Sunday 28 December 2014

बहुत याद आओगे काका




 “ बाबू मोशाय हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है कौन कब कहाँ उठेगा कोई नहीं जानता ”

यह संवाद बानगी भर है सत्तर के दशक को याद करें ऋषिकेश मुखर्जी ने पहली बार जिन्दगी और मौत की पहेली को इस कदर परोसा कि हर कोई जिन्दगी की पहेली का हल खोजने में जुट गया और पहली बार सलिल चौधरी के संगीत ने दिल के तारो को इस कदर झंकृत किया कि तंज संवाद के साथ इस फिल्म की बेहतर अदाकारी ने लोगो के दिलो में गहरी छाप छोड़ने में देर नहीं लगाई | काका का जब भी जिक्र होगा वह आनंद के बिना अधूरा रहेगा शायद यही वजह है आज भी काका इस फिल्म में आयकन के रूप में अमर हैं इस फिल्म में कैंसर  पीड़ित के किरदार को उन्होंने जिस तरीके से जिया वह बालीवुड में भावी पीढ़ी के लिए तो कम से कम नजीर ही बन चुका है  इस फिल्म में जिन्दगी के आखरी पड़ाव  में मुंबई आने वाले आनंद सहगल की मुलाकात डॉ भास्कर मुखर्जी से होती है आनंद से मिलकर भास्कर जिन्दगी के मायने सीखता है और आनंद की मौत के बाद अंत में यह कहने को मजबूर हो जाता है कि “आनंद मरा नहीं आनंद मरते नहीं ’’

सुपर स्टार राजेश खन्ना के करियर की यह ऐसी फिल्म थी जिसकी यादें आज भी जेहन में बनी हैं और शायद यही वजह है काका के बेमिसाल अभिनय ने इसके जरिये भारतीय सिनेमा में एक नई लकीर खींचने का काम किया कुर्ता पहने आनंद इस फिल्म में जब समुन्दर के किनारे जिन्दगी ‘ कैसी ये पहेली हाए कभी ये हंसाये कभी ये रुलाये ’  गाना गाता है तो वह गाना लोगो को अपने आगोश में इस कदर ले लेता है कि अकेले पलो में  भी यह दिल को सुकून दे देता है तो इसकी बड़ी वजह आनंद की बेहतर संवाद अदायिगी के साथ बेहतरीन संगीत है आनंद के जरिये राजेश खन्ना ने अपने को सिल्वर स्क्रीन पर इस कदर उकेरा कि हर दर्शक उनके अभिनय के कसीदे ही पढने लगा भारतीय सिनेमा में यही फिल्म है जो हमें सिखाती है मौत तो एक ना एक दिन आनी ही है लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकतेजिन्दगी का फलसफा यह होना चाहिए जिन्दगी  बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं |जिन्दगी को आनंद ने परिभाषित करते हुए कहा जिन्दगी जितनी जियो दिल खोलकर जियो |

29 दिसंबर 1942 को राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में हुआ था स्कूली दिनों में उनका नाम जतिन खन्ना था और वहीँ से कई नाटको में अभिनय के साथ ही उन्होंने अपना अभिनय का सफ़र शुरू कर दिया था उनके चाचा ने उनकी अभिनय के फील्ड में आने की काफी हौंसला अफजाई की और उन्होंने उनका नाम जतिन से परिवर्तित कर राजेश खन्ना कर दिया 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्म फेयर के टैलेंट हंट ने राजेश खन्ना के फ़िल्मी सफ़र को नई उड़ान देने का काम किया दसियों हजार लडको को पछाड़कर राजेश ने पहले पायदान पर कब्ज़ा जमाने में सफलता प्राप्त की |  1967 में  उनकी पहली फिल्म चेतन आनंद की आखरी ख़त थी जहाँ से उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हुआ इसके बाद राजबहारो के सपने ,औरत डोलीइतेफाक सरीखी सफल फिल्मो से उनके नाम के चर्चे सब करने लगे |1969 में रिलीज हुई आराधना और दो रास्ते और फिर उसके बाद आनंद की सफलता ने उनकी लोकप्रियता के ग्राफ में ऐसा इजाफा कर दिया कि घर घर में राजेश नाम ने अपनी दस्तक देनी शुरू कर दी आराधना में हुस्न की परी शर्मीला टैगोर के साथ उन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर ऐसी रोमांस की कैमिस्ट्री बैठाई कि युवतियों की रातो की नीदें ही उड़ गयी 

उस दौर में राजेश के गाने किशोर कुमार ने गाये और उनकी दिलकश आवाज का जादू आज भी राजेश के अभिनय को देखते समय महसूस किया जा सकता है हाथी मेरे साथी कटी पतंग सच्चा झूठा महबूब की मेहंदी आन मिलो सजना ,आपकी कसम सरीखी फिल्मो में अपनी अभिनय से उन्होंने अभिनय के मानो झंडे ही गाड दिए उस समय का दौर ऐसा हो चला कि लडकियों को राजेश खन्ना ने अपने मोहपाश में इस कदर जकड़ लिया मानो हर लड़की उनकी दीवानी हो गयी उस समय कहीं अगर किसी लड़की को राजेश खन्ना की सफ़ेद रंग की गाडी मिलती तो वह उसको चूम ही लेती थी यही नहीं उनकी लिपस्टिक से राजेश की सफ़ेद रंग की कार रंग बिरंगी हो जाती थी लडकियों ने राजेश खन्ना में रोमांटिक हीरो की छवि देखी राजेश खन्ना ने अपने फ़िल्मी सफ़र में तकरीबन 163 फिल्मो में काम किया जिनमे 100 से ज्यादा फिल्म बॉक्स ऑफिस में हिट रही 1969 से 1972 तक राजेश खन्ना ने लगातार पंद्रह सुपर हिट फिल्में हिंदी सिनेमा को दी इस बेमिसाल रिकॉर्ड के आस पास तक भी आज कोई नहीं फटक  पाता है अपने अभिनय के लिए उनको तीन बार फिल्मफेयर का अवार्ड मिला अमर प्रेम और आप की  कसम में राजेश खन्ना की ट्यूनिंग शर्मीला टैगोर और मुमताज के साथ ऐसी बैठ गयी कि इन्होने सफलता के झंडे ही गाढे और कई फिल्में हिट साबित हुई राजेश और मुमताज़ दोनों के बँगले मुम्बई में पास पास थे अतदोनों की अच्छी पटरी बैठी। जब राजेश ने डिम्पल के साथ शादी कर ली तब कहीं जाकर मुमताज़ ने भी उस जमाने के अरबपति मयूर माधवानी के साथ विवाह करने का निश्चय किया।

1974 में मुमताज़ ने अपनी शादी के बाद भी राजेश के साथ आप की कसमरोटी और प्रेम कहानी जैसी तीन फिल्में पूरी कीं और उसके बाद फिल्मों से हमेशा हमेशा के लिये सन्यास ले लिया। यही नहीं मुमताज़ ने बम्बई को भी अलविदा कह दिया और अपने पति के साथ विदेश में जाकर बस गयी। इससे राजेश खन्ना को जबर्दस्त आघात लगा।1975 के बाद राजेश खन्ना का फ़िल्मी सफ़र फीका पड़ गया इस दौरान कई फिल्म कुछ खास करिश्मा नहीं कर सकी इसी दौर में स्टारडम  का क्रेज शुरू होता है और पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर अमिताभ एंग्रीमैन की छवि गढ़ते नजर आते हैं इसके बाद कई जगह अभिनय जगत में रोल पाने को लेकर राजेश और अमिताभ आमने सामने आते हैं लेकिन दोनों के लिए एक फिल्म में आने की डगर आसान नहीं लगती |1978 के बाद  राजेश खन्ना ने दर्दधनवानअवतार ,अगर तुम ना होते  जैसी फिल्में भी की लेकिन वह सफल नहीं  हो सकी राजेश खन्ना निजी जिन्दगी में भी रोमांटिक रहे 70 के दशक में ही उनका अंजू महेन्दू से अफेयर जोर शोर से चला लेकिन जल्द ही ब्रेक अप भी हो गया राजेश ने अपने से पंद्रह साल छोटी डिम्पल कपाडिया से 1973 में शादी कर ली चांदनी रात में समुन्दर के किनारे दोनों की लव स्टोरी ने उस दौर में खूब सुर्खियाँ बटोरी और कई लडकियों के दिल को भी तोड़ दिया 1984 में डिम्पल  भी उनसे अलग हो गयी राजेश खन्ना का नाम एक दौर में सौतन की नायिका टीना मुनीम से भी जुड़ा जिनके साथ उन्होंने अधिकारफिफ्टी फिफ्टी बेवफाई ,सुराग जैसी फिल्में भी की |

अमिताभ बच्चन के उभार ने राजेश खन्ना का जादू फींका कर दिया 1994 में उन्होंने एक बार फिर खुदाई फिल्म से परदे पर वापसी की कोशिश की तो वहीँ ढलते दौर में  उन्होंने सफ़ल फिल्म सौतेला भाई आ अब लौट चलेंक्या दिल ने कहाप्यार ज़िन्दगी हैवफा जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली।राजीव गाँधी के अनुरोध पर वह नब्बे के दशक में पहली बार राजनीती में आये और लालकृष्ण आडवानीशॉट गन सरीखे लोगो को कड़ी टक्कर दी और नई  दिल्ली से लोक सभा सांसद भी बनें |बाद में फिल्मो की तरह राजनीती का मैदान भी उन्हें रास नही आया और जल्द तौबा करने में भी देरी नहीं लगाई 2005 में उन्हें उनके शानदार अभिनय के लिए ‘ फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया काका ने अपने दौर में अभिनय से जिस बुलंदियों को छुआ वहां तक किसी भी कलाकार का पहुचना आसान नहीं है |

जून 2012 में यह सूचना आयी कि राजेश खन्ना पिछले कुछ दिनों से काफी अस्वस्थ चल रहे हैं|  23 जून 2012 को उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिल रोगों के उपचार हेतु लीलावती अस्पताल ले जाया गया जहाँ सघन चिकित्सा कक्ष में उनका उपचार चला और वे वहाँ से 8 जुलाई 2012 को डिस्चार्ज हो गये। उस समय वह पूरी तरह स्वस्थ हैं, ऐसी रिपोर्ट दी गयी थी |  14 जुलाई 2012 को उन्हें मुम्बई के लीलावती अस्पताल में पुन: भर्ती कराया गया और 18 जुलाई 2012 को  सुपरस्टार राजेश खन्ना ने आंखरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कहा रोमांटिक हीरो के रूप में काका आज भी हमारे दिलो में बसते हैं हिंदी सिनेमा का यह आनंद भले ही आज हमारे बीच नहीं हो लेकिन उसका किरदार कभी मरेगा नहीं 

Tuesday 23 December 2014

दोराहे पर खड़ा पाकिस्तान


'बोया पेड बबूल का आम कहाँ से होय'  पेशावर में मासूम बच्चो पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान को लेकर यही बातें जेहन में आ रही हैं । जिस आतंकवाद की   फैक्ट्री को   पाकिस्तान  कई बरस  से  अपने मुल्क में पनाह देता रहा आज वही उसके लिए  पूरी  तरह नासूर बन चुका  है ।  पाकिस्तान के भीतर  जिस तरह के हालात  आज  सामने हैं उससे पाकिस्तान के भीतर आतंरिक सुरक्षा को लेकर   संकट और ज्यादा  गहराता  जा रहा   है ।   अलग 2  राष्ट्र  सिद्धांत  का प्रतिपादन करने वाले मुहम्मद अली  जिन्ना ने भी ऐसा सपने में नही सोचा होगा कि एक दिन पाकिस्तान खुद दहशतगर्दो की गिरफ्त में आ जायेगा और वहां की चुनी हुई सरकार भी आतंकियों के आगे  ना  केवल  बेबस  और  तमाशबीन बनी रहेगी बल्कि सेना भी  अपने  हाथ पैर खड़े  कर देगी । 

 
 आज पाक  उस  दोराहे  पर खड़ा  है जहाँ  वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि अपने मुल्क में वह  कट्टर पंथी संगठनो  और आतंकियों का साथ दे या फिर अमरीका की आतंकवाद विरोधी मुहिम में साझीदार बन खड़ा हो । एक चुनी हुई सरकार के दौर में पाक के  हालात दिन पर दिन बद से बद्तर होते जा रहे है | मुशर्रफ़ की विदाई के बाद जहाँ  लोग इस  बात के कयास लगा रहे थे कि नवाज  शरीफ के सत्ता  संभालने  के बाद पाक में  नया सवेरा होगा लेकिन एक के बाद एक  तालिबानियों के आतंकी हमलो ने आवाम का  जीना दुश्वार कर दिया है । अब  वहा पर  अलग सा  बदला  बदला माहौल दिख रहा है  । ऐसे मे दिल में अगर यह विचार आ जाए वहां पर जम्हूरियत  का क्या भविष्य है तो इसका जवाब यह होगा क्या वह यहाँ  कभी यह सफल भी  हो पायी  है ? जब भी वहां  सूरज की नई  किरण उम्मीद  बनकर  निकली है  तो उस किरण के मार्ग मे सैन्य  शासन ने दखल देकर उसको अपना लिबास ओड़ने को  ना  केवल मजबूर ही किया है बल्कि इस बात को भी पिछले कई बरसो से साबित किया है बिना सेना के पाक के भीतर सरकार में भी पत्ता तक  नहीं हिलता ।  

भारतीय  दर्शन   में आचार्य रामानुज  '' स्यादवाद"  की जमकर आलोचना करते है । इस प्रसंग मे आज हम पाक को फिट कर सकते हैं ।   रामानुज  कहा करते थे किसी पदार्थ मे "भाव" और "अभाव" दोनों साथ साथ नही रह सकते है इस तरह यदि हम यह चाहते हैं कि पाक के पदार्थ रुपी लोकतंत्र मे सेना और सरकार दोनों साथ साथ चलेंगे तो यह नैकस्मिन सम्भवात  वाली बात  ही होगी ।  फिर पाक में  तानाशाह की भरमार जिस तरीके से  रही है उसमे दोनों के साथ आने  की उम्मीद  तो बेमानी ही  लगती है | मुशर्रफ़ से पहले  से ही सैन्य शासको ने किस तरह रिमोट अपने हाथ में लेकर पाक को चलाया और उनका क्या हश्र हुआ हम सब यह जानते है ।   9 साल  तक मुशर्रफ़ ने  पाक मे किस तरह काम किया उसकी मिसाल आज तक वहा के अवाम को देखने को नही मिली है  | मुशर्रफ़ ने कारगिल की ज़ंग खेल नवाज की पीठ में छूरा भोंककर  की और  कारगिल मे हार मिलने के बाद पाक को अपने स्टाइल में चलाने के फेर मे उनको   सुपर सीड कर खुद  सत्ता हथिया ली जिसके बाद वह अपनी  सरजमी से बेदखल कर दिए गए |   1999 मे मुशर्रफ़ का पहला अवतार तानाशाह के रूप मे हुआ ।  दूसरा अवतार सैनिक  वर्दी  के उतरने के बाद राष्ट्रपति  की कुर्सी से चिपके रहने के रूप मे देखा जा सकता था जहाँ अमरीका को साधकर उन्होंने अपना  एकछत्र राज कायम किया  |  सत्ता का स्वाद कितना मजेदार होता है यह सब परवेज मुशर्रफ़ की शातिर चालबाजियों से समझा जा सकता था जब सैनिक वर्दी उतरने के बाद भी वह वहां  की  सुप्रीम पोस्ट पर विराजमान हुए | 

जिस दौर मे मुशर्रफ़  ने नवाज से सत्ता हथियाई उस समय की स्थितिया अलग थी | भारत के पोकरण  की प्रतिक्रिया  मे पाक ने गौरी का परीक्षण कर डाला | उनको पाक की खस्ता हाल अर्थव्यवस्था का तनिक भी आभास नही हुआ |  भारत ने तो विश्व  के सारे प्रतिबंधो  को झेल लिया लेकिन पाक के लिए यह सब कर पाना मुश्किल था लेकिन फिर भी मुशर्रफ़ ने चुनौतियों को स्वीकार किया और जैसे तैसे दो बरस तक पाक की गाडी पटरी पर दौड़ाई  | 2001 मुशर्रफ़  के लिए नई सौगात लेकर आया जब 9/11 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर मे हमला हो गया जिसकी जिम्मेदारी ओसामा  बिन लादेन ने ली जिसमे अमेरिका के बहुत नागरिक मारे गए |  बेगुनाह नागरिकों  की मौत का बदला लेने और वैश्विक  आतंकवाद समाप्त करने के संकल्प के साथ अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के संगठन  को प्रतिबंधित संगठनो की  सूची मे डाल दिया और   उसके खिलाफ आर पार की लड़ाए लड़ने की ठानी |  अमेरिका के साथ आतंक के खात्मे के लिए पहली बार पाक यहीं से उसका हम दम साथी बनने को ना केवल तैयार हुआ बल्कि झटके में अपने प्रतिबंधो से भी मुक्त हो गया जो दुनिया ने परमाणु परीक्षण   के बाद लगाये थे |  यह बात तालिबानी लडाको के गले नही उतर  पाई  | 

आतंकवाद के खात्मे के नाम पर पाक सरकार को मुशर्रफ़  के कारण अरबों रुपये की मदद मिलनी शुरू हुई  जिसने  पाक के लिए टानिक का काम करना शुरू किया | जिस कारण विकास के मोर्चे पर हिचकोले खा रही पाक  की अर्थव्यवस्था  मे नई जान आयी | उस दौर में अमेरिका ने पाक से कहा लादेन हर हाल मे चाहिए चाहे जिन्दा या मुर्दा  लेकिन मुशर्रफ़ ने होशियारी दिखाते हुए  फूक फूक कर कदम रखा | आतंक और दहशतगर्दी को ख़त्म करने के लिए  अभियान शुरू होने से पहले तक अफगानिस्तान में तालिबान की तूती बोला करती थी | ओसामा के चेलों  ने इस  पूरे इलाके मे अपना आधिपत्य जहाँ कायम किया   वहीँ  कबीलाई इलाको में उसने  अपनी मजबूत पकड़ कर  ली । 

मुशर्रफ़ द्वारा अमेरिका को मदद दिए  जाने के निर्णय को ओसामा के  अनुयायी तक नही पचा पा रहे थे लेकिन उनको क्या पता मुशर्रफ़ ने अपने इस कदम से एक तीर से  दो  निशाने खेले | 9/11  के बाद मुशर्रफ़  के अमेरिका के पैसो से अपने सूबा सरहद की सेहत मजबूत की |  आतंकवाद समाप्त करना तो दूर मुशर्रफ़ तमाशबीन बने रहे |   अमेरिका के सैनिक जब अफगान इलाके पर हमला करते तो पाक सरकार के भेदिये जवाबी कार्यवाही की   जानकारी उनको हर दम पंहुचा देते थे जिस कारण वह हर दिन अपना नया घर खोजते रहते |  अमेरिका के सैनिकों  को चकमा देकर यह लडाके पाक के अन्दर छिपे रहते |  ऐसी सूरत मे उनको पकड़ पाना मुश्किल होता जा रहा था |  चित भी मेरी पट  भी मेरी फोर्मुले के सहारे मुशर्रफ़ ने पाक मे  सत्ता  समीकरणों  का जमकर लुफ्त उठाया जिसके बाद  इमरान  शाहबाज और नवाज शरीफ  के बाद वहा कोई ऐसा  नेता नही बचा जो उनका बाल बांका नहीं  कर सके  

अमेरिका से अत्यधिक निकटता दहशतगर्दो को रास नही आई और ओसामा  बिन  लादेन के एबटाबाद में मारे जाने  और अफगान सीमा  को निशाना  बनाये  जाने की घटना के बाद से  पाकिस्तान में स्वात ,पेशावर सरीखे इलाको में तालिबानी लडाको ने अपने पैर मजबूती के साथ जमाने शुरू कर दिए  जिनके खात्मे के लिए  अमेरिका ने  कभी पाक की सरकार को  मदद दी  और आज तक वहां की तस्वीर खून से रंगी ही है | अमरीकी मदद का पाक ने बेजा इस्तेमाल शुरू से आतंक की फैक्ट्रियो को पालने पोसने में ही किया है ।  मुशर्रफ़ के जाने के बाद  जहाँ डेरा इस्माईल खान और आयुध कारखाने मे बड़े  बड़े  विस्फोट  हुए  वहीँ मिया नवाज शरीफ  के आने के बाद भी मस्जिदों से लेकर सेना को निशाने पर लिया गया है | खैबर से लेकर क्वेटा वजीरिस्तान से लेकर स्वात घाटी  सब जगह तालिबानी आतंकियों ने  मासूम लोगो को अपने निशाने पर लिया है  | इन विस्फोटों में सबसे ज्यादा तहरीके तालिबान  का नाम   सामने आया है जो तालिबानी लडाको को लेकर पाक में अपना कहर बरपाते रहता है | 

असल में अफगानिस्तान में रहने वाले तालिबानी लडाको का यह संगठन है जिसकी अब  उत्तरी कबीलाई इलाको पर मजबूत पकड़ है ।  2013  में हकिमुल्ला मसूद की हत्या के बाद से ही इसकी कमान मौलाना फजउल्लाह को सौंपी गई है  जिसने अफगानिस्तान से सटी पाकिस्तानी सेना की जवाबी कार्यवाहियों के जवाब में पाकिस्तान के भीतर दहशत का वातावरण बनाने में देरी नहीं लगाई है | आज आलम यह है सेना के पूरे दखल के बावजूद भी तालिबानी आतंक पाक को अन्दर से खोखला करने पर तुला हुआ है और अब खुद ही नासूर बन गया है | अमेरिका के कई मानवरहित विमान आज  पाक मे डेरा डाले हैं जो कट्टरपंथियों को सीमा पर जाकर सबक सिखा रहे हैं इसके जवाब में तालिबानी पाक में कहर बनकर टूट रहे हैं  जिसमे पाक के बेगुनाह नागरिक हलाक हो रहे  हैं  |सरकार होने के बाद भी वहा पर सेना की राह आज भी अलग दिख रही है |  वह यह नही चाहते किसी सूरत पर पाक के भीतर अमेरिका की सेनाओं की इंट्री हो  जहाँ पर कट्टर लोग छिपे है लेकिन ओबामा का फरमान मानने को अब  सेना को मजबूर होना पड़ रहा है |  सरकार और पाक की  सेना दोनों अभी तक यह तय नही कर पा रहे हैं आतंक के खिलाफ जंग में  किसका साथ दिया जाए ? यानि पहली बार परिस्थितियां उधेड़बुन इधर कुआं तो उधर खाई  वाली  हो चली  हैं ।  पाक मे ओबामा ने सेना को ड्रोन हमले करने की अनुमती दे डाली है फिर इसके लिए चाहे उनको पाक के सीमा के अन्दर ही क्यों न घुसना पड़े | यही चीज तालिबानियों के गले की फाँस नहीं बल्कि सेना और सरकार के लिए भी गले की हड्डी  बन चुकी है | जब भी पाक की तरफ से कठोर कार्यवाही तालिबानियों के खिलाफ की जाती है उसकी प्रतिक्रिया में भी तालिबानी लडाके बम विस्फोट से अपना जवाब हर समय  देते नजर आते हैं और  हर हमलो के बाद जिम्मेदारी लेने से भी पीछे नहीं हटते | पेशावर  के इस हमले ने फिर इस बात की तस्दीक सही मायनों में कर डाली है | 

 पिछले कई बरस से  पाकिस्तान में   आतंकवाद ने  मजबूती  के  साथ  पैर पसारे हैं ।  मगर पेशावर के आर्मी स्कूल में हुए हमले में तालिबान के  आतंकियों ने जिस  तरह  बच्चो  की  हत्या की  उसने  पूरी  इंसानियत  को  शर्मसार  कर दिया  है । इस हमले को मिया नवाज ने पाकिस्तान की  सबसे भीषण ′राष्ट्रीय आपदा′ बताया  है लेकिन  ऐसे बयानों से पाक  की तस्वीर नहीं बदलने वाली है ।  पेशावर  में आर्मी  स्कूल  में जिस जगह  यह हादसा हुआ वहां पर  इमरान खान की  सियासी पार्टी  तहरीक का  सिक्का  मजबूती के साथ चलता आ  रहा  है और खुद मिया  इमरान का इन तालिबानियों के खिलाफ  बहुत सॉफ्ट कॉर्नर रहा है ।  सियासत  की  कुछ मजबूरियों   के तहत  इन  नेताओं को एक साथ आकर इस हमले की न केवल निंदा करनी पड़ी है  बल्कि उन्हें पाकिस्तान की सरजमीं से दहशतगर्दों को पूरी तरह से खत्म करने का साझा  वायदा भी करना पड़ा है।  नहीं  तो  क्या कारण   है  तालिबानियों  के कई हमलो  के बाद भी    पाकिस्तान  किसी  कारवाही को करने की जहमत नहीं उठा पाया ? मिया  नवाज शरीफ ने भी कल  आतंकवाद के खात्मे के लिए कहा  ′अच्छे′ और ′बुरे′ तालिबान में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। यह कहना  आसान  है  पर जमीनी हकीकत इसलिए उलट है क्युकि पाकिस्तान में  पिछले कुछ  समय से  जमात उद  दावा, जैश ए महुम्मद , लश्कर ऐ तैयबा , हरकत  उल मुजाहिदीन सरीखे  दर्जनो संगठनो  को बीज और खाद न केवल मुहैया करवाई गयी है बल्कि  डी कंपनी यानी  दाऊद इब्राहीम को भी  अपने यहाँ पनाह दी  ।  उत्तर-पश्चिम वजीरिस्तान में यह हमला हुआ है वहां इमरान खान  का  रुख  तालिबान के प्रति काफी उदार रहा है। नवाज शरीफ ने दहशतगर्दों के खिलाफ बड़ी जंग लड़ने  की बात  जरूर कही है लेकिन  सेना  के अब तक के इतिहास को देखते हुए यह लगता नहीं  पाकिस्तान  तालिबान के खिलाफ कोई बड़ी लड़ाई  सीधे लड़ पायेगा । 

26  \11  के मुंबई हमलों के मुख्य आरोपी  हाफिज सईद पर  पाकिस्तान  सबूत देने के बावजूद  भी कार्रवाई  तक नहीं कर सका है   जबकि उसका संगठन जमात उद  दावा संयुक्त राष्ट्र संगठन की प्रतिबंधित संगठन की सूची में खुद शामिल है । यही नहीं उस पर करोडो डालरों का इनाम भी रखा जा चूका है जिसके बाद भी पाकिस्तान की सेना और सरकार दोनों आज तक उसका बाल बांका नहीं कर सकी है ।  उसकी दाद देखिये  उसने पेशावर के भीषण  हमले के बाद एक बार फिर से भारत को  न केवल धमकी दी है बल्कि पेशावर के अटैक के लिए सारा दोष भारत सरकार के मत्थे  मढ़  दिया है और कहा है यह हमला कर भारत ने मुम्बई हमलों का  बदला ले लिया  है।  अभी बीते दिन ही  पाकिस्तान ने मुंबई हमलों के आरोपी जकी-उर रहमान लखवी को जमानत दिए जाने से आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान का दोहरा रवैया  एक  बार फिर से उजागर हो गया है । हमने पाकिस्तान को पर्याप्त सबूत दिए थे इसके बावजूद इस मामले की  वहां  पर ठीक से सुनवाई नहीं हुई और उसे जमानत दे दी गई फिर इसकी तीखी   प्रतिक्रिया जब हुई तो यू टर्न ले लिया । लखवी हाफिज  सईद  का दाहिना हाथ माना जाता  है और उसने  पाकिस्तान में  कसाब के साथी आतंकियों  को ट्रेनिंग  ही नहीं दी बल्कि पाक में  बैठकर  मुंबई  हमलों  की पल पल की अपडेट ली ।  अब ऐसे हालातो में क्या हम पाक से  ख़ाक उम्मीद कर सकते हैं?  क्या नफरत की नीव में सुलग रहा पाकिस्तान  पेशावर के  हमलों के बाद  बदलने को बेकरार है ?  जी नहीं ,  फिलहाल तो  हमें यह दूर की कौड़ी ही नजर आ रहा है ।

Tuesday 16 December 2014

तालिबानी आतंक के ढेर में बैठा पाकिस्तान




" जब हमला हुआ उस वक्त हम पढ़ाई कर  रहे थे। फायरिंग की आवाज सुनते ही हमारे शिक्षक ने कहा कि स्कूल के बाहर किसी तरह की ड्रिल हो रही है चिंता की जरूरत नहीं है लेकिन फायरिंग लगातार तेज होती गई। उसके बाद गोलीबारी की आवाज धीरे-धीरे हमारे करीब आती गई। तभी कुछ दोस्तों ने क्लास की खिड़की खोली और उसके बाद खौफनाक मंजर सामने आया।  मैं रोने लगा क्योंकि फायरिंग के दौरान कुछ बच्चे क्लास के बाहर जमीन पर लेट गए थे। सभी दहशत में थे। हमारे दो सहपाठी दहशत में क्लास से बाहर निकले और हमारे सामने आतंकियों ने उनको गोली मार दी।शिक्षक ने छात्रों को स्कूल के पिछले गेट की ओर भागने को कहा। क्लास से गेट करीब 200 मीटर दूर था।बाहर निकल कर हम स्कूल वैन में बैठ गए और  ड्राइवर ने बताया कि हमारे स्कूल के साथी मार दिए गए हैं और अब वे जन्नत चले गए

यह  दास्ताँ 10 वर्षीय इरफ़ान की है जो पेशावर  के  आर्मी स्कूल में पढाई  करते थे और कल तालिबानी दहशतगर्दों के हमले के सीधे गवाह बने  हफ्ता भर पहले जिस मलाला को उसके जज्बे के लिए नोबल सरीखे पुरस्कार से नवाजा गया था किसी ने सोचा भी  नहीं  होगा उसी मलाला के देश पाकिस्तान में आतंक का  ऐसा  क्रूर चेहरा नजर आएगा जिसका मंजर पेशावर ने कभी नहीं देखा होगा  बच्चो  पर हमला कितना  भीषण  जघन्य  था इसका पता पाक के टी वी चैनलों  में  काम करने वाले एंकर से लेकर  रिपोर्टर्स की आँखों से  छलक  रहे आंसू बयां  थे हर तरफ लाल रंग नजर   रहा था लाशो का ढेर और बिलखते परिजनों की आवाजें पेशावर के  दिल को झकझोर रही थी   यह हमला कितना  कातिलाना था और बच्चो पर किया गया यह सबसे भीषण हमला था  जो पूरी दुनिया ने कभी टी वी चैनलों में एक्सक्लूसिव  नहीं  देखा   जिस पेशावर को उसके सतरंगी रंग के लिए पूरी दुनिया में  जाना जाता था पिछले 24 घंटे से  वही पेशावर आतंकी हमले से ऐसा सहमा हुआ है कि  हर  तरफ  बस्ती में सन्नाटा ही सन्नाटा  पसरा है  

अपने बच्चो को खोने  का  क्या  गम होता  है यह उन माँ बाप की पथरायी हुई आँखें बता रही हैं जिन्होंने  अपने  बच्चों को बड़े दुलार के साथ तैयार कर  सुबह स्कूल भेजा था  कुछ घंटों बाद उन्हीं की खून से सनी लाश देखकर वे अपने होश ही खो बैठे। पाकिस्तान के पेशावर के आर्मी स्कूल में पाक तालिबानी आतंकियों ने हैवानियत की सभी हदें पार करते हुए 132 बच्चों समेत 141 लोगों को मौत के घाट उतार कर ऐसा काम किया जिससे पूरी इंसानियत ही शर्मसार  हो गयी है  पैरामिलिट्री फोर्स की वर्दी पहने 7 आतंकी स्कूल के पीछे की दीवार फांदकर अंदर घुसे और क्लास रूम के भीतर  में घुसकर  अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी   जब एक शिक्षिका ने बच्चों को बचाने की कोशिश की  तो तालिबानी वहशियों  ने उसे जिंदा ही जला दिया इससे  अनुमान लगाया  पेशावर का यह  हमला कितना कायराना  और वीभत्स  रहा होगा  

तालिबानी हमले के बाद किसी तरह जिन्दा बचे लोगों ने तालिबानी दहशतगर्दों के  आँखों देखा हाल बताया है उसकी यादों से शायद ही वह कभी बाहर   पाएं  कल सुबह तकरीबन साढ़े दस बजे रोज की तरह अपनी क्लास में अन्य बच्चों के साथ बैठे थे  तभी तालिबान के बंदूकधारी आतंकियों ने स्कूल पर गोलियां बरसानी शुरू कर  दी  पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी पब्लिक स्कूल पर तालिबान के बर्बर हमले ने आतंक का सबसे खौफनाक चेहरा पूरी दुनिया के सामने लाकर खड़ा  कर  दिया  है।  तालिबान के चंद  आतंकी एक स्कूल में घुसकर कई घंटे तक वहशियाना तरीके से बच्चों को  निशाना बनाते रहे। तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे पाकिस्तानी फौज की उसके खिलाफ खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में की जा रही कार्रवाई का बदला बताया है  लेकिन यह हमला साफ संकेत है कि पाक  में तालिबान आतंकियों के हौसले अभी भी  पस्त नहीं हुए हैं।  जिस तरह आतंकियों ने स्कूल में घुसकर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी  उसकी जितनी निंदा  की जाए उतनी कम  है खुद ना खास्ता ऐसी बर्बरता दुनिया  कहीं  देखने को फिर कभी  मिले   

 कहा जा रहा है नार्थ वजीरिस्तान में पाकिस्तानी फौज ने आतंकियों के खिलाफ  जर्ब--अर्ज  जबसे चलाया था उससे तालिबान आतंकियों के छक्के छूट गए उसी की प्रतिक्रिया में यह हमला उसी पेशावर में हुआ जहाँ आर्मी में नौकरी करने वाले लोगों के बच्चे बड़ी तादात में  पढ़ाई करते थे यह पहला मौका नहीं है जब आतंकियों ने स्कूलों को निशाना बनाया है। बच्चों, महिलाओं की  शिक्षा से तालिबान आतंकियों को नफरत है सो इन पर  भी वह घात  लगाकर कहीं भी हमले करने से बाज  नहीं आते  हैं   मलाला यूसुफजई  ने जिस तालिबान को आईना दिखाने  की कोशिश  की उसी तालिबान के लड़ाकों  ने एक बार फिर बच्चो को कहीं का नहीं छोड़ा  खैबर पख्तूनख्वा , स्वात  घाटी  और फाटा के इलाके में अक्सर स्कूलों पर तालिबान  हमले करते रहे हैं   यह ताजा हमला तब हुआ है जब मलाला ने नोबल पुरस्कार  ग्रहण  कर वापस  मुल्क लौटने और अपने इलाके  में  महिलाओं  के  लिए कई स्कूल खोलने  की बात कही थी नोबल मिलने के बाद से तालिबान  के दहशतगर्द बौखलाए हुए हैं और  शायद  अब आने वाले दिनों में महिलाओ से लेकर बच्चो को निशाना  बनाने में शायद ही पीछे रहे  मलाला  को नोबल  मिलने  के बाद से ही पाक में तालिबान ने बड़ी धमकी हमलो को लेकर दी  थी लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियां हाथ पर हाथ धरी रह गयी और पेशावर का आर्मी  स्कूल निशाने पर गया  

यह घटना पाकिस्तान की सेना और सरकार  की नाकामी को भी उजागर करती है  जिसने तालिबान को फलने-फूलने का पूरा मौका पिछले कई बरसो से  दिया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस हमले को राष्ट्रीय आपदा बताया है तो इमरान खान ने भी शोक संवेदनाएं व्यक्त की हैं लेकिन सियासतदानों को यह समझना होगा कि  अब समय गया  है आतंक के खिलाफ सभी एकजुट होकर लड़ें  पेशावर में हुए हमले से  पहले सिडनी में एक कैफे में कुछ लोगों को बंधक बनाने की घटना बताती है कि आज  कैसे आतंकवाद एक वैश्विक खतरा बन गया है इस वैश्विक खतरे का पूरी  दुनिया को मुकाबला करना होगा आतंक का कोई मजहब नहीं होता ना रंग होता है पेशावर में मारे गए निरीह बच्चों  की मौतें इस बात की तस्दीक कराती हैं  

इस हमले के लिए मुख्य रूप से पाकिस्तान ही  जिम्मेदार है। जैसा  बोओगे  वैसा ही काटोगे पाकिस्तान खुद को आतंकवाद से त्रस्त  कहता है  लेकिन वहां   सेना और सरकार  ने हर  आतंकी गुटों को पनाह दी है।  मुंबई  में 26/11 के हमलो में भी पाक की संलिप्तता पूरी दुनिया के सामने ना केवल उजागर हुई थी बल्कि पकडे गए आतंकी कसाब ने  यह खुलासा  भी किया हमलो की साजिश पाकिस्तान में रची गई जिसका मास्टर माइंड हाफिज मोहम्मद  सईद  था हमने मुंबई हमलो के पर्याप्त सबूत पाक को सौंपे भी लेकिन आज तक वह इनके दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है आतंक का सबसे बड़ा मास्टर माईंड हाफिज पाकिस्तान में खुला घूम रहा है और  भारत  केखिलाफ लोगो को जेहाद छेड़ने के लए उकसा भी रहा है लेकिन आज तक पाक हाफिज  मसले पर ढील ही देता  रहा  है   यही कारण  है वहां की सरकार  उसे पकड़ने में नाकामयाब रही है बल्कि आतंकवाद के खिलाफ कोई  नीति  ही तैयार नहीं कर सकी है    2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमले के बाद उसके जमात उद  दावा ने  कश्मीर के ट्रेंनिग कैम्पों में घुसकर युवको को  जेहाद के लिए प्रेरित किया अमेरिका द्वारा उसके संगठन  को प्रतिबंधित  घोषित  करने  और उस पर करोडो डालर के इनाम रखे जाने के बाद भी पाकिस्तान  सरकार  ने उसे कुछ दिन लाहौर की जेल में पकड़कर रखा और जमानत पर रिहा कर दिया आज  पाकिस्तान  उसे   पाक में होने को सिरे से नकारता रहा है जबकि असलियत यह है पुंछ  में हाफिज की संलिप्तता कई बार उजागर भी  हुई है पाकिस्तान के कब्जे वाले पी  के में हाफिज का जबरदस्त प्रभाव है जो अभी  पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ भारत में घुसपैठ बढाने की कार्ययोजना को तैयार कर रहा है ।बीते बरस  भारत दौरे पर आये रहमान मालिक से जब 26 /11 के बारे में हमने पूछा तो उन्होंने कहा इवाइडेंस और आरोपों में भेद होता है अगर भारत सबूत पेश करता है तो पाक 26/11 के दोषियों को सजा देगा लेकिन यह कैसा सफ़ेद झूठ  है भारत तो पहले  ही पाक को सभी सबूत पेश कर  चुका  है लेकिन पाक उस पर कोई कार्यवाही  क्यों नहीं करता ?    हर घटना में अपना  हाथ होने से नकार करना पाक का शगल ही बन गया है लेकिन जब  पेशावर में तालिबानी कार्यवाही हुई तब  जाकर पाक को आतंकी रंग नजर आया  

आज  पाक  का पूरा ध्यान अपने अंदरूनी झगडो  और तालिबान में लगा  है उसे लगता है अगर ऐसा ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में कश्मीर उसके हाथ से निकल जायेगा अतः ऐसे हालातो में वह अब लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन तालिबानी कठमुल्ला  जैसे संगठनो को पी  के  में भारत के खिलाफ एक  बड़ी जंग लड़ने के लिए उकसा रहा  है जिसमे कई कट्टरपंथी संगठन उसे मदद कर रहे हैं पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है वहां पर सेना कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली ही  रही है नवाज  सरकार तो नाम मात्र की लोकत्रांत्रिक है  असल नियंत्रण तो सेना का हर जगह है  पाक इस बार यह महसूस  करना  ही  होगा  अगर समय रहते उसने तालिबान    के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो पाकिस्तान में अंदरुनी  हालत चिंताजनक   हो  सकते हैं और हालात ऐसे  ही रहे तो पाकिस्तान एक बड़े विभाजन की तरफ भी बढ़ सकता है ओसामा के एबटाबाद में मारे जाने की घटना के बाद पाकिस्तान में स्वात ,पेशावर सरीखे इलाको में तालिबानी लडाको ने अपने पैर मजबूती के साथ जमाने शुरू कर दिए  जिनके खात्मे के लिए अमेरिका ने पाक की सरकार की मदद ली और आज तक वहां की तस्वीर लाल खून से लथपथ ही नजर आती है |  आतंक के  खात्मे के लिए अमेरिका ने पाक की सरकार की मदद ली और आज तक वहां की तस्वीर लाल खून से रंगी  है

असल में तालिबानी लडाको और दहशतगर्दो  को यह रास नही रहा  अमेरिका की फौज पाक की सीमा मे घुसकर उनको अपने निशाने पर ले शायद  यही वजह है कि पाक सरकार का अमरीका की तरफ  झुकाव उसको नही सुहा रहा है  और ईट का जवाब पत्थर से दिए जाने की कोशिशो में  पाक मे आए दिन बम विस्फोट हो रहे है | मुशर्रफ़ के जाने के बाद डेरा इस्माईल खान और आयुध कारखाने मे बड़े विस्फोट  जहाँ हुए  वहीँ मिया नवाज के आने के बाद भी मस्जिदों से लेकर सेना के आयुध कारखानो को निशाने पर लिया गया है | खैबर से लेकर क्वेटा वजीरिस्तान से लेकर कराची , स्वात घाटी और रावलपिंडी  सब जगह तालिबानी आतंकियों ने लोगो को अपने निशाने पर लिया है | इन विस्फोटों में सबसे ज्यादा तहरीके तालिबान सामने आया है जो तालिबानी लडाको को लेकर पाक में अपना कहर बरपाते रहता है |  अफगानिस्तान में रहने वाले तालिबानी लडाको का यह संगठन है जिसकी उत्तरी कबीलाई इलाको पर मजबूत पकड़ है 2013  में हकिमुल्ला मसूद की हत्या के बाद से ही इसकी कमान मौलाना फजउल्लाह को सौंपी गई जिसने अफगानिस्तान से सटी पाकिस्तानी सेना की जवाबी कार्यवाहियों के जवाब में पाकिस्तान के भीतर दहशत का वातावरण बनाने में देरी नहीं लगाई| आज आलम यह है सेना के पूरे दखल के बावजूद भी तालिबानी आतंक पाक को अन्दर से खोखला करने पर तुला हुआ है और अब खुद ही नासूर बन गया है |  अमेरिका के कई मानवरहित विमान आज  पाक मे डेरा डाले हैंजो कट्टरपंथियों को सीमा पर जाकर सबक सिखा रहे हैं इसके जवाब में तालिबानी पाक में कहर बनकर टूट रहे हैं  जिसमे पाक के बेगुनाह नागरिक हलाक हो रहे  हैं  | यही नहीं  कट्टर पंथियों के हाथ  पाक में दिनों दिन मजबूत होते जा रहे है | यह नवाज शरीफ के लिए भी सियासत का एक गंभीर संकट बन चुका है |  अभी कई बरस पहले पाक का आलीसान मेरियट होटल तालिबानियों के निशाने पर रहा |   इस हमले मे  भी कई लोग हलाक हुए | इसके बाद लाल  मस्जिद से लेकर खैबर , फाटा , क्वेटा, वजीरिस्तान  कराची , स्वात घाटी और रावलपिंडी  सरीखे शहर  तालिबानियों के निशाने पर रहा सद्दाम हुसैन को  फासी होने और फिर इराक पर कब्जा ज़माने के बाद से ही पाक  ,  कट्टरपंथियों और तालिबानियों  की आँखों में खटक रहा है यही कारण है  वहा पर कई भीषण हमले हो चुके है | आज पाक मे कानून नाम  कीकोई चीज नही रह गयी है | कोई भी कभी वहां पर दहशतगर्दों की  भेट चढ़ सकता है |  सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात होने के बावजूद वहा कोई भी घुसपैठ कर सकता है |  यह पाक के भविष्य के लिए अशुभ संकेत है |  सरकार होने के बाद भी वहा पर सेना की राह आज भी अलग दिख रही है |  वह यह नही चाहते किसी सूरत पर पाक के अन्दर अमेरिका की सेनाये जाए जहाँ पर कट्टर पंथी लोग छिपे है लेकिन ओबामा का फरमान मानने को सेना को मजबूर होना पड़ रहा है |  सरकार और पाक के सेना दोनों अभी तक यह तय नही कर पा रहे हैं आतंक के खिलाफ जंग में  किसका साथ दिया जाए?  पाक मे ओबामा ने सेना को ड्रोन हमले करने की अनुमती दे डाली है फिर इसके लिए चाहे उनको पाक के सीमा के अन्दर ही क्यों घुसना पड़े | यही चीज तालिबानियों के गले की फाँस बन चुकी है | जब भी पाक की तरफ से कठोर कार्यवाही तालिबानियों के खिलाफ की जाती है उसकी प्रतिक्रिया में भी तालिबानी लडाके बम विस्फोट से अपना जवाब देते नजर आते हैं और हमलो के बाद जिम्मेदारी लेने से भी पीछे नहीं हटते | कल के इस हमले ने फिर इस बात की तस्दीक सही मायनों में कर डाली है |  तहरीक--तालिबान पाकिस्तान ने मंगलवार को पेशावर में किए गए हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए इसे सही ठहराने की कोशिश की है  पाकिस्तानी फौज के नए मुखिया राहिल शरीफ ने पद संभालते समय साफ कहा था कि पाकिस्तान को खतरा बाहर से नहीं बल्कि मुल्क के भीतर से है। पेशावर के  हमले पर उनकी  कही बातें सोलह आने सच साबित हो रही है