उत्तराखंड गठन के बाद सामरिक दृष्टी से बेहद संवेदनशील पिथोरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी इलाकों में जडी बूटी के तस्करों के गिरोह कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए है ....... मादक पदार्थो और जीव जन्तुओ की तस्करी के लिए सबसे मुफीद माने जाने वाले इस छोटे से राज्य में अब तस्करों के निशाने पर दुर्लभ ओषधि कीडा जडी आ गई है......
बुग्यालों के बीच १३००० फीट की ऊँचाई पर पाई जाने वाली इस औषधि को स्थानीय भाषा में कीडा जडी नाम से जाना जाता है..... वैसे यह "यारसा गम्बू " नाम से लोकप्रिय है..... अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में जडी की जबर्दस्त मांग के चलते जिस तरीके से तस्कर इसका अंधाधुन्द दोहन करने में लगे हुए है उसको देखते हुए इसके अस्तित्व के नाम पर सवाल उठ रहे है....... लेकिन राज्य सरकार और वन विभाग तस्करों के सामने नतमस्तक नजर आते है .....
उच्च हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली यह जडी एक ऐसा कवक है जो तितली की प्रजाति "माथ" के लार्वा में पलता है ....... दिलचस्प बात यह है बर्फ़बारी के साथ ही इसका विकास शुरू होता है और बर्फ पिघलने पर तस्कर इसका दोहन करने पहाडियों पर चल निकलते है...... यही वह समय होता है जब कीडा जडी के गुलाबी रंग का निचला हिस्सा भोजन के लिए हिलता डुलता है.....
तस्कर इसका दोहन कर इसको पीसते है और कैप्सूलों में भरकर इंटरनेशनल मार्केट में पहुचाते है...... यौन शक्ति वर्धक होने के साथ ही यह कीडा जडी बाँझपन , दमा , केन्सर, किडनी , हृदय और फेफडो के रोगों के लिए रामबाण समझी जाती है .....इसके अलावा इसमे कई तरह के विटामिन और खनिज पाए जाते है जो लाभकारी साबित होते है..........
९० के दशक में इसकी विशेषता तिब्बत के व्यापारियों ने भारतीय व्यापारियों को बताई .........तभी से इसके दोहन की शुरूवात हो गई...... इंटरनेशनल मार्केट में इसकी तस्करों को मुहमांगी कीमते मिल जाती है जिसके चलते इसके दोहन की रफ़्तार नही थम रही है...... एक मोटे अनुमान के अनुसार इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत १.५० लाख से २ लाख रुपए तक है ....... दिल्ली में ५० से ७५ लाख तो चाइना में पूरे २ लाख तक की कमाई हो जाती है .......इसकी डिमांड बीजिंग, ताइवान, हांगकांग जैसे शहरों में ज्यादा है .......कई बार तो इन शहरों में मनचाही कीमते मिल जाती है .....
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बाज़ार में इसकी बड़ी मांग है और मांग के अनुरूप उतार चदाव आता रहता है .....वन विभाग के पास तस्करों को पकड़ने के लिए इंतजामों की कमी के चलते उत्तराखंड के बुग्यालों में कीडा जडी का अवेध कारोबार हर वर्ष साल के अंत में धड़ल्ले से चलता है ..... जनवरी के हिमपात के बाद तस्करों की सक्रियता इलाके में बढ जाती है...... तस्करों के रास्तो की खोज करना वन विभाग के लिए हमेशा टेडी खीर साबित होता है....
सीमान्त जनपद पिथोरागढ़ की चिप्लाकेदार की पहाडिया यारसा की तस्करी के लिए कोलार की खाने है...... एक किलो ग्राम यारसा गम्बू में १००० कीडे आते है...... एक कीडे की कीमत १०० से १५० रुपये तक होती है....... बाजार में इसके दामो में उतार चदाव आता रहता है....... धन के मोह में सीमान्त के उच्च हिमालयी इलाकों में प्रवास के लिए जाने वाले लोग इसको खोजने महीनो तक जुटे रहते है ...... प्रतिबन्ध की तलवार लटकने का डर ग्रामीणों को सताता रहता है जिस कारन वह इसको हिमालयी इलाकों में ही औने पौने दामो में तस्करों को बेचकर चले आते है .......फिर इसको तस्कर गुप्त मार्गो के द्वारा इंटरनेशनल मार्केट में पहुचाते है...............
जडी के अवेध दोहन से उत्तराखंड सरकार को वर्षो से करोडो के राजस्व का चूना लग रहा है.... इस बाबत पूछने पर वन विभाग के आला अधिकारियो का कहना है वर्षो से इसकी तस्करी को देखकर विभाग खासा मुस्तैद है..... जिसके चलते संभावित इलाकों में हथियारों से लेस टीम का गटन हर वर्ष किया जाता है ......
रक्षा अनुसन्धान केन्द्र पिथोरागढ़ के वैज्ञानिको का कहना है उच्च हिमालयी इलाको में पाई जाने वाली जिन जडी बूटियों का उनके द्वारा गहन अध्ययन किया गया उसमे यारसा गम्बू भी शामिल थी ..... वैज्ञानिको ने पाया इसको छोटे आकर के चलते ढूँढ पाना दुष्कर होता है .......यह छोटे आकर में मिलती है ....... उन्होंने इसको न केवल यौन बताया गया बल्कि कई बीमारियों की रामबाण दवा से भी नवाजा .....
वैज्ञानिको ने पाया अत्यंत शक्ति वर्धक होने के कारण इसके सेवन से तुंरत फुर्ती आ जाती है जिस कारन बड़े पैमाने पर एथलीट इसको लेते है .......दिलचस्प बात तो यह है इसको लेने के बाद डोपिंग में यह बात पता नही चलती एथलीट ने कीडा जडी युक्त कैप्सूल का सेवन किया है ......इस लिहाज से देखे तो कई असाध्य बीमारियों का तोड यारसा में है जिस कारन तस्कर चाहकर भी इसके दोहन से पीछे नही हट पाते......
11 comments:
taskaro ke network ko maut na de paana badi chinta ka visay hai.. aapne gambheer svaal uthaya hai... yah bilkul nayi jaankari hai... iske baare me padkar achcha laga.....
very informative blog...keep on writting..
happy blogging!!!
भाई जब इतनी ही कारगर ये जडी है तो सरकार इसके दोहन के ठेके आबंटित क्यों नहीं कर देती और लोगों को कानूनी रूप से व्यापर करने दे. तस्करी का झंझट ही ख़त्म हो जायेगा. सरकार की भी जहाँ आमदनी होगी वहीँ लोग तस्कर से व्यापारी कहा जाना भी ज्यादा पसंद करेंगें.....
पता नहीं क्यों हमारी सरकार लोगों को अपराधी का दर्जा देने में ही क्यों व्यस्त रहती है. लोग इस जडी को इकठ्ठा करने के लिए कठोर परिश्रम करते हैं तो ऐसे कार्य को कानून की सहमिति क्यों नहीं............
जानकारी परक लेख के लिए हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com
jaankaari nayi lagi sir ji..... boltikalam akasar padte rahta hu contend ke mamle me aapka koi saani nahi hai.....
आज मीडिया में जिस प्रकार क्रिकेट,क्राइम सिनेमा और सेक्स का स्पेस बढ़ रहा है वैसे में इस तरह की स्टोरी काबिले तारिफ है। देश की अपनी पुरानी सभ्यता रही है,जिसमें जड़ी बुटियों का विशेष महत्व है।अगर ऐसी स्टोरी ब्लाँग के जरिये भी आती है तो यह बड़ी बात है। आपके ब्लाँग में लगातार विविधता का रंग भर रहा है जो अच्छी बात है।
अछा लेख है आपका ......... वैसे तो वन विभाग हमेशा यही चाहता है जिससे उसकी जेब भारती रहे ...... इस तस्करी को रोकना उनके बस की बात नहीं ......... हाँ अगर नागरिक जागरूक हों तो शायद ये रुक सके ......... आपका प्रयास सराहनीय है ..... शुक्रिया इस बात को उठाने का .........
behad gyaanvardhak jaankari ke liye shukriya.
achchha likha hai.
renu..
Digambar ji ki baat se sahmat hoon.
bahut achchi jaankari mili shukria.... blog vividhta se bhara hai
मुझे तो इस बात पर आश्चर्य लग रहा है आखिर मुझ पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम क्यूँ लगाया गया? मैं भला अपना नाम बदलकर किसी और नाम से क्यूँ टिपण्णी देने लगूं? खैर जब मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं तो फिर इस बारे में और बात न ही करूँ तो बेहतर है! आप लोगों का प्यार, विश्वास और आशीर्वाद सदा बना रहे यही चाहती हूँ!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई!
yah to nayi jaankari mili...is Jadi ke bare mein maluum nahi tha..umeed hai sarakar samy rahte jaag jayegi.
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