Wednesday 23 June 2021

भूले नहीं भुलाएंगी इंदिरा हृदयेश

 




 उत्तराखंड की नेता प्रतिपक्ष और हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक रही डॉ  इंदिरा हृदयेश के निधन के साथ ही उत्तराखंड की राजनीति का एक अध्याय हमेशा के लिए खत्म हो गया हैबीते पाँच  दशकों से अविभाजित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राजनीति का अहम चेहरा रही डॉ इंदिरा हृदयेश ने अपनी राजनीति से दोनों प्रदेशों में अपनी विशेष छाप छोड़ने में सफलता पायी और अपनी अलहदा पहचान कायम की। उत्तराखंड में तो वो पिछले दो दशकों से लगातार कांग्रेस पार्टी का प्रमुख चेहरा रहीं और विरोधियों को भी अपनी राजनीति की बेबाक शैली के माध्यम से साधती रही । इंदिरा हृदयेश उत्तराखंड में एक कद्दावर नेता थीं। उनका धीर-गंभीर अंदाज और राजनीतिक परिपक्वता की वजह से विपक्षी नेता भी उनका हमेशा  सम्मान करते थे और उनकी कही हुई बात को नहीं नकार पाते थे

 आम जनता के लिए वो एक ऐसी दीदी थी जो  भोटियापड़ाव स्थित अपने संकलन आवास में दिन- रात लोगों की सेवा में तल्लीन रहती थीवो काँग्रेस की ऐसी इकलौती नेता रही जिसकी सियासत में असंभव कुछ भी नहीं रहा उन्हें कभी किसी के आगे झुकना पसंद नहीं था सत्ता पक्ष में रही , चाहे विपक्ष में अपनी राजनीतिक शक्ति और कौशल का कैसे इस्तेमाल करना है यह इंदिरा से बेहतर कोई राजनेता नहीं जानता था उत्तराखंड की बेलगाम नौकरशाही को साधने की कला में उनका कोई सानी नहीं था कई बार वो कहा भी करती थी राजनेताओं को नौकरशाहों से काम निकालना आना चाहिए अपनी इस कला का लोहा उन्होनें ताउम्र मनाया और कभी भी उनके सत्ता में रहते नौकरशाह उनकी राय को नहीं नकार सके और हमेशा  इंदिरा के आगे नतमस्तक रहे इसका बड़ा कारण उनका राज्य के हर मामले में किया गया होमवर्क था वो सदन में भी जाती थी तो पूरी तैयारी करके जाती थी सदन में सरकार में रहते सरकार को मुश्किल से बाहर कैसे निकालना है या विपक्ष में रहते सरकार को कैसे और किन मुद्दों पर घेरा जा सकता है ? इन सबसे पार कराने के लिए इंदिरा का नाम ही काफी था सदन जब नहीं चलता था तब भी आंकड़े जुबान पर याद रखती थी मीडिया के लिए वो ज्ञान का महासागर थी नए नए मुद्दों पर विमर्श करना और हर पल राज्य को विकास के मोर्चे पर आगे ले जाना तो मानो उनकी फितरत ही थीनए विधायकों के लिए वो किसी हेडमास्टर से कम नहीं थी उनके ज्ञान के महासागर के आगे सदन का हर नेता नतमस्तक रहा  जिस अंदाज में वो  संसदीय कार्य  मंत्री रहते  सदन चलाती थी उसकी मिसाल उत्तराखंड की राजनीति में देखने को नहीं मिलती थी संसदीय कार्य मंत्री के तौर पर वो हमेशा सदन में सरकार की ढाल थी जिनके चक्रव्यूह से पार पाना किसी भी नेता के लिए मुश्किल था इंदिरा ऐसी नेता थी जो राज्य में पहाड़ से लेकर मैदान तक काँग्रेस की लोकप्रिय ब्राह्मण चेहरा थी उनके अचानक परलोक गमन से उत्तराखंड की राजनीति में एक गंभीर शून्य उत्पन्न हो गया है यह बड़ी  विडम्बना है भाजपा के कद्दावर नेता प्रकाश पंत और अब  काँग्रेस की दिग्गज इंदिरा  के निधन के बाद उत्तराखंड की राजनीति में एक ऐसा शून्य भर दिया है जो संसदीय ज्ञान और वित्तीय मामलों, और प्रशासनिक अनुभव  में उत्तराखंड में बेहतरीन  समझे जाते थे  

उत्तर प्रदेश में कुल चार बार एमएलसी रहना और उत्तराखंड की कांग्रेस सरकारों में हमेशा नंबर दो बने रहना और नेता प्रतिपक्ष होना इतना आसान नहीं है लेकिन इंदिरा हृदयेश ने हमेशा ये सब पद अपनी मेहनत से पाये इंदिरा ने  काँग्रेस पार्टी अपना कद खुद के बूते तैयार किया  इंदिरा उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी  की एक ऐसी नेता रहीं जो वर्ष 2000 से आज तक लगातार सदन की विधायक रही 2007 के विधानसभा चुनाव को  छोड़कर कभी चुनाव नहीं हारी तब सपा प्रत्याशी अब्दुल मतीन के मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के चलते हल्द्वानी में रिकार्ड विकास कार्यों के बावजूद उनकी हार हुई थी बीते विधान सभा चुनाव में मोदी लहर में जब काँग्रेस महासचिव हरीश रावत सरीखे दिग्गज हार गए तो इंदिरा के विकास  कार्यों का ही कमाल था हल्द्वानी में वो भाजपा प्रत्याशी को भारी अंतर से धूल चाटने में कामयाब हो पायी    

                      


नेता प्रतिपक्ष डॉ  इंदिरा हृदयेश पिछले चार दशक से उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड की राजनीति में बड़े नेताओं में शुमार रहीं ।  हेमवती नन्दन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी के साथ काम करते- करते इंदिरा प्रदेश की कद्दावर  नेताओं में शुमार हो गयी डॉ  इंदिरा हृदयेश को पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का उत्तराधिकारी माना जाता था। जहां  उम्मीद की जा रही थी कि साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में इंदिरा हृदयेश को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा वहीं इस दौर में अभी से इंदिरा की भावी ताजपोशी को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं कि 2022 में अगर कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती है, तो इंदिरा हृदयेश को मुख्यमंत्री  का चेहरा बनाया जा सकता है लेकिन शायद  विधाता को ये सब मंजूर नहीं था । आगामी 2022 में राज्य की  मुख्यमंत्री बनने का सुनहरा मौका उनके पास था ।  कहा भी जाने लगा था डॉ इंदिरा  का करिश्मा ही कांग्रेस की जीत के लिए काफी है, जो मौजूदा दौर में  भाजपा को साधी हुई चुनौती अपनी बिछाई बिसात के आसरे दे सकती  हैं और  सभी दलों  में अपनी सर्वस्वीकार्यता और अपने समीकरणों से सबको साध सकती हैं कुमाऊँ में नैनीताल जिले की कालाढूंगी , भीमताल , लालकुआं , रामनगर और उधमसिंहनगर की  जिले की जसपुर , काशीपुर , बाजपुर , गदरपुर , रुद्रपुर , किच्छा , सितारगंज , नानकमत्ता, खटीमा की 15 सीटों के साथ पहाड़ी जिलों की कई सीटों पर उनका सीधा प्रभाव रहा है राज्य बनने के बाद से ही इन सीटों पर उनका प्रभाव टिकटों के चयन से लेकर पार्टी की चुनावी जीत हार को प्रभावित करता रहा है काँग्रेस हाईकमान इस बार सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात बेशक कर रहा था  लेकिन  वो हरीश रावत को सीएम चेहरा घोषित करने से  साफ मना भी कर रहा था  और पिछला चुनाव उनके नेतृत्व में हारने के चलते अब नए लोगों को ज़िम्मेदारी देने की बात भी कर रहा था   ऐसे में अब नेचुरल इंदिरा हृदयेश की ही बारी थी, लेकिन उससे पहले ही इंदिरा हृदयेश ने इस दुनिया को छोड़कर चली गयी

इंदिरा हृदयेश काँग्रेस संगठन की एक अहम बैठक में भाग लेने दिल्ली गयी हुई थी दिल्ली में पार्टी 2022 के चुनावों के लिए रणनीति बनाने में जहां जुटी हुई थी वहीं आगामी विधान सभा चुनावों के लिए पार्टी की संभावनाओं के लिए भी मंथन हो रहा था । नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश नई दिल्ली स्थित उत्तराखंड सदन में ठहरी हुईं थीं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह , प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और कॉंग्रेस महासचिव हरीश रावत भी उस बैठक में साथ थे। उत्तराखंड की मिशन 2022 की नीति पर निर्णय लेने के मद्देनजर इंदिरा ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के साथ बैठक की थी।  उन्हें खटीमा से शुरू होने जा रही परिवर्तन यात्रा की  ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी सुबह दिल्ली में उनको हार्ट अटैक का दौरा पड़ा जिसके बाद उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती किया गया जहां उपचार के दौरान का निधन हो गया। इस दौरान अस्पताल उनके पुत्र सुमित ह्रदयेश समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता मौजूद थे।

 इस बरस मार्च में भी उनकी श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित कांग्रेस की जन आक्रोश रैली में शामिल होने के दौरान तबीयत खराब हो गई थी जिसके  बाद उन्हें ऋषिकेश के  एम्स में एडमिट कराया गया था। इससे पहले  बीते बरस भी वो कोरोना पाजीटिव पायी गई थीं। हालांकि उससे योद्धा की भांति कुछ दिनों  बाद उबरकर कर वो फिर से उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय हुई थीं । मृत्यु से ठीक दो दिन पहले वो तेल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हल्द्वानी में भी नजर आई   डॉ हृदयेश का सपना था कि वह एक बार सूबे की  मुख्यमंत्री जरूर बनें लेकिन इसके लिए इंदिरा हृदयेश ने कभी किसी प्रकार की लाबिंग नहीं की और ना ही पद पर आसीन किसी भी व्यक्ति को कुर्सी के हटाने के लिए अपनी चाल चली उन्होनें पार्टी की सच्ची सिपाही के तौर पर हमेशा ही पार्टी आलाकमान के निर्णय का सम्मान किया शायद  उनकी कुंडली में  सीएम का राजयोग  नहीं लिखा था, जो उनकी बातों और चेहरे पर यदा - कदा साफ झलकता रहता था

 2012 के विधानसभा चुनाव में वो काँग्रेस की मजबूत दावेदार रही, तो उस दौरान कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के समीकरण को देखते हुए विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी लेकिन उनके साथ रहते हुए भी  उन्होने बेहतर नतीजे राज्य को दिये  इसके बाद से जब भी नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा चलनी शुरू  हुई तब से कांग्रेस में इंदिरा हृदयेश मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे रही लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सका और काँग्रेस महासचिव हरीश रावत अपनी गुगली से बाजी मार ले गएतब भी उन्होनें हरीश रावत के साथ रहते हुए सरकार सुचारु ढंग से चलाई । 2016 में काँग्रेस पार्टी में जब सबसे बड़ी टूट हुई तब इंदिरा हृदयेश ऐसी नेता रही जो हरीश रावत के साथ कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ी  ये अलग बात है कि पंडित तिवारी के दौर से ही दोनों के बीच संबंध मधुर नहीं रहे इसके बाद जब भी सरकार के साथ खड़े होने की बात आई तो इंदिरा टस से मस नहीं हुई ऐसे कई मौके आए जब हरीश रावत और डॉ इंदिरा हृदयेश में गंभीर मतभेद दिखाई दिये ,लेकिन संकटकाल में दोनों ने पार्टी का साथ देना नहीं छोड़ा गर्दन में चोट के चलते जब हरीश रावत लंबे समय तक एम्स में भर्ती रहे तब उन्होनें राज्य की कमान को बेहतर ढंग से संभाला  वो कभी भी किसी सीएम पर हावी नहीं हुई चाहे पंडित तिवारी  हों या विजय बहुगुणा या हरीश रावत तीनों के साथ मजबूती के साथ सरकार चलायी और सरकार की संकटमोचक बनी यशपाल आर्य , सुबोध उनियाल , विजय बहुगुणा , प्रीतम सिंह पँवार , सतपाल महाराज , हरक सिंह रावत जैसे दिग्गज नेताओं ने भी इन्दिरा से बहुत कुछ सीखामूल्यों की राजनीति और अपने लंबे अनुभव के चलते इंदिरा सही मायनों में पक्ष और विपक्ष दोनों की सही धुरी थी उनकी राजनीति के केंद्र में शुरुवात से वंचित , शोषित और आम लोग ही थे जिनके प्यार के चलते  वो  आयरन लेडी बन पायी

                       


7 अप्रैल 1941 को दौंणू-दसौली ग्राम में जन्मी इंदिरा हृदयेश का बचपन गांव के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिता के साथ उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में बीता।  चार बरस की उम्र में पिता टीकाराम  का निधन हो गया और उसके कुछ समय बाद बड़े भाई भी चल बसे मां पर दोनों बेटियों की परवरिश की बड़ी ज़िम्मेदारी आन पड़ी लेकिन इंदिरा बचपन से संघर्षशील रही और आगे बढ़ी   पीलीभीत में अपने मामा के यहाँ 12 वीं तक की पढ़ाई पूर्ण की इसके बाद लखनऊ विवि से राजनीतिक विज्ञान में एम आए करने के बाद पी एच डी की डिग्री भी प्राप्त की । शिक्षा पूरी करने के बाद वह हल्द्वानी के ललित महिला कन्या इंटर कॉलेज में पहले लंबे समय तक शिक्षिका और  प्रधानाचार्य भी रहीं।  सामाजिक गतिविधियों में शुरुवात से सक्रिय रही   इसी दौरान उन्होंने शिक्षक राजनीति के जरिए संयुक्त उत्तर प्रदेश की राजनीति में पदार्पण किया और पहले 1974 से 1980 और फिर 1986 से वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनने तक लगातार तीन बार शिक्षक कोटे से उत्तर प्रदेश विधानपरिषद में एमएलसी रहीं। वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनते समय इंदिरा  हृदयेश और केसी सिंह बाबा ही कांग्रेस पार्टी से विधायक थे, लिहाजा उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। स्वर्गीय  एन डी  तिवारी का विशेष सानिध्य इंदिरा को मिलते रहा जिसके चलते उनको वे अपना गुरु भी मानती थी  2002 में पंडित नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने पर वह प्रदेश में शैडो मुख्यमंत्रीकी हैसियत में रहीं। इस बीच उनकी छवि अपनी विधानसभा हल्द्वानी की सड़कों को चमकाने के कारण विकास नेत्रीके रूप में भी रही और इसी दौर में उन्होनें हल्द्वानी को महानगरों की तरह विकसित करने का सपना भी देखा राज्य बनने के बाद उन्होनें अपनी विधानसभा सीट में विकास की गति का सेंसेक्स उच्चतम स्तर पर रखा गली- गली में सड़कों को चमकाया गया और हल्द्वानी को शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के बड़े हब के रूप में विकसित कराया गौला पार में इंटरनेशल स्टेडियम का निर्माण उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था जिसे उन्होनें  2017 में पूर्ण करवाया उच्च शिक्षा निदेशालय के साथ ही उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय के निर्माण में उनकी दूरदर्शी सोच ने काम किया

                  


डॉ इंदिरा हृदयेश से मेरी व्यक्तिगत रूप से बहुत मुलाकातें तो नहीं हुई लेकिन कई बार सेमिनारों और  संगोष्ठी के दौरान मिलना हुआ स्वर्गीय एन डी तिवारी के सी एम रहते हल्द्वानी में उत्सव गार्डन में एक संगोष्ठी में डॉ इंदिरा  से पहली बार सामना हुआ तब  काँग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार  राज्य में बनी थी तब उन्होनें काफी दुलार दिखाया उसी दौरान उनके साथ आफ द रिकार्ड बात हुई तब उत्तरांचल नया राज्य बना था  कई चुनौतियाँ  हर मोर्चे पर थी लेकिन डॉ  इंदिरा की दूरदर्शी सोच बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने को लेकर शुरुवात से काम कर रही थी  उस सेमिनार में मैंने उनकी सोच में तब राज्य की तरक्की के लिए एक नया विजन देखा था पंडित तिवारी की सरकार में बतौर लोक निर्माण विभाग ,राज्य संपत्ति , विज्ञान प्रोद्योगिकी ,  सूचना , संसदीय कार्य मंत्री जैसे दर्जन भर से अधिक मलाईदार मंत्रालय पाकर उन्होनें ऐसी पहचान बनाई उनकी राय की अनदेखी कोई मंत्री, संतरी , विधायक, अधिकारी नहीं कर पाये नौकरशाह तो उस दौर में थर- थर काँपते थे और अपनी हदों को पार नहीं कर पाते थे उस समय तो ये जुमला ही मानो चल पड़ता था जो काम सीएम रहते पंडित तिवारी जी नहीं करा सकते थे वो इंदिरा हृदयेश के  एक फोन काल से हो जाता था सीएम तिवारी इंदिरा की राय का हमेशा  सम्मान करते थे और चाहकर भी नहीं नकार पाते थे इंदिरा हृदयेश ही उस दौर में मीडिया घरानों से सहज रिश्ते रखने के लिए जानी जाती थी सूचना विभाग अपने पास रखने के कारण वो सरकार की बेहतर छवि बनाने में कामयाब रही उस दौर को याद करें तो उत्तराखंड से प्रकाशित हर छोटे- बड़े समाचार पत्रों और समाचार चैनलों  को समान अनुपात में विज्ञापन मिलते रहे यह दौर आज के दौर जैसा नहीं है जब गिने चुने चार दैनिक अखबारों  और न्यूज चैनलों के सामने पूरे पेज और हर बुलेटिन का खजाना सूचना विभाग लुटा रहा है और मीडिया का मतलब इस दौर में चंद  टीवी न्यूज चैनल और चार दैनिक अखबारों को लगा लिया जाता है  उस दौर में कोई संपादक यह नहीं कह सका इसको अधिक मिल गया या  उसको कमआज तो मीडिया मैनेजर की बाजीगरी  हर जगह चल रही है जो मीडिया मैनेजर मुख्यमंत्री के सलाहकार बनने से पहले झोला लेकर चलते  थे वो आज बी एम डब्ल्यू लेकर और करोड़ों की जमीन के मालिक बन बैठे हैं शुक्र है  राज्य  के मौजूदा  सीएम तीरथ सिंह रावत उस रास्ते पर बीते 100 दिन में नहीं चल रहे हैं जिस रास्ते पर उनके पूर्ववर्ती चला करते थे जहां पर मुख्यमंत्री के स्टाफ में मीडिया सलाहकारों की फौज लाखों के पैकेज में खड़ी कर दी जाती थी जिस अंदाज में डॉ  इंदिरा हृदयेश ने  अपने लंबे प्रशासनिक  अनुभव से बिना मीडिया सलाहकार रखे सूचना विभाग संभाला उसने राज्य में काँग्रेस की बेहतर छवि बनाने में कामयाबी पायीलोक निर्माण विभाग में मंत्री रहते हुए उन्होनें राज्य में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए पहाड़ से लेकर मैदान तक सड़कों का बड़ा जाल भी  बिछाया   विकास पुरुष के नाम से मशहूर रहे पंडित  नारायण दत्त तिवारी जी ने अपने दौर से ही अपनी हल्द्वानी विधानसभा को माडल बनाने का सपना उन्होने सँजोया था और उसी दौर से उन्होनें  हल्द्वानी का कायाकल्प करने की ठानी  पंडित तिवारी जी के सीएम रहते कई प्रस्ताव उन्होनें तैयार किए और तिवारी जी से मंजूर करवाए  विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी और हेमवती नन्दन बहुगुणा की छत्रछाया में कार्य  के दौरान इन्दिरा ने बहुत कुछ सीखा और दोनों ने उनके प्रस्तावों पर हामी भरने में  कभी देरी नहीं लगाई आज पूरे उत्तराखंड में सबसे अधिक चमक- दमक अगर हल्द्वानी में दिखाई देती है तो इसके पीछे इंदिरा हृदयेश के योगदान और विकास पुरुष पंडित नारायण दत्त तिवारी की सोच को कभी नहीं भुलाया जा सकता   काँग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन जब 2006 में  नैनीताल में आयोजित हुआ तब उसे नैनीताल में कराने की कार्ययोजना  पंडित तिवारी जी ने इंदिरा के कहने पर ही बनाई थी  उस समय उत्तराखंड ज्योति के संपादक एन एस रावत हुआ करते थे  वो  डॉ इंदिरा , पंडित तिवारी और हरीश रावत के कई किस्से हमसे चाय पर चर्चा के दौरान बताया करते थे और विकास पुरुष तिवारी राज को  इंदिरा का स्वर्ण युग बताने से परहेज नहीं करते थे  नैनीताल  में इस सम्मेलन के दौरान मैंने यह नजारा अपनी आँखों के सामने खुद देखा था इस  तीन दिवसीय सम्मेलन की परिकल्पना  डॉ इंदिरा हृदयेश  के रहते ही साकार हो पायी और पचमढ़ी के बाद शायद ये आज तक का सबसे सफल सम्मेलन काँग्रेस का रहा जहां कृषि जैसे अहम मुद्दे पर पहली बार फोकस किया गया  यहाँ पर इंदिरा के सूचना विभाग मंत्री रहते मीडिया के लिए विशेष खातिरदारी की गयी और नैनीताल को नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया था नैनीताल अतिथि गृह के अच्छे दिन इसी सम्मेलन के बूते वापस आए और नैनीताल की सड़कों को चमकाया गया यूं  तो  इस सम्मेलन में सभी काँग्रेस शासित राज्यों के दर्जन भर से अधिक  सीएम शामिल थे लेकिन सबकी नजरें इंदिरा की प्रशासनिक दक्षता और  निर्णय लेने की क्षमता पर टिक गई अपनी दक्षता से इंदिरा  ने  तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और काँग्रेस शासित मुख्यमंत्रियों के सामने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया इसी सम्मेलन में  डॉ  इंदिरा का विराट स्वरूप मैंने पहली  देखा था जिसकी चर्चा मैंने उत्तराखंड ज्योति के तत्कालीन संपादक  स्वर्गीय एन एस रावत से भी कई बार की  उस सम्मेलन में वो न केवल  अधिकारियों को बेहतर व्यवस्थाएँ बनाने के लिए ज़ोर दे रही थी बल्कि मन मुताबिक कार्य तयशुदा समय में पूरा ना होने के लिए डांट फटकार लगाने से भी पीछे नहीं आ रही थी गरममिजाज के साथ ही उनका तल्ख अंदाज पहली बार यहाँ देखने को मिला जब वो नौकरशाहों और अधिकारी – कर्मचारियों की ग्राउंड जीरो पर ही क्लास लगा देती थी कामचोरी – टालमटोल  शब्द  शायद उनकी डिक्शनरी में नहीं था वो कभी नरम भी थी  तो  कभी गरम भी जनता से जुड़ना उन्हें  बखूबी आता था और हर जरूरतमंद की मदद को हमेशा आगे रहती थी इंदिरा के विधायक रहते हल्द्वानी का कायाकल्प हुआ इससे आज शायद ही कोई  इंकार करेवर्तमान में कांग्रेस के विपक्ष में रहने के चलते इंदिरा की विधानसभा के आई एस बी टी , जमरानी बांध जैसे कई प्रोजेक्ट अधर में लटक गए इस पर इंदिरा काफी परेशान भी दिखती थी वो जनता से जुड़ी हर समस्या को समाधान के चश्मे से देखना पसंद करती थी लिहाजा अपने ड्रीम प्रोजेक्टों पर ताला लगा देखना उन्हें कभी अच्छा नहीं लगा इंदिरा खुद कहा करती थी राजनीति में संबंध ही सब कुछ हैंविचारधारा भले ही अलग हो सकती है लेकिन मनमुटाव के लिए राजनीति में किसी तरह की जगह नहीं होनी चाहिए विकास कार्यों की रफ्तार पर कभी भी  राजनीति में ब्रेक नहीं लगना चाहिए सच कहें तो  इंदिरा भारतीय राजनीति की सियासत का वो नायाब हीरा थी जिसे  हर सियासी दांव पेंच में महारथ हासिल थी



2012 से लेकर 2017 तक उन्होनें उत्तराखंड की विजय बहुगुणा और हरीश रावत की सरकारों में वित्त , वाणिज्य कर , संसदीय कार्य , विधायी निर्वाचन , मनोरंजन कर , भाषा और प्रोटोकाल  जैसे कई मंत्रालय बखूबी संभाले अब जबकि डॉ. इंदिरा हृदयेश हमारे बीच नहीं हैं, इस बात पर भी चर्चा शुरू होने लगी है कि उनके जाने से उत्तराखंड और खासतौर से कुमाऊँ में कांग्रेस की राजनीति में आया शून्य कैसे भरा जाएगा ? यह तो तय है कि उनकी राजनीतिक विरासत उनके पुत्र सुमित हृदयेश संभालेंगे, जो पहले से राजनीति में पदार्पण कर चुके हैं और युवाओं में बेहद लोकप्रिय भी रहे हैं मंडी परिषद के अध्यक्ष रहते हुए सुमित हृदयेश ने अपने कार्यकाल में नई लेकीर खींची और ये बताया है उन्हें  राजनीति का हर  हुनर मालूम है डॉ इंदिरा हृदयेश को हर चुनाव लड़वाने में, रणनीति बनवाने में पर्दे के पीछे से सुमित की शुरुवात से ही बड़ी भूमिका रही है और हलदवानी  विधानसभा सीट पर काँग्रेस का भविष्य अब सुमित हृदयेश के हाथों में ही सुरक्षित रहेगा कांग्रेस पार्टी उन पर ही भविष्य में होने वाले चुनाव में  दांव खेलेगी इन संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता इस बार कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे उत्तराखंड में कहर बरपा दिया मैदान से लेकर पहाड़ तक त्राहिमाम मचा रहा कुमाऊँ का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला हल्द्वानी भी इससे अछूता नहीं रहा ऐसे दौर में जनप्रतिनिधि जब अपने घरों में बैठे हुए थे तो इंदिरा हृदयेश  ही ऐसी नेता रही जो सुमित हृदयेश के साथ आशा की नई उम्मीद बनकर संकलन में  जनता के बीच आई  अपने प्रयासों से  कोरोना पीडि़तों तक हर संभव मदद पहुंचाने में उन्होनें सबको पीछे छोड़ दिया  इस दौरान डॉ इंदिरा हृदयेश ने  हजारों लोगों को भोजन किट बांटी जनसहयोग से उन्होनें  रसोई भी चलाई  मदद पहुंचाने में ककभी भी किसी तरह की कोर कसर नहीं छोड़ी   इंदिरा देख रही थी उनकी विधानसभा का कोई भी परिवार भूखा न सोए। उनके बेटे सुमित हृदयेश का जज्बा इस कोरोना काल में नए अवतार में तब दिखा जब वो खुद जनता से सीधे कनेक्ट हो रही थी  कोरोना के इस विकट काल में सुमित हृदयेश दिन – रात डॉ इंदिरा के साथ जरूरतमन्द लोगों के मसीहा बनकर सामने आए   डॉ इंदिरा के बेटे सुमित हृदयेश ने इसी  कोरोना काल में ये भी दिखाया कि अगर जनता के बीच  समाज सेवा करनी है तो जरूरी नहीं है आप किसी पद पर हों   सुमित हृदयेश ने अपने  सहयोगियों के साथ मिलकर  हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र के जरूरतमन्द लोगों के लिए निरंतर भोजन, दवाई की व्यवस्था सुनिश्चित की  कुमाऊँ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी को सैनेटाइज कराने के लिए उन्होनें इंदिरा हृदयेश से विधायक निधि से लाखों के बजट आक्सीमीटर,  आक्सीजन सिलेन्डर , थर्मामीटर,  सेनिटाइजर जैसे आवश्यक  कीमती उपकरण स्वीकृत करवाए। कोरोनाकाल में नौकरी गँवा चुके लोगों के लिए मुफ्त राशन उपलब्ध कराया । फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स के लिए  भी वो  डॉ इंदिरा  हृदयेश को हर संभव इमदाद उपलब्ध कराने में पीछे नहीं थे  

डॉ इंदिरा हृदयेश अकेली ऐसी राजनेता थी जिनको  रिश्ते निभाना दिल से आता था एक बार जो उनसे मिल लिया उसका नाम वो याद रख लेती थी और अगली बार जाने पर फिर उसे पहचान भी लेती थी डॉ इंदिरा पक्ष में रही चाहे विपक्ष में कभी भी जनता का काम रुका नहीं जनता के प्रति समर्पित ऐसा राजनेता मैंने आज तक उत्तराखंड में नहीं देखा कमिटमेंट किसी से कर दिया तो आप तय मानिए आपका काम हर सूरत में बनकर ही रहेगा तकरीबन  सभी दलों के नेताओं के साथ उनके मधुर संबंध थे सच कहूँ तो उत्तराखंड की राजनीति में  डॉ इंदिरा हृदयेश एक अजातशत्रु थी  इंदिरा कभी भी सत्ता या विपक्ष की राजनीति के भीतर नहीं उलझी   सत्ता किसी भी पार्टी की उत्तराखंड में रही इंदिरा सीएम से लेकर मुख्य सचिव तक सीधी पकड़ रखती थी इंदिरा की कार्यशैली का राज्य का हर नेता प्रशंसक ही रहा भाजपा के दिवंगत नेता प्रकाश पंत के साथ जब भी राज्य की राजनीति पर मेरी चर्चा होती थी तो ऐसा कोई प्रसंग होता था जब  डॉ इंदिरा  हृदयेश पर चर्चा न होती हो सही मायनों में इंदिरा का कद राज्य में बहुत बड़ा था उनको मंत्री पद के दायरे में बांधना उनकी शख्सियत के साथ अन्याय होगा   स्वर्गीय प्रकाश पंत जैसे संसदीय कार्यों के जानकार भी  डॉ इंदिरा हृदयेश  के ज्ञान के आगे नतमस्तक थे संसदीय कार्य मंत्री रहते हुए  वो इंदिरा जी से अक्सर परामर्श लिया करते थे और बजट पेश करने से पहले उनसे मिलते थे जिसका जिक्र खुद  डॉ इंदिरा हृदयेश किया करती थी



आखिरी बार  डॉ इंदिरा हृदयेश से मेरी मुलाक़ात हल्द्वानी में एम बी पी जी कालेज में एक सेमिनार के दौरान हुई डॉ इंदिरा हृदयेश ने इस आयोजन में मंच से उत्तराखंड मुक्त विवि की स्थापना को अपनी सरकार का बड़ा विजन बताया था और हल्द्वानी को शिक्षा का हब बनाने की बात की थी तब जे एन यू में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर पुष्पेश पंत से भी पहली बार मेरा सामना हुआ और  अपनी बात हुई मैंने उनको अपना परिचय दिया और कहा उत्तरांचल पत्रिका में उत्तराखंड के बारे में आपके लेख गंभीर होते हैं तब प्रोफेसर पंत ने कहा आप भी लिखते हो मैं भी लिखता हूँ मैं आपको पढ़ता हूँ आप मुझे इस पर ठहाका लगा ।  तब उस आयोजन में इंदिरा जी से मैंने व्यक्तिगत रूप से इंटरव्यू के लिए थोड़ा समय मांगा ।  तब उन्होनें कहा तुम तो बाबी जैसे हो कभी भी इंटरव्यू कर लोजीवन में ज्ञान की बड़ी भूमिका है और विद्या धन से बढ़कर दूसरा कुछ भी नहीं है तब उन्होने मंत्र दिया  खूब पढ़ो और आगे बढ़ो मेरी तरफ हाथ फेरती हुई  इंदिरा बोली कभी भी घर आओ साथ बैठते हैं और राज्य के मसलों पर चर्चा करते हैं मैंने भी कहा जरूर समय निकाल कर आता हूँ । 2020 में देश में  कोरोना का लाकडाउन लग गया और आना जाना इधर उधर कम हो गया व्यस्तताएँ इतनी हो गई कि हल्द्वानी नहीं जा पाया नवंबर दिसंबर में जब भी हल्द्वानी गया तो वो देहारादून थी संकलन में  उनसे मिलने की मेरी कसक अधूरी ही रह गई शायद अब ऐसी कद्दावर राजनेता से मैं कभी नहीं मिल पाऊँगा डॉ इंदिरा के निधन के बाद प्रदेश काँग्रेस में एक रिक्तता उभर गयी है जिसकी भरपाई कर पाना इतना आसान नहीं है 

 अब कांग्रेस पार्टी के सामने नए नेता प्रतिपक्ष के चयन की बड़ी चुनौती है इन्दिरा ने बीत चार बरस से अधिक के समय में नेता प्रतिपक्ष की ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया । कांग्रेस पार्टी में उनके साथ बड़े  छोटे कार्यकर्ता और आम जन की बड़ी फौज थी ।  काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के लिए भी इंदिरा किसी गुरु से कम नहीं थी जिनकी बनाई हर रणनीति  भाजपा को सड़क से विधानसभा तक घेरने के लिए काफी थी अब बिना इंदिरा के  काँग्रेस की धार कैसी होगी ये यक्ष प्रश्न है ? फिलहाल नेता प्रतिपक्ष के लिए इस समय कई नाम कतार में खड़े हैं फिलहाल इस समय काँग्रेस में विधायक दल के उपनेता के तौर पर करन मेहरा का नाम सामने है इंदिरा के निधन के बाद शायद काँग्रेस उनके नाम पर सहमति बनाने की कोशिश कर सकती है जागेश्वर से विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का दावा भी इस पद के लिए मजबूत माना जा रहा है पहाड़ के समीकरणों को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष पद के लिए इस बार कुमाऊँ का दावा मजबूत नजर आता है



सहज और सरल स्वाभाव के धनी सबको साथ लेकर चलने की कला में माहिर  युवा तुर्क प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी नई लीडरशिप को देखते हुए इस बार सीएम की रेस में नजर आते हैं  हरीश रावत  भी  दो सीटों से पिछला  चुनाव हारने के बाद  अभी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी नजरें गड़ाए हुए हैं पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल भी लंबी रेस में शामिल हो सकते हैं   इंदिरा के साथ हर दौर में खड़े होने वाले उनके साथी अब  धुर विरोधी रहे हरीश रावत के साथ एक बार फिर साथ आएंगे या प्रीतम जैसे युवा चेहरे के तले वे सभी एक छत के नीचे आएंगे इस पर बहुत हद तक काँग्रेस का भविष्य निर्भर करेगा काँग्रेस के पास आगामी चुनावों में ब्राह्मण चेहरे के रूप में इंदिरा हृदयेश के जाने के बाद किशोर उपाध्याय सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में अब सामने हैं जिनमें भी पार्टी अपना भविष्य सुरक्षित देख सकती है वैसे भी चुनावों में अब बहुत कम समय बचा है । 2022 में कांग्रेस  का चेहरा कौन होगा इस पर अभी से उसे सोचना होगाकेवल  सामूहिक नेतृत्व   में चुनाव लड़ने की घोषणा से काँग्रेस का भला मौजूदा दौर में नहीं होना है इंदिरा हृदयेश जैसी  अनुभवी नेता  की कमी  तो उसको खूब खलेगी वो भी तब जब चुनाव का काउन डाउन शुरू होने को है इतना तय है इंदिरा जैसी दूरदर्शी नेता के निधन के बाद से उत्तराखंड काँग्रेस की भविष्य की राह इतनी आसान तो कतई नहीं रहने वाली मेरी श्रद्धांजलि

Sunday 20 June 2021

लीजेंड मिल्खा सिंह

 

                                               


 पूर्व भारतीय लीजेंड मिल्खा सिंह दुनिया से रुखसत हो गए । कोरोना रिकवरी के दौरान शुक्रवार देर रात उन्होंने आखरी  साँस ली । ठीक पाँच दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर को भी कोरोना लील गया । मिल्खा का चंडीगढ़  स्थित पी जी आई में 15 दिनों से इलाज चल रहा था । बीते 3 जून को आक्सीजन लेवेल में गिरावट के बाद उन्हें आई सी  यू में भर्ती करवाया गया था । 

 मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा जो अब पाकिस्तान का भाग है , एक सिख परिवार में हुआ था ।  आज़ादी में बटवारे की  आग ने लायलपुर पंजाब के खुशहाल किसान परिवार के  ऊपर  कहर ढा दिया । नफरत भरी भीड़ ने मिल्खा के सामने उनके माँ बाप दोनों का कत्ल कर दिया लेकिन भीड़ में  घिरे उनके पिता ने उन्हें भाग मिल्खा भाग का आदेश दिया , जो उनके जीवन का बाद में मानो गुरुमंत्र ही बन गया । मिल्खा पर  इस मंत्र पर ऐसा प्रभाव पड़ा मानो वो ताउम्र ज़िंदगी की दौर में भागते ही रहे और हमेशा खुद को गतिमान बनाए रखा ।  उन्हें खेल और देश से अगाथ प्रेम था लिहाजा देश के  विभाजन के बाद उन्होनें  भारत की राह चुनी और भारतीय सेना में शामिल हो गए । मिल्खा को सेना में भर्ती होने से पहले 3 बार रिजेक्ट किया गया था । उनकी ऊंचाई भी ठीक ठाक ही थी । वे दौड़े भी , मेडिकल भी पास किया लेकिन उन्हें 3 बार सेना में भर्ती के दौरान रिजेक्ट कर दिया गया लेकिन  यह भी सच है इसके बाद वो जो भी बने तो उसमें सेना की ट्रेनिंग ने ही बड़ी भूमिका निभाई । वहीं पर खेलों की ट्रेनिंग मिली और कोच भी मिले जिसके बाद मिल्खा की  ज़िंदगी ने सही मायनों में ऊंची उड़ान भरी । 

 1956 में मिल्खा ने मेलबर्न  में आयोजित ओलंपिक खेलों में भाग लिया । वो इस अंतर्राष्ट्रीय स्पदधा में कुछ खास नहीं कर पाये लेकिन इसने भविष्य के लिए रास्ते खोलने का काम किया । 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर  और 400मीटर  में उन्होने कई रिकार्ड अपने नाम किए । इसी साल टोक्यो में आयोजित एशियाई  खेलों में 200 मीटर  और 400 मीटर में भी उन्होनें  कई रिकार्ड अपने नाम किए । 1959 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा गया ।1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौर में वो चौथे स्थान पर जगह बनाने में सफल हुए ।  हालांकि वह पदक जीतने से बहुत दूर रहे लेकिन  इस रेस में 45.43 सेकेंड का  समय निकाला था जो एक राष्ट्रीय रिकार्ड था , जो 40 साल तक बरकरार रहा । 

 5 बार के एशियन चैंपियन मिल्खा को 1960  में  पहली बार फ्लाइंग सिख कहा गया । उन्हें यह उपनाम पाक के  तत्कालीन राष्ट्रपति आयूब खान के द्वारा दिया गया । 1960 में अयूब खान ने इंडो पाक खेल प्रतियोगिता के लिए उन्हें पाक आमंत्रित किया था । मिल्खा  अपने बचपन में जिस देश को छोड़कर आए  , वहाँ पर वो नहीं जाना चाहते थे  लेकिन तत्कालीन  पी एम नेहरू के कहने पर भारतीय दल के लीडर के तौर पर प्रतिनिधित्व करने को राजी हुए ।  मिल्खा ने 200 मीटर स्प्रिंट में पाक के सुपर स्टार अब्दुल खलीक  को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया और भारत देश का झण्डा पाक में बुलंदियों पर पहुंचा दिया ।  स्टेडियम में उस वक्त मौजूद सभी  दर्शक  मिल्खा के प्रदर्शन को देखकर हैरत में  पड़ गए । इस जीते के खास  मौके पर  जनरल अयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख कहकर पुकारा । पाक जरनल अयूब खान ने तब मिल्खा की पीठ ठोकते हुए कहा था मिल्खा इस आज की  इस रेस में तुम दौड़े ही नहीं तुम हवा में उड़ते  गए यहीं से मिल्खा फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर हुए । 

 2001 में उन्हें अर्जुन अवार्ड देने की घोषणा  भी की गयी थी लेकिन उन्होने इसे लेने से इंकार कर दिया । बाद में उन्होने इसकी वजह बताते हुए कहा आजकल देश में अवार्ड प्रसाद की तरह बांटे जाते हैं । मुझे पद्मश्री अवार्ड मिलने के बाद अर्जुन अवार्ड के लिए चुना  गया,  यह मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता था । मिल्खा ने 1959 में राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक अपने  नाम किया था ।  मिल्खा सिंह  ने 1962  जकार्ता एशियन  खेलों में लागातार 2 स्वर्ण पदक अपने नाम किए । उन्होने 400 मीटर रेस और 400 मीटर रिले रेस में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया था । इससे पहले 1958 एशियाई खेलों में 200 और 400 मीटर में भी स्वरण पदक जीता था । 56 बरस तक यह रिकार्ड कोई तोड़ नहीं सका । 2010 में कृष्ण पूनीया  ने 2010 डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक हासिल किया था ।  

4 मार्च 2018 में पंजाब विश्व विद्यालय में हुए  दीक्षांत समारोह में मिल्खा को खेल रत्न  अवार्ड से नवाजा गया था  । अवार्ड मिलने के के बाद मिल्खा ने कहा था वो चाहते हैं कि उनके  मरने से पहले  कोई ओलंपिक मेडल जीतकर ले आए । उन्होने कहा था 90 साल का हो गया हूँ लेकिन दिल में ख्वाईश है कोई देश के लिए स्वर्ण पदक ओलंपिक में जीते और भारत का झण्डा लहराये ।  मिल्खा  सिंह कई बार ये कहते हुए सुने जा सकते जितनी भूख हो , उससे आधा खाइये क्योंकि बीमारियाँ पेट से शुरू होती हैं । खून शरीर में तेजी से बहेगा तो बीमारियाँ भगा देगा ।  वो  अपने  बेटे जीव मिल्खा  को कभी स्पोर्ट्स पर्सन नहीं बनाना चाहते थे ।  वह भी तब जब  उनकी पत्नी  निर्मल कौर भी खुद  एक दौर में वालीबाल की राष्ट्रीय कप्तान रह चुकी थी । अपने बेटे जीव  मिल्खा  को वो कुछ प्रोफेशनल डिग्री दिलाना चाह  रहे थे लेकिन आपकी  किस्मत में  ऊपर वाले ने जो जो लिखा होता है उसे कोई टाल ही नहीं  सकता । जब उनके बेटे को शिमला के स्कूल में भेजा तो उसने जूनियर गोल्फ में नेशनल जीता फिर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए लंदन और अमरीका की राह को पकड़कर 4 बार यूरोप की चैम्पियनशिप अपने नाम की और फिर उसे भी पदम श्री मिल गया ।   

मिल्खा  सिंह पर आज  हर भारतवासी को बहुत गर्व है। वह भी तब जब  बाज़ार और  मीडिया ने खेल को उद्योग का बड़ा दर्जा दे दिया है । मिल्खा ने संसाधनों के अभाव में भी अपने वास्तविक खेल से दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया । आज एक दौर में खेलों में  पैसा बोल रहा है और इसे मनोरंजन का बड़ा माध्यम  बाज़ार ने बना दिया है  ऐसे दौर में मिल्खा सिंह ने खेल के माध्यम से देश के स्वाभिमान को सीधे जोड़ने का काम किया । मिल्खा ने खेल को कभी पैसे से  और  ना ही कभी ग्लैमर से जोड़ा । उनके लिए देश का झण्डा सबसे पहले था । महान खिलाड़ी के तौर पर देश उनके योगदान को कभी भुला नहीं सकता । मिल्खा हमारे सामने रोल माडल बने रहेंगे ।