Friday, 13 May 2022
लाड़ली लक्ष्मी के जरिए बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे मुख्यमंत्री शिवराज
Monday, 2 May 2022
पर्यावरण प्रेमी मुख्यमंत्री शिवराज !
उनकी आत्मा नर्मदा में बसती है । वृक्षारोपण के अपने कार्यों के साथ ही वह पूरे प्रदेश को हरियाली से आच्छादित कर देना चाहते हैं। जनसरोकारों के विचार पथ पर चलते हुए वह प्रकृति को भी अपना अनुपम उपहार मानते हैं। अपने पर्यावरण संरक्षण के नए मिशन पर चलते हुए वो पर्यावरण को बचाने का संकल्प लिए प्रतिदिन नई ऊर्जा से सरोबार रहते हुए जन -जन को इस अभियान से जोड़ने का काम कुशलता के साथ करते नजर आते हैं । पेड़ों की जिस अंदाज में आज कटाई हो रही है और वनों की संख्या में गिरावट आ रही है उसने मनुष्य के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है क्योंकि अगर पर्यावरण रहेगा तभी मनुष्य का अस्तित्व बचा रहेगा इसे आज भी लोग नहीं समझ पा रहे हैं । जिस तेजी से आज के दौर में पेड़ काटे जा रहे हैं उसी अनुपात में लगाए नहीं जा रहे जो बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। वृक्षारोपण जैसे कार्यक्रमों पर आज के दौर में किसी भी सरकार की नजर नहीं गई शायद आज हम उन परम्पराओं को भी भूल चुके हैं जिसमें नदी को प्रणाम करना सिखाया जाता है। सही मायनों में पर्यावरण को बचाने के उपाय तो इन्हीं रीति रिवाजों में छिपे हुए हैं जिसके सन्देश को भी हम अब तक समझ पाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं ।
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के जनहितैषी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की, जिनकी जनसरोकारों की साधारणता में असाधारणता छिपी हुई है। सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण को अपनी प्राथमिकता बताते हुए जनता के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना हर दिन पर्यावरण को समर्पित कर पूरे देश में नई मिसाल कायम की है । उनका पेड़ -पौंधे लगाने का प्रेम दिन -ब - दिन बढ़ता ही जा रहा है। असल में विकास का सपना दिखाकर जिस तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन देश में किया जा रहा है वो किसी भी सरकार के ऐजेंडे में नहीं है लेकिन प्रदेश के जनप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपनी अभिनव पहल के माध्यम से पूरे देश में मध्य प्रदेश का नाम गर्व से ऊँचा किया है । बीते बरस में अमरकंटक में साल भर कम से कम एक पौधा प्रतिदिन रोकने के संकल्प के साथ ही शिवराज सिंह चौहान के नाम के साथ पर्यावरण प्रेमी मुख्यमंत्री का तमगा भी जुड़ गया । 19 फरवरी 2021 को नर्मदा जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर अमरकंटक में एक साल तक प्रतिदिन वृक्षारोपण करने का संकल्प अभियान चलाया था जो आज भी अनरवत रूप से जारी है। नर्मदा जयंती के अवसर पर अमरकंटक के शंभुधारा क्षेत्र में रूदाक्ष और साल का पौधा लगाकर प्रतिदिन एक पौधा लगाने की शुरूआत मुख्यमंत्री के कर कमलों से शुरू हुई थी। उन्होंने वृक्षरोपण को उस समय पवित्र कार्य बताया था और सभी नागरिकों को पर्यावरण-संरक्षण के साथ उनकी सुरक्षा करने का आह्वान भी किया था । जनभागीदारी के माध्यम से उन्होनें आम आदमी से भी पेड़ों की सुरक्षा करने की अपील की थी।
पर्यावरण-संरक्षण के लिए समर्पित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सवा साल की लम्बी अवधि के दौरान कोई भी दिन अब तक ऐसा नहीं रहा है जब वे पेड़ लगाना भूल गए हों । अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालते हुए मुख्यमंत्री अपने इस अनूठे अभियान में तमाम पर्यावरण प्रेमी, सामाजिक संस्थाओं और स्वयंसेवियों को भी मुहिम में साधते हैं इसी बड़ी बात क्या हो सकती है। मुख्यमंत्री चौहान की पर्यावरण को लेकर की गयी इस अभिनव पहल से प्रदेश की जनता में भी पर्यावरण को लेकर एक नई जागरूकता पैदा हुई है । खुद मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का मानना है हर नागरिक प्रतिदिन नहीं तो माह में एक और अपने मांगलिक कार्यक्रमों के अवसर पर एक पौधा अवश्य लगाये जिसके माध्यम से हम आने वाली पीढ़ी को एक बड़ी सौगात दे सकते हैं। उनका ये भी कहना रहा है कि पिछले वर्ष कोरोना काल में हमने जो परेशानियाँ झेली हैं, उसमें ऑक्सीजन की कमी भी एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। पेड़-पौधे हमें न सिर्फ नि:शुल्क प्राकृतिक ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से भी बचाते हैं।
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण के प्रति मुख्यमंत्री चौहान शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं। मध्यप्रदेश की जीवनवाहिनी नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए नमामि देवी नर्मदे यात्रा कर उन्होंने न केवल नर्मदा जल को स्वच्छ बनाए रखने में अपना बड़ा योगदान दिया है बल्कि नर्मदा मैया के दोनों तटों पर वृक्षारोपण कर प्रकृति के लिए व्यापक जन-भागीदारी भी जुटाई। उनकी नर्मदा यात्रा से विकास के साथ जलवायु परिवर्तन में समाज को सरकार के साथ खड़ा करने में सफलता मिली है। साथ ही कई जिलों में जन-भागीदारी से पौध-रोपण कर हरियाली को बढ़ाया गया है। मुख्यमंत्री की पहल पर पर्यावरण के क्षेत्र में जन-भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए प्रदेशव्यापी "अंकुर अभियान" का शुभारम्भ भी किया गया है जिसके माध्यम से 4 लाख से अधिक लोगों ने ऑनलाइन पंजीयन कराकर 67 हजार पौधे रोपे हैं। कार्यक्रम में 10 लाख 19 हजार पौध-रोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह अभियान जन-भागीदारी के साथ आज भी सतत रूप के साथ जारी है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भी हरियाली को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री ने पौध-रोपण की योजना बनाई है जिसकी मिसाल अब तक देखने को नहीं मिली है । नगरीय निकाय द्वारा नये घरों के निर्माण की अनुमति देते समय आवास परिसर में वृक्षारोपण की शर्त रखी गई है। इसी प्रकार ग्रामीणों को भी हर दिन वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते प्रदेश आज एक एक खास मुकाम पर पहुँच गया है। 2017 में एक दिन में करोड़ों पौधे रोकने का विश्व रिकॉर्ड भी शिवराज सिंह चौहान के नाम दर्ज है। शिवराज सिंह चौहान के प्रतिदिन अपने वृक्षारोपण कार्यक्रम में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऐसे वृक्ष लगाए जाए जिन्हें अधिक पानी व देखरेख की आवश्यकता हो। मध्य प्रदेश की सरकार हर दिन आम लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित कर रही है। पंचायत और स्कूल भवनों में वृक्षारोपण सहित अपने पूर्वजों की स्मृति में वृक्ष लगाने का अभियान भी शिवराज सिंह चौहान की देन ही है। इस वृक्षारोपण अभियान से प्रदेश के हर नागरिक में भी प्रकृति को लेकर प्रेम करने का भाव मन में जगा है। मध्य प्रदेश के मुखिया की प्रदेश की जनता से वृक्षारोपण के लिए की गयी ये अपील आमजन को इस अभियान से जुड़ने के लिए हर दिन प्रेरित कर रही है जिसके प्रदेश में सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं । चिलचिलाती धूप और हीट वेव की तमाम आशंकाओं के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के माथे पर किसी तरह की कोई शिकन नहीं दिखती। वह एक तरफ जहाँ लोगों से दो पेड़ लगाने की बात कहते हैं वहीँ खुद भी पेड़ लगाने से पीछे नहीं रहते हैं। मुख्यमंत्री के पर्यावरण के प्रति जज्बे को इस बात से समझ सकते हैं बीते सवा साल में 445 पेड़ वह खुद लगा चुके हैं। उनकी ऐसी जिजीविषा को देखकर हर किसी को उन पर रश्क ही हो जाये। मुख्यमंत्री शिवराज आज प्रदेश के अन्य नेताओं के बीच भी एक रोल मॉडल के रूप में लोकप्रिय हुए हैं जिनकी पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन की चेतना आम जान में नई स्फूर्ति का संचार कर रही है।
आंचलिकता और क्षेत्रीयता की महक मध्य प्रदेश की माटी में महसूस की जा सकती है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं मध्यप्रदेश को शिवराज सिंह चौहान ने एकता के सूत्र में पिरोने का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है । उन्होंने यहां के नागरिकों में एक ऐसा भाव पैदा किया जिसके चलते न उनमें अपनी माटी के प्रति प्रेम पैदा हुआ बल्कि उनमें इस जमीन पर वृक्षारोपण करने की अनूठी ललक भी जगी है। इस मामले में शिवराज एक आशावादी विकासवादी और पर्यावरणप्रेमी राजनेता के रूप में सामने आते हैं। पर्यावरण को लेकर मुख्यमंत्री चौहान के संकल्पों से प्रदेश में एक नई चेतना और स्फूर्ति का संचार हुआ है । आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश के अपने नव संकल्पों के साथ अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश को हरियाली से भर देना चाहते हैं। शिवराज की नर्मदा नदी की सेवा यात्रा की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। इस यात्रा के माध्यम से जहाँ नदियों के संरक्षण की दिशा में कदम बढे हैं वहीँ आम आदमी की भागीदारी से यह जनांदोलन का रूप ले सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज जनता के बीच रहने वाले और जनता की भावनाओं से खुद को सीधे कनेक्ट करने वाले जननेता हैं। सूबे का मुखिया अगर संवेदनशील है और जनता के बीच कार्य करने की ललक उसमें हर पल है तो वह जनता के हर दर्द में सहभागी हो सकता है। वह इस बात को बखूबी समझते हैं कोई भी बड़ा अभियान जनता के सहयोग से सफल नहीं हो सकता। उनका यह भी कहना रहा है कि पिछले वर्ष कोरोना काल में हमने जो परेशानियाँ झेली हैं, उसमें ऑक्सीजन की कमी भी एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। पेड़-पौधे हमें न सिर्फ नि:शुल्क प्राकृतिक ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से भी बचाते हैं।
भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों की पूजा की परंपरा सदियों पुरानी रही है। हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी वृक्षों की महिमा का वर्णन मिलता है। वृक्षों की पूजा और प्रार्थना के नियम बनाए गए है। औषधय: शांति वनस्पतय: शांति: जैसे वैदिक मंत्रों से वृक्षों और वनस्पतियों की पूजा की जाती है। प्राचीन आयुर्वेद विज्ञान प्रकृति की इसी देन पर आधारित है। हमारे ऋषियों द्वारा वन में रहते हुए धर्मग्रंथों की रचना करने का यही कारण है कि वहां का शांत और सुरम्य वातावरण उनके अनुकूल था, जो उनके मन को एकाग्र रखने में सहायक होता था। भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है और यूँ ही इस संस्कृति में पेड़ पौधों को विशेष महत्व देते हुए देवों का दर्जा दिया गया है। भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है और इस संस्कृति में पेड़ पौधों को विशेष महत्व देते हुए उसे देवों का दर्जा दिया गया है। इसीलिये पेड़ पौधों की पूजा भी भारतीयों द्वारा की जाती है। पौधों को जीवन रक्षक समझा जाता है क्योंकि ये ऑक्सीजन प्रदान करते हैं व कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को सोखते हैं ।
नर्मदा परिक्रमा यात्रा के समापन के अवसर पर सीहोर में बीते दिनों मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा नर्मदा के डूब क्षेत्र में जहाँ यूकिलिप्टस के पेड़ लगे होंगे उन्हें हटाना होगा क्योंकि ये पानी को लगातार अवशोषित कर उसे बंजर बना देते हैं । मुख्यमंत्री चौहान ने कहा साल के पेड़ अधिक से अधिक इस क्षेत्र में लगाए जायेंगे क्योंकि ये अपनी जड़ों से पानी छोड़ते हैं जो छोटी धाराओं के रूप में नर्मदा में मिलता है जो इसकी धार को अविरल बनाता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मानते हैं कोई भी सरकार अकेले पर्यावरण और नदियों का संरक्षण नहीं कर सकती। इसके लिए समाज को आगे आना होगा। नर्मदा के संरक्षण के लिए उन्होनें मैकाल पर्वत पर नए निर्माण पर रोक लगाने की बात कहते हुए एक नई लकीर खींचने की कोशिश की है जिसके आने वाले समय में सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। आज़ादी के अमृत महोत्सव के खास मौके पर शिवराज सरकार ने नर्मदा के किनारे अधिकाधिक जल सरोवर बनाने का फैसला किया है जिससे नदी के भू जल स्तर को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक खूबी ये भी है वे न सिर्फ वृक्षारोपण कर रहे हैं, बल्कि पेड़ -पौंधों की देख-रेख भी करते हैं। सूबे के मुखिया का इस प्रकार प्रतिदिन पौधा रोपने का संकल्प प्रदेशवासियों के लिए पर्यावरण-सरंक्षण की दिशा में नवाचार का एक संदेश है । ऐसे दृश्य भारतीय राजनीति में कम से कम दुर्लभ हैं।
Wednesday, 27 April 2022
मध्य प्रदेश में नई ऊँचाइयों पर शिवराज का नायकत्व
Wednesday, 20 April 2022
'बुलडोजर' के सहारे माफियाओं को नेस्तनाबूद करने में जुटे शिवराज
मध्य प्रदेश शिवराज सिंह चौहान के कुशल और प्रभावी नेतृत्व में प्रदेश सुशासन के संकल्प के साथ निरंतर नए आयाम गढ़ रहा है। कानून व्यवस्था सुदृढ़ करने के साथ ही अपनी जनकल्याण की योजनाओं के द्वारा आम आदमी के जीवन को बदलना सरकार की प्रमुख प्राथमिकता है।
Sunday, 13 March 2022
उत्तराखंड में खिला कमल , पुष्कर सिंह धामी ही होंगे नए सीएम
हार के बाद भी पुष्कर सिंह धामी भाजपा के लिए जरूरी
2022 का उत्तराखंड विधानसभा भाजपा के लिए शुभ साबित हुआ है । पहाड़ से लेकर मैदान तक चले मोदी मैजिक ने यहाँ उसकी फिर से एक बार सरकार बना दी है । राज्य गठन के बाद से ही इस राज्य में हर पांच साल में सत्ता बदलती रही है लेकिन इस बार ये परंपरा टूट गई है । सूबे के विधान सभा चुनावों में स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों का असर साफ़ दिखाई दिया ।पहाड़ में मोदी की प्रचंड आंधी जहाँ चली है वहीँ मैदानी इलाकों में महंगाई और किसान आन्दोलन जैसे मुद्दों ने अपना आंशिक असर दिखाया है । प्रदेश में एक बार फिर भाजपा अपनी वापसी कर रही है लेकिन भाजपा के जहाज के असली सेनापति पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हैं । धामी को कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी के हाथों पराजय का मुंह देखना पड़ा है ।
सिटिंग
सी एम के कुर्सी बचाने का मिथक नहीं टूटा
मुख्यमंत्री
पुष्कर धामी सिटिंग सी एम के कुर्सी बचाने के मिथक को नहीं तोड़ पाए । पहले बी सी खंडूडी फिर हरीश रावत और अब पुष्कर
सिंह धामी मुख्यमंत्री की कुर्सी में रहते हुए चुनाव हार गए । पुष्कर ऐसे तीसरे
मुख्यमंत्री हैं जो कुर्सी में रहते हुए चुनाव हारे हैं । इससे पहले भाजपा ने 2012 में खंडूडी हैं जरूरी के नारों के साथ
चुनाव लड़ा। उन्होनें भी भाजपा को जीत के करीब पहुँचाया लेकिन खुद कोटद्वार सीट
बचाने में कामयाब नहीं हो पाए । इसी तरह 2017
में हरीश रावत की अगुवाई में कांग्रेस ने अपना चुनाव लड़ा और वह दो सीट से चुनाव
लड़े लेकिन दोनों सीटों से उनको पराजय का सामना करने पर मजबूर होना पड़ा । अब इस बार
भी भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी के नाम के साथ चुनाव लड़ा और कम समय में उनके
द्वारा किये गए कामों को अपना आधार बनाया जिसमें वह पूरी तरह से सफल भी हुई लेकिन उसके सिटिंग सीएम को खटीमा से हार का
मुंह देखना पड़ा । 2017 के चुनावों में भाजपा प्रचंड बहुमत से
चुनाव जीतकर आई थी । तब त्रिवेन्द्र सिंह
रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन अपने कार्यकाल से पहले ही उन्हें पार्टी
ने चलता किया जिसके बाद 10 मार्च 2021 को पौड़ी गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत को राज्य की बागडोर सौंपी गई
थी लेकिन वे भी तीन महीनों तक इस पद पर बने रहे ।
इसके बाद 3 जुलाई को पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी
की गई थी ।
कई
मिथक टूटे तो कुछ मिथक बरकरार
इस
बार के चुनाव ने कई दिग्गजों को आईना दिखाने का काम किया वहीँ अब तक के कई मिथकों
को तोड़ने का काम किया है । सरकार फिर से रिपीट न होने का मिथक जहाँ टूटा है वहीँ
बदरीनाथ , गंगोत्री , कोटद्वार , रानीखेत के मिथक भी टूटे हैं । देखा गया है इन
जगहों से जिस पार्टी का विधायक निर्वाचित होता है, उत्तराखंड में उसी की सरकार बनती है । इसी तरह राज्य गठन के
बाद ये देखा गया है शिक्षा मंत्री और पेयजल मंत्री दुबारा चुनाव नहीं जीत पाते हैं
लेकिन अरविन्द पाण्डे और बिशन सिंह चुफाल
की जीत ने इस मिथक को भी तोड़ डाला है। हरक सिंह रावत को राज्य में सबसे बड़ा मौसम
विज्ञानी कहा जाता है । इस बार तो उन्होनें ऐलान भी कर दिया था भाजपा उत्तराखंड से
जा रही है । वो हवा का रुख भांप लिया करते हैं ऐसा गाहे –बगाहे कहा जाता रहा है
लेकिन इस बार भाजपा से निष्कासित होने के बाद उन्होनें कांग्रेस की शरण ली लेकिन
अपनी बहू अनुकृति को कांग्रेस के टिकट पर जिताने में कामयाब नहीं हो सके ।
हरीश
रावत के लिए जोर का झटका
पूर्व
सी एम हरीश रावत के लिए भी इस बार का चुनाव बड़ा झटका है । उनको कांग्रेस ने अपनी
कैम्पेन कमेटी का चेयरमैन बनाया था । वह अपनी सीट लालकुआँ को बचाने में कामयाब
नहीं हो सके । 2017 के चुनावों में भी रावत को हरिद्वार
ग्रामीण और किच्छा से हार का सामना करना पड़ा था ।
इस
बार भी कांग्रेस पार्टी के सीएम पद के चेहरे के रूप में उन्हें देखा जा रहा था । पहले कांग्रेस ने उन्हें रामनगर से प्रत्याशी
बनाया था । बाद में उनकी सीट बदल दी और उन्हें लालकुंआ से प्रत्याशी बनाया गया था
लेकिन यहाँ भी उनको हार का मुंह देखा पड़ा । इससे पहले हरदा लोक सभा चुनावों में भी
अपनी सीट नहीं बचा पाए थे । कांग्रेस के टिकट पर वह नैनीताल से लोकसभा चुनाव भी लड़े जहाँ अजय भट्ट ने उनको पराजित किया ।
ऋतु
खंडूडी ने लिया जनरल की हार का बदला
ऋतु
यमकेश्वर विधान सभा सीट से 2017
में विधायक निर्वाचित हुई । वो पूर्व मुख्यमंत्री जनरल बी सी खंडूडी की बेटी हैं ।
भाजपा ने पहले तो उनको यमकेश्वर से टिकट नहीं दिया लेकिन अंतिम समय में कोटद्वार
से अपना प्रत्याशी बनाया जहाँ उनके सामने बड़ी चुनौती थी । 2012 में उनके पिता को कांग्रेस के
सुरेन्द्र नेगी के हाथों पराजित होना पड़ा था । ऐसे में इस बार उनके लिए यह चुनाव
ख़ास रहा जहाँ उन्होंने अपनी पिता की हार का बदला लिया ।
अनुपमा
रावत ने भी हरिद्वार हार का लिया बदला
पूर्व
सीएम हरदा लालकुँआ से खुद तो चुनाव हार गए लेकिन हरिद्वार ग्रामीण सीट से उनकी
बेटी अनुपमा रावत ने चुनाव जीतकर उनके
पिता की हार का बदला ले लिया । 2017
में भाजपा ने यतीश्वरानंद ने उनके पिता हरीश रावत को इस सीट से पराजित किया था । यतीश्वरानंद
पुष्कर धामी की सरकार में कैबिनेट मंत्री
रहे लेकिन इस बार अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो सके।
पुष्कर धामी ही फिर
से संभालेंगे उत्तराखंड की कमान
उत्तराखंड में भाजपा
तो जीत गई लेकिन सीएम पुष्कर धामी चुनाव हार गए जिसके बाद से नए सीएम को लेकर
चर्चाएं और दावेदारों की रस्साकसी शुरू हो गई है । फिलहाल भाजपा में जैसे संकेत दिल्ली
से मिल रहे हैं उसके मुताबिक पीएम मोदी और अमित शाह इस पद पर अपने भरोसेमंद नेता
को कमान देने के इच्छुक बताये जा रहे हैं । अपनी चुनावी रैलियों में भी इन सभी
नेताओं ने पुष्कर के ही भाजपा के अगले मुख्यमंत्री होने का ऐलान किया था। राजनीतिक
गलियारों में चर्चा है भाजपा फिर से धामी पर दांव लगा रही है । भाजपा में पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद जिस तरह एक अनार सौ बीमार
वाली स्थिति उत्पन्न हुई है और दावेदारों की सक्रियता तेज हुई है, उसके मद्देनजर
आलाकमान पुष्कर सिंह धामी को दुबारा कमान देने का मूड लगभग बना चुका है । वह यहाँ
पूर्व में घटित हुए घटनाक्रमों से सबक लेते हुए इस बार इस राज्य को प्रयोगशाला
बनाने से बचना चाह रहा है । राज्य के प्रभारी प्रहलाद जोशी भी चुनावों में मिली
शानदार जीत के लिए पुष्कर धामी की पीठ
थपथपा चुके हैं । उन्होंने इस जीत के लिए युवा
धामी की मेहनत और 6 माह में उनके कार्यकाल के दौरान जनता के हित में लिए कई
फैसलों को जिम्मेदार बताया है जिसकी सार्वजनिक मंच से सराहना भी की है । इन
संकेतों को डिकोड करें तो लगता है भाजपा आलाकमान चाहकर भी पुष्कर धामी को नजरअंदाज
नहीं कर सकता क्योंकि त्रिवेन्द्र सिंह रावत के दौर में गर्त में जाती भाजपा को
उन्होनें अपने साहसिक फैसलों और नीतियों से नया जीवन देने का काम किया है। भाजपा
को ख़राब दौर से उबारने में पुष्कर धामी की मेहनत और व्यक्तित्व की बड़ी भूमिका रही
है । उन्होनें सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों के लिए पसीना बहाया और
दिन रात एक किया जिसकी बदौलत ही भाजपा आज यहाँ तक पहुँच पायी है । ऐसा देखा गया है
भाजपा में पार्टी के भीतर पुराने दिग्गज नेताओं का एक ऐसा गठबंधन बना हुआ है जो
पुष्कर की लोकप्रियता से बहुत चिंतित है क्योंकि कम समय में पीएम मोदी और गृह
मंत्री अमित शाह , राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा
के साथ ही राज्य के प्रभारी प्रहलाद जोशी का दिल जीतकर पुष्कर सिंह धामी ने
उनके सियासी भविष्य और मुख्यमंत्री बनने के सपनों पर ग्रहण लगाने का काम किया है
जिसके चलते पुष्कर उनके लिए बड़ा सरदर्द बन चुके है इसलिए राज्य भाजपा के कुछ
दिग्गज नेता उन्हें निबटाना चाह रहे थे । इन नतीजों के आने के बाद शायद
भीतरघातियों और बड़े नेताओं पर पार्टी शायद कुछ न कुछ बड़ा एक्शन जरूर लेगी।
इधर
चम्पावत से भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने अपनी सीट धामी के लिए छोड़ने का ऐलान
सार्वजनिक रूप से कर इस सम्भावना को जिन्दा रखा है जीत का असली सेनापति धामी हैं ।
विधायक गहतोड़ी ने कहा है मुख्यमंत्री धामी दुर्भाग्य से चुनाव हारे हैं लेकिन
भाजपा को बहुमत में लाने में उनकी बड़ी भूमिका है। धामी को 6 महीने का छोटा सा
कार्यकाल मिला लेकिन उनकी नीतियों ने आज भाजपा को विजयश्री दिलवाई है ।
जिस सेनापति के कारण भाजपा आज यहाँ तक पहुंची है
और उस सेनापति ने भाजपा का किला बचाने में सफलता पाई है उसे शायद पार्टी एक मौका
और देकर पार्टी में मुख्यमंत्री पद के अन्य सभी सक्रिय दावेदारों की दावेदारी एक
झटके में खत्म कर दे ऐसी संभावनाएं अभी भी जिन्दा हैं । वैसे भी राजनीती संभावनाओं
का खेल है । वैसे भी भाजपा के पास बहुमत से कई अधिक सीटें इस समय हैं, साथ ही उसकी नजर निर्दलियों पर भी टिकी हैं ।
भाजपा किसी निर्दलीय विधायक को पार्टी में शामिल करवाकर वहां से धामी को उपचुनाव
भी लड़ा सकती है । ऐसी सूरत में 6 माह के
अन्दर पुष्कर सिंह धामी को चुनाव जीतना पड़ेगा जो बहुत मुश्किल आज की सूरत में नहीं
है । बड़े पैमाने पर भाजपा में विधायकों का एक तबका इस समय युवा पुष्कर धामी के साथ
चट्टान की तरह खड़ा है । अगर केंद्र से भेजे गए आब्जर्वरों के रायशुमारी की नौबत भी
आती है तो वे सभी पुष्कर सिंह धामी के साथ
खड़े होंगे ऐसे संकेत मिल रहे हैं । पुष्कर का काम आज बोल रहा है । असल समस्या
भाजपा के दिग्गज नेताओं की तरफ से आ रही है जो किसी भी कीमत पर पुष्कर सिंह धामी
की राह फिर एक बार फिर से रोकने का काम कर सकते हैं ।
भीतरघातियों
का कुछ होगा
इस
चुनाव में मतदान सम्पन्न होने के बाद से भाजपा और कांग्रेस में भीतरघात की बातें
जोर शोर के साथ उठी हैं । पुष्कर सिंह धामी की खटीमा सीट पर भी ये आशंका है यहाँ
उन्हीं की पार्टी के कई बड़े दिग्गज नेताओं ने ऐसा जाल बुना जिससे वो खटीमा में
पराजित हो जाएँ । हरिद्वार ग्रामीण में भी उनके करीबी यतीश्वरानंद को हार का सामना
करना पड़ा । इसी तरह उनके करीबी किच्छा से राजेश शुक्ला , संजय गुप्ता भी इस चुनाव
में हार गए जिसके बाद से यह देखा जा रहा है भाजपा में कुछ नेताओं के निशाने पर
पुष्कर धामी और उनके करीबी थे । ये नेता किसी भी कीमत पर उन्हें और उनके करीबियों
को जीतता हुआ नहीं देखना चाहते थे । ये तो कुछ सीटों की बात है । ऐसा खेला राज्य
की कई विधान सभा सीटों पर जमकर हुआ है । यही हाल कांग्रेस का भी है । रानीखेत ,
जागेश्वर , लालकुआँ, नैनीताल सरीखी कई
सीटों पर कांग्रेस की कहानी भी इससे जुदा नहीं है । ऐसी कई सीटें पहाड़ से लेकर
मैदान तक हैं जहाँ दोनों पार्टियाँ पार्टी
हारी नहीं बल्कि यहाँ हरवाने के लिए भीतरघाती सक्रिय रहे । इन सबके चलते यह भी
देखना होगा क्या चुनाव निपटने के बाद दोनों पार्टियाँ आत्ममंथन करते हुए
भीतरघातियों पर कोई एक्शन लेंगी ?
पहाड़
में चला मोदी मैजिक
कुमाऊँ
की 29 में से 18 सीटें अपने नाम कर भाजपा ने फिर एक बार साबित किया यहाँ के वोटरों
पर आज भी मोदी का जादू चलता है । कांग्रेस को पिछली बार कुमाऊँ में केवल 4 सीट ही
मिल पाई थी इस बार उसकी 6 सीटें बढ़कर 10 हुई हैं । पिथौरागढ की 4 सीटों में से 2
भाजपा और 2 कांग्रेस के नाम रही । अल्मोड़ा में 3 भाजपा तो 1 कांग्रेस के पास गई । बागेश्वर में दो सीटें भाजपा के पास वहीँ
चम्पावत में 1 सीट भाजपा तो एक कांग्रेस ने अपने नाम की । नैनीताल में भी भाजपा का बेहतर प्रदर्शन रहा । उधमसिंह नगर में भाजपा की संभावनाओं पर ग्रहण लगाने
का काम किसान आन्दोलन ने किया । जसपुर ,
बाजपुर , किच्छा, नानकमत्ता कांग्रेस के खाते में गई ।
मनहूस बंगले का हर सी एम को अभिशाप
उत्तराखंड
का जो भी मुख्यमंत्री न्यू कैंट रोड स्थित
10 एकड़ में फैले इस आवास में अपना आशियाना
बनाता है वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।
नारायण दत्त तिवारी के दौर में गढ़ी कैंट में पहाड़ी शैली के आलीशान भव्य
बंगले का निर्माण किया गया । इसमें एक बैडमिन्टन कोर्ट , स्विमिंग पूल , कई लान ,
सीएम और उनके स्टाफ के लिए कार्यालय और कई लान मौजूद हैं।
2007
में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकली तो बी सी खंडूडी ने भी इस बंगले को अपना
आशियाना बनाया लेकिन ढाई बरस में ही सी एम की कुर्सी गंवानी पड़ी । इसके बाद निशंक
ने भी इसी बंगले से अपनी बिसात बिछाई वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए । 2012
में कांग्रेस सत्ता में आई तो विजय बहुगुणा को भी यह बंगला भाया लेकिन इस बंगले ने
उन्हें भी पूर्व सी ऍम बनाने में देरी नहीं की । तंत्र , मंत्र में भरोसा रखने
वाले हरदा तो डर के मारे इस बंगले में नहीं घुसे और बीजापुर गेस्ट हाउस से ही अपना
कामकाज चलाया फिर भी उनकी कुर्सी सलामत नहीं रही और वह भी दो सीटों से पराजित हुए ।
2017 में काफी ना- नुकुर के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी इस बंगले में गए । वहां जाने से पहले उन्होनें
हवन के कार्य किये और गाय की पूजा तक की । साढ़े 4 साल तक तो सब ठीक- ठाक रहा लेकिन
ये बंगला उनकी कुर्सी भी बीच कार्यकाल में खा गया । उसके बाद गढ़वाल सांसद तीरथ
सिंह रावत को सूबे की कमान भाजपा ने सौंपी । उनको भी इस बंगले का का भय था लिहाजा
उन्होनें भी बीजापुर गेस्ट हाउस से ही अपनी सरकार चलाना ठीक समझा । फिर एकाएक
रामनगर में पार्टी के अधिवेशन के चलते समय उनको दिल्ली तलब कर लिया गया और दिल्ली
से वापसी के बाद उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी भी चली गई । 6 माह पूर्व पुष्कर धामी
को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने खुद को आशावादी और सकारात्मक बताया और इस
बंगले के वास्तु दोषों तक को कई दिनों तक दूर किया । इसके साथ ही हवन और पूजा -पाठ
भी करवाई । लग रहा था इसके बाद इस बंगले का अभिशाप अब मानो खत्म हो गया है लेकिन
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी
राजनीती की पिच पर इस बंगले ने क्लीन बोल्ड कर दिया है।
Friday, 11 February 2022
राष्ट्रीय ध्वज के जनक पिंगली वैंकैया
अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद होने के लिए असंख्य लोगों ने अपना बलिदान दिया । उनमें से अनेक लोगों को आज हम विस्मृत कर चुके हैं । देश की आन , बान और शान तिरंगा किस तरह वजूद में आया ये भी आज शायद गिने चुने लोगों को याद होगा ।
Sunday, 6 February 2022
अलविदा 'स्वर कोकिला '
लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक क्लासिकल सिंगर और थिएटर आर्टिस्ट थे । लता की तीन बहनें मीना, आशा, उषा और एक भाई हृदयनाथ मंगेशकर थे । पांच साल की उम्र में ही लता जी ने अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी और थिएटर में एक्टिंग किया करती थी । जब वो स्कूल गयी तो वहां के बच्चों को संगीत सिखाने लगी लेकिन जब लता जी को अपनी बहन 'आशा' को स्कूल लाने से मना किया गया तो उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया ।
सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर का भी बॉलीवुड में सफर इतना आसान नहीं था । काफी समय तक उन्हें कोई प्रोजेक्ट नहीं मिला । प्रोजेक्ट नहीं मिलने की दो वजहें थीं। एक तो साल 1940 के दौर में जब उन्होंने फिल्मी दुनिया में एंट्री ली बॉलीवुड में नूर जहां और शमशाद का दबादबा था और दूसरा लता की आवाज़ की पिच काफी हाई थी और आवाज़ पतली, ऐसे में उस दौर के चलन में चल रहे गानों के मुताबिक आवाज भी फिट नहीं बैठती थी।
प्रोड्यूसर सशधर मुखर्जी ने लता मंगेशकर की आवाज को 'पतली आवाज' कहकर अपनी फिल्म 'शहीद' में गाने से मना कर दिया था । फिर म्यूजिक डायरेक्टर गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर को फिल्म 'मजबूर' में 'दिल मेरा तोडा, कहीं का ना छोड़ा' गीत गाने को कहा जो काफी सराहा गया । लता मंगेशकर के पिता नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मों के लिये गाने गाये लेकिन लता मंगेशकर बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं। लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये पहली बार गाना गाया था लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया लेकिन वसंत जोगलेकर लता की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुये। साल 1942 में उनके पिता इस दुनिया को छोड़ गए और लता मंगेशकर के कंधों पर परिवार को संभालने की सारी ज़िम्मेदारी आ गई ।
पिता की मौत के बाद लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा । इसी वज़ह से लता मंगेशकर ने 1942 से लेकर 1948 तक करीब 8 हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया । 40 के दशक में लता मंगेशकर जब फिल्मों में गाना शुरू किया तो वो लोकल पकड़कर अपने घर मलाड जाती थी। वहां से उतरकर पैदल स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज जाती। रास्ते में किशोर दा भी मिलते लेकिन वो एक दूसरे को नहीं पहचानते थे। किशोर कुमार लता मंगेशकर की ओर देखते रहते। कभी हंसते। कभी अपने हाथ में पकड़ी छड़ी घुमाते रहते। लता मंगेशकर को किशोर कुमार की ये हरकत अजीब लगती थी ।हिंदी सिनेमा में उन्होंने पहला गाना साल 1943 में गाया । ये गाना था फिल्म 'गजाभाऊ' का और इसके बोले थे माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू ।हालांकि इस गाने से लता को कुछ खास पहचान नहीं मिली । लता मंगेशकर खेमचंद प्रकाश की एक फिल्म में गाना गा रही थी। एक दिन किशोर दा भी उनके पीछे-पीछे स्टूडियो पहुंच गए। लता मंगेशकर ने किशोर कुमार की खेमचंद से शिकायत की। तब खेमचंद ने लता को बताया कि किशोर कुमार अशोक कुमार के छोटे भाई हैं।
1948 में म्यूज़िक कंपोज़र गुलाम हैदर ने लता के बड़ा ब्रेक दिया, जिसके बाद उनका संघर्ष का दौर खत्म हुआ और फिल्मी दुनिया में ऐसा सिक्का चला कि लोग उनकी आवाज के दीवाने हो गए । आज भी लता की गायकी सिल्वर स्क्रीन में चार चाँद लगा देती है | फिल्म 'मजबूर' में लता मंगेशकर ने 'दिल मेरा तोड़ा मुझे कहीं का न छोड़ा' गाना गया । 1949 में उन्होंने फिल्म 'महल' में गाया उनका गाना 'आएगा आनेवाला' बेहद पसंद किया गया। इसके बाद उन्होंने 'दुलारी', 'बरसात' और 'अंदाज़' में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा । चंद महीनों में ही लता के प्रति लोगों का नजरिया बदला और उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली और फिर इसके बाद उन्हें मुड़कर पीछे नहीं देखना पड़ा । लता मंगेशकर ने फिल्म इंडस्ट्री के सभी दिग्गज म्यूज़िक डायरेक्टर्स और सिंगर्स के साथ काम किया ।1942 से अब तक वो 1000 से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों और 36 से भी ज्यादा भाषाओं में गाना गा चुकी हैं । लता मंगेशकर ने 1950 के दौर में कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी रूहानी आवाज़ का जादू बिखेरकर सुनने वालों को सुकून पहुंचाया । लता मंगेशकर ने 1950 के दौर में कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी रूहानी आवाज़ का जादू बिखेरकर सुनने वालों को सुकून पहुंचाया । उस दौरान उन्होंने बैजू बावरा, मदर इंडिया, देवदास और मधुमति जैसी हिट फिल्मों में गाने गाए. फिल्म 'मधुमति' के गाने 'आजा रे परदेसी' के लिए 1958 में लता मंगेशकर को पहला फिल्मफेयर मिला ।
60, 70 और 80 के दशक में गाए गए लता मंगेशकर के ज्यादातर गाने ऑल टाइम हिट्स की कैटगरी में आते हैं । कहा जाता है कि बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स, म्यूज़िक डायरेक्टर्स और एक्टर्स उनके साथ काम करने के लिए होड़ लगाया करते थे । साल 1977 में आई फिल्म 'किनारा' में लता मंगेशकर 'नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही, पहचान है, गर याद रहे' गीत गाया । लता मंगेशकर की ये लाइनें उनके हर चाहने वाले को हमेशा याद रहेंगी । लता मंगेशकर ने 1950 के दौर में कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी रूहानी आवाज़ का जादू बिखेरकर सुनने वालों को सुकून पहुंचाया । उस दौरान उन्होंने बैजू बावरा, मदर इंडिया, देवदास और मधुमति जैसी हिट फिल्मों में गाने गाए ।फिल्म 'मधुमति' के गाने 'आजा रे परदेसी' के लिए 1958 में लता मंगेशकर को पहला फिल्मफेयर मिला ।
60, 70 और 80 के दशक में गाए गए लता मंगेशकर के ज्यादातर गाने ऑल टाइम हिट्स की कैटगरी में आते हैं । कहा जाता है कि बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स, म्यूज़िक डायरेक्टर्स और एक्टर्स उनके साथ काम करने के लिए होड़ लगाया करते थे । साल 1977 में आई फिल्म 'किनारा' में लता मंगेशकर 'नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही, पहचान है, गर याद रहे' गीत गाया । लता मंगेशकर की ये लाइनें उनके हर चाहने वाले को हमेशा याद रहेंगी।उस दौरान उन्होंने बैजू बावरा, मदर इंडिया, देवदास और मधुमति जैसी हिट फिल्मों में गाने गाए । फिल्म 'मधुमति' के गाने 'आजा रे परदेसी' के लिए 1958 में लता मंगेशकर को पहला फिल्मफेयर मिला ।
लता मंगेशकर को साल 2001 में 'भारत रत्न' से भी नवाजा गया था । लता दीदी को इसके पहले पद्म भूषण (1969), पद्म विभूषण(1999) और दादा साहब फाल्के अवार्ड (1989) पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है । सुर साम्राज्ञी के बर्थडे लता मंगेशकर ने ताउम्र शादी नहीं की । इसकी वजह बताते हुए वो कहती थी कि पिता की मौत के बाद घर के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी उन पर थी। ऐसे में कई बार शादी का ख्याल आता भी तो उस पर अमल नहीं कर सकती थी। बेहद कम उम्र में ही वो काम करने लगी थी। बहुत ज्यादा काम उनके पास रहता था। सोचा कि पहले सभी छोटे भाई बहनों को व्यवस्थित कर दूं। फिर कुछ सोचा जाएगा। फिर बहन की शादी हो गई। बच्चे हो गए। तो उन्हें संभालने की जिम्मेदारी आ गई। और इस तरह से वक्त निकलता चला गया।
लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति थी जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। कई राज्य सरकारें उनके नाम से पुरस्कार देती हैं । मध्यप्रदेश सरकार ने 1984 में लता मंगेशकर पुरस्कार शुरू किया। इस पुरस्कार के लिए चयनित कलाकारों को दो-दो लाख रूपए की राशि, सम्मान पट्टिका, शाल-श्रीफल से अलंकृत किया जाता है । राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा विभिन्न कलाओं और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है। ‘लता मंगेशकर सम्मान’ ‘सुगम संगीत’ के लिए दिया जाने वाला राष्ट्रीय अलंकरण है।
1992 से शुरू होने वाले महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी एक लता मंगेशकर पुरस्कार भी है। यह आधिकारिक रूप से "जीवनकाल में उपलब्धि के लिए लता मंगेशकर पुरस्कार" के रूप में भी जाना जाता है। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा एक और पुरस्कार दिया जाता है। लता यूँ ही सबकी हर दिल अजीज नहीं थी।
उन पुरस्कारों पर एक नज़र डालें जिनसे उन्हें सम्मानित किया गया था-
1959: सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार (मधुमति)
1963: सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार (बीस साल खराब)
1964-91: 15 बंगाल फिल्म पत्रकार संघ पुरस्कार
1966: सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक (खानदान) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार
1966: ‘आनंदघन’ नाम के तहत साध मानस (मराठी) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक
1966: साध मनसा के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका
1969: पद्म भूषण
1970: सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार (जीने की राह)
1972: फिल्म परिचय के गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार।
1974: वह रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शन करने वाली पहली भारतीय बनीं।
1974: लता मंगेशकर ने 1974 में गिनीज रिकॉर्ड में भारतीय संगीत के इतिहास में सबसे अधिक दर्ज की गई कलाकार होने का गौरव प्राप्त किया।
1974: फिल्म कोरा कागजी के गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
1977: जैत रे जैतो के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक
1980: जॉर्ज टाउन, गुयाना, दक्षिण अमेरिका के शहर की प्रस्तुत कुंजी
1980: सूरीनाम गणराज्य, दक्षिण अमेरिका की मानद नागरिकता
1985: टोरंटो, ओंटारियो, कनाडा में उनके आगमन के सम्मान में 9 जून को एशिया दिवस के रूप में घोषित किया गया
1987: ह्यूस्टन, टेक्सास में संयुक्त राज्य अमेरिका की मानद नागरिकता
1989: लता मंगेशकर को 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1989: पद्म विभूषण
1990 – श्री राजा-लक्ष्मी फाउंडेशन, चेन्नई द्वारा राजा-लक्ष्मी पुरस्कार
1990: फिल्म लेकिन के गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार।
1993: लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1994: फ़िल्मफ़ेयर विशेष पुरस्कार
1996: स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड।
1996 – राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार
1997: राजीव गांधी पुरस्कार
1997: महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार
1998 – साउथ इंडियन एजुकेशनल सोसाइटी द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1998: साउथ इंडियन एजुकेशनल सोसाइटी द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1999: लाइफटाइम अचीवमेंट्स के लिए ज़ी सिने अवार्ड
1999: एनटीआर राष्ट्रीय पुरस्कार
2000: आईफा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2001: हीरो होंडा और फ़ाइल पत्रिका “स्टारडस्ट” द्वारा मिलेनियम (महिला) की सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका
2001: उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
2001: महाराष्ट्र रत्न (पहला प्राप्तकर्ता)
2002: आशा भोंसले पुरस्कार (प्रथम प्राप्तकर्ता)
2002: वर्ष के ‘स्वर रत्न’ के लिए सह्याद्री नवरत्न पुरस्कार।
2004: फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा लिविंग लीजेंड अवार्ड
2004: फ़िल्मफ़ेयर विशेष पुरस्कार
2004: फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा लिविंग लीजेंड अवार्ड।
2007: फ्रांस सरकार ने उन्हें 2007 में अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार (ऑफिसर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर) से सम्मानित किया।
2008: लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए वन टाइम अवार्ड
2009: एएनआर राष्ट्रीय पुरस्कार
2011: पुणे नगर निगम द्वारा स्वरभास्कर पुरस्कार (प्रथम प्राप्तकर्ता)
2019: भारत सरकार ने सितंबर 2019 में उनके 90वें जन्मदिन पर उन्हें डॉटर ऑफ द नेशन अवार्ड से सम्मानित किया
Saturday, 5 February 2022
खेती बनी वरदान, शिव के 'राज ' में मुस्कुराया अन्नदाता किसान
मध्य प्रदेश की बड़ी आबादी आज भी गाँवों में बसती है जिसकी जीविका कृषि , पशुधन और कृषि से सम्बद्ध अन्य क्षेत्रों पर निर्भर है। जो कृषि आज प्रदेश में रोजगार का बड़ा माध्यम बनी है वो कृषि पिछली सरकारों में अनेक विसंगतियों का शिकार रही है। नीति नियंताओं की अदूरदर्शी नीतियां प्रदेश में किसानों पर बोझ बन गई थी जिसके चलते कृषि की तमाम समस्याओं का हल खोज पाने में हम कामयाब नहीं हो पाए।
राजनीति में किसानों के हर दुःख और दर्द में सहभागी बनने की कोई परंपरा भी देखने को नहीं मिलती लेकिन पिछले कुछ महीनों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पूरी सरकारी मशीनरी के साथ खेती की तमाम समस्याओं का निदान खोजने में लगे हैं ,वह अभूतपूर्व है। किसानों के दर्द के प्रति संवेदना जगाने का ये प्रयास मुख्यमंत्री अपने अंदाज में कर रहे हैं। खेती को लाभ का सौदा बनाने में की दिशा में वो शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं। किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा किसानों के दर्द में इस प्रकार के फैसले लेना एक बड़ी मिसाल है। मध्यप्रदेश ने 7 बार राष्ट्रीय स्तर पर कृषि कर्मण अवार्ड लेकर कृषि के क्षेत्र में अपनी शानदार उपलब्धियां हासिल कर पूरे देश में अपना मान बढ़ाया है । यह मुख्यमंत्री शिवराज की किसानों की समस्याओं के प्रति गहरी समझ और किसानों के प्रति संवेदनशीलता का ही परिचायक है कि वे दिन –रात किसानों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में रहकर सारे प्रयास कर रहे हैं।
कोरोना काल की विषम चुनौतियों के बीच प्रदेश के मुखिया शिवराज ने किसानों के चेहरों पर सही मायनों में मुस्कुराहट लाने का काम किया है। किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कृषि को लेकर दिखाई गई विशेष दिलचस्पी के चलते आज प्रदेश का किसान जहां खुशहाल नजर आता है वहीं उसे फसलों का सही मूल्य भी मिल रहा है। बीते साल कोविड कोरोना लॉकडाउन के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। किसानों की फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदना बहुत बड़ी चुनौती थी। कोरोना संक्रमण उस समय चरम पर था। दिन पर दिन कोरोना के केस बढ़ते जा रहे थे, ऐसे में कोरोना से बीच बचाव करते हुए फसलें खरीद लेने और उन्हें मंडी तक लाने की विकराल चुनौती सरकार के सामने खड़ी थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी मुख्यमंत्री ने किसानों के साथ खड़ा होकर उन्हें सरकार का समर्थन दिलवाया ।
एक ओर किसानों के ट्रैक्टर , फसल कटाई, , हार्वेस्टर, कृषि उपकरणों के सुधार आदि की पहल सरकार द्वारा की गई वहीं हर दिन किसानों को एस.एम.एस भिजवाकर खरीदी केंद्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग, सेनेटाईजेशन आदि करवाकर समर्थन मूल्य पर खरीदी का कार्य शुरू किया गया। इतनी विषम परिस्थिति में भी मध्यप्रदेश ने गेहूं का ऑलटाइम रिकार्ड उपार्जन किया। मध्यप्रदेश ने पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य को भी गेहूं खरीदी में पीछे छोड़ दिया। प्रदेश में एक करोड़ 29 लाख 34 हजार 500 मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी 16 लाख किसानों से की गई और उन्हें करीब 24 हजार करोड़ रूपये का भुगतान किया गया। किसानों के लिए सरकार ने शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने की सुविधा प्रारंभ कराई । साथ ही पिछले वर्षों की फसल बीमा की लगभग 2990 करोड़ रुपये की राशि किसानों के खातों में अंतरित की गई।किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य दिलाए जाने के लिए मंडी अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे किसानों को मंडी और सौदा पत्रक के माध्यम से अपनी फसल बेचने की सुविधा दी गई । राज्य में किसान उत्पादक संगठन को स्व-सहायता समूहों की तरह सशक्त बनाने की भी तैयारी भी उनके द्वारा की गई। गरीब तबके को हर प्रकार की सहायता देने के लिए संबल योजना पुन: प्रारंभ की गई जो आज गरीबों का सुरक्षा कवच बनकर सामने आई है।
किसान हितैषी मुख्यमंत्री के प्रयासों से प्रदेश के किसान का डंका आज पूरे देश में बज रहा है । 1 करोड़ 29 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उपार्जन कर प्रदेश का किसान आज उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश, हरित क्रांति के अगुवा राज्य पंजाब को पीछे छोड़ चुका है वहीं कोविड के दौर में 5.11 लाख हेक्टेयर मूंग, उड़द और धान आदि की बोवनी करा चुका है। इसी दौरान मूंग के 5.76 लाख मीट्रिक टन उत्पादन और किसानों को दी मंडियों के बाहर सौदा पत्रक से उपज बेचने की सुविधा भी दी गयी जिसके परिणाम बेहतरीन रहे हैं । समर्थन मूल्य पर उपार्जन हेतु एक दिन में किसान से खरीदी की अधिकतम सीमा 25 क्विटंल को समाप्त कर असीमित खरीदा जाना भी शिवराज सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही है । एक ही बार में पूरी उपज का सौदा होने से किसान के समय और धन दोनों की हुई बचत हो रही है और उसे बेवजह मंडियों के चक्कर नहीं काटने पड़ रहे हैं । पिछले साल अतिवृष्टि और कीट प्रकोपों से जब प्रदेश प्रभावित हुआ तो सरकार द्वारा राहत राशि के रूप में 3 हजार 500 करोड़ रुपये की सहायता किसानों को दे गई। सरकार ने सहकारी बैंकों की सेहत में सुधार के लिए 800 करोड़ की सहायता भी दी। प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि , प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना , किसान क्रेडिट कार्ड योजना को प्रदेश में बेहतरीन ढंग से लागू किया गया है ।प्रधानमंत्री किसान कल्याण योजना के माध्यम से अब तक 111 हजार 889 करोड़ रु का भुगतान किसानों को किया जा चुका है। शून्य ब्याज दर पर ऋण देने वाले प्रदेशों में आज मध्य प्रदेश का नाम शुमार हुआ है । अब तक 26000 करोड़ से अधिक का ऋण किसानों को दिया गया है ।
किसानों के प्रति मुख्यमंत्री की दूरगामी नीतियों का असर ही रहा, उनके रहते प्रदेश में हर स्तर पर किसानों की समस्याओं को सुना गया और विभिन्न फसलों के बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने और पहली बार प्रदेश में किसानों की विभाग से संबंधित समस्याओं के निराकरण के लिये 'कमल सुविधा केंद्र' की स्थापना सुनिश्चित की गयी जहां पर शिकायतों का त्वरित निराकरण हुआ। अब तक कई हजार समस्याओं का निराकरण बेहद कम समय में पूरा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में केन बेतवा परियोजना का निर्माण शुरू हुआ है। ये परियोजना प्रदेश में सिंचाई व्यवस्था को मजबूत बनाने का काम भविष्य में करेगी। आज भी कृषि के क्षेत्र में एग्रीकल्चर इन्फ्रास्टेक्चर फंड परियोजना के माध्यम से कृषि में बुनियादी सुधारों को अमली जामा पहनाया जा रहा है। 150 नए ऍफ़.पी. ओ के गठन से प्रदेश में किसानों के लिए नई लकीर खींचने की कोशिशें शुरू हुई हैं। आज प्रदेश में कृषि विकास दर जहाँ दहाई के अंक में पहुँच चुकी है वहीँ प्रदेश का कुल कृषि उत्पादन बढ़कर 6 करोड़ मीट्रिक टन पार कर चुका है। पिछले 17 बरस में सिंचित क्षेत्र भी 42 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गया है । इस दौर में प्रदेश सरकार ने किसानों को बिजली के कनेक्शन देने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का अनुदान भी दिया है ।
शिवराज सरकार का एकमात्र संकल्प प्रदेश के किसानों की समृद्धि है । इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2018 में 9.51 लाख किसानों को खरीफ का 1987.27 करोड़ रु. वर्ष 2018-19 में 8.94 लाख किसानों को रबी का 1241 करोड़ रु., खरीफ 2019 का 24.54 लाख किसानों को 5,531 करोड़ रुपये की बीमा राशि का भुगतान कराया गया। इस प्रकार कुल 44 लाख किसानों को 8,891 करोड़ रु. की राशि का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा कराया गया। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए खरीफ वर्ष 2020-21 के लिए फसल बीमा की अंतिम तारीख 31 जुलाई के स्थान पर पिछले साल एक माह बढ़ाकर 31 अगस्त की गई । बाढ़ प्रभावित पांच जिलों के लिए तारीख आगे बढ़ाकर 7 सितंबर तक की गई जिससे प्रदेश में खरीफ फसल के लिए 44 लाख 53 हजार से ज्यादा किसानों ने बीमा पंजीयन कराया।प्रदेश में मूंग फसल क्षेत्र 2021 में बढ़कर 8.35 हेक्टेयर पहुँच चुका है जिसमें पिछले साल के मुकाबले दुगनी वृद्धि हुई है ।
भारत सरकार द्वारा माह दिसम्वर 2018 से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना प्रारंभ की गई जिसमें प्रतिवर्ष कृषकों को एक वर्ष में तीन समान किश्तों में कुल राशि 6 हजार का भुगतान किया जाता है। इस योजना अंतर्गत अब तक प्रदेश में 81 लाख 49 हजार किसानों को 1492 करोड़ रूपये की राशि का वितरण किया गया है। मुख्य्मंत्री किसान कल्याण योजना प्रदेश में 22 सितम्वर 2020 से शुरू हुई जिसके तहत वित्तीय वर्ष में 2 समान किश्तों में पात्र किसानों को 4 हजार रूपये का भुगतान किया जाता है। मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अंतर्गत 2020-21 में जहाँ 74 लाख 50 हजार किसानों के खातों में लगभग 1 हजार 492 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान किया गया है वहीँ 2021-22 के लिए पहली किश्त के रूप में 75 लाख किसानों को 1 हजार 500 करोड़ रुपये वितरित किये जा चुके हैं। वर्ष 2021-22 में प्रस्तु त बजट में मुख्यमंत्री किसान कल्यानण योजना अंतर्गत 3200.00 करोड़ रूपये राशि का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में शामिल कराकर वन अधिकार पट्टेधारियों को फसल बीमा योजना का लाभ दिलाया गया है। पूर्व में सरसों का उपार्जन 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के मान से तथा चना का उपार्जन 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर . के मान से किया जा रहा था, जिसे बढ़ाकर प्रदेश सरकार के द्वारा 'जितना उत्पादन-उतना उपार्जन' के मान से 20-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक चना तथा सरसों की उपार्जन मात्रा नियत किया गया। इससे चना एवं सरसों उत्पादक किसानों को अपनी उपज के बेहतर मूल्य प्राप्त हुए हैं। समर्थन मूल्य पर उपार्जन हेतु एक दिन में एक किसान से खरीदी की अधिकतम सीमा 25 क्विंटल को समाप्त कर असीमित पंजीयन अनुसार एक साथ असीमित खरीदा जाना निश्चित किया गया जिससे किसान के धन और समय की एक साथ बचत हुई है। बीज ग्राम कार्यक्रम किसानों को नई किस्मों के बीज दिलाने के लिए भारत सरकार के सहयोग से चलाया जा रहा है । 2021-22 में रबी की फसल हेतु मसूर, सरसों , अलसी बीज का मिनी किट बीज का वितरण प्रदेश में निशुल्क किया जा रहा है । मोटे अनाजों के मूल्य संवर्धन हेतु अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के लिए मिलेट मिशन योजना चलाई जा रही है जिससे किसानों की आय निश्चित रूप से बढ़ेगी ।कृषि अधोसंरचना निधि के अंतर्गत वर्ष 2020-21 में प्रदेश को 7500 करोड़ रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ है। इसका उपयोग आधुनिक मंडियों की स्थापना, फूड पार्क, शीत गृहों की श्रृंखला स्थापित करने के साथ-साथ साइलोस एवं वेयर हाउस के निर्माण में किया जाएगा । रबी विपणन बर्ष 2021-22 हेतु चना, मसूर, सरसों का उपार्जन गेहूं के उपार्जन से पहले किए जाने का निर्णय भी प्रदेश सरकार के द्वारा किया गया ।