Thursday, 28 October 2021

उत्तराखंड बनने के बाद अवधारणाएँ जस की तस बनी हुई हैं


 


 
उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभा में चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं  राज्य निर्माण आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ऐरी राज्य में उत्तराखंड क्रांति दल का बड़ा संगठन खड़ा नहीं कर पाए। अपनी साफ और ईमानदार छवि को वह पार्टी के वोट बैंक को बढ़ाने में इस्तेमाल नहीं कर पाए। पृथक राज्य के लिए चले जनांदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है और एक दौर ऐसा भी रहा जब अविभाजित उत्तर प्रदेश में काशी सिंह ऐरी की तूती बोला करती थी परन्तु इसके बाद भी उनका दल उत्तराखंड में लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो पाया है। कहीं न कहीं इन 21 बरसों में उक्रांद के कमजोर सांगठनिक ढांचे का फायदा राज्य में भाजपा और कांग्रेस ने उठाया है। पार्टी में समय –समय पर हुई टूट ने भी उक्रांद को भीतर से कमजोर किया है

 काशी सिंह ऐरी मानते है उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के प्रमुख मुद्दे रसातल में हैं। जिनके मन में उत्तराखंड को लेकर कोई पीड़ा नहीं थी उनके नुमाइंदे आज राज्य में शासन कर रहे हैं। 21 बरस  बीतने के बाद भी राज्य की स्थितियाँ अच्छी नहीं कही जा सकती हैं। पहाड़ों से पलायन बदस्तूर जारी है। जल ,जमीनजंगल जैसे मुद्दे हाशिये पर है। स्थायी राजधानी, परिसंपत्तियों के मामले आज तक नहीं सुलझे हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है , समस्याएँ जस की तस बनी हैं जिसके चलते जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है।

1993-95 और 2013-15  तक उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के अध्यक्ष रहे काशी सिंह ऐरी पर एक बार फिर दल ने भरोसा जताते हुए उन्हें पिछले दिनों अपना नया  केंद्रीय अध्यक्ष चुना है। उत्तराखंड क्रांति दल के 20वें द्विवार्षिक अधिवेशन में उन्हें सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया है।

हर्षवर्धन पाण्डे के साथ काशी सिंह ऐरी ने आगामी चुनावों और उत्तराखंड के तमाम सवालों को लेकर खुलकर विस्तृत बातचीत की । प्रस्तुत है इस बातचीत के अंश :
 
नवंबर 2000 को उत्तराखंड का गठन हुआ। आज  21 बरस पूरे होने जा रहे हैं। इस सफर को राज्य निर्माण आंदोलन में भागीदार और एक अनुभवी नेता के तौर पर आप कैसे देखते हैं और कहाँ खड़ा पाते हैं ?

उत्तराखंड राज्य की मांग कोई ऐसी नहीं थी कि हमारा उत्तर प्रदेश से कोई झगड़ा था। हमारी जो मूल अवधारणा थी, उत्तराखंड की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक परिस्थिति यूपी से सर्वदा भिन्न है। बड़ा प्रदेश है और अगर अलग इकाई के रूप में गठित हो जाएगा तो हम अपनी भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक परिस्थिति जल ,जमीन, जंगल के हिसाब से प्लानिंग करेंगे और यहाँ विकास को आगे बढ़ाएँगे लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ है। अभी 21 साल होने जा रहे हैं यहाँ की जनता ने सत्ता काँग्रेस और भाजपा को सौंप दी। इनके जेहन में कोई परिकल्पना नहीं है । इन्होनें उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश के एक हिस्से की तरह चलाया है। प्लानिंग में कोई फर्क नहीं है । होना तो ये चाहिए यहाँ के संसाधन के हिसाब से आप प्लानिंग करें। उनका सही ढंग से दोहन करें और यहाँ रोजगार के अवसर पैदा करें। यहाँ की आर्थिकी बढ़ाएँ। हमारा भौगोलिक क्षेत्र यूपी से अलहदा है तो यहाँ किस तरह की प्लानिंग होनी चाहिए ? किस तरह की विकास योजनाएँ होनी चाहिए और यहाँ हमारे जो संसाधन हैं। मसलन पानी है जो हमारा सबसे ज्यादा है । हम जम्मू कश्मीर, सिक्किम या पूर्वोत्तर जितने भी राज्य हैं,  हिमाचल से ज्यादा पानी की संपत्ति हमारे पास है लेकिन हमने उसका कोई सदुपयोग नहीं किया है । जंगल हमारा सबसे समृद्ध है। उसका भी कोई उपयोग नहीं किया है। हमारे यहाँ पर बागवानी , उद्यान की अपार संभावनाएँ मध्य हिमालय में हैं। यहाँ की टोपोग्राफी, यहाँ का अल्टीट्यूड,  लैटीट्यूड है वो अन्य प्रदेशों से भिन्न है। जल , जमीन और जंगल को लेकर प्लानिंग होनी चाहिए थी जिसके हिसाब से हम विकास योजनाएँ बनाएँ ताकि यहाँ के संसाधनों का सदुपयोग हो। उससे यहाँ के लोगों को रोजगार मिले वो तो बिल्कुल ही पीछे छूट गया है। सरकारों ने इन सबके बारे में कुछ सोचा तक नहीं है। हमने कई बार कहा जल , जमीन और जंगल के हिसाब से आप प्लानिंग करें। यू पी के हिसाब से प्लानिंग करना जरूरी नहीं है। अगर ऐसा ही था तो हम यूपी से क्यों अलग हुए ? नतीजा ये हुआ है 21 बरसों में हमें जहां पहुँचना था वहाँ न पहुँचते हुए उससे भी पीछे हुए हैं। लोग आज शिकायत कर रहे हैं इससे अच्छा तो यूपी था। ये इसलिए कह रहे हैं विकास तो हुआ नहीं है। हमारे संसाधनों की लूट जरूर जारी है। उससे यहाँ  के स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ है। रोजगार नहीं बढ़ा है। उल्टे इन संसाधनों की भारी लूट और भ्रष्टाचार बढ़ा है। प्रदेश बनने का जो मकसद था वो एक तरह से पराजित हो गया है, खत्म हो गया है , पीछे रह गया है। आज जो स्थिति है बेरोजगारी बढ़ रही है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर बाहर के लोगों का कब्जा और लूट जारी है । इसी को लेकर आज लोग शिकायत कर रहे हैं। उत्तराखंड बनने के बाद जो अवधारणाएँ पहले की थी वो जस की तस बनी हुई हैं।

डबल इंजन की सरकार तो कहती है हमने बहुत विकास किया है प्रदेश का । प्रचंड बहुमत की  सरकार में तीन सीएम बदले जा चुके हैं ।

डबल इंजन का मैं उदाहरण देता हूँ। आज हमारे पास चार इंजन हैं और उसके बावजूद हमारी एक लाख करोड़ रु से अधिक की संपत्ति यूपी के कब्जे में है। पहला इंजन उत्तराखंड में भाजपा की सरकार , दूसरा इंजन केन्द्र की मोदी सरकार , तीसरा इंजन यूपी में भाजपा सरकार , चौथा इंजन यूपी सीएम योगी जी हमारे पर्वतीय मूल के हैं। चार- चार इंजन लगाकर भी आज हम अपनी परिसंपत्तियों को वापस नहीं ले पाये हैं। रहा सवाल सीएम का जो आपने किया है मैं मानता हूँ चाहे भाजपा के सीएम हों काँग्रेस के सीएम ये अपने हाईकमान के मुनीम की तरह काम करते हैं। जैसा हाईकमान कहेगा उतना काम करते हैं। जितनी चाबी वो भरता है उतना ही चलते हैं। चाबी बंद कर दी तो नया मुनीम रख दो। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

राज्य में अब तक की सरकारों में उक्रांद भी हिस्सेदार रहा है । चाहे वो खंडूड़ी सरकार हो या विजय बहुगुणा , हरीश रावत की सरकारों  में यूकेड़ी शामिल रही है । आदर्श राज्य न बन पाने का दोषी आप किसे मानते हैं ?

ये सवाल पैदा होता है लोग करते हैं आप भागीदार रहे। खंडूड़ी सरकार में हमारे एक मंत्री थे। हमने समर्थन इसलिए दिया था दुबारा चुनाव का सामना प्रदेश को नहीं करना पड़े। कोई भी दुबारा चुनाव में नहीं जाना चाहता था। हमने अपने 9 बिन्दु दिये थे और उन पर काम करने को कहा था। एक बिन्दु पर हमने कहा था पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग  औद्योगिक नीति बनाएँ । नीति केवल कागजों में बनी है, आगे नहीं बढ़ी। जब काम नहीं किया भाजपा ने तो हमने समर्थन वापस लिया था और हम सरकार से अलग हो गए थे। 2012 की विजय  बहुगुणा सरकार या हरीश रावत सरकार में हमारा एक विधायक था। उसने समर्थन दिया वही मंत्री भी बना उसके बाद उसने पार्टी भी छोड़ दी। हमारे समर्थन का तो कोई मतलब ही नहीं था। तो इसलिए जो सवाल पूछते हैं वो पूरे परिप्रेक्ष्य को नहीं समझते। केवल ये एक जुमला हो गया आप भी सरकार की गोद में बैठे। ऐसा कुछ नहीं है ।

राज्य निर्माण आन्दोलन के दौर में जिस गियर में यूकेडी थी वो गियर कहीं पीछे छूट गया है । कुछ लोगों की अति महत्वाकांक्षा के चलते भी पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है ?

महत्वाकांक्षा और कुछ लोगों के आपसी मतभेद के कारण भी पार्टी को काफी नुकसान हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन एक बात मैं आपको बताऊँ आप नोट करना चाहें तो करें। 2002 में जब राज्य का पहला विधानसभा का चुनाव हुआ था,  हमने राज्य बनाया था । रात- दिन एक करके पूरा सब कुछ तन, मन धन लगाकर राज्य बनाया। उसके बाद भी जनता ने हमें 4 विधायक दिये। ये कोई अच्छा जनादेश थोड़ी था और  जनता ने हमारे उस त्याग को नकार सा दिया। तब तो हम किसी के समर्थन में भी नहीं थे। एक टाइम किसी के विरोध में नहीं थे । पार्टी एक थी। ये भी एक कारण हो सकता है बिना किसी लड़ाई- झगड़े के हम 2002 के चुनावों में गए थे। 4 सीटें मिली थी। अच्छा जनादेश थोड़ी था। ये जनता को भी इस बारे में सोचना चाहिए राज्य बनाने वाले लोगों को,  जिनके दिलों दिमाग में राज्य की परिकल्पना थी , यहाँ के विकास की , रोजगार की बात थी उनको तो कभी जनादेश दिया ही नहीं।  

गांधी जी जिस तरह आज़ादी के बाद काँग्रेस को खत्म करना चाहते थे। इसी तरह आपके कुछ नेता इसे खत्म करना चाहते थे । क्या ये कदम सही होता उस दौर में ? साथ ही संयुक्त संघर्ष समिति राज्य आन्दोलन के लिए जो आपने बनाई उसको जो माईलेज मिलना चाहिए था वो नहीं मिला ?

वो नहीं मिला। साथ में इसमें एक बात मैं और बताना चाहता हूँ कि 1994 में जब सारी जनता आन्दोलन के लिए तैयार हो गयी तो भाजपा काँग्रेस के लोग जिनका राज्य को समर्थन नहीं था लेकिन उसके नीचे के कैडर भी चाहते थे कि हम आंदोलन में आएँ । इसके अलावा जो कर्मचारी , विद्यार्थी , वकील , व्यापार संघ के लोग थे, वे भी चाहते थे हम आंदोलन में  आएँ। हम लोगों का ये था यूकेडी के झंडे के नीचे नहीं आएंगे। हमने अपना संगठन पीछे किया और संयुक्त संघर्ष समिति बनाई। उसके तहत आन्दोलन हुआ और राज्य हासिल हुआ। हमारा दल कमजोर हुआ। ये मैं मानता हूँ लेकिन हम लोगों का जो अभीष्ट था। हमारा जो लक्ष्य था, मिशन था, राज्य बनाना उसमें हम सफल रहे।

राज्य गठन के बाद बेलगाम नौकरशाही को साधना यहाँ हर राजनीतिक दल के लिए बड़ी चुनौती रही है । क्या सिर्फ बेलगाम नौकरशाही से राज्य का बेड़ा गर्क हुआ है या राजनेता भी जिम्मेदार हैं जिनके पास कोई विजन नहीं है ?

बिल्कुल आपने ये सही कहा। नौकरशाह तो ऐसा ही करेगा। नौकरशाह उस घोड़े की तरह है घोड़े में बैठे सहसवार को लगता है ये मेरे को कंट्रोल करेगा तो उसके मुताबिक चलेगा। दूसरे को लगता है वो अपने हिसाब से चलेगा। उसको साधने के लिए आपके पास दिमाग होना चाहिए। वो नहीं है। थोड़ा बहुत तिवारी जी का अनुभव रहा। शुरुवात में 2002 से 2007 के बीच में उन्होनें सरकार भी चलाई, नौकरशाहों को भी काबू में रखा। उसके बाद तो समझिए बिल्कुल बेलगाम रही है अभी भी बेलगाम है।

क्या इस बार उक्रांद एकजुट है ? पूरी ताकत के साथ आप लड़ेंगे चुनाव ?

बिल्कुल, हम पूरी ताकत से लड़ेंगे। 70 सीटों पर हम लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। जो उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल, संगठन हैं उत्तराखंड के सरोकारों से जुड़े रहे हैं। चाहे वो छोटे दल हों जनसंगठन हों,  उनसे सीट शेयरिंग पर हमारी बातचीत चल रही है। उनके साथ तालमेल जरूर करेंगे। वरना हम अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

राज्य के शुरुवाती दो चुनाव में उक्रांद ठीक-ठाक स्थिति में था लेकिन मुझे लगता है रामनगर में आपकी पार्टी के अधिवेशन के बाद से स्थितियाँ पूरी तरह से पार्टी में बादल गयी। अगर उस समय आप कमान अपने हाथों में लेते तो शायाद पार्टी अभी मजबूत स्थिति होती ?

मैं बिल्कुल आपकी इस बात से सहमत हूँ। 2010 में रामनगर में पार्टी का अधिवेशन हुआ। 99 प्रतिशत लोग चाहते थे कमान मैं संभालूँ । कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया और मैंने दल न टूटे इसलिए अपनी दावेदारी वापस ले ली। फिर उसके बाद हमारे नेताओं की नासमझी महत्वाकांक्षा थी। वो आगे आई और मेरे प्रयासों के बावजूद दल टूटा और उसके बाद हमको नुकसान होता गया।

एक सवाल उक्रांद के बारे में उठता रहा है यहाँ सेकंड और थर्ड लाईन लीडरशिप नहीं है। भविष्य को देखते हुए क्या आप इसे तैयार कर रहे हैं ?

सेकंड और थर्ड लाईन है और फर्स्ट लाईन भी जो काम करे दिशा निर्देश  दे। जब फर्स्ट लाइन  अच्छी तरह से ट्रैक बनाएगी तो सेकंड लाईन काम करेगी। अभी तो ट्रैक बनाना ही छूट गया हमारा। सही ट्रैक बनाना है उत्तराखंड के विकास का, उत्तराखंड के रोजगार का, लोगों की  भलाई का वो ट्रैक बनाने का प्रयास हम कर रहे हैं तभी सेकंड लाईन आगे आएगी ।

युवाओं को साधने की हर दल कोशिशें कर रहा है। क्या उक्रांद जो टिकट देगा उसमें युवाओं और अनुभव  दोनों का सम्मिश्रण होगा ?

बिल्कुल हम युवाओं की भागीदारी बढ़ाएँगे और अनुभव को भी तरजीह देंगे। कुल मिलाकर  हम इस बात पर मुतमईन हैं । थोड़ा बहुत हमें भी इसका अहसास हो रहा है। युवा भी अब समझने लगा है। भाजपा और काँग्रेस के साथ –साथ रहते हुए अपनी चेतना को अपनी चेतना को खत्म किया है और उत्तराखंड के सवालों का हल नहीं निकला है।

कोई दल परिवर्तन यात्रा निकाल रहा है तो कोई रोजगार यात्रा लेकिन उक्रांद मैदान में कहीं नजर नहीं आ रहा है ? एक सवाल उठता है इस राज्य में जल , जमीन , जंगल पर्यावरण जैसे तमाम मुद्दे हैं लेकिन फिर भी उक्रांद आंदोलन करना भूलता जा रहा है ?

हाँ ,मैं मानता हूँ उस तीव्रता और व्यापकता में आंदोलन नहीं हुए हैं क्योंकि हमारी भी एक सीमा है। हमारे आंदोलन में आने वाले लोगों की भी एक सीमा है। हमारे पास ताकत नहीं है और जनता भी ताकत के साथ जाने की आदी हो चुकी है। हम विचार कर रहे हैं किस तरह से लोगों की चेतना वापस  लाई जाए और इन सारे सवालों पर सरकार को घेरा जाए चाहे सरकार किसी की  भी बनें ।

बेरोजगारी इस प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा है। प्रचंड बहुमत की सरकार ने साढ़े चार साल तक तो कोई नियुक्तियाँ नहीं निकाली लेकिन जब चुनाव पास आ रहे हैं तो वो भर्तियों का पिटारा खोल रही है।  क्या ये भी पूरी तरह से चुनावी जुमला तो नहीं है ?

पूरी तरह से जुमला है। एक अखबार की घोषणा है। टीवी की घोषणाएँ हैं। आप देखिये ये 23000 पदों को जो भरने की बात कर रहे हैं ये चुनावी जुमला है मैं आपको दावे एक साथ कह रहा हूँ। चुनाव हो जाएंगे लेकिन 23000 नौकरियों का अता – पता नहीं होगा। ये यहाँ के जुमले हैं और ये जनता को ऐसे ही ठगते रहे हैं। तो इस बात को यहाँ का युवा अब समझ रहा है और हम भी समझाने की कोशिश करेंगे ये जुमलेबाजी है। रोजगार के बारे में कोई नीति , कोई विजन नहीं है ।

किन मुद्दों को लेकर आप जनता के बीच जा रहे हैं ?

राज्य की नीति और चुनावों के मुद्दों को लेकर चलने वाला दल उक्रांद है । राजधानी का सवाल है , बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार , परिसीमन , भू कानून जैसे कई मुद्दे है जिनको लेकर हम जनता के बीच जाएंगे । यही मुद्दे लेकर हम चुनाव में भी जाएंगे ।

15 जनवरी 1994 में कभी बागेश्वर में सरयू नदी के तट पर नए राज्य की राजधानी गैरसैण को बनाने का संकल्प लिया था।  गैरसैण में आज तक वो संकल्प अधूरा है ? भाजपा काँग्रेस ने राजधानी के नाम पर प्रपंच ही किया है ।  उक्रांद का क्या स्टैंड है इस विषय में ?

हमारा तो स्पष्ट मत है स्थायी राजधानी गैरसैण को बनाए। बिना इसे बनाए इस प्रदेश का भला नहीं होने वाला है। आपने प्रपंच शब्द का इस्तेमाल किया जो सही है क्योंकि दोनों राजनीतिक दलों ने अब तक जनता की आंखो में धूल झौंकने का ही काम किया है । स्पष्ट बात है।  भारत सरकार का पहला जीओ, जब राज्य बना था तो ये था अस्थायी व्यवस्था राजधानी के लिए देहरादून में की जाती है। स्थायी राजधानी के लिए चुनी हुई सरकार विधान सभा में प्रस्ताव रखेगी। उस प्रस्ताव के आधार पर राजधानी बनेगी। एक विधानसभा के आधार पर एक प्रस्ताव तक नहीं आया और प्रपंच बाहर से कर रहे हैं तो ये चाहते नहीं हैं। ये ग्रीष्मकालीन या भराड़ीसैण में विधानसभा सत्र बुला लें , कैबिनेट बुला लें ये सब प्रपंच है । असली बात ये है कि विधान सभा में प्रस्ताव लाकर उसे पारित करके गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करें तभी इस बात का समाधान होगा। 

सत्ता में आने पर उक्रांद की प्राथमिकताएँ क्या रहेंगी ?

सबसे पहले सख्त भूकानून लाएँगे ।राजधानी का सवाल हल करेंगे। रोजगार की दीर्घकालिक और अल्पकालिक नीति बनाएँगे और जो हमारी भौगोलिक , सामाजिक, आर्थिक परिस्थिति है उसको आधार बनाते हुए हम यहाँ विकास की प्लानिंग करेंगे , यहाँ की  योजना बनाएँगे। यही हमारी प्राथमिकता है ।

उक्रांद में टिकटों का बंटवारा कब तक होगा ?
हमने तो इसके लिए अक्तूबर माह की सीमा तय की थी लेकिन 15 नवंबर तक हम कुछ टिकटों की घोषणा  कर लेंगे ऐसी मुझे उम्मीद है।

छोटे दलों के साथ भी क्या इस बार आप समझौता करेंगे या इस बार विचारधारा से कोई समझौता नहीं । जल , जमीन , जंगल पर ही फोकस ?

मैंने पहले भी कहा जो क्षेत्रीय दल-संगठन यहाँ सक्रिय हैं जैसे रक्षा मोर्चा , महिला मोर्चा ,परिवर्तन पार्टी सरीखे संगठन काम कर रहे हैं। उनके साथ हमने प्रारम्भिक बैठक की है। आगे भी बातचीत करेंगे। उनके साथ सीट शेयर करेंगे और ये कोशिश करेंगे भाजपा और काँग्रेस के खिलाफ जो वोट है वो बंटे नहीं। वो इकठ्ठा रहे तब एक सार्थक दिशा में हम आगे बढ़ सकते हैं । इस दिशा में हम प्रयासरत हैं।

  प्रवासी और युवा इस राज्य कि बड़ी ताकत रहे हैं । क्या उक्रांद इन सबको अपने साथ जोड़ने की दिशा में भी काम कर रहा है इस बार ?\

प्रयासरत हैं हम। हमने इसके लिए अलग से एक पालिटिकल अफेयर्स कमेटी बनाई है जो इन सब चीजों को देख रही है।

पहाड़ में विकास को लेकर उक्रांद का माडल हम जानना चाहते हैं ?

हमारा माडल बहुत स्पष्ट है। यहाँ के जल, जमीन , जंगल के आधार पर प्लानिंग होनी चाहिए । यहाँ की सामाजिक –आर्थिकी की जो परंपरा है ,जो यहाँ की सोच है इससे आगे बढ़ाकर अगर सरकार प्लानिंग करे तो यहाँ रोजगार भी मिलेगा। यहाँ के संसाधनों का उपयोग भी होगा और यहाँ से पलायन भी रुकेगा तो यही है हमारी प्राथमिकता भी ।

खंडूड़ी जी ने लोकायुक्त की बात की थी। भाजपा ने भी अपने घोषणापत्र में दावा किया था 100 दिन में लोकायुक्त लाएँगे लेकिन लोकायुक्त का मुद्दा साढ़े चार साल में कहीं भटक सा गया।  ये पार्टियों के ऐजेंडे में ही नहीं है या लाना नहीं चाहते भाजपा और काँग्रेस दोनों  ?

दोनों राजनीति राजनीतिक दल भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं और उस भ्रष्टाचार को उजागर नहीं करना चाहते। अगर काँग्रेस सत्ता में आती है तो भाजपा ने घोटाले कर दिये। भाजपा सरकार में आई तो काँग्रेस ने 56 घोटाले कर दिये। एक भी घोटाले की जांच नहीं हुई । एक चौकीदार तक सस्पेंड नहीं हुआ है अब तक  इसलिए ये इनका जो नाटक है ड्रामा है ,प्रपंच है ये कुछ लोकायुक्त लाने वाले नहीं हैं । लोकायुक्त अगर कोई लाएगा तो वो उक्रांद ही है अगर वो सत्ता में आया तो ।

पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत के दौर में इन्वेस्टर मीट के नाम पर बड़े -बड़े दावे किए गए लेकिन \हासिल कुछ भी नहीं हुआ। पहाड़ों में भी  आज तक कोई उद्योग नहीं लगा । क्या ये भी जुमलेबाजी थी ?

इन्वेस्टर मीट के नाम पर करोड़ों रु इन्होनें खर्च किए लेकिन हासिल शून्य हुआ । खंडूड़ी जी के समय में हमारे दबाव से ही सही पर्वतीय इलाकों के लिए अलग से औद्योगिक नीति बनी । मैंने आपसे पहले भी कहा ये सब कागजों में है। करना कुछ नहीं है। जनता को बरगलाने , ध्यान भटकाने के लिए ये मीट भी करेंगे। ये पलायन आयोग भी बनाएँगे। इस किस्म की  चोंचलेबाजी भी करेंगे लेकिन ये करने  वाले कुछ भी  नहीं है ।

मूल निवास प्रमाणपत्र का महत्व स्थायी निवास प्रमाण पत्र की तुलना में कम हो गया है । जिलों की कई तहसीलों में आजकल युवा काफी परेशान हो रहे हैं ?

हमने इस मुद्दे को उठाकर आंदोलन किए हैं और हम चाहते हैं कि जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र है वो मानक नहीं होना चाहिए। मूल निवास प्रमाण पत्र का जो कट आफ ईयर है वो 1950 होना चाहिए।  अगर ऐसा होगा  तब यहाँ के युवाओं को न्याय मिलेगा।

भू कानून को लेकर अपनी पार्टी की स्थिति स्पष्ट करें ।

भू कानून के संदर्भ में हमने राज्य आंदोलन के दौरान ही कहा था  कि संविधान का आर्टिकल  371 है , 370 जम्मू और कश्मीर का है । 371 में विभिन्न राज्यों की,  जो विशिष्ट समस्याएँ है। संविधान में रखकर उनका समाधान किया गया है। हमने कहा था आर्टिकल 371  के तहत उत्तराखंड के लिए ऐसे प्रावधान किए जाएँ कि यहाँ जमीन खरीद- फरोख्त बिल्कुल ना हो सके। बाहर का कोई भी व्यक्ति यहाँ पर जमीन ना खरीद सके। फिर हमने लड़ाई लड़ी तो तिवारी जी के समय पर एक रस्म अदाएगी की गई। खंडूड़ी जी के समय में एक भू कानून लाया गया जिसमें  उन्होनें 500 मीटर की जगह 250 मीटर कर दिया लेकिन जो लुफ़ूल्स थे वे वैसे ही रख दिये। नतीजा ये हुआ जमीन की खरीद- फरोख्त जारी रही और 2018 में टीएसआर ने तो सारा गेट ही खोल दिया जो चाहे जितनी जमीन खरीद ले और उसकी का नतीजा है आज पर्वतीय क्षेत्र के डाणे-काने सब बिक रहे हैं ।

गैरसैण में उत्तराखंड के तमाम राजनेता और कैबिनेट मंत्री अपनी जमीन खरीद चुके हैं ।

ये भू कानून तो जरूरी है। कम से कम ये तो होना चाहिए हिमाचल की तरह सख्त होना चाहिए ।

देश में इस समय फ्री पॉलिटिक्स पर ज़ोर दिया जा रहा है। आप पार्टी उत्तराखंड में गारंटी कार्ड दे रही है। फ्री बिजली पानी की बात काँग्रेस भी कर रही है। क्या ये सब चीजें जनता को अकर्मण्य तो नहीं बना देगी ?

फ्री की पालिटिक्स नहीं होनी चाहिए। हम तो ये कहते हैं हमारी बिजली है , हमारा पानी है आप फ्री करने वाले कौन होते हैं ? हमको अगर आगे बढ़ना है तो हमारी बिजली , पानी की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए। उसको सुचारु होना चाहिए। वे यहाँ के लोगों को मिले तब हम देखेंगे उसको फ्री किया जा सकता है कि नहीं।

आप जुम्मा गाँव पिछले दिनों घूम आए हैं। आज प्रदेश में 500 गाँव ऐसे हैं जिनको सरकार विस्थापित नहीं कर पाई है । इस संबंध में क्या कहता है आपका ?

अभी मेरे ख्याल से 500 से अधिक गाँव हैं । हमने तो इनको 2010 में प्रस्ताव दिया था आज नहीं। 2010 में कहा था हमारे जो विस्थापित होने वाले गाँव हैं उनको तराई और भाबर के फारेस्ट एरिया में विस्थापित कर दीजिए। जितनी जमीन आप उनको वहाँ देते हैं उतनी ही जमीन यहाँ है । इसको आप रिजर्व फारेस्ट एरिया घोषित कर दो । तो उसका नतीजा क्या होगा न तो  रिजर्व फारेस्ट एरिया घटेगा और वो विस्थापित भी हो जाएंगे लेकिन 2010 का ये प्रस्ताव अभी तक लंबित है। इन्होनें भारत सरकार को कोई प्रस्ताव नहीं दिया है । ये नौटंकीबाजी है और कल के दिन इनको और मुश्किलें आने वाली हैं। विस्थापन कहाँ किया आपने जरा बताइये । एक गधेरे से निकालकर दूसरे गधेरे डाल दिया आपने तो। उस गधेरे में आपदा आ जाएगी तो क्या करेंगे आप। ये स्थायी हल नहीं है । स्थायी हल ये है आप रिजर्व फारेस्ट एरिया बढ़ाओ।  जो भी जमीन आपको तराई -भाबर में मिले या पहाड़ में मिले तो सही जगह है उसमें बसाओ और उन गांवों को फारेस्ट एरिया घोषित कर दो।  न फारेस्ट कम होगा और उनका पुनर्वास  भी हो जाएगा।

किसान आंदोलन उत्तराखंड में राष्ट्रीय दलों की संभावनाओं को कितना खत्म करेगा तराई में । पहाड़ में प्रभाव न हो लेकिन तराई में तो प्रभाव देखा जा रहा है ।

निश्चित तौर पर तराई में बड़ा प्रभाव है। पहाड़ के किसानों को भी समझना चाहिए। यहाँ तो किसान कम ही हैं लेकिन ये सवाल अनाज खाने का भी है। कल के दिन अनाज हमको फ्री मिलेगा कि नहीं मिलेगा। ये अदानी -अंबानी और तमाम सारे लोग अनाज खरीदने धीरे- धीरे  सारे खेत अपने पास कर लेंगे और मुहमांगे दामों में बेचेंगे। कल के दिन हमारे तो खाने के लाले पड़ जाएंगे। तो किसान आंदोलन केवल किसानों तक ही सीमित नहीं है। आम उपभोक्ता गरीब तबके तक भी सीमित है। गरीब आदमी भी अनाज कहाँ से खाएगा ? अदानी- अंबानी अनाज से पता नहीं क्या –क्या बनाएँगे ? अनाज भी नहीं रहने देंगे तो विदेशों में अनाज की  कमी हो जाएगी ।

प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा से घिरा हुआ है। पिछले दिनों पलायन भी तेजी से राज्य में बड़ा है। कोविड में तमाम प्रवासी यहाँ पहाड़ आए और जमीन न होने के चलते वापस लौट गए। कहीं न  कहीं सरकारें भी इनको कैश कर पाने में नाकामयाब साबित हुई हैं । हरिद्वार , उधमसिंह नगर , नैनीताल में  डेमोग्राफिक बदलाव को कितना बड़ा खतरा आप मान रहे हैं ?

वहाँ पर निश्चित तौर पर आबादी बढ़ी है इसलिए बढ़ी है बाहर से लोग आकार बस गए हैं। राज्य  से बाहर के लोग। दूसरा पहाड़ में भी लोग पलायन करके वहाँ जा रहे हैं। जाहिर है ऐसे में जनसंख्या बढ़नी लाज़मी है। पहाड़ में जनसंख्या ऐसे में कम होगी। आने वाले समय में जब परिसीमन होगा तो उसमें अगर जनसंख्या के आधार पर आप परिसीमन करेंगे तो पहाड़ की सीटें और घट जाएंगी। अभी तो 6 सीटें घटी हैं पहले परिसीमन में। अब यही सिलसिला चला तो निश्चित रूप से पहाड़ में और सीटें कम होंगी और पहाड़ का राजनीतिक अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा।

पिछले दिनों धामी सरकार ने केंद्र सरकार को पंतनगर विवि को केन्द्रीय विवि बनाने का एक प्रस्ताव भेजा है । आप मुखर रहे हैं इसके खिलाफ। ये स्थानीय युवाओं के साथ बड़ा कुठराघात तो नहीं है ?

बहुत बड़ा कुठराघात है। पंतनगर हमारा राज्य विवि है । पंतनगर में अभी मोटे तौर पर 85 फीसदी सीटों पर प्रवेश उत्तराखंड के लोगों के होते हैं। 15 फीसदी आल इंडिया मेरिट से आते हैं । जिस दिन के आरक्षण खत्म हो जाएगा तो हमारे बच्चों को आल इंडिया मेरिट से आना पड़ेगा जिसका सीधा प्रभाव यहाँ के युवाओं पर पड़ेगा। हम तो ये कहते हैं आप केंद्र सरकार से नया विवि मांगिए। अपने बने- बनाए विवि को केंद्र को देकर आप उत्तराखंड के नौनिहालों के साथ न्याय कर रहे हैं ? ये सोचना चाहिए ।

पिछले दिनों हल्द्वानी के उत्तराखंड मुक्त विवि में बड़े पैमाने पर बैकडोर इंट्री हुई है। आप इस मामले को नहीं उठा रहे हैं ?

बिल्कुल हम उठाएंगे । इस तरह से बैकडोर नियुक्तियाँ यही तो भ्रष्टाचार है। इसी के लिए तो इस राज्य को लोकायुक्त चाहिए। हमने मुद्दा उठाया लेकिन चूंकि सरकार में वो हैं इसलिए कोई एक्शन नहीं लेते। इस पर अंकुश lगाने के लिए ही लोकायुक्त है और अब कितने लोग कोर्ट जाएंगे कब तक जाएंगे ? इसलिए लोकायुक्त होगा तो इस प्रक्रिया में जो धांधली है भ्रष्टाचार है , बैकडोर इंट्री है । उस पर अंकुश लगाने के लिए लोकायुक्त की जरूरत है।

पंतनगर कारीडोर पूर्व सीएम स्वर्गीय एन डी तिवारी के नाम पिछले दिनों सीएम पुष्कर धामी ने किया है। इसी तरह कुमाऊँ विवि का नाम भी उनके नाम से करने की बात हो रही है। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कुमाऊँ विवि का नाम करना ही है तो प्रोफेसर डी डी पंत के नाम से होना चाहिए ?

उन्होनें पार्टी बनाई है। हम उनके शिष्य रहे हैं। वो काफी प्रकांड विद्वान रहे हैं।  जिन पर देश और उत्तराखंड को गर्व है। इससे ज्यादा जस्टिफाई बात नहीं हो सकती कि कुमाऊँ विवि का अगर नामकरण करना है तो डॉ डी डी पंत के नाम से होना चाहिए। 

आप गढ़वाल घूम आए हैं । देवस्थानम क्या बड़ा मुद्दा बनेगा आगामी चुनाव में ? हालांकि सरकार ने मनोहरकान्त ध्यानी की अगुवाई में एक कमेटी बनवाई है।

इनको किसी मसले का हल नहीं करना है तभी कमेटी बनाई। कभी आयोग बना दो। हम देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ हैं लेकिन अगर आप तीर्थस्थान के विकास के लिए बोर्ड बनाना चाहते हैं तो बोर्ड बनाने के अलावा भी कई तरीके हैं उसको आप करिए। देवस्थानम का जो कांसेप्ट इन्होनें बनाया है वो उचित नहीं है।

आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण सरकारें आज तक नहीं कर पाई हैं ?

हमने तो इसके लिए आयोग बनाने की मांग की। इससे आंदोलनकारियों के साथ न्याय नहीं हुआ है । आगे भी नहीं होगा। जब तक आयोग नहीं बनता है। आयोग सब चीजों की जांच करके सही आदमी का चिन्हीकरण नहीं करता है, तब तक ये बिलकुल गलत तरीका है चिन्हीकरण का।  हमने इस बात को रखा है लेकिन वे शासनादेश के आधार पर चिन्हीकरण करते हैं।

तकनीकी शिक्षा का राज्य में बेड़ा गर्क हो गया है ।  स्कूल , आईटीआई लगातार बंद हो रहे हैं
इन्होनें बिल्डिंगें तो बना ली। स्कूल , आईटीआई जगह-जगह खोल दिए।उसके लिए जो व्यवस्था होनी चाहिए थी वो नहीं हुई । न तो फ़ैकल्टी है अपने पास न ही उसके उचित ट्रेड हैं। ये भी एक आईवाश है।

अलग हिमालयन नीति की मांग इस राज्य में होती आई है । ग्रीन बोनस की  मांग तो उक्रांद भी उठाता आया है ।

सही कहा आपने ग्रीन बोनस की मांग हमारी पार्टी करती आई है । जब योजना आयोग मोदी सरकार ने भंग नहीं किया था तो 1000 करोड़ रु प्रतिवर्ष देने की बात आयोग ने की थी ।  हमने 10000 करोड़ रु प्रतिवर्ष कम से कम  देने की  मांग की थी क्योंकि हम पर्यावरण की  रक्षा कर रहे हैं। जंगलों को बचा रहे हैं। अगर ईधन के रूप में हम जंगलों को काटेंगे तो आपका पर्यावरण कैसे बचेगा? इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इस क्षेत्र में निशुल्क गैस केंद्र सरकार को देनी चाहिए ग्रीन बोनस के अलावा।

डीडीहाट जिले का मसला इन दिनों काफी तूल पकड़ रहा है । छोटी इकाइयों के गठन का हिमायती तो उक्रांद भी राज्य आंदोलन के दौर से रहा है ।  आपने अपने ब्लू प्रिंट में कई जिलों के गठन  की  बात एक दौर में की थी ।

हमने अपने ब्लू प्रिंट में 23 जिले रखे हैं। उक्रांद तो शुरुवात से ही छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गटहन का पक्षधर रहा है। इन्होनें कुछ तहसीलें तो बना दी हैं लेकिन जिले नहीं बनाए हैं। डीडीहाट ही नहीं अन्य  जिले भी बनने चाहिए।

उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से राजनीति का स्तर बहुत ज्यादा गिर गया है। नागनाथ –सांपनाथ का दौर चल रहा है । जहां सत्ता दिख रही है  वहाँ घूम जा रहे हैं। इसे कैसे देख रहे हैं आप क्या ये जनता के साथ बड़ा धोखा  नहीं है ?

ये तो एक तरह से धोखा है जनता के साथ और जनता  को ही इनको सबक सिखाना चाहिए लेकिन वो सबक नहीं सीखा रही है। आप आज काँग्रेस में कल भाजपा में। फिर काँग्रेस में जा रहे हैं, इनको सबक कौन सिखाएगा। अगर जनता हरा देती इनको तो ये जो सत्ता की दलाली , राजनीति करते हैं। पैसा खर्च करो और जीत जाओ।  कोई सिद्धांत , न नीति -  नियम है तो इस पर रोक तो जनता को ही लगानी होगी।

पिथौरागढ़ का आकाशवाणी केंद्र लंबे समय से सफ़ेद हाथी बना है। नेपाल के एफएम स्टेशन यहाँ पर आसानी से सुने जा सकते हैं लेकिन आकाशवाणी के नहीं। हवाई पट्टी में दशकों से उड़ानें तो चालू नहीं हो पायी लेकिन हवाई बयान उड़ते ही रहे हैं ?

यही विकास का विडम्बना है। 90 के दशक एक एयरपोर्ट और आकाशवाणी केंद्र की आज हालात ये है। क्या अर्थ लगाते हैं इसका? ये सरकारें जनता  की सुन रही हैं या अपनी सत्ता की दलाली में मस्त हैं । चार- चार इंजन होकर भी काम नहीं हो पा रहे हैं।

राज्य आंदोलन से जुड़े तमाम लोग आपको सीएम के रूप में देखना चाहते हैं। क्या ये मुराद इस बार पूरी होगी ?

हम तो चाहेंगे कल ही सीएम बन जाएँ। चुनाव आने वाले हैं। 2022 में अगर जनता चाहती है यहाँ विकास हो और उत्तराखंड बनने का कुछ सिला हासिल हो तो जनता को ही परिवर्तन करना चाहिए। भाजपा –काँग्रेस , काँग्रेस भाजपा , इस दल से उस दल में , उस दल से इस दल की राजनीति को जनता को ठुकराना चाहिए तभी हमारा नंबर आएगा और तभी हम सी एम बन सकते हैं ।

अब तक जो उक्रांद राज्य में हाशिये पर था ऐरी जी,  क्या हम उम्मीद करें  इस  बार वो पटरी पर आएगा और मजबूती के साथ चुनाव में जाएगा ?

हम मजबूती के साथ इस बार लड़ेंगे। अभी युवाओं में भी थोड़ी चेतना आई है कि हमारा क्षेत्रीय दल होना चाहिए और उसके हिसाब से काम होना चाहिए और हम उस चेतना को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। मैं सोचता हूँ 2022 में अच्छे नतीजे आएंगे इसके।

Tuesday, 19 October 2021

' हम आगामी चुनावों में विकास के नाम पर वोट मांगेंगे ' --बिशन सिंह चुफाल

 


बिशन सिंह चुफाल की गिनती उत्तराखंड भाजपा के बड़े चेहरे के तौर पर की जाती है। कुमाऊँ की कई सीटों पर उनका अच्छा - खासा प्रभाव रहा है। चुफाल पहाड़ में बेहद सीधे –साधे ठेठ पहाड़ी अंदाज वाले नेता रहे हैं। बिशन सिंह चुफाल के राजनीतिक जीवन की शुरुवात अस्सी के दशक के जनांदोलनों से हुई। 1983 में पहली बार ग्राम प्रधान बने  चुफाल 1986 में ही डीडीहाट के ब्लाक प्रमुख भी निर्वाचित हो गए। 1984 से 1992 तक पिथौरागढ़ जिले में  वो भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे ।

1996 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में विधायक निर्वाचित हुए जिसके बाद उन्होनें कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और डीडीहाट में अजेय रहे। उनकी जीत का अजेय रथ डीडीहाट से लगातार जारी रहा। लगातार पाँच बार किसी सीट से जीतते रहना इतना आसान नहीं है। वह भी तब जब लगातार सत्ता विरोधी लहर लगातार नेताओं की परेशान करती है लेकिन जनता के बीच सरोकारों की राजनीति करने वाले और कुशल संगठनकर्ता बिशन सिंह चुफाल ने अपने कामों से जनता के बीच बीते कुछ वर्षों में खास पहचान बनाई है शायद यही वजह है जनता हर विधान सभा चुनावों में उनको अपना आशीर्वाद देती आ रही है।

तत्कालीन बी सी खंडूड़ी सरकार में भी ग्रामीण विकास, पंचायतीराज, सहकारिता, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा जैसे महकमे संभालकर कैबिनेट मंत्री के तौर अपने कामों से खास पहचान बनाई। त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया फिर भी विधायक के रूप में दिन रात जनता की सेवा करते रहे । बिशन सिंह चुफाल  उत्तराखंड  भाजपा  के उन नेताओं में से हैं , जो हमेशा सहजता के साथ जनता को  किसी भी  समय उपलब्ध रहते हैं।बिशन सिंह चुफाल एक दौर में भाजपा के पांचवे प्रदेश अध्यक्ष की कमान भी संभाल चुके हैं। तीरथ सिंह रावत सरकार में भी उन्हें कैबिनेट की ज़िम्मेदारी दी गई। मौजूदा पुष्कर सिंह धामी सरकार में भी वो पेयजल, वर्षा जल संग्रहण, ग्रामीण निर्माण और जनगणना जैसे अहम विभाग संभालते हुए कैबिनेट की शोभा बढ़ा रहे हैं। चुफाल मानते हैं  उत्तराखंड के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा विकास के नाम पर जनता से वोट मांगेगी और 60 से अधिक सीटें लेकर फिर से उत्तराखंड में भाजपा सरकार बनाएगी ।


 हर्षवर्धन  के साथ हुई खास बातचीत में पिछले दिनों कई मुद्दों पर उन्होनें खुलकर अपनी राय रखी । प्रस्तुत है इस बातचीत के मुख्य अंश :

 
बिशन जी 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य का गठन हुआ। 21 बरस पूरे होने जा रहे हैं एक अनुभवी राजनेता के तौर पर इस सफर को आप कैसे देखते हैं ? 

उत्तराखंड की जनभावनाओं को देखते हुए अलग राज्य की मांग उठी थी और अलग राज्य का गठन भी हुआ। राज्य गठन के बाद बीते 21 वर्षों में विकास की गति आगे बढ़ी। विकास तेजी से ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में हुआ है। इन इलाकों में सड़कें, स्कूल , स्वास्थ्य केंद्र और पहाड़ी इलाकों में पैदल झूलापुल बने हैं। उत्तर प्रदेश में 19 विधायक हुआ करते थे। आज हमारे पास 70 विधायक  हैं। उस हिसाब से तीन से साढ़े तीन करोड़ रू की विधायक निधि मिल रही है जो धनराशि विकास कार्यों में खर्च किया जा रहा है ।

केन्द्र में मोदी जी की सरकार होने का कितना फायदा इस प्रदेश को मिला है।  डबल इंजन होने से क्या प्रदेश में विकास की गति तेज हुई है ? 

सबसे पहले तो मैं आपको बता दूँ केन्द्र प्रोषित जितनी भी योजनाएँ चल रही हैं, उसका इस प्रदेश को बहुत लाभ मिला है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल जी ने सबसे पहले ग्रामीण जनता के दुख दर्द को जाना। 250 से अधिक आबादी वाले गांवों को उन्होनें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से जोड़ा क्योंकि उस उस समय प्रदेश सरकार के पास इतना बजट नहीं होता था।  केन्द्र सरकार के बजट की वजह से अगर प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना नहीं होती तो आज भी हमको गांवों तक सड़क पहुंचाने के लिए 15 साल और इंतजार करना पड़ता। गांवों में सड़क पहुँचाने के लिए एक तो ये बेहतर काम हुआ है। दूसरा केन्द्र पोषित जिनती भी योजनाएँ आज पी एम मोदी जी की समय में चल रही हैं चाहे वो स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो , शिक्षा के क्षेत्र में हो बहुत क्रांतिकारी विकास इस प्रदेश में हुआ है। धन केन्द्र से पर्याप्त मात्रा में आज मिल रहा है। समाज कल्याण में अभूतपूर्व काम हर क्षेत्र में हुए हैं। आल वैदर रोड का बेहतरीन काम दिख रहा है। पूर्व पीएम अटल जी ने जैसे गाँव गाँव सड़क पहुंचाई है ,वैसे ही मोदी जी घर –घर तक पानी का कनेक्शन पहुंचाने पर ज़ोर दे रहे हैं। जल जीवन मिशन केंद्र की बहुत बड़ी योजना है जिसमें 2022 तक हर परिवार के आँगन में स्वच्छ पानी मिलेगा। आज गाँव की महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। डबल इंजन की सरकार ने स्वरोजगार पर ध्यान दिया है। आज गाँव का नक्शा बादल चुका है। लाकडाउन के बाद गांवों में भी चहल पहल बढ़ी है। हर कोई आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। हमारे पी एम मोदी जी का भी नारा रहा है गाँव आत्मनिर्भर बनें। उत्तराखंड के सीमांत जनपदों में पलायन हो गया था। घरों, मकानों में ताले लगे थे। आज होम स्टे के माध्यम से रोजगार लोगों को मिला है, साफ पानी मिल रहा है। गाँव की आय बढ़ रही है क्योंकि वहाँ तक पर्यटक पहुँच गया है। लोगों को रोजगार भी मिला है। 

विपक्ष ये आरोप लगाता है डबल इंजन हर मोर्चे पर फेल हुआ है। काँग्रेस के महासचिव और पूर्व सीएम हरीश रावत का बयान मैं कुछ दिनों पहले पढ़ रहा था। वो कह रहे थे विकास की बुनियादी अवधारणा पर प्रदेश में भाजपा खरा नहीं उतर पाई है, तभी आपको तीन –तीन मुख्यमंत्री बदलने पर मजबूर होना पड़ा है। ये मुद्दा क्या आगामी चुनाव में आपकी पार्टी के लिए चुनौती नहीं है ? 

कोई चुनौती नहीं है। यह भाजपा का अपना आंतरिक मामला है। किसकी कहाँ पर जरूरत है ये तय करना पार्टी का काम है। मैं भी तो पहले कैबिनेट मंत्री था। कैबिनेट मंत्री बनने के बाद मुझे प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। अभी मदन कौशिक हैं हमारे प्रदेश अध्यक्ष। इसी प्रकार किसकी कब कहाँ जरूरत है ये पार्टी तय करती है। इसमें काँग्रेस को क्या परेशानी है ? हमने तो जनता के सामने 2017 में वायदा किया था जनता ने हमको जनादेश दिया था। उसी के अनुरूप हम दिन- रात काम कर रहे हैं । माननीय मुख्यमंत्री धामी जी युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं। जो काम राज्य में हमारी सरकार ने शुरू किए वो धरातल पर दिखाई दे रहे हैं इसलिए वो विकास की गति को देखकर बौखला गए हैं। उनके पास कोई मुद्दा ही नहीं है। चार साल तक तो वो सोये थे। विपक्ष इस प्रदेश में था ही कहाँ ? हरीश रावत जी कहाँ थे ? इन्होनें क्यों नहीं उठाए जनता से जुड़े हुए मुद्दे? कभी उठाए क्या मुद्दे ? सड़क में कभी धरना प्रदर्शन किया क्या इन्होनें? इनकी पार्टी ने विधान सभा में कोई मुद्दा नहीं उठाया। मुद्दे तो उठाने चाहिए थे विपक्ष क। अब इनके पास जनता को गुमराह करने और अनर्गल बयानबाजी के आलवा कोई मुद्दा मुद्दा नहीं है । 

पेयजल की समस्या पहाड़ों में गंभीर बनी हुई है । इस दिशा में आप कैबिनेट की कुर्सी संभालने के बाद से मिशन माड में हैं। इस दिशा में आपने क्या एक्शन प्लान बनाया है ? साथ ही पिथौरागढ़ नगर में इस हफ्ते पानी की सप्लाई सुचारु नहीं हुई। पानी का  संकट तो अब भी  बना हुआ है । 
 
यह आपका बहुत गंभीर सवाल है। जहां तक पिथौरागढ़ नगर की बात की आपने उस संकट के समाधान के लिए मैंने रात में ही अधिकारियों से बात की। इस समय पेयजल कर्मियों की हड़ताल से यहाँ पर थोड़ी परेशानी हुई है । नगर में हर मोहल्ले में पानी आ रहा है। अब विरोधी तो कहेंगे ही पानी नहीं आ रहा है। मैंने आज सभी अधिकारियों से फिर बात की है। नगर में  पेयजल की समस्या का निदान होगा। हमारे यहाँ पानी जो है वो थोड़ा कम आ रहा होगा लेकिन वो हर जगह आ रहा है। कर्मचारी हड़ताल करते रहें लेकिन कल तक हम पूरी व्यवस्था ठीक कर लेंगे।

 जहां तक आपने ये पहाड़ों में पेयजल का संकट उठाया ये विषय गंभीर है। पहाड़ों में पेयजल की समस्या नहीं है। पहाड़ में ऊंचाई वाले स्थानों में जो गाँव हैं वहाँ स्रोत नहीं थे। जो परंपरागत स्रोत हमारे धारे , नौले हमारे यहाँ हुआ करते थे वे बिल्कुल ही सूख गए क्योंकि पहले हम ये करते थे हम जो पोखर बनाते थे बरसात का पानी इकट्ठा करते थे। जलाशय बनाते थे , वो पानी धारे –नौलों तक जाता था। नदी का पानी बढ़ जाता था। हमारे पोखर और जलाशय बंद हो गए। उस तरफ हमारी जनता ने ध्यान देना ही बंद कर दिया। जनता का ध्यान बंट गया तो उस समस्या के समाधान के लिए गाँव में जलाशय का निर्माण पुनः मनरेगा के माध्यम से हम कर रहे हैं। अन्य विभागों के माध्यम से पंचायतों में जो बजट है पंद्रहवें वित्त आयोग का जो बजट है उसे खर्च कर रहे हैं। आज गाँव में जहां जहां पानी नहीं आ रहा था वहाँ -धारे नौले में भी अब गर्मियों में भी भरपूर मात्रा में आ रहा है। आप गाँव में किसी से भी पूछ लें कहीं पानी की कोई समस्या नहीं है । जहां पर गाँव में पानी नहीं है, वहाँ पर हम पंपिंग के माध्यम से योजना ला रहे हैं। मैं भारत सरकार के पेयजल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जी का आभारी हूँ जिन्होनें हमारे प्रदेश की विषम भौगोलिक  परिस्थिति को समझा। पहाड़ में बड़ी विषम परिस्थितियाँ हैं। जल जीवन मिशन के जो मानक थे तहत एक परिवार के अंतर्गत 25000 रू खर्च किए जाने थे उससे हर गाँव को पानी नहीं मिल रहा था। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री जी ने यहाँ पहाड़ों की स्थिति को देखते हुए हमारे पक्ष को सुना। इन कारणों से लागत 25000 रु से बढ़ गई । आप देख लें,  एक परिवार में एक से डेढ़ लाख तक का पंपिंग योजना में खर्च कर रहा है और आज गांवों में नल बिछाये जा रहे हैं। लोग काफी खुश हैं। पहले की योजना बनाने में सालों -साल लग जाते थे।  आज हमारे कार्यकाल में पंपिंग के टेंडर भी शुरू हो गए हैं, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि मैं मानता हूँ । 

जल जीवन मिशन केंद्र पोषित बेहतरीन योजना है लेकिन पूर्व सी एम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के दौर में हमने देखा बड़े पैमाने पर ड्राई कनेक्शन बांटे गए । लोगों की शिकायात ये थी साहब नल तो लग रहे हैं लेकिन उनमें पानी नहीं आ रहा ? 

पानी कम आ रहा था। एक स्टैंड पोस्ट खड़ा किया था वो स्टैंड पोस्ट से गाँव के बाहर आदमी पानी पी रहे थे। स्टैंड पोस्ट आधे इंच का हुआ वो डेढ़ इंच लाइन घरों को पहुंचा दिया। ये कमी रही। फिर गाँव में आधे गाँव को पानी का कनेक्शन दिया।  आधे गाँव  को नहीं। तो योजना जो बनती है वो पूरे गाँव की आबादी के हिसाब से बनती है और योजना तो पहले जनसंख्या के हिसाब से बनी थी। पानी की भी अपनी मात्रा है और अब गाँव में कुछ लोगों को लगा पानी पहले अधिक आ रहा था। नीचे को कनेक्शन जोड़ दिये गए और स्टैंड पोस्ट नीचे हुआ। कुछ परिवार ऊपर थे। ऊपर थोड़ी स्टैंड पोस्ट था जो पानी ऊपर जाएगा। कुछ उसी प्रकार कुछ लोगों को पानी नीचे दे दिया गया। वहाँ कम पानी आ गया। थोड़ा सा लोगों में मन- मुटाव रहा और पानी कम आ रहा था जिसका समाधान हमने एक महीने के अंदर कर दिया। 

राज्य गठन के बाद नौकरशाही को साधना हर सरकार दल के लिए एक बड़ी चुनौती रही है । 21 बरस में ये प्रदेश अगर अस्थिरता के भँवर में झूलता रहा तो इसका एक  बहुत बड़ा कारण बेलगाम  नौकरशाही भी रही है।  विधायकों , मंत्रियों का दर्द भी एक ही है अधिकारी उनकी नहीं सुनते ? अब क्या अब सब  आल इज वेल है इस प्रदेश में ? 

मैं कहता हूँ आपसे इसमें हम भी दोषी हैं। सरकार में हम भी हैं और  इस नौकरशाही ने प्रदेश को काफी पीछे किया है। आज भी मैं देखता हूँ नौकरशाही की तो आदत ही वही पुरानी बनी  हुई है। जो 20-25 साल से उसी पुरानी कार्यसंस्कृति के अंतर्गत काम कर रहा है, उसकी आदत तो एकदम तो नहीं सुधर पाएगी। अधिकारियों को अपनी मानसिकता उत्तराखंड बनने के बाद बदलनी चाहिए थी जो नहीं बदली। सरकार में रहते हुए अगर हम भी दोषी हैं तो आप भी दोषी हो सकते हैं। मीडिया को भी आवाज उठानी चाहिए थी। अधिकारियों के प्रति धीरे- धीरे ये आवाज उठी व आपने भी उठाई हमने भी और मंत्रियों ने भी कहा। धीरे- धीरे ही सही आज अधिकारी हमारी बात सुन रहे हैं। टेलीफोन उठाते हैं जो समस्याएँ आती हैं उसका समाधान करते हैं। जनप्रतिनिधियों की भी सुनते हैं। अब अंतर दिख रहा है ।  

आगामी चुनावों में भाजपा के पास क्या मुद्दे रहेंगे ? 
 
हम आने वाले चुनावों में विकास के नाम से वोट मांगेंगे। आज कोई राजस्व गाँव ऐसा नहीं है इस प्रदेश में जहां सड़क नहीं पहुंची है और कोई भी परिवार ऐसा नहीं जहां पानी नहीं पहुँच रहा है। कोई स्कूल ऐसा नहीं जहां पर ताले पड़े हैं और जहां टीचर नहीं हैं। अच्छी शिक्षा के लिए हमने अटल उत्कृष्ट विद्यालय खोले हैं। हम पलायन रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं। आज हर अभिवावक की चाहत है, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले व आज गांवों में आप देखिये अच्छे स्कूल खुले हैं। भवन निर्माण हो गया है। कंप्यूटर आ गया है। पहले ये सब चीजें नहीं थी। अपनी विधायक निधि से प्राथमिक, इंटर , उच्च शिक्षा के लिए जो धनराशि  विधायक देते हैं उससे प्रोजेक्टर, कंप्यूटर , स्मार्ट बोर्ड , फर्नीचर उपलब्ध करवाकर स्कूलों की तस्वीर ही बदल गई है और आज गाँव के इन स्कूलों में भोजन माताएँ हैं। पानी के कनेक्शन हैं और हर न्याय पंचायत में अटल स्कूल भी खुला है तो हमारे ऐसे कई मुद्दे हैं। किसानों की आय बढ़ाने के लिए किसान सम्मान निधि हमने शुरू की। कोरोना की निशुल्क वैक्सीन हमने लोगों को उपलब्ध करवाई। एक साल तक लोग कोरोना के चलते परेशान हुए। रोजगार चला गया। प्रधानमंत्री मोदी और सी एम धामी जी ने 1 साल तक के लिए फ्री राशन लोगों को दे रखा है और लोगों का स्वास्थ्य कार्ड बनाया है। आज हर क्षेत्र में काम हुआ है। जनता इसे देखते हुए भाजपा को फिर से प्रदेश में कमान सौंपना चाहती है। 

डीडीहाट विधान सभा का प्रतिनिधित्व आप लंबे समय से कर रहे हैं। इस विधान सभा क्षेत्र में आपकी विशेष उपलब्धियां क्या रही हैं हम जानना चाहते हैं ? 

मेरी अपनी विधानसभा के राजस्व गांवों के तोकों तक आदमी 1 किलोमीटर भी पैदल नहीं चल रहा है वहाँ तक मैंने अपने प्रयासों से विधायक निधि के माध्यम से सड़क पहुंचा दी है जिसे मैं अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानता हूँ। सड़क के होने से आज लोग स्वरोजगार और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मैंने प्रेरित किए हैं। मेरी विधान सभा में सबसे अधिक लोग स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं और पिछले कुछ समय से जिस तरह के कार्य यहाँ किए जा रहे हैं वह उल्लेखनीय हैं। मूनाकोट के भटेडी में 150 से अधिक मुर्गीबाड़े बने हैं जहां मुर्गियाँ बाहर पीलीभीत से आती थी।  मगर अब भटेडी से ही आईटीबीपी, एसएसबी , मिलिट्री बाजार में जा रही है। उसी के पास के इलाके में मशरूम का काम ज़ोर-शोर से चल रहा है। कनालीछीना बेल्ट में बहुत सारे गाँव ऐसे हैं जहां पर मत्स्य, फल-सब्जी का काम ज़ोर शोर के साथ चल रहा है। डूंगरीगांव आदर्श गाँव है। थल बेल्ट में लोग आज फूलों की खेती कर रहे हैं वहाँ पर बेहतरीन काम हो रहा है। सब्जी का उत्पादन काश्तकार कर रहे हैं। कहीं –कहीं पर जड़ी बूटी का उत्पादन भी किया जा रहा है। लोकल को वोकल बनाने का प्रयास चरम पर है। मेरी पहाड़ की विधानसभा में एक समस्या जंगली जानवर और बंदरों की है ।

किसी दौर में आपने बंदरबाड़े लगाने की बात भी बड़े ज़ोर शोर के साथ की थी लेकिन ये बंदरबाड़े आज तक नहीं बन पाये ? 

कैम्पा के तहत धनराशि आ चुकी है। मैं आपको बताना चाहता हूँ , हम ये सब शुरू कर रहे हैं। बंदरों के चलते मेरी विधान सभा में फसल को बहुत नुकसान होता है। मैं आपको बताना चाहता हूँ ये सब शुरू हो गए हैं। फिर इनकी प्रजाति में तेजी से वृद्धि होती है। इसे देखते हुए हम बंदरों का बंध्याकरण भी कर रहे हैं। 

स्वरोजगार की कई योजनाएँ तो एन डी तिवारी जी के दौर में भी चल रही थी। मौन पालन, मुर्गी पालन, मछ्ली के लिए सब्सिडी भी अच्छी ख़ासी दी जा रही थी। काँग्रेस का आरोप ये रहता है आपने उनकी योजनाएँ अपने नाम से शुरू कर ली और वाहवाही बटोर रहे हैं। स्वरोजगार के मसले पर लोन देने में बैंक आज भी आनाकानी कर रहे हैं ? 

मैं काँग्रेस से ये सवाल करना चाहता हूँ आपकी 100 रू की योजना थी 15 रू उसमें मिलते थे। भाजपा की सरकार में 100 रु में 100 रु लाभार्थी के खाते में जा रहे हैं। ये हमारी बड़ी उपलब्धि है। जो कह रहे हैं हमारी योजना थी उनको ये पता होना चाहिए आपकी योजना तो आम आदमी तक भी नहीं पहुँचती थी। बीच में बिचौलिए ही खा जाते थे। देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने लोगों का जन –धन का खाता खोला गैस का पैसा ,किसान निधि का पैसा , मनरेगा का पैसा सीधे उनके खातों में चला गया। हर सरकारी योजना का पैसा आज सीधे लाभार्थी के खातों में जा रहा है। पहले ऐसा नहीं हुआ करता था। बिचौलिए बीच में गड़बड़ कर देते थे तभी उनके प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी ने एक दौर में कहा भी था केंद्र से 100 रु चलता है लेकिन 15 रू ही लोगों तक पहुँच पाते हैं। काँग्रेस को तो शर्म आनी चाहिए उनकी सरकार में कभी भी लाभार्थियों को धनराशि  समय से नहीं मिल पाई।

आगामी चुनावों में आम आदमी पार्टी को आप कितना बड़ा खतरा मान रहे हैं प्रदेश में भाजपा के लिए ? 
आप भाजपा के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है। देवभूमि की जनता बहुत समझदार है वो किसी के झांसे में नहीं आने वाली । 

लेकिन आप पार्टी तो कह रही है हम फ्री बिजली, पानी और युवाओं को रोजगार  देंगे ? 

कहाँ से ला रहे हैं वो पैसा ? उत्तराखंड का बजट कितने का है ये पता है क्या उनको? ऐसे ही विकास थोड़ी हो जाएगा? बजट के हिसाब से ही तो विकास होगा , रोजगार मिलेगा। उत्तराखंड सरकार के मौजूदा बजट की बड़ी धनराशि कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में खर्च हो जाती है। 

लेकिन वो तो कह रहे हैं हम 6 माह में 1 लाख लोगों को रोजगार देंगे। बेरोजगारों को प्रतिमाह 5 हजार का भत्ता देंगे । वो तो गारंटी कार्ड दे रहे हैं यहाँ की जनता को फार्म भरवाकर 

कहाँ से देंगे आप वाले कोई संजीवनी बूटी है ? उनके पास क्या कोई ऐसा बटन है जिसे दबाने से सरकारी नौकरी युवाओं को मिल जाएगी? आप तो सिर्फ जनता को बरगला रहे हैं। जो नौकरी की बात कर रहे हैं उनको मैं बताना चाहता हूँ उत्तराखंड के मौजूदा बजट का 85 फीसदी हिस्सा कर्मचारियों  के पेंशन और  वेतन में खर्च होता है। 15 फीसदी हिस्सा विकास में खर्च होता है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में 40 फीसदी पैसा कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में जाता है। इतना छोटा सा प्रदेश है हमारा इसकी आर्थिक स्थिति तो देखिये पहले तब कुछ बोलिए। आपके पास कोई नेता है नहीं । नेता को तो पहाड़ की भी बुनियादी समझ होनी चाहिए । सेना से सेवानिवृत्त व्यक्ति को आपने पार्टी जॉइन करवा दी ऐसे थोड़ी विकास हो जाएगा । पहाड़ का आदमी जिसने जमीन पर काम किया है वहीं तो पहाड़ को जानेगा। ये आप पार्टी वाले पहाड़ की मासूम जनता को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। जब आप सब कुछ फ्री कर दोगे तो आदमी तो अकर्मण्य बन जाएगा । 

बी सी खंडूड़ी  जी आपके राजनीतिक गुरु रहे हैं। उन्होनें अपने कार्यकाल में राज्य में नई लकीर खींची । उनका लोकायुक्त आज तक लटका है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ये वादा किया था 100 दिन में लोकायुक्त लाएँगे लेकिन ये आज तक अटका पड़ा है। विपक्ष इसको लेकर आपको गाहे -बगाहे कठघरे में खड़ा करता है। वो तो ये भी कहता है चुनाव के समय खंडूड़ी जी जरूरी हो जाते हैं चुनाव के बाद गैर जरूरी 

चुनाव के समय ही विपक्ष को ये मुद्दे क्यों याद आते हैं ? खंडूड़ी जी अगर जरूरी थे तो नारा उनके समय में था । जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा उसी का नारा लगेगा। अब पार्टी में जो काम करेगा उसी का नारा लगेगा। मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी जी के नेतृत्व में युवा सीएम का नारा हमने दिया है। उनके नेतृत्व में हम चुनाव जीतेंगे तो पार्टी भी उसी पर नारा लगाएगी ।

राज्य गठन के बाद आंदोलन यहाँ की नियति ही बन चुकी है। जहां देखो वहाँ आंदोलन। उपनलकर्मी, रोडवेज कर्मचारी, स्वास्थ्य विभाग के संविदाकर्मी तो कभी नगर पालिका के कर्मचारी , आशा कार्यकर्ता प्रदर्शन पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं । कैसे देखते हैं इसे आप 

अब चुनाव पास है तो सभी को लगता है धरना प्रदर्शन करके अपनी मांगें सरकार के सामने उठा रहे हैं। आज से पहले इन्होनें कभी अपनी मांगे नहीं उठाई सब के सब सोये हुए थे। अब चुनाव है तो हमारे डीडीहाट जिले की भी मांग उठ रही है। अनशन हो रहे हैं । 

मैं डीडीहाट पर आना चाहता हूँ। डीडीहाट जिले का मुद्दा आगामी चुनावों में भाजपा और काँग्रेस के गले की बड़ी फांस बन सकता है । आप कैसे देख रहे हैं इसे ?
 
जिले के लिए 2011 में तत्कालीन निशंक सरकार के समय हमने अधिसूचना जारी की। उस अधिसूचना में ये स्पष्ट लिखा हुआ है 2012 में चुनी हुई सरकार 4 नए जिलों को अस्तित्व में लाएगी। तत्कालीन राजस्व सचिव पी सी शर्मा की तरफ से उस समय ये अधिसूचना जारी हुई थी जो आज भी है हमारे पास लेकिन उसके बाद हमारी सरकार ही बदल गई। काँग्रेस ने उसे पुनर्गठन आयोग बनाकर ठंडे बस्ते में डाल दिया। जिले को अस्तित्व में लाने का काम अब हमारा है। हम ही इसे बनाएँगे लेकिन हर चीज का मानक होता है उसी के हिसाब से चलना होता है। 

आपके पास जनगणना विभाग भी है । कोविड के चलते 2020 में जनगणना नहीं हो पाई। क्या 2021 में ये होगी ? साथ ही राज्य में पिछले दिनों बड़ा डेमोग्राफिक बदलाव देखने को मिला है  । इसे आप कितना चुनौतीपूर्ण मानते हैं ? 

कोविड के चलते जनगणना नहीं हो सकी। भविष्य में हालातों को देखते हुए इस पर निर्णय लिया जाएगा। उत्तराखंड में हाल के वर्षों में पलायन काफी बढ़ा है। जनसंख्या बढ़ गई है।  सीमांत जनपदों में भी बदलाव हुआ है। हरिद्वार , देहरादून , नैनीताल जैसे जिलों में आबादी का घनत्व बढ़ गया है जो चुनौतीपूर्ण है। 

आपके पास वर्षा जल संग्रह का भी मंत्रालय है। मैंने अन्ना हज़ारे के गाँव रालेगनसिद्धि को करीब से देखा है वहाँ पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर बेहतरीन काम उन्होनें किया है। क्या अपने पहाड़ में भी ऐसा संभव हो सकता है ? 

आपने सही कहा ये विभाग भी मेरे पास ही है। मैंने बीच में आपसे कहा था हम पंचायत, पंद्रहवें वित्त आयोग और अन्य विभाग जैसे कृषि, वन विभाग की मदद से इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। वन विभाग चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष लगा रहा है।  वो भी वर्षा का जल संग्रह करने की दिशा में कम कर सकते हैं। पहाड़ में भी इस दिशा में काम हो सकता है। मैं आपको कुछ उदाहरण देना चाहता हूँ। मेरी विधान सभा के इलाके मूनाकोट , मड़मानले , सुवालेख। यहाँ पर पानी का कोई स्रोत नहीं था। तत्कालीन समय में अविभाजित यूपी के सी एम स्वर्गीय कल्याण सिंह जी थे। उस समय सुवालेख में वर्षा का पानी संग्रह करने के लिए बड़े टैंक बनाए गए। उन टैंकों में हमने 3 महीने तक वर्षा का पानी एकत्रित किया। लोग साल भर उस पानी को पीते थे और उसके बाद वहाँ पर हमने दो –तीन टैंक और बनाए। उसी प्रकार की मांग अन्य इलाकों से भी आई और  बरसात का स्रोत टैंक में डाल दिया। पी एम मोदी जी ने जिस तरीके से स्वच्छता अभियान चलाया वैसे ही उस समय हमने अपनी विधान सभा में वर्षा जल संग्रहण का अभियान चलाया। इससे जमीन के अंदर पानी की मात्रा बढ़ेगी। इधर पहाड़ों में भी हम पोखरों को ठेक कर रहे हैं । धारे –नौले अब नहीं सूख रहे हैं । 

सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में डीडीहाट विधान सभा में संचार सेवा जी का जंजाल  बनी हुई है । अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े होने के चलते यहाँ पर नेटवर्क की बड़ी समस्या बनी रहती है । इस दिशा में आपके द्वारा कोई प्रयास नहीं हुए हैं ? 

क्नेक्टिविटी की थोड़ी समस्या है। घाटी वाले इलाकों में गांवों में ये समस्या अधिक है। इस समय जियो कंपनी काम कर रही है। हमारा प्रयास है गाँव -गाँव तक वो अपने कनेक्शनों से लोगों को आपस में जोड़ रहे हैं। 

देवस्थानम बोर्ड का मसला गढ़वाल की कई सीटों पर भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर पलीता लगा सकता है। गढ़वाल में सीटें अधिक हैं। पूर्व सी एम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के दौर में उनके इस फैसले को लेकर सवाल उठते आए हैं लेकिन अभी तक इसका समाधान नहीं हो पाया है।   तीरथ सिंह रावत ने तो मार्च में कमान सौंपते ही कहा था हम इस फैसले को पलटेंगे लेकिन  आज  तक बात आगे नहीं बढ़ पाई। अभी धामी जी के दौर में भी वही हालात हैं ? 

हम लोगों की जो पहचान है, हमारी जो संस्कृति है, परंपरागत कारोबार है , उद्योग धंधे हैं , स्वरोजगार है इसे एकदम बंद नहीं करना चाहिए । धार्मिक मसलों पर तो जल्द से जल्द विचार करना ही सही है । 

तराई में किसान आंदोलन का मुद्दा भाजपा के लिए  आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कितनी परेशानी खड़ा कर सकता है ? बाजपुर में सी एम धामी की सभा तो दूर,  दौरा तक नहीं हो पा रहा है ? 

किसान इसे नहीं समझ पा रहे हैं। ये केवल और केवल राजनीति है । किसानों को ये समझना चाहिए ये कानून किसानों के हित में बना है। कुछ लोग इसमें आंदोलन के माध्यम से राजनीतिक रोटियाँ सेक रहे हैं। धीरे –धीरे कुछ किसान समझ रहे हैं इसे लेकिन कुछ लोग राजनीतिकरण कर रहे हैं इस आंदोलन के नाम पर। जनता इसे बखूबी समझ रही है।
 
काँग्रेस से भाजपा में आए लोगों का दर्द ये है भाजपा में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला। पिछले दिनों पिता और पुत्र यशपाल – संजीव की जोड़ी की घर वापसी हो गई। क्या उम्मीद करें अब हम चुनावी साल में भाजपा से और विधायक काँग्रेस में नहीं छिटकेंगे ? 

मुझे तो पाँच साल तक ऐसा कुछ भी नहीं लगा जैसा आप कह रहे हैं अपना –पराया। भाजपा सबको साथ लेकर चलती है। जो निर्णय लेती है वो समूहिक होते हैं। लोगों को तो मुद्दे चाहिए कुछ भी बोलने के लिए। चुनाव के समय किसी की कोई सीट खतरे में होगी तो वो बदल रहा होगा। सीट कहीं खतरे में जा रही होगी तो पाला बदल लिया होगा। 2 माह तक तो यशपाल जी भाजपा की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे। आज एकाएक कैसे काँग्रेस में घर वापसी कैसे कर ली ?

एक दौर था जब भाजपा को पार्टी विद डिफरेंस कहा जाता था। आज पार्टी का चाल , चलन और चेहरा सब कुछ बदल गया है। दूसरे दलों से नेता  आकर भाजपा रूपी गंगोत्री में समा रहे हैं जहां पर शामिल होने से उनके सभी पाप धुल जा रहे हैं और अनुशासित पार्टी में नेता कार्यकर्ता सार्वजनिक स्थानों में लड़ते नजर आ रहे हैं इससे संदेश ठीक नहीं जा रहा है जनता में । पिछले दिनों उमेश शर्मा काऊ कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत के एक कार्यक्रम में जिस तरह कार्यकर्ताओं के बीच पेश आए या शमशेर सत्याल - हरक सिंह रावत के बीच आए दिन बयानों के तीर छोड़े गए उससे जनता में सही संदेश नहीं गया है ? पिछले दिनों उमेश शर्मा काऊ भी यशपाल आर्य के साथ दिल्ली में राहुल गांधी से मिलने पहुंचे थे लेकिन आखिर समय में वाशरूम का बहाना बनाकर काँग्रेस मुख्यालय से बाहर निकालकर भाजपा के दीन दयाल परिसर में नजर आए । जनता ये सब देख रही है तमाशा। क्या अब हम मानें यशपाल-संजीव  के काँग्रेस में जाने के बाद भाजपा अपना कुनबा एकजुट रख पाएगी चुनाव तक ? 

हमारी पार्टी बहुत बड़ी पार्टी है। जहां पर बड़ा परिवार होता है वहाँ पर बर्तन तो टकराते हैं लेकिन यह भी सच है हम आपस में बैठकर समाधान निकाल लेते हैं। हमारे यहाँ जो भी निर्णय लेता है वो सामूहिक ही होता है। मनमुटाव तो चलता रहता है । मनभेद होते हैं लेकिन मतभेद नहीं होते हैं । 

डीडीहाट से लगातार 5 बार आप जीत का परचम लहराते आए हैं । आपने आज तक अपनी सीट भी नहीं बदली । इस जीत का राज क्या है हम जानना चाहते हैं ? 

इसका जवाब तो आपको जनता ही बेहतर तरीके से दे पाएगी। जनता का आशीर्वाद मुझे हर हमेशा मिलता रहा है लेकिन फिर भी ये सब तो आपको जनता ही बता पाएगी। 

आपको आगामी चुनावों में भाजपा के कितनी सीट जीतने की उम्मीद दिखाई दे रही है 

भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी और 60 से अधिक सीटों के साथ फिर से उत्तराखंड राज्य की सत्ता में अपनी वापसी करेगी। 

डीडीहाट में आपकी विधान सभा में अब कितने काम बाकी हैं ? 

देखिये मेरी विधान सभा में समस्याएँ अनंत हैं। मैं अपने पूरे क्षेत्र में भ्रमण करता रहता हूँ। एक समस्या पूरी होने के बाद दूसरी आ जाती है। सड़क बनी , सड़क बनने के बाद डामर चाहिए । डामर के बाद गड्ढे ठीक करने पड़ते हैं। आपदा आई तो मलबा हटाना पड़ता है । ऐसी समस्याएँ तो आती ही रहती हैं। मैं उसका समाधान करने की हर संभव कोशिश करता रहता हूँ लेकिन हमने अपनी विधानसभा में जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान किया है। मेरा मुख्य प्रयास लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना रहा है। मैंने स्वरोजगार से ही राजनीति  के मैदान में अपना कदम रखा । जिन दिनों मैंने राजनीति शुरू की उन दिनों सरकारी नौकरी एमए बी एड वालों को आसानी से मिल जाती थी। मुझे भी मिल जाती लेकिन मैंने किलमोड़ा की जड़ों  , दालचीनी बेच कर रोजगार प्राप्त किया। आज मैं उसी को आगे बढ़ाकर काम कर रहा हूँ । मेरा एक मित्र है जिसका बंजर खेत भी है। बंजर खेत में दालचीनी  उगाकर उसने उसने 4 से 5 लाख का एक साल का मुनाफा कमाया। काम करने वालों के लिए तो काम ही काम पड़ा हुआ है । आज बैंक कर्ज बिना ब्याज का दे रहे है। बकरी पालन , मछ्ली पालन , मुर्गा पालन जैसे कई स्वरोजगार के काम पहाड़ में स्वरोजगार के नाम पर किए जा सकते हैं । बस मन में एक इच्छा शक्ति होनी चाहिए। मैं तो अपनी विधान सभा के गांवों के लोगों से कहता रहता हूँ जड़ी- बूटी  ,हल्दी लगाओ इसे मैं ख़रीदूँगा। अपने घर के आगे मैंने मसाला उद्योग लगाया हुआ है। लोग कृषक मैत्री वाले मसालों को आज खूब पसंद कर रहे हैं और उनको मांगते भी हैं। कहते हैं उसमें किसी भी तरह की मिलावट नहीं है। मैं खुद अब  इस दिशा में लोगों को प्रेरित नहीं करूंगा। 

आपके विधान सभा क्षेत्र की जनता आपको सीएम के रूप में देखना  चाहती है । इस बार भी आप चूक गए ये मुराद कब तक पूरी होगी ? आपकी एक खूबी ये भी रही है आप बिना लाग  –लपेट के बात नहीं करते हैं। सीधा और सपाट बोलते हैं। लोगों की ये मुराद कब तक पूरी हो पाएगी ?
 
ये निर्णय करना मेरा काम नहीं है। पार्टी निर्णय करती है ये तो पार्टी का काम है मेरा काम नहीं है। पार्टी ने मुझे चार साल मंत्री नहीं बनाया तो क्या मैं चार साल तक काम नहीं कर रहा था ? चार साल बाद मंत्री बनाया तो बन गया। सीएम तो एक ही बनेगा जिसको पार्टी तय करेगी वही मुखिया बनता है और उसी के नेतृत्व में हमको  काम करना होता है।वही अभी हम सब कर रहे हैं। 
 

Thursday, 9 September 2021

‘ ध्यानचंद एक ऐसा नाम है जो अमर है ’


 


अशोक कुमार भारत के पूर्व हॉकी  ओलम्पियन खिलाड़ी रहे हैं । वो हॉकी  के जादूगर कहे जाने वाले महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के बेटे हैं । महज 6 बरस की  उम्र में हॉकी  स्टिक पकड़ ली और अपने पिता ध्यानचंद और चाचा रूप सिंह के पगचिन्हों पर चलते हुए उन्होनें 70 के दशक में अपनी प्रतिभा से हॉकी  के खेल में अपना अलग स्थान बनाया और अपने खेल से सभी का दिल जीत लिया । अशोक ने भारत की ओर से तीन विश्वकप खेले हैं । उन्होनें पहला विश्व कप 1971 में खेला जिसमें भारतीय टीम ने कांस्य पदक हासिल किया । उसके बाद 1973 के विश्वकप की रजत पदक विजेता टीम के भी सदस्य रहे । 1975 के विश्वकप जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य भी रहे । अशोक कुमार ने दो बार ओलम्पिक खेलों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया । 1972 में म्यूनिख में भारत ने  कांस्य पदक हासिल किया वहीं 1976 में मांट्रियल  में भारत सातवें  स्थान में रहा । अशोक कुमार भारत के लिए तीन एशियाई खेलों का हिस्सा भी रहे हैं जहां भारत ने तीनों में रजत पदक प्राप्त किया । 

भारतीय हॉकी टीम भले ही टोक्यो ओलम्पिक में 41 साल बाद कांस्य पदक जीती  है लेकिन ओलम्पिक के इतिहास में भारतीय हॉकी  का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में आज भी दर्ज है । भारतीय पुरुष हॉकी  टीम ने 1928 के एम्सडर्म ओलम्पिक से अपना सफर शुरू किया था, जो अभी तक बदस्तूर जारी है । 1928 से 1956 तक का दौर भारतीय हॉकी  का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है । इसी दौर में भारतीय हॉकी टीम ने सर्वाधिक मेडल जीते । भारतीय हॉकी  टीम के नाम ओलम्पिक हॉकी  में लगातार 6 गोल्ड मेडल जीतने का विश्व रिकार्ड भी दर्ज है । 

भारतीय हॉकी  टीम के स्वरूप , हालिया प्रदर्शन और तमाम संभावनाओं को लेकर 
मैंने बीते दिनों ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार से विशेष बातचीत की । अशोक कुमार मानते हैं टोक्यो ओलम्पिक में मेडल जीतना खिलाड़ियों के लिए निश्चित ही प्रेरणा और जीत का काम करेगा । अब हमको यह देखने की जरूरत है देश में हॉकी  को कैसे बढ़ावा दिया जाए।  

प्रस्तुत है हॉकी  के खेल को लेकर  उनसे हुई  इस विशेष बातचीत के मुख्य अंश :  

41 बरस के बाद भारतीय हॉकी  टीम ने ओलम्पिक में मेडल पाने का सूखा खत्म किया । इस ऐतिहासिक विजय गाथा को आप किस रूप में देखते हैं ?

ये हमारे लिए हाकी में एक बड़ी जीत है । इस जीत ने टीम के अंदर एक उत्साह भर दिया है । हमारी उन तमाम उन नाकामयाबियों के ऊपर पर्दा डाल दिया है जो हमने पिछले कई वर्षों से झेली है । वो उम्मीदें जो हमारी टीम के साथ हमेशा बनी रही कि टीम अच्छा करेगी । हमारी उम्मीदें तब धूमिल हो गई लेकिन इस टोक्यो ओलम्पिक में टीम के अंदर एक नया जज्बा देखने को मिला । एक ऐसा जज्बा,  किसी चीज को पाने की  लगन देखने को मिली । ये लगन एक दिन की नहीं थी । इसने पूरे डेढ़ से दो साल का वक्त लगाया । इस टीम ने उस भरोसे को जीतने के लिए जो उन्होनें खुद के ऊपर था और अपनी टीम, सारे खिलाड़ियों  के ऊपर था जिनकी वजह से टीम ने अच्छा परफार्म किया ।  शुरुवाती झटके हमें बहुत बुरे लगे हैं और आस्ट्रेलिया के खिलाफ जो बड़ी हार हुई इस ओलम्पिक में वह एक बड़ा झटका था लेकिन आगे के मैचों में इस टीम ने संतुलित होकर मानसिक ढंग से जो तकनीक अपनाई वो टीम के लिए तारीफ करने की बात है ।  सबसे बढ़कर उस दौरान में हमारे प्रधानमंत्री जी ने जो पर्सनल टच दिखाया वो काबिले – तारीफ रहा । मोदी जी ने हॉकी  के खिलाड़ियों को ये अहसास कराया आप अकेले नहीं हैं । पूरा हिंदुस्तान आपको देख रहा है । टीम के खिलाड़ियों से व्यक्तिगत तौर पर बात करने जैसी प्रधानमंत्री जी की बातें निश्चित रूप से टीम की स्प्रिट को बढ़ाने में बहुत सहायक सिद्ध हुई । जर्मनी के साथ मैच तो भारतीय हॉकी  के लिए बेहतरीन था ।  इसे वर्ल्ड हॉकी  खेलने वाले लीजेंड ही खेल सकते हैं । 

आस्ट्रेलिया के खिलाफ करारी हार के बाद क्या बेल्जियम जैसी चैम्पियन टीम के खिलाफ ये टीम शानदार वापसी कर लेगी ऐसी उम्मीद आपको थी ? आस्ट्रेलिया के खिलाफ हार के बाद टीम के मनोबल पर तो असर पड़ता है वो भी तब, जब आप ओलम्पिक खेल रहे हैं ? आस्ट्रेलिया से हार के बाद आप आगे क्वालिफाई   कर जाएंगे और कांस्य पदक ले जाएंगे ये कहीं न कहीं चौकाया ? 

हमको ही नहीं पूरी दुनिया को चौंकाया । हाँ , हमको ये लगा आस्ट्रेलिया के खिलाफ हम प्रेशर में खेले । आस्ट्रेलिया का रिकार्ड काफी अच्छा है । प्रेशर में 7 गोल हो गए और हमारी टीम अव्यवस्थित हो गई । पूरा मनोबल टूट गया । हार के बाद सभी ने ये जाहिर भी किया होगा । उसको उबारने के लिए आपस में तालमेल बना । इसके बाद हमने बेल्जियम जैसी विश्व चैंपियन टीम को जिस अंदाज में पराजित किया वो काबिले – तारीफ था । किसी टीम का एक लेवल अगर बन जाए तो उसको मैंटेन करना होता है । नेगेटिव पॉइंट निकालना और पाजिटिव बनाना मैनेजमेंट का काम होता है । खिलाड़ियों की समझ ,विवेक और हौंसला भी काम करता है । टोक्यो ओलम्पिक में हॉकी  क्वार्टर फाइनल मैच तो मिसाल के तौर पर याद रखा जाएगा । 

हॉकी  के जादूगर दादा ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी  की दुनिया में एक अलख जगाई व दादा जब खेलते थे तो संसाधन बेहद सीमित थे । आज ग्लैमर, पैसा ,   स्पांसरशिप,  शोहरत सब कुछ है । कैसे इस दौर को आप उस दौर से अलग पाते हैं ?

हर्ष भाई आपने बिलकुल ठीक बात आपने कही । पहले ओलम्पिक शौकिया खेलों में होते थे । पहले खिलाड़ी  अपने संसाधन में खेलते थे । आज के दौर में बदलाव आ गया है । अब प्रोफेशनल आ गए हैं । जब प्रोफेशनल खेल रहे होते हैं तो चीजें बदल जाती हैं । उनके पीछे पैसे का बड़ा हाथ होता है। हम अच्छा करेंगे तो अच्छा पैसा मिलेगा ये बात हो जाती है । ध्यानचंद जी के जमाने में ये सब बातें नहीं थी । जो बात असली थी वो ये कि देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने की ललक, गोल्ड जीतने के लिए सारी कोशिशें उस दौर में हुआ करती थी । गोल्ड जीतने के लिए तब कोई एक्सपोजर नहीं हुआ करता था । टेस्ट, संसाधन नहीं थे । उनके बावजूद आपको अपनी ड्यूटी  पूरी करने के बाद प्रैक्टिस  करनी होती थी । शौकिया खेल में उन्होनें खेल को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया जिसकी मिसालें आज तक दी जाती हैं। ओलम्पिक तो ओलम्पिक होता है ।  हर वर्ष ओलम्पिक में रिकार्ड टूटते रहते हैं । कोई भी खेल हो । जब से ये ओलम्पिक शुरू हुआ है तब से रिकार्ड टूटने का सिलसिला चल रहा है ।  आज की  भारतीय हॉकी  टीम और ध्यानचंद  की कोशिशें जो उन्होनें अपने बेहतर खेल से, व्यवहार से और अपने कहे गए लफ्जों से भी बनाई । जब जर्मनी के हिटलर  ने कहा तुम मेरे लिए जर्मनी में आ जाओ मैं तुम्हें जर्मनी में सर्वोच्च पद दूंगा तब उनका एक लाइन का जवाब मैं एक भारतीय हूँ और भारत में रहकर ही देश की सेवा करना चाहता हूँ वहीं से खेलना चाहता हूँ । तो इस तरह के प्रलोभन पैसों के लिए होते हैं लेकिन ध्यानचंद ने इसको महत्व देने के बजाय देश की हॉकी  और गरिमा को ध्यान दिया। भारत पहुँचकर तब उन्होनें गोल्ड को देश को समर्पित किया । ये चीज बदस्तूर जारी रही  । अनेकानेक हमारे खिलाड़ियों ने हॉकी  की गंगा जो ध्यानचंद ने निकाली इसमें  कई खिलाड़ियों ने अपना योगदान दिया है । फिर चाहे इसमें के डी सिंह बाबू , किशनलाल दादा, बलवीर शाह , चरणजीत सिंह हों या महान खिलाड़ी लेसली क्लाउडियस , भास्करन हों इन सबने देश की हाकी में अपना अमूल्य योगदान दिया है ।  हमने भी 1972 का ओलम्पिक खेला है तब ब्रांज मेडल मिला तो यकीन मानिए हर्ष भाई मैंने ब्रांज लाकर बाबू जी को दिखाया । पहले के दौर में जीतने भी खिलाड़ी थे ये सिर्फ और सिर्फ गोल्ड लेकर ही आते थे । गोल्ड की चाहत रखते थे ।  देश को मेडल  समर्पित करते थे । उसमें ब्रांज और सिल्वर मेडल का महत्व नहीं रह जाता था लेकिन आप ये देखिए आज के दौर में स्पर्धाएँ बढ़ गई हैं ।  हमारी टीम 41 साल के बाद हॉकी  में कांस्य पदक लेकर आई है तो आप ये देखिये हर्ष भाई पूरे देश भर  में कितना उत्साह है । खिलाड़ियों , राजनेताओं, युवाओं में इतना उत्साह इस बार देखा गया है तो ये मेडल आने वाले समय में भारतीय हॉकी  के लिए एक अच्छा संकेत है । हम अब उस पायदान पर खड़े हो गए हैं जहां से अगली दो सीढ़ियाँ गोल्ड तक जाती हैं  ।    

राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार हॉकी  के महान जादूगर  दादा ध्यानचंद के नाम शुरू करने को लेकर देश में राजनीति गरमा गई है । विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है । इस फैसले को आप किस रूप में देखते हैं ? क्या अवार्डों में भी  राजनीति आप जायज मानते हैं ? व्यक्तिगत तौर पर जानना चाह रहा हूँ ? 

इस बात को मैं  खिलाड़ी के तौर पर नहीं कहूँगा । जब राजीव गांधी खेल रत्न नाम से पुरस्कार शुरू किया गया था तब तो इस तरह की कोई आवाज नहीं होती थी । अब सरकार किस लिहाज और गरिमा से अवार्ड का नाम रखती है यह सब तो सरकार के ऊपर निर्भर करता है । वह तय करे ।  ध्यानचंद तो एक नाम है जो किसी के दिल , दिमाग और जेहन से नहीं निकल सकता और खेल का सबसे बड़ा अवार्ड जिसे देश का सबसे बड़ा  खिलाड़ी माना गया उसके नाम से रखा गया उससे तो खुशी ही होनी चाहिए । मैं भी उस खुशी में शामिल हूँ । ये अवार्ड प्रधानमंत्री  मोदी जी ने उनके नाम पर रखा लेकिन ध्यानचंद की गरिमा को ठेस कहीं से नहीं पहुँचती । ध्यानचंद एक ऐसा नाम है जो अमर है  । 

भारतीय हॉकी  टीम कभी ओलम्पिक में क्वालिफाई करने के लिए तरस जाती थी । आज 12 से टाप की चार टीमों में जगह बनाने में कामयाब हुई है । अब ओलम्पिक जीतने के बाद इस टीम का भविष्य कैसा देख रहे हैं आप ? इस टीम की मजबूत स्ट्रेंथ क्या रही ? किन क्षेत्रों में सुधार की गुंजाइश नजर आती है आपको फिलहाल  ? 

मुझे याद आता है जब दादा ध्यानचंद ने अपना शुरुवाती दौर का खेल हॉकी  का शुरू किया था । पहली बार निक्कर – बनियान और पीटी शूज पहनकर वो मैदान में खड़े हुए थे । हॉकी  में  उनकी पकड़ मजबूत थी क्योंकि झाँसी हीरो क्लब में उनकी प्रैक्टिस हुई थी जो कंकड़ – पत्थरों वाला ग्राउंड था । आजीवन उन्होनें यहाँ प्रैक्टिस की । गेंद को संभालने की जितनी कला उस समय उनके अंदर आ गई थी उसको उन्होनें आर्मी ज्वाइनिंग के समय भी दिखाया और खेलना शुरू किया । गेंद का कंट्रोल वहीं  से शुरू हो गया था । उसके मद्देनजर ट्रेनर उन पर नजर डालते थे तो उनकी नजर केवल ध्यानचंद पर पड़ी तो लगा इस बच्चे के अंदर बहुत कुछ है । उन्होनें ध्यानचंद को बुलाया और शाबासी देते हुए कहा ‘तुम बहुत अच्छा खेलते हो लेकिन तुम्हारा खेल व्यक्तिगत है । इस टीम के खिलाड़ियों के साथ खेलोगे तो तुम कामयाब हो जाओगे’।  हर्ष भाई मैं इस वाक्य को आज की हॉकी  के साथ जोड़ना चाहता हूँ । ये टीम गेम है । जो जज्बा हमारे हाकी खिलाड़ियों ने टीम के रूप में दिखाया है उसकी दाद देनी चाहिए । शुरू में जरूर हम संगठित नजर नहीं आए लेकिन बाद में हमारे खेल में निखार आता गया । आस्ट्रेलिया से मिली हार के बाद भी हम उबरे । इस पूरे ओलम्पिक में, मैं कहूँ तो खासतौर से पीआर श्रीजेश एक बड़े गोलकीपर के तौर पर उभरकर सामने आए । दशकों से ऐसा बेहतरीन गोलकीपर हमको नहीं मिला था । खेल में ऐसा बचाव करने वाला बेहतरीन खिलाड़ी मेरी नजर में आज तक नहीं आया है । वो असली हकदार इस जीत में हैं जिनके खेल को हम टाप पर रख सकते हैं ।  इनकी गोलकीपिंग मुझे सबसे बढ़िया लगी ।  हमारा डिफेंस भी बहुत अच्छा इस ओलम्पिक में रहा ।  हरमनप्रीत सिंह ने मौके पर गोल दागे ।  रूपेन्दर पाल सिंह राइट हाफ में अच्छा खेले , सेंटर में मनप्रीत मुझे प्रेशर में दिखे जो नहीं होना चाहिए था । लेफ्ट हाफ में हमारे विवेक सागर सिंह आते हैं उन्होनें भी मौके पर बड़े अच्छे गोल दागे । हाँ, मुझे हल्की सी निराशा शुरू से आई जिसे मैंने अपने लफ्जों में कहा भी ये भारत की  फारवर्ड लाइन की टीम कहीं  से कमजोर दिखती है और उसका असर हमें शुरुवाती मैचों में भी लगा ।  चाहे वो आस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच हो या स्पेन के खिलाफ । फारवर्ड लाइन के जिस तारतम्य के लिए भारतीय हॉकी  मशहूर थी वो नहीं दिखी । अटैक इज द बेस्ट वे आफ प्लेईंग  यानी हॉकी जितना आप अटैक करोगे उतना विपक्ष को परेशानी होती है तो वो कहीं न कहीं  हमारी कमी रही लेकिन कोई बात नहीं , परिणाम कांस्य पदक के रूप में मिला है जो एक नई शुरुवात है । इस शुरुवात को अब संभालने की कोशिश होनी चाहिए। अभी तो जलसे चल रहे हैं ।  रिसेप्शन दिये जा रहे हैं ।  उनके बारे में बहुत बयान  हो रहे हैं। निसंदेह हमारी हॉकी  टीम इस जीत की हकदार है तो बयान भी होंगे लेकिन इस जीत को अपने दिमाग के अंदर गर्व के साथ महसूस करना है , दिखाने वाले गर्व के साथ इसे नहीं लाना है  ।  

यूरोपियन खिलाड़ी बहुत आक्रामक हॉकी  खेलते हैं । वे स्टिक से गेंद  लगाते हैं ।  एक दिशा में पास देते हैं और सीधे सेंटर फारवर्ड पास बनाकर गोल करने पर आमादा हो जाते हैं ।  आमतौर पर भारत की हॉकी  टीम के खिलाड़ी ये सब नहीं कर पाते हैं । बड़ी टीमों के साथ भारत लंबे समय तक गेंद अपने पास रखने में नाकामयाब रहता है । इस ओलम्पिक में भी ये सब देखने को मिला है ।  ऐसा क्यों ? 

क्योंकि ये एस्ट्रो टर्फ का खेल बनाया ही इसलिए गया था । यूरोपियन के फायदे के लिए था जिसका खामियाजा एशियन हॉकी  को भुगतना पड़ा । आप देखिये आज हमारी पाक की टीम कहाँ खड़ी है ? पूरे खेलों में जो पहले अच्छा खेलती थी वो सब टीमें  खत्म हो गई ।  एस्ट्रो टर्फ  ऐसा गेम है जिसकी बहुतायत में देशों को जरूरत होती है । एस्ट्रो  टर्फ में हालैण्ड , आस्ट्रेलिया में सैकड़ों ग्राउंड हैं । हमारे कालेजों में क्या ऐसे क्वालिटी के मैदान उपलब्ध हैं ? जब इनकी संख्या ही नहीं बढ़ रही तो कैसे अच्छा  कर सकते हैं हम ? 

आज एक सीमित नंबर को लेकर हम हॉकी  खेल रहे हैं । वो जुनून , शौक कम हो गए हैं । बच्चे को खेलना एस्ट्रो टर्फ पर है। सभी कच्चे ग्राउंड पर कैसे खेल सकते हैं ? क्रिकेट के कोच आज हर स्कूल में हैं । पैसा अच्छा दिया जा रहा है । हॉकी  में कौन सी अच्छी पेंशन मिलती है । ये सब देखना तो प्रबंधन का काम है । हमें अब बच्चों में से ही भविष्य के लिए खिलाड़ी तैयार करने चाहिए । डिफेंस , फारवर्ड एन 100 में से बेहतरीन 10 बच्चों को छाँटें । 
 
जैसा आपने कहा यूरोपियन टीमें ड्रिबलिंग करती हैं वो जरूर इसे करती हैं लेकिन इस ओलम्पिक के अंदर हमने जो मैच खेले हैं उनमें हम उन्नीस  ही नहीं बीस थे । एक -दो  जगह ऐसा लगा हारने वाले हैं लेकिन ये खेल ही ऐसा है।  एक पाले से गाइड दूसरे पाले में पहुंचाई जा सकती है लेकिन यही तो खेल का अंदाज है ।  कोचिंग के साथ ही शारीरिक फिटनेस भी जरूरी है ।  पुरानी हॉकी  में पूरे 11 खिलाड़ी 70 मिनट पसीना बहाते हुए खेलते थे लेकिन आज हाकी ऐसी हो गई है जिस खिलाड़ी को चाहें 2 मिनट में आप बादल सकते हैं  इसलिए आज हॉकी  में तमाम बदलाव भी कर दिये गए हैं  ।  ये हिम्मत जज्बे का खेल है ।  ये सेल्फ स्टेमिना का खेल है  । 

लेकिन यूरोपियन खिलाड़ी को गाइड के स्टिक से लगने से पहले ही खुद को मानसिक रूप से खुद को पास के लिए तैयार कर लेते हैं ।  
 नहीं – नहीं । ये सब बातें टेक्निकल होती हैं । हम भी इन सब बातों को अच्छे से जानते हैं । हमारे खिलाड़ी भी ड्रिबलिंग करते हैं पासिंग भी । जर्मनी को हमने इस बार ओलम्पिक में 5-4 से पराजित किया जो मायने रखता है । खिलाड़ी मैदान पर कैसे गेंद निकाल रहे हैं ये देखना चाहिए । ध्यानचंद क्यों  ध्यानचंद कहलाए क्योंकि उनकी ड्रिबलिंग और पासिंग बेहतरीन थी । खिलाड़ी जब से हाकी पकड़ता है अगर दिल- दिमाग से मजबूत नहीं है तो किसी भी खेल को नहीं जीत सकता चाहे वो कोई भी खेल क्यों ना हो ? नर्वस सिस्टम भी एक चीज है नर्वस सिस्टम दिमाग को सीधे आर्डर देता है।   

कहीं न कहीं तेज रफ्तार से खेलने के मामले में  हम अभी बहुत पीछे हैं ?

मैंने कहा ना आपसे   पहली लाइन रामबाण का काम करेगी । जितनी कमी है उसको दूर करने का काम कोच करेंगे।  अब नई पौध को देश में तैयार करने की ज़िम्मेदारी इन्हें लेनी ही चाहिए । हमारे देश में सुविधाएं नहीं हैं । कोच नहीं हैं तो स्कूल में हॉकी  नहीं होती । उस तरह के मैदान भी नहीं है । शुरू के दौर के कोच और खिलाड़ी अलग थे वो चीज आज नहीं है । 60 ,70 , 80 के दशक में जैसा ये खेल खेला जाता था वैसा आज नहीं है । 

महिला हॉकी टीम ने भी इस बार ओलम्पिक में कमाल कर दिया ? 
 हमारी महिला हॉकी  टीम ने भी इस बार टोक्यो ओलम्पिक में अपने खेल से सभी का दिल जीत लिया । हार – जीत तो खेल का अहम हिस्सा है । ये महिला हॉकी   टीम सही मायनों में हारकर भी देशवासियों के दिलों में जीत गई । मुझे पूरी उम्मीद थी ये टीम मेडल जरूर लाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका।  

भारत में खेलों में पर्याप्त बजट भी नहीं है । भारत में महज 3 पैसे प्रतिदिन जहां खर्च होता है वहीं पड़ोसी चीन में 6 रु 10 पैसा प्रतिदिन खर्च होता है जो भारत के मुक़ाबले 200 गुना अधिक है । अमरीका का खेलों का साल का बजट 22000 करोड़ है जबकि ब्रिटेन में यह 11000 करोड़ है वहीं भारत में साल भर में खेलों में महज 2596  करोड़ रू खर्च किए जा रहे  हैं । क्या आपको नहीं लगता इस पर अब नए सिरे से मंथन करने की आवश्यकता है ?

जब आप पूछ ही रहे हैं तो मैं जरूर कहना चाहूँगा ये जो फेडरेशन संचालित करते हैं उनको देखना चाहिए हाकी में जो चीज शुरुवात में मिलनी चाहिए वैसे ग्राउंड कहाँ हैं हमारे पास ? मुश्किल से लेवल ग्राउंड 40 से 50 होंगे हमारे पास जहां हॉकी  ढंग से खेली जा सकती होगी । कई ग्राउंड को 5 से 6 साल में बदलना पड़ता है । जब स्कूल में ग्राउंड हैं ही नहीं हमारे पास तो कैसे स्तरीय हॉकी  खेली जा सकेगी ? मैं तो कहूँगा 2596 करोड़ का बजट ये जो केंद्र का है ये हर स्टेट का होना चाहिए तब वही से हॉकी  और अन्य खेल देश में आगे बढ़ेंगे । आज खेलों में बजट को बढ़ाए जाने की बड़ी आवश्यकता है ।  ओलम्पिक में जीत के बाद अब हमारी ज़िम्मेदारी बढ़ गई है । अब भारतीय हाकी फेडरेशन कि यह ज़िम्मेदारी है कि हमें अपनी टीमों को अच्छे से तैयार करना है । स्कूल , कालेज से ही टीमों में यह ललक तैयार करने की जरूरत है जिससे कि वह अच्छा प्रदर्शन  कर सकें । 

आप जब 100 खिलाड़ी रखते हैं तो आपको 10 मिलते हैं 100 में 90 तो वेस्टेज हो जाता है ट्रेनिंग पार्ट में 10 खर्च होता है । हमारे खिलाड़ी आज  छोटे – छोटे आयोजनों में ही उलझ कर रह जाते हैं ।  यूथ ओलम्पिक , यूथ ओलम्पिक है वो ओलम्पिक नहीं है । उसमें मापदंड अलग है लेकिन हमारे खिलाड़ी उन छोटे खेलों में जीत को ही जीवन का अंतिम फाइनल मानने की भूल कर बैठते हैं । आज अगर आप यूथ ओलम्पिक में जीत गए हैं तो आपने जहान जीत लिया है इस तरह  की मानसिकता से भी हमारे देश के खिलाड़ियों को आज बाहर निकलने की  जरूरत है । उन्हें इनसे भी आगे बढ़ने की कोशिश भी करनी चाहिए । उनका जीवन का उद्देश्य जब नेशनल खेलना , नौकरी करना और कोचिंग करना है तो कैसे मेडल आ पाएंगे ? मेडल पाना वो भी ओलम्पिक में कोई आसान काम थोड़ी है । इसके लिए एक समर्पण की जरूरत होती है । लक्ष्य अर्जुन के तीर  जैसा मछली की आँख पर ही होना चाहिए जो मिसिंग है ।
 
हॉकी  के महान जादूगर दादा ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग लंबे समय से उठती आ रही है लेकिन आज तक उनको भारत रत्न नहीं मिल सका है । यू पी ए सरकार के दौर से यह मांग उठती रही है ।  क्या ओलम्पिक में इस बार भारत के कांस्य पदक जीतने के बाद सवा सौ करोड़ से अधिक भारतवासियों की ये मुराद पूरी हो पाएगी ? 

फिलहाल इसका जवाब तो मेरे पास भी नहीं है। ध्यानचंद ने तीन बार देश को ओलम्पिक में गोल्ड दिलाया था और दादा का खेल तो पूरी दुनिया ने देखा है वो किस तरह के महान खिलाडी थे। ध्यानचंद एक ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जिनका  ताल्लुक हॉकी  के जरिये  सिर्फ देश की प्रतिष्ठा, मान , सम्मान बढ़ाने में ही लगा रहा । ध्यानचंद का हुनर हासिल करना आज भी किसी खिलाड़ी के लिए सपना ही है । उन्होनें हॉकी  को बहुत कुछ दिया है ।