पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे ममता , जयललिता और भाजपा के लिए खास ही नहीं ऐतिहासिक भी रहे। पश्चिम बंगाल में ममता जहाँ पुराने वाम दुर्ग को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने में सफल हुई वहीँ तमिलनाडु में जया की फिर से सत्ता में वापसी हुई । कांग्रेस असम में हैट्रिक लगाने के बाद पूरी तरह साफ़ हो गई तो केरल में भी उसे करारी हार का सामना करना पड़ा । द्रमुक कांग्रेस की लाज पुदुचेरी ने बचाई | इन तमाम नतीजों के संकेत साफ हैं कि आज के वोटर का मिजाज बदल रहा है । अब वह विकास और स्थिर सरकार के लिए मतदान कर रहा है । 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साफ संकेत दिए हैं। मसलन कांग्रेस सिकुड़ रही है और राज्यों में सत्ता से एक एक करके बेदखल होकर कमजोर हो रही है वहीँ भाजपा असम में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करने के साथ दक्षिण के राज्यों में अपने वोट बैंक को बढ़ा रही है । पश्चिम बंगाल में अपनी संख्या में बढ़ोत्तरी और केरल में खाता खोलकर भाजपा ने दिल्ली बिहार की करारी पराजय पर मरहम लगा दिया है वहीँ पश्चिम बंगाल के जनादेश ने इशारा किया है कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर भी वामपंथी दल ढलान पर हैं | कांग्रेस के लिए थोड़ी राहत पुदुचेरी ने दी है |
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात पश्चिम बंगाल में ममता की दो तिहाई बहुमत से जीत है | वाम दुर्ग के पतन के साथ ही यहाँ पर कांग्रेस वाम गठजोड़ इस चुनाव में पूरी तरह ढह गया । कांग्रेस इस चुनाव में जिस तरह साफ़ हुई है उससे पार्टी के भीतर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं | आज देश में कांग्रेस जहाँ 6 फीसदी भू भाग पर सिमट चुकी है वहीँ भाजपा की ताकत बढ़कर अब 36 फीसदी भू भाग तक पहुँच चुकी है | इन नतीजों के बाद बीजेपी का राज 9 राज्यों में हो जाएगा | इसके साथ ही बीजेपी की सरकार देश के 36 फीसदी आबादी पर होगी, एनडीए गठबंधन की बात करें तो यह आंकड़ा 43 के पार पहुँच गया है |
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान दिया था और लगता है कि यह नारा सही साबित हो रहा है| कांग्रेस के लिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजे सबसे बुरे रहे | पश्चिम बंगाल में अप्रत्याशित कुछ भी नहीं रहा। वहां ममता के किला फतह करने और वाम दुर्ग के ध्वस्त होने का अनुमान एग्जिट पोलों में पहले से ही लगाया जा रहा था। इस सूबे में वाम शासन वापस आना अब दूर की गोटी लगता है । कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद भी उसका वोट प्रतिशत ना बढ़ना अब उसके कैडर के सामने एक बड़ी चुनौती है । ममता बनर्जी की तृणमूल ने दो तिहाई बहुमत हासिल किया। तृणमूल सिर्फ अपने बलबूते बहुमत ले आयी । लंबे संघर्ष के बाद ममता बनर्जी का दूसरी बार बहुमत के साथ राइटर्स बिल्डिंग में बैठने का सपना सच हो गया। अपनी विजय को ममता ने मां, माटी और मानुष की जीत बताया है। एक दौर में पश्चिम बंगाल में शासन मतलब वाम का शासन हो गया था। उसने साढ़े तीन दशकों तक बदलाव की बयार को रोके रखा था। उसकी कमाल की किलेबंदी थी। राज्य के कोने-कोने में जाल फैला रखा था। जिसे उधेड़ पाना मुश्किल था। मगर ममता की आंधी से सब कुछ तहस-नहस हो गया। न किला बचा, न कैडर, न तिकड़म और जाल-ताल। कांग्रेस के साथ गठबंधन का भी वोटरों ने जनाजा निकाल दिया |
बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की | उनकी बादशाहत को लेफ्ट और कांग्रेस मिलकर भी चुनौती नहीं दे सका | ममता ने चुनाव में विकास के नारे को जोर-शोर से उठाया | आम जनता और गरीबों के लिए वह कई योजनाएं लेकर आईं | ममता की जीत में राज्य की 30 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी और मुस्लिम वोट बैंक का भी अहम रोल रहा | इसके अलावा दीदी की अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला मतदाताओं में भी गहरी पैठ थी | ममता को इन लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया| विपक्ष ने शारदा घोटाले और नारद स्टिंग और विवेकानंद फ्लाईओवर का मुद्दा भी इस चुनाव में जोर शोर से उछाला था लेकिन वोटरों ने इसे नकार दिया | ममता को इस चुनाव में 47% वोट हासिल हुए वहीँ कांग्रेस को करीब 12 फीसदी वोट मिले | लेफ्ट को करीब 20 फीसदी से ज्यादा वोट मिले | बंगाल जीतने का श्रेय ममता बनर्जी को जाता है जिनकी लोकप्रियता ने आज भी ग्रामीण इलाकों में उनके वोट बैंक को सुरक्षित रखा बल्कि जनता ने भी उनके विकास कार्यो पर अपनी मुहर लगाई ।
तमिलनाडु में जय ललिता की वापसी भी दिलचस्प है ।तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और द्रविड़ मनेत्र कड़गम द्रमुक पुराने प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। दोनों के हाथ में सत्ता आती जाती रहती हैऔर यहाँ सत्ता हर पांच बरस में बदलती ही रही है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका | अम्मा की जीत ने 50 और 60 के दशक की यादें ताजा करने के साथ ही 80 के दशक में एम जी आर के करिश्मे की याद दिला दी । 28 साल बाद तमिलनाडु में कोई पार्टी दोबारा सत्ता में आई है | अम्मा ने पहले पिछला विधानसभा चुनाव जीता। इसके बाद मुख्य विपक्षी पार्टी के दिग्गज नेता 2 जी स्पेक्ट्रम की चपेट में आ गये। इसने अम्मा के लिए सारा मैदान खोल दिया | फिर लोक सभा चुनावों में अपनी सीटों में इजाफा कर दिया | इस चुनाव में जयललिता को जहाँ 41 फीसदी वोट मिले वहीँ डीएमके को 31 और कांग्रेस को 6.5 फीसदी | बीजेपी भी 2 फीसदी वोट अपने नाम कर गई | तमिल जनता ने जया के विकास कार्यो और उनकी योजनाओं पर अपनी मुहर लगाकर यह साफ़ कर दिया आज के चुनावों में विकास एक बड़ा मुद्दा बन गया है |
वहीँ असम के नतीजे जरूर अहम हैं जहां कांग्रेस का सफाया इस अंदाज में होगा इसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी । गोगोई अपने दम पर सरकार बनाने का सब्जबाग़ केन्द्रीय नेतृत्व को दिखा रहे थे लेकिन एंटी इन्कम्बैंसी ने उनका खेल इस बार बिगाड़ दिया । साथ ही भाजपा की सधी हुई रणनीति से कांग्रेस असम में चित्त हो गई । इन नतीजों के साफ संकेत हैं कि जनता को अब विकास चाहिए चाहे वो कोई भी दल क्यों न हो। विचारधारा का जमाना बीत गया। दलों के नामों का भी कोई खास मतलब नहीं रहा | इस बार बीजेपी गठबंधन को 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं | इसका बड़ा कारण कांग्रेस और बदरुद्दीन की ए आई यू डी एफ का अलग अलग लड़ना रहा जिससे दोनों के वोट बैक में बिखराव का सीधा फायदा भाजपा को मिला | साथ ही सर्वानन्द सोनेवाल के चेहरे को आगे कर भाजपा ने अपना मिशन असम पहले ही चला दिया था जिसके चेहरे का सीधा लाभ भाजपा को मिला | लोक सभा में जहाँ भाजपा ने 7 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था वहीँ असम में सरकार बनाकर उसने नया इतिहास रच दिया |कांग्रेस से लगभग चार गुना सीटें लाना भाजपा की मजबूरी के साथ कांग्रेस की कमजोरी की ओर भी इशारा करता है। भाजपा और संघ के कैडर में इसे लेकर एक नया जोश भी है क्युकि असम से वह पूर्वोत्तर के पडोसी राज्यों में भी अपनी अखिल भारतीय पहचान को बना सकती है |
पश्चिम बंगाल की तरह केरल में भी यू डी एफ शासन हाथ से फिसला है। केरल विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में वाम मोर्चा के समर्थन वाली एलडीएफ को जीत मिली है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला यू डी एफ को इस चुनाव में करारी शिकस्त मिली है | केरल के मतदाताओं का यह मिजाज रहा है कि वे सत्ता पार्टी को रिपोर्ट नहीं करतै। यहां अपने गढ़ में वामपंथी ने अपनी थोड़ी बहुत प्रतिष्ठा बचा ली है जो पश्चिम बंगाल में गंवाई है। यहां एलडीएफ को यू डी एफ से दो गुनी सीटें मिली है।एल डी एफ की जीत को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीत के तौर पर देखा जा सकता है और तमिलनाडु, पुडुचेरी के नतीजे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि मतदाता भ्रष्टाचार बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। लेकिन असम में कांग्रेस की हैट्रिक यह बताती है कि वहां स्थानीय विकास अब चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। पुडुचेरी में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी। 30 सीट वाले इस केन्द्र शासित प्रदेश में कांग्रेस (एनआई) और एडीएम के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। कांग्रेस केवल एक ही सीट पर जीत हासिल कर पाई है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहे। उनके परिणामों को केन्द्र की पार्टी कांग्रेस की सफलता-असफलता से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
पुदुचेरी में इस बार द्रमुक और कांग्रेस गठबंधन की जीत हुई है | इस जीत के साथ ही कांग्रेस ने रंगासामी से बदला ले लिया है | रंगासामी ने एन आई एन आर सी का गठन कांग्रेस से अलग होकर ही किया था | पुदुचचेरी के इस विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी एआईएनआरसी 30 में से महज 8 सीटें ही जीत पाई और तीन बार मुख्यमंत्री रहे एन रंगासामी अपनी पार्टी को हार से नहीं बचा पाए | कुल मिलाकर चार राज्य के विधानसभा चुनाव के नतीजों से कांग्रेस ने दो राज्य असम और केरल गंवा दिए। तमिलनाडु में निराशा मिली है। पश्चिम बंगाल में उनकी भद्द पिटी है। भाजपा के लिए ये अच्छे दिनों की शुरुवात है लेकिन 2017 में यू पी , पंजाब , उत्तराखंड सरीखे कई राज्यों में यह मैजिक कितना चल पाता है यह देखने वाली बात होगी |