Sunday 9 June 2024

देश के हृदयप्रदेश में 'मोहन 'की 'मुस्कान 'का मतलब तो है !




मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में डॉ. मोहन यादव को शुरू में भले ही ‘डार्क हॉर्स’ नहीं माना जा रहा था लेकिन इस लोकसभा चुनाव में जिस मेहनत और संकल्प शक्ति के बूते उन्होंने  स्टार प्रचारक बनकर एक नया सन्देश पूरे देश में दिया है और जिस तरह के  चुनाव  परिणाम सामने आये हैं,  उससे साफ़ दिख रहा है कि कोई अब  उन्हें ‘हल्के’ में लेने की भूल नहीं करेगा।  

लोकसभा चुनाव 2024  के इस बड़े लोकतंत्र के महायज्ञ में डॉ. मोहन यादव ने एक सामान्य कार्यकर्ता बनकर इस लोकसभा चुनाव के  जरिये अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश भी है। खास बात यह है कि डॉ. मोहन यादव  इस लोकसभा चुनावों के जरिये न केवल मध्यप्रदेश बल्कि  देश की राजनीती में अब स्थापित होते नजर आ रहे हैं।  मध्यप्रदेश में डॉ  मोहन यादव के  मुख्यमंत्री रहते  पहली बार सूबे  में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया है। देश के हृदय प्रदेश  में ऐसा 'मोहन युग'  में ही पहली बार संभव हुआ है। सबसे खास बात ये है मध्यप्रदेश में कमलनाथ का अभेद किला छिंदवाड़ा भी इस 'मोहन युग ' में  ढह गया है। एक उपचुनाव जिसमें सुंदरलाल पटवा को जीत मिली थी अगर उसको  छोड़ दिया जाए तो ऐसा पहली बार हुआ है  मध्यप्रदेश भाजपा  छिंदवाड़ा लोकसभा सीट अपनी झोली में लाने में कामयाब हुई है। छिंदवाड़ा की जीत के बाद मध्यप्रदेश के  सीएम डॉ.  मोहन यादव  लोकसभा चुनावों की अपनी पहली अग्निपरीक्षा में पूरी तरह से पास  हो गए हैं।

 17 वर्ष तक मध्यप्रदेश की  कमान सँभालते हुए शिवराज सिंह चौहान  ने अपनी खुद की 'मामा'  वाली राजनीति  से  अपना अलग नरेटिव गढ़ने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वे भी कभी मुख्यमंत्री रहते छिंदवाड़ा सीट फतह करने में कामयाब नहीं हो पाए। कई बरसों से प्रदेश के मुखिया रहने के चलते उनके प्रति आम जनमानस में एक निरंकुशता का भाव पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद से बन गया था। यही नहीं शिवराज के कार्यकाल में  प्रशासनिक तंत्र जनता से हर दिन  दूर होता गया।


 नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने भी वही चुनौतियां थीं, जो किसी भी नए मुख्यमंत्री के सामने होती है। उन्हें तय करना था कि वो शिवराज सरकार की छाया और प्रशासनिक  तंत्र से बाहर निकलकर नई पिच पर कैसी बैटिंग करते हैं  लेकिन डॉ. मोहन यादव  की  बेहतर  सोच, सरकार , संगठन और  संघ से बेहतर तालमेल,  मोदी की गारंटी को  क्रियान्वित करने का जूनून,  बेलगाम नौकरशाही में धमक,  नई  बसाहट के साथ काम करने के  विजन एक सहारे  इस लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता का दिल जीतने की कोशिश की है। इस दृष्टि से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सीएम डाॅ.मोहन यादव ने कम समय में  अपने इस स्लॉग ओवर की गुगली से  कांग्रेस के पसीने ही छुड़ा दिए हैं।  इस बात के प्रमाण कमलनाथ के अभेद किले पर  जीत के साथ ही मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर कमल खिलने से दिखाई दे रही है ।

कमलनाथ के मजबूत गढ़ में कमल खिलाने के लिए सीएम डॉ. मोहन यादव ने छिंदवाड़ा में 10 दिन डेरा डाला और  यहां केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो और मोदी की गारंटी से माहौल बदलकर उसे भाजपा का मजबूत किला बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चुनावों के ऐलान से पहले ही नाथ परिवार की विरासत रही छिंदवाड़ा  सीट पर कांग्रेस के मजबूत कार्यकर्ताओं और नेताओं को  भाजपा में शामिल कराने  की दिशा में तेजी से अपने कदम बढ़ाये। मध्य प्रदेश भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक और  भाजपा के संकटमोचक पूर्व गृहमंत्री मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा इस जीत में मैन आफ दि सीरीज बने हैं।  उन्होनें चुनाव हारने के बाद जिस तेजी के साथ संगठन को मजबूत करने की किलेबंदी की उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती।   मध्यप्रदेश के इतिहास में मोहन युग  में ऐसा पहली बार  हुआ  जब प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के बाद भी  कई दिग्गज  नेता और कांग्रेस कार्यकर्ता  छोड़कर भाजपा  में शामिल हुए।  छिंदवाड़ा जिले की सभी सात विधानसभा सीटों में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस का एकछत्र राज  रहा लेकिन कमलनाथ के करीबी पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना और उनके बेटे ने नाथ का साथ छोड़ दिया और भाजपा  में शामिल हो गए।  यही नहीं हजारों की संख्या में  कांग्रेसी कार्यकर्ता इस मोहन युग में  भाजपा में शामिल हो गए।  इस साल की शुरुआत से ही  हर दिन कोई न कोई  नेता, कार्यकर्ता  कांग्रेस छोड़ता हुआ नजर आया और कमलनाथ अपनी ही पार्टी में अलग थलग नजर आए।  कमलनाथ ने  लोकसभा चुनावों के  दौर में भी भावनात्मक  कार्ड खेलने की भरपूर कोशिश की लेकिन दांव भी जनता की अदालत में कारगर साबित नहीं  हो पाया।  मुख्यमंत्री मोहन यादव के  बेहतर माइक्रो मैनेजमेंट ने प्रभावी बढ़त बनाते हुए कमलनाथ के कई समर्थकों को भाजपा में लाने में काफी हद तक कामयाब रहे और इसका असर प्रदेश की हर संसदीय सीट में देखने को मिला।

 चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ बैठकर मोहन ने  न केवल  कारगर  रणनीति की बनाई बल्कि खुद की नई  लीक पर  सामान्य कार्यकर्ता बनकर चले।  कांग्रेस के  नेताओं के भाजपा में  शामिल होने से भाजपा के रूठे नाराज नेता कार्यकर्ताओं को भरोसे में लेकर बेहतर डैमेज कंट्रोल भी किया।  बूथ मैनेजमेंट से निपटने के लिए  भाजपा के संगठन  के साथ बेहतर बूथ प्रबंधन  पर अपना पूरा फोकस  किया।  भाजपा संगठन,  कैडर से जुड़े नेताओं,  कार्यकर्ताओं  में नए जोश का संचार किया।  मुख्यमंत्री यादव प्रदेश के जिस इलाके में गये वहां जनता की भारी भीड़ ने उनके सामने भरोसा दिलाया कि पिछले लोकसभा चुनावों की इस  लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाने का फैसला तो  प्रदेश की जनता पहले  ही कर चुके हैं।हर जगह मुख्यमंत्री यादव के रोड शो और चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ उनकी अपार लोकप्रियता की गवाही दे रही थी। 

इस लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कन्धों पर  मध्यप्रदेश के साथ ही पूरे देश में भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने की भी बड़ी  भी महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी रही जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।  चिलचिलाती  गर्मी में भी ताबड़तोड़ 200 से अधिक जनसभाएं की, 58 रोड शो किए और तकरीबन 12 राज्यों में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार किया।  मध्यप्रदेश के अलावा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दर्जन भर राज्यों में काफी सक्रिय रहे। उन्होंने कई  लोकसभा क्षेत्रों  का कई बार दौरा भी  किया।  जनसभाएं करने के साथ ही अपने  रोड शो से भाजपा के वोट प्रतिशत को भी बढ़ाया। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड,  दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की सबसे अधिक मांग रही । भाजपा ने डॉ मोहन यादव को सबसे ज्यादा अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार में सक्रिय किया, जहां यादव मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक थी।  लोकसभा क्षेत्र में यादव  बाहुल्य इलाकों में मतदाताओं को अपने पाले में लाकर विपक्ष को कैसे नेस्तनाबूद किया जा सकता है, यह काम  भाजपा आलाकमान ने मोहन को भरोसे में लेकर किया जिसमें भाजपा का प्रदर्शन कई सीटों पर बेहतर रहा। 

उत्तर प्रदेश में अखिलेश को भले ही बड़ी सफलता इस बार के लोकसभा  चुनाव में  मिली लेकिन डॉ. मोहन यादव  केंद्रीय नेतृत्व  के भरोसे मोर्चा हर दिन खुद संभाले हुए नजर आये। एक सामान्य से कार्यकर्ता बनकर महाकाल की नगरी के हिंदुत्व के बड़े पोस्टर बॉय बनते हुए बड़ी मजबूती के साथ मोदी की गारंटी और भाजपा की विचारधारा का हर लोकसभा सीट पर प्रसार किया।    

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने जहाँ अपने प्रचार से यदुवंशियों का दिल जीता वहीँ गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी अपनी सभयबन के माध्यम से हिंदुत्व की नई अलख जगाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचने में कामयाबी हासिल की।  उत्तर प्रदेश और बिहार  के साथ ही पंजाब से लेकर हरियाणा, उड़ीसा से लेकर बंगाल, आंध्र से लेकर तेलंगाना तक हर सीट पर एक सामान्य कार्यकर्ता बनकर भाजपा के पक्ष में प्रचार कर उसकी वर्तमान और भविष्य की राजनीती की संभावनाओं को ही मजबूत करने का काम किया। उनकी सभाओं और रोड शो में उमड़ने वाली भीड़ , विनम्रता और मनमोहनी निश्चल मुस्कान हर मतदाता का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित करती थी। विपक्ष पर तंज कसने के उनके बेबाक अंदाज की भी जनता मुरीद हुई।   महज छह माह के भीतर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने  हिंदुत्व के बड़े पोस्टर बॉय  के साथ ही पूरे देश में एक सख्त प्रशासक की छवि भी बनाई । 

 एक तरफ अपनी सभाओं में उन्होंने अयोध्या, काशी, भोजशाला , ज्ञानवापी और मथुरा का जिक्र किया वहीँ सनातन के पक्ष पर खुलकर देश के  मतदाताओं के बीच मुखर होकर अपना पक्ष मजबूती के साथ रखा जिससे मतदाता भाजपा के पक्ष में लामबंद हुआ। मुख्यमंत्री यादव ने अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस को  रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव का हिस्सा न बनने  के लिए उसे आड़े हाथों लेने में भी देरी नहीं की। सनातन विरोधी बयानों के चलते कांग्रेस के ही कई नेताओं ने कांग्रेस से गुडबाई  कहने में देरी नहीं की  इसीलिए जनता का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया और  यह बात जनता के दिल के भीतर तक  बस  गई। 

 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ भी जमकर मुखर होने से पीछे नहीं रहे।  4 जून को आये नतीजों ने फिलहाल मुख्यमंत्री डॉ. मुख्यमंत्री मोहन यादव को लम्बी रेस का घोड़ा साबित किया है।  मध्यप्रदेश में सभी लोकसभा सीटें भाजपा के नाम करने से भाजपा शासित राज्यों के  मुख्यमंत्री के रूप में  डॉ. मोहन यादव की स्थिति बेहद मजबूत होगी।