Friday 15 November 2013

एक भरोसो- एक आस-एक विश्वास अरविन्द केजरीवाल

जब सारी व्यवस्था ही लूट खसोट की पोषक बन जाए | शासक वर्ग सत्ता की ठसक दिखाते हुए सत्ता के मद में चूर हो जाए और आम आदमी के सरोकार हाशिये पर चले जाए तो ऐसे में रास्ता किस ओर जाए और किया भी क्या जाए "" ?
          
दिल्ली  के नांगलोई  इलाके से ताल्लुक रखने वाले मंजीत कुमार जब मौजूदा व्यवस्था से थक हार कर आक्रोश में यह जवाब देते हैं तो भारतीय राजनीती के असल स्तर का पता चलता है | कांग्रेस के युवराज के बजाए अब वह राजनीती के नए युवराज अरविन्द  केजरीवाल के झाड़ू को साथ लेकर दिल्ली की सडको पर इन दिनों निकले  हैं | देश के हर राजनीतिक दल से उनका मोहभंग हो गया है । उनकी माने तो सत्ता में आने से पहले हर राजनीतिक दल तरह तरह के जतन  करते हैं लेकिन  सत्ता की मलाई चाटते चाटते सभी आम आदमी को हाशिये पर रख देते हैं । इस  चुनावी बेला में  आम आदमी  पार्टी में उन्हें कुछ खास नजर आ रहा है । वह सिस्टम में घुसकर राजनीतिक दलो की  सियासी जमीन को दरकाने चाहते हैं ।   

दिल्ली में बिजली की बड़ी हुई कीमतें शीला दीक्षित के लिए आगामी चुनावो के मद्देनजर मुश्किलें जहाँ मुश्किलें खड़ी कर रही हैं वहीँ पहली बार भाजपा सरीखे बड़े दलों की बोलती अरविन्द केजरीवाल की राजनीती ने  इस दौर में बंद कर डाली है जिसके चलते भाजपा के दिल्ली में  प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल भी भाजपा की दिल्ली में बिसात बिछाने में असहज महसूस कर रहे हैं । यही नहीं भाजपा के सी एम पद के चेहरे डॉ हर्षवर्धन के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा भी भाजपा की मुश्किलो को इस चुनाव में बढ़ाने का काम कर रहा है साथ में संगठन के बड़े पदो पर जिस तरह विजय गोयल की वैश्य बिरादरी का सीधा कब्ज़ा है उससे पार्टी में अन्य जातियो का प्रतिनिधित्व कम हो चला है जिसके चलते उनकी नाराजगी अभी भी कम नहीं हुई है ।   

  जिस तरीके  से केजरीवाल के समर्थन में दिल्ली में बिजली और पानी की  बड़ी हुई कीमतों के विरोध  में बड़ी जनता सामने आयी है उसने पहली बार राजनीती को एक सौ अस्सी से ज्यादा के कोण पर झुकने को मजबूर कर दिया है ।    सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने निशाने पर लेने वाले अरविन्द केजरीवाल की इंट्री भारतीय राजनीती में उस “एंग्री यंगमैन “ के तौर पर हो रही है जिसके केंद्र में पहली बार आम आदमी है जो इस दौर में हाशिये पर चला गया है वहीँ अरविन्द आम आदमी के आसरे भारत की भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था की जड़ो को खदबदाने की कोशिशे कर रहे हैं जिसमे उनको सफलताए भी मिल ही है शायद यही कारण है आम आदमी केजरीवाल में उस करिश्माई युवा तुर्क का अक्स देख रहा है जिसके मन में सिस्टम से लड़ने की चाहत है और वह सिस्टम में घुसकर नेताओ को आइना दिखा रहा है |

दरअसल भारतीय राजनीती इस दौर में सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है | यह पहला मौका है जब सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष की साख मिटटी में मिल गई है | एक के बाद एक घोटाले भारतीय लोकतंत्र के लिए कलंक बनते जा रहे हैं लेकिन सरकार को आम आदमी से कुछ लेना देना नहीं है क्युकि उसकी पूरी जोर आजमाईश विदेशी निवेश बढाने और कारपोरेट के आसरे मनमोहनी इकोनोमिक्स की लकीर खीचने में लगी हुई है | 

उदारीकरण के बाद इस देश में जिस तेजी से कारपोरेट  के लिए सरकारों ने फलक फावड़े बिछाए हैं उसने उसी तेजी के साथ भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है | इस लूट के खिलाफ समय समय देश में आवाजें उठती रही हैं लेकिन आज तक कोई सकारात्मक पहल इस दौर में नहीं हो पायी है | स्थितिया कितनी बेकाबू हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर मौजूदा दौर में कोई केजरीवाल सरीखा व्यक्ति तत्कालीन कानून मंत्री और वर्तमान विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को उनके संसदीय इलाके फर्रुखाबाद में चुनौती देता है तो माननीय मंत्री उसे खून से रंगने और निपटा देने की बात कहते हैं वहीँ दम्भी प्रवक्ता रहे और वर्तमान में सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी अन्ना को भगौड़ा एक दौर में घोषित कर देते हैं तो समझा जा सकता है मौजूदा दौर में किस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल राजनीती के भीतर हो रहा है । 

देश में यह पहला मौका रहा है  जब २०११ मे अन्ना की अगस्त क्रांति , रामदेव के जनान्दोलन ने लोगो को इस भ्रष्टाचार के दानव के खिलाफ लड़ने के लिए सड़क पर एकजुट किया और पहली बार राजनेताओ की साख पर सीधे सवाल इसी दौर में ही उठने लगे | दरअसल अपने देश में अब भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या बन चुका है | प्रायः लोग इसको लाइलाज समझने लगते हैं लेकिन अब समय आ गया है जब इससे निजात पाने का विकल्प  लोगो को देना होगा | देश के युवाओ में इसे लेकर गहरा आक्रोश है और वह पहली बार देश के नेताओ से लेकर नौकरशाहों को निशाने पर लेकर उनकी जमीन को निशाने पर ले रहा है और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही हर लड़ाई में अपनी भागीदारी दर्ज कर रहा है | इस लड़ाई में पहली बार युवा  साथ दिख रहे है जो नए देश की पैसठ फीसदी युवा आबादी अब आगामी चुनाव में अपनी बिसात के जरिए सत्ता के हठी तंत्र को भोथरा करने में जुटी है जिसमे अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम के साथी टिमटिमाते दिए में  रोशनी दिखाते नजर आते हैं | अरब स्प्रिंग से प्रेरित होकर भारत में भी लोग तहरीर चौक की तर्ज पर नया भारत बसाने का सपना अब देखने लगे हैं और शायद उसी का परिणाम था पूरे देश में अन्ना आन्दोलन की परिणति ऐसी हुई जिसने पहली बार लोकतंत्र में लोक के हत्व को साबित कर दिखाया | २ जी , आदर्श सोसाईटी , कामनवेल्थ घोटाला ,कर्नाटक की खदान में हुआ घोटाला यह सब ऐसे मुद्दे थे जिसने अन्ना के आन्दोलन को प्लेटफोर्म देने का काम किया | लोगो ने इस जनांदोलन से सीधा जुड़ाव महसूस किया शायद इसी के चलते सभी नए इस पर बढ़ चढकर भागीदारी बीते बरस की | आज अन्ना और अरविन्द की राहें भले ही जुदा हो गई हैं लेकिन दोनों का मुद्दा एक है देश से भ्रष्टाचार का खात्मा और इसी के चलते अब केजरीवाल जहाँ अब सत्ता के मठाधीशो को उनकी माद में घुसकर चुनौती दे रहे हैं वहीँ राजनेताओ को आईना दिखाकर यह भी बतला रहे हैं २०१४ में खुद अकेले ही चलना है और अकेले ही रास्ता भी तैयार करना है मौजूदा माहौल को देखते हुए लगता है  भ्रष्टाचार देश में एक बड़ा मुद्दा आने वाले दिनों में  बन सकता है | 

 मौजूदा दौर में भारतीय राजनीती के सामने जैसा संकट खड़ा है वैसा पहले कभी खड़ा नहीं था | इस दौर में जहाँ कांग्रेस की  भ्रष्टाचार के मसले पर खासी किरकिरी हो रही है वहीँ कोयले की कालिक के दाग से लेकर पूर्ति के गडबडझाले पर पहली बार उस विपक्षी पार्टी के पूर्व  राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर सवाल उठे हैं जो पार्टी अपने को पार्टी विथ डिफरेंस कहती नहीं थकती है और संयोग देखिये यही पूर्वराष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली में ही पिच पर उतरकर प्रभारी बन भाजपा की चुनावी संभावनाओ को टटोल रहे हैं ।  आम जनता में यह सन्देश जा रहा है दोनों राष्ट्रीय पार्टियों में भ्रष्टाचार के मसले पर भी मैच फिक्सिंग है | यह फिक्सिंग राष्ट्रीय स्तर  से लेकर एम सी डी तक में महसूस हो सकती है ।  ऐसे माहौल में केजरीवाल सरीखे लोग अब लोगो को यह विश्वास करा रहे हैं अब भ्रष्टाचारी नेताओ के दिन जल्द ही लदने वाले हैं तो समझा जा सकता है आने वाले दिनों में नई बिसात संसदीय राजनीती में बिछने जा रही है जिसमे जनता के हाथ सत्ता की चाबी सही मायनों में होगी | 


न केवल केजरीवाल के साथ बल्कि रामदेव और अन्ना के गैर राजनीतिक आन्दोलन के साथ भी अब जनता खड़ी होती इस दौर में अगर दिख रही है तो इसका बड़ा कारण यह है आम आदमी इस दौर में भ्रष्टाचार से परेशान है | मिसाल के तौर अरविन्द  केजरीवाल को ही लीजिए अन्ना के राजनीतिक विकल्प देने के सवाल पर जब दोनों ने अलग राहें चुनी तो कई लोगो ने सोचा बिना अन्ना के केजरीवाल की राह मुश्किल भरी रहेगी लेकिन जनलोकपाल पर मनमोहन , सोनिया और गडकरी के घेराव , बिजली की बड़ी कीमतों के खिलाफ दिल्ली में विशाल प्रदर्शन द्वारा उन्होंने अपनी असली ताकत का एहसास करा दिया | युवाओ की एक बड़ी टीम उनके साथ हर मसले पर खड़ी रही चाहे वाड्रा का मामला लें या गडकरी का ,हर जगह उनको युवा साथियो का सहयोग इस दौर में मिला है | यही नहीं जब से केजरीवाल ने अम्बानी के साम्राज्य की लूट के खिलाफ मोर्चा खोला  तो मीडिया भी उनको ज्यादा  सुर्खिया देना बंद कर दिया । आप की  लोकप्रियता से आशंकित  पार्टियां उसे घेरने की जुगत में हैं, । पहले कांग्रेस ने उसकी विदेशी फंडिंग का मसला उठाया अब भाजपा भी चुनावो को पास आते  देख आप को बदनाम करने की साजिश रच रही है। आप की विदेशी फंडिंग का मुद्दा उठाकर कांग्रेस और भाजपा दिल्ली चुनावो में केजरीवाल की पार्टी को सीधेनिशाने पर लेने से नहीं चूक रही । 

जबकि असल सच यह है भाजपा और कांग्रेस को बीते दस बरस में साढे चार हजार करोड़ और भाजपा को दो हजार करोड़ से ज्यादे का पैसा मिला है जो अवैध है लेकिन इसके बाद भी यह दल  अपनी राजनीतिक मजबूरियों के चलते यह बताने को  तैयार नहीं हैं कि इस अवैध कमाई और चंदे का हिसाब किताब कहाँ है ? आप को बदनाम करने के लिए यह दोनों राजनीतिक दल अन्ना  हजारे के द्वारा उठाये गए सवालो का जवाब अरविन्द की आप से मांग रहे हैं ।  

। अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी को मिलने वाले चंदों को सार्वजनिक कर पारदर्शिता  बीते एक बरस से  दिखाई है। अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से अन्ना हजारे रजामंद न हों  पर वह इस बात को तो मानते ही हैं अरविन्द की ईमानदारी में किसी तरह का खोट नहीं है और भ्रष्टाचार के मुकाबले के लिए उनके और अरविन्द के तरीके अलग हो सकते  है । 

आज आलम यह है केजरीवाल के पास भ्रष्टाचार की आये दिन सैकड़ो शिकायते देश भर से आ रही हैं जिन पर वह अपने साथियो के साथ प्रतिदिन बहस करते हैं और युवा साथियो से लैस केजरीवाल ब्रिगेड उस पर गंभीरता के साथ अध्ययन करती है और अब इस बार के दिल्ली चुनावो में यही यंग ब्रिगेड केजरीवाल के आसरे संसदीय राजनीति को न केवल लोकतंत्र का ककहरा चुनाव जीत जाने और पांच साल शासन कर लेने भर से नहीं पढ़ा  रही बल्कि यह भी बता रही है राजनीति विरासत का खेल नहीं  है । इसमें आम आदमी से जुड़े सरोकार भी मायने रखते हैं तो इसे  हम एक अच्छी शुरुवात तो मान ही सकते हैं ।

 दिल्ली में  दिसंबर  में होने जा रहे चुनाव केजरीवाल की पार्टी के लिये अहम हो चले हैं । अगर दिल्ली में पार्टी अच्छा  करती है तो आगामी लोक सभा चुनाव में भारतीय राजनीती एक नयी करवट लेती दिखाई देगी जिसके केंद्र में आम आदमी होगा  और शायद इसके बाद २०१४ की बिसात नए ढंग से बिछेगी । 

अभी लोगो को उम्मीद है कि केजरीवाल की नई पार्टी अन्य पार्टियों से इतर अलग राह पर चलेगी | शीला के गढ़ में अरविन्द अब बचे दिनों में दिल्ली  के घर घर तक अपनी पकड़ बना रहे हैं । पिछले  दिनों में उनके साथ रेहड़ी मजदूर और कामगारों के साथ ऑटो चलाने वाले लोगो का एक बड़ा तबका साथ  आया है  जो आम आदमी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण  होने वाला है  क्युकि  इसी वोट बैंक के आसरे केजरीवाल दिल्ली में अपनी बिसात बिछा रहे हैं | हाल के वर्षो में  शीला दीक्षित की मुश्किलें बिजली , पानी की बड़ी कीमतों ने बढ़ाई हुई हैं | ऊपर से सरकार के खिलाफ आम जनमानस में रोष है |   केजरीवाल ने वहां पर आम सभाए कर जनता से  जुड़े मुद्दे उठाये हैं | जनता बिजली, पानी , महंगाई से कराह रही है ऊपर से भ्रष्टाचार से देश का आम आदमी परेशान  इस दौर में हो चुका है | केजरीवाल इन्ही मुद्दो के आसरे जनता में घर घर पैठ बनाने और  शीला को बैकफुट पर लाने की पूरी कोशिश कर  रहे हैं ।


कुछ लोग केजरीवाल की राजनीती को ख़ारिज करने में लगे हुए हैं और उनको आये दिन निशाने पर ले रहे हैं | कांग्रेसी जहाँ सत्ता के मद में चूर होकर केजरीवाल को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं वहीँ भाजपा भी उसी के सुर में सुर मिला रही है जबकि हमारे देश के राजनीतिक दल शायद इस बात को भूल रहे हैं कि मौजूदा दौर में हमारे राजनीतिक सिस्टम में गन्दगी भर गई है | अपराधियों और माफिया प्रवृति के लोग राजनीती की बहती गंगा में डुबकी लगा रहे है | हत्या, चोरी, बलात्कार जैसे संगीन अपराधो में लिप्त लोग लोकतंत्र की शोभा बड़ा रहे है | राजनीती में भाई भतीजावाद, परिवारवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता भरी हुई है और इन सबके बीच अगर केजरीवाल राजनीति का शुद्धिकरण करने अगर आम आदमी पार्टी बनाकर  निकल रहे हैं तो वह कौन सा संगीन अपराध कर रहे हैं जो हमारे देश की बड़ी राजनीतिक जमात उनको ख़ारिज करने पर तुली हुई है | यही नहीं पत्रकारों की एक बड़ी जमात भी अब उनके पार्टी बनाने के फैसले पर साथ नहीं है | हमारे पत्रकारिता जगत के लिए यह शर्म की बात है जो खुलासे केजरीवाल  ने अभी तक किये हैं उन पर किसी भी मीडिया घराने ने कई बरस से ना तो कलम ही चलाई और ना ही अपने चैनल में उन पर खबरें दिखाई  | केजरीवाल के यही खुलासे शायद अब इसी जमात को हजम नहीं हो रहे हैं | वैसे भी केजरीवाल जिस बेबाकी से मीडिया को उत्तर देते हैं उससे पत्रकारों के पसीने प्रेस कांफ्रेंस में छूट जाते हैं |। सभी राजनीतिक दलों के नारों में आम आदमी जरुर है लेकिन नीतियां बनाने से लेकर नियोजन में सब जगह कॉरपरेट हावी है । दिल्ली के चुनावो में कूदकर अब केजरीवाल नए सिरे से राजनीती को परिभाषित करने जा रहे हैं जिसके केंद्र में पहली बार आम आदमी रहेगा | अब तक देश की सभी पार्टियों द्वारा वह आम आदमी छला जाता रहा है | वह इसे बखूबी जानते हैं और इसकी खुशबू उन्होंने अपने सरकारी सेवाकाल के दौरान भी महसूस की  है |   दिसंबर  में दिल्ली का मिजाज राजनीती के बैरोमीटर में केजरीवाल की असल ताकत को बतलायेगा लेकिन फिलहाल  तो  आप की असल ताकत का एहसास हमें  ८ दिसंबर को ही हो पायेगा । तो इन्तजार कीजिये  दिल्ली के विधान सभा  चुनावो के परिणामो का  ...

Friday 1 November 2013

डोल रहा है मध्य प्रदेश में "शिव का आसन"

   
फायर ब्रांड नेता और साध्वी उमा भारती के भाजपा से निष्कासन और बाबूलाल
गौर के मुख्यमंत्री वाले  दौर के  बाद भाजपा की डगमगाती नैय्या को सही मायनों
में अगर किसी ने मध्य  प्रदेश में पार लगाया है तो बेशक वह शख्स  शिवराज सिंह
चौहान ही हैं ।   सूबे में सबसे ज्यादा समय तक गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने
का तो कीर्तिमान उन्होंने बना ही लिया है और अब तीसरी बार शिवराज हैट्रिक
बनाने की दिशा में एड़ी चोटी का जोर  इन दिनों प्रदेश में लगाये  हुए हैं ।

विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान
के लिए इस बार का चुनाव किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं है क्युकि विपक्षी खेमे
की   तरफ से  ज्योतिरादित्य सिंधिया  इस समय कांग्रेस के  चुनावी अभियान की
कमान न केवल संभाले हुए हैं बल्कि कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उनका
दावा भी इस बार  मजबूत है   ।   बीते कुछ बरस   में  शिवराज ने  भाजपा के
अंदरुनी उठापटक को शांत करने के साथ-साथ विकास की नई लकीर भी खिंची जिसकी
परिणति जोरदार बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता वापसी के रूप में हुई लेकिन
मुख्यमंत्री चौहान के चमकते छवि के कई दूसरे  पहलू भी है जिन पर  लोगों की
निगाहें कम जाती हैं। मसलन प्रदेश में गरीबी का बढ़ना, पत्नी साधना सिंह पर
डंपर घोटाले का आरोप और विकास के नाम पर स्थानीय लोगों के हकूकों को दरकिनार
कर बेतरतीब परियोजनाओं को मंजूरी जिसमे तमाम मानको को  ताक पर रखा गया  । यह
सब ऐसी चीजें हैं जो आने वाले दिनों में उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं
और दिग्विजय सिंह की तरह दस सालों तक मुख्यमंत्री बने रहने के उनके सपने को भी
चकनाचूर कर  सकती हैं । वैसे भी कांग्रेस इस चुनाव में राहुल गाँधी वाली लीक पर
चल रही है जहाँ वही नेता चुनावी टिकट पाने में कामयाब होगा जो राहुल की बिसात
में फिट बैठेगा और पहली बार मध्य प्रदेश में करीबी नेताओ के परिजनों  को टिकट
देने के लिए जूतम पैजार मची हुई है लिहाजा इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों
दलों में टिकटों को लेकर भारी  घमासान मचना  तय है ।

मध्य प्रदेश का राजनीतिक मिजाज और परिदृश्य   अन्य जगहों से थोड़ा अलग सा  है।
यहां की सरकारें विपक्ष से कम और अपनी पार्टियों के नेताओं से ज्यादा परेशान
रही हैं।राजशाही की कोई ख़ास परंपरा यहाँ की राजनीती में नहीं देखी  गयी है ।
थोडा बहुत प्रभाव अगर कहीं दिखता है तो वह सिंधिया के प्रभाव वाली सीटों  पर
नजर आता है । इस प्रदेश का दुर्भाग्य रहा कि  यहाँ  पर विपक्ष में जो बैठता
है वह सरकार की नीतियों के खिलाफ अटूट चुप्पी साधे रहता है। इस बार भी ऐसा ही
कुछ हुआ है । कांग्रेस के पास कमलनाथ , ज्योतिरादित्य , दिग्गी राजा , अजय
सिंह, अरुण  यादव , सज्जन सिंह वर्मा  सरीखे हैवीवेट नेता होने के बाद भी मध्य
प्रदेश में कांग्रेस का बुरा हाल है । टिकटों के बटवारे में जहाँ गणेश
परिक्रमा किये बिना काम नहीं चलता, वहीं हर चुनाव में भारी गुटबाजी उसका खेल
ख़राब कर देती है । यही कारण है उमा भारती द्वारा मध्य प्रदेश में भाजपा की
वापसी के बाद से कांग्रेस सत्ता सुख मिलने से अब तक वंचित ही रही है ।

एमपी अजब है , सबसे  गजब है  सरीखे नारों और जन आशीर्वाद  सरीखी जिस यात्रा
से  शिवराज सरकार विकास  के चमचमाते सपने लोगो को इस चुनावी बेला  में दिखा
रही है उस एम पी का असल  सच   भले ही कागज पर दिखता  रहा  हो लेकिन जमीनी
हकीकत कुछ और ही  रही है । विकास के चमचमाते सपने के बरक्स  यहाँ पर भू
माफियाओं, खनन माफियाओं आदि को लाभ पहुंचाने का खुला खेल नेताओ और प्रशासन के
कोकटेल के आसरे जहाँ  कई बरस से  चलता रहा वहीँ अधिकारियों ने भी इस दौर में
भ्रष्टाचार की गंगा में भी ऐसी डुबकी  लगाई कि  एमपी में यह जुमला प्रचलित
होने लगा यहाँ चपरासी भी करोडो में  खेलता है और शायद यही वजह रही इस
भ्रष्टाचार में हर किसी ने गोते लगाकर अपनी जेब ही गर्म की । इसकी तस्दीक कैग
 की मध्य प्रदेश को लेकर आई रिपोर्ट है जिसमे 1 4 9 6  करोड़ रुपये से
ज्यादे के राजस्व के नुकसान का अनुमान लगाया गया है । यही नहीं शिवराज पर कॉरपोरेट
  घरानों के साथ गलबहियां करने के आरोप भी बीते कई बरस से लगते आये हैं ।

1 8    प्रतिशत कृषि विकास दर का झुनझुना थमाकर  शिवराज  भले ही लोगो के
बीच  अपने उपलब्धियों का बखान करने से नहीं अघाए हों  लेकिन  मध्य प्रदेश में  असमान विकास दर कई
जिलो में साफ़ तौर पर दिखाई देती है । अभी अतिवृष्टि से पूरे प्रदेश की फसल
बर्बाद हो गयी है लेकिन चुनावी साल में  सरकार किसानो को मुआवजा भी नहीं दे
पायी है जिससे लोगो में शिवराज के प्रति नाराजगी साफ़ देखी  जा सकती है ।  आज
भी आदिवासी इलाको में जहाँ बुनियादी सुविधाएं मयस्सर  नहीं सकी हैं वहीँ
कुपोषण का कलंक मध्य प्रदेश के माथे पर ऐसा चस्पा है कि राहुल  गाँधी
शहडोल  सरीखीहर चुनावी सभा में शिवराज को कठघरे में खड़ा कर जहाँ
उनकी नीतियों पर सवालउठाने से गुरेज नहीं करते वहीँ वह प्रदेश के  भाजपा  नेताओ  के भ्रष्टाचार पर
हमला करने से बाज नहीं आ रहे तो यह शिवराज के सामने खतरे की घंटी ही है ।
चुनावी साल में शिवराज की मुश्किल उनके दाए हाथ माने जाने वाले बिल्डर दिलीप
सूर्यवंशी ने भी बढाई है । शिवराज से उनकी निकटता  किसी से छुपी नहीं है और  विपक्षी भी इस मसले पर भाजपा को
सीधे निशाने पर लेने से नहीं  चूके हैं  । ऐसे में चुनावी महीना शिवराज के
आसन  के लिए मुश्किल भरा दिखाई दे रहा है जहाँ उन्हें अन्दर और बाहर अपने बूते
ही विपक्ष और अपनी पार्टी के नेताओ से जूझना है ।

 मध्य प्रदेश  में विकास को मॉडल बना कर  दिग्गी राजा ने १० वर्षों तक राज
किया।  विकास को जनता  तक पहुंचाने में वह भी विफल ही  रहे जिसके  चलते
उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी जिसके बाद प्रदेश में   भाजपा की
सरकार बनी। सरकार बनने के बाद भाजपा अंदरुनी विवादों में उलझ गई। प्रदेश भाजपा
में मची  इस भारी उथल-पुथल को शांत करने के लिए शिवराज चौहान को तुरूप के
इक्के के रूप में आगे कर  सीएम बनाया  गया। वे बेहतर संगठनकर्ता के रूप जाने
थे  भाजपा को  उन्होंने  सफलता भी  दिलाई  । वही लाडली लक्ष्मी योजना ,
चमचमाती बसे , चमचमाते हाई वे से उन्होने "मामा " के रूप में महिलाओ के दिलो
में राज करने लगे तो    भोपाल गैस कांड मामले में भी शिवराज के कड़े रुख, अपना
मध्य प्रदेश अभियान  और चौबीस घंटे प्रदेश में बिजली देने के "अटल ज्योति "
अभियान   ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता में खूब इजाफा ही किया है ।
हालांकि शिवराज पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लग चुके हैं। इतना ही नहीं
मुख्यमंत्री ने बीते चुनावो में  जो अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया वह भी
संदिग्ध रहा । उनकी पत्नी साधना सिंह द्वारा डंपर की खरीद में गड़बड़ी करने का
मामला सामने आया । उस दौर को याद करें  तो भोपाल के न्यायाधीश ने भ्रष्टाचार
निरोधक कानून के तहत जांच करने का आदेश दिया । इसका खुलासा बीते दौर में
विपक्ष की नेता स्व जमुना देवी ने  भी किया था जिसके चलते  लोकायुक्त से जांच
की मांग ने  शिवराज चौहान की मुश्किलें बढ़ा दी जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल
पहली बार उठे , लेकिन एक संगठनकर्ता की  मीडिया मैनेजरी  भी कमाल की रही ।
अपने बोल बचन के आसरे शिवराज मीडिया को खुश कर अपना गुणगान कराने में  ही
मशगूल रहे ।

चौहान लाडली लक्ष्मी योजना, मध्यप्रदेश पुलिस में दुर्गावती के नाम पर नई
बटालियन बनाने जैसी योजना को लागू करने की बात करते हैं। मध्य प्रदेश में
गरीबी मिटाने की सरकार चाहे जितने दावे करे, लेकिन हकीकत कुछ और है। गरीबी
यहां तेजी से पैर पसार रही है। इसके गवाह नौ  जिलों भिंड, मुरैना  ,श्योपुर कलां, शिवपुरी, 
टीकमगढ़, रीवा, पन्ना, बड़वानी और मंडलाके लोग हैं जिनकी प्रतिदिन
आय मात्र 2 7  रुपये है। । इतना ही नहीं हाल  में बच्चों को स्कूल में  गीता पढ़ने को
जरूरी करने के फैसलेपर मुख्यमंत्रीचौहान भी कठघरे में दिखे। इनका काफी विरोध हुआ लेकिन उसका
 असर उन पर नहीं पड़ाऔर मजबूर होकर देरी में  उन्होंने यह फरमान जारी किया की गीता
 ऐच्छिक  विषय केरूप में पढ़ाई   जाएगी ।  यह अलग बात है बाद में  भोपाल
के इकबाल मैदान  में मुसलमानों के बीच ईद के हर मौके पर टोपी पहन शिवराज ने 
अपने को प्रधानमंत्री की रेस में नमो से न केवल आगे फर्राटा  भर के आगे किया  बल्कि  
इसके आसरेअल्पसंख्यको का दिल भी  लिया । लेकिन अब नमो के प्रधान मंत्री पद का
उम्मीदवार  बनाये जाने के बाद भाजपा के खेमे में मुश्किले बढ़ गई हैं क्युकि
ग्वालियर से लेकर चम्बल  और झाबुआ से लेकर सिवनी अंचल में जहाँ ज्योतिरादित्य
कांग्रेस को बढ़त  दिलाने में लगे हुए हैं वहीँ मुसलमान मतदाता शिवराज के नाम
पर नाक भौहें  सिकोड़ रहा है ।  रही सही कसर नमो ने बीते दिनों यह
 कहकर  पूरी कर  दी आने  दिनों में  प्रदेश में शिवराज के साथ मिलकर
सर्वाधिक चुनावी सभा करेंगे ।


 वहीं दूसरी तरफ  शिवराज इन्वेस्टर मीट  के
सपने  दिखाकर लोगो को सब्जबाग ही  दिखाते रहे हैं ।   कई  उद्योग  की प्रक्रिया
अभी प्रारंभिक दौर में है, उनमें से ज्यादातर वही हैं जिनके एमओयू मध्य प्रदेश
को स्वर्णिम बनाने का दम भर रही शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्वारा पिछले
इन्वेस्टर्स मीट के दौरान हस्ताक्षरित किए गए थे। इन्हें बड़ी मात्रा में जमीन
उपलब्ध कराने के लिए स्थानीय लोगों के अधिकारों की अनदेखी की गई। यही नहीं मध्य प्रदेश के
आदिवासी इलाके  मंडला में चुटका परमाणु संयंत्र स्थापित होने के बाद यह सवाल
गहरा गया है क्या  विकास के नाम आदिवासियों की मांगो को सुनने की फिक्र शिवराज
सरकार में नहीं है ?


विरोधियों को चुप्पी के साथ दरकिनार करने और अनर्गल बयानबाजी से बचनेवाले शिवराज
 सिंह चौहान को २००५ में मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय संगठन
में भारी उथल-पुथल के साथ गुटबाजी चल रही थी। उमा भारती के जाने के बाद प्रदेश
भाजपा काफी कमजोर हो गई थी। ऐसे समय में इन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। इनके
सामने १३वीं विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम हासिल करने की चुनौती थी। इस पर
चौहान खरे उतरे और भाजपा को जीत दिलाई। फिर से सीएम भी बने। १९६२ से लेकर अब
तक सिर्फ कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और भाजपा नेता शिवराज राज चौहान ही ऐसे
मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने पांच वर्षों से अधिक समय तक शासन किया। मध्यप्रदेश
की जनता के लिए अभिशाप ही रहा कि जो भी शासन में रहा मूल समस्याओं पर किसी ने
ध्यान नहीं दिया और वे आपसी खींचतान में लगे रहे। भाजपा की जीत ने दिग्गी राजा
के कद को एकदम से कम कर दिया। कभी दिग्गी राजा के नाम से लोगों के बीच पहचाने
जानेवाले कांग्रेसी नेता को लगा ही नहीं था कि वे सत्ता से बेदखल हो जायेंगे।


भाजपा ने २००३  में  ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उमा भारती के नेतृत्व में चुनाव
लड़ा गया और भाजपा सत्ता में आयी। लोध समुदाय की एक क्षत्रप  नेता और संघ
परिवार से ताल्लुक रखनेवाली उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन बगावती तेवर और
भाजपा आलाकमान से दो-दो हाथ करने के कारण उन्हें पद से हटना पड़ा। इसके बाद
शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता संभाली। वैसे तो इनके सामने कई अड़चने थी, जिसे दूर
करते हुए पांच साल पूरे किये।

 अब तीसरी बार सत्ता में  लाना  शिवराज  सिंह चौहान के लिए आसान नहीं है। इनके
सामने कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी बात यह है सत्ता के मिजाज को परखते हुए
शिवराज सत्ता के नशे में चूर हो गए हैं । शायद यही वजह है प्रदेश में अब किसी
नेता की उनके सामने नहीं चलती । शिवराज ने बीते कई बरस से अपने विरोधियो को एक
एक करके पार लगाया । उमा भारती से जहाँ उन्होंने अभी तक दूरी बनाई हुई है
वहीँ उनके करीबियों को  धीरे धीरे अपने सत्ता के आगोश में समेटा । संघ के
आशीर्वाद से प्रदेश  अध्यक्ष  बनाए गए प्रभात झा इसका जीता जागता नमूना हैं जब
दूसरी बार उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बारी आई तो शिवराज ने केन्द्रीय नेताओ
और आलाकमान से मिलकर नरेन्द्र सिंह तोमर के नाम के लिए लाबिंग  शुरू कर दी ।
यही नहीं  कैलाश विजयवर्गीय की एक जमाने में प्रदेश भर के संगठन में तूती
बोला  करती थी लेकिन आज आलम यह है कैलाश आगामी चुनावो में खुद से ज्यादा अपने
बेटे के लिए चुनावी बिसात बिछाने में लगे हुए हैं । कही ना कही आज प्रदेश का
हर कार्यकर्ता इस बात को मान रहा है शिवराज ने अपनी लोकप्रियता तो प्रदेश में
खूब बनाई हुई है लेकिन उनके हक़ की लड़ाई लड़ने वाले मंत्री और विधायक इस दौर में
या तो छले गए हैं या उनके पर किसी तरह से काटे गए हैं ।

 शिवराज ने अपनी फिलासोफी  में  विकास को मॉडल बनाया है लेकिन उनकी   सरकार के
मंत्रियो ने बीते कई बरस से खुद  उनकी मुश्किलों को ही बढाया है ।  कैबिनेट
मंत्री कैलाश विजय  वर्गीय  पर जहाँ सुगनी देवी मामले पर अभी भी लोकायुक्त
जांच चल  रही है वहीँ तकरीबन  सोलह मंत्रियो पर भ्रष्टाचार के  मामले
लोकायुक्त के पास लंबित पड़े हैं , जिससे  आगामी चुनावो में शिवराज की डगर
मुश्किल  दिख रही है । रही सही कसर पूर्व आदिम जाति  कल्याण मंत्री विजय शाह सरीखे मंत्री 
पूरी कर दिए हैं जिन पर रूसी बालाओं  को नचाने से लेकर जाम छलकाने के कई आरोप
लग चुके हैं और जिसके चलते उनकी कुर्सी भी जा चुकी है । चुनावी बेला में
शिवराज के सामने सिटिंग  विधायको का टिकट काटने की एक बड़ी चुनौती भी  दिख रही
है क्युकि अगर भाजपा में सिटिंग गेटिंग का फार्मूला टिकट आवंटन में लगता है तो
कई मौजूदा विधायको का पत्ता साफ़  लग रहा है । रही सही कसर भाजपा के अंदरूनी
सर्वे ने बढाई हुई है।  अगर इस पर यकीन करें तोमौजूदा समय में सौ  से  ज्यादा  विधायको का 
 टिकट नहीं काटा गया तो प्रदेश में  भाजपा का तीसरी बार सत्ता में आना मुश्किल दिखाई दे रहा है ।


ऐसे में  लग तो ऐसा भी रहा है कहीं इंडिया शाईनिंग  की तर्ज पर मध्य प्रदेश में
भाजपा  के विकास की हवा फील बैड की तर्ज पर नहीं निकल जाए ।
 फिलहाल तो  जनता  की निगाहें मध्य प्रदेश के सिंहासन की तरफ लगी हैं
जहाँ आगामी 2 5 नवम्बर को मतदान होना है।  अब आनेवाला 8  दिसम्बर  ही
 बतायेगा कि तीसरी बार अजब एम पी में एंटी इनकम्बेंसी के बीच  शिव कितना
सफल होंगे  ?