राजधानी दिल्ली और एन सी आर के तमाम हिस्सों में धुंध की चादर ने बीते बरस की दिवाली के दौर की यादों को ताजा कर दिया | दिल्ली एन सी आर के सभी इलाकों में लोगों का घरों से निकलना मुश्किल हो गया क्योंकि प्रदूषण ने इस बार सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं । जिधर देखो वहां धुंध की चादर दिखाई दे रही है । आँखों से पानी आ रहा है तो खांसी ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है । लोगों को अपने काम पर जाने में दिक्कतों से दो चार होना पड़ रहा है वहीँ यह प्रदूषण का खतरनाक स्तर छोटे बच्चों के लिए घातक है | वैज्ञानिको का साफ़ मानना है कि दिल्ली की आबो हवा में इतना जहर घुल गया है कि अब यहाँ जीना मुश्किल होता जाएगा और जहरीले प्रदूषण की गिरफ्त आने वाला हर इंसान सांस , हार्ट की कई बीमारियों का शिकार हो जायेगा ।अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तस्वीरों में भी उत्तर भारत के वायुमंडल में आग जनित धुंए की मौजूदगी को दर्शाया है | दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में हवा की गति थमने के कारण वायुमंडल में मौजूद प्रदूषक तत्वों पीएम 2.5 और पीएम 10 धुंध की शक्ल में जमा हो गये हैं जिसकी वजह से न सिर्फ हवा में घुटन बढ़ गयी है बल्कि यातायात सहित सामान्य जनजीवन भी प्रभावित हुआ है | हवा की गुणवता बताने वाला सूचकांक हर दिन गंभीर कुलांचे मार रहा है |
हाल कितने बुरे हैं इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण मापने का जो पैमाना बनाया है पी एम 2.5 का स्तर प्रतिघन मीटर 10 माइक्रो ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में यह 400 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) और पीएम 10 का स्तर 500 एमजीसीएम रिकॉर्ड हुआ जो कहीं न कहीं हमारे लिए खतरे की घंटी है । उत्तम नगर वेस्ट से लेकर द्वारका और पीतमपुरा से लेकर इंद्रलोक हर जगह कमोवेश एक जैसे हालात हैं । विजिबिलिटी कम है और सफ़ेद धुंध की चादर ने दिल्ली एन सी आर को अपने आगोश में ले लिया है । दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार राजधानी दिल्ली में पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है । कई स्थानों में पीएम 2.5 का स्तर सामान्य से नौ गुना अधिक तो पीएम 10 का स्तर सामान्य से सात गुना अधिक पार कर गया है । दिनों दिन दिल्ली के इलाकों में प्रदूषण के स्तर में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है । पी एम 2.5 हवा में किसी भी प्रकार के पदार्थ को जलाने से निकलने वाले धुंए से आता हैं। वाहनों के इंजन में पेट्रोल और डीजल के जलने से धुआं निकलता हैं, और इस धुंए में विभिन्न प्रकार के प्रदूषक होते हैं, जिनमें पी एम 2.5 भी एक होता हैं। लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, केरोसिन तथा कचरा जलाने, फैक्टरी, सिगरेट से निकलने वाला धुंए में पी एम 2.5 की तादात अत्यधिक होती हैं। पी एम 2.5 कई प्रकार से हमारे स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। छींक, खांसी, आंखों, नाक, गले और फेफड़ों में होने वाली जलन का कारण पी एम 2.5 भी हो सकता हैं। लंबे समय तक पी एम 2.5 की अधिकता वाली प्रदूषित हवा मे रहने से अस्थमा, फेफड़ों तथा हृदय संबंधी बीमारी होने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है और यही बीमारिया बाद में मौत का कारण बनती है। पी एम 2.5 से होने वाली बीमारी का खतरा बूढ़े और बच्चो में अत्यधिक होती है
भारत में शहरों में रहने वालों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। वाहनों, फैक्टरी तथा कचरा जलाने से निकलने वाला धुआँ शहरों में पी एम 2.5 का मुख्य स्रोत होता हैं। आज विश्व के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में भारत के 10 से अधिक शहर आते हैं। देश के ज़्यादातर शहरो मे पी एम 2.5 का स्तर सरकार द्वारा निर्धारित किए गए मानको से कहीं अधिक है। पी एम 2.5 हमारी आस पास की हवा में घुला एक ऐसा अदृश्य जहर हैं, जो प्रति वर्ष विश्व के लगभग 80 लाख लोगो की मौत का कारण बनता हैं। हिंदुस्तान में हर वर्ष लगभग 8 00,000 लोग सिर्फ पी एम 2.5 से होने वाली बीमारियो के कारण मारे जाते हैं। देश मे सबसे ज्यादा मौते सांस और हाई ब्लड प्रेशर के कारण होती हैं, तथा घर के अंदर खाना पकाने के लिए लकडियो, गोबर के उपले, व केरोसिन से निकलने वाले धुंए से उत्पन्न पी एम 2.5 मौत दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं। सिगरेट पीना और खाने मे पोषक तत्वों की कमी देश मे होने वाली मौतों का तीसरा व चौथा सबसे बढ़ा कारण हैं। पाँचवा बढ़ा कारण बाहर की हवा में उपस्थित पी एम 2.5 हैं जो गाड़ियों, फैक्टरी और कचरा जलाने से निकलने वाले धुंए से आता हैं।
दशकों से यह बात देखने में आ रही है कि दिल्ली की आबोहवा की फ़िक्र सरकारों और नीति नियंताओं को नहीं है । प्रदूषण को लेकर आज एक जनांदोलन की ज़रूरत है जिसकी शुरुवात आम आदमी से होनी चाहिए । दिल्ली में डीजल से चलने वाले वाहनों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है । सार्वजनिक परिवहन यहाँ पर दूर की गोटी है । साल दर साल वाहनों की संख्या यहाँ पर बढती जा रही है । एक ख़ास बात यह है आज के समय में कारें हमारे देश में स्टेटस सिंबल की तरह हो गई हैं | एक परिवार में अगर 5 सदस्य हैं तो सबके अपने अपने वाहन हैं जिससे वो आते जाते हैं । निजी वाहनों की संख्या यहाँ 80 लाख से भी ज्यादा हो चली है जो दिल्ली की साँसों में जहर घोल रही है । कई साल पुराने डीजल से चलने वाले वाहन दिल्ली की फिजा में फर्राटा भर रहे हैं जो सबसे अधिक प्रदूषण का कहर बरपा रहे हैं । चाइना और जापान जैसे देशों में पी एम 2. 5 अगर सामान्य स्तर को पार कर जाता है तो वहां की सरकारें जनता के स्वास्थ्य के प्रति संजीदा हो जाती हैं और कड़े फैसले लेती हैं । चीन में कार्बन उत्सर्जन का मुख्य कारक कोयला रहा इसलिए उसने साल 2017 तक कोयले के इस्तेमाल में 70 प्रतिशत तक कटौती करने का लक्ष्य रखा है और उसने बीते एक साल में ही यह निर्भरता काफी कम कर दी है। चीन में अब ऊर्जा की जरूरतों को बिजली और गैर-जीवाश्म ईंधनों से पूरा करने की कोशिश की जा रही है। चीन में हैवी इंडस्ट्री को बंद किया जा रहा जो कोयले पर आधारित हैं। साथ ही चीन ने 2020 तक कोयला मुक्त होने का लक्ष्य बनाया है । चीनी सरकार ने जब यह देखा कि बीजिंग और उसके बाकी बड़े शहरों का दम घुटने लगा है तो उसने ऑनलाइन एयर रिपोर्टिंग की व्यवस्था शुरू की। चीन में अब 1500 साइट्स से पल्यूशन के रियल टाइम आंकड़े हर घंटे जारी किए जाते हैं। चीनी सरकार भी नियमित तौर पर शहरों की एयर क्वॉलिटी की रैंकिंग जारी करती है। साथ ही लोगों को भी समय-समय पर ये डाटा चेक करते रहने की सलाह जारी की जाती है। 2015 में चीन में पर्यावरण प्रोटेक्शन कानून सख्ती से लागू हैं। चीन में ये कानून अब इतना कड़ा है कि प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों पर जुर्माने करने की कोई सीमा नहीं रखी गई है। कई बड़ी कंपनियों पर जुर्माना भी लगाया गया है । गैर-लाभकारी संगठन प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ जनहित मुकद्दमे दायर कर सकते हैं। स्थानीय सरकारों पर भी इन कानूनों को सख्ती से लागू कराने का दायित्व है। चीन ने 2017 तक ऐसी सभी गाड़ियों को सड़क से बाहर करने का लक्ष्य रखा है जो साल 2005 तक रजिस्टर्ड हुई हैं। जापान में भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत किया गया है तो अटलांटा में प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही एक खास तरह का अलार्म बजता है, जिसके बाद लोग तत्काल अपने वाहन खड़े कर देते हैं। वह सभी वाहन दुबारा तभी चलते हैं जब प्रदूषण का स्तर तयशुदा मानकों के मुताबिक हो जाए।ये सभी देश ट्रैफिक जाम से पूरी तरह से मुक्त हैं और क्लोरो फ्लूरो कार्बन का उत्सर्जन कम करने में अपना जोर लगा रहे हैं ।जबकि हमारे देश की बात करें तो यहाँ सरकारों का पूरा जोर इवन आड लागू करने में है | प्रदूषण से लड़ने की इच्छा शक्ति तो हमारे देश में है ही नहीं | यह तो वही बात हुई चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात |
चीन सरकार ने आने वाले 5 सालों में पेइचिंग, शंघाई और बीजिंग जैस शहरों में गाड़ियों की संख्या को निश्चित कर बड़ी कटौती करने की योजना बनाई हुई है लेकिन भारत में क्या होता है यह हम सब जानते हैं । केंद्र और राज्य सरकारें आपसी कलह में उलझी रहती हैं और अदालती फटकार का इंतजार करती हैं । पटाखे फूटने चाहिए या नहीं ? इवन आड लागू हो की नहीं इसमें भी अदालतों के आदेश का इन्तजार हमें करना पड़ता है | नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल समय-समय पर प्रदूषण की हालत को लेकर बीते कई बरसों में चिन्ता प्रकट करता रहता है लेकिन इसके नियंत्रण को लेकर एनजीटी के आदेश को दिल्ली और देश के दूसरे राज्य टाल-मटोल रवैया अपनाते हैं जिससे प्रदूषण की समस्या का समाधान दूर की कौड़ी बनता जाता है । असल में अंधाधुंध विकास को लेकर हमने बीते कई बरसों में बहुत तेजी दिखाई है । दिल्ली में बड़े बड़े फ्लाईओवर बनाये गए हैं तो मालों का नया कल्चर देखने में आया है । फैक्ट्रिया शहरी आबादी वाले इलाकों में जहर घोलने का काम कर रही हैं । दिल्ली की सीमा में हर राज्य के भारी वाहन और ट्रक सामान ढो रहे हैं जिनसे कई गुना प्रदूषण बढ़ रहा है । गुड़गाँव, फरीदाबाद, नोएडा सरीखे शहर भी आज सुरक्षित नहीं हैं । यहाँ पर प्रदूषण का लेवल सबसे अधिक हो चला है क्युकि बीते कई दशको में यहाँ विकास ने कुलांचे सबसे अधिक मारे हैं और जमीनों का अधिग्रहण सबसे अधिक यही हुआ है और चमचमाते विकास ने यहीं सबसे तेज फर्राटा भरा है । हरियाली खत्म हो चली है तो कंक्रीट का जंगल यहीं बना है । दिल्ली में तो रियल स्टेट का धंधा ऐसा चला है कि हर सोसायटी में ब्रोकरो की बाढ़ आ गई और बिल्डर और राजनेताओं के नेक्सस ने ऐसी लूट मचाई कि पर्यावरण की तो मानो धज्जियाँ ही उड़ गई । चार्वाक दर्शन की तरह महानगर भी अब खाओ पियो और मौज करो में यकीन रख रहे हैं । रही सही कसर उन उद्योगों ने पूरी कर दी जिनसे निकलने वाले कचरे ने आम आदमी के सामने बीमारियों की बाढ़ लगा दी है ।
हाल के समय में दिल्ली एन सी आर की आबोहवा खाराब होने के पीछे कारण यही बताया यही जा रहा है कि यह सब पटाखो के शोर और हरियाणा , राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में किसानों के पराली जलाने के चलते हुआ है । दिवाली पर यह सबको पता है कि पटाखों के शोर से वायुमंडल प्रदूषित होता है तो कोर्ट के आदेश के बाद भी ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे पटाखे कम छुडाये जा सके । साथ ही दिल्ली के पड़ोसी राज्यो को ऐसा कुछ करना था जिससे पराली के जलाने पर सख्ती लग सके । हमारी सबसे बड़ी कमी यही है जब पानी सर से ऊपर बहता है तब हम जागते हैं । सडकों पर वाहनों के बोझ को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने अब कुछ दिन के लिए इवन आड स्कीम को लागू करने का फैसला किया है लेकिन इससे प्रदुषण की समस्या का निवारण तो नहीं हो सकता | रात में दिल्ली की सीमा में घुसने वाले ट्रको के कारण दिल्ली की आबोहवा सबसे अधिक विकृत हो जाती है । दिन में तो मामला ठीक रहता है लेकिन रात में प्रदूषण का स्तर दिन के स्तर से कई गुना ज्यादा हो जाता है | केजरीवाल सरकार भले ही इस मसले पर अपनी पीठ थपथपाये ;लेकिन प्रदुषण रोकने के लिए यह योजना भी उतनी कारगर नहीं रही जितना आम आदमी पार्टी ने इसे प्रचारित कर दुनिया में लोकप्रियता बटोरी । इवन आड के बजाये अब सरकार को सार्वजनिक परिवहन दुरुस्त करने पर जोर देना चाहिए । डीजल के वाहनों पर रोक लगनी भी जरूरी है ।साथ ही मेट्रो के फेरे बढ़ाने और किराया घटाए जाने की जरूरत है जिससे आम आदमी भी सुरक्षित सफर कर सके ।
यूरोप में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिये मुफ्त सेवाएँ मुहैया कराई जा रही हैं। भारत को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। हैरत की बात यह है कि प्रदूषण को लेकर सरकारों को कोर्ट ने बीते कई बरसों से आगाह किया है लेकिन इसके बाद भी उनसे हालात नहीं सँभलते ।वायु प्रदूषण से जुडी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के सबसे अधिक 20 प्रदूषित शहरों में 13 शहर भारत के है जिनमे दिल्ली के साथ इलाहाबाद , पटना ,कानपुर , रायपुर सरीखे शहर भी शामिल है जहाँ हाल के बरसों में चमचमाती अट्टालिकाओं को विकास का अत्याधुनिक पैमाना मान लिया गया है । यूनिसेफ की हाल की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 30 करोड़ बच्चे यानि 7 में एक बच्चा सांस लेने की बीमारी से ग्रस्त है । अब तक पांच साल से कम उम्र के तकरीबन 63 करोड़ बच्चो की मौत वायु प्रदूषण से हो चुकी है जिनमे से अधिकतर मामले उत्तर भारतीयों से जुड़े पाए गये हैं । राजधानी दिल्ली में हुआ हालिया एक सर्वे यह बताता है कि दिल्ली में हर तीसरे व्यक्ति का फेफड़ा खराब हो चुका है ।
भारत में वायु प्रदूषण आज मौत का बड़ा कारण भी बन गया है । दरअसल हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं और हमने अभी भी नहीं चेते तो हमारा भविष्य भयावह होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किये गए आकड़ों के मुताबिक प्रदूषण के कारण भारत में 1.4 मिलियन लोगों की असामयिक मृत्यु हो रही है। यानी हर 23 सेकंड में वायु प्रदूषण के कारण एक जान चली जाती है। जिस ईंधन का प्रयोग आज हम करते हैं, वह भी वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। फ़िलहाल प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ ईंधन प्रदूषण कम करने का एकमात्र विकल्प है। जिन ईंधनों का प्रयोग आज हम करते हैं वह वातावरण में भारी मात्रा में कार्बन डाइआॅक्साइड, सल्फर डाइआॅक्साइड, नाइट्रोजन आॅक्साइड का उत्सर्जन करते हैं जो हवा को बुरी तरह से प्रदूषित करते हैं। हम ईंधनों के प्रयोग को बंद नहीं कर सकते क्योंकि उद्योगों का एक बड़ा हिस्सा इन पर ही चल रहा है लेकिन हम निश्चित तौर पर उनके प्रयोग को बदलकर हम जीवाश्म ईंधन की दिशा मजबूती के साथ बढ़ सकते हैं जो काफी सस्ता है और फेफड़ों के लिए भी नुकसानदेह नहीं हैं। यदि प्रदूषण को यहीं पर नहीं रोका गया तो राजधानी दिल्ली की तरह कई शहरों का हाल बुरा होगा । नासा की हाल में जारी तस्वीरें दिल्ली में प्रदूषण की पोल खोल रही है ।
दिल्ली की हवा में जहर कैसे कम हो आज काम इस पर जरूरत है । आज देश में लाखो कारें प्रतिमाह बिक रही हैं । हर घर में वाहनों का रेला देखा जा सकता है । सरकारों को आज सार्वजनिक परिवहन को दुरुस्त करने की जरूरत है । दिल्ली एन सी आर की बात करें तो यहाँ पर सरकार को डीजल से चलने वाली गाड़ियों और ट्रको पर अंकुश लगाने की दिशा में बढ़ना चाहिए । उद्योगों के साथ बड़ी प्रदूषण की वजह यही है । लोगो को अपने वाहनों के सुख के बजाय मेट्रो या फिर सी एन जी बसों का प्रयोग करने पर जोर देना चाहिए । सरकारों को चाहिए राजधानी की सडको पर वह वाहनों के भारी बोझ को कम करने की दिशा में कोई कठोर एक्शन प्लान बनाये । अगर अनियंत्रित वाहनों की रफ़्तार उसने थाम ली तो ट्रैफिक जाम से मुक्ति मिल जायेगी और प्रदूषण के खिलाफ यह पहला कदम होगा जिसमे जनभागीदारी की मिसाल देखने को मिलेगी । अकेले कोई सरकार प्रदूषण पर काबू नही पा सकती । इसके लिये सरकार के साथ-साथ लोगों को भी सामने आगे आना होगा । पर्यावरण को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते क्युकि मानव जीवन की बुनियाद पर्यावरण पर ही टिकी है । अगर प्रकृति की अनदेखी होती रही तो मानव सभ्यता का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है ।