Wednesday 31 July 2024

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश की धमक और चमक बरक़रार






 मध्यप्रदेश को भी प्रकृति ने न केवल मुक्त हस्त से संवारा है बल्कि नैसर्गिक सौंदर्य और हरियाली से आच्छादित किया है, वहीं प्रदेश सरकार ने भी वन्य प्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान देकर इसे वन्य प्राणी समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले डेढ़ दशक के दौरान श्रेष्ठ और सतत वन्य प्राणी प्रबंधन के प्रयासों से  चलते आज मध्यप्रदेश देश और दुनिया में अग्रणी प्रदेश बना है । यह गर्व की बात है कि देश के 'हृदय प्रदेश ' मध्यप्रदेश को लगातार तीन बार  टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस  29 जुलाई को प्रतिवर्ष  मनाया जाता है।  विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था।  इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे।  इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है।  मध्यप्रदेश में पिछली गणना के अनुसार 785  बाघ हैं, जो देश में सर्वाधिक  हैं। इसके बाद 563 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे और 560 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है।  

मध्यप्रदेश के कुछ बाघ ऐसे हैं, जो देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। मुन्ना, कॉलरवाली, सीता, चार्जर, बामेरा और टी1 यह कुछ ऐसे नाम हैं जो अपनी विशेषताओं के  चलते अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं।  पर्टयक दूर-दूर से इन्हें देखने आते हैं और अलग  तरह का अनुभव लेते हुए खुद को बड़े रोमांचित महसूस करते हैं । कान्हा टाइगर रिजर्व का मुन्ना ऐसा बाघ रहा जिसने 20 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा। वह अपनी सुंदरता के साथ माथे पर बने बर्थ मार्क के कारण पूरे देश में चर्चा में रहा। वह पर्यटकों के बीच इतना लोकप्रिय रहा  कि देश में सबसे ज्यादा खींची गई बाघों की तस्वीरों में उसकी भी तस्वीर शामिल है। पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन जिसे कॉलरवाली बाघिन के नाम से पहचान मिली, यह नाम रेडियो कॉलर लगाने के कारण दिया। इसे पेंच की सुपरमॉम के रूप में भी जाना जाता रहा है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघ चार्जर और बाघिन सीता पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे सीता अलग-अलग तरह के पोज देती तो चार्जर पयर्टकों की गाड़ियों को देखकर दहाड़ता था। बामेरा अपने अलग अंदाज, कद-काठी के लिए जाना जाता रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध बाघिन टी1 को सफल शिकारी होने के साथ नेशनल पार्क से रिजर्व में पुन: स्थापित होने वाली पहली बाघिन रही। विश्व में सर्वप्रथम अनाथ बाघ शावकों को उनके प्राकृतिक परिवेश में बढ़ाकर संरक्षित क्षेत्रों में मुक्त होकर विचरण करने का सफल प्रयास प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व में किया गया। जहां से पन्ना, सतपुड़ा, संजय, दुर्गावती टाइगर रिजर्व एवं माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों को छोड़ा गया था। 

बाघ की दहाड़ अब प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी  सुनाई दे रही है।  राजधानी भोपाल के  शहरी इलाकों में  भी बाघों की आवाजाही अब देखी  जा सकती है। बाघों  को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी बढ़ने की  संभावनाओं  से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 1973 में बाघों को विशेष संरक्षण प्रदान करने के लिए देश में टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई थी।  प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना।  इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है।  मध्यप्रदेश में 7 टाइगर रिजर्व हैं  जिनमें कान्हा टाईगर रिजर्व - मंडला  बालाघाट, बांधवगढ टाईगर रिजर्व - उमरिया, पन्ना टाईगर रिजर्व - पन्ना, पेंच टाईगर रिजर्व - सिवनी, सतपुडा टाईगर रिजर्व - होशंगाबाद, संजय - दुबरी टाईगर रिजर्व - सीधी में तथा 7वां टाइगर रिजर्व है रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व  है जो  टाइगर रिजर्व सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले के दो अभयारण्य को मिलाकर बनाया गया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में 24 अभयारण्य हैं और 11 नेशनल पार्क हैं। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगांव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य अपनी विशिष्ट पहचान के लिए  देश में जाने जाते हैं।  यह सुखद  है कि  अब प्रदेश के भीतर  बाघों  की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से  बढ़ रही  है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों  की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही  है।  सतना  से लेकर सीधी , शहडोल  से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला  तक  में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। तीन बार  टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया  है।  इन राष्ट्रीय उद्यानों में  कुशल  प्रबंधन  और अनेक नवाचारी  तौर तरीकों को अपनाया गया है।  प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों और चिड़ियाघरों में भी बाघ हैं, जहां इनका संरक्षण और प्रजनन होता है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने  ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक  कार्यक्रम समय समय पर भी  चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। 

मध्यप्रदेशके टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में इस समय सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन है।   टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही प्रदेश राष्ट्रीय  उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में आगे है।  सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है।   भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में  पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है।  बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है।   इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है। खुली जगह  के साथ  वन्यजीवों को तनावमुक्त वातावरण और उचित आहार की भी जरूरत होती है जिस दिशा में प्रदेश में पिछले कुछ समय से बेहतरीन कार्य हुआ है जिसके  चलते  बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है।जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया है।  कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।  प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। राज्य शासन की सहायता से कई सौ गाँवों का विस्थापन किया हगया जिससे  बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त हुआ  है। संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है।  

 बाघों की सुरक्षा के प्रति भी मध्यप्रदेश सरकार संवेदनशील है। हाल ही में हिट एंड रन की वजह से घायल हुए दो बाघ शावकों को विशेष ट्रेन के माध्यम से भोपाल लाने के निर्देश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिए थे। प्रदेश में वन्य क्षेत्रों के पर्यटन से लगभग 55 से 60 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है, जिसका 33 प्रतिशत संयुक्त वन प्रबंधन समिति के माध्यम से ग्राम विकास में खर्च किया जाता है। वनों और वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ-साथ इन वन्य  क्षेत्रों में पर्यटन की सुविधाएं भी मध्यप्रदेश में निरंतर बढ़ रही हैं। वर्ष 2022-23 में 26 लाख 91 हजार 797 पर्यटकों ने प्रदेश  के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का भ्रमण किया। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर रही है जिससे बाघों की हर गतिविधि पर नजर  रखी जा रही है।  बाघ  संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए प्रदेश के  टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन  किया है  जिससे प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य योजना तैयार की जाती है जिसके माध्यम से निगरानी रखने, वन्यजीवों की खोज और बचाव करने, जंगल की आग का पता लगाने और उससे रक्षा करने और मानव-पशुओं के संघर्ष को कम करने के लिये की गई है जिससे जैव-विविधता के दस्तावेज़ीकरण में भी मदद मिल रही है ।

मध्यप्रदेश ने  तीन बार टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।   बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है।पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में उत्कृष्ट माना गया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है। वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया गया है। बाघों की सुरक्षा के लिए कैमरा ट्रैप तकनीक के माध्यम से बाघों की गतिविधि पर नजर वनों में रखी जाती है और बघीरा एप की सहायता से जंगल में सफारी की गतिविधि को ट्रैक किया जाता है। कान्हा टाइगर रिजर्व ने अनूठी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। पार्क प्रबंधन ने वन विभाग कार्यालय परिसर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है, जो वन विभाग के कर्मचारियों और आस-पास क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये लाभदायी सिद्ध हुआ है।सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ पर सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन करना शुरू कर दिया है। प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य- योजना तैयार की जाती है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में 'ड्रोन दस्ता' भी  काफी उपयोगी साबित हुआ है।  वन्य प्राणियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रदेश स्तर पर अनुभूति कैम्प भी आयोजित किये जा रहे हैं।  'मैं भी बाघ ' थीम पर इस बार पूरे प्रदेश में विभिन्न जगहों पर आयोजन किये जा रहे हैं। ख्यमंत्री डॉ. यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जंगलों में बाघों के भविष्य को सुरक्षित करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लेने का आहवान किया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में बेहतर प्रबंधन से जहाँ एक ओर वन्य प्राणियों को संरक्षण मिलता है, वहीं बाघों के प्रबंधन में लगातार सुधार भी हुए हैं। बाघों के संरक्षण के लिये संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है जो वन विभाग के सहयोग से संभव हुई है।सही  मायनों में कहा जाए तो  मध्यप्रदेश सरकार ने  वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में  अनेक  पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में  कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके  नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं।

Tuesday 23 July 2024

मोहन के नेतृत्व में आएगा निवेश, आगे बढ़ेगा मध्यप्रदेश

                                             

                   

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व में देश का हृदय प्रदेश इस बार निवेश का नया अध्याय लिखने जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार के 7 माह से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में भारतीय और विदेशी निवेशक अभूतपूर्व संख्या में मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सक्रियता इसमें नया रंग भरने का काम कर रही है। इससे पूर्व प्रदेश में इस तरह के निवेशक सम्मेलन औद्योगिक नगरी इंदौर में आयोजित किये जाते रहे लेकिन मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा सूबे की कमान सँभालते ही पहली बार उज्जैन में आयोजित क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के माध्यम से प्रदेश की धार्मिक नगरी में उद्योग की संभावनाओं को नए पंख लगे। यह दूरदर्शी पहल मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की सरकार की राज्य के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इसी तरह की संभावनाओं को प्रदेश के अन्य शहरों में भी प्रदेश सरकार भविष्य में क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन आयोजित कर तराशने की कोशिश कर रही है। आगामी 20 जुलाई को प्रदेश के जबलपुर में एक दिवसीय क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन ( रीजनल इन्वेस्टर्स समिट) का आयोजन किया जा रहा है।

उज्जैन में मोहन सरकार ने अपना पहला क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन इसी वर्ष 1 और 2 मार्च को आयोजित किया जिसके सकारात्मक परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं। इस भव्य आयोजन में कई उद्योग समूहों ने निवेश करने में अपनी रूचि दिखाई है। राज्य में आयोजित हुए पहले क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के माध्यम से बड़े पैमाने पर निवेशक मध्यप्रदेश की तरफ तेजी से आकर्षित हुए जिसमें अदाणी समूह ने अकेले 75,000 करोड़ रुपये का निवेश प्रदेश के भीतर करने जा रहा है। उज्जैन में महाकाल एक्सप्रेस वे के निर्माण से लेकर दो सीमेंट पीसने वाली इकाइयां देवास और भोपाल में स्थापित करने के साथ ही यह ग्रुप राज्य में फूड प्रोसेसिंग, लॉजिस्टिक्स, कृषि-लॉजिस्टिक्स और रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में भी बड़ा निवेश करने जा रहा है। सिंगरौली में ‘महान एनर्जी प्लांट’ में बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए भी ग्रुप ने अपनी रूचि दिखाई है जिससे पूरे मध्यप्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं। इस सम्मेलन में एग्रो आयल एन्ड जे. के सीमेंट ने 75000 करोड़ , प्रणव अडानी द्वारा 4000 करोड़ समेत कई निवेशकों ने करोड़ों के निवेश का प्रस्ताव रखा था। उज्जैन क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन में लगभग 250 औद्योगिक घरानों को लगभग 508 हेक्टेयर भूमि आवंटन पत्र जारी किये गए जिससे प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ने तय हैं। मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर उद्योगपति रूचि दिखा रहे हैं। ऊर्जा से लेकर हेल्थ, पर्यटन से लेकर शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में प्रदेश के भीतर बड़ी संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं।

मध्यप्रदेश में निवेश, नवाचार और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बीते दिनों मुम्बई में उद्योगपतियों और निवेशकों से सीधा संवाद भी स्थापित किया जिसमें  प्रदेश में निवेश के अवसरों और संभावनाओं की जानकारी सभी को दी गई । कार्यक्रम में राज्य के औद्योगिक परिदृश्य पर सभी ने नामी उद्योगपतियों के साथ अपने दृष्टिकोण को साझा किया। मुंबई में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उद्योगपतियों से वन टू वन चर्चा ने निवेशकों को प्रमुख हितधारकों के साथ जुड़ने, राउंड टेबल चर्चाओं में भाग लेने और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ नेटवर्क बनाने का एक बेहतर मंच उपलब्ध कराया है। प्रदेश के जबलपुर में 20 जुलाई को प्रस्तावित क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन हेतु जोर- शोर से अब स्वदेशी निवेशकों को आकर्षित करने का अभियान चलाया जा रहा है। जबलपुर के इस भव्य आयोजन में 1500 निवेशकों की भागीदारी होने जा रही है। एक तरफ प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न राज्यों के चुनिंदा शहरों में वन टू वन शो करवा ही रही है वहीँ प्रदेश भर में भी निवेशकों को आकर्षित करने का अभियान भी चलाया जा रहा है। उद्योग जगत भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के विजन की सराहना कर रहा है और मध्यप्रदेश की तरफ नई उम्मीद की नज़रों से देख रहा है। प्रदेश सरकार का फोकस भी चहुंमुखी विकास पर है और देशी निवेशकों का मध्यप्रदेश में विश्वास तेजी से हाल के दिनों में तेजी से बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार अपनी जीएसडीपी को बढ़ाने के लिए सभी संभव प्रयास किये जा रहे हैं। क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन लाजिस्टिक से जुड़े क्षेत्रों के साथ ही सभी क्षेत्रों के लिए भी एक बेहतरीन अवसर है। मध्यप्रदेश के लिए गर्व की बात है मुम्बई के अलावा कनाडा, नीदरलैंड, थाईलैंड, ताइवान, मलेशिया के कई औद्योगिक घरानों को प्रदेश की जमीन पसंद आई है और वे यहाँ उद्योग लगाने के लिए तैयार हैं। जबलपुर समिट हेतु कनाडा के एकाग्रता समूह की लंबटन कंपनी के प्रमुखों ने 1100 करोड़ के निवेश को लेकर अपनी सहमति भी प्रदान कर दी है वहीँ रिलायंस समूह अकेले 50 हजार करोड़ से अधिक के निवेश को तैयार है। इस दौरान प्रदेश में 70 परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया जाएगा जिससे 1222 करोड़ का निवेश प्रस्तावित होगा।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा मध्यप्रदेश में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2025 को "उद्योग वर्ष" घोषित किया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के नेतृत्व में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न रणनीतियों, योजनाओं के माध्यम से सकारात्मक वातावरण के सुदृढ़ीकरण का सतत प्रयास किया जा रहा है। फरवरी 2025 में भोपाल में “इन्वेस्ट मध्यप्रदेश-ग्लोबल इन्वेस्टर समिट-2025" का आयोजन प्रस्तावित है। उद्योगपतियों का कहना है कि हाल के वर्षों में सभी क्षेत्रों में मध्यप्रदेश का तेजी से विकास हुआ है। आज प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकल आया है और ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर की तर्ज पर प्रदेश के हर शहर निवेश के माध्यम से विकास में साझीदार बनाने की पहल कर रहे हैं। प्रदेश में निवेश बढ़ाने के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के प्रयासों का असर अब जिलों तक भी पहुंच रहा है। इससे निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी और आने वाले समय में होने वाले अन्य क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के लिए अधिक निवेशक प्रेरित और प्रोत्साहित होंगे। यदि क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन में होने वाला निवेश पूरी ईमानदारी के साथ धरातल पर उतर आता है तो मध्य प्रदेश की प्रगति और खुशहाली को कोई रोक नहीं सकता।पिछले कुछ वर्षो में मध्यप्रदेश में औद्योगिक निवेश और रोजगार ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। मध्यप्रदेश ने सुशासन और ईज आफ डुइंग बिजनेस के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया है और बढ़ता हुआ निवेश इसी का परिणाम है। प्रदेश में देशी कंपनियों के साथ ही विदेशी कंपनियों की भी रूचि मध्यप्रदेश को लेकर काफी बढ़ी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इन्वेस्टर फ्रेंडली नीतियों का ही नतीजा रहा कि प्रदेश में क्षेत्रीय स्तर पर स्वदेशी कम्पनियाँ भी अब निवेश को लेकर रूचि दिखा रही हैं जिनमें आईटी, इलेक्ट्रानिक्स, उत्पादन, सेवा क्षेत्र आदि की कई इकाइयां शामिल हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है कि सुशासन के चलते आज प्रदेश में उद्योग , व्यापार और दृष्टि से अनुकूल माहौल बना है। औद्योगिक विकास में प्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी प्रदेश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। सूबे की सरकार ने इस बार के बजट में उद्योगों के लिए पर्याप्त राशि भी रखी है जिससे देश की जीडीपी को आगे बढ़ाने में प्रदेश अब पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ेगा। मध्यप्रदेश में देश का सबसे बड़ा मेडिकल डिवाइस पार्क, विक्रम उद्योगपुरी, उज्जैन में स्थापित होने जा रहा है। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास के अंतर्गत अनेक प्रचलित व प्रस्तावित परियोजनाओं पर कार्य तेजी से चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ देश आगे बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश देश का दिल है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल में भी मध्यप्रदेश बसता है। जो भी उद्योगपति मध्यप्रदेश में निवेश और व्यवसाय के लिए रूचि दिखाएंगे, इससे उनकी ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश की भी प्रगति होगी। आने वाले समय में प्रदेश सरकार सभी जिलों में क्षेत्रीय स्तर पर अलग -अलग समिट आयोजित करेगी। 20 जुलाई को जबलपुर में क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन (रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव) के आयोजन के बाद ग्वालियर, दमोह-सागर, रीवा और अन्य जिलों में भी इस तरह के क्षेत्रीय आयोजन होंगे। इसके प्रस्ताव सरकार को मिलने अभी से शुरू हो चुके हैं।