Sunday, 27 August 2023

मुख्यमंत्री शिवराज का 'गहना' बन रही है 'लाड़ली बहना योजना'





मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश की शिवराज सरकार ने लाड़ली बहना योजना के रूप में एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक चला है जिसका जमीन पर असर अभी से दिखाई देने लगा है। इस योजना को लेकर शहरों से लेकर गाँव में प्रदेश की महिलाओं में बेहद उत्साह नजर आ रहा है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से बहनों के लिए लाई गई लाड़ली बहना योजना को आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है। राज्य की आधी आबादी को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये मास्टर स्ट्रोक विपक्षी कांग्रेस की चुनावी जीत की संभावनाओं पर पलीता लगा सकता है।


इस योजना के तहत प्रदेश की शिवराज सरकार बहनों को हर महीने की 10 तारीख को 1000 रु की धनराशि प्रदान कर रही है जो लाड़ली बहनों के बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर की जा रही है। विधानसभा चुनाव से पहले लाई गई लाड़ली बहना योजना के लागू होने से बहनें काफी उत्साहित हैं। चुनावी साल में शिवराज सरकार के लिए ये योजना कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आये दिन विकास पर्व के प्रदेश भर में हो रहे कार्यक्रमों में इस योजना की जबरदस्त ढंग से ब्रांडिंग करने में जुटे हैं। शिवराज की हर दिन प्रदेश भर में हो रही  सभाओं में  उमड़ रही महिलाओं की भीड़ इस बात की गवाही दे रही है कि  ये योजना उन्हें खूब भा रही है।  महिलाओं में इस योजना के प्रति अलग तरह का उत्साह प्रदेश के हर कोने में महसूस किया जा रहा है।   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि लाड़ली बहना योजना महिलाओं की जिंदगी बदलने का बड़ा अभियान है। इस  अभियान  के लागू होने के बाद उन्हें प्रदेश भर से बहनों का अपार समर्थन भी मिल रहा है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में बहनों की जिंदगी बदलने के महाअभियान में दिन रात एक किये हुए हैं । प्रदेश की बहनों को अब अपनी छोटी-मोटी जरूरतें पूर्ण करने के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ रहा है। सही मायनों में इस योजना के माध्यम से मध्य प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के एक नए युग का सूत्रपात हुआ है। प्रतिमाह 10 तारीख को गरीब और मध्यम वर्ग की महिलाओं के खाते में एक-एक हजार रुपए हस्तांतरित होने के बाद उनके चेहरों पर मुस्कराहट दिखाई दे रही है। लाड़ली बहनें इस बात से भी खुश नजर आ रही हैं, आने वाले समय में इस राशि को सरकार प्रति महीने 3,000 रुपए कर देगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति महिलाओं का भरोसा बढ़ा है।  

मुख्यमंत्री शिवराज ने अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को हर मोर्चे पर सशक्त करने का काम किया है। ‘लाडली लक्ष्मी’ से लेकर ‘कन्या विवाह’ और अब ‘लाडली बहना’ सभी ने प्रदेश में एक नई  सामाजिक क्रांति लाने का काम किया है। महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए शिवराज सरकार ने कई योजनाएं शुरू की जिसने महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाने का काम भी किया है। एक दौर था जब  मध्यप्रदेश में पहले पुरुषों और महिलाओं के अनुपात में काफी अंतर था। 1000 बेटों पर 912 बेटियां जन्म लेती थीं। लोग बेटियों को बड़ा बोझ मानते थे। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज ने अपनी लाडली लक्ष्मी योजना के माध्यम से महिलाओं को बड़ा संबल देने का काम किया जिसका असर ये हुआ कि मध्यप्रदेश में बेटी अब बोझ नहीं रही। अब वह प्रदेश के लिए वरदान साबित हो रही है। आज मध्य प्रदेश में लिंगानुपात बढ़कर प्रति 1,000 पुरुषों पर 978 महिलाएं हो गया है। ‘लाडली लक्ष्मी’ के बाद ‘कन्यादान योजना’ शुरू हुई जिसका भी प्रदेश में शहरों से लेकर गाँवों तक जबरदस्त असर दिखा। स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था के साथ ही पुलिस भर्ती में उनके लिए 30 प्रतिशत आरक्षण और शिक्षक भर्ती में 50 प्रतिशत आरक्षण, आजीविका मिशन से प्रदेश की आधी आबादी के हितों का संरक्षण हुआ है। ‘आजीविका मिशन'  बहनों की गरीबी दूर करने की दिशा में सशक्त माध्यम बनकर कार्य कर रहा है। आजीविका मिशन से बहनों में एक नई चेतना आयी  है। आज प्रदेश की लाखों महिलाएं इस मिशन के माध्यम से स्वरोजगार अपनाकर परिवार चला रही हैं।  इससे न केवल उनका आत्मविश्वास  बढ़ रहा है बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ रही है। जो  महिलाएं  आजीविका मिशन से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें भी शिवराज सरकार द्वारा  जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।  मुख्यमंत्री शिवराज प्रदेश में आजीविका मिशन की बहनों की आय कम से कम 10 हजार रूपए महीना करना चाहते हैं जिससे वे लखपति क्लब में शामिल हो सकें। सही मायनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने का काम किया है जिसकी पूरे देश में सराहना हो रही है। 

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में पांच करोड़ 40 लाख वोटर हैं जिनमें महिलाओं की संख्या दो करोड़ 60 लाख से अधिक है। राज्य में लाडली बहना योजना की पात्र महिलाओं की संख्या एक करोड़ 25 लाख से अधिक है। राज्य सरकार ने पहले इस योजना को 23 वर्ष से 60 वर्ष तक की महिलाओं के लिए लागू किया लेकिन बाद में अधिक बहनों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए पात्रता शर्तों में ढील दी। अब ऐसी बहनें जिनकी आयु 21 से 23 वर्ष की है और जिनके पास ट्रैक्टर भी है, उन सभी को लाडली बहना योजना से जोड़ा गया है और अब उन्हें भी योजना का लाभ मिल रहा है ।  आज मध्यप्रदेश में प्रत्येक गांव और वार्ड में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के साथ ही महिलाओं की हितग्राही मूलक योजनाओं के प्रभावी लाभ के लिए लाड़ली बहना सेना का भी  गठन किया गया है। लाड़ली बहना सेना से जोड़कर बहनों को संगठित किया जा रहा है। यह सेना बहनों को शासन की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करेगी साथ ही बहनों पर होने वाले अन्याय को रोकने में भी कारगर बनेगी।

शिवराज सरकार की लाड़ली बहना योजना के जवाब में कांग्रेस ने सत्ता में आने पर नारी सम्मान योजना की गारंटी दी है जिसकी हवा शिवराज 'मामा 'ने हर महिला के खाते में प्रतिमाह 10 तारीख को एक हजार रुपये देकर निकाल दी है। इसकी काट कांग्रेस नारी सम्मान योजना के रूप में देख रही है जिसमें वो प्रतिमाह महिलाओं को 1500 रु देने की बात कर रही है। कांग्रेस और चुनावी गारंटियों पर यकीन करना मुश्किल इसलिए भी हो रहा है क्योंकि अपने बीते 15 माह के कार्यकाल में उसने शिवराज सरकार की तमाम योजनाओं को बंद कर दिया। 2018 में कांग्रेस के द्वारा जोर शोर के साथ कृषि ऋण माफी, बेरोजगारी भत्ता और गैस सिलेंडर पर 100 रुपये की छूट की घोषणा की गई थी लेकिन 15 महीनों में एक भी वादा पूरा नहीं किया। इस लिहाज से कांग्रेस की गारंटियों पर अब भाजपा भारी पड़ती दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री शिवराज की सभाओं में हर जिले में उन्हें सुनने आ  रही महिलाओं की बड़ी भीड़ इस बात की गवाह बन रही है मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना को बहनों ने दिल से स्वीकारा है।

मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा है कि वे लाड़ली बहनों की आँखों में आँसू नहीं आने देंगे । सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर ही चैन से बैठेंगे। लाड़ली बहना योजना की शुरूआत 1000 रूपये से की है लेकिन धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 3000 रूपये किया जायेगा। खास बात ये है  जनता के दिलों में आम आदमी के सीएम के रूप में बसने वाले मुख्यमंत्री शिवराज की बनाई गई योजनाओं पर तुरंत अमल शुरू होता है और उसका प्रभाव हर क्षेत्र में महसूस किया जाता है। यह बात साधारण नहीं है मुख्यमंत्री शिवराज  सिंह चौहान की बनाई कई महिला केंद्रित योजनाओं ने उन्हें प्रदेश का मामा कई दशकों से बनाया हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  27 अगस्त को बहनों से रक्षाबंधन से पहले फिर संवाद करेंगे। जबसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सभाओं में इस बात की घोषणा की है कि इस बार रक्षाबंधन के अवसर पर प्रदेश भर की सवा करोड़ से ज्यादा लाडली बहनों को बड़ा तोहफा मिलने वाला है उसके बाद से ही  लाड़ली बहनों में उपहार को लेकर  विशेष उत्साह देखा जा  रहा है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 27 अगस्त से लाडली बहनों के खाते में हर महीने 1250 रुपये डालने की घोषणा  के साथ  अक्टूबर से इसे बढ़ाकर प्रतिमाह 1500 रु करने की घोषणा कर  पूर्व सीएम  कमलनाथ  और कांग्रेस की गारंटियों की हवा निकाल सकते हैं।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार रक्षाबंधन पर अपनी लाखों  बहनों को बड़ा तोहफा देंगे  इस बात  से महिलाएं  उत्साहित नजर आ रही हैं। 


मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल में कई  घोषणाएं करने में जुटे हुए हैं  लेकिन सबसे बड़ी गेमचेंजर  योजना लाडली बहना मानी जा रही है।  लाडली बहनों के सहारे सरकार एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर को चित करती दिखाई दे रही हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार महिलाओं से संवाद कर उन्हें एक के बाद एक तोहफे दे रहे हैं। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए स्व-सहायता समूह से जोड़ने का प्रयास भी कर रहे हैं। 27 अगस्त का  दिन भोपाल में ऐतिहासिक होने जा रहा है।  सीएम शिवराज सिहं चौहान 27 अगस्त को जम्बूरी मैदान भोपाल में अपनी सवा करोड़ लाडली बहनों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाएंगे। लाड़ली  बहनें अपने भैय्या सीएम शिवराज सिंह चौहान को राखी बांधेंगी। इस कार्यक्रम में प्रदेशभर से लाखों की संख्या में लाड़ली बहना पहुंचने का सिलसिला शुरू गया है।  महिला बाल विकास विभाग इस संबंध  में तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है।  

मुख्यमंत्री  शिवराज  ने कहा  है कि हम मध्यप्रदेश में महिला सशक्तिकरण का इतिहास बनाएंगे। लाड़ली बहना योजना के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपए का प्रबंध किया है। सरकार का प्रयास यह है कि विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से बहनों की मासिक आमदनी 10000 रुपए तक हो जाए। महिलाओं और बेटियों के सशक्तिकरण के लिए मुख्यमंत्री शिवराज ने अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये हैं जिसका प्रभाव धरातल पर हर जगह नजर आता है। लाड़ली बहना योजना के माध्यम से मुख्यमंत्री शिवराज महिलाओं को ये भरोसा दिलाने में कामयाब हुए हैं वे अपनी अंतिम सांस तक बेटियों , महिलाओं , बहनों के सम्मान के लिए काम करते रहेंगे।

Friday, 4 August 2023

वो नटखट,मधुर, चितचोर सभी का किशोर

   

                           



प्राचीन परंपरा, संस्कृति और स्मृतियों को समेटे मध्यप्रदेश का खंडवा शहर मायानगरी किशोर कुमार की  खूबसूरत स्मृतियों से भी जुड़ा है। उनका जन्म खंडवा, मध्यप्रदेश में 4 अगस्त 1929 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। उनके पिता कुंजलाल गांगुली, एक वकील थे और उनकी माँ, गौरी देवी, एक गृहिणी थीं। किशोर कुमार के चार भाई अशोक कुमार, अनूप कुमार, कुणाल कुमार और रतन कुमार थे। अशोक कुमार भाइयों में सबसे बड़े थे और भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता भी थे। किशोर कुमार ने भारतीय सिनेमा उस स्वर्णिम दौर में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारे के रूप में स्थापित हो चुके थे। उस दौर को याद करें तो  सिनेमा में दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी, गुरुदत्त और रहमान जैसे कलाकारों के साथ ही पार्श्वगायन में मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का ही  बोलबाला था।

किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म शिकारी (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें पहली बार गाने का मौका 1948 में बनी फ़िल्म जिद्दी में मिला  जिसमें उन्होंने देव आनन्द के लिए खूबसूरत  गाना गाया। किशोर कुमार के एल सहगल के विशिष्ट प्रशंसक थे इसलिए उन्होंने यह गीत उन की शैली में ही गाया। जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला। उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म 'आन्दोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई। 1954 में उन्होंने बिमल राय की 'नौकरी' में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपनी प्रभावकारी अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। इसके बाद 1955 में बनी "बाप रे बाप", 1956 में "नई दिल्ली", 1957 में "मि. मेरी" और "आशा" और 1958 में बनी "चलती का नाम गाड़ी" जिसमें किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया। यह भी मजेदार बात है कि किशोर कुमार की शुरुआत की कई फ़िल्मों में मोहम्मद रफ़ी ने किशोर कुमार के लिए अपनी आवाज दी थी। मोहम्मद रफ़ी ने फ़िल्म ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में किशोर कुमार को अपनी आवाज उधार दी तो मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया। काम के लिए किशोर कुमार सबसे पहले एस डी बर्मन के पास गए थे, जिन्होंने पहले भी उन्हें 1950 में बनी फ़िल्म "प्यार" में गाने का मौका दिया था। एस डी बर्मन ने उन्हें फिर "बहार" फ़िल्म में एक गाना गाने का मौका दिया और  गाना बहुत हिट हुआ।

शुरू में किशोर कुमार को एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म "फंटूस" में दुखी मन मेरे गीत अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एस डी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया। आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'फंटूश', 'नौ दो ग्यारह', 'पेइंग गेस्ट', 'गाईड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेमपुजारी', 'तेरे मेरे सपने' जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया। 

किशोर कुमार ने वर्ष 1940 से वर्ष 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान करीब 500  से अधिक गाने गाए।  हिन्दी के साथ ही किशोर कुमार ने तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी गीत गाए। किशोर कुमार को उनकी गायकी के लिए आठ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले। पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1969 में अराधना फ़िल्म के गीत रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की विशेषता यह थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों। 1975 में आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना।

 किशोर के गाये गाने संगीत प्रेमियों को झूमने के लिए मजबूर कर देते हैं।   किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय किया और 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। फ़िल्म 'पड़ोसन' में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे। किशोर कुमार ने एक गायक के रूप में अपना करियर शुरू किया और जल्द ही भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे लोकप्रिय गायकों में एक अलहदा पहचान बनाने में सफल हुए। उनकी मधुर आवाज़  ने उन्हें घर -घर नई  पहचान देने का काम किया। गायन  के अलावा किशोर कुमार ने  अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय जीत में फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” (1959) से “एक लड़की भीगी भागी सी”, फिल्म “आराधना” (1970) से “रूप तेरा मस्ताना” और फिल्म “सफर” (1971) से “जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर ” शामिल हैं।

किशोर कुमार को कला और संगीत के क्षेत्र  में उनके योगदान के लिए 1983 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया ।  यही नहीं 8 बार  फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया । सही मायनों में किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक बेहद सफल गायक और अभिनेता थे। उनकी विशिष्ट आवाज़ और शैली ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। किशोर कुमार ने “हाफ टिकट”, “पड़ोसन”, “चलती का नाम गाड़ी” और “गोल माल” सहित कई लोकप्रिय फिल्मों में अभिनय और निर्देशन भी किया। अपने अभिनय और गायन कौशल के अलावा, किशोर कुमार ने अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया और अपने काम में एक अनूठा और रचनात्मक स्पर्श लाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। भारतीय फिल्म उद्योग में उनके योगदान ने उन्हें एक स्थायी और प्रभावशाली व्यक्ति बना दिया है और उन्हें अभी भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बड़ी प्रतिभाओं में से एक के रूप में याद किया जाता है।

 किशोर कुमार को खंडवा से बेपनाह प्यार था। वो मुंबई से लौटकर वापस खंडवा बसना चाहते थे लेकिन नियति को कुछ और मजबूर था। किशोर कुमार खंडवे वाला छोरा तो उस समय हिट हो गया था । 58 साल की आयु में किशोर कुमार का निधन 13 अक्टूबर 1987 को  में दिल का दौरा पड़ने से हो गया था। किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक अत्यधिक सफल और प्रभावशाली व्यक्ति थे जो पार्श्व गायक के रूप में अपनी अनूठी आवाज और शैली के साथ-साथ अपने अभिनय और निर्देशन कौशल के लिए जाने जाते थे। किशोर कुमार भारतीय सिनेमा में एक सदाबहार गायक के तौर पर आज भी याद किये जाते हैं।  फिल्म उद्योग में उनके योगदान को आज भी दिल से सराहा जाता है।  


Sunday, 30 July 2023

'टाइगर स्टेट ' का ताज फिर से मध्यप्रदेश के नाम

 



देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 785 पहुंच गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पिछली बार की गणना में मप्र में बाघों की आबादी महज 526 थी लेकिन अखिल भारतीय बाघ गणना जनगणना 2022 के अनुसार इस बार देश के मध्यप्रदेश में  बाघों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है।  सबसे ज्यादा बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में  इस बार बहुत आगे निकल गया है।  मध्यप्रदेश में साल 2020 के बाद 259 बाघ बढ़े हैं, जबकि दूसरे और तीसरे नंबर पर कर्नाटक (563) और उत्तराखंड (560) है। जारी आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे ज्यादा 785 बाघ मध्य प्रदेश में हैं।

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई मध्यप्रदेश के लिये इस बार खास दिन बन गया। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था। इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने बहुत  तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी  महत्वपूर्ण उपस्थिति  करने में सफलता पाई है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु में बाघों की गणना के आंकड़े जारी किए थे। प्रधानमंत्री द्वारा जारी रिपोर्ट में देशभर में 3167 बाघ बताए गए थे, लेकिन तब राज्यवार आंकड़े जारी नहीं हुए थे। उत्तराखंड के रामनगर स्थित जिम कार्बेट नेशनल पार्क में बाघों के राज्यवार आंकड़े जारी किए गए जिसमें मध्य प्रदेश को फिर टाइगर स्टेट का ताज हासिल हुआ है। बाघों के राज्यवार आंकड़े प्रत्येक चार वर्ष में जारी किए जाते हैं। एनटीसीए द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में 3682 बाघ मौजूद हैं जिन राज्यों को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है, उनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र,​​तमिलनाडू टॉप-5 में शामिल हैं। इनके अलावा जिन राज्यों में बाघों की आबादी मौजूद हैं उनमें आसाम, केरला, यूपी शामिल हैं। पश्चिम बंगाल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, ओडिशा सहित कुल 18 राज्य शामिल हैं। जबकि मिजोरम, नागालैंड में बाघों की संख्या शून्य हो गई है। नॉर्थ-वेस्ट बंगाल में यह संख्या महज 2 पर सिमट गई है।

बाघ एक शक्तिशाली जन्तु के रूप में एक खास पहचान के लिए जाना जाता है। इसकी दहाड़ अब मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर  भी  सुनाई देती है।  मध्य प्रदेश न सिर्फ बाघों की संख्या के मामले में आगे रहा है, बल्कि सर्वाधिक बाघ भी मध्यप्रदेश में ही तेजी से बढ़ रहे हैं।  राजधानी  भोपाल  के आसपास के शहरी इलाकों में  भी 20  से अधिक  बाघों की आवाजाही अब  देखी  जा सकती है। बाघों  को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी तेजी से बढ़ने की  संभावनाओं  से इंकार नहीं किया जा सकता।  वर्ष 2006  तक मध्यप्रदेश में  केवल 300 बाघ थे, तो वहीं 2022 में यह आंकड़ा 785 तक पहुंच गया।  वन्य जीवों के संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश की यह अब तक की सबसे बड़ी छलांग है।

  मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां देश में सर्वाधिक छह टाइगर रिजर्व सतपुड़ा, पन्ना, पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व हैं। पांच नेशनल पार्क और 10 सेंचुरी भी हैं। दमोह जिले के नौरादेही अभयारण्य को छठवां टाइगर रिजर्व बनाया गया है। प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगाँव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य के नाम शामिल हैं। 

यह सुखद  है कि  अब प्रदेश के भीतर  बाघों  की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से  बढ़ रही  है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों  की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही  है।  सतना  से लेकर सीधी , शहडोल  से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला  तक  में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। 

मध्यप्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में भी  पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया  है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन  वाला टाइगर रिजर्व माना गया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में  कुशल  प्रबंधन  और अनेक नवाचारी  तौर तरीकों को अपनाया गया है।  जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने  ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक  कार्यक्रम समय समय पर भी  चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। इस बार  बांधवगढ  टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरी  दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह भारत के  बाघ  संरक्षण के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है जिसकी  दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती । 

सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से  कई गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व में  “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन किया जाता  है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है।

प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में  प्रदेश के  सभी  राष्ट्रीय  उद्यानों  के कुशल  प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। जहाँ एक तरफ राज्य सरकार ने भी हाल के वर्षों में  गाँवों का विस्थापन कर एक बड़े भू-भाग को जैविक दबाव से मुक्त कराया  है वहीँ  संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के  क्षेत्र का  बड़ा विस्तार हुआ है। आज ये बड़े हर्ष की बात है  कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का बड़ा क्षेत्र भी आज जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये गए हैं, जिससे वन्य-प्राणियों  को नए- नए  आशियाने  मिल रहे हैं।  पूरे देश में मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व  सबसे बेहतर श्रेणियों में शामिल  हैं। वर्ष 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट  कोआधार बनाएं तो  मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और सतपुड़ा उत्कृष्ट श्रेणी एवं  पेंच, बांधवगढ़, पन्ना टाइगर रिजर्व को बहुत अच्छी श्रेणी और संजय टाइगर रिजर्व को अच्छी श्रेणी में रखा गया है। 

मध्यप्रदेश के विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में इस वर्ष फरवरी माह में जी-20 शिखर सम्मेलन में आए 20 देश के डेलीगेट्स ने पन्ना टाइगर रिजर्व में भ्रमण कर यहाँ बाघ संरक्षण के प्रयासों और प्रबंधन की सराहना की। विदेशी धरती से आये  इन डेलीगेट्स के बीच मध्यप्रदेश को सराहना मिलने से ह्रदय प्रदेश का कद ऊँचा हुआ है।   

जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाले मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व , संवेदनशील पहल के परिणामस्वरूप आज मध्यप्रदेश में वन्य जीवों के आशियाने तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रदेश में वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास  किये जा रहे हैं। विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं । ख़ास बात ये है कि  मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं।  प्रदेश में हाल के दिनों में 15  ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की सघन उपस्थिति देखी गई , जहाँ पहले कभी बाघ नहीं दिखे। इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश आज देश में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्व बाघ दिवस पर फिर से  टाइगर स्टेट बनने को लेकर  कहा कि मध्यप्रदेश के 'टाइगर स्टेट' होने पर  उन्हें गर्व है।  बाघों के संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ ही उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये हम और श्रेष्ठतम कार्य करें, ताकि टाइगर स्टेट का गौरव आगे भी हमारे पास रहे।  मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने  प्रदेश की जनता को वन एवं वन्यप्राणियों के संरक्षण में उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद दिया  है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  के प्रयासों से मध्यप्रदेश आज न केवल टाइगर स्टेट बना है बल्कि तेंदुआ , घड़ियाल और गिद्धों की संख्या में भी अव्वल प्रदेश बन चुका  है।  मध्यप्रदेश को प्रकृति ने  हरित प्रदेश के रूप में मुक्त हस्त से संवारा है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने  वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में  अनेक  पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में  कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके  नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं। 

Thursday, 6 July 2023

जनजातीय समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ रही है शिवराज सरकार

 

  



 

मध्यप्रदेश में राजनीति की दिशा तय करने में जनजातीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है। पिछली सरकारों ने जनजातियों को प्रदेश में वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जिसके चलते जनजातीय नायकों को इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया जिसके वो वास्तविक हकदार थे। लम्बे समय तक मध्यप्रदेश का जनजातीय समुदाय अपनी तमाम विशिष्टताओं के बावजूद विकास की मुख्य-धारा से अलग-थलग रहा, पर अब यह स्थिति प्रदेश में तेजी से बदल रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश की जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक  और आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। जनजातीय समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों ने राज्य में जनजातियों के नए दौर की शुरुआत कर दी है।

देश की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 8.63 है और  मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय की संख्या तकरीबन एक करोड़ 53 लाख है, जो कुल आबादी का 21 फीसद से अधिक है। प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंड जनजातीय समुदाय बहुल हैं। राज्य विधानसभा की 47 सीटें और लोकसभा की 6  सीटें अनुसूचित जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 35 सीटें ऐसी हैं जिनमें जनजातीय मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही जनजातीय समुदाय को साधने की इस बार के चुनावों में एक बड़ी चुनौती है। प्रदेश में हुए चुनावों में जब भी जिस भी पार्टी ने इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत की वह सत्ता पाने में कामयाब रहा। सूबे के पिछले विधानसभा  चुनाव में कांग्रेस ने जनजातीय समुदाय के बड़े वोटों को साधकर ही प्रदेश में अपनी वापसी की पटकथा लिखी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 में 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, तो वहीं भाजपा को सिर्फ 16 सीट पर सिमट गई जबकि 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर भाजपा को जीत मिली।

 जनजातीय समुदाय  मध्यप्रदेश की सियासत में अहम स्थान रखता है जो हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2003 से 2013 तक के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जनजातियों पर मजबूत पकड़ रही जिसका भाजपा को लाभ मिला लेकिन 2018 में यह भाजपा के पाले से कांग्रेस के पास चला गया। ये पुराना जनाधार वापस आये बिना प्रदेश में सत्ता की चाबी नहीं मिल सकती इसलिए इस बार भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में अपनी पूरी ऊर्जा जनजातीय क्षेत्रों में फोकस करने में लगवाई हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी अब तक 10 दौरे लगातार मध्यप्रदेश  में कर चुकी है जो जनजातीय इलाकों की नब्ज को अपने दौरों के जरिये टटोलने की व्यापक कोशिशें करती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने अनुसूचित जाति और जनजाति के विकास के लिये देश में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। पूर्व की केन्द्र सरकार एससी-एसटी वर्ग के लिये 24 हजार करोड़ प्रतिवर्ष खर्च करती थी, मोदी सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर 90 हजार करोड़ रूपये कर दिया है। पहले सिर्फ 167 एकलव्य विद्यालय हुआ करते थे, मोदी सरकार ने इनकी संख्या बढ़ाकर 690 कर दी है। इसी प्रकार एससी-एसटी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिये पहले 1000 करोड़ रूपये का प्रावधान था, जिसे मोदी सरकार ने बढ़ा कर 2833 करोड़ रूपये कर दिया है। इसके अलावा पिछली सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति की 978 करोड़ रूपए की राशि को बढ़ाकर 2533 करोड़ रूपए कर दिया।

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लम्बे समय से मध्यप्रदेश के जनजातीय इलाकों में लगातार सक्रियता बनी हुई है। उन्होनें आदिवासी समुदाय के नायकों को समुचित सम्मान देने के लिए सबसे पहले मध्यप्रदेश की धरती को चुना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने एवं हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम पर करने की घोषणा कर जनजातीय समाज को अपने से जोड़ने की सबसे बड़ी पहल की थी जिसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई दी। सही मायनों में जनजातीय गौरव को जनता से जोड़ने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है जिनके नेतृत्व में जनजातीय समाज देश में पहली बार एकजुट हुआ। इसके बाद जनजातीय नायकों की गाथाएं सभी की जुबान पर आई। आज़ादी एक अमृत महोत्सव के अवसर झाबुआ, भोपाल, खंडवा, धार, रतलाम , झाबुआ,  अलीराजपुर, खरगोन, सतना में विशाल जनजातीय सम्मेलन आयोजित किये गए। मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से सटे मानगढ़ की पवित्र भूमि पर जनजातीय जननायकों के बलिदान की नई गौरवगाथा इतिहास में स्वर्णिम अखाड़ों में दर्ज हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम में वहां राष्ट्रीय स्मारक बनाने की बड़ी घोषणा हुई।  जनता पहले की सरकारों का व्यवहार आज भी नहीं भूली है  जिन्होंने दशकों तक देश में सरकार चलाई लेकिन जनजातीय समाज के प्रति उनका रवैया असंवेदनशील रहा। 

 मध्यप्रदेश में कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने भी आदिवासी वर्ग को साधने के लिए साहूकारों के कर्ज माफ़ी से लेकर, गोठान विकास,  आदिवासी दिवस मनाने जैसे कई लोकलुभावन वायदे जरूर किये लेकिन आपसी गुटबाजी और अंतर्कलह के कारण राज्य में कांग्रेस की सरकार चली गई। इसके बाद सत्ता में वापस लौटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातियों के लिए दिल खोलकर अपनी योजनाओं की झड़ी लगा दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय कार्य विभाग के बजट में काफी वृद्धि की है। वर्ष 2003-04 में जो जनजातीय बजट मात्र 746.60 करोड़ था, आज जो वर्ष 2022-23 में 10 हजार 353 करोड़ रुपये का हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के हजारों लोगों को वनाधिकार पट्टा देकर और पेसा एक्ट लाकर उनके जीवन में नया सवेरा लाने का काम किया है। जनजातीय समाज के कल्याण के लिये शिवराज सरकार ने जनजातीय समुदाय बजट में बड़ा इजाफा किया है। जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओंमाध्यमिक पाठशालाओं, हाईस्कूल, हायर सेकेंडरी और कन्या शिक्षा परिसरों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 

कोल जनजाति जिसका आज़ादी के आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है, मोदी सरकार ने 200 करोड़ रूपये की लागत से देशभर में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करवा रही है। जनजातियों के प्रमुख जननायक टंट्या भील मामा , भीमा नायक, ख्वाजा नायक, संग्राम सिंह, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, रानी कमलापति, बादल भोई, राजा भभूत सिंह, रघुनाथ मंडलोई भिलाला, राजा ढिल्लन शाह गोंड, राजा गंगाधर गोंड, सरदार विष्णु सिंह उईके जैसे जनजातीय नायकों को शिवराज सरकार ने पूरा सम्मान दिया है।  शिवराज सरकार ने पातालपानी स्टेशन का नाम टंटया मामा के नाम पर रखा है। छिंदवाड़ा में बादल भोई जनजातीय संग्रहालय परिसर का निर्माण, जबलपुर में 5 करोड़ की लागत से राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह स्मारक, राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय का निर्माण जनजातियों के हितों के संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। शहडोल संभाग में केन्द्रीय जन-जातीय विश्व-विद्यालय का खुलना भी मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।  जनजातीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छिंदवाड़ा में भारिया जनजाति, डिंडोरी में बैगा एवं श्योपुर में सहरिया जनजातीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना के प्रयास  के लिए सामुदायिक भवनों का निर्माण कार्य भी तेजी से किये जा रहे हैं। शिवराज सिंह सरकार ने यूपीएससी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग की शुरूआत के साथ ही उनको पढ़ाई में स्कॉलरशिप देने की योजना भी शुरू की है जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं। 

जनजातीय समाज के युवाओं के लिए प्रदेश के छिंदवाड़ा, शहडोल, मंडला, शिवपुरी एवं श्योपुर में कम्प्यूटर कौशल केन्द्रों की स्थापना हुई है जिससे वह अपना कौशल निखारकर स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं।  जनजाति समुदाय को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार प्रतिबद्ध है।  सामुदायिक वन प्रबंधन के अधिकार और पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से जनजातीय समुदाय का सशक्तिकरण हुआ है। पेसा कानून के तहत जो नियम बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार जनजातीय समुदाय को दिया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने प्रदेश में पेसा एक्ट लागू कर जनजातीय समाज को अधिकार सम्पन्न बनाया है। जमीन के साथ जंगल की उपज के लिए भी उनको अधिकार दिया गया है।  जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में 3 नई योजनाएँ बिरसा मुण्डा स्व-रोज़गार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना लागू की गई है। विशेष पिछड़ी  जनजातीय बैगा, भारिया, सहरिया, कोल समाज की बहनों को एक हजार रुपया प्रतिमाह आहार अनुदान दिया जा  रहा है। इसी तरह जनजातीय बहुल क्षेत्रों में औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए देवारण्य योजना लागू की गई है। शिवराज सरकार द्वारा संचालित जनजाति कल्याण की विभिन्न योजनाओं से जहाँ जनजातीय समुदाय का सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास  हुआ है और ये तीव्र गति से समाज की मुख्य-धारा में आ रहे हैं, वहीं इनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का व्यापक संवर्धन भी हो रहा है। प्रदेश में सभी जनजातीय नायकों की प्रतिमाएँ लगाने का काम भी चल रहा है। राज्‍य सरकार द्वारा आदिवासियों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए साहूकार विनियम को लागू किया गया  है।

 भाजपा ने मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों में आदिवासियों को साधते हुए अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी  भी शुरू कर दी है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री के पिछले दिनों हुए दौरे के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित शहडोल का चयन किया गया, ताकि दोनों राज्यों के जनजातीय वोटरों को साधा जा सके। एक सप्ताह के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्यप्रदेश का यह दूसरा दौरा रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने एक तरफ अपने शहडोल दौरे में जटिल बीमारी सिकल सेल उन्मूलन मिशन का शुभारम्भ किया जिसका जनजातीय समुदाय सबसे अधिक शिकार होते हैं वहीँ जिस मंच से सम्बोधित किया, उस पर जनजातीय समुदाय के नायकों वीरांगना रानी दुर्गावती, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, टंट्या भील और बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमाओं को विशेष स्थान दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पकरिया गांव में आम के बगीचे में लोगों से संवाद भी किया जिसमें पेसा एक्ट पर बातचीत, स्व-सहायता समूह की महिला सदस्यों और फुटबॉल क्लब के खिलाडियों से संवाद भी अहम रहा जिसके कई गहरे मायने हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी ने आयुष्मान कार्ड भी बाटें और जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठकर भोजन भी किया। ऐसा पहली बार हुआ जब देश के किसी प्रधानमंत्री ने देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठ कर पहली बार कोदो, भात- कुटकी खीर का आनंद लिया और जमीन पर बैठकर मोटे अनाज को विशेष प्राथमिकता दी। पकरिया ग्राम में सतत संवाद कार्यक्रम के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत कर प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातीय समुदाय के कल्याण के लिए अपने बुलंद इरादे जता दिए हैं जिसका आगामी चुनावों में भाजपा को लाभ मिलना तय है। हर चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी अपने संवाद और रैलियों से बाजी पलटने  की क्षमता रखते हैं। 

 2018 के विधानसभा चुनावों में मिली हार ने सियासी मोर्चे पर मौजूदा दौर में भाजपा की बिसात को असहज किया हुआ है। प्रदेश में जनजातीय वोट निर्णायक हैं इसलिए उन पर पकड़ मजबूत कर डैमेज कंट्रोल किया जा सकता है। भाजपा जनजातीय इलाकों में अधिक से अधिक संवाद और विकास कार्यक्रमों के बहाने जनजातीय समाज पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेना चाहती है। सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को भी लगता है  कि  2023 के विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा को अपनी फिर से वापसी करनी है तो जनजातीय समाज का दिल हर हाल में जीतना होगा। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों को जहाँ अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से रिझाने में लगे हुए हैं वहीँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह  खुद इन इलाकों में मोर्चा संभाले हुए हैं और प्रदेश नेतृत्व से लगातार फीडबैक लेने में जुटे हुए हैं। 

Friday, 26 May 2023

मध्यप्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में आ रहा है बदलाव





 
जीवन के प्रत्येक अनुभव को शिक्षा कहा जाता है। वास्तव में शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा जीवन के प्राय: प्रत्येक अनुभव के भंडार में वृद्धि करती है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक जो कुछ भी सीखता है और अनुभव करता है वह शिक्षा के व्यापक अर्थ के अंतर्गत आता है। उसके सीखने और अनुभव करने का परिणाम यह होता है कि वह धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। शिक्षा मनुष्य जीवन के परिष्कार एवं विकास की कहानी है। शिक्षा राष्ट्र के व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए साक्षर होना बेहद आवश्यक है।  जीवन को समझना है, तो हमें शिक्षा का महत्व भी समझना होगा। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बच्चों, विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा शिक्षा को लेकर अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं।
 
मध्यप्रदेश में शिक्षा तक सभी की पहुंच आसान बनाने के क्षेत्र में शिवराज सरकार लगातार बेहतर कार्य कर रही है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में साक्षरता दर में और इजाफा करने के उद्देश्य से 'नवभारत साक्षरता कार्यक्रम'  सरीखे अनेक अभियान संचालित किए जा रहे हैं जो प्रदेश में शिक्षा की तस्वीर बदलने का काम कर रहे हैं। निरक्षरों को साक्षर करने में 'अक्षर साथी' अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने एडॉप्ट आंगनवाड़ी अभियानों और बेटियों को पढ़ाने के संकल्पों ने समाज की सोच को बदलने का काम किया है। बालिकाओं के लिए  लाड़ली लक्ष्मी, नि:शुल्क साइकिल वितरण, सामान्य निर्धन वर्ग के परिवारों की बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति, बालिका शिक्षा के लिए केंद्र सरकार के सुकन्या समृद्धि योजना, बालिका छात्रावास, बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना जैसे कार्यक्रमों ने बालिकाओं को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने का काम किया है। 
 
2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों को देखें, तो प्रदेश को महिला साक्षरता में ज्यादा सफलता मिली है। 2001 की तुलना में 2011 की जनगणना में महिला साक्षरता में 9.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो यह प्रदेश के लिए बड़ी उपलब्धि है। पुरुष  साक्षरता में इंदौर 89.2 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर, जबलपुर 89.1 के साथ दूसरे, भोपाल 87.4 के साथ तीसरे, भिंड 87.2 के साथ चौथे और बालाघाट 87.1 के साथ पांचवें स्थान पर है। इसी तरह महिला साक्षरता में भोपाल 76.6 प्रतिशत के साथ पहले, जबलपुर 75.3 प्रतिशत के साथ दूसरे और इंदौर 74.9 के साथ तीसरे , बालाघाट 69.7 के साथ चौथे और 68.3 प्रतिशत के साथ ग्वालियर पांचवें स्थान पर बना है। मध्यप्रदेश के मंडला जिले को देश के पहले कार्यात्मक रूप से साक्षर जिले के रूप में घोषित किया गया है। 2011 की जनगणना में मंडला जिले में साक्षरता 68 प्रतिशत थी। इसे देखते हुए वर्ष 2020 में निरक्षरता से आजादी अभियान की प्रदेश में शुरुआत हुई, जिसमें महिला एवं  बाल विकास विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, आंगनवाड़ी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सहयोग किया और गांव की शिक्षित महिलाओं को अभियान में जोड़ा गया, इसके बाद अभियान में लोग जुड़ते गए और इस अभियान से सभी को साक्षर करने में मदद मिली। अब मंडला जिला के ग्रामीणों  को बुनियादी अक्षर का ज्ञान है।  केन्द्र सरकार ने 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति जारी की और मध्यप्रदेश ने 26 अगस्त 2021 को इसे राज्य में लागू करने की घोषणा की। मध्यप्रदेश नई शिक्षा नीति लागू करने वाला कर्नाटक के बाद दूसरा राज्य है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन में मार्गदर्शन और सुक्षाव देने के लिए राज्य स्तर पर टॉस्क फोर्स का गठन किया है। नई शिक्षा नीति के हर पहलू के क्रियान्वयन में योजना बनाकर रणनीतियां विकसित की गई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश भर में 9500 सीएम राइज स्कूल बनाने का लक्ष्य रखा है। योजना के तहत स्कूल हर 15- 20 किलोमीटर पर रहेगा। आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश की दिशा में सीएम राइज योजना अहम भूमिका निभाएगी।
 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना राज्य सरकार की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है, जिसे पूरा करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। मध्‍यप्रदेश में 69 सीएम राइज स्कूलों का भूमि पूजन के बाद से सीएम राइज स्‍कूलों को खोलने के काम में अब तेजी आ चुकी है। सरकार द्वारा सीएम राइज योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और नए अधिक आधुनिक स्कूलों की स्थापना के साथ नवनियुक्त शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना है। भारत सरकार की नई शिक्षा पॉलिसी के तहत आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु सीएम राइज योजना शुरु की गई है। इस योजना के तहत 9500 सीएम राइज स्कूल पूरे राज्य में खोले जाएंगे। राज्य सरकार द्वारा खोले गए स्कूलों में बैंकिंग, अकाउंट, डिजिटल स्टूडियो, कैफेटेरिया, थिंकिंग एरिया, जिम, स्विमिंग पूल आदि सुविधाएं उपलब्ध होगी। राज्य में युवाओं को रोजगार के समुचित अवसर प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज कौशल विकास प्रशिक्षण पर भी काफी जोर दे रहे हैं। राज्‍य में उद्योगों की आवश्यकता के अनुरूप युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जा रहा है। केन्द्र सरकार की योजना के तहत पहली से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये मध्यप्रदेश सरकार राज्य में 730 ‘पीएम श्री स्कूल’ स्थापित करने के फैसले को अपनी  मंजूरी प्रदान की है।  प्रदेश के 313 ब्लॉक में से हरेक में दो स्कूल और 52 जिला शहरी निकायों में 104 स्कूल स्थापित किए जाएंगे।  


मध्यप्रदेश सरकार ने  ‘मुख्यमंत्री सीखो- कमाओ योजना’  लागू करने की स्वीकृति दी है जो युवाओं के लिए स्वाभिमान और सम्मान का प्रतीक बनेगी। मध्यप्रदेश के लाड़ले शिवराज मामा ने युवाओं को कौशल को बढ़ाने और बेरोजगारी को दूर करने के लिए अपनी युवा नीति के माध्यम से प्रदेश को एक नई  दिशा देने का काम किया है। इसके अंतर्गत युवाओं को अपने संबंधित क्षेत्र में ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी और ट्रेनिंग के दौरान युवाओं को प्रतिमाह 8000 रु प्रदान किए जाएंगे। मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य के युवाओं को हर तरह से विकसित करने के लिए कई तरह की नीतियां बनाई  है जिसके लिए युवा आयोग का गठन भी किया गया है। 
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प है कि शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा बने। शिक्षा मंत्रालय ने अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई  शुरू करने की जरूरत बताई जिसके बाद सरकार ने मातृभाषा पर ज़ोर देते हुए हिन्दी में पढ़ाई शुरू करने की दिशा में अपने कदम तेजी से बढ़ाये हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मानते हैं कि विद्यार्थी अंग्रेजी अवश्य सीखें, पर शिक्षा अंग्रेजी में ही संभव है, इस विचार से मुक्ति मिलनी जरूरी है। 

हिन्दी में पढ़ाई के लिए देश में आत्म-विश्वास पैदा करना आवश्यक है। मेडिकल और  इंजीनियरिंग  की पढ़ाई हिन्दी में शुरू करने वाला देश का पहला राज्य मध्यप्रदेश के दूरदर्शी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  की सोच से बना है। प्रदेश में मेडिकल के साथ ही आने वाले दिनों में नर्सिंग और पैरामेडिकल की पढ़ाई भी हिन्दी में कराई जाएगी। 

हिन्दी के प्रयोग से जहाँ इंजीनियरिंग, मेडिकल की पढ़ाई  का दायरा बढ़ेगा वहीँ समाज के हर वर्ग के प्रतिभाशाली युवा तकनीकी पढ़ाई के लिए आगे आएंगे।  इससे पठन - पाठन का  स्तर जहाँ सुधरेगा वहीँ  भारतीय भाषाओँ में शोध की गुणवत्ता और स्तर में भी सुधार होगा।

Monday, 8 May 2023

दक्षिण के दुर्ग कर्नाटक में जीत की छटपटाहट


 

‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले  कर्नाटक में चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण  पर पहुंच गया है। कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस सीधे आमने- सामने हैं और यहाँ  की जीत 2024 के लोकसभा चुनावों  में माइलेज लेने में कारगर साबित हो सकती है।  2024  के आम चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक  के ये चुनाव परिणाम  विपक्षी गठबंधन की धुरी बनाने में भी  मददगार साबित हो सकते हैं। कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों के  नेता  जोर आजमाइश करते  दिखाई दे रही है।  कर्नाटक  में कमल में  खिलाकर जहां वर्तमान में  भाजपा दक्षिण भारत के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयार होना चाहती है, तो वहीं कांग्रेस यहां सत्ता में वापसी कर भाजपा को दक्षिण की राजनीति में पीछे धकेलने की पुरजोर कोशिश कर रही है।  जनता दल (सेक्युलर) भी  ‘किंगमेकर’ बन इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के सामने चुनौती पेश करने की पूरी कोशिशें कर रही है। 

 
असल चुनौती भाजपा के सामने है जहाँ उसके सामने अपनी सरकार को फिर से सत्ता में लाने की है।  यही कारण है कि चुनाव प्रचार के अंतिम हफ़्तों में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत कर्नाटक में कमल फिर से खिलाने को झोंक दी है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना पूरा प्रचार डबल इंजन पर फोकस कर रहे हैं।  पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के  आक्रामक प्रचार के जरिए कांग्रेस को  बैकफुट में डालने का काम कर रहा है तो दूसरी तरफ बोम्मई सरकार के खिलाफ  सत्ता विरोधी लहर को प्रो इंकम्बैंसी  में बदलने के लिए  स्वयं प्रधानमंत्री मोदी  कर्नाटक में अपने रोड शो और बड़ी सभाओं के जरिए  दिन -रात पसीना बहा रहे हैं। मोदी की खूबी ये है उनके रहते लोकसभा चुनाव में  पिछली बार भाजपा ने 61 फीसदी वोट पाए जो बड़ा करिश्मा था।  कांग्रेस  कर्नाटक  के चुनाव प्रचार के ऐलान से पहले तक  कर्नाटक  में जहाँ भाजपा पर स्थानीय मुद्दों  भ्रष्टाचार , महंगाई , किसानों की समस्याएं , नंदिनी डेरी,  बेरोजगारी , पानी सरीखे मुद्दों  के आधार पर बसवराज बोम्मई की सरकार जबरदस्त बढ़त बनाये हुई थी वहीँ पिछले दो हफ़्तों से  कर्नाटक में भाजपा चुनाव प्रचार में काफी आगे निकल आई है  जिसने इस चुनावों के फोकस को बदलकर रख दिया है। इसमें  प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित भाई शाह की रणनीति ने बड़ा असर किया है।  2018 में पार्टी का वोट शेयर 36 .35 प्रतिशत था जो इस बार प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में की जा रही बड़ी अपील के जरिये बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है।  येदियुरप्पा को नेतृत्व देकर भाजपा को कर्नाटक में, खासकर उत्तरी हिस्सों में लिंगायतों का  बड़ा समर्थन विरासत में मिला।  भाजपा ने अन्य समुदायों का समर्थन जुटाने के लिए भी इस बार ताबड़तोड़ प्रयास  कर रही है । 
 
बतौर मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने राज्य के बजट में ‘विकास’ कार्यों के लिए विभिन्न हिंदू मठों और मंदिरों को वित्तीय अनुदान देने का प्रावधान शुरू किया था, जो वर्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के दौर में  भी जारी रहा, जहाँ इनके लिए  1,000 करोड़ रुपये की राशि दी गई । कर्नाटक में चुनावी लाभ के लिए भाजपा ने  कई पिछड़ी जातियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की हैं । 2019 के बाद से इसने एक दर्जन से अधिक अगड़ी और पिछड़ी जातियों के लिए विकास बोर्डों का गठन किया गया है।  इसी तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण कोटा को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात प्रतिशत करने की घोषणा हुई है। बोम्मई  सरकार ने आंतरिक आरक्षण के लिए ताकतवर दलितों की लंबे समय से चली आ रही मांग को लागू  करने का भी फैसला किया है । भाजपा ने धार्मिक आधार पर आरक्षण का बड़ा विरोध किया और 4  फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म  करने की बड़ी बात की, जिसे  वोक्कलिक्का  और लिंगायत समुदायों में 2 -2 फीसदी बांटने का ऐलान किया है लेकिन इन सबके बीच पार्टी के  बड़े लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने पार्टी छोड़ी जिसका उनके समुदाय पर अच्छा असर नहीं हुआ है।  कम से कम अपने जिले में दोनों नेता वोट प्रभावित कर सकते हैं लेकिन भाजपा को इन नेताओं से अब भी उम्मीद है। तभी पार्टी के नेता शेट्टार या सावदी पर  चुनावी सभाओं पर हमला  नहीं  कर रहे हैं । शेट्टार ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह या पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपने  निशाने पर नहीं  लिया है । उनके निशाने पर सिर्फ भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष हैं।  राजनीती  में रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहता है , इसी वजह से भाजपा नेता उम्मीद कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के निपटने के बाद इन नेताओं को मना कर पार्टी में वापस लाया जा सकता है। 
 
राज्य में 10 मई को 224 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा।  इस चुनाव में कुल पांच करोड़ 21 लाख 73 हजार 579 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 2 .59 करोड़ महिला, जबकि 2.62 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। राज्य में कुल 9 .17 लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। मध्य कर्नाटक क्षेत्र में 35 सीटें हैं, इनमें इस बार भाजपा अच्छा करती नजर आ रही है। भाजपा का वोट शेयर भी पहले के मुकाबले बढ़ने के प्रबल आसार हैं।  बेंगलुरू में बेंगलूरू, जहां कुल 28 सीटें हैं, वहां खराब सड़कों और जलभराव  चुनावी  संभावनाओं  पर पलीता लगा सकता है।  यहाँ पर प्रधानमंत्री मोदी का बार -बार डबल इंजन लाने का  फैक्टर  कितना असर  करेगा, ये कह पाना मुश्किल है।  उत्तर कर्नाटक में भी भाजपा  और कांग्रेस बराबरी की लड़ाई लड़ रहे हैं।  सेंट्रल कर्नाटक में भी भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला कड़ा है।  हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र की 31 सीटों पर कांग्रेस, भाजपा पर भारी दिखाई देती है।  इसी तरह से मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र  की  50 सीटों में  कांग्रेस को अच्छा प्रदर्शन करने की पूरी  उम्मीद है। कर्नाटक - हैदराबाद में भाजपा को कांग्रेस के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा रहा है।  तटीय  कर्नाटक और मध्य  कर्नाटक की 44 सीटें राज्य में महत्वपूर्ण हैं। भाजपा को अगर राज्य में फिर से  अपनी सरकार बनानी है तो इस पूरे इलाके में उसे अच्छा प्रदर्शन करना ही होगा।  मध्य कर्नाटक की इन सभी सीटों से राज्य में 5 पूर्व मुख्यमंत्रियों का प्रभाव रहा है।  यहाँ पर लिंगायतों का जबरदस्त  असर देखा जा सकता है।  पूर्व सीएम येदियुरप्पा का करिश्मा यहाँ हर बार भाजपा को फायदा पहुंचाता रहा है लेकिन इस बार येदियुरप्पा  चुनावी राजनीती की बिसात में फिट नहीं बैठे हैं और उतनी ऊर्जा के साथ चुनाव प्रचार में नजर नहीं आये हैं। 

 औरंगजेब  की बीजापुर और गोलकुंडा  की विजय ने उसके लिए दक्षिण का मार्ग खोला था उसी तरह से येदियुरप्पा  के रहते ही  भाजपा को दक्षिण भारत में जीत  मिली  और कर्नाटक में  भाजपा की राज्य में  पहली बार  सरकार बनी  थी।  वे 2007 से लेकर 2021 के बीच चार बार मुख्यमंत्री बने। जुलाई 2021 में उन्हें पार्टी ने  मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए राजी किया  लेकिन कुछ ही महीनों बाद पार्टी नेतृत्व को अहसास हो गया कि उन्हें किनारे करके पार्टी कर्नाटक में चुनाव नहीं जीत सकती। उसके बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  और  गृहमंत्री अमित शाह ने येदियुरप्पा को अपनी चुनावी बिसात में  साथ रखा है  और अपनी सभाओं में  उनकी तारीफ भी की है जो  आज भी लिंगायत समुदाय में येदियुरप्पा की गहरी पैठ  को बताता है।  लेकिन येदियुरप्पा की अपील लिंगायत मतदाताओं पर कितना असर करेगी ये देखने की बात होगी?  पार्टी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को इस चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया है। पार्टी घोषित तौर पर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में चुनावी राजनीती से दूर होकर येदियुरप्पा भाजपा की कितनी सीटों पर अपना मैजिक दिखाएंगे ये देखना होगा ?
 
राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  भी लिंगायत मुख्यमंत्री हैं लेकिन येदियुरप्पा की तरह वो लिंगायतों के बड़े वर्ग में अपनी पकड़ बनाकर भाजपा का पुराना वोट शेयर बढ़ा ले जायेंगे इस पर संशय बना हुआ है।  राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  की सरकार पर 40 प्रतिशत  भ्रष्टाचार के आरोपों को भुनाने में कांग्रेस यहाँ पीछे नहीं है जो उसकी दिखती हुई रग है,  साथ ही राज्य में बुनियादी समस्याओ  को लेकर नाराजगी है। पार्टी के तमाम सिटिंग एमएलए से जनता की उतनी नाराजगी नहीं है जितनी मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  से है। ऐसे में भाजपा  के सामने मुश्किलें पेश आ  रही हैं। इसे देखते हुए अब भाजपा ने नया राग छेड़ा है मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  को काम करने का काम समय मिला। ये अपील मतदाताओं के दिलो -दिमाग पर कितना असर करेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। आज भी प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्लस पॉइंट उनकी लोकप्रियता है।  आज भी चुनाव में मोदी फैक्टर बड़ा गेम बदलने का माद्दा रखता है।  
 
  वैसे भी कर्नाटक पहले से ही राजनीति में अपने नाटक के लिए देश में मशहूर रहा  है।  भाजपा  ने  एंटी इंकम्बैंसी  को देखते हुए  और 2024  के लोकसभा  चुनावों को देखते हुए इस बार  कर्नाटक  में 52 नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है जहाँ पर प्रधानमंत्री अपनी ताबड़तोड़ सभाओं से  माहौल  को अपने पक्ष में करने में जुटे  हुए हैं।  पुराने मैसूर क्षेत्र में जेडीएस , भाजपा  और कांग्रेस दोनों को हमेशा की तरह से  परेशान कर रही है। भाजपा की सबसे बड़ी समस्या राज्य में येदियुरप्पा की तरह ऐसे स्थानीय नेता का अभाव है जिसकी पूरे राज्य में मजबूत पकड़ हो। वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  बेशक लिंगायत हैं लेकिन इनका राज्य में  डीके शिवकुमार , सिद्धारमैया, देवेगौड़ा, कुमारस्वामी जैसा मजबूत आधार नहीं है जो भाजपा को आज भी परेशान कर रहा है।  इसी को जानते हुए भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी  को यहाँ गेमचेंजर के तौर पर देखा है जिसे वो पूरी तरह से अपने  विक्टिम नरैटिव  में इस्तेमाल करने में पीछे नहीं है।  राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 14 फीसदी, वोक्कालिंगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागीदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिंगा  समुदाय में   देवेगौड़ा और कुमार स्वामी  की पकड़ मानी जाती है। हालांकि बीते चुनाव में भाजपा और कांग्रेस वोक्कालिंगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी। 
 
कर्नाटक में सत्ता बदलने का मिथक क्या इस बार टूटेगा ये अब एक बड़ा सवाल बन चुका है ? 1985  के बाद से ही यहाँ का मतदाता किसी भी सरकार को दोबारा  लाने के खिलाफ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री  राजीव  गांधी ने जब वीरेंद्र  पाटिल को  राज्य की कुर्सी से  हटाया था उसके बाद से ही कांग्रेस का लिंगायतों में प्रभाव ख़त्म सा हो गया।  कर्नाटक में  पिछले चुनावों के पन्नों को पलटें तो  यहां हमेशा से सत्ता में बदलाव होता आया है।  कोई भी दल  लगातार  दो साल सत्ता में नहीं रहा है।  बीते 38 बरस  के  रिकॉर्ड को देखा जाए तो यहां  जनता हर पांच साल में सरकार को बदल देती है। अब भाजपा के लिए 2023 में  इस मिथक को तोड़ने की बड़ी चुनौती है जो पार्टी  प्रधानमंत्री मोदी के रहते  तोडना चाहती है। कर्नाटक में भाजपा  का स्थनीय नेतृत्व बेहद  कमज़ोर है। सत्ता विरोधी लहर  से  यह पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपने  निजी स्तर पर निपटा रहे हैं।  
 
भाजपा के बाद कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसकी पहुंच पूरे कर्नाटक में है, हालांकि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से उसकी चुनावी उपस्थिति भिन्न है। हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र की कुछ सीटों को छोड़ दें, तो जद(एस) का प्रभाव ज्यादातर पुराने मैसूर तक ही सीमित है, जहां 61 सीटें हैं। दूसरी ओर उत्तरी कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के समर्थन, मजबूत हिंदुत्व आधार वाले तटीय क्षेत्र और भाजपाई रुझान के मतदाताओं वाले शहर बेंगलूरू के बावजूद भाजपा ने कर्नाटक में कभी भी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं किया है। इस संदर्भ में खासकर पुराने मैसूर क्षेत्र में वोक्कलिंगा  समुदाय के मतदाताओं का समर्थन जुटा पाने में भाजपा की असमर्थता एक बड़ा कारक है, जहां उनकी आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है। यह समुदाय जद(एस) और कांग्रेस के बीच चुनाव करने में सहज महसूस करता रहा है। जद(एस) के देवेगौड़ा वोक्कलिंगा बिरादरी के सबसे बड़े नेता हैं। यहां का  किसान अपनी मजबूत सांस्कृतिक जड़ों  के चलते भाजपा की वैचारिक उग्रता के प्रति उदासीन रहता है। इसके अलावा, वाडियारों के शासन के दौरान और उससे पहले टीपू सुलतान के राज में पुराने मैसूर में विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विकसित अंतर-सामुदायिक समझदारी का लोकाचार भी हिंदुत्व की राजनीति की अपील को सीमित कर देता है। मैसूर क्षेत्र के इन सांस्कृतिक तथ्यों के मद्देनजर भाजपा ने राज्य में दूसरी जगहों पर लामबंदी के प्रयास किए हैं। इस बार हालांकि लिंगायत समुदाय पर अपनी भारी निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से पार्टी वोक्कलिंगा बहुल क्षेत्र में पैर जमाने के  प्रयास कर रही है। हिजाब , टीपू सुल्तान, सारवरकर जैसे मसले बेअसर हैं।  

केम्पेगौड़ा की विशाल प्रतिमा को स्थापित कर उसने वोक्कलिंगा समुदाय   पर  भी डोरे डाले हैं।  वोक्कलिंगा समुदाय को मुस्लिम विरोध पर लामबंद करने  के लिए मुख्यमंत्री बोम्मई ने मुसलमानों के लिए तय चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर के उसे लिंगायतों और वोक्कलिंगाओं  के बीच बराबर बांट दिया।  ताजा दूध और दही बेचने के अमूल के हालिया फैसले के खिलाफ भी लोगों में  व्यापक आक्रोश देखने में आया था क्योंकि लोगों की नजर में यह कदम अमूल के साथ घरेलू ब्रांड नंदिनी के विलय का संकेत दे रहा था। इस मुद्दे पर भी भाजपा राज्य में घिर रही है।  दलितों का समर्थन हासिल करना भी भाजपा के लिए इस चुनाव में इतना आसान नहीं दिख रहा है।  भाजपा की राज्य इकाई के भीतर गुटबाजी के कारण येदियुरप्पा को 2021 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।  दो प्रमुख लिंगायत नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को टिकट देने से पार्टी ने इनकार कर दिया था।  ये दोनों नेता कांग्रेस से  इस बार चुनाव लड़ रहे हैं । इससे कांग्रेस को लिंगायतों का समर्थन मिलने की थोड़ी  संभावनाएं  बढ़ रही हैं। दूसरा पहलू यह है कि भाजपा  कैसे भ्रष्टाचार, लिंगायत विरोधी और लिंगायत नेताओं को दरकिनार करने की छवि से निपट पाती है ये देखने वाली बात होगी। 

  कर्नाटक के उत्तरी जिलों में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को सबसे निराशाजनक मुद्दों के तौर पर उठाया जा रहा है।  जेडीएस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इतने सालों में वह कर्नाटक के उत्तरी जिलों तक अपनी पहुंच नहीं बना पाई है।पुराने मैसूर इलाक़े के वोक्कालिगा बहुल केवल आठ जिलों तक इसकी विकास सीमित रहा है।  हालांकि बीजेपी और कांग्रेस से टिकट न पाने वाले असंतुष्ट उम्मीदवार जेडीएस से टिकट पाकर मैदान में उतरे हैं। देखना है कि क्या जेडीएस अपनी जीती हुई सीटें बढ़ा सकती है?  जद(एस) ने उत्तरी कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा के कुछ बागी उम्मीदवारों को अपने टिकट पर मैदान में उतार दिया है। इससे उस क्षेत्र में वह कुछ सीटों पर अपना प्रभाव दिखा सकती है  है। राज्य में दूसरी बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी  ने 150 से अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इसका प्रभाव बेंगलूरू  के कुछ इलाकों तक ही सीमित है और इसके एक भी सीट जीतने की संभावना नहीं है, फिर भी अब राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते इसके प्रदर्शन पर नजर  रखनी होगी ।
 
2018  के विधान सभा चुनाव में बीजेपी 104 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी  बनकर  उभरी थी, तो कांग्रेस को केवल 80 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थीं। जबकि जनता दल (एस) को 37 सीटें मिली थी। शुरुआत में जेडीएस कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनायी थी, लेकिन दोनों दलों के विधायकों की बगावत के बाद सरकार गिर गई थी उसके बाद भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। कांग्रेस से कई लोगों ने येदियुरप्पा को मदद की जिससे भाजपा को सरकार बनाने में आसानी हुई। 

भाजपा-कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में  एक से  बढ़कर एक कई बड़े वायदे किए हैं जिन पर इन चुनावों में बहुत सवाल उठ रहे हैं।   भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को ‘प्रजा ध्वनि’ घोषणा पत्र में गरीबों के लिए साल में तीन बार मुफ्त गैस सिलेंडर से लेकर किसानों, महिलाओं और बच्चों तक के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया है वहीं, कांग्रेस के ' संकल्पपत्र ' घोषणापत्र  में 200 यूनिट बिजली मुफ्त से लेकर परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2 हजार रुपए देने तक का वायदा किया गया है। इसके अलावा कांग्रेस ने नफरत फैलाने वाले संगठनों पर बैन लगाने का भी वायदा किया है। इसमें सबसे बड़ा नाम बजरंग दल का है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन लगाने का एलान क्यों किया? इसका चुनाव में पार्टी को कितना फायदा मिलेगा ये देखना होगा ?  

इस बार पार्टी ने महिलाओं से लेकर युवाओं तक को लुभाने के लिए भत्ता का एलान किया है। 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का एलान भी काफी बढ़ा है। सबसे बड़ा दांव आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का है। आरक्षण अगर 50 से 75 प्रतिशत तक हो जाता है तो यह बड़ा बदलाव होगा। वहीं, भाजपा ने गरीब वर्ग के लिए तो कई एलान किए हैं। 
 
चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में बजरंगबली की  इंट्री  ने  कर्नाटक  की राजनीति को गरमा दिया है।  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मोदी पर जब 'जहरीला सांप 'वाला बयान दिया और उसके बाद उनके बेटे प्रियांक उन पर 'नालायक' कहकर  हमलावर हो गए तो इसने  कर्नाटक  के चुनाव के रुख को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है।  कांग्रेस इस बात को नहीं समझ पाई वो जितनी गलती करेगी भाजपा के लिए पिच उतनी ही बेहतरीन बनेगी और ऐसा ही हुआ है। कर्नाटक  की पिच पर प्रधानमंत्री मोदी जबरदस्त बैटिंग कर रहे हैं।  भाजपा मोदी पर हमले को लेकर कांग्रेस के खिलाफ बहुत एग्रेसिव  नजर आई है।  

आम जनमानस में भी बसवराज बोम्बई  के खिलाफ नाराजगी है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ जनता खड़ी  नजर  आती है।  कांग्रेस इस चुनाव में उसी जैसे माहौल का सामना कर रही है जैसा पीएम मोदी के बारे में मणिशंकर अय्यर के 'चायवाला' टिप्पणी के बाद बना था।  अय्यर की टिप्पणी ने बीजेपी को एक ऐसा हथियार दे दिया था, जिसका इस्तेमाल करके उसने एक बड़े प्रचार अभियान में तब्दील कर दिया।  भाजपा  ने गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी द्वारा मोदी को "मौत का सौदागर" कहे जाने को अपने पक्ष में भुनाया। ये बयान, चुनावी अभियान के उस दौर में आए हैं, जब बेरोज़गारी, महंगाई और ग़रीबी ने राज्य में जनता का जीना मुहाल किया हुआ है।  वोट डालते समय  मतदाता के  के जीवन पर रोज़गार, मंहगाई और ग़रीबी - इन तीन मुद्दों का  कितना असर  होगा ये कहना कठिन है। कर्नाटक का वोटर राज्यों के चुनाव को और लोक सभा चुनाव को अलग -अलग दृष्टि से  देखता है।  मुख्यमंत्री  बसवराज बोम्बई को लेकर अभी भी हर इलाके में बहुत नाराजगी है। ओल्ड मैसूर में भाजपा प्रधानमंत्री  मोदी का विक्टिम  कार्ड खेल रही है। राज्य में   पीने के पानी  की  बड़ी समस्या है , एलपीजी  सिलेंडर को लेकर महिलाओं  को लेकर रोष है।  ये मुद्दे कितना चुनाव को प्रभित करेंगे कुछ कह नहीं सकते।  


पिछले चुनाव में भाजपने  55 लिंगायत को  टिकट दिए इस बार ये संख्या बढ़कर 68 पहुँच गई है। साफ़ है लिंगायत वोटों पर जिसका जादू  चलेगा वो कर्नाटक का रण जीत जाएगा।  प्रधानमंत्री  दिल और दिमाग से राजनीति करते हैं और किसी भी चुनावों के अंतिम पलों में चुनाव की दिशा बदल देते हैं।  प्रधानमंत्री मोदी पर अटैक कर कांग्रेस इस चुनाव में खुद से हिट विकेट हो रही है।  किसानों की समस्याएं , बेरोजगारी , महंगाई , पेट्रोल डीजल के बढे दाम , 40 प्रतिशत कमीशनबाजी  पर पहले चुनाव शुरू होने से पहले कांग्रेस फोकस कर रही थी लेकिन  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे  ने  अपने बयानों से  भाजाप के सामने व्यंजनों से भरी थाली खुद सजा दी है।   

कांग्रेस के बजरंग दल पर प्रतिबन्ध वाले मैनिफेस्टो की पूरे राज्य में चर्चा हो रही है।  हम्पी में बजरंगबली  की बड़ी मान्यता है और बजरंगबली का जन्मस्थान भी है लिहाजा भाजपा ने चुनाव को धार्मिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।  कांग्रेस ने पीएफआई का सीधा समर्थन अपने मैनिफेस्टो में कर 'आ बैल मुझे मार' वाली उक्ति को चरितार्थ काने का काम किया है जिसका मतदाताओं पर गहरा असर हो रहा है।  इसके कर्नाटक चुनाव के पूरे विमर्श को बदल दिया है। इस बार स्थानीय मुद्दे बेअसर  साबित हो सकते हैं  और हवा में राष्ट्रीय मुद्दों का ही असर दिखाई दे रहा है।   
 
कर्नाटक का  विधानसभा चुनाव  सभी दलों के लिए  मायने रखता है।  कांग्रेस अगर यहाँ वापस आती है तो वो विपक्षी एकता की धुरी बन सकती है।   जद(एस) की सीटों की संख्या में सुधार का  मतलब  होगा चुनाव के बाद कोई गठबंधन बना तो उस मौके को वह भुनाने में देर नहीं करेगी।   भाजपा यदि  बहुमत के साथ सत्ता में आती है तो ये नया इतिहास बन जायेगा।  अपने दम  पर भाजपा कभी भी कर्नाटक में सत्ता  में नहीं आई। कर्नाटक जीत के बाद दक्षिण के अन्य चार राज्यों में भाजपा की संभावनाओं को नए पंख लगेंगे।  

कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा  के सामने सीधे  कांग्रेस  होगी ।  मिशन 2024  में भाजपा उत्तर में होने वाले नुकसान की भरपाई  दक्षिण कर सकता है। इससे  पार्टी का मनोबल में निश्चित रूप से इजाफा होगा। भाजपा के लिए  कर्नाटक जीतने का  सीधा अर्थ  यह होगा कि उसके मतदाताओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील  चुनावी  मुद्दों पर आज भी भारी है। अगर  कर्नाटक में मोदी का मैजिक बरकरार  रहता है तो वह बाकी तीन राज्यों में भी प्रधानमंत्री  मोदी को ट्रैम्प कार्ड बनाकर इस्तेमाल करेगी। अगर भाजपा कर्नाटक हारती है तो इन तीन राज्यों में उसे स्थानीय क्षत्रपों को आगे करना होगा तभी वो बाजी जीत सकती है।  

Saturday, 6 May 2023

पत्रकारिता के कुशल संचारक देवर्षि नारद




भारतवर्ष में पत्रकारिता का अनुभव सदियों पूर्व किया जाता रहा है। किसी न किसी रूप में सनातन काल से कलम साधना की परम्परा सर्वश्रेष्ठ परम्परा रही है। आज हम जो कुछ भी पढ़ते हैं, लिखते हैं, सुनते हैं, सब कुछ कलम साधना का ही प्रतिफल है। कलम न होती तो शायद संसार में ज्ञान का अस्तित्व ही न होता। ज्ञान न होता तो फिर क्या होता, इस बात का अंदाजा सहज में लगाया जा सकता है। 30 मई 1826 को कलकत्ता से हिन्दी का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ था। भारत में जब आधुनिक पत्रकारिता प्रारंभ हुई, तब हमारे पूर्वजों ने इसके लिए दैवीय अधिष्ठान की खोज प्रारंभ कर दी। उनकी वह तलाश तीनों लोक में भ्रमण करने वाले  देवर्षि नारद पर जाकर पूरी हुई। भगवान विष्णु के भक्त नारद जी का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। देवर्षि नारद मुनि पृथ्वी, आकाश और पाताल लोक में यात्रा करते थे, ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके।  देवर्षि नारद को देवों का दूत, संचारकर्ता और सृष्टि का पहला पत्रकार कहा जाता है । 

हिन्दू पौराणिक कथाओं की मानें तो उन्होंने भगवान विष्णु के कई काम पूरे किये हैं इसलिए  नारदजी को विष्णु का संदेशवाहक माना गया है।  उन्हें  आदि-पत्रकार कहा जाता है।  कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उन्हें संचारक अर्थात सूचना देने वाला पत्रकार कहा गया है। इसके अतिरिक्त संस्कृत के शब्द कोष में उनका एक नाम आचार्य पिशुन आया है जिसका अर्थ है सूचना देने वाला संचारक, सूचना पहुंचाने वाला, सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक देनेवाला है। आचार्य का अर्थ गुरु, शिक्षक, यज्ञ का मुख्य संचालक विद्वान अथवा विज्ञ होता है। पिशुन से स्पष्ट है कि देवर्षि नारद तीनों लोकों में सूचना अथवा समाचार के प्रेषक के रूप में परम लोकप्रिय पत्रकार एवं संवाद-प्रेषक, संवाद-वाहक हैं। देवर्षि नारद व्यास वाल्मीकि और शुकदेव जी के गुरू भी रहे। श्रीमद्भागवत एवं रामायण जैसे प्राचीन और महत्वपूर्ण  ग्रन्थ हमें नारद जी की कृपा से ही प्राप्त हुए हैं। यही नहीं प्रहलाद, ध्रुव और राजा अम्बरीश जैसे महान व्यक्तित्वों को नारद जी ने ही भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।  देवर्षि नारद ब्रहमा, शंकर, सनत कुमार, महर्षि कपिल, स्वायम्भुव मनु आदि 12 आचार्यों में  श्रेष्ठ  हैं। वराह पुराण में देवर्षि नारद को पूर्व जन्म में सारस्वत् नामक एक ब्राह्मण बताया गया है जिन्होंने ‘ ॐ नमो नारायणाय’ इस मंत्र के जप से भगवान नारायण का साक्षात्कार किया और पुनः ब्रह्मा जी के  मानस पुत्रों के रूप में अवतरित हुए। देवर्षि नारद तीनों लोको में बिना बाधा के विचरण करने वाले परम तपस्वी तथा ब्रह्म तेज से संपन्न हैं।

पंडित जुगलकिशोर शुक्ल ने उदन्त मार्तण्ड के प्रथम अंक  में लिखा कि देवर्षि नारद की जयंती के शुभ अवसर पर यह उदन्त मार्तण्ड शुरू  होने जा रहा  है। 1826 को हालांकि हिन्दी पत्रकारिता का प्रारंभिक दौर रहा लेकिन पत्रकारिता का अनुभव युगों-युगों से रहा है। देवर्षि नारद इस पत्रकारिता जगत के आदि पुरुष माने गये हैं। इन्हीं के अथक परिश्रम के प्रभाव से सांस्कृतिक पत्रकारिता का उदय हुआ। इसके बाद  1948 में जब दादा साहब आप्टे ने भारतीय भाषाओं की प्रथम संवाद समिति  ‘हिंदुस्थान समाचार’  जब शुरू की थी, तब  उसमें भी इस बात का उल्लेख  है कि देवर्षि नारद पत्रकारिता के पितामह हैं।  हमारी कई कथाओं में नारद मुनि के योगदान को ब्रह्मांड के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।  देवर्षि नारद ने  विभिन्न देवी-देवताओं के बीच संबंधों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे कि श्री लक्ष्मी और विष्णु, भगवान शिव और देवी पार्वती, और उर्वशी और पुरुरवा के बीच विवाह को सुगम बनाना। महादेव द्वारा जलंधर के विनाश में नारद की भी भूमिका थी। इसके अलावा, उन्होंने वाल्मीकि को रामायण और व्यासजी को भागवत लिखने के लिए प्रेरित किया। हरिवंशपुराण से पता चलता है कि नारद मुनि ने हजारों दक्ष प्रजापति के पुत्रों को बार-बार सांसारिक बंधनों से मुक्त  किया। मैत्री संहिता में नारद को आचार्य के रूप में मान्यता दी गई  है।कहा जाता है कि देवर्षि नारद ने बड़े समर्पण और ज्ञान के साथ कई महत्वपूर्ण ज्योतिषीय स्रोतों की रचना करके ज्योतिष पर  भी  प्रभाव डाला। वे ज्योतिष में इतने निपुण थे कि उनका ज्ञान अन्य सभी से बढ़कर था। नारद पुराण न केवल एक ज्योतिषीय ग्रंथ है बल्कि एक धार्मिक ग्रंथ भी है जो विभिन्न अनुष्ठानों और धार्मिक मंत्रों की पूजा पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

‘रुद्रप्रयागे तन्वगिंग सर्वतीर्थोत्तमे शुभे।’श्री केदार महात्म्य के 63वें अध्याय के अनुसार देवाधिदेव महादेव की स्तुति कर देवर्षि नारद ने पत्रकारिता के पूर्ण रहस्य लोक कल्याण हेतु प्राप्त किये। उन्होंने शिव सहस्रनाम की रचना कर त्रिलोक्य दीपक संगीत रूपी पत्रकारिता संसार के सम्मुख रखी। तभी यह ज्ञान सामने आया कि ‘‘नाद से वर्ण, वर्ण से पद, पद से वाक्य और वाक्य वचन से ही समस्त संसार की उत्पत्ति हुई है इसलिए संसार नादात्मक है अर्थात शब्द ही ब्रह्मा है। यदि शब्द ही ब्रह्मा है तो  सृष्टि की रचना के साथ ही पत्रकारिता का जन्म हुआ है। शिव से पुरुषाकृत छह राग उत्पन्न हुए, जो राग पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं में ‘त्रिलोक दीपक’ एक है। इसके अलावा देह शोधन  ज्ञान से देह में अधिष्ठित सर्वभौतिक ज्ञान व समस्त भूतों को जानने की कला का ज्ञान, संगीत कला के तत्व से नाद का विधान, संगीत की समस्त विद्याओं का ज्ञान, स्वरों के भेद का पूर्ण ज्ञान, संगीत में स्वर शब्द के मूल में षांडवों का वर्णन गायन क्रिया तथा अलंकारों के भेद स्थायी, आरोही, अवरोही, संचारी का ज्ञान, सप्तस्वर षडजी, ऋषिजी, गांधारी, मध्यमा, पंचमा, छठी, धैवती, नौसादी का ज्ञान स्वरों के भेद और तालों की संज्ञा का ज्ञान उपहन्तु, गल, विशारद, अर्थभोग के अलावा स्वरों के भेद की  72 कलाओं का ज्ञान, जिनमें प्रमुख रूप से गमन कला, रसायन कला, अंगलेखन कला, हास्य लेखन कला प्रमुख हैं। नारद मुनि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में एक हैं।भगवान विष्णु के प्रति इनकी अचल निष्ठा है और लोक कल्याण के लिए सर्वत्र विचरण करना इनका प्रमुख धर्म है। पत्रकारिता के साथ साथ भक्ति तथा संकीर्तन के ये आदि आचार्य हैं। इनकी वीणा ही इनका संचार पत्र  है  जिसे ‘महती’ के नाम से पुकारा जाता है। इस महती का मतलब धर्म प्रचार से  है। इसका उद्देश्य  धर्म के प्रचार के साथ साथ लोक मंगल  के लिए ‘नारायण-नारायण’ की ध्वनि को  गुंजित  करना है। ये सदैव अमर है और आज भी व्रहमाण्ड के समाचारों का संकलन कर जीव के कर्म की गति के अनुसार जीवन निर्धारण करवाने में इनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए ये मान्यता प्राप्त  आदि पत्रकार है।  पौराणिक काल के पत्रकार देवर्षि नारद के अलावा महर्षि वेद व्यास व संजय प्रसिद्ध पत्रकार रहे। नौ नाथ- आदि नाथ, अनादि नाथ, कुर्म नाथ, भव नाथ, सत्य नाथ, संतोष नाथ, स्वामी मतस्येन्द्र नाथ, गोपी नाथ व गोरखनाथ जी की गणना भी महान पत्रकारों के रूप में होती है। इनके कलम के प्रताप से रचित रचनाओं का विशाल भंडार संसार के सम्मुख है।

 सत्य नारायण  की कथा के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि देवर्षि नारद का सब कुछ समाज के लिए अर्पित था। देवर्षि नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है  जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति ,नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि। नारद मुनि देव व दानव सभी के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान बिना किसी स्वार्थ के लोकहित को ध्यान में रखकर किया करते थे। आज भी पत्रकारों को उनके पदचिन्हों पर चलकर मूल्य आधारित पत्रकारिता को बढ़ाव देने की आवश्यकता है जिसके केन्द्र में लोकमंगल की प्रधानता होनी  चाहिए।  पत्रकारिता के इस महत्व को गीता में समझाते हुए योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने देवर्षियों में नारद को अपनी विभूति बताया हैं। पूर्व काल में नारद ‘उपबर्हण’ नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बेहद अभिमान था। एक बार जब ब्रह्मा की सेवा में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से प्रभु की स्तुति कर रहे थे। आराधना कर रहे थे, उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से भावित वहाँ आया। उपबर्हण का यह अशिष्ट आचरण देख कर परमेश्वर ब्रह्मा कुपित हो गये और उन्होंने उसे ‘शूद्र योनि’ में जन्म लेने का शाप दे ड़ाला ।  शाप के प्रभाव से वह ‘शूद्रा नामक दासी’ के पुत्र हुए। माता पुत्र साधु संतों की बड़े ही निष्ठा के साथ सेवा करते थे। शुरूआती जीवन इनका बड़े ही संघंर्ष में बीता ।  बाल्यकाल की अवस्था से संतों के पात्र में बचा हुआ झूठा अन्न इन्हें नसीब होता था । इस अन्न के प्रभाव से उसके हृदय के सभी पाप धुल गये। बालक की सेवा से प्रसन्न होकर साधुओं ने उसे नारायण नाम का जाप और ध्यान का उपदेश दिया। बाद में इनकी माता शूद्रा दासी की सर्पदंश से मृत्यु हो गयी। माता के संसार से चले जानें के बाद नारद इस संसार में अकेले रह गये। उस समय इनकी अवस्था मात्र पाँच वर्ष की थी। माता के वियोग को भी ईश्वरीय इच्छा मानकर नारद जी ने नारायण की शरण लेकर उनका ध्यान आरम्भ किया।समय आने पर हरि के विरह में इन्होनें शरीर छोड़ा और बाद में प्रभु की कृपा से ये ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रुप में जन्में और संचार को अपना धर्म बनाकर पत्रकारिता का आरम्भ किया।संसार के बड़े बड़े महर्षि ऋषि इनके शिष्य हुए। उनका समूचा संचार लोकहित के लिए है। नारद भक्ति के  84 सूत्र जीवन को एक नई दिशा  देने का काम करते हैं। मौजूदा दौर  की पत्रकारिता इनसे बहुत कुछ सीख सकती है।  नारद के भक्ति सूत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन सूत्रों में पत्रकारिता के आधारभूत सिद्धांत शामिल हैं। ये सूत्र पत्रकारिता को दिशा देने वाले हैं। आज इलेक्ट्रानिक युग में खबरें तेजी से बदल रही हैं।  संवाददाताओं में खबरों को ब्रेक करने की मानो होड़ ही लगी हुई है।  आधी-अधूरी जानकारी में ही समाचार लिख दिए जा रहे हैं  जो चिंताजनक है।  नारद जी के भक्ति सूत्र आज भी हमें ये सिखाने की कोशिश करते हैं समाचारों में सत्यता होनी जरूरी है।  अपने विभिन्न स्त्रोतों से पुष्टि के बाद ही  कोई समाचार प्रकाशित किया जाना चाहिए।  देवर्षि नारद   के  संचार  में  लोकमंगल की भावना नजर आती है।  निरन्तर संवाद, प्रवास, संपर्क  नारद की संचारकला को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं।  देवर्षि  नारद एक ऐसे विराट व्यक्तित्व के स्वामी  हैं जो न केवल   सांसारिक घटनाओं के ज्ञाता थे बल्कि  उनके परिणामों तक से भी वे भली भांति परिचित होते थे। वे देव, दानवों, मनुष्यों  सभी  में ही लोकप्रिय थे। आनन्द, भक्ति, विनम्रता, ज्ञान, कौशल उनकी अनेक विशेषताएं थी ।  

सही अर्थों में कहा जाए तो देवर्षि नारद  पत्रकारिता के अधिष्ठात्रा हैं। इन्हीं के प्रभाव से संसार को राग भैरव, मालकौशिक, हिन्दोल, दीपक श्रीराग सहित संगीत व लेखन की असंख्य जानकारी प्राप्त हुई, इसलिए देवर्षि नारद पत्रकारिता जगत में अतुलनीय  रहे हैं। नारद का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है । उन्होंने ब्रह्मा से ज्ञान प्राप्त किया। संगीत का आविष्कार किया। समाज में भक्ति के मार्ग का प्रतिपादन किया और सतत  संवाद के माध्यम से हमेशा लोकमंगल का बेहतरीन  कार्य किया।