Sunday 30 May 2010

भ्रष्ट पत्रकारिता को सफलता का शोर्टकट माना जाता है... कुठियाला



माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति बृजकिशोर कुठियाला जी से हाल ही में मैंने खबरदार मीडिया के लिए बातचीत की जिसमे आज की पत्रकारिता के बारे में खुलकर चर्चा हुई । इस बातचीत में उन्होनें पत्रकारिता से जुड़े कई राज खोले. वस्तुत: स्वभाव से एक शिक्षक और मानवशास्त्र के स्टुडेंट रहे कुठियाला जी ने उच्च शिक्षा IIMC और FTII जैसे संस्थानों से ली.मनुष्य और सम्प्रेषण पर लिखे कुछ लेखों ने उनकी दिशा बदल दी और वे पत्रकार बन गए.
11 साल रिसर्च और 26 साल शिक्षण के कार्य का लंबा अनुभव रखने वाले कुठियाला जी से आज के दौर की व्यवसायिक पत्रकारिता के मिथकों और सनसनीखेज खबरों की अंधी दौर के बारे में खबरदार मीडिया की ओर से कौशल वर्मा और हर्षवर्धन पाण्डेय ने विस्तार से बात की। जिस में कई अहम जानकारियां से हम रु ब रु हुए॥



पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-




सबसे पहले तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बनने पर आपको बधाई ...जी बहुत बहुत शुक्रिया...


भारतीय पत्रकारिता के प्रतिष्ठित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के नए रोल को क्या आप किसी चुनौती के रूप मे लेते हैं?
ये मेरे लिये कोई चुनौती नहीं है. किसी भी काम को चुनौती के रूप में लेना मेरा स्वभाव नहीं रहा है. ये तो बस मौके की बात है. अपनी डयूटी और रिटायरमेंट के बाद वैसे भी मैंने प्लान किया था वानप्रस्थ की ओर जाने का, लेकिन ये नई जिम्मेदारी मेरे लिये नई उर्जा के समान है और ये काफी उत्साह वर्धक है. हां ये बात तो है कि ये बड़ी जिम्मेदारी है और मेरी कोशिश रहेगी की इस विश्वविद्यालय से अच्छे पत्रकार समाज को दूं।



ऐसा सुनने में आ रहा है कि अच्युतानंद मिश्रा जी के बाद कुलपति के पद पर आपकी नियुक्ति को लेकर कुछ राजनीति भी हुई थी?हंसते हुये - डिप्लोमेटिक उत्तर दूं क्या! -

जो उचित लगे।



नहीं, बिल्कुल नहीं. हां लेकिन मै इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि दबाव जरूर बना. क्योंकि कुछ लोग चाहते थे कि मैं इस पद पर काम करूं. कम्पीटिशन तो था पर मेरा सेलेक्शन हुआ. मुझसे कहा गया कि पिछले 15 सालों में मीडिया संस्थानों के निर्माण के कार्यों को देखते हुए आपको ये जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसमें हमारे अनुभव भी काम आये।


मैं ये भी बताना चाहुंगा कि मेरा कद अच्युतानंद मिश्रा जी से काफी छोटा है. ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे उस विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, जिसे अच्युतानंद मिश्र जी ने अपने प्रयासो से एक नई पहचान दी है. उनके कार्यो को आगे बढाना मेरी प्रमुखता होगी।



माखनलाल के वीसी बनने के बाद आपकी और क्या प्राथमिकता होगी. गाहे बगाहे ये सुनने में भी आता है कि बाहर से कम ही लोग भोपाल आ पाते हैं. ये सब बेस्ट फैकल्टी को लेकर कहा जाता है?

नोयडा सेंटर की शिकायत रही है कि हमारे यहां बाहर से कम लोग आते है. वही भोपाल वाले भी कहते हैं. इसका निराकरण किया जायेगा. उन विशेषज्ञ को बुलाया जायेगा जो अपने क्षेत्र में माहिर हो. जैसे कि आप राजदीप सरदेसाई से ये उम्मीद नहीं कर सकते की वो आकर आपको अच्छा वायस ओवर सिखायेंगे. ये तो कोई अच्छा वायस ओवर आर्टिस्ट ही सिखा सकता है. मेरे संज्ञान में कुछ बातें भी आई है।

बंद हो चुके कुछ कोर्स जैसे बिजनेस जर्नलिज्म और स्पोर्ट्स जर्नलिज्म पर भी हमारी चर्चा हुई है. यहां आपको बता दूं कि हम कुछ विशेष चीजों पर काम कर रहे हैं. कॉमनवेल्थ गेम से पहले हम कुछ वर्कशॉप करायेंगे. ताकि उनको सही से तैयार किया जा सके।


आप एक प्रतिष्ठित पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वीसी हैं. जहन में एक सवाल आता है कि आप की नजर में भ्रष्ट पत्रकारिता की क्या परिभाषा है?आं.... देखिये सच कहा जाय तो भ्रष्ट पत्रकारिता में बहुत आकर्षण होता है . सभी को पता है कि ये गलत है. फिर भी लोग इसके हाथों में समाते चले जाते हैं. एक अच्छे और ईमानदार पत्रकार समय के साथ मीडिया एथिक्स और वैल्यू के साथ समझौता करता चला जाता है और धीरे धीरे इसके जाल में फंसता जाता है .फिर टीआरपी और रीडरशिप की चुहा बिल्ली की दौर के पीछे भागने लगता है।


आज ऐसी पत्रकारिता को सफलता का शॉर्ट कट भी माना जाता है. ऐसी पत्रकारिता से दूर रहने का हमें भरसक प्रयास करना चाहिए. जिससे कि हम एक अच्छे पत्रकार बन सके और समाज को एक नई दिशा में ले जा सके. ये वास्तविकता है कि हम बुरी चीजों के प्रति जल्दी आकर्षित होते हैं, लेकिन हमें अपनी मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपनी हदें और मिशन खुद तय करना होता है।



आपकी नजर में सनसनीखेज खबर के दलदल से निकलने का क्या रास्ता है?

देखिये इस तरह की पत्रकारिता काफी हद तक भटक चुकी है. गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पत्रकार अपनी जीविका चलाने के लिए आज इस रास्ते पर चल रहे हैं और इस तरह की खबरों को खरीदना और बेचना चाहते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि सुर्खियों में बने रहने का ये एक शॉर्ट कट भी है. ऐसे पत्रकार सोचते हैं कि ये सबसे आसान रास्ता है एक लोकप्रिय मीडियाकर्मी बनने का।




लेकिन जो खबर नहीं भी है उसे सनसनीखेज ढंग से परोसना और बिना वजह ऐसे खबरों को तवज्जो और तूल देना दर्शक और पाठक के साथ सरासर धोखा है. सब को पता है कि पूरे विश्व में बडे अखबारों का सर्कुलेशन भी धीरे धीरे कम हुआ है. लगातार खबरें देने के दवाब में मीडिया खबरें बनाने लगते हैं. ये बाजार का दबाव है. ये इस बात का सूचक है कि अखबार भी अपने पाठकों के बीच पैठ बनाने के लिये बुरे दौर से गुजर रहा है. ऐसे वक्त में आप सिर्फ आपने बिजनेस के बारे में सोच सकते है ना की पत्रकारिता एक मिशन है, इस बारे में. ये एक बहुत बडी विकृति है. आप वही करेंगे जिससे संस्थान को लाभ होगा. मेरे विचार से टीआरपी, एबीसी और रीडरशिप ये सब एक मिथ्या है।




हम ये भी कह सकते हैं कि अच्छे लोग या तो थक चुके हैं या रुखसत हो चुके हैं. मीडिया के भीतर सफल पत्रकार भी इन सब चीजों से त्रस्त है. इस दलदल से निकलने का एक मात्र रास्ता है इच्छा शक्ति और लोगों के बीच सही रूप से किसी भी खबर का प्रस्तुतिकरण।


ऐसे में पत्रकारिता के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?जहां तक पत्रकारिता के भविष्य का सवाल है तो भविष्य में पत्रकारिता द्वारा संवाद बढेगा और स्वरुप बिगड़ेगा. ये स्वरुप सारा ध्वस्त होगा. फिर से एक नया मीडिया उभरेगा और जो समाज के हित की बात करेगा. आज की पत्रकारिता वो भस्मासुर है जो खुद अपने सिर पे हाथ रखे है।


क्या आप ये सब क्राइम बीट की पहुंच बढने के कारण कह रहे हैं ?
नहीं मैं उस मीडिया की बात कर रहा हूं जो हर जगह कॉमर्शियल चीज आसानी से ढूंढ़ लेता है. आम आदमी को क्या लाभ होगा ये हेडलाइन नहीं बनती. आज आलम ये है कि हमारा मीडिया ममता बनर्जी और सचिन तेंदुलकर में भी कॉमर्शियल ढूंढ़ लेता है. जो काम रेल आम आदमी के लिए कर सकता हैं वो काम सचिन तेंदुलकर नहीं कर सकता. अभी कुछ समय पहले मैं एक सेमिनार में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया गया था वहां एक मुद्दा उठा जो डेथ ऑफ जर्नलिज्म का था. पत्रकारिता अप्राकृतिक हो गयी है .20 -25 लोग जो बड़ी जगहों पर बैठें हैं, वो ये डिसाइड कर रहे हैं कि हमें कौन सी सामग्री परोसनी है. आज कल पत्रकार वो है जिसका काम बस हो गया है सूचना इकट्ठा करो और भेज दो. खबर बन जाएगी।



बेन्जामिन ब्रेडली ने 25 साल तक वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबार का सम्पादन किया. कुछ साल पहले जब वो भारत आये तो शेखर गुप्ता एनडीटीवी पर उनका वाक द टॉक कर रहे थे. उन्होने एक बात कही कि अमेरिका में पत्रकारिता बुनियादी मुद्दो की ओर लौट रही है. ऐसे में ये जो सेकेंड लाइन जर्नलिज्म है क्या वो भी भारतीय पत्रकारिता की ओर लौट सकती है. इसके बारे में आप क्या कहेगें?देखिये सेकेंड लाइन जर्नलिज्म सामाजिक मुद्दों से जुडा हुआ है, ये जमीन से जुडे लोगों के लिए काम करता है. आप कह सकते है कि ये पत्रकारिता के रियल वैल्यू और इथिक्स से जुडा हुआ है।


अगर आप आरएसएस की मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक पत्रिका की कुल प्रसार संख्या देखें, तो ये किसी प्रतिष्ठित अखबार के मुकाबले ज्यादा है. इसमें देश, समाज, मानवता से जुडे मुद्दे की बात होती है. हम क्या करना चाहते हैं? क्या अधिकार है? जिस दिन पत्रकारों को ये सब समझ में आ जाएगी, उस दिन से वो इस ओर मुखातिब हो जाएगें. आप देखेंगें, आने वाले दिनों में यही सेकेंड लाइन जर्नलिज्म फलेगा, फूलेगा और लोगों के बीच लोकप्रिय होगा।



कुठियाला साहब ये जो आजकल चौबीस घंटे के न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गयी है या यूं कहा जाए कि आना बदस्तुर जारी है, इसके बारे में आपकी क्या राय है ?

(हंसते हुए) चौबीस घंटे न्यूज़ चैनल का कांसेप्ट ही असफल है. ईमानदारी से चौबिसो घंटे समाचार का प्रसारण और उसे प्रस्तुत करना नामुमकिन है. इस लिए तो न्यूज़ चैनल आजकल रियालिटी शोज का सहारा ले रहे है. आप देख सकते है कि कोई भी न्यूज़ चैनल इससे अछूता नहीं है. खबरों को सबसे पहले ब्रेक करने और लगातार खबरें देने के दबाव और आपाधापी में चैनल खबरें बनाने लगते है. ये जनता के साथ सरासर धोखा है।



आजकल मीडिया का ट्रेंड बन गया है खबर को बढा-चढा कर परोसने का. मीडिया की इस अतिवादिता की चाभी को आप किस तरह लेते हैं ?(थोडा गंभीर होते हुए)- अपनी सेल वैल्यू को बढ़ाने के लिए न्यूज़ चैनल खबरों की सनसनीखेज पैकेजिंग करते हैं और ऐसा फ्लेवर डालते हैं मानो ये खबर सिर्फ और सिर्फ उनके पास है. इस चक्कर में चैनल वाले जो खबरें तथ्यहीन है उसे भी सनसनीखेज और भयानक रुप से दिखाते हैं. लेकिन ये बहुत ही गलत अप्रोच है. ऐसे मीडिया हाउस लम्बी रेस के घोड़े नहीं हैं. लेकिन मैं आश्वस्त हूं कि आने वाले समय में अच्छे, निष्पक्ष और जनता के हितो को तव्वजो देने वाली खबरे भी आएगी।

राधे श्याम शर्मा जी जो वरिष्ठ पत्रकार है, ने अभी एक बहुत अच्छी बात कही है कि एक दिन वही पत्रकार होगा जो कभी नहीं बिकेगा. जितनी जल्दी बिकोगे उतना कम दाम मिलेगा. इसे कोइ संस्था या शिक्षण संस्थान तय नहीं कर सकता. ऐसे में एक अच्छे पत्रकार को खुद अपनी पत्रकारिता मिशन को टारगेट करना चाहिए. जिसके लिए वो समाज के चौथे स्तंभ के रुप में जाना जाता हैं.

कुछ बात करते है विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल पर. विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते है. स्टुडेंट का ये कहना होता है कि जब पूरा विश्वविद्यालय एक है. तो फिर एमजे (पत्रकारिता विभाग) के स्टुडेंट का प्लेसमेंट हमेशा गुपचुप तरीके से हो जाता है, जबकी कैव्स (सेंटर फॉर ऑडियो विजुअल स्टडीज) और दूसरे डिर्पाटमेंट के स्टुडेंट सिर्फ हाथ मलते रह जाते है. क्या कुठियाला जी के आने के बाद हम उम्मीद करें की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी?

हां, मुझे इसकी जानकारी मिली है जो ठीक होगा वहीं किया जाएगा. इसपर अभी बात करना ठीक नहीं है. प्लेसमेंट क्षमतावान छात्र-छात्राओं का होना चाहिए. उन्हे इसके लिए खुद लायक बनना चाहिए. मैं कार्यभार संभालने के बाद हर दिन विभाग में दस से ग्यारह बजे तक पर्सनालिटी डेवलपमेंट की क्लास शुरू करवायी है जिससे जल्द ही अच्छे और सकारात्मक परीणम सामने आयेंगे. मैं ग्यारह वर्षों से इन चीज़ों पर जोर देता रहा हूं. उम्मीद है चीज़ें बदलेगी. मेरा जोर प्लेसमेंट सेल नहीं बल्की ऐसी बेस्ट फैकल्टी की तरफ रहेगा जो पढाई के दौरान ही बच्चों की प्रतिभा को तराश ले और उन्हें इनटर्न पर ले जाए।


चलिए ये सवाल आपकी निजी जिंदगी से. पढने के अलावा कुठियाला साहब को और कौन से शौक हैं ?

मैं रात में उपन्यास पढता हुं. मेरा शौक रहता है कि मैं कुछ पढूं. लेटेस्ट फिल्म देखना भी पसंद करता हूं. संगीत से लगाव है. दिनचर्या तो व्यस्त रहती है. इसी में सीरिअल देखने का समय निकाल लेता हूं।



पत्रकारिता के स्टुडेंट के लिए कोइ संदेश ?


बडे सपने देखो. निपुणता बढाओ. कम्प्यूटर में प्रवीणता लाओ. दो भाषाओं पर अच्छी पकड़ बनाओं.पढने से ज्यादा सोचने और विश्लेषण के लिए समय दो. देखो सफलता आपके कदम चूमेगी।


खबरदार मीडिया से बातचीत के लिए आपने समय निकाला...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...जी आपका भी शुक्रिया…(साभार ख़बरदार मीडिया )

(कुछ समय पहले लिए गए इस इंटर व्यू को ब्लॉग में डालने का अनुरोध कई लोगो ने किया... लिहाजा उनकी राय पर मैं गौर फरमा रहा हूँ.....)

Wednesday 26 May 2010

खतरे में तालाबो का अस्तित्व..........

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार भले ही झीलों के रख रखाव के लाख दावे करे परन्तु असलियत किसी से छिपी नही है... राजधानी भोपाल के सारे तालाब गंदगी की चपेट में है ....

नगर निगम के आला अधिकारी कभी इन तालाबो की सुध नही ले सके जिसके चलते तालाबो का पानी दूषितहोता जा रहा है...


भोपाल शहर के पुराने तालाब इन दिनों गंदगी की चपेट में होने के साथ ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है॥ जहाँ आस पास का कचरा और सीवर का बदबूदार पानी इन तालाबो को गन्दा कर रहा है वही इस पानी में रेंगते कीड़े खतरे की घंटी को बजा रहे है परन्तु निगम के अधिकारी इससे बेखबर है..

राजधानी भोपाल राजा भोज के समय से तालाबो की नगरी के नाम से जानी जाती है... मुंशी हुसैन खान तालाब का पानी आज पूरी तरह से प्रदूषित हो चूका है..नवाब शाहजहाँ बेगम के टीचर मुंशी हुसैन खान ने भोपाल में छोटा सा डेम बनाकर यहाँ के पानी को रोका जिसे तालाब का रूप दिया गया॥ लेकिन आज इस तालाब की स्थिति बदहाल है..

तालाब
का पानी इतना दूषित हो चूका है कि यहाँ पर सांस लेना भी दूभर हो गया है॥ गंदगी के कारण तालाब के आस पास के इलाके भी इससे प्रभावित हो रहे है..परन्तु नगर निगम के अधिकारी इन सब बातो से बेखबर है॥


मुंशी हुसैन खान तालाब से लगा बीच का तालाब भी आज गंदगी के प्रभाव से अछूता नही है..शाहजहाँ बेगम ने अपने शौहर सिद्दीक हसन खान की याद में नूर महल बनाया था॥ बाद में जब यहाँ सड़क का निर्माण कराया गया तो मोतिया तालाब का पानी यहाँ रुकने लगा जिसने एक तालाब का रूप ले लिया ...

आज इस तालाब की हालत बहुत खराब हो चुकी है... तालाब पूरी तरह सूख चूका है॥ तालाब के आस पास के इलाके में अतिक्रमण भी बद गया है...नगर निगम के अधिकारियों की मिली भगत से यहाँ पर ऊँची रसूख वालो ने अपने भवन बना लिए है जिस पर कोई कार्यवाही नही हुई है॥

लोगो में इसे लेकर खासा आक्रोश भी है॥ कई लोगो का कहना है कि उनका बचपन इस तालाब में गुजरा ॥ लेकिन पहले और आज की स्थिति में काफी अंतर आ गया है..अतिक्रमण के चलते आज तालाब अपना नामोनिशान खो चूका है॥


पुराने शहर का खूबसूरत तलब रहा मोतिया तालाब भी आज प्रदूषित हो चूका है..कल शाम जब पुराने शहर घूम रहा था तो लोगो ने मुझे बताया ये तालाब शाहजहाँ बेगम जिन्होंने ताजुल मस्जिद बनवाई तब उन्होंने ही नमाज पड़ने वालो के "वुजू" के लिए एक डेम बना दिया जिन्होंने अपनी माँ सिकंदर जहाँ के घरेलू नाम "मोती" बीबी के नाम पर मोतिया तालाब रख दिया..

लेकिन आज समय बीतने के साथ ही इसकी सुन्दरता पर भी ग्रहण लग गयाहै..तालाब के आस पास मौजूद अस्पतालों का कचरा इसके जल को प्रदूषित कर रहा है..सीवेज के पानी और धोबियो ने इसके पानी को कही का नही छोड़ा है... आप इसमें हाथ नही धो सकते..

लोग कहते है नगर निगम वाले यहाँ आते तो जरुर है लेकिन ऊँची रसूख वालो से उनकी मिलीभगत होने के कारण यहाँ के तालाब की तरफ उनका ध्यान नही जाता....

Sunday 16 May 2010

"स्वर्णिम मध्य प्रदेश "और रोने की राजनीती........


११ से १४ मई तक चले मध्य प्रदेश विधान सभा के चार दिवसीय विशेष सत्र का समापन बीते दिनों मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान के भाषणों के साथ समाप्त हो गया... यू तो शिवराज सिंह जी ने ये विशेष सत्र "स्वर्णिम मध्य प्रदेश" बनाने के लिए बुलवाया था लेकिन विपक्ष की गैर मौजूदगी में ये सत्र फीका रहा.....इस विशेष सत्र को इतिहास के पन्नो में एक कलंक के रूप में याद किया जायेगा...


इस विशेष सत्र में कवरेज के दौरान मुझे जाना पड़ा.... इस दरमियान मुझे जनप्रतिनिधियों के रंग ढंग सदन में देखने का अवसर मिला... कांग्रेस के नेताओं ने पूरे सत्र में अपनी नौटंकिया की... शिवराज इस सत्र में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को बुलाना चाहते थे जिसके लिए प्रतिभा ताई ने दिल्ली में शिवराज के साथ मुलाकात में अपनी हामी भी भर दी थी लेकिन कांग्रेसी विधायको के दबाव में राष्ट्रपति को अपना निर्णय बदलना पड़ा...


अब इसे क्या कहा जाए ? शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस के विधायको को इस बात के लिए आश्वस्त किया था कि इस विशेष सत्र में उनकी बातें सुनी जायेगी.... किसी भी मुद्दे पर चर्चा अगर विपक्ष करना चाहता है तो उसका भाजपा सदन में स्वागत करेगी.....


यही नही मुख्यमंत्री के स्वर्णिम मध्य प्रदेश को साकार करने के लिए कांग्रेस के विधायक अपने सुझाव भी दे सकते थे लेकिन विपक्ष अपने निर्णय से नही मुकरा ....सड़को के बाहर नौटंकियो को करने वाले इन कांग्रेसी नेताओ के लिए इस बार सरकार की कारगुजारियो को सदन में रखने का सुनहरा मौका था लेकिन विपक्षी नेता कहाँ मानने वाले थे..... उन्होंने मानो भाजपा के विशेष सत्र में न जाने का संकल्प ही कर रखा था...


कांग्रेस विधायको ने चार दिवसीय विशेष सत्र का पूरी तरह से बहिस्कार किया...इस दौरान विधायको ने विधान सभा के द्वार पर धरना दिया और अपनी बाहों में काली पट्टी बाधकर जहाँ अपना रोष जाहिर किया वही भोपाल के "इकबाल" मैदान में "समानांतर विधान सभा चलाकर नयी नौटंकिया की...
हालाँकि इस विशेष सत्र में कई भाजपा विधायको ने शिवराज सिंह चौहान को स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने के लिए अपने सुझाव दिए जिस पर सी ऍम ने अमल करने का भरोसा दिलाया है लेकिन मध्य प्रदेश के कांग्रेसियों ने इस सत्र में शालीन आचरण की तमाम सीमाओं को लांघ दिया..

इस आचरण पर पिछले कई दिनों से सभी खबरिया चैनलों में खबरे चल रही है जिनको आप सभी ने देखा भी होगा... इस के चलते मध्य प्रदेश की छवि पूरे देश में बदनाम हो रही है... जनप्रतिनिधियों के इस आचरण पर सवाल उठने लाजमी है.... आखिर हम जिस कामो को पूरा करने के लिए इन्हें सदन में भेजते है क्या वे उनको सदन में उठा पाते है...


दरअसल मामला ये है कि कांग्रेस विधायक कल्पना परुलेकर द्वारा भाजपा विधायक ललिता यादव पर टिप्पणियों के बाद सदन की गरिमा तार तार हो गयी... ललिता यादव को सदन में घुसते समय मैंने देखा था.... जब वे घुस रही थी तो सदन के प्रवेश द्वार पर कांग्रेसी विधायको ने उन पर फब्तियां कसते हुए ये कहा वे देर से इसलिए और रही है क्युकि वे ब्यूटी पार्लर से होकर आ रही है ....


इस घटना से ललिता इतना आहत हुई वह अपने आसुओ को सदन में नही रोक पायी जिसके बाद विधान सभा अध्यक्ष इश्वर दास रोहानी इतना आहत हो गए कि उनकी आँखों से भी आंसू निकल आये... शाम के समय अपने चेंबर में रोहानी को रोते देख मुझे यकीन ही नही हुआ क्या ये विधान सभा अध्यक्ष रोहानी ही है जिनको सख्त प्रशासक माना जाता है...

इसके बाद अगले दिन भाजपा ने इन कांग्रेसी विधायको के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया जिसका कांग्रेसियों ने जमकर विरोध किया... इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी कांग्रेसी विधायको ने अपने किये गुनाह पर माफ़ी नही मांगी और इश्वर दास रोहानी के आंसुओ को "घडियाली " करार दिया...

भाजपा विधायको ने राज्यपाल के साथ ही सोनिया गाँधी को पत्र लिख डाला...इसके बाद मध्य प्रदेश की सियासत में एक नया तूफान आ गया..."रोने " को एक बड़ा सियासी मुद्दा बना दिया गया॥ जब भाजपा इसे भुनाने में पीछे नही रहती तो भला कांग्रेस कैसे पीछे रहती ॥

मौके की नजाकत भापते हुए अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह ने भी इकबाल मैदान में आंसू छलकाने का नाटक कर दिया... अब इसे सियासी चाल कहे या भाजपा के " डिफेंस" की काट ...आंसुओ के जरिये मध्य प्रदेश में एक नयी राजनीती की शुरुवात इस विधान सभा के सत्र में हुई...

सत्तादल भाजपा को सदन के बाहर कोसने वाली कांग्रेसियों की बौखलाहट इस सत्र में सामने आ गयी...अब तक के सभी सत्रों में भाजपा विधायको को घेरने में पीछे रहने वाले कांग्रेसी इस बार भी शिवराज को घेरने में विफल रहे॥ जबकि इस बार प्रदेश के विकास के लिए अमूल्य सुझाव देने का उनकेपास सुनहरा अवसर था ....


सत्र के अंतिम दिन पत्रकारों से शिवराज सीधे मुखातिब हुए ... एक पत्रकार ने सवाल पुछा आपका स्वर्णिम मध्य प्रदेश क्या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गटबंधन के " भारत उदय " से कितना अलग रहेगा तो उनका कहना था ये आम आदमी का विजन है...

स्वर्णिम मध्य प्रदेश अकेला शिवराज नही बना सकता ... इसके लिए हर व्यक्ति को आगे आना होगा... देखना होगा अपने शिव जी क्या इस विजन को पूरा कर पाते है ?


बहरहाल जो भी हो इस सत्र में कई भाजपा विधायको ने पहली बार सदन में प्रदेश के विकास के बारे में अपने अमूल्य सुझाव सदन में रखे... जिस पर उन्होंने खुद सी ऍम की वाह वाही बटोरी...लेकिन महिला विधायक ललिता यादव के साथ की गयी अश्लील टिप्पणियों से सदन को जो आघात पहुचा उसकी भरपाई होनी मुश्किल दिखाई देती है....

Monday 3 May 2010

"शिव" जी जागिये...आपके राज में हो रही है गौ हत्याए........



मध्य प्रदेश में गौ हत्यायो का दौर बदस्तूर जारी है..... ताजा मामला मध्य प्रदेश के विदिशा जिले का सामने आया है जहाँ मद्दू खेडी में देवली के पास बीते दिनों २ गायो की हत्या कर दी गयी... हत्या करने वाले अभी तक पुलिस की पहुच से बाहर है...


जहाँ एक तरफ सूबे के मुख्य मंत्री शिव राज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में गौ हत्या कम होने और गौ हत्या पर नए कानून को लाये जाने की बात कर रहे है वही दूसरी ओर उन्ही के राज में कुछ दबंग लोग सरे आम गौ हत्यायो को अंजाम देने में लगे हुए है...

यह सब उस मुखिया के शासन में हो रहा है जो अक्सर बड़े बड़े मंचो से गौ हत्या प्रतिबंधित किये जाने के भाषण दिया करते है... ज्यादा समय नही बीता जब भोपाल के रविन्द्र भवन में आयोजित गौ ग्रास सम्मेलन में प्रदेश भर से आये लोगो को संबोधित करते हुए शिवराज ने कहा था प्रदेश में गौ हत्या करने वालो से सरकार कडाई से निपटेगी.....

लेकिन शिव जी के भाषण भाषणों तक ही सिमट कर रह गए है... अगर ऐसा होता तो देवली में गौ माता की दबंग लोग सरे आम हत्या नही करते.....


स्थानीय गाव वालो की माने तो ये वाकया २ दिन पहले का है जहाँ पर सुबह के ४ बजे कुछ दबंग लोगो ने गौ हत्या को अंजाम दिया..गौ हत्या को अंजाम देने वाले व्यक्ति दुल्ले ओर चन्नू नाम के लोग है जिन्होंने पूरे अपने परिवार को साथ लेकर इस घटना को अंजाम दिया...

चौकाने वाली बात तो ये है कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी पुलिस , प्रशासन , स्थानीय जनप्रतिनिधि मौके पर नही पहुचे...स्थानीय विधायक हरी स्प्रे , कुरवाई के उपजिलाधिकारी भी ये सब जानने के बाद भी मौका ऐ वारदात पर नही पहुचे......


इस बारे में पुलिस का रवैया भी सही नही रहा॥ स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि घटना के आरोपियों तक पुलिस नही पहुच पायी है॥ गाव वालो ने ये भी बताया कि इस इलाके में गौ हत्या की ये कोई नयी वारदात नही है...पुलिस ओर प्रशासन के सुस्त रवैये के चलते इलाके में कुछ दबंग लोग खुले आम गौ हत्या का कारोबार करते है...


देवली की इस घटना ने मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार को ये सोचने के लिए विवश कर दिया हैकि उसके मुखिया "शिव" के राज में किस तरह गौ हत्या के कानूनों की धज्जिया उड़ाई जा रही है......