Monday 27 March 2023

नवरात्र दैवी शक्ति की विजय का प्रतीक


 

एक ही परम तत्व परमपुरुष पराशक्ति के रूप में सर्वत्र व्यापक है। श्रुतियों, शास्त्रकारों ने एक ही चिरंतन शक्ति को कभी पुरुष के रूप में तो कभी देवी के रूप में स्वीकारा है। सब के घट में एक समान विराजमान वह  दिव्य शक्ति प्रकाश के रूप में हमेशा मौजूद रहती है जिसे 'जीवन शक्ति'  कहा  जाता है और उसका दर्शन होना ही 'शक्ति ' की आराधना है। दुष्टों का  संहार करके भक्तों की रक्षा करने हेतु कभी काली तो कभी दुर्गा या फिर राम और कृष्ण के रूप में उस शक्ति का अवतरण इस धरा पर हुआ है। 

 
मां  अम्बे की पूजा - अर्चना का विधान वेद, पुराण , उपनिषदों हिन्दुओं के अन्य धर्मशास्त्रों में भी मिलता है। वेद में 'एकोएहं बहुस्याम ' और 'अजाय मानों बहुधा  ब्यजायत ' के रूप में और देवी पुराण में 'सा वाणी साच सावित्री विप्राधिष्ठात ' वहां सर्व दुर्गा के रूप में संस्थापित है। मार्कण्डेय  पुराण में स्वयं मान जएकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा। पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः अर्थात मैं ही दुर्गा हूँ , सर्व शक्ति स्वरूपा हूँ और मुझमें ही पूरी  सृष्टि विलीन है। आशय यह है कि यह विशाल  सृष्टि  उत्पन्न होती है, बढ़ती है, विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती है और अंत में विनिष्ट हो जाती है। 
 
देवी पुराण में एक बड़े रोचक कथा प्रसंग की चर्चा की गयी है। अक्सर भ्रम में पड़  जाने वाले देवर्षि नारद को एक बार भ्रम हो गया।  ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों सर्वश्रेष्ठ हैं तो भला ये तीनों किस महाशक्ति का स्मरण करते हैं ? नारद जी अपने सन्देश निवारण हेतु शिव के पास गए और बोले 'मुझे ब्रह्मा , विष्णु और महेश से बढ़कर कोई अन्य देवता नहीं दिखाई देता है फिर आप तीनों से ऊंचा कौन है जिसकी उपासना और स्मरण आप करते हैं ' ? शिव मुस्कुराये और बोले  'हे ऋषिवर ' सूक्ष्म और शूल शरीर से परे जो महाप्राण आदिशक्ति (जगदम्बा ) है वही तो परब्रह्म स्वरुप है - वह केवल अपनी इच्छा मात्र से ही  सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने में समर्थ है।  वस्तुतः वह आदिशक्ति (दुर्गा ) निर्गुण स्वरूप है परन्तु उसे किसी भी रूप मे मन समय -समय पर धर्म की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए साकार होना पड़ता है। इसी  समय-समय पर ,पार्वती  दुर्गा , काली , चंडी , सरस्वती आदि अवतार धारण किये हैं।  इसी जगत जननी का सभी देव स्मरण करते हैं।
 
  वैसे भी आदिशक्ति स्वरुप दुर्गा में सभी  देवताओं का कुछ न कुछ अंश शामिल है। दुर्गाशप्तशती के दूसरे अध्याय में देवी स्वरुप का वर्णन करते हुए बतलाया गया है भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख प्रकट  हुआ , यमराज के तेज से मस्तक के केश , विष्णु के तेज से भुजाएं , चन्द्रमा के तेज से स्तन , इंद्रा के तेज से कमर , वरुण के तेज से जंघा , पृथ्वी के तेज से  नितम्ब , ब्रह्म के तेज से चरण , सूर्य के तेज से दोनों पैरों की अंगुलियां, वसुओं के तेज से दोनों हाथों की अंगुलियां , प्रजापति के तेज से सम्पूर्ण दांत , अग्नि के तेज से दोनों नेत्र , संध्या के तेज से भौहें , वायु के तेज से कान , अन्य देवताओं के तेज से देवी के भीं- भीं अंग बने।  इसी प्रकार सभी  अमोघ शक्तियों से दुर्गा के रूप में एक आदिशक्ति का सृजन किया  गया इसलिए यह स्वरुप सभी देवताओं के लिए स्मरणीय हो गया। 


  जो विद्वानों के के लिए स्मरणीय हो वह लोगों के लिए विस्मरणीय भला कैसे हो सकता है।  परिणामतः कलियुग में भी आज दो  नवरात्रि के रूप में माँ जगदम्बा की  पूजा जारी है। शारदीय और  वासंतीक नवरात्र। शारदीय नवरात्र आश्विन मास में और वासंतिक नवरात्र अभी चैत्र माह में होते हैं। इसी चैत्र वर्ष प्रतिपदा से हिन्दुओं का नया संवत्सर शुरू होता है।  दोनों  नवरात्र का  समान  महत्व  है। नौ दिन और नौ रातों तक मान जगदम्बे  भगवती के नौ अलग -अलग रूपों की पूजा की जाती है।
 
  यह आज तक रहस्य बना हुआ है।  दुर्गा की पूजा सबसे  पहले राम ने की या किसी और ने, लेकिन इतना तय है लंका पर चढ़ाई और रावण वध से पहले राम ने आदिशक्ति स्वरूप मानकर दुर्गा जी  की पूजा की। यह स्थान भी रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। नवरात्र महोत्सव आसुरी शक्ति पर दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है। नवरात्र में प्रथमा से लेकर नवमी तक शक्ति के 9 स्वरूपों की पूजा -अर्चना होती है। ये नौ शक्तियां बहनों का स्वरुप हैं और इन नौ शक्तियों के विभिन्न नाम रूप के कारण 'शारदीय  नवरात्र ' उत्सव का उल्लास  देखते ही बनता  है।  नवरात्र की पूरे देश में विशेष धूम रहती है।  इन 9 दिनों  में लोगों की भक्ति भावना, आस्था और शक्ति देखते ही बनती है। दर्जा माता की  नौ शक्तियों के नाम हैं - शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी  और सिद्धदात्री। नवरात्र में अंतिम दिन पर कन्या पूजा का विशेष  महत्व  है। नौ कुमारी कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर लोग उनका विशेष पूजन  भोजन , वस्त्रादि, उपहार  देकर करते हैं। 
 
 कन्या पूजन में दो वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को पूजा जाता है। दस वर्ष से अधिक वर्ष की कन्याओं  का पूजन वर्जित।  दो वर्ष की कन्या ' कन्याकुमारी' , तीन वर्ष की 'त्रिमूर्तिनी' , चार वर्ष की 'कल्याणी' , पांच वर्ष की 'रोहिणी' , छह वर्ष की ;'काली', सात वर्ष की 'चंडिका' , आठ वर्ष की ' शम्भवी',  नौ वर्ष की 'दुर्गा' और दस वर्ष की 'सुभद्रा' स्वरूपा मानी गयी है।  
 
 कोई भी पर्व हो उसके पीछे मकसद होता है सुख, शांति और समृद्धि के साथ परमानन्द की प्राप्ति।  नवरात्र में की गई पूजा मानव मन की मलिनता को दूर करके भगवती दुर्गा के चरणों में लीन  होकर जीवन में सुख,  शांति और ऐश्वर्य की समृद्धि लाती है। यज्ञ - हवन के कारण अनेक व्याधियों से मुक्ति होने की वैज्ञानिक पुष्टि भी होती है। उस शक्ति स्वरूपा का दर्शन करना मानव जीवन का लक्ष्य है और इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु इन नवरात्रों में विशेष प्रयास  करना चाहिए। नवरात्र अर्थात शक्ति की आराधना का महापर्व है और इसे सौद्देश्य मनाना चाहिए जिससे सुख शांति , अर्थ ,धर्म , काम , मोक्ष का पुरुषार्थ भी सफल हो। 
 


Wednesday 15 March 2023

उत्तराखंड के पहाड़ों का लोक पर्व है फूलदेई

 



 देवभूमि  उत्तराखंड अपनी  मनमोहक सुषमा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है और यहां  के कई त्योहारों में विविधता  दिखाई देती है। प्रकृति को धन्यवाद देने हेतु उनमें से एक त्यौहार है फूलदेई त्यौहार ,  फूल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है । फूलदेई यानी फूल संक्रांति उत्तराखंड का पारंपरिक लोक पर्व है।  उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा आज भी कायम  है।  

चैत्र के महीने की संक्रांति को जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर छोटे बच्चों का पर्व है। वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन  गाँवों में  ये त्यौहार अब भी ज़िंदा है।   फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी पर डालकर  उस घर की खुशहाली की दुआ  मांगने की परंपरा देखते ही आज भी इस त्यौहार की महक महसूस की जा सकती है।  चैत्र माह के  पहले दिन भोर में  छोटे–छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने  ईष्ट देवी देवताओं को अर्पित करते हैं। उसके बाद पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं और उन फूलों से दरवाजों (देहली) का पूजन करते हैं।  घर के दरवाजों में सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं। फूल देई  ……छम्मा देई  देणी द्वार……. भर  भकार ……फूल देई  ……छम्मा देई।

फूलदेई के दिन  बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। उत्तराखंड के इस बाल पर्व में बच्चे फ्यूंली, बुराँस, बासिंग, लाई,ग्वीर्याल, किंनगोड़, हिसर, सहित कई जंगली फूलों को रिंगाल की टोकरी में चुनकर लाते है और देहरी पूजन करते हुए फूल डालते हैं। इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं।  

 फूलदेई त्योहार में एक द्वार पूजा के लिए एक जंगली फूल का इस्तेमाल होता है, जिसे फ्यूली कहते हैं। इस फूल और फूलदेई के त्योहार को लेकर उत्तराखंड में कई लोक कथाएं मशहूर हैं जिनमें से एक लोककथा फ्यूंली के पीले फूलों से जुड़ी हैं।  फूलदेई पर्व की कहानियां एक वन कन्या थी, जिसका नाम था फ्यूंली। फ्यूली जंगल में रहती थी। जंगल के पेड़- पौधे और जानवर ही उसका परिवार भी थे और दोस्त भी। फ्यूंली की वजह से जंगल और पहाड़ों में हरियाली थी, खुशहाली। एक दिन दूर देश का एक राजकुमार जंगल में आया। फ्यूंली को राजकुमार से प्रेम हो गया। राजकुमार के कहने पर फ्यूंली ने उससे शादी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर उसके साथ महल चली गई। फ्यूंली के जाते ही पेड़-पौधे मुरझाने लगे, नदियां सूखने लगीं और पहाड़ बरबाद होने लगे। उधर महल में फ्यूंली ख़ुद बहुत बीमार रहने लगी। उसने राजकुमार से उसे वापस पहाड़ छोड़ देने की विनती की लेकिन राजकुमार उसे छोड़ने को तैयार नहीं था और एक दिन फ्यूंली मर गई। मरते-मरते उसने राजकुमार से गुज़ारिश की, कि उसका शव पहाड़ में ही कहीं दफना दे। फ्यूंली का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की उसी चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वो उसे लेकर आया था। जिस जगह पर फ्यूंली को दफनाया गया, कुछ महीनों बाद वहां एक फूल खिला, जिसे फ्यूंली नाम दिया गया। इस फूल के खिलते ही पहाड़ फिर हरे होने लगे, नदियों में पानी फिर लबालब भर गया, पहाड़ की खुशहाली फ्यूंली के फूल के रूप में लौट आई। इसी फ्यूंली के फूल से द्वारपूजा करके लड़कियां फूलदेई में अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली की दुआ करती हैं।

कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फूलदेई त्यौहार मनाने के पीछे कहा जाता है कि शिव शीत काल में अपनी तपस्या में लीन थे,  ऋतु  परिवर्तन के कई बर्ष बीत गए लेकिन शिव की तंद्रा नहीं टूटी।  माँ पार्वती ही नहीं बल्कि नंदी शिव गण व संसार में कई बर्ष शिव के तंद्रालीन होने से बेमौसमी हो गये। आखिर माँ पार्वती ने ही युक्ति निकाली।  सर्वप्रथम फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया ।  फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए।   सबने अनुसरण किया और पुष्प सर्वप्रथम शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किये गए जिसे फुलदेई कहा गया।   साथ में सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आये महाराज । शिव की तंद्रा टूटी बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हुआ और वे भी प्रसन्न मन इस त्यौहार में शामिल हुए तब से पहाडो में फुलदेई पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा।

फूलदेई त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है और हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत  के लिए ही मनाया जाता है।इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं।पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सज जाता है और बसंत के इस मौसम में फ्योली, खुमानी, पुलम, आडू , बुरांश ,भिटोरे आदि  के फूल हर कहीं खिले हुए नजर आ जाते हैं।जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते हैं वही घर आंगन में लगे आडू, खुमानी के पेड़ों में सफेद व हल्के बैंगनी रंग के फूल खिले रहते हैं।फूलदेई त्यौहार में वैसे तो शाम को तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं  लेकिन चावल से बनने वाला  सई ( सैया) विशेष एक तौर से बनाया जाता है।चावल के आटे को दही में मिलाया जाता है।फिर उसको लोहे की कढ़ाई में घी डालकर पकने तक भूना जाता है।उसके बाद उसमें स्वादानुसार चीनी व मेवे  डाले जाते हैं यह अत्यंत स्वादिष्ट और विशेष तौर से इस दिन खाया जाने वाला व्यंजन है।

आज के दौर में त्यौहारों का स्वरूप धीरे या तो परिवर्तित हो रहा है या फ़िर वह केवल औपचारिकता मात्र रह गये हैं । फूलदेई में भी काफ़ी परिवर्तन आये हैं।  ऑनलाइन जिंदगी जीने वाली आज की युवा पीढ़ी  में अब वह पहले वाला उत्साह नहीं  रह गया है लेकिन  किसी भी रूप में सही फूलदेई का त्यौहार उत्तराखण्ड  में अभी भी "फूल देई, छम्मा देई" गाते सजे धजे बच्चों की टोलियां  कहीं न कहीं  दिखायी पड़ जाती हैं। फूलदेई जैसे त्यौहार एक ओर जहां हमारी वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी जिन्दा रखे हुये हैं,  वहीँ  हमारे बच्चों को प्रकृति के और निकट लाने में भी सहायक हैं।

Friday 3 March 2023

बजट से सबका दिल जीतने में कामयाब हुई शिवराज सरकार










मध्यप्रदेश विधानसभा में आज प्रदेश का वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया गया। शिवराज सरकार के द्वारा  पेश किये गए  बजट में प्रधानमंत्री मोदी के  'सबका साथ सबका विकास' की झलक साफ़ दिखाई दी  है।  ख़ास बात यह रही  इस अंतिम बजट में जनता पर कोई नया कर नहीं लगाया गया है। सरकार ने अपने अनेक लोक लुभावन वायदों से जनता का दिल जीतने की कोशिश की है।  महिलाओं से लेकर युवा , बुजुर्गों से लेकर दिव्यांगों, आदिवासियों  हर वर्ग  पर इस बजट में विशेष फोकस किया गया है।  शिवराज सरकार ने समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान  में रखकर अपना खजाना खोला  है।  सरकार द्वारा इस बजट में किये गए कई प्रावधानों का लाभ समाज के सभी वर्गों को होगा।  

देश के सकल घरेलू उत्पाद में  मध्यप्रदेश का योगदान 3.6 % से बढ़कर अब 4.8 % हो चुका है। वर्ष 2011-12 प्रति व्यक्ति आय 30 हजार 497 रुपये थी, अब 2022-23 में साढ़े तीन गुना तक बढ़कर एक लाख 40 हजार 585 रुपये हो गई है। मध्यप्रदेश का कुल बजट 3.14 लाख करोड़ रुपये का है, जो पिछले साल 2.79 लाख करोड़ रुपये का था। 55,709 करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा अनुमानित है।  वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बजट को प्रस्तुत करते हुए कहा प्रदेश में दस बरस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार कर्ज लेकर वेतन और भत्ते देती थी लेकिन सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट जनता की उम्मीदों का बजट  है।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में  सभी क्षेत्रों में आज प्रदेश का  चहुंमुखी  विकास  हो रहा है।  राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में मध्यप्रदेश का योगदान बीते 10 वर्षों में 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4. 8  प्रतिशत पहुँच गया  है।  प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2011 -12 में जहाँ 38 हजार 497 करोड़ थी वहीँ 2022 -23  में यह बढ़कर 1 लाख 40 हजार 583 हो गई है।
      
 इस बजट में  नारी शक्ति का  मान बढ़ाने में  सरकार कामयाब हुई है।  प्रदेश सरकार ने नारी शक्ति के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं प्रदेश में चलाई हैं जिसका  परिणाम आज  धरातल  पर दिखाई दे रहा है।  2015 -16 की तुलना में 2020 -21 में लिंगानुपात 927 से बढ़कर 956 हो चुका है।  लाड़ली लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश में अब तक 44 लाख से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं।  वर्ष 2007 से आरंभ लाड़ली लक्ष्मी योजना में अब तक 44 लाख 39 हजार से अधिक लाड़लियां लाभान्वित हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 929 करोड़ रुपये का प्रावधान प्रस्तावित है।  महिला स्वसहायता समूहों ने प्रदेश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है जिसे देखते हुए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 -24  में 660 करोड़ का प्रावधान किया है जो उनके सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा।  मध्यप्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी योजना  की  गूँज  प्रदेश से लेकर पूरे  देश तक सुनाई दी है।  इस योजना में अब तक  44 लाख 39 हजार से अधिक  बालिकाएं  लाभान्वित हुई हैं।  वित्तीय वर्ष 2023 -24 में लाड़ली लक्ष्मी के लिए 929  करोड़  प्रावधान इस बजट में किया गया है ।  विशेष पिछड़ी जनजातीय महिलाओं को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आहार अनुदान योजना  चलाई  जा  रही है जिसके  तहत इन महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1 हजार रु जमा करवाए जाते हैं।   इस बार इसमें 300  करोड़ का प्रावधान किया गया है।  मुख्यमंत्री लाड़ली योजना  की तर्ज पर अब प्रदेश की महिलाओं को प्रदेश  में मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की नई सौगात मिलने जा रही है जिसके तहत सभी पात्र महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 1  हजार रु की राशि जमा की जाएगी। 

मुख्यमंत्री बालिका स्कूटी  योजना का बड़ा ऐलान इस बार के बजट में किया गया है।  राज्य सरकार ने घोषणा की है कि अपने-अपने स्कूल में 12वीं में टॉप करने वाली छात्राओं को ई-स्कूटी दी जाएगी। छात्राओं  को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सुविधाओं का विकास करते हुए इस बजट में  प्रदेश के समस्त उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में पहला स्थान पाने वाली बालिकाओं को अब स्कूटी दी जाएगी।आहार अनुदान योजना के लिए 300 करोड़ रुपए का प्रावधान  बजट में  किया गया है।  इसके तहत बैगा, भारिया, सहरिया जनजाति की महिलाओं को 1 हजार रुपए महीना दिया जाएगा।   प्रसूति सहायता योजना में 400 करोड़ रु का प्रावधान किया है। इसी तरह कन्या विवाह एवं निकाह के लिए 80 करोड़ रुपए। मातृत्व वंदना योजना के लिए 467 करोड़ रुपये का बजट रखा  गया है। नई आबकारी नीति के जरिये नशे की लत को हतोत्साहित करने का फैसला किया गया है। ग्रामीण आजीविका मिशन  के लिए 660 करोड़ का प्रावधान किया गया है ।  नारी कल्याण के लिए 1 लाख 2976 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं।  सरकार ने  12  हजार नए  स्वसहायता समूहों का  गठन करने का ऐलान भी किया है।   महिला स्व-सहायता के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट का प्रावधान किया है।  कन्या विवाह योजना की प्रोत्साहन की राशि 51 से बढ़ाकर  55 हजार की गई है।  नारी कल्याण के लिए कुल 1 लाख 2976 करोड़ रुपये का बजट महिलाओं के सशक्तिकरण में कारगर साबित होगा।  

स्वरोजगार से लेकर कौशल विकास पर  सरकार ने इस बजट में जोर दिया है।  युवाओं के कौशल विकास के साथ उनके रोजगार और स्वरोजगार की दिशा में भी इस बजट में सरकार के द्वारा विशेष प्रयास किये  हैं।  सरकारी नौकरियों में 1 लाख नौकरियां देने का अभियान सरकार के द्वारा चलाया जा  रहा है।  मुख्यमंत्री उद्यम योजना , मुद्रा योजना और अन्य स्वरोजगार की योजनाओं से आज प्रदेश का युवा सशक्त हो रहा  है।  युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए 252 करोड़ रु की योजनाओं का प्रावधान किया गया है।  मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 1 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान इस बजट में हुआ है।  घुमंतू जातियों के रोजगार के लिए 252करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया गया है।  युवाओं को स्वावलंबी बनाना सरकार की  प्रमुख प्राथमिकता है । इसके तहत 1 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी जाएगी। रोजगार के लिए 200 युवाओं को जापान भेजा जायेगा ।  नई शिक्षा नीति के लिए  सरकार  ने इस बजट में 277 करोड़ रु का प्रावधान  किया है । एमबीबीएस सीट 2 हजार 55 से बढ़ाकर 3 हजार 605 की जाएंगी। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए 649 सीट्स बढ़कर 915 होंगी।नर्सिंग कॉलेज योजना से मेडिकल कॉलेज में 810 बीएससी नर्सिंग, 300 पोस्ट बेसिक नर्सिंग की एक्स्ट्रा सीट्स होंगी। 25 चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए 400 करोड़ रुपए का प्रावधान इस  में किया गया है ।  
 
पेंशन नियमों में  सरलीकरण पर इस बार के बजट में सरकार ने जोर दिया है। सरकारी कर्मचारियों को रिटायर होने के बाद उनके रिटायरमेंट लाभ जल्द से जल्द मिले, इसके लिए पेंशन नियमों का सरलीकरण किया जा रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के लिए परिवार की विवाहित पुत्री को भी पात्रता दी गई है। चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमों को सरल और मान्यता प्राप्त निजी चिकित्सालयों में आयुष्मान योजना की निर्धारित दरों पर इलाज की सुविधा दी गई है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों को देय भत्तों का सातवें वेतनमान के परिप्रेक्ष्य में पुनरीक्षण करने के लिए समिति गठित की गई है। 

नए सीएम राइज  से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति होगी।  प्रदेश में अब तक 370 सीएम राइज  स्कूल खुल चुके हैं।  9000 नए सीएम राइज स्कूल खोलने हेतु  सरकार ने इस बजट में प्रावधान किया है।  पीएम श्री योजना के  तहत सरकार ने  277 करोड़ रु का प्रावधान किया है।  प्रदेश में एमबीबीएस सीट 2055 से बढ़ाकर 3605 की जाएंगी।  विद्यालयों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 29 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है।  शिक्षा के लिए इस बजट में 5 हजार 532 करोड़ रु का प्रावधान किया गया है।  सीएम राइज स्कूल के लिए 3230 करोड़ रुपये का बजट सरकार ने पेश किया है ।
  
नर्मदा प्रगति पथ के साथ श्री देवी महालोक , रामराजा लोक , वनवासी राम लोक का विकास  होगा।  सरकार द्वारा पेश किये  गए बजट में नर्मदा प्रगति पथ निर्माण के लिए भी प्रावधान किया गया है।   प्रदेश में कुल 900 किमी लंबा नर्मदा प्रगति पथ बनाया जाएगा।  सलकनपुर के प्रसिद्ध देवी मंदिर में श्री देवी महालोक  का निर्माण होगा । सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को भी किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रु. का बजट  में प्रावधान किया गया है । सलकनपुर में श्रीदेवी महालोक, सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक, चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को डेवलप किया जाएगा। इसके लिए 358 करोड़ रुपए का  प्रावधान बजट में किया है।

खेल विभाग का बजट बढ़कर 738 करोड़ रुपये  पहुँच गया है।  सरकार ने खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के लिए खेल विभाग का बजट बढ़ाकर 738 करोड़ रुपये कर दिया है।  इसी के साथ प्रदेश में अब स्पॉर्ट्स टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात कही  है । भोपाल के नाथू बरखेड़ा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण और स्पोर्ट्स साइंस सेंटर की स्थापना की जाएगी। 

सरकार ने इस बजट में  भोपाल में संत शिरोमणि रविदास ग्लोबल स्किल पार्क बनाने का नया ऐलान किया है। इसमें हर साल 6 हजार लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी। ग्वालियर, जबलपुर, सागर और रीवा में भी स्किल सेंटर शुरू किए जाएंगे। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना का इस   बजट में   विस्तार हुआ है।  अब सरकार इस योजना के तहत तीर्थयात्रियों को हवाई जहाज से तीर्थ दर्शन कराएगी ।  मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन के के लिए 50 करोड़ रु स्वीकृत किये गए हैं । 

किसानों के कल्याण के लिए भी कई सौगातें सरकार ने दी हैं।  सरकार ने कृषि सम्बन्धी योजनाओं के लिए  कुल 53 हजार 964 करोड़ रु का बजट प्रस्तावित किया गया है। डिफॉल्टर किसानों का कर्ज सरकार ने भरने का बड़ा ऐलान इस बजट में किया है।  मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अन्तर्गत 3 हजार 200 करोड़ रु का प्रावधान इस बजट में किया गया है।  प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के साथ ही फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 11 हजार एकड़ में वैकल्पिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की बात हुई है।   प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत सुरक्षा कवच हेतु 2 हजार करोड़ रु की राशि सरकार प्रदान करेगी।।  मोटे अनाज के लिए 1000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।  11हजार एकड़ मे सुगंधित खेती को बढ़ावा  देने की भी बात हुई है।  सिंचाई परियोजना के लिए 11 हजार 50 करोड़ रुपये का बजट, किसानों को हर साल 10,000 की आर्थिक सहायता, सीएम किसान कल्याण योजना के लिए 3200 करोड़ रुपये का बजट किसानों के लिए सही मायनों में नई सौगातें लेकर आया  है।   मुख्यमंत्री गोसेवा योजना के अंतर्गत 3346 गोशाला का निर्माण स्वीकृत किया गया है।

आधारभूत अवसंरचना पर भी विशेष फोकस सरकार ने किया है।  सरकार द्वारा  प्रस्तुत किये गए  बजट में इंदौर, भोपाल में मेट्रो रेल के लिए 710 करोड़ रुपये का बजट   प्रस्तावित किया गया है।  इसी साल दोनों शहरों में मेट्रो का ट्रायल करने की योजना है। चुनावी दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है।  इंदौर-पीथमपुर इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी  विकास होगा होगा वहीँ 105 नए  रेलवे ब्रिज  भी इस बजट में प्रस्तावित हैं।  हवाई पट्टियों के विकास के लिए 80 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। प्रदेश में सड़कों और पुलों के लिए 56 हजार 256 करोड़ रुपए , नगरीय निकायों को 842 करोड़ रुपए, नगरीय विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपए और स्थानीय निकायों को 3 हजार 83 करोड़ रुपए के साथ ही नगरीय  विकास के लिए 14 हजार 82 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया है। सड़क और पुलों के निर्माण के लिए 2023 -24 में 10  हजार 182 करोड़ का प्रावधान किया गया है।  

इस प्रकार शिवराज सरकार द्वारा  पेश किये गए बजट में समाज के सभी वर्गों के हित  में घोषणाएं की गयी हैं।  प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत  ये बजट समाज  के सभी  वर्गों के लिए लाभकारी और कल्याणकारी  है।