Tuesday 21 August 2012

तस्करों के निशाने पर कीड़ा जड़ी.......

उत्तराखंड गठन के बाद सामरिक दृष्टि  से बेहद संवेदनशील पिथौरागढ़  जिले के उच्च हिमालयी इलाकों में जडी बूटी के तस्करों के गिरोह कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए है ....... मादक पदार्थो और जीव जन्तुओ की तस्करी के लिए सबसे मुफीद माने जाने वाले इस छोटे से राज्य में अब तस्करों के निशाने पर दुर्लभ औषधि  कीडा जडी आ गई है......

बुग्यालों के बीच १३००० फीट की ऊँचाई पर पाई जाने वाली इस औषधि को स्थानीय भाषा में कीडा जडी नाम से जाना जाता है..... वैसे यह "यारसा गम्बू " नाम से लोकप्रिय है..... अन्तर्राष्ट्रीय  बाज़ार में जडी की जबर्दस्त मांग के चलते जिस तरीके से तस्कर इसका अंधाधुन्द दोहन करने में लगे हुए है उसको देखते हुए इसके अस्तित्व  पर सवाल उठ रहे है....... लेकिन राज्य सरकार और वन विभाग तस्करों के सामने नतमस्तक नजर आते है .....

उच्च हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली यह जडी एक ऐसा कवक है जो तितली की प्रजाति "माथ" के लार्वा में पलता है ....... दिलचस्प बात यह है बर्फ़बारी के साथ ही इसका विकास शुरू होता है और बर्फ पिघलने पर तस्कर इसका दोहन करने पहाडियों पर चल निकलते है...... यही वह समय होता है जब कीडा जडी के गुलाबी रंग का निचला हिस्सा भोजन के लिए हिलता डुलता है.....


तस्कर इसका दोहन कर इसको पीसते है और कैप्सूलों में भरकर इंटरनेशनल मार्केट में पहुचाते है...... यौन शक्ति वर्धक होने के साथ ही यह कीडा जडी बाँझपन , दमा , कैन्सर , किडनी , हृदय और फेफडो के रोगों के लिए रामबाण समझी जाती है .....इसके अलावा इसमे कई तरह के विटामिन और खनिज पाए जाते है जो लाभकारी साबित होते है..........
९० के दशक में इसकी विशेषता तिब्बत के व्यापारियों ने भारतीय व्यापारियों को बताई .........तभी से इसके दोहन की शुरूवात हो गई...... इंटरनेशनल मार्केट में इसकी तस्करों को मुहमांगी कीमते मिल जाती है जिसके चलते इसके दोहन की रफ़्तार नही थम रही है...... एक मोटे अनुमान के अनुसार इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत १.५० लाख से २ लाख रुपए तक है ....... दिल्ली में ५० से ७५ लाख तो चाइना में पूरे २ लाख तक की कमाई हो जाती है .......इसकी डिमांड बीजिंग, ताइवान, हांगकांग जैसे शहरों में ज्यादा है .......कई बार तो इन शहरों में मनचाही कीमते मिल जाती है .....



बाज़ार में इसकी बड़ी मांग है और मांग के अनुरूप उतार चदाव आता रहता है .....वन विभाग के पास तस्करों को पकड़ने के लिए इंतजामों की कमी के चलते उत्तराखंड के बुग्यालों में कीडा जडी का अवैध  कारोबार हर वर्ष पूरे  साल के  धड़ल्ले से चलता है ..... जनवरी के हिमपात के बाद तस्करों की सक्रियता इलाके में बढ जाती है...... तस्करों के रास्तो की खोज करना वन विभाग के लिए हमेशा टेडी खीर साबित होता है....

सीमान्त जनपद पिथौरागढ़  की  छिपलाकेदार की पहाडिया यारसागम्बू ( कीड़ा जड़ी ) की तस्करी के लिए कोलार की खाने है...... एक किलो ग्राम यारसा गम्बू में १००० कीडे आते है...... एक कीडे की कीमत १०० से १५० रुपये तक होती है....... बाजार में इसके दामो में उतार चदाव आता रहता है....... धन के मोह में सीमान्त जनपद  के उच्च हिमालयी इलाकों में प्रवास के लिए जाने वाले लोग इसको खोजने महीनो तक जुटे रहते है ...... प्रतिबन्ध की तलवार लटकने का डर ग्रामीणों को सताता रहता है जिस कारण   वह इसको हिमालयी इलाकों में ही औने पौने दामो में तस्करों को बेचकर चले आते है .......फिर इसको तस्कर गुप्त मार्गो के द्वारा इंटरनेशनल मार्केट में पहुचाते है...............

जडी के अवैध दोहन से उत्तराखंड सरकार को वर्षो से करोडो के राजस्व का चूना लग रहा है.... इस बाबत पूछने पर वन विभाग के आला अधिकारियो का कहना है वर्षो से इसकी तस्करी को देखकर विभाग खासा मुस्तैद है..... जिसके चलते संभावित इलाकों में हथियारों से लैस  टीम का गटन हर वर्ष किया जाता है ......

रक्षा अनुसन्धान केन्द्र पिथौरागढ़  के वैज्ञानिको का कहना है उच्च हिमालयी इलाको में पाई जाने वाली जिन जडी बूटियों का उनके द्वारा गहन अध्ययन किया गया उसमे यारसा गम्बू भी शामिल थी ..... वैज्ञानिको ने पाया इसको छोटे आकर के चलते ढूँढ पाना दुष्कर होता है .......यह छोटे आकर में मिलती है ....... उन्होंने इसको न केवल यौन शक्तिवर्धक  बताया गया बल्कि कई बीमारियों की रामबाण दवा से भी नवाजा .....

वैज्ञानिको ने पाया अत्यंत शक्ति वर्धक होने के कारण इसके सेवन से तुंरत फुर्ती आ जाती है जिस कारण  बड़े पैमाने पर एथलीट इसको लेते है .......दिलचस्प बात तो यह है इसको लेने के बाद डोपिंग में यह बात पता नही चलती एथलीट ने कीडा जडी युक्त कैप्सूल का सेवन किया है ......इस लिहाज से देखे तो कई असाध्य बीमारियों का तोड यारसा गम्बू  में है जिस कारण  तस्कर चाहकर भी इसके दोहन से पीछे नही हट पाते......

Monday 6 August 2012

किन्नरों का भुजरिया ....................





भोपाल अपनी गंगा जमुना तहजीब और झीलों की खूबसूरती के लिए जाना जाता है .....कला संस्कृति के गढ़ के रूप में भोपाल का कोई सानी नही है.... साथ ही यहाँ की कई परम्पराए लोगो को सीधे उनकी संस्कृति से जोड़ने का काम करती है.... वैसे भी लोक संस्कृति का सीधा सम्बन्ध मानव जीवन से जुड़ा है....



भोपाल में राखी के त्यौहार के बाद किन्नरों का "भुजरिया " भी इस बात का बखूबी अहसास कराता है......हर साल राखी के बाद होने वाले किन्नरों के इस आयोजन पर पूरे शहरवासियो की नजरे लगी रहती है.....इस आयोजन की लोकप्रियता का अहसास मुझे तब हुआ जब इस बार किन्नरों को देखने के लिए भोपाल में रहने वाले लोगो का पूरा हुजूम सड़को पर निकल आया....


भुजरिया  को मनाने की परम्परा भोपाल में नवाबी दौर से चली आ रही है....इस बारे में किन्नरों से जब मैंने बात की तो उन्होंने बताया अच्छी बारिश को लेकर यह आयोजन भोपाल में हर साल होता है जिसमे निकाले जाने वाले जुलूस में सभी किन्नर बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी करते है....


माना जाता है एक बार भयंकर अकाल पड़ने पर भोपाल के नवाब को किन्नरों की शरण में जाना पड़ा था...बताया जाता है किन्नरों द्वारा छेड़े गए राग मल्हार के फलस्वरूप इन्द्र देव खासे प्रसन्न हो गए और शहर में मूसलाधार बारिश हो गई....उसके बाद से इस आयोजन की परम्परा चल निकली ..... इठलाते हुए जब ये किन्नर जुलूस में शामिल होने सडको पर निकलते है तो मानो पूरा शहर उन्हें देखने सड़को पर उमड़ आता है .... सड़के जाम तक हो जाती है लेकिन ना तो शहरवासी परेशान होते है ना ही किन्नर....इस दौरान लोग सड़को पर निकले किन्नरों को छेड़ते भी है परन्तु बुरा मानने के बजाय किन्नर अपना नया राग मल्हार छेड़ देते है.....


भोपाल में किन्नरों के जुलूस के दौरान किन्नरों का मानवीय चेहरा भी मुझे देखने को मिला ........ समझ से अलग थलग रहने वाले इस वर्ग ने इंसानियत की जो मिसाल पेश की है वह सराहनीय होने के साथ ही अनुकरणीय है .....भोपाल में किन्नरों के भुजरिया  के दौरान कुछ बच्चो को साथ देखकर मै चौंक गया ... बढती जिज्ञासा को शांत करने के लिए किन्नरों के बीच  जा  बैठा ....


 दरअसल किन्नर समाज का अंग होते हुए भी समाज से कटे रहते है.... इस कारण इस समाज के प्रति जिज्ञासा औरभय साथ साथ रहता है....जिसके चलते इस समाज की गतिविधियों का सही से ज्ञान लोगो को नही हो पाता.... इन किन्नरों ने कई मासूम लडकियों को भी गोद ले रखा है....जो अनाथ बच्चो को पढ़ाने लिखाने से लेकर उन्हें खान पान भी उपलब्ध करा रहे है.... राजधानी भोपाल के मंगलवारे और इतवारे में रहने वाले कुछ किन्नरों की ये पहल निश्चित ही समाज के लिए अनुकरणीय है... काश समाज की मुख्य धारा से जुड़े लोग भी अगर इस दिशा में ध्यान दे तो कई लोगो की जिन्दगी रोशन हो सकती है ....


"भुजरिया  " के दौरान निकलने वाला किन्नरों का जुलूस मंगलवारे से शुरू होता है और यह शहर के मुख्य मार्गो से होता हुआ गुफा मंदिर तक पहुचता है....पहले इस मंदिर के पास की पहाड़ी पर एक तालाब था ॥ दुधिया तालाब नामक इस तालाब का अस्तित्व वक्त के साथ खत्म हो गया...परन्तु किन्नरों की ये परम्पराए आज भी जारी है .... शायद ये हमारे देश में ही संभव है जहाँ किन्नर उत्साहपूर्वक आज भी भुजरिया  मनाते , अनाथ बच्चो को गोद लेते है और बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी इस आयोजन में करते है........