Tuesday, 14 November 2023
दीपोत्सव पर समाज को नई राह दिखलाएं
Wednesday, 25 October 2023
स्पिन के जादूगर की अंतिम 'फ्लाइट '
Sunday, 27 August 2023
मुख्यमंत्री शिवराज का 'गहना' बन रही है 'लाड़ली बहना योजना'
मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश की शिवराज सरकार ने लाड़ली बहना योजना के रूप में एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक चला है जिसका जमीन पर असर अभी से दिखाई देने लगा है। इस योजना को लेकर शहरों से लेकर गाँव में प्रदेश की महिलाओं में बेहद उत्साह नजर आ रहा है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से बहनों के लिए लाई गई लाड़ली बहना योजना को आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है। राज्य की आधी आबादी को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये मास्टर स्ट्रोक विपक्षी कांग्रेस की चुनावी जीत की संभावनाओं पर पलीता लगा सकता है।
इस योजना के तहत प्रदेश की शिवराज सरकार बहनों को हर महीने की 10 तारीख को 1000 रु की धनराशि प्रदान कर रही है जो लाड़ली बहनों के बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर की जा रही है। विधानसभा चुनाव से पहले लाई गई लाड़ली बहना योजना के लागू होने से बहनें काफी उत्साहित हैं। चुनावी साल में शिवराज सरकार के लिए ये योजना कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आये दिन विकास पर्व के प्रदेश भर में हो रहे कार्यक्रमों में इस योजना की जबरदस्त ढंग से ब्रांडिंग करने में जुटे हैं। शिवराज की हर दिन प्रदेश भर में हो रही सभाओं में उमड़ रही महिलाओं की भीड़ इस बात की गवाही दे रही है कि ये योजना उन्हें खूब भा रही है। महिलाओं में इस योजना के प्रति अलग तरह का उत्साह प्रदेश के हर कोने में महसूस किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि लाड़ली बहना योजना महिलाओं की जिंदगी बदलने का बड़ा अभियान है। इस अभियान के लागू होने के बाद उन्हें प्रदेश भर से बहनों का अपार समर्थन भी मिल रहा है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में बहनों की जिंदगी बदलने के महाअभियान में दिन रात एक किये हुए हैं । प्रदेश की बहनों को अब अपनी छोटी-मोटी जरूरतें पूर्ण करने के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ रहा है। सही मायनों में इस योजना के माध्यम से मध्य प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के एक नए युग का सूत्रपात हुआ है। प्रतिमाह 10 तारीख को गरीब और मध्यम वर्ग की महिलाओं के खाते में एक-एक हजार रुपए हस्तांतरित होने के बाद उनके चेहरों पर मुस्कराहट दिखाई दे रही है। लाड़ली बहनें इस बात से भी खुश नजर आ रही हैं, आने वाले समय में इस राशि को सरकार प्रति महीने 3,000 रुपए कर देगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति महिलाओं का भरोसा बढ़ा है।
मुख्यमंत्री शिवराज ने अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को हर मोर्चे पर सशक्त करने का काम किया है। ‘लाडली लक्ष्मी’ से लेकर ‘कन्या विवाह’ और अब ‘लाडली बहना’ सभी ने प्रदेश में एक नई सामाजिक क्रांति लाने का काम किया है। महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए शिवराज सरकार ने कई योजनाएं शुरू की जिसने महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाने का काम भी किया है। एक दौर था जब मध्यप्रदेश में पहले पुरुषों और महिलाओं के अनुपात में काफी अंतर था। 1000 बेटों पर 912 बेटियां जन्म लेती थीं। लोग बेटियों को बड़ा बोझ मानते थे। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज ने अपनी लाडली लक्ष्मी योजना के माध्यम से महिलाओं को बड़ा संबल देने का काम किया जिसका असर ये हुआ कि मध्यप्रदेश में बेटी अब बोझ नहीं रही। अब वह प्रदेश के लिए वरदान साबित हो रही है। आज मध्य प्रदेश में लिंगानुपात बढ़कर प्रति 1,000 पुरुषों पर 978 महिलाएं हो गया है। ‘लाडली लक्ष्मी’ के बाद ‘कन्यादान योजना’ शुरू हुई जिसका भी प्रदेश में शहरों से लेकर गाँवों तक जबरदस्त असर दिखा। स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था के साथ ही पुलिस भर्ती में उनके लिए 30 प्रतिशत आरक्षण और शिक्षक भर्ती में 50 प्रतिशत आरक्षण, आजीविका मिशन से प्रदेश की आधी आबादी के हितों का संरक्षण हुआ है। ‘आजीविका मिशन' बहनों की गरीबी दूर करने की दिशा में सशक्त माध्यम बनकर कार्य कर रहा है। आजीविका मिशन से बहनों में एक नई चेतना आयी है। आज प्रदेश की लाखों महिलाएं इस मिशन के माध्यम से स्वरोजगार अपनाकर परिवार चला रही हैं। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ रही है। जो महिलाएं आजीविका मिशन से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें भी शिवराज सरकार द्वारा जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज प्रदेश में आजीविका मिशन की बहनों की आय कम से कम 10 हजार रूपए महीना करना चाहते हैं जिससे वे लखपति क्लब में शामिल हो सकें। सही मायनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने का काम किया है जिसकी पूरे देश में सराहना हो रही है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में पांच करोड़ 40 लाख वोटर हैं जिनमें महिलाओं की संख्या दो करोड़ 60 लाख से अधिक है। राज्य में लाडली बहना योजना की पात्र महिलाओं की संख्या एक करोड़ 25 लाख से अधिक है। राज्य सरकार ने पहले इस योजना को 23 वर्ष से 60 वर्ष तक की महिलाओं के लिए लागू किया लेकिन बाद में अधिक बहनों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए पात्रता शर्तों में ढील दी। अब ऐसी बहनें जिनकी आयु 21 से 23 वर्ष की है और जिनके पास ट्रैक्टर भी है, उन सभी को लाडली बहना योजना से जोड़ा गया है और अब उन्हें भी योजना का लाभ मिल रहा है । आज मध्यप्रदेश में प्रत्येक गांव और वार्ड में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के साथ ही महिलाओं की हितग्राही मूलक योजनाओं के प्रभावी लाभ के लिए लाड़ली बहना सेना का भी गठन किया गया है। लाड़ली बहना सेना से जोड़कर बहनों को संगठित किया जा रहा है। यह सेना बहनों को शासन की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करेगी साथ ही बहनों पर होने वाले अन्याय को रोकने में भी कारगर बनेगी।
शिवराज सरकार की लाड़ली बहना योजना के जवाब में कांग्रेस ने सत्ता में आने पर नारी सम्मान योजना की गारंटी दी है जिसकी हवा शिवराज 'मामा 'ने हर महिला के खाते में प्रतिमाह 10 तारीख को एक हजार रुपये देकर निकाल दी है। इसकी काट कांग्रेस नारी सम्मान योजना के रूप में देख रही है जिसमें वो प्रतिमाह महिलाओं को 1500 रु देने की बात कर रही है। कांग्रेस और चुनावी गारंटियों पर यकीन करना मुश्किल इसलिए भी हो रहा है क्योंकि अपने बीते 15 माह के कार्यकाल में उसने शिवराज सरकार की तमाम योजनाओं को बंद कर दिया। 2018 में कांग्रेस के द्वारा जोर शोर के साथ कृषि ऋण माफी, बेरोजगारी भत्ता और गैस सिलेंडर पर 100 रुपये की छूट की घोषणा की गई थी लेकिन 15 महीनों में एक भी वादा पूरा नहीं किया। इस लिहाज से कांग्रेस की गारंटियों पर अब भाजपा भारी पड़ती दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री शिवराज की सभाओं में हर जिले में उन्हें सुनने आ रही महिलाओं की बड़ी भीड़ इस बात की गवाह बन रही है मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना को बहनों ने दिल से स्वीकारा है।
मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा है कि वे लाड़ली बहनों की आँखों में आँसू नहीं आने देंगे । सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर ही चैन से बैठेंगे। लाड़ली बहना योजना की शुरूआत 1000 रूपये से की है लेकिन धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 3000 रूपये किया जायेगा। खास बात ये है जनता के दिलों में आम आदमी के सीएम के रूप में बसने वाले मुख्यमंत्री शिवराज की बनाई गई योजनाओं पर तुरंत अमल शुरू होता है और उसका प्रभाव हर क्षेत्र में महसूस किया जाता है। यह बात साधारण नहीं है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बनाई कई महिला केंद्रित योजनाओं ने उन्हें प्रदेश का मामा कई दशकों से बनाया हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 27 अगस्त को बहनों से रक्षाबंधन से पहले फिर संवाद करेंगे। जबसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सभाओं में इस बात की घोषणा की है कि इस बार रक्षाबंधन के अवसर पर प्रदेश भर की सवा करोड़ से ज्यादा लाडली बहनों को बड़ा तोहफा मिलने वाला है उसके बाद से ही लाड़ली बहनों में उपहार को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 27 अगस्त से लाडली बहनों के खाते में हर महीने 1250 रुपये डालने की घोषणा के साथ अक्टूबर से इसे बढ़ाकर प्रतिमाह 1500 रु करने की घोषणा कर पूर्व सीएम कमलनाथ और कांग्रेस की गारंटियों की हवा निकाल सकते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार रक्षाबंधन पर अपनी लाखों बहनों को बड़ा तोहफा देंगे इस बात से महिलाएं उत्साहित नजर आ रही हैं।
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल में कई घोषणाएं करने में जुटे हुए हैं लेकिन सबसे बड़ी गेमचेंजर योजना लाडली बहना मानी जा रही है। लाडली बहनों के सहारे सरकार एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर को चित करती दिखाई दे रही हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार महिलाओं से संवाद कर उन्हें एक के बाद एक तोहफे दे रहे हैं। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए स्व-सहायता समूह से जोड़ने का प्रयास भी कर रहे हैं। 27 अगस्त का दिन भोपाल में ऐतिहासिक होने जा रहा है। सीएम शिवराज सिहं चौहान 27 अगस्त को जम्बूरी मैदान भोपाल में अपनी सवा करोड़ लाडली बहनों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाएंगे। लाड़ली बहनें अपने भैय्या सीएम शिवराज सिंह चौहान को राखी बांधेंगी। इस कार्यक्रम में प्रदेशभर से लाखों की संख्या में लाड़ली बहना पहुंचने का सिलसिला शुरू गया है। महिला बाल विकास विभाग इस संबंध में तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है।
मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा है कि हम मध्यप्रदेश में महिला सशक्तिकरण का इतिहास बनाएंगे। लाड़ली बहना योजना के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपए का प्रबंध किया है। सरकार का प्रयास यह है कि विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से बहनों की मासिक आमदनी 10000 रुपए तक हो जाए। महिलाओं और बेटियों के सशक्तिकरण के लिए मुख्यमंत्री शिवराज ने अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये हैं जिसका प्रभाव धरातल पर हर जगह नजर आता है। लाड़ली बहना योजना के माध्यम से मुख्यमंत्री शिवराज महिलाओं को ये भरोसा दिलाने में कामयाब हुए हैं वे अपनी अंतिम सांस तक बेटियों , महिलाओं , बहनों के सम्मान के लिए काम करते रहेंगे।
Friday, 4 August 2023
वो नटखट,मधुर, चितचोर सभी का किशोर
प्राचीन परंपरा, संस्कृति और स्मृतियों को समेटे मध्यप्रदेश का खंडवा शहर मायानगरी किशोर कुमार की खूबसूरत स्मृतियों से भी जुड़ा है। उनका जन्म खंडवा, मध्यप्रदेश में 4 अगस्त 1929 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। उनके पिता कुंजलाल गांगुली, एक वकील थे और उनकी माँ, गौरी देवी, एक गृहिणी थीं। किशोर कुमार के चार भाई अशोक कुमार, अनूप कुमार, कुणाल कुमार और रतन कुमार थे। अशोक कुमार भाइयों में सबसे बड़े थे और भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता भी थे। किशोर कुमार ने भारतीय सिनेमा उस स्वर्णिम दौर में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारे के रूप में स्थापित हो चुके थे। उस दौर को याद करें तो सिनेमा में दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी, गुरुदत्त और रहमान जैसे कलाकारों के साथ ही पार्श्वगायन में मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का ही बोलबाला था।
किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म शिकारी (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें पहली बार गाने का मौका 1948 में बनी फ़िल्म जिद्दी में मिला जिसमें उन्होंने देव आनन्द के लिए खूबसूरत गाना गाया। किशोर कुमार के एल सहगल के विशिष्ट प्रशंसक थे इसलिए उन्होंने यह गीत उन की शैली में ही गाया। जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला। उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म 'आन्दोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई। 1954 में उन्होंने बिमल राय की 'नौकरी' में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपनी प्रभावकारी अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। इसके बाद 1955 में बनी "बाप रे बाप", 1956 में "नई दिल्ली", 1957 में "मि. मेरी" और "आशा" और 1958 में बनी "चलती का नाम गाड़ी" जिसमें किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया। यह भी मजेदार बात है कि किशोर कुमार की शुरुआत की कई फ़िल्मों में मोहम्मद रफ़ी ने किशोर कुमार के लिए अपनी आवाज दी थी। मोहम्मद रफ़ी ने फ़िल्म ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में किशोर कुमार को अपनी आवाज उधार दी तो मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया। काम के लिए किशोर कुमार सबसे पहले एस डी बर्मन के पास गए थे, जिन्होंने पहले भी उन्हें 1950 में बनी फ़िल्म "प्यार" में गाने का मौका दिया था। एस डी बर्मन ने उन्हें फिर "बहार" फ़िल्म में एक गाना गाने का मौका दिया और गाना बहुत हिट हुआ।
शुरू में किशोर कुमार को एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म "फंटूस" में दुखी मन मेरे गीत अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एस डी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया। आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'फंटूश', 'नौ दो ग्यारह', 'पेइंग गेस्ट', 'गाईड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेमपुजारी', 'तेरे मेरे सपने' जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया।
किशोर कुमार ने वर्ष 1940 से वर्ष 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान करीब 500 से अधिक गाने गाए। हिन्दी के साथ ही किशोर कुमार ने तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी गीत गाए। किशोर कुमार को उनकी गायकी के लिए आठ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले। पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1969 में अराधना फ़िल्म के गीत रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की विशेषता यह थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों। 1975 में आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना।
किशोर के गाये गाने संगीत प्रेमियों को झूमने के लिए मजबूर कर देते हैं। किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय किया और 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। फ़िल्म 'पड़ोसन' में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे। किशोर कुमार ने एक गायक के रूप में अपना करियर शुरू किया और जल्द ही भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे लोकप्रिय गायकों में एक अलहदा पहचान बनाने में सफल हुए। उनकी मधुर आवाज़ ने उन्हें घर -घर नई पहचान देने का काम किया। गायन के अलावा किशोर कुमार ने अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय जीत में फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” (1959) से “एक लड़की भीगी भागी सी”, फिल्म “आराधना” (1970) से “रूप तेरा मस्ताना” और फिल्म “सफर” (1971) से “जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर ” शामिल हैं।
किशोर कुमार को कला और संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1983 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया । यही नहीं 8 बार फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया । सही मायनों में किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक बेहद सफल गायक और अभिनेता थे। उनकी विशिष्ट आवाज़ और शैली ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। किशोर कुमार ने “हाफ टिकट”, “पड़ोसन”, “चलती का नाम गाड़ी” और “गोल माल” सहित कई लोकप्रिय फिल्मों में अभिनय और निर्देशन भी किया। अपने अभिनय और गायन कौशल के अलावा, किशोर कुमार ने अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया और अपने काम में एक अनूठा और रचनात्मक स्पर्श लाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। भारतीय फिल्म उद्योग में उनके योगदान ने उन्हें एक स्थायी और प्रभावशाली व्यक्ति बना दिया है और उन्हें अभी भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बड़ी प्रतिभाओं में से एक के रूप में याद किया जाता है।
किशोर कुमार को खंडवा से बेपनाह प्यार था। वो मुंबई से लौटकर वापस खंडवा बसना चाहते थे लेकिन नियति को कुछ और मजबूर था। किशोर कुमार खंडवे वाला छोरा तो उस समय हिट हो गया था । 58 साल की आयु में किशोर कुमार का निधन 13 अक्टूबर 1987 को में दिल का दौरा पड़ने से हो गया था। किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक अत्यधिक सफल और प्रभावशाली व्यक्ति थे जो पार्श्व गायक के रूप में अपनी अनूठी आवाज और शैली के साथ-साथ अपने अभिनय और निर्देशन कौशल के लिए जाने जाते थे। किशोर कुमार भारतीय सिनेमा में एक सदाबहार गायक के तौर पर आज भी याद किये जाते हैं। फिल्म उद्योग में उनके योगदान को आज भी दिल से सराहा जाता है।
Sunday, 30 July 2023
'टाइगर स्टेट ' का ताज फिर से मध्यप्रदेश के नाम
देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 785 पहुंच गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पिछली बार की गणना में मप्र में बाघों की आबादी महज 526 थी लेकिन अखिल भारतीय बाघ गणना जनगणना 2022 के अनुसार इस बार देश के मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में इस बार बहुत आगे निकल गया है। मध्यप्रदेश में साल 2020 के बाद 259 बाघ बढ़े हैं, जबकि दूसरे और तीसरे नंबर पर कर्नाटक (563) और उत्तराखंड (560) है। जारी आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे ज्यादा 785 बाघ मध्य प्रदेश में हैं।
बाघ एक शक्तिशाली जन्तु के रूप में एक खास पहचान के लिए जाना जाता है। इसकी दहाड़ अब मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी सुनाई देती है। मध्य प्रदेश न सिर्फ बाघों की संख्या के मामले में आगे रहा है, बल्कि सर्वाधिक बाघ भी मध्यप्रदेश में ही तेजी से बढ़ रहे हैं। राजधानी भोपाल के आसपास के शहरी इलाकों में भी 20 से अधिक बाघों की आवाजाही अब देखी जा सकती है। बाघों को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी तेजी से बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 2006 तक मध्यप्रदेश में केवल 300 बाघ थे, तो वहीं 2022 में यह आंकड़ा 785 तक पहुंच गया। वन्य जीवों के संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश की यह अब तक की सबसे बड़ी छलांग है।
मध्यप्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में भी पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में कुशल प्रबंधन और अनेक नवाचारी तौर तरीकों को अपनाया गया है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक कार्यक्रम समय समय पर भी चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। इस बार बांधवगढ टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह भारत के बाघ संरक्षण के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है जिसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती ।
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में प्रदेश के सभी राष्ट्रीय उद्यानों के कुशल प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। जहाँ एक तरफ राज्य सरकार ने भी हाल के वर्षों में गाँवों का विस्थापन कर एक बड़े भू-भाग को जैविक दबाव से मुक्त कराया है वहीँ संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के क्षेत्र का बड़ा विस्तार हुआ है। आज ये बड़े हर्ष की बात है कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का बड़ा क्षेत्र भी आज जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये गए हैं, जिससे वन्य-प्राणियों को नए- नए आशियाने मिल रहे हैं। पूरे देश में मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व सबसे बेहतर श्रेणियों में शामिल हैं। वर्ष 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट कोआधार बनाएं तो मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और सतपुड़ा उत्कृष्ट श्रेणी एवं पेंच, बांधवगढ़, पन्ना टाइगर रिजर्व को बहुत अच्छी श्रेणी और संजय टाइगर रिजर्व को अच्छी श्रेणी में रखा गया है।
जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व , संवेदनशील पहल के परिणामस्वरूप आज मध्यप्रदेश में वन्य जीवों के आशियाने तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रदेश में वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं । ख़ास बात ये है कि मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। प्रदेश में हाल के दिनों में 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की सघन उपस्थिति देखी गई , जहाँ पहले कभी बाघ नहीं दिखे। इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश आज देश में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है।
Thursday, 6 July 2023
जनजातीय समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ रही है शिवराज सरकार
मध्यप्रदेश में राजनीति की दिशा तय करने में जनजातीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है। पिछली सरकारों ने जनजातियों को प्रदेश में वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जिसके चलते जनजातीय नायकों को इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया जिसके वो वास्तविक हकदार थे। लम्बे समय तक मध्यप्रदेश का जनजातीय समुदाय अपनी तमाम विशिष्टताओं के बावजूद विकास की मुख्य-धारा से अलग-थलग रहा, पर अब यह स्थिति प्रदेश में तेजी से बदल रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश की जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। जनजातीय समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों ने राज्य में जनजातियों के नए दौर की शुरुआत कर दी है।
देश की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 8.63 है और मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय की संख्या तकरीबन एक करोड़ 53 लाख है, जो कुल आबादी का 21 फीसद से अधिक है। प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंड जनजातीय समुदाय बहुल हैं। राज्य विधानसभा की 47 सीटें और लोकसभा की 6 सीटें अनुसूचित जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 35 सीटें ऐसी हैं जिनमें जनजातीय मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही जनजातीय समुदाय को साधने की इस बार के चुनावों में एक बड़ी चुनौती है। प्रदेश में हुए चुनावों में जब भी जिस भी पार्टी ने इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत की वह सत्ता पाने में कामयाब रहा। सूबे के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जनजातीय समुदाय के बड़े वोटों को साधकर ही प्रदेश में अपनी वापसी की पटकथा लिखी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 में 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, तो वहीं भाजपा को सिर्फ 16 सीट पर सिमट गई जबकि 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर भाजपा को जीत मिली।
कोल जनजाति जिसका आज़ादी के आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है, मोदी सरकार ने 200 करोड़ रूपये की लागत से देशभर में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करवा रही है। जनजातियों के प्रमुख जननायक टंट्या भील मामा , भीमा नायक, ख्वाजा नायक, संग्राम सिंह, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, रानी कमलापति, बादल भोई, राजा भभूत सिंह, रघुनाथ मंडलोई भिलाला, राजा ढिल्लन शाह गोंड, राजा गंगाधर गोंड, सरदार विष्णु सिंह उईके जैसे जनजातीय नायकों को शिवराज सरकार ने पूरा सम्मान दिया है। शिवराज सरकार ने पातालपानी स्टेशन का नाम टंटया मामा के नाम पर रखा है। छिंदवाड़ा में बादल भोई जनजातीय संग्रहालय परिसर का निर्माण, जबलपुर में 5 करोड़ की लागत से राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह स्मारक, राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय का निर्माण जनजातियों के हितों के संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। शहडोल संभाग में केन्द्रीय जन-जातीय विश्व-विद्यालय का खुलना भी मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। जनजातीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छिंदवाड़ा में भारिया जनजाति, डिंडोरी में बैगा एवं श्योपुर में सहरिया जनजातीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना के प्रयास के लिए सामुदायिक भवनों का निर्माण कार्य भी तेजी से किये जा रहे हैं। शिवराज सिंह सरकार ने यूपीएससी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग की शुरूआत के साथ ही उनको पढ़ाई में स्कॉलरशिप देने की योजना भी शुरू की है जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं।
जनजातीय समाज के युवाओं के लिए प्रदेश के छिंदवाड़ा, शहडोल, मंडला, शिवपुरी एवं श्योपुर में कम्प्यूटर कौशल केन्द्रों की स्थापना हुई है जिससे वह अपना कौशल निखारकर स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं। जनजाति समुदाय को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार प्रतिबद्ध है। सामुदायिक वन प्रबंधन के अधिकार और पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से जनजातीय समुदाय का सशक्तिकरण हुआ है। पेसा कानून के तहत जो नियम बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार जनजातीय समुदाय को दिया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने प्रदेश में पेसा एक्ट लागू कर जनजातीय समाज को अधिकार सम्पन्न बनाया है। जमीन के साथ जंगल की उपज के लिए भी उनको अधिकार दिया गया है। जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में 3 नई योजनाएँ बिरसा मुण्डा स्व-रोज़गार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना लागू की गई है। विशेष पिछड़ी जनजातीय बैगा, भारिया, सहरिया, कोल समाज की बहनों को एक हजार रुपया प्रतिमाह आहार अनुदान दिया जा रहा है। इसी तरह जनजातीय बहुल क्षेत्रों में औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए देवारण्य योजना लागू की गई है। शिवराज सरकार द्वारा संचालित जनजाति कल्याण की विभिन्न योजनाओं से जहाँ जनजातीय समुदाय का सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास हुआ है और ये तीव्र गति से समाज की मुख्य-धारा में आ रहे हैं, वहीं इनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का व्यापक संवर्धन भी हो रहा है। प्रदेश में सभी जनजातीय नायकों की प्रतिमाएँ लगाने का काम भी चल रहा है। राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए साहूकार विनियम को लागू किया गया है।