Monday 20 December 2021

लोगों से कई बार भूल और चूक हो जाती है - मयूख महर

 

        


 

मयूख महर की छवि पिथौरागढ़ विधान सभा क्षेत्र में चहुंमुखी विकास करने वाले नेता की बनी है। जिला पंचायत अध्यक्ष के अपने कार्यकाल में मयूख महर ने गाँव- गाँव तक विकास की किरण पहुंचाई। वह परिसीमन से पूर्व जिले की कनालीछीना विधानसभा सीट का भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं,  जहां उन्होनें उत्तराखंड क्रांति दल के दिग्गज नेता काशी सिंह ऐरी को पटखनी दी । 2012 के विधान सभा चुनावों में उन्होनें पिथौरागढ़ सीट से भाजपा नेता स्वर्गीय प्रकाश पंत को पराजित कर अपनी धमक राजधानी देहरादून में दिखा दी । अपने इस कार्यकाल में मयूख महर ने अपनी विकास की नई सोच के साथ  पिथौरागढ़ की तस्वीर बदलने का काम किया जिसे जनता ने भी खासा सराहा  लेकिन  मेगा  विकास कार्यों को अंजाम दिये जाने के बाद भी उत्तराखंड के पिछले विधानसभा चुनावों में मयूख महर को हार का सामना करना पड़ा । चुनावों के दौरान माहौल तो पूरी तरह से उनके पक्ष में था लेकिन कुछ दिन पहले हुई प्रधानमंत्री मोदी की सभा ने पूरी चुनावी बाजी को  पलट कर रख दिया। घुमा फिराकर बात करना उनके अंदाज में शुरुवात से शामिल नहीं रहा है। वह सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर फोकस रखते हैं और प्रचार- प्रसार से खुद को दूर रखते हैं। अपने संसाधनों से कई बार वो विकास कार्यों को अंजाम देने में पीछे नहीं रहते हैं।  मयूख  महर की काम करने की शैली अन्य जनप्रतिनिधियों से अलहदा रही है । जनता के हर दर्द में सहभागी बनते हैं और उनकी समस्याओं का त्वरित समाधान भी करते हैं ।

  स्वर्गीय प्रकाश  पंत की मृत्यु के बाद 2019 में जब इस सीट पर उपचुनाव हुआ तो मयूख महर ने काँग्रेस का प्रत्याशी बनने से साफ इंकार कर दिया लेकिन 2022 के चुनाव में मयूख महर पिथौरागढ़ सीट से काँग्रेस के मजबूत प्रत्याशी हैं । इस बार रण कुछ अलग होगा । कुछ इसी अंदाज में नई थीम के साथ मयूख इस बार 2022 की चुनावी पिच पर बैटिंग करने के लिए तैयार हैं। काँग्रेस के लिए मयूख महर की क्या अहमियत है ये इस बात से समझा जा सकता है काँग्रेस महासचिव  हरीश रावत ने इस बार उन्हें जिले की चारों विधान सभा सीटें जिताने की बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है । मयूख महर को आगे कर काँग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में न केवल जोश भरना चाह रही है बल्कि जिले की सभी सीटें अपने खाते में डालने की तैयारी में है । मयूख महर अपने बेबाक अंदाज के कारण जाने जाते हैं । हर्षवर्धन पाण्डे के साथ हुई विशेष बातचीत में उन्होनें आगामी चुनावों, काँग्रेस की भूमिका , पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर अपने कार्यकाल में किए गए कामों जैसे कई विषयों पर खुलकर अपनी राय को रखा है । 

प्रस्तुत है इस बातचीत के मुख्य अंश :  

 

 उत्तराखंड राज्य का गठन हुए 21 बरस से अधिक का समय बीत चुका है शहीदों के सपनों का उत्तराखंड आज तक नहीं बन पाया है। आप कनालीछीना और पिथौरागढ़ विधान सभा सीटों का प्रतिनिधित्व एक दौर में कर चुके हैं । 2 बार के विधायक रह चुके हैं । एक अनुभवी नेता के तौर पर इस सफर को आप कैसे देखते हैं ?

  अब तक राज्य का 21 साल का सफर बड़ा कांटो भरा सफर है । जिन मुद्दों को लेकर ये राज्य बना था उसमें बहुत सारे लोगों ने शहादत दी थी,  वो सपने आज तक पूरे नहीं हो पाये हैं । बाकी पहाड़ी राज्य के सपने को हम कहीं से कहीं तक लागू नहीं कर पाये हैं । न हम पहाड़ में अपनी राजधानी बना पाये हैं , न ही हम अपनी मातृभाषा कुमाऊनी और गढ़वाली को एक मान्यता दे पाये हैं , न ही पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों में बसने वाले उन लोगों को जिन्होनें विकास  को अब तक देखा ही नहीं हैउन तक विकास की किरण पहुंचा पाये हैं और हमारे यहाँ जो शिक्षा व्यवस्था का हाल है वो किसी  से छुपा नहीं है। मैं तो ये मानूँगा कि 21 साल सारी राजनीतिक पार्टियों का ये घालमेल था जो इन्होनें अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए 21 साल  तक इसका प्रयोग किया । इस दौर में पार्टियां जरूर मोटी हुई हैं , मजबूत हुई हैं लेकिन जनता लुटी की लुटी रह गई हैं ।

 हाल के बरसों में ये राज्य मुख्यमंत्री उत्पादक प्रदेश बनकर रह गया है। चाहे भाजपा हो या आपकी पार्टी काँग्रेस , दोनों के हालात एक जैसे हैं। मुख्यमंत्री की संख्या  भले ही आपकी पार्टी  में भाजपा से कम है लेकिन बार बार मुख्यमंत्री बदलने से तो विकास कार्य प्रभावित होते हैं ?

सीएम बदलने का जो पैटर्न देश में चल चुका है वैसे तो ये पूरे देश में चल रहा है लेकिन अपने उत्तराखंड में ये तो ज्यादा हो गया है। कर्नाटक में गुजरात में तीन सीएम  बदले गए हैं । यहाँ पर भी 3 सीएम बदल गए हैं लेकिन ये जो पैटर्न चल रहा है इससे निश्चित ही नुकसान होता है । चूंकि सीएम विकास करने के लिए ही बनता है न कि अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए बनता है उसका दुष्परिणाम प्रदेश की जनता को झेलना पड़ता है। चूंकि पाँच साल चुने जाने वाले जनप्रतिनिधि वो अपने को स्थापित करने के लिए चाहे मंत्री के रूप में हों , या सीएम के रूप में उसी लड़ाई में लड़ते रहते हैंजनता की ओर उनका ध्यान नही होता है । जनता के संसाधनों का उसमें दुरुपयोग किया जाता है । निश्चित रूप से मैं जो बात आपसे कर रहा हूँ आप बखूबी समझ ही रहे हैं। तो ये सी एम बदलने का जो पैटर्न चला है उससे भी हमारे राज्य को बहुत नुकसान हुआ है। इसमें राजनीतिक पार्टियां जो बीते 21 सालों से यहाँ  पर राज कर रही हैं दोनों उतना ही दोषी भी हैं। किसी एक पार्टी को हम इसका दोषी नहीं मान सकते । तो ये प्रथा अब राज्य में बदलनी चाहिए। अब जनता को ये सोचना चाहिए और सोच समझकर ही वोट करना चाहिए क्योंकि कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है ये राजनीति उनकी बपौती है। वो राजनीति में हमेशा चिरायु रहेंगे और जब तक जनप्रतिनिधि को जनता उठाती नहीं बैठाती है तब तक उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता क्योंकि जब तक वो हारेगा नहीं तब तक काम नहीं करेगा क्योंकि वो तो ये सोचता है मैं तो जीतकर आया हूँ मुझे अब काम करने की क्या जरूरत है ।  किन तरीकों से वो जीतता है वो किसी से छिपा नहीं है और वो जीतता है ।  

लूट- खसोट और भ्रष्टाचार इस राज्य का पर्याय बन चुका है। भाजपा सत्ता में आती है तो वो कहती है हम काँग्रेस के 56 घोटालों की जांच कराएंगे।  काँग्रेस सत्ता में आती है तो वो भी भाजपा के घोटालों की जांच की बात कहती हुई दिखाई देती है लेकिन लोकायुक्त के मसले पर सत्ता में आने के बाद मामला आगे नहीं बढ़ पाता । भाजपा ने पिछले चुनाव में सत्ता में आने पर 100 दिन में लोकायुक्त लाने का वादा किया था लेकिन अब तक ये ठंडे बस्ते में है। आपकी काँग्रेस की  सरकार भी इस पर आगे नहीं बढ़ पायी ?  ऐसा क्यों ?

लोकायुक्त ऐसा नाम है जो पूरे देश को ढकने के लिए यूज किया जाता है। जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए और उनको वेवकूफ बनाने के लिए लोकायुक्त शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। आप जरा देखिये केंद्र में कोई लोकायुक्त नहीं है। अन्ना हज़ारे कहते थे लोकायुक्त आना चाहिए लेकिन लोकायुक्त नहीं आया और इस प्रदेश में भी लोकायुक्त की बातें कभी धरातल में आई ही नहीं । जो आया भी वो कठपुतली टाइप व्यक्ति आया और उसने क्या किया जनता को ये कुछ पता नहीं चल पाया और जहां तक भ्रष्टाचार का मसला है चाहे काँग्रेस हो या भाजपा एक मुहावरा है चोर चोर मौसरे भाई उससे ही बहुत कुछ साफ हो जाता है ।

पलायन पहाड़ों में एक बड़ा मसला है। कोविड काल में कई प्रवासी अपने गांवों में आए लेकिन यहाँ ज़मीनें औने पौने दामों में बिक चुकी हैं। विकास की चमक मैदानों में नजर आती है पहाड़ों में वही हाल है जो यूपी में हुआ करता था। शिक्षा , स्वास्थ्य , पेयजल जैसी समस्याओ के लिए जनता तरस रही है ?

आज हमारा युवा जो यहाँ का मूल निवासी है उसके पास अपनी छोटी जमीन है , आज पहाड़ में कोई ऐसा नहीं होगा जिसके पास कुछ जमीन न हो, कच्चा पक्का मकान न हो, एक तोला सोना न हो। आप उसे उतना गरीब नहीं कह सकते,  यहाँ के संसाधनों से अपना घर न चला सके । आज हमारा युवा मैदानी इलाकों में जाकर होटलों में बर्तन धोना पसंद करता है । अपने पुश्तैनी खेत को जोतना , बगीचों को चलना पसंद नहीं करता। घरों में रहना पसंद नहीं करता तो इसका दोषी उतना ही है जितना हमारी सरकारें । हम लोगों की मानसिकता को नहीं बदल पाये हैं तो वे भी उतना ही दोषी हैं क्योंकि हम पाने पहाड़ों को छोड़कर जा रहे हैं , खेती को छोड़ रहे हैं , वीरान बंजर ज़मीनें छोड़ रहे हैं। हम आरोप लगाते हैं जंगली जानवर खेतों को नष्ट कर दे रहे हैं।फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं पर हम अपनी थाती को छोड़कर जाएंगे तो उसके दुष्परिणाम तो भुगतने ही पड़ेंगे। आज हमको मैदानी इलाकों में बर्तन धोने तक की सुविधा नहीं मिल पा रही है । कोविड आया तो अंत में हम उसी जगह शरण लेने को मजबूर हुए ज्सिकों छोड़कर हम गए थे । जो हमारी सबसे बड़ी चूक है । हम अपनी पुश्तैनी थाती को छोड़कर जा रहे हैं जिसके दुष्परिणाम हमें भोगने पड़ेंगे ।

क्या इस बार के चुनाव में काँग्रेस पूरी मजबूती से एकजुट होकर  चुनाव लड़ेगी ? काँग्रेस के बारे में कहा जाता है अपने ही काँग्रेस को हराते हैं। राज्य में विकास पुरुष स्वर्गीय तिवारी जी के दौर से ही काँग्रेस में गुटबाजी का दौर देखने को मिला है। आपको क्या लगता है क्या काँग्रेस अभी संक्रमण काल से गुजर रही है ?

काँग्रेस संक्रमण काल से गुजर रही है ये आप राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कह सकते हैं लेकिन उत्तराखंड में पार्टी साख के दौर से गुजर रही है आज हमारी पार्टी में नेता चुनाव जीतने के बजाय खुद को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने में लगे हुए हैं जहां हर आदमी मंत्री बनना चाहेगा तो उस पार्टी का बंटाधार तो होना ही है और काँग्रेस उस दौर को खत्म कर दे तो प्रदेश में भारी बहुमत से अपनी सरकार बना लेगी।  इस प्रदेश को एक अच्छा नेतृत्व देगी , ऐसा मेरा मानना है क्योंकि पिछले 5 साल डबल इंजन सरकार ने कुछ काम इस प्रदेश में नहीं किया है । तीन  सीएम बदले जा चुके हैं । प्रचंड बहुमत और 57 विधायक होने के बाद भी ये ताजुब्ब करने वाली बात है । ऐसा काम को भाजपाई ही कर सकते हैं । ये प्रदेश अब किस स्थिति में जा रहा है जनता समझ रही है । जनता फिर से सत्ता में काँग्रेस पार्टी को देखना चाहती है । हमारी पार्टी के बड़े नेता जो स्वार्थवश अपने को बड़े पद की दौड़ में रखे हुए हैं वो इस स्थिति को बिगाड़ भी सकते हैं,  ऐसा मेरा मानना है ।

आप लंबे समय से काँग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं । व्यक्तिगत रूप से आज आपसे जानना चाहूँगा 2016 में प्रदेश काँग्रेस में जो बड़ी टूट हुई उसके बाद कहीं न कहीं काँग्रेस राज्य में कमजोर हुई है ? कहीं ना कहीं जो जान फूंकने की जो कोशिशें होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और विपक्ष की भूमिका तो हरीश रावत निभा रहे हैं । साढ़े चार साल तक वो धरना प्रदर्शन कर रहे थे । लोकतन्त्र में पक्ष के साथ विपक्ष की भूमिका भी जरूरी है

मुझे नहीं लगता 2016 की टूट के बाद से काँग्रेस राज्य में कहीं कमजोर हुई है क्योंकि आज भी काँग्रेस का बड़ा जनाधार है और ये जनाधार दो या चार साल का नहीं है । ये एक लंबी शताब्दी की मेहनत के बाद जनाधार बना है । आज भी हम जैसे नेता भी इसी जनाधार के बूते खड़े हुए हैं ।  काँग्रेस का एक कैडर वोट है। अगर आप कह रहे हैं 2016 में जो नेता काँग्रेस छोड़कर गए उनके जाने से पार्टी कमजोर हुई है तो अगर वो वापस आ गए तो काँग्रेस मजबूत होगी ।  मुझे तो ये लगता है उनके जाने से न फर्क पड़ा है न आने से फर्क पड़ेगा ।  

जो चेहरे शुरुवात में बाहर गए क्या वे फिर से काँग्रेस में वापस आएंगे ?

शुरुवात हो चुकी है आप देख ही रहे हैं । एक महीने में वो दो चार औरों को भी बटोर कर ले आएंगे ।  

पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कुछ महीने पहले बयान दिया था कुछ समय बाद राज्य में तेजी से परिस्थितियाँ बदलेंगी ? क्या लग रहा है आपको वो तो ये भी कह रहे हैं काँग्रेस के कई चेहरे भाजपा में आने की तैयारी कर रहे हैं । 

आप मुझे एक बात बताइये विजय बहुगुणा जी ने कहा 10-15 दिन में क्या होगा आप देखिये ।  10-15 दिन में तो वे भी काँग्रेस जॉइन कर सकते हैं। उसका एक मतलब तो ये भी निकाला जा सकता है। अगर आप देख रहे हैं काँग्रेस टूटेगी और भाजपा से जुड़ेगी तो भाजपा से भी टूटकर कई कांग्रेस में आयंगे इसका ये मतलब भी निकाला जा सकता है। ये जो घुमावदार बातें बहुगुणा जी ने कही हैं उसका कोई विश्वास मायने नहीं रखता ।

आप काँग्रेस की चुनावी कोर कमेटी से भी जुड़े हुए हैं। तो क्या किसी चेहरे को आगे करके पार्टी को ये आगामी चुनाव लड़ना चाहिए । भाजपा को सीएम के रूप में पुष्कर धामी को प्रोजेक्ट कर चुकी है लेकिन काँग्रेस ने अपना चेहरा अभी तक नहीं दिया है । मैदान में जाने से पहले कोई न कोई चेहरा तो देना ही होगा ? राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियाँ अलग हैं लेकिन राज्य में किसी न किसी चेहरे के साथ तो आगे जाना ही होगा ?

जहां तक मेरा मानना है इसका निर्धारण तो पार्टी हाईकमान करेगा और जहां तक मैं समझता हूँ हमारे पास कई नेता हैं। उन सभी के सामूहिक नेतृत्व में हमको लड़ना चाहिए और जो नए युवा चेहरे कन्हैया कुमारजिग्नेश , हार्दिक पटेल जैसे लोग पार्टी से जुड़ रहे हैं वो अपनी ऊर्जा इस प्रदेश को भी देंगे। ये सभी युवा हैं। इनके ओजस्वी विचार हैं। एक्सपोजर भी है इनके पास और भविष्य की सोच और ताकत भी है। तो ऐसे लोगों को आगे लाकर हमको चुनाव लड़ना चाहिए ताकि एक नया सोच और समझ देश को दे सकें ।

राष्ट्रीय परिपेक्ष्य की बात मैं करूँ तो काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर कोई नहीं आया है । यहाँ उत्तराखंड में आपने चार चार कार्यकारी अध्यक्ष बना दिये हैं । टिकटों के चयन में उस समय परेशानी तो नहीं होगी जब इन सभी के अपने अपने गुट होंगे और वे टिकट लेने की होड में नजर आएंगे ?

टिकटों का बंटवारा कैसे किया जाता है ये पार्टी हाईकमान तय करेगा । जो चार अध्यक्ष की बात आप कर रहे हैं वो तो एक प्रक्रिया है अपनी पार्टी में । हर पार्टी अपने अपने लोगों को बांधे रखती है । उस सोच के साथ ये चार अध्यक्ष हमने बनाए । मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है ये सभी टिकटों को लेकर दखलंदाजी नहीं कर पाएंगे ।

एकजुट होकर अगर उत्तराखंड में काँग्रेस लड़ती है तो परिस्थितियाँ बदल भी सकती हैं । चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के बाद भी परिवर्तन यात्रा नेताओं के दिलों में परिवर्तन नहीं ला सकती है और कामयाब होती नहीं दिखाई दे रही । इसे आप कैसे देख रहे हैं ?

परिवर्तन धरातल पर नहीं दिखाई दिया जो आप कह रहे हैं । निसंदेह आप अगर आज आम आदमी को कुरेदने का प्रयास करें तो पहले ही वो काँग्रेस को उतना प्रमोट नहीं करे , न बोले लेकिन वो खुलकर भाजपा के खिलाफ बोल रहे हैं जो पाँच साल में उनका शोषण , अत्याचार , उत्पीड़न हुआ उससे वो त्रस्त हो गए हैं जिसके बाद वो किस निर्दलीय की तरफ नहीं जा सकते । किसी ऐसी पार्टी की तरफ भी नहीं जा सकते जो भाजपा की बी टीम हो तो उनका रुझान काँग्रेस की तरफ ही होगा । काँग्रेस पार्टी का सत्तर वर्षों का कार्यकाल ऐतिहासिक है । कुछ करप्शन हर जगह होता है । स्वार्थी हर जगह होते हैं लेकिन काँग्रेस पार्टी द्वारा किए गए कार्यों  को जनता आज भी भुला नहीं पाई है और इस देश को फिर से काँग्रेस पिछली राह पर ले जाना चाह रही है तो निसंदेह काँग्रेस का भविष्य उज्जवल है और जनता लौटकर काँग्रेस की तरफ ही आएगी ।

पंजाब पर आना चाहता हूँ । कुछ समय पहले वहाँ चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में बड़ा बदलाव हुआ । तब पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने कहा उत्तराखंड में भी वे एक दलित को मुख्यमंत्री  की कुर्सी में देखना चाहते हैं । इसे व्यक्तिगत  रूप से आप कैसे देख रहे हैं ? क्या परंपरागत वोट जो काँग्रेस का कोर वोटर है उसकी तरफ जाने की कोशिश हो रही है ?

परंपरागत वोट और कोर वोट आप ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं जो आज की राजनीति में निरर्थक हो चुके हैं । आज महिलाएं हों या युवा , मजदूर हों वो सब जागरूक हैं । हरीश रावत जी दलित को सीएम बनाना चाह रहे हैं तो ये उनकी अच्छी सोच है । मैं इस बात  को मानता हूँ लेकिन  उस समय क्या हालत बनते हैं ? क्या समीकरण होते हैं ? किन परिस्थितियों से पार्टी गुजरती है ये उस समय तोला जाएगा । किसको बनाया जाए किसको नहीं ?  

पिथौरागढ़ विधान सभा में वही मुद्दे हैं जो राज्य गठन से पहले के हैं ।  उसके बाद भी विकास कहीं दिखता नहीं है । एक टेंडेंसी है श्रेय लेने और उदघाटन करने की,  एक होड मची हुई है ।  इस विधानसभा क्षेत्र की जनता भी कन्फ़्यूज्ड नजर आती है ।  इस बारे में आपका क्या कहना है ?

पुराने मुद्दे जैसे आप बताइये ?

नैनी सैनी को ही ले लें,  9 सीटर विमान की ट्रायल लैंडिंग हुई उसके बाद विमान ही नहीं उड़ रहा । उदघाटन पर उदघाटन होते जा रहे हैं । इसी तरह स्पोर्ट्स कालेज का मामला भी लटका है ? ऐसे कई मामले आपको आज गिना सकता हूँ

मैं तो यही सुनना चाह रहा हूँ आपसे । आप नैनी सैनी की बात कर रहे हो ।  थोड़ी देर के लिए स्पोर्ट्स कालेज , मेडिकल कालेज की भी बात करोगे। पेयजल की भी भी बात करोगे , सड़कों की भी , अस्पताल की भी बात करोगे । आधे आधे समय यहाँ दोनों पार्टियों को कम करने को मिला । पाँच साल स्वर्गीय एन डी तिवारी जी ने गुजारे।  उन पर कोई आक्षेप नहीं लगा सकता , विकास नहीं हुआ। दूसरे कार्यकाल में मुझे सौभाग्य मिला यहाँ नेतृत्व करने का। आप ये देखिये हमने उनके प्रस्तावों की नीव रखीसाथ ही धरातल में उसको मूर्त  रूप भी दिया । जब तक संचालन करने की या क्रियान्वयन की बात आई सरकार बदल गई । हम हार गए । आज ये प्रश्न उनसे पूछा जाना चाहिए जिसने हमारे बाद के 5 साल निरर्थक बिता दिये । हम चंडाक तक पानी ले आए थे । आंवलाघाट योजना का वो पानी नहीं बाँट पाये । हम बेस अस्पताल जंगल से उठाकर लाये वो आज तक बेस को चला नहीं पाये । हमने मेडिकल कालेज की घोषणा करवाई,  200 करोड़ स्वीकृत करवाए केंद्र से , वो आज तक 200  करोड़ खर्च नहीं कर पाए इस कालेज के नाम पर । हमने अपने कार्यकाल में हवाई पट्टी बनाई । आपको याद होगा अपने कार्यकाल में 2 महीने तक स्टेट प्लेन से फ्री सेवा पिथौरागढ़ वासियों को दी । याद है ना आपको,  पर वो टिकट लेकर भी जहाज नहीं चला पाए । बहुत सारी ऐसी कई चीजें हैं । हमने पार्किंग बनाईआज तक वो पार्किंग व्यवस्थित नहीं है । उससे पैसा अर्जित करने की कोशिश ये नहीं कर पाए हैं । नर्सिंग कालेज हमने जिले को दिया ये आज भी पाल कालेज हल्द्वानी से संबन्धित है । यहाँ क्लास नहीं चल पा रही है । स्पोर्ट्स कालेज हम लेकर आए उसको ये आज तक शुरू नहीं करवा पाए । आज भी ये स्टेडियम से ही संचालित हो रहा है । तो ये सारी चीजें काँग्रेस के कार्यकाल में मेरे विधायक रहते हुए हुई थी जिससे पिथौरागढ़ का चहुंमुखी विकास हुआ । अंधा आदमी ही ऐसा होगा जो कहेगा उस दौर में यहाँ विकास नहीं हुआ । विकास एक सतत प्रक्रिया है । हमने जो काम किए थे , उसको आगे बढ़ाने के बजाए उसको इन्होनें ठंडे बस्ते में डालने का काम किया है । जिनके पास प्रचंड बहुमत था केंद्र और राज्य में प्रश्न उनसे पूछा जाना चाहिए । आज ये हमारे एक काम को धरातल पर आगे नहीं उतार पाए हैं ।  ये सारी ज़िम्मेदारी भाजपा की है ।  

थरकोट झील तो बन गई ।  रई झील का मसला लटका है । आपका क्या कहना है इस विषय में ?

रई झील का कोई मसला था ही नहीं। जब भाजपा की सरकार थी तब ये मामला बार बार उठता था। काँग्रेस की सरकार आई तो ये ठंडे बस्ते में चला गया। मेरे कार्यकाल में एक मसखिरा आदमी गाड़ी में नाव लेकर घूमता था। जब तक उस भूमि में हम मकान बनने से नहीं रोकेंगे , तब तक झील कैसे बनेगी। आज चप्पे- चप्पे पर मकान वहाँ बन चुके हैं। झील कैसे बनेगी अब वहाँ। हमारे कार्यकाल में उस पर सर्वे हुआ। टोकन मनी भी जारी हुई । सबसे बड़ी समस्या सैन्य भूमि की थी। सेना ने कहा हमारी जमीन से 25 किलोमीटर तक आप  कोई निर्माण कार्य नहीं करेंगे। रई में चटकेश्वर मंदिर के पास लाक किया जा सकता था । एक बड़ी तकनीकी समस्या थीअगर हम ऊपर  बंद करते तो बड़ा खतरा था। झील से ज्यादा खर्च उसे लाक करने में आताउस पर बात अटक गई।  जहां तक थरकोट की बात है । थरकोट झील का जीओ हमने जारी किया। टोकन मनी हमने जारी करवाई । अभी उन्होनें काम शुरू किया । 5 साल में थरकोट झेल भी वहीं की वहीं पड़ी हुई है। खाली लीपापोती हो रही है। कुछ काम  नहीं हो रहा है। आप देख सकते हैं ।  

आंवलाघाट योजना भी आपका ही ड्रीम प्रोजेक्ट था । उसके बाद भी पिथौरागढ़ शहर की बड़ी आबादी को पानी नहीं मिल पा रहा है । आपने अपने दौर में 20-30 गांवों को भी इसमें शामिल करने का ब्लू प्रिंट तैयार किया था । घाट से  अगर उस समय  नई पेयजल योजना बनती तो क्या ये बेहतर होता । बड़ी आबादी की प्यास बुझा सकती थी ?

आंवलाघाट के साथ घाट पेयजल योजना को भी चलना चाहिए था । घाट को चलाया इन लोगों ने । आप जानते हैं कौन मंत्री थे ? कौन नेतृत्व कर रहे थे यहाँ का । 5 साल तक आल वेदर रोड के नाम पर कितना धन इनके द्वारा लिया,  ये आप पता कर सकते हैं । आज भी घाट में मोटर में पानी नहीं आ रहा । जहां तक आंवलाघाट की बात आपने की है तो ये हमने अपने कार्यकाल में प्रस्तावित किया । हमने वहाँ तक रोड पहुंचाई । लाइन बिछाई । हमने चंडाक में 50 लीटर का टैंक बनाया और ट्रायल करवाया पूरे शहर  में ।  अब जब पानी आपके पास है , स्टोरेज है सब कुछ तो उसके बाद पहल प्रशासन को जनप्रतिनिधियों को करनी चाहिए । आप मेरे पहले 5 साल को देखिये 2012- 2017 तक आप किसी भी आदमी से जाकर पूछिये किसी ने भी पानी  को लेकर कभी किसी तरह की कोई शिकायत नहीं की । मेरा समय में तो ठूलीगाढ़ ही था । पानी सुचारु आता था तब शहर में । उस समय तो आंवलाघाट  भी नहीं था । कभी हड़ताल ,तालाबंदी की नौबत भी नहीं आई । वो तो व्यवस्था पर है,  जनप्रतिनिधि कितनी ईमानदारी से जनता तक पहुँचने  की अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करता है ।

क्या आपको लगता है जनप्रतिनिधियों से  सवाल अब सीधे जनता को करने का समय आ गया है । 5 साल अगर जनता ने आपको बनाया है तो आपने क्या -क्या काम किए ?  ये सवाल पूछने की कुव्वत जनता को होनी चाहिए ?

इस देश को पीछे धकेलने का काम जनता ही कर रही है । अगर जनता सवाल पूछने लग जाएगी । जब जनप्रतिनिधि से सीधे  जवाब मांगने लगेगी तो वो भी सही रास्ते पर चलेगा और काम करेगा । अगर जनता नहीं होगी तो जनप्रतिनिधि का अस्तित्व कहाँ पर है ?  ये आप सोच सकते हैं।  जनता ही उसे बनाती है जनता ही उसे बिगाड़ती है । जनता अगर ज़िम्मेदारी समझ लेगी तो कोई भी नेता गलत काम करने से डरेगा क्योंकि उसे अपना वर्तमान भी दिखेगा और भविष्य भी । ऐसे में वो गलत काम नहीं करेगा और जनता के हितों से भी सरोकार रखेगा ।

बहुमंजिला पार्किंग भी आपका ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन इस पार्किंग का लाभ नहीं मिल पा रहा है । आए दिन जाम की समस्या से जूझना पड़ रहा है ? सीसीटीवी कैमरे भी आपने अपनी विधायक निधि से लगाए लेकिन ये आज शहर से गायब हैं ?

जब किसी योजना में किसी व्यक्ति विशेष  का स्वार्थ आ जाता है तो वो योजना जनता को कहाँ पर लाभ दे सकती है ? बहुमंजिला पार्किंग  के लिए हमने बहुत मेहनत की । हमने जमीन के लिए एनओसी ली । इसे मल्टी स्टोरेज बनवाया। हम एक बढ़िया खूबसूरत मार्केट भी वहाँ बनाना चाहते थे ताकि शहर की जनता को नए शहर को देखने का मन करे । लोग उसमें घूम फिर सकें । हम इसे नैनीताल के भोटिया मार्केट जैसा बनाना चाहते थे । जैसे ही हम हटे तो दुकानों को बदल दिया गया । आधी पार्किंग काट दी गई । उसके ठेकेदार से अनेक प्रकार की वसूलियाँ होने लगी । पाँच साल उसने बिल्डिंग बनाने में लगा दिये । अभी भी उसका भुगतान नहीं हो पा रहा है । दुकान पालिका बेचे या प्रशासन,  मैं नहीं जानता लेकिन जब स्वार्थ किसी चीज में आ जाता है तो पार्किंग कैसे चलेगी ? आज नगर पालिका अपने आदमी को बैठाकर वसूली करती है तो दूसरे दिन प्रशासन उसे हटा देता है। अब प्रशासन और पालिका ये तय नहीं कर पा रहे हैं ,  कहाँ से इसका उपयोग होगा ?  करोड़ों की लागत से बनी ये पार्किंग स्वार्थ के चक्कर में बेकार साबित हो रही है ।

अपने कार्यकाल में आपने जिला अस्पताल में बैड बढ़ाने की बात भी की थी। आज की सूरते-हाल में भले ही बैड बढ़े नहीं हों लेकिन दोनों अस्पतालों का विलय हो चुका है ।

हमारे कार्यकाल में 50 महिला और 50 पुरुष  अस्पताल में बैड बढ़ाने की बात हुई थी जिसका जीओ भी जारी हो चुका था शायद कहीं चूक हो गयी इसका क्रियान्वयन सही से नहीं हो पाया । आज उस जीओ को मर्ज कर दिया गया है । अब जो आदमी विरोध करते थे महिला और पुरुष अस्पताल को मर्ज कर बेस अस्पताल बनना चाहिए । जो सदन में इसका जीओ फाड़ते थे वो अपने कार्यकाल में उन दोनों कों मर्ज कर एक अस्पताल बना रहे हैं क्योंकि वो अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं । वो दवाई नहीं दे पा रहे हैं।  तकनीकी स्टाफ नहीं दे पा रहे हैं । वहाँ पर डाक्टरनर्स नहीं दे पा रहे हैं। वहाँ पर बैड नहीं दे पा रहे हैं । जनता की नजरों से बचाने के लिए उन्होनें दोनों का एकीकरण कर दिया है । महिलाओं की बीमारियाँ  दूसरी तरह की होती हैं पुरुषों की अलग । कई बीमारियों का उपचार तो  महिला चिकित्सक की कर सकती हैं । उन्होनें ऐसा रायता फैला दिया है वो अस्पताल न तो दवाखाना रहा और न ही अस्पताल ।

आईसीयू भी 2018 में बनकर तैयार हुआ लेकिन उसमें स्टाफ़ , डाक्टर आज तक तैनात नहीं हो पाये हैं । सब कागजी घोषणाओं में नजर आता है । ट्रामा सेंटर खोलने की बात भी इसमें दर्ज है । स्वास्थ्य सेवाएँ तो जिला मुख्यालय में ही जर्जर हैं आप देख ही रहे हैं ?

ये सरकार दान में मिले आईसीयू को भी नहीं चला पा रही है। मंगला माता ने जो आईसीयू दान में दिया था , उसका भी नाश मार दिया है । मुख्यालय के लोगों को आज भी आई सी यू के लिए हल्द्वानीबरेलीलखनऊ का मुंह ताकना पड़ता है। सीधे -सीधे सरकार की ये ज़िम्मेदारी है जनप्रतिनिधियों की है सब कुछ होते हुए भी दान में मिले आईसीयू को ये नहीं चला पा रहे हैं । ट्रामा सैंटर का भी चलना यहाँ जरूरी है । ये पिथौरागढ़ का दुर्भाग्य है ।

पिथौरागढ़ में अभी महिला जनप्रतिनिधि है और महिलाओं के वोट ज्यादा हैं। आपको क्या लगता है आने वाले समय में महिलाओं के वोट क्या यहाँ के चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेंगे ? महिलाओं से जुड़े मुद्दों की उपेक्षा भी यहाँ हुई है ?

आज मैं आपसे यह बात पूछना चाहता हूँपिथौरागढ़ विधान सभा सीट से महिला विधायक है , गंगोलीहाट में भी महिला हैजिला पंचायत अध्यक्ष में भी महिला है । 8 ब्लाक में 7 पदों पर महिला प्रमुख हैं। उसके बाद भी महिलाएं यहाँ दर्द भोग रही हैं । उनकी समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है । महिला ही महिला की सबसे बड़ी दुश्मन बनकर उभरी हैं ।

3 आईटीआई जिले में बंद पड़े हुए हैं । नई शिक्षा नीति में कौशल विकास की बातें कहीं गई हैं । तकनीकी शिक्षा का तो बेड़ा गर्क हो गया है ?

अपने यहाँ जाख पुरान , बड़ाबे , गौड़ीहाट , मडमानले , गुरना पाँच जगह आईटीआई हैं लेकिन ये सब बंद पड़े हैं । इनका फर्नीचर तक हटा दिया गया है । आप कहते हैं हमारे बच्चों को रोजगार मिलना चाहिए।  काम कैसे मिलेगा जब तक स्किल नहीं होगा । अकुशल मजदूर मिट्टी फोड़ेगा उसके पास रोज काम नहीं होगा लेकिन स्किल के पास हुनर जरूर होगा चाहे वो मोटर मैकेनिक हो ,या इलेक्ट्रिशियन । हमने युवाओं के हुनर को तराशने के लिए ये सब खोले थे जिससे हुनर आयेगा और युवा रोजगार खुद पैदा कर लेगा । मैंने अपने कार्यकाल में पिथौरागढ़ में 2 पालिटेक्निक और 2 आईटीआई खुलवाई थी वो सब आज धराशाई हो चुके हैं । केन्द्र सरकार के पग चिन्हों पर राज्य सरकार भी चल रही है । आज नौबत इन्हें बंद करने की आ गई है ।

आपके कार्यकाल में स्वीकृत परियोजनाओं का बजट जारी हुआ है क्या अभी तक ?

हमारा झगड़ा सीएम से उस दौर में ये था , सवित्त जीओ जारी करवाते थे । हमने अपने प्रोजेक्टों में सभी के लिए एक बजट स्वीकृत करवाकर विभागों को आवंटित करवाया था । काम पूरे हुए पर उनको संचालित करने के लिए दुबारा वित्त विभाग में जाना पड़ता था । हमारे पूर्ववर्ती वित्त मंत्री उनको स्वीकृत नहीं करा पाये तो ये उनका दुर्भाग्य है ।

चुनाव का मौसम आ रहा है तो काँग्रेस को सैनिक भी याद आ रहे हैं । पिछले दिनों आपने बिण में पूर्व सैनिकों का एक सम्मेलन आयोजित करवाया जिसमें पूर्व सीएम और काँग्रेस महासचिव हरीश रावत ने भी प्रतिभाग किया । अब आप 20 प्रतिशत टिकट पूर्व  सैनिकों को भी देने की बात कर रहे हैं । भाजपा आपकी टाइमिंग पर सवाल उठा रही है,  साथ ही कह रही है वन रैंक वन पैंशन हम लेकर आए?

मैंने उस सम्मेलन में मंच से ही कहा था इस सम्मेलन के कोई कयास नहीं निकाले जाएँ । हमने सम्मेलन बुलाया एक तो सरकार ये माहौल  बना रही है काँग्रेस सरकार ने पूर्व सैनिकों के लिए कुछ नहीं किया । मैंने विस्तार से मंच से काँग्रेस सरकार के योगदान को बताया । दूसरा वो ये कहते हैं नेहरू ने देश को बर्बाद कर दिया । मैंने उनके कार्यकाल की तमाम बातें लोगों के सामने रखी।  हमने राजनीति करने के लिए ये सम्मेलन नहीं रखा । सैनिकों के वोट पाने के लिए भी नहीं । वन रैंक वैन पेंशन में भी कई खामियाँ हैं । कई पूर्व सैनिकों और पैरामिलिट्री फोर्सेज को इसका लाभ आज तक नहीं मिल पाया है ।

सेना की भर्ती लंबे समय से जिले में नहीं हो पा रही है । अगर भविष्य में काँग्रेस सत्ता में आई तो इस दिशा में आपके द्वारा प्रयास होंगे ?

मीडिया इस देश में सबसे बलशाली है । मैं आपसे कहूँगा पहले काँग्रेस को सत्ता में लाएँ हम धरातल पर इसे उतारेंगे ।

भाजपा कहती है राज्य में 5 साल भाजपा और 5 साल काँग्रेस आने का पुराना मिथक हम तोड़ेंगे ?

 वो तो कुछ भी तोड़ सकते हैं । जब देश तोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं तो मिथक भी तोड़ देंगे ।

किन मुद्दों को लेकर आप जनता के बीच जाएंगे ?

 मैं अपने व्यक्तिगत कामों को लेकर जाऊंगा ।

क्या मयूख महर अपने पुराने विजन को आगे बढ़ाएँगे या इस बार कुछ नया अलग होगा क्योंकि आपकी थीम 2022 के चुनावों के लिए है ‘ इस बार रण कुछ अलग होगा’ ?

मेरी सोच अलग है । मैं पिथौरागढ़ को शिक्षा में नंबर वन बनाना चाहता हूँ ताकि यहाँ अपने बच्चों को भेजकर माँ बाप गर्व महसूस कर सकें । गर्व के साथ हमारा पर्यटन यहाँ पर बढ़ेगा,  व्यापार बढ़ेगा । हमारी हवाई सेवा चलेगी।हमारा मेडिकल कालेज बन जाएगा तो अच्छी आबोहवा में इलाज कराने लोग आएंगे। आने वाले समय में इन सब चीजों पर हम विशेष ध्यान देंगे । अगर शिक्षा है तो सब कुछ संभव है ।

क्या मयूख महर इस बार छवि बदलने की छटपटाहट में हैं। व्यक्तिगत तौर पर जानना चाहता हूँ क्योंकि कार्यकर्ताओं की राय है आप संवाद कम करते हैं वहीं जनता की राय है आप  विकास तो करते हैं लेकिन जनता से सीधे कनेक्ट नहीं कर पाते हैं। राजनीति में परसेप्शन जरूरी है । क्या इस धारणा को इस बार आप तोड़ेंगे ?

एक बात बता रहा हूँ। नेता या तो काम ही कर ले या तो बात ही कर ले। 20 साल आपने बात करने वाले नेता को दिये । 5 साल काम करने वाले नेता को दिये । शायद पिथौरागढ़ की जनता को मेरा काम पसंद नहीं आया तभी 5 साल वाले नेता को उन्होनें हटा दिया और 20 साल वाले नेता को फिर से बुला लिया । अब मैं ये सोच रहा हूँ या तो मैं गप्पी बन जाऊँ नमस्ते करूँ या मैं काम करूँ?  या यूपीएससी का सेंटर , यूनिवर्सिटी लाऊं अपनी विधानसभा के लिए। कोरोना ने युवाओं का पूरा साल खराब कर दिया है। मैं युवाओं को उस दुख से उतारना चाहता हूँ । जनता पसंद करेगी तो फिर मौका देगी , पसंद नहीं करेगी तो फिर से घर बैठ जाएंगे क्या परेशानी है ?

हरीश रावत ने पिछले दिनों आपको पिथौरागढ़ जिले की सारी विधानसभा सीटें जीतने की ज़िम्मेदारी दे है । इसे कितना बड़ा मानते हैं आप ?

आप रावत जी को अच्छी तरह से जानते हैं । मैं भी जानता हूँ । वो बहुत मंझे हुए नेता हैं । वो करेंगे तो अपने मन की , लेकिन मंच से मेरा नाम लेकर उन्होनें सारा झगड़ा मेरे सिर डाल दिया है । अब जिस प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलेगा वो सोचेगा मयूख ने टिकट काट दिया  । जिसको टिकट मिलेगा वो सोचगा मयूख ने रावत से कहकर टिकट दिलाया है । ये बड़ा राजनीतिक पैंतरा है जिसे चालाकी से चला गया है । ज़िम्मेदारी मुझे ही दे गई है ।

क्या पिथौरागढ़ जिले में भी इस बार मिथक टूटेंगे ?

अगर टिकट सही ढंग से बांटे गए और देश , काल , परिस्थिति का ध्यान रखा गया तो 4 सीटें आ जाएंगी  

भाजपा वाले अक्सर हरीश रावत को ही घेरने में लगे रहते हैं । आपकी पार्टी में और भी कई नेता हैं लेकिन कभी भी घेरते हुए नहीं देखा । क्या  आपको लगता है इस बार उन्हें हरीश रावत जी से ही खतरा लग रहा है ?

एक बात बताओ आज भाजपा वाले हरीश रावत जी को घेर रहे हैं । आज भी मरने के 50 साल बाद भी भाजपा नेहरू को घेर रही है क्योंकि जिसका कद होगा जिसमें दम होगा उसी को घेरेंगे  । आज हरीश रावत में अगर दम है । उन्हें  डर है अगर वो आ गया तो पार्टी को  खड़ा कर देगा तभी घेर रही है । मोदी आज जैसे ही नेहरू के कद को  छोटा कर रहे हैं वैसे ही रावत जी के कद को भाजपा वाले कम कर रहे हैं  । रावत ऐसे नेता हैं  जो अपने बूते राज्य में काँग्रेस की सरकार बना सकते हैं ।

आपने अपने दम पर पिथौरागढ़ में विकास कार्यों को अंजाम दिया लेकिन उसके बाद भी आप चुनाव हार गए ? क्या अब विकास जीत  का पैमाना नहीं रहा ?

विकास अगर जीत का पैमाना नहीं है तो आने वाले वक्त में कोई विकास नहीं करेगा । विकास जीत का पैमाना नहीं है तो आने वाले वक्त में कोई विकास नहीं करेगा । विकास ही जीत का पैमाना है। लोगों से कई बार भूल और चूक हो जाती है , पर अगर जनप्रतिनिधि विकास को लेकर नहीं चलेगा तो आने वाले समय में लोकतन्त्र की जो व्यवस्था है यह चकनाचूर हो जाएगी । हम हारेहमारे कामों को भी किनारे कर दिया गया फिर भी हम हमारे लोगों के बीच  जा रहे हैं । हम उन लोगों की भूल को भूलकर फिर काम करेंगे।

2017 में पिथौरागढ़ सीट पर माहौल आपके पक्ष में था । लेकिन ऐन वक्त में मोदी जी की सभा ने खेल खराब कर दिया । हरीश रावत जी भी दो दो सीटों से चुनाव हार गए

राजनीति है ये। चलता है सब

Thursday 28 October 2021

उत्तराखंड बनने के बाद अवधारणाएँ जस की तस बनी हुई हैं


 


 
उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभा में चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं  राज्य निर्माण आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ऐरी राज्य में उत्तराखंड क्रांति दल का बड़ा संगठन खड़ा नहीं कर पाए। अपनी साफ और ईमानदार छवि को वह पार्टी के वोट बैंक को बढ़ाने में इस्तेमाल नहीं कर पाए। पृथक राज्य के लिए चले जनांदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है और एक दौर ऐसा भी रहा जब अविभाजित उत्तर प्रदेश में काशी सिंह ऐरी की तूती बोला करती थी परन्तु इसके बाद भी उनका दल उत्तराखंड में लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो पाया है। कहीं न कहीं इन 21 बरसों में उक्रांद के कमजोर सांगठनिक ढांचे का फायदा राज्य में भाजपा और कांग्रेस ने उठाया है। पार्टी में समय –समय पर हुई टूट ने भी उक्रांद को भीतर से कमजोर किया है

 काशी सिंह ऐरी मानते है उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के प्रमुख मुद्दे रसातल में हैं। जिनके मन में उत्तराखंड को लेकर कोई पीड़ा नहीं थी उनके नुमाइंदे आज राज्य में शासन कर रहे हैं। 21 बरस  बीतने के बाद भी राज्य की स्थितियाँ अच्छी नहीं कही जा सकती हैं। पहाड़ों से पलायन बदस्तूर जारी है। जल ,जमीनजंगल जैसे मुद्दे हाशिये पर है। स्थायी राजधानी, परिसंपत्तियों के मामले आज तक नहीं सुलझे हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है , समस्याएँ जस की तस बनी हैं जिसके चलते जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है।

1993-95 और 2013-15  तक उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के अध्यक्ष रहे काशी सिंह ऐरी पर एक बार फिर दल ने भरोसा जताते हुए उन्हें पिछले दिनों अपना नया  केंद्रीय अध्यक्ष चुना है। उत्तराखंड क्रांति दल के 20वें द्विवार्षिक अधिवेशन में उन्हें सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया है।

हर्षवर्धन पाण्डे के साथ काशी सिंह ऐरी ने आगामी चुनावों और उत्तराखंड के तमाम सवालों को लेकर खुलकर विस्तृत बातचीत की । प्रस्तुत है इस बातचीत के अंश :
 
नवंबर 2000 को उत्तराखंड का गठन हुआ। आज  21 बरस पूरे होने जा रहे हैं। इस सफर को राज्य निर्माण आंदोलन में भागीदार और एक अनुभवी नेता के तौर पर आप कैसे देखते हैं और कहाँ खड़ा पाते हैं ?

उत्तराखंड राज्य की मांग कोई ऐसी नहीं थी कि हमारा उत्तर प्रदेश से कोई झगड़ा था। हमारी जो मूल अवधारणा थी, उत्तराखंड की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक परिस्थिति यूपी से सर्वदा भिन्न है। बड़ा प्रदेश है और अगर अलग इकाई के रूप में गठित हो जाएगा तो हम अपनी भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक परिस्थिति जल ,जमीन, जंगल के हिसाब से प्लानिंग करेंगे और यहाँ विकास को आगे बढ़ाएँगे लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ है। अभी 21 साल होने जा रहे हैं यहाँ की जनता ने सत्ता काँग्रेस और भाजपा को सौंप दी। इनके जेहन में कोई परिकल्पना नहीं है । इन्होनें उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश के एक हिस्से की तरह चलाया है। प्लानिंग में कोई फर्क नहीं है । होना तो ये चाहिए यहाँ के संसाधन के हिसाब से आप प्लानिंग करें। उनका सही ढंग से दोहन करें और यहाँ रोजगार के अवसर पैदा करें। यहाँ की आर्थिकी बढ़ाएँ। हमारा भौगोलिक क्षेत्र यूपी से अलहदा है तो यहाँ किस तरह की प्लानिंग होनी चाहिए ? किस तरह की विकास योजनाएँ होनी चाहिए और यहाँ हमारे जो संसाधन हैं। मसलन पानी है जो हमारा सबसे ज्यादा है । हम जम्मू कश्मीर, सिक्किम या पूर्वोत्तर जितने भी राज्य हैं,  हिमाचल से ज्यादा पानी की संपत्ति हमारे पास है लेकिन हमने उसका कोई सदुपयोग नहीं किया है । जंगल हमारा सबसे समृद्ध है। उसका भी कोई उपयोग नहीं किया है। हमारे यहाँ पर बागवानी , उद्यान की अपार संभावनाएँ मध्य हिमालय में हैं। यहाँ की टोपोग्राफी, यहाँ का अल्टीट्यूड,  लैटीट्यूड है वो अन्य प्रदेशों से भिन्न है। जल , जमीन और जंगल को लेकर प्लानिंग होनी चाहिए थी जिसके हिसाब से हम विकास योजनाएँ बनाएँ ताकि यहाँ के संसाधनों का सदुपयोग हो। उससे यहाँ के लोगों को रोजगार मिले वो तो बिल्कुल ही पीछे छूट गया है। सरकारों ने इन सबके बारे में कुछ सोचा तक नहीं है। हमने कई बार कहा जल , जमीन और जंगल के हिसाब से आप प्लानिंग करें। यू पी के हिसाब से प्लानिंग करना जरूरी नहीं है। अगर ऐसा ही था तो हम यूपी से क्यों अलग हुए ? नतीजा ये हुआ है 21 बरसों में हमें जहां पहुँचना था वहाँ न पहुँचते हुए उससे भी पीछे हुए हैं। लोग आज शिकायत कर रहे हैं इससे अच्छा तो यूपी था। ये इसलिए कह रहे हैं विकास तो हुआ नहीं है। हमारे संसाधनों की लूट जरूर जारी है। उससे यहाँ  के स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ है। रोजगार नहीं बढ़ा है। उल्टे इन संसाधनों की भारी लूट और भ्रष्टाचार बढ़ा है। प्रदेश बनने का जो मकसद था वो एक तरह से पराजित हो गया है, खत्म हो गया है , पीछे रह गया है। आज जो स्थिति है बेरोजगारी बढ़ रही है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर बाहर के लोगों का कब्जा और लूट जारी है । इसी को लेकर आज लोग शिकायत कर रहे हैं। उत्तराखंड बनने के बाद जो अवधारणाएँ पहले की थी वो जस की तस बनी हुई हैं।

डबल इंजन की सरकार तो कहती है हमने बहुत विकास किया है प्रदेश का । प्रचंड बहुमत की  सरकार में तीन सीएम बदले जा चुके हैं ।

डबल इंजन का मैं उदाहरण देता हूँ। आज हमारे पास चार इंजन हैं और उसके बावजूद हमारी एक लाख करोड़ रु से अधिक की संपत्ति यूपी के कब्जे में है। पहला इंजन उत्तराखंड में भाजपा की सरकार , दूसरा इंजन केन्द्र की मोदी सरकार , तीसरा इंजन यूपी में भाजपा सरकार , चौथा इंजन यूपी सीएम योगी जी हमारे पर्वतीय मूल के हैं। चार- चार इंजन लगाकर भी आज हम अपनी परिसंपत्तियों को वापस नहीं ले पाये हैं। रहा सवाल सीएम का जो आपने किया है मैं मानता हूँ चाहे भाजपा के सीएम हों काँग्रेस के सीएम ये अपने हाईकमान के मुनीम की तरह काम करते हैं। जैसा हाईकमान कहेगा उतना काम करते हैं। जितनी चाबी वो भरता है उतना ही चलते हैं। चाबी बंद कर दी तो नया मुनीम रख दो। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

राज्य में अब तक की सरकारों में उक्रांद भी हिस्सेदार रहा है । चाहे वो खंडूड़ी सरकार हो या विजय बहुगुणा , हरीश रावत की सरकारों  में यूकेड़ी शामिल रही है । आदर्श राज्य न बन पाने का दोषी आप किसे मानते हैं ?

ये सवाल पैदा होता है लोग करते हैं आप भागीदार रहे। खंडूड़ी सरकार में हमारे एक मंत्री थे। हमने समर्थन इसलिए दिया था दुबारा चुनाव का सामना प्रदेश को नहीं करना पड़े। कोई भी दुबारा चुनाव में नहीं जाना चाहता था। हमने अपने 9 बिन्दु दिये थे और उन पर काम करने को कहा था। एक बिन्दु पर हमने कहा था पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग  औद्योगिक नीति बनाएँ । नीति केवल कागजों में बनी है, आगे नहीं बढ़ी। जब काम नहीं किया भाजपा ने तो हमने समर्थन वापस लिया था और हम सरकार से अलग हो गए थे। 2012 की विजय  बहुगुणा सरकार या हरीश रावत सरकार में हमारा एक विधायक था। उसने समर्थन दिया वही मंत्री भी बना उसके बाद उसने पार्टी भी छोड़ दी। हमारे समर्थन का तो कोई मतलब ही नहीं था। तो इसलिए जो सवाल पूछते हैं वो पूरे परिप्रेक्ष्य को नहीं समझते। केवल ये एक जुमला हो गया आप भी सरकार की गोद में बैठे। ऐसा कुछ नहीं है ।

राज्य निर्माण आन्दोलन के दौर में जिस गियर में यूकेडी थी वो गियर कहीं पीछे छूट गया है । कुछ लोगों की अति महत्वाकांक्षा के चलते भी पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है ?

महत्वाकांक्षा और कुछ लोगों के आपसी मतभेद के कारण भी पार्टी को काफी नुकसान हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन एक बात मैं आपको बताऊँ आप नोट करना चाहें तो करें। 2002 में जब राज्य का पहला विधानसभा का चुनाव हुआ था,  हमने राज्य बनाया था । रात- दिन एक करके पूरा सब कुछ तन, मन धन लगाकर राज्य बनाया। उसके बाद भी जनता ने हमें 4 विधायक दिये। ये कोई अच्छा जनादेश थोड़ी था और  जनता ने हमारे उस त्याग को नकार सा दिया। तब तो हम किसी के समर्थन में भी नहीं थे। एक टाइम किसी के विरोध में नहीं थे । पार्टी एक थी। ये भी एक कारण हो सकता है बिना किसी लड़ाई- झगड़े के हम 2002 के चुनावों में गए थे। 4 सीटें मिली थी। अच्छा जनादेश थोड़ी था। ये जनता को भी इस बारे में सोचना चाहिए राज्य बनाने वाले लोगों को,  जिनके दिलों दिमाग में राज्य की परिकल्पना थी , यहाँ के विकास की , रोजगार की बात थी उनको तो कभी जनादेश दिया ही नहीं।  

गांधी जी जिस तरह आज़ादी के बाद काँग्रेस को खत्म करना चाहते थे। इसी तरह आपके कुछ नेता इसे खत्म करना चाहते थे । क्या ये कदम सही होता उस दौर में ? साथ ही संयुक्त संघर्ष समिति राज्य आन्दोलन के लिए जो आपने बनाई उसको जो माईलेज मिलना चाहिए था वो नहीं मिला ?

वो नहीं मिला। साथ में इसमें एक बात मैं और बताना चाहता हूँ कि 1994 में जब सारी जनता आन्दोलन के लिए तैयार हो गयी तो भाजपा काँग्रेस के लोग जिनका राज्य को समर्थन नहीं था लेकिन उसके नीचे के कैडर भी चाहते थे कि हम आंदोलन में आएँ । इसके अलावा जो कर्मचारी , विद्यार्थी , वकील , व्यापार संघ के लोग थे, वे भी चाहते थे हम आंदोलन में  आएँ। हम लोगों का ये था यूकेडी के झंडे के नीचे नहीं आएंगे। हमने अपना संगठन पीछे किया और संयुक्त संघर्ष समिति बनाई। उसके तहत आन्दोलन हुआ और राज्य हासिल हुआ। हमारा दल कमजोर हुआ। ये मैं मानता हूँ लेकिन हम लोगों का जो अभीष्ट था। हमारा जो लक्ष्य था, मिशन था, राज्य बनाना उसमें हम सफल रहे।

राज्य गठन के बाद बेलगाम नौकरशाही को साधना यहाँ हर राजनीतिक दल के लिए बड़ी चुनौती रही है । क्या सिर्फ बेलगाम नौकरशाही से राज्य का बेड़ा गर्क हुआ है या राजनेता भी जिम्मेदार हैं जिनके पास कोई विजन नहीं है ?

बिल्कुल आपने ये सही कहा। नौकरशाह तो ऐसा ही करेगा। नौकरशाह उस घोड़े की तरह है घोड़े में बैठे सहसवार को लगता है ये मेरे को कंट्रोल करेगा तो उसके मुताबिक चलेगा। दूसरे को लगता है वो अपने हिसाब से चलेगा। उसको साधने के लिए आपके पास दिमाग होना चाहिए। वो नहीं है। थोड़ा बहुत तिवारी जी का अनुभव रहा। शुरुवात में 2002 से 2007 के बीच में उन्होनें सरकार भी चलाई, नौकरशाहों को भी काबू में रखा। उसके बाद तो समझिए बिल्कुल बेलगाम रही है अभी भी बेलगाम है।

क्या इस बार उक्रांद एकजुट है ? पूरी ताकत के साथ आप लड़ेंगे चुनाव ?

बिल्कुल, हम पूरी ताकत से लड़ेंगे। 70 सीटों पर हम लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। जो उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल, संगठन हैं उत्तराखंड के सरोकारों से जुड़े रहे हैं। चाहे वो छोटे दल हों जनसंगठन हों,  उनसे सीट शेयरिंग पर हमारी बातचीत चल रही है। उनके साथ तालमेल जरूर करेंगे। वरना हम अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

राज्य के शुरुवाती दो चुनाव में उक्रांद ठीक-ठाक स्थिति में था लेकिन मुझे लगता है रामनगर में आपकी पार्टी के अधिवेशन के बाद से स्थितियाँ पूरी तरह से पार्टी में बादल गयी। अगर उस समय आप कमान अपने हाथों में लेते तो शायाद पार्टी अभी मजबूत स्थिति होती ?

मैं बिल्कुल आपकी इस बात से सहमत हूँ। 2010 में रामनगर में पार्टी का अधिवेशन हुआ। 99 प्रतिशत लोग चाहते थे कमान मैं संभालूँ । कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया और मैंने दल न टूटे इसलिए अपनी दावेदारी वापस ले ली। फिर उसके बाद हमारे नेताओं की नासमझी महत्वाकांक्षा थी। वो आगे आई और मेरे प्रयासों के बावजूद दल टूटा और उसके बाद हमको नुकसान होता गया।

एक सवाल उक्रांद के बारे में उठता रहा है यहाँ सेकंड और थर्ड लाईन लीडरशिप नहीं है। भविष्य को देखते हुए क्या आप इसे तैयार कर रहे हैं ?

सेकंड और थर्ड लाईन है और फर्स्ट लाईन भी जो काम करे दिशा निर्देश  दे। जब फर्स्ट लाइन  अच्छी तरह से ट्रैक बनाएगी तो सेकंड लाईन काम करेगी। अभी तो ट्रैक बनाना ही छूट गया हमारा। सही ट्रैक बनाना है उत्तराखंड के विकास का, उत्तराखंड के रोजगार का, लोगों की  भलाई का वो ट्रैक बनाने का प्रयास हम कर रहे हैं तभी सेकंड लाईन आगे आएगी ।

युवाओं को साधने की हर दल कोशिशें कर रहा है। क्या उक्रांद जो टिकट देगा उसमें युवाओं और अनुभव  दोनों का सम्मिश्रण होगा ?

बिल्कुल हम युवाओं की भागीदारी बढ़ाएँगे और अनुभव को भी तरजीह देंगे। कुल मिलाकर  हम इस बात पर मुतमईन हैं । थोड़ा बहुत हमें भी इसका अहसास हो रहा है। युवा भी अब समझने लगा है। भाजपा और काँग्रेस के साथ –साथ रहते हुए अपनी चेतना को अपनी चेतना को खत्म किया है और उत्तराखंड के सवालों का हल नहीं निकला है।

कोई दल परिवर्तन यात्रा निकाल रहा है तो कोई रोजगार यात्रा लेकिन उक्रांद मैदान में कहीं नजर नहीं आ रहा है ? एक सवाल उठता है इस राज्य में जल , जमीन , जंगल पर्यावरण जैसे तमाम मुद्दे हैं लेकिन फिर भी उक्रांद आंदोलन करना भूलता जा रहा है ?

हाँ ,मैं मानता हूँ उस तीव्रता और व्यापकता में आंदोलन नहीं हुए हैं क्योंकि हमारी भी एक सीमा है। हमारे आंदोलन में आने वाले लोगों की भी एक सीमा है। हमारे पास ताकत नहीं है और जनता भी ताकत के साथ जाने की आदी हो चुकी है। हम विचार कर रहे हैं किस तरह से लोगों की चेतना वापस  लाई जाए और इन सारे सवालों पर सरकार को घेरा जाए चाहे सरकार किसी की  भी बनें ।

बेरोजगारी इस प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा है। प्रचंड बहुमत की सरकार ने साढ़े चार साल तक तो कोई नियुक्तियाँ नहीं निकाली लेकिन जब चुनाव पास आ रहे हैं तो वो भर्तियों का पिटारा खोल रही है।  क्या ये भी पूरी तरह से चुनावी जुमला तो नहीं है ?

पूरी तरह से जुमला है। एक अखबार की घोषणा है। टीवी की घोषणाएँ हैं। आप देखिये ये 23000 पदों को जो भरने की बात कर रहे हैं ये चुनावी जुमला है मैं आपको दावे एक साथ कह रहा हूँ। चुनाव हो जाएंगे लेकिन 23000 नौकरियों का अता – पता नहीं होगा। ये यहाँ के जुमले हैं और ये जनता को ऐसे ही ठगते रहे हैं। तो इस बात को यहाँ का युवा अब समझ रहा है और हम भी समझाने की कोशिश करेंगे ये जुमलेबाजी है। रोजगार के बारे में कोई नीति , कोई विजन नहीं है ।

किन मुद्दों को लेकर आप जनता के बीच जा रहे हैं ?

राज्य की नीति और चुनावों के मुद्दों को लेकर चलने वाला दल उक्रांद है । राजधानी का सवाल है , बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार , परिसीमन , भू कानून जैसे कई मुद्दे है जिनको लेकर हम जनता के बीच जाएंगे । यही मुद्दे लेकर हम चुनाव में भी जाएंगे ।

15 जनवरी 1994 में कभी बागेश्वर में सरयू नदी के तट पर नए राज्य की राजधानी गैरसैण को बनाने का संकल्प लिया था।  गैरसैण में आज तक वो संकल्प अधूरा है ? भाजपा काँग्रेस ने राजधानी के नाम पर प्रपंच ही किया है ।  उक्रांद का क्या स्टैंड है इस विषय में ?

हमारा तो स्पष्ट मत है स्थायी राजधानी गैरसैण को बनाए। बिना इसे बनाए इस प्रदेश का भला नहीं होने वाला है। आपने प्रपंच शब्द का इस्तेमाल किया जो सही है क्योंकि दोनों राजनीतिक दलों ने अब तक जनता की आंखो में धूल झौंकने का ही काम किया है । स्पष्ट बात है।  भारत सरकार का पहला जीओ, जब राज्य बना था तो ये था अस्थायी व्यवस्था राजधानी के लिए देहरादून में की जाती है। स्थायी राजधानी के लिए चुनी हुई सरकार विधान सभा में प्रस्ताव रखेगी। उस प्रस्ताव के आधार पर राजधानी बनेगी। एक विधानसभा के आधार पर एक प्रस्ताव तक नहीं आया और प्रपंच बाहर से कर रहे हैं तो ये चाहते नहीं हैं। ये ग्रीष्मकालीन या भराड़ीसैण में विधानसभा सत्र बुला लें , कैबिनेट बुला लें ये सब प्रपंच है । असली बात ये है कि विधान सभा में प्रस्ताव लाकर उसे पारित करके गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करें तभी इस बात का समाधान होगा। 

सत्ता में आने पर उक्रांद की प्राथमिकताएँ क्या रहेंगी ?

सबसे पहले सख्त भूकानून लाएँगे ।राजधानी का सवाल हल करेंगे। रोजगार की दीर्घकालिक और अल्पकालिक नीति बनाएँगे और जो हमारी भौगोलिक , सामाजिक, आर्थिक परिस्थिति है उसको आधार बनाते हुए हम यहाँ विकास की प्लानिंग करेंगे , यहाँ की  योजना बनाएँगे। यही हमारी प्राथमिकता है ।

उक्रांद में टिकटों का बंटवारा कब तक होगा ?
हमने तो इसके लिए अक्तूबर माह की सीमा तय की थी लेकिन 15 नवंबर तक हम कुछ टिकटों की घोषणा  कर लेंगे ऐसी मुझे उम्मीद है।

छोटे दलों के साथ भी क्या इस बार आप समझौता करेंगे या इस बार विचारधारा से कोई समझौता नहीं । जल , जमीन , जंगल पर ही फोकस ?

मैंने पहले भी कहा जो क्षेत्रीय दल-संगठन यहाँ सक्रिय हैं जैसे रक्षा मोर्चा , महिला मोर्चा ,परिवर्तन पार्टी सरीखे संगठन काम कर रहे हैं। उनके साथ हमने प्रारम्भिक बैठक की है। आगे भी बातचीत करेंगे। उनके साथ सीट शेयर करेंगे और ये कोशिश करेंगे भाजपा और काँग्रेस के खिलाफ जो वोट है वो बंटे नहीं। वो इकठ्ठा रहे तब एक सार्थक दिशा में हम आगे बढ़ सकते हैं । इस दिशा में हम प्रयासरत हैं।

  प्रवासी और युवा इस राज्य कि बड़ी ताकत रहे हैं । क्या उक्रांद इन सबको अपने साथ जोड़ने की दिशा में भी काम कर रहा है इस बार ?\

प्रयासरत हैं हम। हमने इसके लिए अलग से एक पालिटिकल अफेयर्स कमेटी बनाई है जो इन सब चीजों को देख रही है।

पहाड़ में विकास को लेकर उक्रांद का माडल हम जानना चाहते हैं ?

हमारा माडल बहुत स्पष्ट है। यहाँ के जल, जमीन , जंगल के आधार पर प्लानिंग होनी चाहिए । यहाँ की सामाजिक –आर्थिकी की जो परंपरा है ,जो यहाँ की सोच है इससे आगे बढ़ाकर अगर सरकार प्लानिंग करे तो यहाँ रोजगार भी मिलेगा। यहाँ के संसाधनों का उपयोग भी होगा और यहाँ से पलायन भी रुकेगा तो यही है हमारी प्राथमिकता भी ।

खंडूड़ी जी ने लोकायुक्त की बात की थी। भाजपा ने भी अपने घोषणापत्र में दावा किया था 100 दिन में लोकायुक्त लाएँगे लेकिन लोकायुक्त का मुद्दा साढ़े चार साल में कहीं भटक सा गया।  ये पार्टियों के ऐजेंडे में ही नहीं है या लाना नहीं चाहते भाजपा और काँग्रेस दोनों  ?

दोनों राजनीति राजनीतिक दल भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं और उस भ्रष्टाचार को उजागर नहीं करना चाहते। अगर काँग्रेस सत्ता में आती है तो भाजपा ने घोटाले कर दिये। भाजपा सरकार में आई तो काँग्रेस ने 56 घोटाले कर दिये। एक भी घोटाले की जांच नहीं हुई । एक चौकीदार तक सस्पेंड नहीं हुआ है अब तक  इसलिए ये इनका जो नाटक है ड्रामा है ,प्रपंच है ये कुछ लोकायुक्त लाने वाले नहीं हैं । लोकायुक्त अगर कोई लाएगा तो वो उक्रांद ही है अगर वो सत्ता में आया तो ।

पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत के दौर में इन्वेस्टर मीट के नाम पर बड़े -बड़े दावे किए गए लेकिन \हासिल कुछ भी नहीं हुआ। पहाड़ों में भी  आज तक कोई उद्योग नहीं लगा । क्या ये भी जुमलेबाजी थी ?

इन्वेस्टर मीट के नाम पर करोड़ों रु इन्होनें खर्च किए लेकिन हासिल शून्य हुआ । खंडूड़ी जी के समय में हमारे दबाव से ही सही पर्वतीय इलाकों के लिए अलग से औद्योगिक नीति बनी । मैंने आपसे पहले भी कहा ये सब कागजों में है। करना कुछ नहीं है। जनता को बरगलाने , ध्यान भटकाने के लिए ये मीट भी करेंगे। ये पलायन आयोग भी बनाएँगे। इस किस्म की  चोंचलेबाजी भी करेंगे लेकिन ये करने  वाले कुछ भी  नहीं है ।

मूल निवास प्रमाणपत्र का महत्व स्थायी निवास प्रमाण पत्र की तुलना में कम हो गया है । जिलों की कई तहसीलों में आजकल युवा काफी परेशान हो रहे हैं ?

हमने इस मुद्दे को उठाकर आंदोलन किए हैं और हम चाहते हैं कि जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र है वो मानक नहीं होना चाहिए। मूल निवास प्रमाण पत्र का जो कट आफ ईयर है वो 1950 होना चाहिए।  अगर ऐसा होगा  तब यहाँ के युवाओं को न्याय मिलेगा।

भू कानून को लेकर अपनी पार्टी की स्थिति स्पष्ट करें ।

भू कानून के संदर्भ में हमने राज्य आंदोलन के दौरान ही कहा था  कि संविधान का आर्टिकल  371 है , 370 जम्मू और कश्मीर का है । 371 में विभिन्न राज्यों की,  जो विशिष्ट समस्याएँ है। संविधान में रखकर उनका समाधान किया गया है। हमने कहा था आर्टिकल 371  के तहत उत्तराखंड के लिए ऐसे प्रावधान किए जाएँ कि यहाँ जमीन खरीद- फरोख्त बिल्कुल ना हो सके। बाहर का कोई भी व्यक्ति यहाँ पर जमीन ना खरीद सके। फिर हमने लड़ाई लड़ी तो तिवारी जी के समय पर एक रस्म अदाएगी की गई। खंडूड़ी जी के समय में एक भू कानून लाया गया जिसमें  उन्होनें 500 मीटर की जगह 250 मीटर कर दिया लेकिन जो लुफ़ूल्स थे वे वैसे ही रख दिये। नतीजा ये हुआ जमीन की खरीद- फरोख्त जारी रही और 2018 में टीएसआर ने तो सारा गेट ही खोल दिया जो चाहे जितनी जमीन खरीद ले और उसकी का नतीजा है आज पर्वतीय क्षेत्र के डाणे-काने सब बिक रहे हैं ।

गैरसैण में उत्तराखंड के तमाम राजनेता और कैबिनेट मंत्री अपनी जमीन खरीद चुके हैं ।

ये भू कानून तो जरूरी है। कम से कम ये तो होना चाहिए हिमाचल की तरह सख्त होना चाहिए ।

देश में इस समय फ्री पॉलिटिक्स पर ज़ोर दिया जा रहा है। आप पार्टी उत्तराखंड में गारंटी कार्ड दे रही है। फ्री बिजली पानी की बात काँग्रेस भी कर रही है। क्या ये सब चीजें जनता को अकर्मण्य तो नहीं बना देगी ?

फ्री की पालिटिक्स नहीं होनी चाहिए। हम तो ये कहते हैं हमारी बिजली है , हमारा पानी है आप फ्री करने वाले कौन होते हैं ? हमको अगर आगे बढ़ना है तो हमारी बिजली , पानी की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए। उसको सुचारु होना चाहिए। वे यहाँ के लोगों को मिले तब हम देखेंगे उसको फ्री किया जा सकता है कि नहीं।

आप जुम्मा गाँव पिछले दिनों घूम आए हैं। आज प्रदेश में 500 गाँव ऐसे हैं जिनको सरकार विस्थापित नहीं कर पाई है । इस संबंध में क्या कहता है आपका ?

अभी मेरे ख्याल से 500 से अधिक गाँव हैं । हमने तो इनको 2010 में प्रस्ताव दिया था आज नहीं। 2010 में कहा था हमारे जो विस्थापित होने वाले गाँव हैं उनको तराई और भाबर के फारेस्ट एरिया में विस्थापित कर दीजिए। जितनी जमीन आप उनको वहाँ देते हैं उतनी ही जमीन यहाँ है । इसको आप रिजर्व फारेस्ट एरिया घोषित कर दो । तो उसका नतीजा क्या होगा न तो  रिजर्व फारेस्ट एरिया घटेगा और वो विस्थापित भी हो जाएंगे लेकिन 2010 का ये प्रस्ताव अभी तक लंबित है। इन्होनें भारत सरकार को कोई प्रस्ताव नहीं दिया है । ये नौटंकीबाजी है और कल के दिन इनको और मुश्किलें आने वाली हैं। विस्थापन कहाँ किया आपने जरा बताइये । एक गधेरे से निकालकर दूसरे गधेरे डाल दिया आपने तो। उस गधेरे में आपदा आ जाएगी तो क्या करेंगे आप। ये स्थायी हल नहीं है । स्थायी हल ये है आप रिजर्व फारेस्ट एरिया बढ़ाओ।  जो भी जमीन आपको तराई -भाबर में मिले या पहाड़ में मिले तो सही जगह है उसमें बसाओ और उन गांवों को फारेस्ट एरिया घोषित कर दो।  न फारेस्ट कम होगा और उनका पुनर्वास  भी हो जाएगा।

किसान आंदोलन उत्तराखंड में राष्ट्रीय दलों की संभावनाओं को कितना खत्म करेगा तराई में । पहाड़ में प्रभाव न हो लेकिन तराई में तो प्रभाव देखा जा रहा है ।

निश्चित तौर पर तराई में बड़ा प्रभाव है। पहाड़ के किसानों को भी समझना चाहिए। यहाँ तो किसान कम ही हैं लेकिन ये सवाल अनाज खाने का भी है। कल के दिन अनाज हमको फ्री मिलेगा कि नहीं मिलेगा। ये अदानी -अंबानी और तमाम सारे लोग अनाज खरीदने धीरे- धीरे  सारे खेत अपने पास कर लेंगे और मुहमांगे दामों में बेचेंगे। कल के दिन हमारे तो खाने के लाले पड़ जाएंगे। तो किसान आंदोलन केवल किसानों तक ही सीमित नहीं है। आम उपभोक्ता गरीब तबके तक भी सीमित है। गरीब आदमी भी अनाज कहाँ से खाएगा ? अदानी- अंबानी अनाज से पता नहीं क्या –क्या बनाएँगे ? अनाज भी नहीं रहने देंगे तो विदेशों में अनाज की  कमी हो जाएगी ।

प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा से घिरा हुआ है। पिछले दिनों पलायन भी तेजी से राज्य में बड़ा है। कोविड में तमाम प्रवासी यहाँ पहाड़ आए और जमीन न होने के चलते वापस लौट गए। कहीं न  कहीं सरकारें भी इनको कैश कर पाने में नाकामयाब साबित हुई हैं । हरिद्वार , उधमसिंह नगर , नैनीताल में  डेमोग्राफिक बदलाव को कितना बड़ा खतरा आप मान रहे हैं ?

वहाँ पर निश्चित तौर पर आबादी बढ़ी है इसलिए बढ़ी है बाहर से लोग आकार बस गए हैं। राज्य  से बाहर के लोग। दूसरा पहाड़ में भी लोग पलायन करके वहाँ जा रहे हैं। जाहिर है ऐसे में जनसंख्या बढ़नी लाज़मी है। पहाड़ में जनसंख्या ऐसे में कम होगी। आने वाले समय में जब परिसीमन होगा तो उसमें अगर जनसंख्या के आधार पर आप परिसीमन करेंगे तो पहाड़ की सीटें और घट जाएंगी। अभी तो 6 सीटें घटी हैं पहले परिसीमन में। अब यही सिलसिला चला तो निश्चित रूप से पहाड़ में और सीटें कम होंगी और पहाड़ का राजनीतिक अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा।

पिछले दिनों धामी सरकार ने केंद्र सरकार को पंतनगर विवि को केन्द्रीय विवि बनाने का एक प्रस्ताव भेजा है । आप मुखर रहे हैं इसके खिलाफ। ये स्थानीय युवाओं के साथ बड़ा कुठराघात तो नहीं है ?

बहुत बड़ा कुठराघात है। पंतनगर हमारा राज्य विवि है । पंतनगर में अभी मोटे तौर पर 85 फीसदी सीटों पर प्रवेश उत्तराखंड के लोगों के होते हैं। 15 फीसदी आल इंडिया मेरिट से आते हैं । जिस दिन के आरक्षण खत्म हो जाएगा तो हमारे बच्चों को आल इंडिया मेरिट से आना पड़ेगा जिसका सीधा प्रभाव यहाँ के युवाओं पर पड़ेगा। हम तो ये कहते हैं आप केंद्र सरकार से नया विवि मांगिए। अपने बने- बनाए विवि को केंद्र को देकर आप उत्तराखंड के नौनिहालों के साथ न्याय कर रहे हैं ? ये सोचना चाहिए ।

पिछले दिनों हल्द्वानी के उत्तराखंड मुक्त विवि में बड़े पैमाने पर बैकडोर इंट्री हुई है। आप इस मामले को नहीं उठा रहे हैं ?

बिल्कुल हम उठाएंगे । इस तरह से बैकडोर नियुक्तियाँ यही तो भ्रष्टाचार है। इसी के लिए तो इस राज्य को लोकायुक्त चाहिए। हमने मुद्दा उठाया लेकिन चूंकि सरकार में वो हैं इसलिए कोई एक्शन नहीं लेते। इस पर अंकुश lगाने के लिए ही लोकायुक्त है और अब कितने लोग कोर्ट जाएंगे कब तक जाएंगे ? इसलिए लोकायुक्त होगा तो इस प्रक्रिया में जो धांधली है भ्रष्टाचार है , बैकडोर इंट्री है । उस पर अंकुश लगाने के लिए लोकायुक्त की जरूरत है।

पंतनगर कारीडोर पूर्व सीएम स्वर्गीय एन डी तिवारी के नाम पिछले दिनों सीएम पुष्कर धामी ने किया है। इसी तरह कुमाऊँ विवि का नाम भी उनके नाम से करने की बात हो रही है। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कुमाऊँ विवि का नाम करना ही है तो प्रोफेसर डी डी पंत के नाम से होना चाहिए ?

उन्होनें पार्टी बनाई है। हम उनके शिष्य रहे हैं। वो काफी प्रकांड विद्वान रहे हैं।  जिन पर देश और उत्तराखंड को गर्व है। इससे ज्यादा जस्टिफाई बात नहीं हो सकती कि कुमाऊँ विवि का अगर नामकरण करना है तो डॉ डी डी पंत के नाम से होना चाहिए। 

आप गढ़वाल घूम आए हैं । देवस्थानम क्या बड़ा मुद्दा बनेगा आगामी चुनाव में ? हालांकि सरकार ने मनोहरकान्त ध्यानी की अगुवाई में एक कमेटी बनवाई है।

इनको किसी मसले का हल नहीं करना है तभी कमेटी बनाई। कभी आयोग बना दो। हम देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ हैं लेकिन अगर आप तीर्थस्थान के विकास के लिए बोर्ड बनाना चाहते हैं तो बोर्ड बनाने के अलावा भी कई तरीके हैं उसको आप करिए। देवस्थानम का जो कांसेप्ट इन्होनें बनाया है वो उचित नहीं है।

आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण सरकारें आज तक नहीं कर पाई हैं ?

हमने तो इसके लिए आयोग बनाने की मांग की। इससे आंदोलनकारियों के साथ न्याय नहीं हुआ है । आगे भी नहीं होगा। जब तक आयोग नहीं बनता है। आयोग सब चीजों की जांच करके सही आदमी का चिन्हीकरण नहीं करता है, तब तक ये बिलकुल गलत तरीका है चिन्हीकरण का।  हमने इस बात को रखा है लेकिन वे शासनादेश के आधार पर चिन्हीकरण करते हैं।

तकनीकी शिक्षा का राज्य में बेड़ा गर्क हो गया है ।  स्कूल , आईटीआई लगातार बंद हो रहे हैं
इन्होनें बिल्डिंगें तो बना ली। स्कूल , आईटीआई जगह-जगह खोल दिए।उसके लिए जो व्यवस्था होनी चाहिए थी वो नहीं हुई । न तो फ़ैकल्टी है अपने पास न ही उसके उचित ट्रेड हैं। ये भी एक आईवाश है।

अलग हिमालयन नीति की मांग इस राज्य में होती आई है । ग्रीन बोनस की  मांग तो उक्रांद भी उठाता आया है ।

सही कहा आपने ग्रीन बोनस की मांग हमारी पार्टी करती आई है । जब योजना आयोग मोदी सरकार ने भंग नहीं किया था तो 1000 करोड़ रु प्रतिवर्ष देने की बात आयोग ने की थी ।  हमने 10000 करोड़ रु प्रतिवर्ष कम से कम  देने की  मांग की थी क्योंकि हम पर्यावरण की  रक्षा कर रहे हैं। जंगलों को बचा रहे हैं। अगर ईधन के रूप में हम जंगलों को काटेंगे तो आपका पर्यावरण कैसे बचेगा? इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इस क्षेत्र में निशुल्क गैस केंद्र सरकार को देनी चाहिए ग्रीन बोनस के अलावा।

डीडीहाट जिले का मसला इन दिनों काफी तूल पकड़ रहा है । छोटी इकाइयों के गठन का हिमायती तो उक्रांद भी राज्य आंदोलन के दौर से रहा है ।  आपने अपने ब्लू प्रिंट में कई जिलों के गठन  की  बात एक दौर में की थी ।

हमने अपने ब्लू प्रिंट में 23 जिले रखे हैं। उक्रांद तो शुरुवात से ही छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गटहन का पक्षधर रहा है। इन्होनें कुछ तहसीलें तो बना दी हैं लेकिन जिले नहीं बनाए हैं। डीडीहाट ही नहीं अन्य  जिले भी बनने चाहिए।

उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से राजनीति का स्तर बहुत ज्यादा गिर गया है। नागनाथ –सांपनाथ का दौर चल रहा है । जहां सत्ता दिख रही है  वहाँ घूम जा रहे हैं। इसे कैसे देख रहे हैं आप क्या ये जनता के साथ बड़ा धोखा  नहीं है ?

ये तो एक तरह से धोखा है जनता के साथ और जनता  को ही इनको सबक सिखाना चाहिए लेकिन वो सबक नहीं सीखा रही है। आप आज काँग्रेस में कल भाजपा में। फिर काँग्रेस में जा रहे हैं, इनको सबक कौन सिखाएगा। अगर जनता हरा देती इनको तो ये जो सत्ता की दलाली , राजनीति करते हैं। पैसा खर्च करो और जीत जाओ।  कोई सिद्धांत , न नीति -  नियम है तो इस पर रोक तो जनता को ही लगानी होगी।

पिथौरागढ़ का आकाशवाणी केंद्र लंबे समय से सफ़ेद हाथी बना है। नेपाल के एफएम स्टेशन यहाँ पर आसानी से सुने जा सकते हैं लेकिन आकाशवाणी के नहीं। हवाई पट्टी में दशकों से उड़ानें तो चालू नहीं हो पायी लेकिन हवाई बयान उड़ते ही रहे हैं ?

यही विकास का विडम्बना है। 90 के दशक एक एयरपोर्ट और आकाशवाणी केंद्र की आज हालात ये है। क्या अर्थ लगाते हैं इसका? ये सरकारें जनता  की सुन रही हैं या अपनी सत्ता की दलाली में मस्त हैं । चार- चार इंजन होकर भी काम नहीं हो पा रहे हैं।

राज्य आंदोलन से जुड़े तमाम लोग आपको सीएम के रूप में देखना चाहते हैं। क्या ये मुराद इस बार पूरी होगी ?

हम तो चाहेंगे कल ही सीएम बन जाएँ। चुनाव आने वाले हैं। 2022 में अगर जनता चाहती है यहाँ विकास हो और उत्तराखंड बनने का कुछ सिला हासिल हो तो जनता को ही परिवर्तन करना चाहिए। भाजपा –काँग्रेस , काँग्रेस भाजपा , इस दल से उस दल में , उस दल से इस दल की राजनीति को जनता को ठुकराना चाहिए तभी हमारा नंबर आएगा और तभी हम सी एम बन सकते हैं ।

अब तक जो उक्रांद राज्य में हाशिये पर था ऐरी जी,  क्या हम उम्मीद करें  इस  बार वो पटरी पर आएगा और मजबूती के साथ चुनाव में जाएगा ?

हम मजबूती के साथ इस बार लड़ेंगे। अभी युवाओं में भी थोड़ी चेतना आई है कि हमारा क्षेत्रीय दल होना चाहिए और उसके हिसाब से काम होना चाहिए और हम उस चेतना को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। मैं सोचता हूँ 2022 में अच्छे नतीजे आएंगे इसके।