँ भी बाहर आएँगी जिससे निचले स्तर से क्रिकेट में भ्रष्टाचार की गंगा की सफाई की जा सकेगी | यदि सट्टेबाजी के धंधे को जल्द रोका नहीं गया तो आने वाले समय में यही फिक्सिंग क्रिकेट को निगल जाएगी और मयप्पन से लेकर राज कुंद्रा जैसे कई और व्यवसायी इसकी साख को गर्त में मिलाते जायेंगे |  वैसे क्रिकेट में सबसे जयादा पैसा भारतीय बोर्ड के पास है जो सबसे ज्यादा मैच साल भर में आयोजित करवाता है और इसके साथ सबसे अधिक दर्शकों का वर्ग जुडा हुआ है जिसमे बच्चो से लेकर बूढ़े लोग शामिल रहे हैं और स्टेडियम में हर मैच में टिकटों की भारी बिक्री भी इस बात की गवाही देने के लिए काफी है कि इस  खेल  ने समाज के हर वर्ग को ना केवल लुभाया  है बल्कि क्रिकेटरों को विज्ञापनों में करोड़ों के करार को भी दिलाया है जिसने लोगों के बीच उनकी पहचान किसी देवता से कम नहीं बनाई है शायद यही वजह है खेल प्रेमी खिलाडियों को भगवान से कम नहीं समझते हैं और हर मैच से पहले जीत के लिए अनुष्ठान तक हर शहर में आयोजित करते रहते हैं और अपने दैनिक क्रियाकलापों को छोड़कर मैच दर मैच टकटकी टेलीविजन स्क्रीन में लगाए रहते हैं | यह क्रिकेट की दीवानगी छोटे कस्बों से लेकर अब हर शहर में महसूस की जाने लगी है | क्रिकेट भले ही भारत के कई खेलों को निगल गया हो लेकिन खुद बी सी सी आई ने इसके नाम पर सबसे धनी महल खड़ा करने में देर नहीं लगाई है और तो और अब यही संस्था आर टी आई के दायरे में आने से ही अपने को इनकार कर दे तो मजबूरियों को समझा जा सकता है | सट्टेबाजी की दस्तक ने क्रिकेट का अंतर राष्ट्रीयकरण कर दिया है जहाँ हवाला के जरिये कई कारोबारी दुबई जैसे कई शहरों से पैसा लगाकर मुनाफा काने में लगे हुए हैं | क्रिकेट आज कई देशो को अपने साथ जोड़ चुका है लिहाजा सटोरियों की घुसपैठ को रोकना मुश्किल हो गया है | अब तो खिलाडियों को भी चाहिए कि वह खेल भावना से खेल खेलें और इस खेल की  पुरानी  गरिमा को वापस लाये |