Monday 30 March 2020

मध्य प्रदेश में फिर से ' शिव ' का राज

  




उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद भाजपा की डगमगाती नैय्या को सही मायनों में अगर किसी ने मध्य प्रदेश में पार लगाया है तो बेशक वो शिवराज सिंह चौहान ही हैं । मध्य प्रदेश में एक बार फिर राज्य की कमान शिवराज सिंह चौहान ने  संभाल ली  है | चौथी बार सीएम बनकर शिवराज नेमध्य प्रदेश में    विधानसभा में बहुमत हासिल कर  इतिहास रच दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब प्रदेश में कोई चौथी बार मुख्यमंत्री बना है। शिवराज के अलावा अब तक अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल भी तीन-तीन बार सीएम की कुर्सी संभाल चुके थे |

 सूबे में सबसे ज्यादा समय तक गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का तो कीर्तिमान उन्होंने बना ही लिया है और अब मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार  लेने के बाद प्रदेश में शिवराज का नायकत्व उन्हें सफल मुख्यमंत्री की कतार में लाकर खड़ा कर रहा है | विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस अंदाज में मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकालने में सफलता पाई  वह उनके दूरदर्शी नेतृत्व की मिसाल है | पिछले कुछ समय से  शिवराज ने भाजपा के अंदरुनी उठापटक को शांत करने के साथ-साथ विकास की नई लकीर भी खिंची जिसकी परिणति चुनाव दर चुनाव जोरदार बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता वापसी के रूप में हुई | विकास को मॉडल बना कर दिग्विजय सिंह ने यहाँ 10 वर्षों तक राज किया लेकिन वह विकास को लोगों तक पहुंचाने में सफल नहीं रहे जिस कारण उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। एक कद्दावर नेता होते हुए  कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस को जहाँ  हाल के 15  महीनों में नहीं संभाल  सके वहीँ  वहीँ भाजपा ने  भी उमा भारती से लेकर बाबूलाल गौर तक को प्रदेश की सत्ता सौपकर कई प्रयोग किये लेकिन इन दोनों के सी एम पद से हटने के बाद पूरी भाजपा को एकजुट कर पाना मुश्किल था | ऐसे समय में शिवराज ने सत्ता और संगठन के साथ बेहतर तालमेल कायम कर मध्य प्रदेश में चुनाव दर चुनाव जीतकर भाजपा की उम्मीदों को नए पंख लगा दिए | प्रदेश में पिछले कुछ समय से  भाजपा का मतलब शिवराज चौहान अगर रहा है तो इसका बड़ा कारण उनका  बेहतर संगठनकर्ता होने के साथ ही जनता के सरोकारों की राजनीति करने वाला नेता होना रहा | पिछले  विधान सभा चुनाव में भाजपा मध्य प्रदेश में बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी लेकिन वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी  | कांग्रेस ने कमलनाथ को  सौंपी  लेकिन शिवराज  प्रदेश में सक्रियता में कोई कमी नहीं आयी | वह सड़क से लेकर विधानसभा तक न केवल जनता से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर  कुशल संगठनकर्ता  बन अपनी छाप भाजपा के  सदस्यता अभियान में छोड़ी जो आज सबसे बड़े सक्रिय सदस्यों वाली पार्टी बन चुकी है |   भाजपा के सदस्यता अभियान के संयोजक बनकर  शिवराज  ने पार्टी में खुद की उपयोगिता को साबित किया |  

शिवराज की राजनीती लोगों को आपस में जोड़ने की रही है और उनकी जीत का मूल मंत्र विकास और निर्विवाद रूप से साफ़ छवि  रही  है और उनके शासन का विकास मध्य प्रदेश में धरातल में दिखलाई भी देता है | शिवराज ने  लोगो  के बीच पिछले  कार्यकाल में अगर बेहतर मुख्यमंत्री की छवि बनाई  तो इसका कारण राजनीती के प्रति उनका समर्पण और जनता के सरोकारों से खुद को जोड़ने वाला नेता रहा है |   हालांकि   शिवराज  पर  उनके अपने और विरोधी   भ्रष्टाचार के भी आरोप लग चुके हैं लेकिन इससे शिवराज की  विश्वसनीयता पर कोई असर नहीं पड़ा क्युकि भ्रष्टाचार से जुड़े हर मामले में  उन्होंने खुलकर अपना पक्ष रखा |यही नहीं व्यापम के जिस घोटाले पर जब विपक्ष ने उन पर आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया तब भी वह ईमानदारी से मीडिया के सामने अपना पक्ष रखने से पीछे नहीं रहे और जांच कमेटी बनाकर मिसाल कायम की |

शिवराज चौहान का जन्म पांच मार्च, 1951  को एक किसान परिवार में हुआ। भोपाल के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। कॉलेज जीवन से ही चौहान की दिलचस्पी राजनीति में थी। वे 1975  में मॉडल सेकेंडरी स्कूल छात्रसंद्घ के नेता रहे। 1975  में आपातकाल लगा जिसके विरोध में शिवराज आगे आये और 1976-77 में भोपाल जेल में बंद भी रहे। इसके बाद 1977  में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्घ से जुड़े। इसके बाद भाजपा के साथ इनका सफर चल पड़ा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के विभिन्न पदों पर काम किया। चौहान पहली बार 1990  में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। 1991  से लगातार  पांच बार विदिशा लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। सांसद रहते उन्होंने कई महत्वपूर्ण समितियों में काम भी किया।विरोधियों को चुप्पी के साथ दरकिनार करने और अनर्गल बयानबाजी से बचनेवाले चौहान को 2005  में मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय संगठन में भारी उथल-पुथल के साथ गुटबाजी चल रही थी। उमा भारती के जाने के बाद प्रदेश भाजपा काफी कमजोर हो गई थी। ऐसे समय में इन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। 13 वीं विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम हासिल करने की  बड़ी चुनौती  तत्कालीन  समय में उनके सामने थी जिस पर चौहान खरे उतरे और भाजपा को जीत दिलाई। लगातार तीन बार  सीएम   हैट्रिक लगाई  और अब चौथी बार कमान संभाल  रहे हैं।

मध्यप्रदेश की जनता के लिए अभिशाप ही रहा कि जो भी शासन में रहा मूल समस्याओं पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और वे आपसी खींचतान में लगे रहे लेकिन शिवराज ने न केवल मामा बन महिलाओं के दिलों में राज किया बल्कि जन जन तक अपनी पैठ विकास कार्यों से बनाई | मध्य प्रदेश में शिवराज का परचम जिन उंचाईयों को  छुआ उसने  कांग्रेस की मुश्किलों  को  हमेशा बढ़ाया  |  15  महीने  विपक्ष में बैठकर भी शिवराज सिंह चौहान  ने   सशक्त  और यशस्वी मुख्यमंत्री की छवि बनाकर झटके में मध्य प्रदेश की राजनीति में  दिग्गी राजा और कमलनाथ  के कद को एकदम से कम कर दिया  । इस समूचे दौर में भी  कांग्रेस की असल मुश्किल गुटबाजी ने बढाई हुई है | आज भी उन्हीं  परिस्थितियों  से कांग्रेस जूझ रही है जो परिस्थितियां  सुरेश पचौरी, अरुण यादव के दौर में  के दौर में थी तो समझा जा सकता है कांग्रेस की मुश्किलें किस कदर प्रदेश में बढती ही जा रही हैं |  इसी गुटबाजी  ने  मध्य प्रदेश में  15  महीने  में कांग्रेस सरकार का खेल मध्य प्रदेश से खत्म कर दिया | रही सही कसर ज्योतिरादित्य सिंधिया सरीखे  युवा तुर्क और उनके समर्थकों  की उपेक्षा ने पूर्ण कर दी |  

शिवराज ने  मध्यप्रदेश में  अपनी दूरगामी योजनाओ के आसरे लोगों के दिलो में नई आस कायम की । शिवराजसिंह चौहान  खुद किसान परिवार से रहे हैं लिहाजा  किसानों और आम आदमी के  सरोकारों  के प्रति वह काफी संवेदनशील रहे हैं । अपने  कार्यकाल में उन्होंने कई योजनाओं को न केवल धरातल पर उतारने में सफलता पाई  बल्कि अन्य राज्यों को कन्याधन और लाडली लक्ष्मी सरीखी योजना लागू करवाने के लिए मजबूर किया ।  यही नहीं प्रदेश में कई औद्योगिक ईकाईयों की स्थापना कर यह साबित भी कर दिखाया अगर आप एक निश्चित विजन के साथ आगे बढ़े तो राज्य को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता |  मुख्यमंत्री पंचायत के नाम से आरंभ की गई योजना ने शिवराजसिंह के बारे में यह धारणा पुख्ता कर दी कि वह आम आदमी के मुख्यमंत्री हैं । यही नहीं विभिन्न प्रदेशो की सरकारें जहाँ महिलाओं को आरक्षण देने की हवाई बयानबाजी करने से बाज नहीं आई वहीँ  शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण  देकर अपनी कथनी और करनी को साकार किया । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने समावेशी विकास का खाका खींचकर यह भी साबित किया कि उनकी नीतियों के केंद्र में आम आदमी है शायद यही वजह है शिवराज को आम इंसान ने खूब दुलार दिया ।  15  महीने विपक्ष में रहने के दौरान  भी शिवराज का जनता जनार्दन की तरफ झुकाव काम नहीं हुआ |  अपने  पिछले  कार्यकाल  में भी  शिवराज ने न केवल जनता के बीच घर घर जाकर लोगों की समस्याओं को सुना बल्कि किसानो की समस्याओं का समाधान करने की दिशा में कोई कसर नहीं छोडी ।  पेटलावाद हादसे और रतनगढ़ हादसे की विषम परिस्थितियों में भी शिवराज ने धैर्य नहीं छोड़ा और लोगों के बीच जाकर दुःख में सहभागी बने ।अपने कार्यकाल में चुनाव दर चुनाव में विजय पताका फहराने वाले शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में कभी अपनी ठसक हावी नहीं होने दी । हंसी ठिठोली के साथ वह सत्ता और संगठन में अपनी कदमताल करते रहे और  विनम्र बनकर जनता जनार्दन को सबसे बड़ी ताकत बताते रहे ।  शिवराज राजनीती में सादगी पसंद  राजनेता  रहे हैं |  वह  समस्याओं के  तत्काल निवारण करने वाले राजनेता रहे हैं  ऐसा बीते 15  महीने  विपक्ष में रहकर भी उन्होंने दिखाया है | यकीन मानिए विपक्ष में रहते कठिन समय में उन्होंने अपना धैर्य नहीं  खोया  और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार  को हर मसले पर घेरने का कोई मौका नहीं चूका |  15  महीने  पहले हुए  विधानसभा  चुनाव में भाजपा सत्ता  की दहलीज  पर पहुँचने में कामयाब नहीं हो  पाई लेकिन शिवराज का कद मध्य प्रदेश की  सियासत में कम नहीं हुआ |  शिवराज मामा  की अगुवाई में ही में भाजपा ने 2014 के लोक सभा चुनावों में 27 सीटें  और 2019  के लोक सभा  चुनावों में 28  सीटों पर कमल खिलाया जो भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन  प्रदेश की सियासत में रहा |  

 सत्ता को सेवा का माध्यम और खुद को पार्टी का अदना सा सेवक मानने वाले शिवराजसिंह  ने प्रदेश में पहला गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री  होने का रिकार्ड  कायम कर लिया है और अब उनकी नजरें जन जन तक  सरकार की नीतियों  को पहुचाने की तरफ लगी हुई हैं क्युकि लोकतंत्र में जनता से बढ़कर कुछ नहीं है खुद शिव का दर्शन भी यह कहता है लोकतंत्र में हार-जीत होती रहती है। महत्वपूर्ण यह है कि हार से सबक लेकर हमें यह देखना चाहिए कि जनता में यदि कोई विपरीत भाव पैदा हुआ है तो उसे कैसे दूर किया जाए?  

चौथी बार का  भावी सफर अब शिवराज चौहान के लिए आसान नहीं है। आने वाले समय में अगर  उन्हें भाजपा का विजयरथ जारी रखना है तो अपने विकास मॉडल को जन जन तक पहुचाना पड़ेगा ।  मध्यप्रदेश से मोदी सरकार में समुचित प्रतिनिधित्व होने के चलते अब सांसदों की भी यह नैतिक  जिम्मेदारी है कि  विकास के लिए एकजुट हों और केंद्र  सरकार के साथ बेहतर तालमेल कायम रखे | देश का मिजाज बदल रहा है और राज्यों के चुनाव और केंद्र के चुनाव में अब विकास सबसे बड़ी प्राथमिकता है लिहाजा शिवराज को भी समझना होगा वह विकास का मूल मंत्र आम लोगों तक कैसे पहुंचाएं इसकी चिंता जरूर सीएम को होनी चाहिए जिससे 6 माह में होने वाले विधानसभा उपचुनाव चुनावों में भी भाजपा अपना विजयरथ जारी रख सके | इस  बार  कैबिनेट के  गठन की भी  एक बड़ी चुनौती उनके सामने  है | शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके पुराने  विधायक  भी मंत्री पद पाने की लालसा  में  हैं   वहीँ  कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल  सिंधिया समर्थक भी अपने लिए  जोर  आजमाईश में   जुट  गए हैं | मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार पर संकट का कारण सभी को ना साध  पाना रहा | कमलनाथ सरकार के दौर में सरकार और  संगठन में दिग्विजय सिंह का दखल बढ़ गया था |   शिवराज के सामने  अब ऐसी ही  विकट परिस्थिति है | एक तरफ खुद  अपने भाजपा के  विधायकों  साधना है दूसरी तरफ कांग्रेस से भाजपा में आये सिंधिया समर्थकों को   मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देना है | इसके अलावा निर्दलीयों की नजरें भी मंत्री पद पर लगी हुई हैं |


शिवराज को अपने पिछले कार्यकाल से भी सबक लेना चाहिए | 15  माह पहले हुए विधान सभा चुनाव में वह खुद तो अपनी सीहोर  विधान सभा सीट जीत गए थे लेकिन उनकी कैबिनेट के नकारा  चुनाव हार गए थे जिसके चलते शिवराज सरकार बहुमत से दूर चली गयी | ऐसे में इस  नई  पारी में  उनको सत्ता  संगठन में बेहतर तालमेल बनाना ही होगा | इस बार शिवराज के साथ संगठन में विष्णु दत्त शर्मा सरीखा  युवा चेहरा प्रदेश अध्यक्ष है |  विष्णु दत्त शर्मा वर्तमान में खजुराहो से सांसद हैं | वह  मध्य प्रदेश भाजपा में प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी एक दौर में संभाल  चुके हैं |  विष्णु दत्त शर्मा की  राजनीति   अस्सी के दशक में  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से  शुरू हुई , इसके बाद वह  2013 में भाजपा में आए। इस दौरान उन्होंने भाजपा में विद्यार्थी परिषद की  तर्ज पर  युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने  का काम किया | विष्णु दत्त शर्मा अपनी नई  टीम में किसे जगह देते हैं यह आने वाले दिनों में पता चलेगा लेकिन शर्मा के सांगठनिक कौशल का लाभ शिवराज को मिलना तय है | मध्य प्रदेश भाजपा में शिवराज और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी को एक दौर में अजेय समझा जाता था | इस बार विष्णु दत्त शर्मा से भी  पार्टी को वही उम्मीदें हैं |  
आने वाले दिनों   के भीतर  प्रदेश  में 24  विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है जहाँ शिवराज की साख सीधे  दांव पर लगी  होगी जिनमें से अधिक  से अधिक सीट जीतने की बड़ी चुनौती उनके  सामने होगी | देखना होगा शिवराज और शर्मा  इस चुनौती से आने वाले  दिनों में कैसे निपटते हैं  ?

 विकास को प्राथमिकता में रख कर यदि उन्होंने अंतिम व्यक्ति के लिए फैसला नहीं लिया तो भाजपा को भी कांग्रेस की कार्बन कापी बनने में देरी  नहीं लगेगी | मध्य प्रदेश की जनता की निगाहें अब एक बार फिर   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ लगी हैं  ऐसे  में शिवराज को  निष्कंटक होकर फिलहाल अपनी सारी उर्जा मध्य प्रदेश के विकास को नई गति देने में लगानी  चाहिए |

Monday 2 March 2020

दिल्ली भाजपा की उम्मीदों पर फिर से लगा झाड़ू






दिल्ली  की सरजमीं  में अरविन्द  केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने दिल्ली में वह सब तीसरी बार  करके दिखा दिया  जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी । कहाँ  तो  चुनाव से पहले  भाजपा और आप  की लड़ाई दिल्ली में कांटे की  बताई  जा रही थी और जब चुनाव परिणाम आये तो भाजपा के  चुनावी प्रबंधकों के तोते उड़ गए । किसी ने ठीक ही कहा है आप पर जितने व्यक्तिगत हमले होते हैं उतनी मजबूती के साथ उभरकर सामने आते हैं । दिल्ली के चुनावो के चुनावी परिणामों को डिकोड करें तो जेहन  में यही तस्वीर उभरकर सामने आती है ।  दिल्ली में आप की  प्रचंड बहुमत से जीत ने राष्ट्रीय राजनीती में उस शख्स  का कद बड़ा दिया है जिसे अब तक भगोड़ा ,  अराजकवादी, आतंकी और नक्सली करार दिया जा रहा था ।  दिल्ली चुनाव जीतकर केजरीवाल  ने सही मायनों में अपनी नई छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में भावी  फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है । 2019 के लोक सभा  चुनावो  में  जिस तरह आप के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी उससे   यह लगने  लगा था यह पार्टी जल्द हुई बिखर जाएगी  लेकिन केजरीवाल ने  साढ़े चार बरस जिस तरह केंद्र राज्य की नूराकुश्ती में गुजारने के बाद आखिर  के 6 महीने  जिस तरीके से दिल्ली की सडकों  पर कार्यकर्ताओ को साधकर  अपनी बिसात बिछाई   उसने इस भ्रम को हकीकत में बदलने के बजाए  तोड़  दिया । आप पार्टी  के बारे में उनके विरोधी का  एक बड़ा तबका इस बार  जीत  को लेकर बेहद आशंकित था ।  इस बार   दिल्ली चुनाव में जिस   तरीके से गृह मंत्री अमित शाह  की टीम  राज्य  में  लगी हुई थी उससे दिल्ली की लड़ाई में इस बार भाजपा  के मैजिक चलने के आसार   बताये जा रहे थे  शायद तभी  कहा जाने लगा था दिल्ली का  यह चुनाव मोदी सरकार के अब तक  का कार्यकाल के  एसिड  टेस्ट  से कम नहीं है |  इस बार के चुनाव में जिस तरह एनआरसी के मसले की गूंज सुनाई दी उसने ध्रुवीकरण की राजनीतिक जमीन भाजपा के सामने तैयार कर दी जिससे यह माना जाने लगा था भाजपा शाहीनबाग़ के प्रकरण को भुनाने की पूरी तरह से तैयार है   लेकिन केजरीवाल  ने अपने बूते दिल्ली  फतह  कर यह बता दिया सधी हुई रणनीति से चुनाव कैसे जीते जाते हैं | | 



दिल्ली चुनाव में एक छोर  पर केजरीवाल थे तो दूसरे छोर  पर 240   सांसदों  से लेकर  केंद्रीय मंत्रियों और दूसरे  राज्य से दिल्ली लाये गये भाजपा नेताओं  और कार्यकर्ताओं की टोली जो दिल्ली में  भाजपा की जीत  के लिए एड़ी चोटी  का जोर लगा रही थी । इन सभी ने केजरीवाल पर इतने ज्यादा व्यक्तिगत हमले किये जिसके बाद केजरीवाल दिल्ली की मजबूत दीवार बनकर उभरे । भाजपा का यही  नकारात्मक चुनाव प्रचार दिल्ली में पार्टी की लुटिया को डुबो गया साथ ही बड़बोले सांसदों के खुले बयान जिसने चुनाव पास आते आते भाजपा का खेल खराब कर दिया  |  कल तक जो भाजपा के नेता चुनाव  परिणाम पार्टी के पूरी तरह अपने पक्ष में आने का दावा कर रहे थे  परिणाम आने पर उनके चेहरे पर हताशा साफ़ झलक रही थी ।   कम  से कम ऐसी हार  की कल्पना तो भाजपा के किसी नेता ने नहीं की होगी । दिल्ली  में झाड़ू ने  भाजपा का 22 बरस के वनवास को और बड़ा  कर दिया है ।  केंद्रीय सत्ता में दुबारा भारी बहुमत से आने के बाद  भाजपा दिल्ली में वापसी नहीं कर पा रही है तो यह ये नतीजे भाजपा को भी सोचने के लिए मजबूर करते हैं |  कांग्रेस तो ढल ही  रही  थी लेकिन भाजपा का इतना बड़ा संगठन होने के बाद भी दिल्ली में वापसी न होना पार्टी को अब भविष्य में अपनी रणनीति बदलने को मजबूर कर सकता है | नए अध्यक्ष जे पी नड्डा के लिए भी ये नतीजे आत्ममंथन करने को मजबूर करते हैं क्युकि कई राज्यों में कमल खिलने के बाद देश के दिल दिल्ली में कमल कई दशक से मुरझा रहा है | उनको भी अब इस बात को समझना पड़ेगा हर राज्य में जमीनी नेता तैयार करने होंगे  |  हर जगह आप प्रधानमंत्री मोदी के नाम और काम पर वोट नहीं मांग  सकते | 



 इस चुनाव में भाजपा  ने  केजरीवाल पर  जितने  व्यक्तिगत हमले किये शायद ही किसी राज्य के  चुनावो  में इस तरह के हमले किये गए । प्रधानमंत्री मोदी पर   व्यक्तिगत हमले  करने से  जहाँ इस बार केजरीवाल बचे  वहीँ इस बार  रामलीला  मैदान की  पहली रैली से ही प्रधानमंत्री मोदी ने  केजरीवाल को अपने निशाने पर ले लिया इसके बाद भी केजरीवाल ने अपने बयानों में संयम बरता | शायद वह दिल्ली में उस वोटर को नाराज नहीं करना चाहते थे जो पीएम  मोदी को वोट करता था | लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद केजरीवाल ने पी एम पर किसी भी तरह की टीका टिप्पणी नहीं की | केजरीवाल और उनकी पार्टी ने पूरे विधानसभा चुनाव में अपना फोकस किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर नहीं किया और न ही केंद्र सरकार को निशाने पर लिया। केजरीवाल ने चुनाव के दौरान किसी भी तरह के विवादास्पद मुद्दे से दूरी बनाए रखी। दिल्ली चुनाव में भाजपा ने शाहीनबाग को एक बड़ा मुद्दा बनाया लेकिन केजरीवाल ने पूरे चुनाव में शाहीनबाग से दूरी बनाए रखी। इसके उलट वह अपनी सरकार के कार्यों का ही प्रचार करते रहे। केजरीवाल चुनावों  के पहले से ही अपनी सरकार के  काम के सहारे दिल्ली वालों से वोट मांगने में जुट गए और उन्होंने चुनाव प्रचार में यहाँ तक कह दिया दिल्ली का यह चुनाव काम पर वोट करेगा |  केजरीवाल और उनकी पार्टी के बड़े नेताओं ने अपने सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी भाजपा के नेताओं के खिलाफ बोलने से परहेज करते रहे। चुनाव के दौरान केजरीवाल ने भाजपा के मोदी-शाह समेत तमाम बड़े नेताओं के खिलाफ कोई आक्रामक बयान नहीं दिया बल्कि विनम्रता  के साथ अपनी बात रखते रहे।  वहीँ  इसी दौर में किसी ने केजरीवाल के हनुमान मंदिर जाने पर ऐतराज जताया तो विपक्ष  ने केजरीवाल को विकासपुरुष के बजाए अराजक नेता के तौर पर अपनी सभाओ में पेश किया लेकिन जनता की अदालत में केजरीवाल बरी हो गए  ।  जनता ने दिल  खोलकर जिस तरह झाड़ू को वोट दिए हैं उसने पहली बार साबित किया  है अब जनता हर चुनाव बेहतर विकल्प की तलाश में है और जाति धर्म के नाम पर वोट के  बजाय वोट विकास के नाम पर मिलते हैं ।  दिल्ली चुनाव के नतीजों से एक बात साफ़ हुई है लोगों  ने आप को भाजपा और कांग्रेस  के मुकाबले बेहतर विकल्प के रूप में  देखा ।  भाजपा के लिए तो दिल्ली में सरकार बनाना नाको चने चबाने जैसा बन गया था क्युकि प्रधान मंत्री मोदी की प्रतिष्ठा अब सीधे दिल्ली से जुडी हुई थी   लेकिन पी एम ने इस बार ज्यादा रैलियां नहीं की | एक रैली रामलीला मैदान और दूसरी कड़कडडूमा और तीसरी द्वारका में ही की | भाजपा में दिल्ली चुनाव का पूरा प्रबंधन अमित शाह की टीम ने किया  और रैलियां  और रोड शो भी बड़े पैमाने में किये लेकिन सफलता भाजपा के हाथ नहीं लग सकी | भाजपा इस बार जहाँ चुनाव प्रचार में पीछे रह गयी  वही टिकेट चयन में हुई देरी भी हार का एक बड़ा कारण रहा |  वह जनता के बीच एमसीडी में उसके द्वारा किये गए कार्यों को पहुचने में नाकाम रही | 



  2019 के लोक सभा चुनाव  के बाद भले ही केजरीवाल की रफ़्तार थम गयी हो लेकिन दिल्ली में उनका बड़ा जनाधार आज भी है इस बात से अब  इनकार नहीं किया जा सकता | झुग्गी झोपड़ी से लेकर ऑटो चालक और रेहड़ी लगाने वालो से लेकर महिलाओ के एक बड़े तबके को केजरीवाल भा रहे हैं यह हमें स्वीकार करना होगा | आज भी दिल्ली की जनता को उनसे  बड़ी उम्मीद हैं यह इस चुनाव परिणाम ने साबित किया है  |   वहीँ भाजपा भी चुनाव को लेकर अपने पत्ते फेंटने की स्थिति में नहीं थी  | वह अपने किसी भी चेहरे को केजरीवाल के सामने नहीं ला सकी  | दिल्ली  की जनता को वह अपने काम का भरोसा नहीं दिला पायी और चुनावी समर में देर से मैदान में आई | 1731 कच्ची कालोनियों को पक्का करने का दांव भी उसने चुनाव की घोषणा से पहले चला जो कारगर नहीं हुआ |  टिकटों के चयन में पार्टी ने देरी की वहीँ स्थानीय मुद्दों के बजाए वह राष्ट्रीय मसलों पर और मोदी के नाम पर वोट माँगने लगी ।   दिल्ली में पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए कोई बड़ा चेहरा तो दूर अच्छे प्रत्याशी ही नहीं मिले  जो केजरीवाल को घेर सकें |  स्थानीय के बजाए राष्ट्रीय मसलों  पर ज्यादा फोकस  और अपने नेताओं की अंदरूनी लड़ाई  ने पार्टी  में गुटबाजी बढ़ाने का काम किया | बीजेपी ने चुनाव से कुछ दिन पहले ही प्रचार अभियान  शुरू किया जबकि केजरीवाल ने अपना चुनावी अभियान एक साल पहले से ही दमदार तरीके से  शुरू कर दिया  था |  90 के दशक के स्वर्णिम युग के बाद भाजपा दिल्ली में अपना संगठन तक खड़ा नहीं कर पायी और केजरीवाल के खिलाफ किसी चेहरे को खड़ा नहीं कर पाई |  सीएए जैसे मसले को भी वह जनता के बीच सही तरह से पहुचने में कामयाब नहीं हो सकी |  समाज के मजदूर और पिछड़े तबके के साथ ही  मध्यम वर्ग  और महिलाओं  का एक बड़ा वोट बैंक आप के  साथ आज भी जुड़ा है  | आप ने इस चुनाव में कांग्रेस के वोट बैंक पर भी बड़ी सेंध लगायी |  दिल्ली के परिणाम इस बात की तस्दीक करते हैं ।           



 वहीँ अब अपने को  आम आदमी बताने वाले केजरीवाल  से अब तीसरी बार  दिल्ली की जनता की अपेक्षाएं इस कदर बड़ी हुई  आने वाले  पांच बरस में उनके पूरे होने पर  अब सभी की नजरें लगी रहेंगी  |  बेशक अब  केजरीवाल को भी इस बात को समझना जरुरी होगा कि लोक सभा चुनाव और राज्यों   के विधान सभा  चुनावों में जनता का मूड अलग अलग होता है जिसके ट्रेंड को हम हाल के कुछ वर्षो से देश में बखूबी देख भी रहे हैं |  देश में केजरीवाल का जादू भले ही ना चला हो लेकिन दिल्ली में आज भी केजरीवाल सब पर भारी पड रहे हैं  और शायद  इसकी  सबसे बड़ी वजह दिल्ली में उनके साथ जुडा मजबूत  जमीनी संगठन है | एक दौर में  दिल्ली की गद्दी छोड़कर  लोक सभा चुनावो में जल्द कूदने को अपनी भारी भूल बता चुके केजरीवाल  शुरुवात से ही  इस  चुनाव में बहुत संयम के साथ  काम  कर  रहे थे  । आम आदमी के वोटर के साथ वह  अपनी विकास की  भावनात्मक अपील के साथ  जुड़े ।  केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान खुद कहा यदि हमने काम किया है तो वोट दीजिएगा | लोग उनकी इस भावनात्मक अपील से जुड़े |  बिजली ,पानी सरीखी बुनियादी आवश्यकताओं  में अगर कोई सबसे ज्यादा लाभ लेने की  स्थिति में था  वह आम आदमी पार्टी ही थी  | 



अब  दिल्ली फतह  के बाद केजरीवाल इस चुनावो में सही मायनो में  जीत  के नायक बनकर उभरे हैं ।  कार्यकर्ताओ में उनकी दीवानगी है ।   तो क्या माना जाए केजरीवाल  2020 में  कई राज्यों की विधान सभा की बिसात में सबसे बड़ा चेहरा होंगे ? क्या उनके कदम अब दिल्ली केन्द्रित ही होंगे या  कुछ समय बाद  वह  नई लीक पर चलने का साहस दिखायेंगे और  फिर से राष्ट्रीय राजनीती के केंद्र में होंगे ? ये ऐसे सवाल हैं  जो इस समय चुनाव परिणाम आने के बाद  भाजपा के आम कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के सहयोगियों और यू पी ए के सहयोगियों से लेकर कांग्रेस को परेशान कर रहे होंगे । इस बार केजरीवाल  ने दिल्ली   के  दिल को जीत लिया ।   सबका साथ सबका विकास के भाजपा के  नारे  फ़ेल  हो गए ।  दिल्ली की जनता ने केजरीवाल   के  माडल पर न केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि मुस्लिम बाहुल्य और झुग्गी झोपड़ी कच्ची कालोनियों  वाले इलाको में आप  का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा ।  केजरीवाल   समाज के हर  तबको का समर्थन जुटाने  में   सफल रहे ।   दुबारा दिल्ली  जीत के बाद  केजरीवाल  निश्चित ही आप  में अब सबसे मजबूत हो गए हैं। अब केजरीवाल के सामने जनता से  किये  गए वायदों को पूरा करने की कठिन चुनौती है । इस बार उनके साथ एक बार फिर से प्रचंड बहुमत है इसलिए वह जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते । देखना होगा इस बार केजरीवाल कितना बदले बदले नजर आते हैं | उनका पिछला अवतार लोग अभी भी भूले नहीं हैं जो धरनेबाज और ड्रामेबाज का था | बार बार पीएम को कोसने के सिवाय वह कुछ नहीं करते थे | हर चीज में मोदी जी की साजिश उन्हें नजर आती थी | दिल्ली को एक दौर में पूर्ण राज्य बनाने का संकल्प भी उन्होंने लिया था  और आंदोलन भी किया था जिसका नतीजा सिफर ही रहा था | पिछली बार वो सत्ता में आये थे तो बड़े बड़े दावे किये ये दावे हवा हवाई साबित हुए | किसी  तरह  बिजली , पानी , स्वास्थ्य की फ्री पालिटिक्स और कच्च्ची कालोनियों के विकास , महिलाओ की सुरक्षा  ने उनकी लोगों में पकड़ बना ली और वह तमाम विवादों के बाद भी अपनी साख बचा पाने में कामयाब हो गए जबकि फ्री पालिटिक्स के अलावा दिल्ली में बीते  पांच बरस में कुछ नहीं हुआ | स्वर्गीय शीला दीक्षित ने दिल्ली की  आधारभूत संरचना के निर्माण में बड़ा योगदान दिया और दिल्ली का हर क्षेत्र में  विकास हुआ | फ्लाईओवर बने वहीँ सडकों का बड़ा जाल भी बिछा | नए कालेज खुले वहीँ मेट्रो का जाल बिछा जबकि आम आदमी की सरकार के दौर में ऐसा कोई कायाकल्प हुआ नहीं  | दिल्ली आज भी तमाम समस्याओं से जूझ रही है | यमुना साफ नहीं है तो प्रदूषण और जाम से राहत नहीं है | ऐसी कई  समस्याओं का पहाड़ सामने है |  बेहतर होगा केजरीवाल इस कार्यकाल में अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ेंगे |  उम्मीद है वह दिल्ली को मॉडल राज्य बनाने के लिए एक नई  लकीर अपने इस नए कार्यकाल कार्यकाल में खींचने की कोशिश  करेंगे ।