27 मार्च 2009 को उत्तराखंड में एक नई सुबह हुई जब उत्तराखंड के पांचवें मुख्यमंत्री के रूप में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी हुई। राजनैतिक अस्थिरता के दौर में जब निशंक ने प्रदेश की बागडोर संभाली थी तो पार्टी के अंदर और बाहर तमाम तरह की चुनौतियां थी । छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्दबाजी में लागू करने और वित्तीय कुप्रबंधन के कारण राज्य की गाडी पटरी से उतर चुकी थी । उस दौर तो याद करें तो कर्मचारियों को वेतन के भी लाले पड़ने लगे थे । सरकार के पास विकास कार्यों के लिए धन का अभाव था जिस कारण प्रदेश के विकास का इंजन लगभग ठप पड़ गया था। इन चुनौतियों से उत्तराखंड को किसी ने पार कराया तो वह शख्स निशंक थे । उन्हीं के दौर में 13वें वित्त आयोग का गठन हुआ जिसमें सरकार ने योजना आयोग से 6800 करोड़ की सालाना योजना के आकार का अनुमोदित कराने के साथ ही विकास की ऊँची छलांग लगा दी । यही नहीं अपने कुशल राजनीतिक प्रबंधन से निशंक ने राज्य की विकास दर को भी उच्चतम स्तर पर बनाये रखने में कामयाबी पाई ।
ऊपर का यह वाकया डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के रुतबे और उनकी कार्यशैली को बताने के लिए काफी है । निशंक किस तरह अपने काम को अंजाम तक पहुंचाते हैं यह इस बात से भी जान सकते हैं उत्तराखंड के सी एम रहते उन्होंने राज्य की बेलगाम नौकरशाही को पटरी पर लाने में भी सफलता पाई । नाउम्मीद को उम्मीद में बदलना निशंक की बड़ी कला है । उनकी इस कला का लोहा उनके विपक्षी भी मानते हैं ।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘‘निशंक’ को केंद्र में मंत्री बनाये जाने के बाद उत्तराखंड की राजनीति में उनका कद बड़ा हो चला है। पौड़ी जिले के पिनानी गांव से शुरू हुई उनकी राजनीति यात्रा आज जिस पड़ाव पर है वहां उत्तराखंड से अभी तक सिर्फ दो नेता स्वर्गीय के सी पंत और डॉ मुरली मनोहर जोशी ही पहुँच पाए हैं। इस कड़ी में निशंक अब केंद्र के सबसे दमदार मानव संसाधन मंत्रालय की कमान संभालेंगे । मंत्रिमंडल में उन्हें शामिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराखंड से विशेष लगाव को एक बार फिर उजागर किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के शपथ समारोह में प्रधानमंत्री मोदी के ठीक पीछे डा. निशंक को स्थान मिलने से प्रदेश की राजनीति में एक साथ कई संदेश गये हैं। इसे डा. निशंक के बढ़ते राजनीतिक कद के रूप में आंका जा रहा है।
2014 के लोकसभा चुनाव में भी डा. निशंक ने जीत दर्ज की थी लेकिन तब उन्हें मंत्रिपद नहीं मिल पाया था क्युकि भगत सिंह कोश्यारी और भुवन चंद्र खंडूरी भी पूर्व सी एम थे और वह भी सांसद बने थे । डा. निशंक के राज्य की राजनीती से केंद्र में आने के बाद जहाँ उनके विरोधी यह मान चले थे कि उनकी राजनीति पर अब ग्रहण लग गया है लेकिन जैसे ही शपथ ग्रहण समारोह में निशंक नजर आये उसने एक बार फिर सभी को निशंक होने के मायने बता दिए हैं । उत्तराखंड से उनके कैबिनेट मंत्री बनाये जाने से जहाँ उनके राजनीतिक कद में इजाफा हुआ है वहीँ लम्बे समय से उत्तराखंड की विकास की उम्मीदों को भी अब नए पंख लग गये हैं। डा. निशंक अपनी साफगोई और बेबाकी के लिए जाने जाते हैं । आज अगर निशंक की ताजपोशी से पूरे उत्तराखंड में जश्न है तो इसका कारण उनका ऐसा जनप्रिय नेता होना है जिसे लोग पहाड़ के जनसरोकारों से जुड़ाव रखने वाले नेता के तौर पर देखते रहे हैं । निशंक धुन के पक्के हैं । अपने काम से विशेष लगाव रखते हैं और अकसर जनता के बीच जाकर अफसरों को फटकार लगाने से भी बाज नहीं आते । ग्राउंड जीरो पर जाकर काम करने वाले वह उत्तराखंड के इकलौते नेता रहे हैं । एक राजनेता के तौर पर निशंक की यही पहचान उत्तराखंड भाजपा के अन्य नेताओं से उन्हें अलग करती है ।
डा. रमेश पोखरियाल निशंक का राजनीति सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में शिशु मंदिर में शिक्षण कार्य से शुरू हुआ । 1991 में वह पहली बार कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता शिवानंद नौटियाल को पटखनी देकर सियासत की नई लकीर खींच गए। पौड़ी जनपद के ग्राम पिनानी में एक निर्धन परिवार में उनका जन्म 15 जुलाई 1959 में हुआ था। विश्वेश्वरी देवी व परमानंद पोखरियाल के घर में जन्मे निशंक पृथक उत्तराखंड के लिए अस्सी के दशक से ही खासे सक्रिय हो गये थे। 1991 से वर्ष 2012 तक पांच बार उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की विधानसभा में विधायक रहे। 1997 में उन्हें पहली बार कल्याण सिंह सरकार में लिया गया और पर्वतीय विकास विभाग में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1999 में रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में संस्कृति व धर्मस्व मंत्री बनाया गया। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद वह प्रदेश के पहले वित्त सहित कई अन्य विभागों के मंत्री बने। इसके बाद 2002 में उनको कांग्रेस के गणेश गोदियाल से करारी हार का सामना करना पड़ा । 2007 में खंडूड़ी सरकार में चिकित्सा स्वास्थ्य , भाषा तथा विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्री रहे और 2009 में खंडूड़ी को हटाने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सीएम पद से हटाने के बाद उन्हें 2011 में भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया जिस जिम्मेदारी का उन्होंने अच्छी तरह निर्वहन किया। इसके बाद 2012 में डोईवाला से विधायक चुने गये और 2014 में हरिद्वार से लोकसभा के लिए चुने गये। इस दौरान वह लोकसभा की सरकारी आश्वासन समिति के सभापति भी रहे। 2019 में हरिद्वार से फिर से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने मोदी सरकार 2. 0 में कैबिनेट मंत्री की शपथ ली।
पेशे से पत्रकार रहे निशंक की साहित्य में भी अच्छी रुचि रही है । निशंक बचपन से ही कविता और कहानियां लिखते रहे हैं।उनका पहला कविता संग्रह वर्ष 1983 में समर्पण प्रकाशित हुआ। अब तक उनके 10 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 10 उपन्यास, 2 पर्यटन ग्रन्थ, 6 बाल साहित्य, 2 व्यक्तित्व विकास सहित कुल 4 दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं द्य आज भी तमाम राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद सक्रिय लेखन जारी है। रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ बेशक राजनीती में हैं लेकिन साहित्य प्रेमी हैं । फुर्सत के पलों में लिखना पढ़ना पसंद करते हैं । वह अब तक हिन्दी साहित्य की तमाम विधाओं कविता, उपन्यास, खण्ड काव्य, लघु कहानी, यात्रा साहित्य आदि में अपनी कलम की धार से हिंदी जगत को नई ऊंचाई पर पहुंचा चुके हैं । उनके लेखन में राष्ट्रवाद की भावना देखी जा सकती है। यही कारण है कि उनका नाम राष्ट्रवादी कवियों की श्रेणी में शामिल किया जाता है। स्वर्गीय अटल जी के बाद वह भाजपा में ऐसे नेता हैं जिनके साहित्य में एक तरफ संवेदना है और दूसरी तरफ समाज से सीधा जुड़ाव | इसे इनकी रचनाओं में बखूबी पढ़ा जा सकता है । ‘निशंक’ के साहित्य का विश्व की कई भाषाओं जर्मन, अंग्रेजी, फ्रैंच, तेलुगु, मलयालम, मराठी आदि में अनुवाद किया जा चुका है। इसके अलावा निशंक साहित्य को मद्रास, चेन्नई तथा हैंबर्ग विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। उनके साहित्य पर अब तक कई शिक्षाविद् अपने शोध कार्य तथा पी.एचडी.कर चुके हैं। यही नहीं उन्हें श्रीलंका ओपन विवि ने डा. ऑफ सांइस एवं डीलिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है ।
। निशंक प्रखर सांसद के रूप में हाल के बरसों में अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं । वह संसद में सबसे अधिक सवाल उत्तराखंड से पूछ चुके हैं साथ ही मुखर होकर पहाड़ी हिमालयी राज्यों के लिए अलग मंत्रालय , ग्रीन बोनस, अविरलता की मांग करने के साथ ही पहाड़ जमीन, जंगल जैसे मुद्दों की मांग उठाते देखे जा सकते हैं । बतौर सांसद अपने बीते पांच बरस के कार्यकाल के दौरान डॉ निशंक संसद में खासे सक्रिय रहे। उन्हें लोकसभा की सरकारी आश्वासन समिति के सभापति का दायित्व दिया गया । उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यह पहला अवसर है जब राज्य के किसी सांसद को सीधे कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। महत्वपूर्ण बात यह भी कि निशंक को मंत्रिमंडल में जगह देकर पार्टी ने उत्तराखंड में क्षेत्रीय, जातीय, सामाजिक और गुटीय संतुलन को भी साध लिया।निशंक की ताजपोशी से भाजपा ने उत्तराखंड में कई तरह का संतुलन साधने में कामयाबी पाई है। निशंक मूल रूप से गढ़वाल से ताल्लुक रखते हैं लेकिन लोकसभा में वह राज्य के मैदानी हिस्से हरिद्वार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । हरिद्वार लोकसभा सीट राज्य की ऐसी सीट है, जहां पर्वतीय, मैदानी मूल के लोगों के साथ ही मुस्लिम, अनुसूचित जाति और ओबीसी मतदाताओं की संख्या भी खासी है इसीलिए आलाकमान ने निशंक कैबिनेट में जगह दी है । 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री का ताज त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहना था जो राजपूत हैं जिसके बाद पार्टी ने सरकार में ब्राह्मण समाज को कोई महत्ता नहीं दी । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को आलाकमान ने संगठन की जिम्मेदारी दी जिसके बाद जातीय संतुलन सरकार में नहीं सध पाया और अब निशंक के ब्राह्मण चेहरे को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी देने का सीधा मतलब राज्य के दो शीर्ष नेताओं के मध्य जातीय संतुलन सधना है । निशंक उत्तराखंड में भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं लिहाजा उन्हें केंद्र में मंत्री बनाकर पार्टी के तमाम आंतरिक और बाह्य समीकरणों में भी संतुलन स्थापित किया है।
निशंक के केंद्र में मंत्री बनने के बाद अब उत्तराखंड भाजपा के विरोधी गुटों के नेताओं में बैचनी बढ़नी लाजमी है क्युकि कोश्यारी और खंडूरी की सक्रिय राजनीति से विदाई के बाद यह कहा जाने लगा था कि राज्य में असली पावर हाउस अब त्रिवेंद्र रावत के पास है जो मोदी और शाह के करीबियों में शुमार हैं लेकिन अब केंद्र में डॉ निशंक की एंट्री से सीएम त्रिवेंद्र रावत की मुश्किलें बढ़नी तय हैं । राज्य सरकार की नीतियों से जो विधायक असंतुष्ट हैं उनका नया पावर सेण्टर अब निशंक का दिल्ली का सरकारी आवास बन सकता है । बहुत संभव है राज्य के मुखिया त्रिवेंद्र रावत को अब अपनी कार्यशैली बदलनी पड़ सकती है । डा. निशंक का केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनना उत्तराखंड के लिए बड़ी उपलब्धि हो सकता है।
निशंक का मतलब होता है किसी से ना डरने वाला। उनकी अग्नि परीक्षा तो अब शुरू होगी । निशंक को यह समझना होगा उन्होंने मझधार में उत्तराखंड के सीएम रुपी कांटो का ताज पहना था परन्तु उनके अपनों ने ही उनको उत्तराखंड की राजनीती से किकआउट कर डाला था । ऐसे हालातो में पुरानी भूलों से सबक लेते हुए निशंक को फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे । निशंक के साथ प्लस पॉइंट यह है वह युवा होने के साथ ऊर्जावान भी हैं। एक कुशल राजनीतिक प्रबंधक के तौर पर भी वह अपनी अलग छाप छोड़ चुके हैं। साहित्यकार होने के नाते उनकी जनता से संवाद करने की अनूठी कला है । वह सभी से सहजता से मिलते रहे हैं । पक्ष हो या विपक्ष डॉ निशंक का नाम हर खेमे में मशहूर है । कुछ तो बात है राज्य की राजनीती से केंद्र में जाने के बाद भी डॉ निशंक का नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । वह आज भी उत्तराखंड भाजपा की धुरी हैं जिसके पास चाहने वालों का विशाल जमावड़ा है। उनके चेहरे पर हमेशा मंद मुस्कान रहती है और वह कुशल प्रशासक भी रह चुके हैं । मानव संसाधन विभाग की कमान सँभालने के बाद निशंक ने कहा है देश का चहुंमुखी विकास करना उनकी प्राथमिकता में है और मोदी के विजन को पूरा करना है । देश में उच्च शिक्षा की हालत बहुत खराब है । डॉ निशंक खुद साहित्यकार हैं और लेखन से जुड़े हैं लिहाजा उनके आने के बाद नई उम्मीद बंध रही है । देश के तमाम विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है वहीँ राज्य के विश्वविद्यालयों में बुनियादी आधारभूत ढाँचे का अभाव । ऐसे में डॉ निशंक को नए तरीके से काम करने की जरूरत होगी । नई शिक्षा नीति अभी नहीं आई है लेकिन अभी से इसको लेकर होहल्ला शुरू हो गया है । डॉ निशंक को तमाम व्यवस्थाओं में सुधार की कोशिशें करनी होंगी। इसके साथ ही उनके उत्तराखंड से होने के चलते राज्य के विश्वविद्यालयों को उनसे बड़ी आशाएं भी हैं ।
डॉ निशंक सरीखे नेता में सब कुछ कर गुजरने की तमन्ना है और चुनौतियों से लड़ना उन्हें बखूबी आता है डॉ निशंक के पास इससे सुनहरा समय शायद ही कभी आये जब वह नए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के तौर पर उस अग्निपथ पर हैं जहाँ लोगो की बड़ी अपेक्षाएं उनसे जुडी हैं । अब यह डॉ निशंक पर टिका है वह देश को किस दिशा में ले जाते हैं ? आज वह एक पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता से केंद्रीय कैबिनेट मंत्री की जिस कुर्सी तक वह पहुंचे हैं यह कांटो भरा ताज जरुर है और इतिहास में ऐसे मौके बार बार नहीं आते । डॉ निशंक अगर पूर्व मानव संसाधन मंत्रियों से अलग लीक पर चलते हैं तो देश के इतिहास में वह जननायक के तौर पर याद किये जायेंगे अन्यथा वह भी सियासी तिकडमो के बीच अगर अपनी कुर्सी बचाने की मैराथन में ही लगे रहे तो इससे देश की जनता का कुछ भला नहीं होगा और देश की शिक्षा का बेडा गर्क ही बना रह जायेगा । उन्हें पीएम मोदी ने जिस भरोसे के साथ नई जिम्मेदारी सौंपी है उस पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती अब उनके सामने है ।शिक्षा जगत की बड़ी नाव के मांझी वह खुद हैं । नाव सही दिशा में तैरे इसकी जिम्मेदारी खुद अब उनके कंधे में है। क्या डॉ निशंक इस पर कोई नयी लकीर खीँच पाएंगे यह अब समय ही बतायेगा लेकिन डॉ निशंक की मानव संसाधन मंत्री की नई पारी से को बड़ी बड़ी उम्मीदें हैं |