Friday 18 September 2020

देश में बदलाव की बयार नरेंद्र मोदी

 

 



 नरेंद्र मोदी ने 30 मई 2019 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली जो उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत थी।आजादी के बाद पैदा होने वाले पहले प्रधानमंत्री मोदी ने पहले 2014 से अब  तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार को  बखूबी  संभाला है। उन्होंने अक्टूबर 2001 से मई 2014 तक लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद भी  संभाला। 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने दोनों अवसरों पर पूर्ण बहुमत हासिल किया।
 
‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विकास’ के आदर्श वाक्य से प्रेरित होकर नमो  ने शासन व्यवस्था में एक ऐसे बदलाव की शुरुआत की जिसके केंद्र में आम आदमी रहा। उन्होंने अब तक की विकास यात्रा में  समावेशी, विकासोन्मुख और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन का नेतृत्व किया है। प्रधानमंत्री ने अंत्योदय के उद्देश्य को साकार करने और समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं और पहल का लाभ मिले यह सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने स्पीड और स्केल पर काम किया है। तमाम अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भी  इस बात को माना कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत रिकॉर्ड गति से गरीबी को खत्म कर रहा है। इसका श्रेय केंद्र सरकार द्वारा गरीबों के हित को ध्यान में रखते हुए लिए गए विभिन्न फैसलों को जाता है। आज भारत दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम आयुष्मान भारत का नेतृत्व कर रहा है। 50 करोड़ से अधिक भारतीयों को कवर करते हुए आयुष्मान भारत गरीब और नव-मध्यम वर्ग को उच्च गुणवत्ता और सस्ती स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित कर रहा है। दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित स्वास्थ्य पत्रिकाओं में से एक लांसेट ने आयुष्मान भारत की सराहना करते हुए कहा है कि यह योजना भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े असंतोष को दूर कर रही है। पत्रिका ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को प्राथमिकता देने के लिए पीएम मोदी के प्रयासों की भी सराहना की।

 देश की वित्तीय धारा से दूर गरीबों को वित्तीय धारा में लाने के लिए प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जन धन योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य प्रत्येक भारतीय का बैंक खाते खोलना रहा । अब तक 35 करोड़ से अधिक जन धन खाते खोले जा चुके हैं। इन खातों ने न केवल गरीबों को बैंक से जोड़ा, बल्कि सशक्तीकरण के अन्य रास्ते भी खोले हैं। जन-धन से एक कदम आगे बढ़ते हुए पी एम  मोदी ने समाज के सबसे कमजोर वर्गों को बीमा और पेंशन कवर देकर जन सुरक्षा पर जोर दिया।  जन धन- आधार- मोबाइल  ने बिचौलियों को समाप्त कर दिया है और प्रौद्योगिकी के माध्यम से पारदर्शिता और गति सुनिश्चित की है। असंगठित क्षेत्र से जुड़े 42 करोड़ से अधिक लोगों के पास अब प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन योजना के तहत पेंशन कवरेज मिली है। 2019 के चुनाव परिणामों के बाद पहली कैबिनेट बैठक में ही व्यापारियों के लिए समान पेंशन योजना की घोषणा की गई है। 2016 में गरीबों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू की गई । यह योजना 7 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को धुआं मुक्त रसोई प्रदान करने में एक बड़ा कदम साबित हुई है। इसकी अधिकांश लाभार्थी महिलाएं हैं। आजादी के बाद से 70 वर्षों के बाद भी 18,000 गाँव बिना जहां बिजली नहीं थी वहां बिजली पहुंचाई गई है।मोदी का मानना है कि कोई भी भारतीय बेघर नहीं होना चाहिए और इस विजन को साकार करने के लिए 2014 से 2019 के बीच 1.25 करोड़ से अधिक घर बनाए गए है। 2022 तक प्रधानमंत्री के ‘हाउसिंग फॉर ऑल’ के सपने को पूरा करने के लिए घर के निर्माण की गति में तेजी आई है। कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो श्री नरेंद्र मोदी के बहुत करीब है।मोदी का पूरा फोकस  किसानों की आय दुगनी 2022  तक करने को लेकर है |  2019 के अंतरिम बजट के दौरान सरकार ने किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में एक मौद्रिक प्रोत्साहन योजना की घोषणा की। 24 फरवरी 2019 को योजना के शुरू होने के बाद लगभग 3 सप्ताह में नियमित रूप से किश्तों का भुगतान किया गया है। पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक के दौरान इस योजना में 5 एकड़ की सीमा को हटाते हुए सभी किसानों को पीएम किसान का लाभ देने का फैसला किया गया। इसके साथ ही भारत सरकार प्रति वर्ष लगभग 87,000 करोड़ रुपये किसान कल्याण के लिए समर्पित करेगी।पीएम मोदी ने सॉयल हेल्थ कार्ड, बेहतर बाजारों के लिए ई-नाम और सिंचाई पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने जैसी किसान कल्याण की दिशा में विभिन्न पहल शुरू की। 30 मई 2019 को प्रधानमंत्री ने जल संसाधनों से संबंधित सभी पहलुओं की देखरेख करने के लिए एक नया जल शक्ति मंत्रालय बनाकर एक बड़ा वादा पूरा किया।
 
2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ शुरू किया। इस जन आंदोलन का बड़े पैमाने पर ऐतिहासिक प्रभाव पड़ा है। 2014 में स्वच्छता कवरेज 38% थी जो आज बढ़कर शत फीसदी हो गई है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। स्वच्छ गंगा के लिए पर्याप्त उपाय किए गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वच्छ भारत मिशन की सराहना की और कहा कि इससे 3 लाख लोगों की जान बच सकती है।पीएम मोदी का मानना है कि परिवहन परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण साधन है। इसीलिए भारत सरकार हाई-वे, रेलवे, आई-वे और वॉटर-वे के रूप में अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे को बनाने के लिए काम कर रही है।  उड़ान योजना ने उड्डयन क्षेत्र को लोगों के अधिक अनुकूल बनाया है और कनेक्टिविटी को बढ़ावा दिया है। देश के कई छोटे शहर अभी इससे और जुड़ने हैं |'पीएम मोदी ने भारत को अंतरराष्ट्रीय विनिर्माण पॉवर हाऊस में बदलने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ की शानदार पहल शुरू की। इस प्रयास से परिवर्तनकारी परिणाम सामने आए हैं।  मोदी की अगुवाई में भारत ने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में महत्वपूर्ण प्रगति की है । 2017 में संसद के एक ऐतिहासिक सत्र के दौरान भारत सरकार ने जीएसटी लागू किया, जिसने ‘वन नेशन, वन टैक्स’ के सपने को साकार किया।मोदी के दौर  में भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति पर विशेष ध्यान दिया गया। भारत में दुनिया का सबसे बड़ा स्टैच्यू ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ बनाया गया जो सरदार पटेल को एक सच्ची श्रद्धांजलि है। इस स्टैच्यू को एक विशेष जन आंदोलन के माध्यम से बनाया गया था, जिसमें भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के किसानों के औज़ार और मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था, जो ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को दर्शाता है।
 
प्रधानमंत्री को पर्यावरण से जुड़े मुद्दों से गहरा लगाव है। उन्होंने  हमेशा माना  है कि हमें एक साफ और हरा ग्रह बनाने के लिए काम करना चाहिए। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में  मोदी ने जलवायु परिवर्तन के अभिनव समाधान तैयार करने के लिए अलग जलवायु परिवर्तन विभाग बनाया। इस भावना को पेरिस में 2015 के COP21 शिखर सम्मेलन में भी देखा गया था जहां पीएम मोदी ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जलवायु परिवर्तन से एक कदम आगे बढ़कर पीएम मोदी ने जलवायु न्याय के बारे में बात की । 2018 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के शुभारंभ के लिए कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारत आए थे। यह गठबंधन एक बेहतर ग्रह के लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का एक अभिनव प्रयास है। यही नहीं पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके प्रयासों को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त राष्ट्र के ‘चैंपियंस ऑफ अर्थ अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। इसमें कोई दो राय नहीं जलवायु परिवर्तन ने हमारे ग्रह को प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त कर दिया है | इस तथ्य के प्रति पूरी तरह से संवेदनशील होते हुए पीएम मोदी ने प्रौद्योगिकी की शक्ति और मानव संसाधनों की ताकत के उचित इस्तेमाल के रूप में आपदा के लिए एक नया विजन साझा किया है । मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने 26 जनवरी 2001 को विनाशकारी भूकंप से तबाह हुए गुजरात को बदल दिया। इसी तरह उन्होंने गुजरात में बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए नई प्रणालियों की शुरुआत की जिनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई।प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से  मोदी ने नागरिकों के लिए न्याय को हमेशा प्राथमिकता दी है। गुजरात में लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए उन्होंने शाम की अदालतों की शुरुआत की। केंद्र में उन्होंने प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन शुरू किया जो विकास में देरी कर रहे लंबित परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने के लिए एक कदम है।
 
पीएम मोदी की विदेश नीति की पहल ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वास्तविक क्षमता और भूमिका को महसूस किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने सार्क देशों के सभी प्रमुखों की उपस्थिति में अपना पहला कार्यकाल शुरू किया और दूसरे की शुरुआत में बिम्सटेक नेताओं को आमंत्रित किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके संबोधन की दुनिया भर में सराहना हुई। पीएम मोदी 17 साल की लंबी अवधि के बाद नेपाल, 28 साल के बाद ऑस्ट्रेलिया, 31 साल के बाद फिजी और 34 साल के बाद सेशेल्स और यूएई के द्विपक्षीय दौरे पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। पदभार संभालने के बाद से श्री मोदी ने यू एन , ब्रिक्स ,  सार्क , जी  20  , जी 7 समिट में भाग लिया जहाँ विभिन्न वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर भारत के विचारों को व्यापक रूप से सराहा गया और दुनिया ने मोदी के नेतृत्व की  भूरी भूरी प्रशंसा की हुई है । प्रधानमंत्री को सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान किंग अब्दुलअजीज सैश से सम्मानित किया गया।   मोदी ,को  रूस के शीर्ष सम्मान द ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टले सम्मान, फिलिस्तीन के ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन सम्मान, अफगानिस्तान के अमीर अमानुल्ला खान अवॉर्ड, यूएई के जायेद मेडल ’ और मालदीव के निशान इज्जुद्दीन सम्मान समेत कई अवार्डों से नवाजा जा चुका  है। 2018 में प्रधानमंत्री मोदी को शांति और विकास में उनके योगदान के लिए प्रतिष्ठित सियोल शांति पुरस्कार दिया गया।  यही नहीं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने के नरेंद्र मोदी के आग्रह को संयुक्त राष्ट्र में अच्छी प्रतिक्रिया मिली। पहले दुनिया भर में कुल 177 राष्ट्रों ने एक साथ मिलकर 21 जून को संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया।
 
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के एक छोटे से शहर में हुआ था।  वह एक ऐसे गरीब परिवार से आते हैं जिसनें अपने जीवन में  कई कष्टों  को झेला है इसी के चलते वह हमेशा समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों की उन्नति के लिए दिन रात पूरी ऊर्जा से काम करते नजर आते हैं ।  जीवन की शुरुआती कठिनाइयों ने न केवल कड़ी मेहनत के मूल्य को सिखाया बल्कि उन्हें आम लोगों के कष्टों से भी अवगत कराया। आम जन की गरीबी ने उन्हें बहुत कम उम्र में ही लोगों और राष्ट्र की सेवा में डूबने के लिए प्रेरित किया। अपने प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ काम किया, जो राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित एक राष्ट्रवादी संगठन है और बाद में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के संगठन में काम करने के लिए खुद को राजनीति में  पूरी तरह समर्पित किया।मोदी अक्सर खुद कहा भी करते हैं तन समर्पित , मन समर्पित और जीवन समर्पित ।

नरेंद्र मोदी सवा सौ करोड़ देशवासियों के नेता हैं और आमजन की समस्याओं को हल करने और उनके जीवन स्तर में सुधार करने के लिए समर्पित हैं। लोगों के बीच रहने, जवानों के साथ खुशियाँ साझा करने और आम जनता के दुखों को दूर करने से ज्यादा कुछ भी उनके लिए संतोषजनक नहीं है। जमीनी स्तर पर तो उनका लोगों के साथ एक मजबूत व्यक्तिगत जुड़ाव तो है ही साथ ही साथ सोशल मीडिया पर भी उनकी मजबूत उपस्थिति है शायद यही वजह है उन्हें भारत के सबसे ज्या टेक्नोसेवी नेता के रूप में भी जाना जाता  है। मोदी  लोगों तक पहुँचने और उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। 2014 से लोककल्याण मार्ग में शुरू हुआ मोदी का सफर अब काफी बढ़ चुका  है और दुनिया को नई दिशा दे चुका है । पारदर्शी सरकार देना , विश्व में भारत की साख मजबूत करना और गरीबों का हिमायती होना मोदी  सरकार की पहले दिन से प्राथमिकता रही है | जनधन के खाते खोलकर , मनरेगा चालू रखकर , मुद्रा योजना , उज्जवला योजना , स्किल इंडिया , स्टार्ट अप इंडिया,आयुष्मान भारत सरीखी योजनाओं के केंद्र में गरीब गोरबा जनता रही वहीँ लाल फीताशाही की इस सरकार ने झटके में हवा निकाल दी । मोदी सरकार ने हजार से अधिक बेकार कानूनों को न केवल समाप्त किया बल्कि ई टेंडर और ई गवर्नेंस को अपनी प्राथमिकता में रखा जिससे बहुत हद तक  काम आसान हो गया अपने पहले  कार्यकाल में मोदी ने नोटबंदी  जैसे साहसिक फैसले न केवल लिए  बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक कर यह दिखा दिया आज का भारत बहुत  बदला हुआ है इसे कम समझने की हिमाकत नहीं करें । अब यह दुश्मन के घर में  घुसकर उसे मारेगा ही नहीं बल्कि आतंक को आतंक की भाषा में जवाब दिया जायेगा । यही नहीं मोदी ने जीएसटी लागू करवाने में  सफलता पाई । 
 
 घर घर शौचालय , पी एम आवास योजना , उज्जवला योजना , स्वच्छता अभियान ,  मुद्रा योजना , अटल पेंशन योजना , जीवन ज्योति योजना , किसान सम्मान निधि काफी सफल रही है ।अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुवाती  दिनों में  मोदी ने कई साहसिक निर्णय लिए।  मोदी से असहमति  रखने वाले भी अभी तक  उन पर निष्क्रियता , भाई भतीजावाद , भ्रष्टाचार के आरोप तक नहीं लगा सकते। ईमानदार प्रशासक के तौर पर  मोदी अब तक के सबसे बेहतरीन राजनेता रहे हैं ।    जम्मू कश्मीर का विशिष्ट  राज्य का  दर्जा समाप्त  कर उसका दो केन्द्र  शासित प्रदेश में पुनर्गठन, 35 ए  को हटाकर कश्मीरी मुसलमानों के दिल  में भारत के प्रति दुविधा को  समाप्त कर दिया।  यही नहीं सीएए क़ानून लाकर पाक से कश्मीर आये हजारों हिन्दुओं को न्याय और  सम्मान दिया जिसके लिए पिछले 72 बरस से वे तरस रहे थे । हिन्दुओं  के साथ ही सिक्खों , बौद्धों , जैनियों आदि को भी नागरिकता मिल सकी।  आज़ादी के बाद की ऐतिहासिक घटना है जो मोदी के दौर में ही संभव हो पाया । राम मंदिर के भव्य निर्माण की आधारशिला मोदी के दौर में ही संभव हो सकी वहीं  ट्रिपल तलाक  की अमानुषी प्रथा  को दंडनीय अपराध बनाकर  मोदी ने भय और अनिश्चितता के माहौल में जीने वाली मुस्लिम महिलाओं को स्वाभिमान और सुरक्षा  की जिंदगी जीने का अवसर  प्रदान  किया । आतंकवाद पर नकेल कसी जा सके इसके लिए अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट में संशोधन कर अब संगठनों के अलावा व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित करने और उनकी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार सरकार ने पा लिया । हाफिज , मसूद , जाकी उर  रहमान  लखवी , दाऊद को आतंकवादी   घोषित कर  उन्हें यह सन्देश दिया है कि  यह अतिरिक्त  अधिकार सिर्फ  कागज़ में नहीं रहेगा।  चंद्रयान  के दक्षिणी  ध्रुव पर उतारे जाने के बाद  दुनिया में भारत और इसरो की साख मजबूत हुई है ।आज   वैश्विक स्तर  पर  भारत  की प्रतिष्ठा  अगर बढ़ी है तो इसके पीछे मोदी के योगदान को नहीं नकारा जा सकता ।मोदी के दौर में  भारत की रक्षा पंक्ति भी दिनों दिन मजबूत हो रही है । आज राफेल जैसे विमान भारत की रक्षा पंक्ति  कर रहे हैं ।  कोरोना के काल के शुरू होने से  मोदी ने भारत में लाकडाउन लगाकर देश की लाखों जानों को बचाया है । इससे संक्रमण के भारत में  बड़े पैमाने में फैलने में रोक लगी है । आज भारत की  कोरोना में   मृत्यु दर दुनिया में सबसे कम है । खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन  द्वारा कोरोना में मोदी सरकार के  किए गए प्रयासों की सराहना की जा चुकी है  । यही नहीं आत्मनिर्भर भारत की अलख जगाकर मोदी ने देश के जन जन को वोकल फार लोकल अभियान से जोड़ने का कार्य किया है। श्रेष्ठ  राजनेता की यही एक ख़ास खूबी है वह संकट के समय देश को ना केवल देश को जोड़ता है बल्कि हर पल देशवासियों में ऊर्जा का संचार करता है । इस मामले में मोदी से बेहतर राजनेता शायद ही  दुनिया में कोई है । गौर करने लायक बात यह है मोदी की अपील का बड़ा असर देश में होता है ।
 
इसमें कोई संदेह नहीं  आज मोदी एक बड़े ग्लोबल लीडर के तौर पर स्थापित  हो चुके हैं जिनको पूरी दुनिया सलाम कर रही है। अपने  अब तक  के पीएम के कार्यकाल में विदेशों के तूफानी टी 20 दौरे कर मोदी ने खुद को काम के मामले में अपने मंत्रियो से भीं कहीं आगे कर दिया है। आज भी काम के मामले में मोदी का कोई जवाब नहीं । वह आज भी बेरोकटोक 18 से 20  घंटे काम करते हैं।  मोदी के भीतर काम करने का एक अलग तरह का जूनून है । विदेश नीति पर मोदी सरकार का प्रदर्शन बेहतरीन  रहा है। हाल के बरसों में मोदी ने अपनी कूटनीति के आसरे जापान , मलेशिया,  म्यांमार , कंबोडिया , ब्राजील , फिलिपीन्स  इंडोनेशिया , मारीशस , न्यूजीलैंड ,ऑस्ट्रेलिया , शेशेल्स , कनाडा , अफ्रीका, सऊदी अरब , इजराइल, रूस आदि देशों के साथ  हमारे रिश्तों में नई मजबूती आई है। भारत सरीखा विकासशील देश आज मोदी की अगुवाई में एक बड़ी ताकत की कतार के रूप में खड़ा है। मोदी की हर विदेश यात्रा  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर  खूब सुर्खियाँ बटोरती  रही है  और प्रवासी  चढ़कर उनके कार्यक्रमों में भागीदार बनते हैं । मोदी विदशों में जहाँ जहाँ जाते हैं वहां प्रवासी भारतीयों से मिलना नहीं भूलते। उनके संबोधन में प्रवासी जिस उत्साह के साथ जुटते हैं उसकी मिसालें दुनिया में देखने को नहीं मिलती जहाँ ऐसा खूबसूरत इस्तकबाल किसी प्रधान मंत्री का हुआ हो । मोदी जनता की नब्ज पकड़ने वाले अब तक के बेहतरीन जननेता रहे हैं । मोदी की लोकप्रियता देश ही नहीं सात समुंदर पार विदेशों में अभी भी बरकरार है और उनसे लोगों को  बड़ी उम्मीदें हैं । सच में मोदी भारत के प्रधान सेवक की बड़ी  भूमिका  में  हैं । तभी लोगों का विश्वास और जनसमर्थन आज भी उनके साथ बना हुआ है और लोग आज भी यह कहने से नहीं चूकते  मोदी है तो सब कुछ मुमकिन  है । ऐसे यशस्वी जननेता को जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं और बधाई।   
 

Sunday 13 September 2020

राजनीति के शिखर पुरुष थे प्रणब मुखर्जी

 


 पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जीवन की जंग हार गए। 10 अगस्त को तबियत नासाज होने पर सेना के रिसर्च ऐंड रेफरल (आरआर) अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसी दिन जांच में वे कोरोना पॉजिटिव भी पाए गए। पूर्व राष्ट्रपति ने अपने संपर्क में आए सभी लोगों को टेस्ट करने को कहा और खुद एक ट्वीट कर सबको अपने पाॅजिटिव होने की जानकारी दी। उनके मस्तिष्क में क्लॉट हटाने की सर्जरी के बाद वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। सर्जरी के बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ और  विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य की लगातार निगरानी करती रही, लेकिन अंत में प्रणव दा जीवन की जंग हार गए।

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में मिराती गाँव में हुआ था।उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ ही कानून की डिग्री भी हासिल की थी। प्रणब मुखर्जी राजनीति में आने से पूर्व पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ विभाग, कलकत्ता में लोवर डिविजन क्लर्क यानी कनिष्ठ लिपिक हुआ करते थे। 1963 में उन्होंने इस नौकरी को छोड़ 24 दक्षिण परगना जिले के एक कॉलेज में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक की नौकरी की। उन्होने एक स्थानीय बंगला समाचार पत्र देशहर डाकमे  संवाददाता के पद पर काम भी किया। इसी  दौरान 1969 में बंगाल की मिदनापुर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ तो पहली  बार कांग्रेस के टिकट पर प्रणब की  सीधे  राज्यसभा मे दस्तक हो गई।  जवाहरलाल नेहरू के अत्यंत करीबी रहे वीके कृष्ण मेनन ने इस चुनाव को बतौर निर्दलीय प्रत्याशी लड़ा और भारी मतों से कांग्रेस के प्रत्याशी को पराजित कर दिया । प्रणब मुखर्जी ने इस चुनाव में कृष्ण मेनन के लिए काम किया था। यहीं से उनके राजनीतिक सितारे सातवें आसमान पर जा पहुंचे । कांग्रेस में अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुखर्जी के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान उन्हें ना केवल कांग्रेस में शामिल कराया, बल्कि उसी वर्ष राज्यसभा का सदस्य भी बना दिया। प्रणब मुखर्जी ने इसके बाद कभी भी राजनीति में पलट कर नहीं देखा। वे इंदिरा गांधी के अत्यंत विश्वस्त सलाहकारों मे शामिल हो गए। 

राजनीति में प्रणब का  कैरियर शानदार रहा और अपनी सूझ बूझ से उन्होने खास छाप छोड़ी। 1973 में उन्हें इंदिरा मंत्रिमंडल में बतौर उप रक्षामंत्री शामिल भी किया गया । प्रणब दा इंदिरा गांधी की सत्ता वापसी के बाद 1982 में वित्त मंत्री  भी बनाए गए। उन पर ये आरोप भी एक दौर में लगे  कि इंदिरा गांधी  के बाद वो ख़ुद सत्ता संभालना चाहते थे लेकिन इन आरोपों को उन्होंने अपनी किताब दी टर्ब्युलंट इयर्समें  खारिज किया। 1980-1985 के दौरान प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में उन्होंने केन्द्रीय मंत्रीमंडल की बैठकों की अध्यक्षता भी की । उनके इस पद पर रहते हुए ही मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया गया था। इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के तुरंत बाद जब नए उत्तराधिकारी की चर्चा कांग्रेस भीतर शुरू हुई तो प्रणब मुखर्जी ने अपना दावा पेश किया शायद  यही उनकी राजनीतिक भूल साबित हुई  जिसके चलते उन्हें राजीव गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस के भीतर पूरी तरह उपेक्षित  कर दिया गया जिसकी कीमत 1986 में उन्होने  काँग्रेस छोड़ने पर मजबूर हो चुकानी पड़ी। वे  काँग्रेस की ठसक को चुनौती देते नजर आए। तब छह सालों के लिए उन्हें  कांग्रेस से निलंबित भी कर दिया तब उन्होने  एक नई पार्टी  राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी  बना ली। हालाँकि  तीन साल के अंदर ही इसका कांग्रेस में विलय हो गया। फिर  वह वापस कांग्रेस में  ही लौटे और नरसिम्हा राव सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर अपनी सेवा दी ।

प्रणब दा का जाना भारतीय राजनीतिक के एक युग का अवसान है। सौम्य स्वभाव, सजग दृष्टि, अध्ययनशील चिंतक, प्रखर किन्तु विनम्र बौद्धिकता के साथ साथ वो भारतीय की उस परम्परा के वाहक थे जिसमें राजनीति से ऊपर उठकर लोग एक दूसरे का सम्मान भी किया करते थे। अटल जी के बाद शायद इस कड़ी के आखिरी स्तम्भ थे। आज की राजनैतिक दशा में अब वो सारी बातें अकल्पनीय हैं। विनम्र श्रद्धांजलि प्रणब दा के करियर ने फिर से  लंबी उड़ान भरी  नब्बे के दशक में जब राजीव गांधी की हत्या के बाद पी. वी नरसिम्हा राव ने उन्हें योजना आयोग का डिप्टी चेयरमैन बनाया गया । राव के  कार्यकाल में ही उन्होंने पहली बार विदेश मंत्री का पदभार भी ग्रहण किया और नई लकीर खींची ।

 2004 में  जब लोकसभा चुनाव  सम्पन्न हो चुके थे तो  सोनिया गाँधी के नेतृत्व में यूपीए द्वारा बहुमत हासिल कर लिया गया था। सोनिया गाँधी को भारत की अगली प्रधानमंत्री के तौर पर काँग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी स्वीकार कर लिया गया था लेकिन राजनीति ने  उस  दौर में बेहद दिलचस्प  यू टर्न लिया और सोनिया गाँधी का विदेशी मूल का होना ही उन्हें भारी पड़ गया जिसके बाद इस मुद्दे पर राजनीति खूब हुई  और इन सब के बीच सोनिया  गांधी ने अपना नाम पीएम बनने की दौड़ से बाहर कर लिया और यहीं से कांग्रेस के भीतर शुरू हुई  नए प्रधानमंत्री की तलाश जिनमें अर्जुन सिंह मनमोहन सिंह के  साथ प्रणब मुखर्जी का भी नाम शामिल था । अर्जुन सिंह का दावा बढ़ती सेहत के मद्देनजर  कमज़ोर था तो वहीं मनमोहन सिंह सोनिया के यस मैन बने और  प्रणब मुख़र्जी पर भारी पड़े  क्योंकि प्रणब दा ठीक से हिंदी नहीं बोल पाते थे। बाद में  प्रणब दा ने खुद इस बात को स्वीकारा था वह पी एम नहीं बन पाये क्युकि वह हिन्दी ठीक से नहीं बोल पाते थे हालाँकि कहा यह भी जाता है कि उनकी कठपुतली न बनने की आदत ने ही उनके और पीएम पद के बीच रोड़ा अटकाया था। इस कारण वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। इन्दिरा से निकटता के चलते वह  सोनिया गांधी  के करीब आए और यूपीए सरकार के दस बरसों में वे ना केवल वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय के मंत्री रहे, बल्कि यू पी ए के सबसे भरोसेमंद सलाहकार और ट्रबल शूटर बनकर भी उभरे । काँग्रेस के साथ यू पी ए पर जब भी संकट आया तब तब प्रणव मुखर्जी ही आगे आए जिनकी सर्वस्वीकार्यता सभी दलों मे थी। अनुभवों का अनंत भंडार रखनेवाले प्रणब दा पर कभी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा। किसी घोटाले में भी उनका नाम कभी नहीं आया। हरित क्रांति लानेवाले सी. सुब्रमण्यम के सान्निध्य और साहचर्य में सरकारी कामकाज सीखने वाले प्रणब दा बहुत मेहनती थे। सुबह से लेकर देर रात तक खटते करते थे। कोई काम कल पर नहीं छोड़ते थे। कदाचित इन्हीं गुणों के कारण वे राजनीति में चार दशकों से भी लंबी सफल पारी खेल सके थे।

राष्ट्रपति बनने से पहले वित्त मंत्रालय और आर्थिक  मंत्रालयों में उनके नेतृत्व और कामकाज  का लोहा  राजनीति के हर व्यक्ति ने माना। कांग्रेस नेतृत्व की तीन पीढ़ियों के साथ काम करने वाले गिने चुने नेताओं में रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी लंबे समय के लिए देश की आर्थिक नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में हमेशा याद किए जाएँगे ।  उनके नेत़त्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की अन्तिम किस्त नहीं लेने का गौरव अर्जित किया था वह भी उस दौर मे जब 2008 मे अमरीका के सब प्राइम संकट ने पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी के दौर मे धकेला। यह सब प्रणब मुखर्जी की सूझ बूझ का कमाल था उनके वित्त मंत्रालय मे रहते भारत की अर्थव्यवस्था पटरी से नहीं उतरी और कई तरह के राहत पैकेज देकर अर्थव्यवस्था मे जान फूंकने की कोशिश उनके द्वारा की गई।

प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने का किस्सा भी राजनीति में बड़ा  दिलचस्प है।  प्रणब दा पहली बार सांसद बने थे तो  उनसे मिलने उनकी बहन आई हुई थी। अचानक चाय पीते हुए प्रणब दा ने अपनी बहन से कहा कि वो अगले जनम में राष्ट्रपति भवन में बंधे रहने वाले घोड़े के रूप में पैदा होना चाहते हैं। इस पर उनकी बहन अन्नपूर्णा देवी ने  कहा कि, ‘घोड़ा क्यों बनोगे? तुम इसी जनम में राष्ट्रपति बनोगे और वो भविष्यवाणी सही भी साबित हुई और प्रणब दा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के महामहिम बने भी। 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर  देश के तेरहवां राष्ट्रपति की  कुर्सी पर काबिज कर दिया । प्रणब मुखर्जी ऐसे दौर में राष्ट्रपति बने जब  भाजपा मोदी की  प्रचंड सुनामी के साथ  केंद्र की सत्ता में काबिज हुई। इन सबके बाद भी प्रणब मुखर्जी ने अपने पूरे कार्यकाल को किसी भी तरह के विवादों से दूर रखा। उस दौर में प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  के कसीदे पढ़ने मे भी  प्रणब मुखर्जी पीछे नहीं रहे । मोदी की असीमित ऊर्जा और काम करने की शैली की  खुले आम तारीफ करने से भी वह  हमेशा आगे रहे । राष्ट्रपति पद  रहते हुए  प्रणव  का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय जाने का निर्णय ऐतिहासिक रहा। तब प्रणब मुखर्जी के नागपुर संघ कार्यालय जाने को खूब कवरेज मिली । प्रणब मुखर्जी का निर्णय कुछ को नागवार गुजरा तो कुछ लोगों  ने उनकी इस पहल को सराहा भी। मोदी की इस यात्रा के पीछे  संघ  प्रमुख मोहन भागवत की  कुशल रणनीति ने काम किया। संघ मुख्यालय में लाने में मोहन भागवत  की बड़ी भूमिका रही । कांग्रेस के उनकी यात्रा को रोकने के  तमाम प्रयासों के बावजूद भागवत प्रणब दा को न केवल नागपुर खींच लाए, बल्कि मंच से  संघ संस्थापक केशव राव बलिराम  हेडगेवार की भूरी भूरी प्रशंसा भी पूर्व राष्ट्रपति से करवा डाली। हालांकि प्रणब मुखर्जी ने संघ मुख्यालय में दिए अपने संबोधन में भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति पर अपना फोकस रखा लेकिन  कांग्रेस को जो  नुकसान होना था, वह होकर ही रहा।

प्रणब दा चाहे जितने बड़े पद पर रहे, यहां तक कि राष्ट्रपति बन जाने पर भी वे दुर्गापूजा में अपने गांव मिराती आना कभी नहीं भूलते थे। तीन दिनों तक पारंपरिक भद्र बंगाली पोशाक में दुर्गापूजा करते थे। राष्ट्रपति पद से अवकाश लेने के बाद प्रणब दा का अधिकतर समय लिखने-पढ़ने पर खर्च होता था। प्रणब दा संसद में दिए भाषणों के संकलन से लेकर राष्ट्रपति के रूप में अपने भाषणों के संकलन की तैयारी में स्वयं रुचि ले रहे थे। प्रणब दा की किताब कांग्रेस एंड मेकिंग आफ इंडियन नेशन’ (दो खंड) में कांग्रेस के 125 वर्षों के इतिहास व उसकी बाहरी व भीतरी चुनौतियों का आख्यान है। उनकी इधर के वर्षों में आई किताबों- 'द ड्रैमेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी ईयर्स', ‘द टर्बुलेंट ईयर्स’, ‘द कोएलिशन इयर्स’, ‘थाट्स एंड रेफ्लेक्शनका जिस तरह स्वागत हुआ, उससे वे उत्साहित थे। 'द ड्रैमेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी ईयर्स' में इमरजेंसी, बांग्लादेश मुक्ति, जेपी आंदोलन, 1977 के चुनाव में हार, कांग्रेस में विभाजन, 1980 में सत्ता में वापसी और उसके बाद के विभिन्न घटनाक्रमों पर अलग-अलग अध्याय हैं। द टर्बुलेंट ईयर्समें 1980 से 1996 के राजनीतिक इतिहास को उन्होंने कलमबद्ध किया था और द कोएलिशन इयर्समें 1996 से 16 वर्षों तक के राजनीतिक घटनाक्रम को उन्होंने शब्द दिए थे। थाट्स एंड रेफ्लेक्शनकिताब में विभिन्न विषयों पर प्रणव दा के विचार संकलित थे।

प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंह राव, सीताराम केसरी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कई कठिन परिस्थितियों में अपनी बुद्धिमत्ता तथा राजनीतिक कौशल से कांग्रेस पार्टी को संकट से उबारा था। उन्होंने दशकों तक कांग्रेस के लिए थिंक टैंक के रूप में काम किया। आर्थिक तथा वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ माने जाने वाले प्रणब दा को न्यूयार्क की पत्रिका यूरो मनी ने 1984 में विश्व के सर्वश्रेष्ठ पांच वित्त मंत्रियों में एक माना था। उनके राजनीतिक चातुर्य का लोहा विरोधी भी मानते रहे हैं। इसलिए क्योंकि प्रणब दा ने अपनी राजनीति को मूल्यवान बनाए रखा था। उनके लिए राजनीति का अर्थ चुनावों में जीत, सत्ता और तंत्र की राजनीति नहीं थी। उनकी राजनीति का संबंध मूल्यों से था। वे उन चुनिंदा नेताओं में थे जो राजनीति के मूल्यों के प्रति सदा-सर्वदा सचेत रहते हैं और नाना धर्मों में आस्था रखनेवाले और दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखनेवाले धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ सदैव तनकर खड़े रहते हैं। उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए कभी सिद्धांतविहीन समझौते नहीं किए।

प्रणब को साल 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड भी मिला । वहीं 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए  उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया। इतना ही नहीं  26 जनवरी 2019  को उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में प्रणब दा ने कई सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाईं और अपनी कार्यशैली से हर किसी को प्रभावित किया। भारत सरकार के लिए विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्रालय में किया गया उनका काम हमेशा याद किया जाता रहेगा । प्रणब  मुखर्जी बेशक  राज्यसभा के लिए  5 बार चुने गए और 2 बार लोकसभा सांसद भी रहे लेकिन इतिहास में बेहतर वित्त मंत्री  के तौर पर उनका कार्यकाल हमेशा याद किया जाता रहेगा । हरित क्रांति लाने वाले सी. सुब्रमण्यम के सान्निध्य और साहचर्य में सरकारी कामकाज सीखने वाले प्रणव  बहुत मेहनती भी थे। सुबह से लेकर देर रात तक काम ही काम  करते रहते  थे। दिन भर किए कामों की डायरी लिखना भी नहीं भूलते थे,  कोई काम कल पर भी नहीं छोड़ते थे। आमतौर पर आज के हमारे नेताओं की याददाश्त दुरुस्त नहीं रहती लेकिन प्रणब इसके अपवाद थे।एक बार किसी से मिल लेते थे तो उसका नाम नहीं भूलते थे और गर्मजोशी के साथ हर किसी से मिला करते थे । रायसीना हिल्स के उनके दरवाजे आम जनता के लिए हमेशा खुले रहते थे।  देश में होने वाले गंभीर विमर्शों का हिस्सा प्रणव दा हुआ करते थे कदाचित इन्हीं गुणों के कारण वे राजनीति में चार दशकों से भी लंबी  सफल  राजनीतिक पारी खेल सके । मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 

Saturday 12 September 2020

भाजपा के संकटमोचक थे जेटली

 प्रथम पुण्यतिथि पर स्मरण

भाजपा नेता अरुण जेटली की  जिंदगी से जुड़ा  हर पहलू  और राजनीतिक करियर बेहतरीन था ।  यूँ ही उन्हें भाजपा  का संकटमोचक  नहीं कहा जाता था । जेटली का जन्‍म 28 दिसंबर 1952 को नई दिल्‍ली के नारायणा विहार इलाके के मशहूर वकील महाराज किशन जेटली के घर हुआ।   उनकी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्‍ली के सेंट जेवियर स्‍कूल में हुई ।  1973 में जेटली ने दिल्ली के प्रतिष्ठित  श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से कॉमर्स में स्‍नातक की पढ़ाई पूरी की ।   इसके बाद उन्होंने यहीं से लॉ की पढ़ाई भी की।  छात्र जीवन में ही जेटली राजनीतिक पटल पर छाने लगे।  1974 में  वह  दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के छात्र संघ अध्‍यक्ष चुने गए।  इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते गए ।  1973 में उन्होंने जयप्रकाश नारायण और राजनारायण द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्‍टाचार विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई वहीं  1974 में अरुण जेटली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए।  1975 में आपातकाल का विरोध करने के बाद उन्‍हें 19 महीनों तक नजरबंद रखा तो इसी दौर में जेटली की मुलाक़ात जेल में कई नेताओं से हुई । जयप्रकाश नारायण उन्हें काफी पसंद करते थे ।  आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया।

 1990 में अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में वरिष्‍ठ वकील में रूप में अपनी नौकरी शुरू की।   अरुण जेटली मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में दूसरे नंबर के सबसे अहम शख्सियत माने जाते थे वहीँ  उन्होंने अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में भी अहम भूमिका निभाई । अटल सरकार सरकार में उन्हें 13 अक्टूबर 1999 को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया।  उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी नियुक्त किया गया।  विश्व व्यापार संगठन के शासन के तहत विनिवेश की नीति को प्रभावी करने के लिए पहली बार एक नया मंत्रालय बनाया गया।  उन्होंने 23 जुलाई 2000 को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला।  नवम्बर 2000 में एक कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया और एक साथ कानून, न्याय और कंपनी मामलों और जहाजरानी मंत्री बनाया गया।   भूतल परिवहन मंत्रालय के विभाजन के बाद वह नौवहन मंत्री भी रहे । उन्होंने 1 जुलाई 2001 से केंद्रीय मंत्री, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री के रूप में 1 जुलाई 2002 को नौवहन के कार्यालय को भाजपा और उसके राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में शामिल किया।  29 जनवरी 2003 को केंद्रीय मंत्रिमंडल को वाणिज्य और उद्योग और कानून और न्याय मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया।  13 मई 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार के साथ, जेटली एक महासचिव के रूप में भाजपा की सेवा करने के लिए वापस आ गए और अपने कानूनी करियर में वापस आ गए।

 2004-2014 तक उन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया।  16 जून 2009 को उन्होंने अपनी पार्टी के वन मैन वन पोस्ट सिद्धांत के अनुसार भाजपा के महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया।  वह पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य भी थे । राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक की बातचीत के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का समर्थन किया।  जेटली ने  2002 में 2026 तक संसदीय सीटों को मुक्त करने के लिए भारत के संविधान में अस्सी-चौथा संशोधन सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया  और 2004 में भारत के संविधान में नब्बेवें संशोधन ने दोषों को दंडित किया हालाँकि, 1980 से पार्टी में होने के कारण उन्होंने 2014 तक कभी कोई सीधा चुनाव नहीं लड़ा लेकिन पी एम मोदी के आग्रह पर 2014 के आम चुनाव में वह लोकसभा सीट पर अमृतसर सीट के लिए भाजपा के उम्मीदवार नवजोत सिंह सिद्धू की जगह बने जिसमें  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार अमरिंदर सिंह से  वह हार गए।  वह लगातार 18  बरस से  गुजरात से राज्यसभा सदस्य थे। उन्हें मार्च 2018 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए फिर से चुना गया। 26 मई 2014 को, जेटली को नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वित्त मंत्री के रूप में चुना गया जिसमें उनके मंत्रिमंडल में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और रक्षा मंत्री शामिल रहे । बिहार विधानसभा चुनाव, 2015 के दौरान, अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात पर सहमति व्यक्त की कि धर्म के आधार पर आरक्षण का विचार खतरे से भरा है और मुस्लिम दलितों और ईसाई दलितों को आरक्षण देने के खिलाफ है क्योंकि यह जनसांख्यिकी को प्रभावित कर सकता है। नवंबर 2015 में जेटली ने कहा कि विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानून मौलिक अधिकारों के अधीन होने चाहिए क्योंकि संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार सर्वोच्च हैं। उन्होंने सितंबर 2016 में आय घोषणा योजना की घोषणा की।

 भारत के वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, सरकार ने 9 नवंबर, 2016 से भ्रष्टाचार, काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के इरादे से 500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया। 20 जून, 2017 को उन्होंने पुष्टि की , जीएसटी रोलआउट अच्छी तरह से और सही मायने में ट्रैक पर है।  गुड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स (जीएसटी) लागू कराने का श्रेय अरुण जेटली  को जाता है।  जेटली ने ही ध्रुव विरोधी लोगों में इसके लिए सहमति बनायी।  जेटली पेशे से वकील थे लेकिन कानून के साथ वित्तीय मामलों पर भी अच्छी पकड़ रखते थे। उनके पास कुछ महीने वित्त के साथ रक्षा जैसे दो अहम मंत्रालय का प्रभार था। लोक सभा चुनावों के दौरान  जब राफेल का मुद्दा गरमाया तो वह  सरकार के लिए ट्रबलशूटर बनकर उभरे ।  संसद में विपक्ष के खिलाफ सीधे मोर्चा संभाला। 1990 में अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में वरिष्‍ठ वकील में रूप में नौकरी शुरू की वहीँ  वीपी सिंह सरकार में उन्‍हें 1989 में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया।   उन्‍होंने बोफोर्स घोटाले की जांच में पेपरवर्क भी किया।  जेटली की गिनती  देश के टॉप  वकीलों में यूँ ही नहीं होती थी । 90  के दशक में  जैसे-जैसे टीवी की महत्ता बढ़ती गई, वैसे-वैसे जेटली का ग्राफ भी चढ़ता गया।  पार्टी के प्रवक्ता होते हुए वह  स्टूडियो में  इतने लोकप्रिय मेहमान बन गए थे कि जब पत्रकार वीर सांघवी ने उनके मंत्री बनने के तुरंत बाद उनका स्टार टीवी पर इंटरव्यू किया तो उन्होंने मजाक किया कि इस कार्यक्रम में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि मेरा मेहमान मुझसे ज्यादा बार टीवी पर आ चुका हो।  राम जेठमलानी के कानून, न्‍याय और कंपनी अफेयर मंत्रालय छोड़ने के बाद जेटली को इस मंत्रालय का अतिरिक्‍त कार्यभार सौंपा गया।   2000 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद उन्‍हें कानून, न्‍याय, कंपनी अफेयर तथा शिपिंग मंत्रालय का मंत्री बनाया गया।   प्रखर प्रवक्ता और हिन्दी और अंग्रेजी-भाषाओं में उनके ज्ञान के चलते 1999 के आम चुनाव में बीजेपी ने उन्हें प्रवक्‍ता बनाया । अटल बिहारी सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का स्‍वतंत्र प्रभार सौंपा गया।   इसके बाद उन्‍हें विनिवेश का स्‍वतंत्र राज्‍यमंत्री बनाया गया ।  2002 में गुजरात में  दंगे हुए। मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे।  तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मोदी को हटाना चाहते थे। जेटली तब अटल और आडवाणी के काफी करीबी थे ।  गुजरात के गोधराकांड और दंगों के बाद जेटली उन चुनिंदा नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पार्टी के अंदर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव किया था। कहा जाता है कि जेटली ने अटल जी को सलाह दी और  निवेदन किया कि मोदी को हटाना सही नहीं होगा। इसके बाद मोदी  गुजरात में रम गए ।   2004 से 2014 के बीच यूपीए सरकार के वक्त वे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस, तुलसी प्रजापति एनकाउंटर केस, इशरत जहां एनकाउंटर केस में मोदी और शाह का बचाव करने वालों में सबसे आगे रहे।

 2014  के  लोकसभा चुनाव के पहले मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो यह जेटली की ही बिसात थी जिसने  पूरी पार्टी में मोदी के नाम पर सहमति बनायी।  वह गोवा अधिवेशन में एक दिन पहले ही पहुंच गए वजह मोदी के नाम पर सहमति बनानी  थी । यही नहीं एन  डी    का दायरा बढ़ाने में भी परदे के पीछे जेटली ही आगे रहे।   मोदी के नाम पर एन  डी ए  में  सर्वसम्मति बनाने में जेटली का योगदान  2014 में सबसे महत्वपूर्ण था।  2014 में लोकसभा चुनाव के पहले जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर विचार किया तो यह बहुत आसान काम नहीं था लेकिन जेटली की बिछाई बिसात में कमल दमदार तरीके से पूरे देश में खिला । 1 जुलाई 2017 को  जीएसटी लागू किया गया तब  तब जेटली  वित्त मंत्री थे। उस समय तक जीएसटी 150 देशों में लागू हो चुका था।  भारत 2002 से इस पर विचार कर रहा था। 2011 में यूपीए सरकार के समय तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी इसे लागू कराने की कोशिश की थी लेकिन यह  2017 में लागू हो सका। 2019 में मोदी है तो मुमकिन है का नारा गढ़कर उन्होने देश भर मे फिर से भाजपा के लिए माहौल बनाया ।  धारा 370 , धारा 35 ए समाप्त करने से लेकर नोटबंदी , जी एस टी और राफेल से जुड़े हर मसले पर उन्होने एक एक कर विरोधियों को अपने तर्कों से निरुत्तर कर दिया । जेटली एक सफल वकील के साथ ही राजनीति के कुशल  रणनीतिकार और ज्ञान के महासागर थे । 

 जेटली को भाजपा के सबसे शालीन  और मिलनसार नेताओं में से एक माना जाता था।  उनके संबंध दूसरे दलों में भी मधुर रहे और वह हमेशा सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखते थे ।  जेटली  के बारे में पार्टी में यह जुमला चलता था जिस राज्य का चुनावी प्रभारी  उनको बनाया जाता है समझ लें  उस राज्य में कमल खिलने से कोई नहीं रोक सकता।  दक्षिण में कर्नाटक के दुर्ग को फतह करने में उनकी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।  साथ ही बिहार में नीतीश के साथ गठबंधन बनाने में भी वह हमेशा आगे रहे। जेटली एक बेहतर इंसान भी थे ।  इसका एक नमूना ये था कि उनके निजी स्टाफ के कई कर्मचारियों के बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था उन्होनें विदेश में वहीं की जहां उनके बेटे रोहन जेटली ने पढ़ाई की । यही नहीं  राजनीति के साथ ही जेटली खाने पीने और क्रिकेट के बड़े शौकीन रहे।  इसके चलते पुरानी दिल्ली के तमाम दुकानदारों को वह व्यक्तिगत रूप से जानते थे । जेटली  क्रिकेट  के भी शौकीन थे इसी के  चलते ही दिल्ली में फिरोजशाह कोटला का जीर्णोद्धार न केवल उनके दौर मे  हुआ बल्कि दिल्ली , पंजाब , हरियाणा , यू पी  सरीखे राज्यों के छोटे इलाकों से आने वाले लड़कों ने टीम इंडिया में भी अपनी जगह बनाई ।  वह भी उस दौर में जब महाराष्ट्र के खिलाडियों का बड़ा बोलबाला एक दौर में हुआ करता था।  भाजपा में दूसरी पीढ़ी के नेताओं में अरुण जेटली की गिनती यूं ही नहीं होती थी ।  प्रमोद महाजन के जाने के बाद भाजपा को संवारने में जेटली की परदे के पीछे सबसे बड़ी  भूमिका थी जिसे  नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ।  जेटली लुटियंस के पत्रकारों के काफी करीब भी  थे ।  जेटली के औद्योगिक घरानों से लेकर मीडिया तक में अच्छे दोस्त थे जिसका उपयोग उन्होंने पार्टी के लिए किया और आजीवन अपने सिद्धांतों और विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया । ऐसे संकटमोचक नेता की कमी  भाजपा को हमेशा खलेगी 

 

दरिया भी मैं ...दरख़्त भी मैं ... झेलम भी मैं ... चिनार भी मैं


 
'स्टार बेस्टसेलर्सऔर 'चाणक्यजैसी टीवी सीरीज में नजर आने  वाला वह मेंढक जैसी बड़ी आंखों वाला अभिनेता  सिल्वर  स्क्रीन पर देश की सबसे रईस फिल्मी प्रोफाइल वाला सेलेब्रिटी बनता जा रहा था । खुद सोचिए अगर ऐसा नहीं होता तो आंग ली जैसे दुनिया के सबसे  प्रशंसित  निर्देशक की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'लाइफ ऑफ पीमें  वह क्यों लिया जाता?  स्पाइडरमैन फ्रैंचाइजी की  फिल्म 'द अमेजिंग स्पाइडरमैनके लिए जब सिर्फ एक फिल्म पुराने निर्देशक मार्क वेब ने कास्टिंग करनी शुरू की तो उसे ही क्यों चुना? वह एक्टर  बड़े परदे पर इस बार जब उतरा  तो ख्यात एथलीट और कुख्यात डकैत पान सिंह तोमर बनकर उसने सबके रोंगटे ही खड़े कर दिए । पान सिंह का इंटरव्यू लेने कोई जर्नलिस्ट आती है। पूछती है, “डकैत कैसे बनेतो वह कहता है, “आपको समझ नहीं आया। बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में  सिंह, मा****। याद रखना, अगर हार गया तो तुझे मार-मारकर यहीं के यहीं गाड़ दूंगा।" जब पान सिंह जीत जाता है तो रंधावा बड़े राजी होते हैं, शाबासी देते हैं, पर वह कुछ नाराज है। रंधावा जब उससे पूछते हैं, तो वह रुआंसा होकर कहता है, "कोच साब आप गुरू हैं, लेकिन दोबारा मां की गाली नहीं देना। हमारे गांव में मां की गाली देने वाले को हम गोली मार देते हैं।" इतना कहकर वह रंधावा के पैर छू लेता है। और वो उसे गले लगा लेते हैं।पान सिंह नेशनल बाधा दौड़ के ट्रैक पर दौड़ रहा है। कोच रंधावा (राजेंद्र गुप्ता) को जब लगता है कि वह धीरे दौड़ रहा है तो चिल्लाकर कहते हैं, "ओए पान अब देखिए कि कितना सहज लेकिन धमाकेदार सीन है। ये फिल्म कुछ ऐसी ही है।

 "दि लंच बॉक्स" में खाने और लंच बॉक्स के माध्यम से संचार और सहज इंसानी भावों को वह  दर्शकों के सामने इतनी सहजता से निभाता है  कि आप अपने आस-पास कहीं किसी लंच बॉक्स में ऐसी ही कहानी ढूढ़ने लग जाते हैं। फिल्म "कारवां" में गमगीन परिस्थिति में वे किसी आम व्यक्ति की तरह मदद करने की कोशिश करते हैं। वहीं "करीब-करीब सिंगल" में जिंदादिल आदमी का किरदार वे इतनी शिद्दत से निभाते हैं कि आप उनके फैन हो ही जाते हैं।  हासिलका डायलॉग और जान से मार देना बेटा, हम रह गये ना, मारने में देर नहीं लगायेंगे,भगवान कसम आज भी लोगों कि जुबान पर चढ़ जाता है ।"अंग्रेज़ी मीडियम" के ट्रेलर इंट्रो में वे कहते हैं- हैलो भाईयों एवं बहनों, ये फिल्म अंग्रेज़ी मीडियम मेरे लिए बहुत खास है। सच, यकीन मानिये कि मेरी दिली इच्छा थी कि इस फिल्म को उतने ही प्यार से प्रमोट करूं जितने प्यार से हम लोगों ने इसे बनाया है। लेकिन मेरे शरीर के अंदर कुछ अनवांटेड मेहमान बैठे हुए हैं, उनसे वार्तालाप चल रहा है, देखते हैं किस करवट ऊंट बैठता है। जैसा भी होगा, आपको इत्तला कर दी जाएगी।"इरफ़ान आगे कहते हैं- "कहावत है  सच में जब जिंदगी आपके हाथ में नींबू थमाती है तो शिकंजी बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है लेकिन आपके पास और चॉयस भी क्या है, पॉजिटिव रहने के अलावा। फिलहाल, हाथ में नींबू की शिकंजी बना पाते हैं या नहीं बना पाते हैं. यह आप पर है | यह सकारात्मकता ही इमरान को इतने बड़े अभिनेता के रूप में स्थापित करती है।   'हासिल' फ़िल्म  इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति पर बनी थी और इरफ़ान का जीवंत अभिनय देखने लायक था "...और जान से मार देना बेटा, हम रह गये ना, मारने में देर नहीं लगायेंगे, भगवान कसम!" ये हैं इरफान खान की एक्टिंग जिसका तोड़ फिलहाल किसी के पास नहीं है । 

 इरफ़ान ने कुछ समय पहले अपना अंतिम पत्र लिखा जिसमें कहा 'कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से जूझ रहा हूं, मेरी शब्‍दावली के लिए यह बेहद नया शब्‍द था, इसके बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि यह एक दुर्लभ कैंसर की बीमारी है और इसपर अधिक शोध नहीं हुए हैं। अभी तक मैं एक बेहद अलग खेल का हिस्‍सा था। मैं एक तेज भागती ट्रेन पर सवार था, मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, आकांक्षाएं थीं और मैं पूरी तरह इस सब में बिजी था। तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंथे पर हाथ रखते हुए मुझे रोका। वह टीसी था: 'आपका स्‍टेशन आने वाला है, कृपया नीचे उतर जाएं। ' मैं परेशान हो गया, 'नहीं-नहीं मेरा स्‍टेशन अभी नहीं आया है.' तो उसने कहा, 'नहीं, आपका सफर यहीं तक था, 'कभी-कभी यह सफर ऐसे ही खत्‍म होता है'।इस सब के बीच मुझे बेइंतहां दर्द हुआ | इस सारे हंगामे, आश्‍चर्य, डर और घबराहट के बीच, एक बार अस्‍पताल में मैंने अपने बेटे से कहा, 'मैं इस वक्‍त अपने आप से बस यही उम्‍मीद करता था कि इस हालत में मैं इस संकट से न गुजरूं । मुझे किसी भी तरह अपने पैरों पर खड़े होना है। मैं डर और घरबाहट को खुद पर हावी नहीं होने दे सकता। यही मेरी मंशा थी... और तभी मुझे बेइंतहां दर्द हुआ।

 दुनिया में महज़ एक ही चीज निश्चित है वो अनिश्चि‍तता है ।  'जब मैं दर्द में, थका हुआ अस्‍पताल में घुस रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा अस्‍पताल लॉर्ड्स स्‍टेडियम के ठीक सामने है। यह मेरे बचपन के सपनों के 'मक्‍का' जैसा था. अपने दर्द के बीच, मैंने मुस्‍कुराते हुए विवियन रिचर्ड्स का पोस्‍टर देखा। इस हॉस्‍पिटल में मेरे वॉर्ड के ठीक ऊपर कोमा वॉर्ड है। मैं अपने अस्‍पताल के कमरे की बालकॉनी में खड़ा था, और इसने मुझे हिला कर रख दिया। जिंदगी और मौत के खेल के बीच मात्र एक सड़क है। एक तरफ अस्‍पताल, एक तरफ स्‍टेडियम। मैं सिर्फ अपनी ताकत को महसूस कर सकता था और अपना खेल अच्‍छी तरह से खेलने की कोशिश कर सकता था । इस सब ने मुझे अहसास कराया कि मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना ही खुद को समर्पित करना चाहिए और विश्‍वास करना चाहिए, यह सोचा बिना कि मैं कहां जा रहा हूं, आज से 8 महीने, या आज से चार महीने, या दो साल । अब चिंताओं ने बैक सीट ले ली है और अब धुंधली से होने लगी हैं। पहली बार मैंने जीवन में महसूस किया है कि 'स्‍वतंत्रता' के असली मायने क्‍या हैं.'एक उपलब्धि का अहसास। इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया। उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया। वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं! फ़िलहाल, मैं यही महसूस कर रहा हूं।

इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग...सभी, मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं, मैं जिन्हें जानता हूं और जिन्हें नहीं जानता, वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम ज़ोन से मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थनाएं मिल कर एक हो गयी हैंएक बड़ी शक्तितीव्र जीवनधारा बन कर मेरे स्पाइन से मुझमें प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही है।अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती हैमैं खुश होकर इन्हें देखता हूं। लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नयी दुनिया दिखाती है।अहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन (कॉर्क) का नियंत्रण होजैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों!

 इरफान ने सिनेमाई स्क्रीन  में जो मुकाम हासिल किया, उसके पीछे काम के प्रति उनका  गहरा जूनून  रहा । बहुत कम लोगों को यह बात मालूम है कि इरफान बचपन में एक दौर में  क्रिकेटर हुआ करते थे और क्रिकेटर  बनना चाहते थे  जिसके लिए वह सी के नायडू  ट्राफी भी  खेल चुके थे लेकिन क्रिकेट के चौके और छक्कों के बीच उन्होंने अभिनय में भी दो दो हाथ करने की ठानी और गली-मोहल्ले में नुक्कड़ नाटक करने लगे    इरफान का ये शौक उन्हें जयपुर के रबीन्द्र मंच से  दिल्ली के मशहूर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में ले आया ।  एनएसडी से एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद इरफान सीधे  मुंबई पहुंचे और यहां के संघर्ष से उन्हें  नई पहचान मिली ।  एक दौर ऐसा था कि रोजी-रोटी के लिए इरफान हर तरह के किरदार करने लगे, कई टी.वी. शो में उन्होंने छोटे रोल किए ।  1990 में आई फिल्म एक डॉक्टर की मौतमें उनका एक छोटा सा रोल मिला लेकिनं ख़ास पहचान नहीं मिल पाई । इरफान ने 1994 में सीरियल 'द ग्रेट मराठा नजीबुद्दौला' में रोहिल्ला सरदार और 1992 में सीरियल 'चाणक्य' में सेनापति भद्रसाल का किरदार निभाया था। 2002 में रिलीज हुई आसिफ कपाड़िया की फिल्म द वारियरने  इरफान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।  इसके बाद 2003 में आई इरफान की फिल्म हासिलऔर 2004 में मकबूलरिलीज हुई जिसने  इरफान को हिंदी सिनेमा में न सिर्फ शोहरत दिलाई बल्कि उनके अभिनय की धाक जमाई ।

 

इसके बाद तो  इरफान ने  बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया । अमेजिंग स्पीडर मैन, ए माइटी हार्ट में इरफ़ान ने अपनी  एक्टिंग से सबका दिल जीत लिया। हॉलीवुड की द अमेजिंग स्पाइडरमैन‘ (2012) में इरफान ने एक विलेन का रोल किया था। 2007 में आयी एंजेलिना जोली की ए माइटी हार्टहो, 2015 में आयी जुरैसिक पार्कहो या फिर द नेमसेकहो इरफान ने अपने फैंस के दिलों को जीतने में कोई कमी नहीं छोड़ी।इरफान ने लगभग सभी किरदार निभाये फिर चाहे वो छोटा किरदार हो या बड़ा, किसी चोर-चरसी का किरदार हो, चाहे पुलिस वाला या सड़कछाप गुंडा हो, नवाब या डकैत से लेकर एक प्रेमी, एक मंगेतर, एक पति तक। इसी दौर में 'लाइफ इन अ मेट्रो', 'स्लमडॉग मिलेनियर', 'न्यूयॉर्क' जैसी फिल्मों ने इरफ़ान की  प्रतिभा को सबके सामने लाने का काम किया ।  किस्सा , दी वारियर , न्यू यॉर्क , ब्लेकमेल , साहेब बीवी और गैंगेस्टर , ये साली जिन्दगी , पीकू , कारवां , मदारी , फेवरेट , तलवार , बिल्लू बारबर, पार्टीशन, नाक आउट , इनफैरनो,    हैदर" और "तलवार  में उनके दमदार अभिनय की दुनिया भर में सराहना हुई ।    इन सभी फिल्मों में  इरफ़ान  की एक्टिंग देखने लायक थी । आस्कर जीतनेवाली फ़िल्म "स्लमडॉग मिलियनेयर" (2008) में पुलिस इंस्पेक्टर का छोटा किरदार भी जिया ।  ओम पुरी के बाद इरफ़ान  अकेले ऐसे अभिनेता थे जिनका डंका विश्व सिनेमा में बजता था ।  द वारियर ” ( आसिफ कपाड़िया, 2001), ” द नेमसेक ” ( मीरा नायर, 2006) ” ” अ माईटी हार्ट” ( विलियम विंटरबाटम, 2007),” “स्लमडाग मिलिनायर”( डैनी बायले, 2008), ” लाइफ आफ पाई”(अंग ली, 2012) , ” किस्सा ” ( अनूप सिंह, 2014), ” इनफरनो “( रोन हावर्ड, 2016) आदि कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में उनका काम बेमिसाल रहा ।

 इरफान बीते बरस ही लंदन से इलाज करवाकर लौटे थे और लौटने के बाद के डॉक्टरों की देखरेख में  चेकअप करवा रहे थे। 2018 में उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया था कि वह न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से पीड़ित हैं जिसके बाद वह  लंदन अपने इलाज के लिए रवाना हुए और लम्बे समय लंदन में रहकर  इलाज  करा रहे थे  । हाल ही में इरफ़ान ख़ान की मां सईदा बेगम का जयपुर में निधन हो गया। लॉकडाउन की वजह से इरफ़ान अपनी मां की अंतिम यात्रा में शरीक नहीं हो पाए थे और वीडियो कॉल के ज़रिए ही उन्होंने मां के जनाज़े में श‍िरकत की थी।  मां की मौत  के महज  चार दिन बाद ही  इरफान खान का इंतकाल हो गया । इरफान 2018 से न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी से जूझ रहे थे। कैंसर की बीमारी से निजात पाने के बाद पिछले साल उन्होंने फिल्म अंग्रेजी मीडियमके जरिए वापसी की थी। यह फिल्म इस 13 मार्च को रिलीज हुई थी लेकिन होली के बाद लगे  लॉकडाउन के चलते यह सिनेमाघरों में ज्यादा दिन नही चल पाई थी।  

 अपने तीन दशक के करियर में उन्होनें 50 से अधिक राष्ट्रीय फिल्मों और धारावाहिकों में अभिनय किया है।  इतने कम समय में ही इरफान का नाम विशिष्ट कहे जाने वाले अभिनेताओं की श्रेणी में आ गया था।यह सब उनकी मेहनत और लगन का नतीजा है  2004 में हासिल मूवी में  खलनायक की भूमिका के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला  वहीँ 2008 में इरफान को फ़िल्म "लाइफ इन ए मेट्रो" के लिए फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार से नवाजा गया       60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म "पान सिंह तोमर" में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला वहीँ 2018 में हिंदी मीडियम के लिए उनको फिल्मफेयर  सर्वश्रेष्ठ  अभिनेता का पुरस्कार मिला    

 विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदरमें इरफान खान का एक डायलॉग हैः

दरिया भी मैं, दरख्त भी मैं

झेलम भी मैं, चिनार भी मैं

दैर  हूं, हरम भी हूं

शिया भी हूं, सुन्नी भी हूं

मैं हूं पंडितमैं था, मैं हूं और मैं ही रहूंगा.

 सही में कम समय में इरफ़ान को  इतना बड़ा ओहदा उन्हें विरासत में नहीं मिला बल्कि यह उनकी लगन  और मेहनत से  हासिल किया ।  मृत्यु एक शाश्वत सत्य है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं है     सिनेमा जगत के लिए  उनके निधन की भरपाई करना आसान नहीं होगा |  उनके निधन की खबर से अभी तक उनके तमाम प्रशंसक और परिवार वाले सदमे में हैं। इरफान खान अपने पीछे पत्नी सुतापा सिकदर और दो बेटे अयान और बाबिल खान को छोड़ गए हैं।आज  इरफान हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपनी फिल्मों से  भावी  पीढ़ी यह जान पायेगी  कि इरफान खान होने के क्या मायने थे | आज भले ही वे इस दुनिया को छोड़ गए लेकिन अपने जीवंत अभिनय से इरफान ने अपनी अलहदा पहचान कायम की |    इरफान चाहे वास्तविक तौर पर यहां अब शायद मौजूद न हो लेकिन वो हमेशा लाखों करोड़ों के दिलों में जिंदा रहेंगे। उनके किरदार  और डायलाग हमेशा के लिए अमर रहेंगे ।