Thursday 19 March 2015

इजरायल में जीत के नए नायक नेतन्याहू




इजरायल में हुए आम चुनाव में बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुद  पार्टी और उनके सहयोगी दलों को स्पष्ट जीत मिली है। उन्होंने सेंटर लेफ्ट जियोनिस्ट यूनियन के आइजेक हेजबर्ग पर जीत दर्ज की है।  साथ ही नेतन्याहू के रिकॉर्ड चौथी बार प्रधानमंत्री बनने का रास्ता खुल गया है। आम चुनावों में यह नेतन्याहू की यह जीत बहुत बड़ी है । चुनाव में शानदार जीत के बाद नेतन्याहू  ने कहा कि इजरायल में एक मजबूत सरकार बनाएंगे।  इससे पहले एग्जिट पोल के नतीजों में  नेतन्याहू  पिछड़ते नजर  आ रहे थे लेकिन जनता की नजर में नेतन्याहू जीत और भरोसे के नए नायक बनकर उभरे हैं ।  यह चुनाव इस मायने में भी ख़ास  रहा नेतन्याहू ने इस बार अपने को जनता से सीधे जोड़ने का प्रयास किया शायद यही वजह रही एंटी इन्कम्बेंसी की आहट दूर दूर तक नहीं सुनाई दी । 

 चुनाव प्रचार की तरफ उनका रुख  फिलिस्तीन को लेकर बेहद तल्ख़ रहा  । लिकुद  पार्टी ने इस चुनाव में देश कड़ी  सुरक्षा की वकालत की और ईरान के परमाणु कार्यक्रम  और फिलीस्तीनियों के साथ शांति प्रक्रिया में इजराइल के रुख के साथ किसी तरह के समझौते से साफ़ इंकार कर दिया था ।  इस चुनाव ने एग्जिट पोल की भी हवा इस मायने में निकाल दी कि लिकुद  पार्टी के खिलाफ हार का बड़ा माहौल लोगो के बीच बनाया गया लेकिन नेतन्याहू ने आखरी समय में चुनाव प्रचार का रुख खुद अपनी तरफ मोड़ने में सफलता प्राप्त की । अरब लिस्ट , जिओनिस्ट , कुलानू  , मेरेत्ज जैसी पार्टियो को पीछे छोड़ते हुए चौथी बार  प्रधानमंत्री बनने वाले इजरायल के पहले प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी अबकी बार  नेतन्याहू ने तोडा । जनता की अदालत में वह इजराइल के स्टार  नायक बनकर उभरे हैं ।  राजनीतिक पंडितो के भी तमाम पूर्वानुमान नेतन्याहू ने इन चुनावो में  धवस्त कर दिए  ।  नेतन्याहू की जीत पर वह भी चकित हैं  क्योंकि प्री-इलेक्शन पोल में हेजबर्ग की जियोनिस्ट यूनियन को चार-पांच सीट की बढ़त दिखाई गई थी जबकि लिकुद  पार्टी की 20 सीटें आने का अनुमान लगाया गया था लेकिन  नेतन्याहू के अतिराष्ट्रवादी इलेक्शन कैम्पेन ने चुनाव का खेल बदल दिया। उन्होंने इजरायल की जनता से वादा किया कि जब तक वह देश के पीएम बने रहेंगे फिलस्तीन कभी देश नहीं बन पाएगा और कोई भी अरब इजरायलियों का अपमान करने की हिम्मत नहीं करेगा शायद इस अपील ने उन्हें इस चुनाव में  लोगों को जोड़ने  का सीधा काम किया है  । 

 नेतन्याहू ने चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में  फलस्तीनी राज्य संबंधी अपनी पुरानी नीति को बदलने की बात कही थी।  इजरायली आम चुनावों परिणाम की अंतिम घोषणा होने के बाद 120 सदस्यीय संसद में नेतन्याहू की सत्तारूढ़ लिकुद पार्टी को 30 सीटें मिली हैं। इजाक हेजरेग के नेतृत्व वाली मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल जिओनिस्ट यूनियन को 24 सीटें मिली हैं। इजरायल के अभी तक के त्रिशंकु चुनाव परिणामों को देखते हुए लिकुद को मिली जीत को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पिछले आम चुनाव में महज 18 सीटें जीतने वाली लिकुद पार्टी के लिए 30 सीटों पर मिली जीत से  कार्यकर्ताओं के मनोबल में निश्चित ही इजाफा हुआ है । 

वहीँ इस जीत के बाद अब अमरीका के साथ नेतन्याहू  के रिश्तों में तल्खी आने के कयास  भी शुरू हो गए हैं । नेतन्याहू के जीतने के बाद अमरीका से आई पहली प्रतिक्रिया  से जैसे संकेत मिले हैं उसे दोनों मुल्को के बीच के सम्बन्धो के पटरी से उतरने के रूप में देखा जा रहा है ।    अमरीका ने  खुले तौर पर पहली बार  नेतन्याहू के चुनाव जीतने के लिए  अपनाए गए तरीकों की आलोचना की है । दरअसल इस समूचे दौर में अमरीका की आशंका इस बात को लेकर गहरा गयी  चुनाव प्रचार में नेतन्याहू ने जिस तरीके से कहा  अगर लिकुद  फिर से सरकार बनाने में सफल होती है तो फिलिस्तीन को अलग राष्ट्र  के निर्माण को मंजूरी नहीं देंगे । अमरीका शुरुवात से  दोनों राष्ट्रों के मसलो को हल करने में अपनी दिलचस्पी दिखाता रहा है लेकिन नेतन्याहू के हाल के समय में दिए गए बयानों से अब इजराइल  और अमरीका के बीच रिश्ते सामान्य रह पाने की उम्मीद कम ही है । 

 ईरान परमाणु समझौते को लेकर  नेतन्याहू ने ओबामा पर सीधा निशाना  हाल में साधते हुए कहा था  अमेरिका और ईरान में  परमाणु  समझौता  में  इजराइल  के लिए संकट पैदा कर सकता है । इजराइल शुरू से इस बात की लकीर खींचता रहा है ईरान पूरे विश्व के लिए आने वाले दिनों में बड़ा खतरा पैदा कर सकता है । हाल में नेतन्याहू ने  यह  भी कहा कि उनका देश  पश्चिम एशिया में मौजूदा हालात को देखते हुए फलिस्तीनियों के लिए जमीन नहीं छोड़ेगा क्युकि इससे  जमीन ईरान समर्थित इस्लामी चरमपंथियों के हाथ लग सकती है ।  हिलेरी ने  2009  में फलिस्तीनी राज्य के गठन का समर्थन जब  किया  तब भी  तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को  यह कतई मंजूर नहीं था। आज भी वह इस मसले पर टस से मस  नहीं हुए हैं ।  अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा के लाख  दखल देने पर भी नेतन्याहू ने फिलिस्तीन  राज्य के गठन को समर्थन देने से इनकार कर दिया है । अब इस नई  पारी में अगर हालत ऐसे ही रहे और दोनों पक्ष सुलह के  किसी निर्णय पर नहीं पहुँचते हैं तो आने वाले दिनों में इजराइल फिलिस्तीन विवाद  फिर से बढ़ने के आसार दिख रहे हैं ।  देखना होगा इस नयी पारी की चुनौतियों का सामना  बेंजामिन नेतन्याहू कैसे करते हैं ? 

Thursday 12 March 2015

लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे ?





 आज से  तकरीबन   एक दशक पहले सोनिया गांधी ने जब मनमोहन को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया  तो लोग मनमोहन की  साफगोई  के कायल थे । मनमोहन  ने आर्थिक सुधारो को नई हवा नरसिम्हा राव की  उस थियोरी  के आसरे देने की पहल शुरू की जिसमे आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक से लोन लेकर खुले बाज़ार तले बडा  खेल खेला गया जिससे पहली बार मध्यम वर्ग  मनमोहनी थाप पर नाचने को मजबूर हो गया जिसके चलते एक अलग चकाचौंध  दैनिक जीवन  मे देखने  को  मिले । खनन  से लेकर  टेलीकॉम को साधकर निजी कंपनियो के  खुले बाजार में ले जाने का जो नव उदारवाद   का खुला  खेल  नरसिंह राव की सरकार  के दौर में ही शुरु हुआ वही मनमोहन के दौर  में कारपोरेट घरानो के वारे न्यारे तक जा पहुंचा  जिसके केंद्र मे मुनाफ़ा कमाने  की जैसी होड  मची जिसने कमोवेश  हर चीज को खुले बाजार मे नीलाम कर दिया और अब संयोग देखिये इसी क्रोनी कैपिटेलिज्म  और खुले बाजार की नीतियों ने  कोयला घोटाले की आंच को  पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पहुंचा दिया है । दिल्ली की पटियाला कोर्ट ने कोयला घोटाले में मनमोहन सिंह को आरोपी बनाने का आदेश के साथ ही  मनमोहन सिंह को इस बाबत आरोपी के तौर पर समन भी भेजा गया है जिससे  कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गयी हैं । वहीँ  कोर्ट ने कोयला घोटाले में सीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया। साथ ही सभी आरोपियों को 8 अप्रैल को कोर्ट में पेश होने को भी कहा है। इस मामले में पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख, उद्योगपति कुमार मंगलम बिडला सहित अन्य तीन लोगों को भी कोर्ट ने समन भेजा है। सभी आरोपियों को आपराधिक षड़यंत्र के तहत समन भेजा है। गौरतलब है कि बिडला ने 7 मई 2005 और 17 जून 2005 को पीएमओ को पत्र लिखकर तालाबीरा 2 की कोयला खदान को हिंडालको को आवंटित करने की अपील की थी। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में ही यह साफ है कि कोयला मंत्री और कोयला सचिव अलग अलग भूमिका निभा रहे थे, लेकिन दोनों की ये मंशा थी कि हिंडाल्को को कोयला ब्लॉक दिये जाएं. 2004 में प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह ने करीब पांच साल तक कोयला मंत्रालय अपने पास रखा ।  इस दौरान कोयला आवंटन में बड़ी धांधलियां हुई ।  कोयला घोटाला 2012 में सीएजी की रिपोर्ट के बाद सामने आया।  सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए सरकार ने औने पौने दाम में कोयला खदानें बांटीं, जिसके चलते सरकारी राजस्व को अथाह नुकसान हुआ।  सीएजी और मीडिया रिपोर्टों के बाद एक याचिका को संज्ञान में लेते हुए सरकार को तलब किया ।  सरकार के इस रुख के बाद हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच का आदेश दिया. मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी हुई  । अगस्त 2014 में सर्वोच्च अदालत ने धांधलियों के चलते जुलाई 1993 के बाद हुए सभी कोयला खदान आवंटन अवैध घोषित कर दिए जिसके बाद जिसके बाद  कोल ब्‍लॉक आबंटन केस में नया मोड़ आ गया । सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार को कोयला घोटाले में एक बड़ा फैसला देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आरोपी के तौर पर सम्‍मन जारी किया है। जानकारी के अनुसार, ओडिशा में 2005 में तालाबीरा-2 कोयला ब्लाक आवंटन से जुड़े कोयला घोटाला के एक मामले में विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला, पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख और तीन अन्य को बुधवार को आरोपी के तौर पर सम्मन जारी किए और आठ अप्रैल को पेश होने के लिए कहा है।

सीबीआई के विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने आईपीसी की धाराओं 120 बी (आपराधिक साजिश) और 409 (किसी लोकसेवक, या बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात) तथा भ्रष्टाचार रोकथाम कानून (पीसीए) के प्रावधानों के तहत छह आरोपियों को कथित अपराधों के लिए सम्मन किया है। इन तीनों के अलावा अदालत ने मामले में हिंडाल्को, इसके अधिकारियों शुभेंदु अमिताभ और डी भट्टाचार्य को भी आरोपी के तौर पर सम्मन किया। दोषी ठहराए जाने पर आरोपियों को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। यह  मामला 2005 में हिंडाल्को को ओडिशा में तालाबीरा-2 कोयला ब्लाक आवंटन करने से जुड़ा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री के पास उस समय कोयला मंत्रालय का प्रभार था। बीआई ने आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) और पीसीए के प्रावधानों के तहत अपनी एफआईआर में कथित अपराध के लिए पारख, बिड़ला, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य अज्ञात लोगों का नाम लिया है। हालांकि, एजेंसी ने बाद में अदालत में क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी जिसे उसने मानने से इंकार कर दिया।

अदालत ने पिछले साल 16 दिसंबर के अपने आदेश में सीबीआई से पूर्व प्रधानमंत्री सिंह और उनके तत्कालीन प्रधान सचिव टीकेए नायर और तत्कालीन निजी सचिव बी वी आर सुब्रमण्यम सहित उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के कुछ शीर्ष अधिकारियों से पूछताछ करने को कहा था। पारख एवं हिंडाल्को ने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने कोई गलत काम किया है। यह आदेश जारी करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि मैं छह आरोपियों हिंडाल्को, शुभेंदु अमिताभ, डी भट्टाचार्य, कुमार मंगलम बिड़ला, पीसी पारख और डाक्टर मनमोहन सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 एवं 409 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 (1) सी तथा 13 (1, डी 3) के तहत हुए अपराध का संज्ञान ले रहा हूं। रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 (1, सी) लोकसेवकों द्वारा उन्हें सौंपी गई संपत्ति का दुरपयोग या किसी अन्य व्यक्ति को इसका दुरुपयोग करने की अनुमति प्रदान करने से जुड़ा है। धारा 13 (1, डी, 3) लोकसेवक द्वारा किसी व्यक्ति के लिए वित्तीय लाभ प्राप्त करने से जुड़ा है जिसमें कोई लोकहित शामिल न हो। 2005 में जब बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को ओडिशा के तालाबीरा द्वितीय और तृतीय में कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए थे, तब कोयला मंत्रालय का प्रभार पूर्व प्रधानमंत्री के पास था। दिसंबर महीने में सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में जांच एजेंसी की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और जांच की जरूरत पर बल देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया था।

इससे पहले 25 नवंबर को सुनवाई के दौरान स्पेशल सीबीआई जज भरत पाराशर ने सीबीआई से सवाल किया था कि उसने कोयला घोटाले के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछताछ क्यों नहीं की, जबकि हिंडाल्को को कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने के वक्त 2005-09 के दौरान सिंह ही कोयला मंत्री भी था।  भले ही कांग्रेस इस मामले में मनमोहन को पाक साफ़ बताये लेकिन  सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई  जांच में पहली बार ईमानदार पी एम कटघरे में 
खड़ा है । 

मनमोहन  की साफगोई का हर कोई  कायल रहा है । यू पी ए  -1  में  अमरीका  के साथ नाभिकीय करार को लेकर जहॉं  उन्होने वामपंथियो की घुड़की  से बेपरवाह होकर अपनी सरकार दांव पर लगा ड़ाली थी वहीं   यू पी ए  -2 में वह   गठबंधन धर्म के आगे लाचार  से दिखाई  देने लगे ।  इस दरमियान  प्रधान मंत्री ने गठबंधन धर्म की तमाम मजबूरियां गिनाने से भी  परहेज नहीं किया ।   यूपीए 2 शासन काल में एक के बाद एक  घोटालो की गुरु घंटाल  पोल  खुलती रही  । २जी, कामनवेल्थ , आदर्श,  कोयला ,हर बार पीएमओ की भूमिका  का अस्पष्ट रही । अन्ना आंदोलन हो या दामिनी  काण्ड  हर बार प्रधानमंत्री की चुप्पी  देश को खलती रही । मनमोहन हमेशा तमाशबीन बने रहे  । अन्ना आंदोलन के मसले को वह ठीक से हैंडल  नहीं कर सके वहीँ दामिनी के मसले पर ट्वीट करने में उन्हें हफ्ते लग गए । यूपीए सरकार में सत्ता के दो केंद्र रहे।  एकधुरी  की  कमान  खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संभाले थे  तो  दूसरी धुरी सोनिया गांधी रही जिनके हर आदेश  का  पालन करने की मजबूरी  मनमोहन के चेहरे  पर साफ़  देखी जा सकती थी  । यू पी ए 1  से ज्यादा भ्रष्ट्र यू पी ए 2  नजर  आया जहाँ एक से बढकर एक भ्रष्ट मंत्रियो की टोली मनमोहन सिंह की किचन  कैबिनेट को सुशोभित करती रही ।  वैसे  यू पी ए  2 ने तो भ्रष्ट्राचार के कई कीर्तिमानो को ध्वस्त कर दिया  जहाँ  सबसे ज्यादा ईमानदार  पी ऍम की ही  छवि  ख़राब हुई  ।     आदर्श सोसाइटी से लेकर कामन वेल्थ , २ जी स्पेक्ट्रम से लेकर इसरो में एस बैंड आवंटन , कोलगेट तक के घोटाले तो  केंद्र की सरकार की सेहत के लिए कतई अच्छे नही रहे जिनसे पूरी दुनिया में एक ईमानदार प्रधानमंत्री की छवि तार तार हो गयी और  कोलगेट  पर सी बी आई की दस्तक ने मनमोहन की नीतियों पर ना केवल सवालिया निशान लगा दिया है बल्कि ईमानदार प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर दिया है ।    मनमोहन भले ही अच्छे अर्थशास्त्री रहे  हों परन्तु वह एक कुशल राजनेता की केटेगरी में तो कतई नही रखे जा सकते और ना ही वह भीड़ को खींचने वाले नेता  रहे । 2009 के   लोक सभा चुनावो से पहले भाजपा के पी ऍम इन वेटिंग आडवानी ने मनमोहन के बारे में कहा था वह देश के सबसे कमजोर प्रधान मंत्री है । उस समय कई लोगो ने आडवानी की बात को हल्के  में लिया था  पर आज 7 आर सी आर से  मनमोहन सिंह की विदाई के बाद   पर यह बातें  सोलह आने सच साबित हो रही है ।

 मनमोहन सारे फैसले खुद से नही लेते थे ।  हमेशा सत्ता का केंद्र दस जनपद बना रहा  ।  व्यक्तिगत तौर पर भले ही मनमोहन की छवि इमानदार रही  परन्तु दिन पर दिन ख़राब हो रहे हालातो पर प्रधान मंत्री की  हर मामले पर चुप्पी से जनता में सही सन्देश नही गया । इकोनोमिक्स की तमाम खूबियाँ भले ही मनमोहन सिंह में रही हो पर सरकार चलाने की खूबियाँ तो उनमे कतई नही है | यू पी ए  २ में  पूरी तरह से दस जनपद का नियंत्रण बना रहा ।  मनमोहन को भले ही सोनिया का "फ्री हैण्ड" मिला हो पर उन्हें अपने हर फैसले पर सोनिया की सहमति  लेनी जरुरी हो जाती थी ।  दस जनपद में भी सोनिया के सिपैहसलार पूरी व्यवस्था को चलाते  थे ।


 चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारु की किताब 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह' ने  मनमोहन  की खूब फजीहत करवाई ।  इसकी नब्ज को  संजय बारु ने जिस अंदाज में पकड़ा  उससे यू  पी ए  सरकार के ईमानदार मुखिया मनमोहन सिंह  परहमले शुरू  हो गए  । एक ईमानदार  प्रधानमंत्री पहली बार कटघरे  में खड़ा रहा  ।      इस किताब के अनुसार मनमोहन सिंह एक दुर्बल मुखिया की तरह  रहे जिन्हे  महत्वपूर्ण फैसलों के लिए सोनिया गांधी का यस बॉस  बनना  पड़ा ।  लोक सभा चुनावो के  समय  इन आरोपों से विपक्ष के निशाने पर आई  कांग्रेस ने अपने बचाव में  पी एम के तत्कालीन  मीडिया सलाहकार  पंकज पचौरी का चेहरा सामने रखकर  अपना पक्ष जरूर रखा  जो मनमोहन के भाषणो की संख्या  और आर्थिक विकास के चमचमाते आंकड़े पेश कर यू  पी ए  2  के अभूतपूर्व विकास कहानी बताने  मे जुटी रही लेकिन  यूपीए २ के शासनकाल में हुए एक बाद एक घोटाले  जनता को यह  सोचने पर मजबूर कर देते हैं मनमोहन की  यह आखिरी  पारी कितनी विवादों से भरी रही ।  मनमोहन हमेशा से यह कहते रहे हैं कि वह गठबंधन धर्म  के आगे लाचार हैं अब  विदाई बेला में यह किताब मनमोहन की बेबसी के बोल बखूबी बोल रही थी । 


 संजय बारु के आरोपों  से भले ही तब पी एम ओ  पाला झाड़ लिया हो  लेकिन    विश्व के सबसेबड़े लोकतंत्र के एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की क्या मजबूरी रही हो यहतो कोई नहीं जान सकता  । कोलगेट पर बाद में  संजय बारु की किताब उन तमाम छिपे रहस्यों पर से पर्दा उठाती है जो यूपीए के दौरान घटे। इधर जाते जाते  संजय बारु का मामला ठंडा भी नहीं  हुआ था क़ि  पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख की किताब 'क्रूसेडर या कांसिपिरेटर' ने बाजार में आकर  बखेड़ा ही खड़ा कर दिया । पारेख पर नजर इसलिए भी थी  क्युकि सीबीआई ने  कोयला घोटाला मामले में पीसी पारेख को नोटिस भेजा।  2013 में सीबीआई नेपारेख समेत हिंडालको और अन्य अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।मामला दर्ज किए जाने के दौरान सीबीआई ने इस बात को भी स्वीकारा था सभी अधिकारी साल 2005 से कोलगेट  घोटाले में अप्रत्यक्ष रूप से शामिलहैं। पारेख के ऊपर आरोप लगाया गया  कि उन्होंने सिर्फ कथित तौर पर हीकोल ब्लॉक आवंटन किया है।जिसमे अन्य अधिकारियों ने भी उनका साथ दिया ।इस किताब में भी  पी एम ओ  पर निशाना साधा  गया । कोलगेट  पर लिखी गई  इस किताब  में तमाम नौकरशाहों और राजनीतिक  जमात  को कठघरे में रखा गया  जहाँ मनमोहनी बिसात फीकी पढ़ गयी ।  कोयले  की आंच पहली  बार सरकार में शामिल मंत्री से  लेकर  कॉरपोरेट घरानों तक गई जहां रिश्तेदारो को औने  पौने दामो पर  कोल ब्लॉक  आवंटित कर दिए गए । कैग की रिपोर्ट में जब कोयला आवंटन में हुई धांधली को उजागरकिया गया तब तत्कालीन नियंत्रक महालेखा परीक्षक विनोद राय की भूमिका परयूपीए ने सबसे पहले सवाल दागे जिससे यह सवाल बड़ा हो गया क्या यू पी ए  को  संवैधानिक  संस्थाओ पर   भरोसा नहीं रहा   ?    पारिख  के अनुसार पीएम मनमोहन  ने खुली निविदा के जरिए अगस्त 2004 में कोयला आवंटन की मंजूरी दी थी। मगर उनके दो मंत्रियों शिबू सोरेन और दसई  राव ने उनकी नीतियों का पालन नहीं किया ।   दोनों मंत्रियों के कार्यकाल में कोयला मंत्रालय में निदेशक पद परनियुक्ति के लिए भी घूस ली  जाती  थी । पारिख ने कहा उन्होंने सांसदों को ब्लैकमेलिंग और वसूली करते हुए खुद देखा । यू पी ए 2  के दौर में पानी सर से इतना नीचे बह चु का था कि  अधिकारियों के   लिए ईमानदारी से काम करना मुश्किल हो गया । पारिख ने किताब में कहा है  कोयला सचिव के रूप में उनके  कार्यकाल में जो भी उपलब्धियां हासिल की गईं वह  उस दौरान की गईं जब मंत्रालय मनमोहन सिंह के पास था। और अब सुप्रीम कोर्ट ने  मनमोहन के दरवाजे पर दस्तक देकर कांग्रेस की  सियासत को बैकफुट पर ला दिया है ।  मनमोहन की  साफगोई  और ईमानदारी के जिस तमगे  की दुहाई कांग्रेस हर मुश्किल देती  आई  है अब यह मनमोहनी ब्रह्मास्त्र भी फेल नजर  आ  रहा है । बड़ा सवाल अब मनमोहन से आगे का है ।  जहाँ बोफोर्स ने  राजीव गांधी की  लुटिया  को डुबो दिया वहीँ नरसिंह राव सियासी तिकड़मों और रिश्वत के आसरे 5  साल बचाने में ही लगे रहे  और अब मनमोहन के दामन पर कोलगेट के दाग ऐसे लग  हैं जिससे उबरना कांग्रेस के  लिए  मुश्किल  साबित हो सकता है । राहुल विदेश में चिंतन  करने  में लगे हैं वहीँ सोनिया की तबियत नासाज है । क्या अब  ऐसे  माहौल में कांग्रेस प्रियंका का  दाव  चलेगी  क्युकि गांधी परिवार ही हर मुश्किल  में तुरूप के इक्के के रुप मे आगे किया जाता रहा है ।    
                                   
कोलगेट पर पहली बार  12 ,तुगलक रोड से लेकर  15  रकाबगंज  रोड और 24 रोड  तक सन्नाटा पसरा है और पहली बार  कोलगेट  पर मनमोहन की  पेशी   ना केवल कांग्रेस को डरा रही है बल्कि  राजा  से रंक बनने की पटकथा भी आंखो से सीधा संवाद स्थापित  कर रही है जहाँ जश्न की बजाए कांग्रेस के हर दफ्तर  मे अब  घुप्प अंधेरा ही पसरा है । हमेशा की तरह  इस बार भी दांव पर गांधी परिवार नहीं ईमानदारी का तमगा लिए एक ईमानदार प्रधानमंत्री है शायद यही वजह है  भाजपा भी मनमोहन  को लेकर खूब चुटकी ले रही है रही है  और   बात को  कह रही है कांग्रेस ने इतने गुनाह किए हैं, सबका बोझ मनमोहन उठा रहे हैं।