Monday 25 April 2016

नीतीश चले पी एम बनने




बिहार  की सत्ता पर ठसक के साथ तीसरी बार काबिज होने वाले जेडीयू अध्यक्ष और सूबे के सीएम नीतीश कुमार ने मिशन 2019 के लिए अभी से चुनावी  बिगुल फूंक दिया है नीतीश ने 2019 लोकसभा चुनाव की ज़मीन तैयार करते हुए बड़ा बयान दिया है।  उन्होंने  जद यू की कमान संभालने के बाद बड़ा ऐलान  कर दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ महा गठबंधन  बनाने में वह  उत्प्रेरक की भूमिका निभायेंगे जिससे 2019 में मोदी सरकार की विदाई हो सकेगी साथ ही उन्होंने यह भी  कहा है कि अगर बीजेपी का हराना है तो तमाम पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है। पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हाल में जद यू की राष्ट्रीय परिषद् में नीतीश की हुंकार के बाद लग रहा है कि पी एम  मोदी के खिलाफ वह उसी तरह की गोलबंदी सभी दलों को साधकर करना चाहते हैं जैसा प्रयोग उन्होंने  बीते बरस बिहार में किया 
 
मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत की तर्ज पर नीतीश ने अब नया नारा संघ मुक्त भारत का दिया है उन्होंने भरोसा ही नहीं उम्मीद जताई है भाजपा को महागठबंधन की तर्ज पर पराजित किया जा सकता है।   तो क्या माना जाए नीतीश ने बिहार से निकलकर पहली बार राष्ट्रीय राजनीती में सक्रिय होने के संकेत दे दिए हैं और क्या पहली बार बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर सभी दल नीतीश की छाँव तले एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ बड़ी मोर्चाबंदी करने जा रहे हैं  इन शुरुवाती संकेतों को डिकोड करें तो जद यू की कमान अपने  हाथ में लेते  ही नीतीश कुमार के निशाने पर अभी से 2019 चुका है जिसके खिलाफ वह माहौल बनाने में जुट गए हैं जिसकी शुरुवात आने वाले दिनों में उनके लखनऊ के दौरे से होने जा रही है यह भाजपा को शिकस्त देने के लिए गैर भाजपाई दलों को एक झंडे के नीचे लाने की कोशिश मानी जा सकती है क्युकि दिल्ली का रास्ता यूपी  से होकर गुजरता है   भारतीय राजनीती के सन्दर्भ  में यह कथन परोक्ष रूप से फिट बैठता है। 

दिल्ली से दूर पटना में श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में नीतीश कुमार जब अपनी राष्ट्रीय कार्यकारणी के अधिवेशन के दौरान अपना भाषण दे  रहे थे तो उनकी नजरें शायद  भारतीय राजनीती की इस ऐतिहासिक इबारत की ओर भी जा रही थी शायद इसलिए उन्होंने  लोक सभा चुनावो  से पहले  गैर भाजपा दलों और अपने कार्यकर्ताओ को तैयार  रहने की सलाह इशारो इशारो में दे डाली।

 इस राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक  में नीतीश  कुमार  की पीऍम बनने की हसरतें भी हिलारें मार रही थी शायद तभी आत्मविश्वास से लबरेज नीतीश  ने दावा कर डाला राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन  बनाने में उनकी भूमिका सिर्फ उत्प्रेरक की होगी   उत्प्रेरक किसी भी क्रिया की गति को बढाने में सहायक है  लिहाजा नीतीश ने भी अपनी सार्थकता को इशारो इशारो में बता दी    वहीँ जद यू को भी उम्मीद है नीतीश की साफ़ छवि और सुशासन बाबू की छवि को ढाल बनाकर 2019 से पहले वह गैर भाजपा दलों को अपने पाले में लाकर गठबंधन में स्वीकार्यता बढ़ा सकते हैं यूँ  तो  2019 की  चुनावी बिसात अभी बहुत दूर है मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काट की तैयारी नीतीश अभी से करने लगे हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव मोदी के मुकाबले नीतीश कुमार को सामने ला रहे हैं।    बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी उनका इस समय  भरपूर साथ दे रहे हैं। लालू ने तो यहां तक कह दिया कि नीतीश एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे तो हमें खुशी होगी।
 
उम्मीदों और देश की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर नीतीश  द्वारा भाजपा के खिलाफ गोलबंदी का प्रयोग आसान  नहीं लगता क्युकि  बिना उत्तर प्रदेश फतह किये बिना दिल्ली में अगली सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाने के सपने देखना मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा है यू पी में इस महागठबंधन  के मजबूत  होने की सूरत में ही नीतीश प्रधान मंत्री पद की दावेदारी कर सकते हैं लेकिन यहाँ  पर भी राजनीती के दिग्गज नेताजी को साधना नीतीश के लिए  आसान नहीं होगा नेताजी  महागठबंधन  से  बिहार चुनावों से पहले ही खुद बाहर हो चुके हैं    सपा  और बसपा के इर्द गिर्द ही यू पी की  राजनीती घूमती रही है लेकिन यह दोनों दल अपने गिले शिकवे भुलाकर साथ आयेंगे ऐसा कहना दूर की  गोटी है   रही बात अजीत सिंह की  तो उनका पश्चिमी यू पी पर जबरदस्त प्रभाव है लेकिन फिलहाल वह नेताजी के आसरे खुद राज्य सभा में जाने की जुगत में दिखाई दे रहे हैं भला वह अपनी पार्टी का विलय  नीतीश की पार्टी में करवाकर  क्यों अपने पैर कुल्हाड़ी मारेंगे  ऐसा ही हाल झारखंड के पूर्व  मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का है  जिनका कोई नावलेवा  अब नहीं बचा है तो  ऐसे हालतों  में नीतीश के पी एम के  सपनों को भला  कैसे पंख लग पायेंगे ?

 नीतीश के बारे में कहा जा रहा है वह आने वाले दिनों में अपनी पार्टी जद यू ,राजद,  झारखंड विकास मोर्चा , आर एल  डी का विलय कर जनविकास दल नाम की नई पार्टी खड़ी करना चाहते हैं लेकिन भाजपा के मजबूत होने के चलते इनका यह प्रयोग पूरे देश में साकार हो पायेगा इसमें संशय है बिहार देश नहीं है और देश का मतलब इस दौर में बिहार नहीं है हर राज्य की परिस्थितिया कमोवेश अलग अलग हैं और आज का वोटर भी अब बदल चुका है राष्ट्रीय राजनीती अपनी जगह है और राज्यों में छत्रपों के वर्चस्व  हो हम नहीं नकार सकते मुलायम सिंह , मायावती , नवीन पटनायक , जयललिता , ममता ,केजरीवाल, उमर अब्दुल्ला क्यों अपने राज्यों को नीतीश की पार्टी के हवाले कर देंगे और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे ? नीतीश का साथ बिहार में कांग्रेस ने दिया सोनिया का प्रयोग बिहार में सफल रहा लेकिन देश के मसले पर कांग्रेस भी अपनी 131 बरस पुरानी साख क्यों नीतीश के साथ जाने से खोएगी ? इस बीच कांग्रेस ने नीतीश को अपना समर्थन देने पर सतर्कता बरती है 

नीतीश कुमार ने इसके साथ ही  संघ मुक्त भारत की बात कही है। उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए गैर भाजपा दलों से एकजुट होने की अपील  की है।उन्होंने भरोसा दिलाया कि भाजपा विरोधी दलों कांग्रेस वामदल और अन्य क्षेत्रीय दलों को 2019  से पहले एक साथ लाने के लिए प्रयासरत रहेंगे।नीतीश के बयान  की प्रतिक्रिया में बीजेपी का कहना है कि वह नीतीश के महामोर्चा गठित करने के प्रयासों से परेशान नहीं है। इस बीच कांग्रेस ने नीतीश को अपना समर्थन देने पर सतर्कता बरती है    बीजेपी प्रवक्ता ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या राहुल गांधी ऐसे किसी मोर्चे की अगुवाई करेंगे या केवल उसका हिस्सा भर होंगे   राजनीती संभावनाओ का खेल है और यहाँ  महत्वाकांशा हिलारे मारती रहती है। इस समय नीतीश के साथ भी यही हो रहा है
 
यह पहला मौका नहीं है जब अलग मोर्चा बनाने की बात कही गई है। कई बार ऐसे प्रयास हो चुके हैं मगर यह मोर्चे बहुत दूर तक सफर तय नहीं कर पाए।1996 में नेताजी  ने अपने पैतरे से केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनाने की मंशा पर जहाँ पानी फेरा था वही बाद में  वह रक्षा मंत्री बन गए। 1999  में अटल बिहारी की सरकार गिरने के बाद  अपनी  दूरदर्शिता से कांग्रेस को गच्चा देकर उसे सरकार  बनाने से रोक दिया था वही नेताजी ने  2004 में न्यूक्लिअर डील पर यू पीए 1 को संसद में विश्वासमत प्राप्त करने में जहाँ मदद की वहीँ  यू पीए 2 के तीन साल के जश्न में वह  शरीक भी  हुए  तो वहीँ मौका आने पर कांग्रेस के साथ रहकर उसी के खिलाफ तीखे तेवर दिखने से बाज नहीं आये उसकी नीतियों को कोसते हैं और तीसरे मोर्चे का राग अपनी राष्ट्रीय  कार्यकारणी में  कई  बार अलापते रहे  जिसमे वह भाजपा -कांग्रेस दोनों को किनारे कर लोहियावादी, समाजवादी , वामपंथियों को साथ लेकर राजनीति की नई लकीर उसी तर्ज पर खींचते  दिखाई  दिए  जो उन्होंने 1996 में नरसिंह राव के मोहभंग के बाद खींची थी  इसके बाद देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल को साधकर तीसरे मोर्चे का दाव  खेल गया लेकिन यह प्रयोग भी असफल रहा   यू पी के  दौर में प्रोग्रेसिव  अलाइंस  बनाने  की बातें भी खूब हुई लेकिन चुनाव से पहले यह प्रयोग  भी फुस्स हो गया
 
दो बरस पहले  ही लोकसभा चुनाव के समय नेताजी  ने तमाम छोटे दलों को जोड़ कर भाजपा और कांग्रेस के सामने तीसरे मोर्चा के रूप में सशक्त चुनौती पेश करने की पहल की थी पर वह नाकामयाब रहे। अब नीतीश कुमार हर हर मोदी का भय दिखाकर सभी पार्टियों को जोड़ने की बात कर रहे हैं।   दरअसल जब लोग भाजपा और कांग्रेस से ऊब जाते हैं तब वह तीसरे विकल्प की तरफ चले जाते हैं। लेकिन जब यह दल सत्ता में रहते हैं तो इनके राजनीतिक हित  टकराने लगते हैं।  देश में अब माहौल बदल  चुका है विकास के नाम पर ही अब वोट मिल रहे हैं इस बात को हमें समझने पड़ेगा आज का भारत नब्बे के दशक वाला नहीं रहा जब मंडल कमंडल ने देश की राजनीती को झटके में बदल दाल था   आज  हर क्षेत्रीय दल का अपना समीकरण है तो पार्टियां भी जातीय  राजनीती के दंगल से अपने को बाहर नहीं निकाल पा रही हैं देश में क्षेत्रीय स्तर पर सभी विपक्षी दलों के आपस में टकराव हैं। जहां सपा होगी वहां बसपा के लिए साथ देना गवारा नहीं होगा। द्रमुक और अन्नाद्रमुक  एक साथ नहीं होना चाहेंगे। इस तरह अगर देखें तो नीतीश का सभी पार्टियों को साथ लाने का सपना तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक विपक्षी दल अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठें।
 
 राजनीती  की  नई  बिसात  में  2019  से ठीक पहले नीतीश  कुछ ऐसी खिचड़ी पकाना चाह रहे हैं जिससे भाजपा  से इतर एक नयी मोर्चाबंदी केंद्र  में शुरू हो सके जिसकी कमान वह खुद अपने हाथो में लेकर  केन्द्र  में  आने का  दावा  पेश कर सकें   1996  में जब नरसिंहराव सरकार से लोगो का मोहभंग हो गया तो नेताजी ही वह शख्स  थे जिसने समाजवादियो , वामपंथियों, लोहियावादी विचारधारा के लोगो को एक साथ   लाकर उस दौर में शरद पवार के साथ मिलकर एक नई  बिसात केंद्र की राजनीती में चंद्रशेखर को  आगे लाकर बिछाई थी उसी तर्ज पर  चलते हुए नीतीश  अपना राग गा रहे हैं  ,साथ में तीसरे मोर्चे के लिए भी हामी भरते दिख रहे हैं   दशकों  बाद वह  गैर भाजपाई  मोर्चे के लिए अपनी शतरंजी बिसात बिछाने में लग गए हैं   राजनीती के अखाड़े का यह चतुर  सुजान अब इस बात को बखूबी समझ रहा है अगर भाजपा  के खिलाफ अभी एक नहीं हुए तो समय हाथ से निकल जायेगा। वैसे भी नीतीश कुमार के पास  पी ऍम बनने का सुनहरा मौका शायद ही होगा जिसमे  1996 की  तीसरे मोर्चे  से  हुई गलतियों से सीख लेकर एक नई  दिशा में देश को ले जाने का साहस दिखा सकते है  

वैसे भी इस समय कांग्रेस ढलान  पर है तो भाजपा  पर भी  साढ़े  साती चल रही है मोदी  के लिए आने वाले 3  बरस  चुनौतियों  भरे रहेंगे वहीँ नीतीश के सामने भी आने वाले बरसों  में उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती है मोदी के सामने पूरा देश है तो नीतीश के सामने बिहार मोदी गुजरात मॉडल के बूते जब 7  रेस कोर्स का सफर तय कर सकते हैं तो नीतीश भी अपने बिहार मॉडल और सुशासन बाबू के आसरे देश में नई  लकीर  खींचने का माद्दा तो रखते हैं  शायद यही वजह है  जद  यू  के कैडर मे जोश है और तीसरी  बार बिहार फतह करने के बाद बिहार मॉडल और नीतीश के आसरे  अब दिल्ली जीतने की तैयारी  है   तीसरे मोर्चे की सियासत को आगे बढाने  का यही बेहतर समय है नीतीश  इसके मर्म को शायद समझ भी रहे हैं ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि राजनीती  के अखाड़े में नीतीश  का यह दाव  कितना कारगर होता है और आने वाले दिनों में छत्रप किस तरह उनके इस कदम पर ताथैय्या  करते हैं फिलहाल इसका इन्तजार सबको है