आखिरकार राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मान गई । राज्य में नेता प्रतिपक्ष के पद से उन्होंने अपना इस्तीफा राजनाथ को दे ही दिया...... पिछले कुछ समय से राजस्थान में उनकी कुर्सी से विदाई का माहौल बना हुआ था ...... परन्तु ख़राब स्वास्थ्य कारणों के चलते उनकी विदाई की खबरें दबकर रह गयी । .. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की साढ़े साती की दशा चलने के कारण महारानी की विदाई नही हो पायी.......
गौरतलब है "पार्टी विद डिफरेंस" का नारा देने वाली भाजपा में अनुशासन हाल के दिनों में उसे अन्दर से कमजोर कर रहा है...पार्टी लंबे समय से अंदरूनी कलहो में उलझी रही जिस कारण राजस्थान में वसुंधरा की विदाई समय पर नही हो पायी.......
...... यहाँ यह बताते चले वसुंधरा की विदाई का माहौल तो राज्य विधान सभा में भाजपा की हार के बाद ही बनना शुरू हो गया था परन्तु पार्टी हाई कमान लोक सभा चुनावो से पहले राजस्थान में कोई जोखिम उठाने के मूड में नही दिखाई दिया.............. लोक सभा चुनावो में पार्टी की करारी हार के बाद माथुर की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी गई ...पर आलाकमान वसुंधरा के अक्खड़ स्वभाव के चलते उनसे इस्तीफा लेने की जल्दी नही दिखा सका ..साथ ही वसुंधरा को आडवानी का " फ्री हैण्ड" मिला हुआ था जिस कारण पार्टी का कोई बड़ा नेता उन्हें बाहर निकालने का साहस जुटाने में सफल नही हो सका। ..यही नही इस्तीफे की बात होने पर वसुंधरा के "दांडी मार्च " ने भी पार्टी आलाकमान का अमन चैन छीन लिया।
दरअसल महारानी पर लोक सभा चुनावो के बाद से इस्तीफे का दबाव बनना शुरू हो गया था..... उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खंडूरी ने जहाँ पाँच सीटो पर पार्टी की करारी हार के बाद अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर डाली वही महारानी हार के विषय में मीडिया में अपना मुँह खोलने से बची रही ... पर केन्द्रीय स्तर पर वसुंधरा विरोधी लाबी कहाँ चुप बैठने वाली थी ... उन्होंने महारानी को राजस्थान से बेदखल कर ही दम लिया...
आखिरकार वसुंधरा की धुर विरोधी लोबी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ को साथ लेकर अनुशासन के डंडे पर महारानी की विदाई का पासा फैक दिया..... इससे आहत होकर महारानी ने राजनाथ से मिलने के बजाय आडवानी से मिलना ज्यादा मुनासिब समझा .....महारानी ने ओपचारिकता के तौर पर राजनाथ को अपना इस्तीफा भिजवा दिया.....
राजनाथ और महारानी के रिश्तो में खटास शुरू से रही है । राजस्थान में वसुंधरा के कार्य करने की शैली राजनाथ सिंह को शुरू से अखरती रही है ... लोक सभा चुनावो में राजस्थान में पार्टी की पराजय के बाद वसुंधरा की राजनाथ से साथ अनबन और ज्यादा तेज हो गई.... उस समय पार्टी आलाकमान ने उनसे इस्तीफा देने को कहा था पर वसुंधरा के समर्थक विधायको की ताकत को देखकर वह भी हक्के बक्के रह गए... जब पानी सर से उपर बह गया तो "डेमेज कंट्रोल" के तहत राजस्थान में पार्टी ने वेंकैया नायडू को लगाया पर वह महारानी को इस्तीफे के लिए राजी नही कर पाये... जिसके चलते पार्टी ने राजस्थान की जिम्मेदारी सुषमा स्वराज के कंधो पर डाली...
पिछले कुछ समय से वह भाजपा की संकटमोचक बनी हुई है... चाहे आडवानी के इस्तीफे का सवाल हो या फिर जसवंत की किताब पर बोलने का प्रश्न ॥ या फिर कलह से जूझती भाजपा का और ३ राज्यों के परिणामो में भाजपा की पराजय का प्रश्न उन्होंने बेबाक होकर इन सभी मसलो पर अपनी राय रखी है और अपनी सूझ बूझ को दिखाकर हर संकट का समाधान किया .... पर राजस्थान में महारानी को वह इस्तीफे के लिए नही मना सकी ....जिसके बाद राजस्थान में राजनाथ ने अपना "राम बाण " फैक दिया ...
वसुंधरा पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होने के समाचार आने के बाद राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के पद से वसुंधरा को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा... इस्तीफे के बाद ४० विधायको के साथ किए गए प्रदर्शन में महारानी ने कहा " जबरन इस्तीफा लेकर पार्टी हाई कमान ने उनको अपमानित किया है ... राजस्थान में अपने दम पर भाजपा की सरकार उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ बनाई " साथ ही उन्होंने विधायको से कहा आज नही तो कल हमारा होगा..... मैं राजस्थान की बेटी हूँ मेरी अर्थी भी यही से उठेगी........
राजस्थान में महारानी की नेता प्रतिपक्ष से विदाई के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर ज़ंग तेज हो गई है... वसुंधरा ने अपने पद से इस्तीफा तो दे दिया है परन्तु उनकी विदाई के बाद भाजपा में सर्वमान्य नेता के तौर पर किसी की ताजपोशी होना मुश्किल दिखाई देता है ...
खबरे है महारानी इस पद पर अपने किसी आदमी को बैठाना चाहती है परन्तु राजनाथ के करीबियों की माने तो नए नेता के चयन में वसुंधरा महारानी की एक नही चलने वाली...यही नही लोक सभा चुनाव में पीं ऍम इन वेटिंग के प्रत्याशी रहे आडवाणी की पार्टी में पकड़ कमजोर होती जा रही है ....
सूत्रों की माने तो आडवाणी की संसद के शीतकालीन सत्र के बाद पार्टी से सम्मानजनक विदाई हो जायेगी ..... बताया जाता है मोहन भागवत ने आडवानी की विदाई के लिए २२ दिसम्बर तक डैड लाइन तय कर ली है ... यहाँ यह बताते चले संसद का यह सत्र २२ दिसम्बर को समाप्त हो रहा है ... इसी अवधि में आडवानी की सम्मानजनक विदाई होनी है साथ ही पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी खोजा जाना है ...
यह सब देखते हुए कहा जा सकता है वसुंधरा की चमक आने वाले दिनों में फीकी पड़ सकती है ... साथ ही महारानी को आने वाले दिनों में नायडू, जेटली, सुषमा, अनंत की धमाचौकडी से जूझना है ... यह सब देखते हुई महारानी की राह में आगे कई शूल नजर आते है...
नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पाने के लिए इस समय पार्टी में कई नाम चल रहे है .... इस सूची में पहला नाम गुलाब चंद कटारिया का है.... कटारिया के नाम पर सभी नेता सहमत हो जायेंगे ऐसी आशा की जा सकती है .... उनकी उम्र के नेताओ को छोड़ दे तो राज्य में अन्य नेताओ को उनके नाम पर कोई ऐतराज नही है... साथ ही संघ भी उनके नाम को लेकर अपनी हामी भर देगा क्युकि संघ से उनके मधुर रिश्ते रहे है..... राजस्थान में पार्टी में कलह बदने की सम्भावना को देखते हुए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके नाम पर अपनी मुहर लगा सकता है..
कटारिया की छवि एक मिलनसार नेता की रही है साथ ही वह सबको साथ लेकर चलने की कला में सिद्धिहस्त माने जाते है ...वसुंधरा को भी उनके नाम से कोई दिक्कत नही होगी ....
दूसरा नाम वसुंधरा के विश्वास पात्र माने जाने वाले राजेंद्र राठोर का चल रहा है.... राठोर को समय समय पर महारानी के द्बारा आगे किया जाता रहा है .... महारानी के सबसे करीबी विश्वास पात्रो में वह गिने जाते है .... अगर महारानी की नया नेता चुनने में चली तो राजेंद्र की किस्मत चमक सकती है .... वैसे भी अभी वह रेस के छुपे रुस्तम बने है...परन्तु उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत राजनीती की पिच पर अपरिपक्वता बनी हुई है ...यही बात उनकी राह का बड़ा रोड़ा बनी है ॥
तीसरा नाम घन श्याम तिवारी का है ... तिवारी वर्तमान में सदन में उपनेता के पद को संभाले हुए है...वर्तमान में वसुंधरा के इस्तीफे के बाद कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी उनके कंधो पर सोपी गई है ...विरोधियो को साथ लेकर चलने की कला तिवारी का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है...परन्तु उनका ब्राहमण होना उनकी राह कठिन बना सकता है ...
गौरतलब है इस समय पार्टी के अध्यक्ष पद पर राजस्थान में अरुण चतुर्वेदी काबिज है जो ख़ुद भी ब्राहमण है ... अगर वसुंधरा के बाद तिवारी को यह जिम्मेदारी सोपी गई तो दोनों पदों पर ब्राह्मण काबिज हो जायेंगे .... ऐसे में राज्य में जातीय संतुलन कायम नही हो पायेगा.... अतः पार्टी ऐसी सूरत में उनको काबिज कर कोई बड़ा जोखिम राजस्थान में मोल नही लेना चाहेगी......
पूर्व उप रास्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का नाम भी इस रेस में बना हुआ है ...नरपत के बारे में राजस्थान में एक किस्सा प्रचलित है ... मेरे राजस्थान के एक मित्र बताते है एक बार कुछ राजनीतिक मांग को पूरा करने के लिए नरपत ने खाना पीना छोड़ दिया था ...बेटी को मोहरा बनाकर अपने ससुर के जरिये नरपत अपनी इस इच्छा को पूरा करने की जुगत में लगे थे ... ... दामाद के हट को देखते हुए शेखावत अपने दामाद को राजस्थान की राजनीति में ले आए.... उम्र के इस अन्तिम पड़ाव पर भी भैरव बाबा नरपत सिंह राजवी को नेता प्रतिपक्ष के पद पर लाने की पुरजोर कोशिस कर रहे है॥
नरपत का युवा होना उनकी राह आसान बना सकता है ...बाबोसा के संघ से जनसंघ के दौर से मधुर रिश्तो के मद्देनजर नरपत के सितारे बुलंदियों में जा सकते है ...परन्तु नरपत की जनता में कमजोर पकड़ और पार्टी में उनके समर्थको की कमी एक बड़ी बाधा बन सकती है ...साथ ही राजस्थान की राजनीति में उनका ख़ुद का कोई कद नही है....
राजनीती के ककहरे से अनजान रहने वाले नरपत का ऐसे में ख़ुद को कंट्रोल करना तो दूर पार्टी को कंट्रोल करना दूर की कौडी लगता है ... वसुंधरा को उनके पद से हटाने के लिए बाबोसा ने कुछ महीने पहले एक करप्शन की मुहीम चलाई थी... अब वसुंधरा की विदाई के बाद बाबोसा के सुर में भी नरमी आ गई है... पिछले कुछ दिनों से वह भाजपा में प्यार की पींगे बड़ा रहे है..... १५ वी लोक सभा में ख़ुद को पीं ऍम इन वेटिंग बनाने पर तुले थे पर इन दिनों भाजपा के साथ बदती निकटता उनके किसी बड़े कदम की और इशारा कर रही है ...वह नरपत को राजस्थान में ऊँचा रुतबा दिलाना चाहते है...
अभी तक उनकी राह का बड़ा रोड़ा महारानी बनी हुई थी पर अब महारानी के राजपाट के लुट जाने के बाद बाबोसा को अपने दामाद का रास्ता साफ़ होता नजर आ रहा है...संभवतया इस बार पार्टी और संघ जनसंघ के इस नेता की राय पर अपनी मुहर लगा दे...और नए नेता के चयन में सिर्फ़ और सिर्फ़ शेखावत की ही चले.......
अगर वसुंधरा के खेमे से किसी की ताजपोशी की बात आती है तो दिगंबर सिंह का नाम भी सामने आ सकता है ... सूत्रों की माने तो महारानी की प्राथमिकता अपनी पसंद के नेता को प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठाने की है... इस बात का ऐलान वह अपने जाने से पहले ही कर रही थी ...उन्होंने राजनाथ से साफतौर पर कहा था वह तभी अपनी कुर्सी छोडेंगी जब उनकी मांगे मानी जायेगी .... उनकी पहली मांग में नए नेता का चयन उनकी सहमती से होना था....अब यह अलग बात है पार्टी में " आडवानी ब्रांड" में गिरावट आने से वसुंधरा के विरोधी नेता उनकी पसंद के नेता को राजस्थान में प्रतिपक्ष की कुर्सी पर नही बैठाएंगे .....
वसुंधरा खेमे के नेताओं में दिगंबर को लेकर आम सहमती बनाने में भी कई दिक्कते पेश आ सकती है...इन सबके इतर कोई अन्य नाम भी"डार्क होर्स " के रूप में सामने आ सकता है.. माथुर के बाद जब चतुर्वेदी को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था तो किसी को उनकी ताजपोशी की उम्मीद नही थी... हाई कमान ने जब उनका नाम फाईनल किया तो सभी चौंक गए... किसी ने उनके अध्यक्ष बनने के विषय में नही सोचा था... पर संघ से निकटता उनके लिए फायेदेमंद साबित हुई ... इसी प्रकार शायद इस बार नए नेता का चयन संघ की सहमती से हो इस संभावना से भी इनकार नही किया जा सकता.... राज्य में वसुंधरा समर्थक विधायको की बड़ी तादात देखते हुए वसुंधरा यह कभी नही चाहेंगी नया नेता विरोधी खेमे का बने ......
परन्तु अगर राजनाथ और संघ की चली तो वसुंधरा के राजस्थान में दिन लद जायेंगे..... जिस तरह इस्तीफे को लेकर महीनो से वसुंधरा ने ड्रामे बाजी की उससे राजनाथ की खासी किरकिरी हुई है ....पूरे प्रकरण से यह झलका है वसुंधरा किसी की नही सुनती है... आज वह पार्टी से भी बड़कर हो गई है... तभी वह राजनाथ से मिलने के बजाए आडवाणी से मिलना पसंद करती है...
बात राजनाथ की करे तो वह भी उत्तर प्रदेश से आगे नही बाद पाये.... खांटी राजपूत नेता होते हुए भी वह राजस्थान में ब्राह्मण राजपूत समीकरणों को आज तक नही समझ पाये.... और किसी तरह महारानी को राजस्थान से हटाने पर तुले थे ... राजनाथ को राजस्थान में भाजपा के गिरते वोट बैंक की जरा भी परवाह होती तो वह वसुंधरा को राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष से नही हटाते ...
राजनाथ के अंहकार के चलते इस गंभीर गलती का खामियाजा कही भाजपा के बचे खुचे वोट बैंक पर भी नही पड़े ...राजस्थान भाजपा में इन दिनों वैसे ही "सूर्य ग्रहण " छाया है .... अब राजनाथ ने वसुंधरा को हटाकर भाजपा के बचे खुचे वोट बैंक पर कुल्हाडी मारने का काम किया है ........
बहरहाल जो भी हो महारानी मान गई है.... महारानी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.... साथ ही राजनाथ को लैटर लिखकर उनको हटाए जाने के निर्णय को चुनोती दे डाली है.....महारानी की विदाई के बाद उनके तेवरों को देखते हुए नए नेता की ताजपोशी आसान नही दिख रही है... नए नेता को जहाँ कार्यकर्ता , पार्टी, संगठन के साथ तालमेल बैठाना है वही प्रदेश अध्यक्ष चतुर्वेदी के साथ भी...... यहाँ यह बताते चले चतुर्वेदी के साथ वसुंधरा के सम्बन्ध अच्छे नही रहे है ....
बताया जाता है वसुंधरा समर्थक उनकी ताजपोशी को नही पचा पायेंगे... ऐसे में देखना होगा नए नेता के अध्यक्ष के साथ सम्बन्ध कैसे रहते है? इन सबके मद्देनजर राजस्थान में भाजपा की आगे की राह आसान नही दिखाई देती है ........ पनघट की कठिन डगर को देखते हुए भाजपा को फूक फूक कर कदम रखने होंगे.......