Monday 31 August 2015

देवीधुरा उत्तराखंड का बग्वाल


                              


उत्तराखण्ड जहां अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुषमा व नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए जाना जाता है वहीं इस देवभूमि की अनेक परम्पराएं यहां की धर्म संस्कृति से जुड़ी हुई है। ऐसी ही अनूठी परम्पराओं को अपने में संजोये देवीधूरा मेला है जिसे ‘‘आषाड़ी कौतिक‘‘ नाम से जाना जाता है। प्रतिवर्ष रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर लगने वाले इस मेले को ‘बग्वाल‘ नाम से अधिक जाना जाता है। वह इसलिए क्योंकि इस मेले में होने वाले पत्थर युद्ध को लेकर दर्शकों में कौतूहल बना रहता है।
             
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के चार जनपदों के मध्य देवीधुरा कस्बा स्थित है जो नैनीतालअल्मोड़ाउधमसिंहनगरचंपावत जिलों को एक दूसरे से जोड़ता है। जिला मुख्यालय चंपावत से 57 किमी0 की दूरी पर स्थित देवीधुरा कस्बा अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए मशहूर है। कहा जाता है कि देवीधुरा पूर्णागिरी का एक पीठ है जहां चंपा कालिका को प्रतिष्ठित किया गया। ऊंचे देवदार के घने वृक्षों व चीड़ के लम्बे वृक्षों के मध्य बग्वाल की पृष्ठभूमि चार राजपूती खामों के पुस्तैनी खेल से जुड़ी हुई है। खामों से तात्पर्य जाति से है जिसमें गहरवालवाल्कियालमगड़ियाचम्याल मुख्य है। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन पूजा कर यह सभी एक दूसरे को निमंत्रण देते हैं और बग्वाल में भागीदार बनते हैं। बग्वाल में भाग लेने वाले कुछ दिन पूर्व से अपनी तैयारियों में जुट जाते हैं। पाषाण युद्ध के रणबांकुरों के चार दल सर्वप्रथम एक-एक करके देवी माता बाराही की परिक्रमा करते हैं बग्वाल में वल्किया व लमगड़िया खाम एक छोर पश्चिम से प्रवेश करती है तो चम्याल व गहरवाल पूर्वी छोर से रणभूमि में आती है। मंदिर के पुजारी द्वारा आशीर्वाद के बाद सभी एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। आमतौर पर गहरवाल खाम सबसे अंत में आती है जिन पर गहखाल खाम का व्यक्ति पत्थर फेंककर प्रहार करता है। गहरखाल के पत्थर फेकने के साथ बग्वाली कौतिक शुरू हो जाता है। युद्ध में भाग लेने वाली चार खामों वैसे तो आपस के मित्र होते हैं लेकिन पाषाण युद्ध के समय वह सारे रिश्ते-नाते छोड़ एक दूसरे पर पूरी ताकत के साथ वार कर देते हैं। सुरक्षा के लिए दलों द्वारा लाठियों व फर्रो को सटाकर एक कवच बना लिया जाता है जो घायलों की सुरक्षा का कार्य करता है।बग्वाल के दौरान पत्थरों की वर्षा द्वारा शरीर के विभिन्न अंग लहुलुहान हो जाते हैं लेकिन रक्त की बूंदे गिरने के बाद भरी कोई चित्कार नहीं सुनायी पड़ता है। मुख्य पुजारी एक व्यक्ति के शरीर के बराबर रक्त गिरने के बाद बग्वाल को रोकने का आदेश दे देते हैं पत्थर मारने का यह सिलसिला ताम्र छात्र व चंवर गाय की पूंछ के मैदान में पहुंचते ही समाप्त माना जाता हे। तकरीबन 20 से 25 मिनट तक चलने वाले इस पाषाण युद्ध के समाप्त होने के बाद बग्वाल खेलने वाली खामें एक दूसरे के गले मिलते हैं। पत्थरों से घायल हुए लोगों को गंभीर चोटें नहीं आती ऐसा माना जाता है कुछ वर्ष पूर्व तक लोग बग्वाल खेले जाने वाले मैदान की बिच्छू घास अपने शरीर में लगा लिया करते थे जिसमें वे कुछ क्षण बाद स्वयं ठीक हो जाते थे लेकिन वर्तमान में यहां घायलों के इलाज का समुचित प्रबंध रहता है।

                   

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवीधुरा किसी समय काली के उपासना का प्रमुख केन्द्र था जिसमें देवी के गणों को प्रसन्न करने के लिए नर बलि की प्रथा प्रचलित थी यह बलि बग्वाल खेलने वाली चार खामों से ही दी जा सकती थी एक बार चमियाल खाम की एक वृद्धा  के परिवार से बलि की बारी आयी परिवार में उस वृद्धा का एकमात्र सहारा उसका एक पौत्र था। कहा जाता है उस वृद्धा ने वंश नाश के भय से मॉ बाराही की आराधना की और कठोर तप किया। वृद्धा के तप से मॉ बाराही प्रसन्न हुई और उन्होंने राजा व प्रजा से बलि का दूसरा विकल्प ढूंढने को कहा। प्रजा के विचार- विमर्श के बाद राजा ने आम सहमति बनाते हुए यह निर्णय लिया कि यदि मनुष्य के रक्त के बराबर रक्त बहा दिया जाए तो उसे नरबलि माना जा सकता है कहा जाता है तभी से पत्थर मारकर रक्त बहाने का सिला चलन में है। अठवार का तात्पर्य है कि किसी मनोकामना के पूर्ण होने के बाद व्यक्ति द्वारा जो बलि स्वेच्छा से दी जाती है अठवारी बलि बग्वाल के एक दिन पहले होती है। यह समय चतुदर्शी को रहता है। क्योंकि चतुदर्शी को पूर्णिमा पड़ती है और इसी दिन पाषाण युद्ध होती है। अठवारी में एक भैंस,छः बकरे व एक नारियल चढ़ते हैं।

देवीधुरा के बाराही देवी के मंदिर में तांबे के पिटारे में रखी देवी की मूर्तियां कई तरह के रहस्यों को समेटे हैं तांबे के पिटारे में महाकाली,सरस्वती व बाराही की मूर्तियां हैं। बाराही की मूर्ति में तेज चमक होने के कारण किसी ने अपने खुले नेत्रों से इसके दर्शन नहीे किये। ऐसा माना जाता है कि बाराही माता लक्ष्मी का नवीन रूप है जिसके दर्शन वर्जित हैं। यदि कोई इसे देखने का प्रयास करता है तो उसे अपनी ज्योति से हाथ धोना पड़ता है। इसी कारण मंदिर के मुख्य पुजारी भी देवी को स्नान कराते समय आंखों में पट्टी बांधे रखते हैं।
                 




बग्वाल के दिन चारों खामों के प्रधान देवी का पहरा करते हैं बग्वाल के अगले दिन तीनों मूर्तियों को स्नान कराया जाता है। तांबे के बक्से की चाबी गहरवाल के प्रधान के पास रहती र्है वह बग्वाल के दिन इसे अन्य प्रधानों को देता है सर्वप्रथम बाराही की मूर्ति को दूध से स्नान कराया जाता है फिर दो मूर्तियों को। तत्पश्चात् तीनों को उस बक्से में रख दिया जाता है।

 उत्तराखंड के देवीधुरा का बग्वाल ‘मेला‘ आधुनिक परमाणु युग में भी पाषाण युद्ध की परम्परा को संजोये है। यह मेला आपसी सदभाव की जीती जागती प्रत्यक्ष मिसाल हे। देवीधूरा क्षेत्र में पर्यटन की व्यापक संभावनाऐं हैं। यहां के बाराही मंदिर में प्रतिवर्ष खेले जाने वाले बग्वाल को देखने देशभर से लोग पहुंचते हैं और एक अमिट छाप लेकर जाते हैं। यहां पहुंचकर श्रद्धालुओं को देवभूमि में अपनी उपस्थिति का वास्तविक अहसास होता है। तीर्थाटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसे पवित्र स्थल राज्य के आर्थिक विकास में खासे उपयोगी है। यह अलग बात है कि सरकारी अव्यवहारिक नीतियों के चलते देवीधुरा के विकास का कोई खासा तैयार नहीं किया गया है जिस कारण उत्तराखंड  में सांस्कृतिक परम्पराएं दम तोड़ रही है। वैश्वीकरण के इस दौर में यदि आज बग्वाल सरीखी सांस्कृतिक विरासत जीवित है तो इसका श्रेय इन मान्यताओं का वैज्ञानिक स्वरूप है।

Thursday 27 August 2015

भारत की 'कूटनीति ' में घिर गया 'पाकिस्तान '




दुनिया जानती है एन एस ए स्तर की बातचीत किस तरह पाक के अड़ियल रवैये के चलते रद्द हुई है लेकिन इन सबके बावजूद पाक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा | तमाम मंचों पर करारी मात खाकर अब पाक की बौखलाहट पूरी दुनिया के सामने ना केवल उजागर हो रही है बल्कि अन्तराष्ट्रीय मंचो पर भी उसकी कारिस्तानी पूरी दुनिया देख रही है | भारत के साथ सचिव स्तर की वार्ता रद्द हो जाने के बाद पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार  सरताज अजीज ने डॉन में प्रकाशित अपने लेख में भारत को खूब खरी खोटी सुनाते हुए दोनों पक्षों के बीच रद्द हुई वार्ता के लिए भारत को जिम्मेदार बताया है | अजीज ने कड़े शब्दों में भारत को कहा है वह पाक को कम ना समझे क्युकि पाक भी परमाणु सम्पन्न देश है और वह अपनी हिफाजत करना खुद जानता है | अब इस तरह के संकेतों को अगर डिकोड किया जाए तो समझा जा सकता है यह कहने के पीछे अजीज की मंशा क्या रही होगी ? साफ़ है पाकिस्तान  चक्रव्यूह में इस तरह उलझ गया है एक तरफ चुनी हुई सरकार है तो दूसरी तरफ सेना और आई एस आई और तीसरी तरफ अलगाववादी नेता जो अपने इशारों पर हिंदुस्तान पाकिस्तान को न केवल नचाते हैं बल्कि हर मामले में अपने को तीसरा पक्ष बनाये जाने का मर्सिया हर वक्त पढ़ते रहते हैं | अब ऐसे हालातों का सीधा प्रभाव भारत पाक संबंधो पर पड़ना लाजमी ही है | दुनिया अब पाक के चेहरे को सही से पहचान रही है | हर किसी को पता है भारत पाक की यह वार्ता पाक की जिद के चलते रद्द हुई है |

 भारत शुरू से ही किसी तीसरे पक्ष को वार्ताकार बनाये जाने का विरोध कर रहा है जबकि पाकिस्तान हुर्रियत और अलगाववादी नेताओं के प्रभाव में ही हमेशा रहा है जिसका नतीजा एक बार फिर सबके सामने है | पाक  के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने भी अब कश्मीर मुद्दे को शामिल किये बिना भारत के साथ बातचीत को व्यर्थ बताया है | उन्होंने कहा है कश्मीरी नेता इस मसले का महत्वपूर्ण पक्ष है | उनके भविष्य को लेकर कोई फैसला उनकी राय और उनसे बातचीत के बिना हल नहीं किया जा सकता | शरीफ ने यह बातें अजीज और डोभाल के बीच होने वाली एन एस ए स्तर की बातचीत के रद्द होने के ठीक बाद कही हैं | वैसे इस मामले में पाक को भारत से सीख लेनी चाहिए | यह वार्ता रद्द होने के बाद भारत की पहली प्रतिक्रिया न केवल संयमित थी बल्कि उसने उन्ही बातों को दोहराया जो वह शुरुवात से कहता आया है | वह पाकिस्तान से यह कहता रहा है कि पाक कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के साथ मुलाक़ात नहीं करे तो तब बातचीत ट्रैक पर आ सकती है लेकिन पाकिस्तान तो मानो अलगाववादी नेताओं की गोद में बैठकर खेल रहा है और ऐसे उलूल जुलूल बयान दे रहा है जिससे भारत पाक संबंधों में तनाव की छाया पड़ना तय माना जा सकता है | 

वैसे पाकिस्तान  संघर्षविराम का लगातार  उल्लंघन करते हुए जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भारत की अग्रिम सीमा चौकियों पर गोलीबारी करने से बाज नहीं आ रहा है | भारत की तरफ से सचिव स्तर की वार्ता रद्द किए जाने से पहले और  बाद  संघर्षविराम  उल्लंघन के हर दिन नए मामले सामने आ रहे हैं   । अपनी करतूतों से पाकिस्तान ने एक बार फिर अपना घिनौना  चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है ।  जम्मू कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा पर  भारी गोलाबारी कर पाकिस्तान ने  नवम्बर 2003 की  संघर्ष विराम वाली उल्लंघन की उस लीक पर चल निकला है जहाँ अपनी बर्बर कार्यवाही से वह फिर से कश्मीर को लेकर एक नई किस्सागोई करने में लग गया है क्युकि पाकिस्तान के अन्दर नवाज शरीफ सरकार के सामने जैसा संकट अभी खड़ा है उससे उनका बाहर निकलना मुश्किल दिख रहा है और कश्मीर को ढाल बनाकर पाकिस्तान एक बार फिर अपना बरसो पुराना वही राग अलाप रहा है जिसमे कश्मीर को केंद्र में लाकर हमेशा से नई परिस्थिति सामने लायी जाती रही है  ।  

सीमा पार अपनी  बर्बर कार्यवाही से जहाँ  पाक  तमाम अन्तरराष्ट्रीय  कानूनों की धज्जियाँ  उड़ाने से बेपरवाह नजर आता है वहीँ कश्मीर को केंद्र में रखकर वह भारत से बातचीत का राग दोहराता रहा है लेकिन बीते दिनों मोदी ने जिस तरीके से विदेश सचिवो की बातचीत को शुरू  करने का फैसला किया और लाहौर और शिमला के ट्रेक पर बात बढ़ाई उसने पहली बार कश्मीर के सवालों को भी खड़ा किया है | पाक बिना तीसरे पक्ष को साधे बिना इस मामले पर आगे नहीं बढ़ना चाहता | 

नियंत्रण रेखा तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम का उल्लघन जारी रखने को  को गंभीर और उकसाने वाला करार देते हुए भारत ने कहा कि यह द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत अनुकूल नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऊफा वार्ता के दौरान भी   कहा था किसी भी सार्थक द्विपक्षीय वार्ता के लिए आवश्यक रूप से एक ऐसा माहौल जरूरी है जो आतंकवाद एवं हिंसा से मुक्त हो | नियंत्रण रेखा तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा दोनों स्तरों पर घुसपैठ संघर्षविराम उल्लंघन गंभीर है और इन घटनाओं से ऐसा माहौल पैदा हो रहा है जो दोनो देशों के बीच संबंधों के लिए बहुत सहायक नहीं रहने वाला |

पाकिस्तान द्वारा सैकड़ों बार संघर्षविराम का उल्लंघन मोदी सरकार के आने के बाद किया गया है | इस दौरान कई मासूम  मारे गये और कई जवानों सहित अन्य घायल हो गये जिसकी तस्दीक हमारी सेना भी करती रही है | सीमा पार हो रही इस कार्यवाही ने हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है अब पकिस्तान के साथ  किस मुह से हम दोस्ती का हाथ बढ़ाये ? पाक के साथ दोस्ती का आधार क्या हो वह भी तब जब वह लगातार भारत की पीठ पर छुरा भौंकते  हुए लगातार विश्वासघात ही करता जा रहा है । पाक के साथ भारत की एन एस ए स्तर की वार्ता रद्द होने की जहाँ अमरीका ने निंदा है वहीँ आम आदमी अब भारतीय नीति नियंताओ से सीधे सवाल पूछ रहा है कि अब समय आ गया है जब पाक से सारे रिश्ते तोड़ ही लिए जाएँ तो यह बेहतर ही रहेगा  ।  यही नहीं विपक्ष भी अगर इस बार सरकार  के द्वारा  की  जाने वाली हर बातचीत के विरोध में कदमताल कर रही हैं तो यह सही भी है क्युकि  लगातार होते हमलो  से हमारा धैर्य अब जवाब दे रहा है । वैसे भी नफरत की नीव में सुलग रहा पाक कभी अपने को बदल नहीं सकता |  सीमा पार उल्लंघन के जरिये पाक की  हर कोशिश  भारत में उन्माद फैलाने की ही बन रही है ।

     असल में  कारगिल के दौर में भी पकिस्तान ने भारत के साथ गलत सलूक किया था  ।  हमारे प्रधानमंत्री वाजपेयी रिश्तो  में गर्मजोशी लाने लाहौर बस से गए लेकिन  नवाज  शरीफ  को अँधेरे में रखकर मिया मुशर्रफ  कारगिल की पटकथा तैयार करने में लगे रहे । इस काम में उनको पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला था । इस बार की कहानी भी पिछले बार से जुदा नहीं है । पहली बार आई एस आई पाकिस्तान के आंतरिक और बाह्य मामलो में अपना सिक्का मजबूत कर रही है |यह सच शायद ही किसी से अब छुपा है कि आई एस आई के बिना पाकिस्तान में पत्ता भी नहीं खड़कता और सेना  भारत के साथ रिश्तो को सुधारने के बजाए बिगाड़ना ही चाहती है । यह उनके द्वारा दिए गए हाल के बयानों में भी  साफ़झलका है |

पाक के सियासी संकट पर नजर रख रहे अंतर्राष्ट्रीय जानकारों का मानना है इस कार्यवाही में सेना का पाक के सैनिको को  पूरा समर्थन मिल रहा है । पाक में सरकार तो नाम मात्र की है वहां पर चलती सेना की ही है और बिना सेना के वहां पर पत्ता भी नहीं हिला हिलता  । कट्टरपंथियों की बड़ी जमात वहां ऐसी है जो भारत के साथ सम्बन्ध सुधरते नहीं देखना चाहती है ।  ऐसी सूरत में अगर हम बार बार उससे दोस्ती का राग  छेड़ते है  तो यह हजम नहीं होता क्युकि  छलावे के सिवा यह कुछ भी नहीं है । ऐसे में मोदी सरकार द्वारा हुर्रियत को द्विपक्षीय बातचीत में शमिल ना किये जाने वाले फैसले को सही ठहराया जाना जायज है और मोदी ने हुर्रियत नेताओं  को भाव न देकर कश्मीर को लेकर एक नई लकीर अजित  डोभाल के आसरे खींचने की कोशिश की थी जिसमे पाक को मुह की खानी पड़ी क्युकि डोभाल के मुकाबले अजीज बहुत कमजोर नजर आ रहे थे | ऐसी खबरें  खुद पाक के कई बड़े चैनल चला चुके थे  और वैसे भी अजित डोभाल पाक को कई डोजियर इस बातचीत में सौपने वाले थे जिसमे मुंबई हमलो के आरोपियों से लेकर दाउद के पाक में होने के सबूत शामिल थे | लेकिन डोभाल ने आतंकवाद के मसले पर पाक को चारों तरफ से ऐसे घेर लिया कि पाक को हुर्रियत का पुराना राग छेड़ने पर मजबूर होना पड़ा जिसके चलते डिनर की टेबल में आने से पहले ही पाक भाग गया | 

 दुखद पहलू यह है पाक जहाँ  नियंत्रण रेखा पर हो रही घुसपैठ और  आतंकी  घटनाओं  में अपना हाथ होने से  हमेशा इनकार करता  रहा है वहीँ भारत सरकार कह रही है वह हमारे सब्र का इम्तिहान नहीं ले तो यह पहेली किसी के गलेनहीं उतर रही । आखिर कब तक हम पाक के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते रहेगे  और बातचीत से मेल मिलाप बढ़ायेंगे जबकि हर मोर्चे पर पाकिस्तान  हमको धोखा ही धोखा देता आया है । इस घटना के बाद हमारे नीतिनियंताओ को यह सोचना पड़ेगा अविश्वास की खाई  में दोनों मुल्को की दोस्ती में दरार पडनी  तय है । अतः अब समय आ गया है जब हम पाक के साथ अपने सारे सम्बन्ध तोड़ डालें । हमें अपने उच्चायुक्त को पाक से वापस बुला लेना  चाहिए ताकि पाक के चेहरे को अब पूरी दुनिया में बेनकाब किया जा  सके और इस दिशा में अब हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को अपनी कूटनीति के आसरे आगे बढ़ना होगा जिसमे अंतर्राष्ट्रीय  मंचों पर आतंवाद के मसले पर पाक को बेनकाब किया जा सके | 

  मुंबई  में 26/11 के हमलो में भी पाक की संलिप्तता पूरी दुनिया के सामने ना केवल उजागर हुई थी बल्कि पकडे गए आतंकी कसाब ने  यह खुलासा  भी किया हमलो की साजिश पाकिस्तान में रची गई जिसका मास्टर माइंड हाफिज मोहम्मद  सईद  था । हमने मुंबई हमलो के पर्याप्त सबूत पाक को सौंपे भी लेकिन आज तक वह इनके दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है । आतंक का सबसे बड़ा मास्टर माईंड हाफिज पाकिस्तान में खुला घूम रहा है और  भारत  केखिलाफ लोगो को जेहाद छेड़ने के लिए उकसा भी रहा है लेकिन आज तक हम पाक को हाफिज के मसले पर ढील ही देते रहे हैं  यही कारण  है वहां की सरकार  उसे पकड़ने में नाकामयाब रही है । 

 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमले के बाद उसके जमात उद  दावा ने  कश्मीर के ट्रेंनिग कैम्पों में घुसकर युवको को  जेहाद के लिए प्रेरित किया । अमेरिका द्वारा उसके संगठन  को प्रतिबंधित  घोषित  करने  और उस पर करोडो डालर के इनाम रखे जाने के बाद भी पाकिस्तान  सरकार  ने उसे कुछ दिन लाहौर की जेल में पकड़कर रखा और जमानत पर रिहा कर दिया । आज  पाकिस्तान  उसे   पाक में होने को सिरे से नकारता रहा है जबकि असलियत यह है पुंछ  में हाफिज की संलिप्तता कई बार उजागर भी  हुई है । पाकिस्तान के कब्जे वाले पी ओ  के में हाफिज का जबरदस्त प्रभाव है जो अभी  पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ भारत में घुसपैठ बढाने की कार्ययोजना को तैयार कर रहा है ।  भारतीय गृह मंत्रालय भी अब सीमा पार हो रही गोलाबारी को लेकर चिंतित ही नहीं चौकन्ना हो गया है | यही नहीं मुंबई के 1993 के हमलों का मास्टर माइंड दाऊद भी  पाकिस्तान में ही छिपा हुआ है | उसने पाक के 9 शहरों में अपने ठिकाने बनाए हुए हैं जिनमे कराची, इस्लामाबाद और लाहौर सरीखे शहर शामिल हैं लेकिन पाक सरकार और सेना दाऊद के पाक में ना होने की बात अक्सर दोहराती रहती है |  अब ऐसे हालातो में पाक हमसे  बेहतर सम्बन्ध कैसे बना सकता है जबकि पाक भारत सरकार को किसी मसले पर तमाम डोजियर सौपे जाने के बाद भी सहयोग नहीं करता   ?

 26 / 11 के हमलो के बाद भारत ने  जहाँ कहा था जब तक 26 /11 के दोषियों पर पाक  कार्यवाही नहीं करेगा तब तक हम उससे कोई बात  नहीं  करेंगे लेकिन आज तक उसके द्वारा दोषियों पर कोई कार्यवाही ना किये जाने के बाद भी हम 200 बिलियन व्यापार , वीजा  नियमो में ढील , क्रिकेट और विदेश सचिवो  के आसरे अगर इस दौर में निकटता बढाने की  सोच  रहे हैं तो यह हमारी लुंज पुंज विदेश नीति वाले रवैये को उजागर करता है । भारत तो पहले  ही पाक को  मुंबई हमलों के सभी सबूत पेश कर  चुका  है लेकिन पाक उस पर कोई कार्यवाही  क्यों नहीं करता ?  अब तो  हर घटना में अपना  हाथ होने से इनकार करना पाक का शगल ही बन गया है । 

लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर युद्ध विराम तो नाम मात्र का है इसके बावजूद भी उस पूरे इलाके में सैनिको के बीच अकसर तनाव देखा जा सकता है और फायरिंग की घटनाएं आये  दिन होती रहती हैं।  15  अगस्त को भी पाक सेना की तरफ से भारतीय जवानों को निशाना बनाया गया | भारतीय सेना में घुसपैठ की कार्यवाहियां अब पाक की सेना  ही कर  रही है क्युकि  पाक  का पूरा ध्यान अपने अंदरूनी झगडो  और तालिबान में लगा रहा है । उसे लगता है अगर ऐसा ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में कश्मीर उसके हाथ से निकल जायेगा । अतः ऐसे हालातो में वह अब लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनो को आई एस आई एस के जरिये  पी ओ  के  में भारत के खिलाफ एक  बड़ी जंग लड़ने के लिए उकसा रहा  है जिसमे कई कट्टरपंथी संगठन उसे मदद कर रहे हैं । यही नहीं घाटी में अब आई  एस आई एस के झंडे भी कई मर्तबा लहराए जा रहे हैं जो हमारे लिए खतरे की घंटी हैं |

पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है । वहां पर सेना कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली ही  रही है । नवाज  सरकार तो नाम मात्र की लोकत्रांत्रिक है  असल नियंत्रण तो सेना का हर जगह है ।  पाक इस बार यह महसूस कर रहा है अगर समय रहते उसने भारत के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो कश्मीर का मुद्दा ठंडा पड  जायेगा । अतः वह भारतीय सेना को अपने निशाने पर लेकर कट्टरपंथियों की पुरानी  लीक पर चल निकला है । आने वाले दिनों में भारत को चौकन्ना रहने की जरुरत है  क्युकि  तालिबानी लड़ाके जिन्होंने पाक में पनाह ली हुई है वह आई एस आई एस के जरिये भारत में घुसपैठ तेज कर सकते हैं । कश्मीर का राग पाक का पुराना राग है जो दोस्ती के रिश्तो में सबसे बड़ी दीवार है । ऐसे दौर में हमें पाक पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरतहै । हमारी सेना को ज्यादा से ज्यादा अधिकार सीमा से सटे इलाको में मिलने चाहिए ।

 सीमा पार खराब हालातो के चलते  अब भारत को पाक के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए । उसे किसी तरह की ढील नहीं मिलनी चाहिए । पकिस्तान हमारे धैर्य  की परीक्षा ना ले अब ऐसे बयान देकर काम नहीं चलने वाला क्युकि  सीमा पार की गोलाबारी की घटनाओ ने  हमारे  सैनिकॊ  के मनोबल को   गिराने का काम किया है । पाक के साथ भारत को अब किसी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए और कूटनीति के जरिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर उसके खिलाफ माहौल बनाना  चाहिए  साथ ही अमेरिका सरीखे मुल्को से बात कर यह बताना  चाहिए  आतंक के असल सरगना पकिस्तान में  पल रहे हैं और आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली हर मदद का इस्तेमाल पाक दहशतगर्दी फैलाने में कर रहा है । अगर पाक को विदेशो से मिलने वाली मदद इस दौर में बंद हो जाए तो उसका दीवाला निकल जायेगा । ऐसी सूरत में कट्टरपंथियों के हौंसले भी पस्त हो जायेंगे । तब भारत  पी ओ के में चल रहे आतंकी शिविरों को अपना निशाना बना सकता है माकूल कार्यवाही के लिए यही समय बेहतर होगा । रक्षा मंत्री मनोहर परिकर को भी अब पाक मामले में कोई लकीर खीचने की जरुरत है |   अब समय आ गया है जब पाक के खिलाफ भारत बातचीत के विकल्पों से इतर कोई बड़ी कार्यवाही की रणनीति अख्तियार करे क्युकि एक के बाद एक झूठ  बोलकर पाक हमें धोखा दे रहा है और  कश्मीर के मसले के अन्तरराष्ट्रीयकरण  के पक्ष में खड़ा है ।

                   आज तक हमने पाक के हर हमले का जवाब बयानबाजी से ही दिया है । भारत सरकार धैर्य , संयम  की दुहाई देकर हर बार लोगो के सामने सम्बन्ध सुधारने की बात दोहराती रहती है ।  इसी नरम रुख से पाक का दुस्साहस इस कदर बढ  गया है  अंतरराष्ट्रीय नियमो का उल्लंघन करता है और कश्मीर पर मध्यस्थता का पुराना राग छेड़ता  रहता है । यह दौर नमो सरकार के लिए भी  असली परीक्षा का है  क्युकि  उसी की नीतियां अब पाक के साथ भारत के भविष्य को ने केवल तय कर सकती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय  मोर्चे पर यह मामला उसकी कूटनीति के आसरे दुनिया तक पहुच सकती  है ।  मोदी अपनी विदेश नीति से सबका ध्यान खीच रहे है | वह मध्य पूर्व के कई देशो के साथ अरब देशों में भी घूमघूमकर  इशारों इशारों में पाक को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं | वह पूरी दुनिया घूमकर भारत के अनुकूल नीतियों को बनाने में लगे हैं और उनकी इस  विदेश नीति  पर इस बार पूरी दुनिया की नजर  है | वह भूटान से लेकर नेपाल और म्यामार से लेकर अमरीका , जर्मनी , चीन  जापान , दुबई को अपने आसरे न केवल साध रहे हैं बल्कि पहली बार नेहरु से लेकर इंदिरा की नीतियों से इतर नई राह अपने विदेश दौरों  में  खोल रहे हैं | ऐसे में पाक को लेकर भी अब कोई निर्णायक फैसला लेने का वक्त उन्हें देना होगा | भारत बार बार भले ही अपनी तरफ से  बातचीत के दरवाजे खोलने की कोशिश करता रहा हो लेकिन पाकिस्तान की दिलचस्पी  न तो पहले बातचीत में रही है और न ही शायद भविष्य में कभी रहे | ऐसे में अब समय आ गया है हम  संयम को छोड़कर अपनी कूटनीति से पाक को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मात  दें | 

Friday 21 August 2015

नगरीय निकाय चुनावों ने लौटाई 'शिव' के चेहरे की मुस्कान

 




मुरैना, उज्जैन, हरदा, चक्रघाट ,भैंसदेही, कोटार, सुवासरा और विदिशा के नगरीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की फतह के बाद मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री  शिवराज सिंह चौहान का कद राष्ट्रीय  राजनीती में एक बार फिर बढ़ गया है । व्यापम घोटाले पर तीखी आलोचना झेलने के बावजूद मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के 10 में से 8 नगरीय निकाय के चुनावों में जीत हासिल की है।  मध्यप्रदेश के हालिया निकाय चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से न केवल आठ सीटें छीन ली बल्कि कांग्रेस  महज एक ही सीट बचा पाने में सफल हो पाई। अब राज्य के 16  नगर निगम पर भाजपा का कब्ज़ा हो चला है। व्यापम की आंच के बीच 49 मौतों के बाद यह जीत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए बड़ी राहत लेकर आई है |  मध्य प्रदेश के इन नगरीय निगमों को जीतने के बाद शिवराज ने अपने को राजनीती के चाणक्य के रूप में  स्थापित किया है बल्कि निगम दर निगम कांग्रेस का सफाया जिस तरीके से हुआ है उसने पहली बार इस बात को साबित किया है प्रदेश में  कांग्रेस को सत्ता में वापसी के लिए लम्बा इन्तजार करना पड़  सकता है ।  

विधानसभा और फिर लोकसभा चुनावों के बाद नगरीय निकाय चुनावों में  मिली कांग्रेस की  हार में बड़े सबक छिपे हुए हैं । इसने एक बात को साबित किया है अब अगर आपको चुनाव जीतना है तो खूब पसीना बहाना होगा और  जनता की नब्ज को पकड़ना होगा जिसे शिवराज ने मध्य प्रदेश में बीते कई वर्षों  से बखूबी पकड़ा है । वह इन चुनावो में ना केवल जीत के स्टारप्रचारक थे बल्कि भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार चौहान ने जिस तरीके से शिवराज के साथ बिसात बिछाई वह न केवल उनके बेहतर तालमेल की मिसाल थी बल्कि सत्ता और संगठन का बेहतर तालमेल भी नजर आया । इन निकाय चुनावों के परिणामों ने शिवराज को संजीवनी देने का काम किया है | कहने को यह नगरीय निकाय चुनाव था लेकिन भाजपा शुरू से इन चुनावों को लेकर संजीदा थी शायद यही वजह रही चुनाव की तारीखें घोषित होते ही उसने अपना होम वर्क शुरू कर दिया | भाजपा के नेताओं ने इन चुनावों में नगरीय निकायों में घूमघूम कर न केवल प्रचार किया बल्कि शिव के मंत्रियों ने भी दिन रात एक किया | इस जीत के बाद भाजपा गदगद है वहीँ व्यापम मसले पर शिवराज के इस्तीफे की मांग कर रही कांग्रेस को भी सांप सूंघ गया है | 

कांग्रेस ने विधानसभा-लोकसभा चुनावों के बाद नगरीय निगम  चुनावों में भी अपने लगातार कमजोर प्रदर्शन को दोहराया है। नगर निगम चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भरोसा डगमगा गया है। चुनाव में उनके शीर्ष नेताओं के बीच  भारी गुटबाजी देखने को मिली । गुटबाजी की बीमारी सुरेश पचौरी के दौर से ही कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रही है । अरुण यादव के दौर के आने के बाद भी परिस्थितियां कमोवेश वैसी ही हैं जैसी कमोवेश बीते दौर में हुआ करती थी ।

 कांग्रेस के पास मध्य प्रदेश में दिग्गी राजा , ज्योतिरादित्य , अरुण यादव , अजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी,  कांति  लाल भूरिया के चेले चपौटों की अभी भी भारी फ़ौज ही कागजो में है |  कई बरस बाद भी उसके इन  दिग्गज नेताओ  के इलाको में ही  कांग्रेस की माली हालत सुधर नहीं सकी है ।  मिसाल के तौर पर कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री  कमलनाथ का अपने गृह क्षेत्र  में बुरा हाल है | आज अगर वहां कोई चुनाव हो तो वह एक भी सीट अपने दम पर नहीं जिता सकते | छिंदवाड़ा में भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है  जबकि छिंदवाड़ा ऐसी जगह है जहाँ कमलनाथ का जबरदस्त प्रभाव एक दौर में न केवल था बल्कि उनके अलावे वहां पर किसी का पत्ता तक नहीं खड़कता था | आज हालत यह है भाजपा कमलनाथ के इलाके में अपने पैर जमाने की कोशिशों में लगी है |  आने वाले दिनों में कमलनाथ को अपना गढ  अगर  मजबूत रखना है तो अभी से उन्हें खासी मेहनत  की जरुरत पड़ेगी नहीं तो शिवराज की आंधी में पूरी कांग्रेस ढह जायेगी । यही हाल राजगढ की सारंगपुर सीट का है जहाँ पर दिग्गी राजा का एकछत्र राज शुरू से कायम रहा है लेकिन अब यहाँ भी कांग्रेस ढलान पर है और दिग्गी राजा के लिए खतरे की घंटी बज रही है |  

कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के लिए भी नगरीय निकाय की हार निश्चित ही  बड़े खतरे की घंटी  है ।  इन चुनावो के बाद उनका सिंहासन भी खतरे में पड़ता नजर आ रहा है ।  कांग्रेस के साथ  मध्य प्रदेश  में एक बड़ी बीमारी गुटबाजी की लग गयी है जो हर चुनाव में उसका खेल ख़राब कर देती है  ।  इस बार भी ऐसा ही हुआ है | कांग्रेस के हर बड़े नेता के इलाकों में भाजपा मजबूती के साथ आगे बढती जा रही है लेकिन कांग्रेस हर चुनाव से सबक सीखने को तैयार ही नहीं दिखती | वहीं भाजपा की जीत में  बूथ मैनेजमेंट  और कार्यकर्ताओ  के समर्पण और शिवराज सिंह चौहान से लेकर संगठन की मजबूत बिसात को हर छोटे बड़े चुनाव में  नजरअंदाज नहीं किया  सकता । भाजपा की हर जीत में  जीत के असल  नायक शिवराज ही रहते हैं ।  मुख्यमंत्री ना केवल हर चुनाव में  कई किलोमीटर के रोड शो  न केवल अपने दम पर करते हैं बल्कि पूरे प्रदेश  में घूम घूम कर अपने प्रत्याशी के लिए अपना तन मन समर्पित करने से कभी पीछे नहीं रहते वहीं कांग्रेस के पास शिवराज सरीखा कोई नेतृत्व नहीं बचा है जो उनको चुनौती देने की स्थिति में खड़ा है |  

नमो के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना अब मध्य प्रदेश में साकार  होती दिख रही है । शिवराज ने मध्य प्रदेश में जिस तरीके से  बीते कुछ बरस से सबको साथ लेकर अपना मध्य प्रदेश बनाने की ठानी है वह उनकी दूरगामी सोच का परिचायक है । मुख्यमंत्री के रूप में जिस तरीके से शिवराज ने मध्य प्रदेश में काम किया है और उसे बीमारू राज्य से बाहर निकाला है उससे अब भाजपा का शिवराज मॉडल आने वाले दिनों में भाजपा शासित  राज्यों के लिए रोल मॉडल बन सकता है । नगरीय निकाय चुनाव के  हालिया परिणाम भाजपा के पक्ष में आने से निश्चित ही शिवराज मजबूत होंगे । हाल के दिनों में कैलाश विजयवर्गीय के राष्ट्रीय राजनीती में  चुनावी प्रबंधक के रूप में उभरने से कुछ लोग यह मान रहे थे हरियाणा में भाजपा की सरकार बनने के बाद अब राज्य में कैलाश विजयवर्गीय  को शिवराज का उत्तराधिकारी माना जा रहा था लेकिन अब कैलाश के राष्ट्रीय महासचिव बनाये जाने के बाद से शिवराज के लिए मध्य प्रदेश की राह निष्कंटक है | मौत के व्यापम ने शिवराज सरकार का अमन चैन छीन लिया था लेकिन  इस जीत के बाद शिवराज जिस तरीके से मजबूत हुए हैं उसने यह साबित किया है फिलहाल जिस अंदाज में वह  मजबूती  कदम बडा  रहे हैं उससे लगता तो यही है उनके कद को चुनौती  दे पाने की स्थिति में फिलहाल कोई नेता दूर दूर तक उनके आस पास भी नहीं फटकता । 

  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  प्रदेश में हुए हर रोड शो में न केवल विकास का तड़का लगाया और अपनी उपलब्धियों के आसरे मतदाताओ का दिल जीतने में कोई कोर कसार नहीं छोडी है । संगठन और सरकार के जबरदस्त तालमेल से भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार होता जा रहा है। आने वाले वर्षों में अब मध्य प्रदेश में कोई चुनाव नहीं है लेकिन हाल ही में हुए चुनावों से कांग्रेस को सबक लेने की आवश्यकता  है ताकि वह अपनी खोई प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त कर सकें।

नगरीय चुनावो में कमल के खिलाने के बाद शिवराज ने साबित कर दिया है मध्य प्रदेश में उनका राज किसलिए चलता है । इस जीत के बाद केन्द्रीय स्तर पर उनका कद एक बार फिर बढ़  गया है  ।  संभवतया केन्द्रीय नेतृत्व अब  मध्य प्रदेश को लेकर लिए जाने वाले हर निर्णय में उनको फ्री हैण्ड दे । वहीँ  कांग्रेस को चाहिए वह बचे  वर्षो में  मजबूती से विपक्ष की भूमिका निभाए अन्यथा शिवराज अकेले ही सभी पर भारी पड़ जायेंगे ,इससे अब शायद ही कोई इंकार करे ।  कांग्रेस को  चुनावो के बाद अब  इन बातो की दिशा में गंभीरता से विचार करने की जरुरत है ।

Saturday 15 August 2015

प्रधानसेवक आप तो एकदम बदल गए सरकार

     

आज से ठीक एक बरस पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने जब लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के नाम संबोधन दिया था तो हर किसी ने मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा की थी | हर कोई उनकी तारीफों के कसीदे न केवल पढ़ रहा था बल्कि उन्हें लीक से अलग हटकर चलने वाला प्रधानमंत्री भी बता रहा था | वैसे भी इससे पूर्व जितने भी प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से बोले वह कमोवेश बिजली , पानी और शिक्षा , गरीबी जैसे मुद्दों पर ही बात करते नजर आये | 

पहली बार मोदी ने नई लीक पर चलने का साहस ना केवल बीते बरस दिखाया बल्कि अपने भाषणों से लोगों में उत्साह और उमंग का संचार किया | मोदी ने ना केवल जोशीले भाषण से सभी का दिल जीतने की कोशिश की बल्कि स्वच्छ भारत , निर्मल भारत और आदर्श ग्राम योजना  और सबका साथ सबका  विकास सरीखे वायदों से राजनीती में आदर्श लकीर खींचने  की कोशिशें तेज की लेकिन  इस बार के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पी एम बदले बदले से नजर आये | इसका एक कारण यह हो सकता है पिछली बार वह दिल्ली के लिए नए थे और उनकी सरकार का हनीमून पीरियड  चल रहा था लेकिन ठीक एक साल के बाद अब सिस्टम के अन्दर काम करने पर उन्हें इस बात का भान हो चला है कथनी और करनी को अमली जामा पहनना इतना आसान नहीं है और वह भी उस देश में जहाँ पर नौकरशाही का दौर हावी हो और हवाई घोषणाओं का पिटारा खुलता आ रहा हो  शायद यही वजह रही प्रधानमंत्री के भाषण में वह तेज गायब था जो पिछली दफा हमें देखने को मिला | ललितगेट ,व्यापम और वसुंधरा प्रकरण ने भाजपा की कैसी किरकिरी हाल के दिनों में कराई है यह किसी से  छुपी नहीं है और खुद प्रधानमंत्री  मोदी भी इससे आहत दिखाई दिए जिस वजह से उन्होंने इन प्रकरणों से अपने को अलग झलकाने की कोशिशें की और खुद की सरकार का बचाव यह कहते हुए किया कि पंद्रह महीने की उनकी सरकार पर किसी तरह का दाग नहीं लगा है |

 पिछली बार मोदी 64 मिनट बोले थे इस बार मोदी 86 मिनट बोले | आज़ादी के दौर को याद करें तो उस दौर में नेहरु ने 72 मिनट का भाषण दिया था | इस तरह से मोदी का स्वतंत्रता दिवस पर दिया गया  अब तक का यह सबसे लम्बा  भाषण रहा  | सवा सौ करोड़ देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने 38 दफा इस बार  नए शब्द टीम इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया | 125 करोड़ देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह जताने से भी परहेज नहीं किया कि उनकी नीतियों में आदिवासी से लेकर गरीब और शोषित वंचित तबके तक शामिल हैं |

 गांधी और अम्बेडकर को साधकर उन्होने एक तीर से कई निशाने खेलने की कोशिश की |  उन्होंने कहा सवा सौ करोड़ देशवासी जब एकजुट होकर खेलते हैं तो राष्ट्र का विकास बुलंदियों तक पहुच सकता है |  यह अलग बात है मोदी अपने भाषणों में सभी को साथ लेकर चलने की बात जरुर कहते रहे हैं लेकिन यह तथ्य शायद ही किसी से छुपा हो भाजपा में अब  आगे आगे मोदी हैं तो पीछे पीछे शाह है जिनके इशारों पर न केवल पूरी भाजपा इस दौर में चल रही है बल्कि वह नेता किनारे हैं जिनकी अतीत में निकटता कभी आडवानी और कभी डॉ जोशी वाले कैम्प के साथ रही है |  

इस दौर में मोदी सरकार के आने के बाद भले ही भाजपा के अपने नेताओं पर सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के आरोप लगाये जाते रहे हों लेकिन प्रधान मंत्री  मोदी ने अपने शुरुवाती  भाषण में इस बार जातिवाद और साम्प्रदायिकता को ही निशाने पर लिया | यह ऐसे मसले हैं जिन पर पी एम की चुप्पी देश को खलती रही है | ओबामा के भारत दौरे के समय भी यह मसला जोर शोर से उठा था कि हमारे देश में अल्पसंख्यक अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करते और उस दौर को याद करें तो हरामजादे से लेकर लव जेहाद और धर्म परिवर्तन  जैसे मसले खूब चर्चा के केंद्र में रहे  | यही नहीं चर्च पर लगातार हमले होते रहे लेकिन पी एम मोदी ने मौन व्रत ही धारण किया |  अगर इस बार 

प्रधानमंत्री ने कहा है हमारे देश का सद्भाव ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है इसे किसी भी तरह चोट नहीं पहुंचनी चाहिए तो इसे यक़ीनन राजनीती के नए संकेतों के तौर पर लिया जाना चाहिए | बिहार और यू पी की पूरी चुनावी बिसात बिछाने में शायद पी एम को इससे मदद मिले | मझे हुए राजनेता के तौर पर मोदी  आज यह कहने से भी नहीं चूके  जब तक देश के पूर्वोत्तर राज्यों और नॉर्थ ईस्ट का विकास नहीं होगा तब तक यह देश प्रगति पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता | संभवतः यह कहने के पीछे मोदी की मंशा बिहार और यू पी के आने वाले चुनाव हैं जहाँ की पूरी राजनीति जातीय गठजोड़ पर टिकी हुई है |

 अपने भाषणों में जातिवाद को जहर बताकर और विकास के मोदी मंत्र से गरीबी मिटाने की घोषणा कर संभवतः मोदी भाजपा का रास्ता बंगाल बिहार और यू पी सरीखे बड़े राज्यों में साफ़ कर रहे हों | बीते बरस लोक सभा चुनावों के दौरान  मोदी सरकार पर कॉरपरेट की गोद में बैठे रहने के आरोप लगाये जाते रहे लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए गए अपने दूसरे भाषण में मोदी ने गरीबो और वंचितों के प्रतिनिधित्व की बात कही और से जनभागीदारी से जोड़ने की कोशिश की | पहली बार उनके भाषण में कॉरपरेट शब्द गायब दिखा | 

मोदी ने अपने इस भाषण में अपनी सरकार की अब तक की उपलब्धियों का पिटारा ही खोला  |  मोदी ने 17 करोड़ लोगों का जिक्र इस भाषण में किया जिन्होंने प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खाते खुलवाए | साथ ही उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान पर अपनी पीठ खुद थपथपाई और इस बार 9 सेलेब्रिटियो से इतर बच्चो को ब्रांड एम्बेसडर बना दिया | मोदी ने पिछली बार स्कूलों में शौचालय बनाने की बात की थी इस बार भी उन्होंने सवा चार लाख शौचालय बनाने का काम पूरा होने की बात कही | 

श्रमेव जयते के जिस नारे से मोदी सरकार वाहवाही बटोरने की बात कर रही थी लाल किले की प्राचीर से मोदी ने श्रम कानूनों को चार अध्याय में समेटने की कोशिश की | यह अलग बात है देश के हर कोने में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी तो दूर शोषण बदस्तूर जारी है | इस पर प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोले | भ्रष्टाचार को देश के लिए कलंक बताते हुए उन्होंने अपनी सरकार की नीतियों का चिटठा जनता के सामने रखा और डायरेक्ट बेनिफिट और कोयला की नीलामी से पाए गए राजस्व की चर्चा की जिससे दलालों और कालाबाजारी पर रोक लगी | 

उन्होंने कोयले की नीलामी से तीन लाख करोड़ रुपये कमाने और ऍफ़ एम की नीलामी से एक हजार करोड़ रुपये खजाने में आने की घटना का जिक्र अपने भाषण में कर भ्रष्टाचार को रोकने की प्रतिबद्धता जताई | मोदी ने काले धन को लाने के लिए कठोर क़ानून उनकी सरकार द्वारा लाने की  भी चर्चा की | यह अलग बात है भाजपा अध्यक्ष अमित शाह काले धन को चुनावी जुमला बता चुके हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने कहा काले धन पर कठोर कानून लाये जाने के बाद अब देश से बाहर धन जा पाना इतना आसान नहीं है | मोदी ने युवाओं को टारगेट ऑडियंस बनाते हुए यह भी कहा छोटी नौकरियों के लिए इंटरव्यू बंद किये जाने चाहिए | 

वन रैंक वैन पेंशन पर सबसे ज्यादा उम्मीदें लोगों को पी एम से थी जिस पर मोदी ने सैधान्तिक सहमति तो जताई लेकिन इसके लिए कोई डेडलाइन नहीं दी जिससे पूर्व सैनिकों में सरकार के रुख से साफ़ नाराजगी देखी जा सकती है और यह सभी जंतर मंतर पर अपनी मांगों को लेकर अभी भी डटे हैं लेकिन सरकार का रुख इस मसले पर अभी भी साफ़ नहीं है | किसान मोदी से ज्यादा उम्मीदें लगाये बैठे थे लेकिन मोदी ने किसानों को यूरिया उपलब्ध कराने से लेकर 18000 गाँवों में एक हजार दिनों में 24 घंटे बिजली पहुचाने का वादा किया |  इसके अतिरिक्त कृषि मंत्रालय  अब कृषि और किसान मंत्रालय के नाम से जाना जायेगा यह घोषणा उन्होंने की | 

पी एम भूमि अधिग्रहण सरीखे जरुरी मसले पर कुछ नहीं बोले जबकि पिछले कुछ समय से सरकार इस मामले पर बुरी तरह घिरी हुई है | बार बार अध्यादेशों के जरिये इस पर सरकार को बेशक मुह की खानी पड़ी और संसद में भी सरकार की सांसें इस बिल ने अटकाई हुई हैं | पी एम मोदी चाहते तो इस पर कुछ बात जरुर कर सकते थे और किसानों को यह दिलासा दिला भी सकते थे कि उनकी जमीनें औने पाने दामो पर नहीं ली जाएँगी और अगर ली भी जाएगी तो उचित मुआवजा मिलने के साथ ही  तयशुदा   समयसीमा  के भीतर उसमे काम होगा | 

मोदी अपने भाषण में यह भरोसा नहीं जगा सके |  दूसरी बार लाल किले से दिए अपने भाषण में मोदी ने स्टार्ट अप एंड स्टैंड अप का नारा दिया जिसके तहत बैंक दलित वंचित  और आदिवासियों को उद्योग  लगाने के लिए मदद करेंगे जिससे देश का विकास संभव हो पायेगा | मोदी के इस बार के भाषण में पडोसी पाकिस्तान भी  गायब था | पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से लगातार फायरिंग के बाद भी पाकिस्तान के खिलाफ कुछ न बोलकर मोदी सरकार ने विपक्ष को एक और मुद्दा थमा दिया | 

बीते दिनों भारतीय सीमा में एक आतंकी की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह पाक का कच्चा चिट्ठा खुला उसने पाक को आतंक की नर्सरी के रूप में दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया | मोदी चाहते तो अपने भाषण में पाक का जिक्र कर उसे आतंक का मार्ग छोड़ने की नसीहत और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के केंद्र में रखकर उसे मात दे सकते थे लेकिन मोदी पाक के मसले पर कुछ नहीं बोले | यही नहीं प्रधानमंत्री के आज के भाषण में विदेश नीति भी गायब रही | जबकि मोदी को ऐसा प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त है जिसने विदेश नीति की नई लीक पर देश को आगे ले जाने का काम किया है जिससे दुनिया में भारत का मस्तक ऊँचा हुआ है | खुद पी एम मोदी अब तक के अपने पहले साल के कार्यकाल में ही कई ताकतवर मुल्कों की यात्रा कर अब मध्य पूर्व में अपने कदम मजबूती के साथ बढ़ा रहे हैं |

 पी एम मोदी अगर चाहते तो आज के भाषण में वैदेशिक संबंधो पर खुलकर बात कर सकते थे लेकिन इस विषय को आज उन्होंने नहीं छुआ | इसी तरह योग सरीखे मसले पर प्रधानमंत्री का लाल किले से कुछ न कहना देशवासियों के दिल को तोड़ गया | पी एम मोदी ने यू एन ओ में  अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर जिस तरह से सैकड़ों  देशों को राजी किया और पहली बार देश में योग को लेकर एक नई  सुबह का आगाज हुआ उससे मोदी सरकार कि बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है  |  भारत की इस योग की  ताकत का लोहा पूरी दुनिया बीते 21 जून को मना चुकी है जिसे मोदी सरकार के खाते में जोड़ा जाना उचित होगा लेकिन अपने भाषण में मोदी इन मुद्दों को नहीं छू सके शायद इसका बड़ा कारण सुषमा ललित गेट , मौत का व्यापम और वसुंधरा का प्रकरण रहा जिसने ऐसे प्रधानमंत्री को पिछले कुछ दिनों से अन्दर से ऐसा हिला दिया जिसके चलते वह कई महीनों से इस पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ सके | 

आज भी चुप्पी तो नहीं टूटी लेकिन भ्रष्टाचार पर  गोल मोल बातों से पी एम मोदी ने खुद अपनी छवि को बचाने की भरपूर कोशिश तो कि इससे आप और हम इनकार तो नहीं कर सकते | वैसे प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी और प्रशासनिक योग्यताओ और बेहतर कप्तान की योग्यताओं  पर शायद ही किसी को संदेह हो क्युकि मोदी एक मंझे  हुए राजनेता हैं और जनता के मूड को बखूबी पढने वाले राजनेता भी जो ऑडियंस देखकर भाषण देते हैं लेकिन आज का पूरा भाषण उन्होने न केवल बीच बीच में पर्ची देखकर  पढ़ा बल्कि बीच बीच में वह रुमाल पोछकर और पानी पीकर धाराप्रवाह बोलते रहे शायद इसकी बड़ी वजह कुछ समय से भाजपा शासित राज्यों में चल रही नूराकुश्ती है जिसने पी एम को अन्दर से  इस कदर हिलाकर रख दिया है कि अब  मनोचिकित्सकों को  भी उनकी बदली हुई बाडी लैंग्वेज आसानी से नजर आने लगी है | 

कुलमिलाकर स्वतंत्रता दिवस के अपने दूसरे भाषण में पी एम मोदी का पिछले बरस वाला जोश गायब दिखा | गुजराती दहाड़ भाषण से गायब ही रही शायद पी एम अपनी कैबिनेट इंडिया की फिरकी में उलझकर रह गए जिस कारण कई अहं मसलों पर न कुछ उगलते बन रहा था और ना ही कुछ निगलते |