अमोल गुप्ते हिन्दी सिनेमा जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे है........ अपनी एक्टिंग , निर्देशन , लेखन से उन्होंने बालीवुड में एक नया मुकाम बनाया है.... "स्टेनली का डिब्बा ", " भेजा फ्राई २" , " फंस गए रे ओबामा" जैसी मूवी में उन्होंने अपनी एक्टिंग का जहाँ लोहा मनवाया है वहीं "कमीने" जैसी मूवी में उन्हें शाहिदकपूर और प्रियंका चोपड़ा के साथ काम करने का मौका मिला....यहाँ उनके खलनायक के रोल को खासी वाहवाही मिली........२००७ में "तारे जमीं पर" जैसी सुपरहिट मूवी ने उनकी सफलता में चार चाँद लगा दिए ....इस फिल्म के लिए उनको "स्टार स्क्रीन अवार्ड" , "जी सिने अवार्ड" समेत कई अवार्डो से नवाजा जा चुका है...... अमोल को बच्चों के साथ काम करने में मजा आता है और वह बच्चों से जुडी कहानियो को परदे में लाने की कोशिशो में हमेशा जुटे रहते है..........
बीते दिनों मैंने उनसे बातचीत की ... प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश ......
शुरुवात आपकी मूवी तारे जमीन पर से ही करूँगा...... बहुत अच्छी मूवी थी.........इसने समाज में बदलाव लाने का काम किया है......आप इस बदलाव को किस रूप में देखते है?
उत्तर-- बिलकुल... आपसे सहमत हूँ.... आठवीं तक की परीक्षाएं रद्द हो गई हैं .... मार्किंग सिस्टम ख़त्म होने को है.. इसके बजाए ग्रेडिंग सिस्टम आ रहा है.... "तारे जमी पर" मूवी जिन दिनों आई उस दौरान मुझे कई सेमिनारो में भाग लेने का मौका मिला .. जहाँ भी गया वहां पर इस फिल्म को लेकर मुझे खासी सराहना मिली.... उस दौरान रेणुका चौधरी चाइल्ड एंड वेलफेयर मिनिस्टर थी..... उन्होंने तो बाकायदा उस सेमिनार में कई शिक्षको और प्राचार्यो के साथ घोषणा ही कर डाली कि अब हमें " बिफोर एंड आफ्टर "तारे जमीं पर " देखना ही होगा..... यह प्रभाव जो हुआ है वह एक बहुत बड़ा बदलाव है......
क्या आप इस बात को मानते है कि इस फिल्म के आने के बाद समाज में लोगो का रोल मोडल भी बदला है?
उत्तर-- बिलकुल.... हाँ, क्युकि जब किसी इंसान को शीशा दिखाया जाता है तो वह अपनी खूबियाँ देखने के साथ ही अपनी खामियां भी देखता है....और फिर उसी हिसाब से अपनी जिन्दगी को बदलने की कोशिश करता है......
क्या आप इस बात को मान रहे है कि तारे जमीं पर आने के बाद हमारे अभिवावकों की बच्चों के प्रति सोच भी पूरी तरह बदल गई है?उत्तर-- हाँ...... बहुत बड़े तरीके से बदली है.... क्युकि जिस तरीके से मुझे रेस्पोंस मिले चाहे लखनऊ के रिक्शा चलाने वाले हों, जो कभी स्कूल नहीं गए हों , उससे उतना फर्क नहीं पड़ा होगा जितना इस मूवी को देखने के बाद पड़ा ..... इस फिल्म को देखने के बाद अभिवावकों का अपने अपने बच्चों के प्रति नजरिया ही पूरी तरह से बदल गया..... अब वह अपने बच्चों को उनका एक अच्छा दोस्त मानने लगे है.... उसकी राय को आज अहमियत देने लगे हैं ...... यह एक बड़ी बात है.....
२१वी सदी के प्रथम दशक में कई और फ़िल्मी भी आई जिनमे मुन्ना भाई सीरीज है...आपकी तारे जमीं पर है..... थ्री इडियट है......... आपकी नजर में यह सब कैसी शिक्षा केन्द्रित मूवी रही हैं ?
उत्तर-- मेरे हिसाब से मैं मुन्ना भाई सीरीज से उतना सहमति नहीं रखता हूँ.... इस तरह की फिल्मों को हमारे समाज ने जल्द ही अब्जोर्व कर लिया.... मेरे ख्याल से इस सीरीज को आप ":ऋषिकेश मुखर्जी" वाले जोन में रख सकते है.... मैं ज्यादा इस पर बात नहीं करूँगा ...
"तारे जमीं पर" मेरी खुद की मूवी है.... मुझे बच्चों से विशेष लगाव रहा है.... और मैं बच्चों के साथ काम करता रहा हूँ......."तारे जमीं पर" मेरी खुद की मूवी रही है जिसमे रिसर्च के माध्यम से इस बात की कोशिश की कई है कि " एवरी चाइल्ड इज स्पेशल "..... यह काम मैंने मेनस्ट्रीम में रहने के बाद भी किया.... बहुत साफ़ कथानक रखा इसका.... ताकि फेमिली आये और आकर वह बच्चों का नजरिया चेंज कर सके.........
आप थियेटर से निकले है.... थियेटर से फिल्मों तक के अपने सफ़र को किस रूप में देखते है आप?
उत्तर--मैं अपने आप को इतना महत्व नहीं देता..... कोई बहुत बड़ा कलाकार नहीं समझता ..........मैं तो सिर्फ एक छोटा सा सिपाही हूँ .... इसी रूप में मुझे देखा जाना चाहिए....
आपकी मूवी के दौरान ऐसा देखा जाता है कि आप अपना सौ फीसदी देने की कोशिश करते है......वह क्या चीज है जो आप सबको यह करने की प्रेरणा देती है..... ?
उत्तर-- प्रेरणा तो बच्चे ही हैं ... उनकी कहानियो को परदे पर लाना मेरी पहली प्राथमिकता रही है और आगे भी रहेगी...... बच्चो के अन्दर झाँकने की फुर्सत किसी को नहीं है जबकि इस विषय पर कई अच्छी कहानियां हैं....
सुना है आप कोई एन.जी .ओ भी चलाते हैं ....?
उत्तर-- नहीं मैं एन. जी .ओ नहीं चलाता ...हाँ . इतना जरुर है मैं वोलिएंटर जरुर हूँ.... इस समय तकरीबन छह एन.जी. ओ में साधारण वोलिएंटर हूँ.... और मेरा ज्यादा समय और दिन वहीँ बीतता है.... मेरी पत्नी दीपा भी इस काम में मेरा साथ देती हैं.....
आपका अब अलग प्रोजेक्ट क्या है? क्या बच्चो को लेकर ही अगली फिल्म बना रहे है ?
उत्तर-- नहीं , ऐसा नहीं है....बच्चो को लेकर शायद ही बनाऊ लेकिन मेरा उनके साथ किया जाने वाला काम लगातार जारी रहेगा.......
आज थियेटर आम आदमी से दूर क्यों होता जा रहा है?
उत्तर-- आज के समय में मनोरंजन के कई साधन हो गए है.....बहुत सारे विकल्प हैं लोगो के पास ....मोबाइल है , टी वी है.... और अब तो घर घर में डी टी एच पहुच गया है.....
भारतीय सिनेमा की वर्तमान दशा पर आप क्या कहना चाहेंगे.......?
उत्तर-- आज का दौर गोविन्द निहलानी, ऋषिकेश मुखर्जी वाला दौर नहीं है.... समाज को अच्छा मेसेज देने वाली, अच्छी थीम वाली फिल्मे बहुत कम बन रही हैं... अगर बन भी रही है तो उनको उतना फोकस नहीं मिल पा रहा है.....आपका मीडिया भी उन फिल्मों को लाइट में कहाँ ला पाता है.....अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी ने आपके विदर्भ पर एक डॉक्युमेंट्री बनाई लेकिन उसको उतना प्रचार नहीं मिला.... आपका मीडिया भी इन सब चीजो का कहाँ दिखाता है.....किसान आत्महत्या की कितनी खबरे आपके समाचार पत्रों में सुर्खियाँ बन पाती है? वही बात है फिल्मों को लेकर भी ... एक जैसे हाल हैं.... मीडिया तो सलमान खान का डांस दिखाना ज्यादा पसंद करता है...
आपके क्या क्या शौक हैं ?
उत्तर-- मुझे बच्चो के साथ काम करने में मजा आता है... लिखने पढने का शौक है.....कभी कभी पेंटिंग भी कर लेता हूँ.....
मूवी नहीं देखते हैं क्या ..........हाल में आपने कौन कौन सी मूवी देखी......?
उत्तर-- हाँ, देखता हूँ....हाल ही में मैंने "राकस्टार " देखी..."डर्टी पिक्चर" देखी..... विद्या की एक्टिंग लाजवाब लगी......कोशिश करता हूँ हर फिल्म देखू लेकिन समय नहीं मिल पाता .... बहुत सारे कामों में व्यस्त रहता हूँ.....
आखरी सवाल, "तारे जमीं पर " जैसी सुपर हिट मूवी आपने बनाई लेकिन इसका सारा क्रेडिट आमिर खान ले गए..... यह सवाल कहीं ना कहीं मन को कचोटता है ?
उत्तर-- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है.....मैं क्रेडिट के लिए कोई मूवी नहीं बनाता .... जहाँ तक "तारे जमीं पर " का सवाल है तो मै आपको बताना चाहता हूँ आमिर खान इस मूवी के माध्यम से मेरा नाम बहुत दूर तक ले गए.... यह मेरी लिए बहुत बड़ी बात है..... फिल्म का जो मकसद था वो पूरा हुआ..... इस फिल्म के माध्यम से लोगो तक जो मेसेज पहुचना चाहिए था वह पहुँच गया....ये मेरे जैसे कलाकार के लिए कोई साधारण बात नहीं है......