Monday 19 January 2015

सुनंदा मामले में बढ़ सकती है थरूर की मुश्किलें



शशि थरूर और विवादों का लगता है चोली दामन का साथ है मनमोहन के दौर में भी वह सुर्खियों में रहे और अब मोदी सरकार के दौर में भी कमोवेश यही हाल है जब से सुनंदा पुष्कर के साथ उनका नाम जुडा उसी समय से दोनों के चर्चे मीडिया की सुर्खियाँ बनी और अब सुनंदा की मौत के तकरीबन एक बरस बाद भी शशि थरूर की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं बीते बरस लीला पैलेस होटल के कमरा नंबर 345 में सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में दिल्ली पुलिस जिस तरह पुराने पन्ने खोल रही है उससे अब जांच का दायरा थरूर तक पहुँचने से इस पूरे मसले का  सच  सामने  आने के अनुमान लगाये जा रहे हैं और कल दिल्ली में सुनंदा मामले में दिल्ली पुलिस ने वसंत विहार थाने में  पूछताछ  जिस अंदाज में शुरू की है उसने इस बात को भी साफ़ किया है आने वाले दिनों में थरूर की इस मामले  मे मुश्किलें बढ़ सकती  हैं  

  एस आई टी  इस मामले की जांच जल्द पूरा करने के मूड में दिखाई दे रही है ताकि इसे अंजाम तक पहुंचाया जा सके |  दिल्ली पुलिस ने सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में गत एक जनवरी को अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया था। पुलिस ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट के आधार पर आईपीसी की धारा 302 के तहत यह  मामला दर्ज किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुनंदा पुष्कर की मौत जहर से हुई थी। मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन भी  किया है लिहाजा पुलिस के लिए इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करना जरूरी था ताकि सुनंदा के विसरा नमूने को जांच के लिए विदेश भेजा जा सके। इस मामले में विशेष जांच दल  पहले ही कई लोगों से पूछताछ कर चुका है लिहाजा  थरूर के पक्ष को भी जानना जरुरी हो गया था |   

 दिल्ली पुलिस जांच में इस बात को सामने ला रही है कि क्या सुनंदा को मारने के पीछे कहीं  कोई गहरी साजिश तो नहीं रची गयी सुनंदा की मौत के बात बीते बरस ही एम्स की फोरेंसिक रिपोर्ट में जिस तरह सुनंदा की मौत की गुत्थी को ड्रग पोइजनिंग से जोड़ा गया उसने कई सवालों को खड़ा किया हालाँकि  एम्स के एक्सपर्टो की टीम ने इस बात को भी कहा सुनंदा के शरीर पर निशान मिलने से यह मौत एक पहेली बन गयी है |  इस मामले में दिल्ली पुलिस ने भी अब इस बात को कहा है सुनंदा ने आत्महत्या नहीं की है उनको जहर देकर मारने की साजिश की गयी थी शायद यही वजह है पुलिस ने इस मामले में अज्ञात आरोपी के खिलाफ केस दर्ज किया है इस मामले की जांच का दायरा जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे वैसे इस बात के पुख्ता प्रमाण मिल रहे हैं सुनंदा मामले पर एक बड़ी सजिश रची गयी थी हाल ही में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों ने भी  थरूर पर सवाल उठाये है उन्होंने अपने ट्विट में कहा है सुनंदा के शरीर में कई जगह पर गहरे जख्म थे जो यह साबित करते हैं उनकी मृत्यु दवाओं के ओवरडोज से नहीं बल्कि जहर खिलाने से ही हुई इस पूरे में जांच होने के बाद असल सच सभी के सामने आ पायेगा लेकिन शशि और सुनंदा में तकरार भी इस मौत की बड़ी वजह बताई जा रही है |

सुब्रमण्यम स्वामी का बीते दिनों आया एक  उलझाने वाला बयान यह भी है कि यह आत्महत्या नहीं मृत्यु का मामला है |  सुब्रमण्यम के इन बयानों से जांच के लंबा खींचने का संकेत मिल रहा है। उनका यह भी कहना कि पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार का संबंध आईएसआई है और उनका संबंध दाऊद के डी कंपनी से भी है। वजह चाहे जो भी हो लेकिन सुनंदा की मौत को गहरी प्लानिग से अंजाम दिया गया सुनंदा कोच्ची आई पी एल टीम की मालकिन भी थी और क्रिकेट के मैच फिक्सिंग आई पी एल से अगर इस मेल को जोडें तो जेहन में दुबई की तस्वीर उभरती है जहाँ सट्टेबाजी में दाउद का नाम जेहन में उभरता है बहुत संभव है सुनंदा इस मामले  के कई राजों का पर्दाफाश करना चाह रही हों जिसके चलते उन्हें किसी ने रास्ते से हटाने की पूरी प्लानिंग की 

 पुलिस को दिए गए अपने बयान में थरूर ने शुरुवात में यह कहा उनकी और सुनंदा की जिन्दगी खुशहाल चल रही थी और कुछ मामलो को लेकर उनमे तकरार भी हुई थी ध्यान दें तो बीते बरस जनवरी में ही थरूर और सुनंदा की जिन्दगी को बुरी नजर उस समय लग गयी जब ट्विटर पर थरूर के अकाउंट से पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार को दिए गए कुछ संदेश सबके सामने आये जिनसे थरूर और तरार के बीच नई रिलेशनशिप होने के कयास लगाए जाने लगे जिसके बाद थरूर हरकत में आये और उन्होंने ट्वीट से यह कहा उनका अकाउंट किसी ने हैक कर लिया है इसी के बाद सुनंदा अवसाद में आ गयी और खुद सुनंदा ने यह ट्वीट किया वह शशि से बात करना बंद कर दें इसी दौर में उन्होंने ट्वीट कर कहा था जब सुनंदा इलाज के लिए विदेश गयी तो मेहर ने उनके पति थरूर का पीछा किया था और उनकी शादी तोड़ने की कोशिश की।

यही नहीं सुनंदा ने एक साक्षात्कार में कहा कि इस पूरी गतिविधि को वह बर्दाश्त  नहीं कर सकती। इस ट्वीटरबाजी के बाद शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर दोनों ने कहा कि वे ठीक-ठाक और खुश हैं। लेकिन 18 जनवरी की रात अचानक दिल्ली स्थित एक पंच सितारा होटल में सुनंदा की लाश मिली। इसके बाद यह घटना रहस्यमय मौत में तब्दील हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के जारी होने के बाद यह रहस्य और गहरा हो गया। शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक शव पर जख्म के निशान मिले और एम्स ने भी बाद में इस बात को कबूल किया सुनंद की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट बदलने का दबाव डाला गया जिसके बाद से यह हाई प्रोफाइल मामला बन गया |  सुनंदा के करीबियो और थरूर के स्टाफ  से जहाँ  पूछताछ हो चुकी है तों वहीँ थरूर के निजी सहायक भी अपना बयान पुलिस को दे चुके हैं |  इस रहस्यमयी मौत की जांच अब जैसे आगे बढ़ रही है वैसे  शशि थरूर के लिए भी  मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।


एसआईटी जांच का गठन होने के बाद सुनंदा की मौत को लेकर कई सवाल है। उनकी हत्या हुई थी या उन्होंने खुद आत्म हत्या की। अगर आत्म हत्या की  तो उसका संबंध मेहर तरार से तो नहीं। मेहर तरार से शशि थरुर की  ट्वीट पर बातचीत और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सुनंदा के शरीर पर चोट के निशान कई संदेह छोड़ते हैं। वहीँ एस आई टी का  यह भी मानना है  मौत से पहले दोनों जब कोच्ची से दोनों  लौट रहे थे तो विमान में दोनों के बीच काफी कहा सुनी भी हुई | दोनों के बीच यह लड़ाई एयर  इंडिया के विमान में हुई | वही सुनंदा थरूर की लड़ाई  के समय एक दोस्त ने किसी  डॉक्टर को काल लगाई थी | फ़ोन काल होने से इस मामले की तह तक पहुचने की गुत्थी इतनी आसान भी नहीं लग रही क्युकि शुरुवाती सुराग से किसी भी नतीजे तक पहुँचना  मुश्किल लग रहा है |    एस आई टी  जब तक इन सवालों का जवाब  और सच सामने लाने में कामयाब नहीं हो पाती  तब तक इस मामले  की निष्पक्ष जांच की उम्मीद कम ही दिख रही है 

Saturday 17 January 2015

केजरी की रफ़्तार पर ‘ किरण ’ का स्पीड ब्रेकर




दिल्ली में आम आदमी पार्टी का बढ़ता जनाधार  भाजपा के लिए आगामी चुनावो के मद्देनजर जहाँ  मुश्किलें खड़ी कर रहा था  वहीँ पहली बार हमारी  बोलती केजरीवाल की राजनीती ने बंद कर डाली  जिसके चलते भाजपा को दिल्ली  में बिसात बिछाने में असहजता महसूस हो रही थी अब किरण पार्टी में नई  उम्मीद बनकर आई हैं । सही समय पर  हमारी पार्टी ने उनको आगे किया है”


भाजपा के राष्ट्रीय  मुख्यालय में सुबह सुबह किरण बेदी के सतीश उपाध्याय के साथ लगे  पोस्टरों को देखकर वहां खड़े पार्टी के कार्यकर्ता के मुह से निकले ये शब्द इस बात की  गवाही देने के लिए काफी थे  कि  केजरीवाल से दिल्ली के चुनावी समर में  लड़ाई भाजपा को बिना चेहरे के कितना भारी पड़  सकती थी । किरण बेदी के पार्टी में शामिल होते ही दिल्ली का भाजपा कार्यकर्ता जिस अंदाज में जागा है और बेदी ने 5 पी और मॉडल दिल्ली  का जो फार्मूला अपने पहले सम्बोधन में ही  गिनाया है  उसने पहली बार राजनीती को एक सौ अस्सी से ज्यादा के कोण पर झुकने को मजबूर कर दिया है । क्युकि  अभी तक  मध्यम वर्ग के अलावे दिल्ली में गरीबो का एक बड़ा वर्ग केजरीवाल के समर्थन में ना केवल नारे लगा रहा था  बल्कि बड़ी बिजली और पानी की कीमतों के खिलाफ अपनी आवाज फिर से उन्ही के नेतृत्व में  बुलंद करता नजर आ रहा था  । कम से कम अब किरण बेदी के आने के बाद आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली फतह करना इतना आसान तो नहीं लग रहा | चेहरे के अभाव में  भाजपा ना केवल टिकटों  आवंटन सही से कर  पायी थी और ना ही दिल्ली की जनता तक अपना मैनिफेस्टो पहुँचा पायी थी  |

  तो क्या माना जाए पहली बार किरण बेदी के आने से दिल्ली में लड़ाई रोचक हो चली है और क्या पहली बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को उसी मुद्दे पर चुनौती मिलेगी जिसको पाक साफ़ बनाने को लेकर वह न केवल राजनीती के कीचड  में कूदने  की बात  न केवल कहते रहे हैं बल्कि आम आदमी की सरकार बनाने का  दम फिर से  भरते  नजर आते रहे हैं | दरअसल दिल्ली मे किरण बेदी को पार्टी में शामिल कर मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने एक बार फिर अपने को राजनीती का सबसे बड़ा चाणक्य साबित किया है | मोदी और शाह का यह दिल्ली की पिच पर खेला गया अब तक का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक है | हालंकि किरण बेदी की भाजपा से निकटता उसी समय जगजाहिर हो गई थी जब वह अन्ना का झंडा थामे रामलीला मैदान में मनमोहन सरकार को जन लोकपाल लाने के लिए घेर रही थी | इसी दौर में वह कॉमनवेल्थ  खेलों में हुए गड़बड़झालों के खिलाफ पहली बार रामदेव के साथ सामने आती हैं । इसके बाद लोक सभा चुनावों से पूर्व उन्होंने मोदी को पी एम का उम्मीदवार बनाये  जाने से पहले ही उन्हें इस पद के लिए सबसे योग्य उम्मीद वार करार दिया और ट्विटर में मोदी के समर्थन पर खूब पोस्ट डाले  जिसके बाद से ही उनके और भाजपा के बीच  नई जुगलबंदी और कदमताल  होने के आसार दिखाई देने लगे थे | फिर लोक सभा चुनावो में उनको किसी सीट से प्रत्याशी बनाये जाने को लेकर भाजपा का हाई कमान उनके सीधे संपर्क में था लेकिन किरण ने हामी नहीं भरी जिसके चलते मामला ठन्डे बस्ते  में चला गया और अब दिल्ली चुनावों की उलटी गिनती शुरू होने के बाद भाजपा उनको अपने पाले में लाने में कामयाब  हो गयी है जिसके बाद दिल्ली का महासमर अब तक का सबसे रोचक मैच होने के आसार दिखाई देने लगे हैं | २ जी , आदर्श सोसाईटी , कामनवेल्थ घोटाला ,कर्नाटक की खदान में हुए घोटालों के बाद अन्ना आन्दोलन ही  ऐसा जनांदोलन था  जिसने  पूरे देश  को  एक प्लेटफोर्म देने का काम किया | लोगो ने इस जनांदोलन से सीधा जुड़ाव महसूस किया शायद इसी के चलते सभी नए इस पर बढ़ चढकर भागीदारी की और इसमें सूत्रधार की भूमिका में केजरीवाल के साथ कोई खड़ा था तो वह कोई और नहीं बल्कि देश की  पहली महिला आई पी एस किरण बेदी ही थी | अब अन्ना के इन दो चेलो के आमने सामने आने से दिल्ली का संग्राम रोचक बन गया है |

दिल्ली में पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पहली बार शानदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था | भाजपा बड़ी पार्टी के रूप में दिल्ली में जरुर उतरी लेकिन वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पायी | वहीँ आम आदमी पार्टी  कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने में कामयाब हुई लेकिन उसकी  49 दिन तक ही सरकार चल सकी | जन लोकपाल के मसले पर केजरीवाल ने अपनी सरकार कुर्बान कर दी जिसके बाद से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन  लगा दिया गया |


इधर दिल्ली में इस साल चुनावी डुगडुगी बजने के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी गले की हड्डी केजरीवाल की काट बन गयी क्युकि उसके पास केजरीवाल को टक्कर देने के लिए कोई दमदार चेहरा नहीं था जिसके चलते वह दिल्ली का गणित और मूड नहीं समझ पा रही थी | अब किरण बेदी के भाजपा में आने से जहाँ भाजपा के लिए दिल्ली का मैदान खुला खुला नजर आ रहा है वहीँ आम आदमी पार्टी की मुश्किलें भी बढ़नी तय हैं | महिला सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बना रही आप को अब किरण के आने से अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड सकता है क्युकि किरण बेदी के पुलिस अधिकारी के रूप में किये गए कार्यो से पूरा देश अच्छी तरह वाकिफ है | तिहाड़ में कैदियों के साथ जिस अंदाज में उन्होंने काम किया वह काबिले तारीफ है | साथ ही ईमानदार  अधिकारी , प्रशासनिक अनुभव  में वह केजरीवाल से इक्कीस ही बैठती हैं | पुलिस सेवा के समर्पण के बाद अब  राजनीती  के माध्यम से देश सेवा में समर्पण के उनके शुरुवाती भाषणों को राजनीती में अच्छे संकेत के तौर पर लिया जाना चाहिए | कम से कम कोई नेता तो है जो राजनीती में समर्पण और देश सेवा से इसे जोड़ रहा है नहीं तो अभी तक की राजनीती कॉरपरेट और अपना घर भरने का साधन ही बनी हुई थी जिसमे आम आदमी के सरोकार सपनो की तरह मर रहे थे |

अमित शाह और अरुण जेटली ने किरण को पार्टी में शामिल किया है उससे यह माना जाने लगा है दिल्ली में भंवर में फँसी भाजपा अब भंवर से बाहर निकल रही है | किरण बेदी क्या केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी यह अभी साफ़ नहीं है लेकिन किरण के साहस की दाद देखिये उन्होंने कहा  है अगर पार्टी कहेगी तो वह बेशक नई दिल्ली से ही केजरीवाल के खिलाफ मैदान में उतरेंगी | हालंकि मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर अभी मुहर लगनी बाकी है लेकिन अमित शाह और किरण बेदी का हौंसला और आत्मविश्वास इस बात की गवाही दे ही रहा है दिल्ली  में भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा वह ही रहेगी | खुद किरण बेदी ने कहा है वह मोदी के करिश्माई नेतृत्व से कायल हुई हैं और उनके ड्रीम प्रोजेक्टों को पूरा करने में भागीदार बनना  चाहती हैं | इस मास्टर स्ट्रोक के बाद आम आदमी पार्टी के उन समर्थको के मुह पर ताला जड़ गया है जो दिल्ली में केजरीवाल का विकल्प किसी नेता को बताने से बाज नहीं आते थे |

आप ने तो अपने तमाम सर्वे में केजरीवाल के खिलाफ जगदीश मुखी को भाजपा का सी एम पद का उम्मीद वार ट्रांजिट विज्ञापनों और इश्तेहारो में गली गली में घोषित भी कर दिया था | हालाँकि किरण की सी एम  दावेदारी का मसला भी संसदीय बोर्ड के सामने ही तय होगा लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद हर किसी नेता ने जिस अंदाज में किरण की तारीफों के पुल बांधे हैं उससे यह साफ़ है दिल्ली का भाजपा का बड़ा चेहरा किरण बेदी ही रहेंगी | अब पार्टी के नीति नियंता उनके चुनाव प्रचार की आक्रामक रणनीति अमित शाह के साथ बनाने में जुटे हुए है | यह तय किया जा रहा है कि 20 जनवरी से किरण बेदी की हर विधान सभा सीट में कम से कम 2 से 3 सभाएं कराई जाए जिससे कि भाजपा के पक्ष में लहर बनाई जा सके |


किरण के हाथ चुनाव प्रचार की कमान रहने से महिलाओ का एक बड़ा तबका भाजपा के साथ लामबंद होने की संभावना से भी अब इनकार नही किया जा सकता क्युकि बड़े पैमाने पर आम आदमी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वोटरों को लुभाने में जुटी हुई थी और महिलाओं के खिलाफ दिल्ली  में बड़े अपराधो को आप ने इस बार बड़ा मुद्दा भी बनाया है |   जाहिर है किरण के आने के बाद आम आदमी के वोट बैंक में सेंधमारी शुरू हो गयी है | ईमानदार चेहरों की लड़ाई में इस बार दिल्ली का महासमर घिर गया है | भाजपा के लिए तो दिल्ली में सरकार बनाना नाको चने चबाने जैसा बन गया है क्युकि प्रधान मंत्री मोदी की प्रतिष्ठा अब सीधे दिल्ली से जुड़ गयी है | 49 दिन की सरकार गिरने और लोक सभा चुनाव  के बाद भले ही केजरीवाल की रफ़्तार थम गयी हो लेकिन दिल्ली में उनका बड़ा जनाधार आज भी है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता | झुग्गी झोपड़ी से लेकर ऑटो चालक और रेहड़ी लगाने वालो से लेकर महिलाओ के एक बड़े तबके को केजरीवाल करिश्माई तुर्क नजर आता है जिससे उन्हें आज भी बड़ी उम्मीद हैं |  

वहीँ राज्य दर राज्य हो रहे उपचुनावों और निकाय परिषदों के चुनावों  में नमो लहर जिस तरह औंधे मुह गिर रही है और विभिन्न राज्यों के  वोटरों में मोदी का जादू कम हो रहा है उससे यह सवाल भी भाजपा के सामने खड़ा हो गया है अगर दिल्ली में दूसरी बार विपक्ष में बैठने की नौबत आई तो झटके में आप भाजपा की राजनीतिक जमीन पर पूरे देश में बड़ी सेंध लगा सकती है | ऐसे हालातों में भाजपा को भी  यू पी बिहार के आने वाले विधान सभा चुनाव में बड़ा नुकसान  झेलने को मजबूर होना पड सकता है | भाजपा की अभी दिल्ली में  हालत बहुत पतली नजर आ रही है  | उनके मौजूदा विधायक  विधान सभा क्षेत्र में दुबारा जीत जायेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है

आतंरिक सर्वे में भी पार्टी की हालत केजरीवाल नाम के भूत ने खराब की हुई थी शायद इसका बड़ा कारण अरविन्द केजरीवाल के कद का कोई नेता दिल्ली में ना होना था वहीँ भाजपा भी चुनाव को लेकर अपने पत्ते फेंटने की स्थिति में नहीं थी  | उसके तुरूप के इक्के हर्षवर्धन केंद्र की नमो सरकार में मंत्री हैं और जगदीश मुखी से लेकर आरती शर्मा और विजय गोयल से लेकर विजेंदर गुप्ता आउटडेटेड हो चुके थे  और इनको आगे कर भाजपा दिल्ली में कमल खिलाने में नाकाम रह सकती थी  क्योंकि उसे मालूम था  कि दिल्ली की जनता को उसने जो भरोसा दिलाया था वह उसे पूरा नहीं कर पाई है। भाजपा ने जिस महंगाई को मुद्दा बनाकर चुनाव लडा उसे वह दूर नहीं कर पाई साथ ही सबसे बड़ा दल होने के बाद भी वह सरकार बनाने से पीछे हट गयी और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर 49 दिनों की सरकार चलायी  जिसके  चलते  भाजपा की दिल्ली में कई सर्वे में  लोकप्रियता में  भारी गिरावट हाल के दिनों में देखने को मिली है  |

वहीँ समाज के मजदूर और पिछड़े तबके के साथ ही  मध्यम वर्ग  और युवाओ का एक बड़ा वोट बैंक आप के  साथ आज भी जुड़ा है  | दिल्ली भाजपा की असल परेशानी यहीं से शुरू होती है और यही वह दुखती रग है जो भाजपा की परेशानी को ना केवल बढाने का काम कर रही थी  बल्कि भावी सरकार  के मुखिया के तौर पर जगदीश मुखी को आगे करने का दाव  आम आदमी पार्टी के जरिये ऑटो में लगे पोस्टरों से चल रही थी   |  

दिल्ली में हाल के दिनों में  बिजली पानी  से लेकर पेट्रोल  डीजल और सीएनजी के दामो में उतार चदाव देखने को मिला है दूसरी ओर अपने को चाय बेचने वाले का बेटा कह लोगों को कॉर्पोरेट के आसरे चमचमाते कायकल्प होने के सपने दिखाने वाले नरेंद्र मोदी से चुनाव निपटने के बाद  जनता की अपेक्षाएं इस कदर बड़ी हुई है आने वाले  पांच बरस में उनके पूरे होने पर सभी की नजरें लगी हुई हैं वैसे उनके अब तक के कार्यकाल  में आम आदमी ही सबसे ज्यादा  निराश हुआ है और महंगाई की सबसे अधिक मार इसी तबके ने झेली है जिस नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस मुक्त भारत का सपना लोक सभा चुनावो के चुनाव प्रचार के दौरान दिखाया था  वह  सरकार भी अब  कांग्रेस के पग चिन्हों पर चलती दिखाई दे रही है

बीमा और ऍफ़ डी आई सरीखे मसलो पर कभी कांग्रेस को घेरने वाली भाजपा आज सत्ता में आने के बाद अब इन सबको लागू करने का मन  बना चुकी है तो स्थितियों को बखूबी समझा जा सकता है | महंगाई  लगातार बढ़ रही हैं लेकिन सरकार इस पर चुप्पी नहीं तोड़ रही | उसका ध्यान स्वच्छ भारत से लेकर गंगा की साफ़ सफाई और अंतर्राष्ट्रीय साख बनाने में लगा हुआ है | चीन बार बार हमारी सीमा में घुसने की जुर्रत कर रहा है तो यू एन ओ और अमरीका  में मोदी ने जिस तरह पाक को कठघरे में खड़ा किया है उसके बाद से पाक सीमा पार से सीज फायर का कई बार उल्लंघन कर चुका है | लव जेहाद , हिन्दू राष्ट्रवाद, घर वापसी जैसे मसले उछालकर उसके नेता खुद मोदी की छवि पर बट्टा  लगाने पर तुले हैं । कभी विपक्ष में रहने पर  भाजपा ने सत्ता में आने पर 30 फीसदी  की सब्सिडी और बिजली पर  700 करोड़ की सब्सिडी देने का वादा किया था जिससे उन्होंने आज दिल्ली में उन्होेने  पल्ला झाड लिया है बेशक मोदी को आगे कर भाजपा केंद्र का ताज अपने नाम कर सकती है लेकिन मोदी को भी इस बात को समझना जरुरी होगा कि लोक सभा चुनाव और राज्यों   के विधान सभा  चुनावों में जनता का मूड अलग अलग होता है जिसके ट्रेंड को हम हाल के कुछ वर्षो से देश में बखूबी देख भी रहे हैं |

  आम आदमी पार्टी का मनोबल अभी  दिल्ली  में  काफी  ऊंचा है  जिसे वह भुनाना भी चाहती है।  कुछ महीनों पहले ई रिक्शा चालको और ऑटो चालको  को फिर साधकर केजरीवाल ने  जिस अंदाज में अपना शक्ति प्रदर्शन किया  उसने इस बात को तो बता ही दिया था  देश में केजरीवाल का जादू भले ही ना चला हो लेकिन दिल्ली में आज भी केजरीवाल सब पर भारी पड रहे हैं  और शायद  इसकी  सबसे बड़ी वजह दिल्ली में उनके साथ जुडा मजबूत  जमीनी संगठन है |  

दिल्ली की गद्दी छोड़कर  लोक सभा चुनावो में जल्द कूदने को अपनी भारी भूल बता चुके केजरीवाल इस बात को समझ रहे हैं आम आदमी के वोटर के साथ वह  अपनी इस  भावनात्मक अपील के साथ  जुड़ना चाहते हैं वहीँ  जनता भी  केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद छोड़ने को  अभी भूली नहीं है। महंगाई पर भाजपा की विफलता , बिजली पानी की बड़ी कीमतों से दिल्ली में अगर कोई सबसे ज्यादा लाभ लेने की  स्थिति में आज  है तो वह आम आदमी पार्टी ही  है | कांग्रेस के पास शीला दीक्षित का विकल्प नहीं है और वह वैसे ही वह कई राज्यों में ढलान पर है वहीँ भाजपा  में केजरी  की काट के लिए कोई चेहरा नहीं था  जो भाजपा को अच्छी सीटें दिल्ली में दिला सके |

किरन बेदी का नाम अब भाजपा की भावी सी एम के रूप में जब एक्सपोज हो गया है और उन्होंने खुद दिल्ली को लेकर अपना माडल लोगो के सामने पेश किया है उससे दिल्ली की लडाई रोचक हो चली है वैसे इस सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता दिल्ली पर आप की धार बेअसर करने के लिए आने  वाले दिनों में किरण को आगे करने का भाजपा  का यह मास्टर स्ट्रोक आप के खेमे में खलबली मचा सकता है | किरण बेदी को प्रोजेक्ट कर भाजपा ने यह सन्देश साफ़ दे दिया है केजरीवाल की पाक साफ़ राजनीती को टक्कर उसी शुचिता और ईमानदारी से ही दी जा सकती है जिसकी दुहाई वह पार्टी बनाने के बाद से देते आये हैं  शायद यही वजह है दीवानों की दिल्ली में इस  बार की लडाई बिजली पानी महिला सुरक्षा सरीखे मुद्दों और ईमानदार प्यादों के आसरे ही लड़ी जा रही है जिसके केंद्र में आम आदमी ही है |

पी एम मोदी भी अपने को दिल्ली के इस मैच से अलग रख रहे हैं क्युकि  इस मैच में अगर भाजपा की जीत हुई तो किरण बेदी की ताजपोशी तय है अगर भाजपा दिल्ली में कमल खिलाने में नाकामयाब रहती है तो इससे मोदी की छवि पर ग्रहण नहीं लगेगा । वैसे भी अब दिल्ली की लड़ाई भाजपा किरण बेदी के आसरे लड़ रही है और वही केजरीवाल के खिलाफ आमने सामने हैं । अबकी बार इस राजनीती के केंद्र में कुछ नहीं है तो सिर्फ जनलोकपाल |