Friday 30 December 2011
नूतन वर्ष मंगलमय हो.....
Wednesday 2 November 2011
उफ... यू पी ए से होता मोहभंग
Monday 24 October 2011
ठाकरे की सेना में बेगाने मनोहर ...........
Tuesday 18 October 2011
मैं फिल्म निर्देशक कम थियेटर निर्देशक ज्यादा हूँ.....
"गाँधी माई फादर " जैसी फिल्म बनाकर फिरोज अब्बास खान ने खुद को बालीवुड में फिल्म निर्देशक के तौर पर स्थापित किया है... वैसे बताते चले फिरोज साहब की गिनती थियेटर मंझे खिलाडियों में होती है.... जिन्होंने "सालगिरह" , "तुम्हारी अमृता", "विक्रेता रामलाल और गाँधी विरुद्ध " जैसे नाटको का कुशल निर्देशन किया ... २००७ में उनके द्वारा बनाई गई फिल्म "गाँधी माईफादर " ने कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमे "दर्शन जरीवाला " ने गाँधी किरदार के रोल के लिए खासी लोकप्रियता बटोरी..... यही नही इस मूवी ने विशेष जूरी को "बेस्ट स्क्रीन प्ले एशिया प्रशांत पुरस्कार" समेत कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते जिससे फिरोज को काफी लोकप्रियता मिली.... फिरोज आज भी अपने को थियेटर निर्देशक मानते है... बीते दिनों मेरी और मेरे साथी ललित की उनसे मुलाकात के मुख्य अंश ----
गाँधी माई फादर आखिरकार आपने बना ही ली.....गाँधी जैसे विराट व्यक्कित्व के किरदार को तीन घंटो के कैनवास पर उकेरना कितना मुश्किल काम था .....? साथ ही आपसे जानना चाहेंगे किस विचार ने इस किरदार के बारे में मूवी बनाने की प्रेरणा आपको दी...?
लम्बे अरसे से थियेटर से जुड़ा रहा....अभी भी पूरी तन्मयता के साथ काम कर रहा हू ..... थियेटर करते वक्त मेरे मन में फिल्म बनाने को लेकर उत्सुकता पैदा हुई....कई लोगो ने उस समय कहा आपको ऐसी फिल्म बनानी चाहिए जो थियेटर से एक दम अलग हटकर हो.... तभी मैंने तय कर लिया था मुझे अलग हटकर फिल्म बनानी है... फिर गाँधी जी जैसे विराट व्यक्तित्व पर फिल्म बनाने का आईडिया यही से जेनेरेट हुआ.....इसके लिए मैंने गाँधी जी पर नए तरीके से रिसर्च की और नयी सोच को लेकर लोगो के बीच गया.......
गाँधी माई फादर आपकी मूवी मैंने देखी ... बापू के हर एस्पेक्ट को छूने की कोशिश आपने की है....गाँधी जी पर रिसर्च के दौरान आपको क्या क्या दिक्कते आई?
फिल्म बनाने का आईडिया आने के बाद जेहन में कई तरह के सवाल उभरे ...मन में ख्याल आया इतने बड़े व्यक्तित्व के हर पहलू को उजागर करने की कोशिश के दौरान किसी भी तरह की गलती ना होने पाये ....गाँधी जी की कहानी को लेकर जो काम किया है उसमे सबसे जरुरी था जिस व्यक्तित्व को हम महात्मा कह रहे है आखिर क्यों कह रहे है ? मुझे एक पल लगा एक ऐसा आदमी जिसके पीछे सारा देश खड़ा है सारा समाज खड़ा है वही महात्मा है .... इस पर रिसर्च के लिए मैं कई बार दक्षिण अफ्रीका गया .... वहां पर गाँधी जी ने काफी लम्बा समय बिताया था.....वहां कई इतिहासकारों ने मुझसे बात की जिससे गाँधी जी को गहराई से समझ पाया .....
मेरा सबसे बड़ा श्रोत चंडी लाल दलाल थे जो महात्मा गाँधी जी के लेखाकार थे....उनकी किताबो ने फिल्म निर्माण में मेरी मदद की ....इसके अलावा लीलम बंसाली, हेमंत कुलकर्णी की किताबो ने भी मुझे नयी राह दिखलाई....महाराष्ट्र के इतिहासकार अजीज फडके से भी समय समय पर मेरी मुलाकात होती रही... रोबर्ट सेन की बायोग्राफी ने भी मुझे काफी लाभ पहुचाया.....
उदारीकरण के बाद मल्टीप्लेक्स का युग आया है ....तकनीकी विकास के साथ इस दौर में फिल्म बनाने की तकनीक भी बदली है....इस समय लोगो की डिमांड भी फिल्म को लेकर अलग तरह की है...ऐसे में आप दर्शको से क्या अपेक्षा रखते है?
Monday 10 October 2011
आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनता नक्सलवाद ........
Sunday 2 October 2011
भारतीय राजनीती में गहरा रहा है परिवारवाद ............
तेरा जाना दिल के अरमानो का लुट जाना........
तेरा जाना दिल के अरमानो का लुट जाना" .....विदर्भ की जनता पर आज हिंदी फिल्म का यह पुराना गाना सौ फीसदी सच साबित हो रहा है.... अपने किसी जन नेता के खोने का गम किसी को कैसा सताता है यह इस गाने से बखूबी साबित हो जाता है... बीते दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बाबू साहब उर्फ बसंत राव साठे की मौत की खबर से पूरे विदर्भ वासी शोकमग्न है... साठे का गुडगाव में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया .... ८६ वर्षीय साठे इंदिरा , राजीव, नरसिंह राव की तीनो सरकार में वरिष्ठ मंत्री और अन्य पदों पर रहे थे ......उनके निधन से महाराष्ट्र के विदर्भ ने एक बड़े जन नेता को खो दिया .......... साठे से जुडी कुछ बातें ......... ........
Tuesday 13 September 2011
हिलजात्रा ..............
Monday 29 August 2011
१० जनपथ का पॉवर हाउस : अहमद पटेल
Thursday 25 August 2011
तुष्टीकरण की शिकार रही है तस्लीमा............
Friday 19 August 2011
किन्नरों का कजलिया...........
भोपाल में राखी के त्यौहार के बाद किन्नरों का "कजलिया" भी इस बात का बखूबी अहसास कराता है......हर साल राखी के बाद होने वाले किन्नरों के इस आयोजन पर पूरे शहरवासियो की नजरे लगी रहती है.....इस आयोजन की लोकप्रियता का अहसास मुझे तब हुआ जब इस बार किन्नरों को देखने के लिए भोपाल में रहने वाले लोगो का पूरा हुजूम सड़को पर निकल आया....
कजलिया को मनाने की परम्परा भोपाल में नवाबी दौर से चली आ रही है....इस बारे में किन्नरों से जब मैंने बात की तो उन्होंने बताया अच्छी बारिश को लेकर यह आयोजन भोपाल में हर साल होता है जिसमे निकाले जाने वाले जुलूस में सभी किन्नर बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी करते है....माना जाता है एक बार भयंकर अकाल पड़ने पर भोपाल के नवाब को किन्नरों की शरण में जाना पड़ा था...बताया जाता है किन्नरों द्वारा छेड़े गए राग मल्हार के फलस्वरूप इन्द्र देव खासे प्रसन्न हो गए और शहर में मूसलाधार बारिश हो गई....उसके बाद से इस आयोजन की परम्परा चल निकली ..... इठलाते हुए जब ये किन्नर जुलूस में शामिल होने सडको पर निकलते है तो मानो पूरा शहर उन्हें देखने सड़को पर उमड़ आता है .... सड़के जाम तक हो जाती है लेकिन ना तो शहरवासी परेशान होते है ना ही किन्नर....इस दौरान लोग सड़को पर निकले किन्नरों को छेड़ते भी है परन्तु बुरा मानने के बजाय किन्नर अपना नया राग मल्हार छेड़ देते है.....
भोपाल में किन्नरों के जुलूस के दौरान किन्नरों का मानवीय चेहरा भी मुझे देखने को मिला ........ समझ से अलग थलग रहने वाले इस वर्ग ने इंसानियत की जो मिसाल पेश की है वह सराहनीय होने के साथ ही अनुकरणीय है .....भोपाल में किन्नरों के कजलिया के दौरान कुछ बच्चो को साथ देखकर मै चौंक गया ... बढती जिज्ञासा को शांत करने के लिए किन्नरों के बीच बैठा .... दरअसल किन्नर समाज का अंग होते हुए भी समाज से कटे रहते है.... इस कारण इस समाज के प्रति जिज्ञासा औरभय साथ साथ रहता है....जिसके चलते इस समाज की गतिविधियों का सही से ज्ञान लोगो को नही हो पाता.... इन किन्नरों ने कई मासूम लडकियों को भी गोद ले रखा है....जो अनाथ बच्चो को पढ़ाने लिखाने से लेकर उन्हें खान पान भी उपलब्ध करा रहे है.... राजधानी भोपाल के मंगलवारे और इतवारे में रहने वाले कुछ किन्नरों की ये पहल निश्चित ही समाज के लिए अनुकरणीय है... काश समाज की मुख्य धारा से जुड़े लोग भी अगर इस दिशा में ध्यान दे तो कई लोगो की जिन्दगी रोशन हो सकती है ....
"कजलिया " के दौरान निकलने वाला किन्नरों का जुलूस मंगलवारे से शुरू होता है और यह शहर के मुख्य मार्गो से होता हुआ गुफा मंदिर तक पहुचता है....पहले इस मंदिर के पास की पहाड़ी पर एक तालाब था ॥ दुधिया तालाब नामक इस तालाब का अस्तित्व वक्त के साथ खत्म हो गया...परन्तु किन्नरों की ये परम्पराए आज भी जारी है .... शायद ये हमारे देश में ही संभव है जहाँ किन्नर उत्साहपूर्वक आज भी कजलिया मनाते , अनाथ बच्चो को गोद लेते है और बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी इस आयोजन में करते है........
Thursday 11 August 2011
देवीधुरा का बग्वाल परमाणु युग में पाषाण युद्ध का चमत्कार ......
मुख्य पुजारी एक व्यक्ति के शरीर के बराबर रक्त गिरने के बाद बग्वाल को रोकने का आदेश दे देता है......तकरीबन बीस से पच्चीस मिनट तक चलने वाले इस पाषाण युद्ध की समाप्ति के बाद बग्वाल खेलने वाली खामे एक दूसरे के गले मिलती है... इस दौरान पत्थरो से घायल हुए लोगो को गंभीर चोट नही आती...ऐसा माना जाता है कुछ वर्ष पूर्व तक लोग बग्वाल खेले जाने वाले मैदान की बिच्छु घास अपने शरीर में लगा लिया करते थे जिससे वह कुछ समय बाद खुद ही ठीक हो जाया करते थे ....आज बिच्छु घास तो नही लगाई जाती है लेकिन पत्थरो के घाव अपने आप बाराही माता की कृपा से स्वतः ठीक हो जाते है.....
Wednesday 27 July 2011
उत्तराखंड में फिर से खूंटा गाड़ने की तैयारी में है खंडूरी......
दरअसल इस समय राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री निशंक के साथ उनकी पटरी नही बैठ रही है ..... निशंक अपने को पार्टी में बड़ा सर्वेसर्वा मानते है.... पार्टी के कई दिग्गज नेता उनकी इसी कार्य शैली की वजह से खासे नाराज है .... यह नाराजगी केवल हाल के दिनों में ही नही बड़ी है... निशंक के साथ पार्टी के आम कार्यकर्ताओ के संबंधो में कटुता उनकी ताजपोशी के बाद से ही बढ़नी शुरू हो गई थी.... अब विधान सभा चुनाव पास आने से ठीक पहले निशंक के खिलाफ ये नाराजगी भाजपा के लिए राज्य में नुकसान देहक साबित हो सकती है.....
भाजपा में इस समय निशंक को हटाने की मुहिम परवान पर है... और इस समय दो पूर्व मुख्यमत्री खुले तौर पर निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने की कोशिसो में लगे है....यह कोई और नही राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री खंडूरी और भगत सिंह कोशियारी है.... दोनों खुले तौर पर पार्टी के आला नेतृत्व से निशंक को हटाने के लिए लॉबिंग करने में जुटे है.....
बीते दिनों हरिद्वार में राजनाथ सिंह के महिला मोर्चे के कार्यक्रम में इनदिनों महारथियों की अनुपस्थिति से यह सन्देश गया है कि उत्तराखण्ड भाजपा की साढ़े साती अभी दूर नही हुई है.... अगर ये दूर नही हुई तो पार्टी के आगामी चुनावो में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.........निशंक को मुख्यंमंत्री बनाने में खंडूरी की अहम् भूमिका रही थी..... लेकिन मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद निशंक ने खंडूरी को भाव देने बंद कर दिए... यही नही कल तक जो भगत सिंह कोशियारी खंडूरी को राज्य के मुख्यमत्री पद से हटाने की मुहिम छेड़े थे आज वे भी खुलकर खंडूरी का साथ दे रहे है.....
दरअसल इसके गहरे निहितार्थ है ... मुख्यमत्री बनाये जाने के बाद निशंक ने अपने कार्यकाल में कोई विशेष छाप नही छोड़ी है .... उनके कुर्सी सँभालने के बाद राज्य में भ्रष्टाचार का ग्राफ तेजी से बड़ा है....जहाँ कर्नाटक में भाजपा येदियुरप्पा पर करोडो के वारे न्यारे करने के आरोप झेल रही है इसी तरह के हालत उत्तराखण्ड में भी है परन्तु वहां का मीडिया इस बात पर खामोश है... यह सब निशंक की बाजीगरी का नतीजा है कि कोई भी निशंक के खिलाफ राज्य में लिखने का साहस नही कर पा रहा है.....
सूचना विभाग की कमान निशंक ने मुख्यमंत्री पद सँभालने के बाद से खुद अपने पास रखी है ... मीडिया को खुश करने के लिए निशंक ने इन दिनों सभी को थोक के भाव से विज्ञापन देने शुरू कर दिए है ... मजेदार बात तो ये है कि कई ऐसे समाचार पत्रों , पत्रिकाओ को इस अवधि में विज्ञापन दे दिए गए है जिनका राज्य में कोई वजूद नही है......चुनावी वर्ष में निशंक कोई रिस्क मोल नही लेना चाहते ..... इसलिए विज्ञापनों पर वह पानी की तरह पैसा बहा रहे है ......जाहिर है वह भी नीतीश, शिवराज और मोदी, रमन वाली राह पर चलना चाहते है........ परन्तु निशंक को शायद यह मालूम नही इन लोगो के सपनो की राह देखना आसान है जमीनी हकीकत को समझना अलग बात है... फिर उत्तराखण्ड में आम आदमी उनके कार्यकाल से इतना खुश भी नही है कि शिवराज और मोदी की तरह दुबारा उनको राजगद्दी पर बैठा ही देगा .....
निशंक पर भ्रष्टाचार के कोई मामूली आरोप नही है......कैग की रिपोर्टो में उनके खिलाफ लगाये गए आरोपों में वाकई दम नजर आता है ...बीते साल महाकुम्भ के नाम पर निशंक ने केंद्र के द्वारा दी गई मदद का जमकर दुरुपयोग किया ... इस मामले में नौकरशाहों के साथ मिलकर निशंक के कुछ मंत्रियो ने भी जमकर मलाई खायी ......यही नही कुम्भ मेले के दौरान हुए निर्माण कार्यो में भी भारी अनियमितता पायी गई.........देहरादून के एक न्यूज़ चैनल में काम करने वाले मेरे एक मित्र की बातें माने तो हरिद्वार में जिस जिस जगहों पर महाकुम्भ के दौरान निर्माण कार्य किये गए वह आज पूरी तरह जवाब दे चुके है ...बरसात के मौसम में निशंक के निर्माण कार्यो की पोल अच्छे ढंग से खुल गई है .....
ऋषिकेश में भूमि आवंटन से लेकर कई जल विद्युत परियोजनाओ को निरस्त करने के मामले निशंक सरकार की साख के लिए संकट बनते जा रहे है..... यही नही निशंक के राज में भ्रष्टाचार की गंगा जमकर बह रही है .... रामदेव केंद्र सरकार के खिलाफ सत्याग्रह की बातें कर रहे है ॥बेहतर होता वह अगर देवभूमि से निशंक के खिलाफ सत्याग्रह की बातें करे तो यह माना जाए वह भी भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट है..... पार्टी चाहे कोई भी हो भ्रष्टाचार का दोषी अगर कोई तो उसके खिलाफ कड़े फैसले लेने में भय कैसा ....?
कांग्रेस आदर्श सोसाइटी पर अशोक चौहान इस्तीफ़ा ले लेती है .... राजा , कनिमोझी और कलमाड़ी को तिहाड़ भेज देती है लेकिन येदियुरप्पा और निशंक पर कोई कार्यवाही करने से डरती है? क्यों? क्या ऐसा करने से भाजपा अपने को कमजोर नही कर रही है....? भाजपा मनमोहन और चिदंबरम से एक ओर इस्तीफे की मांग करती है परन्तु वह येदियुरप्पा और निशंक को अभयदान दे देती है ?क्या इससे उसकी भ्रष्टाचार की लड़ाई कमजोर नही हो जाती?
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री इन सब बातो के मद्देनजर खासे आहत है... वह अपनी पार्टी में बेगाने हो गए है.... खंडूरी निशंक सरकार के साथ ही पार्टी आलाकमान से भी नाराज हो गए है .... बार बार निशंक को हटाने के लिए दबाव देने के बाद भी पार्टी के आला नेता उनको घास डालने के मूड में नही है..... खंडूरी राज्य भर में भ्रमण करके जनता की नब्ज टटोल चुके है.... जनता में निशंक सरकार के खिलाफ गहरी नाराजगी है....इस नाराजगी की बड़ी वजह निशंक की ख़राब कार्यशेली है जिसको खंडूरी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने रखा .... बीते दिनों हुई मुलाकात में सुषमा स्वराज के वीटो के चलते निशंक को हटाने की मुहिम ठंडी हो गई ...
इस बार उनके धुर विरोधी कोशियारी भी निशंक को हटाने की खंडूरी की मुहिम में साथ थे.... पिछले महीने लखनऊ में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में खंडूरी की अनुपस्थिति ने कई सवालों को जन्म दे दिया .... निशंक को न हटाने के पीछे पार्टी का तर्क है कि चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला सही नही होगा लिहाजा उसने एकजुटता के मद्देनजर यह बयान दे दिया कि पार्टी उत्तराखंड का आगामी चुनाव निशंक, कोशियारी और खंडूरी तीनो के नेतृत्व में लड़ेगी.....भाजपा में खंडूरी और कोशियारी इस फैसले को नही पचा पा रहे है ....
कहा तो यहाँ तक जा रहा है पार्टी आलाकमान राज्य में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के काम काज से भी संतुष्ट नही है....वह राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओ में नया जोश नही फूंक पा रहे है .... आलाकमान ने कोशियारी से चुफाल की जगह प्रदेश अध्यक्ष का पद स्वीकार करने को कहा ... कोशियारी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह निशंक के सी ऍम रहते तो इस जिम्मेदारी को नही स्वीकार सकते... साथ ही इस बार उन्होंने खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाने की बातें कही परन्तु आलाकमान ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया .....
लिहाजा अब खंडूरी निशंक के खिलाफ मोर्चा खोलने में लगे है.... कोशियारी अपने को पार्टी कर समर्पित सिपाही बताते है ॥ जब तक खंडूरी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने उन्हें हटाने के लिए राज्य सभा सदस्यता से इस्तीफे की धमकी तक दे डाली थी..... इस बार चुनावी वर्ष में वह निशंक को हटाने के लिए भाजपा छोड़ने का साहस शायद ही कर पाये.....उनसे पहले खंडूरी भाजपा को गच्चा देने के मूड में नजर आ रहे है .....
अगर सब कुछ ठीक रहा तो चुनावो से ठीक पहले खंडूरी उत्तराखंड में एक अलग पार्टी खड़ी कर सकते है..... बीते दिनों उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेता ऐरी से उनकी मुलाकातों को इसी रूप में देखा जा रहा है .... ऐरी ने खंडूरी की साफगोई के मद्देनजर उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़कर पहाड़ की अस्मिता बचाने की अपील की है .... जिस मुद्दों को लेकर राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वह सपने आज पूरे नही हुए है॥ उत्तराखंड में कोई तीसरा मोर्चा भी नही है जो भाजपा और कांग्रेस का विकल्प जनता के सामने बन सके..... लिहाजा ऐरी ने खंडूरी को राज्य के हित में भाजपा छोड़ने की बात कही....
भाजपा से नाराज चल रहे खंडूरी अगर अलग राह चुनते है तो भाजपा के भी कई नेता उनका साथ दे सकते है..... यही नही खंडूरी के करीबियों की माने तो वह इन दिनों अपने समर्थको के साथ गुपचुप ढंग से रणनीति बना रहे है ... बताया जाता है कि राज्य में कई पूर्व सैनिक जनरल के साथ राज्य बचाने की इस मुहिम में साथ है॥ इसमें उन्हें कुछ नौकरशाहों का भी साथ मिल रहा है.....भाजपा के नेता इस मसले पर कुछ बोलने की स्थिति में नही है.....
हाँ, यह अलग बात है निशंक के काम काज से नाराज चल रहे कई विधायक और मंत्री समय आने पर जनरल का खुलकर साथ दे सकते है.....खंडूरी का गढ़वाल में खासा जनाधार है.... कुमाऊ में भी उनकी साफगोई के सभी लोग कायल है....भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में जब माहौल बन रहा हो ऐसे में निशंक और येदियुरप्पा जैसे लोगो को फ्री हैण्ड दिए जाने का भाजपा आलाकमान का फैसला आम जन मानस के गले नही उतर रहा है.....
ऐसे में जब उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव ज्यादा दूर नही हो , भाजपा को खंडूरी सरीखे इमानदार नेता की जरुरत बन रही है ,पार्टी उनके बजाय निशंक को आगे कर चुनाव लड़ने कर मूड बना रही है....पार्टी के आला नेताओ की माने तो गडकरी द्वारा उत्तराखंड में हाल में करवाए गए एक सर्वे में निशंक के नेतृत्व में पार्टी की हालत पतली होने का अंदेशा बना है....अगर यही सब रहा तो आगामी चुनावो में निशंक पार्टी की राज्य में लुटिया पूरी तरह डुबो देंगे.....
सब बातो के मद्देनजर अब भाजपा में तीरथ सिंह रावत , टी पी एस रावत , मोहन सिंह गाववासी , मनोहरकांत ध्यानी, बच्ची सिंह रावत जैसे कई दिग्गज नेता खंडूरी के साथ खड़े हो रहे है....खंडूरी की राजनाथ से शुरू से पटरी नही बैठ रही थी....क्युकि राजनाथ के अध्यक्ष रहते खंडूरी को सी ऍम की कुर्सी ५ लोक सभा हारने के बाद गवानी पड़ी थी ... अब उन्ही राजनाथ सिंह को राज्य में पार्टी का चुनाव प्रभारी बनाया गया है जिसे खंडूरी नही पचा पा रहे है .... वैसे बताते चले भाजपा के समर्पित सिपाही रहे खंडूरी भाजपा को अलविदा कहने से पहले
निशंक को हटाने कर एक दाव ओर खेलने की कोशिश करेंगे............
इस दरमियान खंडूरी की कोशिश निशंक की जगह खुद मुख्यमंत्री पद की कमान लेने की भी बन सकती है ....अगर पार्टी उनको निशंक की जगह पर सी ऍम की कुर्सी सौप दे तो शायद वो बगावत कर झंडा बुलंद करना छोड़ देंगे ..........
अपनी बेदाग़ छवि के मद्देनजर अब खंडूरी के सामने एक ही विकल्प बच रहा है या तो वह भाजपा को "गुड बाय" कहे और अपनी खुद की पार्टी बनाये या उत्तराखंड क्रांति दल जैसे दल के साथ जुड़कर राज्य में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प जनता के बीच बने... देखना होगा जनरल को इसमें कितनी सफलता आने वाले दिनों में मिलती है ?
बहरहाल जो भी हो खंडूरी आने वाले दिनों में भाजपा की बढ़ी मुसीबत बने रहेंगे.....भाजपा हाई कमान से अब इस बात की उम्मीद बिलकुल भी नही है वह निशंक को चुनावों से पहले हटाने का "रिस्क" मोल लेगी...... ऐसे में अब सबकी निगाहे खंडूरी की तरफ है ॥ कोई बड़ा फैसला उन्ही को लेना है.....
Sunday 19 June 2011
भाजपा को "अलविदा "कहने के मूड में मुंडे...............
इस समय भाजपा पूरी तरह विपक्ष की भूमिका में है.... सभी का ध्यान केंद्र की राजनीती पर लगा हुआ है ......हर कोई नेता यू पी ऐ के खिलाफ अनशन करने में लगा हुआ है.....कभी कभी तो ऐसा लगता है भाजपा को अन्ना और रामदेव के रूप में नायक मिल गए है जो कांग्रेस की नाक में दम कर रहे है....शायद इसीलिए कांग्रेस आलाकमान दोनों को सख्ती से निपटाने के मूड में है.......
जाहिर है भाजपा भी सारे घटनाक्रम पर नजर लगाये हुई है....उत्तर प्रदेश की खोयी जमीन को फिर से पाने की जुगत में लगी भाजपा ने पिछले दिनों उमा को पार्टी में दुबारा शामिल कर लिया लेकिन इन सबके बीच नितिन गडकरी के गृह राज्य महाराष्ट्र में भाजपा आलकमान का ध्यान नही गया ..... यहाँ पर उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गोपीनाथ मुंडे ने बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए है........ मुंडे भाजपा को जल्द ही गुड बाय कहने के मूड में दिखाई दे रहे है ....... गोपीनाथ महाराष्ट्र में भाजपा का एक बड़ा चेहरा है .....उनकी राजनीति को समझने के लिए हमें महाजन के दौर में जाना होगा....
मुंडे महाजन का बहनोई का रिश्ता है इसी के चलते जब महाजन मुंडे को भाजपा में लाये तो उनका पार्टी के कई दिग्गज नेता सम्मान करते थे लेकिन महाजन के अवसान के बाद मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिए गए .....आज आलम यह है अपने राज्य में मुंडे खुद अपनी पार्टी में बेगाने हो चले है.....
नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनाये जाने के बाद गोपीनाथ मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से उपेक्षित कर दिए गए है..... उनके समर्थक भी गडकरी ने एक एक करके किनारे लगा दिए है... ऐसे में मुंडे की चिंता जायज है ... वह आलाकमान से न्याय की मांग कर रहे है....
महाजन के जाने के बाद उनके साथ कुछ भी अच्छा नही चल रहा ... जब तक पार्टी में महाजन थे तो उनके चर्चे महाराष्ट्र में जोर शोर के साथ होते थे.... समर्थको का एक बड़ा तबका उनसे उनके अटके नाम निकाला करता था....अगर भाजपा में महाजन का दौर करीब से आपने देखा होगा तो याद कीजिये महाजन की मैनेजरी जिसने पूरी भाजपा को कायल कर दिया था... भाजपा का हनुमान भी उस दौर में महाजन को कहा जाता था .......
महाजन के समय मुंडे की खूब चला करती थी.... मुंडे को महाराष्ट्र में स्थापित करने में महाजन की भूमिका को नजर अंदाज नही किया जा सकता॥ यही वह दौर था जब मुंडे ने राज्य में अपने को एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित किया .....महाजन के जाने के बाद पार्टी में कुछ भी सही नही चल रहा.... आज भाजपा को महाजन की कमी सबसे ज्यादा खल रही है....महाजन होते तो शायद भाजपा में आज अन्दर से इतनी ज्यादा गुटबाजी और कलह देखने को नही मिलता... . महाराष्ट्र की राजनीती में शिव सेना के साथ गठजोड़ बनाने और भाजपा को स्थापित करने में महाजन की दूरदर्शिता का लोहा आज भी पार्टी से जुड़े लोग मानते है ....
मुंडे ने महाजन के साथ मिलकर राज्य में भाजपा का बदा जनाधार बनाया... आज आलम ये है जबसे गडकरी अध्यक्ष बने है तब से मुंडे के समर्थको की एक नही चल पा रही है॥ इससे मुंडे खासे आहत है.....अपनी इस पीड़ा का इजहार वह पार्टी आलाकमान के सामने कई बार कर चुके है पर उनकी एक नही सुनी जा रही है जिसके चलते उन्होंने अब पार्टी से अलविदा कहने का मन बनाया है.....
पार्टी में हर नेता की आकांशा आगे जाने की होती है .... मुंडे भी यही सोच रहे है....वर्तमान में स्वराज के बाद वह लोक सभा में उपनेता है.... वह चाहते है लोक लेखा समिति का अध्यक्ष पद उनको मिल जाए .....इसके लिए वह पिछले कुछ समय से पार्टी के नेताओ के साथ बातचीत करने में लगे हुए थे... सूत्र बताते है कि अपनी ताजपोशी के लिए उन्होंने आडवानी को राजी कर लिया था .... खुद आडवानी लोक लेखा समिति से मुरली मनोहर जोशी की विदाई चाहते थे ...
दरअसल आडवानी और मुरली मनोहर में शुरू से ३६ का आकडा जगजाहिर रहा है ....अटल के समय आडवानी की गिनती नम्बर २ और मुरली मनोहर की गिनती नम्बर ३ में हुआ करती थी.... लेकिन अटल जी के जाने के बाद भाजपा में हर नेता अपने को नम्बर १ मानने लगा है.....अटल जी के समय आडवानी ने अपने को उपप्रधानमंत्री घोषित कर परोक्ष रूप से मुरली मनोहर को चुनोती दे डाली थी .....
इसके बाद आडवानी के आगे मुरली दौड़ में पीछे चले गए....वो तो शुक्र है इस समय पूरी भाजपा संघ चला रहा है जिसके चलते मुरली मनोहर जैसे नेताओ को लोक लेखा समिति की कमान मिली हुई है ..... आडवानी को सही समय की दरकार थी लिहाजा उन्होंने मुरली के पर कतरने की सोची....पर दाव सही नही पड़ा .......
बताया जाता है संघ मुरली मनोहर को लोक लेखा समिति के पद से हटाने का पक्षधर नही था जिसके चलते मुंडे का लोक लेखा समिति के अध्यक्ष बन्ने का सपना पूरा नही हो सका ......संघ तो शुरू से इलाहाबाद के संगम में विलीन होते जा रहे मुरली मनोहर को आगे लाने का हिमायती रहा है.... जोशी के हिंदुत्व के कट्टर चेहरे के मद्देनजर वह १५ वी लोक सभा में उनको लोक सभा में विपक्ष का नेता बनाना चाहता था लेकिन ये कुर्सी सुषमा के हाथ में चली गई.....
संघ के फोर्मुले पर गडकरी ने भी अपनी सहमती जता दी......और ऐसे में मुंडे के हाथ निराशा ही लगी ... बताया जाता है लोक लेखा समिति का अध्यक्ष खुद को बनाये जाने की मंशा को उन्होंने गडकरी के सामने भी रखा था और अपने को अब केन्द्रीय राजनीती में सक्रिय करने की मंशा से उन्हें अवगत करवा दिया था... गडकरी भी संघ के आगे किसी की नही सुन सकते थे... उन्होंने मुंडे से बातचीत कर मुद्दे सुलझाने की बात कही थी...... वह भी बीच में बिना बातचीत किये सपरिवार उत्तराखंड चार धाम के दर्शन करने चले गए.... ऐसे में मुंडे का मुद्दा लटका रह गया.....
इससे पहले भी मुंडे ने अपने बगावती तेवर दिखाए थे.... याद करिये कुछ अरसा पहले उन्होंने मुंबई शहर में भाजपा अध्यक्ष पद पर मधु चौहान की नियुक्ति का सबके सामने विरोध कर दिया था जिसके बाद आलाकमान को "डेमेज कंट्रोल" करने में पसीने आ गए थे....इस बार भी कुछ ऐसा ही है॥ मुंडे अब और दिन पार्टी में अपनी उपेक्षा नही सह सकते.... वह महाराष्ट्र भाजपा में पार्टी का एकमात्र ओबीसी चेहरा है... महाराष्ट्र में उनके होने से पिछड़ी जातियों कर एक बड़ा वोट भाजपा के पाले में आया करता था ॥ अब अगर वह पार्टी को अलविदा कहते है तो नुकसान भाजपा को ही उठाना होगा.....
मुंडे की नाराजगी का एक बड़ा कारन अजित पवार का गद रहा पुणे था जहाँ पर गडकरी ने अपने खासमखास विकास मठकरी को भाजपा जिला अध्यक्ष बना दिया ॥ जबकि मुंडे अपने चहेते योगेश गोगावाले को यह पद देना चाहते थे.....लेकिन आडवानी का भारी दबाव होने के बाद भी गडकरी ने अपनी चलायी .... मुंडे की चिंता यह भी है जबसे गडकरी पार्टी के अध्यक्ष बने है तब से महाराष्ट्र में उनका दखल अनावश्यक रूप से बढ़ रहा है ...
बड़ा सवाल यह भी है अगर गडकरी के चार धाम के प्रवास से लौटने के बाद मुंडे की मांगो पर गौर नही किया गया तो क्या वो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए चुनोती बन जायेंगे......? साथ ही वह कौन सी पार्टी होगी जिसमे मुंडे शामिल होंगे या सवाल अभी से सबके जेहन में आ रहा है...?वैसे भाजपा को अलविदा कहने वाले सभी नेताओ का हश्र लोग देख चुके है .... फिर चाहे वो मदन लाल खुराना हो या उमा भारती.....या बाबूलाल मरांडी हो या कल्याण सिंह.... पार्टी से इतर किसी का कोई खास वजूद नही रहा है॥ ऐसे में मुंडे को कोई फैसला सोच समझ कर लेने की जरुरत होगी......
वैसे इस बात को मुंडे बखूबी समझते है ....शायद तभी अभी से उन्होंने भाजपा से इतर अन्य दलों में सम्भावनाये तलाशनी शुरू कर दी है.....बीते दिनों शिव सेना के कुछ नेताओ के साथ उनकी मुलाकातों को इससे जोड़कर देखा जा रहा है...कहा जा रहा है शिव सेना उनको अपने पाले में लाने की पूरी कोशिशो में जुटी हुई है ... बताया जाता है मुंडे ने ही हाल में शिवसेना और राम दास अठावले की रिपब्लिक पार्टी को एक मंच पर लाने में बड़ा योगदान दिया....शायद इसी के मद्देनजर शिव सेना भी मौजूदा घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए है.....यही नही ऍन सी पी के नेताओ के साथ उनके मधुर संबंधो के मद्देनजर वह उनकी तरफ भी जा सकते है........
मुंडे का भविष्य बहुत हद तक गडकरी के साथ होने वाली बैठक पर टिका है.....अगर इसमें कोई नतीजा नही निकला तो इस बार मुंडे भाजपा को अलविदा कहने में देर नही लगायेंगे.....
Thursday 16 June 2011
माम्मू का अधूरा सपना ..........................
आज जिस माम्मू नाम के शख्स की बात आपसे कर रहा हू ,वह कोई मामूली आदमी नही है...वह देश का एकमात्र जल्लाद था जो उन लोगो को फासी पर लटकाया करता था जिनकी मृत्युदंड की याचिका राष्ट्रपति के द्वारा ख़ारिज कर दी जाती थी...मीरत के टी पी नगर में रहने वाला माम्मू जल्लाद उत्तर प्रदेश जेल का कर्मचारी था जिसने कई दर्जन लोगो को फासी पर लटकाया था......
माम्मू को करीब से जानने वालो का कहना है कि माम्मू हर दिन कसाब को फासी पर चढाने की राह देखता रहा लेकिन उसका सपना पूरा नही हो सका ....माम्मू का पूरा खानदान अरसे से जल्लाद का काम करता आ रहा था ... माम्मू देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका खारिज होने के बाद सुर्खियों में आया .......अगर भुल्लर की सजा पर कोई फैसला नही आता तो शायद माम्मू भी सुर्खिया नही बटोरता ..... बहुत कम लोग ये जानते होंगे माम्मू देश का आखरी जल्लाद था और अब उसकी मौत के बाद देश में जल्लादों का संकट पैदा हो गया है ....
अपनी मौत से पहले उसने जेल के अधिकारियो से कई बार यह विनती की कसाब को जल्दी फासी पर लटकाया जाए जिससे उसकी तमन्ना पूरी हो सके लेकिन हमारे देश की घिनोनी राजनीती के चलते उसकी मुराद पूरी नही हो सकी और वह खुदा को प्यारा हो गया.....६६ साल का माम्मू पिछले कुछ समय से बीमार चल रहा था जिसका पता जेल प्रशासन को भी था पर कसाब को फासी पर लटकाने का फैसला जेल वालो को नही बल्कि राष्ट्रपति को करना था ...
माम्मू का पूरा खानदान जल्लादी के काम से था....उसके पिता और दादा भी इस काम को कर चुके थे.... उसके पिता कालू ने तो इंदिरा गाँधी के हथियारे कहर सिंह और बलवंत सिंह को फासी पर लटकाया था .... पिता की मौत के बाद माम्मू ने कई लोगो को अपने हाथो से फासी पर लटकाया ...
माम्मू के दादा राम अंग्रेजो के दौर में जल्लाद का काम किया करते थे ... आज़ादी के दौर में कई क्रांतिकारी भी हस्ते हस्ते फासी के तख़्त पर चढ़ गए जिन्हें माम्मू के दादा ने ठिकाने लगाया ... इनमे भगत सिंह , सुखदेव, राजगुरु जैसे क्रांति कारी भी शामिल थे ......
आज़ादी के महानायकों को फासी पर चढाने का जो काम माम्मू के दादा ने किया था उससे वह बहुत शर्मिंदा था क्युकि माम्मू के दादा ने यह सब काम फिरंगियों के दबाव में किया था और अंग्रेजी हुकूमत काली चमड़ी वालो से किस तरह बर्ताव करती थी इसकी मिसाल इतिहास में आज भी पढने को मिल जाती है....
माम्मू बार बार कसाब को फासी पर जल्द चदाये जाने की बातें इसलिए करता था क्युकि उसे लगता था अगर उसने इस आतंकी को फासी पर चढ़ा दिया तो उसके पुरखो के सारे पाप मिट जायेंगे और उसको प्रायश्चित करने का एक सुनहरा मौका मिल जाता .....लेकिन माम्मू की ख्वाइश अधूरी ही रह गई......