शाही खानदान से भारतीय राजनीति में आना बहुत बड़ी बात मानी जाती है लेकिन अनगिनत संभावनाओं वाली राजनीति में खुद को साबित करना तो एक बहुत चुनौतीपूर्ण काम है। आमतौर पर हमारे देश की राजनीति में पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं की इंट्री बहुत जल्दी हो जाती है लेकिन बिरले राजनेता ऐसे होते हैं जो सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए अपनी विरासत संभालते हुए नई इबारत गढ़ते नजर आते हैं। मध्य प्रदेश की धरती से आने वाले महाराज ने सही मायानों में इसे बखूबी साबित कर दिखाया है।
जी हाँ , महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति के वो नायाब हीरे हैं जिसके बारे में लिखना ऐसे इंसान के जज्बे को सलाम करना है जिसके लिए राजघराने की अथाह धन-दौलत- संपदा इस दौर में कोई मायने नहीं रखती । उसके लिए तो जनता के सरोकारों की राजनीति इस दौर में मायने रखती है जिसकी आँखों में दिन- रात समाज के अंतिम छोर पर खड़े आम आदमी तक विकास पहुंचाने का सपना तैरता रहता है । महाराज देश के युवाओं के आयकन हैं। इसे समझना है तो राजा भोज विमान तल पर उनके स्वागत में आने वाले युवाओं सैलाब को देखकर जान सकते हैं। जब भी वो भोपाल आते हैं तो बैरागढ़ से लेकर वी आई रोड और कमला पार्क से लेकर विधान सभा तक वाहनों की रफ्तार थम सी जाती है । हबीबगंज रोड में वाहनों का रेला लगने के चलते अक्सर जाम की समस्या बन जाती है । महाराज के काफिले को प्रदेश भाजपा कार्यालय तक पहुँचने में घंटों लग जाया करते हैं । लोग महाराज का दीदार करने , एक झलक पाने के लिए अपने घरों से बाहर निकल जाते हैं और महाराज में मध्य प्रदेश के भविष्य को ढूंढते नजर आने लगते हैं । महाराज ने अपनी राजनीति से हर उस युवा वोटर को अपने मोहपाश में इस कदर जकड़ा है मानो इस दौर में वो उनका दीवाना हो जाता है और तारीफ़ों के कसीदे पढ़ने लगता है । राजनीति की रपटीली राहों में महाराज ने अपने को इस कदर उकेरा है, हर वोटर महाराज की जय- जयकार करने लग जाता है । भाजपा की मौजूदा राजनीति में जिस तरीके से युवा वॉटर को साधने के लिए हर चुनाव में बिसात बिछाई जा रही है और उन्हें हर प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारियाँ दी जा रही हैं उस राजनीति में महाराज पूरी तरह हिट और फिट बैठते हैं । यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए अब मध्य प्रदेश भाजपा की राजनीति का भविष्य ज्योतिरादित्य सिंधिया यानी महाराज ही हैं।
भोपाल का बड़ा तालाब कभी सूख जाता है तो कभी बरसात का पानी इसे भर देता है । बड़े तालाब की तरह राजनीतिक समुंदर की लहरें भी कभी ऊपर तो कभी नीचे गिरती रहती हैं । ऐसे में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। महाराज के काँग्रेस छोड़ने के बाद से ही उनके भविष्य को लेकर तरह तरह की अटकलें मीडिया में चलती रही। काँग्रेस से जुड़े लोग भी उनकी भविष्य की राजनीति को लेकर तमाम तरह के सवाल उठाते रहे लेकिन धैर्य धारण करने वाले महाराज की कुंडली में लिखे राजयोग की लकीर को कोई मिटा नहीं सका । यही वजह है काँग्रेस छोड़ने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता के ग्राफ में आज भी कमी नहीं आई है शायद इसकी बड़ी वजह पिता स्वर्गीय माधव राव सिंधिया के उसूलों की वो राजनीति रही है जिसने महाराज को राजनीति के नए शिखर पर लाकर खड़ा किया है, जहां नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में महाराज प्रधान सेवक पी एम नरेंद्र मोदी कैबिनेट में नई उड़ान भर रहे हैं ।
हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के साथ अपनी राजनीति शुरूवात की लेकिन बीते बरस मार्च में उनका काँग्रेस के साथ आगे चल कर छूट गया । अब वो भाजपा के साथ हैं लेकिन अब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की वही ठसक बरकरार है। आप ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में कह सकते हैं वो राजनीति के अजातशत्रु हैं। महाराज तो महाराज हैं उनकी राजनीति के आगे सारे सूरमा धराशायी हो जाते हैं। आप कह सकते हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया की आँधी बड़े बड़े सिंहासनों को उड़ा देती है । मेरी जानकारी में ऐसा कोई समय नजर आया जब मध्य प्रदेश की राजनीति की मुख्य धारा में वो हाशिये पर रहे । सियासत हमेशा नए चेहरों में संभावनाएं और भविष्य का नेतृत्व तलाशती है । बहुत कम ऐसे चेहरे होते हैं जिनमें हमेशा नई तरह की संभावनाएं नजर आती हैं । महाराज के नाम से मशहूर ज्योतिरादित्य सिंधिया देश की सियासत का ऐसा ही चेहरा हैं , जिसमें हर किसी को भविष्य का एक बड़ा राजनेता नजर आने लगा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति की साधना को जिन्होंने बहुत करीब से देखा है, जो उनकी दो दशक की राजनैतिक यात्रा के गवाह रहे हैं। वह जानते होंगे कि महाराज बनना हर सियासतदां के बूते की बात नहीं, यह ‘आग’ में तपकर ‘कुंदन’ बनने जैसा है और अपने महाराज के साथ तो आदित्य और ज्योति दोनों का सम्मिश्रण हैं। तभी वो ज्योतिरादित्य कहलाते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति की गहराई में जाने के लिए आपको थोड़ा फ्लैश बैक में जाने की जरूरत है। याद कीजिये 13 फरवरी, 2020 का दिन। तब मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में कांग्रेस के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान जनसभा से अचानक ही कुछ टीचर खड़े हुए और उन्होंने जबर्दस्त ढंग से हंगामा शुरू कर दिया। टीचर तत्कालीन काँग्रेस सरकार से बहुत नाराज थे। मैं तब टीकमगढ़ ही था। नाराज टीचरों को शांत करने के उद्देश्य से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि आप की मांगों को मैंने चुनाव से पहले भी सुना था। यही नहीं बल्कि आपकी आवाज भी मैंने उठाई थी। मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूं कि आपकी जो मांग है वह हमारी सरकार के मेनिफेस्टो में दर्ज है। वह मेनिफेस्टो हमारे लिए ग्रंथ बनता है। सब्र रखना और अगर उस मेनिफेस्टो का एक-एक अंक पूरा न हुआ तो आपके साथ सड़क पर हम भी होंगे। आप अकेले मत समझना। आपके साथ सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा। सिंधिया के इस बयान की बाद से तो मध्य प्रदेश की राजनीति में सियासी तूफान खड़ा हो गया । कमलनाथ सरकार की मानो घिग्गी ही बंध गयी । 2019 में पहली बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद सियासी वनवास भुगत रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की यह हुंकार तब प्रदेश में चर्चा का विषय बन गई थी । हर किसी की जुबान पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के बोल ही गूंजने लगे। इन बयानों को सुनते हुए हर किसी को महसूस होने लगा कि जैसे कोई विपक्ष का नेता सरकार के खिलाफ हुंकार अपने अंदाज में भर रहा है। उसका युवा जोश देखते ही बन रहा था । टी वी चैनलों के कैमरे उसकी तरफ बढ़ते जा रहे थे। वे सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया की बाइट लेने के लिए बेकरार थे । वैसे आमतौर पर देखा जाए तो सरकार को कटघरे में खड़ा करना विपक्ष का काम होता है लेकिन उसूलों पर आंच आए तो सीधे टकराना भी जरूरी है । कुछ इसी अंदाज में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनावी मेनिफेस्टो में जनता के मुद्दों को पूरा करने के लिए तत्कालीन कमलनाथ सरकार से सीधे टकराने की ठानी । इसका उत्तर कमलनाथ ने ये कहते हुए दिया था कि तो वो उतर जाएं लेकिन प्रदेश में पार्टी के नेताओं के बीच क्या कुछ चल रहा है इसे कांग्रेस आला कमान ने नज़रअंदाज़ किया जिसकी बड़ी कीमत उसने बीते बरस मध्य प्रदेश में बनी बनाई नई नवेली सरकार के गँवाने के रूप में चुकाई ।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के ख़िलाफ़ ज्योतिरादित्य सिंधिया कई मुद्दों को लेकर लगातार खुलकर बोलते रहे । सिंधिया की सोच हमेशा से ही दूरदर्शी रही है । महाराज ने कमलनाथ सरकार को चेताते हुए यहाँ तक कह दिया था अगर सरकार आपका काम नहीं करेगी तो हमें भी आपके साथ सड़कों पर उतरना पड़ेगा। जब सरकार आप हैं आप की पार्टी है और सीएम आपकी ही पार्टी का है, तो ऐसे में सड़कों पर उतरने का संदेश देना बहुत कुछ कह जाता है। राजनीतिक हलकों में सिंधिया के इस संदेश को तब गंभीरता से लेने में काँग्रेस पार्टी कहीं न कहीं चूक गयी। ऐसे में दो दर्जन से अधिक विधायकों को अपने पक्ष में लामबंद करके महाराज ने राजनीति के मंझे खिलाडी कमलनाथ को महाराज होने के मायने बता दिये । तब कमलनाथ सरकार विश्वासमत विधान सभा में प्राप्त नहीं कर पायी और मध्य प्रदेश में फिर से शिवराज मामा की वापसी हो गयी। कांग्रेस पार्टी में रहते हुए भी वो सही मुद्दों का हमेशा समर्थन करते नजर आए । सर्जिकल स्ट्राइक पर जब विपक्ष की पार्टी के तमाम नेता सवाल उठा रहे थे तब ज्योतिरादित्य सिंधिया देशहित मोदी सरकार के साथ अपनी पार्टी लाइन से इतर जाते हुए दिखे । यही नहीं धारा 370 को खतम करने से लेकर सीएए के समर्थन के मसले पर भी वह मोदी सरकार के साथ खुलकर नजर आए । नेहरू - गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद सलाहकार कमलनाथ – दिग्गी राजा तब इस हवा के रुख को भांपने में नाकामयाब हो गए ।
ग्वालियर से शुरू हुई महाराज की राजनीति यात्रा आज जिस पड़ाव पर है अब वह इतिहास में दर्ज हो गई है । महाराज अब केंद्र के सबसे दमदार नागरिक उड्डयन विभाग की कमान संभाल रहे हैं । मंत्रिमंडल में मध्य प्रदेश से उन्हें शामिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्य प्रदेश से विशेष लगाव को उजागर किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के शपथ समारोह से चंद घंटे पहले पी एम मोदी शपथ ग्रहण करने वाले सांसदों से 7 लोककल्याण मार्ग में मिले । उस समय प्रधानमंत्री मोदी की क्लास में सबसे आगे महाराज को स्थान मिलने से प्रदेश की राजनीति में एक साथ कई संदेश गये हैं। इसे महाराज के मध्य प्रदेश में बढ़ते राजनीतिक कद के रूप में देखा जा रहा है। महाराज के काँग्रेस से इस्तीफे के बाद जहाँ उनके विरोधी यह मान चले थे कि उनकी राजनीति पर अब ग्रहण लग गया है और मध्य प्रदेश में अपने साथी विधायकों को शिवराज सरकार में एडजेस्ट करने के बाद अब भाजपा में उनको कोई पद मिलना मुश्किल हो गया है और उनको राज्य सभा की कुर्सी देकर संतुष्ट करने की कोशिश की गई है लेकिन जैसे ही शाम को राष्ट्रपति भवन में हुए मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में ज्योतिरादित्य सिंधिया नजर आये उसने एक बार फिर सभी को सियासत में महाराज होने के मायने बता दिए । एमपी से उनके कैबिनेट मंत्री बनाये जाने से जहाँ उनके राजनीतिक कद में इजाफा हुआ है वहीँ लम्बे समय से मध्य प्रदेश की विकास की उम्मीदों को भी अब नए पंख लग गये हैं। युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी साफगोई और बेबाकी के लिए राजनीति में जाने जाते हैं । आज अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताजपोशी से पूरे प्रदेश में जश्न है तो इसका कारण उनका ऐसा जनप्रिय नेता होना है जिसे लोग मध्य प्रदेश के जनसरोकारों से जुड़ाव रखने वाले नेता के तौर पर देखते रहे हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया धुन के पक्के हैं और अपने काम से विशेष लगाव रखते हैं और अकसर जनता के दुख दर्दों को उठाते आए हैं । एक राजनेता के तौर पर महाराज की यही पहचान प्रदेश भाजपा के अन्य नेताओं से उन्हें अलग करती है । एक दशक से भी अधिक समय से महाराज ने युवा सांसद के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है । वह संसद में मुखर होकर बहस में प्रतिभाग करते हैं ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को मुंबई के कैंपियन स्कूल एवं दून स्कूल में हासिल की जिसे एलिट क्लास का माना जाता है । ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दुनिया की मशहूर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री ली और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री प्राप्त की। ज्योतिरादित्य बचपन से ही पढ़ाई में कुशाग्र रहे हैं। राजनीति तो इनके परिवार के खून में मानो की हुई है । महाराज के ऊपर भी उनके इस राजवंश का विशेष प्रभाव रहा है राजनीति को वो समाज से जुडने और सेवा करने का बेहतरीन माध्यम मानते हैं । सिंधिया परिवार मध्य प्रदेश के शाही ग्वालियर घराने से आता है और उनके दादा जीवाजी राव सिंधिया इस राजघराने के अंतिम राजा थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया जी की दादी विजय राजे सिंधिया ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेसी पार्टी से की 1957 में गुना क्षेत्र से पहली दफा लोकसभा सांसद के लिए चुनाव लड़ा था जिसके बाद वो संसद पहुँचने में कामयाब हुई। विजय राजे सिंधिया चाहती थी उनके सभी परिवार के लोग भाजपा की तरफ से चुनाव लड़े लेकिन इसके बावजूद माधवराव सिंधिया और उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। विजयराजे सिंधिया 10 बरस कांग्रेस पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा था और 1967 में जनसंघ में जाने का निर्णय लिया और विजयराजे सिंधिया के क्षेत्र में जनसंघ की जड़ें मजबूत हुई । 1971 में इन्दिरा गांधी का जब बोलबाला था, तब विजयराजे सिंधिया ने जनसंघ से गुना क्षेत्र से लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़ा और वे 3 सीटों के साथ जीत की नईगाथा लिखने में कामयाब हुई । 30 सितंबर 2001 को ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की उत्तर प्रदेश में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। वे मध्य प्रदेश की गुना सीट से नौ बार सांसद चुने गए थे जहां 1971 में उन्होंने जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा वहीं आपातकाल के बाद साल 1977 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोकी । उनकी मां किरण राज्य लक्ष्मी देवी नेपाल राजपरिवार की सदस्य थीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण पिता की मृत्यु के बाद किया । तब ज्योतिरादित्य सिंधिया महज 30 साल के युवा थे । ग्वालियर के अंतिम महाराजा जीवाजीराव सिंधिया के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी-पॉलिटिक्स में आए और अपने काम के बूते राजनीति के मैदान में रम से गए । 2001 में पिता माधवराव के निधन के तीन महीने बाद ज्योतिरादित्य कांग्रेस में शामिल हो गए और इसके अगले साल उन्होंने गुना से चुनाव लड़ा जहाँ की सीट उनके पिता के निधन से ख़ाली हो गई थी। उसी साल चुनाव हुआ और ज्योतिरादित्य ने अपने बीजेपी के प्रतिद्वंद्वी को लगभग 5 लाख वोटों से हराया। वो भारी बहुमत से विजय पताका फहराने में कामयाब हुए । पिता के पगचिन्हों का अनुसरण करते हुए वो आगे बढ़ते ही गए। उस दौर में तो कोई ये कल्पना भी नहीं कर सकता कि एक नौजवान जिसके सिर से पिता का साया उठ गया वो संसद में अपनी बात को कुशलता से व्यक्त कर सकता है । उस वक्त महाराज की उम्र बहुत कम थी लिहाजा उनको लेकर आशंकाएं भी व्यक्त की जाती थीं, मगर महाराज ने खुद को सांसद के तौर पर खुद को बेहतर साबित कर दिखाया और जनता के दिलों में अपनी जगह बनाई । अपने पिता के संसदीय क्षेत्र गुना से उनके स्थान पर चुनाव लड़ने का निर्णय जनता को भी बेहद पसंद आया ।
सीहोर के बिलकिसगंज निवासी वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण परमार कहते हैं “गुना क्षेत्र सिंधिया परिवार का बहुत मजबूत गढ़ अरसे से रहा है और इस परिवार के नाम पर ही बहुत वोट आज भी मिलते रहते हैं। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना क्षेत्र से सांसद के रूप में उभर के आए तब उन्होंने भारत सरकार की केंद्र की सहायता से अपने गुना क्षेत्र में बहुत से विकास कार्य किए और यह विकास कार्य गुना क्षेत्र की जनता को बहुत पसंद आई और हमेशा हमेशा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया जनता जनार्दन के दिल में बस गए हैं”।
शिवपुरी निवासी एमटेक मैकेनिकल इंजीनियर अंकित श्रीवास्तव कहते हैं “गुना कई दशकों से सिंधिया राजवंश का मजबूत गढ़ रहा है यही कारण है कि इस राजवंश को हमेशा से ही गुना क्षेत्र से अच्छे खासे वोट प्राप्त होते रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता के देहांत के बाद भी महाराज सम्मानजनक जीत प्राप्त करते रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया जी अगर गुना क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए खड़े हो जाते हैं, तो उनके सामने बड़े से बड़े दिग्गज नेता को ज्योतिरादित्य सिंधिया जी के क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए बहुत ही कठिनाई होती हैं”।
खनियादाना से ताल्लुक रखने वाले पत्रकार तन्मय जैन बताते हैं “ मध्य प्रदेश के गुना संसदीय सीट पर पहले बिजली पानी और सड़कों की बहुत विकराल समस्या हुआ करती थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने खुद के प्रयासों से सभी बुनियादी सेवाओं को ठीक करने में कामयाब हुए हैं । इसी की वजह से गुना क्षेत्र के निवासी ज्योतिरादित्य सिंधिया जी को महाराज कह कर संबोधित भी किया करते हैं। बेशक 2019 का लोक सभा चुनाव में वो पराजित हो गए लेकिन आज भी महाराज गुना क्षेत्र के निवासियों के दिल में बसते हैं । वह लोगों से बराबर संवाद करते हैं उनकी समस्याओं का तत्काल निदान भी करते हैं”।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया भी खुद बड़ौदा के गायकवाड खानदान से ताल्लुक रखती हैं। 12 दिसंबर 1994 को दोनों का विवाह बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुआ। दोनों की एक बेटी और एक बेटा है । ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक बहन चित्रांगदा राजे सिंधिया हैं तो उनकी बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री रही हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया का घराना राजशाही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जी का राजनीति में कद ऐसा है उन्होनें अपने बूते गुना क्षेत्र में रिकार्ड विकास कार्य किए हैं और आज भी गुना की जनता महाराज की जय - जयकार करती हुई देखी जा सकती है । यहाँ के लोग आपको आज भी ये कहते भी नजर आ जाएंगे एक भरोसों एक आस अपनो तो महाराज। तो कुछ बात तो है महाराज यूं ही नहीं बना करते। ज्योतिरादित्य 2004-2014 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे। 2007 में उन्हें संचार और सूचना तकनीक मामलों का मंत्री बनाया गया वहीं 2009 में वे वाणिज्य व उद्योग मामलों के राज्य मंत्री बने और 2012 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ऊर्जा राज्यमंत्री । चार बार के सांसद रहे सिंधिया ने कांग्रेस में 18 साल बिताए और मनमोहन सरकार में संचार मंत्रालय से लेकर ऊर्जा मंत्रालय के रूप में बेहतरीन ढंग से काम किया । संचार मंत्री के रूप में देश भर के पोस्ट आफ़िस को आम आदमी के लिए घरेलू ज़रूरतों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने.वाले एकीकृत सेंटर के रूप शुरू की गई योजना ने उन्हें एक कामयाब टेक्नोक्रेट मंत्री के रूप में स्थापित किया। मोदी सरकार के शुरू किए गए कॉमन सर्विस सेंटर की योजना भी वही है जो सिंधिया ने शुरू की थी। इसी तरह ऊर्जा मंत्रालय में बरसों से लंबित पड़े पावर प्रोजेक्ट से जुड़े मसले का समाधान निकालने के लिए कांउसिल बनाने की पहल भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ही की थी। उनकी छवि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार में एक ऐसे मंत्री की बनी थी जो सख़्त फ़ैसले लेने से नहीं हिचकता था। सरकार में रहते हुए पारदर्शी काम काज करना और नौकरशाही से काम लेने के मामले में उनका कोई सानी नहीं था । ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने काम को अंजाम तक पहुचाने वाले लोगों में से एक हैं । धुन के बहुत पक्के आदमी हैं और जो कहते हैं उसे करने में देर नहीं लगाते । वह बेहद उर्जावान हैं और एक कुशल प्रबंधक के तौर पर भी मनमोहन सरकार में अपनी छाप छोड़ चुके हैं । यहाँ मंत्री के रूप में उनकी सेवाएं काबिले तारीफ रही हैं । उनके काम करने का अंदाज सबके दिलों को जीत गया । उस कार्यकाल में फाइलें कई दिनों तक नहीं अटकती थी । मनमोहन सरकार में एक कैबिनेट मंत्री ने उस दौर में एक इंटरव्यू में मुझे बताया था तत्कालीन पी एम मनमोहन सिंह को महाराज की प्रतिभा के कायल थे । वे यूपीए सरकार में सचिन पायलट , मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद के साथ एक कुशल युवा चेहरा भी थे और टीम राहुल गांधी के सिपेहसालार और समर्पित सिपाही भी ।
राजनीति के मैदान से इतर महाराज क्रिकेट के शौक़ीन भी रहे हैं और एक दौर में मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। आज भी राजनीति के साथ परिवार का बिजनेस संभालते हुए उन्होंने अपने क्रिकेट प्रेम को जगाए रखा है। मनमोहन के दौर में स्पॉट फ़िक्सिंग मामलों को लेकर उन्होंने अपनी आपत्ति ज़ाहिर की थी। 2013 में पूर्व बीसीसीआई सेक्रेटरी संजय जगदले की आईपीएल फिक्सिंग के चलते भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सचिव पद से विदाई हुई । देवताओं की तरह पूजे जाने वाले क्रिकेट के इतिहास में यह बड़ी घटना थी जो इतिहास में दर्ज है ।फिक्सिंग का मकड़जाल फैलाए लोगों पर उस दौर में अगर कड़ी कार्रवाई हुई तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई । उनकी इस क्षमता के चलते मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन का चेयरमैन बनाया गया था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिलने का अहसास हमेशा सुखद रहता है । वह अपने आसपास इतना सकारात्मक वातावरण बना देते हैं कि नकारात्मकता वहां से बहुत दूर चली जाती है। अपनी दो दशक से अधिक समय की सांसद के तौर पर यात्रा में उन्होंने साबित किया वह हर कार्य को करने में कुशल और दक्ष हैं । हर जगह उन्होंने खुद को अपने काम के बूते साबित किया है । मनमोहन सरकार में मंत्री रहते हुए उनके द्वारा किए गए काम देश- दुनिया में सराहे गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया उन चुनिन्दा राजनेताओं में से एक हैं जिसमें मिलनसारिता का भाव हर मुलाक़ात में देखा जा सकता है । भोपाल जब भी आते हैं तो पत्रकारों से घुल मिल जाते हैं । अपने इसी स्वभाव के बलबूते प्रदेश के युवाओं का बड़ा नेटवर्क पूरे प्रदेश में खड़ा कर लिया है । नेटवर्क को कैसे बनाया जाता है और जनता से सीधे कैसे कनेक्ट हुआ जा सकता है और कैसे राजनीति में उसका उपयोग किया जाता है यह महाराज से बखूबी सीखा जा सकता है। सौम्यता, मधुर मुस्कान, कोमल स्वर और लोगों के बीच घुलमिलकर रहना उनका मूल स्वभाव है और आज मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद भी वह नहीं बदले हैं । आमतौर पर कुर्सी मिल जाने और सत्ता सुख भोगने के बाद राजनेताओं में अहंकार स्वाभाविक रूप से आ जाता है लेकिन आज भी जनता के अदने से सेवक ही बने हैं । गुना , भिंड , मुरैना , शिवपुरी , ग्वालियर, चंबल , टीकमगढ़ के आसपास के ग्रामीण लोगों के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया आज जी एक पारिवारिक सदस्य जैसे हैं । दो दशकों से सांसद के रूप में और मंत्री के रूप में निस्वार्थ सेवा के कारण अपने क्षेत्र के युवाओं, बुजुर्गों और महिलाओं के बीच वह एक चहेते नेता के रूप में लोकप्रिय हैं । अपने संसदीय इलाके के हर गांव में अपने व्यक्तिगत प्रयासों से किए गए अनेक छोटे-बड़े विकास कार्यों के कारण वह अपने क्षेत्र की जनता के दिलों पर राज करते हैं। कुशल-तार्किक वक़्ता और अध्ययनशील महाराज मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश के राजनैतिक परिदृश्य में एक साफ छवि के राजनेता के रूप में पहचाना जाता है। साथ ही सिंधिया की संचार और प्रशासन में मजबूत पकड़ है । अपने सार्वजनिक जीवन में वह जनता के लिए सदैव उपलब्ध रहते हैं । राज्य या देश के किसी भी स्थान पर उनसे कोई भी सहजता से मिल सकता है । महाराज से मिलने के लिए आपको घंटों लाइन में कभी नहीं लगना पड़ता है। सांसद रहते हुए और ना रहते हुए भी वह अपने मोबाइल पर हर पल लोगों की समस्याएं सुनते हैं और यथासम्भव समाधान भी करवा देते हैं ।
आप आज ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम काबिल और ईमानदार राजनेताओं में रख सकते हैं। रईसी में जहां वो सबसे ऊपर है तो वे पढ़े-लिखे नेताओं में देश का कोई नेता उनके आस पास भी नहीं फटकता । राजनीति की बात हो या सरकार चलाने की , राजघराने को चलाने की बात हो या परिवार चलाने की , इसके लिए कुशल प्रबंधक की जरूरत होती है ये सब गुण उनमें जन्मजात मौजूद हैं । होनहार बिरवान के होत चिकने पात को चरितार्थ करते वे नजर आते हैं । वो अपनी विरासत को सहेजकर रखने वाले राजनेताओं में से एक हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 2 दशक के राजनीतिक यात्रा में हर ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पारिवारिक रिश्ते भी दुनिया के सर्वोच्च शाही खानदानों से रहे हैं। बात नेपाल के राणा खानदान की हो या राजस्थान के राजे खानदान की। इसके अलावा सिंधिया घराने का 40 एकड़ में फैला जयविलास महल हो या विंटेज कारों की फेहरिश्त, इस कड़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया को सबसे आगे माना जाता है। 1960 के दशक में बनी बीएमडब्ल्यू इसेट्टा कार भी सिंधिया के घर की शोभा बढ़ाती है।
हावर्ड से पढ़े सिंधिया का शौक़ केवल राजनीति नहीं बल्कि पिता माधव राव की तरह ही क्रिकेट से भी बहुत अधिक रहा है। बहुत कम लोगों को ये बात भी मालूम है सिंधिया शुरुआती बैंकर भी रहे हैं और आज भी आप बैंकिंग के महारथियों में इनको शामिल कर सकते हैं । इसे महज़ संयोग कहेंगे कि जिन बीजेपी महासचिव कैलाश विजवर्गीय को मध्य प्रदेश कंट्रोल बोर्ड के चुनाव में उन्होंने धूल चटाई उन्हीं की मदद से उन्हें बीजेपी में अपने समर्थकों के लिए जगह बनाई और उपचुनाव को जिताने में भी मदद ली । 2013 में ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश से कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के रूप में चुने गए । साल 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर की चर्चा हो रही थी उस वक्त कांग्रेस के कुछ ही नेता लोकसभा चुनाव जीते थे। उनमें से एक थे ज्योतिरादित्य सिंधिया थे जो गुना की सीट से जीते थे लेकिन लगातार चुनाव प्रचार के बाद भी 2019 लोकसभा चुनाव में वो इस सीट से हार गए। तब केपीएस यादव ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव के दौरान हुई रैलियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को तब राहुल गांधी और कमल नाथ का भी साथ मिला था। जहां राहुल गांधी ने कमलनाथ को 'अनुभवी नेता' बताया था वहीं उन्होंने ज्योतिरादित्य को 'भविष्य का नेता' बताया था। बेशक चुनाव के नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे थे लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा बड़ी थी और वो प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होने राज्य की हर विधान सभा में खूब पसीना बहाया और कांग्रेस को सम्मानजनक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया । दस जनपथ के अपने जानकारों ने एक बार मुझे बताया भी था कि कांग्रेस आलाकमान ने उनके सी एम बनने की बात मान ली थी और उन्हें आधे से अधिक विधायकों का समर्थन साबित करने को कहा था लेकिन वो केवल दो दर्जन भर विधायकों का समर्थन ही हासिल कर पाये थे जिसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान कमलनाथ के खाते में चली गई ।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ ज्योतिरादित्य की नज़दीकी कई मौक़ों पर साफ़ दिखाई दी। 2014 के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद भी दोनों नेता कई बर साथ दिखे लेकिन मध्य प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ उनके रिश्तों में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा ही रहा । वो पहले भी राज्य में सरकार के काम काज से नाराज़गी जताते थे लिहाजा कमलनाथ दस जनपथ में उनकी राहों में कांटें बोने का काम करते थे । राजधानी भोपाल में एक बार कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने मुझे बताया था प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए काँग्रेस में दस जनपथ में जब लाबिंग चली तो पार्टी आलाकमान उनके नाम पर बात चली थी लेकिन पार्टी के भीतर कुछ वरिष्ठ नेता इससे सहमत नहीं थे । ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताजपोशी वरिष्ठ नेताओं की ताजपोशी पर न केवल ग्रहण लगा सकती थी बल्कि उनकी भावी राजनीति में अडचनें भी पैदा कर सकती थी । तब पार्टी के भीतर ये भी चर्चा चल पड़ी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 का लोक सभा चुनाव हारने के बाद से राज्यसभा जाना चाहते हैं लेकिन मध्यप्रदेश से दिग्विजय सिंह को राज्यसभा के लिए नामित करने की बात कमलनाथ कैंप में होने लगी होने लगी जिससे ज्योतिरादित्य की उम्मीदें धरी की धरी रह गई। काफी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विजय प्राप्त हो गई मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया के काफी कोशिशों के बावजूद भी उनको सीएम पद के लिए नहीं चुना गया। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ को सीएम का पद दे दिया गया। नाराज होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच तकरार का मामला जनता के बीच उभर के सबके सामने आया। लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया हार मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी से मध्य प्रदेश के अध्यक्ष का पद मांग रहे थे लेकिन उन्हें यह भी नहीं प्रदान किया गया। इसी से नाराज होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ की सरकार के खिलाफ सड़कों पर धरना प्रदर्शन करने का धमकी भी दी , परंतु उनके इस दबाव से कांग्रेस पार्टी को जरा सा भी फर्क नहीं पड़ा। यही कारण है, कि 10 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और उनके साथ ही उनके खेमे में कुल 22 सदस्यों ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगा । ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 9 मार्च 2020 को ही अपना इस्तीफ़ा काँग्रेस आलाकमान को सौंप दिया था लेकिन ये इस्तीफ़ा मार्च 10 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से उनकी मुलाक़ात के बाद ही सार्वजनिक किया गया। ज्योतिरादित्य के क़रीबी महेंद्र सिंह सिसोदिया के बयान ने साफ़ कर दिया था कि पार्टी के भीतर कलह की जड़ें गहरी हैं. सिसोदिया ने तब एक बार कहा भी था, "सरकार गिराई नहीं जाएगी लेकिन जिस दिन हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को नज़रअंदाज़ किया गया उस दिन ये सरकार बड़ी मुसीबत में फंस जाएगी।" और हुआ भी यूं ही । सिंधिया के इस्तीफ़ा देने से पहले उनके क़रीबी माने जाने वाले पार्टी के कम से कम 17 विधायकों को बेंगलुरु या गुरुग्राम ले जाया गया। इस घटना ने कमलनाथ सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा दीं। कमलनाथ ने दिल्ली में 9 मार्च 2020 को ही सोनिया गांधी से मुलाक़ात की लेकिन मध्य प्रदेश में सियासी हलचल तेज़ होने की ख़बर मिलने के बाद उन्हें आननफानन में प्रदेश लौटना पड़ा। इसी दिन शिवराज सिंह चौहान ने भी गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के आला नेताओं से मुलाक़ात की और प्रदेश में हो रही सियासी गतिविधियों की जानकारी दी । इसके बाद कांग्रेस के प्रवक्ता केसी वेणुगोपाल ने बयान जारी कर कहा, "पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निकाल दिया गया है” जिसके बाद अब एक तरह से ज्योतिरादित्य के लिए बीजेपी का दामन थामने के रास्ते खुल गए ।कांग्रेस पार्टी महासचिव और युवा नेताओं में एक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ठीक होली के दिन पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया, जिसके बाद मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरा गए । उनके साथ कांग्रेस के क़रीब 19 विधायकों ने भी अपने इस्तीफ़े दे दिए । इधर कांग्रेस ने तुरंत प्रभाव से ज्योतिरादित्य को पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया । इसके बाद अब उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें तेज़ हो गई ।
सिंधिया ने 2020 में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए जिसके बाद नवम्बर 2020 में मध्यप्रदेश उपचुनाव प्रक्रिया संपन्न की गई जिसमें ज्योतिरादित्य ने अपना दमखम भाजपा में दिखाया। भाजपा में उन्होंने स्वयं को साबित कर दिखाया है । मध्य प्रदेश की बदलती राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों को शिवराज सरकार में भारी भरकम विभाग दिलाने में सफल रहे। चाहे फिर तुलसी सिलावट से लेकर गोविंद सिंह राजपूत, महेंद्र सिंह सिसोदिया से लेकर प्रद्युम्न सिंह तोमर , डॉक्टर प्रभु राम चौधरी से लेकर राज्यवर्धन सिंह दत्ती गांव को सरकार में शामिल कराया गया । जिनको मंत्री पद नहीं मिल सका उनको भाजपा संगठन में एडजस्ट किया गया। ज्योतिरादित्य ने एक कप्तान के तौर पर अपनी टीम को सरकार से लेकर संगठन में खेलने के मौके प्रदान किए। उन्होनें भाजपा को ये अहसास भी कराया मध्य प्रदेश की राजनीति में उन्हें विश्वास में लेकर आगे बढ़ना होगा । ऑपरेशन लोटस महाराज के रहते सम्पन्न हुआ और नरोत्तम मिश्रा ने इसकी पटकथा लिखी जिसके बार महाराज पर भी केसरिया रंग होली में खूब चढ़ा । सिंधिया ने खुद को मजबूत खिलाड़ी के तौर पर साबित किया और संकेत दिया कि भविष्य में मध्य प्रदेश में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी उन्हें मिलेगी तो वे उसे सहर्ष स्वीकारेंगे । केंद्र में कैबिनेट मंत्री के बाद भी उनका दिल अभी भी मध्य प्रदेश के लिए धडक रहा है । भाजपा के नीति निर्धारक शिवराज से लेकर विष्णु दत्त शर्मा, सुहास भगत , नरोत्तम मिश्रा , गोपाल भार्गव ने भी महाराज के स्वागत में रेड कारपेट बिछाई । काँग्रेस में रहते जो सम्मान महाराज को नहीं मिल सका वो भाजपा में ज्योतिरादित्य और उनके समर्थकों को पूरा मिला । मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद चुनौतियों से जूझ रहे शिवराज सिंह चौहान ने भी महाराज को लोकप्रिय नेता करार देने के साथ भी प्रदेश की राजनीति में ये संदेश दिया कि महाराज की पसंद का पूरा ध्यान सरकार और संगठन में रखा जाएगा ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के 2020 में कांग्रेस छोड़ने पर राहुल गांधी ने कहा था कांग्रेस में ज्योतिरादित्य रहते तो समय के साथ मुख्यमंत्री भी बन जाते पर बीजेपी कभी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी । आज मोदी सरकार में सिंधिया को उसी मंत्रालय का ज़िम्मा दिया गया है जो तीस साल पहले उनके पिता माधव राव सिंधिया नरसिम्हा राव की सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में संभालते थे । महत्वाकांक्षाओं से लबरेज़ करियर के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव पर कांग्रेस से बगावत कर चुके सिंधिया के पास भाजपा में काम करने की अअनगिनत और असीमित संभावनाएँ हैं । हाल के समय में भाजपा में देवेंडर फड़नवीस, सर्वानंद सोनेवाल , ,विप्लव कुमार देव , हेमंता पुष्कर सिंह धामी जैसे युवा मुख्यमंत्री बन चुके हैं तो प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए भाजपा में बड़ा स्कोप है । दिल्ली में सत्ता के गलियारों में लोग अभी भी महाराज को लोग एक करिश्माई नेता मानते हैं लेकिन इन सबके बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया में किसी तरह का घमंड नहीं है । वो आज भी भाजपा के दीनदयाल मार्ग स्थित राष्ट्रीय कार्यालय में पदाधिकारियों और आम कार्यकर्ताओं से गर्मजोशी के साथ मिलते हैं ।
उड्डयन मंत्रालय की कमान मिलने के बाद महाराज को अपना दशकों का अनुभव इस मंत्रालय में इस्तेमाल करना है । नागरिक उड्डयन मंत्रालय में बेहतर ढंग से काम करने की चुनौती उनके सामने है । पीएम मोदी का विजन है छोटे शहरों से आम आदमी को उड़ान योजन के जरिये लुभाना । इसके लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया से बेहतर रोडमैप शायद ही किसी नेता के पास होगा । महाराज युवा होने के साथ ही काफी ऊर्जावान भी हैं इसलिए उनसे सभी को बड़ी उम्मीदें हैं । वो इस मंत्रालय में कायाकल्प करने का माद्दा रखते हैं । कोरोना काल में उड्डयन क्षेत्र आर्थिक संकट का सामना कर रहा है । आमदनी अठन्नी खर्चा रुपईया । घाटा हर दिन बढ़ रहा है और रोजगार पर संकट है । आय के नए रास्ते खोजने के लिए निजीकरण की राह पकड़नी जरूरी है अन्यथा इस सेक्टर के सामने मुश्किलें बढ़नी तय हैं । युवा सिंधिया को कैबिनेट मंत्री के तौर पर उस पी एम मोदी की टीम में शामिल होने का मौका मिला है जिसकी लोकप्रियता में आज भी दूर दूर तक कोई गिरावट नहीं है । ज्योतिरादित्य यू पी ए सरकार में भी मंत्री रहे लिहाजा उनके पास अनुभव की कमी नहीं है । महाराज उस शख्स का नाम है जिसके चेहरे पर कभी हताशा या निराशा देखने को नहीं मिली । कैबिनेट मंत्री के तौर पर उनकी ताजपोशी के बाद देश का युवा उन्हें नई उम्मीदों भरी नजर से देख रहा है । ज्योतिरादित्य सिंधिया जानते हैं अगर अपनी युवा सोच क नए आकार में नागरिक उड्डयन मंत्रालय में उन्होनें अपना लिया तो प्रधानमंत्री मोदी की गुडबुक में वो शामिल हो सकते हैं और शायद मध्य प्रदेश में सी एम बनने का जो सपना काँग्रेस में रहते हुए पूरा नहीं कर पाएँ वो मोदी सरकार में अपने मंत्रालय में बेहतर काम जरिए साकार कर सकते हैं । सिंधिया अभी काफी युवा हैं और उनके पास भविष्य की राजनीति के लिए लंबी पारी खेलने के लिए पर्याप्त समय है । बेशक शिवराज सिंह चौहान का विकल्प फिलहाल एमपी में कोई नहीं है लेकिन बी डी शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा , गोपाल भार्गव , प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर के सामने महाराज डार्क हार्स के रूप में चुनौती आने वाले दिनों में खड़ी कर सकते हैं । महाराज के पिता माधव राव सिंधिया राजीव गांधी सरकार में रहते हुए आम मध्यम वर्ग के वे हीरो बन गए थे। उनके पास भी आम आदमी का महाराज बनने के बेहतरीन समय मोदी सरकार में है । इन सब के बीच समय भी आशावान है । महाराज का ये जो नया सफर भाजपा के साथ कैबिनेट मंत्री के तौर पर शुरू हुआ है वो अब लंबी रेस के घोड़े के रूप में आगे जाता दिख रहा है । महाराज एक कुशल योद्धा के रूप में सबके सामने आए हैं । खास बात ये है ज्योतिरादित्य के पास जोश भी है और होश भी । महाराज केंद्र में कैबिनेट मंत्री की जिस ऊंचाई पर पहुंचे हैं वहाँ से पलटकर देखने की गुंजाइश नहीं है । महाराज की एक खूबी ये हैं राजनीति में वो आज भी उसी जोश एक साथ आगे बढ़े हैं जो जोश उस समय देखने को मिला जब वो पहली बार 30 बरस की उम्र में सांसद बने थे । आदित्य की ज्योति कमल को लंबे समय तक कमल को मध्य प्रदेश में खिला सकती है । ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास यह स्वर्णिम अवसर है जब वो अपनी दादी के द्वारा खड़ी की गई जनसंघ की जड़ों से जुड़कर भाजपा में अपना अलग प्रभाव दिखा सकते हैं ।
कांग्रेस छोड़ने के एक दिन बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए थे तब उन्होंने कहा था उनके जीवन में दो तारीखें बहुत महत्वपूर्ण रहीं। पहला दिन 30 सितंबर 2001 था जिस दिन उन्होंने अपने पिता माधवराव को खोया। दूसरा दिन 10 मार्च 2020 का जो उनके पिता की 75वीं वर्षगांठ थी। इस दिन उन्होंने बीजेपी में शामिल होने का फैसला लिया था। एक समझदार नेता की तरह सिंधिया ने अर्जुन की भांति बड़े लक्ष्य को भेदना बेहतर समझा। एंग्री यंग मैन की भूमिका में भी नजर आकार उन्होने कमलनाथ सरकार के मानो तोते ही उड़ा दिये । आने वाले दिनों में सिंधिया के लिए मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव सबसे बड़ी चुनौती होगी । देखना होगा भाजपा महाराज का उपयोग मध्य प्रदेश में कैसे करेगी ? मध्य प्रदेश भाजपा में संगठन में जिस तर्ज पर नई युवा टीम आई है उसे देखते हुए लगता है अब प्रदेश में भाजपा परिवर्तन के साथ युवाओं को लेकर नई सोच के साथ आगे बढ़ रही है । कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने को बड़े किंग मेकर के तौर पर साबित किया है । बेशक सी एम शिवराज सिंह चौहान ने अनुभव से पार्टी हाईकमान को बड़ा संदेश दिया है लेकिन बिना लोटस आपरेशन के भाजपा के सत्ता में आने की दूर दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आती थी। इस पूरी पटकथा के नायक तो ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराज ही हैं ।
सिंधिया 16 महीने के इंतज़ार के बाद पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की तरह दिल्ली में नई उड़ान भरने को तैयार हैं। पिछले 16 महीने धैर्य की अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। पहले उपचुनाव में कांग्रेस से टूटकर आए समर्थक विधायकों को जिताकर अपने वजूद को साबित करने की चुनौती, फिर उन्हें शिवराज सरकार और बाद में संगठन में में सम्मानजनक मंत्रालय दिलवाना मायने रखता है । मध्य प्रदेश की हालिया राजनीतिमें शिवराज बेशक किंग हैं लेकिन किंग से ज्यादा पावरफुल किंगमेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया साबित हुए हैं । भाजपा आलाकमान भी उनकी उपयोगिता को बखूबी समझता है । राजनैतिक आडंबर, प्रपंच और प्रबंधन से दूर रहने वाले महाराज की छवि मध्य प्रदेश में एक धीर- गंभीर नेता की रही है । ज्योतिरादित्य सियासत में गंभीरता, सौम्यता और जिम्मेदाराना व्यवहार के लिए ही जाने जाते हैं । प्रदेश के संभवत: इकलौते ऐसे नेता रहे, जिनके किसी भी बयान पर कभी कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ शायद इसका कारण उनका सिंधिया राजवंश से ताल्लुक रहना रहा । एक राजा का ये कर्तव्य ही रहा है उसकी प्रजा का कोई व्यक्ति परेशान नहीं हो । राज्य की सियासत में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो अपनी अलग पहचान बनायी है उसमें किसी पार्टी की कोई भूमिका नहीं है ।
राजनीति में महाराज के कद का औरा इतना बड़ा है उसके इर्द गिर्द आज कोई नेता भी कोई नजर नहीं आता है । महाराज के समर्थकों और प्रशंसकों में ही नहीं बल्कि सियासत में दिलचस्पी रखने वालों को उनमें भविष्य का मुख्यमंत्री नजर आता है । मध्य प्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सबसे अधिक सरल मंत्री माने जाते रहे हैं। राजनीतिक हल्कों में उनके लिए कुछ भी यूं ही नहीं कहा जाता है कि वे अपने जनपक्षीय कार्यों के चलते हर मुख्यमंत्री और नेता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाते हैं। यह ज्योतिरादित्य सिंधिया का करिश्मा ही कहिए दिग्विजय सिंह , कमलनाथ, शिवराज सिंह चौहान , नरोत्तम मिश्रा , कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर,थावर चंद गहलोत , प्रह्लाद पटेल जैसे नेताओं की राजनीति भी महाराज की राजनीति की चमक के सामने कुंद पड़ जाती है । वैसे भी इन सबकी राजनीतिक पारी उत्तरार्ध में है। इस बात की पूरी संभावना है भाजपा अगला चुनाव शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में नहीं लड़ेगी । युवाओं पर दांव खेला जाएगा और कई मौजूदा विधायकों का टिकट सिटिंग गेटिंग फार्मूले के तहत काटा जाएगा । ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम का बड़ा जुआ भाजपा का संसदीय बोर्ड खेल सकता है इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता ।
इसे महाराज की राजनीति का नया युग ही कहिए भारी उथल पुथल के दौर में जब भी गाहे बगाहे मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के रूप चर्चा होती है भावी मुख्यमंत्री के केंद्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया ही होते हैं। महाराज के सामने प्रदेश में खुद को अपनी दादी विजयराजे सिंधिया और पिता माधव राव सिंधिया की तरह सर्वस्वीकार्य नेता के तौर पर स्थापित करने का इससे बेहतर मौका शायद ही कभी मिले । प्रधानमंत्री मोदी की टीम में जगह पाकर हाल के दिनों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम जिस तेजी के साथ सियासी फिजा में तैर रहा है वह अपने आप में साफ करता है कि भविष्य में मध्य प्रदेश की राजनीति की एक बड़ी धुरी महाराज ही होंगे । महाराज का मतलब मध्य प्रदेश में इस दौर में अगर न भूतो न भविष्यति हो चला है तो मतलब साफ है इनके बगैर भविष्य में भाजपा की राजनीति नहीं सध सकती। एक कप्तान के रूप में प्रदेश की विधानसभा सीटों और संसदीय सीटों की जितनी बारीकियां महाराज को मालूम हैं उतना शायद ही भाजपा के किसी नेता ने जानने का प्रयास किया होगा । गुना , भिंड , मुरैना , ग्वालियर , शिवपुरी , टीकमगढ़ के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव प्रदेश में उन विधानसभा सीटों में भी है जहां रियासतकालीन समय में सिंधिया घराने की रियासतें हुआ करती थी । इसमें राजस्थान की सीमा से लगी आगर मालवा विधानसभा से लेकर मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले की कालापीपल विधानसभा तक का विशाल क्षेत्र सम्मिलित है । मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में राज माता सिंधिया का विशेष प्रभाव रहा है । यहाँ की एक विशेष जाति तंवर को राजमाता सिंधिया ने नई पहचान दिलाई थी । आज भी राजमाता के परिवार से यहाँ रहने वाले निवासी बहुत प्रभावित हैं । ऐसा प्रभाव कई विधान सभा और संसदीय सीटों पर देखा जा सकता है जहां महाराज के भाजपा में जाने के बाद से समीकरण तेजी से भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं । ज्योतिरादित्य की छवि रियासत से जुड़ी होने के चलते अलग है । वो करिश्माई जादूगर हैं । उनकी राजनीति के केंद्र में किसान से लेकर मध्यम वर्ग, युवा से लेकर आम आदमी और समाज के वंचित- शोषित तबके शामिल हैं जो अपनी बिछाई बिसात से साधे जा सकते हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया का व्यक्तित्व भी ऐसा है जो मध्य प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनाव में तमाम सामाजिक समीकरणों को साधते हुए भाजपा का बड़ा चेहरा बन सकते हैं । तीन पीढ़ियों से राजनीति की जड़ें सींचने में सिंधिया राजघराने की बड़ी भूमिका रही है साथ ही जनसंघ की जड़ें सींचने में भी इस राजघराने के योगदान को नहीं नकारा जा सकता । खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया काँग्रेस की कमियों को जानते हैं और विभीषण बनकर काँग्रेस की संभावनाओं पर पलीता लगाते हुए भाजपा की संभावनाओं को नए पंख लगा सकते हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया को समझना होगा उनकी दादी और पिता की विरासत को वे भाजपा में रहते लंबे समय तक आगे बढ़ा सकते हैं । उन्हें अपनी पूरी ऊर्जा काँग्रेस के मिशन को नाकामयाब बनाने में लगानी होगी साथ ही युवाओं के पोस्टर बाय के रूप में भाजपा कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना होगा । महाराज का ये शगल ही है कि आज भी उनके साथ हजारों लोगों की भीड़ एक दिन में जुड़ जाती है। भाजपा के स्टार प्रचारक के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावी सभाओं में उमड़ने वाली भेद को वोटों में तब्दील करने की क्षमता रखते हैं । महाराज प्रदेश में कहीं भी पहुँचने के लिए एक ट्वीट कर दें तो उनके प्रशंसक उनके स्वागत के लिए सड़कों पर निकाल पड़ते हैं । जनमानस की समस्याओं को सुनने के लिए शिद्दत से सदैव तत्पर रहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया मानवता और मानवीय गुणों से भी सम्पन इंन्सान हैं । राजा का काम जनता के दुख दर्द में सहभागी होना और उनकी समस्याओं को सुनना है। ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मामले में एक कुशल और मंझे हुए राजनेता की छवि गढ़ते नजर आते हैं । कर्मों में कुशाग्रता,मन में निश्छलता का भाव,ह्रदय में एकाग्रता,सहित तमाम नीति निपुणता उनके कार्यों का विराट स्वरुप है ।
आज जब राजनेता पढ़ना लिखना भूल चुके हैं, गंभीर विषयों पर नेताओं का बिना जाने समझे बोलना चलन मे है, राजनेताओं में विनम्रता के स्थान पर घोर अहंकार भर चुका है, ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेता बेहद प्रासंगिक हैं और उम्मीदें भरते नजर आते हैं । मध्य प्रदेश की राजनीति में आप महाराज को एक विनम्र, व्यवहार कुशल, जनसुलभ नेता के तौर पर अपनी बात खुलकर रखने वाले नेता के तौर पर देख सकते हैं । ऐसे दौर में जब लोग राजनीति में स्वच्छ ईमानदार छवि वाले सेवाभावी लोगों की कमी होती जा रही है, उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे जनप्रिय नेता समाज के लिए रोल माडल बन जाते हैं । यह सही है कि मौजूदा दौर में पारिवारिक पृष्ठभूमि से सियासत में आना बहुत आसान है । मगर मौजूदा दौर में लोकतांत्रिक व्यवस्था, जन जन की समस्याओं को समझना, इसमें खुद को साबित करना, विषयों को पकड़ना, लोकप्रिय होना और जनता का सवाल उठाना और भरोसा जीतना आसान नहीं है । ज्योतिरादित्य सिंधिया की खासियत यही है कि मूल्यों की राजनीति से उन्होंने बहुत कम समय में अपनी प्रतिभा और योग्यता के दम पर यह सब मुकाम हासिल किया है ।
हरिवंश राय बच्चन पंक्तिया महाराज को निश्चित ही प्रेरणा देंगी -
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ