Wednesday 12 June 2019

नई उम्मीद के निशंक






27 मार्च 2009 को उत्तराखंड में एक नई सुबह हुई जब उत्तराखंड के पांचवें मुख्यमंत्री के रूप में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी हुई। राजनैतिक अस्थिरता के दौर में जब निशंक ने प्रदेश की बागडोर  संभाली थी तो पार्टी के अंदर और बाहर तमाम तरह की चुनौतियां थी । छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्दबाजी में लागू करने और वित्तीय कुप्रबंधन के कारण राज्य की गाडी पटरी से उतर चुकी थी । उस दौर तो याद करें तो कर्मचारियों को वेतन के भी लाले पड़ने लगे थे । सरकार के पास विकास कार्यों के लिए धन का अभाव था  जिस कारण प्रदेश के विकास का इंजन लगभग ठप पड़ गया था। इन चुनौतियों से उत्तराखंड को किसी ने पार कराया तो वह शख्स निशंक थे । उन्हीं  के दौर में 13वें वित्त आयोग का गठन हुआ जिसमें सरकार ने योजना आयोग से 6800 करोड़ की सालाना योजना के आकार का अनुमोदित कराने के साथ ही विकास की ऊँची छलांग लगा दी । यही नहीं अपने कुशल राजनीतिक प्रबंधन से निशंक ने राज्य की विकास दर को भी उच्चतम स्तर पर बनाये  रखने में कामयाबी पाई ।

ऊपर का यह वाकया डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के रुतबे और उनकी कार्यशैली को बताने के लिए काफी है । निशंक किस तरह अपने काम को अंजाम तक पहुंचाते हैं यह इस बात से भी जान सकते हैं उत्तराखंड के सी एम रहते उन्होंने राज्य की बेलगाम नौकरशाही को पटरी पर लाने में भी सफलता पाई । नाउम्मीद को उम्मीद में बदलना निशंक की बड़ी  कला है । उनकी इस कला का लोहा उनके विपक्षी भी मानते हैं । 


उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘‘निशंक’ को केंद्र में मंत्री बनाये जाने के बाद उत्तराखंड की राजनीति में उनका कद बड़ा हो चला है। पौड़ी जिले के पिनानी गांव से शुरू हुई उनकी राजनीति यात्रा आज जिस पड़ाव पर है वहां उत्तराखंड से अभी तक सिर्फ दो नेता स्वर्गीय के सी पंत और डॉ मुरली मनोहर जोशी ही पहुँच पाए हैं। इस कड़ी  में निशंक अब केंद्र के सबसे दमदार मानव संसाधन मंत्रालय की कमान संभालेंगे । मंत्रिमंडल में उन्हें शामिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराखंड से विशेष लगाव को एक बार फिर उजागर किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के शपथ समारोह में प्रधानमंत्री मोदी के ठीक पीछे डा. निशंक को स्थान मिलने से प्रदेश की राजनीति में एक साथ कई संदेश गये हैं। इसे डा. निशंक के बढ़ते राजनीतिक कद के रूप में आंका जा रहा है। 

2014 के लोकसभा चुनाव में भी डा. निशंक ने जीत दर्ज की थी लेकिन तब उन्हें मंत्रिपद नहीं मिल पाया  था क्युकि भगत सिंह कोश्यारी और भुवन चंद्र खंडूरी भी पूर्व सी एम थे और वह भी सांसद  बने थे । डा. निशंक के राज्य की राजनीती से  केंद्र में आने के बाद जहाँ उनके विरोधी यह मान चले थे कि उनकी राजनीति पर अब ग्रहण लग गया है लेकिन जैसे ही शपथ ग्रहण समारोह में निशंक नजर आये उसने  एक बार फिर सभी को निशंक होने के मायने बता दिए हैं । उत्तराखंड से उनके कैबिनेट मंत्री बनाये जाने से जहाँ उनके  राजनीतिक कद में इजाफा हुआ है वहीँ लम्बे  समय से उत्तराखंड की विकास की  उम्मीदों को भी अब नए पंख लग गये हैं। डा. निशंक अपनी साफगोई और बेबाकी  के लिए जाने जाते हैं । आज  अगर निशंक  की ताजपोशी से पूरे उत्तराखंड  में जश्न है तो इसका कारण  उनका ऐसा  जनप्रिय नेता होना है जिसे  लोग पहाड़ के  जनसरोकारों से  जुड़ाव रखने वाले नेता के तौर पर देखते रहे  हैं । निशंक धुन के पक्के हैं । अपने काम से विशेष लगाव रखते हैं और अकसर जनता के बीच जाकर अफसरों को फटकार लगाने से भी बाज नहीं आते । ग्राउंड जीरो पर जाकर काम करने वाले वह उत्तराखंड  के इकलौते   नेता रहे हैं । एक  राजनेता के तौर पर निशंक  की  यही  पहचान उत्तराखंड भाजपा के  अन्य नेताओं  से उन्हें अलग करती  है ।

 डा. रमेश पोखरियाल निशंक का राजनीति सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में शिशु मंदिर में शिक्षण कार्य से  शुरू हुआ । 1991 में वह पहली बार कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता शिवानंद नौटियाल को पटखनी देकर सियासत की नई लकीर खींच गए। पौड़ी जनपद के ग्राम पिनानी में एक निर्धन परिवार में उनका जन्म 15 जुलाई 1959 में हुआ था। विश्वेश्वरी देवी व परमानंद पोखरियाल के घर में जन्मे निशंक पृथक उत्तराखंड के लिए अस्सी के दशक से ही खासे सक्रिय हो गये थे। 1991 से वर्ष 2012 तक पांच बार उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की विधानसभा में विधायक रहे। 1997 में उन्हें पहली बार कल्याण सिंह सरकार में लिया गया और पर्वतीय विकास विभाग में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1999 में रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में संस्कृति व धर्मस्व मंत्री बनाया गया। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद वह प्रदेश के पहले वित्त सहित कई अन्य विभागों के मंत्री बने। इसके बाद 2002 में उनको कांग्रेस के गणेश गोदियाल से करारी हार का सामना करना पड़ा । 2007 में खंडूड़ी सरकार में चिकित्सा स्वास्थ्य , भाषा तथा विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्री रहे और 2009 में खंडूड़ी को हटाने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सीएम पद से हटाने के बाद उन्हें  2011 में भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया जिस जिम्मेदारी का उन्होंने अच्छी तरह निर्वहन किया। इसके बाद 2012 में डोईवाला से विधायक चुने गये और 2014 में हरिद्वार से लोकसभा के लिए चुने गये। इस दौरान वह लोकसभा की सरकारी आश्वासन समिति के सभापति भी रहे। 2019 में हरिद्वार से फिर से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने  मोदी सरकार 2. 0  में कैबिनेट मंत्री की शपथ ली। 

पेशे से पत्रकार रहे निशंक की साहित्य में भी अच्छी रुचि रही है । निशंक बचपन से ही कविता और कहानियां लिखते रहे हैं।उनका पहला कविता संग्रह वर्ष 1983 में समर्पण प्रकाशित हुआ। अब तक उनके  10 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 10 उपन्यास, 2 पर्यटन ग्रन्थ, 6 बाल साहित्य, 2 व्यक्तित्व विकास सहित कुल 4 दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं द्य आज भी तमाम  राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद सक्रिय  लेखन जारी है। रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ बेशक राजनीती में हैं लेकिन साहित्य प्रेमी हैं । फुर्सत के पलों में लिखना पढ़ना पसंद करते हैं ।  वह अब तक हिन्दी साहित्य की तमाम विधाओं कविता, उपन्यास, खण्ड काव्य, लघु कहानी, यात्रा साहित्य आदि में अपनी कलम की धार से हिंदी जगत को नई ऊंचाई पर पहुंचा चुके हैं । उनके लेखन में  राष्ट्रवाद की भावना देखी जा सकती है। यही कारण है कि उनका नाम राष्ट्रवादी कवियों की श्रेणी में शामिल किया जाता है। स्वर्गीय अटल जी के बाद वह भाजपा में ऐसे नेता हैं जिनके साहित्य  में एक तरफ संवेदना है और दूसरी  तरफ समाज से सीधा जुड़ाव |  इसे इनकी रचनाओं में बखूबी पढ़ा  जा सकता है । ‘निशंक’ के साहित्य का विश्व की कई भाषाओं जर्मन, अंग्रेजी, फ्रैंच, तेलुगु, मलयालम, मराठी आदि में अनुवाद किया जा चुका है। इसके अलावा निशंक साहित्य को मद्रास, चेन्नई तथा हैंबर्ग विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। उनके साहित्य पर अब तक कई शिक्षाविद् अपने  शोध कार्य तथा पी.एचडी.कर  चुके हैं। यही नहीं उन्हें श्रीलंका ओपन विवि  ने डा. ऑफ सांइस एवं डीलिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है ।

। निशंक प्रखर सांसद के रूप में हाल के बरसों में अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं । वह संसद में सबसे अधिक सवाल उत्तराखंड से पूछ चुके हैं साथ ही मुखर होकर पहाड़ी हिमालयी राज्यों के लिए अलग मंत्रालय , ग्रीन बोनस,  अविरलता की मांग करने के साथ ही पहाड़  जमीन, जंगल जैसे मुद्दों की मांग उठाते देखे जा  सकते हैं । बतौर सांसद अपने बीते  पांच बरस  के कार्यकाल के दौरान डॉ निशंक संसद  में खासे सक्रिय रहे। उन्हें लोकसभा की सरकारी आश्वासन समिति के सभापति का दायित्व दिया गया । उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यह पहला अवसर है जब राज्य के किसी सांसद को सीधे कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। महत्वपूर्ण बात यह भी कि निशंक को मंत्रिमंडल में जगह देकर पार्टी ने उत्तराखंड में क्षेत्रीय, जातीय, सामाजिक और गुटीय संतुलन को भी साध लिया।निशंक की ताजपोशी से भाजपा ने उत्तराखंड में कई तरह का संतुलन साधने में कामयाबी पाई है। निशंक  मूल रूप से गढ़वाल से ताल्लुक रखते हैं  लेकिन लोकसभा में वह राज्य के मैदानी हिस्से हरिद्वार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । हरिद्वार लोकसभा सीट राज्य की ऐसी सीट है, जहां पर्वतीय, मैदानी मूल के लोगों के साथ ही मुस्लिम, अनुसूचित जाति और ओबीसी मतदाताओं की संख्या भी खासी है इसीलिए आलाकमान ने निशंक  कैबिनेट में जगह  दी है । 2017 के  उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में  मुख्यमंत्री का ताज  त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहना था जो  राजपूत हैं जिसके बाद पार्टी ने सरकार में ब्राह्मण समाज को कोई महत्ता नहीं दी । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को आलाकमान ने संगठन की जिम्मेदारी दी जिसके बाद जातीय संतुलन सरकार  में नहीं सध पाया और अब निशंक के  ब्राह्मण चेहरे को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी  देने का सीधा मतलब राज्य के दो शीर्ष नेताओं के मध्य जातीय संतुलन सधना है । निशंक उत्तराखंड में भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं लिहाजा उन्हें केंद्र में मंत्री बनाकर पार्टी के तमाम आंतरिक और बाह्य  समीकरणों में भी संतुलन स्थापित किया  है। 

निशंक के केंद्र में मंत्री बनने के बाद अब  उत्तराखंड  भाजपा  के विरोधी गुटों के नेताओं में बैचनी बढ़नी लाजमी है क्युकि  कोश्यारी और खंडूरी की सक्रिय राजनीति से विदाई के बाद यह कहा जाने लगा था कि राज्य में असली पावर हाउस अब त्रिवेंद्र रावत के पास है जो मोदी और शाह के करीबियों में शुमार  हैं लेकिन अब केंद्र में डॉ निशंक की एंट्री से सीएम  त्रिवेंद्र रावत  की मुश्किलें बढ़नी तय हैं । राज्य सरकार की नीतियों से जो विधायक असंतुष्ट हैं उनका नया पावर सेण्टर अब निशंक का दिल्ली का  सरकारी आवास बन सकता है । बहुत संभव है राज्य के मुखिया त्रिवेंद्र रावत को अब अपनी कार्यशैली बदलनी पड़ सकती है । डा. निशंक का केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनना उत्तराखंड के लिए बड़ी उपलब्धि हो सकता है। 

निशंक का मतलब होता है किसी से ना डरने वाला। उनकी अग्नि परीक्षा तो अब शुरू होगी । निशंक को यह समझना होगा उन्होंने  मझधार में उत्तराखंड  के सीएम रुपी कांटो का ताज पहना था परन्तु  उनके अपनों ने ही उनको उत्तराखंड की राजनीती से किकआउट कर डाला था । ऐसे हालातो में पुरानी भूलों से सबक लेते हुए निशंक को फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे । निशंक के साथ प्लस पॉइंट यह है वह युवा होने के साथ ऊर्जावान भी हैं। एक कुशल राजनीतिक प्रबंधक के तौर पर भी वह अपनी अलग छाप  छोड़ चुके हैं।  साहित्यकार होने के नाते उनकी  जनता से संवाद करने की अनूठी कला है । वह सभी से सहजता से मिलते रहे हैं । पक्ष हो या विपक्ष डॉ निशंक का नाम हर खेमे  में  मशहूर है । कुछ तो बात है राज्य की राजनीती से केंद्र में जाने के बाद भी डॉ निशंक का नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । वह आज भी उत्तराखंड भाजपा की धुरी हैं  जिसके पास चाहने वालों का विशाल जमावड़ा है। उनके चेहरे पर हमेशा मंद मुस्कान रहती है और वह कुशल प्रशासक भी रह चुके  हैं । मानव संसाधन विभाग की कमान सँभालने के बाद निशंक ने  कहा है देश  का चहुंमुखी  विकास करना उनकी प्राथमिकता में है और मोदी  के विजन को पूरा करना है । देश में उच्च शिक्षा की हालत बहुत खराब है । डॉ निशंक खुद साहित्यकार हैं और लेखन से जुड़े हैं लिहाजा उनके आने के बाद नई उम्मीद बंध  रही है । देश के तमाम  विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है वहीँ राज्य के विश्वविद्यालयों में बुनियादी आधारभूत ढाँचे का अभाव । ऐसे में डॉ निशंक को नए तरीके से काम करने की जरूरत होगी । नई  शिक्षा नीति अभी नहीं आई है  लेकिन अभी से इसको लेकर होहल्ला शुरू हो गया है । डॉ निशंक को तमाम व्यवस्थाओं में सुधार की कोशिशें  करनी होंगी। इसके साथ ही उनके उत्तराखंड से होने के चलते राज्य के विश्वविद्यालयों को उनसे बड़ी आशाएं भी  हैं । 

डॉ निशंक  सरीखे  नेता में सब कुछ कर  गुजरने  की तमन्ना है और चुनौतियों से लड़ना उन्हें बखूबी आता है  डॉ निशंक के पास इससे सुनहरा  समय शायद ही कभी आये जब  वह  नए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के  तौर पर उस  अग्निपथ पर हैं जहाँ लोगो की बड़ी अपेक्षाएं उनसे जुडी हैं ।  अब  यह डॉ निशंक  पर टिका है वह देश  को  किस  दिशा  में ले जाते हैं ? आज  वह एक पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता से केंद्रीय कैबिनेट मंत्री की जिस कुर्सी तक वह  पहुंचे हैं यह कांटो भरा ताज  जरुर है और इतिहास में ऐसे  मौके बार बार नहीं आते । डॉ निशंक अगर पूर्व मानव संसाधन मंत्रियों  से अलग लीक पर चलते हैं तो  देश के इतिहास में वह जननायक के तौर पर याद किये जायेंगे अन्यथा वह भी  सियासी तिकडमो के बीच अगर अपनी कुर्सी  बचाने की मैराथन में  ही  लगे रहे तो इससे देश  की जनता का कुछ भला नहीं होगा और देश की शिक्षा का बेडा गर्क ही बना रह जायेगा । उन्हें पीएम मोदी ने जिस भरोसे के साथ नई जिम्मेदारी सौंपी है उस पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती अब उनके सामने है ।शिक्षा जगत की बड़ी नाव के मांझी  वह खुद हैं । नाव  सही दिशा में तैरे इसकी जिम्मेदारी खुद अब उनके कंधे में है। क्या डॉ  निशंक इस पर कोई  नयी लकीर खीँच  पाएंगे यह अब समय ही बतायेगा लेकिन डॉ निशंक की मानव संसाधन मंत्री की नई पारी से को बड़ी बड़ी उम्मीदें हैं  | 

Wednesday 5 June 2019

'नमो ' की सुनामी








  इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर मोदी ने सही मायनों में अपनी अखिल भारतीय छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है । पहले यह भ्रम बन गया था कि मोदी पार्टी से बड़े हो गए हैं लेकिन हलिया  चुनाव परिणामो ने इस भ्रम को हकीकत में बदल दिया है । मोदी के बारे में उनके विरोधी ही नहीं भाजपा में उनको नापसंद करने वाली  जमात का एक बड़ा तबका इस बार मोदी की जीत  को लेकर आशंकित था ।  इस बार के चुनावो से पहले उन्होंने  मोदी का किला दरकने के प्रबल आसार  बताये थे  साथ ही अपने  नकारात्मक प्रचार द्वारा   मोदी का जादू  फीका होने की बात मीडिया के सामने रखी थी लेकिन मोदी ने अपने बूते देश फतह  कर यह बता दिया पार्टी में उनको चुनौती देने की कुव्वत किसी में नहीं है ।  


भारतीय राजनीती में 2019  के लोक सभा चुनावो की बिसात कई मायनो में ऐतिहासिक है क्युकि कई दशक बीतने के बाद किसी राष्ट्रीय  पार्टी को अभूतपूर्व जनादेश और सफलता मिली है । नए दौर  की इस  सफलता  में किसी का बड़ा योगदान है तो बेशक वह शख्स  मोदी  और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही हैं जिनके अथक प्रयासों से भारतीय जनता पार्टी ने वो चमत्कार कर दिखाया है जो पार्टी ने अटल आडवाणी के दौर में नहीं किया था । भाजपा  का  पूरा प्रचार अभियान मोदी के इर्द गिर्द ही घूमा | मोदी ने यू पी , बंगाल ,उड़ीसा , बिहार , महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , राजस्थान , कर्नाटक  , गुजरात  पर  फोकस किया और तकरीबन एक लाख किलोमीटर से अधिक की यात्रा करते हुए 142  में से 104  रैली  इन राज्यों में की वहीँ अमित शाह ने डेढ़  लाख किलोमीटर से अधिक की यात्राएँ  पूरे देश भर में की | अमित शाह ने देश भर में 161  सभाओँ  को ना केवल सम्बोधित किया बल्कि 300 से अधिक संसदीय इलाकों में अपनी खुद की उपस्थिति  दर्ज करवाई |  चुनाव प्रचार की रणनीति से लेकर बूथ प्रबंधन और सरकारी नीतियों  की जानकारी कार्यकर्ताओं तक पहुंचाने से लेकर  नारे खोजने  तक की जिम्मेदारी उनके जिम्मे थी | 

 भारतीय जनसंघ के दौर मे भाजपा मे अटल और आडवाणी की जोड़ी खूब बनी | पोस्टरों से लेकर पार्टी के बैनरों तक में  इस जोड़ी ने खूब जगह बनाई | इंडिया शाइनिंग के नारों के बीच भाजपा मे पंचसितारा संस्कृति को बढ़ावा देने की बातें भी उठी लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी के राजनीति से सन्यास के बाद आडवाणी पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता मे वह भरोसा  और विश्वास नहीं जगा पाये जैसा हाल के बरसों मे मोदी और शाह की जोड़ी ने जगाया है | अटलबिहारी और आडवाणी के दौर मे जो करिश्मा भाजपा पूरे देश की  सियासी जमीन मे राम मंदिर के दौर मे नहीं कर सकी वह करिश्मा मोदी शाह जोड़ी ने करके तमाम विरोधी राजनीतिक दलों को इस चुनाव में पानी पिला दिया | आप मोदी और शाह के लाख  आलोचक रहे हों लेकिन यह तो मानना पड़ेगा चुनावी राजनीति में  हाल के वर्षों मे अपने कुशल प्रबंधन और चुनावी बिसात से शाह और मोदी की जोड़ी ने भारतीय राजनीति के रुख को ही बदलकर रख दिया है |  हाल के वर्षों मे अमित शाह ने कई राज्यों में न केवल अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज करवाई है बल्कि  वोट प्रतिशत भी बढ़ाया है |  

संकेतो तो डिकोड करें  तो भाजपा के लिए मोदी का  यह बाहुबली अवतार  किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं हैं क्युकि इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत ही नहीं बढ़ा  बल्कि देश के युवा वोटरों की बड़ी जमात ने मोदी को वोट किया । 20  से अधिक  राज्यों  में कांग्रेस का खाता नहीं खुलना और  पूर्वोत्तर , दक्षिण  के  कई राज्यों में  भाजपा के वोट प्रतिशत में हुई जबरदस्त  वृद्धि  इस बात को बता रही है आज भाजपा ना केवल उत्तर की पार्टी रह ग़ई है वह देश के हर कोने में अपना आधार और साख मजबूत कर रही है | संकट देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को लेकर है जो दिन पर दिन सिकुड़ रही है |   भाजपा ने इस चुनाव में मोदी को तुरूप के इक्के के  रूप में  आगे कर वोट मांगे । ' मोदी है तो मुमकिन है ' से लेकर 'फिर एक   बार मोदी सरकार ' सरीखे नारो के केंद्र में  मोदी ही रहे साथ ही उन्हें नापसंद करने वालो की एक बड़ी जमात बार  बार मोदी  को ही निशाने पर लेती रही लेकिन इसके बाद भी मोदी ने  अपने दम  पर भाजपा को बहुमत में लाकर अगर खड़ा करने किया है तो इसमें मोदी की दिन रात की मेहनत को नहीं नकारा जा सकता ।  इस लोकसभा चुनाव में  पार्टी ने देश के उत्तर, मध्य और पश्चिमी और पूर्वोत्तर के  क्षेत्रों  का रंग अगर भगवा किया है तो यह अमित शाह का कुशल प्रबंधन है |  हालांकि बीजेपी अभी दक्षिण  भारत में अच्छी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही है | 

अमित शाह को जब गुजरात से निकाला गया तब उन्होंने अपना डेरा दिल्ली में स्थित गुजरात भवन में डाला। यहां रहते हुए वह भाजपा के बड़े नेताओं के करीब आते गए और मोदी के लिए दिल्ली आने के रास्ते तलाशते गए और 2014  से ठीक पहले गोवा में  मोदी को राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक के दौरान पीएम का चेहरा बनाने मे भी अमित शाह की बड़ी भूमिका थी | मनमोहन सरकार  के किले को भेदने के लिए  भाजपा जब भाजपा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बना रही थी तब मोदी और शाह जानते थे कि यूपी जीते बिना दिल्ली की कुर्सी पाना नामुमकिन जैसा है। तब शाह यूपी जाना नहीं चाहते थे लेकिन गुजरात में आनंदीबेन पटेल और अन्य खेमों की पार्टी में बढ़ती पकड़ देख उन्होंने यह चुनौती स्वीकार कर ली। पार्टी की यूपी की कमान संभालते ही शाह एक राज्य के नेता से राष्ट्रीय नेता बन गए।  2014 मे उत्तर प्रदेश की 73  लोकसभा सीट भी अमित शाह के कारण पार्टी ने जीती  और इसके बाद तो  दो तिहाई बहुमत से अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए  पार्टी ने यू पी की पिच पर शानदार करिश्मा कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी | साथ ही अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा 10  करोड़ सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी भी बनी  जिसके आज पास कार्यकर्ताओं की भारी भरकम फ़ौज है | 2014  में जब मोदी  पी एम बने तो मात्र 5  राज्यों में भाजपा की सरकार थी लेकिन आज अमित शाह के पार्टी  अध्यक्ष  रहते पार्टी 19  राज्यों में सत्ता में है जो उनके करिश्मे  को  बताने के लिए काफी है |  देश  में मोदी की सफलता के पीछे शाह की प्रतिभा है और मोदी का  चेहरा  | केंद्र मे मोदी ने 5  बरस में  जिस तरह पारदर्शी  सरकार  चलाई उससे प्रभावित होकर जनता ने इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट किया |  उसे समाज के हर तबके का लाभ मिला है साथ ही जातीय बंधन टूटे और   पहली बार परिवारवाद की राजनीति ख़त्म हुई | 

  2014  में मिले 31  फीसदी वोट शेयर को पीछे छोड़ते हुए भाजपा इस बार 50  फीसदी से भी अधिक वोट पा गई  |  जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल , बंगाल और पूर्वोत्तर तक में भाजपा  का वोट  शेयर बढ़ा  है। खास बात यह है कि 12 बड़े और प्रमुख राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, गोवा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली में पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली है। यूपी में सहयोगी अपना दल के साथ पार्टी के वोट शेयर का आंकड़ा 50 फीसदी को पार कर गया है जिसके पीछे  अमित शाह का चुनावी प्रबंधन ही काम किया  है| हिंदी पट्टी  की 226  सीटों में 202 लोकसभा सीटें पार्टी ने फतह हासिल की |  यही नहीं अमित शाह ने बीते बरस  से ही  के  उन  120  लोकसभा सीटों पर ख़ास खुद का फोकस किया था जहाँ पार्टी हार गयी थी और आज पार्टी ने तकरीबन आधी सीटें अपनी झोली में ला दी  हैं जिसमें उनके योगदान को नहीं नकारा जा सकता | अमित शाह ने  इस चुनाव में  सिटिंग  गेटिंग फार्मूला भी गुजरात की तर्ज पर लगाया जिसमें 91  नए  चेहरों का बड़ा दांव उन्होंने खेला जिसमें 79 लोकसभा सीटों पर कमल खिला |

 5  माह पूर्व छत्तीसगढ़ , राजस्थान , मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों की  हार से सबक लेते हुए जिस तर्ज पर  शाह ने इस बार लोकसभा  की बिसात बिछाई उसकी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है | लोकसभा चुनावों से पहले ना केवल शाह ने पूरे एनडीए  को एकजुट रखा बल्कि देश भर की ख़ाक छानकर मोदी सरकार  की नीतियों को जन जन तक पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं से  संवाद और मीटिंगों का दौर लगातार जारी रखा | भाजपा के संगठन विस्तार में शाह की यही दूरदृष्टि काम आई | साथ ही  उन्होंने  आक्रामक तरीके से विपक्ष के हर सवाल का जवाब भी दिया | राम मंदिर आंदोलन के दौर मे भी भाजपा को इतनी सीटें  नहीं मिली जितनी की इस बार मिली है | इस जीत ने   भारतीय जनता पार्टी की स्वीकार्यता को पूरे देश में न केवल  बढ़ाया है बल्कि सही मायनों मे पी एम मोदी के कद को बढ़ाने का काम किया है | इस जीत ने  भाजपा मे अमित  शाह को  आज सबसे कामयाब अध्यक्ष  और आधुनिक राजनीति के चाणक्य के तौर पर  पार्टी में स्थापित कर दिया है |  

   सत्तर  अस्सी के दशक को याद करें तो उस दौर में एक बार इंदिरा गांधी ने तमाम सर्वेक्षणों की हवा  निकालकर दो तिहाई प्रचंड बहुमत पाकर संसदीय राजनीती को  आईना दिया था । इस बार मोदी ने 2014  से भी बेहतरीन तरीके से  विकास के माडल को अपनी छवि के आसरे जीत में तब्दील कर दिया ।  आमतौर पर सत्तारूढ़  दलों  को  एंटी इनकम्बैंसी   का सामना करना पड़ता है लेकिन इस लोकसभा  चुनाव में प्रो एंटी इंकम्बैंसी  रही और मोदी के नाम का अंडर करंट  था |  विकास के नारे के आगे सारे नारे फ़ेल  हो गए । यह इस मायनों में कि जनता ने मोदी  के विकास माडल पर न केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि यू पी में महागठबंधन के आने के के बावजूद भाजपा का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा । यही नहीं दूसरी बार पी एम  बनने  के बाद अब  मोदित्व का परचम एक नई  बुलंदियों में पहुच गया है ।  ब्रैंड  मोदी  का जादू लोगो पर सर चदकर बोल रहा है । उनका जादू इस चुनाव में  किस कदर चला इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहरी इलाकों  ,अर्द्ध  शहरी  और ग्रामीण इलाकों की सीटें  भाजपा की झोली में आई । यह मोदी की लोकप्रियता और उनके विकास की कहानी को रूप में  बयाँ करवाने के लिए काफी है ।  राहुल गाँधी ने चौकीदार चोर है के नारे को जहाँ भुनाया वहीँ प्रधानमंत्री के लिए विपक्ष ने  क्या नहीं कहा | गन्दी नाली के कीड़े से लेकर  मुसोलनी , बन्दर , सांप , बिच्छू  , रावण , अनपढ़ , गंवार , औरंगजेब  ,तुगलक , नटवरलाल , निकम्मा , नमक हराम जैसे ना जाने कितने अशिष्ट शब्द बयां  किये लेकिन आज के वोटर ने इन सबको खारिज कर दिया |   देश ने  उन सबको करारा जवाब यह कहते हुए दिया है कि  मोदी के हाथों  में  देश पूरी तरह से सुरक्षित  है ।
    
                      पूरब से लेकर पश्चिम  उत्तर से लेकर दक्षिण  हर जगह मोदी की तूती  ही इस चुनाव में बोली है । पूरा  देश  इस कदर मोदीमय है समाज के कई  तबको का समर्थन जुटाने की कांग्रेस और महागठबंधन  की गोलबंदी इस चुनाव में काम नहीं आ सकी । शहरी , ग्रामीण , गैर आदिवासी , आदिवासी इलाके   इस चुनाव में मोदी के साथ ही खड़ा दिखे  और पहली बार जातीय बंधन  मोदी की राजनीति ने तोड़ डाले |  मोदी ने जातीय बंधन में  सेंध लगाकर अपनी बादशाहत को सही रूप में सबके सामने साबित कर दिखाया । कई प्रेक्षक 2019  में भाजपा की राह मुश्किल होने का दावा कर रहे थे  लेकिन  इस चुनाव में भाजपा को मोदी के नाम का  मिला बड़ा वोट यह साबित करता है कि इस चुनाव में समाज के हर तबके ने  अपना खुला समर्थन मोदी को देकर विपक्ष  की राजनीती को सीधे खारिज ही कर डाला । पूरे देश में नया युवा वोटर मोदी  के साथ खड़ा रहा और उसकी मानें तो देश का बेड़ा  मोदी ही पार लगा सकते हैं । दुबारा  प्रचंड बहुमत पाकर  मोदी अब भाजपा में अब तक के सबसे  बड़े नेता के तौर पर उभर कर सामने आ गए हैं । इस जीत  के बाद मोदी निश्चित ही भाजपा में अब सबसे मजबूत हो गए हैं और संघ भी अब भाजपा की भावी रणनीतियो का खाका मोदी के आसरे ही खींचेगा क्युकि  स्वयंसेवको की बड़ी कतार चाहती है अब  भाजपा उन्ही के  युवा चेहरे के आसरे आगे बढे | इस  जीत के बात भाजपा का जोश बढ़  गया है  जो भाजपा मुख्यालय में देखा जा सकता है |   मोदी देश के वोटर ही नहीं बल्कि  चुनाव को अपने मुद्दों के जरिये  प्रभावित कर सकते हैं । हिंदुत्व और विकास के आसरे मोदी ने देश  में जो लकीर खींची  है वह अब  इतिहास बन चुकी है ।

       इस लोकसभा चुनाव  के बहाने मोदी ने कम से कम यह तो दिखा ही दिया वह सियासत की हर बिसात को अपनी ढाई चाल से मौत देने की छमता तो  रखते  ही  हैं शायद तभी उनके विरोधी  भी  उन्हें सत्ता से बाहर खदेड़ने के मंसूबो पर कामयाब नहीं हो पाते हैं ।दूसरी बार  दिल्ली की पिच पर उतरकर  उन्होंने पूरे विपक्ष  को  ही क्लीन बोल्ड  कर दिया ।  अपने मोदिनोमिक्स के आसरे उन्होंने महागठबंधन को पहली बार आईना  दिखा दिया और विपक्ष को यह कहते हुए  चुनौती  दे डाली कि  उनको  हराने  की कुव्वत विपक्ष में नहीं |    विकास के मोदिनोमिक्स ब्रह्मास्त्र के आसरे अब मोदी देश के करिश्माई नेता के तौर पर अपने को स्थापित करना चाहते हैं | मोदी सरकार के पांच  बरस उपलब्धियों से भरे रहे |  मोदी सरकार की मंशा सबका साथ सबका विकास रही है और ख़ास बात यह यह इस सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई दाग अब तक नहीं है शायद यही इस बार जीत की वजह बनी है |  

पारदर्शी सरकार देना , विश्व में भारत की साख मजबूत करना और गरीबों का हिमायती होना इस सरकार की पहले दिन से प्राथमिकता रही  | जनधन के खाते खोलकर , मनरेगा चालू रखकर , मुद्रा योजना , उज्जवला योजना , स्किल इंडिया , स्टार्ट अप इंडिया,आयुष्मान भारत सरीखी योजनाओं के केंद्र में गरीब गोरबा जनता रही सर्जिकल स्ट्राइक , विमुद्रीकरण , रेल बजट का आम बजट में विलय , नीति आयोग का निर्माण , वी वी आई पी कल्चर समाप्त करने, और कई कानून समाप्त करने ,बेनामी संपत्ति क़ानून , जी एस टी पास करने , दीनदयाल ग्राम योजना के तहत देश के सभी गाँवों को बिजली से रोशन करने  के मोदी सरकार के कई फैसले बड़े साहसिक रहे | साथ ही चुनावों के ऐलान से ठीक पहले  बालाकोट एयर स्ट्राइक ने मोदी की पहचान कड़े फैसले लेने वाले राजनेता के तौर पर उभारी जिसका सीधा लाभ भाजपा को कई राज्यों में मिला | यही नहीं  मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर भारत की नयी छवि गढ़ने में सफलता हासिल की और योग को वैश्विक मान्यता दिलाई साथ ही स्वच्छता को एक बड़े जनअभियान में तब्दील किया और समाज के हर तबके के लिए काम किया | 

मोदी ने इस चुनाव में विकास के नारो के साथ बड़े सपने लोगो के भीतर जगाये ।  आज भाजपा जिन  राज्यों  में भी  शासन कर रही है तो इसकी सफलता का बड़ा पैमाना भी मोदी ही हैं | उनके दमदार नेतृत्व की काट विपक्षियों के पास नहीं है |विपक्ष में कोई उनको चुनौती देने की स्थिति में नहीं है जिसके चलते आने वाले कुछ बरस तक मोदी बनाम ऑल  की लड़ाई  देश में देखने को मिल सकती  है | फिलहाल दूर दूर तक मोदी को चुनौती देने की स्थिति में कोई विपक्षी नहीं है शायद यही वजह है हर चुनाव में मुद्दा मोदी हैं | सबहिं नचावत नमो गोसाई | यानी पूरी  सियासत इस दौर में मोदी के इर्द गिर्द ही घूमी है | इस लोकसभा के चुनाव के संकेत साफ है   भाजपा का कैडर हर चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर रहा है और कांग्रेस देश में लगातार सिकुड़ रही है | विपक्ष मोदी का विरोध करते करते  हर राज्य गंवाते ही जा रहा  है | 2014 में हमने  मोदी मैजिक देखा  वही 2019 में मोदी की सुनामी आई  है  | साफ़ है देश  और विदेश में मोदी की  लोकप्रियता बरकरार है और मोदी सरकार से लोगों को अभी भी कई उम्मीदें  हैं  | सपनो को हकीकत का चोला पहनाने का समय शुरू हो गया है । मोदी की लोकप्रियता में आज भी कोई गिरावट नहीं आई  है | लोगो को अभी भी  मोदी से बहुत आशाएं हैं ।  अब मोदी को गाँव  के अंतिम छोर  में खड़े व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुचाना होगा क्युकि 2019  के इस चुनाव की इबारत साफ़ कह रही है  लोगो ने जाति, धर्म से ऊपर उठकर विकास के लिए वोट किया है ।  मोदी के शपथ ग्रहण का सभी को जल्द  इन्तजार है क्युकि उसके बाद ही नयी सरकार अपना काम शुरू करेगी और नीतियों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया  विधिवत रूप से शुरू होगी । 
                             

आधुनिक राजनीति के चाणक्य अमित शाह

     


लोकसभा के हालिया चुनाव मे भाजपा को प्रचंड जीत दिलाने वाले अमित शाह भाजपा में  अब सबसे ताकतवर अध्यक्ष  बन गए हैं । इसके साथ ही पार्टी और सरकार पर उन्होने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है । अब पोटली और ब्रीफकेस के सहारे राजनीति करने वालों की नींद उड़ गई है। कारण अमित शाह है क्युकि उनकी रणनीति के आधार पर अब हर राज्य मे चुनावी बिसात ना केवल बिछाई जा रही है बल्कि बूथस्तर पर अपने कुशल प्रबंधन से शाह हारी हुई बाजी को जीतने का माद्दा भी रखते हैं शायद यही वजह है इस दौर मे शाह को चुनावी राजनीति का असल चाणक्य भी कहा जाने लगा है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी जुगलबंदी हर असंभव काम को संभव करने का हौसला रखती है। भाजपा को प्रचंड विजय दिलाने  के बाद पार्टी में  मोदी और शाह की जोड़ी एक बार फिर सब पर भारी दिखाई दी है |  यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं अमित शाह अब  भाजपा मे सबसे ताकतवर अध्यक्ष बन चुके हैं।

 भारतीय जनसंघ के दौर मे भाजपा मे अटल और आडवाणी की जोड़ी खूब बनी | पोस्टरों से लेकर पार्टी के बैनरों तक में  इस जोड़ी ने खूब जगह बनाई | इंडिया शाइनिंग के नारों के बीच भाजपा मे पंचसितारा संस्कृति को बढ़ावा देने की बातें भी उठी लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी के राजनीति से सन्यास के बाद आडवाणी पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता मे वह भरोसा  और विश्वास नहीं जगा पाये जैसा हाल के बरसों मे मोदी और शाह की जोड़ी ने जगाया है | अटलबिहारी और आडवाणी के दौर मे जो करिश्मा भाजपा पूरे देश की  सियासी जमीन मे राम मंदिर के दौर मे नहीं कर सकी वह करिश्मा मोदी शाह जोड़ी ने करके तमाम विरोधी राजनीतिक दलों को इस चुनाव में पानी पिला दिया | मोादी को दुबारा पी एम बनाकर   फतह करने के बाद  आधुनिक राजनीति के असल चाणक्य के तौर पर भारतीय राजनीति मे एक शख्स को सही मायनों मे स्थापित कर दिया है | उस चाणक्य का नाम अमित शाह है जिनके करिश्मे के बूते 2014  मे भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज करवाई थी और अब 2019  में दुबारा  कमल खिलाकर पूरे देश मे भाजपा की पताका लहरा दी है | आप मोदी और शाह के लाख  आलोचक रहे हों लेकिन यह तो मानना पड़ेगा चुनावी राजनीति में  हाल के वर्षों मे अपने कुशल प्रबंधन और चुनावी बिसात से शाह और मोदी की जोड़ी ने भारतीय राजनीति के रुख को ही बदलकर रख दिया है | मोदी जहां इन्दिरा के बाद सबसे प्रभावशाली पी एम बनने की दिशा मे मजबूती के साथ बढ़ रहे हैं  वहीं अमित शाह चुनावी चाणक्य के रूप मे एक के बाद एक वह करिश्मा करते जा रहे हैं जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी  | हाल के वर्षों मे अमित शाह ने कई राज्यों में न केवल अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज करवाई है बल्कि  वोट प्रतिशत भी बढ़ाया है | 

शाह का जन्म 22 अक्तूबर 1964 को मुंबई  में हुआ | महज  14 वर्ष की छोटी आयु में शाह  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए और यहीं से उनकी उभार शुरू हुआ जहां उन्होंने एबीवीपी की सदस्यता ली | 1982 में  अमित शाह अहमदाबाद में छात्र संगठन एबीवीपी के सचिव बन गए | 1997 में  वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने |  | साइंस से स्नातक अमित शाह कॉलेज में छात्र नेता रहे। संघ की शाखाओं में बचपन से ही जाते थे और राजनीति में आने से पहले एक स्टॉक ब्रोकर थे। शाह के करीबी कहते हैं कि उन्होंने धीरूभाई अंबानी और अन्य धनी व्यापारियों से प्रेरित होकर प्लास्टिक का धंधा शुरू किया था लेकिन जल्द ही उन्हें लगने लगा कि बिना सरकारी मदद के कोई भी बड़ा उद्योग खड़ा करना मुश्किल है। जानकार बताते हैं कि एक वरिष्ठ संघ प्रचारक ने 26 बरस  के युवा शाह को उस समय संघ और भाजपा में अपनी पैठ बना नरेंद्र मोदी से मिलवाया था।  मोदी उन दिनों अपनी टीम बना रहे थे। उन्हें युवा शाह के आत्मविश्वास ने काफी प्रभावित किया। शाह ने मोदी से लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रचार संभालने की इच्छा जताई। जिम्मेदारी मिल जाने के बाद शाह ने उसे बखूबी निभाया भी। आडवाणी के उस चुनाव के बाद शाह ने पार्टी में अच्छी पहचान बना ली। भाजपा और गुजरात की राजनीति को करीब से देखने वाले कई लोग मोदी और शाह के रिश्ते को 80 और 90 के दशक  में आडवाणी और मोदी के रिश्ते जैसा बताते हैं। शायद यही कारण है कि मोदी को शाह में अपने उस युवा जोश की झलक दिखी और उन्होंने अपना अभिन्न सहयोगी बना लिया।

 2001  में जब केशुभाई पटेल को हटाकर मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उससे पहले ही उन्होंने अमित शाह को एक कद्दावर नेता बना दिया था। शाह 1995 में गुजरात स्टेट फाइनेंसियल कॉरपोरेशन के चेयरमैन बनाए गए। इस पद पर रहते हुए वह कुछ खास असर नहीं दिखा पाए लेकिन यहां रहते हुए उनकी नजर गुजरात के कोऑपरेटिव बैंक सेक्टर पर पड़ी। बस कुछ दिनों में वह अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक के मुखिया बन गए। उन्हीं दिनों गुजरात में मोदी का बढ़ता विरोध देखकर पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुला लिया। लेकिन गुजरात में रहते हुए शाह मोदी के आंख-कान बने रहे और गुजरात की राजनीति की पल-पल की खबर उन्हें पहुंचाते रहे। शाह ने इस दौरान गुजरात के कोऑपरेटिव बैंक और मंडलियों पर जिस पर कई बरस  से कांग्रेस का कब्जा था अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी।

 वर्ष 2002 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की दोबारा सरकार बनी तो क्षमता सूझबूझ और वफादारी देखते हुए सरकार में सबसे कम उम्र के शाह को गृहराज्य मंत्री बनाया गया। शाह को सबसे अधिक दस मंत्रालय दिए गए और उन्हें दर्जनों कैबिनेट समितियों का सदस्य बनाया गया। उन दिनों यह चर्चा थी कि शाह पर यह  मेहरबानियां केशुभाई को हटाने में मदद करने के इनाम के रूप में की गई थीं। 2002 में ही अमित शाह को पार्टी ने गुजरात के सरखेज विधानसभा से टिकट दिया। चुनाव में वह रिकॉर्ड मतों से जीत कर आए। जीत का यह आंकड़ा नरेंद्र मोदी की चुनावी जीत से भी बड़ा था। तभी से मोदी शाह के चुनावी दांवपेंच के प्रशंसक बन गए थे और अमित शाह जल्द ही गुजरात मे मोदी के बाद सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे।

 चाहे गुजरात की कोऑपरेटिव मंडली हो या सरकारी- निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की यूनियन शाह ने भाजपा का झंडा हर जगह लहराया। इस तरह शाह मोदी के कवच बन गए। फिर चाहे पुलिस अफसर हों या विपक्ष के नेता या गुजरात भाजपा में मोदी विरोधी सभी ने सभी को मोदी के आदेश मानने को मजबूर कर दिया। अमित शाह जैसी माइक्रो मैनेजमेंट और बूथ मैनेजमेंट की क्षमता कम ही लोगों में है। इस चुनाव में भी अमित शाह ने प्रधानमंत्री से भी ज्यादा 161  ताबड़तोड़ रैलियाँ  कर डाली और अपने दम  पर 300  संसदीय इलाकों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई | कहीं चुनावी सभाएं की तो कहीं रोड शो और हर जगह  खुद के चेहरे के बजाय मोदी के चेहरे को ही आगे रखने की रणनीति पर काम  किया | छोटी  जनसभाओं के माध्यम से भाजपा के पक्ष  में पूरे देश में माहौल बनाने के साथ चुनाव के हर चरण में प्रचार प्रसार की रणनीति में बदलाव किये | इस लोकसभा में उनका ज्यादा फोकस  यू पी , बंगाल , उड़ीसा , राजस्थान , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , हिमाचल , उत्तराखंड सरीखे हिंदी पट्टी के राज्य रहे जहाँ उनके सामने बड़ी चुनौती थी यहाँ से अधिक सीटें भाजपा की झोली में जाएँ जिसमे वह पूरी तरह सफल हुए |  शाह भाजपा के चुनावी नारे न केवल तय करते थे बल्कि और उन्होंने  अपनी रणनीति से बड़ी संख्या में लोगों तक  और नए वोटरों तक पहुंचने का खाका खींचा |  इस लोकसभा चुनाव में  पार्टी ने देश के उत्तर, मध्य और पश्चिमी और पूर्वोत्तर के  क्षेत्रों  का रंग अगर भगवा किया है तो यह अमित शाह का कुशल प्रबंधन है |  हालांकि बीजेपी अभी दक्षिण  भारत मेंअच्छी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही है |

अमित शाह और नरेंद्र मोदी के जीवन में कई समानताएं हैं। दोनों ने आरएसएस की शाखाओं में जाना बचपन से शुरू कर दिया था और दोनों ने अपनी जवानी में अपने जोश – अनुभव और कुशलता से वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित किया । हालांकि शाह और मोदी के जीवन में सबसे बड़ा राजनीतिक मोड़ तब आया जब उन्हें गुजरात से बाहर निकाला गया। जहां मोदी को गुजरात में उनके खिलाफ बढ़ते विरोध के चलते निकाला गया वहीं शाह को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर केस में फंसाया गया। दरअसल उनकी ज़िंदगी का निराशाजनक दौर तब शुरू हुआ जब गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख़ और उनकी पत्नी कौसर बी के कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर में उनका नाम आया | सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी को 2005 में एनकाउंटर में मार दिया गया था, उस समय अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे | अमित शाह उस केस में आज बारी हो गए हैं | अमित शाह को जब गुजरात से निकाला गया तब उन्होंने अपना डेरा दिल्ली में स्थित गुजरात भवन में डाला। यहां रहते हुए वह भाजपा के बड़े नेताओं के करीब आते गए और मोदी के लिए दिल्ली आने के रास्ते तलाशते गए और गोवा मे मोदी को राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक के दौरान पीएम का चेहरा बनाने मे भी अमित शाह की बड़ी भूमिका थी |

मनमोहन सरकार  के किले को भेदने के लिए  भाजपा जब भाजपा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बना रही थी तब मोदी और शाह जानते थे कि यूपी जीते बिना दिल्ली की कुर्सी पाना नामुमकिन जैसा है। तब शाह यूपी जाना नहीं चाहते थे लेकिन गुजरात में आनंदीबेन पटेल और अन्य खेमों की पार्टी में बढ़ती पकड़ देख उन्होंने यह चुनौती स्वीकार कर ली। पार्टी की यूपी की कमान संभालते ही शाह एक राज्य के नेता से राष्ट्रीय नेता बन गए।  2014 मे उत्तर प्रदेश की 73  लोकसभा सीट भी अमित शाह के कारण पार्टी ने जीती  और इसके बाद तो  दो तिहाई बहुमत से अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए  पार्टी ने यू पी की पिच पर शानदार करिश्मा कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी | साथ ही अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा 10  करोड़ सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी भी बनी  जिसके आज पास कार्यकर्ताओं की भारी भरकम फ़ौज है | 2014  में जब मोदी  पी एम बने तो मात्र 5  राज्यों में भाजपा की सरकार थी लेकिन आज अमित शाह के पार्टी  अध्यक्ष  रहते पार्टी 19  राज्यों में सत्ता में है जो उनके करिश्मे  को  बताने के लिए काफी है |  देश  में मोदी की सफलता के पीछे शाह की प्रतिभा है और मोदी का  चेहरा  | केंद्र मे मोदी ने 5  बरस में  जिस तरह पारदर्शी  सरकार  चलाई उससे प्रभावित होकर जनता ने इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट किया |  उसे समाज के हर तबके का लाभ मिला है साथ ही जातीय बंधन टूटे और   पहली बार परिवारवाद की राजनीति ख़त्म हुई |

  2014  में मिले 31  फीसदी वोट शेयर को पीछे छोड़ते हुए भाजपा इस बार 50  फीसदी से भी अधिक वोट पा गई  |  जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल , बंगाल और पूर्वोत्तर तक में भाजपा  का वोोग्दान को ट शेयर बढ़ा है। खास बात यह है कि 12 बड़े और प्रमुख राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, गोवा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली में पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली है। यूपी में सहयोगी अपना दल के साथ पार्टी के वोट शेयर का आंकड़ा 50 फीसदी को पार कर गया है जिसके पीछे  अमित शाह का चुनावी प्रबंधन ही काम किया  है| हिंदी पट्टी  की 226  सीटों में 202 लोकसभा सीटें पार्टी ने फतह हासिल की |  यही नहीं अमित शाह ने बीते बरस  से ही  के  उन  120  लोकसभा सीटों पर ख़ास खुद का फोकस किया था जहाँ पार्टी हार गयी थी और आज पार्टी ने तकरीबन आधी सीटें अपनी झोली में ला दी  हैं जिसमें उनके योगदान को नहीं नकारा जा सकता | अमित शाह ने  इस चुनाव में  सिटिंग  गेटिंग फार्मूला भी गुजरात की तर्ज पर लगाया जिसमें 91  नए  चेहरों का बड़ा दांव उन्होंने खेला जिसमें 79 लोकसभा सीटों पर कमल खिला |

 5  माह पूर्व छत्तीसगढ़ , राजस्थान , मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों की   हार से सबक लेते हुए जिस तर्ज पर  शाह ने इस बार लोकसभा  की बिसात बिछाई उसकी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है | लोकसभा चुनावों से पहले ना केवल शाह ने पूरे एन डी ए  को एकजुट रखा बल्कि देश भर की ख़ाक छानकर मोदी सरकार  की नीतियों को जन जन तक पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं से  संवाद और मीटिंगों का दौर लगातार जारी रखा | भाजपा के संगठन विस्तार में शाह की यही दूरदृष्टि काम आई | साथ ही  उन्होंने  आक्रामक तरीके से विपक्ष के हर सवाल का जवाब भी दिया | राम मंदिर आंदोलन के दौर मे भी भाजपा को इतनी सीटें  नहीं मिली जितनी की इस बार मिली है | इस जीत ने   भारतीय जनता पार्टी की स्वीकार्यता को पूरे देश में न केवल  बढ़ाया है बल्कि सही मायनों मे पी एम मोदी के कद को बढ़ाने का काम किया है | नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी ऐसे पी एम बनने जा रहे हैं जो पूर्ण बहुमत के साथ दुबारा सरकार बनाने जा रहे हैं  साथ ही इस जीत ने  भाजपा मे अमित  शाह को  आज सबसे कामयाब अध्यक्ष  और आधुनिक राजनीति के चाणक्य के तौर पर  पार्टी में स्थापित कर दिया है |  

बकौल अठावले नरेन्द्र मोदी फिर से देश के पीएम बनेंगे


रामदास अठावले  महाराष्ट्र की राजनीती का बड़ा नाम हैं |साल 1974 में दलित पैंथर आंदोलन में विभाजन के बाद, अठावले ने अरुण कांबले और गंगाधर गाडे को महाराष्ट्र में बराबर की टक्कर दी  |90 के दशक में अठावले ने विधान परिषद  के  सदस्य  के तौर पर जहाँ धमाकेदार दस्तक दी वहीँ 1990 से 1996 तक के दौर में वह  महाराष्ट्र सरकार में समाज कल्याण और परिवहन, रोजगार गारंटी योजना और निषेध प्रचार के  कैबिनेट मंत्री के पद पर नियुक्त रहे | 1998 , 1999 , 2004  में  उन्होंने  महाराष्ट्र के पंढरपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया  वहीँ 2009 में शिर्डी  लोकसभा सीट से पराजित हुए |

 2011 में  एनसीपी कांग्रेस गठबंधन से दूरी बनाते हुए वह  शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी  के गठबंधन में शामिल हुए और मुम्बई महानगर निगम चुनाव एक साथ लड़ा जिसके बाद  2014 में एनडी  ए  के सहयोगी बनते हुए  राज्यसभा के लिए चुने गए 
| वर्तमान में केंद्रीय मंत्री  अठावले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष के तौर पर  नरेंद्र मोदी सरकार में सामाजिक न्याय औरअधिकारिता राज्य मंत्री के पद को संभाल रहे हैं और राज्य सभा में  महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व  कर रहे हैं  महाराष्ट्र के कद्दावर दलित नेता रामदास अठावले को मंत्रिमंडल में स्‍थान देकर प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ा  दांव खेला |अठावले को मंत्री बनाकर बीजेपी ने न सिर्फ महाराष्ट्र में अपना   जनाधार  बढ़ाने की कोशिश की बल्कि दलित  हितों की हितैषी वाली पार्टी के रूप में भी खुद को पेश किया है |


लोकसभा चुनाव को लेकर बीते दिनों   हर्षवर्धन से कई मसलों पर अठावले ने बात की | प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश ---- 

मोदी सरकार के अभी तक के  कार्यकाल को आप किस रूप में देखते हैं ?
मोदी सरकार का कार्यकाल  बेहतर रहा है | जनता तक पहुँचने का बेहतर कार्य इस सरकार ने किया है | जिस तरह से 13  करोड़  उज्जवला गैस कनेक्शन  आम आदमी तक पहुंचे हैं और 26 करोड़ मुद्रालोन बंटे  हैं उससे इस सरकार की अलग छवि लोगों के बीच बनी है | बाबा साहब मेमोरियल का काम बेहद समय में पूर्ण हुआ है | आवास योजना के तहत गरीबों को पक्का मकान मिला है | सरकार कीकोशिश रही जनता को सरकार के बजट का पूरा फायदा मिले और यह मिला भी है | मेरे मंत्रालय का बजट 76 हजार करोड़ का रहा | आयुष्मान योजना ही देख लें हर परिवार को हर साल 5 लाख मिल रहेहैं  ऐसी अनगिनत योजनाएं मोदी सरकार में आई हैं जिसके केंद्र में आम आदमी रहा है |  यह सब देखते हुए लगता है मोदी 2019 में फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे और दुबारा एक बार फिर से एन डी ए की सरकार बनेगी |

लेकिन विपक्ष का तो यह कहना है ये सरकार विकास की अवधारणा पर खरा नहीं उतर पाई  है ? क्या लगता है आपको क्या विपक्ष मुद्दा विहीन हो गया है या यह चुनाव पूरी तरह से नरेंद्र मोदी बनामनरेंद्र मोदी हो चला है ?
विपक्ष का काम है आरोप लगाना होता है लेकिन लोकतंत्र में ऐसे नहीं चलेगा | अच्छा काम हुआ है तो अच्छा बोलना चाहिए | लोकतंत्र में सरकार और विपक्ष को मिलकर कानून बनाने चाहिए लेकिन इसमें राजनीति नहीं होनी   चाहिए |40  जवान शहीद हो जाते हैं तो आप एयर स्ट्राइक पर भी सवाल पूछ लेते हैं और उसे सवालों के घेरे में ले आते हैं और इस मुगालते में जी लेते हैं कि आम जनता आपके साथ रहेगी तो यह सही नहीं है | जनता विपक्ष की   असलियत से भली प्रकार वाकिफ है |

आपने यू पी ए  का दौर भी देखा और एनडीए  का भी  | दोनों सरकारों की नीतियों में आप क्या फर्क पाते हैं ?
मैं यू पी ए के साथ तो था लेकिन तब मंत्री नहीं था | मनमोहन साहब अच्छे प्रधानमंत्री थे लेकिन मुझे लगता है मोदी बेहतरीन हैं | मोदी जल्द  निर्णय लेने वाले राजनेता हैं | आम आदमी के जीवन स्तरको ऊपर उठाने की ताकत उनमे हैं | उज्जवला , स्टार्ट अप , मेक इन इंडिया , डिजिटल इंडिया के माध्यम से यू पी ए की तुलना में मोदी सरकार ने बहुत अच्छे निर्णय लिए हैं | स्वर्ण  आरक्षण की मांगलम्बे समय से हो रही थी लेकिन यू पी ए  के दौर में इस पर निर्णय नहीं हो सका और अब सवर्णों को भी 10  फीसदी आरक्षण मिला है | ओ बी सी  कमीशन 1991  में बना लेकिन संवैधानिक स्टेटस कादर्जा इस सरकार ने दिया | एट्रोसिटी एक्ट को पूरी क़ानून की सुरक्षा देने का कार्य इस सरकार ने ही किया | यही नहीं दिव्यांगजनों को नौकरी में  4 ,शिक्षा में 5  फीसदी  आरक्षण देने के फैसले इस एनडीए  सरकार के कार्यकाल  में ही  हुए हैं  |

बार बार विपक्षी इस सरकार को एंटी दलित  सरकार ने रूप में टारगेट करते हैं | हाल के बरसों में हम देखें तो दलित उत्पीड़न की घटनाएं भी इस सरकार के दौर में ज्यादा बढ़ी हैं और उनकी स्थिति में सुधार भी नहीं हो पा रहा है | आप कैसे देखते हैं इसे ? 
भाजपा एनडीए तो अभी सत्ता में आई  हैं और कांग्रेस कई बरसों से सत्ता में रही  उसने दलितों के लिए क्या किया ? मोदी सरकार ने दलितों के जीवन स्तर को उठाने का काम किया है | आप देखें कांग्रेसने 60 साल क्या किया | कांग्रेस पार्टी का यह कहना कि  इस सरकार ने कुछ नहीं किया यह कहना ठीक नहीं है | हमारे महाराष्ट्र  में मराठा , जाट , पटेल , राजपूत लोगों की कम्युनिटी ने दलितों पर सबसेज्यादा अत्याचार किये हैं | दलित उत्पीड़न पर किसी तरह की राजनीती को मैं  ठीक नहीं मानता | आज सोशल चेंज और सोशल इक्वेलिटी की जरूरत समाज को है | जो लोग दलितों के खिलाफ अत्याचारकर रहे  हैं उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए | दलितों का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए |  मोदी सरकार दलित विरोधी नहीं है | कांग्रेस से बेहतर काम हमारी सरकार ने किये हैं | मुझे लगता है दलितों के लिए बेहतर कार्य हमारी सरकार ने किया है |

दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है | 23  फीसदी दलित वोट उत्तर प्रदेश में है जहाँ मायावती अपनी बिसात लगातार  मजबूत कर रही हैं | एक दौर ऐसा था जब  चरण सिंह की सरकार मेंआर पी आई  के 4   मंत्री हुआ करते थे | उसके बाद भी आपका संगठन वहां मजबूत नहीं है | संगठन की मजबूती के लिए आप क्या प्रयास कर रहे हैं ? 
उत्तर प्रदेश में हमारा संगठन आज मजबूत नहीं है |  एक दौर  में हम यहाँ बहुत मजबूत थे | चार मंत्री  और 19 एमएलए  कभी हमारे हुआ करते थे | अभी मेरी पार्टी  75 जिलों में से 60 जिलों में सक्रिय  है |जैसी मजबूती होनी चाहिए वैसी नहीं है | आर्थिक रूप से भी आज हम उतना मजबूत नहीं हैं लेकिन  भविष्य में हम एक बड़ी पार्टी के रूप में उभरेंगे | आज जिस प्रदेश में रिपब्लिकन पार्टी की जगह बसपाने ली है , आने वाले समय में रिपब्लिकन पार्टी बसपा की जगह एक दिन लेगी | जिस तरह से बसपा ने आरपीआई  को राजनीती से आउट कर दिया है उसी तरह मैं एक दिन जरूर बसपा को आउट करने का काम करूँगा उसके लिए मैं लोगों को समझाऊंगा कि  बाबा साहब की पार्टी आरपीआई  है | लोग आज भी आरपीआई  से प्रभावित हो रहे हैं और  सदस्यता ले रहे हैं | मैं जमीनी कार्यकर्ता हूँ  और संगठनकी मजबूती के लिए काम कर रहा हूँ |

मोदी के खिलाफ महागठबंधन की बात अक्सर उठती  है लेकिन महागठबंधन को कौन लीड करेगा उस पर सवाल उठ जाते हैं | खुदा ना खास्ता महागठबंधन बन जाता है तो उससे क्या असर पड़ेगा ? 
महागठबंधन बन चुका  है लेकिन वह एक साथ कभी नहीं आएंगे |  महागठबंधन केवल नाम के लिए है | यह कोई विचारधारा का गठबंधन नहीं है | एनडीए  बहुत मजबूत स्थिति में है और इस बार 300  से अधिक सीटें जीतेगा |   प्रधानमंत्री दुबारा मोदी जी ही बनेंगे |

महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना इस बार फिर साथ हैं ? क्या असर होगा इसका ? 
मुझे लगता है यहाँ दोनों 35  से अधिक सीटें जीतने की स्थिति में इस  बार हैं | शिवसेना भाजपा के साथ आने से महाराष्ट्र को बड़ी मजबूती मिलेगी |

 पहले मुलायम सिंह यादव ने संसद में कहा नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बनेंगे  | अभी कुछ समय पहले शरद पवार साहब ने कहा 2019 में वह फिर से भाजपा की सरकार बनते देख रहे हैं ? कैसे देखते हैंआप इस बयान को ? 
मुझे लगता है मुलायम सिंह जी ने कहा है आज की स्थिति में मोदी जी का कोई पर्याय नहीं है | वह दुबारा प्रधानमंत्री बनेंगे | मैं मुलायम सिंह जी को बधाई देना चाहता हूँ | ऐसा मुलायम सिंह जी जैसे अनुभवी नेता ने कहा है | मुझे लगता है सरकार एन डी  ए की फिर से आने जा रही है | जहाँ तक पवार साहब का बयान  है उन्होंने यह कहा है सीटें एन डी  ए  की ज्यादा आएँगी  लेकिन उन्होंने यह कहा प्रधानमंत्री मोदी नहीं बनेंगे इससे मैं सहमत नहीं हूँ | पवार साहब हमारे अच्छे मित्र हैं उन्होंने भी एनडीए की आगामी लोक सभा चुनावों को लेकर अच्छी भूमिका रखी लेकिन मेरा कहना है आगामी चुनावमें एनडीए फिर से सत्ता में वापसी करने जा रहा है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी ही बनेंगे ऐसा मेरी पार्टी   की राय है |

विपक्ष एयर स्ट्राइक पर भी सवाल उठा रहा है | क्या लगता है आपको इस लोक सभा चुनाव में राष्ट्रवाद बड़ा मुद्दा बनेगा ? आपकी नजर में कौन से मुद्दे रहेंगे जो इस चुनाव में हावी रहेंगे ? 
मुझे लगता है ऐसे मुद्दे से कांग्रेस को नुकसान  ही होना है | जैश के कैम्प हमने तबाह किये हैं उस पर भी शंका करने वालों को इस चुनाव में नुक्सान होगा | देश की जनता आज सब कुछ भली भांतिसमझती है | जवानों की शहादत  पर भी राजनीती कतई  नहीं होनी चाहिए |

आप एक राजनेता के साथ ही अच्छे कवि भी रहे हैं और संसद में अपने चुटीले अंदाज के कारण लोकप्रिय रहे हैं | 2019 को लेकर एक कविता हो जाए ?
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है उसी तरह बदल रहा है देश का रंग
नरेन्द्र  मोदी ही जीत लेंगे  2019 की जंग


( लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मार्च के महीने में ये इंटरव्यू  लिया गया था ) 

Sunday 17 March 2019

मसूद पर चीन पाक का नया याराना





पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद  पूरी दुनिया  जिस समय पाक को घेरने की  तरह एकजुटता दिखा रही थी  उस समय  चीन ने भी दबाव में आतंकवाद के विरोध का दिखावा तो किया लेकिन बहुत जल्द ही वह अपने करीबी अजीज  पाकिस्तान का बचाव करने में जुट गया |  सीआरपीएफ जवानों पर हुए हमले की चीन ने निंदा  की लेकिन इस हमले के मास्टरमाइंड सरगना मसूद अजहर का साथ नहीं छोड़ा । चीन ने एक बार फिर से अपना असली चेहरा भारत को दिखा दिया है | एक बार फिर से मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की भारत की कोशिश  नाकाम साबित हुई हैं  । चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद  में  मसूद अजहर को ब्लैकलिस्टेड करने से बचा लिया। बीते 10 बरस में यह चौथा मौका है जब चीन ने इसके लिए अपने वीटो पावर का इस्तेमाल किया। फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका जहाँ  अजहर के खिलाफ प्रस्ताव लाए थे वही अंतिम समय में चीन ने इस पर अड़ंगा लगा दिया, जबकि 14  देश  इस प्रस्ताव के समर्थन में खड़े रहे |

 चीन और पाकिस्तान की यह दोस्ती नई नहीं है |  पुराने पन्नो को टटोलें तो दोस्ती का यह सिलसला उस दौर से चल रहा है जब नेहरु के  हिंदी चीनी भाई भाई के दावो की हवा निकालकर चीन ने भारत पर युद्ध कर दिया था और  पडोसी पकिस्तान को भारत के खिलाफ लड़ने के लिए ना केवल उकसाया बल्कि अपनी हर इमदाद से पाकिस्तान को ही लाभ पहुचाया और अब पाकिस्तान की ही  पीठ को फिर से  थपथपाकर जिनपिंग ने अपनी शातिर चालबाजियों से भारत को झटका देने का काम किया है |  चीन एक लम्बे अरसे से ही  पाकिस्तानी सरकार और सेना को को मदद करता आया है।  चीन के सुरक्षा परिषद में वीटो के बाद अब  भारत चीन रिश्तों में तल्खी  आने की संभावना बढ़ी है | भारत जहाँ  आतंकवाद के खिलाफ अपनी रण्नीति के तहत पाकिस्तान और अजहर पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने की कोशिश में जोर शोर से लगा है वहीँ पीाओके  से संचालित आतंकी संगठनों को भी  प्रतिबंधित करने की मांग कर रहा  है लेकिन चीन ने भारत की इस मांग को समर्थन देने से इंकार कर साफ संदेश दिया है कि वह पाक केसाथ ढाल बनकर ही खड़ा रहेगा । चीन ने कहा है वह बिना सबूतों के कार्रवाई के पक्ष में नहीं है । यही बात वह पहले भी दोहराता रहा है । अब यूएनएचसी के सदस्यों ने चीन को चेतावनी दी है। चीन से कहा गया है कि अगर वह मसूद अजहर को लेकर अपने रुख को नहीं बदलेगा तो दूसरी कार्रवाई के विकल्प खुले हैं। इस बीच मसूद अजहर के मसले पर भारत को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है | फ्रांस की  सरकार ने अपने देश में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद की संपत्तियों को फ्रीज करने का फैसला किया है | फ्रांस की सरकार ने  मौद्रिक और वित्तीय संहिता के तहत राष्ट्रीय स्तर पर मसूद अजहर की संपत्ति का फ्रीज करने की मंजूरी दी है |


असल में चीन के पाक में कई आर्थिक हित  जुड़े हुए हैं | वह  वहां 46 अरब डॉलर का भारी भरकम निवेश कर चुका  है। इनमें से अधिकांश समझौते दोनों देशों के बीच 3,000 किलोमीटर लंबा आर्थिक गलियारा बनाने से जुड़े हुए हैं  जो चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा जिससे चीन की पहुँच सीधे अरब सागर तक हो जायेगी | यह आर्थिक गलियारा चीन के सुदूर पश्चिमी इलाके को अरब सागर में पाक के दक्षिण पश्चिमी ग्वादर बंदरगाह तक न केवल जोड़ेगा बल्कि इससे चीन की धमक पाक अधिकृत कश्मीर तक भी बढ़ने की प्रबल संभावनाएं दिखाई दे रही हैं जिसके तहत सड़क , रेल बिजली और पाइप लाइन  और उर्जा जैसे कई प्रोजेक्ट के चकाचौंध तले चीन अपनी विस्तारवादी नीति को अमली जामा पहनायेगा और उसके सीधे निशाने पर भारत होगा | इससे पश्चिम एशिया के तेल आपूर्तिकर्ता देशों से चीन की दूरी 12 हजार किलोमीटर तक कम हो जाएगी। लेकिन  भारत के लिए चिंता की बात यह है कि यह प्रस्तावित गलियारा भविष्य में पाकिस्तान के लिए फायदे का सौदा बन सकता है | इसके जरिये पाकिस्तान ना केवल भारत पर सीधे नजर रख सकता है बल्कि सीमा पार से अपनी आतंकी गतिविधियों को नया रंग भी दे सकता है लिहाजा भारत की चिंताएं बढ़नी लाजमी हैं | इससे सड़क, रेलवे व पाइप लाइन के जरिये चीन खनिज तेल और अन्य सामग्री सीधे चीन तक ले जा सकेगा |  चीन का पाकिस्तान का साथ देने की एक वजह कि पाक में चीन सीपैक में 55 बिलियन डॉलर  का निवेश करने जा रहा है । चीन भारत को अपना सबसे बड़ा आर्थिक प्रतिद्वंद्वी मानता है। वह मसूद के खिलाफ जाता तो भारत मजबूत दिखता।  2016 - 2017 में  संयुक्त राष्ट्र में मसूद को वैश्विक आतंकी  घोषित करने के लिए प्रस्ताव दिया था तब भी चीन ने अड़ंगा लगाया था।

अब असल संकट तो ग्वादर बंदरगाह को लेकर उभर रहा है जिसका निर्माण करने के लिए चीन और पाकिस्तान  का याराना पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गया है | चीन की योजना है कि मध्य पूर्व से आने वाला तेल पहले ग्वादर बंदरगाह तक और फिर वहां से प्रस्तावित रास्ते से सड़क और रेल मार्ग से  सीमा तक पहुंचाया जा सके |  चीनी पैसे से ग्वादर बंदरगाह का पहला चरण 2006 में पूरा हो गया था लेकिन चीन ने ग्वादर को फिर अपना तुरूप का इक्का विस्तारवादी रणनीति के लिए बनाने  का फ़ैसला किया है | इसका फायदा यह होगा कि चीन खाड़ी क्षेत्र, अफ़्रीका, यूरोप और दुनिया के हिस्सों से आसानी से जुड़ जाएगा और भविष्य में यहाँ पैर जमाने से यह  इलाका चीन की नौसेना के लिए एक अड्डा बन जाए और  चीन पाकिस्तानी नौसेना के साथ मिलकर यहाँ से भारत विरोधी गतिविधियों पर काम करे | भारत की घेराबंदी के लिए चीन  श्रीलंका में भी एक बंदरगाह की बड़ी परियोजना में निवेश कर हिंद महासागर में भारत की घेराबंदी की शातिर चालबाजी कर चुका है। अरब सागर से लेकर हिंद महासागर तक भारत की घेराबंदी की हर चाल में भारत ही घिर रहा है |  चीन की मंशा अब पूरी दुनिया पर राज करने और अमरीकी वर्चस्व को तोड़कर पूरी दुनिया में चीन के उत्पाद को पहुचाने की है जिसके जरिये वह समुद्री मार्गो से लेकर पड़ोसियों को जल और थल जैसे स्थानों पर घेरकर अपना नया गलियारा पूरी दुनिया के लिए खोल रहा है और बाद दुनिया पर राज करने की उसकी मंशा अब किसी से छिपी नहीं है। इससे उसके आर्थिक हित तो जुड़े हैं साथ ही  वह इस क्षेत्र में अपना दबदबा आर्थिक  और सामरिक ताकत के जरिये भी भी कायम करना चाहता है। | जब भारत पाक  पर सीमा पार से आतंकी घटनाओं को रोकने के लिए दबाव डाल रहा हो और मसूद अजहर के खिलाफ पूरी दुनिया एकजुट है तब चीन पाक के साथ ढाल बनकर खड़ा है क्युकि मसूद अजहर पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का चहेता है जबकि एशिया में पाकिस्तान चीन का सबसे करीबी मित्र है। साथ ही चीन को पाकिस्तान की अपने महत्वाकांक्षी ओबीओआर प्रोजेक्ट के लिए जरूरत है। इसलिए वह मसूद को बार-बार बचा रहा है और पकिस्तान के साथ अपने सम्बन्ध ख़राब करने का रिस्क किसी कीमत पर नहीं लेना चाहता |  चीन की योजना है कि शिंजियांग से पाकिस्तान के नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर होते हुए ग्वादर बंदरगाह तक एक  आर्थिक गलियारा तैयार किया जाए ताकि वह स्ट्रेट ऑफ मलक्का वाला समुद्री रास्ता लेने से बच जाये |  हिंद महासागर में भारत की बढ़ती भूमिका पर अंकुश लगाने और एशिया  में अपना वर्चस्व स्थापित करने की यह चीनी योजना निश्चय ही भारत के लिए काफी बड़ी चुनौती पेश कर सकती है |

Monday 25 February 2019

छवि बदलने को बेकरार मोहम्मद बिन सलमान

     
            
आमतौर पर  सऊदी अरब का नाम जेहन में आते ही शेखों की अलग तरह की छवि बनती है और विलासिता पूर्ण जीवन होने के चलते यहाँ की फिजा में एक अलग तरह की शांति देखने को मिलती है शायद यही वजह है यहाँ पर मजदूर कामगारों की तादात बहुत ज्यादा है  इसीलिए यहां करीब कई  दशकों से कोई राजनीतिक हलचल नहीं हुई  लेकिन 2015  में जब से नए किंग सलमान ने सत्ता संभाली  तब से यहां राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। असल में वजह भी सलमान बने हैं  जिन्होंने सऊदी से संबंधित कई बड़े फैसले  अपनी ताजपोशी के बाद  से लिए हैं।  आमतौर पर यह माना जाता है सऊदी अरब का समाज बहुत ही रूढ़िवादी  है लिहाजा यहाँ  कटटरपंथ किसी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करता लेकिन मोहम्मद बिन सलमान ने अपने कार्यकाल में  भ्रष्टाचार को लेकर कई अहम फैसले लिए हैं जिससे जाहिर होता है कि वह सऊदी अरब को आधुनिक विचारों का देश बनाना चाहते हैं और अपनी खुद की छवि को  बदलने के लिए वह  बेकरार हैं और पूरी दुनिया घूमकर वह सऊदी अरब को लेकर एक नई  लकीर खींचना चाहते हैं | 

 मोहम्मद बिन सलमान सऊदी को आधुनिक बनाने और अपने सेक्युलर बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन  रूढिवादी  लोग मोहम्मद बिन सलमान की आलोचना करने से बाज नहीं आते |  उन्हें लगता है कि वो बहुत तेजी से फर्राटा भर  रहे हैं | अरब संकट पर नजर रखने वाले जानकारों को लगता है  वह अपने ताबड़तोड़ कदमों और कूटरनीति  के आसरे  भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स  चाहते हैं और विदेश नीति के मोर्चे पर अपनी बिसात मजबूत करना चाहते हैं  | 

सऊदी अरब पश्चिम एशिया का एक महत्वपूर्ण देश है और तेल की मेहरबानी से उसकी हैसियत दुनिया में काफी ऊंची है लेकिन यह हैसियत इस समय कुछ डांवाडोल है, क्योंकि एक तो अभी तेल की कीमतें बहुत ऊंचे स्तर पर नहीं हैं |  घटते तेल के दामों और यमन की लड़ाई की वजह से सऊदी अरब के पास नकदी बहुत कम हो गई है । सऊदी अरब को 1979 से ईरान से तगड़ी चुनौती मिल रही है जहां शिया विचारधारा का वर्चस्व है और जिसका वहाबियों के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। पश्चिम एशिया का सामरिक माहौल मुख्य रूप से दो संघर्ष बिंदुओं पर टिका हुआ है। एक तो अरब-इज़राइल संघर्ष जिसमें तल्खी कम हो रही है और दूसरे, शिया-सुन्नी  विवाद जो समय के साथ और ज्यादा बढ़ता जा रहा है। आईएसआईएस  की पराजय और सीरियाई गृहयुद्ध में ईरान-रूस-सीरिया की तिकड़ी के दबदबे ने ईरान के लिए रणनीतिक लाभ की राह खोली है। इसे अमेरिका, इजराइल और सऊदी अरब अपने लिए खतरनाक मान रहे हैं शायद यही वजह है तीनो अपना नया त्रिकोण अपनी बिसात बिछाने के अनुरूप बिठा  रहे हैं |   

जनवरी 2015  में किंग अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज की मौत हो गई। इसके बाद मोहम्मद बिन सलमान के पिता सलमान 79  वर्ष की उम्र में किंग बने थे। किंग सलमान ने सत्ता संभालते ही अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को सत्ता के करीब करते हुए रक्षा मंत्री बना दिया। रक्षा मंत्रालय का पदभार संभालते ही मोहम्मद बिन सलमान ने मार्च 2015  में यमन के साथ युद्ध की घोषणा  कर दी। हूती विद्रोहियों ने राजधानी सना सहित यमन के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया और यमन के राष्ट्रपति अब्दुर रहमान मंसूर को देश से भागने के लिए मजबूर कर दिया था। उस वक्त सऊदी ने यमन के राष्ट्रपति को आश्रय दिया था। सऊदी सैन्य गठबंधन ने इसी के बाद हूती विद्रोहियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सऊदी अरब के इस कदम की मानवाधिकारों ने निंदा की थी।  शाह सलमान ने  एक दौर में  अपने भतीजे शहजादा नायेफ को युवराज और गृहमंत्री के पद से हटा दिया था उनकी जगह पर अपने बेटे मोहम्मद बिन सलकान को युवराज घोषित किया  तब से मोहम्मद बिन सलमान की ठसक सऊदी  अरब में बढ़ी है । मोहम्मद बिन सलमान ने अपने कार्यकाल में अहम फैसलों में अमेरिका के साथ  न केवल  रक्षा खरीद का करार किया बल्कि  सऊदी और अमेरिका के बीच करीब 100 अरब डॉलर के टैंक , आर्टिलरी , हेलीकॉप्टर और  मिसाइलों की बिक्री के करार की घोषणा की।

 अप्रैल 2016  में प्रिंस सलमान ने बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास और सामाजिक सुधार शुरू किए जिसका मुख्य उद्देश्य था सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता को कम करना था यही नहीं मोहम्मद बिन सलमान ने विजन 2030  नाम से देश में एक नई परियोजना शुरू की जिसके तहत 2020  तक सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। उन्होंने इसके लिए रेगिस्तान में आधे खरब डॉलर का एक बड़ा शहर बसाने की योजना बनाई है। इस शहर में औरतों और मर्दों को एक दूसरे से मिलने-जुलने की आजादी होगी। इससे पहले इस रूढ़िवादी समाज में ऐसी बातें कभी नहीं सुनी गई थीं। सऊदी अरब को आधुनिक बनाने के पीछे एक मंशा ईरान के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में पश्चिमी देशों ख़ासकर अमरीका का समर्थन हासिल करना भी है|  

अपनी ऐसी पहल से बिन सलमान ये संदेश  दिया है  कि उनके देश में धार्मिक चरमपंथ अब ख़ात्मे की तरफ़ बढ़ रहा है | बिन सलमान के पास आने वाले समय के लिए भी योजनाएं हैं | वह स्टॉक मार्केट में दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको के शेयर बेचना चाहते हैं साथ ही उनकी मंशा  500 अरब डॉलर से बनने वाला बेहद आधुनिक निओम शहर बसाने की है  जिसका सारा काम रोबोट संभालेंगे | यही नहीं  उनका इरादा 2030 तक सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता घटाने केलिए एक बड़ी कार्ययोजना को भी अंजाम तक पहुँचाना चाहते हैं | एक दौर ऐसा था जब सऊदी अरब दुनिया का एकमात्र ऐसा देश था जहां औरतों को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं थी लेकिन अब ये प्रतिबंध खत्म हो गया और यह भी सलमान के दौर में ही हुआ है |  एक ऐसे देश में  महिलाओं को गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस मिलने लगा है जो अपनी रूढ़िवादी और पर्दा प्रथा के चलते पहले महिलाओं को घरों से बाहर  निकलने से रोकता था  |  यह प्रिंस सलमान का ही दौर रहा जिन्होंने महिलाओं की आज़ादी की खुली वकालत कर डाली | 

2015 में किंग सलमान ने जब सऊदी की सत्ता संभाली थी उस वक्त उनके बेटे मोहम्मद बिन सलमान को कम ही लोग जानते थे। लेकिन बीते बरसों  में किंग सलमान अपने बेटे को को बहुत आगे लाए हैं। दरअसल  मोहम्मद सलमान ने कहा था कि देश को आधुनिक बनाने की योजना के तहत वह उदार इस्लाम की वापसी चाहते हैं। बीते बरस  उन्होंने आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने के लिए बड़े  सुधारों का पिटारा खोला था |  

सऊदी को भ्रष्टाचार मुक्त करने के युवराज मोहम्मद बिन सलमान को देश के सुरक्षाबलों को पूरी आज़ादी भी दे डाली | मोहम्मद बिन सलमान सऊदी पर पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं। वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को शीर्ष पद पर नहीं रहने देना चाहते जो उन्हें चुनौती दे सके। सऊदी नागरिकों में खासकर युवाओं में  मोहम्मद बिन सलमान काफी लोकप्रिय हैं  लेकिन बुजुर्ग और पुराने रूढ़िवादी उन्हें कम पसंद करते हैं। रूढ़िवादियों का कहना है कि वो कम समय में देश में अधिक बदलाव करना चाहते हैं वहीँ  सऊदी के युवा मानते हैं प्रिंस सलमान 50  वर्षों तक देश के किंग रह सकते हैं।

 भारत यात्रा पर बीते दिनों आए  मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि आतंकवाद और कट्टरपंथ हमारी साझी चिंता है। वह  इसके खिलाफ भारत के साथ हर संभव  सहयोग करेंगे। यही नहीं  सऊदी अरब ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में साथ देने और खुफिया सूचनाएं साझा करने पर भी अपनी  सहमति जताई । इससे पहले ईरान और अफगानिस्तान का रुख भी पाकिस्तान के खिलाफ ही रहा है। भारत से पहले युवराज मोहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान भी गए। यहाँ  उनका कार्यक्रम वैसे तो तीन दिन का था लेकिन पुलवामा हमले के चलते यह 2 दिन का ही रहा |  सलमान ने कर्ज में डूबे पाक को 20 बिलियन राहत पैकेज देने के लिए निवेश सौदों पर भी हस्ताक्षर किये वह भी ऐसे समय में जब पुलवामा हमले के बाद से पाक पूरी दुनिया की अआंखों में खटक रहा है |

  सऊदी अरब ने भारत के साथ सौ बिलियन डॉलर का निवेश करने पर सहमति जताई है | सऊदी के प्रिंस क्राउन सलमान बिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाक़ात की और  सऊदी की तेल कंपनी अरामको ने चीन में 10 अरब डॉलर की लागत से रिफाइनरी व पेट्रोकेमिकल कांप्लेक्स विकसित करने के करार पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा दोनों देशों ने 28 अरब डॉलर मूल्य के अन्य 35 आर्थिक करार पर हस्ताक्षर किए। अरामको चीन में एक रिफाइनरी विकसित करेगा जिसमें तीन लाख बैरल रोजाना तेल शोधन किया जाएगा। इसके अलावा 15 लाख टन सालाना इथिलीन क्रैकर और 13 लाख टन सालाना पैराक्सीलीन बनाने की इकाई चीनी की नोरिनको कंपनी समूह और पन्जीन सिनसेन के साथ लगाई जाएगी | 

नई कंपनी में हुआजिन अरामको पेट्रोकेमिकल में सऊदी की कंपनी की 35 फीसदी हिस्सेदारी होगी, जबकि नोरिको और पन्जीन सिनसेन की हिस्सेदारी क्रमश: 36 फीसदी और 29 फीसदी होगी। अरामको इस कंपनी को 70 फीसदी कच्चे तेल की आपूर्ति करेगी। कंपनी का संचालन 2024 से शुरू किये जाने की संभावना जताई जा रही है । 

 सऊदी अरब पाक संबंधों में  शुरुवात से ही गर्माहट रही  है | वजह  पाकिस्तान उसके  हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। पाकिस्तान ने जब परमाणु परीक्षण किया था तो सऊदी ने  सबसे पहले इसका खुलकर समर्थन किया था। सऊदी अरब ने 1998 से 1999 तक पाकिस्तान को 50 हजार बैरल तेल मुफ्त में दिया था। सऊदी ने ऐसा तब किया जब उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगे थे। अफगानिस्तान से रूसी सेना वापस गई तो संयुक्त अरब अमीरात के अलावा सऊदी अरब एकमात्र देश था जिसने काबुल में तालिबान शासन का समर्थन किया था। इसके साथ ही कश्मीर मसले पर भी सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ रहा है | 

सऊदी अरब की पाकिस्तान के साथ दोस्ती  बहले ही पहले जैसी रही हो  लेकिन वह  भारत की भी उपेक्षा भी  नहीं कर सकता क्युकि  आज भारत की हैसियत दुनिया के मुल्कों में बड़ी है जिसकी वजह भारत की  बड़ी उभरती  ताकत है |   सऊदी अरब ने अपने मौजूदा  आर्थिक हितों को साधने के लिए  भारत ,  पाक  और चीन को भी  साथ रखा है । सऊदी अरब का भारत के लिए बहुत सामरिक-रणनीतिक महत्व है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा में उसकी बड़ी अहमियत है, क्योंकि इराक को  छोड़कर  सऊदी भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। पश्चिमी एशिया और खासतौर से सऊदी अरब में भारतीय बड़ी संख्या में कार्यरत हैैं। इस क्षेत्र में कार्यरत करीब 80 लाख भारतीयों में से अकेले 28 लाख तो सऊदी में ही हैं, जो भारत में हर साल  अरब डॉलर भेजते हैं।

 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए  यह  खासी सुकून वाली खबर है | भारत और सऊदी अरब आर्थिक रूप से एक दूसरे के लिए काफी अहम हो गए हैं। 2014-15 में दोनों देशों देशों के बीच 39.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। दूसरी तरफ पाकिस्तान और सऊदी के बीच महज  6 अरब डॉलर का ही व्यापार हुआ। भारत और सऊदी में आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं, लेकिन पाकिस्तान और सऊदी के बीच रक्षा सम्बन्ध  मजबूत  हैं।अब भारत बाकी के खाड़ी देशों से रक्षा सम्बन्ध  भी बढ़ रहे हैं। 

प्रधानमंत्री मोदी भी सऊदी के दौरे पर  गए थे और उनका शाही इस्तेकबाल गर्मजोशी से हुआ था। यही नहीं मोदी को सऊदी का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया गया था।  सलमान की भारत यात्रा   के बाद  भारत और सऊदी के बीच रिश्ते और मजबूत होंगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए आने वाले दिनों में  सऊदी अरब की कोई भी  राजनीतिक अस्थिरता हमारी  अर्थव्यवस्था को भी  कमजोर कर सकती  है जिसके चलते  नौकरियों पर संकट खड़ा हो सकता है । अगर यह अस्थिरता  ज्यादा बढ़ती है तो फिर भारतीयों को वहां से निकालने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा, जैसा कि वर्ष 2015 में यमन में किया गया था। इतने बड़े पैमाने पर लोगों के रोजगार खत्म होने से लाखों परिवार संकट में आ जाएंगे और भारत में भी इसके खतरनाक सामाजिक प्रभाव महसूस किए जाएंगे। हालाँकि सलमान के रहते यह आशंकाएं  निर्मूल साबित होंगी लेकिन  अपने हितों की पूर्ति के लिए भारत को एक संतुलन साधन होगा।

Wednesday 30 January 2019

अलविदा जार्ज



कोई हम दम ना रहा कोई सहारा ना रहा
हम किसी के ना रहे कोई हमारा ना रहा
शाम तन्हाई की है आएगी मंजिल कैसे
जो मुझे राह दिखाए वही तारा ना रहा
क्या बताऊ मैं कहाँ यू ही चला जाता हू
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा ना रहा

 
झुमरू की याद जेहन में आ रही है |  मजरूह सुल्तानपुरी और किशोर की गायकी इस गाने में चार चाँद लगा देती है |  पुराने गीतों के बारे में प्रायः कहा जाता है "ओल्ड इस गोल्ड " | इसका सही से पता अब चल रहा है |  70   के दशक की राजनीती के सबसे बड़े महानायक पर यह जुमला फिट बैठ रहा है | कभी ट्रेड यूनियनों के आंदोलनों के अगवा रहे जार्ज की कहानी जीवन के अंतिम समय में ऐसी हो जायेगी , ऐसी कल्पना शायद किसी ने नहीं  की होगी | कभी समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाला यह शेर आज हमेशा के लिए चैन की नींद सो गया है और अल्जाइमर्स  से बाहर नहीं आ पाया |  उसके  निधन की खबर अस्वस्थ सियासत तले  तब गई |

 आज की नयी नवेली पीढ़ी  के पास इतनी भी फुर्सत नहीं कि वह उस दौर को जी ले जिसमें जॉर्ज जनता के सरोकारों की राजनीती करते  देश की राजनीति के पोस्टर बॉय के रूप में उभरे  |  वह भी एक दौर था जब देश  की राजनीती का असली बैरोमीटर मुजफ्फरपुर  हुआ करता था | यह भी एक दौर है जब मोदिनोमिक्स कीबिसात तले समूची  सियासत 360 डिग्री घूम चुकी है | जॉर्ज की सियासत को समझने के लिए हमें उस दौर में जाना होगा जब ट्रेड यूनियन आंदोलन को नयी धार देने में वह आगे न केवल रहे बल्कि जे पी के आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने और इंदिरा के खिलाफ आक्रोश को हवा देने में वह  नई लकीर खींचते नजर आये | यही नहीं नीतीश कुमार  , शरद यादव को मोहरा बनाकर  लालू प्रसाद को राजनीती की बिसात में चेक देने से लेकर गैर कांग्रेस वाद का झंडा बुलंद करने में जॉर्ज हमेशा आगे रहे | वह मानते थे कि नेहरूपरिवार  देश की दुर्गति का सबसे बड़ा कारण है इसलिए  समाजवादी पार्टी के कलकत्ता अधिवेशन में डॉ लोहिया ने पहली बार  जब गैर-कांग्रेस का नारा दिया तो गैर-कांग्रेसवाद  का झंडा बुलंद करने वालों में जॉर्ज फर्नांडिस आगे  थे | जॉर्ज फर्नांडिस पर आरोप लगा कि वो किसी भी कीमत पर कांग्रेस पार्टी को सत्ता से उखाड़ना चाहते थे |  इसके लिए उनपर रेल की पटरियों को डाइनामाइट से उड़ाने का षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया गया | डायनामाइट का इस्तेमाल कर जॉर्ज और उनके साथ सरकार के प्रमुख संस्थाओं और रेल पटरियों को उखाड़कर पूरे सिस्टम को हिला देना चाहते थे | 

 फर्नाडीस को 10 जून, 1976 को कोलकाता में गिरफ्तार कर उन पर बहुचर्चित बड़ौदा डायनामाइट मामले में केस चलाया गया था। उन पर तत्कालीन इंदिरा सरकार का तख्तापलट करने की कोशिश में सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी मुकदमा चलाया गया था। वह  सरकार की गैरसंवैधानिक नीतियों का सशस्त्र विरोध करने के पक्षधर थे |  इसके लिये हथियार की जरूरत थी और हथियार जुटाने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस ने पुणे से मुंबई जाने वाली ट्रैन को लूटने का प्लान बनाया | दरअसल इस ट्रैन से सरकारी गोला बारूद भेजा जाता था | आपातकाल समाप्त होने के ठीक बाद 1977 में जेल से मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने वाले जॉर्ज भारी मतों से जीते थे। यह चुनाव तानाशाही बनाम लोकशाही के रूप में जाना जाता था। जॉर्ज के खिलाफ कांग्रेस के नेता नीतेश्वर प्रसाद सिंह चुनाव लड़े थे। जॉर्ज की हथकड़ी लगी तस्वीर की चर्चा पूरे देश में रही। पूरा मुजफ्फरपुर इस तस्वीर से पाट दिया गया था। केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रचार कमान संभाली थी। सुषमा का चुनाव प्रचार व प्रभावशाली भाषण काफी चर्चित रहा। कहा जाता है कि सुषमा स्वराज का राजनीति में उदय मुजफ्फरपुर चुनाव के बाद ही हुआ। 1980 में जॉर्ज ने फिर मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा। उनके खिलाफ कांग्रेस के रजनी रंजन साहू उम्मीदवार थे। इस बार भी जॉर्ज फर्नांडीस चुनाव जीते। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वर्ष 1984 के चुनाव में जॉर्ज साहब ने मुजफ्फरपुर का चुनावी मैदान छोड़ दिया और बेंगलुरु से भाग्य आजमाया, लेकिन वह हार गए। वर्ष 1989 के चुनाव में जॉर्ज साहब फिर मुजफ्फरपुर लौटे और पूर्व केन्द्रीय मंत्री व कांग्रेसी उम्मीदवार ललितेश्वर प्रसाद शाही और 1991 में कांग्रेसी उम्मीदवार रघुनाथ पाण्डेय को पराजित किया।  1996 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज ने नालंदा कूच किया और राजद उम्मीदवार विजय कुमार यादव को धूल चटाई  वहीँ  1999 में वामपंथी उम्मीदवार गया सिंह को पराजित किया । वर्ष 2004 के लोककसभा चुनाव में जॉर्ज साहब ने फिर मुजफ्फरपुर का रुख किया और  लोजपा के उम्मीदवार भगवानलाल सहनी को पराजित किया परन्तु  2009 के चुनाव में जयनारायण निषाद से से पराजित हो गए।  15 वी लोकसभा का जब भी जिक्र होगा तो यह जॉर्ज के बिना अधूरा रहेगा |   असल में मुज्जफरपुर से जार्ज फर्नांडीज अक्सर चुनाव लड़ा करते थे लेकिन 1  5 वी लोक सभा में उनका पत्ता कट गया.....नीतीश और शरद यादव की जोड़ी ने उनको टिकट देने से साफ़ मना कर दिया | इसके बाद यह संसदीय इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था |  तब  नीतीश ने तो साफ़ कह दिया था अगर जार्ज यहाँ से चुनाव लड़ते है तो वह चुनाव लड़कर अपनी भद करवाएंगे |  पर जार्ज कहाँ मानते? उन्होंने निर्दलीय चुनाव में कूदने की ठान ली | आखिरकार इस बार उनकी नही चल पायी और उनको पराजय का मुह देखना पड़ा |  जार्ज के चलते मुजफ्फरपुर में विकास कार्य तो  तेजी से हुए लेकिन निर्दलीय मैदान में उतरने से उनकी राह आसान नही हो पायी | 


जार्ज  को समझने ले लिए हमको 50 के दशक की तरफ रुख करना होगा |  यही वह दौर था जब उन्होंने कर्नाटक की धरती को अपने जन्म से पवित्र कर दिया था..3 जून 1930 को जान और एलिस फर्नांडीज के घर उनका जन्म मंगलौर में हुआ था | 50 के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर उन्होंने अपना परचम महाराष्ट्र की राजनीती में लहराया  | यही वह दौर था जब उनकी राजनीती परवान पर गयी | कहा तो यहाँ तक जाता है हिंदी फिल्मो के "ट्रेजिडी किंग " दिलीप कुमार को उनसे बहुत प्रेरणा मिला करती थी | अपनी फिल्मो की शूटिंग से पहले वह जार्ज की  सभाओ में जाकर अपने को तैयार करते थे |  जार्ज को असली पहचान उस समय मिली जब 1967  में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता एस के पाटिल को पराजित कर दिया | लोकसभा में पाटिल जैसे बड़े नेता को हराकर उन्होंने उस समय लोक सभा में दस्तक दी |  इस जीत ने जार्ज को राजनीती का  महानायक बना दिया |  बाद में अपने समाजवाद का झंडा बुलंद करते हुए 1974  में वह रेलवे संघ के मुखिया बना दिए गए | उस समय उनकी ताकत को देखकर तत्कालीन सरकार के भी होश उड़ गए थे | जार्ज जब सामने हड़ताल के नेतृत्व के लिए आगे आते थे तो उनको सुनने के लिए मजदूर कामगारों की टोली से सड़के जाम हो जाया करती थी |

आपातकाल के दौरान उन्होंने मुजफ्फरपुर की जेल से अपना नामांकन भरा और जे पीका समर्थन किया |  तब जॉर्ज के पोस्टर मुजफ्फरपुर के हर घर में लगा करते थे | लोग उनके लिए मन्नते माँगा करते थे और कहा करते थे जेल का ताला टूटेगा हमारा जॉर्ज छूटेगा | 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उनको उद्योग मंत्री बनाया गया | उस समय उनके मंत्रालय में जया जेटली के पति अशोक जेटली हुआ करते थे | उसी समय उनकी जया जेटली से पहचान हुई | बाद में यह दोस्ती में बदल गयी और वे उनके साथ रहने लगी |  लैला कबीर और जॉर्ज  के किस्से राजनीती में सुने जाते हैं | लैला कबीर  उनकी जिन्दगी में उस समय आ गयी थी जब वह मुम्बई में संघर्ष कर रहे थे | तभी उनकी मुलाकात तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री हुमायु कबीर की पुत्री लैला कबीर से हुई जो उस समय समाज सेवा से जुडी हुई थी |  लैला के पास नर्सिंग का डिप्लोमा था और वह इसी में अपना करियर बनाना चाहती थी  | बताया जाता है तब जार्ज ने ही उनकी मदद की और उनके साथ यही निकटता प्रेम सम्बन्ध में बदल गयी और 21 जुलाई 1971  को वे परिणय सूत्र में बढ़ गए|  इसके बाद कुछ वर्षो तक दोनों के बीच सब कुछ ठीक चला परन्तु जैसे ही जॉर्ज मोरार जी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाये गए तो लैला कबीर  जॉर्ज से दूर होती गई | जॉर्ज अपने निजी सचिव अशोक जेटली की  पत्नी जया जेटली के ज्यादा निकट चले गए |  इस प्रेम को देखते हुए लैला कबीर  ने अपने को जॉर्ज से दूर कर लिया और 31  अक्तूबर 1984  से दोनों अलग अलग रहने लगे | इसके बाद लैला दिल्ली के पंचशील पार्क में रहने लगी | वहीँ  जॉर्ज कृष्ण मेनन मार्ग में | बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर एक दौर में लालू अपराजेय मान लिए गए थे। लालू के शासन के तीसरे साल में जब जॉर्ज ने उन्हें सत्ता से नेस्तनाबूद करने की ठानी तो किसी को सहसा यकीं नहीं हुआ |  वह भी एक दौर आया जब 1995 के विधानसभा चुनाव  में समता पार्टी महज  सात सीटों पर सिमट गई तो यही कहा गया कि जॉर्ज की सियासत का अंत हो जायेगा | लेकिन  ऐसा हुआ नहीं। पराजय के बाद शरद  और नीतीश कुमार ठोस रणनीति के साथ मैदान में आए जिसमें लालू की जंगलराज की सियासत को घेरने का ब्रह्मास्त्र जॉर्ज ने ही छोड़ा | लालू के दुर्ग पर फतह पाने के लिए उन्होंने  भाजपा से दोस्ती की और एनडीए  के संयोजक भी बने  जिसमें बाजपेयी के साथ कई पार्टियों का कुनबा 1998  में जुड़ा | 

पहली बार विचाराधारा से इतर कोई दल एनडीए का घटक बना तो वह जॉर्ज की समता पार्टी थी। इसके बाद जॉर्ज एनडीए के संयोजक बने और उन्होंने कई दलों को एनडीए में लाने में अहम भूमिका निभाई। जॉर्ज की स्वीकार्यता ज्यादा होने के कारण उन्हें एनडीए का संयोजक बनाया गया और इस प्रकार कई दल एनडीए का हिस्सा बने। एनडीए के भीतर और बाहर दोनों जगह वाजपेयी के बाद उनकी स्वीकार्यता सर्वाधिक थी। 1998 से 2004 के बीच दो बार एनडीए की सरकार के गठन और विभिन्न मौकों पर उत्पन्न परिस्थितियों एवं मतभेदों के समाधान में जॉर्ज फर्नांडिस अहम भूमिका निभाते थे। इस प्रकार कांग्रेस के खिलाफ तीसरे मोर्चे की विफलता से जो स्थान रिक्त हो रहा था, उसे एनडीए ने पूरा किया। 2000 आते-आते लालू प्रसाद की सत्ता को चुनौती मिली और बिहार में यह जुमला कहा जाने लगा समोसे में रहेगा आलू पर बिहार में नहीं रहेंगे लालू |  जार्ज के दौर में ही  यह मिथ टूट गया था कि लालू अपराजेय हैं। केंद्रीय मंत्री के रूप में जार्ज हमेशा  दो फैसलों के लिए जाने रहेंगे । 1977 में उन्होंने कोका कोला व आईबीएम को भारत से बाहर कर दिया था और 2002 में देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी एचपीसीएल को बेचने की प्रक्रिया में अड़ंगा लगाया था। 1999 में रक्षामंत्री रहते हुए उन्होंने कारगिल से पाक सैनिकों को खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार में 1989 में वह रेल महकमे के ही मंत्री बने थे। इस सरकार में अधिकांश वामपंथी नेता थे। संघ विरोधी पर अटल सरकार में रहे जॉर्ज फर्नाडीस आरएसएस के कट्टर आलोचक थे लेकिन उन्होंने भाजपा नीत राजग की अटल सरकार में 1998 व 1999 में रक्षा मंत्री पद संभाला था। उन्हीं के नेतृत्व में भारत ने कारगिल युद्ध लड़ा और 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण किए थे।

जॉर्ज की छवि रक्षा सौदों में दलाली से लेकर तहलका तक में बहुत धूमिल हुई | लेकिन जार्ज अपनी स्पष्ट वादिता और मूल्यों की राजनीति के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे  |  रक्षा सौदों में दलाली के मसले पर विपक्ष  ने उनको खूब घेरा लेकिन जार्ज  इस्तीफ़ा देने से नहीं घबराये |  ऐसा कहा जाता है तहलका  दाग लगाने में जया जेटली  की बड़ी भूमिका रही | यही नही जॉर्ज को मुजफ्फर पुर से लोकसभा  चुनाव लड़वाने  की रणनीति भी खुद जया की थी | इस हार के बाद उनको राज्य सभा में भेजने की कोई जरुरत नही थी | वैसे भी एक दौर में जॉर्ज कहा करते थे समाजवादी कभी राज्य सभा  के रास्ते "इंट्री" नहीं  करते |

 इन सब बातो के बावजूद भी उनका राज्य सभा जाना मेरे मन में कई बार सवालों को पैदा करता था | यही नही शरद नीतीश की जोड़ी का हाथ पकड़कर उनको राज्य सभा पहुचाना कई बार उनकी समाजवादी उनकी छवि पर ग्रहण लगाता था | जार्ज भले ही आज भले ही हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन भारतीय राजनीती के इतिहास में हमेशा उनको संघर्षशील , जिंदादिल और सादगीपूर्ण और शालीन नेता के तौर पर याद किया जाता रहेगा जिसने अपनी राजनीति से जनता के सरोकारों की हमेशा फ़िक्र की | अब जॉर्ज की मौत के बाद  उनकी  संपत्ति को लेकर विवाद गर्माने के आसार बन रहे हैं | चुनावो के दौरान जॉर्ज द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक वह करोडो के स्वामी है जिनके पास मुम्बई , हुबली, दिल्ली में करोड़ो की संपत्ति है | यहीं नही मुम्बई के एक बैंक में उनके शेयरों की कीमत भी अब काफी हो चली  है | ऐसे में आने वाले दिनों में संपत्ति को लेकर विवाद होना तो लाजमी ही है|