Friday 29 January 2010

जीत की लहर में फिर से सवार हुए राजपक्षे...................................




श्री लंका में एक बार फिर राजपक्षे की जीत का डंका बज गया है..... दूसरी बार उन्होंने लंका की कमान संभाल ली है ..... लेकिन विपक्षी पार्टी के प्रत्याशी फोंसेका उनकी जीत को नही पचा पा रहे है... जीत के बाद भी वह इस बात को उठा रहे है यह जीत नही, धांधली हुई है... श्री लंका के इस आम चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधलियो के चलते राजपक्षे की जीत की राह आसान हुई है.....ऐसा कहना है फोंसेका का॥


मतों के लिहाज से बात करे तो यह राजपक्षे ५८ और फोंसेका को ४० परसेंट मत है ..... जो यह बता रहे है , आज भी राजपक्षे की लोकप्रियता का ग्राफ कम नही हुआ है.... राजपक्षे २००५ में लंका के रास्ट्रपति निर्वाचित हुए थे....राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल अभी २ साल से ज्यादा का बचा हुआ था.....पर उन्होंने समय से पहले चुनाव करवा लिए....... संभवतया इसका एक कारन अभी वहां पर लिट्टे के पतन की पट कथा रही ..... इसके नायक बन्ने की होड़ राजपक्षे और फोंसेका में लगी रही.....


दरअसल वहां पर राजपक्षे और फोंसेका के बीच सम्बन्ध पिछले कुछ समय से अच्छे नही चल रहे थे ..... प्रभाकरन की मौत के बाद से संबंधो में तल्खी कुछ ज्यादा ही हो गयी... सेना ने जैसे ही लिट्टे के छापामार अभियान में सफलता प्राप्त कर ली वैसे ही राष्ट्रपति राजपक्षे ने फोंसेका की सेना अध्यक्ष पद से विदाई कर दी ....... उनके लिए चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ नामक नया पद सृजित कर दिया गया...


यह मसला फोंसेका के लिए प्रतिष्टा का मसला बन गया... क्युकि उन्ही के सेनापति रहते सेना ने तमिल चीतों के विरुद्ध संघर्ष तेज किया जिसके चलते श्री लंका से तमिल चीतों को मुह की खानी पड़ी ...पर वहां के रास्ट्रपति राजपक्षे इस जीत के बाद खुद को नायक मानने पर तुले थे ....शायद इसी कारन उन्होंने अपने कार्यकाल के पूरा होने से पहले ही चुनाव मैदान में आने का मन बना लिया.............


अपने को वाजिब सम्मान न मिले पाने के चलते फोंसेका ने भी रास्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में अपने को उतार लिया...... राज्य की तमिल नेशनल अलायिंस समेत कई पार्टियों ने भी फोंसेका को चुनावो के दौरान अपना समर्थन दे दिया......परन्तु फोंसेका जीत का स्वाद नही चख पाए......अब अपनी हार के बाद धांधली पर जोर दे रहे है.....


श्री लंका लम्बे समय से गृह युद्ध की आग में जल रहा था..... १९४८ में श्री लंका की आज़ादी के बाद से ही वहां पर सिहली और तमिलो के बीच रिश्तो में तनातनी रही है.... वहां की २ करोड़ की आबादी में १२ प्रतिशत से अधिक तमिल है ... तमिलो को उतने अधिकार नही दिए गए जिसके चलते उनमे मायूसी साफ़ देखी जा सकती है ..... इसको महसूस करने की कोशिश फोंसेका के साथ राजपक्षे ने भी इस चुनाव बखूबी की ..... सिहली के साथ दोनों के द्वारा तमिलो का ट्रम्प कार्ड भी फैका गया.....परन्तु सफलता राजपक्षे के हाथ लगी.......


इस जीत के बाद सभी को इस बात की आशा है श्री लंका में सब कुछ ठीक हो जायेगा.....लेकिन कई लोगो का मानना है राजपक्षे की असली परीक्षा अब शुरू होगी ... देखना होगा ऐसे हालातो में वह लंका के विकास के लिए किस ढंग से अपना खाका बुनते है?



वर्तमान में श्री लंका की अर्थव्यवस्था उतर चुकी है... रोजगार के नए अवसर नही मिले पा रहे है.... महंगाई सातवे आसमान पर है.....आम आदमी का कोई पुरसा हाल नही है....मानवाधिकारों का हनन होता रहा है... इन सबके चलते वहां पर रास्ट्रपति के सामने चुनोतियो का बड़ा पहाड़ खड़ा है.....


सबसे मुख्य बात तमिलो को लेकर है... उनको देश की मुख्य धारा में लाने के लिए उनको काफी मशक्कत करनी होगी..... २६ साल के इस संघर्ष में सबसे ज्यादा उनके अधिकारों का हनन हुआ.... अब कोशिश होनी चाहिए सभी समुदायों के बीच कोई बैर नही रहे..... वैसे भारत की बात करे तो तमिलो का मुद्दा सीधे हमें भी प्रभावित करता है..........


श्री लंका में होने वाली कोई भी घटना से तमिलनाडू की राजनीती प्रभावित होती है...... इन सबको ध्यान रखते हुए कोशिश होनी चाहिए की तमिलो के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए..... सिहली बिरादरी से आने वाले राजपक्षे भी अब शायद इस बात को बखूबी महसूस करेंगे की अब समय आ गया है जब तमिल हितों को वह प्राथमिकता के साथ मिल बैठकर सुलझाएंगे.......


राजपक्षे विश्थापित तमिलो के पुनर्वास की बात तो अंतराष्ट्रीय मंचो पर दोहराते रहे है लेकिन यह इस बात को भी भूल जाते है कि आज भी तमिल श्री लंका की सेना और सिहली बिरादरी के निशाने पर है ...यह घटना भारत के लिए भी चिंताजनक है ... अगर तमिलो का मुद्दा अभी भी नही सुलझता है तो इससे भारत की परेशानिया तेज हो सकती है....



भारत की जहाँ तक बात है तो श्री लंका में चीन की बदती उपस्थिति निश्चित ही चिंताजनक है... ड्रेगन ने लंका को लिट्टे के विरुद्ध संघर्ष में हथियार और सहायता प्रदान की .... यही नही भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान ने भी वहां कि सेना को सटीक बमबारी के प्रशिक्षण के लिए साजो सामान मुहैया करवाया....


यह सब देखते हुए भारत की मजबूरी भी लंका को मदद करने की बन गयी.... लेकिन अब राजपक्षे के आने से भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कैसे पाकिस्तान और चीन का दखल लंका में कम किया जाए॥? वैसे भारत और श्री लंका के बीच शुरू से मधुर सम्बन्ध रहे है ... ड्रेगन और पाकिस्तान के बड़ते दखल को हमारे नीति नियंता नही पचा पा रहे है ....पड़ोस में इनकी उपस्थिति से भारत की चिंताए कम होने का नाम नही ले रही है......शायद तभी राजपक्षे को हमारी प्रतिभा ताई के द्वारा सबसे पहले बधाई भिजवाई गयी ....


राजपक्षे के मुख्य विपक्षी उम्मीदवार फोंसेका हार के बाद विचलित है .... हार के बाद इस बात की सम्भावना बन गयी है नयी सरकार फोंसेका की देश से विदाई करने के मूड में है...उनके समर्थको ने इस बात के आरोप लगाने चुनाव परिणामो के बाद ही लगाने शुरू कर दिए थे कि फोंसेका की जान को आने वाले दिनों में बड़ा खतरा है...


एक होटल के बाहर उनको कुछ सेनिको के द्वारा चुनाव परिणामो के बाद घेरा जा चूका है जो इस सम्भावना को पुख्ता साबित कर देती है....खुद सेना के प्रवक्ता नानायक्करा ने इस बात को स्वीकार किया है.. ऐसे में देखने वाली बात होगी अब फोंसेका का क्या होता है ?

खैर जो भी हो , इन परिणामो ने एक बार फिर राजपक्षे की लोकप्रयता का ग्राफ ऊँचा किया है॥ १८ लाख से अधिक वोटो के साथ वह जीत की लहर में सवार हुए है ...


श्री लंका की गाडी को वह वापस ट्रेक पर लायेंगे ऐसे उम्मीद की जा सकती है ..... लंका में सुख शांति लाने की दिशा में भी वह मजबूती से आगे बढेंगे ऐसी उम्मीद लोग कर रहे है॥ अधिकाधिक रोजगार के अवसरों को बडाने की भी बड़ी चुनोती उनके सामने इस समय है... लम्बे समय से लंका में चली अशांति के चलते वहां पर निवेशको ने भी कोई रूचि नही दिखायी है ॥


इसको ध्यान में रखते हुए राजपक्षे को यह बात भी महसूस करने की जरूरत है कैसे निवेशको को लंका में आकर्षित किया जा सके..... यह सब श्री लंका की ख़राब अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए टोनिक का काम कर सकता है..... अब देखना होगा राजपक्षे अपने इस दुसरे कार्यकाल में अपने कदम कैसे बदाते है?



Saturday 23 January 2010

विकास की गति अपेक्षा से कम हुई है------- ऐरी



उत्तराखंड क्रांति दल उत्तराखंड का एक मात्र रीजनल दल है.......वह निशंक सरकार को अपना समर्थन दे रहा है...... उसके शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधान सभा में चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके है..... राज्य निर्माण आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ऐरी राज्य में उत्तराखंड क्रांति दल का बड़ा संगठन खड़ा नही कर पाए..... अपनी साफ और ईमानदार छवि को वह पार्टी के वोट बैंक को बढाने में इस्तेमाल नही कर पाए.....पृथक राज्य के लिए चले जन आन्दोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.....परन्तु इसके बाद भी उनका दल लोगो का विश्वास जीतने में कामयाब नही हो पाया है..उक्रांद के कमजोर सांगठनिक ढांचे का फायदा राज्य में भाजपा और कांग्रेस ने उठाया...



उत्तराखंड के वरिष्ट नेता काशी सिंह ऐरी मानते है उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के प्रमुख मुद्दे रसातल में है.....९ वर्ष बीतने के बाद भी राज्य की स्थितिया अच्छी नही कही जा सकती...पहाड़ो से पलायन बदस्तूर जारी है..जल ,जमीन, जंगल जैसे मुद्दे हाशिये पर है.....जिसके चलते जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है...


राज्य गठन के ९ वर्ष पूरे होने के मौके पर ऐरी से मैंने विशेष संवाद अभी कुछ समय पहले किया ........ उसी के कुछ मुख्य अंश आपके सामने प्रस्तुत हैं..........




राज्य गठन के ९ साल पूरे हो चुके है? राज्य निर्माण आन्दोलन में भागीदार के तौर पर इन ९ सालो को आप कैसे देखते है?

--- देखिये हर्ष जी, राज्य बन गया है और ९ वर्ष का समय भी बीत गया है.....लेकिन राज्य में जैसी स्थितिया आज है वह बहुत अच्छी नही कही जा सकती ... जिस आशाओ और आकांशा को लेकर यह राज्य बना था वह पूरी नही हुई है ....पर्वतीय इलाकों से पलायन आज भी जारी है ... हमने पिछली सरकार से भी कहा
वर्तमान सरकार से भी कह रहे है पर्वतीय इलाकों के विकास के लिए एक विशेष ओद्योगिक नीति बनाये.....जिससे पहाड़ो से पलायन कम हो पर इस दिशा में गंभीरता से विचार नही हुआ है......


कांग्रेस का कहना है वर्तमान भाजपा की सरकार विकास के मोर्चे पर पूरी तरह से विफल साबित हुई है? इस बाबत आपका क्या कहना है?
-----कांग्रेस क्या कहती है मैं उस पर नही जाऊँगा, लेकिन इतना जरुर है विकास की गति अपेक्षा से कम हुई है......जिस तेजी से विकास होना चाहिए था वह नही हुआ है.......


तिवारी जी का शासन हमने देखा ....फिर खंडूरी जी आये.... दोनों की काम करने की जो बुनियादी शैली थी उसमे क्या फर्क नजर आता है आपको ?
----तिवारी जी का अपना अलग अनुभव था....उनकी काम करने की अलग शैली थी....देश की राजनीति पर उनकी जो पकड़ थी उसकी वजह से जैसा भी था विकास योजनाये आगे बड़ी........ खंडूरी जी के शासन में विकास को गति नही मिली.... खंडूरी जी विकास का पैसा सही जगह लगाना चाहते थे ताकि करप्शन न हो.....अभी नए मुख्य मंत्री निशंक आये है लोगो को उनसे काफी उम्मीदें है......


स्थायी राजधानी के मुद्दे पर दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है ....आपकी पार्टी गैरसैण को नए राज्य की राजधानी बनाने की बात करती है..... मुझको याद है एक बार १५ जनवरी १९९२ को आपने बागेश्वर में सरयू नदी के तट पर गैरसैण को नए राज्य की राजधानी बनाने का संकल्प लिया था.......लेकिन दीक्षित आयोग की रिपोर्ट देखकर ऐसा लगता है राजधानी को देहरादून से हटाना संभव नही है....उक्रांद का गैरसैण पर क्या स्टैंड है ?उक्रांद पर अपने मूल मुद्दों से भटकने के आरोप भी लगते रहे है ?
----गैरसैण को राजधानी बनाना आज भी हमारे एजेंडे में है ....हम वहां राजधानी बनाकर दिखायेंगे....गैरसैण से पूरे राज्य का कांसेप्ट लगा हुआ है.....चाहे वह पहाड़ हो या मैदान राजधानी तो ऐसी जगह पर होनी चाहिए जो बीच में हो और हर जगह से उसका लिंक हो......गैरसैण हमारी जिद नही है ॥ गैरसैण हमारे लिए राज्य की मूल अवधारणा का केंद्र बिंदु है ॥ हमारा दल इससे नही भटका है......


कभी तीसरा मोर्चा बनाने की बात करने वाला आपका दल आज प्रदेश की भाजपा सरकार में खुद सत्ता की मलाई चाट रहा है ....ऐसे में तीसरे मोर्चे के कांसेप्ट का क्या होगा ऐरी जी?
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ऐसा नही है...तत्कालीन समय की राजनीतिक आवश्यकताएं अलग थी ......कोई सरकार नही बन रही थी.....प्रदेश में दुसरे चुनाव होने की आशंका भी बन रही थी ... कुछ विधायको की खरीद फरोख्त का भी मामला चल रहा था....ऐसे में अस्थिरता को समाप्त करने के लिए हमने अपने संवेधानिक कर्तव्यों का पालन किया .....और भाजपा को अपना समर्थन दिया... तीसरा मोर्चा ख़त्म हो गया है यह कहना सही नही है ......हम जनता के मुद्दों को उठाते रहते है ..आगे भी उठाएंगे.....


राज्य में कांग्रेस के शासन में उद्योगों में सत्तर फीसदी रोजगार स्थानीय लोगो को दिए जाने का शासनादेश जारी हुआ था॥ उस समय जितने भी मजदूर रखे गए उनका न्यूनतम मजदूरी देकर शोषण किया गया ... आज भी भाजपा के शासन में कमोवेश यही स्थितिया है?
------निश्चित तौर पर यह शासनादेश जारी है कि राज्य में लगने वाले उद्योगों में सत्तर फीसदी रोजगार स्थानीय लोगो को मिलना चाहिए लेकिन जहाँ तक इसके अनुपालन का सवाल है तो स्थिति बड़ी ख़राब है ॥ सत्तर फीसदी रोजगार सीधे डायरेक्ट होना चाहिए......हम इस मांग को सरकार के सामने रखेंगे......

विकास का प्रथम सोपान रेल यातायात है ... पहाड़ो में रेल चलने से विकास कार्य तेजी से हो सकते है .....राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी ने तो एक बार कह दिया था पहाड़ो में रेल की कोई आवश्यकता नही है ....आपका इस सम्बन्ध में क्या कहना है ?
----जहाँ तक रेल की बात है तो पूरे विश्व में रेल कि महत्ता बनी हुई है ....पहाड़ के पिछड़ेपन को दूर किया जाना चाहिए.....इस सम्बन्ध में कई आन्दोलन भी चले....टनकपुर से पंचेश्वर, धारचुला, बागेश्वर , कर्णप्रयाग,तक तीन चार लाइन बिछाई जानी चाहिए......रेल सेवा महत्वपूर्ण है इसलिए यह कहना पहाड़ में रेल की कोई जरुरत नही है यह उचित नही है.......


ऐरी जी अगर आपकी पार्टी भविष्य में सत्ता में आती है तो आपकी प्राथमिकता क्या होगी?
----विकास का ढर्रा बदलना ,रोजगार के अधिकाधिक अवसर देना , राज्य के संसाधनों का अधिकाधिक उपयोगकरना और करप्सन दूर करना हमारी प्राथमिकता में रहेगा..... पानी का सवाल हो या फिर जल जमीन जंगल का इन सभी मुद्दों पर जनता को केंद्र में रखकर नीतिया लागू की जायेंगी......

ऐरी जी अंतिम प्रश्न , जनता से आप क्या उम्मीद रखते है ?
---जनता ने उत्तराखंड के अलग राज्य के कांसेप्ट को स्वीकारा ...जनता हर आन्दोलन में हमारे साथ थी और आगे भी रहेगी.....राज्य के नव निर्माण में वह फिर हमारा साथ देगी .... ऐसी आशा करता हूँ ........

Tuesday 19 January 2010

महिला सशक्तिकरण............


वीमेन इम्पावरमेंट ..... भैया इसको देखकर क्या सोचेंगे लोग.......? हम तो यही सोच रहे है........ पत्रकारिता करते करते कल जब खबरों की खोज खबर कर रहा था..... तो अचानक मेरी नजर इस बोर्ड पर पड़ी......झीलों के शहर भोपाल में अब महिलाओं का इम्पावरमेंट होना शुरू हो गया है ..... आपको बता दू अभी महीने पहले भोपाल नगर निगम की महापौर की कुर्सी पर कृष्णा गौर काबिज हुई है ...... कृष्णा गौर नगरीय प्रशासन मंत्री बाबू लाल गौर की बहू है...... देखा इसे कहते है महिला हित के प्रति संवेदनशीलता......... कुर्सी मिलते ही भोपाल में महिलाओं के लिए एक अलग से पार्क बना डाला.......... पार्क भी ऐसा जहाँ पुरुष भी ना फटक सकते ....और तो और ३ साल से ज्यादा उम्र के बच्चो के घुसने पर भी पाबन्दी है.........

Friday 8 January 2010

मध्य प्रदेश भाजपा का नया "गडकरी" कौन?



मध्य प्रदेश भाजपा में इन दिनों नए भाजपा के गडकरी के लिए मंथन चल रहा है...... हालाँकि वर्तमान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को पंचायत चुनाव निपटने तक अभयदान दे दिया गया है परन्तु राज्य में नए "गडकरी" की खोज के लिए जोर आजमाईश शुरू हो चुकी है......


सूत्रों की माने तो नए अध्यक्ष के चयन में शीर्ष नेतृत्व "शिव" की राय पर अपनी मुहर लगा सकता है..... पार्टी के हबीबगंज मुख्यालय से आ रही खबरों के अनुसार पार्टी की मौजूदा हालत पर मंथन किया जा चूका है... गौरतलब है अभी कुछ समय पहले विदिशा से सांसद और लोक सभा में विपक्ष कि नेता सुषमा स्वराज का भोपाल में आगमन हुआ था... वह कृष्णा गौर की महापौर की कुर्सी जीतने के बाद भोपाल पधारी थी.....तभी से नए नेता के चयन को लेकर पार्टी में चर्चा चल रही है... इसी दरमियान उनके सामने नए "गडकरी" कि खोज के मिशन पर खासी चर्चा भी हुई है... अगर इन खबरों पर यकीन करे तो इस बात को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है कि नए "गडकरी " के चयन में उनकी राय की इस बार अनदेखी की जायेगी...


बताया जाता है दिल्ली में नए नेता कि खोजबीन जारी है॥ इस समय कई नाम हवा में तैर रहे है जिनका दावा नरेन्द्र सिंह तोमर की जगह पर पुख्ता है.... इस सूची में सबसे आगे जिनका नाम चल रहा है वह है भाजपा के राष्ट्रीय सचिव प्रभात झा का... पर बताया जाता है वह शिवराज की पहली पसंद नही है॥ हाँ, इतना जरुर है उनकी संघ के अन्दर मजबूत पकड़ है...संघ के सर कार्यवाह सुरेश सोनी का उन पर खासा वरदहस्त भी रहा है ...पिछले कुछ समय से मध्य प्रदेश में उनकी सक्रियता भी बनी हुई है जो यह बताती है वह मध्य प्रदेश की "पिच" पर बैटिंग करने को बड़े उतावले है.... ब्राहमण होना उनके लिए फायदे का सौदा बन सकता है...


अनूप मिश्र के समर्थक भी अब प्रभात झा को अध्यक्ष की दोड से बाहर करने की कोशिसो में लग गये है॥ बताया जाता है वह अपना दावा दिल्ली में मजबूती से रख रहे है॥ साथ में उन्हें अपने समर्थको का समर्थन मिलने के साथ ही खुद शिव राज का भी बराबर समर्थन हासिल है.... खुद शिव राज चाहते है वह ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना चाहते है जिसकी ट्यूनिंग तोमर जैसी मैच करे... ऐसे हालातो में अनूप मिश्रा का दावा मजबूत नजर आ रहा है ... बताया जाता है उनके नाम पर सुषमा भी मुहर लगा देंगी...


कप्तान सिंह सोलंकी का नाम भी प्रदेश भाजपा के नए गडकरी के रूप में सामने आ रहा है॥ अगर ऊपर के किसी नाम पर सहमती नही बन पाती है तो "शिव " अपनी पसंद के "सोलंकी " का दाव खेल सकते है...सोलंकी की मराठा लोबी से खासी निकटता रही है॥ अभी भाजपा में मराठा लोबी का "सेंसेक्स" चरम पर है... गडकरी जैसे कई लोगो की इस समय पार्टी में खूब चल रही है ..ऐसे हालातो में सोलंकी की अध्यक्ष की डगर आसान लग रही है॥

अगर सोलंकी पर सहमती नही बन पाती है तो शिव अपनी पसंद के "लक्ष्मी कान्त शर्मा" का नाम आगे कर सकते है...वैसे हाल के मंत्रिमंडल विस्तार में लक्ष्मी कान्त को वजनदार मंत्रालय शिव के द्वारा आवंटित किये गए...जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है शिव के दरबार में उनकी क्या पकड़ है...?बताया जाता है इस समय लक्ष्मी कान्त कि गिनती शिव के सबसे विश्वास पात्रो में की जाती है....संगठन के महत्वपूर्ण कामो में शिव लक्ष्मी कान्त की राय लिया करते है॥ ऐसे में उनका दावा भी कमजोर नही है.... विदिशा से होना उनके लिए माईनस पॉइंट साबित हो सकता है....

इन सबसे इतर इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन का नाम भी भावी अध्यक्ष के लिए सामने आ रहा है ..."शिव राज" मामा बनकर महिला सशक्तिकरण के नारे जोर शोर से लगाते रहते है ...पर महत्वपूर्ण पद पर महिलाओं को उचित सम्मान नही दिया गया है...सुमित्रा को आगे कर शिवराज एक तीर से कई निशाने साध सकते है॥ उनके नाम का चयन होने से यह सन्देश जाएगा कि महत्वपूर्ण पद पर भाजपा में महिलाओं को उचित सम्मान मिलता है.... वैसे अभी सुषमा स्वराज के नेता प्रतिपक्ष पद पर होने से सुमित्रा के नाम पर गौर किया जा सकता है.... शिव राज के द्वारा हाल में किये गए मंत्रिमंडल विस्तार में अर्चना चिटनिस से कई मलाईदार मंत्रालय ले लिए गए जिससे यह सन्देश गया है कि राज्य कि भाजपा सरकार महिलाओं कि सच्ची हितेषी नही है... इंदौर में कैलाश विजय वर्गीज और सुमित्रा के बीच का ३६ का आंकड़ा जगजाहिर है... इस बार शिव राज ने अपने मंत्रिमंडल विस्तार में सुमित्रा के चहेते हार्डिया को अपने मंत्रिमंडल में जगह डी है... राजनीतिक विश्लेषको का मानना है इससे कैलाश विजय वर्गीज का कद कम हो गया है... यह घटना बताती है कि आज पार्टी में सुमित्रा कि राय कि अनदेखी नही की जा सकती है... इससे सुमित्रा की अध्यक्ष पद कि संभावनाओं को भी बल मिल रहा है ....

अध्यक्ष पद के लिए कोशिसे जारी है....मध्य प्रदेश भाजपा को भी नए अध्यक्ष पद का बेसब्री से इन्तजार है .....नए अध्यक्ष के सामने सत्ता और संगठन को साथ लेकर चलने की चुनौती है....अब देखना है इस पद पर किसकी ताजपोशी हो पाती है.....? वैसे सूत्रों से मिले रही खबरे बता रही है के नए अध्यक्ष का नाम अभी से तय किया जा रहा है ... इंदौर में पार्टी की १७ फरवरी को हो रही रास्ट्रीय कार्यकारणी कि बैठक के समापन के मौके पर नए अध्यक्ष की घोषणा की जायेगी....इंदौर में बैठक होने के कारण सुमित्रा का दावा भी कमजोर नजर नही आ रहा है...अब देखते है इन नामो में से किसका चयन किया जाता है या फिर कोई नया " डार्क होर्स " बेक डोर से इंट्री मारेगा .......... तो कीजिये कुछ इन्तजार फिल्म अभी बाकी है दोस्त.........



Friday 1 January 2010

निकाय चुनावो में भी दिखा "शिव" का दम.........,.


मध्य प्रदेश में नगर निगम चुनावो के परिणाम सामने आ गए.... इन चुनावो में भाजपा ने एक बार फिर से बाजी मार ली.... लोक सभा चुनावो में भाजपा की घटी सीटो ने "शिव राज" की चिंताओं को बदा दिया था....पर इन चुनावो के परिणामो के बाद मुख्य मंत्री शिवराज चैन की बंसी बजा सकते है॥ आज के वोटर के मिजाज को परखना बड़ा मुश्किल है लिहाजा शिव राज को भी बचे चार साल के कार्यकाल में फूक फूक कर कदम रखने की जरुरत है ... राज्य के वोटरों का यही साफ़ सन्देश है ....


भोपाल नगर निगम पर कृष्णा गौर ने आभा सिंह को १५००० से अधिक वोटो से पराजित किया .... भोपाल नगर निगम पर पिछले दस वर्षो से कांग्रेस का कब्ज़ा था... भोपाल में महापौर की कुर्सी तो गौर को मिल गयी पर परिसद में कांग्रेस की धमक रहेगी... भाजपा की राजधानी में घटी सीटें "शिव" महाराज के लिए खतरे की घंटी बजा रही है.....


"मिनी मुंबई" के नाम से जाने जाने वाले इंदौर में भाजपा के कृष्ण मुरारी मोघे ने सफलता कायम की.....यहाँ पर कांग्रेस के पंकज संघवी को हार का मुह देखना पड़ा... संघवी ने इस चुनाव में पैसा पानी की तरह बहा दिया था पर इसके बाद भी वह नही जीत सके.... ग्वालियर, रीवा , खंडवा, जबलपुर, बुरहानपुर के नगर निगम पर भाजपा काबिज हुई.... खंडवा में भावना शाह की जीत हुई ॥ उनके पति देव विजय शाह राज्य की भाजपा सरकार में मंत्री है.....जबलपुर में भी भाजपा के प्रभात साहू ने भाजपा का झंडा फहरा दिया..... रीवा में शिवेंद्र पटेल की जीत हुई..... रतलाम में भाजपा के आगन में किल्कारिया गूंजी....बुरहानपुर में माधुरी का जलवा चला.... सबसे चौकाने वाला परिणाम सागर में रहा जहाँ किन्नर कमला की बम्पर वोट से जीत हुई .... यहाँ पर भाजपा शुरू से मजबूत रही है ....


बसपा का हाथी भले ही पूरे देश में अपनी चदायी नही कर पा रहा हो पर इस बार सिगरोली ,सतना के नगर निगम बसपा के खाते में गए... वही कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बज गयी है ... लोक सभा चुनाव में अच्छी सीट जीतने के बाद जहाँ वह उत्साहित नजर आ रही थी वही इस बार उसके दिग्गज नेताओं के गद खुद सलामत नही रहे... कमलनाथ, ज्योतिरादित्य , अरुण यादव, सईद अहमद के इलाको में कांग्रेस के हाथ सत्ता फिसल गयी.... कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पचौरी के लिए खतरे की घंटी बज गयी है ... इन चुनावो के बाद उनका सिंहासन खतरे में पड़ता नजर आ रहा है ... कांग्रेस के साथ एक बड़ी बीमारी गुटबाजी की लग गयी है जो हर चुनाव में उसका खेल ख़राब कर देती है ... इस बार भी ऐसा ही हुआ है...


८ सीट जीतने के बाद शिव राज ने साबित कर दिया है मध्य प्रदेश में उनका राज किसलिए चलता है.....इस जीत के बाद केन्द्रीय स्तर पर उनका कद एक बार फिर बद गया है ... प्रदेश में अब नरेन्द्र सिंह तोमर का नया उत्तराधिकारी खोजा जाना है .... संभवतया केन्द्रीय नेतृत्व अब ऐसे व्यक्ति को कुर्सी सोपे जो शिव की पसंद का हो...... कांग्रेस को चाहिए वह बचे पांच सालो में मजबूती से विपक्ष की भूमिका निभाए....अन्यथा शिवराज अकेले उनकी लुटिया डुबोने की " कैपेसिटी " रखते है..... इस बात पर कांग्रेस को गंभीरता से विचार करना चाहिए.......