Sunday 22 September 2024

सुशासन के संकल्पों को साकार करती 'मोहन सरकार '

शासन की संपूर्ण व्यवस्थाओं में जनता के प्रति जवाबदेही,पारदर्शिता और सेवा-भाव से सभी को समर्पित कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना सुशासन का मूलमंत्र है। भारतवर्ष में आदिकाल से ही सुशासन की परंपरा रही है। आदिकाल की इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व में मध्य प्रदेश  भी सुशासन के नए अध्याय लिख रहा है। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसम्बर 2023 को प्रदेश की बागडोर संभाली। उनके बागडोर संभालते ही प्रदेश में सुशासन का सूर्यादय हुआ है। प्रदेश सरकार सबका साथ-सबका विकास, सबका प्रयास और सबका विश्वास के मूलमंत्र को लेकर आगे बढ़ रही है। मुख्यमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में 9 माह की अल्पावधि में कई जनहितकारी फैसलों से समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए प्रदेश सरकार ने अनेक कदम उठाए गए हैं। सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति का प्रतिफल है कि आज प्रदेश के हर कोने में मोहन सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण  स्वच्छ और ईमानदार प्रशासन और सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाना रहा है। आम आदमी की जिंदगी में बदलाव लाना मुख्यमंत्री डॉ. यादव का मुख्य उद्देश्य है। अल्प अवधि में  मोहन सरकार ने जनता से किए गए वादे पूर्ण करने की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं, जिसके कारण प्रदेश में विकास का नया दौर शुरू हुआ है। सेवा, सुशासन, सुरक्षा एवं विकास के संकल्प को लेकर प्रदेश सरकार जनता की सेवा में दिन-रात लगी हुई है।  

मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने अपने छोटे से कार्यकाल में अपने काम से न केवल जनता का दिल जीता है बल्कि अपने सख्त निर्णयों के माध्यम से राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने भी अपनी अलहदा पहचान बनाने में सफलता पाई है। उन्होनें योग्य अफसरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देकर अपने बुलंद इरादों को सभी के सामने जता दिए। इस छोटे से कार्यकाल में उन्होनें अपनी खुद की नई टीम बनाई और सीएम आवास से लेकर मंत्रालय, संभाग और जिलों में बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करने से भी परहेज नहीं किया। हर समय एक्शन में रहने वाले डा. मोहन यादव के तेवरों को देखकर आज प्रदेश में पूरी नौकरशाही सहमी हुई है। मंत्रालय का वल्लभ भवन एक दौर में दलालों का अड्ड़ा बना था।  वहाँ पर भी ताबड़तोड़ तबादलों से मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने खलबली मचा दी । हर किसी अधिकारी  के ट्रैक रिकार्ड को न केवल  खंगाला बल्कि कार्यक्षमताओं के अनुरूप सभी को नए कार्यों का प्रभार सौंपा। ख़ास बात ये है इस सरकार में  बेलगाम नौकरशाही पर भी नकेल कसी गई है जिस कारण  मध्यप्रदेश का डबल इंजन विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। नए मुखिया की  तीव्र गति से निर्णय लेने की क्षमताओं से  मध्यप्रदेश में एक  बदलाव  की नई  बयार देखने को मिल रही है। नई विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था होने से अब प्रदेश के विकास कार्यों में न केवल तेजी आयी है बल्कि समय -समय पर  मॉनीटरिंग  किये जाने से जनता के हित में  तेजी से निर्णय लिये जा रहे हैं।

साइबर तहसील डिजिटल इंडिया की दिशा में प्रदेश के नागरिकों को सुविधा प्रदान करने की दिशा में की गई बड़ी पहल है। इसके जरिए लोगों को कई कामों को करने में आसानी हुई है। खासतौर से  भूमि या भूखंड खरीदी बिक्री के बाद आने वाली कठिनाइयों को साइबर तहसील के जरिये काफी आसान कर दिया गया है।  इससे लोगों को भाग दौड़ से निजात मिल रही है और समय की भी बचत हो रही है। साइबर तहसील खोले जाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और लोगों को सुविधा पहुंचना है।  साइबर तहसील बनने के बाद रजिस्ट्री होने पर बिना किसी आवेदन के नामांतरण प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। साइबर तहसील में सार्वजनिक नोटिस की प्रक्रिया को भी सरल किया गया है। क्रेता- विक्रेता और गांव के निवासियों को एसएमएस के माध्यम से सार्वजनिक नोटिस जारी किया जाता है। इसके अलावा आपत्तियों को लेकर भी ऑनलाइन प्रक्रिया का पालन किया जाता है। एसएमएस में 10 दिनों के अंदर ऑनलाइन आपत्तियां दर्ज करने के लिए लिंक भी प्रदान किया जाता है। साइबर तहसील में पटवारी की सकारात्मक रिपोर्ट और कोई आपत्ति नहीं होने पर तुरंत नामांतरण आदेश जारी किया जाता है।  इसके अलावा भू अभिलेख अपडेट करने को लेकर भी रियल टाइम में तुरंत खसरा, नक्शा जैसे भू अभिलेख ऑनलाइन दर्ज हो जाते हैं। इतना ही नहीं प्रमाणित प्रति भी व्हाट्सएप और ईमेल के माध्यम से तुरंत भेज दी जाती है।   

मुख्यमंत्री की शपथ लेने के तुरंत बाद डा. मोहन यादव का पहला फैसला मध्यप्रदेश में धार्मिक स्थानों पर जोर से लाउड स्पीकर बजाने और खुले में मांस और अंडे की बिक्री पर सख्ती से रोक का रहा। इस फैसले का सभी ने तहे दिल से स्वागत किया। अपराधियों के घरों पर मोहन  सरकार  भी अपनी बुलडोजर नीति पर चल रही है जिससे अपराधियों के मन में खौफ बैठ गया है।मुख्यमंत्री डा.मोहन नई बसाहट के साथ  काम करना चाहते हैं जो त्वरित निर्णय ले सके। 

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में पहली बार हुकुमचंद मिल इंदौर के 4 हजार 800 श्रमिकों को उनका हक दिलाया। तीस वर्ष से अटके इस मामले को डॉ. मोहन यादव ने एक ही बैठक में निपटा दिया। मध्यप्रदेश  सरकार, राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार के बीच 28 जनवरी को श्रमशक्ति भवन स्थित जल शक्ति मंत्रालय के कार्यालय में संशोधित पार्वती-कालीसिंध-चंबल-ईआरसीपी लिंक परियोजना के त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए जिससे मध्यप्रदेश के चंबल और मालवा अंचल के 13 जिलों की आम जनता को मिलेगा। कई बरसों से लटके इस मामले को  मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने जयपुर में एक ही बैठक में निपटा दिया। 

मप्र में राजस्व महाअभियान चला जिसमें  सीएम के निर्देश पर लाखों  प्रकरणों का निपटारा हुआ। अभियान्तर्गत डिजिटल क्रॉप सर्वेक्षण भी किया गया। किसानों और आमजन की सहूलियत के लिये पटवारी अपने  दायित्वों का निर्वहन  कर रहे हैं। अविवादित नामांतरण प्रकरणों का निराकरण 30 दिन में, विवादित नामांतरण प्रकरणों का निराकरण 150 दिन में किया जायेगा। बंटवारा प्रकरणों के निराकरण की समय-सीमा 90 दिन है और सीमांकन प्रकरणों को 45 दिन में निराकृत करने के निर्देश दिये गये हैं। राजस्व महाअभियान में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारी कर्मचारियों को अब प्रदेश में  सम्मानित भी किया जा रहा है। राजस्व महा अभियान में  सही ढंग से मॉनीटरिंग भी की जा रही है। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने श्रीराम पथ गमन न्यास की पहली बैठक में  अयोध्या की तर्ज पर  चित्रकूट में भी विकास कार्य करवाए जाने की बड़ी घोषणा की। जिन स्थानों से भगवान राम गुजरे और कृष्ण के कदम जहाँ जहां पड़े , सरकार ने उन स्थानों को सड़क मार्ग से जोड़ने का  ऐलान कर सनातन प्रेमियों का दिल जीतने का काम किया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत 2047 के विजन को आगे बढ़ाने के लिए मध्यप्रदेश की डॉ. मोहन यादव की सरकार ने  महाकाल की नगरी  उज्जैन, जबलपुर  ग्वालियर में ‘रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव’ के सफल आयोजन किया जिसके माध्यम से प्रदेश में बड़ा निवेश आया है और रोजगार की दिशा में मोहन सरकार का यह बड़ा कदम है। किसानों के कल्याण के लिए मध्य प्रदेश सरकार  संकल्पित  नजर आती है। उसने सदैव किसानों की चिंता की है।  मोहन सरकार ने सोयाबीन के दाम 4892 रुपए समर्थन मूल्य पर करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था जिसे मोदी सरकार ने पास कर दिया है।  हाल ही में मध्यप्रदेश को फिर से  सोया स्टेट का दर्जा भी मिला है। मध्य प्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र को पीछे छोड़कर सोया स्टेट बना है।  

मध्यप्रदेश के गरीब और मध्यमवर्ग के परिवारों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा परिवार में कोई सदस्य  अगर बीमार पड़ गया तो उसे एयर एम्बुलेंस जैसी सुविधा मिलेगी लेकिन डॉ. मोहन ने अपने कार्यकाल में प्रदेश की जनता को इसकी  बड़ी सौगात दी।  मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने अपने गुड गवर्नेंस के मॉडल को सभी के सामने पेश किया है जिसमें जनता  के हितों की अनदेखी होनी  फिलहाल तो मुश्किल दिखाई दे रही है। नया 'मोहन मॉडल 'सबकी जुबान पर चढ़ रहा है। एमपी की जनता भी उनके  निर्णयों पर हामी भरती नजर आ रही है। पक्ष और विपक्ष भी उनकी नीतियों और काम करने के अलहदा अंदाज का का तोड़ नहीं निकाल पा रहा है। मोहन सरकार की अब तक की दिशा देखकर स्पष्ट नजर आता है कि वह  पार्टी के संकल्प पत्र में किये गए वायदों को पूरा करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संचालित योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन  और मोदी की हर गारंटी पूरा करने के लिए डॉ. मोहन यादव ने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। हालाँकि सरकार का 9 माह का कार्यकाल बहुत छोटा होता है लेकिन मोहन यादव ने अपने छोटे से कार्यकाल में इस बात को प्रदेश के भीतर स्थापित कर दिया है उन्हें कमतर आंकने की भूल कोई भी नहीं करे, वह मध्यप्रदेश की राजनीती नहीं बल्कि देश की सियासत में भी लम्बी रेस के घोड़े साबित होंगे।

Saturday 21 September 2024

पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अनुष्ठान है श्राद्ध

पूर्वजों की आत्मा की शांति पूजा के लिए वर्ष के 15 दिन बहुत खास माने जाते हैं, इन्हें पितृ पक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृलोक से धरती लोक पर आते हैं इसलिए इस दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान आदि करने का विधान है।  पितृ पक्ष में सोलह श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और पूर्वज परिजन को खुशहाली का आशीर्वाद  देते हैं।  मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों का ऋण चुकता हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।वह परिवारजन को खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।  

ऋषियों ने हमारे संपूर्ण जीवन चक्र को सोलह संस्कारों में बांधा है। जहां गर्भदान  प्रथम संस्कार है वहीँ  अंत्येष्टि अंतिम। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में मनुष्यों पर उत्पन्न होते ही तीन ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है इसलिए पितृ पक्ष के दौरान भक्ति पूर्वक तर्पण (पितरों को जल देना) करना चाहिए।

हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह प्रक्रिया पितरों (पूर्वजों) के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शाति मिलती है और उनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।  पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान बड़ी संख्या में किया जाता है।  सही मायनों में कहा जाए तो श्राद्ध का उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्ति प्रदान करना है। मान्यता है कि पितरों का आशीर्वाद न मिलने से रक्त संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार में समस्या आ सकती है।  ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से हम पितरों को जल. अन्न और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं, जिससे उनको आत्मा संतुष्ट होती है।   विशेष रूप से पितृ पक्ष (सोलह श्राद्ध) में यह प्रक्रिया को जाती है।  

 भारतीय पुराणों में तीन ऋणों का उल्लेख है- देव ऋण , मनुष्य ऋण और पितृ ऋण।   देव पूजन जितना आवश्यक है पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।   सभी 18 महापुराणों में श्राद्ध, तर्पण और पितरों के पूजन का विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है।  शास्त्रों में विशेष तिथि श्राद्ध के दिन दैहिक कर्म करने के बाद विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं जैसे कि एकोदिष्ट श्राद्ध, नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, सोरस श्राद्ध (सोलह बाद्ध) और महालय श्राद्ध इन्हें समय-समय पर किया जाना चाहिए क्योंकि पितरों की अपेक्षाएं और भावनाएं हमारे साथ जुड़ी होती हैं।यदि पितर अतृप्त होते हैं तो उनके रक्त संबंधी या करीबी को प्रभावित करते हैं जिससे उन्हें समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। श्राद्ध के प्रतीक कुश, तिल, गाय, कौआ, कुत्ते को श्राद्ध के तत्व के प्रतीक के रूप में माना जाता है । कुश के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु,मूल भाग में भोलेशंकर भगवान का निवास माना गया है ।कौआ  यम का प्रतीक है जो दिशाओं का फलक बताता है। गौ माता तो हिंदू धर्म में सारी वैतरणी को पार लगाने वाली माता के रूप में देखा जाता है। दिन की शुरुआत से पहले गाय को पहली रोटी देने की परम्परा अपने देश में बरसों से चली आ रही है।  

 धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष  या श्राद्ध पक्ष में दान का विशेष महत्व माना गया है जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कहते हैं पितृ पक्ष के इन 15 दिनों में अपने पितरों के नाम का दान जरूर करना चाहिए जिससे महापुण्य की प्राप्ति होती है लेकिन कुछ ऐसी भी चीजें हैं जिनका पितृ पक्ष में दान नहीं करना चाहिए।  पितृ पक्ष में लोहे से बने बर्तनों का कभी भी दान नहीं करना चाहिए इसके अलावा आप चाहें तो पीतल, सोने और चांदी के बर्तनों का दान कर सकते हैं।  पितृ पक्ष में चमड़े से बनी चीजों या वस्तुएं का इस्तेमाल निषेध है। माना जाता है कि पितृ पक्ष में चमड़े का प्रयोग बहुत अशुभ होता है।  

इसके अलावा, पितृ पक्ष में पुराने कपड़े भी दान में देना अच्छा नहीं माना जाता है। पितृ पक्ष में हमेशा ब्राह्मणों को नए वस्त्र ही दान करने चाहिए।   हिंदू पूजा और सभी अनुष्ठानों में काले रंग का इस्तेमाल करना निषेध होता है, साथ ही अशुभ भी होता है इसलिए पितृ पक्ष में काले रंग के वस्त्र दान करने से बचें। पितृ पक्ष में किसी भी तरह का तेल दान में नहीं करना  चाहिए। सरसों के तेल के दान से बचना चाहिए।इसी तरह से  श्राद्ध पक्ष में पितरों को सिर्फ शुद्ध एवं ताजा भोजन ही अर्पित करना चाहिए।  पितरों को गलती से भी झूठा या बचा खाना नहीं देना चाहिए।  पितृ  पक्ष में अगर कोई जानवर या पक्षी आपके घर आए, तो उसे भोजन जरूर कराना चाहिए। मान्यता है कि  है कि पूर्वज इन रुपूण में कभी भी आपके घर आ सकते हैं। हमारे पुराने घरों में चिड़ियाँ को दाना डालने की भी पुराणी परंपरा रही है।  पितृ  पक्ष में पत्तल पर भोजन करें और ब्राह्राणों को भी पत्तल में भोजन कराएं, तो यह फलदायी होता है।  पूजा-अनुष्ठान, उद्यापन, कथा, विवाह आदि में चाहे ब्राह्मणों की परीक्षा न करें, लेकिन पितृ कार्य में अवश्य करें। समस्त लक्षणों से युक्त, हाथ का सच्चा, व्याकरण का विद्वान, शील एवं सद्गुणों से युक्त, तीन पीढ़ियों से विख्यात ब्राहाणों के द्वारा संयत रहकर श्राद्ध सम्पन्न करे तो यह परिवार के लिए फलदायी रहता है ।

 श्राद्ध पांच प्रकार के होते हैं जिनमें पितृपक्ष के श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाते हैं। इन में अपराह्न व्यापिनी तिथि की प्रधानता है। जिनकी मृत्यु तिथि का ज्ञान न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। श्राद्ध हमेशा मृत्यु होने वाले दिन करना चाहिए। अग्नि में जलकर, विष खाकर, दुर्घटना में या पानी में डूबकर, शस्त्र आदि से जिनकी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चर्तुदशी को करना चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष में सनातन संस्कृति को मानने वाले सभी लोगों को प्रतिदिन अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना चाहिए, इससे पितर संतृप्त हो कर हमें आशीर्वाद देते हैं। आज की नई पीढ़ी इन सब चीजों को ढकोसला बताती है जो सही नहीं है।  भारतीय कर्मकांड को आज  विज्ञान  भी मान रहा है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए महापर्व का समय है। इसमें ये पिंडदान और तिलांजलि की आशा लेकर पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए श्राद्ध का कभी भी परित्याग न करें, अपने पितरों को संतुष्ट जरूर करें तभी आपके जीवन में खुशहाली  आ सकती है ।

 पुराणों में भी श्राद्ध और तर्पण का विशेष  उल्लेख मिलता है।  विष्णु पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महत्त्व बताया गया है।  इसमें कहा गया है कि पितरों को अर्पित जल और अन्न से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।  इसी तरह से  ब्रह्म पुराण  में  पितरों के लिए श्राद्ध की विधियों का विवरण इस पुराण में मिलता है जिसमें  यह भी बताया गया है कि पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशेष तिथि पर श्राद्ध करना आवश्यक है।  शिव पुराण में श्राद्ध की प्रक्रिया और इसके लाभों का उल्लेख मिलता है।  भागवत पुराण में पितरों के तर्पण और श्राद्ध की विधियां और उनका महत्व वर्णित है।  इसमें पितरों को अर्पित सामग्री की विधि भी बताई गई है।  मत्स्य पुराण में  पितरों के श्राद्ध की विभिन्न विधियों, जैसे एकोदिष्ट और नित्य श्राद्ध, का विवरण इस पुराण में मिलता है।  नारद पुराण में भी पितरों के प्रति श्राद्ध की विधियां और इसके महत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है।  वामन पुराण में  पितरों के श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है जिसमें पितरों को शांति देने के उपाय बताए गए हैं। कूर्म पुराण में  पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए श्राद्ध की प्रक्रियाओं का वर्णन  किया गया है।  इसी तरह से लिंग पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण की विधियों का वर्णन किया गया ‌ है और यह बताया गया है कि इससे पितरों को शांति मिलती है।गरुड़ पुराण, श्रीभगवत पुराण, सत्यम्बुधि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्मृति पुराण, प्रदीप पुराण, अग्नि पुराण, श्री भागवत पुराण और कालिक पुराण में भी पितरों के श्राद्ध की विधियां, आत्मा को शाति देने के लिए प्रक्रियाओं और धार्मिक महत्व के बारे में बताया गया है।

 आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि को (मृत्यु किसी भी मास या पक्ष में हुई हो) जल, तिल, चावल, जौ और कुश पिंड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से उनका श्राद्ध करना, गौ ग्रास निकालना और उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता हमें जीवन में पितृ ऋण और पितृ दोषों से मुक्त करा देती है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों की आज्ञा का पालन और उनके लिए श्राद्ध करना संतान की सार्थकता को सिद्ध करता है। यह भी कहा गया है कि एक बार गया श्राद्ध करने से संतान होना सार्थक होता है. पितरों के निमित्त श्राद्ध एक महत्वपूर्ण अंग है, जो परिवार में शांति और समृद्धि का कारण बनता है।  श्राद्धकर्ता  को पितृपक्ष में क्षौर कर्म यानी बाल या नाखून नहीं कटवाने चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन, पान खाना, किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन, तेल मालिश और परान्न भोजी ये सात बातें श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं। श्राद्ध के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करें।      



Thursday 19 September 2024

प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता के संकल्पों को साकार कर रहा है मध्यप्रदेश



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता  भारत मिशन के संकल्प को साकार करने के दिशा में मध्यप्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति की है।  मध्यप्रदेश ने इस मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य भारत को साफ-सुथरा बनाना है, जिसमें प्रमुख रूप से खुले में शौच से मुक्ति और ठोस और तरल कचरे का उचित प्रबंधन शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू हुए इस मिशन के तहत मध्यप्रदेश ने अपने स्वच्छता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ठोस नीतियां और योजनाएं बनाई हैं। 

 प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिवस  17 सितंबर से “स्वच्छता ही सेवा-2024” अभियान शुरू हुआ है जो इस वर्ष  गांधी जयंती तक पूरे प्रदेश में चलाया जाएगा। यह अभियान ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ थीम पर केन्द्रित है  जिसमें जन-भागीदारी के अभियान से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने की कोशिश रहेगी। स्वच्छता अभियान में इस वर्ष  स्थानीय निकायों की भागीदारी पर भी विशेष जोर  सरकार द्वारा दिया गया है। स्वच्छता को जन -जन अपने व्यवहार में आत्मसात करे , इस हेतु  प्रदेश में वृहद स्तर पर विभिन्न गतिविधियाँ  भी संचालित की  जा रही हैं । प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है  कि प्रदेश में स्वच्छता ही सेवा अभियान की इस वर्ष की थीम स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता रखी गई है। 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान के शुभारंभ अवसर पर मंत्रीगण अपने-अपने प्रभार के जिलों में शामिल हुए हैं  जिसने इस अभियान को  एक नई गति देने का काम किया है। अभियान की शुरूआत में 17 सितम्बर को प्रदेश में किफायती दाम पर दवाईयाँ उपलब्ध कराने वाले जनऔषधि केन्द्रों का शुभारंभ भी किया गया । 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान का समापन 2 अक्टूबर "महात्मा गांधी जयंती" पर प्रदेश भर में होगा। इस दिन महात्मा गांधी के स्वच्छता संबंधी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास किये जायेंगे। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों से ऑनलाइन अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने का प्रयास होगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर सफाई कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि, सफाई कर्मचारियों को स्टार रेटिंग प्रणाली के आधार पर पुरस्कृत किया जाएगा। खास बात यह है कि सफाई कर्मचारियों द्वारा अर्जित प्रत्येक स्टार के लिए उन्हें एक हजार रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। यानी एक स्टार पाने वाले कर्मचारी को एक हजार रुपए और सात स्टार पाने वाले प्रत्येक कर्मचारी को सात-सात हजार रुपए दिए जाएंगे।

मध्यप्रदेश ने खुले में शौच से मुक्ति प्राप्त करने में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। राज्य ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शौचालय निर्माण पर जोर दिया है। पंचायतों और नगरपालिकाओं के सहयोग से, हजारों व्यक्तिगत स्वच्छता शौचालयों का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही, स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए व्यापक अभियानों का संचालन भी किया गया है। वर्ष 2014 से वर्ष 2019 तक सरकार और जनता की सक्रिय भागीओदारी के माध्यम से प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन के तहत पहले चरण में 70 लाख से अधिक घरों में नए शौचालय बने जिससे सभी 51 हजार ग्राम तय समय सीमा से पहल खुले में शौच से मुक्त हुए।  इस अभियान में 50 हजार से अधिक स्थानीय स्वच्छताकर्मियों  ने प्रेरक भूमिका निभाई।  इसी तरह प्रदेश में वर्ष 2020 से स्वच्छ भारत का दूसरा चरण शुरू हुआ जिसमें 2024 तक सरकार ने सभी ग्रामों को शौच से मुक्त बनाये रखते हुए ठोस और तरल अपशिष्ट के प्रबंधन मॉडल द्वारा मॉडल श्रेणी में ओडीएफ प्लस बनाने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिए प्रदेश में अभी तक 8  लाख से अधिक नए शौचालय बनाने के साथ ही 16 हजार से अधिक सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनाये गए और 41 हजार से अधिक गाँवों को ओडीएफ प्लस मॉडल बनाया गया है।  मध्यप्रदेश ने ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। राज्य सरकार ने कचरे को सेग्रीगेट करने, उसका पुनर्चक्रण करने, और उसे कम करने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। खासकर बड़े शहरों जैसे भोपाल, इंदौर, और जबलपुर में स्वच्छता प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए उन्नत तकनीकों और प्रणालियों का उपयोग किया गया है। 25 हजार से अधिक स्वच्छता मित्रों को इस कार्य में शामिल किया गया साथ ही 900 स्वसहायता समूहों को शामिल करने के साथ ही उनकी आजीविका में भी वृद्धि हुई। वर्तमान में प्रदेश के भीतर ग्रामों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एमआरएफ  बनाये जा रहे हैं जिसमें  शहरी निकायों का भी निरंतर सहयोग मिल रहा है। पशुओं के गोबर से खाद और बायो गैस बनाने की दिशा में गोवर्धन योजना से भी  विशेष लाभ मिल रहा है।  

 इंदौर की गिनती आज देश के सबसे स्वच्छ शहरों में अगर हो रही है तो इसका कारण स्वच्छता का संकल्प ही रहा है जिसने कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई है। इंदौर ने देश में हुए 'स्वच्छता सर्वेक्षण' में लगातार सातवीं  बार  शीर्ष स्थान प्राप्त किया है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ के नागरिक और प्रशासन दोनों मिलकर स्वच्छता के लिए प्रतिबद्ध हैं। इंदौर को साफ बनाने में वहां के  नगर निगम जनभागीदारी की  बड़ी भूमिका रही है। आज इंदौर की सफाई प्रणाली पूरे देश को प्रेरणा देने का काम कर रही है। इंदौर शहर से निकले वाले कचरे से गैस  बनाई जाती है जिससे शहर में सीएनजी बसों का परिचालन होता है। कचरे से गैस बनाने के लिए इंदौर में एशिया का सबसे बड़ा प्लांट है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।

एमपी के जन- भागीदारी मॉडल ने  हाल के वर्षों में देश में  विशेष पहचान  बनाई है।  स्वच्छता के उद्देश्यों को साकार करने में मध्यप्रदेश के नागरिकों की भागीदारी भी बड़ी महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश ने स्थानीय समुदायों को स्वच्छता अभियानों में शामिल करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। स्वच्छता संबंधी कार्यशालाएं, जागरूकता अभियानों और स्कूलों में स्वच्छता शिक्षा जैसी विशिष्ट पहल के माध्यम से, राज्य ने नागरिकों को इस मिशन में सक्रिय भागीदार बनाया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से  'एक पेड़ माँ के नाम' जैसे  पौध-रोपण के कार्यक्रम भी  प्रदेश के हर कोने में आयोजित किए जा रहे हैं जिसका लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। स्वच्छता संबंधी चुनौतियों के  समाधान हेतु राज्य सरकार ने  स्मार्ट सिटी परियोजनाओं और कचरा निस्तारण के लिए नई तकनीकों का भी उपयोग किया है। मध्यप्रदेश सरकार भविष्य में स्वच्छता मिशन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई योजनाएं बना रही है। सतत विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार  डिजिटल तकनीक, नवाचार और जनभागीदारी के मॉडल के जरिये अपने स्वच्छता लक्ष्यों को  साकार करने की दिशा में तेजी से अग्रसर है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के स्वच्छता संकल्प को साकार करने के लिए मध्यप्रदेश ने उत्कृष्ट प्रयास किए हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्य की योजनाएं और पहल न केवल स्वच्छता के मानक स्थापित कर रही हैं, बल्कि  आम नागरिकों के जीवन स्तर को भी ऊपर उठाने का काम कर रही है। मध्यप्रदेश की प्रतिबद्धता और योजनाओं से यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से  राज्य भविष्य में स्वच्छता के क्षेत्र में और भी नई ऊँचाइयों को छूने के लिए तैयार है।

Wednesday 31 July 2024

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश की धमक और चमक बरक़रार






 मध्यप्रदेश को भी प्रकृति ने न केवल मुक्त हस्त से संवारा है बल्कि नैसर्गिक सौंदर्य और हरियाली से आच्छादित किया है, वहीं प्रदेश सरकार ने भी वन्य प्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान देकर इसे वन्य प्राणी समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले डेढ़ दशक के दौरान श्रेष्ठ और सतत वन्य प्राणी प्रबंधन के प्रयासों से  चलते आज मध्यप्रदेश देश और दुनिया में अग्रणी प्रदेश बना है । यह गर्व की बात है कि देश के 'हृदय प्रदेश ' मध्यप्रदेश को लगातार तीन बार  टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस  29 जुलाई को प्रतिवर्ष  मनाया जाता है।  विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था।  इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे।  इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है।  मध्यप्रदेश में पिछली गणना के अनुसार 785  बाघ हैं, जो देश में सर्वाधिक  हैं। इसके बाद 563 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे और 560 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है।  

मध्यप्रदेश के कुछ बाघ ऐसे हैं, जो देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। मुन्ना, कॉलरवाली, सीता, चार्जर, बामेरा और टी1 यह कुछ ऐसे नाम हैं जो अपनी विशेषताओं के  चलते अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं।  पर्टयक दूर-दूर से इन्हें देखने आते हैं और अलग  तरह का अनुभव लेते हुए खुद को बड़े रोमांचित महसूस करते हैं । कान्हा टाइगर रिजर्व का मुन्ना ऐसा बाघ रहा जिसने 20 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा। वह अपनी सुंदरता के साथ माथे पर बने बर्थ मार्क के कारण पूरे देश में चर्चा में रहा। वह पर्यटकों के बीच इतना लोकप्रिय रहा  कि देश में सबसे ज्यादा खींची गई बाघों की तस्वीरों में उसकी भी तस्वीर शामिल है। पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन जिसे कॉलरवाली बाघिन के नाम से पहचान मिली, यह नाम रेडियो कॉलर लगाने के कारण दिया। इसे पेंच की सुपरमॉम के रूप में भी जाना जाता रहा है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघ चार्जर और बाघिन सीता पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे सीता अलग-अलग तरह के पोज देती तो चार्जर पयर्टकों की गाड़ियों को देखकर दहाड़ता था। बामेरा अपने अलग अंदाज, कद-काठी के लिए जाना जाता रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध बाघिन टी1 को सफल शिकारी होने के साथ नेशनल पार्क से रिजर्व में पुन: स्थापित होने वाली पहली बाघिन रही। विश्व में सर्वप्रथम अनाथ बाघ शावकों को उनके प्राकृतिक परिवेश में बढ़ाकर संरक्षित क्षेत्रों में मुक्त होकर विचरण करने का सफल प्रयास प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व में किया गया। जहां से पन्ना, सतपुड़ा, संजय, दुर्गावती टाइगर रिजर्व एवं माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों को छोड़ा गया था। 

बाघ की दहाड़ अब प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी  सुनाई दे रही है।  राजधानी भोपाल के  शहरी इलाकों में  भी बाघों की आवाजाही अब देखी  जा सकती है। बाघों  को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी बढ़ने की  संभावनाओं  से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 1973 में बाघों को विशेष संरक्षण प्रदान करने के लिए देश में टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई थी।  प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना।  इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है।  मध्यप्रदेश में 7 टाइगर रिजर्व हैं  जिनमें कान्हा टाईगर रिजर्व - मंडला  बालाघाट, बांधवगढ टाईगर रिजर्व - उमरिया, पन्ना टाईगर रिजर्व - पन्ना, पेंच टाईगर रिजर्व - सिवनी, सतपुडा टाईगर रिजर्व - होशंगाबाद, संजय - दुबरी टाईगर रिजर्व - सीधी में तथा 7वां टाइगर रिजर्व है रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व  है जो  टाइगर रिजर्व सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले के दो अभयारण्य को मिलाकर बनाया गया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में 24 अभयारण्य हैं और 11 नेशनल पार्क हैं। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगांव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य अपनी विशिष्ट पहचान के लिए  देश में जाने जाते हैं।  यह सुखद  है कि  अब प्रदेश के भीतर  बाघों  की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से  बढ़ रही  है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों  की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही  है।  सतना  से लेकर सीधी , शहडोल  से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला  तक  में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। तीन बार  टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया  है।  इन राष्ट्रीय उद्यानों में  कुशल  प्रबंधन  और अनेक नवाचारी  तौर तरीकों को अपनाया गया है।  प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों और चिड़ियाघरों में भी बाघ हैं, जहां इनका संरक्षण और प्रजनन होता है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने  ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक  कार्यक्रम समय समय पर भी  चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। 

मध्यप्रदेशके टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में इस समय सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन है।   टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही प्रदेश राष्ट्रीय  उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में आगे है।  सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है।   भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में  पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है।  बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है।   इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है। खुली जगह  के साथ  वन्यजीवों को तनावमुक्त वातावरण और उचित आहार की भी जरूरत होती है जिस दिशा में प्रदेश में पिछले कुछ समय से बेहतरीन कार्य हुआ है जिसके  चलते  बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है।जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया है।  कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।  प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। राज्य शासन की सहायता से कई सौ गाँवों का विस्थापन किया हगया जिससे  बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त हुआ  है। संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है।  

 बाघों की सुरक्षा के प्रति भी मध्यप्रदेश सरकार संवेदनशील है। हाल ही में हिट एंड रन की वजह से घायल हुए दो बाघ शावकों को विशेष ट्रेन के माध्यम से भोपाल लाने के निर्देश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिए थे। प्रदेश में वन्य क्षेत्रों के पर्यटन से लगभग 55 से 60 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है, जिसका 33 प्रतिशत संयुक्त वन प्रबंधन समिति के माध्यम से ग्राम विकास में खर्च किया जाता है। वनों और वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ-साथ इन वन्य  क्षेत्रों में पर्यटन की सुविधाएं भी मध्यप्रदेश में निरंतर बढ़ रही हैं। वर्ष 2022-23 में 26 लाख 91 हजार 797 पर्यटकों ने प्रदेश  के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का भ्रमण किया। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर रही है जिससे बाघों की हर गतिविधि पर नजर  रखी जा रही है।  बाघ  संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए प्रदेश के  टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन  किया है  जिससे प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य योजना तैयार की जाती है जिसके माध्यम से निगरानी रखने, वन्यजीवों की खोज और बचाव करने, जंगल की आग का पता लगाने और उससे रक्षा करने और मानव-पशुओं के संघर्ष को कम करने के लिये की गई है जिससे जैव-विविधता के दस्तावेज़ीकरण में भी मदद मिल रही है ।

मध्यप्रदेश ने  तीन बार टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।   बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है।पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में उत्कृष्ट माना गया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है। वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया गया है। बाघों की सुरक्षा के लिए कैमरा ट्रैप तकनीक के माध्यम से बाघों की गतिविधि पर नजर वनों में रखी जाती है और बघीरा एप की सहायता से जंगल में सफारी की गतिविधि को ट्रैक किया जाता है। कान्हा टाइगर रिजर्व ने अनूठी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। पार्क प्रबंधन ने वन विभाग कार्यालय परिसर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है, जो वन विभाग के कर्मचारियों और आस-पास क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये लाभदायी सिद्ध हुआ है।सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ पर सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन करना शुरू कर दिया है। प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य- योजना तैयार की जाती है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में 'ड्रोन दस्ता' भी  काफी उपयोगी साबित हुआ है।  वन्य प्राणियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रदेश स्तर पर अनुभूति कैम्प भी आयोजित किये जा रहे हैं।  'मैं भी बाघ ' थीम पर इस बार पूरे प्रदेश में विभिन्न जगहों पर आयोजन किये जा रहे हैं। ख्यमंत्री डॉ. यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जंगलों में बाघों के भविष्य को सुरक्षित करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लेने का आहवान किया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में बेहतर प्रबंधन से जहाँ एक ओर वन्य प्राणियों को संरक्षण मिलता है, वहीं बाघों के प्रबंधन में लगातार सुधार भी हुए हैं। बाघों के संरक्षण के लिये संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है जो वन विभाग के सहयोग से संभव हुई है।सही  मायनों में कहा जाए तो  मध्यप्रदेश सरकार ने  वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में  अनेक  पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में  कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके  नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं।

Tuesday 23 July 2024

मोहन के नेतृत्व में आएगा निवेश, आगे बढ़ेगा मध्यप्रदेश

                                             

                   

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व में देश का हृदय प्रदेश इस बार निवेश का नया अध्याय लिखने जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार के 7 माह से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में भारतीय और विदेशी निवेशक अभूतपूर्व संख्या में मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सक्रियता इसमें नया रंग भरने का काम कर रही है। इससे पूर्व प्रदेश में इस तरह के निवेशक सम्मेलन औद्योगिक नगरी इंदौर में आयोजित किये जाते रहे लेकिन मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा सूबे की कमान सँभालते ही पहली बार उज्जैन में आयोजित क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के माध्यम से प्रदेश की धार्मिक नगरी में उद्योग की संभावनाओं को नए पंख लगे। यह दूरदर्शी पहल मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की सरकार की राज्य के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इसी तरह की संभावनाओं को प्रदेश के अन्य शहरों में भी प्रदेश सरकार भविष्य में क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन आयोजित कर तराशने की कोशिश कर रही है। आगामी 20 जुलाई को प्रदेश के जबलपुर में एक दिवसीय क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन ( रीजनल इन्वेस्टर्स समिट) का आयोजन किया जा रहा है।

उज्जैन में मोहन सरकार ने अपना पहला क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन इसी वर्ष 1 और 2 मार्च को आयोजित किया जिसके सकारात्मक परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं। इस भव्य आयोजन में कई उद्योग समूहों ने निवेश करने में अपनी रूचि दिखाई है। राज्य में आयोजित हुए पहले क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के माध्यम से बड़े पैमाने पर निवेशक मध्यप्रदेश की तरफ तेजी से आकर्षित हुए जिसमें अदाणी समूह ने अकेले 75,000 करोड़ रुपये का निवेश प्रदेश के भीतर करने जा रहा है। उज्जैन में महाकाल एक्सप्रेस वे के निर्माण से लेकर दो सीमेंट पीसने वाली इकाइयां देवास और भोपाल में स्थापित करने के साथ ही यह ग्रुप राज्य में फूड प्रोसेसिंग, लॉजिस्टिक्स, कृषि-लॉजिस्टिक्स और रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में भी बड़ा निवेश करने जा रहा है। सिंगरौली में ‘महान एनर्जी प्लांट’ में बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए भी ग्रुप ने अपनी रूचि दिखाई है जिससे पूरे मध्यप्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं। इस सम्मेलन में एग्रो आयल एन्ड जे. के सीमेंट ने 75000 करोड़ , प्रणव अडानी द्वारा 4000 करोड़ समेत कई निवेशकों ने करोड़ों के निवेश का प्रस्ताव रखा था। उज्जैन क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन में लगभग 250 औद्योगिक घरानों को लगभग 508 हेक्टेयर भूमि आवंटन पत्र जारी किये गए जिससे प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ने तय हैं। मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर उद्योगपति रूचि दिखा रहे हैं। ऊर्जा से लेकर हेल्थ, पर्यटन से लेकर शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में प्रदेश के भीतर बड़ी संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं।

मध्यप्रदेश में निवेश, नवाचार और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बीते दिनों मुम्बई में उद्योगपतियों और निवेशकों से सीधा संवाद भी स्थापित किया जिसमें  प्रदेश में निवेश के अवसरों और संभावनाओं की जानकारी सभी को दी गई । कार्यक्रम में राज्य के औद्योगिक परिदृश्य पर सभी ने नामी उद्योगपतियों के साथ अपने दृष्टिकोण को साझा किया। मुंबई में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उद्योगपतियों से वन टू वन चर्चा ने निवेशकों को प्रमुख हितधारकों के साथ जुड़ने, राउंड टेबल चर्चाओं में भाग लेने और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ नेटवर्क बनाने का एक बेहतर मंच उपलब्ध कराया है। प्रदेश के जबलपुर में 20 जुलाई को प्रस्तावित क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन हेतु जोर- शोर से अब स्वदेशी निवेशकों को आकर्षित करने का अभियान चलाया जा रहा है। जबलपुर के इस भव्य आयोजन में 1500 निवेशकों की भागीदारी होने जा रही है। एक तरफ प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न राज्यों के चुनिंदा शहरों में वन टू वन शो करवा ही रही है वहीँ प्रदेश भर में भी निवेशकों को आकर्षित करने का अभियान भी चलाया जा रहा है। उद्योग जगत भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के विजन की सराहना कर रहा है और मध्यप्रदेश की तरफ नई उम्मीद की नज़रों से देख रहा है। प्रदेश सरकार का फोकस भी चहुंमुखी विकास पर है और देशी निवेशकों का मध्यप्रदेश में विश्वास तेजी से हाल के दिनों में तेजी से बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार अपनी जीएसडीपी को बढ़ाने के लिए सभी संभव प्रयास किये जा रहे हैं। क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन लाजिस्टिक से जुड़े क्षेत्रों के साथ ही सभी क्षेत्रों के लिए भी एक बेहतरीन अवसर है। मध्यप्रदेश के लिए गर्व की बात है मुम्बई के अलावा कनाडा, नीदरलैंड, थाईलैंड, ताइवान, मलेशिया के कई औद्योगिक घरानों को प्रदेश की जमीन पसंद आई है और वे यहाँ उद्योग लगाने के लिए तैयार हैं। जबलपुर समिट हेतु कनाडा के एकाग्रता समूह की लंबटन कंपनी के प्रमुखों ने 1100 करोड़ के निवेश को लेकर अपनी सहमति भी प्रदान कर दी है वहीँ रिलायंस समूह अकेले 50 हजार करोड़ से अधिक के निवेश को तैयार है। इस दौरान प्रदेश में 70 परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया जाएगा जिससे 1222 करोड़ का निवेश प्रस्तावित होगा।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा मध्यप्रदेश में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2025 को "उद्योग वर्ष" घोषित किया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के नेतृत्व में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न रणनीतियों, योजनाओं के माध्यम से सकारात्मक वातावरण के सुदृढ़ीकरण का सतत प्रयास किया जा रहा है। फरवरी 2025 में भोपाल में “इन्वेस्ट मध्यप्रदेश-ग्लोबल इन्वेस्टर समिट-2025" का आयोजन प्रस्तावित है। उद्योगपतियों का कहना है कि हाल के वर्षों में सभी क्षेत्रों में मध्यप्रदेश का तेजी से विकास हुआ है। आज प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकल आया है और ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर की तर्ज पर प्रदेश के हर शहर निवेश के माध्यम से विकास में साझीदार बनाने की पहल कर रहे हैं। प्रदेश में निवेश बढ़ाने के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के प्रयासों का असर अब जिलों तक भी पहुंच रहा है। इससे निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी और आने वाले समय में होने वाले अन्य क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के लिए अधिक निवेशक प्रेरित और प्रोत्साहित होंगे। यदि क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन में होने वाला निवेश पूरी ईमानदारी के साथ धरातल पर उतर आता है तो मध्य प्रदेश की प्रगति और खुशहाली को कोई रोक नहीं सकता।पिछले कुछ वर्षो में मध्यप्रदेश में औद्योगिक निवेश और रोजगार ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। मध्यप्रदेश ने सुशासन और ईज आफ डुइंग बिजनेस के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया है और बढ़ता हुआ निवेश इसी का परिणाम है। प्रदेश में देशी कंपनियों के साथ ही विदेशी कंपनियों की भी रूचि मध्यप्रदेश को लेकर काफी बढ़ी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इन्वेस्टर फ्रेंडली नीतियों का ही नतीजा रहा कि प्रदेश में क्षेत्रीय स्तर पर स्वदेशी कम्पनियाँ भी अब निवेश को लेकर रूचि दिखा रही हैं जिनमें आईटी, इलेक्ट्रानिक्स, उत्पादन, सेवा क्षेत्र आदि की कई इकाइयां शामिल हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है कि सुशासन के चलते आज प्रदेश में उद्योग , व्यापार और दृष्टि से अनुकूल माहौल बना है। औद्योगिक विकास में प्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी प्रदेश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। सूबे की सरकार ने इस बार के बजट में उद्योगों के लिए पर्याप्त राशि भी रखी है जिससे देश की जीडीपी को आगे बढ़ाने में प्रदेश अब पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ेगा। मध्यप्रदेश में देश का सबसे बड़ा मेडिकल डिवाइस पार्क, विक्रम उद्योगपुरी, उज्जैन में स्थापित होने जा रहा है। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास के अंतर्गत अनेक प्रचलित व प्रस्तावित परियोजनाओं पर कार्य तेजी से चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ देश आगे बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश देश का दिल है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल में भी मध्यप्रदेश बसता है। जो भी उद्योगपति मध्यप्रदेश में निवेश और व्यवसाय के लिए रूचि दिखाएंगे, इससे उनकी ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश की भी प्रगति होगी। आने वाले समय में प्रदेश सरकार सभी जिलों में क्षेत्रीय स्तर पर अलग -अलग समिट आयोजित करेगी। 20 जुलाई को जबलपुर में क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन (रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव) के आयोजन के बाद ग्वालियर, दमोह-सागर, रीवा और अन्य जिलों में भी इस तरह के क्षेत्रीय आयोजन होंगे। इसके प्रस्ताव सरकार को मिलने अभी से शुरू हो चुके हैं।

Sunday 9 June 2024

देश के हृदयप्रदेश में 'मोहन 'की 'मुस्कान 'का मतलब तो है !




मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में डॉ. मोहन यादव को शुरू में भले ही ‘डार्क हॉर्स’ नहीं माना जा रहा था लेकिन इस लोकसभा चुनाव में जिस मेहनत और संकल्प शक्ति के बूते उन्होंने  स्टार प्रचारक बनकर एक नया सन्देश पूरे देश में दिया है और जिस तरह के  चुनाव  परिणाम सामने आये हैं,  उससे साफ़ दिख रहा है कि कोई अब  उन्हें ‘हल्के’ में लेने की भूल नहीं करेगा।  

लोकसभा चुनाव 2024  के इस बड़े लोकतंत्र के महायज्ञ में डॉ. मोहन यादव ने एक सामान्य कार्यकर्ता बनकर इस लोकसभा चुनाव के  जरिये अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश भी है। खास बात यह है कि डॉ. मोहन यादव  इस लोकसभा चुनावों के जरिये न केवल मध्यप्रदेश बल्कि  देश की राजनीती में अब स्थापित होते नजर आ रहे हैं।  मध्यप्रदेश में डॉ  मोहन यादव के  मुख्यमंत्री रहते  पहली बार सूबे  में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया है। देश के हृदय प्रदेश  में ऐसा 'मोहन युग'  में ही पहली बार संभव हुआ है। सबसे खास बात ये है मध्यप्रदेश में कमलनाथ का अभेद किला छिंदवाड़ा भी इस 'मोहन युग ' में  ढह गया है। एक उपचुनाव जिसमें सुंदरलाल पटवा को जीत मिली थी अगर उसको  छोड़ दिया जाए तो ऐसा पहली बार हुआ है  मध्यप्रदेश भाजपा  छिंदवाड़ा लोकसभा सीट अपनी झोली में लाने में कामयाब हुई है। छिंदवाड़ा की जीत के बाद मध्यप्रदेश के  सीएम डॉ.  मोहन यादव  लोकसभा चुनावों की अपनी पहली अग्निपरीक्षा में पूरी तरह से पास  हो गए हैं।

 17 वर्ष तक मध्यप्रदेश की  कमान सँभालते हुए शिवराज सिंह चौहान  ने अपनी खुद की 'मामा'  वाली राजनीति  से  अपना अलग नरेटिव गढ़ने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वे भी कभी मुख्यमंत्री रहते छिंदवाड़ा सीट फतह करने में कामयाब नहीं हो पाए। कई बरसों से प्रदेश के मुखिया रहने के चलते उनके प्रति आम जनमानस में एक निरंकुशता का भाव पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद से बन गया था। यही नहीं शिवराज के कार्यकाल में  प्रशासनिक तंत्र जनता से हर दिन  दूर होता गया।


 नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने भी वही चुनौतियां थीं, जो किसी भी नए मुख्यमंत्री के सामने होती है। उन्हें तय करना था कि वो शिवराज सरकार की छाया और प्रशासनिक  तंत्र से बाहर निकलकर नई पिच पर कैसी बैटिंग करते हैं  लेकिन डॉ. मोहन यादव  की  बेहतर  सोच, सरकार , संगठन और  संघ से बेहतर तालमेल,  मोदी की गारंटी को  क्रियान्वित करने का जूनून,  बेलगाम नौकरशाही में धमक,  नई  बसाहट के साथ काम करने के  विजन एक सहारे  इस लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता का दिल जीतने की कोशिश की है। इस दृष्टि से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सीएम डाॅ.मोहन यादव ने कम समय में  अपने इस स्लॉग ओवर की गुगली से  कांग्रेस के पसीने ही छुड़ा दिए हैं।  इस बात के प्रमाण कमलनाथ के अभेद किले पर  जीत के साथ ही मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर कमल खिलने से दिखाई दे रही है ।

कमलनाथ के मजबूत गढ़ में कमल खिलाने के लिए सीएम डॉ. मोहन यादव ने छिंदवाड़ा में 10 दिन डेरा डाला और  यहां केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो और मोदी की गारंटी से माहौल बदलकर उसे भाजपा का मजबूत किला बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चुनावों के ऐलान से पहले ही नाथ परिवार की विरासत रही छिंदवाड़ा  सीट पर कांग्रेस के मजबूत कार्यकर्ताओं और नेताओं को  भाजपा में शामिल कराने  की दिशा में तेजी से अपने कदम बढ़ाये। मध्य प्रदेश भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक और  भाजपा के संकटमोचक पूर्व गृहमंत्री मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा इस जीत में मैन आफ दि सीरीज बने हैं।  उन्होनें चुनाव हारने के बाद जिस तेजी के साथ संगठन को मजबूत करने की किलेबंदी की उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती।   मध्यप्रदेश के इतिहास में मोहन युग  में ऐसा पहली बार  हुआ  जब प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के बाद भी  कई दिग्गज  नेता और कांग्रेस कार्यकर्ता  छोड़कर भाजपा  में शामिल हुए।  छिंदवाड़ा जिले की सभी सात विधानसभा सीटों में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस का एकछत्र राज  रहा लेकिन कमलनाथ के करीबी पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना और उनके बेटे ने नाथ का साथ छोड़ दिया और भाजपा  में शामिल हो गए।  यही नहीं हजारों की संख्या में  कांग्रेसी कार्यकर्ता इस मोहन युग में  भाजपा में शामिल हो गए।  इस साल की शुरुआत से ही  हर दिन कोई न कोई  नेता, कार्यकर्ता  कांग्रेस छोड़ता हुआ नजर आया और कमलनाथ अपनी ही पार्टी में अलग थलग नजर आए।  कमलनाथ ने  लोकसभा चुनावों के  दौर में भी भावनात्मक  कार्ड खेलने की भरपूर कोशिश की लेकिन दांव भी जनता की अदालत में कारगर साबित नहीं  हो पाया।  मुख्यमंत्री मोहन यादव के  बेहतर माइक्रो मैनेजमेंट ने प्रभावी बढ़त बनाते हुए कमलनाथ के कई समर्थकों को भाजपा में लाने में काफी हद तक कामयाब रहे और इसका असर प्रदेश की हर संसदीय सीट में देखने को मिला।

 चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ बैठकर मोहन ने  न केवल  कारगर  रणनीति की बनाई बल्कि खुद की नई  लीक पर  सामान्य कार्यकर्ता बनकर चले।  कांग्रेस के  नेताओं के भाजपा में  शामिल होने से भाजपा के रूठे नाराज नेता कार्यकर्ताओं को भरोसे में लेकर बेहतर डैमेज कंट्रोल भी किया।  बूथ मैनेजमेंट से निपटने के लिए  भाजपा के संगठन  के साथ बेहतर बूथ प्रबंधन  पर अपना पूरा फोकस  किया।  भाजपा संगठन,  कैडर से जुड़े नेताओं,  कार्यकर्ताओं  में नए जोश का संचार किया।  मुख्यमंत्री यादव प्रदेश के जिस इलाके में गये वहां जनता की भारी भीड़ ने उनके सामने भरोसा दिलाया कि पिछले लोकसभा चुनावों की इस  लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाने का फैसला तो  प्रदेश की जनता पहले  ही कर चुके हैं।हर जगह मुख्यमंत्री यादव के रोड शो और चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ उनकी अपार लोकप्रियता की गवाही दे रही थी। 

इस लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कन्धों पर  मध्यप्रदेश के साथ ही पूरे देश में भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने की भी बड़ी  भी महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी रही जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।  चिलचिलाती  गर्मी में भी ताबड़तोड़ 200 से अधिक जनसभाएं की, 58 रोड शो किए और तकरीबन 12 राज्यों में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार किया।  मध्यप्रदेश के अलावा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दर्जन भर राज्यों में काफी सक्रिय रहे। उन्होंने कई  लोकसभा क्षेत्रों  का कई बार दौरा भी  किया।  जनसभाएं करने के साथ ही अपने  रोड शो से भाजपा के वोट प्रतिशत को भी बढ़ाया। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड,  दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की सबसे अधिक मांग रही । भाजपा ने डॉ मोहन यादव को सबसे ज्यादा अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार में सक्रिय किया, जहां यादव मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक थी।  लोकसभा क्षेत्र में यादव  बाहुल्य इलाकों में मतदाताओं को अपने पाले में लाकर विपक्ष को कैसे नेस्तनाबूद किया जा सकता है, यह काम  भाजपा आलाकमान ने मोहन को भरोसे में लेकर किया जिसमें भाजपा का प्रदर्शन कई सीटों पर बेहतर रहा। 

उत्तर प्रदेश में अखिलेश को भले ही बड़ी सफलता इस बार के लोकसभा  चुनाव में  मिली लेकिन डॉ. मोहन यादव  केंद्रीय नेतृत्व  के भरोसे मोर्चा हर दिन खुद संभाले हुए नजर आये। एक सामान्य से कार्यकर्ता बनकर महाकाल की नगरी के हिंदुत्व के बड़े पोस्टर बॉय बनते हुए बड़ी मजबूती के साथ मोदी की गारंटी और भाजपा की विचारधारा का हर लोकसभा सीट पर प्रसार किया।    

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने जहाँ अपने प्रचार से यदुवंशियों का दिल जीता वहीँ गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी अपनी सभयबन के माध्यम से हिंदुत्व की नई अलख जगाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचने में कामयाबी हासिल की।  उत्तर प्रदेश और बिहार  के साथ ही पंजाब से लेकर हरियाणा, उड़ीसा से लेकर बंगाल, आंध्र से लेकर तेलंगाना तक हर सीट पर एक सामान्य कार्यकर्ता बनकर भाजपा के पक्ष में प्रचार कर उसकी वर्तमान और भविष्य की राजनीती की संभावनाओं को ही मजबूत करने का काम किया। उनकी सभाओं और रोड शो में उमड़ने वाली भीड़ , विनम्रता और मनमोहनी निश्चल मुस्कान हर मतदाता का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित करती थी। विपक्ष पर तंज कसने के उनके बेबाक अंदाज की भी जनता मुरीद हुई।   महज छह माह के भीतर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने  हिंदुत्व के बड़े पोस्टर बॉय  के साथ ही पूरे देश में एक सख्त प्रशासक की छवि भी बनाई । 

 एक तरफ अपनी सभाओं में उन्होंने अयोध्या, काशी, भोजशाला , ज्ञानवापी और मथुरा का जिक्र किया वहीँ सनातन के पक्ष पर खुलकर देश के  मतदाताओं के बीच मुखर होकर अपना पक्ष मजबूती के साथ रखा जिससे मतदाता भाजपा के पक्ष में लामबंद हुआ। मुख्यमंत्री यादव ने अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस को  रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव का हिस्सा न बनने  के लिए उसे आड़े हाथों लेने में भी देरी नहीं की। सनातन विरोधी बयानों के चलते कांग्रेस के ही कई नेताओं ने कांग्रेस से गुडबाई  कहने में देरी नहीं की  इसीलिए जनता का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया और  यह बात जनता के दिल के भीतर तक  बस  गई। 

 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ भी जमकर मुखर होने से पीछे नहीं रहे।  4 जून को आये नतीजों ने फिलहाल मुख्यमंत्री डॉ. मुख्यमंत्री मोहन यादव को लम्बी रेस का घोड़ा साबित किया है।  मध्यप्रदेश में सभी लोकसभा सीटें भाजपा के नाम करने से भाजपा शासित राज्यों के  मुख्यमंत्री के रूप में  डॉ. मोहन यादव की स्थिति बेहद मजबूत होगी। 

Thursday 30 May 2024

'लोकमाता ' अहिल्याबाई होल्कर



भारत देश अपनी  गौरवशाली संस्कृति, इतिहास और परंपराओं के लिए दुनिया में जाना जाता है । यहाँ अनेक ऐसे योद्धा, शासक, शासिकाओं  और वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनका नाम  लोककल्याण जैसे  अनेक कार्यों में  आज भी गर्व के साथ लिया जाता है। इनमें से अहिल्याबाई होल्कर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। देश में जब भी किसी  महिला का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग , राष्ट्रभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है,  उनमें रानी अहिल्याबाई होल्कर  अग्रणी हैं । वे 18वीं शताब्दी की एक ऐसी  प्रेरणादायक महिला थी जिनका पूरा जीवन आज समाज के लिए बड़ी  प्रेरणा का स्रोत है। होल्कर राजवंश का इतिहास जितना समृद्ध रहा है, उतनी ही  अहिल्याबाई होल्कर की विरासत लोककल्याण के कार्यों के लिए जानी जाती है।  कुशल प्रशासन एवं कर्तव्यपरायणता जैसे अपने अनेक  मानवीय गुणों के कारण अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा कराये गए अनेक कार्य देश में आज भी याद किये जाते हैं । उन्होंने अपने जीवनकाल में  कभी कहीं कोई समझौता नहीं किया। पूरी कर्तव्यनिष्ठा व अनुशासन के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए  लोककल्याण एवं सामाजिक सरोकारों के प्रति संकल्पबद्ध होकर हर पल का सदुपयोग  ही किया शायद  यही वजह थी  कि समाज के बीच उनकी एक अलग ही विशिष्ट पहचान और  प्रतिष्ठा थी। भारतीय  संस्कृति एवं लोककल्याण के कार्यों  के प्रति उन उनका सम्मान का भाव उनके द्वारा किए गए अनेकानेक कार्यों में देखा जा सकता था।  हमारी  संस्कृति के संरक्षण,  संवर्धन  हेतु  जन -जन को प्रेरित व प्रोत्साहित करना उनका  स्वाभाविक गुण था।  सचमुच उनका जीवन आज समाज के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन का अविरल स्रोत है। ऐसी  महान धर्म प्रेमी, संस्कृति प्रेमी व मानवता प्रेमी कर्मयोगी  शासिका के जीवन से आज हर किसी को प्रेरणा लेने की  जरूरत है।

अहिल्याबाई होलकर  का जन्म 31 मई, 1725 को अहमदनगर, महाराष्ट्र के गाँव  छौंदी में एक साधारण  किसान  परिवार में हुआ था।  एक साधारण से किसान परिवार में जन्मीं अहिल्याबाई होलकर छोटी उम्र से ही अपनी संस्कृति पर गर्व करती थी, साथ ही प्रजा में रह रहे  आमजनों की  पीड़ा की अनुभूति भी करती थी। इनके पिता  मनकोजी राव शिन्दे  शिवभक्त थे।  पिता के  संस्कार बालिका  अहिल्या पर भी पड़े। उनके पिता मानकोजी शिंदे खुद धनगर समाज से थे, जो गांव के पाटिल की भूमिका निभाते थे।  अहिल्याबाई का जीवन भी बहुत साधारण तरीके से गुजर रहा था लेकिन एकाएक  किस्मत  ने पलटी खाई और वह 18वीं सदी में मालवा प्रांत की रानी बन गईं। अहिल्याबाई होल्कर ने मालवा प्रांत की महारानी बनकर राजमाता के रूप में बड़ी लकीर खींची।  

युवा अहिल्यादेवी का चरित्र और सरलता ने मल्हार राव होल्कर को भी प्रभावित किया। वे पेशवा बाजीराव की सेना में एक कमांडर के तौर पर काम करते थे। उन्हें अहिल्या इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने उनकी शादी अपने बेटे खांडे राव से करवा दी। इस तरह अहिल्या बाई एक दुल्हन के तौर पर मराठा समुदाय के होल्कर राजघराने में पहुंची। उनके पति की मौत 1754 में कुंभेर की लड़ाई में हो गई थी। ऐसे में अहिल्यादेवी पर जिम्मेदारी आ गई। उन्होंने अपने ससुर के कहने पर न केवल सैन्य मामलों में बल्कि प्रशासनिक मामलों में भी रुचि दिखाई और प्रभावी तरीके से उन्हें अंजाम दिया। शादी के बाद उनका एक पुत्र और एक पुत्री हुई। वहीं कुछ सालों बाद ही अहिल्याबाई के पति का देहांत हो गया। इसके कुछ समय बाद ही 1766 में उनके ससुर मल्हारराव होल्कर की भी मृत्यु हो गई। जिसके बाद उन्होंने सत्ता को संभालने का भार अपने ऊपर ले लिया। शासन संभालने के कुछ दिनों बाद ही साल 1767 में उनके जवान पुत्र मालेराव की भी मृत्यु हो गई। पति,  पुत्र , पुत्री ,  पुत्रवधू  और पिता समान ससुर को खोने के बाद भी उन्होंने जिस तरह साहस और धैर्य से अपने कर्तव्यों का निर्वाहन किया  से काम किया, वो सराहनीय है। इस संकटकाल में  एक तपस्विनी की तरह से  श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया और परिवार पर भीषण  वज्राघात के बाद भी रानी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्यपथ पर हमेशा डटी रहीं।  अहिल्याबाई एक विनम्र एवं उदार  वीरांगना थी  जिनके अंदर गरीबों और असहाय व्यक्ति के लिए दया और परोपकार की भावना भरी हुई थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। मल्हारराव के निधन के बाद उन्होंने पेशवाओं की गद्दी से आग्रह किया कि उन्हें क्षेत्र की प्रशासनिक बागडोर सौंपी जाए। मंजूरी मिलने के बाद 1766 में रानी अहिल्यादेवी मालवा की शासक बन गईं। उन्होंने तुकोजी होल्कर को सैन्य कमांडर बनाया। उन्हें उनकी राजसी सेना का पूरा सहयोग मिला। अहिल्याबाई ने कई युद्ध का कुशल नेतृत्व भी  किया। वे एक साहसी योद्धा  के साथ ही एक कुशल  तीरंदाज भी थी जो  हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी। हमेशा आक्रमण करने को तत्पर भील और गोंड्स से उन्होंने कई बरसों तक अपने राज्य को सुरक्षित भी  रखा।पड़ोसी राजा पेशवा राघोबा ने इन्दौर के दीवान गंगाधर यशवन्त चन्द्रचूड़ से मिलकर अचानक हमला बोल दिया। रानी ने धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी ने लिखा कि यदि युद्ध में आप जीतते हैं, तो एक विधवा को जीतकर आपकी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। और यदि हार गये, तो आपके मुख पर सदा को कालिख पुत जाएगी। मैं मृत्यु या युद्ध से नहीं डरती। मुझे राज्य का लोभ नहीं है, फिर भी मैं अन्तिम क्षण तक युद्ध करूंगी।इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गया। इसमें जहां एक ओर रानी अहल्याबाई ने उस पर कूटनीतिक चोट की थी, वहीं दूसरी ओर अपनी कठोर संकल्पशक्ति का परिचय भी दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उन्हें अंगे्रजों के षड्यन्त्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया और वह बिना युद्ध किये ही पीछे हट गया।रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। वे घोड़े पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। एक बार गलती करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों से कुचलने का आदेश दे दिया था; पर फिर जनता के अनुरोध पर उसे कोड़े मार कर ही छोड़ दिया। 

अहिल्याबाई हमेशा अपनी प्रजा और गरीबों की भलाई के बारे में सोचती रहती थी। उन्होंने समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति, महिलाओं की शिक्षा पर बेहतरीन काम किया किया। अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलने के बाद जिस तरह अहिल्याबाई ने अपनी नारी शक्ति का इस्तेमाल किया था, वो काफी प्रशंसनीय है। आज भी  अपने कार्यों और शासन के लिए  अहिल्याबाई को लोग याद करते हैं । रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर भी  ले गईं जहाँ पर उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल की नक्काशी हर किसी को प्रभावित करती थी।  उस दौर में  महेश्वर साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था। मराठी कवि मोरोपंत, शाहिर अनंतफंडी और संस्कृत विद्वान खुलासी राम उनके कालखंड के महान व्यक्तित्व थे।  

अहिल्याबाई  हर दिन वह अपनी प्रजा से बात करती थी। उनकी समस्याएं सुनती थी। 1767-1795 के कालखंड में  रानी अहिल्याबाई ने ऐसे कई काम किए कि लोग आज भी उनका नाम बड़े गर्व  के साथ लेते हैं। वो एक ऐसी रानी थीं जिन्होंने सत्ता का लोभ नहीं बल्कि समृद्धि को चुना। वो एक ऐसी महिला थीं जो 1700 की सदी में भी पढ़-लिखकर आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती थीं। अपने साम्राज्य को उन्होंने समृद्ध बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उन्होंने राजकोष का धन बड़े पैमाने पर  कई किले, विश्राम गृह, कुएं और सड़कें बनवाने पर खर्च किया। वह लोगों क  बीच जाना पसंद करती थी और मंदिरों को दान भी देती थी । एक महिला होने के नाते उन्होंने विधवा महिलाओं को अपने पति की संपत्ति को हासिल करने और बेटे को गोद लेने में भी मदद की। इंदौर को एक छोटे-से गांव से समृद्ध और सजीव शहर बनाने में उनकी भूमिका को नहीं नकारा जा सकता। उन्होनें हिमालय से लेकर दक्षिण भारत के कोने-कोने तक  मंदिरों के निर्माण में  बड़ा धन  खर्च किया साथ ही काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनारायण, रामेश्वर और जगन्नाथ पुरी के ख्यात मंदिरों में उन्होंने  अनेक  काम करवाए जो आज भी  बड़ी शान के साथ याद किये जाते हैं । धर्मपरायण  होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। एक तरफ  काशी का वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर 1780 में उन्होंने ही बनवाया  वहीँ  त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में तीर्थयात्रियों के लिए विश्रामगृह बनवाया। अयोध्या और नासिक में भगवान राम के मंदिर का निर्माण हो या उज्जयिनी में चिंतामणि गणपति मंदिर का निर्माण  यह सब अहिल्याबाई  के कार्यों की आज भी जीती जागती मिसाल  हैं।  सोमनाथ के प्रसिद्ध  मंदिर का पुनर्निर्माण भी उन्हीं की बड़ी देन है  जिसे 1024 में गजनी ने आक्रमण कर लूट लिया था।  

13 अगस्त, 1795 ई0 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्यपालन का प्रेरक उदाहरण है।उनके राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का भरपूर  विकास हुआ।  सही मायनों में अहिल्याबाई  व्यक्तित्व की  धनी हैं, जिनका जीवन  मानवता की सेवा और मानवीय मूल्यों के संरक्षण को  समर्पित रहा है । 

किसी भी तरह की मुश्किल में उन्होनें कभी धैर्य नहीं खोया  और  जनसेवा और लोककल्याण के काम करना उनके  जीवन का मुख्य लक्ष्य रहा।  मानवीय मूल्य आधारित संकल्पना को धरातल में उतारना ही उनका हर समय  उद्देश्य रहता था। अहिल्याबाई होल्कर ने अपने जीवन और कार्यों से अनेक प्रेरणादायी शिक्षाएं समाज को  प्रदान की हैं जिनसे समाज  के हर व्यक्ति को प्रेरणा लेने की जरूरत है। 

Monday 22 April 2024

उत्तराखंड के 'खामोश चुनाव ' में दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा



 


अल्‍मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट पूरी तरह से पर्वतीय और  चार जिलों बागेश्‍वर, चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्‍मोड़ा, में फैली हुई संसदीय सीट है।  परिसीमन के बाद अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय सीट के अंतर्गत 14 विधानसभा क्षेत्र आते हैं।  धारचूला, डीडीहाट, पिथौरागढ़, गंगोलीहाट , कपकोट, बागेश्वर , द्वाराहाट, सल्ट, रानीखेत, सोमेश्वर , अल्मोड़ा, जागेश्वर, लोहाघाट और चम्पावत विधानसभा क्षेत्र अल्‍मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट के अंतर्गत आते हैं ।  इस क्षेत्र को राजा बालो कल्याण चंद ने 1568 में बसाया था। महाभारत काल में यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों जिक्र मिलता है। यह क्षेत्र चंदवंशीय राजाओं की राजधानी था।  धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ये इलाका काफी समृद्ध रहा है। इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाला पूरा इलाका चीन और नेपाल के साथ-साथ गढ़वाल सीमा से सटा हुआ है । इस संसदीय क्षेत्र में भले ही चार जिले आते हैं लेकिन  लोकसभा चुनावों में  मतदाताओं का मिजाज लगभग एक जैसा ही रहता है और रास्ट्रीय मुद्दे यहाँ ज्यादा हावी रहते हैं। 


अल्‍मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट लम्बे समय से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट  है।   1957 में यह संसदीय क्षेत्र पहली बार अस्तित्व में आया। लम्बे समय तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन दूसरे उत्तर भारतीय राज्यों की तरह कांग्रेस की ज़मीन प्रदेश में भी खिसकने लगी और अल्मोड़ा सीट किसी भी अपवाद का हिस्सा नहीं बनी । अल्मोड़ा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास में जाएं तो यहां से पहले सांसद देवीदत्त पंत चुने गए। वर्ष 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के देवीदत्त पंत ने सोशलिस्ट पार्टी के पूर्णानन्द उपाध्याय को हराया। 1957 के उपचुनाव में कांग्रेस के जंगबहादुर बिष्ट ने जनसंघ केसोबन सिंह जीना को पराजित किया। वर्ष 1962 के चुनाव में कांग्रेस के जंगबहादुर बिष्ट ने जनसंघ के प्रताप सिंह को पराजित किया। 1967 के चुनाव में कांग्रेस के ही जंगबहादुर बिष्ट ने जनसंघ के गोविन्द सिंह बिष्ट को पराजित किया। वर्ष 1971 के चुनाव में कांग्रेस के नरेन्द्र सिंह बिष्ट ने जनसंघ के सोबन सिंह जीना को हराया। वर्ष 1952 से 1971 तक इस लोकसभा सीट में  पांच चुनावों में लगातार कांग्रेस को इस सीट से जीत हासिल हुईl 1977 में पहली बार जनता पार्टी के मुरली मनोहर जोशी को इस सीट से जीत मिलीl इसके बाद फिर इस सीट पर कांग्रेस ने वापसी कर ली । वर्ष 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के मुरली मनोहर जोशी ने कांग्रेस के नरेन्द्र सिंह बिष्ट को पराजित किया लेकिन 1980 में कांग्रेस ने वापसी की और कांग्रेसी नेता हरीश रावत ने जनता पार्टी के मुरली मनोहर जोशी को पराजित किया। इस चुनाव में वे मुरली मनोहर पर भारी पड़े। वर्ष 1984 के चुनाव में फिर से कांग्रेस के हरीश रावत विजयी रहे। वर्ष 1989 में भी कांग्रेस के हरीश रावत का जलवा बरकरार रहा जिसमें उन्होंने उत्तराखण्ड क्रांति दल के काशी सिंह ऐरी को पराजित किया।

1991 के चुनावों में फिर से बाजी पलटी। इसमें रामलहर के चलते भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से अनजान प्रत्याशी जीवन शर्मा को उतारा और उन्होंने कांग्रेस के हरीश रावत के विजयी रथ पर विराम लगा दिया। इसके बाद इस सीट से वर्ष 1996, 1998, 1999 व 2004 में भाजपा के बची सिंह रावत लगातार चार लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज करते रहे। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बची सिंह रावत ने कांग्रेस की रेणुका रावत को हराया। 1980 से 1991 के बीच हुई 3 बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हरीश रावत को इस सीट से जीत मिली। हालांकि वर्ष 1991 से यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। भाजपा के जीवन शर्मा एक बार और बची सिंह रावत तीन बार यहां के सांसद चुने गए। क्षेत्र में राष्‍ट्रीय दलों का ही बोलबाला है। संसदीय क्षेत्र में केवल एक बार क्षेत्रीय दल उक्रांद ने जबरदस्‍त चुनौती दी थी।  सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद भी भाजपा और कांग्रेस के बीच शुरूआती दौर पर बराबर की टक्कर रही, वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रदीप टम्‍टा सांसद चुने गए तो वर्ष 2014 से भाजपा के अजय टम्‍टा यहाँ से दिल्ली पहुंचे लेकिन 2019 बीजेपी ने कांग्रेस की राजनीतिक ज़मीन पूरी तरह खिसका दी। 2019 में भाजपा के अजय टम्टा ने कुल मतदान का 65.5 प्रतिशत वोट प्राप्त कर रिकॉर्ड कायम किया। कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा 31.2 प्रतिशत वोट ही ला सके। अब एक बार फिर प्रदीप टम्टा और अजय टम्टा आमने सामने हैं l यह लगातार चौथा अवसर है, जब दोनों चेहरे एक बार फिर आमने सामने हैं । 

ठाकुर-ब्राह्मण बाहुल्य इस संसदीय क्षेत्र के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां सर्वाधिक 44 प्रतिशत राजपूत व 29 प्रतिशत ब्राह्मण के साथ ही 27 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लोग हैं। वर्ष 2009 में इस सीट के अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद से यहां कांग्रेस व भाजपा ने लगातार टम्टा बंधुओं पर ही भरोसा जताया है। अन्य दलित नेताओं की इस सीट से दावेदारी तो हुई, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। कांग्रेस से प्रदीप टम्टा एक बार फिर सफल रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा संघ से नजदीकी और शिवप्रकाश की गुडबुक में संगठनकी  सक्रियता के चलते टिकट पाने में सफल रहे वहीं कांग्रेस ने भी एक बार फिर प्रदीप टम्टा पर भरोसा जताया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत के नजदीकी के चलते वह टिकट पाने में सफल रहे।अल्मोड़ा सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर से प्रदीप टम्टा पर ही दांव खेला है। जबकि इस क्षेत्र में कांग्रेस के कई अन्य नेता भी दावेदार थे। इनमें बसंत कुमार का नाम सबसे ऊपर माना जा रहा था। लेकिन इस सीट पर कांग्रेस ने टम्टा के सामने टम्टा का फार्मूला अपनाया। प्रदीप टम्टा 2009 में लोकसभा से चुनाव जीत चुके हैं और 2016 में कांग्रेस से राज्यसभा सांसद भी रहे हैं। पूर्व में सोमेश्वर के विधायक भी रह चुके हैं। इसके चलते कांग्रेस ने भाजपा के अजय टम्टा के खिलाफ प्रदीप टम्टा को मैदान में उतारा है। अल्मोड़ा सीट पर कांग्रेस  की स्थिति कुछ बेहतर है और चुनावी मुकाबले में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। इसका एक कारण यह माना जा रहा है कि अजय टम्टा से क्षेत्र के मतदाताओं में  नाराजगी है। वह संसद में भी राज्य के सवालों को  उठाने में नाकामयाब रहे साथ ही दस वर्ष से उनके खिलाफ एंटीओ इंकम्बैंसी बानी है।   भाजपा भीतर इस सीट पर उम्मीदवार को बदलने की चर्चा थी लेकिन सभी कयासों को दरकिनार करते हुए अजय टम्टा को ही फिर से तीसरी बार उम्मीदवार बनाया गया । अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य,  शिक्षा,  संचार व्यवस्था के साथ ही विकास के तमाम सवाल पर भी प्रत्याशियों को दो-चार होना पड़ेगा, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जो चुनाव के दौरान उभर कर सामने  आ रहे हैं। अगर मुद्दों पर मतदान हुआ तो इस बार की राह आसान नहीं लग रही।  बागेश्वर, पिथौरागढ़ व चंपावत का एक बड़ा हिस्सा आपदा से प्रभावित है। नैनी सैनी से नियमित हवाई सेवाओं की शुरुआत न हो पाना भी एक बड़ा मुद्दा होगा।  अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में  युवा मतदाता बड़ी संख्या में 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग के हैं  जो चुनाव परिणामों का रुख बदल सकते हैं। युवाओं के अपने मुद्दे हैं जो पार्टी प्रत्याशी युवाओं को लुभा पाएगा वह बाजी पलटने में सक्षम हो सकता है। युवा मतदाताओं की  शिक्षा व रोजगार के मुद्दे पर जनप्रतिनिधि कुछ खास नहीं कर पाए हैं लेकिन अजय टम्टा मोदी के नाम की माला से क्या इस बार वैतरणी पार कर पाएंगे ये बड़ा सवाल है?  अल्मोड़ा संसदीय सीट के अंतर्गत पूर्व सैनिक बड़ी संख्या में  वोटर हैं जो किसी भी प्रत्याशी का भाग्य बदलने के लिए काफी है। इसके अलावा इस संसदीय सीट से सर्विस मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है जो हार-जीत का समीकरण बना व बिगाड़  सकते हैं।

हरिद्वार संसदीय सीट  की अगर बात करें तो यह दो जिलों देहरादून और हरिद्वार को मिला कर बनी है l 1977 में परिसीमन के बाद ये निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आया था l मौजूदा समय में इस सीट के अंतर्गत चौदह विधान सभा क्षेत्र शामिल हैं l शुरूआत में भारतीय लोकदल के प्रभाव वाली इस सीट पर कांग्रेस ने पकड़ मजबूत करने में सफलता हासिल की थी, लेकिन 1991 के बाद कुछ एक मौके छोड़ दिए जाएं तो ज्यादातर समय भाजपा ने ही सदन में इस  क्षेत्र प्रतिनिधित्व किया है।  रामलहार में ये सीट भगवामय होती रही है।  1977 में जब ये सीट अस्तित्व में आई, तब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का यहां पर खासा दबदबा था। यही कारण रहा कि परिसीमन के बाद यहाँ से सबसे पहले  लोकदल का प्रतिनिधी चुन कर दिल्ली पहुंचाl  1980 में यह सीट जनता पार्टी ने जीती, लेकिन 1984 में समीकरण बदले और कांग्रेस लहर का असर  यहाँ के चुनाव परिणामों में देखने को मिलाl इसके बाद 1987 के उपचुनाव में भी कांग्रेस को यहाँ अपना कब्जा बरकरार रखने में कामयाब मिली। यहाँ तक कि मंडल- कमंडल के दौर में यानि 1989 में भी  कांग्रेस ने यहाँ से जीत हासिल की l  लेकिन 1991 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राम सिंह सैनी ने अपनी ज़मीनी पकड़ के कारण इस सीट पर समीकरणों को बदल दिया और सीट पर भाजपा ने अपना झंडा गाड़ दिया। इसके बाद ये संसदीय सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई और भाजपा ने इस दौरान हरपाल साथी  को मैदान में उतारा जिन्होंने लगातार तीन चुनाव जीतकर एक रिकार्ड बनाया। इसके बाद हरिद्वार की जनता ने सपा पर भरोसा  जताया और 2004 में ये सीट सपा की झोली में  डाल द ।  2011 में परिसीमन होने के बाद इस लोकसभा क्षेत्र  का राजनीतिक मिजाज काफी प्रभावित हुआ। हरिद्वार सीट में देहरादून के तीन विधानसभा क्षेत्र डोईवाला, धर्मपुर और ऋषिकेश शामिल किए गए। बदलते चुनावी समीकरणों  के बीच भाजपा, कांग्रेस, सपा व बसपा को इस क्षेत्र  पर नए सिरे से प्रयास करना पड़ा।  ये सीट 2009 में अनारक्षित श्रेणी में आ गई जिसके बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत मैदान में उतरे और जीत दर्ज की लेकिन मोदी लहर में ये सीट फिर से  भाजपा के पाले में आ गई। पिछले दो  लोकसभा  चुनावों में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक लगातार दो बार जीत कर यहाँ से दिल्ली पहुंचे l हालाँकि  2014 में आम आदमी पार्टी ने भी यहाँ अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की और पहली पुलिस महानिदेशक रही कंचन चौधरी को मैदान में उतारा पर सफल नहीं हो सकी। हरिद्वार लोकसभा सीट 2009 से पूर्व सुरक्षित सीट थी, परंतु 2009 में कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत ने हरिद्वार का रुख किया तो हरिद्वार के मतदाताओं ने उनको हाथों हाथ लिया और हरीश रावत भाजपा प्रत्याशी स्वामी यतीश्वरानंद  को एक लाख से भी अधिक मतों से पराजित कर लोकसभा पहुंचे। 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते इस सीट पर भाजपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 592320 मत प्राप्त कर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत को डेढ़ लाख से भी अधिक मतों से पराजित किया। 2019 में भी भाजपा ने डाॅ निशंक पर भरोसा जताते हुए उनको मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से पूर्व विधायक अंबरीश कुमार पर भरोसा जताया जिनको भी हार का सामना करना पड़ा था। डॉ निशंक मोदी लखर में दूसरी बार संसद गए और शिक्षा मंत्री बने। हरिद्वार संसदीय सीट से साल 2019 में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने जीत हासिल की थीl साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में निशंक ने कांग्रेस के अंबरीश कुमार को कुल 258729 वोटों के अंतर से हराया था l 

हरिद्वार के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो यहां से दो राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ही ज्यादातर चुनाव जीतती रही हैं। 1977 से लेकर अब तक हुए चुनावों में 5 बार भाजपा तो 5 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई है। 1977 में जनता पार्टी की लहर चली तो भगवानदास राठौड चुनाव जीते। 1980 में  इस सीट से लोकदल के जगपाल सिंह चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस के सुंदर लाल ने इस सीट पर कब्जा किया। इसके बाद 1987 में उन्हीं की पार्टी के राम सिंह सांसद चुने गए। 1989 में कांग्रेस टिकट पर जगपाल सिंह सांसद चुने गए। तीन बार लागतार कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी होते रहे। इसके बाद लगातार चार बार भाजपा ने हरिद्वार लोकसभा सीट पर अपनी पताका फहराई। 1991 में भाजपा के राम सिंह और 1996 में हरपाल सिंह साथी सांसद बने। हरपाल सिंह साथी भाजपा के टिकट पर लगातार तीन बार  सांसद चुने गए। 1996 के अलावा 1998, 1999 में भी साथी चुनाव जीते। 2004 में समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बाडी चुनाव जीते। 2009 में यहां के कांग्रेस के हरीश रावत सांसद चुने गए। 2014 में उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक को भाजपा ने मैदान में उतारा। निशंक ने कांग्रेस के खांटी नेता हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत को चुनाव हराकर भारी वोटों से जीत हासिल की।  2014 में डॉ  रमेश पोखरियाल निशंक को मिले मत कांग्रेस प्रत्याशी रेणुका रावत के अलावा बसपा प्रत्याशी हाजी इस्लाम और आप प्रत्याशी कंचन चौधरी भट्टाचार्य समेत बाकी सभी 22 प्रत्याशियों को मिले कुल वोटों से ज्यादा थे। निशंक को 5 लाख 92 हजार 320 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी रेणुका रावत को 4 लाख 14 हजार 498 मत हासिल हुए। 2014 में भाजपा प्रत्याशी डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की जीत का अंतर एक लाख 77 हजार 822 रहा। 2019 में भाजपा इस रिकॉर्ड जीत को बरकरार रख पाती है या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। इस सीट के अंतर्गत चौदह विधान सभा क्षेत्र शामिल हैं जिनमें  भेल रानीपुर , भगवानपुर (एससी), हरिद्वार, हरद्वार ग्रामीण, झबरेड़ा (एससी), ज्वालापुर (एससी), खानपुर, लक्सर, मंगलौर, पिरान कालियार, रुड़की, धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश l  हरकी पैड़ी, शक्तिपीठ मां मनसा देवी मंदिर, गायत्री तीर्थ शांतिकुंज,योगगुरु बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ और भारत की नवरत्न कंपनियों में शामिल भेल के साथ ही इस संसदीय सीट की जाती हैl  यहां का राजाजी टाइगर रिजर्व देश ही नहीं दुनिया में भी अपनी अलग पहचान रखता हैl 20 सालों में हरिद्वार लोकसभा सीट पर वोटरों की संख्या में रिकॉर्ड 122 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है 2004 के चुनाव में वोटरों की संख्या 914440 थी जो अब बढ़ कर  2031668 हो गई है l

इस बार भाजपा ने हरिद्वार सीट पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मैदान में उतारा है, वहीँ उनके मुकाबले कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत अपने बेटे के राजनीतिक करियर को मज़बूत करने का कोई मौका नहीं गवाना चाहते l ऐसे में हरिद्वार की लड़ाई काफी रोचक बन गई है। हरिद्वार लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक होने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। जहां एक ओर स्थानीय और बाहरी प्रत्याशी के मुद्दे को हवा  दी जा रही है वहीँ  कांग्रेस को अंदरूनी कलह के चलते अपने नेताओं के दल-बदल करने का सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है,  वहीं संगठन स्तर पर मजबूत नजर आ रही भाजपा मोदी के नाम पर मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। 6 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं एवं 22 प्रतिशत एससी वोटर को मिलाकर कुल 1835527 मतदाताओं की यह सीट 1977 से अस्तित्व में आई। मुद्दों की बात करें तो अगर राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर वोट पड़े तो यहाँ फिर से भाजपा मजबूत हो सकती है लेकिन डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को  टिकट न मिलने से भाजपा में बड़ा तबका असंतुष्ट है।  डॉ निशंक कहने को हरिद्वार में हैं लेकिन लोकसभा प्रत्याशी त्रिवेंद्र के पक्ष में खड़े होने के बजाए इस सीट पर वह अपना खुद का जनसम्पर्क करने में ज्यादा लगे हुए हैं जिससे भाजपा की परेशानी बढ़ रही है।  इस सीट पर दो से ढाईलाख की मुस्लिम आबादी भी है जिस  पर सपा और बसपा डोरे दाल रही है।  हरीश रावत अगर खुद इस सीट से अगर प्रत्याशी होते तो कांग्रेस के लिए यहाँ पर अच्छी संभावनाएं शायद बन सकती थी लेकिन पुत्रमोह में हरदा ने बेटे के लिए ही चुनाव का प्रचार करना पसंद किया।  

 हरिद्वार संसदीय सीट दो जिलों देहरादून और हरिद्वार को मिला कर बनी है l 1977 में परिसीमन के बाद ये निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आया था l मौजूदा समय में इस सीट के अंतर्गत चौदह विधान सभा क्षेत्र शामिल हैं l शुरूआत में भारतीय लोकदल के प्रभाव वाली इस सीट पर कांग्रेस ने पकड़ मजबूत करने में सफलता हासिल की थी, लेकिन 1991 के बाद कुछ एक मौके छोड़ दिए जाएं तो ज्यादातर समय भाजपा ने ही सदन में इस  क्षेत्र प्रतिनिधित्व किया है 1977 में जब ये सीट अस्तित्व में आई, तब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का यहां पर खासा दबदबा था। यही कारण रहा कि परिसीमन के बाद यहाँ से सबसे पहले  लोकदल का प्रतिनिधी चुन कर दिल्ली पहुंचाl  1980 में यह सीट जनता पार्टी ने जीती, लेकिन 1984 में समीकरण बदले और कांग्रेस लहर का असर  यहाँ के चुनाव परिणामों में देखने को मिलाl इसके बाद 1987 के उपचुनाव में भी कांग्रेस को यहाँ अपना कब्जा बरकरार रखने में कामयाब मिली। यहाँ तक कि मंडल कमंडल के दौर में यानि 1989 में भी  कांग्रेस ने यहाँ से जीत हासिल की l  लेकिन 1991 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राम सिंह सैनी ने अपनी ज़मीनी पकड़ के कारण इस सीट पर समीकरणों को बदल दिया और सीट पर भाजपा ने अपना झंडा गाड़ दिया । इसके बाद ये संसदीय सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई और भाजपा ने इस दौरान हरपाल साथी  को मैदान में उतारा जिन्होंने लगातार तीन चुनाव जीतकर एक रिकार्ड बनाया। लेकिन इसके बाद हरिद्वार की जनता ने सपा पर भरोसा  जताया और 2004 में ये सीट सपा की झोली में  डाल दी   लेकिन 2011 में परिसीमन होने के बाद इस लोकसभा क्षेत्र  का राजनीतिक मिजाज काफी प्रभावित हुआ। हरिद्वार सीट में देहरादून के तीन विधानसभा क्षेत्र डोईवाला, धर्मपुर और ऋषिकेश शामिल किए गए। बदलते चुनावी समीकरणों  के बीच भाजपा, कांग्रेस, सपा व बसपा को इस क्षेत्र  पर नए सिरे से प्रयास करना पड़ाl  ये सीट 2009 में अनारक्षित श्रेणी में आ गई  जिसके बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। लेकिन मोदी लहर में ये सीट फिर से एक बार BJP के पाले में आ गई l पिछले दो चुनावों में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक लगातार दो बार जीत कर यहाँ से दिल्ली पहुंचे l हालाँकि  2014 में आम आदमी पार्टी ने भी यहाँ अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की और पहली पुलिस महानिदेशक रही कंचन चौधरी को मैदान में उतारा पर सफल नहीं हो सकी।

24 सालों में हरिद्वार लोकसभा सीट पर वोटरों की संख्या में रिकॉर्ड 122 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2004 के चुनाव में वोटरों की संख्या 914440 थी जो अब बढ़ कर   2031668 हो गई है।हरिद्वार संसदीय सीट से साल 2019 में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने जीत हासिल की। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में निशंक ने कांग्रेस के अंबरीश कुमार को कुल 258729 वोटों के अंतर से हराया था। इस बार बीजेपी ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मैदान में उतारा है, वहीँ उनके मुकाबले कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत अपने बेटे के राजनीतिक करियर को मज़बूत करने का कोई मौका नहीं गवाना चाहते । ऐसे में हरिद्वार की लड़ाई काफी रोचक बन गई है।पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत विगत् एक वर्ष से हरिद्वार सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वे वंशवाद की चपेट में आ खुद रणछोड़दास बन  कांग्रेस के कई नेताओं से नाराजगी मोल ले चुके हैं। ऐसा नहीं है कि हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के पास उम्मीदवारों की कमी थी। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा के अलावा हरक सिंह रावत भी यहां से चुनाव लड़ने का दावा कर रहे थे।  खानपुर से निदर्लीय विधायक उमेश कुमार शर्मा को कांग्रेस से टिकट दिए जाने की भी बात हुई लेकिन इस पर हरीश रावत ने अपना विरोध जता दिया। राजनीतिक तौर पर हरीश रावत इस क्षेत्र में खासे जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। अल्मोड़ा सीट से जब बार बार उनको ठुकराया गया तो 2009 में हरि  के इस द्वार के माध्यम से हरदा चुनाव जीतकर संसद पंहुचे थे। साथ ही उनकी हरिद्वार के हर मामले में सक्रियता भी रही और कांग्रेस के वोट बैंक के हिसाब से भी ये सीट उसके लिए मजबूत रही है। हरीश रावत अपने जनाधार का फायदा अपने पुत्र को कितना दिलवा पाएंगे यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा।  अगर हरीश रावत स्वयं यहाँ से चुनाव लड़ते तो मुकाबला बेहद दिलचस्प और कांटे का बन सकता था। त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने  संगठन और  पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे निशंक  को साधने की चुनौती रही है।  पूर्व में डोईवाला उपचुनाव में त्रिवेंद्र का हारना और 2012  में मुख्यमंत्री  रहते हुए बी सी खंडूड़ी का कोटद्वार से पराजित होना कैसे हुआ ये भी किसी से छिपा नहीं है।  खटीमा में धामी की हार कैसे  भाजपा के बड़े  नेताओं के चलते हुई और भीतरघात ने हरा दिया यह देखते हुए भाजपा की राह हरिद्वार में इस बार आसान नहीं लग रही।  खानपुर विधायक उमेश कुमार के निदर्लीय चुनाव में आने से  मामला  त्रिकोणीय बना था बसपा ने इस सीट से मुस्लिम कार्ड चलकर भाजपा और कांग्रेस को असहज करने का काम किया है। 

इधर नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट ऐतिहासिक और राजनीतिक दोनों ही दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण सीट है।  भाजपा  ने जहाँ अजय भट्ट पर एक बार फिर भरोसा जताया है वहीँ कांग्रेस से प्रकाश जोशी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इसके अलावा बसपा सहित आठ अन्य प्रत्याशी भी चुनावी समर में शिरकत कर रहे हैं। नैनीताल-उधमसिंह नगर संसदीय सीट उत्तराखंड के दो जिलों, नैनीताल और उधम सिंह नगर, से मिलकर बना है। पहले ये केवल नैनीताल सीट हुआ करती थी और फिर 2008 में इसका विस्तार तराई के इलाकों में होते हुए उधम सिंह नगर को भी इसमें जोड़ा गया ।   यूं तो आज़ादी के बाद से ही ये सीट कांग्रेस का गढ़ रही है।  कहने को 17 आम चुनावों में 11 बार कांग्रेस ने यहाँ जीत दर्ज़ की है लेकिन प्रदेश के गठन के बाद बीजेपी की इस सीट पर धीरे धीरे पकड़ बनी और 2014 की मोदी लहर में ये सीट बीजेपी कैंप में शामिल हो गई और तब से अब तक भाजपा  मजबूती के साथ यहाँ पैठ बनाए हुए है l एक ओर बीजेपी जीत की हैट्रिक की तैयारियों में जुटी है वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस के लिए ये सीट अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी है l 1995 में नैनीताल के तराई वाले हिस्से को अगलकर उधमसिंह नगर जिला बनाया गया इसका नाम स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह के नाम पर रखा गया l उधम सिंह ने लंदन जाकर जालियावाला बाग हत्याकांड को अंजाम देने वाले जनरल डायर की हत्या की थी।  नैनीताल उधमसिंह लोकसभा सीट का गठन साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद हुआ था l नैनीताल-उधम नगर सिंह नगर लोकसभा सीट में दोनों ज़िलों के 14 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।  उधमसिंह नगर के बाजपुर, गदरपुर, जसपुर, काशीपुर, खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता, रुद्रपुर और सितारगंज जबकि नैनीताल जिले के पांच विधानसभा भीमताल, हल्द्वानी, नैनीताल, कालाढूंगी और लालकुआँ शामिल है ।  

नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय क्षेत्र मतदाताओं के लिहाज़ से उत्तराखंड की दूसरी सबसे बड़ी सीट है । 2008 के परिसीमन के बाद 2009 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहाँ से कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी।  कांग्रेस के करण चंद सिंह बाबा यहाँ से चुनकर संसद पहुंचे l इस चुनाव में बीजेपी के बच्ची सिंह रावत दूसरे नंबर पर रहेl  वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में ये सीट भाजपा के खाते में पहुंची।  2014 में भगत सिंह कोश्यारी  कांग्रेस के प्रत्याशी करण चंद सिंह बाबा को 2 लाख 84 हजार 717 मतों से हरा कर दिल्ली पहुंचे l इस चुनाव में भगत सिंह कोश्यारी को 6 लाख 36 हजार 769 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के करण चंद सिंह बाबा को 3 लाख 52 हजार 52 वोट हासिल हुए थी  लेकिन 2019 में बीजेपी ने अजय भट्ट को मैदान में उतारा और उनके सामने कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत मैदान में थे।  इस चुनाव में अजय भट्ट को 7 लाख 72 हजार 195 वोट हासिल हुए जबकि हरीश रावत  के खाते में 4 लाख 33 हजार 99 वोट ही गए l

नैनीताल (6 विधानसभा सीट) और उधमसिंह नगर (9 विधानसभा सीट) जिले को कवर करने वाली इस लोकसभा सीट में कुल 15 विधानसभा सीटें हैं  कहा जाता है कि सबसे अधिक तराई की 13 विधानसभा सीट के वोटर ही यहां के लोकसभा प्रत्याशी का भविष्य तय करते हैं. पलायन करके तराई के क्षेत्र में बसे पहाड़ के लोग इन 13 विधानसभा सीटों में अच्छी खासी संख्या में रहते हैं. इसीलिए तराई के लोग ही इस लोकसभा सीट पर निर्णायक भूमिका में नजर आते हैं।  नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट पर लगभग 19 लाख वोटर हैं जिसमें लगभग 10 लाख पुरुष वोटर और 9 लाख महिला वोटर शामिल हैं।  इस सीट पर उधमसिंह नगर का खटीमा शहर नेपाल देश से लगा हुआ है जबकि दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है।  उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश से कई कर्मचारी यहां स्थित फैक्ट्री में काम करते हैं।  नैनीताल-उधमसिंह नगर क्षेत्र में ग्रामीण आबादी 63.11 फीसदी है जबकि 36.89 फीसदी शहरी जनसंख्या है. इसमें 16.08 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोगों की हिस्सेदारी है. जबकि 5.17 फीसदी अनुसूचित जनजाति की आबादी है. 17-18 प्रतिशत ओबीसी और 15 से 18 फीसदी क्षत्रिय और ब्राह्मण हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में 15 फीसदी मुस्लिम समुदाय निवास करता है। क्षेत्र की कुल आबादी 25 लाख है।  

नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की कर्मस्थली रही है।  यही कारण है कि 1951 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1957 तक के चुनाव में उनके दामाद यहां से सांसद चुनते आए।  इसके बाद 1962, 1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में पंत के बेटे केसी पंत ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की.राम लहर में हारे तिवारी: केसी पंत ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा लेकिन 1977 में लोक दल के नेता भारत भूषण ने केसी पंत के जीत के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए अपनी जीत दर्ज करवाई।  इसके बाद 1980 के चुनाव में एनडी तिवारी ने भारत भूषण को भारी मतों से हराया। 1984 के चुनाव में एनडी तिवारी ने अपने खास और करीबी सत्येंद्र चंद्र को यहां से बड़ी जीत दर्ज करवाई।  नारायण तिवारी को तब तक लोग देश का बड़ा नेता मान चुके थे लेकिन एनडी तिवारी की इस सीट पर 1989 में जनता दल के डॉक्टर महेंद्र पाल ने जीत दर्ज की।  1991 की राम लहर में नारायण दत्त तिवारी को इस सीट पर बलराज पासी के हाथों हार का सामना करना पड़ा।  इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को बड़े अंतर से हराया। 2002 में कांग्रेस के डॉ महेंद्र पाल ने इस सीट पर जीत दर्ज की।  इसके उपचुनाव में भी दोबारा वही जीते लेकिन साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा ने लगातार दो बार कांग्रेस को ही जीत दिलाई लेकिन उनका जीत का ये रथ 2014 के लोकसभा चुनाव में थम गया।   भगत सिंह कोश्यारी ने सीट भाजपा की झोली में डाली।  इसके बाद साल 2019 के चुनाव में भाजपा के अजय भट्ट ने जीत दर्ज कराई। 2024 के चुनाव में भी भाजपा ने अजय भट्ट को अपना उमीदवार बनाया है।  हालाँकि काम के मामले में अजय भट्ट कुछ खास नहीं कर पाए हैं लेकिन उन्हें भी इस बार मोदी की माला का ही सहारा है।  अपने चुनाव प्रचार के बीच अजय भट्ट ने ये कहा मेरे कर्मों की सजा आप मोदी को नहीं देना।  यह कहकर कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश जोशी को एक बड़ा मुद्दा हाथ दे दिया। हालाँकि प्रकश जोशी की जगह पर अगर यहाँ महेंद्र पाल , भुवन कापड़ी , यशपाल आर्य को अगर प्रत्याशी बनाया जाता तो कांग्रेस के लिए यहाँ पर अच्छी संभावनाएं हो सकती थी लेकिन फिलहाल भाजपा अपने संगठन  और कैडर के वोटोंके बूते इस सीट पर आगे नजर आ रही है।     

टिहरी-गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र टिहरी, उत्तरकाशी व देहरादून जनपद की 14 विधानसभा सीटों को मिलाकर बना है। आज़ादी के समय टिहरी राज्य का भारत में विलय होने के बाद यहाँ आम चुनाओं में स्थानीय राज घराने  का काफी दबदबा रहा है।टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट पूर्व में पौड़ी, दक्षिण में हरिद्वार, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और उत्तर में चीन की सीमा से सटा हुआ संसदीय क्षेत्र है। यह क्षेत्र  उत्तरकाशी, देहरादून और टिहरी गढ़वाल जिले के कुछ हिस्सों को शामिल कर बनाया है। कुल 14 विधानसभा क्षेत्र, पुरोला, यमुनोत्री, गंगोत्री, घनसाली, प्रतापनगर, टिहरी, धनोल्टी, चकराता, विकासनगर, सहसपुर, रायपुर, राजपुर रोड, देहरादून कैंट व मसूरी , इस संसदीय क्षेत्र में शामिल हैं। पर्यटन के लिहाज़ से ये संसदीय सीट काफी महतवपूर्ण है और उत्तराखंड की आर्थिक मजबूती बनाए रखने में इस क्षेत्र का खासा योगदान है l लाखमंडल, गोमुख, गंगोत्री, यमुनोत्री धाम तथा दुनियां का आठवां सबसे बड़ा टिहरी बांध सहित स्वामी रामतीर्थ की तप स्थली और श्रीदेव सुमन की कर्मस्थली इसी लोकसभा सीट के अंतर्गत आते हैं l इसके अतिरिक्त चम्बा, बुढा केदार मंदिर, कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग आदि प्रसिद्ध स्थान भी इसी लोकसभा  क्षेत्र का हिस्सा हैंl

1949 में टिहरी राज्य का भारतीय संघ में विलय के होने के बाद 1951-52 के पहले लोकसभा चुनाओं में राजा मानवेंद्र शाह का नामांकन खारिज होने पर महारानी कमलेंदुमति को निर्दलीय चुनाव में उतारा गया और उन्होंने इस सीट पर पहले ही लोकसभा चुनाओं के बाद राज परिवार की उपस्थिति दर्ज़ करवा दी l इसके बाद हुए चुनावों में टिहरी रियासत के अंतिम राजा मानवेंद्र शाह 1957 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे और 1967 तक वे इस सीट पर सांसद रहेl इसके बाद जब साल 1971 में कांग्रेस के टिकट से परिपूर्णानंद ने टिहरी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज़ की l1977 में त्रेपन सिंह नेगी बीएलडी की टिकेट पर यहाँ से चुनाव जीते और 1980 में कांग्रेस में शामिल हो विजय हुए। एक बार फिर राज परिवार इस सीट से संसद के भीतर पहुंचे लेकिन बीजेपी की टिकेट पर l पहले 1991 और फिर 2004 में मानवेंद्र शाह भाजपा की टिकट पर सांसद चुने गए। इसके बाद साल 2009 में हुए चुनाओं में कांग्रेस ने वापसी करते हुए विजय बहुगुणा ने यहाँ से जीत हासिल की। लेकिन विजय बहुगुणा के प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से खाली हुई इस सीट पर भाजपा ने मौजूदा सांसद राज्य लक्ष्मी शाह को उपचुनाओं के दौरान मैदान में उतार, जो तब से लगातार इस सीट पर अपना वर्चस्व कायम रखे हुईं हैंl राज्य लक्ष्मी शाह ने 2014 में कांग्रेस से साकेत बहुगुणा और 2019 में प्रीतम सिंह को शिकश्त दीl लेकिन ये दोनों ही जीत मोदी लहर के बीच भी बहुत बड़े फासले की जीत नहीं थी, कांग्रेस को 2014 में 31 फीसदी और 2019 में 30 फीसदी मत मिले थे। एक बार फिर बीजेपी ने माला राज्य लक्ष्मी शाह को चुनाव मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला इस बार कांग्रेस प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला से होगा। गुनसोला पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन इस सीट पर सबसे अधिक निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार की चर्चा है जिसने पेपर लीक के मसले को उठाकर उत्तराखंड की राजनीती में युवाओं के एक बड़े तबके के दिल को जीतने का काम किया है।  बॉबी को उक्रांद का भी समर्थन हासिल है लेकिन उनके पास भाजपा जैसे चुनाव लड़ने के संसाधन और बूथ मैनेजमेंट नहीं है।  अगर यह चुनाव बाबी हार भी जाते हैं तो उत्तराखंड की भविष्य की राजनीती में वो सितारे बन सकते हैं।  इस सीट पर बॉबी पंवार  के होने से कांग्रेस के वोटों में सेंध लगने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

 टिहरी लोकसभा सीट पर कुल 19.74 लाख मतदाता हैंl इनमें से 8.13 लाख पुरुष मतदाता हैं जबकि 7.60 लाख महिला मतदाता हैं l वहीँ 18 से 19 आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 28,638 है, जबकि 85 वर्ष से अधिक उम्र वाले मतदाताओं की संख्या 12,999 हैl इसके अलावा दिव्यांग मतदाताओं की संख्या 16, 363 जबकि सर्विस वोटर की संख्या 12, 876 हैl टिहरी सीट पर लगातार तीन बार चुनाव जीतने वाली भाजपा की महारानी माला राजलक्ष्मी के मुकाबले कांग्रेस के जोत सिंह गुनसोला मैदान में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रीतम सिंह टिहरी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े हैं और तीन लाख से ज्यादा मतों से हार चुके हैं। अगर टिहरी सीट से प्रीतम सिंह कांग्रेस के स्वाभाविक उम्मीदवार होते तो मुकाबला जोरदार होता लेकिन प्रीतम सिंह चुनाव लड़ने से पहले ही इनकार कर चुके थे। 

राज्य की सबसे बड़ी और विषम भौगोलिक परिस्थिति वाली गढ़वाल संसदीय सीट है। प्रदेश के पांच जिलों को समेटती इस सीट में जहां तीन पर्वतीय जिले पौड़ी, चमोली व रुद्रप्रयाग हैं, वहीं टिहरी जिले के दो विधानसभा क्षेत्र देवप्रयाग व नरेंद्रनगर और नैनीताल जिले का रामनगर विधानसभा क्षेत्र शामिल है।सीट की विषम भौगोलिक परिस्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनावी दंगल में उतरने वाले प्रत्याशियों को जहां चीन सीमा से लगे नीती-माणा व केदारघाटी समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र की खड़ी चढ़ाई नापनी पड़ती है, वहीं कोटद्वार भाबर के साथ ही रामनगर तक की दौड़ लगानी पड़ती है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अब तक हुए लोकसभा के चार चुनाव में इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा।यह सीट तीन बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के पास रही। राज्य बनने के बाद वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के मेजर जनरल (सेनि) भुवनचंद्र खंडूड़ी ने इस सीट पर विजय प्राप्त की थी। वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सतपाल महाराज ने इस सीट पर कब्जा जमाया।वर्ष 2014 में भाजपा के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेनि) भुवनचंद्र खंडूड़ी ने जीत दर्ज की। वर्ष 2019 में भाजपा के तीरथ सिंह रावत इस सीट पर विजयी रहे। तीरथ सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी का राजनीतिक शिष्य माना जाता रहा है।

2019 के लोकसभा चुनाव में गढ़वाल संसदीय सीट में मतदाताओं की कुल संख्या 13,55,776 थी। इसमें 6,46,688 महिला और 6,74,632 पुरुष मतदाता थे। वर्तमान में  गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 13,58,703 है।  2019 में संपूर्ण गढ़वाल संसदीय सीट में पौड़ी जिले में सर्वाधिक 42.41 प्रतिशत से अधिक मतदाता रहे। रुद्रप्रयाग जिले में 14.13 प्रतिशत, चमोली में 22.40 प्रतिशत, टिहरी जिले की दो विधानसभा क्षेत्रों में 12.64 प्रतिशत और रामनगर विधानसभा क्षेत्र में 8.39 प्रतिशत मतदाता हैं। संसदीय सीट के अंतर्गत कुल 14 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे कम 79,061 मतदाता लैंसडौन में हैं। इस सीट पर करीब 84 प्रतिशत हिंदू, दस प्रतिशत मुस्लिम, चार प्रतिशत सिख और दो प्रतिशत इसाई मतदाता हैं। हिंदुओं के दो प्रमुख तीर्थ धाम बदरीनाथ और केदारनाथ के साथ पंच बदरी व पंच केदार के अलावा सिखों के प्रसिद्ध तीर्थ हेमकुंड साहिब समेत कई प्रमुख धार्मिक एवं पर्यटन स्थल इस क्षेत्र में हैं।गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर का मुख्यालय भी इसी सीट के अंतर्गत है। गढ़वाल संसदीय सीट में सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े परिवारों की संख्या काफी अधिक है और यही मतदाता चुनाव में निर्णायक भूमिका का निर्वहन भी करते हैं।

प्रदेश में लोकसभा की पांचों सीटों पर भाजपा का सबसे ज्यादा फोकस गढ़वाल सीट पर ही रहा। इस सीट पर पूर्व राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी के पक्ष में चुनावी प्रचार के लिए भाजपा के बड़े-बड़े नेता और स्टार प्रचारकों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जैसे दिग्गजों ने बलूनी के पक्ष में जमकर पसीना तो बहाया, साथ ही वोटरों  को रिझाने के लिए कई गांरटियां मतदताओं के सामने रखने में कमी नहीं की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा अनिल बलूनी के प्रचार के दौरान दी गई गांरटी से साफ हो गया है कि भाजपा के लिए गढ़वाल सीट जीतना इस बार  आसान नहीं लग रहा  है। बलूनी की पैराशूट नेता की छवि के साथ ही दिल्ली में रहनेवाले नेता की छवि पूरे इलाके में बन रही है जिसको कांग्रेस के गणेश गोदियाल बेहतर ढंग से कैश करने में पीछे नहीं हैं।  गढ़वाल सीट पर सबसे ज्यादा  चर्चा कांग्रेस के उम्मीदवार गणेश गोदियाल को मिल रही है, जहाँ खुद गोदियाल अकेलेभाजपा के संसाधनों और स्टार प्रचारकों से लोहा ले रहे हैं।  वह राज्य के ऐसे नेता हैं जो पहली बार भाजपा को मोदी के अंदाज में चुनौती दे रहे हैं। गणेश गोदियाल के प्रचार  और जान अपील को देखकर ये  कहा जा सकता है भविष्य में उत्तराखंड में कभी कांग्रेस को कोई उबार सकता है तो वो नई पीड़ीके नेता गोदियाल ही होंगे।   जिस तरह से गोदियाल के पक्ष में  गाँवों से लेकर शहरों में युवाओं और महिलाओं का  का हुजूम उमड़ रहा है  उससे भाजपा परेशान हो चुकी है। अंकिता भंडारी हत्याकांड, भर्ती घोटाला, और अग्निवीर योजना के साथ-साथ केदारनाथ में सोना लगाए जाने के मामले को गोदियाल अपने चुनाव प्रचार में जमकर हवा दे रहे हैं। इससे भाजपा को न उगलते बन रहा है न निगलते। नरेंद्र मोदी की स्टाइल में गढ़वाली भाषण में बैटिंग कर रहे गोदियाल ने अभी तक पिच पर अपनी सफल बल्लेबाजी की है और अपना पूरा फोकस स्थानीय मुद्दों की तरफ किया हुआ है जिस पर जनता भी हामी भरती  दिखाई देती है।पत्रकार आशुतोष नेगी भी निर्दलीय इस सीट से मैदान में लड़ रहे हैं जिनको उक्रांद ने अपना समर्थन दिया है।  अंकिता भंडारी से जुड़े सवालों को वो लगातार अपनी सभाओं में उठा रहे हैं जिससे गढ़वाल की जंग इस बार स्थानीय के साथ दिल्ली केन्द्रित उमीदवार के विमर्श में आकर खड़ी  हो गई है।     

इस बार सीधे -साधे ईमानदार  नेता तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर भाजपा  गढ़वाल सीट पर बुरी तरह से फंस चुकी  है। दशकों से गढ़वाल सीट को भाजपा के लिए सुरक्षित माना जा रहा था लेकिन गोदियाल ने यहाँ अच्छा चुनाव लड़कर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है।   भाजपा के बड़े-बड़े नेता आये दिन  बलूनी के पक्ष में मतदताओं को रिझाने में लगे हैं लेकिन उसके पास गोदियाल की कोई काट नहीं मिल पा रही।चुनाव प्रचार के दौरान एक बार तो   केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मतदाताओं को यह कहते हुए नजर आए कि आप बलूनी को सिर्फ एक सांसद के तौेर पर नहीं चुन रहे हैं, बल्कि बलूनी केंद्र में बड़े पद पर जाने वाले हैं इसके बाद भी गढ़वाल गोदियाल के पक्ष में खड़ा होता जमीनी स्तर पर दिखाई दे रहा है।  यहां तक कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट जोशीमठ में बलूनी के पक्ष में वोट की अपील करते हुए  रो दिए।  यही महेंद्र भट्ट पहले जोशीमठ में प्रदर्शन करने वालों को माओवादी कह चुके थे।  अब चुनावी मौसम में उन्हीं के बीच हाथ जोड़ते और आंसू गिराते देखे। कांग्रेस का कोई स्टार प्रचारक तक गढ़वाल सीट पर प्रचार के लिए नहीं पंहुचा लेकिन गोदियाल जनसमर्थन और विश्वास से इस बार कांग्रेस को मजबूत स्थिति में लेकर आ गए हैं।  भाजपा  चमोली जिले में भाजपा कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी को अपने पाले में ला चुकी है लेकिन राजेंद्र के भाजपा में शामिल होने के बाद भंडारी के खिलाफ क्षेत्र के मतदाताओं में भारी रोष देखने को मिल रहा है जिसका नुकसान भाजपा को होने की आशंका बन गई है।  जोशीमठ  की भीषण आपदा के दंश से अभी तक वहां की जनता उबर नहीं पाई है और इसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ सकता है।  केदारनाथ पुनर्निर्माण के कार्यों को लेकर भी सरकार के खिलाफ भारी नाराजगी बनी हुई है जिसका नुकसान बलूनी को हो सकता है।  इसी तरह से  पौड़ी, देवप्रयाग, कोटद्वार ,श्रीनगर , चौबट्टाखाल सीटों पर भाजपा द्वारा जमकर कांग्रेस में तोड़फोड़ की गयी है जिससे भाजपा का पुराना कार्यकर्ता नाराज हो चला है जिसका प्रभाव पूरी सीट पर दिखाई देता है।  नए-नए भाजपाई बने कांग्रेसी नेताओं को प्रचार में झोंकने से स्थानीय भाजपा नेताओं की पूछ परख काम हुई है  जो चुनाव में असर डाल सकती है। पौड़ी गढ़वाल सीट पर  2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे मनीष खंडूड़ी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है लेकिन अपने पिता बी सी खंडूड़ी के वोटों पर वो कितना दखल रखते हैं ये इस चुनाव में सही से पता चल जाएगा।  बलूनी के पौड़ी सीट से उम्मीदवार बनाये जाने के बाद से ही  राज्य भाजपा के बड़े नेताओं की मुश्किलें बढ़ गई  हैं।  इन सभी नेताओं को खुद के भविष्य को लेकर खतरा लग रहा है जिस कारण वे मन से बलूनी के प्रचार में नहीं लगे हैं।  

बहरहाल राज्य गठन के 24 बरस बाद भी  प्रदेश की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस का ही दखल रहा है।  राज्य बनने के बाद हुए  4 लोकसभा चुनाव हुए हैं जिनमें कांग्रेस और भाजपा की सरकारें रही। पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज एक सीट के साथ 38.31 प्रतिशत मत मिले थे तो वहीं भाजपा को तीन सीट मिलने के साथ 40.98 प्रतिशत मत मिले थे जो कि कांग्रेस से महज 2.67 प्रतिशत ही ज्यादा रहा। इसी तरह 2009 में भाजपा की खंडूड़ी सरकार होने के बावजूद कांग्रेस को पांच सीटों के साथ ही 36.11 प्रतिशत वोट हासिल हुए जबकि भाजपा को 2004 के मुकाबले लगभग 13 फीसदी वोटों का भारी नुकसान हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी की  सुनामी  रही  तब  भाजपा ने पाँचों सीटें 56 प्रतिशत वोट से अपने नाम की लेकिन इस चुनाव में भी कांग्रेस के खाते में भले ही एक सीट नहीं आ पाई हो उसका वोट प्रतिशत 34.40 प्रतिशत रहा जो कि 2009 के मुकाबले महज दो प्रतिशत ही कम रहा। मोदी लहर होने के बावूजद कांग्रेस पार्टी पर मतदाताओं ने अपना भरोसा नहीं खोया लेकिन इस बार 2024 की परिस्थितयां अलग हैं।  कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने जिस तरह से इस चुनाव में चुनाव लड़ने से इंकार किया है वह राज्य के साथ ही देश के भविष्य के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है।  आज कांग्रेस की जो हालत है उसके लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं की गुटबाजी और पार्टी आलाकमान  ही जिम्मेदार है लेकिन पुरानी गलतियों से भी देश की सबसे पुरानी पार्टी सबक लेने को तैयार नहीं है।  देखना होगा 4 जून को जब चुनाव परिणाम आएंगे तो लोकसभा में ऊंट किस करवट बैठेगा ?