इस समय भाजपा पूरी तरह विपक्ष की भूमिका में है.... सभी का ध्यान केंद्र की राजनीती पर लगा हुआ है ......हर कोई नेता यू पी ऐ के खिलाफ अनशन करने में लगा हुआ है.....कभी कभी तो ऐसा लगता है भाजपा को अन्ना और रामदेव के रूप में नायक मिल गए है जो कांग्रेस की नाक में दम कर रहे है....शायद इसीलिए कांग्रेस आलाकमान दोनों को सख्ती से निपटाने के मूड में है.......
जाहिर है भाजपा भी सारे घटनाक्रम पर नजर लगाये हुई है....उत्तर प्रदेश की खोयी जमीन को फिर से पाने की जुगत में लगी भाजपा ने पिछले दिनों उमा को पार्टी में दुबारा शामिल कर लिया लेकिन इन सबके बीच नितिन गडकरी के गृह राज्य महाराष्ट्र में भाजपा आलकमान का ध्यान नही गया ..... यहाँ पर उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गोपीनाथ मुंडे ने बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए है........ मुंडे भाजपा को जल्द ही गुड बाय कहने के मूड में दिखाई दे रहे है ....... गोपीनाथ महाराष्ट्र में भाजपा का एक बड़ा चेहरा है .....उनकी राजनीति को समझने के लिए हमें महाजन के दौर में जाना होगा....
मुंडे महाजन का बहनोई का रिश्ता है इसी के चलते जब महाजन मुंडे को भाजपा में लाये तो उनका पार्टी के कई दिग्गज नेता सम्मान करते थे लेकिन महाजन के अवसान के बाद मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिए गए .....आज आलम यह है अपने राज्य में मुंडे खुद अपनी पार्टी में बेगाने हो चले है.....
नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनाये जाने के बाद गोपीनाथ मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से उपेक्षित कर दिए गए है..... उनके समर्थक भी गडकरी ने एक एक करके किनारे लगा दिए है... ऐसे में मुंडे की चिंता जायज है ... वह आलाकमान से न्याय की मांग कर रहे है....
महाजन के जाने के बाद उनके साथ कुछ भी अच्छा नही चल रहा ... जब तक पार्टी में महाजन थे तो उनके चर्चे महाराष्ट्र में जोर शोर के साथ होते थे.... समर्थको का एक बड़ा तबका उनसे उनके अटके नाम निकाला करता था....अगर भाजपा में महाजन का दौर करीब से आपने देखा होगा तो याद कीजिये महाजन की मैनेजरी जिसने पूरी भाजपा को कायल कर दिया था... भाजपा का हनुमान भी उस दौर में महाजन को कहा जाता था .......
महाजन के समय मुंडे की खूब चला करती थी.... मुंडे को महाराष्ट्र में स्थापित करने में महाजन की भूमिका को नजर अंदाज नही किया जा सकता॥ यही वह दौर था जब मुंडे ने राज्य में अपने को एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित किया .....महाजन के जाने के बाद पार्टी में कुछ भी सही नही चल रहा.... आज भाजपा को महाजन की कमी सबसे ज्यादा खल रही है....महाजन होते तो शायद भाजपा में आज अन्दर से इतनी ज्यादा गुटबाजी और कलह देखने को नही मिलता... . महाराष्ट्र की राजनीती में शिव सेना के साथ गठजोड़ बनाने और भाजपा को स्थापित करने में महाजन की दूरदर्शिता का लोहा आज भी पार्टी से जुड़े लोग मानते है ....
मुंडे ने महाजन के साथ मिलकर राज्य में भाजपा का बदा जनाधार बनाया... आज आलम ये है जबसे गडकरी अध्यक्ष बने है तब से मुंडे के समर्थको की एक नही चल पा रही है॥ इससे मुंडे खासे आहत है.....अपनी इस पीड़ा का इजहार वह पार्टी आलाकमान के सामने कई बार कर चुके है पर उनकी एक नही सुनी जा रही है जिसके चलते उन्होंने अब पार्टी से अलविदा कहने का मन बनाया है.....
पार्टी में हर नेता की आकांशा आगे जाने की होती है .... मुंडे भी यही सोच रहे है....वर्तमान में स्वराज के बाद वह लोक सभा में उपनेता है.... वह चाहते है लोक लेखा समिति का अध्यक्ष पद उनको मिल जाए .....इसके लिए वह पिछले कुछ समय से पार्टी के नेताओ के साथ बातचीत करने में लगे हुए थे... सूत्र बताते है कि अपनी ताजपोशी के लिए उन्होंने आडवानी को राजी कर लिया था .... खुद आडवानी लोक लेखा समिति से मुरली मनोहर जोशी की विदाई चाहते थे ...
दरअसल आडवानी और मुरली मनोहर में शुरू से ३६ का आकडा जगजाहिर रहा है ....अटल के समय आडवानी की गिनती नम्बर २ और मुरली मनोहर की गिनती नम्बर ३ में हुआ करती थी.... लेकिन अटल जी के जाने के बाद भाजपा में हर नेता अपने को नम्बर १ मानने लगा है.....अटल जी के समय आडवानी ने अपने को उपप्रधानमंत्री घोषित कर परोक्ष रूप से मुरली मनोहर को चुनोती दे डाली थी .....
इसके बाद आडवानी के आगे मुरली दौड़ में पीछे चले गए....वो तो शुक्र है इस समय पूरी भाजपा संघ चला रहा है जिसके चलते मुरली मनोहर जैसे नेताओ को लोक लेखा समिति की कमान मिली हुई है ..... आडवानी को सही समय की दरकार थी लिहाजा उन्होंने मुरली के पर कतरने की सोची....पर दाव सही नही पड़ा .......
बताया जाता है संघ मुरली मनोहर को लोक लेखा समिति के पद से हटाने का पक्षधर नही था जिसके चलते मुंडे का लोक लेखा समिति के अध्यक्ष बन्ने का सपना पूरा नही हो सका ......संघ तो शुरू से इलाहाबाद के संगम में विलीन होते जा रहे मुरली मनोहर को आगे लाने का हिमायती रहा है.... जोशी के हिंदुत्व के कट्टर चेहरे के मद्देनजर वह १५ वी लोक सभा में उनको लोक सभा में विपक्ष का नेता बनाना चाहता था लेकिन ये कुर्सी सुषमा के हाथ में चली गई.....
संघ के फोर्मुले पर गडकरी ने भी अपनी सहमती जता दी......और ऐसे में मुंडे के हाथ निराशा ही लगी ... बताया जाता है लोक लेखा समिति का अध्यक्ष खुद को बनाये जाने की मंशा को उन्होंने गडकरी के सामने भी रखा था और अपने को अब केन्द्रीय राजनीती में सक्रिय करने की मंशा से उन्हें अवगत करवा दिया था... गडकरी भी संघ के आगे किसी की नही सुन सकते थे... उन्होंने मुंडे से बातचीत कर मुद्दे सुलझाने की बात कही थी...... वह भी बीच में बिना बातचीत किये सपरिवार उत्तराखंड चार धाम के दर्शन करने चले गए.... ऐसे में मुंडे का मुद्दा लटका रह गया.....
इससे पहले भी मुंडे ने अपने बगावती तेवर दिखाए थे.... याद करिये कुछ अरसा पहले उन्होंने मुंबई शहर में भाजपा अध्यक्ष पद पर मधु चौहान की नियुक्ति का सबके सामने विरोध कर दिया था जिसके बाद आलाकमान को "डेमेज कंट्रोल" करने में पसीने आ गए थे....इस बार भी कुछ ऐसा ही है॥ मुंडे अब और दिन पार्टी में अपनी उपेक्षा नही सह सकते.... वह महाराष्ट्र भाजपा में पार्टी का एकमात्र ओबीसी चेहरा है... महाराष्ट्र में उनके होने से पिछड़ी जातियों कर एक बड़ा वोट भाजपा के पाले में आया करता था ॥ अब अगर वह पार्टी को अलविदा कहते है तो नुकसान भाजपा को ही उठाना होगा.....
मुंडे की नाराजगी का एक बड़ा कारन अजित पवार का गद रहा पुणे था जहाँ पर गडकरी ने अपने खासमखास विकास मठकरी को भाजपा जिला अध्यक्ष बना दिया ॥ जबकि मुंडे अपने चहेते योगेश गोगावाले को यह पद देना चाहते थे.....लेकिन आडवानी का भारी दबाव होने के बाद भी गडकरी ने अपनी चलायी .... मुंडे की चिंता यह भी है जबसे गडकरी पार्टी के अध्यक्ष बने है तब से महाराष्ट्र में उनका दखल अनावश्यक रूप से बढ़ रहा है ...
बड़ा सवाल यह भी है अगर गडकरी के चार धाम के प्रवास से लौटने के बाद मुंडे की मांगो पर गौर नही किया गया तो क्या वो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए चुनोती बन जायेंगे......? साथ ही वह कौन सी पार्टी होगी जिसमे मुंडे शामिल होंगे या सवाल अभी से सबके जेहन में आ रहा है...?वैसे भाजपा को अलविदा कहने वाले सभी नेताओ का हश्र लोग देख चुके है .... फिर चाहे वो मदन लाल खुराना हो या उमा भारती.....या बाबूलाल मरांडी हो या कल्याण सिंह.... पार्टी से इतर किसी का कोई खास वजूद नही रहा है॥ ऐसे में मुंडे को कोई फैसला सोच समझ कर लेने की जरुरत होगी......
वैसे इस बात को मुंडे बखूबी समझते है ....शायद तभी अभी से उन्होंने भाजपा से इतर अन्य दलों में सम्भावनाये तलाशनी शुरू कर दी है.....बीते दिनों शिव सेना के कुछ नेताओ के साथ उनकी मुलाकातों को इससे जोड़कर देखा जा रहा है...कहा जा रहा है शिव सेना उनको अपने पाले में लाने की पूरी कोशिशो में जुटी हुई है ... बताया जाता है मुंडे ने ही हाल में शिवसेना और राम दास अठावले की रिपब्लिक पार्टी को एक मंच पर लाने में बड़ा योगदान दिया....शायद इसी के मद्देनजर शिव सेना भी मौजूदा घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए है.....यही नही ऍन सी पी के नेताओ के साथ उनके मधुर संबंधो के मद्देनजर वह उनकी तरफ भी जा सकते है........
मुंडे का भविष्य बहुत हद तक गडकरी के साथ होने वाली बैठक पर टिका है.....अगर इसमें कोई नतीजा नही निकला तो इस बार मुंडे भाजपा को अलविदा कहने में देर नही लगायेंगे.....