Friday 22 February 2013

बजट सत्र के आसरे यू पी ए छेड़ेगी चुनावी तान

जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर के दौरान गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आतंकवाद को भगवा रंग से जोड़कर भाजपा की मुश्किलों को बढाने का ना केवल काम किया बल्कि आर एस एस को भी पहली बार गृह मंत्री के खिलाफ मोर्चाबंदी कराने को मजबूर कर दिया । इसका असर यह हुआ भाजपा ने शिंदे के खिलाफ ना केवल जगह जगह प्रदर्शन  कर उन्हें बयान वापस लेने या फिर भगवा आतंकवाद के खिलाफ सबूत पेश करने की चुनौती  ही  दे डाली । बाद में गृह मंत्री के इस बयान के असर को कांग्रेस ने देर से भांपा और सोनिया की सलाह पर इससे अपने को अलग कर बयान  से कन्नी ही  काट ली ।  हालाँकि दिग्गी राजा, मणि शंकर और हरीश रावत सरीखे खांटी कांग्रेसी नेताओ ने शिंदे की तारीफों में कसीदे पढ़ हमेशा की तरह मुस्लिम वोटरों की बांछें ही खिलाई ।

मौजूदा बजट सत्र से ठीक पहले शिंदे  ने जिस अंदाज में भाजपा के सामने माफ़ी मांगी है  उससे कई सवाल खड़े हुए हैं । मसलन क्या मौजूदा संसद के बजट सत्र  के पहले भाजपा के तगड़े विरोध और सदन के बहिष्कार के चलते तो यह कदम नहीं उठाना पड़ा है ? अगर भगवा आतंक और संघ के खिलाफ ठोस सबूत गृह मंत्रालय के पास पहले से ही थे तो शिंदे उन्हें सामने लाने से क्यों कतरा रहे थे ? क्या भगवा आतंक के आसरे आगामी लोक सभा चुनावो में यू पी ए सरकार अपना जनाधार बचाने की कोशिश कर रही है ? जेहन में यह सारे सवाल इसीलिए कौंध रहे हैं क्युकि पहली बार भाजपा के हिंदुत्व के मसले पर वापस  लौटने और नरेन्द्र मोदी को चुनाव समिति की कमान सौंपने के मद्देनजर कांग्रेस भी संघ की मांद में घुसकर हिन्दुत्व को न केवल अपने अंदाज में  आइना दिखा रही है वरन  कसाब ,अफजल सरीखे मुद्दों को लपककर अपने को भाजपा से बड़ा राष्ट्रवादी बताने पर तुली हुई है और शिंदे, दिग्गी और मणिशंकर सरीखे नेताओ को आगे कर भाजपा से दो दो हाथ करने की ठान रही है और इन सबके बीच शिंदे की माफ़ी के बाद भाजपा ने राहत ली है । कांग्रेस भी इससे बमबम है क्युकि अगर शिंदे माफ़ी नहीं मांगते तो शायद इस बार का बजट सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ जाता । तो क्या माना जाए इस बार बजट सत्र अब हंगामे की भेंट नहीं चढ़ेगा ? लगता ऐसा नहीं है क्युकि लोक सभा चुनावो से ठीक पहले  यह चुनावी बजट केंद्र सरकार के लिए न केवल अहम हो चला है बल्कि विपक्ष भी बहस के लिए उन  55 बिलों पर नजर गढाए बैठा है जो  इस सत्र में पारित होने हैं जिसमे सोनिया के भूमि अधिग्रहण , लोकपाल, खाद्य सुरक्षा और महिला आरक्षण सरीखे ड्रीम बिल   शामिल हैं जो २०१४ के लोक सभा चुनावो से पहले कांग्रेस की चुनावी वैतरणी पार लगा सकते हैं लेकिन यू पी ए के सहयोगियों का इन तमाम बिलों पर गतिरोध अभी भी बना हुआ है और उसके  सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलने की मजबूरी कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती  इस समय बनी हुई है क्युकि शिमला , पचमढ़ी के बाद हाल में राहुल के जयपुर में ट्रेलर के बाद गठबंधन की लीक पर कांग्रेस के चलने के संकेत तो अभी से मिल ही रहे हैं और इस बात की गुंजाइश तो दिख ही रही है वह सहयोगियों को साथ लेकर ही किसी बिल को अमली जामा पहनाएगी ।


इस सत्र के दौरान कई गंभीर मसलो पर हमें चर्चा देखने को मिल सकती है । सत्ता पक्ष  को विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए  खुद को तैयार करना  पड़ सकता है और अगर कहीं चूक हो गई तो विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाकर कांग्रेस की चुनावी वर्ष में चिंता बढ़ा सकता है । वैसे संसदीय राजनीती में यह तकाजा है हर मुद्दे पर सदन में बहस होनी चाहिए लेकिन पिछले कुछ समय से हमारे देश में संसद का हर सत्र शोर शराबे और हंगामे की भेंट ही चढ़ता  जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण  है । यू पी ए २ के पिछले बारह सत्रों में ५००  घंटे से भी  कम काम हुआ है । ज्यादातर दिनों में या तो वाक आउट हुआ है  या बिना चर्चा हुए बिल सदन के पटल पर ना केवल रखे गए हैं बल्कि पारित भी हुए हैं । यह सब देखते हुए इस बार शोर शराबे का अंदेश तो बना ही है क्युकि सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान हमें विपक्षियो के मिजाज को देखकर बहती हवा का पुराना रुख दिख रहा है लेकिन शिंदे की मांफी के बाद यह उम्मीद तो बनी है इस सत्र में सदन का कामकाज सुचारू रूप से चलेगा ।


 वेस्टलैंड हेलीकाप्टर सौदा इस सत्र में कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा कर सकता है । हालाँकि कांग्रेस ने सी बी आई से निष्पक्ष जांच की मांग दोहराई है लेकिन दिल से कांग्रेस इस मामले को लटकाना ही चाहती है वहीँ  भाजपा के जसवंत सिंह द्वारा त्यागी बन्धुओ के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर भाजपा के नीति नियंताओ पर भी सवाल उठा रहा है क्युकि उस दौर को अगर याद करें तो सौदे को अमली जामा पहनाने की कोशिशें एन डी ए के शासन में ही शुरू हुई थी । जो भी हो सी मामले की सच्चाई देश के सामने आनी  चाहिए ।  केवल रक्षा मंत्री के इस्तीफे के नाम पर सदन में हंगामा करना और कार्यवाही बाधित करना ठीक नहीं है । इसके अलावा कोयला घोटाला इस बार भी सदन में उठने का अंदेशा बना हुआ है । इसके तार अजय संचेती से लेकर गडकरी और कांग्रेस नेता प्रकाश जाय सवाल से लेकर कई नेताओ के नाते रिश्तेदारों तक जा रहे हैं और सरकार की जांच ठन्डे बसते   में चली गई है लिहाजा एक बहस की सदन को जरुरत महसूस हो रही है । वही कैग पर सवाल उठाकर कांग्रेस ने एक बार फिर विपक्षी दलों को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है । विपक्ष कह रहा है इस सरकार को संवैधानिक संस्थाओ पर कोई भरोसा नहीं रह गया लिहाजा वह उनके पर कतरने की तैयारी में है ।  इधर महंगाई का मुद्दा भी लम्बे समय से आम आदमी को परेशान  कर रहा है । अगर इस पर सदन में बहस होती है तो गंभीर चर्चा की नौबत आ सकती है । यह बेहद निराशाजनक है केंद्र सरकार  अपने दूसरे कार्यकाल में महंगाई दर पर अंकुश लगाने में नाकामयाब रही है । सरकार  कहती है इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय बाजार जिम्मेदार है लेकिन महंगाई पर यह कोई ठोस उत्तर नहीं है । माना जाता है खाद्य वस्तुओ की बड़ी कीमत के पीछे तेल की बड़ी कीमतें जिम्मेदार हैं लेकिन अब तो तेल की कीमतें घट चुकी हैं । फिर भी ना जाने क्यों यह सरकार कॉरपरेट पर दरियादिली दिखा रही है । आम आदमी को तो सब्सिडी नसीब नहीं हो रही है लेकिन कॉर्पोरेट के आगे यह  सरकार पूरी तरह नतमस्तक है ।   
     यह सवाल यू पी ए से  है आखिर क्यों वह ऐसी नीतियां बनाने में नाकामयाब रही है जिससे हम खाद्यान्न सेक्टर में आत्मनिर्भर हो सकें जबकि वह लगातार ९ वर्षो से सत्ता में बनी हुई है ? इस सत्र में महिला आरक्षण का मसला सदन में फिर से गूंज सकता है । सोनिया ने जिस तरह इसमें रूचि दिखाई है उससे एक बार फिर उम्मीद  नजर आती है लेकिन लालू, मुलायम, माया सरीखे लोग इस पर कैसे राजी होंगे यह अपने में एक बड़ा सवाल जरुर है । महिलाओ की सुरक्षा के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों पर सरकार इसी सत्र में मुहर लगा सकती है । चुनावी वर्ष में दामिनी की मौत और लुटियंस की   दिल्ली में  भारी " फ्लेश माब " का जो कलंक यह यू पी ए सरकार  झेल रही है वह कठोर कानून के जरिये इसे दूर करना चाहती है । महिलाओ की सुरक्षा को लेकर सरकार पहली बार संवेदनशीलता का परिचय दे रही है । वहीँ  लोकपाल का मसला ऐसा है जिस पर यू पी ए की बीते दो बरस से खूब किरकिरी हुई है । पहली बार भ्रष्टाचार के मसले पर उसे इस मसले पर सिविल सोसाईटी से सीधे चुनौती  मिली है । छह राज्यों के विधान सभा चुनावो से ठीक पहले वह एक लोकपाल लाकर चुनावी राह खुद के लिए आसान करना चाहेगी । इस बार के सत्र में सभी की नजरें चिदंबरम और पहली बार रेल बजट ला रहे पवन बंसल पर भी टिकी रहेंगी  । चुनावी साल में दोनों अपने तरकश से आम आदमी को लुभाने की पूरी कोशिश करेंगे । मूल्य वृद्धि और किराये बढाने के बजाए सारा  ध्यान इस दौर में अब आम आदमी की तरफ ही रहेगा क्युकि आम आदमी का हाथ कांग्रेस अपने साथ मानती रही  है । यह अलग बात है संसद से इतर सड़क में केजरीवाल आम आदमी के नाम पर पार्टी बनाकर इस दौर में न केवल कांग्रेस को चुनौती  दे रहे हैं बल्कि वाड्रा से लेकर सलमान खुर्शीद और शीला दीक्षित से लेकर भाजपा की मुश्किलें चुनावी साल में बढ़ा रहे हैं । चिदंबरम इन सबके बीच चुनावी मौसम में जनता के बीच चुनावी बौछार  कर मनमोहनी बजट पेश कर सकते हैं । अल्पसंख्यको और दलितों के लिए जहाँ चुनावी साल में यह सरकार  कोई बड़ा फैसला ले सकती है वहीँ  सस्ती ब्याज दरो को करने और आम आदमी को सस्ती  कार , मकान खरीदने के लिए दिए जाने वाले ऋण की शर्तें आसान करने की दिशा में भी कदम बढ़ा सकते हैं ताकि एक बड़े मध्यम वर्ग को लुभाया जा सके । वहीँ किसानो के लिए कोई बड़ा पैकेज  इस दौर में मिलने की उम्मीद दिख रही है ताकि उन्हें भी खुश किया जा सके और मनमोहनी इकोनोमिक्स की थाप पर उन्हें भी नचाया जा सके । यह अलग बात है खेती बाड़ी आज घाटे का सौदा बन चुकी है । बीते ९ बरस में तीन लाख से ज्यादा किसानो ने आत्महत्या की है । सब्सिडी या बिजली उर्वरक में छूट देकर उनका भला नहीं होने जा रहा । वहीँ बेरोजगारों के लिए इस सत्र में बजट के बहाने नौकरियों का बड़ा पिटारा खुल सकता है । अभिभाषण में प्रणव के संकेत इसकी कहानी  को बखूबी बया  कर रहे हैं ।

कुल मिलकर  यू पी ए २ के केन्द्रीय बजट के रंग लोक सभा चुनावो की बिसात  में पूरी तरह सरोबार होने के आसार हैं और इसी के आसरे यू पी ए २ बजट सत्र में  चुनावी तान  छेड़ेगी इससे भी हम नहीं नकार सकते । देखना होगा क्या इस बार बजट सत्र शांतिपूर्ण ढंग से निपटता है ?

Tuesday 19 February 2013

खतरे की वार्निंग ग्लोबल वार्मिंग ........

 

बीते दिनों  उत्तराखंड  की धर्म नगरी हरिद्वार में अपना जाना हुआ । इलाहाबाद में मित्रो के लाख अनुनय विनय के बाद भी  महाकुम्भ में नहीं जा सका लेकिन हरिद्वार जाकर गंगा में डुबकी लगाई । वहां  गंगा की स्थिति को देखकर काफी दुःख हुआ । करोडो रुपये गंगा की साफ़ सफाई में फूंकने के बाद भी आज गंगा नदी में प्रदूषण की समस्या गंभीर हो गई है |


केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत के संसदीय इलाके में गंगा के नाम पर करोडो रुपये पानी की तरह बहा दिए गए हैं लेकिन फिर भी गंगा मईया की तस्वीर नहीं बदल पायी है ।   गंगा के घाटो का करीब से मुआयना किया तो पता चला लोग गंगा के प्रदूषित पानी से आचमन किये जा रहे थे । हरिद्वार से आगे चलकर  गढ़वाल और फिर कुमाऊ के कुछ जिलो का भ्रमण किया तो पता चला कि उत्तराखंड में मौसम लगातार बदल रहा है । कभी अचानक मौसम में ठंडक आ जाती है तो कभी अचानक गर्मी । हालत इस कदर बेकाबू हो चले हैं जाड़े  के मौसम में गर्मी पड़ रही है और गर्मी का आगमन सही ऋतु में नहीं हो पा रहा । राज्य में कृषि और बागवानी भी इस मौसम के बदलते मिजाज से सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है ।  प्राकृतिक जल स्रोत जहाँ सूखते  जा रहे हैं वहीँ राज्य के कई इलाको में गंभीर जल संकट है । यह स्थिति तब है जब  राज्य को देश का वाटर टैंक कहा जाता है । 

ऊपर की यह तस्वीर  अकेले उत्तराखंड की नहीं पूरे देश और शायद विश्व की बन चुकी है क्युकि पिछले कुछ वर्षो से मौसम का मिजाज लगातार बदलता ही जा रहा है । गर्मी का मौसम शुरू होने को है लेकिन कही भीषण ओला वृष्टि  हो रही है तो कही भारी बर्फबारी और मूसलाधार  बारिश । जब गर्मी होनी चाहिए तब ठण्ड लग रही है जब ठण्ड  पड़नी  चाहिए तो गर्मी लग रही है जो   यह बतलाता है मौसम किस करवट पूरे विश्व में बैठ रहा है ? सुनामी, कैटरीना, रीटा, नरगिस आदि परिवर्तन की इस बयार को  पिछले कुछ वर्षो से  ना केवल बखूबी बतला रहे है बल्कि  गौमुख , ग्रीनलैंड, आयरलैंड और अन्टार्कटिका में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर भी ग्लोबल वार्निंग की आहट को  करीब से  महसूस भी कर रहे हैं ।  इस प्रभाव को हमारा देश भी महसूस कर रहा है ।  पिछले कुछ समय से यहाँ के मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हमें देखने को मिले हैं । असमय वर्षा का होना , सूखा पड़ना, बाढ़ आ जाना , हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं आना तो अब आम बात हो गयी है । " सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामला "  कही जाने वाली हमारी माटी में कभी इन्द्रदेव महीनो तक अपना कहर बरपाते हैं तो कहीं इन्द्रदेव के दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं । 

  आज पूरे विश्व में वन लगातार सिकुड़ रहे हैं तो वहीँ किसानो का भी इस दौर में खेतीबाड़ी से सीधा मोहभंग हो गया है । अधिकांश जगह पर जंगलो को काटकर जैव ईधन जैट्रोफा के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है तो वहीँ पहली बार जंगलो की कमी से वन्य जीवो के आशियाने भी सिकुड़ रहे हैं जो  वन्य जीवो की संख्या में आ रही गिरावट के  जरिये महसूस की जा सकती है वहीँ औद्योगीकरण की आंधी में कार्बन के कण वैश्विक स्तर पर तबाही का कारण बन रहे हैं तो इससे प्रकृति में एक बड़ा  प्राकृतिक  असंतुलन पैदा हो गया है और इन सबके मद्देनजर हमको यह तो मानना ही पड़ेगा जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से हो रहा है और यह सब ग्लोबल वार्मिंग की आहट है । औद्योगिक क्रांति के बाद जिस तरह से जीवाश्म ईधनो  का दोहन हुआ है उससे वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा में अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी है । वायुमंडल में बढ़ रही ग्रीन हाउस गैसों की यही मात्र ही ग्लोबल वार्मिंग के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है । कार्बन डाई आक्साइड के साथ ही मीथेन , क्लोरो फ्लूरो कार्बन भी जिम्मेदार  है जिसमे 55 फीसदी कार्बन डाई आक्साइड है । 

 जलवायु परिवर्तन पर आई पी सी सी ने अपनी रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है 2015  तक विश्व की सतह का औसत तापमान 1.1से 6.4  डिग्री सेन्टीग्रेड तक बढ़ जाएगा जबकि समुद्रतल 18 सेंटीमीटर से 59 सेन्टीमीटर तक ऊपर उठेगा । रिपोर्ट के अनुसार 2080 तक 3.20  अरब लोगो को पीने का पानी नहीं मिलेगा  और लगभग 60   करोड़  लोग भूख से मारे जायेंगे । अगर यह सच साबित हुआ तो यह  दुनिया के सामने किसी भीषण संकट से कम नहीं होगा । 


कार्बन डाई आक्साइड के सबसे बड़े उत्सर्जक अमेरिका ने पहले कई बार क्योटो प्रोटोकोल पर सकारात्मक पहल की बात बड़े बड़े मंचो से दोहराई जरुर है लेकिन आज भी असलियत यह है जब भी इस पर हस्ताक्षर करने की बारी आती है तो वह इससे साफ़ मुकर जाता है । अमरीका  के साथ विकसित देशो  की बड़ी  जमात में आज भी कनाडा, जापान जैसे देश खड़े हैं जो किसी भी तरह अपना उत्सर्जन कम करने के पक्ष में नहीं दिखाई देते । विकसित देश अगर यह सब करने को राजी हो जाएँ तो उन्हें अपने जी डी पी के बड़े हिस्से का त्याग करना पड़ेगा जो तकरीबन  5.5   प्रतिशत बैठता है और यह  सब  दूर की गोटी लगती है वह यह सब करने का माद्दा रखते हैं ।  
इधर अधिकांश वैज्ञानिको का मानना है कि कारण डाई आक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए विकसित देशो को किसी भी तरह  फौजी राहत दिलाने के लिए कुछ उपाय  तो अब करने ही होंगे नहीं तो दुनिया के सामने एक बड़ा भीषण संकट पैदा हो सकता है और यकीन जान लीजिये अगर विकसित देश अपनी पुरानी जिद पर अड़े रहते हैं तो तापमान में भारी वृद्धि दर्ज होनी शुरू हो जायेगी ।  वैसे इस बढ़ते तापमान का शुरुवाती असर हमें अभी से ही दिखाई  देने लगा है ।  हिमालय के ग्लेशियर अगर इसी गति से पिघलते रहे  तो 2030 तक अधिकांश ग्लेशियर जमीदोंज हो जायेंगे । नदियों का जल स्तर गिरने लगेगा तो वहीँ भीषण जल संकट सामने आएगा । वैसे ग्रीनलैंड में बर्फ की परत पतली हो रही है वहीँ उत्तरी ध्रुव में आर्कटिक इलाके की कहानी भी  किसी से शायद ही अछूती है । बर्फ पिघलने से समुद्रो का जल स्तर बढ़ने लगा है जिस कारण  आने वाले समय में कई इलाको के डूबने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता  । 

कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा न केवल उपरी समुद्र  में बल्कि निचले हिस्से में भी बढती जा रही है बल्कि पशु पक्षियों में , जीव जन्तुओ में भी इसका साफ़ असर परिवर्तनों के रूप में  देखा जा सकता है जिनके नवजात समय से पूर्व ही इस दौर में काल के गाल में समाते जा रहे हैं ।  कई प्रजातियाँ इस समय संकटग्रस्त हो चली हैं जिनमे बाघ, घडियाल , गिद्ध , चीतल , भालू, कस्तूरी मृग, डाफिया, घुरड़, कस्तूरी मृग सरीखी प्रजातियाँ शामिल हैं । लगातार बढ़ रहे तापमान से हिन्द महासागर में प्रवालो को भारी नुकसान  झेलना पड़ रहा है । सूर्य से आने वाली पराबैगनी विकिरण को रोकने वाली ओजोन परत में छेद दिनों दिन गहराता ही जा रहा है । हम सब इन बातो  से इस दौर में बेखबर हो चले हैं क्युकि मनमोहनी इकोनोमिक्स की थाप पर आर्थिक सुधारों पर चल रहे इस देश में लोगो को चमचमाते मालो की चमचमाहट ही दिख रही है । ऐसे में प्रकृति से जुड़े मुद्दों की लगातार अनदेखी हो रही है । यह सवाल मन को कहीं ना कहीं कचोटता जरुर है ।

   ताजा आंकड़ो को अगर आधार बनाये तो 2030  तक पृथ्वी का तापमान 6  डिग्री बढ़ जायेगा । साथ ही 2020 तक भारत में पानी का बड़ा संकट पैदा होने जा रहा है । वहीँ पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग  का असर दिख रहा है जिसके चलते अफ्रीका में खेती योग्य भूमि आधी हो जायेगी । अगर ऐसा हुआ तो खाने को लेकर एक सबसे बड़ा संकट पूरी दुनिया के सामने आ सकता है क्युकि लगातार मौसम का बदलता मिजाज उनके यहाँ भी अपने रंग दिखायेगा ।  प्राकृतिक असंतुलन को बढाने में प्रदूषण की भूमिका भी किसी से अछूती है । कार्बन डाई आक्साइड , कार्बन  मोनो आक्साइड, सल्फर  डाई आक्साइड , क्लोरो फ्लूरो कार्बन के चलते आम व्यक्ति सांस लेने में कई जहरीले रसायनों को ग्रहण कर रहा है । नेचर पत्रिका ने अपने हालिया शोध में पाया है विश्वभर में तकरीबन एक करोड़ से ज्यादा लोग जहरीले रसायनों को अपनी सांस में ग्रहण कर रहे हैं । 

वायुमंडल में इन गैसों के दूषित प्रभाव के अलावा पालीथीन की वस्तुओ के प्रयोग से कृषि योग्य भूमि की उर्वरता कम हो रही है । यह ऐसा पदार्थ है जो जलाने पर ना तो गलता है और ना ही सड़ता है । साथ ही फ्रिज , कूलर और एसी  वाली कार्यसंस्कृति  के  अत्यधिक प्रयोग , वृक्षों की कटाई के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है । जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण तो पहले से ही अपना प्रभाव दिखा रहे हैं । अन्तरिक्ष कचरे के अलावा देश के अस्पतालों से निकलने वाला मेडिकल कचरा भी पर्यावरण को नुकसान पंहुचा रहा है जो कई बीमारयो को भी खुला आमंत्रण दे रहा है ।



  ग्लोबल वार्मिंग  के  कारण मौसम में तेजी से तब्दीली हो रही है । वायुमंडल जहाँ गरमा रहा है वहीँ धरती का जल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है । इसका ताजा उदहारण भारत का सुन्दर वन है जहाँ जमीन नीचे धंसती ही जा रही है । समुद्र का जल स्तर जहाँ बढ़ रहा है वहीँ कई बीमारियों के खतरे भी बढ़ रहे हैं । एक शोध के अनुसार समुद्र का जल स्तर 1.2से 2.0 मिलीमीटर  के स्तर तक जा पहुंचा है । यदि यही गति जारी रही तो उत्तरी ध्रुव की बर्फ पूरी तरह पिघल जाएगी । कोलोरेडो विश्वविद्यालय की मानें तो अन्टार्कटिका में ताप  दशमलव 5 डिग्री की दर से बढ़ रहा है । इस चिंता को समय समय पर यू एन ओ महासचिव बान की मून भी जाहिर कर चुके हैं ।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए ईमानदारी से  सभी देशो को मिल जुलकर प्रयास करने की जरुरत है । दुनिया के देशो को अमेरिका के साथ विकसित देशो पर दबाव बनाना चाहिए । अमेरिका की दादागिरी पर रोक लगनी जरुरी है । साथ ही उसका भारत सरीखे विकास शील देश पर यह आरोप लगाना भी गलत है कि विकास शील देश इस समय बड़े पैमाने पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं । ग्लोबल वार्मिंग का दोष एक दूसरे  पर मडने के बजाए सभी को इस समय अपने अपने देशो में उत्सर्जन कम करने के लिए एक लकीर खींचने की जरुरत है क्युकि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या अकेले विकासशील देशो की नहीं विकसित देशो की भी है जिनका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा योगदान रहा है । यकीन जान लीजिये अगर अभी भी नहीं चेते तो यह ग्लोबल वार्मिंग  पूरी दुनिया के लिए  आखरी वार्निंग साबित हो सकती है ।

Tuesday 12 February 2013

वेलेन्टाइन डे : प्यार का पंचनामा

21 साल की  कविता  हाथो में गुलाब का फूल लिए कनाट  पेलेस  में  पालिका बाजार के सेंट्रल पार्क में अपने प्रेमी के आने के इंतजार में  बैठी है ।  उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस इंतजारी के मायने इस दौर में क्या हैं ?  यह सब  वेलेन्टाइन डे की तैयारी के लिए किया जा रहा है ।  पिछले कुछ समय से  ग्लोबलाइज्ड  समाज में प्यार भी ग्लोबल ट्रेंड का हो गया है । आज जहाँ इजहार और इकरार करने के तौर तरीके बदल गए हैं वहीँ  इंटरनेट के इस दौर में प्यार भी बाजारू  हो चला है । कनाट  पेलेस के ऐसे दृश्य आज देश के हर गाँव  और कमोवेश हर कस्बे में देखने को मिल रहे हैं क्युकि पहली बार शहरी चकाचौंध  से इतर  प्यार का यह उत्सव एक बड़ा बाजार  को अपनी गिरफ्त में ले चूका है ।   हर जगह विदेशी संस्कृति पूत की भांति पाव पसारती जा रही है ।  हमारे युवाओ को लगा वैलेंटाइन का चस्का भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है । विदेशी संस्कृति की गिरफ्त में आज हम पूरी तरह से नजर आते है तभी तो शहरों से लेकर कस्बो तक वैलेंटाइन का जलवा देखते ही बनता है । आज आलम यह है यह त्यौहार भारतीयों में तेजी से अपनी पकड़ बना रहा है।

वैलेंटाइन के चकाचौंध पर अगर दृष्टि  डाले तो इस सम्बन्ध में कई किस्से प्रचलित है ।  रोमन कैथोलिक चर्च की माने तो यह "वैलेंटाइन "अथवा "वलेंतिनस " नाम के तीन लोगो को मान्यता देता है जिसमे से दो के सम्बन्ध वैलेंटाइन डे से जोड़े जाते है लेकिन बताया जाता है इन दो में से भी संत " वैलेंटाइन " खास चर्चा में रहे  । कहा जाता है संत वैलेंटाइन प्राचीन रोम में एक धर्म गुरू थे ।  उन दिनों वहाँपर "कलाउ डीयस" दो का शासन था ।  उसका मानना था अविवाहित युवक बेहतर सैनिक  हो सकते है क्युकि युद्ध के मैदान में उन्हें अपनी पत्नी या बच्चों की चिंता नही सताती  । अपनी इस मान्यता के कारण उसने तत्कालीन रोम में युवको के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया...

किन्दवंतियो की माने तो संत वैलेंटाइन के क्लाऊ डियस के इस फेसले का विरोध करने का फैसला  किया ... बताया जाता  है  वैलेंटाइन ने इस दौरान कई युवक युवतियों का प्रेम विवाह करा दिया ।  यह बात जब राजा को पता चली तो उसने संत वैलेंटाइन को १४ फरवरी को फासी की सजा दे दी । कहा जाता है  संत के इस त्याग के कारण हर साल १४ फरवरी को उनकी याद में युवा "वैलेंटाइन डे " मनाते है ।

कैथोलिक चर्च की एक अन्य मान्यता के अनुसार एक दूसरे संत वैलेंटाइन की मौत प्राचीन रोम में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों से उन्हें बचाने के दरमियान हो गई  । यहाँ इस पर नई मान्यता यह है  ईसाईयों के प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले इस संत की याद में ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता है । एक अन्य किंदवंती के अनुसार वैलेंटाइन नाम के एक शख्स ने अपनी मौत से पहले अपनी प्रेमिका को पहला वैलेंटाइन संदेश भेजा जो एक प्रेम पत्र था  । उसकी प्रेमिका उसी जेल के जेलर की पुत्री  थी जहाँ उसको बंद किया गया था ।  उस वेलेंन टाइन  नाम के शख्स  ने प्रेम पत्र के अंत में लिखा  " फ्रॉम यूअर  वेलेंनटाइन "  । आज भी यह वैलेंटाइन पर लिखे जाने वाले हर पत्र के नीचे लिखा रहता है ...

यही नही वैलेंटाइन के बारे में कुछ अन्य किन्दवंतिया भी है  । इसके अनुसार तर्क यह दिए जाते है प्राचीन रोम के  प्रसिद्ध  पर्व "ल्युपर केलिया " के ईसाईकरण की याद में मनाया जाता है  । यह पर्व रोमन साम्राज्य के संस्थापक रोम्योलुयास और रीमस की याद में मनाया जाता है  ।  इस आयोजन पर रोमन धर्मगुरु उस गुफा में एकत्रित होते थे जहाँ एक मादा भेडिये ने रोम्योलुयास और रीमस को पाला था इस भेडिये को ल्युपा कहते थे और इसी के नाम पर उस त्यौहार का नाम ल्युपर केलिया पड़ गया ।  इस अवसर पर वहां बड़ा आयोजन होता था ।  लोग अपने घरो की सफाई करते थे साथ ही अच्छी फसल की कामना के लिए बकरी की बलि देते थे ।  कहा जाता है प्राचीन समय में यह परम्परा खासी लोक प्रिय हो गई...

एक अन्य किंदवंती यह कहती है १४ फरवरी को फ्रांस में चिडियों के प्रजनन की शुरूवात मानी जाती थी जिस कारण खुशी में यह त्यौहार वहा प्रेम पर्व के रूप में मनाया जाने लगा  । प्रेम के तार रोम से   भी  सीधे जुड़े नजर आते है  । वहा पर क्यूपिड को प्रेम की देवी के रूप में पूजा जाने लगा जबकि यूनान में इसको इरोश के नाम से जाना जाता था । प्राचीन वैलेंटाइन संदेश के बारे में भी लोगो में   एकरूपता नजर नही आती । कुछ ने माना है  यह इंग्लैंड के राजा ड्यूक ने  लिखा जो आज भी वहां के म्यूजियम में रखा हुआ है ।  ब्रिटेन की यह आग आज भारत में भी लग चुकी है । अपने दर्शन शास्त्र में भी कहा गया है " जहाँ जहाँ धुआ होगा वहा आग तो होगी ही " सो अपना भारत भी इससे अछूता कैसे रह सकता है...?

युवाओ में वैलेंटाइन की खुमारी सर चढ़कर  बोल रही है ।  इस दिन के लिए सभी पलके बिछाये बैठे रहते हैं ।   भईया प्रेम का इजहार जो करना है ? वैलेन्टाइन प्रेमी  इसको प्यार का इजहार करने का दिन बताते है ।  यूँ तो प्यार करना कोई गुनाह नही है लेकिन जब प्यार किया ही है तो इजहार करने मे देर नही होनी चाहिए लेकिन अभी का समय ऐसा है जहाँ युवक युवतिया प्यार की सही परिभाषा नही जान पाये है । वह इस बात को नही समझ पा रहे है प्यार को आप एक दिन के लिए नही बाध सकते ।वह तो  प्यार को हसी मजाक का खेल समझ रहे है ।  हमारे परम मित्र पंकज चौहान कहते है आज का प्यार मैगी के नूडल जैसा बन गया है जो दो मिनट चलता है ।  सच्चे प्रेमी के लिए तो पूरा साल प्रेम का प्रतीक बना रहता है  लेकिन आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल चुकी है । इसका प्रभाव यह है 1 4 फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया गया है जिसके चलते संसार भर के "कपल "प्यार का इजहार करने को उत्सुक रहते है ।

आज १४ फरवरी का कितना महत्त्व बढ गया है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है इस अवसर पर बाजारों में खासी रोनक छा जाती है । गिफ्ट सेंटर में उमड़ने वाला सैलाब , चहल पहल इस बात को बताने के लिए काफी है यह किस प्रकार आम आदमी के दिलो में एक बड़े पर्व की भांति अपनी पहचान बनने में कामयाब हुआ है । इस अवसर पर प्रेमी होटलों , रेस्ताराओ में देखे जा सकते है । प्रेम मनाने का यह चलन भारतीय संस्कृति को चोट पहुचाने का काम कर रहा है ।

  यूं तो हमारी संस्कृति में प्रेम को परमात्मा का दूसरा रूप बताया गया है अतः प्रेम करना गुनाह और प्रेम का विरोधी होना सही नही होगा लेकिन वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह का भोड़ापन , पश्चिमी परस्त विस्तार हो रहा है वह विरोध करने लायक ही है  । वैसे भी यह प्रेम की स्टाइल भारतीय जीवन मूल्यों से किसी तरह मेल नही खाती ।आज का वैलेंटाइन डे भारतीय काव्य शास्र में बताये गए मदनोत्सव का पश्चिमी संस्करण प्रतीत होता है लेकिन बड़ा सवाल जेहन में हमारे यह आ रहा है क्या आप प्रेम जैसे चीज को एक दिन के लिए बाध सकते है? शायद नही । पर हमारे अपने देश में वैलेंटाइन के नाम का दुरूपयोग किया जा रहा है । वैलेंटाइन के फेर में आने वाले प्रेमी भटकाव की राह में अग्रसर हो रहे है । एक समय ऐसा था जब राधा कृष्ण , मीरा वाला प्रेम हुआ करता था जो आज के वैलेंटाइन प्रेमियों का जैसा नही होता था । आज लोग प्यार के चक्कर में बरबाद हो रहे है। हीर रांझा, लैला मजनू रोमियो जूलियट  के प्रसंगों का हवाला देने वाले हमारे आज के प्रेमी यह भूल जाते है मीरा वाला प्रेम सच्ची आत्मा से सम्बन्ध रखता था ...

आज तो  प्यार बाहरी आकर्षण की चीज बनती जा रही है । प्यार को गिफ्ट और पॉकेट  में तोला जाने लगा है । वैलेंटाइन के प्रेम में फसने वाले कुछ युवा सफल तो कुछ असफल साबित होते है । जो असफल हो गए तो समझ लो बरबाद हो गए क्युकि यह प्रेम रुपी "बग" बड़ा खतरनाक है । एक बार अगर इसकी जकड में आप आ गए तो यह फिर भविष्य में भी पीछा नही छोडेगा । असफल लोगो के तबाह होने के कारण यह वैलेंटाइन डे घातक बन जाता है...

वैलेंटाइन के नाम पर आज हमारे समाज में  जिस तरह की उद्दंडता हो रही है वह चिंतनीय ही है ।  इसके नाम पर कई बार अश्लील हरकते भी  देखी जा सकती है । संपन्न तबके साथ आज का मध्यम वर्ग और अब निम्न तबका भी  इसके मकड़ जाल में फसकर अपना पैसा और समय दोनों ख़राब करते जा रहे है ।   आज वैलेंटाइन की स्टाइल बदल गई है ।  गुलाब गिफ्ट दिए ,पार्टी में थिरके बिना काम नही चलता ।  यह मनाने के लिए आपकी जेब गर्म होनी चाहिए । यह भी कोई बात हुई क्या जहाँ प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जेब की बोली लगानी पड़ती हो ?  कभी कभार तो अपने साथी के साथ घर से दूर जाकर इसको मनाने की नौबत आ जाती है ।  डी जे की थाप पर थिरकते रात बीत जाती है ।  प्यार की खुमारी में शाम ढलने का पता भी नही चलता जिसके चलते समाज में क्राइम भी क्राइम भी बढ़  रहे हैं । 

आज के समय में वैलेंटाइन प्रेमियों की तादात बढ रही है ।  साल दर साल ... इस बार भी प्रेम का सेंसेक्स पहले से ही कुलाचे मार रहा है. । वैलेंटाइन ने एक बड़े उत्सव का रूप ले लिया है ।  मॉल , गिफ्ट, आर्चीस , डिस्को थेक, मैक डोनल्स  पार्टी   का  आज इससे चोली दामन का साथ बन गया है ।  अगर आप में यह सब कर सकने की सामर्थ्य नही है तो आपका प्रेमी नाराज । बस फिर प्रेम का  द  एंड समझे  । कॉलेज के दिनों से यह चलन चलता आ रहा है ।  अपने आस पास कालेजो में भी ऐसे दृश्य दिखाई देते है ।  पदाई में कम मन लगता है । कन्यायो पर टकटकी पहले लगती है । पुस्तकालयो में किताबो पर कम नजर लडकियों पर ज्यादा जाती है।  नोट्स के बहाने कन्याओ से मेल जोल आज की  जनरेशन  बढाती है । जिधर देखो वहां लडकियों को लाइन मारी जाती है ।  लडकियां  भी गिव एंड टेक के फार्मूले  को अपनाती हैं ।  

 प्यार का स्टाइल समय बदलने के साथ बदल रहा है ।  वैलेंटाइन प्रेमी  भी हर साल बदलते  ही जा रहे है ।आज   तो वैलेंटाइन मनाना सबकी नियति बन चुकी है  । आज प्यार की परिभाषा बदल गई है ।  वैलेंटाइन का चस्का हमारे युवाओ में तो सर चदकर बोल रहा है लेकिन उनका प्रेम आज आत्मिक नही होकर छणिक बन गया है ।  उनका प्यार पैसो में तोला जाने लगा है । आज की युवा पीड़ी को न तो प्रेम की गहराई का अहसास है न ही वह सच्चे प्रेम को परिभाषित कर सकती   है ।  उनके लिए प्यार मौज मस्ती और सैर सपाटे  का खेल बन गया है जहाँ बाजार में प्यार नीलाम हो गया है और पूरे विश्व में इस दिन मुनाफे का बड़ा कारोबार किया जा रहा है ।